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May 31 2025

नोमैडिक एलीफेंट अभ्यास

हाल ही में भारतीय सेना की टुकड़ी भारत-मंगोलिया संयुक्त सैन्य अभ्यास नोमैडिक एलीफेंट के 17वें संस्करण के लिए रवाना हुई।

अभ्यास के बारे में

  • 17वां संस्करण मंगोलिया के उलानबटार में आयोजित किया जा रहा है।
  • भारतीय दल का प्रतिनिधित्व मुख्य रूप से अरुणाचल स्काउट्स की बटालियन द्वारा किया जाएगा।
  • आयोजन: वार्षिक रूप से, भारत एवं मंगोलिया द्वारा बारी-बारी से आयोजित किया जाता है।
  • अंतिम संस्करण: जुलाई 2024 (उमरोई, मेघालय, भारत)।
    • पहली बार वर्ष 2006 में आयोजित किया गया।
  • उद्देश्य एवं लक्ष्य
    • संयुक्त राष्ट्र अधिदेश के तहत अर्द्ध-पारंपरिक अभियानों में अंतर-संचालन क्षमता को बढ़ाना।
    • अर्द्ध-शहरी/पहाड़ी इलाकों में युद्ध पर ध्यान केंद्रित करना।
    • भारत एवं मंगोलिया के बीच संयुक्त कार्य बल संचालन को मजबूत करना।

सुगंध के पीछे का विज्ञान

एक संक्रामक रोग विशेषज्ञ अध्ययन कर रहा है कि माइक्रोबायोम अनुसंधान लोगों को सही परफ्यूम चुनने में कैसे मदद कर सकता है।

त्वचा माइक्रोबायोम क्या है?

  • त्वचा माइक्रोबायोटा हमारी त्वचा पर रहने वाले छोटे जीवों के समुदाय को संदर्भित करता है।
  • इसमें बैक्टीरिया, कवक, वायरस, प्रोटोजोआ एवं यहाँ तक ​​कि घुन भी शामिल हैं।
  • यह शब्द विशेष रूप से इन सभी सूक्ष्म जीवों के आनुवंशिक पदार्थ (जीनोम) को संदर्भित करता है।

त्वचा माइक्रोबायोम परफ्यूम के प्रभाव को कैसे प्रभावित करता है?

परफ्यूम प्रत्येक व्यक्ति पर अलग-अलग प्रतिक्रिया करते हैं, क्योंकि उनकी त्वचा माइक्रोबायोम के प्रति अद्वितीय व्यवहार प्रदर्शित करती है, जिसमें लाखों बैक्टीरिया होते हैं, जो त्वचा के रसायन को प्रभावित करते हैं।

कुछ परफ्यूम अलग-अलग लोगों पर भिन्न-भिन्न गंध क्यों उत्पन्न करते हैं?

  • किसी भी दो लोगों की त्वचा माइक्रोबायोम एक जैसी नहीं होती।
  • बैक्टीरिया परफ्यूम के अवयवों के साथ अंतर्संबंध स्थापित कर खुशबू का निर्धारण करता है।
  • चुनौती: गलत परफ्यूम का उपयोग करने या इसका अधिक उपयोग करने से त्वचा संबंधी समस्याएँ, हृदय संबंधी समस्याएँ हो सकती हैं या हानिकारक रसायनों के संपर्क में आने की संभावना भी हो सकती है।

शरीर की गंध में त्वचा के बैक्टीरिया की भूमिका

गंध उत्पादन में तीन मुख्य प्रकार के बैक्टीरिया शामिल होते हैं:

  • क्यूटीबैक्टीरियम एक्नेस – तैलीय क्षेत्रों (चेहरे, पीठ, छाती, आदि) पर पाया जाता है, जो कस्तूरी जैसी गंध पैदा करता है।
  • कोरीनेबैक्टीरियम – नम क्षेत्रों (बगल, कमर) में पाया जाता है, जो तेज गंध पैदा करता है।
  • स्टैफिलोकोकस एपिडर्मिडिस – शरीर के विभिन्न हिस्सों पर मौजूद होता है, जो गंध पैदा करने वाले बैक्टीरिया को संतुलित करने में मदद करता है।

कुंभकोणम वेत्रिलाई

कुंभकोणम वेत्रिलाई को भारत सरकार द्वारा भौगोलिक संकेत (GI) टैग दिया गया है।

तमिलनाडु में GI उत्पाद

  • इसके साथ ही, तमिलनाडु में अब 62 GI-टैग युक्त उत्पाद हैं।

कुंभकोणम वेत्रिलाई के बारे में

  • इसे सुपारी के पत्ते के रूप में जाना जाता है।
  • इन्हें तंजावुर के कावेरी नदी बेसिन में उगाया जाता है, जो इनके विशिष्ट स्वाद एवं सुगंध को बढ़ाता है।
  • पत्ते दिल के आकार के, गहरे से हल्के हरे रंग के होते हैं एवं इनका स्वाद तीखा होता है।
  • इसमें पहली बार पत्तियाँ रोपण के 20-25 दिन बाद निकलती हैं।
  • पहली फसल, जिसे मारुवेथलाई कहा जाता है, 7वें एवं 12वें महीने के बीच होती है, जिसमें बड़े, लंबे समय तक चलने वाले पत्ते मिलते हैं, जिनकी कीमत अधिक होती है।
  • दूसरे एवं तीसरे वर्ष की फसल- केलावेथलाई तथा कट्टावेथलाई- कम उपज देती है।
  • प्रमुख खेती वाले क्षेत्रों में थिरुवैयारु, पापनासम, थिरुविदैमरुदुर, कुंभकोणम एवं राजगिरी शामिल हैं।
  • पान के पत्तों के स्वास्थ्य लाभ
    • पान के पत्ते पाचन में सहायता करते हैं एवं एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होते हैं।
    • इनमें चैविकोल होता है, जो एक सूजनरोधी यौगिक है, जो ऑक्सीडेटिव तनाव को कम करता है एवं मधुमेह जैसी स्थितियों के लिए फायदेमंद हो सकता है।

तेल उत्पादन बढ़ाने की OPEC की रणनीति एवं अमेरिकी शेल ड्रिलर्स

तेल उत्पादन बढ़ाने की OPEC की रणनीति अमेरिकी शेल ड्रिलर्स को प्रभावित कर रही है, जिससे उन्हें परिचालन धीमा करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।

OPEC क्या है?

  • OPEC पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन को संदर्भित करता है।
  • स्थापना: इसका गठन वर्ष 1960 में ईरान, इराक, कुवैत, सऊदी अरब एवं वेनेजुएला द्वारा किया गया था।
  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य वैश्विक तेल की कीमतों को स्थिर करने एवं अत्यधिक उतार-चढ़ाव को रोकने के लिए तेल आपूर्ति को नियंत्रित करना है।
  • मुख्यालय: वियना, ऑस्ट्रिया।
  • सदस्य देश- वर्तमान में, अल्जीरिया, इक्वेटोरियल गिनी, गैबॉन, ईरान, इराक, कुवैत, लीबिया, नाइजीरिया, कांगो गणराज्य, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात एवं वेनेजुएला जैसे 12 सदस्य देश हैं।
    • अंगोला, इक्वाडोर, इंडोनेशिया एवं कतर पहले OPEC के सदस्य थे, लेकिन अब वे ओपेक से बाहर हो गए हैं।

OPEC+ क्या है?

  • OPEC प्लस उन गैर-ओपेक देशों (10) को संदर्भित करता है, जो 12 ओपेक सदस्य देशों के अलावा कच्चे तेल का निर्यात करते हैं।
  • सदस्यता: OPEC प्लस देशों में अजरबैजान, बहरीन, ब्रुनेई, कजाकिस्तान, मलेशिया, मैक्सिको, ओमान, रूस, दक्षिण सूडान एवं सूडान शामिल हैं।
  • OPEC+ में प्रमुख अभिकर्त्ता
    • सऊदी अरब एवं रूस: सऊदी अरब एवं रूस दोनों ने पिछले तीन वर्षों से OPEC प्लस गठबंधन में केंद्रीय भूमिका निभाई है।
    • गठबंधन का उद्देश्य: गठबंधन, जिसमें शुरू में 11 ओपेक सदस्य एवं 10 गैर-OPEC  देश शामिल थे, का उद्देश्य समन्वित उत्पादन कटौती के माध्यम से तेल की कीमतों को स्थिर करना है।

वन-पॉइंट डैशबोर्ड ‘ECINET’ 

चुनाव आयोग का वन-पॉइंट डैशबोर्ड ‘ECINET’ बिहार चुनाव से पहले चालू हो जाएगा।

ECINET के बारे में

  • वन-स्टॉप डिजिटल प्लेटफॉर्म: ECINET एक एकीकृत डिजिटल इंटरफेस है, जिसे भारत के चुनाव आयोग (Election Commission of India- ECI) द्वारा मतदाताओं, चुनाव अधिकारियों, राजनीतिक दलों एवं नागरिक समाज के लिए विकसित किया जा रहा है।
  • उद्देश्य: हितधारकों (मतदाताओं, अधिकारियों, राजनीतिक दलों) के लिए सेवाओं को एक स्थान पर समेकित करके चुनाव प्रबंधन को सुव्यवस्थित करना।
  • 40 से अधिक ऐप्स का एकीकरण: यह वोटर हेल्पलाइन ऐप, cVIGIL, सुविधा 2.0, ESMS, सक्षम एवं KYC ऐप जैसे 40 से अधिक मौजूदा मोबाइल तथा वेब ऐप को एकीकृत एवं प्रतिस्थापित करेगा।
  • सटीक एवं अधिकृत डेटा प्रविष्टि: सटीकता सुनिश्चित करने के लिए केवल अधिकृत ECI अधिकारी ही ECINET पर डेटा दर्ज कर सकते हैं।
  • व्यापक लाभार्थी आधार: लगभग 100 करोड़ मतदाताओं एवं  BLOs, BLAs, मतदान अधिकारियों, AEROs, EROs तथा DEOs सहित पूरे चुनावी कार्यबल की सेवा करने की उम्मीद है।
  • क्रॉस-डिवाइस संगतता: प्लेटफॉर्म कंप्यूटर एवं स्मार्टफोन दोनों पर उपलब्ध होगा।
  • कानूनी अनुपालन: जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (1950, 1951), प्रासंगिक चुनावी नियमों (1960, 1961) एवं ECI द्वारा जारी निर्देशों के साथ पूरी तरह से संरेखित।
  • चरणबद्ध रोलआउट: कुछ मॉड्यूल 19 जून, 2025 को पाँच विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनावों के दौरान चालू रहेंगे, जबकि पूरा डैशबोर्ड बिहार विधानसभा चुनावों के लिए उपलब्ध होगा।

ग्राम रक्षा गार्ड (VDG)

ऑपरेशन सिंदूर के बाद, सीमा सुरक्षा बल ने पाकिस्तान के साथ जम्मू सीमा पर ग्राम रक्षा गार्ड (Village Defence Guards- VDGs) के लिए हथियार प्रशिक्षण शुरू किया है। 

ग्राम रक्षा गार्ड पहल के बारे में 

  • पृष्ठभूमि: VDG पहल मूल रूप से वर्ष 1995 में आतंकवादियों द्वारा लक्षित हिंदू नागरिकों की रक्षा के लिए शुरू की गई थी; वे .303 राइफलों से लैस थे।
    • बाद में 1990 के दशक के दौरान सदस्यों द्वारा आपराधिक कदाचार (जैसे- अपहरण, दुष्कर्म) के आरोपों के कारण इसे बंद कर दिया गया। 
  • पुनरुद्धार: आतंकवादी गतिविधियों में पुनरुत्थान के कारण 20 से अधिक वर्षों के अंतराल के बाद वर्ष 2022 में जम्मू क्षेत्र में इसे पुनर्जीवित किया गया।
  • वर्तमान प्रशिक्षण एवं आयुध: पहली बार, सीमा सुरक्षा बल (Border Security Force- BSF) जम्मू सीमा पर VDG के लिए हथियार प्रशिक्षण आयोजित कर रहा है। 
  • प्रशिक्षण में शामिल हैं
    • फायरिंग अभ्यास 
    • सामरिक ज्ञान साझा करना 
    • परिस्थितिजन्य जागरूकता 
    • अब ग्रामीणों को पुरानी बोल्ट-एक्शन राइफलों के बजाय अर्द्ध-स्वचालित हथियारों से लैस किया जा रहा है। 
  • भूमिका एवं रणनीतिक महत्त्व: VDG को “रक्षा की दूसरी पंक्ति” एवं आतंकवादी हमलों के लिए संभावित प्रथम प्रतिक्रियाकर्ता के रूप में देखा जाता है। 
    • VDG “बल गुणक” के रूप में कार्य करते हैं: 
      • घुसपैठ को रोकने में मदद करते हैं। 
      • आतंकवादियों के भागने को रोकते हैं। 
      • जमीन से वास्तविक समय की खुफिया जानकारी प्रदान करते हैं। 
  • VDG जिला पुलिस अधीक्षक (Superintendent Of Police- SP)/वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (Senior Superintendent Of Police- SSP) की देख-रेख में भी काम करते हैं।

राज्य-विशिष्ट आपदाएँ

केरल सरकार ने कोच्चि जहाज दुर्घटना को राज्य विशिष्ट आपदा घोषित किया है।

संबंधित तथ्य

  • हाल ही में एक मालवाहक जहाज, MSC ELSA-3 केरल के तट से 14.6 समुद्री मील दूर डूब गया।
  • यह जहाज दुर्घटना केरल के तट के लिए पर्यावरणीय, सामाजिक एवं आर्थिक रूप से संभावित रूप से गंभीर खतरा पैदा कर सकता है।

राज्य-विशिष्ट आपदाएँ

  • परिभाषा: ऐसी आपदाएँ, जो किसी राज्य की स्थानीय होती हैं एवं गृह मंत्रालय द्वारा अधिसूचित आपदाओं के रूप में सूचीबद्ध नहीं होती हैं।
  • घोषणा: राज्य सरकार द्वारा घोषित।
  • वित्तपोषण तंत्र: तत्काल राहत के लिए राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (State Disaster Response Fund- SDRF) से 10% तक धन का उपयोग करता है।
  • उत्तरदायी प्राधिकरण: राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (State Disaster Management Authority- SDMA), जिसे वर्ष 2005 के आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत स्थापित किया गया है।
  • SDMA की संरचना: मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में एवं इसमें मुख्यमंत्री द्वारा नियुक्त आठ से अधिक सदस्य शामिल नहीं होते हैं। 
  • SDMA की भूमिका: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना के अनुरूप राज्य आपदा प्रबंधन योजना तैयार करना एवं उसका क्रियान्वयन करना।

विकसित कृषि संकल्प अभियान

हाल ही में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री ने ओडिशा के भुवनेश्वर स्थित ICAR-CIFA में विकसित कृषि संकल्प अभियान (Viksit Krishi Sankalp Abhiyan) (VKSA-2025) का शुभारंभ किया। 

  • यह अभियान आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण के अनुरूप है एवं प्रौद्योगिकी प्रसार तथा जमीनी स्तर पर भागीदारी के माध्यम से भारतीय कृषि को बदलने का प्रयास करता है।
  • ICAR-CIFA  द्वारा मछलियों में परजीवी संक्रमण से निपटने, मत्स्यन संबंधी सुधार लाने एवं आर्थिक नुकसान को कम करने के लिए एक नवीन मछली वैक्सीन ‘CIFA Argu VAX–I’ विकसित की गई है।

विकसित कृषि संकल्प अभियान के बारे में

विशेषता

विवरण

लक्ष्य उन्नत कृषि एवं मत्स्यपालन प्रौद्योगिकियों के साथ 1.5 करोड़ से अधिक किसानों तक पहुँचना
उद्देश्य पूरे भारत में प्रौद्योगिकी प्रसार, क्षमता निर्माण एवं किसान सहभागिता
फोकस क्षेत्र कृषि एवं मत्स्य पालन (खाद्य सुरक्षा एवं आजीविका के प्रमुख स्तंभ के रूप में)
कार्य योजना वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों, अधिकारियों एवं प्रगतिशील किसानों की टीमें 700 से अधिक जिलों का दौरा कर किसानों को आधुनिक कृषि के बारे में जानकारी प्रदान करेंगी।

भारत का पहला AI SEZ

हाल ही में छत्तीसगढ़ ने नवा रायपुर में ₹1,000 करोड़ के निवेश के साथ भारत के पहले आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (Artificial Intelligence- AI) आधारित विशेष आर्थिक क्षेत्र की घोषणा की।

AI SEZ के बारे में

  • रैकबैंक डेटासेंटर प्राइवेट लिमिटेड द्वारा विकसित।
  • बुनियादी ढाँचा: आधुनिक सर्वर एवं कंप्यूटर सिस्टम से लैस, SEZ में 80 मेगावाट क्षमता के चार भविष्य के डेटा सेंटर शामिल करने की योजना है।
    • यह 1.5 लाख वर्ग फुट के उन्नत डेटा सेंटर के साथ 6 एकड़ में फैला होगा।
  • ये केंद्र अंतर-राज्यीय डिजिटल नेटवर्क एवं उच्च घनत्व वाले डेटा संचालन को सँभालेंगे।
  • सरकारी सहायता: राज्य ने AI एवं कंप्यूटर डेटा से संबंधित तकनीकी नवाचार को तेज करने के लिए कर तथा कानूनी छूट प्रदान की है।
  • नीतिगत ढाँचा: SEZ मौजूदा SEZ नीति के तहत काम करेगा, जिसे SEZ अधिनियम 2005 के माध्यम से पेश किया गया था।
    • SEZ एक विशेष रूप से चित्रित शुल्क-मुक्त एन्क्लेव है, जिसे व्यापार संचालन, शुल्क एवं टैरिफ के उद्देश्यों के लिए एक विदेशी क्षेत्र माना जाता है।

महत्त्व

  • डिजिटल इंडिया विजन को बढ़ावा: डिजिटल इंडिया एवं मेक इन इंडिया लक्ष्यों के साथ संरेखित।
  • रोजगार एवं कौशल: SEZ IT इंजीनियरों, डेटा विशेषज्ञों, साइबर सुरक्षा अधिकारियों एवं अन्य के लिए रोजगार पैदा करेगा।
    • उद्योग-विशिष्ट कौशल के लिए ITI, इंजीनियरिंग एवं पॉलिटेक्निक कॉलेजों के साथ प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाएँगे।

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संदर्भ

केंद्रशासित प्रदेश दीव, 11.88 मेगावाट की उत्पादन क्षमता हासिल करके, अपनी 100% बिजली की आवश्यकताओं को सौर ऊर्जा से पूरा करने वाला भारत का पहला जिला बन गया है।

  • यह उपलब्धि नवीकरणीय ऊर्जा अपनाने में भारत की प्रगति को उजागर करती है, विशेष रूप से जिला स्तर पर।

महत्त्व

  • निवेश प्राप्ति के साथ सौर ऊर्जा अवसंरचना की आर्थिक व्यवहार्यता को प्रदर्शित करता है।
  • भारत की जलवायु प्रतिबद्धताओं और ऊर्जा संक्रमण लक्ष्यों का समर्थन करता है।
  • शहरी-ग्रामीण ऊर्जा पहुँच में PM-सूर्य घर योजना के प्रभावी कार्यान्वयन को दर्शाता है।

PM-सूर्य घर के बारे में: मुफ्त बिजली योजना

विशेषता

विवरण

प्रकार केंद्रीय क्षेत्र योजना
लॉन्च वर्ष वर्ष 2024
मंत्रालय नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE)
उद्देश्य छत पर सौर पैनल लगाने वाले घरों को 300 यूनिट प्रति माह तक मुफ्त बिजली उपलब्ध कराना
लक्ष्य पूरे भारत में 1 करोड़ परिवार
माध्यम सब्सिडी आधारित छत पर सौर ऊर्जा स्थापना (सब्सिडी सौर पैनलों की लागत का 40% तक कवर करेगी)।
अन्य सुविधाएँ इससे नए कौशल और उन्नतीकरण के माध्यम से 3 लाख से अधिक कुशल जनशक्ति का सृजन होगा।

संदर्भ

भारत अब पुरुषों में कैंसर की घटनाओं एवं मृत्यु दर में विश्व स्तर पर पहले स्थान पर है, जो उच्च तंबाकू उपयोग और हानिकारक उत्पादों की बढ़ती सामर्थ्य के कारण है।

विश्व तंबाकू निषेध दिवस 2025

  • विश्व तंबाकू निषेध दिवस प्रत्येक वर्ष 31 मई को मनाया जाता है, जिसकी शुरुआत वर्ष 1987 में WHO द्वारा तंबाकू के नुकसानों को विश्व के समक्ष रखने के लिए की गई थी।
  • थीम 2025: ‘एक्सपोज द इंडस्ट्रीज मैनिपुलेशन’ (Expose the Industry’s Manipulation)। 
  • इस थीम का उद्देश्य तंबाकू उद्योग की उभरती हुई रणनीतियों को उजागर करना है, जो खुद को एक वेलनेस सेक्टर के रूप में रीब्रांड कर रहे हैं, विशेषतः फ्लेवर्ड, स्लीक निकोटीन उत्पादों के माध्यम से।

भारत में तंबाकू का उपयोग

  • व्यापक उपयोग: भारत में 270 मिलियन से अधिक लोग तंबाकू का सेवन करते हैं।
    • वैश्विक वयस्क तंबाकू सर्वेक्षण 2016-17 (GATS 2) के अनुसार, 199 मिलियन भारतीय धुआँ रहित तंबाकू (SLT) का सेवन करते हैं, 72 मिलियन लोग बीड़ी पीते हैं और 37 मिलियन लोग सिगरेट पीते हैं।
    • दुनिया के 70% SLT उपयोगकर्ता भारत में रहते हैं।
  • लैंगिक आधार पर उपयोग: GATS2 के आँकड़ों के अनुसार, भारत में लगभग 42% पुरुष और 14% महिलाएँ तंबाकू का सेवन करती हैं।
  • कृषि का केंद्र: तंबाकू की कृषि मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और गुजरात में की जाती है, जिससे आजीविका निर्वहन तो होता है, लेकिन सार्वजनिक स्वास्थ्य पर बोझ बढ़ता है।
  • भारी आर्थिक नुकसान: तंबाकू के उपयोग से भारत को वित्तीय वर्ष 2017-18 में ₹1.77 लाख करोड़ का नुकसान हुआ, जो सकल घरेलू उत्पाद का 1.04% है, जिसमें धूम्रपान का योगदान 74% है।

तंबाकू पर पूर्ण प्रतिबंध लागू करने में चुनौतियाँ

  • नीतिगत हस्तक्षेप: तंबाकू उद्योग कड़े कानूनों को रोकने के लिए लॉबिंग और CSR गतिविधियों के माध्यम से नीति को प्रभावित करता है।
  • कर के बावजूद बढ़ती सामर्थ्य: 35% पर प्रस्तावित GST के बावजूद, यह WHO की 75% संबंधी कर अनुशंसा से कम है, जिससे तंबाकू की कीमत अभी भी कम है।
  • कीमत, रोकथाम को कमजोर करती है: बीड़ी की कीमत ₹5 (एक कप चाय से भी कम) जितनी कम है, सिगरेट और धुआँ रहित तंबाकू भी ₹5-₹12 में उपलब्ध हैं, जो कम दैनिक आय वालों की पहुँच में हैं।
  • सिंगल सिगरेट बिक्री: 87% दुकानों में आमतौर पर सिंगल सिगरेट की बिक्री स्वास्थ्य चेतावनियों को दरकिनार करती है और कम खरीद अवरोधों को बनाए रखती है।
  • उद्योग की रणनीति: निर्माता करों में वृद्धि के बावजूद कीमत को अपरिवर्तित रखते हुए करों को अवशोषित करने के लिए ‘अंडरशिफ्टिंग’ का उपयोग करते हैं और इकाई मूल्य निर्धारण तथा बढ़ती आय के माध्यम से सामर्थ्य को भी बनाए रखा जाता है।
  • कमजोर प्रवर्तन: गुटखा एवं ई-सिगरेट पर प्रतिबंध के बावजूद, उत्पादों को हर्बल या आयुर्वेदिक के रूप में पुनः ब्रांड किया जाता है ताकि विनियमनों को दरकिनार किया जा सके, कानूनी क्षेत्रों का लाभ उठाया जा सके।
  • डिजिटल खामियाँ: निकोटीन उत्पादों की ऑनलाइन बिक्री में कठोर आयु सत्यापन का अभाव है, जिससे युवाओं को फ्लेवर्ड पाउच और अन्य उत्पादों तक पहुँच प्राप्त होती है।
  • कंपनियों के लिए दोहरी आय: प्रमुख तंबाकू कंपनियाँ अब निकोटीन प्रतिस्थापन चिकित्सा बनाने वाली दवा कंपनियों में निवेश करती हैं, जिससे लत एवं उपचार दोनों से लाभ होता है।

राष्ट्रीय विधान

  • सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद (विज्ञापन का प्रतिषेध और व्यापार तथा वाणिज्य, उत्पादन, प्रदाय और वितरण का विनियमन) अधिनियम (COTPA) 2003: यह तंबाकू के विभिन्न पहलुओं, जैसे उत्पादन और आपूर्ति, विज्ञापन एवं प्रचार, वितरण तथा बिक्री, साथ ही पैकेजिंग और लेबलिंग को नियंत्रित करता है। 
  • इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट प्रतिषेध अधिनियम (PECA), 2019: इसने भारत में ई-सिगरेट पर प्रतिबंध लागू कर दिया है। 
  • तंबाकू कराधान: भारत तंबाकू पर भारी कर आरोपित करता है, सिगरेट पर खुदरा मूल्य का 53% कर आरोपित करता है। लेकिन बीड़ी, जो एक सस्ता विकल्प है, पर अत्यधिक कम 16% कर  आरोपित करता है।

तंबाकू के उपयोग को कम करने के लिए WHO की पहल

  • WHO की MPOWER पहल में छह उपाय शामिल हैं:
    • M-Monitor: तंबाकू उपयोग और रोकथाम नीतियों की निगरानी करना।
    • P-Protect: लोगों को तंबाकू के धुएँ से सुरक्षित रखना।
    • O-Offer: तंबाकू छोड़ने में मदद प्रदान करना।
    • W-Warn: तंबाकू के खतरों के बारे में चेतावनी देना।
    • E- Enforce: तंबाकू विज्ञापन, प्रचार और प्रायोजन पर प्रतिबंध लागू करना।
    • R-Raise: तंबाकू पर कर बढ़ाना।
  • तंबाकू नियंत्रण पर WHO फ्रेमवर्क कन्वेंशन (FCTC): वर्ष 2003 में अपनाया गया तंबाकू नियंत्रण पर WHO फ्रेमवर्क कन्वेंशन (FCTC) कानूनी और नीतिगत उपायों के माध्यम से तंबाकू की खपत और इसके स्वास्थ्य प्रभावों को कम करने के लिए दुनिया की पहली सार्वजनिक स्वास्थ्य संधि है।
  • वर्ष 2024 के WHO दिशा-निर्देश: WHO निकोटिन की समाप्ति के लिए पर्यवेक्षित निकोटीन प्रतिस्थापन चिकित्सा (Nicotine Replacement Therapy- NRT), व्यवहार परामर्श और साइटिसिन, बुप्रोपियन और वैरेनिकलाइन जैसी गैर-निकोटीन दवाओं के उपयोग की सिफारिश करता है।

व्यापक प्रतिबंध लागू करने के तरीके

  • कराधान रणनीति: आय वृद्धि से ऊपर तंबाकू करों में वृद्धि; सामर्थ्य को कम करने के लिए WHO की 75% MRP अनुशंसा के साथ संरेखित करना।
  • सिंगल स्टिक पर प्रतिबंध: पैकेजिंग चेतावनियों को सुदृढ़ करने और आवेगपूर्ण खरीद को रोकने के लिए सिंगल-स्टिक बिक्री पर प्रतिबंध लगाना।
  • स्वादिष्ट और मनोरंजक निकोटीन उत्पादों पर प्रतिबंध: विशेष रूप से युवाओं को लक्षित करने वाले फ्लेवर्ड पाउच और गम (Gum) को सख्ती से विनियमित या प्रतिबंधित करना।
  • ऑनलाइन विनियमन को मजबूत करना: आयु सत्यापन को अनिवार्य करना और निकोटीन उत्पादों की ई-कॉमर्स बिक्री को प्रतिबंधित करना।
  • समाप्ति अवसंरचना में निवेश करना: स्थायी, विज्ञान-आधारित समाप्ति के लिए क्विटलाइन का विस्तार करना, प्रदाताओं को प्रशिक्षित करना और WHO द्वारा अनुशंसित दवाओं को सब्सिडी प्रदान करना।
  • COTPA और साधारण पैकेजिंग को लागू करना: छद्म विज्ञापन को रोकने के लिए COTPA की धारा 5 को लागू किया जाएगा तथा सख्त स्वास्थ्य चेतावनियों के साथ साधारण पैकेजिंग शुरू की जाएगी।

निष्कर्ष

भारत में तंबाकू की लत उद्योग की रणनीति के साथ विकसित हो रही है। इस खतरे से निपटने के लिए बहु-क्षेत्रीय समन्वय, आक्रामक विनियमन और सार्वजनिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है ताकि तंबाकू मुक्त भविष्य सुनिश्चित किया जा सके।

संदर्भ

हाल ही में अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ बनाम भारत संघ मामले में दिए गए निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायिक सेवा में प्रवेश के लिए न्यूनतम तीन वर्ष की कानूनी सेवा को अनिवार्य शर्त के रूप में बहाल कर दिया है।

तीन वर्षीय न्यायिक सेवा संबंधी अधिदेश के बारे में

  • पात्रता खंड: तीन वर्षीय न्यायिक सेवा अधिदेश एक प्रस्ताव को संदर्भित करता है, जिसके अनुसार न्यूनतम तीन वर्ष के न्यायालयी अनुभव वाले अधिवक्ता ही सीधी भर्ती के माध्यम से अधीनस्थ न्यायपालिका में प्रवेश के लिए पात्र होने चाहिए।
  • व्यावहारिक अनुभव के लिए अनुशंसा
    • भारत के 14वें विधि आयोग (1958) ने सिफारिश की थी कि न्यायिक सेवा के लिए उम्मीदवारों के पास न्यायिक अधिकारियों की पेशेवर क्षमता को बढ़ाने के लिए न्यूनतम 3 वर्ष की न्यायिक सेवा संबंधी अनुभव होना चाहिए। 
    • न्यायिक वेतन और सेवा शर्तों के लिए गठित न्यायमूर्ति शेट्टी आयोग (2002) ने भी सक्षम और अनुभवी न्यायाधीशों को सुनिश्चित करने के लिए न्यायपालिका में भर्ती के लिए न्यूनतम तीन वर्ष की बार सेवा को एक शर्त के रूप में समर्थन दिया।

भारत में न्यायिक सेवा

  • भारतीय न्यायिक सेवा प्रणाली की जड़ें औपनिवेशिक काल में निहित हैं, जहाँ न्यायपालिका सहित सिविल सेवाओं को ब्रिटिश कानूनी मानदंडों के तहत संरचित किया गया था।
  • स्वतंत्रता के बाद की संरचना: स्वतंत्रता के पश्चात्, न्यायिक नियुक्तियाँ संविधान के अनुच्छेद-233 से 237 द्वारा शासित थीं, जिसमें उच्च न्यायालयों के परामर्श से लोक सेवा आयोगों द्वारा अधीनस्थ न्यायपालिका के लिए राज्य स्तरीय भर्ती की जाती थी।

प्रमुख सुधार और मामले

  • अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ मामला (1991): इस ऐतिहासिक निर्णय में, सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायिक सेवाओं में सेवा शर्तों और प्रशिक्षण में एकरूपता का निर्देश दिया, बेहतर वेतन और कार्य स्थितियों का समर्थन किया। 
  • अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ बनाम भारत संघ (1993): सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि न्यायिक सेवा में सम्मलित होने से पूर्व उम्मीदवारों के पास अधिवक्ता के रूप में न्यूनतम तीन वर्ष की सेवा का अनुभव होना चाहिए। 
  • वर्ष 2002 का सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय: न्यायालय ने न्यायिक परीक्षाओं के लिए अनिवार्य तीन वर्ष की कानूनी सेवा की पूर्व आवश्यकता को हटा दिया, जिससे नए विधि स्नातक आवेदन कर सकें। 
  • हाल के घटनाक्रम: सर्वोच्च न्यायालय ने अनुभवहीन न्यायाधीशों द्वारा अपरिपक्व न्यायिक निर्णयों पर चिंताओं का हवाला देते हुए तीन वर्ष की कानूनी सेवा अनिवार्यता को बहाल कर दिया।

परिवर्तन के पीछे तर्क

  • कोर्टरूम एक्सपोजर: न्यायालय का तर्क है कि न्यायिक प्रभावशीलता के लिए वास्तविक कोर्टरूम अनुभव महत्त्वपूर्ण है।
  • उच्च न्यायालय का समर्थन: 25 में से 23 उच्च न्यायालयों ने नए स्नातकों के साथ खराब परिणामों का हवाला देते हुए आवश्यकता का समर्थन किया।
    • बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने भी बार काउंसिल संबंधी अनुभव की कमी वाले न्यायाधीशों की आलोचना करते हुए उन्हें “अक्षम और अयोग्य” बताया।
  • भावनात्मक परिपक्वता: व्यावहारिक कानूनी अनुभव भावनात्मक परिपक्वता प्रदान करता है, जो कक्षा आधारित प्रशिक्षण प्रदान नहीं कर सकता। 
    • उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने बेहतर निर्णय के लिए वास्तविक दुनिया के अनुभव के महत्त्व पर जोर दिया।

निर्णय के विरुद्ध चिंताएँ व्यक्त की गईं

  • सीमित व्यावहारिक मूल्य: विशेषज्ञों का मानना ​​है कि सार्थक कानूनी विशेषज्ञता विकसित करने के लिए तीन वर्ष अपर्याप्त हैं।
    • प्रवेश स्तर के मुकदमेबाज अक्सर परिधीय कार्य करते हैं, जैसे स्थगन, न कि मूल कानूनी कार्य।
  • त्रुटिपूर्ण प्रक्रिया: निर्णय में डेटा-संचालित समर्थन या सार्वजनिक परामर्श का अभाव है।
    • आलोचकों का तर्क है कि यह “न्यायालय नीति निर्माण” का एक उदाहरण है, जो अनुच्छेद-234 के तहत कार्यकारी प्राधिकरण को दरकिनार करता है।
  • न्यायिक प्रशिक्षण संस्थानों में पिछड़ापन: मौजूदा प्रशिक्षण कार्यक्रम व्यावहारिक कौशल विकसित करने के लिए अपर्याप्त हैं।
    • प्रभावी प्रशिक्षण के लिए व्यक्तिगत मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है, जो वर्तमान न्यायिक अकादमियाँ प्रदान नहीं कर सकती हैं।
  • केवल औपचारिकता: कानूनी अनुभव का आकलन करने के लिए कोई स्पष्ट मापदंड निर्धारित नहीं किए गए हैं, जिससे संरचित दस्तावेजीकरण या सत्यापन के बिना इसे औपचारिक आवश्यकता बना दिया गया है।
  • विविधता पर प्रभाव: यह अधिदेश हाशिए पर स्थित  या आर्थिक रूप से कमजोर पृष्ठभूमि के प्रतिभाशाली उम्मीदवारों को बाहर कर सकता है।
  • शीर्ष प्रतिभाओं के लिए बाधा: खराब कामकाजी परिस्थितियों और देरी से होने वाली परीक्षाओं के कारण न्यायिक सेवा कम आकर्षक हो सकती है।
    • उम्रदराज उम्मीदवारों को मुकदमेबाजी से न्यायपालिका में जाने के लिए कॅरियर में उतार-चढ़ाव और सीमित प्रोत्साहन का सामना करना पड़ता है।

अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (All India Judicial Service- AIJS) की माँग

  • AIJS के प्रस्ताव का उद्देश्य एक केंद्रीकृत भर्ती प्रणाली की स्थापना करना है, जो योग्यता आधारित चयन और राष्ट्रव्यापी एकरूपता सुनिश्चित करे।
  • संवैधानिक प्रावधान: संविधान के अनुच्छेद-312 में अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (AIJS) की स्थापना का प्रावधान है, जिसमें जिला न्यायाधीश से कमतर कोई पद शामिल नहीं होगा।
  • समर्थन: विधि आयोग और न्यायपालिका ने AIJS का समर्थन किया है, कई उच्च न्यायालय और राज्य संघीय स्वायत्तता की चिंताओं और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व के मुद्दों का हवाला देते हुए इसका विरोध करते हैं।
  • नीति आयोग और संसदीय प्रयास: नीति आयोग और हाल ही में संसदीय पैनल ने न्यायाधीशों की रिक्तियों को दूर करने और न्यायिक दक्षता में सुधार करने के लिए AIJS कार्यान्वयन की सिफारिश की है।

आगे की राह 

  • प्रोत्साहन: शीर्ष कानूनी प्रतिभाओं को बनाए रखने के लिए कॅरियर प्रोत्साहन, कार्य स्थितियों और वेतन संरचनाओं में सुधार करके न्यायिक सेवा को और अधिक आकर्षक बनाया जाना चाहिए।
  • सत्यापन: उम्मीदवारों के लिए सत्यापन योग्य न्यायालय में उपस्थिति की जानकारी अपलोड करने के लिए एक डिजिटल डायरी प्रणाली शुरू की जानी चाहिए, जिससे गैर-मुकदमेबाजी भूमिकाओं वाले लोगों के लिए समावेशिता सुनिश्चित हो सके।
  • प्रशिक्षण: न्यायिक अकादमियों को विस्तारित, मार्गदर्शनयुक्त और अनुकरण-आधारित प्रशिक्षण के साथ मजबूत किया जाना चाहिए ताकि न्यायालयीन अनुभव के अंतर को प्रभावी ढंग से पाटा जा सके।
  • नीतिगत सुधार: अनुभवजन्य डेटा के माध्यम से सुधारों का मार्गदर्शन करना चाहिए और न्यायिक अतिक्रमण से बचने के लिए सार्वजनिक परामर्श के साथ कार्यकारी प्रक्रियाओं के माध्यम से पात्रता परिवर्तन किए जाने चाहिए।

संदर्भ

हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्यालय (United Nations Office for Disaster Risk Reduction- UNDRR) ने आपदा जोखिम न्यूनीकरण (GAR) 2025 पर वैश्विक मूल्यांकन रिपोर्ट जारी की, जिसका शीर्षक है:- ‘लचीलापन लाभदायक है: हमारे भविष्य के लिए वित्तपोषण एवं निवेश’ (Resilience Pays: Financing and Investing for our Future)

GAR 2025 के प्रमुख निष्कर्ष

  • आपदाओं से आर्थिक लागत में वृद्धि: आपदा से संबंधित लागत अब वार्षिक रूप से 2.3 ट्रिलियन डॉलर से अधिक हो गई है, यह स्थिति व्यापक प्रभाव और पारिस्थितिकी तंत्र को होने वाले नुकसान पर विचार करने के बावजूद है, जो एक अस्थिर आर्थिक प्रक्षेपवक्र को प्रदर्शित करता है।
    • वर्ष 1970-2000 के बीच, आपदा लागत वार्षिक रूप से औसतन 70-80 बिलियन डॉलर थी; यह आँकड़ा वर्ष 2001-2020 के बीच बढ़कर 180-200 बिलियन डॉलर हो गया, जो निरंतर ऊपर की ओर रुझान दर्शाता है।

  • वैश्विक स्तर पर कम बीमा कवरेज: विकसित देशों में भी अधिकांश आपदा प्रभाव बीमाकृत नहीं रहते, जिससे रिकवरी और अधिक कठिन हो जाती है एवं दीर्घकालिक वित्तीय भेद्यता बढ़ जाती है।
  • विकासशील देशों की उच्च भेद्यता: वर्ष 2023 तक, केवल 49% अल्प विकसित देशों (LDCs) के पास खतरे की प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली तक पहुँच थी, जिससे कई देश परिहार्य जोखिमों के संपर्क में आ गए।
  • जोखिम निवारण में अपर्याप्त निवेश: विकास सहायता का केवल 2% ही आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) की ओर निर्देशित किया जाता है, इस बात के प्रमाण के बावजूद कि DRR में निवेश किया गया $1 रिकवरी लागत में $15 की बचत करती है।

भारत में आपदा का प्रभाव

  • बुनियादी ढाँचे का नुकसान: वर्ष 2019 में, चक्रवात फानी ने ओडिशा के विद्युत संबंधी बुनियादी ढाँचे को 1.2 बिलियन डॉलर का नुकसान पहुँचाया, जो चरम मौसमी महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों की भेद्यता को दर्शाता है।
  • विस्थापन: भारत में जलवायु संबंधी आपदाओं के कारण 10 से 30 मिलियन आंतरिक विस्थापन हुए, जो जलवायु-प्रेरित प्रवासन और अस्थिरता के प्रति देश के जोखिम को दर्शाता है।
  • जीवन स्तर पर प्रभाव: मौसम के बदलते पैटर्न और कृषि तथा आजीविका पर इसके प्रभाव से वर्ष 2050 तक जीवन स्तर में 9% की कमी आ सकती है, विशेषतः ग्रामीण और कमजोर समुदायों में।
  • कम बीमा कवरेज: भारत का बीमा कवरेज 1% से कम बना हुआ है, जो आपदा-संबंधी जोखिमों को साझा करने या स्थानांतरित करने की देश की क्षमता को गंभीर रूप से सीमित करता है।

संयुक्त राष्ट्र आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्यालय (United Nations Office for Disaster Risk Reduction- UNDRR) के बारे में

  • UNDRR आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए संयुक्त राष्ट्र की प्रमुख एजेंसी है, जो लचीले समाजों के निर्माण और आपदा प्रभावों को कम करने के वैश्विक प्रयासों का समर्थन करने के लिए जिम्मेदार है।
  • स्थापना: UNDRR की स्थापना वर्ष 1999 में हुई थी और यह संयुक्त राष्ट्र सचिवालय के अधीन कार्य करता है, जिसका उद्देश्य आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए वैश्विक ढाँचे को लागू करना है।
  • प्रमुख रिपोर्ट: वैश्विक मूल्यांकन रिपोर्ट (Global Assessment Report- GAR) UNDRR का द्विवार्षिक प्रमुख प्रकाशन है, जो आपदा लचीलेपन की वैश्विक प्रगति, जोखिमों और वित्तीय आयामों का मूल्यांकन करता है।

UNDRR के अंतर्गत प्रमुख पहल

  • UNDRR आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए सेंडाई फ्रेमवर्क (2015-2030) का समर्थन करता है, जो आपदा जोखिमों को कम करने के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रयासों का मार्गदर्शन करता है।
  • आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए सेंडाई फ्रेमवर्क, ह्योगो फ्रेमवर्क फॉर एक्शन (2005-2015) का उत्तरवर्ती है, जो पिछले उदाहरणों पर आधारित है, ताकि अधिक मजबूत आपदा जोखिम न्यूनीकरण रणनीति बनाई जा सके।
  • फ्रेमवर्क में सात वैश्विक लक्ष्यों की रूपरेखा दी गई है, जिसमें आपदा मृत्यु दर, आर्थिक नुकसान और बुनियादी ढाँचे की क्षति को कम करना, साथ ही प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली और जोखिम समझ में सुधार करना शामिल है।
  • राष्ट्रीय प्रतिबद्धता: फ्रेमवर्क सरकारों, समुदायों और व्यवसायों के बीच साझा जिम्मेदारी पर जोर देता है, सभी स्तरों पर जोखिम-सूचित निवेश और प्रणालीगत योजना बनाने का आह्वान करता है।

निष्कर्ष

GAR 2025 जोखिम-सूचित विकास की दिशा में प्रतिमान बदलाव की तत्काल आवश्यकता को पुष्ट करता है। भारत जैसे देशों के लिए, जलवायु-परिवर्तन से प्रभावित विश्व में जीवन, अर्थव्यवस्थाओं और पारिस्थितिकी तंत्रों की सुरक्षा के लिए बुनियादी ढाँचे, वित्त तथा जलवायु नीतियों को आपदा अनुकूलन के साथ जोड़ना आवश्यक है।

संदर्भ

बचपन की प्रारंभिक परिस्थितियाँ बच्चे के विकास को आकार देती हैं। हालाँकि प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा (Early Childhood Care and Education-ECCE) सुविधा सभी बच्चों को समान अवसर देकर विषमता संबंधी चक्र को तोड़ सकती है।

भारत में ECCE संबंधी अग्रणी शिक्षक

भारत के प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा (ECCE) आंदोलन का श्रेय डॉ. ताराबाई मोदक और गिजुभाई बधेका को दिया जा सकता है, जो प्रारंभिक शिक्षा में क्रांति लाने वाले दो दिग्गज थे।

  • डॉ. ताराबाई मोदक का योगदान
    • बालवाड़ी आंदोलन (Balwadi Movement): इस आंदोलन के तहत ग्रामीण बच्चों के लिए समुदाय-आधारित प्रारंभिक विद्यालय शुरू किए गए।
    • मोंटेसरी (Montessori) पद्धतियों को अपनाया गया: भारतीय सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भों के अनुरूप मोंटेसरी पद्धतियों को संशोधित किया गया।
  • गिजुभाई बधेका का योगदान
    • बाल-केंद्रित स्कूली शिक्षा: जॉयफुल लर्निंग को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 1922 में दक्षिणामूर्ति बाल मंदिर की स्थापना की।
    • शैक्षणिक साहित्य: उन्होंने विनोदशील, सार्थक शिक्षा की वकालत करते हुए, दिवास्वप्न (Divaswapna) सहित व्यापक रूप से लिखा।

प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा (ECCE) के बारे में

  • ECCE जन्म से आठ वर्ष तक के बच्चों के समग्र विकास को संदर्भित करता है, जिसमें स्वास्थ्य, पोषण, प्रारंभिक शिक्षा और मनोसामाजिक कल्याण शामिल है।

ECCE के घटक

  • स्वास्थ्य: शारीरिक स्वास्थ्य सुनिश्चित करने के लिए नियमित स्वास्थ्य जाँच, टीकाकरण और स्वच्छता संबंधी पद्धतियों को अपनाना।
  • पोषण: मस्तिष्क विकास को समर्थन देने के लिए पर्याप्त एवं संतुलित पोषण को बढ़ावा देना।
    • NFHS-5 में पाया गया कि 2 वर्ष से कम आयु के केवल 11.3% बच्चों को ही पर्याप्त आहार मिल पाता है।
  • प्रारंभिक शिक्षा: आयु के अनुसार, जिज्ञासा और संज्ञानात्मक कौशल को बढ़ावा देने के लिए खेल-आधारित शिक्षा को बढ़ावा देना।
    • उदाहरण: आधारभूत चरण के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा (NCF-FS) अनुभवात्मक अधिगम पर जोर देती है।
  • मनोसामाजिक देखभाल: भावनात्मक और सामाजिक विकास का समर्थन करने वाले सुरक्षित, पोषण करने वाले वातावरण सुनिश्चित करना।
    • उदाहरण: एकीकृत बाल विकास सेवाओं (ICDS) के तहत, आंगनवाड़ी केंद्र न केवल पोषण और प्रारंभिक शिक्षा प्रदान करते हैं, बल्कि मनोसामाजिक देखभाल भी प्रदान करते हैं।
    • 31 दिसंबर, 2023 तक के सरकारी आँकड़ों के अनुसार, देश में 13,48,135 आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और 10,23,068 आंगनवाड़ी सहायक थे।
  • माता-पिता की भागीदारी: बच्चे के प्रारंभिक विकास में माता-पिता और देखभाल करने वालों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करना।
    • उदाहरण: माता-पिता की शिक्षा में आशा (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) कार्यकर्ताओं की भागीदारी को बढ़ाना।

प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा (ECCE) तथा सतत् विकास लक्ष्य (SDGs): ECCE निम्नलिखित सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अभिन्न अंग है:

  • सतत् विकास लक्ष्य (SDG) 4.2: गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक बाल्यावस्था विकास और पूर्व-प्राथमिक शिक्षा तक पहुँच सुनिश्चित करना।
  • SDG 1 (गरीबी उन्मूलन): गुणवत्तापूर्ण ECCE वंचित बच्चों को जीवन में बेहतर शुरुआत देकर गरीबी के चक्र को तोड़ने में मदद करता है।
  • SDG 3 (अच्छा स्वास्थ्य एवं कल्याण): ECCE एकीकृत स्वास्थ्य, पोषण और शिक्षा हस्तक्षेपों के माध्यम से शारीरिक, भावनात्मक और संज्ञानात्मक विकास को बढ़ावा देता है।
  • SDG 10 (असमानताओं में कमी): ECCE सुनिश्चित करता है कि दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वाले, दिव्यांग एवं वंचित वर्ग के बच्चों को समान अवसर मिले।

ECCE का महत्त्व

  • संज्ञानात्मक और मस्तिष्क विकास: 90% मस्तिष्क विकास पाँच वर्ष की आयु तक हो जाता है, जिससे संज्ञानात्मक विकास के लिए प्रारंभिक चरण महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
  • सामाजिक विकास: ECCE सामाजिक कौशल, भावनात्मक विनियमन का निर्माण करता है, जिससे व्यवहारिक समस्याएँ कम होती हैं।
  • आर्थिक लाभ: ECCE में निवेश करने से बेहतर शिक्षा, रोजगार और सामाजिक परिणाम प्राप्त होते हैं, साथ ही हेकमैन वक्र (Heckman Curve) के अनुसार, सबसे अधिक आर्थिक लाभ मिलता है।

हेकमैन वक्र (Heckman Curve)

  • हेकमैन वक्र दर्शाता है कि आर्थिक लाभ की उच्चतम दर बच्चों में किए गए प्रारंभिक निवेश से आती है।
  • हेकमैन के निष्कर्ष: हेकमैन के अनुसार, बचपन की प्रारंभिक शिक्षा में निवेश किए गए प्रत्येक डॉलर से $7 से $12 तक का रिटर्न मिलता है।
    • गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक शिक्षा वाले बच्चों के अधिक कमाने की संभावना 4 गुना अधिक होती है और उनके पास घर होने की संभावना 3 गुना अधिक होती है।
    • 5 वर्ष की आयु तक, आय क्षमता और जीवन के परिणामों में महत्त्वपूर्ण अंतराल पहले से ही दिखाई देने लगते हैं।

भारत में प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा (Early Childhood Education-ECE) परिदृश्य में चुनौतियाँ

  • अपर्याप्त शिक्षण समय: 5.5 करोड़ से अधिक बच्चे (3-6 वर्ष की आयु) 14 लाख आंगनवाड़ियों और 56,000 सरकारी प्री-प्राइमरी स्कूलों में नामांकित हैं।
    • आंगनवाड़ी कार्यकर्ता प्रारंभिक विद्यालय शिक्षा पर प्रतिदिन केवल 38 मिनट ही खर्च करते हैं (अनुशंसित 2 घंटे से काफी कम)।
  • संसाधनों की अपर्याप्त उपलब्धता: केवल 9% प्री-प्राइमरी स्कूलों में एक समर्पित ECE शिक्षक है।
    • प्रत्येक 282 आंगनवाड़ियों के लिए एक पर्यवेक्षक जिम्मेदार है, जिससे गुणवत्ता निगरानी प्रभावित होती है।
  • आधारभूत शिक्षण के खराब परिणाम: भारत प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा प्रभाव अध्ययन के अनुसार, केवल 15% बच्चे ही बुनियादी वस्तुओं (साक्षरता के लिए महत्त्वपूर्ण) को मिला सकते हैं, तथा केवल 30% ही बड़ी एवं छोटी संख्याओं (अंकगणित के लिए आवश्यक) की पहचान कर सकते हैं।
  • नामांकन में अंतर: 3-वर्षीय बच्चों में से केवल 2%, 4-वर्षीय बच्चों में से 5.1%।
    • 5 वर्ष की आयु के लगभग 25% बच्चे सीधे कक्षा एक में नामांकित होते हैं तथा आयु-उपयुक्त कौशल के बिना स्कूल जाना शुरू करते हैं।
  • सार्वजनिक व्यय में कमी: सरकार ECE पर प्रति बच्चे केवल ₹1,263 व्यय करती है, जबकि स्कूली शिक्षा पर ₹37,000 खर्च होते हैं।
  • माता-पिता की सीमित जागरूकता और सहभागिता: अधिकांश माता-पिता ध्यान देना चाहते हैं, लेकिन घर-आधारित शिक्षा को समर्थन देने के लिए उनमें जागरूकता एवं साधनों का अभाव होता है।
  • वित्तीय बाधाएँ: ECCE के लिए अपर्याप्त बजट आवंटन (शिक्षा व्यय का केवल लगभग 3%)।

ECCE के लिए वैश्विक पहल

  • यूनेस्को (UNESCO) की ECCE के लिए वैश्विक भागीदारी रणनीति (2021-2030): समावेशी एवं न्यायसंगत शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करती है।
  • यूनिसेफ का प्रारंभिक बाल्यावस्था विकास (ECD) कार्यक्रम: स्वास्थ्य, पोषण, प्रारंभिक शिक्षा और सुरक्षा के माध्यम से पोषण संबंधी देखभाल को बढ़ावा देता है, विशेषकर वंचित बच्चों के लिए।
  • विश्व बैंक की प्रारंभिक शिक्षा भागीदारी (ELP): निम्न और मध्यम आय वाले देशों में प्रारंभिक शिक्षा परिणामों को बेहतर बनाने के लिए तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
  • ECCE के लिए ‘ताशकंद घोषणा’: इसे नवंबर 2022 में उज्बेकिस्तान के ताशकंद में ECCE पर विश्व सम्मेलन में अपनाया गया था।
    • इसका उद्देश्य दुनिया भर में ECCE प्रणालियों को मजबूत, विस्तारित और रूपांतरित करना है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रत्येक बच्चे को जीवन में सर्वोत्तम शुरुआत मिले।

ECCE के विकास के लिए भारत में पहल

  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020: वर्ष 2030 तक ECCE तक सार्वभौमिक पहुँच की अनुशंसा करता है।
    • ECCE को औपचारिक स्कूली शिक्षा में एकीकृत करते हुए 5+3+3+4 पाठ्यचर्या संरचना प्रस्तुत करता है।
    • NEP, 3-8 वर्ष की आयु को आधारभूत चरण के रूप में मान्यता देता है और आजीवन अधिगम एवं विकास को सुनिश्चित करने के लिए सार्वभौमिक, खेल-आधारित और समग्र प्रारंभिक शिक्षा का समर्थन करता है।
  • एकीकृत बाल विकास सेवाएँ (ICDS): आंगनवाड़ी आधारित ECCE, पोषण और स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करता है।
  • मैजिकल किट: मैजिकल किट, जिसका अर्थ है ‘जादुई बक्सा’, एक आधारभूत चरण के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा (NCF-FS) संरेखित ECCE किट है, जिसमें खिलौने, पहेलियाँ, कहानी की किताबें और शिक्षण सहायक सामग्री होती है, जो जॉयफुल लर्निंग, गतिविधि-आधारित और आयु-उपयुक्त अधिगम के लिए डिजाइन की गई है।
    • राज्य इसे स्थानीय भाषाओं एवं संस्कृतियों को प्रतिबिंबित करने के लिए अनुकूलित कर रहे हैं।
  • ई-मैजिकल किट: केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने भौतिक बॉक्स को पूरक बनाने और कई चैनलों: कंप्यूटर, स्मार्ट और फीचर-फोन, टेलीविजन और रेडियो के माध्यम से पहुँच को लोकतांत्रिक बनाने के लिए ‘ई-मैजिकल किट’ लॉन्च किया है।
  • राज्यों की पहल: उत्तर प्रदेश सभी जिलों में बालवाटिका के लिए लगभग 11,000 ECCE शिक्षकों को नियुक्त कर रहा है।
    • राज्य ने ECE शिक्षाशास्त्र पर उन्हें प्रशिक्षित करने के लिए 13 जिलों के 50 मास्टर प्रशिक्षकों के लिए छह दिवसीय आवासीय प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित किया है।
    • बालवाटिका 3-6 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए प्री-प्राइमरी कक्षाएँ हैं, जिन्हें राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के तहत स्कूलों में खेल-आधारित शिक्षा के माध्यम से बुनियादी शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए शुरू किया गया है।
  • ओडिशा सरकार पाँच से छह वर्ष की आयु के बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करने हेतु सभी सरकारी स्कूलों में शिशु वाटिकाएँ खोल रही है।
    • शिशु वाटिकाएँ छोटे बच्चों के समग्र विकास का समर्थन करने के लिए आँगनवाड़ियों में प्रारंभिक शिक्षा केंद्र हैं, विशेषतः ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में।
  • मध्य प्रदेश की ‘बाल चौपाल’: ये खेल आधारित शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए मासिक सामुदायिक कार्यक्रम हैं।

प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा (ECCE) पर वैश्विक रिपोर्ट की प्रमुख सिफारिशें

  • स्कूल की तैयारी को बढ़ावा देना: शिक्षा के बेहतर परिणामों के लिए साक्षरता, अंकगणित और सामाजिक-भावनात्मक विकास जैसे बुनियादी कौशल पर ध्यान केंद्रित करना।
  • कमजोर बच्चों को प्राथमिकता देना: वंचित समूहों के लिए गुणवत्तापूर्ण ECCE तक पहुँच सुनिश्चित करना।
  • माता-पिता और देखभाल करने वालों का समर्थन करना: सरकारों को पूरे समाज के दृष्टिकोण को अपनाना चाहिए और बच्चों के प्रारंभिक सीखने के अनुभवों को बेहतर बनाने के लिए माता-पिता के समर्थन कार्यक्रम एवं परिवार के अनुकूल नीतियों को शामिल करना चाहिए।
  • ECCE कर्मियों को महत्त्व देना: सुरक्षित, स्वस्थ प्रारंभिक अधिगम संबंधी वातावरण निर्माण के लिए कौशल समूह बनाए रखने हेतु ECCE कर्मियों की भर्ती एवं व्यावसायिक विकास में निवेश करना।
  • डेटा में निवेश करना: अंतरराष्ट्रीय समुदाय को ECCE क्षेत्र के विकास को बेहतर ढंग से समर्थन एवं निगरानी करने के लिए नए संकेतक एवं तंत्र विकसित करने चाहिए, विशेषतः 3 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए।

आगे की राह

  • आंगनवाड़ी का लाभ उठाना: महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS) और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) जैसे सरकारी कार्यक्रमों का लाभ आंगनवाड़ी प्रणाली को उन्नत बनाने में उठाया जा सकता है।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) का विस्तार करना: निजी हितधारकों, नागरिक समाज और परोपकारी संगठनों के साथ भागीदारी के माध्यम से अभिनव ECCE मॉडल को बढ़ावा देना।
  • गुणवत्ता और प्रशिक्षण बढ़ाना: ECCE पाठ्यक्रम को मानकीकृत करना और गुणवत्तापूर्ण शिक्षक तैयार करने के लिए प्रस्तावित राष्ट्रीय प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा संस्थान जैसे समर्पित संस्थानों की स्थापना करना।
  • डिजिटल उपकरणों का लाभ उठाना: सुलभ डिजिटल सामग्री और प्रशिक्षण मॉड्यूल के माध्यम से आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और प्री-प्राइमरी शिक्षकों को बेहतर बनाने के लिए दीक्षा पोर्टल जैसे प्लेटफॉर्म का उपयोग करना।
  • सामुदायिक लामबंदी और जागरूकता: घर पर प्रारंभिक शिक्षा प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए स्वयं सहायता समूहों (SHGs) और स्थानीय गैर-सरकारी संगठनों के माध्यम से अभिभावक शिक्षण संबंधी पहल को लागू करना।
    • व्हाट्सऐप या एडटेक ऐप के माध्यम से अभिभावकों की भागीदारी को और मजबूत किया जा सकता है।
  • विकेंद्रीकृत निगरानी और सहायता: बेहतर जवाबदेही और स्थानीय समस्या समाधान के लिए ECCE केंद्रों की देख-रेख और सहायता के लिए ग्राम पंचायतों को सशक्त बनाना।

निष्कर्ष 

ECCE एवं अभिभावकों की भागीदारी में निवेश करना प्रत्येक बच्चे की क्षमता को उजागर करने, अंतर-पीढ़ीगत नुकसान को समाप्त करने और मानव पूँजी विकास के लिए महत्त्वपूर्ण है। यह भारत के लिए वर्ष 2047 तक वैश्विक अग्रणी के रूप में उभरने और एक सच्चे विश्व गुरु बनने के भारत के सपने को साकार करने की नींव रखता है।

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