100% तक छात्रवृत्ति जीतें

रजिस्टर करें

Jun 12 2025

विश्व प्रत्यायन दिवस 2025

भारतीय गुणवत्ता परिषद (QCI) ने इंडिया हैबिटेट सेंटर, नई दिल्ली में विश्व प्रत्यायन दिवस 2025 का आयोजन किया।

संबंधित तथ्य

  • NABL पोर्टल का शुभारंभ: विशेष रूप से प्रयोगशालाओं एवं MSMEs के लिए प्रत्यायन प्रक्रियाओं को सरल बनाने के लिए एक नया डिजिटल प्लेटफॉर्म प्रस्तुत किया गया।
  • गुणवत्ता समर्पण पहल
    • यह संगठनों को मान्यता प्राप्त गुणवत्ता मानकों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को सार्वजनिक रूप से व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिससे उद्योगों में उत्कृष्टता और गुणवत्ता की संस्कृति को बढ़ावा मिलता है।

विश्व प्रत्यायन दिवस 2025 के बारे में

  • यह अंतरराष्ट्रीय प्रत्यायन मंच (IAF) एवं अंतरराष्ट्रीय प्रयोगशाला प्रत्यायन सहयोग (ILAC) द्वारा प्रारंभ की गई वैश्विक स्तर की पहल है।
  • पृष्ठभूमि: पहली बार वर्ष 2008 में मनाया गया, जिसका उद्देश्य मान्यता प्राप्त निकायों से परीक्षण, निरीक्षण एवं प्रमाणन परिणामों की वैश्विक मान्यता को बढ़ावा देना है।
  • वर्ष 2025 की थीम: “प्रत्यायन: लघु एवं मध्यम उद्यमों ( SMEs) को सशक्त बनाना। 
    • यह आयोजन इस बात पर केंद्रित है कि कैसे प्रत्यायन MSMEs को प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने, प्रमाणन, परीक्षण, निरीक्षण एवं सत्यापन सेवाओं के माध्यम से विश्वसनीयता बनाने में मदद करता है। 
  • उद्देश्य: विभिन्न उद्योगों में गुणवत्ता, सुरक्षा एवं विश्वसनीयता सुनिश्चित करने में प्रत्यायन के बारे में जागरूकता बढ़ाना। 
    • प्रत्यायन एक आधिकारिक स्वीकृति है कि एक संगठन सक्षम है एवं सर्वोत्तम प्रथाओं का पालन करता है। 
      • यह गुणवत्ता की पुष्टि करके क्षेत्रों एवं सीमाओं में विश्वास एवं विश्वसनीयता का निर्माण करता है।

भारतीय गुणवत्ता परिषद (Quality Council of India- QCI)

  • यह भारत में विभिन्न क्षेत्रों में गुणवत्ता मानकों को बढ़ावा देने के लिए एक स्वायत्त निकाय है।
  • स्थापना: वर्ष 1997 में एक सार्वजनिक-निजी भागीदारी के रूप में स्थापित।
  • उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT), वाणिज्य तथा उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करता है।

भारत का पहला ई-वेस्ट इको पार्क

भारत का पहला ‘ई-वेस्ट इको पार्क’ दिल्ली के होलंबी कलां में स्थापित किया जाएगा।

ई-वेस्ट सुविधा के बारे में

  • ई-वेस्ट इको पार्क एक अत्याधुनिक सुविधा होगी जो प्रत्येक वर्ष 51,000 मीट्रिक टन ई-वेस्ट को प्रोसेस करने में सक्षम होगी।
  • यह पार्क ई-वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स, 2022 में उल्लिखित ई-वेस्ट की सभी 106 श्रेणियों को शामिल करेगा।
  • कार्यान्वयन एजेंसी: दिल्ली राज्य औद्योगिक एवं अवसंरचना विकास निगम (DSIIDC)
  • मॉडल: इसे ‘पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप’ (PPP) ढाँचे के तहत डिजाइन, बिल्ड, फाइनेंस, ऑपरेट, ट्रांसफर (DBFOT) मॉडल का उपयोग करके विकसित किया जाएगा।
  • महत्त्व:
    • यह पार्क दिल्ली के लगभग 25 प्रतिशत ई-वेस्ट का प्रबंधन करेगा। (दिल्ली भारत के कुल ई-वेस्ट में लगभग 9.5 प्रतिशत का योगदान देता है)।
    • हरित राजस्व: यह पार्क रीसाइक्लिंग, रिकवरी एवं जिम्मेदार अपशिष्ट प्रबंधन के लिए एक पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देगा।
    • अपशिष्ट क्षेत्र को औपचारिक रूप देना: पार्क हरित रोजगार सृजित करेगा एवं स्थानीय विघटनकर्ताओं, पुनर्चक्रणकर्ताओं तथा नवीनीकरणकर्ताओं को सशक्त बनाएगा।
    • पुनर्प्राप्ति: वैज्ञानिक अपशिष्ट प्रबंधन तांबा, लिथियम एवं दुर्लभ मृदा धातुओं जैसे मूल्यवान संसाधनों की पुनर्प्राप्ति को सक्षम करेगा।

इको पार्क के बारे में

  • इको पार्क एक हरित स्थान है, चाहे वह शहरी हो या प्राकृतिक, जिसे स्थिरता एवं जिम्मेदार पर्यटन को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किया गया है, जिसमें प्रायः पर्यावरण शिक्षा, सामुदायिक संपर्क एवं मनोरंजक क्षेत्र शामिल होते हैं।

वजन घटाने वाली दवाओं की वास्तविकता में प्रभावशीलता

‘ओबेसिटी’ में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन में पाया गया कि सेमाग्लूटाइड (ओजेम्पिक/वेगोवी के रूप में विपणन किया गया) एवं टिरजेपेटाइड (मौनजारो/जेपबाउंड के रूप में विपणन किया गया) ने नैदानिक ​​परीक्षणों की तुलना में वास्तविकता में वजन कम किया है।

  • ये दवाएँ टाइप-2 मधुमेह एवं क्रोनिक भार प्रबंधन के लिए FDA द्वारा अनुमोदित हैं तथा अब भारत में उपलब्ध हैं।

वजन घटाने वाली दवाओं के बारे में

  • वजन घटाने वाली दवाएँ औषधीय एजेंट हैं जिनका उपयोग भूख को कम करके, तृप्ति बढ़ाकर, गैस्ट्रिक गति को धीमा करके या चयापचय को संशोधित करके मोटापे के प्रबंधन में सहायता के लिए किया जाता है। उदाहरण: ओजेम्पिक, मुंजारो आदि।
  • नैदानिक ​​अध्ययनों से पता चलता है कि मोटे या अधिक वजन वाले व्यक्तियों में शरीर के वजन में 18% तक की कमी होती है।

‘ओबेसिटी’ में प्रकाशित अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

  • वास्तविक दुनिया में कम प्रभावशीलता का कारण: कई रोगी लागत, दुष्प्रभावों या चिकित्सा अनुवर्ती की कमी के कारण उपचार को जल्दी (3 महीने के भीतर) बंद कर देते हैं या कम खुराक लेते हैं।
    • इन दवाओं की कीमत लगभग 15,000 रुपये प्रति माह होने की संभावना है। लंबे समय तक प्रयोग से संसाधनों पर बोझ पड़ेगा।
  • केवल प्रयोग के समय ही प्रभावी: स्टैटिन, BP या मधुमेह की दवाओं की तरह ही दवाएँ केवल लेते समय ही प्रभावी होती हैं।
  • अधिक वजन घटने (≥10%) के कारक: निरंतर उपचार (या 3-12 महीने की देरी से बंद करना), उच्च रखरखाव खुराक, सेमाग्लूटाइड की तुलना में टिर्जेपेटाइड का उपयोग।

NTPC ने ऊर्जा परिवर्तन रोडमैप के लिए SEforALL के साथ समझौता किया

NTPC लिमिटेड ने एक व्यापक ऊर्जा संक्रमण रोडमैप विकसित करने के लिए सस्टेनेबल एनर्जी फॉर ऑल (SEforALL) के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।

सस्टेनेबल एनर्जी फॉर ऑल (SEforALL) के बारे में

  • सस्टेनेबल एनर्जी फॉर ऑल एक स्वतंत्र संगठन है, जिसे संयुक्त राष्ट्र परियोजना सेवा कार्यालय (UNOPS ) द्वारा संचालित किया जाता है, जिसका वैश्विक अधिदेश उभरते एवं विकासशील देशों में ऊर्जा संक्रमण पर प्रगति में तेजी लाना है।
    • सतत् विकास लक्ष्य 7 की प्राप्ति के लिए, जो वर्ष 2030 तक सतत ऊर्जा तक सार्वभौमिक पहुँच का आह्वान करता है।
  • राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम (NTPC) के बारे में: NTPC एक सार्वजनिक क्षेत्र का उद्यम है जो पूरे भारत में विद्युत का उत्पादन एवं वितरण करता है।

वित्तीय स्थिरता एवं विकास परिषद (FSDC)

वित्तीय स्थिरता एवं विकास परिषद (FSDC) ने अपनी 29वीं बैठक में वित्तीय क्षेत्र-विशिष्ट साइबर सुरक्षा रणनीति के माध्यम से भारतीय वित्तीय क्षेत्र के साइबर लचीलापन ढाँचे को बढ़ाने के विभिन्न तरीकों की जाँच की।

वित्तीय स्थिरता एवं विकास परिषद (FSDC) के बारे में

  • स्थापना: FSDC का गठन वर्ष 2010 में भारत सरकार की अधिसूचना के माध्यम से किया गया था।
  • प्रस्तावित: वित्तीय क्षेत्र सुधारों पर रघुराम राजन समिति (2008) ने पहली बार FSDC के निर्माण का प्रस्ताव रखा था।
  • नोडल मंत्रालय: केंद्रीय वित्त मंत्रालय।
  • अध्यक्ष: परिषद की अध्यक्षता केंद्रीय वित्त मंत्री करते हैं।
  • सदस्य: इसके सदस्यों में शामिल हैं,
    • RBI गवर्नर, वित्त सचिव या सचिव, आर्थिक मामलों का विभाग, सचिव, वित्तीय सेवा विभाग, मुख्य आर्थिक सलाहकार, सेबी अध्यक्ष, IRDA अध्यक्ष एवं PFRDA अध्यक्ष।
  • एजेंडा: परिषद निम्नलिखित से संबंधित मुद्दों का प्रबंधन करती है,
    • वित्तीय स्थिरता, वित्तीय क्षेत्र का विकास, अंतर-नियामक समन्वय, वित्तीय साक्षरता, वित्तीय समावेशन।

FSDC उप-समिति के बारे में

  • अध्यक्ष: इसे RBI गवर्नर की अध्यक्षता में स्थापित किया गया है।
  • उप-समिति के लिए सचिवालय: RBI की वित्तीय स्थिरता इकाई (FSU)।
  • सदस्य: FSDC के सभी सदस्य उप-समिति के सदस्य भी हैं, 
    • साथ ही, RBI के सभी चार उप-गवर्नर एवं FSDC के प्रभारी अतिरिक्त सचिव, DEA भी उप-समिति के सदस्य हैं।

संदर्भ 

जर्मनी के वैज्ञानिकों ने परमाणु संलयन विकसित करने में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है, जो एक ऐसी तकनीक है जो सूर्य द्वारा उत्पादित ऊर्जा के समान स्वच्छ और असीमित ऊर्जा प्रदान कर सकती है।

  • वेंडेलस्टीन 7-X रिएक्टर का उपयोग करते हुए, उन्होंने 43 सेकंड तक संलयन प्लाज्मा को कायम रखा, जिससे एक नया रिकार्ड स्थापित हुआ।

नाभिकीय संलयन क्या है?

  • परमाणु संलयन एक परमाणु प्रतिक्रिया है जब दो हल्के परमाणु एक साथ मिलकर एक भारी परमाणु का निर्माण करते हैं, जिससे अत्यधिक ऊर्जा उत्सर्जित होती है। यह वही प्रक्रिया है जो सूर्य और अन्य तारों को शक्ति प्रदान करती है।
  • हाइड्रोजन नाभिक का संलयन सूर्य की ऊर्जा का स्रोत है।
  • ड्यूटेरियम और ट्रिटियम परमाणु संलयन अभिक्रिया से गुजरते हैं जिससे भारी मात्रा में ऊर्जा उत्सर्जित होती है।
  • हाइड्रोजन बम मानव निर्मित (कृत्रिम) संलयन का एक उदाहरण है।
  • महत्त्व
    • इससे प्रदूषण या कार्बन उत्सर्जन नहीं होता।
    • यह नियमित परमाणु ऊर्जा (विखंडन) की तुलना में अधिक ऊर्जा उत्पन्न करता है।
    • यह बहुत कम रेडियोधर्मी अपशिष्ट का निर्माण करता है।
    • यह सुरक्षित है और इसमें विस्फोट या पिघलने का कोई जोखिम नहीं है।
  • परमाणु संलयन की चुनौतियाँ
    • चरम स्थितियाँ: परमाणु संलयन को प्राप्त करने के लिए अत्यधिक उच्च तापमान (100 मिलियन डिग्री सेल्सियस से अधिक) और उन्हें बनाए रखने की आवश्यकता होती है।
    • शुद्ध ऊर्जा लाभ: सबसे बड़ी चुनौती संलयन प्रतिक्रिया बनाने और बनाए रखने के लिए खपत की गई ऊर्जा से अधिक ऊर्जा का उत्पादन करना है। अधिकांश मौजूदा रिएक्टरों ने अभी तक इस तकनीक को हासिल नहीं किया है।

विशेषता

स्टेलरेटर (Stellarator)

टोकामक (Tokamak)

चुंबकीय नियंत्रण प्लाज्मा स्थिरीकरण के लिए बाह्य चुम्बकों का उपयोग करता है। चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करने के लिए प्लाज्मा के माध्यम से उच्च धारा प्रवाहित की जाती है।
प्लाज्मा स्थिरता बाह्य नियंत्रण के कारण अधिक स्थिर। स्टेलरेटर की तुलना में कम स्थिर, स्थिरता बनाए रखने के लिए सक्रिय धारा की आवश्यकता होती है।
डिजाइन संबंधी जटिलता अधिक जटिल लेकिन दीर्घकालिक स्थिरता प्रदान करता है। सरल डिजाइन लेकिन स्थिर प्रतिक्रियाओं को बनाए रखना कठिन है।
विद्युत संयंत्रों की संभावना वाणिज्यिक ऊर्जा उत्पादन के लिए बेहतर स्थिरता। निरंतर ऊर्जा उत्पादन के लिए सुधार की आवश्यकता।

वेंडेलस्टीन 7-X के बारे में

  • यह विश्व का सबसे बड़ा ऑपरेशनल स्टेलरेटर है, जो एक प्रकार का फ्यूजन रिएक्टर है, जो जर्मनी के ग्रिफ़्सवाल्ड में स्थित है।
  • रिएक्टर के अंदर सुपरहीटेड (अत्यधिक गर्म) प्लाज्मा को रखने के लिए शक्तिशाली बाहरी बाह्य का उपयोग करता है।
  • उपलब्धि का महत्त्व
    • बिजली संयंत्रों के निकट: लंबे प्लाज्मा पल्स के दौरान इस तरह के उच्च तृतीयक उत्पाद को प्राप्त करना स्टेलरेटर को बिजली संयंत्रों के लिए एक व्यवहार्य विकल्प बनाता है।
    • दीर्घकालिक स्थिरता: स्टेलरेटर अपने जटिल डिजाइन के लिए जाने जाते हैं, जो टोकामैक (एक अन्य प्रकार का फ्यूजन रिएक्टर जो डोनट के आकार के कक्ष में सुपरहीटेड प्लाज्मा को सीमित करने के लिए चुंबकीय क्षेत्रों का उपयोग करता है) की तुलना में बेहतर दीर्घकालिक स्थिरता प्रदान करता है, जिससे यह रिकॉर्ड विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण हो जाता है।

विशेषता

परमाणु संलयन

परमाणु विखंडन

परिभाषा हल्के परमाणु नाभिक मिलकर भारी नाभिक का निर्माण करते हैं। एक भारी परमाणु नाभिक दो या अधिक हल्के नाभिकों में विभाजित हो जाता है।
प्रक्रिया परमाणु संलयन (जैसे, हाइड्रोजन समस्थानिक) परमाणु विखंडन (जैसे, यूरेनियम, प्लूटोनियम)
आरंभिक सामग्री हल्के तत्व (जैसे, हाइड्रोजन के समस्थानिक जैसे ड्यूटेरियम और ट्रिटियम)। भारी, अस्थिर तत्व (जैसे, यूरेनियम-235, प्लूटोनियम-239)।
उत्पाद आमतौर पर स्थिर, गैर-रेडियोधर्मी उत्पाद (जैसे, हीलियम) और न्यूट्रॉन उत्पन्न करता है। यह रेडियोधर्मी विखंडन उत्पाद उत्पन्न करता है, जिनकी अर्द्ध-आयु प्रायः अधिक होती है।
स्थितियाँ इलेक्ट्रोस्टेटिक प्रतिकर्षण पर नियंत्रण के लिए अत्यंत उच्च तापमान (लाखों डिग्री सेल्सियस) और दाब की आवश्यकता होती है। यह कम तापमान पर हो सकता है; आमतौर पर न्यूट्रॉन बमबारी द्वारा शुरू किया जाता है।
प्राकृतिक घटना तारों (जैसे हमारे सूर्य) में स्वाभाविक रूप से घटित होता है। पृथ्वी पर प्राकृतिक एवं स्थाई रूप से नहीं पाया जाता है; इसका उपयोग परमाणु ऊर्जा संयंत्रों और हथियारों के निर्माण में किया जाता है।

संदर्भ

हाल ही में, विश्व बैंक ने अपनी द्विवार्षिक वैश्विक आर्थिक संभावना रिपोर्ट जारी की है।

वैश्विक आर्थिक संभावना रिपोर्ट के बारे में

  • यह वैश्विक आर्थिक रुझानों, पूर्वानुमानों और जोखिमों के बारे में जानकारी प्रदान करती है और विभिन्न देशों और क्षेत्रों के लिए विकास अनुमान प्रदान करती है

भारत के विकास अनुमानों में गिरावट क्यों?

  • प्रमुख व्यापारिक साझेदारों में धीमी गतिविधि के कारण निर्यात में कमी।
  • वैश्विक व्यापार बाधाओं में वृद्धि।
  • वैश्विक अनिश्चितता के कारण निवेश वृद्धि में भी कमी आने की संभावना है।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष

  • भारत के विकास अनुमान
    • सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था: भारत के विश्व में सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था बने रहने की संभावना है।
    • वित्त वर्ष 2025/26: विकास दर 6.3% रहने का अनुमान है, हालाँकि इस पूर्वानुमान को पहले के पूर्वानुमानों से थोड़ा कम (0.4 प्रतिशत अंक) किया गया है, क्योंकि
      • वित्त वर्ष 2026-27 के अनुमान को 20 आधार अंकों से घटाकर 6.5% कर दिया गया है, जबकि वित्त वर्ष 2027-28 में विकास दर 6.7% तक पहुँचने की संभावना है।
      • सेवा क्षेत्र के मजबूत प्रदर्शन से निर्यात को बढ़ावा मिलने और आर्थिक गतिविधि को बनाए रखने की संभावना है।

भारत की घरेलू नीति और ऋण

  • RBI की भूमिका: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने अपनी प्रमुख ब्याज दर में 50 आधार अंकों (वर्ष 2025 में कुल 100 bps) की कटौती कर इसे 5.50% कर दिया।
    • ऐसा घरेलू खर्च और निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए किया गया, क्योंकि मुद्रास्फीति कम है (वित्त वर्ष 26 के लिए 3.7% अनुमानित)
  • विकास पूर्वानुमान विसंगतियाँ: जबकि RBI को वित्त वर्ष 2026 के लिए 6.5% की वृद्धि की उम्मीद है, कई अर्थशास्त्री 6% के निकट की भविष्यवाणी करते हैं। भारत सरकार 6.3-6.8% का अनुमान लगाती है।
  • पिछले वर्ष की वृद्धि: मजबूत सेवाओं और कृषि के बावजूद, धीमी औद्योगिक उत्पादन के कारण भारत की GDP वृद्धि वित्त वर्ष 25 में 6.5% (पिछले वर्ष 9.2% से) धीमी हो गई।
  • राजकोषीय समेकन: विश्व बैंक के अनुमान के अनुसार, भारत अपने सरकारी ऋण को कम करना जारी रखेगा।
    • बढ़ते कर राजस्व और कम खर्च से सार्वजनिक ऋण-GDP अनुपात को कम करने में मदद मिलने की संभावना है।
    • भारत सरकार का लक्ष्य वित्त वर्ष 2026 में अनुमानित 56.1% से वित्त वर्ष 2031 तक इस अनुपात को 50% (49-51%) तक कम करना है।
  • वैश्विक आर्थिक परिदृश्य
    • व्यापक कटौती: विश्व बैंक ने “बढ़ते व्यापार तनाव और नीति अनिश्चितता” के कारण विश्व की लगभग 70% अर्थव्यवस्थाओं के लिए विकास पूर्वानुमान कम कर दिए हैं।
    • वर्ष 2008 के बाद से सबसे धीमी वृद्धि: वैश्विक विकास वर्ष 2025 में 2.3% तक धीमा होने की संभावना है (वैश्विक मंदी को छोड़कर), जो वर्ष 2008 के बाद से सबसे धीमी गति है।
    • निरंतर मंदी: वर्ष 2026 (2.4%) और वर्ष 2027 (2.6%) में विकास में अल्प वृद्धि होने का अनुमान है।
    • एशिया के बाहर विकासशील देश बहुत धीमी वृद्धि प्रदर्शित कर रहे हैं और “विकास-मुक्त क्षेत्र” की तरह बन रहे हैं।
      • पिछले तीन दशकों में, उनकी वृद्धि 2000 के दशक में 6% से गिरकर वर्ष 2020 के दशक में 4% से भी कम हो गई है। इसी समय, वैश्विक व्यापार और निवेश वृद्धि धीमी हो गई है, जबकि ऋण का स्तर तेजी से बढ़ा है।
    • व्यापार तनाव का प्रभाव: व्यापार तनाव और अनिश्चितता में वृद्धि वैश्विक मंदी के प्रमुख कारण हैं।
  • परिवर्तन की संभावना
    • व्यापार विवादों का समाधान: विश्व बैंक का सुझाव है, कि यदि प्रमुख अर्थव्यवस्थाएँ व्यापार तनावों का समाधान कर लें, तो वैश्विक विकास सशक्त हो सकता है।
      • टैरिफ को आधा करने से वर्ष 2025 और वर्ष 2026 में वैश्विक विकास में औसतन 0.2 प्रतिशत अंक की वृद्धि हो सकती है।

संदर्भ

एक नए अध्ययन के अनुसार महासागरीय अम्लीकरण पहले ही अपनी ग्रहीय सीमा को पार कर चुका है, जिससे समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र और वैश्विक पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है।

ग्रहीय सीमाएँ क्या हैं?

  • ग्रहीय सीमाएँ जलवायु, जल और वन्यजीव विविधता जैसी प्रमुख वैश्विक प्रणालियों की प्राकृतिक सीमाएँ हैं, जिसके आगे ग्रह को स्वस्थ बनाए रखने की उनकी क्षमता विफल होने का खतरा है।
  • इसे स्टॉकहोम रेजिलिएंस सेंटर द्वारा विकसित किया गया है।

महासागरीय अम्लीकरण के बारे में

  • महासागरीय अम्लीकरण का तात्पर्य लंबे समय तक महासागर के PH में कमी से है, जो मुख्य रूप से वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) के अवशोषण के कारण होता है।
    • इसे प्रायः जलवायु परिवर्तन का ‘एविल ट्विन’ (Evil Twin) कहा जाता है।

महासागरीय अम्लीकरण का तंत्र

  • समुद्री जल द्वारा अतिरिक्त वायुमंडलीय CO₂ के अवशोषण के कारण महासागरीय अम्लीकरण होता है।
  • घुलित CO₂ जल के साथ प्रतिक्रिया करके कार्बोनिक एसिड (H₂CO₃) का निर्माण करता है।
  • कार्बोनिक एसिड हाइड्रोजन आयनों (H⁺) और बाइकार्बोनेट (HCO₃⁻) में विघटित हो जाता है, जिससे महासागरीय अम्लता बढ़ जाती है।
  • H⁺ आयनों में वृद्धि से महासागर का pH कम हो जाता है, जिससे यह अधिक अम्लीय हो जाता है।
  • H⁺ आयन कार्बोनेट आयनों (CO₃²⁻) के साथ मिलकर अधिक बाइकार्बोनेट बनाते हैं और कार्बोनेट की उपलब्धता कम करते हैं।
  • कम कार्बोनेट आयन समुद्री जीवों की कैल्शियम कार्बोनेट (CaCO₃) का आवरण एवं ढाँचा बनाने की क्षमता को सीमित करते हैं।
  • यह समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित करता है, जिससे जैव विविधता और वैश्विक समुद्री खाद्य सुरक्षा को खतरा उत्पन्न होता है।

महासागरीय अम्लीकरण के प्रभाव

  • महासागर रसायन विज्ञान में परिवर्तन कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं और वायुमंडलीय CO₂ का लगभग 30% अवशोषित करते हैं। बढ़ते CO₂ उत्सर्जन के साथ, महासागरीय अवशोषण भी बढ़ता है, जिससे महासागर रसायन विज्ञान में परिवर्तन होता है।

वैश्विक महासागर अम्लीकरण अवलोकन नेटवर्क (GOA-ON)

  • GOA-ON एक सहयोगात्मक अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क है जिसे तीन लक्ष्यों को संबोधित करने के लिए डिजाइन किया गया है:
    • वैश्विक महासागरीय अम्लीकरण स्थितियों की हमारी समझ में सुधार करना।
    • महासागरीय अम्लीकरण के प्रति पारिस्थितिकी तंत्र की प्रतिक्रिया संबंधी समझ में सुधार करना।
    • महासागरीय अम्लीकरण और इसके प्रभावों के लिए मॉडलिंग को अनुकूलित करने के लिए आवश्यक डेटा और ज्ञान प्राप्त करना और उनका आदान-प्रदान करना।
  • प्रमुख निकायों जैसे: UNESCO-IOC (अंतर-सरकारी महासागरीय आयोग), IAEA (अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी), NOAA (राष्ट्रीय महासागरीय और वायुमंडलीय प्रशासन) द्वारा समर्थित।

  • कैल्सीकृत जीवों को हानि: अम्लीकरण से कैल्सीकृत जीवों जैसे सीप, क्लैम आदि के लिए अपनी संरचनाओं का निर्माण और रखरखाव करना कठिन हो जाता है।
  • महासागर स्तरीकरण में परिवर्तन: महासागर के गहरे जल में सतह की परतों की तुलना में अधिक तेजी से परिवर्तन हो रहा है, जिससे जैव विविधता के लिए आवश्यक उष्णकटिबंधीय और गहन महासागर की प्रवाल भित्तियों पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है।
  • गैर-कैल्सीकृत जीवों पर प्रभाव: अम्लीय जल मछलियों के व्यवहार को परिवर्तित कर देता है, विशेषकर शिकारियों को पहचानने की उनकी क्षमता को समाप्त कर सकता है।
    • प्रमुख प्रजातियों में व्यवहार परिवर्तन समुद्री खाद्य जाल को अस्थिर कर सकते हैं।
    • कोरल, मोलस्क और शेलफिश की वृद्धि धीमी हो जाती है और प्रजनन क्षमता कम हो जाती है।
  • समुद्री आधारित अर्थव्यवस्थाओं के लिए जोखिम: मत्स्य पालन और जलीय कृषि पर अत्यधिक निर्भर देश विशेष रूप से असुरक्षित हैं।
    • मत्स्य पालन, प्रवाल भित्ति पर्यटन और समुद्री जैव विविधता में कमी के कारण रोजगार प्रभावित हो रहे  हैं,  साथ ही आय में कमी आ रही है।
  • खाद्य सुरक्षा जोखिम: महासागरीय अम्लीकरण से मत्स्य भंडार, समुद्री भोजन की पोषण गुणवत्ता आदि को खतरा है।

जलवायु परिवर्तन और महासागरीय अम्लीकरण

  • बढ़ते CO₂ स्तरों से प्रेरित जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग और महासागर अम्लीकरण दोनों को जन्म देता है।
  • महासागर कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं, जो वायुमंडलीय CO₂ का लगभग 30% अवशोषित करते हैं, जो समुद्री जल के साथ प्रतिक्रिया करके कार्बोनिक एसिड बनाता है, जिससे Ph स्तर कम हो जाता है।
  • यह प्रक्रिया महासागरों को तेजी से अम्लीय बनाती है, जिससे समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र और जीवन बाधित होता है।

प्लायमाउथ समुद्री प्रयोगशाला, NOAA और ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी द्वारा महासागर अम्लीकरण पर अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

  • मूल्यांकन: यह अध्ययन 150 वर्षों के डेटा पर आधारित है, जिसमें बर्फ के कोर, रासायनिक माप, उन्नत मॉडलिंग और जैविक सर्वेक्षण शामिल हैं।
  • 2020 तक पार हो गई ग्रहीय सीमा: वैश्विक औसत महासागर की स्थिति ने वर्ष 2020 या उसके आसपास अम्लीकरण के लिए ग्रहीय सीमा को पार कर लिया।
    • ग्रहीय सीमा को पूर्व-औद्योगिक स्तरों की तुलना में कैल्शियम कार्बोनेट की उपलब्धता में 20% से अधिक की कमी के रूप में परिभाषित किया गया था।
  • गहन महासागर की गंभीर स्थिति: 200 मीटर की गहराई पर, वैश्विक महासागर के 60% जल ने पहले ही अम्लीकरण सीमा को पार कर लिया है।
    • अधिकांश समुद्री जैव विविधता सतह के नीचे मौजूद है, जिसका अर्थ है कि प्रभाव सतह-स्तर के आँकड़ों से अधिक गंभीर हैं।
  • व्यापक पारिस्थितिकी तंत्र जोखिम: कैल्शियम कार्बोनेट पर निर्भर प्रजातियाँ, जैसे कि कोरल, मसल्स, सीप और समुद्री तितलियाँ, अपने खोल और संरचनाओं को बनाए रखने में असमर्थ होती जा रही हैं।
    • इसका परिणाम कमजोर ढाँचा, कम वृद्धि, कम प्रजनन और उच्च मृत्यु दर है।
  • क्षेत्रीय परिवर्तनशीलता: कुछ महासागर क्षेत्रों ने दूसरों की तुलना में पहले सुरक्षित सीमा को पार कर लिया, जिससे क्षेत्र-विशिष्ट संरक्षण रणनीतियों की आवश्यकता का सुझाव मिलता है।
  • समाधान: लेखकों ने रेखांकित किया कि CO₂ उत्सर्जन को कम करना वैश्विक स्तर पर अम्लीकरण से निपटने का एकमात्र तरीका था, लेकिन संरक्षण उपायों को उन क्षेत्रों और प्रजातियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जो सबसे अधिक असुरक्षित थीं।

संदर्भ

कार्ल्सरूहे ट्रिटियम न्यूट्रिनो एक्सपेरिमेंट (Karlsruhe Tritium Neutrino Experiment- KATRIN) ने आणविक ट्रिटियम के विघटन का अवलोकन करते हुए न्यूट्रिनो द्रव्यमान संबंधी एक नई ऊपरी सीमा का अनुमान लगाया है

  • इस एक्सपेरिमेंट ने न्यूट्रिनो द्रव्यमान पर 0.45 इलेक्ट्रॉन वोल्ट (eV) की एक नई ऊपरी सीमा निर्धारित की, जो एक इलेक्ट्रॉन (511,000 eV पर अगला सबसे हल्का ज्ञात कण) के द्रव्यमान के दस लाखवें हिस्से से भी कम है।

KATRIN प्रयोग के बारे में

  • KATRIN ट्रिटियम, एक रेडियोधर्मी हाइड्रोजन समस्थानिक के क्षय का अध्ययन करता है।
  • यह न्यूट्रिनो के द्रव्यमान का अनुमान लगाने के लिए क्षय के दौरान उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों की ऊर्जा की निगरानी करता है।
  • महत्त्व: KATRIN के प्रयोगों के परिणाम प्रत्यक्ष, मॉडल-स्वतंत्र और मजबूत हैं, अन्य तकनीकों (जैसे ब्रह्मांड संबंधी अवलोकन या डबल-बीटा क्षय प्रयोग) के विपरीत जो सैद्धांतिक मान्यताओं पर निर्भर करते हैं।

न्यूट्रिनो के बारे में

  • न्यूट्रिनो ब्रह्मांड में सबसे प्रचुर मात्रा में पाए जाने वाले प्राथमिक उपपरमाण्विक कण हैं जिनका द्रव्यमान होता है और ये कणों के लेप्टॉन परिवार से संबंधित हैं।
  • उत्पादन: न्यूट्रिनो विभिन्न परमाणु प्रक्रियाओं में उत्पन्न होते हैं, जिसमें तारों में परमाणु संलयन, कण रिएक्टरों या त्वरक में परमाणु विखंडन और म्यूऑन का क्षय शामिल है।
    • केले से भी न्यूट्रिनो उत्सर्जित होते हैं (जो फल में मौजूद पोटेशियम की प्राकृतिक रेडियोधर्मिता पर निर्भर करते हैं)
  • प्रकार: न्यूट्रिनो के 3 प्रकार हैं,
    • इलेक्ट्रॉन न्यूट्रिनो, म्यूऑन न्यूट्रिनो और टॉऑन न्यूट्रिनो
      • न्यूट्रिनो दोलन: जब न्यूट्रिनो अंतरिक्ष में यात्रा करता है, तो तरंगों का चरण बदल जाता है और ‘फ्लेवर’ का प्रकार बदल जाता है। इस घटना को “न्यूट्रिनो दोलन” कहा जाता है।
        • न्यूट्रिनो प्रकाश की गति के निकट यात्रा करते हैं
  • मुख्य विशेषताएँ
    • तटस्थता: न्यूट्रिनो विद्युत रूप से तटस्थ होते हैं, जिसका अर्थ है कि उनमें कोई विद्युत आवेश नहीं होता।
    • न्यूट्रिनो द्रव्यमान: न्यूट्रिनो का द्रव्यमान बहुत कम होता है, जिसे अब तक ठीक से मापा नहीं जा सका है।
      • कण दोलन (न्यूट्रिनो द्रव्यमान के वर्गों में अंतर को मापना) परिघटना ने यह स्थापित किया है कि कम-से-कम दो प्रकार के न्यूट्रिनो का द्रव्यमान शून्य से अधिक होता है, जिसके लिए वर्ष 2015 का भौतिकी का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।

न्यूट्रिनो द्रव्यमान क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • यह इस बात को समझाने में मदद करता है कि ब्रह्मांड में पदार्थ, एंटीमैटर (Antimatter) पर क्यों प्रभावी है।
  • यह मानक मॉडल से परे नव भौतिकी की ओर संकेत करता है।
    • भौतिकी का मानक मॉडल पहले न्यूट्रिनो के द्रव्यमान रहित होने का पूर्वानुमान लगाता है।
  • न्यूट्रिनो द्रव्यमान को मापने से नए बलों या कणों के अस्तित्व का पता चल सकता है।
  • यह प्रारंभिक ब्रह्मांड के विकास को समझने के लिए महत्त्वपूर्ण है।

    • स्पिन: इनका चक्रण 1/2 होता है, जो इन्हें फर्मिऑन के रूप में प्रस्तुत करता है।
    • इंटरेक्शन: न्यूट्रिनो मुख्य रूप से दुर्बल बल के माध्यम से अंतर्संबंध स्थापित करते हैं, जो कुछ प्रकार के रेडियोधर्मी क्षय के लिए उत्तरदाई होता है।
    • पदार्थ के साथ इंटरेक्शन: न्यूट्रिनो शायद ही कभी अन्य पदार्थों के साथ अंतर्संबंध स्थापित करते हैं, जिसका अर्थ है कि वे लगभग किसी भी चीज से होकर गुजर सकते हैं।
    • हेलिसिटी: न्यूट्रिनो और उनके एंटीपार्टिकल्स (एंटीन्यूट्रिनो) उनकी हेलिसिटी (उनके संवेग के सापेक्ष स्पिन दिशा) द्वारा पहचाने जाते हैं। न्यूट्रिनो प्रायः बाएँ घूर्णित (Left-handed) होते हैं, जबकि एंटीन्यूट्रिनो प्रायः दाएँ घूर्णित (Right-handed) होते हैं।

न्यूट्रिनो पर प्रयोग

  • कार्ल्सरूहे ट्रिटियम न्यूट्रिनो प्रयोग (KATRIN): इसका उद्देश्य न्यूट्रिनो द्रव्यमान का प्रत्यक्ष मापन करना है।
  • PROSPECT और फर्मिलैब शॉर्ट-बेसलाइन न्यूट्रिनो प्रोग्राम: यह रिएक्टरों और त्वरक से न्यूट्रिनो का उपयोग करके अज्ञात प्रकार के न्यूट्रिनो की खोज करता है।
  • MAJORANA प्रदर्शनकारी प्रयोग: यह निर्धारित करने के लिए पृथ्वी की सतह के नीचे गहराई में रखा जाता है कि न्यूट्रिनो अपने स्वयं के एंटीपार्टिकल हैं या नहीं।
  • NOvA एक्सपेरिमेंट और इंटरनेशनल डीप अंडरग्राउंड न्यूट्रिनो प्रयोग: इसका उद्देश्य “न्यूट्रिनो दोलन” की घटना का अध्ययन करना है, जो यह निश्चित करता है कि विभिन्न प्रकार के न्यूट्रिनो के बीच द्रव्यमान कैसे भिन्न होता है।

संदर्भ

हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) ने वर्ष 2025 स्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन (SOWP) रिपोर्ट जारी की, जिसका शीर्षक, ‘द रियल फर्टिलिटी क्राइसिस (The Real Fertility Crisis’)’ है।

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (United Nations Population Fund- UNFPA) के बारे में 

  • यह संयुक्त राष्ट्र महासभा का एक सहायक अंग है तथा लैंगिक एवं प्रजनन स्वास्थ्य एजेंसी के रूप में कार्य करता है।
  • स्थापना: इसकी स्थापना वर्ष 1967 में एक ट्रस्ट फंड के रूप में की गई थी और वर्ष 1969 में इसका संचालन शुरू हुआ।
    • वर्ष 1987 में, इसका परिवर्तित कर, संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष कर दिया गया, लेकिन मूल संक्षिप्त नाम, ‘UNFPA’ (संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या गतिविधियों के लिए कोष) को बनाए रखा गया।
  • उद्देश्य: UNFPA स्वास्थ्य (SDG 3), शिक्षा (SDG 4) और लैंगिक समानता (SDG 5) पर सतत विकास लक्ष्यों से निपटने के लिए प्रत्यक्ष रूप से कार्य करता है।
  • वित्तपोषण: UNFPA पूर्णतया अनुदानकर्ता सरकारों, अंतर-सरकारी संगठनों, निजी क्षेत्र और फाउंडेशनों और व्यक्तियों के स्वैच्छिक योगदान द्वारा समर्थित है, न कि संयुक्त राष्ट्र के नियमित बजट द्वारा।
  • विश्व जनसंख्या रिपोर्ट की स्थिति: UNFPA का वार्षिक प्रमुख प्रकाशन, वर्ष 1978 से प्रकाशित।

रिपोर्ट की मुख्य बिंदु

भारत के आँकड़े

  • वर्तमान जनसंख्या (2025)
    • भारत: 146.39 करोड़ (विश्व स्तर पर उच्चतम), 2060 के दशक में 170 करोड़ तक पहुँचने की उम्मीद है, तथा उसके बाद पुनः गिरावट आयेगी। 
    • चीन: 141.61 करोड़।
  • कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate- TFR)
    • भारत का TFR: 1.9 (प्रतिस्थापन स्तर 2.1 से नीचे)।
    • राष्ट्रीय स्तर पर प्राप्त प्रतिस्थापन-स्तर प्रजनन क्षमता (SRS 2021: TFR 2.0) था।
  • जनसांख्यिकीय विभाजन
    • 68% कार्यशील आयु वर्ग की जनसंख्या (15-64 वर्ष)
    • युवा जनसंख्या: 24% (0-14 वर्ष), 17% (10-19 वर्ष), 26% (10-24 वर्ष)।
    • बुजुर्ग (65+ वर्ष): 7% (बढ़ने की उम्मीद है)।
  • जीवन प्रत्याशा: पुरुष: 71 वर्ष, महिला: 74 वर्ष।
  • प्रजनन स्वास्थ्य और अपूर्ण आवश्यकताएँ
    • भारत में लगभग 36% महिलाएँ अनइच्छित या अनवांछित  गर्भधारण धारण करती है
    • 30% निम्नलिखित कारणों से वांछित परिवार का आकार प्राप्त नहीं कर पाते हैं:
      • वित्तीय बाधाएँ (38%), नौकरी की असुरक्षा (21%), बच्चे की देखभाल की कमी (18%)।
      • स्वास्थ्य बाधाएँ (बांझपन, मातृ देखभाल की खराब पहुँच)।
    • किशोरावस्था प्रजनन दर: 14.1 प्रति 1,000 लड़कियाँ (15-19 वर्ष) (चीन, श्रीलंका से अधिक)।

वैश्विक सांख्यिकी

  • विश्व जनसंख्या प्रवृत्ति
    • वैश्विक जनसंख्या: ~8.2 बिलियन (2025)।
    • प्रजनन क्षमता में गिरावट: 60% देशों में अब प्रतिस्थापन प्रजनन क्षमता दर कम है (TFR < 2.1)।
    • सर्वाधिक तीव्र जनसंख्या वृद्धि वाले क्षेत्र: उप-सहारा अफ्रीका, एशिया के कुछ हिस्से।
    • घटती आबादी: चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, पूर्वी यूरोप।
  • शीर्ष 5 सर्वाधिक आबादी वाले देश (2025)
    • भारत – 1.46 बिलियन
    • चीन – 1.42 बिलियन (घटती हुई)
    • अमेरिका – 345 मिलियन
    • इंडोनेशिया – 285 मिलियन
    • पाकिस्तान – 245 मिलियन
  • वैश्विक प्रजनन प्रवृत्ति
    • वैश्विक कुल प्रजनन दर (TFR) वर्ष 1950 में प्रति महिला 5 बच्चों से घटकर वर्ष 2024 में 2.25 हो गई, जिसके वर्ष 2050 तक 2.1 (प्रतिस्थापन स्तर) तक पहुँचने का अनुमान (UN DESA, 2024) है।
    • उच्चतम TFR: नाइजर (6.7), सोमालिया (6.1), DR कांगो (5.9)।
    • निम्नतम TFR: दक्षिण कोरिया (0.7), हांगकांग (0.8), सिंगापुर (0.9)।
    • प्रतिस्थापन-स्तर (2.1): केवल 93 देश इस सीमा से ऊपर रह गए हैं।
  • जीवन प्रत्याशा एवं वृद्ध होती आबादी
    • वैश्विक जीवन प्रत्याशा: 73 वर्ष (2025)।
      • उच्चतम: जापान (84.5), स्विटजरलैंड (83.9)। 
      • निम्नतम: मध्य अफ्रीकी गणराज्य (54), चाड (53)।
    • वृद्ध होती आबादी
      • जापान: 65 वर्ष से अधिक आयु के 30% लोग।
      • यूरोप: 20% बुजुर्ग।
      • भारत: 7% बुजुर्ग (लेकिन तेजी से बढ़ रहे हैं)।

क्षेत्रीय असमानताएँ: उच्च और निम्न प्रजनन दर (NFHS-5 डेटा)

  • उच्च प्रजनन क्षमता वाले राज्य: बिहार (TFR 3.0; TWFR 2.2), मेघालय (TFR 2.9; TWFR 2.2), उत्तर प्रदेश (TFR 2.4), झारखंड (TFR 2.3)।
    • कारण: सीमित शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच, कम आयु में विवाह और बड़े परिवारों पर आर्थिक निर्भरता।
  • न्यूनतम प्रजनन क्षमता वाले राज्य: दिल्ली (1.6), पश्चिम बंगाल (1.6), केरल (1.8), तमिलनाडु (1.8), सिक्किम (TFR 1.1; TWFR: 0.91)।
    • कारण: बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, शहरीकरण और आर्थिक अवसर।
  • आशय
    • दक्षिणी/पश्चिमी राज्यों में वृद्ध आबादी में वृद्धि का जोखिम है, जबकि उत्तरी/पूर्वी राज्यों में जनसंख्या वृद्धि हो रही है।
    • संसाधन आवंटन और विकास योजना के संदर्भ में नीतिगत चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।

कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate- TFR) क्या है?

  • परिभाषा: TFR का तात्पर्य वर्तमान प्रजनन दर के तहत एक महिला द्वारा अपने प्रजनन वर्षों (आमतौर पर 15-49 वर्ष) के दौरान जन्म लेने वाले बच्चों की औसत संख्या से है। 
  • 2.1 से ऊपर का TFR जनसंख्या वृद्धि को इंगित करता है, 2.1 के आसपास प्रतिस्थापन-स्तर की प्रजनन क्षमता को इंगित करता है, जबकि 2.1 से नीचे जनसंख्या में गिरावट और आयु वृद्धि का संकेत देता है, जिससे देश के लिए दीर्घकालिक सामाजिक-आर्थिक और कार्यबल चुनौतियाँ पैदा होती हैं।

जनसांख्यिकीय लाभांश

  • जनसांख्यिकीय लाभांश से तात्पर्य किसी देश की आयु संरचना में बदलाव के परिणामस्वरूप होने वाली आर्थिक वृद्धि क्षमता से है, मुख्य रूप से तब जब कार्यशील आयु की आबादी आश्रित आबादी से अधिक होती है।
  • भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश कम-से-कम वर्ष 2055 से वर्ष 2056 तक जारी रहेगा। यह वर्ष 2041 के आसपास यह चरम पर होगा, जब इसकी 59% आबादी कार्यशील आयु (20-59 वर्ष) वर्ग की होगी।

कुल वांछित प्रजनन दर (Total Wanted Fertility Rate- TWFR) 

  • यह एक जनसांख्यिकीय माप है जो यह अनुमान लगाता है कि यदि एक महिला को केवल उतने ही बच्चे हों जितने वह चाहती है तो उसके औसतन कितने बच्चे होंगे।
  • यह वांछित और वास्तविक प्रजनन क्षमता के बीच के अंतर को समझने में मदद करता है, जो प्रजनन अधिकारों और परिवार नियोजन सेवाओं तक पहुँच से जुड़े मुद्दों को प्रदर्शित कर सकता है।

जनसांख्यिकीय लचीलापन 

  • इसका तात्पर्य जनसांख्यिकीय परिवर्तनों, जैसे वृद्धावस्था, प्रवासन, तथा प्रजनन दर में परिवर्तन, का सामना करने तथा उनकी अनुकूलन स्थिति की कम होती क्षमता से है।

भारत में प्रजनन क्षमता में गिरावट के कारण

  • बेहतर महिला शिक्षा और सशक्तीकरण: बढ़ी हुई साक्षरता और उच्च शिक्षा प्राप्ति के कारण विवाह और बच्चे पैदा करने में देरी होती है।
    • NFHS-5 (2019-21) के अनुसार, 12 या उससे अधिक वर्षों की स्कूली शिक्षा प्राप्त करने वाली महिलाओं का कुल प्रजनन दर (TFR) 1.8 है, जबकि बिना शिक्षा प्राप्त करने वाली महिलाओं का TFR 2.8 है।
  • बच्चों के पालन-पोषण की बढ़ती लागत: रिपोर्ट के अनुसार,  विश्व स्तर पर प्रत्येक पाँच में से एक व्यक्ति को यह आशंका है कि माता-पिता बनने की अत्यधिक लागत, नौकरी की असुरक्षा, आवास समस्याएँ और अन्य आर्थिक एवं सामाजिक चिंताओं के कारण वे अपने इच्छित संख्या में बच्चे पैदा नहीं कर पाएंगे।
  • विवाह में देरी और करियर की आकांक्षाएँ: विवाह में देरी से प्रजनन अवधि कम होती है, जिससे TFR कम होता है। कई महिलाएँ शिक्षा या करियर को आगे बढ़ाने के लिए बच्चे पैदा करने में देरी करती हैं।
  • शिशु मृत्यु दर में कमी और बेहतर स्वास्थ्य सेवा: भारत की शिशु मृत्यु दर घटकर 28 प्रति 1,000 जीवित जन्म (SRS 2020) हो गई है, पहले अधिक बच्चों का जन्म इसलिए भी होता था क्योंकि माता-पिता को आशंका रहती थी कि सभी बच्चे जीवित नहीं रहेंगे। इसे ‘बीमा प्रभाव’ (Insurance Effect) कहते हैं।
    • संस्थागत प्रसव अब 88% से अधिक हो गए हैं, जिससे बच्चों के जीवित रहने की दर में और वृद्धि हुई है।
  • बदलते सामाजिक मानदंड और छोटे या एकल परिवार की प्राथमिकताएँ: घरेलू श्रम का असमान विभाजन महिलाओं को अधिक बच्चे पैदा करने के लिए हतोत्साहित करता है।
    • UNFPA (2025) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 41% महिलाएँ और 33% पुरुष दो बच्चे चाहते हैं, जो छोटे परिवारों की मजबूत सामाजिक स्वीकृति को दर्शाता है।
  • प्रजनन जागरूकता और सरकारी अभियान: हम दो, हमारे दो’, मिशन परिवार विकास और आशा आउटरीच कार्यक्रमों जैसे अभियानों ने छोटे परिवारों के उद्भव में मदद की है।
    • UNFPA की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में देखा गया है कि इस तरह के प्रयासों के माध्यम से ‘प्रजनन अधिकार और आर्थिक समृद्धि एक साथ किस प्रकार आगे बढ़ सकती है’
    • NFHS-5 (2019-21) के अनुसार, अधिकांश राज्यों में उच्च जागरूकता के साथ आधुनिक गर्भनिरोधक का उपयोग 54 से 67% तक बढ़ गया।
  • बांझपन और स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियाँ: सार्वजनिक क्षेत्र में बांझपन देखभाल तक सीमित पहुँच, खराब सामान्य स्वास्थ्य (15%) और सीमित गर्भावस्था-संबंधी देखभाल (14%) जैसी स्वास्थ्य समस्याएँ प्रजनन क्षमता में कमी का महत्त्वपूर्ण कारण बनती हैं।
    • लगभग 27.5 मिलियन युगल बांझपन की समस्या का सामना करते हैं, तथा यह स्थिति मोटापा, तनाव, धूम्रपान और प्रदूषण जैसे जीवनशैली कारकों के कारण और भी ख़राब (UNFPA रिपोर्ट 2025) हो रही है।

भारत में घटती प्रजनन क्षमता के प्रभाव

सकारात्मक प्रभाव 

  • जनसांख्यिकीय लाभांश के अवसर: न्यूनतम निर्भरता अनुपात एक बड़ी कार्यशील आयु वाली आबादी के माध्यम से उत्पादकता को बढ़ा सकता है।
    • वर्ष 2025 तक, भारत की 68% आबादी कार्यशील आयु वर्ग (15-64) की है, जो जनसांख्यिकीय लाभांश संबंधी अवसर प्रदान करती है।
  • महिलाओं सशक्तीकरण में वृद्धि: प्रजनन क्षमता में कमी प्रायः महिलाओं के लिए अधिक स्वायत्तता और निर्णय लेने की शक्ति से जुड़ी होती है।
    • UNFPA में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि सशक्त प्रजनन विकल्प महिलाओं के लिए बेहतर शिक्षा और रोजगार परिणामों से जुड़े हैं।
  • बेहतर बाल निवेश और शिक्षा: परिवारों के छोटे आकार प्रति बच्चे अधिक संसाधन प्रदान करते हैं, जिससे शिक्षा और देखभाल की गुणवत्ता में सुधार होता है।
  • पर्यावरणीय स्थिरता: कम प्रजनन प्राकृतिक संसाधनों और पारिस्थितिकी तंत्रों पर दबाव कम करते हैं।
    • वर्ष 2050 तक भारत की अनुमानित TFR में 1.29 की गिरावट प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन को कम कर सकती है, जिससे जलवायु लक्ष्यों में सहायता मिल सकती है।
  • महिलाओं के लिए बेहतर स्वास्थ्य परिणाम: कम गर्भधारण से महिलाओं के लिए कम जटिलताएँ और बेहतर दीर्घकालिक स्वास्थ्य होता है।

नकारात्मक प्रभाव

  • दीर्घावधि में कार्यबल में कमी: पर्याप्त युवा प्रतिस्थापन के अभाव में, भविष्य में श्रम की कमी उत्पन्न हो सकती है।
    • संयुक्त राष्ट्र के अनुमानों के अनुसार, कि भारत की जनसंख्या 2060 के दशक की शुरुआत तक 170 करोड़ तक पहुँच जाएगी तथा इसके बात इसमें गिरावट देखने को मिलेगी, जो संभावित रूप से उसके बाद आर्थिक विकास को सीमित कर देगी।
  • वृद्ध जनसंख्या भार: कम जन्मों के साथ, बुजुर्गों का अनुपात बढ़ता है, जिससे देखभाल और पेंशन का भार बढ़ता है।
    • UNFPA के अनुसार, भारत की बुजुर्ग (65+) आबादी वर्तमान में 7% है,
    • महिलाओं के लिए जीवन प्रत्याशा 74 वर्ष और पुरुषों के लिए 71 वर्ष तक पहुँचने के साथ इसमें तेजी से वृद्धि होने का अनुमान है।
  • क्षेत्रीय जनसांख्यिकी असंतुलन: न्यूनतम प्रजनन क्षमता वाले राज्यों में युवाओं की संख्या में कमी देखने को मिल सकती है, जबकि उच्च प्रजनन क्षमता वाले राज्य अभी भी अधिक जनसंख्या की समस्या से जूझ रहे हैं।
    • बिहार (TFR 3.0) और सिक्किम (TFR 1.0) जैसे राज्य भारत के “उच्च प्रजनन क्षमता-कम प्रजनन क्षमता” संबंधी संघर्ष को दर्शाते हैं, जो समान नीति कार्यान्वयन के लिए चुनौतियाँ पैदा करते हैं।
  • प्रजनन संबंधी आकांक्षाओं की कम उपलब्धि: कई व्यक्ति आर्थिक और सामाजिक बाधाओं के कारण इच्छित संख्या में बच्चे पैदा करने में असमर्थ हैं।
    • UNFPA की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 30% लोगों की प्रजनन संबंधी इच्छाएँ अधूरी रह जाती हैं, जबकि 23% लोग अनपेक्षित गर्भधारण और बच्चें न होने, दोनों का सामना कर रहे हैं।
  • सामाजिक अलगाव और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में वृद्धि: प्रजनन क्षमता में कमी और देर से विवाह के कारण अकेलेपन और परिवार के विखंडन में वृद्धि हो सकती है।
    • UNFPA की रिपोर्ट में प्रजनन संबंधी निर्णयों और दीर्घकालिक कल्याण को प्रभावित करने वाली आधुनिक चुनौतियों में से एक के रूप में बढ़ती “अकेलेपन की महामारी” का उल्लेख किया गया है।
  • पारिवारिक संरचना में व्यवधान: छोटे परिवार पारंपरिक सहायता प्रणालियों को क्षीण करते हैं, जिससे बुजुर्गों का अलगाव बढ़ता है।
    • शहरी क्षेत्रों में एकल परिवार (जैसे, TFR: 1.6) बुजुर्गों की देखभाल की चुनौतियों का सामना करते हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्र में TFR: 2.4 है (एसआरएस 2021)।
  • अपरिवर्तनीय प्रवृत्ति: विकसित देशों के ऐतिहासिक डेटा से ज्ञात होता है कि एक बार प्रजनन दर प्रतिस्थापन स्तर से नीचे चली जाती है, तो इस प्रवृत्ति को परिवर्तित करना बेहद कठिन हो जाता है।
    • जापान पहला देश था जिसने प्रजनन दर में गिरावट के प्रभावों का अनुभव किया।
    • बढ़ते निर्भरता अनुपात ने 1990 के दशक से लगभग ‘शून्य जीडीपी वृद्धि’ को जन्म दिया है, और देश बढ़ती सामाजिक सुरक्षा लागतों को पूरा करने के लिए राजकोषीय चुनौतियों का सामना कर रहा है।

प्रजनन एजेंसी से तात्पर्य प्रजनन के बारे में सूचित, सशक्त निर्णय लेने की क्षमता से है, जो कानूनी, राजनीतिक, आर्थिक या सामाजिक बाधाओं से मुक्त है। यह शारीरिक स्वायत्तता और लैंगिक समानता की आधारशिला है।

भारत में प्रजनन प्रबंधन से संबंधी चुनौतियाँ

  • प्रजनन एजेंसी संकट: प्रजनन विकल्पों तक सीमित पहुँच व्यक्तियों को परिवार का वांछित आकार प्राप्त करने से रोकती है।
    • लगभग 30% भारतीय अधिक या कम बच्चों की इच्छा को पूर्ण नहीं करते हैं, और 36% अनपेक्षित गर्भधारण का अनुभव करते हैं (UNFPA रिपोर्ट 2025)।
  • उच्च क्षेत्रीय और सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ: राज्यों, जातियों और आय समूहों में भारी अंतर के कारण प्रजनन क्षमता का प्रबंधन करना मुश्किल है।
    • बिहार में TFR 3.0 है, और सिक्किम में 1.0 है, जो भारत के “उच्च प्रजनन क्षमता-कम प्रजनन क्षमता” संबंधी संघर्ष को प्रदर्शित करता है।
  • अपूर्ण प्रजनन लक्ष्य: लाखों लोग अपनी इच्छित और वास्तविक प्रजनन क्षमता के बीच अंतर का सामना करते हैं, जो कभी अधिक संतान होने और कभी कम संतान होने, दोनों प्रकार की परिस्थितियों का परिणाम है।
    • भारत में, 36% ने अनपेक्षित गर्भधारण से संवंधित विवरण प्राप्त है, एवं 30% ने कहा कि वे अपनी प्रजनन क्षमता की इच्छाओं को पूर्ण करने में सक्षम नहीं हैं, जो प्रणालीगत प्रजनन अंतराल को दर्शाता है।
  • बांझपन और विशेष लैंगिक और प्रजनन स्वास्थ्य (Sexual and Reproductive Health-SRH) देखभाल तक सीमित पहुँच: सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा में बांझपन से संबधित सेवाएँ नहीं हैं।
    • भारत में अनुमानित 27.5 मिलियन जोड़े बांझपन की समस्या का सामना कर रहे हैं, फिर भी सार्वजनिक क्षेत्र का समर्थन अपर्याप्त बना हुआ है तथा जो शहरी क्षेत्रों तक ही सीमित है।
  • शहरी-ग्रामीण अन्तराल की निरंतरता: शहरी केंद्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में परिवार नियोजन उपकरण, जागरूकता और सेवाओं तक सीमित पहुँच है।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में सात राज्यों में अभी भी प्रतिस्थापन प्रजनन क्षमता तक पहुँच नहीं है, जो सेवा और उन तक पहुँच के अंतराल को दर्शाता है।
  • सांस्कृतिक और लैंगिक मानदंड बाधाएँ: पितृसत्तात्मक मानदंड, पुत्र जन्म को प्राथमिकता और परिवार का दबाव प्रजनन संबंधी निर्णयों में महिलाओं की भूमिका को कम करता है।
    • 19% भारतीयों को भागीदारों या परिवारों की तरफ से कम बच्चे पैदा करने के लिए दबाव का सामना करना पड़ा, जितना वे व्यक्तिगत रूप से चाहते थे।
  • युवा प्रजनन स्वास्थ्य उपेक्षा: विशेषकर गरीब राज्यों में उच्च किशोर प्रजनन क्षमता एक चिंता का विषय बनी हुई है।
    • भारत की किशोर प्रजनन दर 14.1 प्रति 1,000 महिलाएँ (15-19 वर्ष) है, जो चीन (6.6) और श्रीलंका (7.3) से बहुत अधिक है,जिसमे खराब मातृ-शिशु परिणाम से संबंधी खतरा विद्यमान है।

भारत में प्रजनन क्षमता से संबंधित  सरकारी पहलें

  • राष्ट्रीय जनसंख्या नीति (National Population Policy- NPP), 2000: प्रतिस्थापन-स्तर प्रजनन क्षमता (TFR 2.1) प्राप्त करने का लक्ष्य।
    • स्वैच्छिक और सूचित विकल्प, गर्भनिरोधक तक पहुंँच और मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य में सुधार पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • मिशन परिवार विकास (वर्ष 2016): इसे 7 राज्यों (बिहार, यूपी, एमपी, राजस्थान, झारखंड, छत्तीसगढ़, असम) के 146 उच्च प्रजनन क्षमता वाले जिलों में लॉन्च किया गया।
    • निःशुल्क गर्भनिरोधक, अंतर रखने के तरीके और व्यवहार परिवर्तन संचार प्रदान करता है।
    • बिहार (TFR 3.0) और उत्तर प्रदेश (TFR 2.7) जैसे TFR> 3 जिलों में जागरूकता बढ़ाने में मदद की।
  • परिवार नियोजन, 2020 (Family Planning- FP2020) और FP,2030 प्रतिबद्धताएँ: भारत वर्ष 2030 तक परिवार नियोजन तक सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करने के लिए वैश्विक FP पहल का एक हस्ताक्षरकर्ता है।
    • अंतरा (इंजेक्शन योग्य) और छाया (गैर-हार्मोनल गोलियाँ) जैसे नए गर्भनिरोधक प्रस्तुत किए।
    • अंतिम उपयोगकर्ता तक गर्भनिरोधक पहुँचाने के लिए 3 लाख से अधिक आशा कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित किया गया।
  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (National Health Mission- NHM): इसमें प्रजनन, मातृ, नवजात, बाल और किशोर स्वास्थ्य (Reproductive, Maternal, Newborn, Child and Adolescent Health- RMNCH+A) रणनीतियांँ शामिल हैं।
    • किशोर प्रजनन क्षमता, मातृ देखभाल और जन्म अंतराल को संबोधित करता है।
    • मासिक धर्म स्वच्छता योजनाओं, सहकर्मी शिक्षकों और किशोर स्वास्थ्य दिवसों का बढ़ावा देता है।
  • आशा कार्यकर्ताओं के लिए योजना: मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (आशा) को जन्म अंतराल, गर्भनिरोधक और संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
    • ये ग्रामीण प्रजनन प्रबंधन और जागरूकता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, खासकर युवा माताओं के मध्य।
  • जननी सुरक्षा योजना (Janani Suraksha Yojana- JSY) और जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (anani Shishu Suraksha Karyakram- JSSK): शिशु और मातृ मृत्यु दर को कम करने के लिए संस्थागत प्रसव को प्रोत्साहित करना।
    • प्रसव पश्चात परिवार नियोजन के द्वारा निःशुल्क प्रसव, परिवहन और प्रसवोत्तर देखभाल प्रदान करना।
  • विवाह आयु और बाल संरक्षण पर कानून: बाल-विवाह प्रतिषेध अधिनियम, (2006) और बालिकाओं के लिए विवाह की कानूनी आयु 21 वर्ष करने के प्रस्तावों का उद्देश्य किशोर गर्भधारण और समय से पहले प्रजनन दर को कम करना है।

विश्व में प्रजनन क्षमता बढ़ाने की नीतियाँ

  • जर्मनी में माता-पिता को अधिक अवकाश और लाभ दिए जाते हैं।
  • डेनमार्क 40 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं के लिए राज्य द्वारा वित्तपोषित IVF की सुविधा देता है।
  • हंगरी ने हाल ही में IVF क्लीनिकों का राष्ट्रीयकरण किया है।
  • पोलैंड दो से अधिक बच्चे पैदा करने वाले माता-पिता को प्रत्येक महीने नकद भुगतान करता है।
  • रूस दूसरे बच्चे के जन्म पर माता-पिता को एकमुश्त भुगतान करता है।

आगे की राह और सिफारिशें: भारत में प्रजनन क्षमता का प्रबंधन

  • प्रजनन स्वास्थ्य के लिए अधिकार-आधारित दृष्टिकोण को अपनाना: जनसंख्या नियंत्रण से प्रजनन लक्ष्यों की ओर बदलाव, जहाँ व्यक्ति यह निर्णय लेता है कि उसे कब, कितने और कितने बच्चे पैदा करने हैं।
    • UNFPA 2025 प्रजनन लक्ष्यों को जनसांख्यिकीय लक्ष्य के रूप में नहीं बल्कि व्यक्तिगत और मानव अधिकार के रूप में मान्यता देने की सिफारिश करता है।
  • गुणवत्तापूर्ण लैंगिक और प्रजनन स्वास्थ्य (SRH) सेवाओं तक पहुँच का विस्तार करना: गर्भनिरोधक, सुरक्षित गर्भपात, बांझपन उपचार और मातृ स्वास्थ्य सेवा तक सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करना।
  • भारत में 27.5 मिलियन से अधिक बांझ युगल हैं, लेकिन सार्वजनिक प्रजनन सेवाएँ सीमित हैं।
  • स्थानीय हस्तक्षेप के साथ उच्च प्रजनन क्षमता वाले राज्यों को लक्षित करना: बिहार (TFR 3.0), UP (2.7), और मेघालय (2.9) जैसे राज्यों को सांस्कृतिक, शैक्षिक और स्वास्थ्य सेवा अंतराल को संबोधित करने वाले केंद्रित कार्यक्रमों की आवश्यकता है।
    • मिशन परिवार विकास जैसी क्षेत्र-विशिष्ट योजनाओं का समर्थन करना और जहाँ आवश्यक हो, वहाँ इसका विस्तार करना।
  • माता-पिता बनने में संरचनात्मक बाधाओं को संबोधित करना: बच्चे पैदा करने से जुड़ी आर्थिक चिंताओं को कम करने के लिए चाइल्डकेयर, आवास, शिक्षा और कार्य वातावरण में निवेश  करना ।
  • लगभग 40% भारतीय वित्तीय बाधाओं और 22% आवास संबंधी मुद्दों को वांछित परिवार के आकार को प्राप्त न करने के कारणों के रूप में बताते हैं।
  • परिवार नियोजन सेवाओं में समावेशिता सुनिश्चित करना: अविवाहित व्यक्तियों, LGBTQIA+ समूहों और हाशिए पर स्थित समुदायों तक प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार करना।
    • UNFPA पारंपरिक वैवाहिक मानदंडों से परे सेवाओं तक समावेशी, उपेक्षा-मुक्त पहुँच को बढ़ावा देता है।
  • डेटा संग्रह और निगरानी को बढ़ाना: TFR से आगे बढकर कुल वांछित प्रजनन दर (UNFPA), प्रजनन की इच्छा और अपूर्ण जरूरतों के प्रति जागरूक होना।
    • बिहार और मेघालय में TFR > UNFPA (उदाहरण के लिए, बिहार: 3.0 बनाम 2.2) दिखाई देता है, जो अनपेक्षित प्रजनन और पहुँच की कमी को दर्शाता है।
  • सामाजिक मानदंड परिवर्तन और स्वास्थ्य साक्षरता को बढ़ावा देना: उपेक्षा, पुत्र को प्राथमिकता देने और गर्भनिरोधक और बांझपन के बारे में मिथकों को चुनौती देने के लिए अभियान संचालित करना।
    • प्रजनन जागरूकता और शारीरिक स्वायत्तता के लिए सामुदायिक भागीदारों, आशा कार्यकर्ताओं और युवाओं को शामिल करना।

निष्कर्ष:

भारत में प्रजनन दर में 1.9 की गिरावट (UNFPA 2025) शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और प्रजनन अधिकारों में प्रगति को दर्शाती है, लेकिन बढ़ती वृद्ध आबादी और क्षेत्रीय असमानताओं जैसी चुनौतियाँ भी सामने आती हैं। उच्च प्रजनन क्षमता वाले राज्यों में अधिकार-आधारित दृष्टिकोण, समावेशी नीतियाँ और लक्षित हस्तक्षेप सतत् जनसांख्यिकीय अनुकूलन के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।

To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.


Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.