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Jun 13 2025

भारत के लोकपाल ने नया आदर्श वाक्य अपनाया

भारत के लोकपाल ने एक नया आदर्श वाक्य ‘नागरिकों को सशक्त बनाओ, भ्रष्टाचार को उजागर करो’ अपनाया है।

लोकपाल के बारे में

  • लोकपाल एक वैधानिक भ्रष्टाचार विरोधी निकाय है, जिसकी स्थापना लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के तहत की गई है।
  • संरचना: इसमें एक अध्यक्ष एवं अधिकतम 8 सदस्य होते हैं, जिनमें से कम-से-कम 50% न्यायिक सदस्य होते हैं।
    • 50% सदस्य SC/ST/OBC, अल्पसंख्यक या महिला होने चाहिए।
  • नियुक्ति प्रक्रिया: चयन समिति की सिफारिशों के आधार पर राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है।
  • अवधि एवं निष्कासन: सदस्य 5 वर्ष या 70 वर्ष की आयु तक (जो भी पहले हो) पद पर रहते हैं।
    • राष्ट्रपति द्वारा केवल तभी हटाया जा सकता है, जब सर्वोच्च न्यायालय की जाँच में कदाचार के लिए इसकी सिफारिश की गई हो।
  • अधिकार क्षेत्र: प्रधानमंत्री (राष्ट्रीय सुरक्षा, परमाणु ऊर्जा एवं अंतरराष्ट्रीय संबंधों से संबंधित मामलों को छोड़कर) को शामिल करता है।
    • इसमें केंद्रीय मंत्री, सांसद, समूह A/B/C/D  के सरकारी कर्मचारी शामिल हैं।
  • अधीक्षण शक्तियाँ: लोकपाल के पास CBI सहित किसी भी केंद्रीय जाँच एजेंसी पर अधीक्षण एवं निर्देश देने की शक्ति है, जो लोकपाल द्वारा उन्हें भेजे गए मामलों से संबंधित है।
  • स्थापना दिवस: भारत के लोकपाल ने अपना पहला स्थापना दिवस 16 जनवरी, 2025 को मनाया।
  • अध्यक्ष: भारत के लोकपाल के वर्तमान अध्यक्ष न्यायमूर्ति अजय माणिकराव खानविलकर हैं।

संयुक्त नौसैनिक अभ्यास: PASSEX 

हाल ही में भारतीय नौसेना एवं यूनाइटेड किंगडम की रॉयल नेवी ने उत्तरी अरब सागर में एक उच्च क्षमता वाला PASSEX (संयुक्त नौसैनिक अभ्यास) किया।

भारत-यू. के. नौसैनिक अभ्यास के बारे में

  • भारतीय नौसेना का प्रतिनिधित्व स्टील्थ फ्रिगेट INS तबर, एक पनडुब्बी एवं एक P-8I समुद्री गश्ती विमान द्वारा किया गया।
  • यूनाइटेड किंगडम के कैरियर स्ट्राइक ग्रुप में विमानवाहक पोत HMS प्रिंस ऑफ वेल्स एवं फ्रिगेट HMS रिचमंड शामिल थे।
  • महत्त्व
    • यह नौसैनिक अभ्यास महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि उत्तरी अरब सागर वैश्विक व्यापार के लिए एक महत्त्वपूर्ण समुद्री गलियारा है।
    • इस तरह के संयुक्त अभ्यास आयोजित करने से दोनों देशों की साझा प्रतिबद्धताओं को बढ़ावा मिलता है।
      • यह समुद्री स्थिरता को भी बढ़ाता है, संचार संबंधी समुद्री सुरक्षा करता है एवं इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में विश्वसनीय नौसेना की उपस्थिति सुनिश्चित करता है।

संदर्भ

संस्थागत और तकनीकी निवेश के मूल्य को पहचानते हुए, स्पेशल पर्पज व्हीकल्स और एकीकृत कमान एवं नियंत्रण केंद्रों को स्मार्ट सिटी मिशन की समय-सीमा 31 मार्च 2025 से आगे भी जारी रखना है।

स्मार्ट सिटी मिशन (SCM) के बारे में

  • लॉन्च: शहरी विकास के मॉडल के रूप में 100 स्मार्ट शहरों को विकसित करने के लिए भारत सरकार द्वारा वर्ष 2015 में SCM लॉन्च किया गया था।
  • उद्देश्य: जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना, सतत् विकास को बढ़ावा देना और कुशल शहरी शासन के लिए प्रौद्योगिकी को एकीकृत करना।
  • नोडल मंत्रालय: केंद्रीय आवास और शहरी कार्य मंत्रालय (MoHUA)
  • उद्देश्य: स्मार्ट सिटी पहल इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) पर आधारित थी, जिसके उद्देश्य थे:
    • ‘कोर इंफ्रास्ट्रक्चर’ को बेहतर बनाना और स्वच्छ, सतत् शहरी वातावरण सुनिश्चित करना।
    • शासन और सेवा वितरण के लिए स्मार्ट समाधानों के उपयोग को बढ़ावा देंना।
    • गतिशीलता, जल आपूर्ति, सीवेज सिस्टम और अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार करना।
  • घटक: क्षेत्र-आधारित विकास (ABD) विशिष्ट शहरी क्षेत्रों में रेट्रोफिटिंग, पुनर्विकास और ग्रीनफील्ड परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करना।
  • पूर्णता की स्थिति: मार्च 2025 तक, स्मार्ट सिटीज मिशन (SCM) के तहत 8,000 से अधिक परियोजनाओं में से 93% से अधिक पूरी हो चुकी हैं।
  • बजट उपयोग: भारत सरकार ने ₹48,000 करोड़ के कुल मिशन परिव्यय का 99.44% वितरित किया है।
  • SPV: मिशन की एक मुख्य विशेषता स्पेशल पर्पज व्हीकल्स (SPV) की स्थापना थी।
  • एकीकृत कमान एवं नियंत्रण केंद्र (ICCC): ICCC उच्च तकनीक वाले शहरी प्रबंधन प्लेटफॉर्म हैं, जिन्हें स्मार्ट सिटी मिशन (SCM) के तहत सभी 100 स्मार्ट शहरों में स्थापित किया गया है।

स्पेशल पर्पस व्हीकल्स (SPV)

  • SPV एक कानूनी इकाई (कंपनी की तरह) है जिसे किसी विशिष्ट उद्देश्य या परियोजना के लिए बनाया जाता है।
  • यह सरकार या मूल संगठन से स्वतंत्र रूप से संचालित होता है जो इसे बनाता है।
  • SPV का उपयोग बुनियादी ढाँचे, स्मार्ट शहरों या परिसंपत्ति मुद्रीकरण जैसी परियोजनाओं के प्रबंधन और कार्यान्वयन के लिए किया जाता है।
  • वे तेजी से निर्णय लेने, कुशल निष्पादन और निजी निवेश को आकर्षित करने में मदद करते हैं।

SCM के अंतर्गत स्पेशल पर्पज व्हीकल्स 

  • स्थापना: कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत सभी 100 स्मार्ट शहरों में SPV बनाए गए।
  • शेयरिंग: SPV के पास राज्य/केंद्रशासित प्रदेश सरकारों/प्रशासन और प्रमोटर के रूप में संबंधित शहरी स्थानीय निकायों (ULB) के बीच 50:50 इक्विटी शेयर होल्डिंग है।
  • अधिदेश: इन SPV को केंद्रित योजना, परियोजना विकास और जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन के माध्यम से मिशन को लागू करने का अधिदेश दिया गया था।
  • संस्थागत विकास: SPV ने शहरी शासन प्रणालियों के भीतर मजबूत संस्थागत और तकनीकी क्षमता बनाने में मदद की और एक कुशल शहरी कार्यबल में योगदान दिया।
  • पुनर्प्रयोजन के लिए सलाह: 31 मार्च 2025 को SCM समाप्त होने के बाद, MoHUA की सलाह ने सिफारिश की है कि SPV कार्य करना जारी रखना और व्यापक शहरी विकास लक्ष्यों के लिए पुनर्प्रयोजन करना।
  • भविष्य के कार्यात्मक डोमेन: SPV अब पाँच प्रमुख क्षेत्रों में ULB और राज्यों का समर्थन कर सकते हैं:
    • प्रौद्योगिकी सहायता (जैसे, ICCC का प्रबंधन, साइबर स्वच्छता, डेटा विश्लेषण)
    • परियोजना कार्यान्वयन (केंद्रीय/राज्य योजनाएँ, बैंक योग्य परियोजनाएँ)
    • परामर्श सहायता (शहरी क्षेत्रों में सलाह)
    • अनुसंधान और मूल्यांकन (साक्ष्य-आधारित योजना, स्टार्ट-अप इनक्यूबेशन)
    • निवेश सुविधा (परियोजना संरचना, समन्वय)
  • वित्तीय स्थिरता: SPV निम्नलिखित एकत्र कर सकते हैं:
    • परियोजना कार्यान्वयन शुल्क: परियोजना लागत का 1.5%-3% (राज्य मानदंड)
    • अन्य शुल्क: राज्य/केंद्रीय योजनाओं के लिए परियोजनाओं की योजना/डिजाइन/निष्पादन के लिए।
  • दीर्घकालिक शासन में एकीकरण: राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को सलाह दी जाती है कि वे अपने शहरी शासन ढाँचे में SPV को संस्थागत बनाना, ताकि निर्मित क्षमताओं का दीर्घकालिक उपयोग सुनिश्चित हो सके।

एकीकृत कमांड और नियंत्रण केंद्र (ICCC)

  • कार्यक्षमता: एकीकृत कमांड और नियंत्रण केंद्र (ICCC) वास्तविक समय, तकनीक-सक्षम शासन के तंत्रिका केंद्र के रूप में कार्य करते हैं।
  • मुख्य अनुप्रयोग
    • यातायात और भीड़ प्रबंधन
    • सार्वजनिक सुरक्षा और आपदा प्रतिक्रिया
    • ठोस अपशिष्ट प्रबंधन
    • कार्यक्रमों के दौरान रियल टाइम निगरानी
  • भविष्य में उपयोग: राज्यों को सलाह दी जाती है कि वे ICCC में अधिकाधिक सेवाओं को एकीकृत करना तथा उन्नत उपयोगिता के लिए समय पर उन्नयन सुनिश्चित करें।

संदर्भ

हाल ही में पाकिस्तान को वर्ष 1988 की तालिबान प्रतिबंध समिति के अध्यक्ष, 1373 आतंकवाद-रोधी समिति (CTC) के उपाध्यक्ष एवं UNSC के दो अनौपचारिक कार्य समूहों में सह-अध्यक्ष के रूप में चुना गया।

UNSC समितियों में पाकिस्तान की नियुक्ति के कारण

  • प्रक्रियात्मक रूप से अपरिहार्य: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) द्वारा स्थापित तालिबान प्रतिबंध समिति (1999) और 1373 आतंकवाद-रोधी समिति (2001) सभी 15 सुरक्षा परिषद सदस्यों से मिलकर गठित सहायक अंग हैं। ये समितियाँ संयुक्त राष्ट्र चार्टर के प्रावधानों के अनुरूप कार्य करती हैं।
    • अपनी दो वर्ष की UNSC सदस्यता के आधार पर, कोई भी निर्वाचित गैर-स्थायी सदस्य अनिवार्य रूप से अपने कार्यकाल के दौरान किसी-न-किसी समय परिषद के कई सहायक निकायों में से कम-से-कम एक का नेतृत्व करता है।
    • जून 2024 में एशिया-अफ्रीका समूह से पाकिस्तान को UNSC के गैर-स्थायी सदस्य के रूप में चुना गया।
  • P5: स्थायी सदस्य (चीन, फ्राँस, रूस, UK, US) हितों के टकराव को रोकने के लिए ऐसे निकायों की अध्यक्षता करने से बचते हैं। उदाहरण के लिए, अमेरिका प्रमुख प्रतिबंध लगाता है, लेकिन वर्ष 1988 की समिति की अध्यक्षता कभी नहीं की।
  • प्रणालीगत अधिभार: मौजूदा प्रणाली गैर-स्थायी सदस्यों पर बोझ डालती है।
    • वर्ष 2018 की UNSC ब्रीफिंग में निष्पक्ष अध्यक्षता वितरण के लिए एक नई प्रणाली का आह्वान किया गया।

समितियों के बारे में

  • वर्ष 1988 की तालिबान प्रतिबंध समिति
    • यह अफगानिस्तान की शांति, स्थिरता एवं सुरक्षा के लिए खतरा बनने वाले तालिबान से जुड़े व्यक्तियों, समूहों, उपक्रमों तथा संस्थाओं पर संपत्ति जब्त करने, यात्रा प्रतिबंध लगाने एवं हथियार प्रतिबंध लगाने का काम करती है।
    • इसे वर्ष 2011 में 1267 अलकायदा समिति से अलग समिति के रूप में स्थापित किया गया था।
      • यह 1267 समिति की न तो अध्यक्षता करती है एवं न ही उपाध्यक्ष, जहाँ कम-से-कम 50 प्रतिबंधित व्यक्ति पाकिस्तान से जुड़े हुए हैं।
  • 1373 आतंकवाद-रोधी समिति (CTC)
    • वर्ष 2001 में संयुक्त राज्य अमेरिका के विरुद्ध 11 सितंबर के हमलों के बाद, सुरक्षा परिषद ने सर्वसम्मति से संकल्प 1373 (2001) को अपनाया, जिसने पहली बार परिषद की एक समर्पित आतंकवाद-रोधी समिति (CTC) की स्थापना की।
    • यह आतंकवादियों को नामित नहीं करता है, न ही आतंकवादी हमलों की जाँच करता है, या प्रतिबंध लगाता है।
    • संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों द्वारा आतंकवाद-रोधी दायित्वों के कार्यान्वयन की निगरानी एवं सुविधा प्रदान करता है। 
    • पाकिस्तान द्वारा UNSCR 1373 का अनुपालन न करना (जैसे आतंकवादियों को शरण देना) उसे इस समिति का उपाध्यक्ष बनने से नहीं रोकता है।

पाकिस्तान के पदों का प्रभाव

  • प्रतीकात्मक नेतृत्व: UNSC के सहायक निकायों में पाकिस्तान की अध्यक्षता एवं उपाध्यक्ष की भूमिकाएँ UN में भारतीय हितों के लिए प्रत्यक्ष कूटनीतिक खतरा नहीं दर्शाती हैं।
    • अध्यक्ष एजेंडा निर्धारित कर सकते हैं एवं चर्चाओं को नियंत्रित कर सकते हैं, लेकिन एकतरफा निर्णय नहीं थोप सकते।
    • ये प्रक्रियात्मक पद हैं एवं पाकिस्तान एकतरफा तरीके से आतंकवादियों को सूचीबद्ध/सूची से हटा नहीं सकता।
    • प्रतिबंध सूची में व्यक्तियों को सूचीबद्ध/सूची से हटाने जैसी कार्रवाइयों के लिए सभी 15 UNSC सदस्यों के बीच सामान्य सहमति की आवश्यकता होती है।
  • वर्ष 1988 समिति पर: समिति का कार्य सीमित है, विशेषतः अब जब तालिबान वास्तव में अफगानिस्तान पर शासन कर रहा है।
    • भारत स्वयं तालिबान नेताओं से कूटनीतिक रूप से जुड़ता है, जो बदले हुए क्षेत्रीय गतिशीलता को दर्शाता है।
  • CTC पर: यह एक तकनीकी निकाय है, जो दंडात्मक कार्रवाई पर नहीं बल्कि क्षमता निर्माण पर केंद्रित है।
    • आतंकवाद-रोधी कार्यकारी निदेशालय (Counter-Terrorism Executive Directorate- CTED) मूल्यांकन एवं सहायता का प्रबंधन करता है।

इन समितियों में भारत का कार्यकाल

  • भारत को वर्ष 2021-22 के कार्यकाल के लिए 8वीं बार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य चुना गया।
  • अस्थायी सदस्य के रूप में इस कार्यकाल के दौरान, भारत ने तीन समितियों के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया:-
    • वर्ष 1988 की तालिबान प्रतिबंध समिति,
    • वर्ष 1970 लीबिया प्रतिबंध समिति, एवं 
    • 1373 आतंकवाद विरोधी समिति (CTC)।

भारत के कार्यकाल की मुख्य विशेषताएं

  • भारत में पहली UNSC बैठक: वर्ष 2022 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आतंकवाद-रोधी समिति (CTC) के अध्यक्ष के रूप में, भारत ने अक्टूबर 2022 में मुंबई और दिल्ली में ऐतिहासिक दो दिवसीय विशेष बैठक की मेजबानी की, जो भारत में पहली UNSC बैठक होगी।
    • समिति ने आतंकवादी उद्देश्यों के लिए नई एवं उभरती प्रौद्योगिकियों के उपयोग का मुकाबला करने पर “दिल्ली उदघोषणा” को सर्वसम्मति से अपनाया।
  • हिंदी का उल्लेख: 10 जून 2022 को, भारत ने बहुभाषावाद पर UNGA प्रस्ताव को सह-प्रायोजित किया, जिसमें पहली बार हिंदी का उल्लेख किया गया, जिससे संयुक्त राष्ट्र को हिंदी सहित आधिकारिक एवं गैर-आधिकारिक दोनों भाषाओं में महत्त्वपूर्ण संचार प्रसारित करने के लिए प्रोत्साहित किया गया। 
  • आतंकवादी सूची: भारत ने UNSC 1267 प्रतिबंध व्यवस्था के तहत एक पाकिस्तानी आतंकवादी अब्दुल रहमान मक्की को सूचीबद्ध करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

समितियों में पाकिस्तान की स्थिति से उत्पन्न वास्तविक चिंताएँ

  • सर्वसम्मति पक्षाघात: UNSC समितियों को सर्वसम्मति से निर्णय लेने की आवश्यकता होती है, जिससे चीन को पाकिस्तान स्थित आतंकवादियों को नामित करने से रोककर उन्हें बचाने का मौका मिलता है।
  • कोई प्रवर्तन शक्ति नहीं: ये निकाय तकनीकी हैं, दंडात्मक नहीं हैं एवं वे पाकिस्तान जैसे आतंक के राज्य प्रायोजकों की जाँच या दंड नहीं दे सकते।
  • नैरेटिव की संभावना: जुलाई 2025 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की पाकिस्तान की आगामी रोटेशनल प्रेसीडेंसी इसकी सहायक समिति की भूमिकाओं की तुलना में अधिक गंभीर चिंता का विषय है।
    • जबकि UNSC प्रेसीडेंसी पाकिस्तान को कोई विशेष मौलिक शक्तियाँ नहीं देती है, ऐसे प्रक्रियात्मक लाभ हैं जिनका पाकिस्तान अपने लाभ के लिए उपयोग कर सकता है।
    • उदाहरण के लिए, प्रेसीडेंसी परिषद के अनंतिम नियमों में बैठकें आयोजित करने के लिए UNSC अध्यक्ष के एकमात्र अधिकार को देखते हुए परिषद के बंद दरवाजे/अनौपचारिक परामर्श आयोजित करने की पाकिस्तान की क्षमता को बढ़ा सकती है।
    • वर्ष 2013 में, पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अपनी रोटेशनल अध्यक्षता का उपयोग करके संयुक्त राष्ट्र का ध्यान कश्मीर की ओर मोड़ने का प्रयास किया। 
  • आगे की राह: वर्ष 2016 के UNSC प्रेसिडेंशियल नोट में समिति अध्यक्षों के लिए अधिक संतुलित, पारदर्शी, कुशल एवं समावेशी चयन प्रक्रिया पर जोर दिया गया।

संदर्भ

हाल ही में, केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने कहा कि वह सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की गणना के लिए “आधार वर्ष” को संशोधित करने की प्रक्रिया में है।

GDP आधार वर्ष संशोधन क्या है?

  • सकल घरेलू उत्पाद (GDP): किसी देश में किसी निश्चित अवधि में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के कुल मूल्य का मापन करता है।
  • आधार वर्ष: समय के साथ आर्थिक विकास की तुलना करने के लिए GDP गणना के लिए उपयोग किया जाने वाला संदर्भ वर्ष है।
  • आधार वर्ष संशोधन: सरकार अर्थव्यवस्था की संरचना में परिवर्तनों को दर्शाने के लिए समय-समय पर आधार वर्ष को संशोधित करती है।
  • वर्तमान आधार वर्ष: वर्ष 2011-12 (अंतिम बार वर्ष 2015 में संशोधित)।
  • प्रस्तावित नया आधार वर्ष: वर्ष 2022-23 (27 फरवरी, 2026 को जारी किया जाएगा)।
  • पहला अनुमान: पहला आधिकारिक GDP अनुमान वर्ष 1948-49 को आधार वर्ष के रूप में आधारित था।
    • केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (CSO) के तहत वर्ष 1956 में प्रकाशित।

GDP गणना में आधार वर्ष की भूमिका

  • मूल्य सूचकांक: आधार वर्ष की कीमतों का उपयोग मूल्य सूचकांक निर्माण के लिए किया जाता है, जैसे कि GDP डिफ्लेटर
  • GDP डिफ्लेटर: किसी अर्थव्यवस्था में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के समग्र मूल्य स्तर का एक मापन है।
    • गणना: (नाममात्र GDP / वास्तविक GDP ) x 100
  • वास्तविक GDP गणना: वास्तविक GDP = नाममात्र GDP / GDP डिफ्लेटर
  • हालिया आधार वर्ष: GDP गणना के लिए भारत का वर्तमान आधार वर्ष 2011-12 है।

GDP आधार वर्ष और कार्यप्रणाली में संशोधन क्यों?

  • संरचनात्मक परिवर्तनों को प्रतिबिंबित करना: नए उद्योगों (जैसे, डिजिटल अर्थव्यवस्था) को शामिल करना और पुराने उद्योगों को हटाना।
  • सटीकता में सुधार करना: डेटा स्रोतों को अपडेट करना (जैसे, GSTN, UPI लेनदेन, MCA-21 डेटाबेस)।
  • मुद्रास्फीति समायोजन: मूल्य प्रभावों को हटाकर “वास्तविक” आर्थिक विकास की एक स्पष्ट तस्वीर प्रदान करता है।
  • वैश्विक मानक: अंतरराष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं (जैसे, राष्ट्रीय खातों की संयुक्त राष्ट्र प्रणाली) के साथ संरेखित करता है।

भारत में संशोधन का ऐतिहासिक संदर्भ

  • पहला GDP अनुमान: वर्ष 1949 (PC महालनोबिस समिति)।
  • अब तक सात संशोधन (नवीनतम वर्ष 2015 में, आधार 2011-12 में स्थानांतरित)।
    • अगस्त 1967 में वर्ष 1948-49 से वर्ष 1960-61 तक; 
    • जनवरी 1978 में वर्ष  1960-61 से वर्ष 1970-71 तक; 
    • फरवरी 1988 में वर्ष 1970-71 से वर्ष 1980-81 तक; 
    • फरवरी 1999 में वर्ष 1980-81 से वर्ष 1993-94 तक; 
    • जनवरी 2006 में वर्ष 1993-94 से वर्ष 1999-2000 तक; 
    • जनवरी 2010 में वर्ष 1999-2000 से वर्ष 2004-05 तक; और 
    • 30 जनवरी 2015 को वर्ष 2004-05 से वर्ष 2011-12 तक।
  • पहले संशोधन प्रत्येक 10 वर्ष में होता था, लेकिन वर्ष 1999 से यह प्रत्येक 5 वर्ष में होता है (राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग की सिफारिशों के अनुसार)।

वर्ष 2026 का संशोधन भारत के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • विश्वसनीयता संबंधी चिंताएँ: वर्ष 2015 के संशोधन की आलोचना हुई (जैसे, अरविंद सुब्रमण्यन ने तर्क दिया कि GDP को बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया था)।
    • MCA-21 कॉर्पोरेट डेटा और ASI (उद्योगों का वार्षिक सर्वेक्षण) के बीच विसंगतियों ने संदेह उत्पन्न किया।
  • वैश्विक स्थिति: भारत तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था (अमेरिका और चीन के बाद) बनने के लिए तैयार है।
    • निवेशक और विश्लेषक सटीकता के लिए डेटा की जाँच करेंगे।
  • नीतिगत निहितार्थ: राजकोषीय, मौद्रिक और सामाजिक कल्याण नीतियों के लिए सटीक GDP डेटा महत्त्वपूर्ण है।

GDP के साथ-साथ अन्य प्रमुख संशोधन

  • IIP (औद्योगिक उत्पादन सूचकांक): आधार वर्ष 2011-12 से बदलकर वर्ष 2022-23 किया जा रहा है।
  • CPI (उपभोक्ता मूल्य सूचकांक)
    • नया आधार वर्ष: वर्ष 2023-24 (घरेलू उपभोग सर्वेक्षण 2023-24 पर आधारित)।
    • बास्केट में परिवर्तन: ऑनलाइन सेवाएँ (OTT, हवाई किराया) शामिल हो सकती हैं, सरकार द्वारा प्रदान किए जाने वाले आवास को छोड़कर।
    • PDS उपकरण: मुद्रास्फीति गणना में शामिल करने के लिए कार्यप्रणाली पर चर्चा चल रही है।

डेटा संग्रहण में सुधार

  • नए डेटा स्रोत: GSTN, ई-कॉमर्स, UPI लेनदेन और प्रशासनिक रिकॉर्ड (जैसे, रेल किराए के लिए IRCTC )।
  • मुख्य सर्वेक्षण
    • सेवा क्षेत्र का वार्षिक सर्वेक्षण (ASSSE) – GSTN डेटा का उपयोग करता है (पायलट पूरा हो गया है, जनवरी 2026 से पूर्ण सर्वेक्षण)।
    • फॉरवर्ड-लुकिंग प्राइवेट कैपेक्स सर्वेक्षण (कम प्रतिक्रिया दर; आउटरीच में सुधार)।
    • स्वास्थ्य, पर्यटन और घरेलू यात्रा सर्वेक्षण (वर्ष 2025 में लॉन्च किया गया)।
  • PLFS (आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण): अब मासिक अनुमान (पहले शहरी क्षेत्रों के लिए केवल त्रैमासिक)।
    • श्रम बाजार के बेहतर विश्लेषण के लिए शिक्षा, भूमि स्वामित्व, प्रेषण पर नए प्रश्न।

GDP आधार वर्ष संशोधन में प्रमुख चुनौतियाँ

  • अनौपचारिक क्षेत्र की कम रिपोर्टिंग: लगभग 80% रोजगार अनौपचारिक है, लेकिन डेटा अस्पष्ट है (जैसे, स्ट्रीट वेंडर, छोटे कार्यस्थल)।
    • PLFS और CES जैसे सर्वेक्षणों में कम प्रतिक्रिया दर का सामना करना पड़ता है।
  • कॉर्पोरेट डेटा (MCA-21) बनाम आधारभूत तथ्य: MCA-21 डेटाबेस बड़ी फर्मों के मुनाफे को बढ़ा-चढ़ाकर बता सकता है, जबकि छोटे उद्यमों को नजरअंदाज कर सकता है।
  • GDP के अधिक आकलन पर बहस: आलोचकों का तर्क है कि वर्ष 2015 के संशोधन ने डिफ़्लेटर को बदलकर विकास को बढ़ा दिया।
  • पिछली श्रृंखला की जटिलताएँ: नई श्रृंखला के साथ संरेखित करने के लिए पिछले GDP डेटा को संशोधित करना तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण है (उदाहरण के लिए, वर्ष 2015 की पिछली श्रृंखला को आलोचना का सामना करना पड़ा)।
    • दीर्घकालिक प्रवृत्ति विश्लेषण को बाधित करता है (उदाहरण के लिए, वर्ष 2014 से पहले बनाम बाद की वृद्धि दर)।
  • विश्वसनीयता संबंधी समस्याएं: यदि भारत की जीडीपी वृद्धि को “सांख्यिकीय रूप से बढ़ा हुआ” माना जाता है, तो FDI और रेटिंग को नुकसान हो सकता है (उदाहरण के लिए, चीन की विश्वसनीयता संबंधी मुद्दे)।
    • उदाहरण: अर्जेंटीना के वर्ष 2023 के GDP संशोधन ने दावा की गई अर्थव्यवस्था से छोटी अर्थव्यवस्था को प्रदर्शित किया, जिससे बाजार प्रभावित हुआ।

संदर्भ

फ्राँस और ब्राजील ने फ्राँस के नीस में आयोजित तीसरे संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन में ‘ब्लू NDC चैलेंज’ का शुभारंभ किया।

राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) के बारे में

  • NDC राष्ट्रीय जलवायु योजनाएँ हैं जो पेरिस, फ्राँस में UNFCCC COP-21 में 195 दलों द्वारा अपनाए गए पेरिस समझौते के तहत उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने के लिए देश के प्रयासों की रूपरेखा तैयार करती हैं।
  • उद्देश्य: वैश्विक औसत तापमान में वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना और तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के प्रयासों को आगे बढ़ाना।

ब्लू NDC चैलेंज के बारे में

  • ‘ब्लू NDC चैलेंज’ एक वैश्विक पहल है, जो देशों से ब्राजील के बेलेम में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के 30वें सम्मेलन (COP-30) से पहले अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) में महासागर-केंद्रित जलवायु उपायों को एकीकृत करने का आग्रह करती है।
  • समर्थन: इसे ‘ओशन कंजर्वेंसी’ द्वारा समर्थित किया जाता है, 
    • महासागर और जलवायु मंच तथा महासागर लचीलापन एवं जलवायु गठबंधन (Ocean Resilience and Climate Alliance- ORCA) के माध्यम से विश्व संसाधन संस्थान द्वारा समर्थित है और WWF-ब्राजील द्वारा इसका समर्थन किया गया है।
  • प्रतिभागी देश: ऑस्ट्रेलिया, फिजी, केन्या, मैक्सिको, पलाऊ और सेशेल्स गणराज्य जैसे छह अन्य देश इस पहल में शामिल हुए हैं और अपने अद्यतन NDC में महासागर-केंद्रित जलवायु कार्रवाई को शामिल करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
  • कार्यान्वयन समर्थन: इस चैलेंज में शामिल होने वाली सरकारों को वैश्विक जलवायु कार्रवाई के लिए मराकेश साझेदारी के नेतृत्व में समर्थन प्राप्त होगा।
    • संयुक्त राष्ट्र उच्च स्तरीय जलवायु चैंपियंस, और
  • विश्व संसाधन संस्थान द्वारा आयोजित NDC भागीदारी से समर्थन प्राप्त होगा।

वैश्विक जलवायु रणनीति में ब्लू NDC चुनौती का महत्त्व

  • महासागरों को जलवायु कार्रवाई में एकीकृत करना: ‘ब्लू NDC चैलेंज’ देशों को तटीय पारिस्थितिकी तंत्र बहाली और सतत् मत्स्य पालन जैसे महासागर आधारित जलवायु समाधानों को अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) में स्पष्ट रूप से शामिल करने के लिए प्रेरित करता है।
    • यह चुनौती कार्बन पृथक्करण और जलवायु लचीलेपन में समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र (जैसे, मैंग्रोव, समुद्री घास) की महत्त्वपूर्ण भूमिका को पहचानती है।
  • निवेश और नवाचार: यह पहल समुद्री नवीकरणीय ऊर्जा, सतत् जलीय कृषि और निम्न-कार्बन शिपिंग जैसे क्षेत्रों में ‘ब्लू फाइनेंस’ और तकनीकी नवाचार को बढ़ावा देती है।
  • वैश्विक रूपरेखाओं के साथ संरेखित: यह पेरिस समझौते के लक्ष्यों का समर्थन करता है और संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्यों (SDG), विशेष रूप से SDG-13 (जलवायु कार्रवाई) और SDG-14 (जल  के नीचे जीवन) का पूरक है।
  • SIDS  और LDC: यह चुनौती समावेशी, स्थानीय स्तर पर संचालित महासागर कार्रवाई पर जोर देती है, विशेष रूप से लघु द्वीपीय विकासशील राज्यों (SIDS) और तटीय कम विकसित देशों (LDC) के लिए, जो महासागर क्षरण और जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित हैं।

जलवायु संकट से निपटने में महासागरों की भूमिका

  • कार्बन सिंक: महासागर वैश्विक CO2 उत्सर्जन का लगभग 30% अवशोषित करते हैं, जिससे वायुमंडलीय ग्रीनहाउस गैसों में कमी आती है।
  • हीट बफर: वे ग्लोबल वार्मिंग के कारण होने वाली अतिरिक्त गर्मी का 90% से अधिक अवशोषित करते हैं, जो पृथ्वी के तापमान को नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • जलवायु विनियमन: महासागरीय धाराएँ वैश्विक मौसम और जलवायु पैटर्न को प्रभावित करती हैं, जिससे महासागर जलवायु विनियमन के लिए केंद्रीय बन जाते हैं।
  • प्राकृतिक आपदा बफर: तटीय पारिस्थितिकी तंत्र समुद्र के स्तर में वृद्धि, तूफानी लहरों और चरम मौसम की घटनाओं के खिलाफ प्राकृतिक सुरक्षा प्रदान करते हैं।

भारत और NDC

  • भारत की प्रतिबद्धता: जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) और पेरिस समझौते के हस्ताक्षरकर्ता के रूप में, भारत ने वर्ष 2015 में अपना पहला NDC और वर्ष 2022 में अद्यतन NDC प्रस्तुत किया।
  • पंचामृत: COP-26 (ग्लासगो, यूके) में भारत ने जलवायु परिवर्तन पर अपनी कार्रवाई को तेज करने के लिए पाँच प्रमुख तत्वों, पंचामृत की घोषणा की। ये भारत के अद्यतन NDC का आधार हैं।
    • वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता उत्पन्न करना।
    • वर्ष 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा से कुल ऊर्जा आवश्यकताओं की 50% की पूर्ति करना ।
    • वर्ष 2030 तक सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता में 45% की कमी (वर्ष 2005 के स्तर से)।
    • वर्ष 2030 तक कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में 1 बिलियन टन की कमी।
    • वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन।

भारत का NDC उसे किसी क्षेत्र-विशिष्ट शमन दायित्व या कार्रवाई के लिए बाध्य नहीं करता है।

ओशन ब्रेकथ्रूज (Ocean Breakthroughs) के बारे में

  • ओशन ब्रेकथ्रू ने पाँच महत्त्वपूर्ण माध्यमों की पहचान की है, जिन्हें वर्ष 2030 तक महासागर क्षेत्रों को प्राप्त करना होगा, ताकि वर्ष 2050 तक एक स्वस्थ और उत्पादक महासागर प्राप्त किया जा सके।
  • ओशन ब्रेकथ्रू जिन पाँच क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करता है, वे हैं: समुद्री संरक्षण, महासागर नवीकरणीय ऊर्जा, शिपिंग, जलीय भोजन और तटीय पर्यटन।

वैश्विक जलवायु कार्रवाई के लिए माराकेस साझेदारी के बारे में

  • इसे वर्ष 2016 में COP-22 में लॉन्च किया गया था, ताकि उत्सर्जन में कटौती करने और जलवायु लचीलापन बनाने के लिए सरकारों और गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं के बीच सहयोग को बढ़ावा दिया जा सके।
  • यह सतत् विकास के लिए वर्ष 2030 एजेंडा के अनुरूप पेरिस समझौते के कार्यान्वयन का समर्थन करता है।

संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन उच्च स्तरीय चैंपियंस (HLC) के बारे में

  • वे पेरिस समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सरकारों को समर्थन देने के लिए व्यवसायों, शहरों, क्षेत्रों और वित्तीय संस्थानों से महत्त्वाकांक्षी जलवायु कार्रवाई को संगठित करने के लिए काम करते हैं।

NDC साझेदारी के बारे में:

  • NDC भागीदारी एक वैश्विक पहल है जिसका उद्देश्य देशों को उनकी राष्ट्रीय जलवायु प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में मदद करना तथा यह सुनिश्चित करना है कि वित्तीय और तकनीकी सहायता यथासंभव कुशलतापूर्वक प्रदान की जाए।

महासागरीय पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा के लिए वैश्विक पहल

  • सतत् विकास के लिए महासागर विज्ञान का संयुक्त राष्ट्र दशक (वर्ष 2021-2030): सतत् विकास के लिए महासागर अनुसंधान को बढ़ावा देता है।
  • वैश्विक महासागर गठबंधन: यह विश्व के महासागरों की रक्षा के लिए कार्यरत देशों का एक अंतरराष्ट्रीय समूह है। इस गठबंधन की स्थापना वर्ष 2019 में ग्रेट ब्रिटेन द्वारा की गई थी और इसका उद्देश्य वर्ष 2030 तक विश्व के 30% महासागरों की रक्षा करना है।
  • वैश्विक महासागर अवलोकन प्रणाली (GOOS): यह सतत् महासागर अवलोकन के लिए एक व्यापक ढाँचा है, जो ग्लोबल अर्थ ऑब्जर्विंग सिस्टम ऑफ सिस्टम्स (GEOSS) का हिस्सा है।
    • यह UNESCO, विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा सह-प्रायोजित है।
  • ब्लू कार्बन पहल: UNEP की ब्लू कार्बन पहल का उद्देश्य तटीय और समुद्री पारिस्थितिकी प्रणालियों के सुदृढ़ प्रबंधन को आगे बढ़ाने के लिए एक वैश्विक साझेदारी विकसित करना है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनके कार्बन पृथक्करण और भंडारण कार्यों को बनाए रखा जाए और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन से बचा जाए।

संदर्भ 

केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) के तहत क्रॉपिक (CROPIC) योजना लॉन्च करने की योजना बना रहा है।

संबंधित तथ्य

  • अध्ययन में प्रारंभ में खरीफ वर्ष 2025 और रबी वर्ष 2025-26 सीजन को शामिल किया जाएगा और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) के तहत शामिल की गई तीन प्रमुख अधिसूचित फसलों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। 
  • इसे शुरू में प्रति सीजन कम-से-कम 50 जिलों में लागू किया जाएगा।

क्रॉपिक (CROPIC) क्या है?

  • क्रॉपिक (CROPIC) का अर्थ है फसलों के रियल टाइम के अवलोकन और फोटो का संग्रह।
  • इसका उद्देश्य फील्ड फोटोग्राफ और AI मॉडल का उपयोग करके फसल के स्वास्थ्य की निगरानी करना और नुकसान का आकलन करना है।
  • फंडिंग पैटर्न
    • PMFBY के तहत नवाचार और प्रौद्योगिकी कोष (FIAT) का उपयोग क्रॉपिक (CROPIC) के वित्तपोषण के लिए किया जाएगा। 
    • फसल बीमा योजनाओं के तहत विभिन्न प्रौद्योगिकी नवाचारों के लिए FIAT का कुल परिव्यय 825 करोड़ रुपये है।

क्रॉपिक (CROPIC) जमीनी स्तर पर कैसे कार्य करेगा?

  • किसान अपने विकास चक्र के दौरान कई बार अपनी फसलों की तस्वीरें लेने के लिए क्रॉपिक (CROPIC) मोबाइल ऐप का उपयोग करेंगे, जिससे फसल के स्वास्थ्य पर रियल टाइम का डेटा मिलेगा। इन इमेज का विश्लेषण AI-आधारित मॉडल द्वारा किया जाएगा ताकि फसल के प्रकार, विकास चरण और किसी भी नुकसान का पता लगाया जा सके। 
  • अधिकारी फसलों की निगरानी करने और किसानों द्वारा मुआवजे के लिए आवेदन करने पर नुकसान की पुष्टि करने के लिए वेब-आधारित डैशबोर्ड के माध्यम से इस डेटा तक पहुँच प्राप्त करेंगे। यह प्रणाली पारदर्शिता सुनिश्चित करती है, बीमा दावों में तेजी लाती है और कृषि जोखिम प्रबंधन में सुधार करती है।

क्रॉपिक (CROPIC) क्यों महत्त्वपूर्ण है ?

  • बेहतर फसल निगरानी: यह फसलों की निगरानी करने और बीमारी जैसी समस्याओं का पता लगाने में मदद करेगा।
  • तीव्र नुकसान का आकलन: यह फसल के नुकसान की गणना करने के तरीके को स्वचालित करेगा, जिससे प्रक्रिया तेज और अधिक कुशल हो जाएगी।
  • तेज किसान मुआवजा प्रदान करना: इसका अर्थ है कि जो किसान बीमा भुगतान के लिए पात्र हैं, उन्हें अपना पैसा जल्दी से प्राप्त होगा।
  • फसल सूचना निर्देशिका: यह विभिन्न फसलों के बारे में जानकारी का एक समृद्ध डेटाबेस बनाएगा।

संदर्भ

 हाल ही में कबीरदास जी की जयंती मनाई गई, जो उनकी 648वीं जयंती थी।

सम्बंधित तथ्य

  • हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार, कबीरदास जयंती ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है।

संत कबीर दास के बारे में

  • कबीर का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी में हुआ था।
  • वे 15वीं सदी के एक प्रभावशाली भारतीय रहस्यवादी कवि, संत और समाज सुधारक थे।
  • ऐसा माना जाता है कि संत कबीर दास का समयकाल 1440 ई. से 1518 ई. के मध्य रहा।
  • उन्हें आध्यात्मिकता के प्रति लगाव और धर्म के बारे में आलोचनात्मक सोच के लिए जाना जाता है।
    • उन्होंने अपनी शिक्षाओं के माध्यम से आध्यात्मिकता, धार्मिक सद्भाव और समानता को बढ़ावा दिया।

  • उनकी शिक्षाएँ कबीर पंथ के माध्यम से जारी हैं, जो एक धार्मिक समूह है जो उन्हें अपना संस्थापक मानता है। 
    • कबीर को हिंदू और मुसलमान दोनों धर्म का ही संत मानते हैं।
  • वह अपने गुरु रामानंद (रामानंदी संप्रदाय के संस्थापक) से बहुत प्रभावित थे। 
  • उनकी शिक्षाओं ने भारत में भक्ति आंदोलन को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

आधुनिक विश्व में कबीर के दर्शन की प्रासंगिकता

  • कबीर की शिक्षा जातिगत भेदभाव को समाप्त करने पर जोर देती है, अर्थहीन कर्मकांडों और अंधविश्वास को हतोत्साहित करती है। उनकी शिक्षाएँ लोगों को नैतिक जीवन, व्यक्तिगत विकास और सजगता पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं।

कबीर की कविता और विरासत

भाषा और शैली

  • कबीर की कविताएँ सधुक्कड़ी में लिखी गई थीं, जिसे पंचमेल खिचड़ी के नाम से भी जाना जाता है, जो खड़ी बोली, ब्रज, भोजपुरी, मारवाड़ी और अवधी जैसी बोलियों का मिश्रण है।
  • उनकी कुछ रचनाएँ, जैसे “मोर हीरा हेराईल बा किचारे में“ शुद्ध भोजपुरी में लिखी गई थीं।
  • कबीर ने मानवीय मूल्यों, एकता और आध्यात्मिकता के बारे में भजन (भक्ति गीत) और दोहे लिखे।
    • उनकी रचनाएँ सामान्यजन की भाषा में थीं, जिससे उन्हें समझना आसान था।

विषय-वस्तु और शिक्षाएँ

  • कबीर की कविता जीवन के विभिन्न पहलुओं को शामिल करती है और ईश्वर के प्रति प्रेमपूर्ण भक्ति को प्रोत्साहित करती है।
  • उन्होंने कर्मकांडों को खारिज कर दिया और आंतरिक आस्था और भक्ति पर जोर दिया।

प्रसिद्ध साहित्यिक कृतियाँ

  • उनकी रचनाएँ कबीर बीजक, कबीर परचाई, साखी ग्रंथ, आदि ग्रंथ (सिख धर्मग्रंथ) और कबीर ग्रंथावली (राजस्थान) तथा अनुराग सागर जैसी पुस्तकों में पाई जाती हैं।
  • उनके कई पद गुरु अर्जन देव द्वारा संकलित किए गए और सिख धर्मग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल किए गए। उनके पद संत गरीब दास के सतगुरु ग्रंथ साहिब और धर्मदास के कबीर सागर में मिलते है l

संदर्भ

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार, भारत ने सामाजिक सुरक्षा कवरेज के विस्तार में उल्लेखनीय प्रगति की है, जो वर्ष 2015 में 19% से बढ़कर वर्ष 2025 में 64.3% हो गई है।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु

  • भारत के सामाजिक सुरक्षा कवरेज में अभूतपूर्व गति से वृद्धि हुई है, जो वैश्विक स्तर पर सबसे तीव्र विस्तार है।
  • 94 करोड़ (940 मिलियन) से अधिक भारतीयों को अब कम-से-कम एक सामाजिक सुरक्षा योजना का लाभ प्राप्त है।
  • लाभार्थियों की संख्या के मामले में भारत विश्व में दूसरे स्थान पर है।

भारत में सामाजिक सुरक्षा में वृद्धि के कारण

  • सरकारी योजनाओं का विस्तार: PM-KISAN, PM-SYM, PMJJBY, PMSBY, अटल पेंशन योजना और E-श्रम जैसी प्रमुख योजनाओं ने असंगठित और अनौपचारिक श्रमिकों को कवरेज के अंतर्गत लाया गया।
  • अर्थव्यवस्था का औपचारिकीकरण: GST कार्यान्वयन, डिजिटल भुगतान और श्रम सुधारों ने औपचारिक रोजगार को प्रोत्साहित किया।
    • औपचारिक रोजगार में आमतौर पर PF, ESIC आदि जैसे सामाजिक सुरक्षा लाभ शामिल होते हैं।
  • डिजिटल अवसंरचना: आधार, जन धन योजना, उमंग और ई-श्रम पोर्टल जैसे प्लेटफॉर्म ने करोड़ों लोगों की पहचान, पंजीकरण और लाभ पहुँचाने में मदद की।
  • नीतिगत प्रोत्साहन और श्रम संहिता: चार नई श्रम संहिताओं में 29 कानूनों को एकीकृत किया गया है और गिग/प्लेटफॉर्म श्रमिकों और असंगठित क्षेत्रों के लिए भी सामाजिक सुरक्षा अनिवार्य की गई है।

सामाजिक सुरक्षा क्या है?

  • सामाजिक सुरक्षा से तात्पर्य सरकारी कार्यक्रमों से है जो आवश्यकता के समय व्यक्तियों और परिवारों को वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं।
  • जीवन जोखिमों से सुरक्षा: यह बेरोजगारी, वृद्धावस्था, दिव्यांगता, बीमारी या कमाने वाले की मृत्यु के दौरान सुरक्षा प्रदान करता है।
  • सरकार द्वारा वित्तपोषित या अनिवार्य: राज्य, नियोक्ता या श्रमिकों द्वारा वित्तपोषित, यह सभी के लिए सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
    • उदाहरणों में पेंशन, स्वास्थ्य बीमा, मातृत्व लाभ और बेरोजगारी सहायता शामिल हैं।
  • समावेशी विकास को बढ़ावा देता है: यह कमजोर समूहों के लिए बुनियादी आय सुरक्षा सुनिश्चित करके गरीबी और असमानता को कम करता है।

प्रमुख सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम और पहल

  • अटल पेंशन योजना (APY): असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए, पात्र ग्राहकों के लिए सरकार का सह-योगदान।
  • आयुष्मान भारत – PM जन आरोग्य योजना (PM-JAY): गरीबों और बुजुर्गों के लिए प्रति वर्ष प्रति परिवार 5 लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा।
  • कर्मचारी राज्य बीमा (Employees’ State Insurance- ESI) योजना: औपचारिक क्षेत्र में कार्य करने वाले श्रमिकों के लिए स्वास्थ्य और मातृत्व लाभ।
  • जननी सुरक्षा योजना (Janani Suraksha Yojana- JSY): गरीब गर्भवती महिलाओं के लिए संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देती है।
  • प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (PMJJBY): ₹2 लाख का जीवन बीमा।
  • प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (PMSBY): ₹2 लाख का दुर्घटना बीमा।
  • प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY): दुर्घटना बीमा और पेंशन लिंकेज के साथ जीरो-बैलेंस बैंक खाते।
  • असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008: अनौपचारिक श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा की रूपरेखा।
  • ई-श्रम पोर्टल: असंगठित श्रमिकों के लिए राष्ट्रीय डेटाबेस ताकि लाभ का लक्षित वितरण सुनिश्चित किया जा सके।
  • PM श्रम योगी मानधन योजना: असंगठित श्रमिकों के लिए स्वैच्छिक पेंशन योजना।

संदर्भ

भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (National Highways Authority of India-NHAI) ने सड़क क्षेत्र के लिए अपनी पहली परिसंपत्ति मुद्रीकरण रणनीति जारी की है, जिसका उद्देश्य सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के माध्यम से पूँजी सृजन को बढ़ावा देना है।

रणनीति के मुख्य उद्देश्य

  • परिचालन राजमार्गों के आर्थिक मूल्य को प्रदर्शित करना।
  • दक्षता और नवाचार में सुधार के लिए निजी क्षेत्र के निवेश को आकर्षित करना।
  • पारंपरिक बजटीय स्रोतों पर अत्यधिक निर्भरता के बिना बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए धन का एक स्थिर स्रोत सुनिश्चित करना।

रणनीति के तीन स्तंभ

  • परिसंपत्तियों का मूल्य अधिकतमीकरण: मौद्रिकीकरण योग्य सड़क परिसंपत्तियों की वैज्ञानिक पहचान एवं मूल्यांकन।
    • प्रतिस्पर्द्धी निविदा और बाजार आधारित मूल्य निर्धारण के माध्यम से अधिकतम रिटर्न सुनिश्चित करना।
  • पारदर्शिता और सूचना प्रसार: स्पष्ट रूपरेखा और निवेशकों के लिए प्रासंगिक डेटा का प्रकटीकरण।
  • बाजार विकास और हितधारक जुड़ाव: निवेशक आधार का विस्तार।

NHAI द्वारा अपनाए गए मुद्रीकरण मॉडल

  • टोल-ऑपरेट-ट्रांसफर (ToT): निजी हितधारकों को अग्रिम भुगतान के बदले परिचालन टोल आधारित सड़कों को दीर्घकालिक लीज पर देना।
  • इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट (InvITs): खुदरा और संस्थागत निवेशकों को अवसंरचनात्मक परियोजनाओं में निवेश करने और रिटर्न अर्जित करने की अनुमति देता है।
  • टोल राजस्व का प्रतिभूतिकरण: टोल प्राप्तियों द्वारा समर्थित बॉन्ड या ऋण जारी करके टोल संग्रह से भविष्य के नकदी प्रवाह का मुद्रीकरण करना।

परिसंपत्ति मुद्रीकरण (Asset Monetisation)

  • परिसंपत्ति मुद्रीकरण से तात्पर्य निजी क्षेत्र के निवेश और भागीदारी को शामिल करके सार्वजनिक क्षेत्र की संपत्तियों के आर्थिक मूल्य को प्रदर्शित करने की प्रक्रिया से है।
  • इसका अर्थ है कि निष्क्रिय या कम उपयोग की गई सार्वजनिक संपत्तियों को राजस्व के स्रोतों में परिवर्तित करना।
  • उदाहरण: NHAI द्वारा ToT मॉडल के तहत निजी हितधारकों को परिचालन राजमार्गों को पट्टे पर देना संपत्ति मुद्रीकरण का एक उदाहरण है।
  • उद्देश्य
    • नई अवसंरचना परियोजनाओं के लिए पूँजी जुटाना।
    • परिसंपत्ति प्रबंधन में दक्षता में सुधार लाना।
    • सार्वजनिक वित्त पर बोझ कम करना।

परिसंपत्ति मुद्रीकरण में वैश्विक सर्वोत्तम अभ्यास

  • पारदर्शिता: ऑस्ट्रेलिया में एक ‘एसेट रिसाइक्लिंग’ पहल है, जो पारदर्शी निविदा और आय को नए बुनियादी ढाँचे में पुनर्निवेश करने को अनिवार्य बनाती है।
  • मुद्रीकरण के साधन: अमेरिका और सिंगापुर बुनियादी ढाँचे के वित्तपोषण के लिए REITs/InvITs का उपयोग करते हैं, जबकि जापान हाइब्रिड रेल मॉडल का लाभ उठाता है।
  • AI और ब्लॉकचेन: पूर्वानुमानित रखरखाव और पारदर्शी लेनदेन के लिए अमेरिकी बुनियादी ढाँचे में उपयोग किया जाता है।
  • डेटा मुद्रीकरण: उच्च गुणवत्ता वाले डेटा प्लेटफॉर्म (जैसे- Google क्लाउड एनालिटिक्स) संपत्ति के मूल्य को बढ़ाते हैं।
  • सतत् विकास के लिए पुनर्निवेश: ऑस्ट्रेलिया का ‘एसेट रिसाइक्लिंग फंड’ पुनर्निवेश को अनिवार्य बनाता है, जिससे एक आत्मनिर्भर चक्र का निर्माण होता है।

भारत के सड़क क्षेत्र में परिसंपत्ति मुद्रीकरण का महत्त्व

  • नए बुनियादी ढाँचे के लिए निधि: राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (National Monetisation Pipeline-NMP) के तहत 6,100 किलोमीटर से अधिक लंबाई के राष्ट्रीय राजमार्गों से ₹1.4 लाख करोड़ से अधिक जुटाए जा चुके हैं।
  • सरकारी ऋण में कमी: रखरखाव लागत को निजी हितधारकों पर स्थानांतरित करता है, जिससे राजकोषीय बोझ कम होता है।
  • निजी निवेश को बढ़ावा देता है: TOT, InvITs जैसे मॉडलों के माध्यम से PPP को प्रोत्साहित करता है, जिससे वैश्विक निवेशक (जैसे- ब्रुकफील्ड, मैक्वेरी) आकर्षित होते हैं।
    • सड़क की गुणवत्ता और तकनीक में सुधार: निजी ऑपरेटर बेहतर रखरखाव, तकनीक और दक्षता लाते हैं, जिससे सड़क की गुणवत्ता में वृद्धि होती है।
  • पारदर्शिता और विश्वास सुनिश्चित करता है: स्पष्ट मूल्यांकन और निवेशक-अनुकूल प्रक्रियाओं के साथ संरचित ढाँचा।
  • सतत् विकास का समर्थन करता है: भारत की वर्ष 2025-30 मुद्रीकरण योजना के साथ संरेखित करता है, जिससे राजमार्गों के लिए दीर्घकालिक वित्तपोषण सुनिश्चित होता है।

सड़क क्षेत्र की परिसंपत्ति मुद्रीकरण में चुनौतियाँ

  • कम निविदाएँ और निवेशकों की कम रुचि: निजी हितधारक ToT (टोल-ऑपरेट-ट्रांसफर) नीलामी में अपेक्षा से कम बोली लगा सकते हैं, जिससे राजस्व की संभावना कम हो जाती है।
    • आर्थिक मंदी या नीतिगत अनिश्चितताएँ भी निवेशकों की भागीदारी को रोक सकती हैं।
  • विनियामक और कानूनी बाधाएँ: भूमि अधिग्रहण विवाद, पर्यावरण मंजूरी और अनुबंध प्रवर्तन में देरी से मुद्रीकरण धीमा हो सकता है।
    • टोल नीतियों या कर संरचनाओं में बार-बार होने वाले बदलाव निवेशकों के लिए अनिश्चितता उत्पन्न करते हैं।
  • संपत्ति की गुणवत्ता और रखरखाव जोखिम: कुछ राजमार्गों की खराब स्थिति उनके मुद्रीकरण की प्रक्रिया को कम करती है।
    • CAG रिपोर्ट (2023) के अनुसार, मुद्रीकरण के लिए पहचानी गई NHAI की लगभग एक-चौथाई सड़क परिसंपत्तियों को बड़े पैमाने पर पुनर्वास की आवश्यकता थी, जिससे निवेशकों का विश्वास प्रभावित हुआ।
  • बाजार और वित्तीय जोखिम: यातायात की मात्रा में उतार-चढ़ाव (आर्थिक स्थितियों या वैकल्पिक मार्गों के कारण) टोल राजस्व को प्रभावित करते हैं।
    • बढ़ती ब्याज दरें निजी हितधारकों के लिए वित्तपोषण को महंगा बनाती हैं, जिससे निवेश करने की उनकी इच्छा कम हो जाती है।
  • सार्वजनिक प्रतिरोध और राजनीतिक विरोध: टोल में बढ़ोतरी या राजमार्गों के निजीकरण से जनता में नाराजगी उत्पन्न हो सकती है।
    • राज्य सरकारें राजनीतिक या क्षेत्रीय चिंताओं के कारण प्रमुख मार्गों के केंद्र के नेतृत्व वाले मुद्रीकरण का विरोध कर सकती हैं।
  • नए मॉडल के लिए सीमित निवेशक आधार: InvITs (इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट) जैसे साधनों के लिए गहरे पूँजी बाजार की आवश्यकता होती है, जो भारत में अभी भी विकसित हो रहे हैं।

आगे की राह

  • मुद्रीकरण मॉडल का विस्तार और विविधता: हाइब्रिड संरचनाओं (जैसे- प्रतिभूतिकरण, SPV) की खोज करते हुए InvITs (इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट) और ToT (टोल-ऑपरेट-ट्रांसफर) जैसे अभिनव मॉडल का विस्तार करना।
  • पारदर्शिता के माध्यम से निवेशकों का विश्वास मजबूत करना: मानकीकृत परिसंपत्ति मूल्यांकन, स्पष्ट अनुबंध शर्तें और परिसंपत्ति मुद्रीकरण डैशबोर्ड (बजट 2021-22 में प्रस्तावित) के माध्यम से वास्तविक समय प्रदर्शन निगरानी को लागू करना।
    • दिल्ली-नोएडा डायरेक्ट फ्लाईवे ToT पारदर्शी बोली के कारण सफल हुआ, जिससे $1.45 बिलियन प्राप्त हुए।
  • रियायत अवधि और जोखिम-साझाकरण का अनुकूलन करना: निवेशकों के रिटर्न और सार्वजनिक हित को संतुलित करने के लिए अनुकूलित कार्यकाल (जैसे, 20-30 वर्ष) और राजस्व-साझाकरण तंत्र प्रदान करना।
  • उच्च-यातायात गलियारों और प्रौद्योगिकी एकीकरण को प्राथमिकता देना: उच्च-घनत्व वाले मार्गों (जैसे- दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे) का मुद्रीकरण करना और राजस्व बढ़ाने के लिए FASTag, RFID और AI-आधारित टोलिंग को एकीकृत करना।
  • मजबूत विवाद समाधान तंत्र स्थापित करना: मध्यस्थता में  तीव्रता लाना और दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC) के तहत InvITs को लाने के लिए नीति आयोग के प्रस्ताव को अपनाना।
    • भूमि अधिग्रहण और टोल विवादों (जैसे- पुणे-मुंबई एक्सप्रेसवे) में देरी ने परियोजनाओं को बाधित किया है।

निष्कर्ष

NHAI की रणनीति बुनियादी ढाँचे के वित्तपोषण में एक आदर्श बदलाव को दर्शाती है, जो पारदर्शिता, निजी निवेश और कुशल परिसंपत्ति प्रबंधन को बढ़ावा देती है। अभिनव मुद्रीकरण तंत्रों को जल्दी अपनाने वाले के रूप में, NHAI पूरे भारत में सतत्् बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है।

संदर्भ

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के डिप्टी गवर्नर एम. राजेश्वर राव के अनुसार, माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र अति-ऋणग्रस्तता, उच्च ब्याज दरों और कठोर वसूली प्रथाओं के दुष्चक्र से ग्रस्त है।

माइक्रोफाइनेंस के बारे में

  • राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) द्वारा वर्ष 1998 में माइक्रोफाइनेंस के लिए सहायक नीति और नियामक ढाँचे पर गठित टास्क फोर्स के अनुसार:-
    • माइक्रोफाइनेंस से तात्पर्य “ग्रामीण, अर्द्ध-शहरी और शहरी क्षेत्रों में गरीबों को बहुत छोटी राशि में बचत, ऋण और अन्य वित्तीय सेवाओं और उत्पादों का प्रावधान करना है, ताकि वे अपनी आय का स्तर बढ़ा सकें और जीवन स्तर में सुधार कर सकें”।
  • नियामक ढाँचा
    • MFIs का संचालन RBI के गैर बैंकिंग वित्तपोषण कंपनी-माइक्रोफाइनेंस संस्थान (NBFC-MFIs)-निर्देश, 2022 द्वारा किया जाता है।
    • माइक्रोफाइनेंस इंस्टीट्यूशंस नेटवर्क (Microfinance Institutions Network-MFIN) को इस क्षेत्र के लिए एक स्व-नियामक निकाय के रूप में शुरू किया गया था और सभी NBFC-MFI इसकी सदस्यता के लिए पात्र हैं।
      • वर्ष 2014 में, MFIN को औपचारिक रूप से RBI द्वारा एक स्व-नियामक निकाय के रूप में मान्यता दी गई थी।

माइक्रोफाइनेंस के घटक

  • माइक्रोक्रेडिट: बिना किसी जमानत, स्थिर रोजगार या सत्यापन योग्य क्रेडिट इतिहास के व्यक्तियों को प्रदान किए जाने वाले छोटे ऋण होते हैं।
    • भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के अनुसार: माइक्रोफाइनेंस ऋण को एक संपार्श्विक-मुक्त ऋण के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो ₹3,00,000 तक की वार्षिक घरेलू आय वाले परिवार को दिया जाता है।
  • माइक्रोसेविंग्स: इसमें लघु जमा आवश्यकताएँ होती हैं और कम आय वाले व्यक्तियों से कोई सेवा शुल्क नहीं लिया जाता है।
  • माइक्रोइंश्योरेंस: स्वास्थ्य संबंधी आपात स्थितियों, प्राकृतिक आपदाओं, फसल विफलता आदि जैसे जोखिमों का प्रबंधन करने के लिए किफायती कम प्रीमियम और कवरेज बीमा उत्पाद।
  • समूह ऋण (Group Lending): एक ऐसा मॉडल जहाँ छोटे समूह संयुक्त रूप से ऋण की गारंटी देते हैं, जवाबदेही को बढ़ावा देते हैं और डिफॉल्ट दरों को कम करते हैं।
    • उदाहरण: संयुक्त देयता समूह (Joint Liability Group-JLG) 4-10 व्यक्तियों का एक अनौपचारिक समूह होता है, जिसमें मुख्य रूप से किसान या ग्रामीण श्रमिक शामिल होते हैं।
      • ऋण आपसी गारंटी के माध्यम से सुरक्षित किए जाते हैं, जिसमें पुनर्भुगतान की जिम्मेदारी साझा होती है।
  • माइक्रोफाइनेंस संस्थान (Microfinance Institutions-MFI): विभिन्न आकार और कानूनी रूपों वाले कई संगठन माइक्रोफाइनेंस सेवाएँ प्रदान करते हैं।

भारत में माइक्रोफाइनेंस की स्थिति

पैमाना एवं पहुँच

  • योगदान: भारत के सकल घरेलू उत्पाद में सकल मूल्य वर्धन (GVA) में 2.03 प्रतिशत का योगदान और 1.3 करोड़ नौकरियों का समर्थन।
  • वृद्धि: पिछले 12 वर्षों में 2,176 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि देखी गई है।
    • मार्च 2012 में 17,264 करोड़ रुपये से नवंबर 2024 तक कारोबार 3.93 लाख करोड़ रुपये तक बढ़ गया।
  • सकल ऋण पोर्टफोलियो (Gross Loan Portfolio-GLP): वर्ष 2023 में 3.48 लाख करोड़ रुपये से 31 मार्च, 2024 तक 24.5% बढ़कर 4.33 लाख करोड़ रुपये हो गया; वर्ष 2025 में लगभग ₹4.5-5 लाख करोड़ होने का अनुमान है।
  • उधारकर्ता: लगभग 7.4 करोड़ अद्वितीय उधारकर्ता जिनके पास 14.6 करोड़ ऋण खाते हैं (दिसंबर 2023), मुख्य रूप से महिलाएँ (लगभग 98%)।
  • स्वयं सहायता समूह: लगभग 134 लाख स्वयं सहायता समूह जो 16.2 करोड़ परिवारों को कवर करते हैं, जिनकी बचत ₹58,893 करोड़ है और बकाया ऋण ₹188,079 करोड़ (मार्च 2023) है।
  • अतिदेयता दर (Delinquency Rates): 90 दिनों से अधिक समय से बकाया ऋण 12% (मार्च 2022) से बढ़कर 14% (सितंबर 2022) हो गया; जोखिम में पोर्टफोलियो (PAR) 10.5% (मार्च 2023) पर है।
  • SHG-BLP: 134 लाख SHG, ₹58,893 करोड़ की बचत, ₹188,079 करोड़ बकाया ऋण (मार्च 2023)।
  • GVA में योगदान: वर्ष 2018-19 में 2%; वर्ष 2025-26 तक 2.7-3.5% तक पहुँचने का अनुमान (MFIN-NCAER अध्ययन)।
  • रोजगार: मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 130 लाख नौकरियाँ उत्पन्न करता है।
  • NPA: सकल NPA ₹50,000 करोड़ (सकल ऋणों का लगभग 13%, वर्ष 2025 का अनुमान)।
  • क्षेत्र अवलोकन: NBFC-MFIs (39.97%), बैंक (32.53%), SFB (16.61%), NBFC (10.68%), गैर-लाभकारी (0.21%)।

क्षेत्रीय विविधता 

  • भौगोलिक वितरण: वर्तमान में, MFI 723 जिलों में कार्य करते हैं, जिनमें 111 आकांक्षी जिले शामिल हैं, जो 28 राज्यों और 8 केंद्रशासित प्रदेशों को शामिल करते हैं।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में ऋण पोर्टफोलियो का 76%, शहरी क्षेत्रों में 24% है।
    • 10 राज्यों में ऋण पोर्टफोलियो का 82%; शीर्ष 5 (बिहार, तमिलनाडु, यूपी, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक) का हिस्सा 55% है।
  • दक्षिणी क्षेत्र: ऋण वितरण का 63%; औसत SHG ऋण = ₹5.31 लाख है।
  • ऋण अंतर (अखिल भारतीय): 46% (बचत-लिंक्ड SHG ऋण-लिंक्ड नहीं)।
  • सर्वश्रेष्ठ ऋण लिंकेज वाले राज्य: कर्नाटक (98%), तेलंगाना (96%), आंध्र प्रदेश (89%)।
  • उच्च पोर्टफोलियो वाले राज्य: बिहार, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल में उद्योग पोर्टफोलियो का 58% हिस्सा है।

भारत में माइक्रोफाइनेंस का विकास

  • वर्ष 1974: स्व-नियोजित महिला संघ (Self-Employed Women’s Association-SEWA) ने असंगठित क्षेत्र की महिलाओं को वित्तीय सेवाएँ प्रदान करने के लिए अहमदाबाद में सेवा बैंक की स्थापना की, जो पहला पंजीकृत MFI है।
  • वर्ष 1984: नाबार्ड ने गरीबी उन्मूलन के लिए एक उपकरण के रूप में स्वयं सहायता समूह (SHG) लिंकेज मॉडल का समर्थन किया तथा SHG-बैंक लिंकेज कार्यक्रम (SHG-BLP) का संचालन किया।
  • वर्ष 1992: नाबार्ड ने औपचारिक रूप से SHG-BLP का शुभारंभ किया, जो SHG को बचत और ऋण के लिए औपचारिक बैंकिंग से जोड़ता है, तथा संस्थागत सूक्ष्म वित्त की ओर बदलाव को दर्शाता है।
  • वर्ष 2004: RBI ने माइक्रोफाइनेंस ऋण को प्राथमिकता क्षेत्र ऋण (PSL) के अंतर्गत शामिल किया तथा MFI को वित्तीय समावेशन के साधन के रूप में मान्यता दी, जिससे क्षेत्र की वृद्धि को बढ़ावा मिला।
  • वर्ष 2010: आंध्र प्रदेश में अत्यधिक उधार, उच्च ब्याज दर और बलपूर्वक वसूली के कारण उत्पन्न संकट के कारण RBI ने नियामक ढाँचे बनाया (मालेगाम समिति, 2011)।
  • वर्ष 2014: माइक्रोफाइनेंस इंस्टीट्यूशंस नेटवर्क (MFIN) और सा-धन (Sa-Dhan) को RBI द्वारा स्व-नियामक संगठन (Self-Regulatory Organizations-SROs) के रूप में मान्यता दी गई।

भारत में माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र का महत्त्व

  • वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देता है: माइक्रोफाइनेंस औपचारिक वित्तीय सेवाओं और ग्रामीण गरीबों, विशेषतः महिलाओं और हाशिए पर स्थित समुदायों के बीच के अंतराल को पाटता है।
    • नाबार्ड के अनुसार, 144.22 लाख SHG बचत से जुड़े हैं, जो मार्च 2024 तक 17.75 करोड़ परिवारों को शामिल करते हैं।
  • महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाता है: अधिकतर महिला उधारकर्ताओं को लक्षित करके, माइक्रोफाइनेंस निर्णय लेने, उद्यमशीलता और आय सृजन को बढ़ावा देता है।
    • वित्त वर्ष 2024 में वितरित SHG का 83% से अधिक और SHG ऋण का 96% सभी महिला समूहों को दिया गया।
  • ग्रामीण आजीविका और स्वरोजगार को बढ़ावा देता है: माइक्रोक्रेडिट ग्रामीण भारत में कृषि, पशुधन, छोटे व्यापार और सूक्ष्म उद्यमों का समर्थन करते हैं, जिससे अनौपचारिक साहूकारों पर निर्भरता कम होती है।
    • वित्त वर्ष 2024 में SHG-BLP के तहत ऋण वितरण ₹2.09 लाख करोड़ तक पहुँच गया, जिसमें दक्षिणी और पूर्वी राज्य प्रमुख लाभार्थी थे।
  • गरीबी और भेद्यता को कम करता है: माइक्रोक्रेडिट तक पहुँच गरीब परिवारों को आय-उत्पादक गतिविधियों में निवेश करने, उपभोग को सुचारू बनाने और वित्तीय तनावों का प्रबंधन करने में मदद करती है।
    • नाबार्ड द्वारा GRIP (ग्रेजुएटेड रूरल इनकम प्रोग्राम) उत्पादक परिसंपत्तियों के लिए अति-गरीब महिलाओं को वापसी योग्य अनुदान प्रदान करता है।
  • सामाजिक विकास और सामूहिक कार्रवाई के लिए उत्प्रेरक: माइक्रोफाइनेंस SHG और JLG जैसी समुदाय-आधारित संरचनाओं को बढ़ावा देता है जो बचत की आदतों, अनुशासन और एकजुटता को बढ़ावा देते हैं।
    • SHG समूह अब ग्रामीण उत्पादों के डिजिटल रूप से विपणन के लिए NRLM और ONDC के साथ एकीकृत हैं।
  • राष्ट्रीय विकास लक्ष्यों का समर्थन करता है: यह गरीबी में कमी (SDG 1), लैंगिक समानता (SDG 5), और सभ्य कार्य (SDG 8) जैसे SDG में प्रत्यक्ष योगदान देता है।
    • यह क्षेत्र NRLM, पीएम स्वनिधि (PM SVANidhi), स्टैंड-अप इंडिया (Stand-Up India) और लखपति दीदी योजना (Lakhpati Didi Scheme) जैसे सरकारी मिशनों के साथ संरेखित है।

केस स्टडीज और सफलता की कहानियाँ

जीविका (JEEViKA)- बिहार (महिला सशक्तीकरण के लिए SHG मॉडल)

  • बिहार ग्रामीण आजीविका संवर्धन सोसाइटी (Bihar Rural Livelihoods Promotion Society) के तहत जीविका (JEEViKA) ने लाखों ग्रामीण महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों के रूप में सफलतापूर्वक संगठित किया है।
  • वर्ष 2023-24 तक, इसने 1 करोड़ से अधिक महिलाओं को बचत और ऋण तक पहुँच बनाने में सक्षम बनाया, जिनमें से कई डेयरी, कृषि प्रसंस्करण और सिलाई व्यवसाय संचालित कर रही हैं।

कढ़ाई के सपने (Embroidering Dreams): लम्बानी महिला (Lambani Women), विजयपुरा (कर्नाटक)

  • लम्बानी आदिवासी महिलाओं ने नाबार्ड के LEDP प्रशिक्षण के तहत प्राप्त सहायता से पारंपरिक कढ़ाई को एक व्यवहार्य उद्यम में बदल दिया।
  • ‘लम्बानी ब्यूटी थ्रेड्स’ उत्पादक समूह ने ₹6.8 लाख के ऑर्डर अर्जित किए; महिलाओं ने प्रदर्शनी स्टालों और शहर-आधारित बुटीक के माध्यम से पहचान बनाई।

विरासत के करघे (Looms of Legacy): उडुपी साड़ी पुनरुद्धार (कर्नाटक)

  • नाबार्ड, कादिके ट्रस्ट (Kadike Trust) और तालिपाडी वीवर्स सोसाइटी (Talipady Weavers Society) ने प्रशिक्षण और डिजिटल मार्केटिंग के माध्यम से GI-टैग वाली उडुपी साड़ियों को पुनर्जीवित किया।
  • बुनकरों की संख्या 8 से बढ़कर 34 हो गई, जिनमें ज्यादातर महिलाएँ थीं; ऑनलाइन और ऑफलाइन बिक्री में वृद्धि के साथ मासिक आय ₹3,000 से बढ़कर ₹10,000 हो गई।

LED बल्ब असेंबली – नैनीताल (उत्तराखंड)

  • स्वयं सहायता समूह की 90 महिलाओं को LED बल्ब बनाने का प्रशिक्षण दिया गया और उन्हें सरला इलेक्ट्रॉनिक्स से ऑर्डर प्राप्त हुए।
  • उन्होंने सामूहिक रूप से ₹45,600 कमाए, जिससे पता चला कि कैसे कम लागत वाले, कुशल सूक्ष्म उद्यम ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बना सकते हैं और ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा दे सकते हैं।

भारत में माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र में कार्यरत वित्तीय संस्थानों की श्रेणियाँ

  • गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी – माइक्रो-फाइनेंस संस्थान (NBFC-MFIs): विशेषीकृत NBFC बिना किसी जमानत के कम आय वाले समूहों को लघु ऋण प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जिसका उद्देश्य वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना है।
    • 30 जून 2024 तक, NBFC-MFIs माइक्रो-क्रेडिट के सबसे बड़े प्रदाता हैं, जिनकी बकाया ऋण राशि 1,68,747 करोड़ रुपये है, जो कुल उद्योग पोर्टफोलियो का 39.8% है।
  • बैंक: लाइसेंस प्राप्त वित्तीय संस्थान जो व्यक्तियों और व्यवसायों को जमा स्वीकार करने, ऋण प्रदान करने और विभिन्न बैंकिंग सेवाएँ प्रदान करने के लिए अधिकृत हैं।
    • 30 जून 2024 तक, बैंकों के पास माइक्रो-क्रेडिट में पोर्टफोलियो का दूसरा सबसे बड़ा हिस्सा है, जिसका कुल ऋण बकाया 1,38,003 करोड़ रुपये है, जो कुल माइक्रोक्रेडिट का 32.5% है।
  • लघु वित्त बैंक (Small Finance Banks-SFBs): ये विशेष रूप से वंचित वर्गों, जिनमें लघु व्यवसाय, सीमांत किसान और सूक्ष्म उद्यम शामिल हैं, को बुनियादी बैंकिंग सेवाएँ प्रदान करने के लिए स्थापित किए गए विशिष्ट बैंक हैं।
    • 30 जून 2024 तक, SFBs के पास कुल ऋण राशि 72,430 करोड़ रुपये है, जिसकी कुल हिस्सेदारी 17.1% है।
  • गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (NBFC): वित्तीय संस्थाएँ जो बैंकों के समान कार्य करती हैं, जैसे कि उधार देना और निवेश करना, लेकिन बैंकिंग लाइसेंस नहीं रखना या माँग जमा स्वीकार नहीं करना।
  • अन्य (गैर-लाभकारी MFIs सहित): गैर-लाभकारी संगठन, ट्रस्ट या धारा 8 की कंपनियाँ जैसी संस्थाएँ, जो लाभ के उद्देश्य के बिना आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए सूक्ष्म-वित्त गतिविधियों में संलग्न हैं।
    • राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) भी अपने स्वयं सहायता समूह (SHG) बैंक लिंकेज कार्यक्रम (SHG-BLP) के माध्यम से सूक्ष्म वित्त जगत में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।

वर्तमान संकट

  • उच्च NPA: सकल NPA मार्च 2025 में 16% तक पहुँच गया, जो वर्ष 2024 में 8.8% था।
  • PAR में वृद्धि: वित्त वर्ष 2025 में 31 दिनों से अधिक की बकाया ऋण राशि (PAR >31 दिन) में 163% की वृद्धि दर्ज की गई, जो ₹43,075 करोड़ तक पहुँच गई। 
    • मार्च 2024 तक 90 दिनों से अधिक का NPA 1.16% तक पहुँच गया।
  • ऋण पोर्टफोलियो का घटता आकार: वित्त वर्ष 2025 में सकल ऋण पोर्टफोलियो में 13.9% (₹442,700 करोड़ से ₹381,200 करोड़) की गिरावट आई।
  • लाभप्रदता में गिरावट: उदाहरण के लिए, ऋण वृद्धि के बावजूद क्रेडिट एक्सेस ग्रामीण के शुद्ध लाभ (PAT) में 46.4% की गिरावट आई।

भारत के माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र में संकट के प्रमुख कारण

  • अति-ऋणग्रस्तता और कई उधार: कई उधारकर्ताओं ने कई MFI और अनौपचारिक स्रोतों से ऋण लिया है, जिससे अस्थिर ऋण का दुष्चक्र बन गया है।
    • देश में 6.6 करोड़ से अधिक उधारकर्ता हैं, लेकिन कई उधार स्रोतों से लिए गए ऋणों के कारण, विशेष रूप से बिहार और उत्तर प्रदेश में अति-ऋणग्रस्तता की स्थिति उत्पन्न हो गई है।
  • संयुक्त देयता समूह (JLG) मॉडल का विखंडन: उधारकर्ताओं की प्रोफाइल में बदलाव और सहकर्मी जवाबदेही की गिरावट ने संयुक्त देयता समूह (JLG) की सामाजिक संपार्श्विक शक्ति को कमजोर कर दिया है।
    • RBI के अनुसार, शहरी प्रवास और कम सामुदायिक सामंजस्य के बीच JLG मॉडल कम प्रभावी होता जा रहा है।
  • उच्च ब्याज दरें और परिचालन लागत: MFI छोटे आकार और उच्च प्रशासनिक लागतों के कारण वाणिज्यिक बैंकों की तुलना में 18-26% ब्याज लेते हैं।
    • वर्ष 2022 में RBI द्वारा ब्याज दरों को विनियमित करने के बाद, कुछ NBFC-MFI ने 45% तक शुल्क लेना शुरू कर दिया, जिससे पहले से ही तनावग्रस्त ग्रामीण उधारकर्ताओं पर बोझ बढ़ गया।
  • आर्थिक और जलवायु तनाव: कोविड-19, विमुद्रीकरण, GST रोलआउट, मुद्रास्फीति और खराब मौसम जैसे लगातार आर्थिक तनावों ने ग्रामीण आय को बाधित किया है।
    • वित्त वर्ष 2025 में GDP वृद्धि धीमी होकर 6.4% हो गई, जबकि बाढ़, हीटवेव और चुनाव व्यवधानों ने उधारकर्ताओं की पुनर्भुगतान क्षमताओं को और कम कर दिया।
  • विनियामक और राजनीतिक अनिश्चितता: लगातार नीतिगत बदलाव, RBI के सख्त दिशा-निर्देश और जबरन वसूली के खिलाफ राज्य-स्तरीय कानूनों ने भ्रम की स्थिति और नकदी की कमी उत्पन्न की है।
    • तमिलनाडु और कर्नाटक ने वसूली उत्पीड़न के खिलाफ कानून पारित किए, और कर्ज मुक्ति अभियान जैसे अभियानों ने ऋण माफी की उम्मीदों को बढ़ाकर पुनर्भुगतान संबंधी अनुशासन को कम किया।
  • अनियमित या आक्रामक ऋणदाताओं का उदय: कुछ अनियमित MFI जबरन वसूली का सहारा लेते हैं, जिससे क्षेत्र की छवि खराब होती है और डिफॉल्ट जोखिम बढ़ता है।
    • कर्नाटक में उधारकर्ताओं की आत्महत्या के मामले संग्रह एजेंटों के दबाव से जुड़े थे; ऐसी घटनाओं ने सरकारों को अनैतिक प्रथाओं के विरुद्ध कानून बनाने के लिए मजबूर किया है।
  • कमजोर क्रेडिट मूल्यांकन और डेटा अंतराल: MFI प्रायः पुराने क्रेडिट ब्यूरो डेटा या अधूरे आय दस्तावेजों के आधार पर ऋण देते हैं, जिससे खराब ‘अंडरराइटिंग’ होती है।
    • उधारकर्ता के क्रेडिट इतिहास अपडेट में लगभग एक महीने का अंतराल होता है; इससे कई MFI को पुनर्भुगतान क्षमता का पूरी तरह से आकलन किए बिना समानांतर ऋण स्वीकृत करने की अनुमति मिलती है।

भारत के माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र में संकट के प्रमुख प्रभाव

  • संस्थानों में गैर-निष्पादित आस्तियों (NPA) में वृद्धि: माइक्रोफाइनेंस संकट के कारण ऋण परिसंपत्ति की गुणवत्ता में तीव्र गिरावट आई है, जिससे संस्थागत बैलेंस शीट पर दबाव पड़ा है।
    • MFI पल्स के अनुसार, क्षेत्रवार NPA बढ़कर 8.72% हो गया, जिसमें SFBs 16.72% के उच्च स्तर पर पहुंच गया और गैर-लाभकारी क्षेत्र वित्त वर्ष 2024 तक 39.33% पर पहुंच गया।
  • उधारकर्ता की साख में कमी: बार-बार अधिक उधार लेने से गरीब उधारकर्ताओं का क्रेडिट खराब हो गया है, जिससे भविष्य में उनके वित्त तक पहुँच सीमित हो गई है।
    • कर्नाटक अध्यादेश के बाद, हावेरी जिले में पुनर्भुगतान दरें 30% तक गिर गईं।
  • पुनर्भुगतान संस्कृति का विघटन: विश्वास-आधारित पुनर्भुगतान की भावना जो कभी माइक्रोफाइनेंस को परिभाषित करती थी, वह कमजोर हो रही है।
    • बिहार और उत्तर प्रदेश में बहु-ऋणग्रस्तता और ऋण माफी (कर्ज माफी) की संभावनाओं की उम्मीद के कारण, वित्त वर्ष 2023-24 में संग्रहण दर 90% से नीचे गिर गई।
  • MFIs के लिए तरलता और लाभप्रदता संकट: जैसे-जैसे पुनर्भुगतान में कमी और चूक में वृद्धि होती है, MFIs को बढ़ते तरलता तनाव और घटते मुनाफे का सामना करना पड़ता है।
    • वित्त वर्ष 2025 में NBFC-MFIs ऋण वित्तपोषण में 35.7% की गिरावट आई, जिससे इक्विटी जुटाने को मजबूर होना पड़ा।
  • निवेशक और ऋणदाता का विश्वास खोना: संस्थागत ऋणदाता और बैंक MFIs को वित्त पोषण देने में सतर्क हो रहे हैं, जिससे क्षेत्रीय ऋण प्रवाह सख्त हो रहा है।
    • RBI ने NBFC-MFIs के लिए योग्यता परिसंपत्ति मानदंडों को 75% से घटाकर 60% कर दिया है, और ऋणदाता अब MFIs से उच्च पूँजी बफर और जोखिम प्रीमियम की मांग कर रहे हैं।
  • महिला सशक्तीकरण और SHG प्रगति में व्यवधान: ऋण की सीमित उपलब्धता और बढ़ता ऋण तनाव महिलाओं द्वारा स्वयं सहायता समूह (SHG) आंदोलनों के माध्यम से अर्जित सामाजिक एवं आर्थिक प्रगति को प्रभावित कर रहे हैं।
    • 17.75 करोड़ परिवारों तक पहुँचने के बावजूद, वर्ष 2023-24 में केवल 54% SHG ऋण-लिंक्ड हैं, जबकि उत्तरी और मध्य राज्य बहुत पीछे हैं।
  • ग्रामीण आर्थिक भेद्यता और अनौपचारिकता: सस्ती वित्त तक खराब पहुँच ग्रामीण उधारकर्ताओं को अनौपचारिक ऋणदाताओं की ओर स्थानांतरित करती है, जिससे उनके शोषण का जोखिम बढ़ जाता है।
    • नाबार्ड ने विशेष रूप से उत्तर-पूर्वी और मध्य भारत में बढ़ते ग्रामीण ऋण अंतराल को चिह्नित किया, जहाँ MFIs कम हो रहे हैं, और बैंक तक पहुँच कम है।

भारत के माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र में प्रमुख संकट

  • आंध्र प्रदेश संकट (2010): मुख्यतः माइक्रोफाइनेंस संस्थाओं (MFI) द्वारा आक्रामक ऋण वितरण, 20-30% की उच्च ब्याज दरें, एक ही उधारकर्ता को कई ऋण देना और बलपूर्वक वसूली प्रथाओं के कारण उत्पन्न हुआ।
    • प्रभाव: उधारकर्ताओं का अत्यधिक ऋणग्रस्त होना, आत्महत्याएँ, सार्वजनिक प्रतिक्रियाएँ और राज्य सरकार का हस्तक्षेप (ए. पी. माइक्रोफाइनेंस अध्यादेश, 2010)।
    • परिणाम: RBI ने विनियामक ढाँचा (मालेगाम समिति की सिफारिशें) पेश किया, ब्याज दरों को सीमित किया और NBFC-MFIs श्रेणी की स्थापना की।
  • विमुद्रीकरण के बाद का संकट (2016-17): नकदी की कमी ने पुनर्भुगतान को बाधित किया, उधारकर्ताओं ने अधिक ऋण लिया, MFI द्वारा कमजोर जोखिम प्रबंधन।
    • प्रभाव: गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) में वृद्धि, ऋण वितरण में गिरावट, और उधारकर्ताओं के बीच विश्वास की कमी।
  • COVID-19 प्रभाव (2020-21): लॉकडाउन ने आय-उत्पादक गतिविधियों को रोक दिया, स्थगन ने MFI की तरलता को कम कर दिया, और आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान हुआ।
    • प्रभाव: NPA में वृद्धि , MFI के लिए तरलता की कमी, और ऋण वृद्धि में मंदी।

भारत में माइक्रोफाइनेंस के लिए प्रमुख समितियाँ

  • वित्तीय समावेशन पर रंगराजन समिति (2008): वित्तीय समावेशन प्राप्त करने में माइक्रोफाइनेंस की भूमिका पर प्रकाश डाला।
  • वाई.एच. मालेगाम समिति (2011): इसकी स्थापना भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा वर्ष 2010 में आंध्र प्रदेश माइक्रोफाइनेंस संकट की पृष्ठभूमि में माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र में मुद्दों और चिंताओं का अध्ययन करने के लिए की गई थी।

माइक्रोफाइनेंस संकट से निपटने के लिए सरकार और RBI के उपाय

  • SHG-बैंक लिंकेज कार्यक्रम (SHG-BLP): इसे वर्ष 1992 में नाबार्ड द्वारा शुरू किया गया था। इस कार्यक्रम के तहत बैंकों को SHG के लिए बचत खाते खोलने की अनुमति दी गई थी।
    • बैंक सखी (Bank Sakhis), SHG से प्रशिक्षित सदस्य मध्यस्थ के रूप में कार्य करते हैं, लेन-देन और आवेदन प्रक्रियाओं में SHG सदस्यों की सहायता करते हैं।
  • नाबार्ड द्वारा सूक्ष्म वित्त विकास और इक्विटी फंड: नाबार्ड ने वर्ष 2006 मेंमाइक्रोफाइनेंस डवलपमेंट एंड इक्विटी फंड’ (Micro Finance Development and Equity Fund-MFDEF) स्थापित किया था, ताकि सेमी-इक्विटी और अधीनस्थ ऋण उपकरणों के साथ MFIs की मदद की जा सके।
  • प्रधानमंत्री मुद्रा योजना: भारत सरकार ने वर्ष 2015 में गैर-कॉर्पोरेट, गैर-कृषि लघु/सूक्ष्म उद्यमों को 10 लाख रुपये तक का ऋण प्रदान करने के लिए इसे लॉन्च किया था।
  • नाबार्ड का ई-शक्ति कार्यक्रम: ई-शक्ति परियोजना का प्राथमिक लक्ष्य विभिन्न SHG के खातों को डिजिटल बनाना और समूहों के सदस्यों को वित्तीय समावेशन के दायरे में लाना है।
  • पीएम स्ट्रीट वेंडर्स आत्मनिर्भर निधि (पीएम स्वनिधि): केंद्रीय आवास और शहरी कार्यमंत्रालय ने लगभग 50 लाख स्ट्रीट वेंडर्स को एक वर्ष की अवधि के लिए 10,000 रुपये तक के संपार्श्विक मुक्त कार्यशील पूँजी ऋण की सुविधा देने के लिए इस योजना को शुरू किया।
  • कुदुम्बश्री (Kudumbashree): यह केरल सरकार द्वारा वर्ष 1998 में शुरू किया गया एक महिला सशक्तीकरण और गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम है।
    • यह माइक्रोफाइनेंस पर केंद्रित है तथा ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों (SHGs) के माध्यम से बचत, ऋण और वित्तीय सहायता तक पहुँच प्रदान करता है।
  • माइक्रोफाइनेंस ऋणों के लिए RBI का विनियामक ढांचा
    • वर्ष 2011 में NBFC-MFI का निर्माण: ग्राहक-केंद्रित प्रथाओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए माइक्रोफाइनेंस संस्थानों के लिए एक अलग श्रेणी बनाई गई, जैसे कि उधारकर्ता ऋणग्रस्तता को सीमित करना और पारदर्शी मूल्य निर्धारण।
    • वर्ष 2022 में सुसंगत दिशा-निर्देश 
      1. RBI ने अब माइक्रोफाइनेंस के रूप में योग्य होने के लिए ऋण के लिए 300,000 रुपये की एक सामान्य घरेलू सीमा निर्धारित की है।
      2. NBFC-MFI लाइसेंस के लिए अर्हता प्राप्त करने के लिए संस्थाओं के पास माइक्रोफाइनेंस में कम-से-कम 75% संपत्ति होनी चाहिए और NBFC पर सीमा को पहले 10% के मुकाबले 25% संपत्ति तक बढ़ा दिया गया है।
    • उधार देने पर सलाह: एक से अधिक उधार देने को रोकने और “एवरग्रीनिंग” ऋण जैसी अनैतिक प्रथाओं को संबोधित करने के लिए समय-समय पर सलाह जारी की जाती है।
    • निरंतर निगरानी: RBI प्रभावी जोखिम प्रबंधन और नियामक निगरानी के लिए क्रेडिट सूचना कंपनियों (CICs) को वास्तविक समय डेटा प्रस्तुत करने पर जोर देता है।

माइक्रोफाइनेंस संकट से निपटने के लिए राज्य स्तरीय पहल

  • आंध्र प्रदेश माइक्रोफाइनेंस अध्यादेश (2010): आंध्र प्रदेश ने उच्च ब्याज और जबरन वसूली को लक्षित करने वाले अध्यादेश के साथ MFI शोषण पर अंकुश लगाया।
    • इसने 200 से अधिक आत्महत्याओं के बाद ऋण गतिविधियों को रोक दिया, जिससे स्थानीय अधिकारियों के साथ MFI पंजीकरण की आवश्यकता हुई।
  • तमिलनाडु मनी लेंडिंग एंटिटीज एक्ट (2025): तमिलनाडु ने पारदर्शी ऋण सुनिश्चित करने और उधारकर्ता उत्पीड़न को रोकने के लिए MFI को विनियमित किया।
    • यह अधिनियम वर्ष 2025 में जबरन वसूली प्रथाओं के बारे में शिकायतों का उत्तर देता है।
  • कर्नाटक प्रस्तावित अध्यादेश (2025): कर्नाटक ने MFI को विनियमित करने और जबरन वसूली प्रथाओं को समाप्त करने के लिए एक अध्यादेश की योजना बनाई।

भारत के माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र में संकट से निपटने की आगे की राह

  • ऋण मूल्यांकन तंत्र को मजबूत करना: वास्तविक समय में, आधार से जुड़े उधारकर्ता सत्यापन की शुरुआत करना और क्रेडिट ब्यूरो के साथ अधिक सख्त एकीकरण लागू करना।
    • इससे कई बार उधार देने पर अंकुश लगेगा और अति-ऋणग्रस्तता कम होगी, जो वर्तमान में NPA का मुख्य कारण है।
  • भौगोलिक पहुंच में विविधता लाना: ब्याज छूट या प्राथमिकता वाले वित्तपोषण प्रोत्साहनों के माध्यम से अल्प-सेवा वाले क्षेत्रों (जैसे- पूर्वोत्तर, मध्य भारत) में विस्तार करने के लिए MFI को प्रोत्साहित करना।
    • वर्तमान में, पोर्टफोलियो का 84% हिस्सा 10 राज्यों में केंद्रित है, जिससे प्रणालीगत जोखिम बढ़ रहा है।
  • संयुक्त देयता समूह (JLG) मॉडल को सुदृढ़ करना: डिजिटल निगरानी प्लेटफ़ॉर्म के साथ भौतिक समूह प्रशिक्षण को जोड़कर सहकर्मी जवाबदेही का पुनर्निर्माण करना।
    • JLG अनुशासन को मजबूत करने से नैतिक जोखिम कम होगा और पुनर्भुगतान व्यवहार में सुधार होगा।
  • पारदर्शिता और कैप रिकवरी दुरुपयोग में सुधार: ब्याज दरों के सार्वजनिक प्रकटीकरण को अनिवार्य करना और सख्त विनियमन के माध्यम से उधारकर्ताओं को जबरन वसूली से बचाना।
    • उधारकर्ता सुरक्षा के तमिलनाडु और कर्नाटक मॉडल को पूरे देश में अपनाया जाना चाहिए।
  • वित्तीय और डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देना: उधारकर्ताओं को अधिकारों, ब्याज दरों और शिकायत निवारण तंत्रों के बारे में शिक्षित करने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चलाना।
    • कई SHG और JLG सदस्य ऋण शर्तों या पुनर्भुगतान की निगरानी के लिए डिजिटल उपकरणों से अनभिज्ञ रहते हैं।
  • SHG-बैंक लिंकेज सहायता को मजबूत करना: डिजिटल ऋण को आजीविका सहायता के साथ एकीकृत करने के लिए GRIP, मनी पर्स ऐप और M-सुविधा जैसी NABARD की सफल पहलों का विस्तार करना।
    • ये योजनाएँ ऋणों को आय-उत्पादक गतिविधियों से जोड़कर ऋण देने के जोखिम को कम करने में मदद कर सकती हैं।
  • निवेशक और ऋणदाता का विश्वास बहाल करना: सुनिश्चित करना कि MFI पर्याप्त पूँजी बफर बनाए रखें, पारदर्शी तरीके से वसूली डेटा प्रकाशित करें और RBI के विवेकपूर्ण मानदंडों का सख्ती से पालन करें।
    • संस्थागत फंडिंग को वापस आकर्षित करने के लिए एक विश्वसनीय वातावरण महत्त्वपूर्ण है, जो उच्च NPA के कारण कम हो गया है।

निष्कर्ष 

भारत का माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र अत्यधिक ऋणग्रस्तता, NPA और बाहरी तनावों के कारण लगातार संकटों का सामना कर रहा है। मजबूत विनियमन, प्रौद्योगिकी और समावेशी वित्तपोषण इसकी स्थिरता और सामाजिक प्रभाव सुनिश्चित कर सकते हैं।

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