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Jun 02 2025

Title Subject Paper
संक्षेप में समाचार
फाइबर ऑप्टिक ड्रोन: आधुनिक युद्ध में नया खतरा Polity and governance ​, GS Paper 2,
कर्नाटक का प्लेटफॉर्म आधारित गिग वर्कर्स (सामाजिक सुरक्षा एवं कल्याण) अध्यादेश, 2025 Polity and governance ​, GS Paper 2,
ध्रुव (डिजिटल हब फॉर रेफरेंस एंड यूनिक वर्चुअल एड्रेस) Science and Technology, GS Paper 3,
सरकारी स्कूलों में नामांकन Polity and governance ​, GS Paper 2,
भारत ने वित्त वर्ष 2024-25 के लिए राजकोषीय घाटे का लक्ष्य हासिल कर लिया economy, GS Paper 3,
उभरती विश्व व्यवस्था international Relation, GS Paper 2,
ऑटोनोमस वारफेयर Defense and Security, GS Paper 3,
सरकार ने केंद्र प्रायोजित और केंद्रीय क्षेत्रक योजनाओं की 5-वर्षीय समीक्षा शुरू की Polity and governance ​, GS Paper 2,
भारतीय शिक्षा प्रणाली में भाषा संबंधी दुविधा Polity and governance ​, GS Paper 2,

सिटी गैस वितरण (CGD) परियोजना

हाल ही में प्रधानमंत्री ने पश्चिम बंगाल के अलीपुरद्वार में सिटी गैस वितरण परियोजना की आधारशिला रखी। 

  • अलीपुरद्वार की सीमा भूटान से लगती है एवं यह असम से भी सीमा साझा करता है। यह जलपाईगुड़ी तथा कूचबिहार से घिरा हुआ है। 

सिटी गैस वितरण (City Gas Distribution- CGD) परियोजना के बारे में

  • कुल निवेश: ₹1,010 करोड़ से अधिक। 
  • उद्देश्य: घरों, वाणिज्यिक इकाइयों, उद्योगों एवं वाहनों के लिए सिटी गैस वितरण बुनियादी ढाँचा विकसित करना। 
  • प्राधिकरण: पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस नियामक बोर्ड (Petroleum & Natural Gas Regulatory Board- PNGRB) PNGRB अधिनियम, 2006 के अनुसार भौगोलिक क्षेत्रों (GAs) में सिटी गैस वितरण (CGD) नेटवर्क के विकास के लिए संस्थाओं को सहायता प्रदान करने वाला प्राधिकरण है।
  • मुख्य घटक
    • पाइप्ड नेचुरल गैस (Piped Natural Gas- PNG)
      • 2.5 लाख से अधिक घरों, 100 से अधिक वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों एवं औद्योगिक इकाइयों को प्रदान की जाएगी।
    • संपीडित प्राकृतिक गैस (Compressed Natural Gas-CNG)
      • लगभग 19 CNG स्टेशनों की स्थापना।
      • वाहनों की ईंधन आवश्यकताओं को पूरा करने के उद्देश्य से।
  • सरकारी मानदंडों के साथ संरेखण: भारत सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम कार्य कार्यक्रम (Minimum Work Program- MWP) लक्ष्यों को पूर्ण करता है।
    • MWP लक्ष्य सिटी गैस वितरण (CGD) संस्थाओं के लिए निर्धारित वार्षिक प्रतिबद्धताएँ हैं, जिसके लिए उन्हें एक निश्चित लंबाई की पाइपलाइन बिछाने, निश्चित संख्या में CNG स्टेशन स्थापित करने एवं किसी दिए गए भौगोलिक क्षेत्र (Geographical Area- GA) में एक निश्चित संख्या में घरेलू गैस कनेक्शन प्रदान करने की आवश्यकता होती है।
  • CGD परियोजना का विकास: वर्ष 2014 में, CGD सेवाएँ 66 जिलों में थीं; अब 550 से अधिक जिलों तक विस्तारित हो गई हैं।
  • लाभ: यह सुविधाजनक, विश्वसनीय, पर्यावरण के अनुकूल एवं लागत प्रभावी ईंधन आपूर्ति प्रदान करेगा तथा इस क्षेत्र में रोजगार के अवसर पैदा करेगा।

BRICS संसदीय मंच

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ब्राजील में 11वें BRICS संसदीय मंच में भारतीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करेंगे।

BRICS संसदीय मंच के बारे में

  • BRICS संसदीय मंच BRICS के सदस्य देशों के बीच विधायी सहयोग के लिए एक मंच है।
  • इसका उद्देश्य संवाद को मजबूत करना, सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करना एवं सदस्य देशों के बीच संसदीय कूटनीति को बढ़ाना है।
  • BRICS संसदीय मंच की पहली औपचारिक बैठक वर्ष 2015 में रूस के मास्को में रूस की अध्यक्षता में आयोजित की गई थी।
  • विषय: ‘एक अधिक समावेशी एवं सतत्, वैश्विक शासन के निर्माण में BRICS संसदों की भूमिका’।
  • मंच के उप-विषय
    • मजबूत एवं अधिक सतत् BRICS अंतर-संसदीय सहयोग की ओर।
    • बहुपक्षीय शांति एवं सुरक्षा संरचना के सुधार के लिए BRICS देशों की संसदें एकजुट हुईं।
    • जिम्मेदार एवं समावेशी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के लिए अंतर-संसदीय सहयोग।
    • आर्थिक विकास के लिए नए मार्गों की तलाश में BRICS संसदीय कार्रवाई।
    • वैश्विक स्वास्थ्य के लिए BRICS अंतर-संसदीय गठबंधन। 
    • जलवायु एवं स्थिरता पर BRICS अंतर-संसदीय वार्ता।

तेजस LCA

हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (Hindustan Aeronautics Limited- HAL) ने हैदराबाद में स्वदेशी लड़ाकू विमान लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (Light Combat Aircraft- LCA) तेजस Mk1A की चौथी उत्पादन यूनिट स्थापित की है। 

तेजस लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (LCA) के बारे में

  • एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी (Aeronautical Development Agency- ADA) एवं हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (Hindustan Aeronautics Limited- HAL) द्वारा विकसित। 
  • भूमिका: सिंगल-इंजन, मल्टीरोल, लाइटवेट फाइटर जेट। 
  • प्रकार: यह 4.5-पीढ़ी का लड़ाकू विमान है। 
  • पहली उड़ान: वर्ष 2001 में। 
  • परिचालन प्रेरण: वर्ष 2016 (IAF)। 
  • वैरिएंट 
    • तेजस Mk1: प्रारंभिक परिचालन संस्करण, भारतीय वायु सेना में शामिल किया गया।
    • तेजस Mk1A: AESA रडार, बेहतर एवियोनिक्स एवं बेहतर रखरखाव के साथ अपग्रेड किया गया। 
    • तेजस Mk2 (विकासाधीन): बड़ा, अधिक शक्तिशाली, लंबी दूरी एवं पेलोड के साथ। 
    • तेजस नौसेना संस्करण: विमान वाहक के लिए डिजाइन किया गया (परीक्षण के तहत)। 
  • मुख्य विशेषताएँ
    • इंजन: जनरल इलेक्ट्रिक F404 (Mk1/Mk1A), नियोजित स्वदेशी कावेरी इंजन। 
    • रडार: उन्नत AESA रडार, इजरायली EL/M-2052 या भारत के स्वदेशी उत्तम AESA रडार से युक्त। 
    • उन्नत उड़ान नियंत्रण: उन्नत डिजिटल फ्लाई-बाय-वायर फ्लाइट कंट्रोल सिस्टम। 
    • इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर (Electronic Warfare- EW): इसमें यूनिफाइड इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सूट (Unified Electronic Warfare Suite- UEWS) एवं उन्नत सेल्फ प्रोटेक्शन जैमर पॉड की सुविधा है। 
    • हथियार क्षमता में वृद्धि: इसमें दृश्य सीमा से परे मिसाइल, हवा-से-हवा/जमीन पर मार करने वाली मिसाइल एवं ASRAAM मिसाइल ले जाने की क्षमता है।

गोवा ने पूर्ण कार्यात्मक साक्षरता हासिल की

39वें राज्य दिवस पर, गोवा ‘उल्लास-नव भारत साक्षरता कार्यक्रम’ के तहत पूरी तरह से साक्षर हो गया।

  • इससे गोवा भारत का दूसरा राज्य बन गया (मिजोरम के बाद), जिसने केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित 95% साक्षरता बेंचमार्क को पार कर लिया।
  • आधिकारिक साक्षरता दर (PLFS 2023-24): 93.60%।
  • यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy- NEP) 2020 एवं विकसित भारत पहल के तहत वर्ष 2030 तक 100% साक्षरता हासिल करने के भारत के दृष्टिकोण के अनुरूप है।

उल्लास-नव भारत साक्षरता कार्यक्रम के बारे में

  • शुरू: वर्ष 2022; वर्ष 2027 तक चालू।
  • प्रकार: केंद्र प्रायोजित योजना।
  • लक्ष्य समूह: 15 वर्ष एवं उससे अधिक आयु के वयस्क, जो औपचारिक स्कूली शिक्षा में शामिल नहीं हो सके।
  • विजन: “जन-जन साक्षर” – प्रत्येक नागरिक साक्षर।
  • मार्गदर्शक सिद्धांत: स्वयंसेवा एवं कर्तव्य बोध (कर्तव्य की भावना)।
  • ULLAS योजना के पाँच मुख्य घटक:
    1. बुनियादी साक्षरता एवं संख्यात्मकता।
    2. महत्त्वपूर्ण जीवन कौशल (जैसे- स्वास्थ्य, वित्तीय साक्षरता, डिजिटल साक्षरता)।
    3. बुनियादी शिक्षा (ग्रेड 3 से 8 के बराबर)।
    4. व्यावसायिक कौशल विकास।
    5. सतत् शिक्षा।

राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुरस्कार, 2025

हाल ही में भारत के राष्ट्रपति ने राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक समारोह में 15 प्रतिष्ठित नर्सिंग पेशेवरों को राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुरस्कार प्रदान किए गए।

पुरस्कार के बारे में

  • वर्ष 1973 में भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा स्थापित।
  • उद्देश्य: सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं रोगी देखभाल में नर्सिंग पेशेवरों द्वारा प्रदान की गई सराहनीय सेवाओं को मान्यता देना।
  • पात्र श्रेणियाँ
    • पंजीकृत नर्स।
    • दाई।
    • सहायक नर्स दाइयाँ (Auxiliary Nurse Midwives- ANMs)।
    • महिला स्वास्थ्य आगंतुक (Lady Health Visitors- LHVs)।
  • पुरस्कार में शामिल हैं:
    • योग्यता प्रमाण पत्र।
    • ₹1,00,000 नकद पुरस्कार एवं पदक।

संदर्भ

फाइबर ऑप्टिक नियंत्रित ‘कामिकेज ड्रोन’ रूस-यूक्रेन संघर्ष में युद्धक्षेत्र की नई तकनीक एवं खतरे के रूप में उभरे हैं।

  • फाइबर ऑप्टिक केबल के माध्यम से निर्देशित ये फर्स्ट पर्सन व्यू (First Person View- FPV) ड्रोन इलेक्ट्रॉनिक युद्ध आधारित वातावरण में सामरिक रूप से निर्धारक सिद्ध हो रहे हैं।

फाइबर ऑप्टिक ड्रोन क्या हैं?

  • प्रकार: कामिकेज (आत्मघाती) FPV ड्रोन।
  • नियंत्रण प्रणाली: रेडियो सिग्नल के स्थान पर फाइबर ऑप्टिक केबल (10-20 किमी. लंबी) के माध्यम से निर्देशित।
  • लाभ: इलेक्ट्रॉनिक ‘वार जामिंग’ से प्रतिरक्षित।
  • उपयोग का मामला: GPS या रेडियो द्वारा जाम किए गए क्षेत्रों में कम ऊँचाई पर, सटीक हमले।

मुख्य विशेषताएँ

विशेषता

विवरण

माध्यम फाइबर ऑप्टिक केबल (कोई रेडियो लिंक नहीं)
पहुँच 20 किमी. तक।
गोपनीयता पता लगाना कठिन; कोई विद्युत चुंबकीय पहचान नहीं।
सूक्ष्मता जमीन से कई सेंटीमीटर ऊपर उड़ सकता है; घर के अंदर छिपे लक्ष्यों पर हमला कर सकता है।
वीडियो फीड हमले के क्षण तक उच्च-रिजॉल्यूशन वास्तविक समय की छवियाँ
मूल्य ~ $800–1000 प्रति इकाई (पारंपरिक FPV ड्रोन की लागत से दोगुनी)।

सामरिक सैन्य भूमिका

  • प्रथम तरंग आक्रमण उपकरण: पारंपरिक ड्रोन के लिए मार्ग प्रशस्त करने के लिए दुश्मन के EW सिस्टम को लक्षित करता है।
  • गोपनीय क्षमता: कमांड सेंटर जैसे भारी जाम वाले क्षेत्रों के विरुद्ध प्रभावी।
  • मनोवैज्ञानिक प्रभाव: अग्रिम पंक्ति के क्षेत्रों में चिकित्सा निकासी एवं सैन्य आंदोलन को सीमित करता है।

प्रतिउपाय

विधि

विवरण

जाल ड्रोन या केबल को उलझाने के लिए सड़कों/पेड़ों के पार स्थापित करना।
केबल अलग करने की तकनीक यूक्रेन ड्रोन की उड़ान के दौरान केबल काटने/जला देने की प्रणाली पर कार्य कर रहा है।
रिवर्स ट्रैकिंग ऑपरेटर साइटों को नष्ट करने के लिए केबलों का पता लगाना (सीमित सफलता के साथ)।

संदर्भ

कर्नाटक के प्लेटफॉर्म आधारित गिग वर्कर्स (सामाजिक सुरक्षा एवं कल्याण) अध्यादेश, 2025 को कर्नाटक के राज्यपाल ने मंजूरी दे दी है।

अध्यादेश का मुख्य विवरण

  • कल्याण शुल्क: एग्रीगेटर प्लेटफॉर्म को तिमाही आधार पर गिग वर्कर के साथ किए गए प्रत्येक लेन-देन पर 1 से 5 प्रतिशत तक का कल्याण शुल्क देना होगा।
  • भुगतानों की निगरानी एवं सत्यापित करना: गिग वर्कर्स से जुड़े सभी लेन-देन को एक नए भुगतान तथा कल्याण शुल्क सत्यापन प्रणाली (Payment and Welfare Fee Verification System- PWFVS) के माध्यम से रिकॉर्ड किया जाएगा, जिसकी देख-रेख जल्द ही गठित होने वाले कर्नाटक गिग वर्कर्स कल्याण बोर्ड द्वारा की जाएगी।
  • कानून: यह राशि सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 के तहत योगदान के रूप में गिनी जाएगी, जिसमें किसी भी अंतर के लिए वार्षिक समाधान की अनुमति होगी।
  • कल्याण निधि: प्लेटफॉर्म अर्थव्यवस्था में लाखों श्रमिकों का समर्थन करने के उद्देश्य से एक सामाजिक सुरक्षा प्रणाली के रूप में एक कल्याण निधि का गठन किया जाएगा।
  • वित्तपोषण योगदान: कल्याण कोष को प्लेटफॉर्म (कल्याण शुल्क), श्रमिकों एवं सरकारी अनुदानों से प्राप्त योगदान द्वारा वित्तपोषित किया जाएगा।
  • लाभार्थी: यह कोष स्वास्थ्य सेवा, आय सुरक्षा, मातृत्व लाभ एवं वृद्धावस्था या दिव्यांगता के मामलों में कवरेज प्रदान करने वाली योजनाओं का समर्थन करेगा।
    • महिला श्रमिकों एवं दिव्यांग व्यक्तियों के लिए विशेष प्रावधान शामिल किए गए हैं।
  • पंजीकरण: कर्नाटक में संचालित सभी एग्रीगेटर्स को कर्नाटक गिग वर्कर्स वेलफेयर बोर्ड के साथ पंजीकरण करना आवश्यक होगा एवं गिग वर्कर्स को सभी प्लेटफॉर्म पर मान्य एक विशिष्ट आईडी प्राप्त होगी।
  • गिग कॉन्ट्रैक्ट: इसमें भुगतान की शर्तों, प्रोत्साहनों एवं अधिकारों को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया जाना चाहिए, जिसमें कार्यों को अस्वीकार करने का अधिकार भी शामिल है।
    • श्रमिकों को लिखित स्पष्टीकरण एवं 14-दिन के नोटिस के बिना निलंबित या समाप्त नहीं किया जा सकता है।
  • भुगतान के लिए समय-सीमा: उचित मुआवजा सुनिश्चित करने के लिए बिना किसी अनुचित देरी के भुगतान (दैनिक, साप्ताहिक, द्विसाप्ताहिक या मासिक) वितरित करने के लिए समर्पित समय सीमाएँ निर्धारित की गई हैं। चालान में कटौतियों को पारदर्शी रूप से बताया जाना चाहिए।
  • प्लेटफॉर्म को यह बताना होगा कि उनके स्वचालित सिस्टम किस तरह से श्रमिकों को प्रभावित करने वाले निर्णय लेते हैं। इन प्रणालियों को लिंग, जाति, धर्म या अन्य कारकों के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए।

गिग इकोनॉमी के बारे में

  • ‘गिग इकोनॉमी’ एक ऐसा श्रम बाजार है, जिसमें पारंपरिक पूर्णकालिक रोजगार के बजाय प्रायः ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से अल्पकालिक अनुबंध या फ्रीलांस कार्य संबंधी विशेषता होती है।
  • रोजगार की सीमा: इसमें अल्पकालिक किराये का प्रबंधन, ट्यूशन, कोडिंग, राइड-शेयर सेवाओं के लिए ड्राइविंग, भोजन पहुँचाना या फ्रीलांस कार्य भी शामिल हो सकते हैं।
  • कानूनी स्थिति: भारत में गिग इकोनॉमी में विशिष्ट समर्पित कानूनों का अभाव है, लेकिन मौजूदा श्रम सुधार, जैसे सामाजिक सुरक्षा संहिता, वर्ष 2020 एवं वेतन संहिता, वर्ष 2019, गिग श्रमिकों को असंगठित श्रमिकों के ढाँचे के तहत शामिल करते हैं।
    • E-श्रम पोर्टल: वर्ष 2021 में लॉन्च किए गए E-श्रम पोर्टल का उद्देश्य गिग श्रमिकों सहित असंगठित श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के वितरण को सुविधाजनक बनाना है।
  • विशेषताएँ
    • लचीलापन एवं स्वायत्तता: गिग श्रमिकों को यह चुनने की स्वतंत्रता है कि वे कब, कहाँ एवं कितना कार्य करते हैं, जिससे बेहतर कार्य-जीवन संतुलन बना रहता है।
    • परियोजना आधारित: दीर्घकालिक रोजगार के बजाय, गिग वर्कर विशिष्ट कार्यों, परियोजनाओं या असाइनमेंट में संलग्न होते हैं।
    • स्व-नियोजित: गिग वर्कर स्व-नियोजित होते हैं एवं अपने स्वयं के व्यवसाय तथा वित्त का प्रबंधन करने वाले किसी विशेष संगठन की ओर आकर्षित नहीं होते हैं।
    • रोजगार की कोई सुरक्षा नहीं: भारत में गिग वर्करों के पास प्रायः रोजगार की सुरक्षा नहीं होती है, क्योंकि वे आमतौर पर स्थायी कर्मचारियों के बजाय किसी प्रोजेक्ट या असाइनमेंट के आधार पर काम करते हैं।

संदर्भ

डाक विभाग ने ध्रुव (डिजिटल हब फॉर रेफरेंस एंड यूनिक वर्चुअल एड्रेस) शीर्षक से एक व्यापक नीति दस्तावेज जारी किया है, जिसमें राष्ट्रीय डिजिटल एड्रेस डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर (Digital Public Infrastructure- DPI) की रूपरेखा तैयार की है।

ध्रुव (डिजिटल हब फॉर रेफरेंस एंड यूनिक वर्चुअल एड्रेस) के बारे में

  • ध्रुव एक मानकीकृत, अंतर-संचालनीय और जियोकोडेड डिजिटल एड्रेसिंग सिस्टम की परिकल्पना करता है, जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय स्तर पर डिजिटल एड्रेस डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण करना है।
  • आधार: ध्रुव एड्रेस-एज-ए-सर्विस (Address-as-a-Service: AaaS) की अपनी मूल अवधारणा पर आधारित है।
    • AaaS, उपयोगकर्ताओं, सरकारी संस्थाओं और निजी क्षेत्र के संगठनों के बीच सुरक्षित और कुशल वार्ता का समर्थन करने के लिए पता डेटा प्रबंधन से जुड़ी सेवाओं की एक शृंखला है।
  • उद्देश्य: पता सूचना प्रबंधन को एक आधारभूत सार्वजनिक अवसंरचना के रूप में मान्यता देना और सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में सुचारू एकीकरण सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत पता डेटा साझाकरण और प्रबंधन पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना।
  • विशेषताएँ
    • डिजिटल पोस्टल इंडेक्स नंबर (Digital Postal Index Number- DIGIPIN) – नेशनल एड्रेसिंग ग्रिड: यह एक ओपन सोर्स राष्ट्रव्यापी जियो-कोडेड एड्रेसिंग सिस्टम है, जो भारत को लगभग 4 मीटर x 4 मीटर ग्रिड में विभाजित करता है और प्रत्येक ग्रिड को अक्षांश और देशांतर निर्देशांक के आधार पर एक अद्वितीय 10-वर्ण अल्फान्यूमेरिक कोड प्रदान करता है।
    • इंटरऑपरेबिलिटी: DHRUV सिस्टम सरकार, नागरिकों और निजी व्यवसाय के बीच इंटरऑपरेबल है ताकि सुरक्षित और समावेशी समाधान विकसित किए जा सकें।
    • गोपनीयता: यह सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में पते की जानकारी का सुरक्षित, सहमति-आधारित साझाकरण सुनिश्चित करता है।
  • महत्त्व
    • पता डेटा की गुणवत्ता और स्थिरता में सुधार करना।
    • सरकारी विभागों और निजी सेवाओं में निर्बाध एकीकरण सक्षम करना।
    • सहमति-आधारित डेटा साझाकरण के माध्यम से नागरिक स्वायत्तता को बढ़ावा देना और उपयोगकर्ता स्वायत्तता को बढ़ावा देना, नवाचार को बढ़ावा देना और जीवन को सुगम बनाने का समर्थन करना।
    • कल्याणकारी योजनाओं, ई-कॉमर्स सेवाओं और वित्तीय समावेशन की डिलीवरी को बेहतर बनाना।
  • आवेदन-पत्र
    • नवाचार को बढ़ावा: ध्रुव शासन, ई-कॉमर्स, लॉजिस्टिक्स और वित्तीय समावेशन जैसे प्रमुख क्षेत्रों में नवाचार को बढ़ावा देगा।
    • कुशल सेवा वितरण: यह सार्वजनिक रूप से सुलभ है और आपातकालीन प्रतिक्रिया, लॉजिस्टिक्स दक्षता एवं नागरिक सेवा वितरण में सुधार का समर्थन करता है।
    • आपातकालीन प्रतिक्रिया: जियो कोडेड एड्रेसिंग सिस्टम एंबुलेंस सेवा, अग्नि बचाव सेवा जैसी तत्काल और त्वरित आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रदान करने के लिए विशेष रूप से उपयोगी होगा।
    • लॉजिस्टिक्स: ध्रुव देश में लॉजिस्टिक्स की अड़चन को सुधारने में मदद करेगा।

डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI)

  • यह सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा आवश्यक सार्वजनिक सेवाओं का समर्थन करने और डिजिटल अर्थव्यवस्था के विकास का समर्थन करने तथा व्यक्तियों, व्यवसायों एवं सरकार के मध्य निर्बाध वार्ता को सक्षम करने के लिए प्रदान की जाने वाली मूलभूत डिजिटल प्रणालियों और सेवाओं को संदर्भित करता है।
  • स्तंभ: भारत ने अपने इंडिया स्टैक प्लेटफॉर्म के साथ DPI के तीन आधारभूत स्तंभों को विकसित किया है।
  • डिजिटल पहचान: यह स्तंभ नागरिकों को एक अद्वितीय डिजिटल पहचान प्रदान करता है, जिससे विभिन्न प्रणालियों और सेवाओं में प्रमाणीकरण एवं सत्यापन की सुविधा मिलती है।
    • उदाहरण: भारत में आधार।
  • भुगतान: यह स्तंभ सुरक्षित और कुशल डिजिटल भुगतान को सक्षम बनाता है, जिससे व्यक्तियों, व्यवसायों और सरकार के बीच लेन-देन की सुविधा मिलती है।
    • उदाहरण: भारत में एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI)।
  • डेटा एक्सचेंज: यह स्तंभ विभिन्न प्रणालियों और संस्थाओं के बीच सूचनाओं के सुरक्षित तथा त्वरित आदान-प्रदान की सुविधा प्रदान करता है।
    • उदाहरण: डिजिलॉकर।

संदर्भ 

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय (Ministry of Education-MoE) ने राज्यों से सरकारी स्कूलों में नामांकन में कमी में वृद्धि के लिए ‘उपचारात्मक कदम’ उठाने को कहा है।

  • वर्ष 2025-26 के लिए समग्र शिक्षा योजना के अंतर्गत वार्षिक कार्य योजना और बजट पर विचार करने के लिए प्रत्येक राज्य के साथ परियोजना अनुमोदन बोर्ड (Project Approval Board- PAB) की बैठकों में छात्रों के नामांकन पर चर्चा की गई।

स्कूल नामांकन प्रवृत्ति के बारे में

  • नामांकन: UDISE+ 2023-24 रिपोर्ट के अनुसार,
    • कुल: शैक्षणिक वर्ष 2023-24 में कुल 24.8 करोड़ छात्र नामांकित हुए।
    • सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल: कुल स्कूल नामांकन में इनका योगदान 65% से अधिक रहा और इनमें क्रमशः 19.89 मिलियन (13.8%) और 4.95 मिलियन (16.41%) की उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई।
    • निजी स्कूल: UDISE+ 2023-24 रिपोर्ट से पता चलता है कि निजी स्कूलों में नामांकन 36 प्रतिशत (लगभग 9 करोड़ से थोड़ा अधिक) है और उनके कुल नामांकन में 1.61 मिलियन या 2.03% की वृद्धि हुई है।
  • राज्यवार प्रवृत्ति: 30 राज्यों में से 11 में सरकारी स्कूलों की अधिक संख्या के बावजूद निजी स्कूलों में नामांकन में वृद्धि या उच्चतर वृद्धि देखी गई।
    • ये राज्य हैं, आंध्र प्रदेश, उत्तराखंड, तेलंगाना, तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र, मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश और मेघालय।
  • केंद्रशासित प्रदेश: अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह, दिल्ली, लद्दाख, पुडुचेरी तथा दादरा और नगर हवेली एवं दमन और दीव में सरकारी स्कूलों की तुलना में निजी स्कूलों में नामांकन अधिक है, जो चिंता का विषय है।
  • कारण
    • डेटा संग्रह अभ्यास: महाराष्ट्र और केरल जैसे राज्यों द्वारा नामांकन में कमी का श्रेय डेटा संग्रह अभ्यास में सुधार को दिया जाता है, जिसमें आधार संख्या को नामांकन के साथ जोड़कर कई नामांकनों को समाप्त किया जाता है।
    • जनसांख्यिकीय परिवर्तन: भारत की स्कूल जाने वाली आबादी (6-17 वर्ष) में पिछले दशक में 17.30 मिलियन (5.78%) की गिरावट देखी गई है।
      • प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर नामांकन से संबंधित जनसंख्या में गिरावट क्रमशः 18.7 मिलियन (9.12%) और 2.17 मिलियन (4.35%) कम हुई है।
    • स्कूलों में गिरावट: देश में स्कूलों की संख्या में भी 79,109 की गिरावट आई है, जो वर्ष 2017-18 में 1.55 मिलियन से घटकर वर्ष 2023-14 में 1.47 मिलियन हो गई है, अर्थात् 5.1% की गिरावट।
    • कोविड-19 महामारी के बाद पलायन: कोविड-19 महामारी के बाद छात्रों की सरकारी स्कूलों से निजी स्कूलों की ओर पलायन की प्रवृत्ति देखी गई है।
  • सरकारी स्कूलों में नामांकन में गिरावट के निहितार्थ
    • सामाजिक असमानता में वृद्धि: नामांकन में कमी से हाशिए पर स्थित समुदायों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जिससे शैक्षिक अंतराल बढ़ सकता है।
    • उच्च शिक्षा पर प्रभाव: प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर नामांकन में कमी, स्वाभाविक रूप से उच्च शिक्षा को प्रभावित करेगी, क्योंकि कम युवा उच्च शिक्षा प्राप्त करेंगे।
    • शिक्षा तक पहुँच: नामांकन में कमी से वंचित बच्चों के लिए शिक्षा तक पहुँच सीमित हो जाएगी और मौजूदा असमानताएँ बढ़ जाएँगी।
    • जनसांख्यिकीय आपदा: अशिक्षित जनसंख्या भारत के लिए जनसांख्यिकीय आपदा सिद्ध होगी क्योंकि यह प्रौद्योगिकी और नवाचार आधारित विकास को सीमित कर देगी।
  • नामांकन बढ़ाने के लिए सरकारी पहल
    • शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) अधिनियम: RTE के तहत 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा अनिवार्य है।
    • लड़कियों की शिक्षा: प्राथमिक स्तर पर लड़कियों की शिक्षा के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (National Programme for Education of Girls at Elementary Level- NPEGEL) और बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ कार्यक्रम भी नामांकन बढ़ाने में योगदान देते हैं।
    • मध्याह्न भोजन योजना: इसे पोषण की कमी की दोहरी समस्या को दूर करने और छात्रों को स्कूल की ओर आकर्षित करने के लिए शुरू किया गया था।

समग्र शिक्षा योजना

  • अंब्रेला योजना: इसे वर्ष 2018 में सर्व शिक्षा अभियान (Sarva Shiksha Abhiyan- SSA), राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (Rashtriya Madhyamik Shiksha Abhiyan- RMSA) और शिक्षक शिक्षा (Teacher Education-TE) जैसी पिछली योजनाओं को शामिल करते हुए लॉन्च किया गया था।
  • यह भारत में एक एकीकृत शिक्षा कार्यक्रम है, जो प्री-स्कूल से लेकर कक्षा 12 तक स्कूली शिक्षा के सभी स्तरों को शामिल करता है और राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy- NEP) 2020 की सिफारिशों के अनुरूप है।
  • उद्देश्य: सभी बच्चों को समावेशी और समान गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना।
  • वित्त पोषण: इस योजना को केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा 60:40 के अनुपात में वित्तपोषित किया जाता है।

संदर्भ

महालेखा नियंत्रक (Controller General of Accounts- CGA) द्वारा जारी अनंतिम आँकड़ों के अनुसार, भारत सरकार ने वित्त वर्ष 2024-25 के लिए सकल घरेलू उत्पाद के 4.8% के अपने राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को सफलतापूर्वक पूरा किया।

संबंधित तथ्य

  • राजकोषीय घाटा लक्ष्य के अनुरूप: राजकोषीय घाटा 15.77 लाख करोड़ रुपये रहा, जो सकल घरेलू उत्पाद के 4.8% के बराबर है।
    • यह मामूली राजस्व कमी के बावजूद संशोधित अनुमानों में निर्धारित लक्ष्य के अनुरूप है।

वर्ष 2024-25 में सरकारी वित्त

  • कुल प्राप्तियाँ: केंद्र का कुल राजस्व (कर, गैर-कर और पूँजीगत प्राप्तियाँ) 30.78 लाख करोड़ रुपये रहा।
    • यह संशोधित अनुमान का 97.8% है, जो मामूली कमी दर्शाता है।

  • कुल व्यय: सरकार ने ₹46.55 लाख करोड़ खर्च किए, जो संशोधित अनुमान का 97.8% है।
    • पूँजीगत व्यय: ₹10.52 लाख करोड़ (लक्ष्य का 103.3%), परिसंपत्ति निर्माण में मजबूत निवेश को दर्शाता है।
    • राजस्व व्यय: ₹36.03 लाख करोड़ (अनुमान से 2.5% कम), इसमें वेतन, पेंशन, ब्याज भुगतान और सब्सिडी शामिल हैं।

वित्त वर्ष 2025-26 के लिए राजकोषीय घाटा लक्ष्य

  • चालू वित्त वर्ष 2025-26 के लिए सकल घरेलू उत्पाद के 4.4% के बराबर राजकोषीय घाटे का लक्ष्य।
  • यह सरकार के चालू राजकोषीय समेकन मार्ग का हिस्सा है।

राजकोषीय घाटा

  • राजकोषीय घाटे को वित्तीय वर्ष के दौरान उधार को छोड़कर कुल प्राप्तियों पर कुल व्यय की अधिकता के रूप में परिभाषित किया जाता है। 
    • यह ब्याज भुगतान सहित व्यय के वित्तपोषण के लिए सरकार की उधार आवश्यकताओं को दर्शाता है।
  • सूत्र
    • राजकोषीय घाटा = (राजस्व व्यय + पूँजीगत व्यय) – (राजस्व प्राप्तियाँ + उधार को छोड़कर पूँजीगत प्राप्तियाँ)
  • भावी देयताओं का सूचक: यह ब्याज भुगतान और ऋण चुकौती पर सरकार की भावी देयताओं में वृद्धि का सूचक है।

उच्च राजकोषीय घाटे के निहितार्थ

  • मुद्रास्फीति का दबाव: सरकारें, केंद्रीय बैंक से उधार लेकर घाटे का वित्तपोषण कर सकती हैं, जिससे मुद्रा आपूर्ति बढ़ जाती है।
    • इससे माँग आधारित मुद्रास्फीति सृजित हो सकती है, विशेषतः अगर अर्थव्यवस्था पूर्ण क्षमता के करीब हो।
  • उच्च ब्याज दरें (क्राउडिंग आउट प्रभाव): सरकारी उधार वित्तीय बाजार में धन के लिए निजी क्षेत्र के साथ प्रतिस्पर्द्धा करता है।
    • इससे ब्याज दरें बढ़ सकती हैं, निजी निवेश हतोत्साहित हो सकता है और आर्थिक विकास धीमा हो सकता है।
  • ऋण का बोझ: निरंतर राजकोषीय घाटे से सार्वजनिक ऋण का संचय होता है।
    • इस ऋण (ब्याज भुगतान) की सेवा करने में भविष्य के बजट का एक बड़ा हिस्सा खर्च हो जाता है, जिससे उत्पादक खर्च के लिए राजकोषीय स्थान कम हो जाता है।
  • मुद्रा अवमूल्यन: उच्च राजकोषीय घाटे से आर्थिक स्थिरता के संबंध में चिंताएँ पैदा हो सकती हैं।
    • इससे विदेशी निवेशक बाहर निकल सकते हैं, जिससे मुद्रा का अवमूल्यन हो सकता है तथा आयात महंगा होने से मुद्रास्फीति बढ़ सकती है।
  • आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करना (कीनेसियन दृष्टिकोण): मंदी के दौरान, राजकोषीय घाटा प्रति-चक्रीय हो सकता है, जिससे सरकारी खर्च के माध्यम से माँग को बढ़ावा मिलता है।
    • इससे आर्थिक गतिविधियों को पुनर्जीवित करने, रोजगार सृजित करने और आय बढ़ाने में मदद मिल सकती है।

राजकोषीय घाटे के वित्तपोषण के सामान्य तरीके

  • घरेलू स्रोतों से उधार लेना
    • बाजार उधार: सरकारी बॉण्ड, ट्रेजरी बिल जारी करना।
    • बैंक और वित्तीय संस्थान: सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों या विकास बैंकों से ऋण।
  • बाहरी स्रोतों से उधार लेना
    • बहुपक्षीय और द्विपक्षीय एजेंसियाँ: विश्व बैंक, IMF, एशियाई विकास बैंक।
    • विदेशी सरकारें और बाजार: सॉवरेन बॉण्ड या ऋण।
  • घाटे का मुद्रीकरण
    • केंद्रीय बैंक से उधार लेना: भारतीय रिजर्व बैंक सरकारी प्रतिभूतियाँ खरीदने के लिए धन का मुद्रण करता है।
    • इससे मुद्रा आपूर्ति बढ़ जाती है और मुद्रास्फीति हो सकती है।
  • लघु बचत और सार्वजनिक भविष्य निधि (PPF): सरकार राष्ट्रीय बचत प्रमाण-पत्र जैसी योजनाओं के माध्यम से नागरिकों की बचत से उधार लेती है।

राजकोषीय समेकन का महत्त्व

  • सतत् सार्वजनिक वित्त सुनिश्चित करना: राजकोषीय घाटे-से-जीडीपी अनुपात को धीरे-धीरे कम करने से आर्थिक स्थिरता बनाए रखने में मदद मिलती है और यह सुनिश्चित होता है कि सार्वजनिक वित्त सतत् बना रहे।
    • यह अत्यधिक उधार लेने और ऋण संचय को रोकता है, जो भविष्य की आर्थिक स्थिति को खतरे में डाल सकता है।
  • विवेकपूर्ण राजकोषीय नीतियों को लागू करना: प्रभावी राजकोषीय प्रबंधन में व्यय को युक्तिसंगत बनाना, राजस्व वृद्धि के उपाय और सब्सिडी सुधार शामिल हैं।
    • ये कार्य उधार पर निर्भरता को कम करने और राजकोषीय असंतुलन को दूर करने में मदद करते हैं, जिससे अधिक संतुलित और सतत् बजट को बढ़ावा मिलता है।
  • निवेशकों का विश्वास बढ़ाना: राजकोषीय प्रबंधन के प्रति अनुशासित दृष्टिकोण निवेशकों का विश्वास बढ़ाता है।
    • कम राजकोषीय घाटा और स्थिर ऋण स्तर राजकोषीय जिम्मेदारी के प्रति प्रतिबद्धता का संकेत देते हैं, जिससे देश घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों निवेशकों के लिए अधिक आकर्षक बन जाता है।

राजकोषीय घाटा प्रबंधन से संबंधित सरकारी पहल

  • राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम (FRBM अधिनियम), 2003:
    • परिचय: FRBM अधिनियम राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए वित्तीय अनुशासन स्थापित करता है। इसका उद्देश्य राजकोषीय घाटे का प्रबंधन करना और व्यापक आर्थिक स्थिरता बनाए रखना है।
    • FRBM अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ
      • मध्यम अवधि राजकोषीय नीति वक्तव्य: यह तीन वर्षों के लिए बजट घाटे के आकार की सीमाएँ निर्धारित करता है तथा कर और गैर-कर प्राप्तियों के लिए लक्ष्य निर्धारित करता है।
      • यह केंद्र के वार्षिक राजकोषीय घाटे के अनुपात (FDR) के लिए सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 3% लक्ष्य निर्धारित करता है।
      • राज्यों को अपने स्वयं के FRBM अधिनियम का निर्माण करना पड़ा, जिससे राज्य के FD को उसके स्वयं के GDP के 3% तक सीमित किया जा सके।
  • FRBM समीक्षा समिति की रिपोर्ट (अध्यक्ष: एन.के. सिंह)
    • प्राथमिक लक्ष्य के रूप में ऋण: समिति ने राजकोषीय नीति के लिए प्राथमिक लक्ष्य के रूप में ऋण का उपयोग करने का सुझाव दिया।
    • GDP अनुपात के लिए ऋण: FRBM समीक्षा समिति की रिपोर्ट ने वर्ष 2023 तक सामान्य (संयुक्त) सरकार के लिए GDP अनुपात हेतु ऋण की सिफारिश की है, जिसमें केंद्र सरकार के लिए 40% और राज्य सरकारों के लिए 20% शामिल है।
    • RBI से उधार लेना: समिति के सुझावों के अनुसार, सरकार को RBI से उधार नहीं लेना चाहिए, सिवाय इसके कि:-
      • केंद्र को प्राप्तियों में अस्थायी कमी को पूरा करना है।
      • RBI किसी भी विचलन को वित्तपोषित करने के लिए सरकारी प्रतिभूतियों की सहायता लेता है।
      • RBI द्वितीयक बाजार से सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद करता है।
    • राजकोषीय परिषद: समिति ने केंद्र द्वारा नियुक्त एक अध्यक्ष और दो सदस्यों के साथ एक स्वायत्त राजकोषीय परिषद बनाने का प्रस्ताव रखा। 
    • विचलन: समिति ने अवलोकित किया कि FRBM अधिनियम के तहत, सरकार राष्ट्रीय आपदा, राष्ट्रीय सुरक्षा या इसके द्वारा अधिसूचित अन्य असाधारण परिस्थितियों के मामले में लक्ष्यों से विचलित हो सकती है।

संदर्भ

विदेश मंत्री (External Affairs Minister- EAM) ने 20वें BIMSTEC मंत्रिस्तरीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए एक नई विश्व व्यवस्था के उद्भव पर प्रकाश डाला, जो एक क्षेत्रीय एजेंडा द्वारा संचालित है।

बहुक्षेत्रीय तकनीकी एवं आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी पहल (BIMSTEC) के बारे में

  • यह एक क्षेत्रीय संगठन है, जो बंगाल की खाड़ी के आस-पास के देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देता है
  • स्थापना: बिम्सटेक की स्थापना वर्ष 1997 में बैंकॉक घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर के साथ हुई थी।
  • सदस्य: इसमें दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के सात सदस्य देश शामिल हैं, अर्थात्,
    • बांग्लादेश, भूटान, भारत, म्याँमार, नेपाल, श्रीलंका और थाईलैंड।
  • सचिवालय: BIMSTEC सचिवालय की स्थापना ढाका, बांग्लादेश में की गई।
  • बहुक्षेत्रीय सहयोग: व्यापार, प्रौद्योगिकी, ऊर्जा, परिवहन, पर्यटन, मत्स्य पालन, कृषि आदि।

उभरती विश्व व्यवस्था के बारे में

  • “उभरती विश्व व्यवस्था” एक जटिल और गतिशील वैश्विक प्रणाली द्वारा चिह्नित अवधि को संदर्भित करती है, जिसमें वैश्विक राजनीतिक विचार और शक्ति संतुलन से संबंधित कई उभरते परिवर्तन शामिल हैं।
  • विशेषताएँ
    • बहुध्रुवीयता: उभरती हुई विश्व व्यवस्था एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था है, जिसमें कई शक्ति केंद्र अपनी स्वायत्तता और प्रभाव का दावा करते हैं।
      • उदाहरण: क्षेत्रीय शक्तियों का उदय और ब्रिक्स, अफ्रीकी संघ, आसियान आदि जैसे ब्लॉकों का गठन।

विश्व व्यवस्था के बारे में

  • यह शक्ति और अधिकार आधारित व्यवस्था को संदर्भित करती है, जो वैश्विक रूप से सामान्य समस्याएँ, जैसे- पर्यावरण, व्यापार, सुरक्षा और मानवाधिकारों के प्रबंधन तथा वैश्विक स्तर पर कूटनीति एवं विश्व राजनीति के संचालन के लिए रूपरेखा प्रदान करता है।
  • इसमें मानदंड, नियम, संस्थाएँ और शक्ति की गतिशीलता शामिल है, जो वैश्विक मंच पर देशों और अन्य संस्थाओं के व्यवहार और अंतःक्रियाओं को आकार देती है।
  • आधुनिक इतिहास में विश्व व्यवस्था के उदाहरण
    • वेस्टफेलियन विश्व व्यवस्था; अंतर विश्वयुद्ध वैश्विक व्यवस्था; WW-2 के बाद की विश्व व्यवस्था; शीतयुद्ध के बाद की विश्व व्यवस्था।

    • बहुसंकट: जलवायु परिवर्तन, महामारी, आतंकवाद, युद्ध और संघर्ष तथा आर्थिक संकट जैसी साझा वैश्विक चुनौतियाँ राष्ट्रों के बीच अधिक सहयोग और सहभागिता की आवश्यकता वाली निर्णायक विशेषताएँ होंगी।
    • आत्मनिर्भरता: प्रत्येक देश और क्षेत्र को भोजन, ईंधन, उर्वरक, प्रौद्योगिकी, टीके या त्वरित आपदा प्रतिक्रिया आदि के लिए स्वयं पर निर्भर रहने की आवश्यकता होगी।
      • उदाहरण: भारत ने अमेरिका और यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों के बावजूद रूस से सस्ती दर पर कच्चा तेल प्राप्त किया।
    • विभूमंडलीकरण: विभूमंडलीकरण की ओर ले जाने वाली शक्तियाँ पश्चिमी दुनिया द्वारा अपनाई गई अधिक राष्ट्रवादी और अंतर्मुखी नीतियों में स्वयं को प्रकट करते हुए मजबूत होती जा रही हैं।
      • उदाहरण: अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत सहित कई देशों पर टैरिफ व्यापार युद्ध की घोषणा की (26 प्रतिशत टैरिफ का सामना करना पड़ रहा है)।
    • मिनीलेटरलिज्म का उदय (Rise of Minilateralism): यह एक कूटनीतिक दृष्टिकोण है, जिसमें देशों का एक छोटा समूह विशिष्ट मुद्दों या चुनौतियों पर सहयोग करता है, साझा हितों और लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करता है, जिससे तेजी से निर्णय लेने एवं अधिक कुशल परिणाम प्राप्त करने की अनुमति प्राप्त होती है।
      • उदाहरण: भारत क्वाड में पश्चिमी शक्तियों के साथ और शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation Organisation- SCO) में प्रतिद्वंद्वी एशियाई शक्तियों के साथ सहयोग कर रहा है।
    • क्षेत्रीय भू-राजनीति पर ध्यान केंद्रित करना: उभरती हुई विश्व व्यवस्था क्षेत्रीय भू-राजनीति के विकास पर जोर देती है, जिससे क्षेत्रीय लाभ सुरक्षित होते हैं।
      • उदाहरण: क्षेत्रीय सहयोग और कनेक्टिविटी को बढ़ाने में अफ्रीकी संघ और आसियान की सफलता समग्र विकास को सक्षम बनाती है।
    • ‘साइबरस्पेस संप्रभुता (Cyberspace Sovereignty)’ का विस्तार: इंटरनेट और साइबरस्पेस, जो कभी अमेरिकी नेतृत्व वाले नियमों द्वारा नियंत्रित था, अब अधिक विकेंद्रीकृत हो रहा है, क्योंकि चीन जैसे देश साइबरस्पेस संप्रभुता पर अपना दावा कर रहे हैं।

उभरती विश्व व्यवस्था में भारत की भूमिका

  • दक्षिण का स्वीकार्य नेता भारत, 21वीं सदी की उभरती विश्व व्यवस्था में, जिसे एशियाई युग कहा जाता है, एक बड़ी वैश्विक भूमिका निभाने के लिए उस भूमिका से आगे बढ़ रहा है।
  • वैश्विक मंच पर भारत के उदय को आकार देने वाली विशेषताएँ
    • लोकतंत्र: भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, जो प्रकृति में गैर-पश्चिमी है और मुक्त बाजार पर आधारित है।
    • आर्थिक उन्नति: भारत अब GDP के मामले में दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जिसने अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी अभिव्यक्ति को महत्त्वपूर्ण आर्थिक शक्ति प्रदान की है।
    • युवा जनसांख्यिकी: भारत अपनी बड़ी युवा कामकाजी आयु वाली आबादी के साथ अपने जनसांख्यिकीय लाभांश का लाभ उठाता है।
    • भौगोलिक स्थिति: भारत अटलांटिक को प्रशांत से जोड़ने वाले वैश्विक वाणिज्य के केंद्र में स्थित है।
  • भारत के लिए अवसर
    • वैश्विक दक्षिण का नेतृत्व: भारत को अपने समावेशी, सहभागी और समानता आधारित नेतृत्व के साथ वैश्विक दक्षिण के नेतृत्वकर्ता के रूप में माना जा रहा है। 
      • उदाहरण: भारत ने वैश्विक दक्षिण के लिए अपने नए दृष्टिकोण की घोषणा की है, जिसका नाम ‘महासागर’ है, जो वैश्विक दक्षिण तक विस्तृत एक सुरक्षित, संरक्षित और स्थिर समुद्री क्षेत्र के निर्माण पर केंद्रित है।
    • जुड़ाव: भारत ने हमेशा अन्य शक्तियों के साथ अपने जुड़ाव में रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखी है।
      • उदाहरण: विदेश मंत्री ने भारत की नीति को “अमेरिका को शामिल करना, चीन को प्रबंधित करना, यूरोप को बढ़ावा देना, रूस को आश्वस्त करना, जापान के साथ सामरिक संबंध स्थापित करना, पड़ोसियों को शामिल करना, पड़ोस का विस्तार करना और समर्थन के पारंपरिक क्षेत्रों का विस्तार करना” के रूप में स्पष्ट किया।
    • डिजिटल नेतृत्व: UPI; कोविन; आधार पारिस्थितिकी तंत्र आदि जैसे अपने डिजिटल शासन प्लेटफॉर्मों के साथ भारत वैश्विक दक्षिण को डिजिटल नेतृत्व प्रदान कर सकता है।
      • उदाहरण: NPCI ने UPI ग्लोबल एक्सेप्टेंस नामक एक सुविधा शुरू की है, जो उपयोगकर्ताओं को चुनिंदा अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक स्थानों पर क्यूआर कोड-आधारित भुगतान करने की अनुमति देती है।
    • शांति स्थापना: भारत को बड़े पैमाने पर संघर्ष के दौरान शांति स्थापना की भूमिका निभाने का अवसर प्रदान किया जाएगा।
      • उदाहरण: भारत ने रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान युद्धग्रस्त क्षेत्र से अपने नागरिकों को निकालने के लिए समन्वय किया।
    • प्रथम प्रतिक्रियाकर्ता और सुरक्षा नेतृत्व: भारत को समुद्री डकैती, तस्करी, दुर्घटनाओं आदि के विरुद्ध पूरे हिंद महासागर और इंडो पैसिफिक क्षेत्र में सुरक्षा नेतृत्व प्रदान करने के रूप में देखा जाता है।
    • क्षेत्रीय एकीकरण: भारत व्यापार, यात्रा और कनेक्टिविटी के माध्यम से दक्षिण एशिया, इंडो पैसिफिक परिदृश्य को एकीकृत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
      • उदाहरण: त्रिपक्षीय राजमार्ग (भारत, म्याँमार और थाईलैंड) भारत के पूर्वोत्तर को प्रशांत महासागर से जोड़ेगा।
  • भारत के लिए चुनौतियाँ
    • विवैश्वीकरण: पश्चिमी दुनिया के साथ बढ़ते व्यापार तनाव और विश्व व्यापार संगठन तथा संयुक्त राष्ट्र जैसी वैश्विक संस्थाओं के कमजोर होने से भारत के विकास एवं राष्ट्रीय हित बाधित हो रहे हैं।
    • वैश्विक शक्तियों को संतुलित करना: भारत को अमेरिका और चीन, रूस जैसी प्रतिस्पर्द्धी वैश्विक शक्तियों के साथ अपने जटिल संबंधों को संतुलित करने की आवश्यकता है, साथ ही अपने स्वयं के रणनीतिक हितों को भी प्राथमिकता देनी होगी।
      • उदाहरण: रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान रूस के साथ जुड़ाव के कारण भारत पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
    • अस्थिर पड़ोस: भारत को राजनीतिक रूप से अस्थिर, आर्थिक रूप से ऋणग्रस्त, संघर्ष प्रवण पड़ोस से निपटना पड़ता है।
      • उदाहरण: बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के हटने से दोनों देश के साथ संबंधों में खटास आई है।
    • जलवायु न्याय नेतृत्व: जलवायु परिवर्तन से निपटने के साथ-साथ अपनी आर्थिक वृद्धि सुनिश्चित करने की भारत की क्षमता पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि विकसित देश जलवायु वित्त दायित्वों को पूरा करने के अनिच्छुक हैं।
    • चीनी प्रतिस्पर्द्धा: इस नई विश्व व्यवस्था में भारत आर्थिक और तकनीकी रूप से सशक्त चीन के साथ सीधे प्रतिस्पर्द्धा में है।
      • उदाहरण: चीन की ऋण जाल नीति भारत के पड़ोसी देशों को भी अपनी गिरफ्त में ले रही है।
    • आर्थिक अनिश्चितताएँ: संकटों और आर्थिक अस्थिरता के कारण वैश्विक व्यापार में व्यवधान भारत के निर्यात और आर्थिक वृद्धि को प्रभावित कर सकता है।

विश्व व्यवस्था को आकार देने में बहुपक्षीय संस्थाओं की भूमिका

  • संरक्षणवाद को रोकना: बहुपक्षीय संस्थाएँ अंतरराष्ट्रीय मानदंड, कानून और प्रक्रियाएँ स्थापित करती हैं तथा उन्हें लागू करती हैं, जिससे अराजकता एवं संरक्षणवाद कम होता है।
  • विवाद समाधान तंत्र: बहुपक्षीय संस्थाएँ विवाद समाधान के लिए तंत्र प्रदान करती हैं और व्यापार एवं सुरक्षा नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करती हैं, जिससे अधिक पूर्वानुमानित और शांतिपूर्ण अंतरराष्ट्रीय वातावरण के निर्माण में योगदान मिलता है।
    • उदाहरण: WTO विवाद समाधान तंत्र।
  • वार्ता को सुविधाजनक बनाना: अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक जैसी ये संस्थाएँ पारस्परिक रूप से लाभकारी समाधान खोजने के लिए ऋण वार्ता में मध्यस्थ के रूप में कार्य करती हैं।
  • मानक और दिशा-निर्देश निर्धारित करना: बहुपक्षीय संस्थाएँ अंतरराष्ट्रीय वार्ता के सभी पहलुओं जैसे- व्यापार कानून, सांस्कृतिक कानून, जलवायु नीति, मानवाधिकार आदि के लिए दिशा-निर्देश और मानक निर्धारित करती हैं।
    • उदाहरण: व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (United Nations Conference on Trade and Development – UNCTAD) द्वारा विकसित उत्तरदायी संप्रभु ऋण और उधार के सिद्धांत।
  • मानवीय सहायता: बहुपक्षीय मानवीय अभियान प्राकृतिक आपदाओं और मानव निर्मित आपात स्थितियों के पीड़ितों की सहायता करते हैं।

निष्कर्ष

भारत की वर्तमान आर्थिक प्रगति और भविष्य के रणनीतिक सुधारों के साथ-साथ इसकी उभरती जनसांख्यिकी तथा मजबूत लोकतंत्र अपने सहयोगी दृष्टिकोण के माध्यम से भारत को नई विश्व व्यवस्था को आकार देने में मदद करेंगे।

संदर्भ 

ऑपरेशन सिंदूर भारत और पाकिस्तान के बीच प्रत्यक्ष सैन्य युद्ध में स्वायत्त हवाई प्रणालियों के प्रथम प्रमुख प्रयोग का प्रतीक था।

ऑटोनोमस वारफेयर   (Autonomous Warfare) के बारे में

  • परिभाषा: ऑटोनोमस वारफेयर  में मानवरहित प्रणालियों (ड्रोन, रोबोट, युद्ध सामग्री) का प्रयोग शामिल होता है, जो बिना किसी प्रत्यक्ष मानव नियंत्रण के संचालित हो सकते हैं।
  • मुख्य घटक
    • मानव रहित हवाई प्रणाली (Unmanned Aerial Systems-UAS): निगरानी, ​​हमला और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध के लिए उपयोग किए जाने वाले ड्रोन।
    • लोइटरिंग म्यूनिशन (Loitering Munitions): ड्रोन जो लक्ष्य मिलने तक हवा में विचरण करते रहते हैं और फिर हमला करते हैं।
    • स्वार्म ड्रोन (Swarm Drones): दुश्मन की सुरक्षा को ध्वस्त करने के लिए समन्वय में कार्य करने वाले कई ड्रोन।
    • AI-आधारित लक्ष्यीकरण: ये प्लेटफॉर्म स्वतंत्र रूप से या अर्द्ध-स्वतंत्र रूप से लक्ष्यों को नेविगेट करने, पहचानने और संलग्न करने के लिए AI और एल्गोरिदम का उपयोग करते हैं।
  • ऑटोनोमस वारफेयर  को संचालित करने वाली अन्य प्रमुख प्रौद्योगिकियाँ
    • कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence-AI) और मशीन लर्निंग स्वायत्त प्रणालियों को सक्षम बनाती है:
      • जटिल वातावरण में नेविगेट करना।
      • लक्ष्यों की पहचान करना, उन्हें ट्रैक करना और प्राथमिकता देना।
      • मानवीय इनपुट के बिना निर्णय लेना।
      • वास्तविक समय के खतरे के विश्लेषण, अनुकूली मिशन योजना और समूह समन्वय के लिए उपयोग किया जाता है।
    • इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर (EW) सिस्टम: दुश्मन के सेंसर और संचार को बाधित या धोखा देना।
      • इसमें शामिल हैं:
        • सुरक्षा बलों को धोखा देने के लिए नकली ड्रोन।
        • दुश्मन के सिस्टम को गुमराह करने के लिए सिग्नल जैमिंग और स्पूफिंग।
        • नेटवर्क को निष्क्रिय करने के लिए साइबर पेलोड।
    • रियल टाइम डेटा नेटवर्क और युद्ध प्रबंधन प्रणाली
      • उदाहरण: एकीकृत युद्ध प्रबंधन प्रणाली (Integrated Battle Management System-IBMS), एकीकृत वायु कमान और नियंत्रण प्रणाली (Integrated Air Command and Control System-IACCS)
      • ड्रोन, सेंसर, कमांड सेंटर और स्ट्राइक एसेट्स को वास्तविक समय में लिंक करना।
      • गतिशील लक्ष्यीकरण, समन्वित हमले और साझा स्थितिजन्य जागरूकता को सक्षम बनाता है।
    • निर्देशित ऊर्जा हथियार (Directed Energy Weapons-DEWs): ड्रोन और आने वाले खतरों को निष्क्रिय करने के लिए उच्च शक्ति वाले लेजर या माइक्रोवेव का उपयोग करना।
    • स्वायत्त भूमि और नौसेना प्रणाली (उभरती हुई): स्वायत्त टैंक, मानव रहित भूमि वाहन (Unmanned Ground Vehicles-UGVs) और मानव रहित सतह पोत (Unmanned Surface Vessels-USVs) विकास के अधीन हैं।
  • आधुनिक युद्धक्षेत्र भूमिका
    • निगरानी और टोही (ISR)
    • लक्ष्य प्राप्ति (Target acquisition)
    • इलेक्ट्रॉनिक युद्ध (Electronic warfare)
    • प्रत्यक्ष हमला मिशन (Direct strike missions)।

ऑटोनोमस वारफेयर  की नैतिक चुनौतियाँ

  • मानवीय निर्णय और नैतिक एजेंसी का नुकसान: स्वायत्त हथियारों (जैसे- ड्रोन या रोबोट सैनिक) में चेतना की कमी होती है और वे नैतिक निर्णय नहीं ले सकते हैं।
    • युद्ध में नैतिक निर्णय (जैसे- लड़ाकों को नागरिकों से अलग करना) के लिए अक्सर सहानुभूति, संदर्भ और विवेक की आवश्यकता होती है, जो गुण मशीनों में स्वाभाविक रूप से नहीं होते हैं।
  • युद्ध का अमानवीयकरण: स्वचालन निर्णय लेने वालों और लड़ाकों को हिंसा के प्रति असंवेदनशील बना सकता है।
    • हत्या की मनोवैज्ञानिक लागत में कमी यूक्रेन-रूस संघर्ष में स्पष्ट है।
  • उत्तरदायित्व अंतराल: यदि कोई स्वायत्त प्रणाली युद्ध अपराध करती है या मानवीय मानदंडों का उल्लंघन करती है, तो नैतिक रूप से कौन जिम्मेदार है? प्रोग्रामर, कमांडर, निर्माता या स्वयं AI?
  • पूर्वाग्रह और भेदभाव: AI सिस्टम अपने प्रशिक्षण डेटा या डिजाइन से पूर्वाग्रहों को विरासत में ले सकते हैं या बढ़ा सकते हैं, जिससे कुछ समूहों को असंगत नुकसान हो सकता है।

ऑटोनोमस वारफेयर  की कानूनी चुनौतियाँ

  • अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून (International Humanitarian Law-IHL) का अनुपालन
    • स्वायत्त हथियारों को निम्नलिखित सिद्धांतों का पालन करना होगा:
      • भेद: लड़ाकों और नागरिकों के बीच।
      • आनुपातिकता: सैन्य लाभ के संबंध में नागरिकों को होने वाला नुकसान अत्यधिक नहीं होना चाहिए।
      • सैन्य आवश्यकता: बल का प्रयोग वैध सैन्य उद्देश्यों द्वारा उचित ठहराया जाना चाहिए।
      • सावधानी: नागरिकों को होने वाले नुकसान से बचने या उसे कम करने के लिए सभी संभव कदम उठाए जाने चाहिए।
    • अभी यह स्पष्ट नहीं है कि स्वायत्त प्रणालियाँ इन मानकों को विश्वसनीय रूप से पूरा कर पाएँगी या नहीं।
  • जवाबदेही और कानूनी जिम्मेदारी: स्वायत्त प्रणालियों द्वारा गैर-कानूनी कृत्यों के लिए कानूनी जिम्मेदारी निर्धारण के लिए कोई स्पष्ट ढाँचा मौजूद नहीं है।
  • विनियमन और संधि कानून का अभाव: कोई व्यापक अंतरराष्ट्रीय संधि स्वायत्त हथियार प्रणालियों (AWS) को नियंत्रित नहीं करती है।

भारत की ड्रोन क्षमताएँ

  • भारत ने व्यापक रेंज के UAS तैनात किए
    • ISR ड्रोन: TAPAS-BH-201 (रुस्तम-II), हेरॉन MK-II
    • लोइटरिंग म्यूनिशन: नागास्त्र-1 (Nagastra-1), इजरायली हारोप (Israeli Harop)
    • स्वार्म ड्रोन: रडार स्पूफिंग और नेटवर्क संतृप्ति के लिए उपयोग किया जाता है।
    • माइक्रो/क्वाडकॉप्टर (Micro/Quadcopters): एकीकृत युद्ध प्रबंधन प्रणाली (IBMS) के माध्यम से वास्तविक समय लक्ष्यीकरण के लिए।

ऑटोनोमस वारफेयर  में निजी क्षेत्र की भागीदारी

  • भारतीय निजी कंपनियाँ अब स्वायत्त और AI-संचालित सैन्य प्रौद्योगिकियों के विकास में केंद्रीय भूमिका निभा रही हैं, जो पहले उनकी सहायक भूमिका से आगे बढ़ रही हैं।
  • ड्रोन क्रांति
    • आइडियाफोर्ज ने स्विच यूएवी (SWITCH UAV) और नेत्रा वी2 (NETRA V2) जैसे निगरानी और टोही ड्रोन विकसित किए हैं।
    • अल्फा डिजाइन ने स्काईस्ट्राइकर (SkyStriker) नामक एक सटीक हमला करने वाला ड्रोन बनाने के लिए इजरायल के एल्बिट सिस्टम के साथ साझेदारी की है।
    • सोलर इंडस्ट्रीज ने नागास्त्र-1 (Nagastra-1) नामक एक लोइटरिंग म्यूनिशन सिस्टम लॉन्च किया है, नागास्त्र-2 और नागास्त्र-3 का विकास किया जा रहा है।
    • न्यूस्पेस रिसर्च भारतीय वायुसेना के लिए ड्रोन स्वार्म्स का अग्रणी है।
  • AI और स्वार्म प्रौद्योगिकी
    • 114AI और न्यूस्पेस जैसे स्टार्ट-अप AI-संचालित ड्रोन स्वार्म विकसित कर रहे हैं, जो भविष्य के ऑटोनोमस वारफेयर  का एक प्रमुख तत्त्व है।
    • ये प्रौद्योगिकियाँ कई ड्रोन को प्रत्यक्ष मानव नियंत्रण के बिना सहकारी रूप से संचालित करने की अनुमति देती हैं, जिससे मिशन की दक्षता और उत्तरजीविता बढ़ती है।
  • अंतरिक्ष आधारित स्वायत्तता: पिक्सेल (Pixxel), ध्रुव स्पेस (Dhruva Space) और दिगंतारा (Digantara) जैसी निजी कंपनियाँ अंतरिक्ष आधारित निगरानी-3 (SBS-3) कार्यक्रम में भाग ले रही हैं।
    • ये कंपनियाँ सामरिक सैन्य उपयोग के लिए उपग्रहों का सह-विकास कर रही हैं, जो स्वायत्त अंतरिक्ष आधारित रक्षा प्रणालियों के लिए एक आधारभूत कदम है।
  • सरकारी सहायता और रणनीतिक दृष्टि: PLI योजना, iDEX और विदेशी ड्रोन पर आयात प्रतिबंध जैसी नीतियों ने निजी हितधारकों को सशक्त बनाया है।
    • 550 से अधिक निजी ड्रोन फर्म अब ड्रोन फेडरेशन ऑफ इंडिया (Drone Federation of India) का हिस्सा हैं, जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक भारत को वैश्विक ड्रोन हब बनाना है।

एकीकृत वायु रक्षा एवं इलेक्ट्रॉनिक युद्ध

  • भारत का IACCS: एकीकृत वायु कमान और नियंत्रण प्रणाली
    • रडार, उपग्रह, हवाई और जमीनी डेटा को मिलाता है।
    • ड्रोन को निष्क्रिय करने के लिए निर्देशित ऊर्जा हथियारों (DEWs) का उपयोग करता है।
    • पाकिस्तान द्वारा किए गए कई व्यवधान प्रयासों से बच गया।
  • सामरिक नियंत्रण परत: UAV ट्रैकिंग और प्रतिक्रिया के लिए आकाशीर प्रणाली।
  • लीगेसी सिस्टम का उपयोग: भारत ने शीतयुद्ध युग के निम्न-स्तरीय वायु रक्षा (LLAD) प्लेटफॉर्म को रचनात्मक रूप से उन्नत किया।
    • ZSU-23-4 शिल्का, OSA-AK, पिकोरा, L/70 बोफोर्स AA गन
    • SPYDER, आकाश, बराक-8 और S-400 जैसी आधुनिक प्रणालियों के साथ एकीकृत।

ऑटोनोमस वारफेयर  के लाभ

  • पायलट को कोई जोखिम नहीं: मिशन के दौरान मानव जीवन को सीधे तौर पर कोई खतरा नहीं होता है।
  • सटीक निशाना लगाना: वास्तविक समय के डेटा और निर्देशित हमलों से होने वाली क्षति को कम करता है।
  • लगातार निगरानी: ड्रोन लंबे समय तक हवा में रह सकते हैं।
  • लागत-प्रभावी: मानवयुक्त विमान और मिसाइलों की तुलना में सस्ता है।
  • त्वरित प्रतिक्रिया: संघर्ष के क्षेत्रों या उभरते खतरों में त्वरित प्रतिक्रिया।

ऑपरेशन सिंदूर का रणनीतिक प्रभाव

  • ऑपरेशन सिंदूर ने ऑटोनोमस वारफेयर में भारत की बढ़ती क्षमता को उजागर किया, जिसमें सटीक, जोखिम-मुक्त सीमा-पार हमले किए गए हैं।
  • यह क्षेत्र में निरोध का एक नया मॉडल है, जो भारत के पक्ष में क्षेत्रीय हवाई शक्ति गतिशीलता में बदलाव का संकेत देता है।
  • भविष्य के संघर्ष सैनिकों की तुलना में एल्गोरिदम और डेटा द्वारा अधिक संचालित हो सकते हैं।

संदर्भ

वित्त मंत्रालय ने सभी केंद्र प्रायोजित योजनाओं (Centrally Sponsored Schemes-CSSs) और केंद्रीय क्षेत्रक योजनाओं (Central Sector Schemes-CSs) के लिए व्यापक समीक्षा और पुनः अनुमोदन प्रक्रिया शुरू की है।

संबंधित तथ्य

  • 1 अप्रैल, 2026 से शुरू होने वाली यह प्रमुख समीक्षा आगामी 16वें वित्त आयोग चक्र के साथ संरेखित है।
  • नीतिगत पृष्ठभूमि: वर्ष 2016 के केंद्रीय बजट में निम्नलिखित नीति पेश की गई:
    • परिणाम आधारित मूल्यांकन
    • सभी योजनाओं के लिए सनसेट क्लॉज
    • तृतीय पक्ष समीक्षा
  • इससे योजनाएँ वित्त आयोग के चक्रों के अनुरूप हो जाती हैं, जिससे जवाबदेही और बेहतर परिणाम सुनिश्चित होते हैं।

समीक्षा के उद्देश्य

  • योजना डिजाइन को पुनः निधारित करना: मंत्रालयों से आग्रह किया गया कि वे पूर्व प्रदर्शन और भविष्य की प्रासंगिकता के आधार पर योजनाओं की समीक्षा करें और उन्हें पुनः डिजाइन करें।
  • अतिरिक्तताओं को समाप्त करना: जो योजनाएँ ओवरलैप होती हैं या अब प्रभावी नहीं हैं, उनकी पहचान की जाएगी और उन्हें सुव्यवस्थित किया जाएगा।
  • योजनाओं का समावेशन या बंद करना: जिन कार्यक्रमों ने अपने लक्ष्य हासिल कर लिए हैं या जो कम प्रदर्शन कर रहे हैं, उन्हें समावेशित या बंद किया जा सकता है।
  • मूल्यांकन एजेंसियाँ
    • केंद्र प्रायोजित योजनाएँ (Centrally Sponsored Schemes-CSSs): नीति आयोग के तहत विकास निगरानी और मूल्यांकन कार्यालय (Development Monitoring and Evaluation Office-DMEO) द्वारा मूल्यांकन किया जाता है।
    • केंद्रीय क्षेत्र की योजनाएँ (CSs): संबंधित मंत्रालयों द्वारा चुनी गई तृतीय-पक्ष एजेंसियों द्वारा मूल्यांकन किया जाता है।

केंद्र प्रायोजित योजनाएँ (Centrally Sponsored Schemes-CSSs)

  • केंद्र प्रायोजित योजनाएँ (CSSs) सरकारी कार्यक्रम हैं, जो केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा संयुक्त रूप से वित्तपोषित होते हैं, लेकिन इनका कार्यान्वयन राज्यों द्वारा किया जाता है।

केंद्र प्रायोजित योजनाओं की मुख्य विशेषताएँ

  • वित्तपोषण पैटर्न: कार्यान्वयन की लागत केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच साझा की जाती है।
    • सामान्य राज्य: 60:40 (केंद्र: राज्य)
    • पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्य: 90:10
    • केंद्र शासित प्रदेश: 100% केंद्र द्वारा वित्तपोषित।
  • नीति और डिजाइन: केंद्र सरकार योजना के लिए नीतिगत रूपरेखा और दिशा-निर्देश तैयार करती है।
    • राज्य सरकारें क्रियान्वयन, स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप अनुकूलन तथा जमीनी स्तर पर निगरानी के लिए जिम्मेदार हैं।
  • उद्देश्य: केंद्र प्रायोजित योजनाओं का उद्देश्य है:
    • गरीबी उन्मूलन
    • स्वास्थ्य और शिक्षा में सुधार
    • ग्रामीण विकास
    • कृषि और सिंचाई सहायता
    • बुनियादी ढाँचे का विकास
    • सामाजिक कल्याण
  • CSS के उदाहरण 
    • मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम)
    • PMAY-G (प्रधानमंत्री आवास योजना – ग्रामीण)
    • PMGSY (प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना)
    • मध्याह्न भोजन योजना (Mid-Day Meal Scheme)
    • राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (National Health Mission)
  • वर्गीकरण: हाल के सुधारों के अनुसार, CSS को उनके राष्ट्रीय महत्त्व के आधार पर कोर ऑफ द कोर, कोर और वैकल्पिक योजनाओं में वर्गीकृत किया गया है।
  • समन्वय: नीति आयोग CSS के मूल्यांकन और युक्तिकरण में भूमिका निभाता है।
    • केंद्र सरकार के मंत्रालय और विभाग अपनी-अपनी योजनाओं की देखरेख करते हैं।

केंद्रीय क्षेत्र की योजनाएँ (CSs)

  • केंद्रीय क्षेत्र की योजनाएँ सरकारी पहल हैं, जो भारत की केंद्र सरकार द्वारा पूर्णतः वित्तपोषित और कार्यान्वित की जाती हैं।

केंद्रीय क्षेत्र की योजनाओं की मुख्य विशेषताएँ

  • वित्तपोषण: केंद्र प्रायोजित योजनाओं (जिसमें राज्यों के साथ लागत साझा करना शामिल है) के विपरीत, CSs को पूरी तरह से केंद्र द्वारा वित्तपोषित किया जाता है।
  • कार्यान्वयन: आमतौर पर केंद्रीय एजेंसियों, मंत्रालयों या सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSU) द्वारा सीधे कार्यान्वित किया जाता है। कुछ मामलों में, राज्य एजेंसियाँ ​​निष्पादन में मदद कर सकती हैं।
  • नीति और प्रशासन: डिजाइन, प्रशासन और निगरानी पर पूरा नियंत्रण केंद्र सरकार के पास होता है।
  • उद्देश्य: रक्षा, परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष और प्रमुख बुनियादी ढाँचे के विकास जैसे राष्ट्रीय महत्त्व पर ध्यान केंद्रित करना।
  • केंद्रीय क्षेत्र की योजनाओं के उदाहरण
    • पीएम-किसान (प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि)
    • उड़ान (उड़े देश का आम नागरिक)
    • स्टार्ट-अप इंडिया
    • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
    • राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन।

संदर्भ

हाल ही में केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (Central Board of Secondary Education-CBSE) ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy-NEP), 2020 के अनुरूप प्राथमिक शिक्षा में शिक्षण के माध्यम के रूप में मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग को अनिवार्य कर दिया है।

  • हालाँकि, व्यावहारिकता, रोजगारपरकता और सामाजिक-आर्थिक आकांक्षाओं को लेकर चिंताएँ हैं।

संवैधानिक एवं कानूनी ढाँचा

  • अनुच्छेद-350A: राज्य को मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने का निर्देश देता है।
  • अनुच्छेद-351: राष्ट्रीय एकीकरण के लिए हिंदी के प्रसार को बढ़ावा देता है।
  • आठवीं अनुसूची: 22 आधिकारिक भाषाओं को मान्यता देती है। हालाँकि, कई आदिवासी और अल्पसंख्यक भाषाओं को शामिल नहीं किया गया है।
  • NEP 2020: कम-से-कम ग्रेड 5 तक तथा अधिमानतः ग्रेड 8 तक मातृभाषा या घरेलू भाषा में प्रारंभिक शिक्षा प्रदान करने का समर्थन करती है।

ऐतिहासिक संदर्भ: भारतीय शिक्षा में भाषा

  • औपनिवेशिक जड़ें (1835-1947): मैकाले का विवरण-पत्र (Macaulay Minute) ने अंग्रेजी को अभिजात वर्ग की शिक्षा की भाषा बना दिया। उच्च शिक्षा और शासन में स्थानीय भाषाओं को हाशिए पर रखा गया।
  • स्वतंत्रता के बाद: संविधान सभा में बहस ने क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने और अंग्रेजी को एक कड़ी तथा आकांक्षात्मक भाषा के रूप में उपयोग करने के बीच तनाव को दर्शाया।
  • त्रि-भाषा फॉर्मूला (1968, NEP 2020 में पुनः पुष्टि की गई): क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और वैश्विक भाषाई आवश्यकताओं को संतुलित करने का प्रयास है।

मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करने के लाभ

  • बेहतर समझ और अवधारण: जब बच्चों को उनकी पहली भाषा में पढ़ाया जाता है तो वे अवधारणाओं को अधिक आसानी से समझ लेते हैं और जानकारी को लंबे समय तक बनाए रखते हैं।
    • अध्ययनों से पता चलता है कि जब बच्चों को उनकी पहली भाषा में पढ़ाया जाता है तो वे अवधारणाओं को अधिक तीव्रता से समझ पाते हैं, जिससे ‘ड्रॉपआउट दर’ कम हो जाती है (यूनेस्को, 2016)।
  • सांस्कृतिक संरक्षण: मातृभाषा में सीखने से बच्चे की पहचान, सांस्कृतिक विरासत और मौखिक परंपराओं को संरक्षित करने में मदद मिलती है, जिससे उनमें अपनेपन और निरंतरता की भावना बढ़ती है।
  • बेहतर अधिगम परिणाम: अपनी मातृभाषा में मजबूत आधार वाले बहुभाषी शिक्षार्थी अधिक प्रभावी ढंग से अतिरिक्त भाषाएँ सीखते हैं।
    • यह प्रारंभिक भाषायी आत्मविश्वास सभी विषयों में बेहतर अकादमिक प्रदर्शन में योगदान देता है।
  • समान स्थिति प्रदान करना: ग्रामीण छात्रों को प्रायः अंग्रेजी सीखने में कठिनाई होती है; मातृभाषा में शिक्षा से भागीदारी में सुधार हो सकता है।

भारत में सर्वोत्तम प्रथाएँ

  • ओडिशा: बहुभाषी शिक्षा (Multilingual Education-MLE) कार्यक्रम 21 आदिवासी भाषाओं में पाठ्यपुस्तकें प्रदान करता है।
  • तमिलनाडु: अंग्रेजी को एक महत्त्वाकांक्षी विषय के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
  • नागालैंड और मिजोरम: समृद्ध स्थानीय भाषा साहित्य के बावजूद अंग्रेजी शिक्षा का माध्यम है।

CBSE के मातृभाषा संबंधी अनिवार्यता में चुनौतियाँ

  • भाषायी विविधता: दिल्ली जैसे शहरों में, बच्चे घर पर कई बोलियाँ बोलते हैं, जिससे कक्षा में पढ़ाने के लिए एक ‘मातृभाषा’ को परिभाषित करना मुश्किल हो जाता है।
  • मानकीकृत संसाधनों की कमी: भील या गोंड की कई भाषाओं में लिखित लिपि या मानकीकृत व्याकरण का अभाव है, जिससे पाठ्यपुस्तक का निर्माण करना जटिल हो जाता है।
  • शिक्षकों की कमी और प्रशिक्षण अंतराल: अधिकांश स्कूलों में बहुभाषी शिक्षकों की कमी है; जुलाई 2025 तक सभी को फिर से प्रशिक्षित करना तार्किक रूप से अवास्तविक है।
  • अंग्रेजी के लिए माता-पिता की प्राथमिकता: ‘एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट’ (ASER) द्वारा वर्ष 2022 के सर्वेक्षण में पाया गया कि अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा की माँग बढ़ रही है।
  • रोजगार संबंधी चिंताएँ: मातृभाषा शिक्षा अंग्रेजी के संपर्क को सीमित कर सकती है, जिसे व्यापक रूप से उच्च शिक्षा और रोजगार के अवसरों के लिए आवश्यक माना जाता है।
    • इससे सामाजिक-आर्थिक गतिशीलता के लिए सीमित मार्ग का निर्माण करते हैं।
  • आधारभूत स्तर के आकलन की कमी: CBSE ने क्षेत्रीय भाषा वरीयता अध्ययन नहीं किए हैं। 
    • इस बदलाव को समर्थन देने के लिए शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों के साथ सहयोग का कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है।
    • शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों में इस निर्देश को लागू करने के लिए बुनियादी ढाँचे की कमी है।
  • प्रवासी समावेशिता: भाषा की कठोरता प्रवासी बच्चों को नए भाषायी तंत्र के अनुकूल होने में बाधा डालती है।

शिक्षा में मातृभाषा को बढ़ावा देने के लिए वैश्विक दृष्टिकोण

  • फिनलैंड: फिनिश या स्वीडिश में शिक्षा; अप्रवासी छात्रों को मूल भाषाओं में सहायता दी जाती है।
  • जापान: शिक्षा मुख्य रूप से जापानी भाषा में दी जाती है; अन्य भाषाओं के लिए सहायता सीमित है।
  • फिलीपींस: ग्रेड 1-3 के लिए मातृभाषा-आधारित बहुभाषी शिक्षा (Mother Tongue-Based Multilingual Education-MTB-MLE) क्षेत्रीय भाषाओं में दी जाती है और फिर धीरे-धीरे अंग्रेजी एवं फिलिपिनो में स्थानांतरित हो जाती है।

मातृभाषा में स्कूली शिक्षा प्रदान करने के व्यापक निहितार्थ

  • सामाजिक समानता जोखिम: यह आदेश अभिजात वर्ग के अंग्रेजी माध्यम और कम संसाधन वाले क्षेत्रीय भाषा के स्कूलों के बीच के अंतराल को और गहरा कर सकता है, जिससे गरीब छात्रों के लिए आगे बढ़ने की संभावना सीमित हो सकती है।
  • शैक्षणिक अंतराल: हालाँकि मातृभाषा सीखने से संज्ञानात्मक सहायता मिलती है, लेकिन खराब अनुवाद एवं प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी राष्ट्रीय अनुवाद मिशन की विफलता में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है, जो परिणामों को कमजोर करती है।
  • ड्रॉपआउट दर में वृद्धि: सहायता प्रणालियों की अनुपस्थिति में, मातृभाषा में अचानक परिवर्तन छात्रों को अलग-थलग कर सकता है, जिससे ड्रॉपआउट का जोखिम बढ़ सकता है।

बहुभाषी शिक्षा के लिए डिजिटल उपकरण (संक्षिप्त)

  • AI अनुवाद: Google अनुवाद जैसे रियल-टाइम उपकरण कक्षा संचार का समर्थन करते हैं।
  • दीक्षा (DIKSHA): 30 से अधिक भारतीय भाषाओं में पाठ्यक्रम-संरेखित सामग्री प्रदान करता है।
  • ई पाठशाला (ePathshala): NCERT से बहुभाषी पाठ्यपुस्तकें, वीडियो और संसाधन प्रदान करता है।
  • भाषिणी (Bhashini): कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का उपयोग करके सभी भारतीय भाषाओं में डिजिटल सामग्री को सुलभ बनाता है।

भारत में मातृभाषाओं के प्रयोग को बढ़ाने के लिए पहल

  • क्षेत्रीय भाषा की पाठ्यपुस्तकें (NCERT/SCERTs): प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के लिए स्थानीय भाषाओं में पाठ्यपुस्तकों और शिक्षण सामग्री का विकास।
  • ई-विद्या (E-Vidya) और दीक्षा (DIKSHA) प्लेटफॉर्म: क्षेत्रीय शिक्षा का समर्थन करने के लिए कई भारतीय भाषाओं में डिजिटल सामग्री उपलब्ध कराई गई।
  • राष्ट्रीय अनुवाद मिशन (National Translation Mission-NTM): मातृभाषाओं में उच्च शिक्षा तक पहुँच को बढ़ावा देने के लिए ज्ञान संबंधी पाठ्य पुस्तकों का भारतीय भाषाओं में अनुवाद करता है।
  • राज्य की पहल: कर्नाटक, पश्चिम बंगाल और ओडिशा जैसे राज्यों में स्कूलों और सरकारी कार्यालयों में क्षेत्रीय भाषा के उपयोग को बढ़ावा देने वाली नीतियाँ हैं।
  • उच्च शिक्षा को बढ़ावा: AICTE और UGC क्षेत्रीय भाषाओं में इंजीनियरिंग एवं अन्य पाठ्यक्रमों को प्रोत्साहित करते हैं; NEET और JEE कई भारतीय भाषाओं में प्रस्तुत किए जाते हैं।

आगे की राह

  • लचीली बहुभाषी रणनीति: प्राथमिक कक्षाओं में मातृभाषा शिक्षण के साथ-साथ अंग्रेजी के प्रारंभिक ज्ञान के एकीकरण को संज्ञानात्मक विकास और वैश्विक तत्परता का समर्थन करने के लिए शुरू करना।
    • उच्च-कुशल रोजगार के लिए अंग्रेजी दक्षता महत्त्वपूर्ण बनी हुई है; भारत को चीन और जापान जैसे मॉडल का अनुकरण करना चाहिए, जो स्थानीय भाषा एवं अंग्रेजी शिक्षा को संतुलित करते हैं।
  • अलगाव के बिना आकांक्षा: अंग्रेजी को माध्यम के रूप में बनाए रखना, लेकिन ग्रामीण छात्रों के लिए उपचारात्मक सहायता प्रदान करना।
  • व्यावसायिक पाठ्यक्रम: जहाँ तक संभव हो, क्षेत्रीय भाषाओं में तकनीकी शिक्षा प्रदान करना।
  • शिक्षक प्रशिक्षण में सुधार: CBSE को भाषायी रूप से विविध कक्षाओं को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए शिक्षकों को तैयार करने के लिए शिक्षक शिक्षा कार्यक्रमों में सुधार करने पर विचार करना चाहिए।
    • राष्ट्रीय अनुवाद मिशन के माध्यम से शिक्षक प्रशिक्षण और उच्च गुणवत्ता वाले अनुवाद तकनीकों में निवेश करना।
  • डिजिटल उपकरणों का लाभ उठाना: क्षेत्रीय भाषा संसाधनों और शिक्षण में अंतराल को दूर करने के लिए AI-संचालित अनुवाद प्लेटफॉर्म तथा ई-लर्निंग सामग्री का उपयोग करना।
  • संदर्भ-विशिष्ट कार्यान्वयन: भाषा नीतियों को लागू करने से पहले क्षेत्रवार मूल्यांकन अनिवार्य करना और स्थानीय भाषायी वास्तविकताओं के अनुरूप लचीले क्रियान्वयन की अनुमति देना।
  • केंद्र-राज्य सहयोग: जनसांख्यिकीय और अवसंरचनात्मक क्षमताओं के आधार पर भाषा नीति को अनुकूलित करने के लिए राज्य सरकारों के साथ मिलकर कार्य करना।
  • शिक्षा को उद्योग के साथ जोड़ना: मानविकी और सामाजिक विज्ञान में क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देते हुए तकनीकी तथा व्यावसायिक शिक्षा के लिए अंग्रेजी को माध्यम बनाए रखना।

निष्कर्ष 

हालाँकि मातृभाषा अनिवार्यता अच्छे उद्देश्य के साथ लाई गई है, लेकिन अगर समावेशी योजना और सशक्त समर्थन प्रणालियों द्वारा इसका समर्थन नहीं किया जाता है, तो मौजूदा शैक्षिक अंतराल और  भी अधिक हो सकता है।

  • सार्थक सुधार के लिए समानता और गुणवत्ता पर आधारित एक संतुलित, बहुभाषी दृष्टिकोण आवश्यक है।

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