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Jun 05 2025

वक्फ ‘UMEED’ पोर्टल

केंद्र सरकार आधिकारिक तौर पर वक्फ ‘UMEED’ पोर्टल लॉन्च करने वाली है। 

UMEED पोर्टल क्या है? 

  • UMEED का अर्थ है एकीकृत वक्फ प्रबंधन, सशक्तिकरण, दक्षता एवं विकास। 
  • उद्देश्य: पोर्टल का उद्देश्य पूरे भारत में वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण एवं प्रबंधन को डिजिटल बनाना तथा सरल बनाना है। 
  • यह नए वक्फ कानून के तहत नागरिकों को उनके अधिकारों एवं जिम्मेदारियों पर कानूनी मार्गदर्शन भी प्रदान करेगा। 
  • UMEED पोर्टल की विशेषताएँ
    • ऑनलाइन पंजीकरण: वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण के लिए डिजिटल प्रणाली। 
    • पारदर्शिता एवं दक्षता: यह सुनिश्चित करता है कि सभी औपचारिकताएँ छह महीने के भीतर पूरी हो जाएँ। 
    • कानूनी सहायता: व्यक्तियों को नए कानून के तहत उनके अधिकारों एवं दायित्वों को समझने में मदद करता है। 
    • स्वचालित विवाद: समय सीमा के भीतर पंजीकृत नहीं होने वाली संपत्तियों को विवादित घोषित किया जाएगा एवं समाधान के लिए न्यायाधिकरण को भेजा जाएगा। 
    • राज्य वक्फ बोर्ड की निगरानी: संशोधित कानूनी प्रावधानों के अनुपालन की निगरानी एवं सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार। 

वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025, जिसे संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित किया गया एवं राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हुई, भारत में वक्फ संपत्तियों के विनियमन में एक महत्त्वपूर्ण कानूनी विकास को चिह्नित करता है।

  •  हालाँकि, इसके पारित होने एवं स्वीकृति के बाद, इसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई।

योगांध्र पहल 2025

हाल ही में योगांध्र 2025 कार्यक्रम आंध्र प्रदेश के चित्तूर के पास, लुभावनी पुलिगुंडु ट्विन हिल्स के बीच आयोजित किया गया था।

योगांध्र पहल के बारे में

  • यह नागरिकों के मध्य योग एवं स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा शुरू किया गया एक राज्यव्यापी अभियान है।
  • योगांध्र के उद्देश्य
    • बेहतर शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिए दैनिक योग अभ्यास को प्रोत्साहित करना।
    • विरासत एवं पर्यटन स्थलों पर बड़े पैमाने पर योग कार्यक्रम आयोजित करना।
    • गाँव, मंडल एवं जिला स्तर पर जागरूकता फैलाने के लिए योग प्रशिक्षकों को प्रशिक्षित करना।

आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए वैश्विक मंच

भारत ने जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्यालय (UNDRR) द्वारा आयोजित 8वें वैश्विक आपदा जोखिम न्यूनीकरण मंच के उद्घाटन पर वैश्विक आपदा न्यूनीकरण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की।

वैश्विक आपदा जोखिम न्यूनीकरण मंच

  • यह एक द्विवार्षिक अंतरराष्ट्रीय मंच है।
  • उद्देश्य: प्रगति का आकलन करना, ज्ञान साझा करना एवं आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर कार्रवाई में तेजी लाना।
  • यह सरकारों, हितधारकों एवं संयुक्त राष्ट्र संस्थाओं को आपदा जोखिम प्रबंधन में कार्रवाई में तेजी लाने तथा सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने के लिए एक मंच प्रदान करता है।
  • चर्चा के केंद्र में आपदा जोखिम न्यूनीकरण वर्ष 2015-2030 के लिए सेंडाई फ्रेमवर्क का कार्यान्वयन है।
    • जो आपदा जोखिमों को कम करने एवं लचीले समुदायों के निर्माण पर मार्गदर्शक वैश्विक नीति के रूप में कार्य करता है।

आपदा जोखिम न्यूनीकरण वर्ष 2015-2030 के लिए सेंडाई फ्रेमवर्क के बारे में

  • यह विश्व भर में आपदा जोखिमों को कम करने एवं तन्यता बढ़ाने के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा अपनाई गई एक वैश्विक रणनीति है।
  • इसे मार्च, 2015 में जापान के सेंडाई में आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर तीसरे संयुक्त राष्ट्र विश्व सम्मेलन में प्रस्तुत किया गया था। यह 15 वर्ष की अवधि में संपूर्ण विश्व में आपदा जोखिम एवं नुकसान को कम करने के लिए एक व्यापक ढाँचा प्रदान करता है। 
  • कार्रवाई के लिए चार प्राथमिकताएँ 
    • आपदा जोखिम को समझना- जोखिमों एवं कमजोरियों के बारे में ज्ञान में सुधार करना। 
    • आपदा जोखिम शासन को मजबूत करना- आपदा प्रबंधन के लिए नीतियों एवं समन्वय को बढ़ाना।
    • आपदा जोखिम न्यूनीकरण में निवेश करके लचीलापन लाना- आपदाओं को रोकने एवं कम करने के लिए संसाधनों का आवंटन करना। 
    • आपदा तैयारी एवं “बेहतर तरीके से पुनर्निर्माण” को बढ़ाना- पुनर्प्राप्ति, पुनर्वास तथा पुनर्निर्माण प्रयासों को मजबूत करना। 

आपदा जोखिम न्यूनीकरण

  • यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसका उद्देश्य नई आपदा जोखिम को रोकना एवं मौजूदा आपदा जोखिम को कम करना तथा अवशिष्ट जोखिम का प्रबंधन करना है, जो लचीलापन को मजबूत करने तथा सतत् विकास की उपलब्धि में योगदान करते हैं।

संदर्भ

अर्द्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के लिए अंतरराष्ट्रीय फसल अनुसंधान संस्थान (ICRISAT) ने विकासशील देशों के लिए अनुसंधान और सूचना प्रणाली (RIS) के साथ मिलकर कृषि नवाचार को बढ़ावा देने के लिए कृषि में दक्षिण-दक्षिण सहयोग के लिए उत्कृष्टता केंद्र (ISSCA) लॉन्च किया तथा शुष्क भूमि क्षेत्रों में सहयोग एवं कृषि-समाधानों को बढ़ाने के लिए डेवलपमेंट एंड नॉलेज शेयरिंग इनिशिएटिव (DAKSHIN) के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए।

डेवलपमेंट एंड नॉलेज शेयरिंग इनिशिएटिव (DAKSHIN)

  • DAKSHIN का अर्थ है डेवलपमेंट एंड नॉलेज शेयरिंग इनिशिएटिव , जो कृषि सहित विकास क्षेत्रों में दक्षिण-दक्षिण सहयोग को मजबूत करने के लिए भारत सरकार के नेतृत्व वाला एक प्लेटफार्म है।
  • DAKSHIN को वर्ष 2023 में लॉन्च किया गया था।
  • विदेश मंत्रालय विकासशील देशों के लिए अनुसंधान एवं सूचना प्रणाली (Research and Information System for Developing Countries) जैसे साझेदार संस्थानों से परिचालन समर्थन के साथ DAKSHIN के लिए नोडल मंत्रालय है।
  • विशेषताएँ
    • DAKSHIN एक डिजिटल ज्ञान-साझाकरण प्लेटफॉर्म के रूप में कार्य करता है, जो सतत् एवं प्रतिकृति विकास समाधानों तक पहुँच प्रदान करता है।
    • यह वैश्विक दक्षिण के देशों के मध्य सहकर्मी अधिगम, क्षमता निर्माण एवं साझेदारी सुविधा को बढ़ावा देता है।

नए केंद्र के बारे में

  • नाम: कृषि में दक्षिण-दक्षिण सहयोग के लिए ICRISAT उत्कृष्टता केंद्र (सेंटर ऑफ एक्सीलेंस) (ISSCA)।
  • भारत के हैदराबाद में स्थित है।
  • उद्देश्य: कृषि अनुसंधान को व्यावहारिक समाधानों में बदलना है, जिन्हें बढ़ाया जा सकता है।
    • यह भारत की कृषि विशेषज्ञता को अन्य विकासशील देशों के साथ साझा करने के लिए एक केंद्र के रूप में कार्य करेगा।
    • कृषि ज्ञान को लोकतांत्रिक बनाने और सीख को नीतिगत सिफारिशों में बदलने का प्रयास करता है।
    • अपने निजी बीज उद्योग को विकसित करने के इच्छुक देशों का समर्थन करता है।

अर्द्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के लिए अंतरराष्ट्रीय फसल अनुसंधान संस्थान (ICRISAT) के बारे में

  • यह एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय कृषि अनुसंधान संगठन है, जो शुष्क भूमि क्षेत्रों में आजीविका में सुधार करने के लिए कार्य कर रहा है।
  • स्थापना: ICRISAT की स्थापना वर्ष 1972 में एक गैर-लाभकारी, अंतरराष्ट्रीय संगठन के रूप में की गई थी एवं यह CGIAR नेटवर्क का एक हिस्सा है।
    • इसका मुख्यालय हैदराबाद, भारत में स्थित है।
  • सदस्य: ICRISAT को भारत सहित 60 से अधिक देशों के संघ द्वारा समर्थित किया जाता है एवं यह विश्व भर में राष्ट्रीय सरकारों, क्षेत्रीय संगठनों तथा विकास एजेंसियों के साथ साझेदारी करता है।
  • उद्देश्य
    • यह अर्द्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के लिए उपयुक्त ज्वार, बाजरा, चना एवं अरहर जैसी जलवायु-लचीली फसलों को विकसित करने पर केंद्रित है।
    • इसका उद्देश्य वैज्ञानिक अनुसंधान एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के माध्यम से खाद्य सुरक्षा को बढ़ाना, गरीबी को कम करना तथा सतत् कृषि को बढ़ावा देना है।

विकासशील देशों के लिए अनुसंधान एवं सूचना प्रणाली (Research and Information System for Developing Countries) के बारे में

  • यह दिल्ली में स्थित एक स्वायत्त नीति अनुसंधान संस्थान है।
  • स्थापना: नीति अनुसंधान के लिए एक पंजीकृत सोसायटी के रूप में पहली बार मई 1983 में नई दिल्ली में स्थापित किया गया।
    • वर्ष 1983 में, गुटनिरपेक्ष देशों के राष्ट्राध्यक्षों या सरकार के सातवें सम्मेलन की सिफारिश के बाद बनाया गया।
  • उद्देश्य: विकासशील देशों के बीच दक्षिण-दक्षिण सहयोग का समर्थन करना।
    • क्षेत्रीय आर्थिक साझेदारी में शामिल होना।
  • अनुसंधान के प्रमुख क्षेत्र
    • वैश्विक आर्थिक शासन एवं सहयोग
    • व्यापार, निवेश एवं आर्थिक सहयोग
    • प्रौद्योगिकी एवं विकास के मुद्दे
    • क्षेत्रीय संपर्क एवं व्यापार सुविधा।

दक्षिण-दक्षिण सहयोग में UN FAO की भूमिका

  • वैश्विक सुविधाकर्ता: संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन तकनीकी सहयोग तथा संस्थागत ढाँचे के साथ 100 से अधिक देशों का समर्थन करता है।
  • मुख्य हस्तक्षेप: FAO सतत् कृषि, जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलापन एवं वैश्विक दक्षिण भागीदारों के बीच ज्ञान साझा करने को बढ़ावा देता है।
    • FAO-चीन SSC कार्यक्रम: सबसे बड़े वैश्विक SSC कार्यक्रमों में से एक, कृषि विशेषज्ञों, प्रदर्शन खेतों एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करता है।
    • FAO-ब्राजील कार्यक्रम: लैटिन अमेरिका एवं अफ्रीका में भुखमरी उन्मूलन तथा स्कूल भोजन कार्यक्रमों का समर्थन करता है।
    • FAO-भारत त्रिकोणीय भागीदारी: अफ्रीकी एवं एशियाई देशों में डिजिटल कृषि एवं जलवायु-स्मार्ट कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देता है।
  • प्रभाव: एशिया, अफ्रीका एवं लैटिन अमेरिका में जलवायु-स्मार्ट, कम लागत वाली प्रौद्योगिकियों को बढ़ाने में मदद करता है।

कृषि क्षेत्र में वैश्विक दक्षिण की चुनौतियाँ

  • जलवायु तनाव: सूखा, अनियमित वर्षा एवं बढ़ते तापमान फसल उत्पादकता को प्रभावित करते हैं।
  • संसाधन संबंधी बाधाएँ: पूँजी, लागत, बुनियादी ढाँचे एवं आधुनिक तकनीक तक सीमित पहुँच।
  • खाद्य सुरक्षा अंतराल: उत्पादन में कमी एवं खराब आपूर्ति शृंखलाओं के कारण लगातार भुखमरी तथा कुपोषण।
  • नीति एवं ज्ञान संबंधी बाधाएँ: अनुसंधान एवं कमजोर विस्तार प्रणालियाँ नवाचारों के प्रसार में बाधा डालती हैं।

कृषि नवाचार में भारत का वैश्विक नेतृत्व

  • रणनीतिक पहल: DAKSHIN जैसे प्लेटफॉर्म वैश्विक दक्षिण देशों में विकास साझेदारी एवं प्रशिक्षण का समर्थन करते हैं।
  • संस्थागत शक्ति: ICAR एवं DARE स्थायी कृषि-समाधानों को हस्तांतरित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान संगठनों के साथ सक्रिय रूप से सहयोग करते हैं।
  • डिजिटल एग्री-टेक: भारत वैश्विक स्तर पर छोटे किसानों के लिए कम लागत वाले डिजिटल प्लेटफॉर्म एवं जलवायु-स्मार्ट तकनीकों को तैनात करने में अग्रणी है।

संदर्भ

हाल ही में केंद्र सरकार ने लद्दाख के लिए आरक्षण, भाषा, अधिवास एवं पर्वतीय परिषदों की संरचना पर नई नीतियों को अधिसूचित किया, जो वर्ष 2019 में केंद्रशासित प्रदेश बन गया था।

नए नियम एवं विनियम अधिसूचित

  • अधिवास: किसी व्यक्ति को अधिवासी के रूप में अर्हता प्राप्त करने के लिए 31 अक्टूबर, 2019 से 15 वर्षों तक लद्दाख में निवास करना होगा।
    • लद्दाख में 7 वर्ष तक अध्ययन करने वाले एवं कक्षा 10 या 12 की परीक्षा देने वाले छात्र भी पात्र हैं।
    • लद्दाख में 10 वर्ष सेवा करने वाले केंद्र सरकार के कर्मचारियों के बच्चे भी इसमें शामिल हैं।
  • आरक्षण का विस्तार: सरकारी नौकरियों में कुल आरक्षण 85% पर सीमित किया गया, जिसमें EWS के लिए 10% के अलावा कुल आरक्षण 95% हो गया।
    • लगभग 80% नौकरियाँ अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित होने की संभावना है, जो जनसांख्यिकीय प्रोफाइल को दर्शाता है।
  • महिलाओं के लिए आरक्षण: लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद अधिनियम, 1997 में संशोधन करके महिलाओं के लिए 1/3 सीटें चक्रानुक्रम के आधार पर आरक्षित कर दी गईं।
  • स्थानीय भाषाओं को मान्यता: अंग्रेजी, हिंदी, उर्दू, भोटी एवं पुरगी को आधिकारिक भाषा घोषित किया गया है। शिना, ब्रोक्सकट, बाल्टी तथा लद्दाखी भाषाओं को संस्थागत रूप से बढ़ावा देना अनिवार्य किया गया है।

लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद (Ladakh Autonomous Hill Development Council- LAHDC)

  • LAHDC लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय
  •  विकास परिषद अधिनियम, 1995 के तहत स्थापित स्वायत्त निकाय हैं, जो लेह एवं कारगिल जिलों को प्रशासनिक तथा विकासात्मक स्वायत्तता प्रदान करते हैं।
  • शक्तियाँ एवं जिम्मेदारियाँ: परिषदों को स्थानीय विकास, बजट एवं संसाधन प्रबंधन पर निर्णय लेने का अधिकार है, हालाँकि उनके पास छठी अनुसूची के तहत विधायी शक्तियाँ नहीं हैं।

भाषा

भाषा परिवार

संबद्ध जनजातियाँ / जातीय समूह

लद्दाख में भौगोलिक विस्तार

भोटी तिब्बती-बर्मन लद्दाखी, मोन, ब्रोक्पा लेह, नुब्रा, जास्कर, कारगिल के कुछ हिस्से
पुरगी तिब्बती-बर्मन पुरीग्पा (मुस्लिम एवं बौद्ध समुदाय) कारगिल, द्रास, सुरु घाटी
बाल्टी तिब्बती-बर्मन बाल्टी (मुख्यतः शिया मुसलमान) तुरतुक (नुब्रा), कारगिल सीमा क्षेत्र
शिना दार्दीक (इंडो-आर्यन) दर्द्स, ब्रोक्पा (आर्यन या ड्रोक्पा भी कहा जाता है) खल्टसे, आर्यन घाटी के पास धा-हनु गाँव
ब्रोक्सकट दार्दीक (इंडो-आर्यन) ब्रोक्पा (पशुपालक अर्द्ध-खानाबदोश) धा, गरकोन, बटालिक
लद्दाखी तिब्बती-बर्मन सामान्य लद्दाखी जनसंख्या (अंतरजातीय) लेह में व्यापक रूप से बोली जाती है, स्कूलों में भी बोली जाती है

लद्दाख नागरिक समाज की मुख्य माँगें 

  • छठी अनुसूची में शामिल किया जाना: नागरिक समूह संविधान के तहत आदिवासी एवं विधायी स्वायत्तता के लिए छठी अनुसूची का दर्जा माँगते हैं।
  • भूमि एवं रोजगार की सुरक्षा: बाहरी लोगों द्वारा भूमि अधिग्रहण के विरुद्ध कानूनी सुरक्षा एवं स्थानीय लोगों के लिए स्थायी रोजगार कोटा का अनुरोध।
  • राज्य का दर्जा एवं प्रतिनिधित्व: राजनीतिक स्वशासन के लिए राज्य का दर्जा एवं विधानसभा की माँग।
    • लेह एवं कारगिल के लिए एक-एक लोकसभा सीट का अनुरोध।

आलोचना एवं सीमाएँ

  • संवैधानिक समर्थन का अभाव: अनुच्छेद-240 के तहत बनाए गए सभी नियम, उन्हें विधायी आवश्यकता के बिना केंद्र द्वारा संशोधित करने योग्य बनाते हैं।
  • भूमि स्वामित्व प्रतिबंध नहीं: बाहरी लोगों द्वारा भूमि खरीदने पर कोई कानूनी प्रतिबंध नहीं, जिससे पारिस्थितिकी एवं सांस्कृतिक प्रभावों पर चिंताएँ बढ़ रही हैं।
  • कोई स्थानीय विधायी निकाय नहीं: छठी अनुसूची परिषदों के विपरीत, LAHDC में विधायी शक्तियों का अभाव है, जो मुख्य रूप से प्रशासनिक निकायों के रूप में कार्य करते हैं।
  • कम अधिवास अवधि की आलोचना: नागरिक समाज यह तर्क देते हुए 30 वर्ष की अधिवास शर्त की माँग करता है, कि स्थानीय पहचान की रक्षा के लिए 15 वर्ष बहुत कम है।

निष्कर्ष

हालाँकि नए नियम लद्दाख की स्थानीय चिंताओं को दूर करने में प्रगति दर्शाते हैं, लेकिन वे संवैधानिक गारंटी एवं भूमि संरक्षण प्रदान नहीं करते हैं, जिससे नागरिक सक्रियता जारी है।

संदर्भ 

चीन ने विश्व के पहले ‘फ्यूजन-फिजन हाइब्रिड परमाणु रिएक्टर’ के निर्माण की योजना का अनावरण किया है, जिसका नाम ‘जिंगहुओ’ (मंदारिन भाषा में “स्पार्क”) है।

संबंधित तथ्य 

  • फ्यूजन-फिजन हाइब्रिड रिएक्टर (Fusion-Fission Hybrid Reactor) का उद्देश्य परमाणु ऊर्जा दक्षता एवं स्थिरता को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ाना है, जो वैश्विक ऊर्जा उत्पादन में एक बड़ा परिवर्तन दर्शाता है।
  • चीन का लक्ष्य Q फैक्टर को 30 से अधिक करना है (प्लाज्मा हीटिंग के लिए उत्पादित ऊर्जा और उपभोग की गई ऊर्जा का अनुपात)।
    • ITER (फ्राँस) का लक्ष्य Q फैक्टर 10 करना है।
    • अमेरिकी परियोजनाएँ Q फैक्टर 1.5 तक पहुंच गई हैं।
  • संभावना है कि यह परियोजना वर्ष 2030 तक संयुक्त राज्य अमेरिका सहित परमाणु ऊर्जा विकास में मौजूदा प्रयासों को पार कर जाएगी।

अभिक्रिया का Q-मान, प्रारंभिक अभिकारकों के द्रव्यमानों के योग तथा ऊर्जा इकाइयों में अंतिम उत्पादों के द्रव्यमानों के योग के बीच के अंतर के रूप में परिभाषित किया जाता है।

फ्यूजन-फिजन हाइब्रिड रिएक्टर के बारे में:

  • जिंगहुओ फ्यूजन-विखंडन हाइब्रिड रिएक्टर दो अलग-अलग परमाणु अभिक्रियाओं ‘संलयन’ एवं ‘विखंडन’ को मिलाकर परमाणु ऊर्जा उत्पादन के लिए एक अग्रणी दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करता है:

अवधारणा

  • जिंगहुओ रिएक्टर परमाणु विखंडन प्रतिक्रिया हेतु एक संलयन रिएक्टर द्वारा उत्पादित उच्च-तीव्रता वाले न्यूट्रॉन प्रवाह का उपयोग करता है।
  • इसके अतिरिक्त, संलयन अभिक्रिया न्यूट्रॉन की विखंडनीय सामग्रियों से ईंधन का उत्पादन करने में मदद करती है, जिससे रिएक्टर के लिए ईंधन की एक स्थायी आपूर्ति सुनिश्चित होती है।

डिजाइन

  • रिएक्टर में एक परमाणु संलयन रिएक्टर कोर होता है, जहाँ ड्यूटेरियम एवं ट्रिटियम नाभिक को हीलियम तथा उच्च-ऊर्जा न्यूट्रॉन निर्माण के लिए प्रयोग किया जाता है।
  • संलयन कोर के चारों ओर विखंडनीय सामग्रियों (जैसे यूरेनियम-238 या थोरियम-232) का आवरण होता है, जिसका उपयोग संलयन न्यूट्रॉन को अवशोषित करने एवं उन्हें विखंडनीय पदार्थों (जैसे प्लूटोनियम-239 या यूरेनियम-233) में परिवर्तित करने के लिए किया जाता है, जिससे ईंधन की आपूर्ति में प्रभावी रूप से वृद्धि होती है तथा प्रणाली अधिक आत्मनिर्भर बनती है।

मुख्य विशेषताएँ

  • संलयन एवं विखंडन (फ्यूजन-फिजन) का लाभ उठाना
    • संलयन रिएक्टर, न्यूट्रॉन-समृद्ध होते हैं, लेकिन इनमें ऊर्जा की कमी होती है, जो अपेक्षाकृत कम ऊर्जा उत्पादन के साथ बड़ी संख्या में न्यूट्रॉन का उत्पादन करते हैं।
    • दूसरी ओर, विखंडन रिएक्टर न्यूट्रॉन-विहीन होते हैं, लेकिन ऊर्जा समृद्ध होते हैं, जो महत्त्वपूर्ण ऊर्जा लेकिन कम न्यूट्रॉन उत्पन्न करते हैं।
    • जिंगहुओ रिएक्टर सरलता से दोनों को जोड़ता है, संलयन का उपयोग करके न्यूट्रॉन का उत्पादन करता है, जो दूसरे चरण में विखंडन को आगे बढ़ा सकता है, जिससे एक अधिक कुशल, ऊर्जा-अधिकतम चक्र निर्मित है।
  • कम बिजली की आवश्यकताएँ
    • हाइब्रिड रिएक्टर के लिए संलयन संबंधी आवश्यकताएँ शुद्ध संलयन रिएक्टरों की तुलना में कम होती हैं।
    • इस हाइब्रिड सिस्टम में संलयन का प्राथमिक उद्देश्य न्यूट्रॉन (ऊर्जा नहीं) उत्पन्न करना है, जिससे संलयन घटक कम बिजली की माँग वाला एवं अधिक कुशल बन जाता है।
  • रेडियोधर्मी अपशिष्टों में कमी
    • रिएक्टर के आवरण में उच्च न्यूट्रॉन प्रवाह लंबे समय तक रहने वाले रेडियोधर्मी अपशिष्टों को अल्पकालिक एवं कम हानिकारक पदार्थों में बदल सकता है, जिससे पर्यावरण संबंधी चिंताएँ कम हो जाती हैं। 
    • यह प्रक्रिया रेडियोधर्मी समस्थानिकों को अधिक प्रबंधनीय अपशिष्टों में बदलने में मदद करती है, जिससे निपटान आसान हो जाता है एवं परमाणु ऊर्जा के दीर्घकालिक पारिस्थितिकी प्रभाव में कमी आती है।
  • ईंधन आपूर्ति
    • जिंगहुओ रिएक्टर पर्याप्त विखंडनीय ईंधन का उत्पादन करने में सक्षम होगा।
    • फ्यूजन आधारित न्यूट्रॉन यूरेनियम-238 को प्लूटोनियम-239 या यूरेनियम-233 जैसे विखंडनीय पदार्थों में परिवर्तित कर सकते हैं।
  • निरंतर ऊर्जा उत्पादन: संयंत्र में 100 मेगावाट की निरंतर उत्पादन क्षमता होगी, जो एक लघु पैमाने के परमाणु रिएक्टर के समान है।

PWOnlyIAS विशेष

परमाणु विखंडन

  • अभिक्रिया: विखंडन में भारी परमाणु नाभिक (जैसे- यूरेनियम) को छोटे टुकड़ों में विभाजित करना शामिल है, जिससे प्रक्रिया में ऊर्जा निकलती है।
  • चुनौतियाँ: विखंडन से रेडियोधर्मी अपशिष्ट उत्पन्न होता है, जो दीर्घकालिक पर्यावरणीय चिंताओं को जन्म देता है।

परमाणु संलयन

  • अभिक्रिया: संलयन हल्के परमाणु नाभिक (जैसे हाइड्रोजन) को मिलाकर एक भारी नाभिक का निर्माण करता है, जिससे भारी मात्रा में ऊर्जा उत्सर्जित होती है।
  • लाभ
    • ऊर्जा दक्षता: विखंडन की तुलना में संलयन प्रति किलोग्राम ईंधन से चार गुना अधिक ऊर्जा उत्पन्न कर सकता है।
    • स्वच्छ: विखंडन की तुलना में संलयन से न्यूनतम खतरनाक अपशिष्ट उत्पन्न होता है।
    • भविष्य की संभावना: संलयन को भविष्य के लिए एक सतत्, कुशल ऊर्जा स्रोत के रूप में देखा जाता है।

संदर्भ

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने नंदिनी सुंदर एवं अन्य बनाम छत्तीसगढ़ राज्य मामले में निर्णय दिया कि कानून निर्माणकारी विधानमंडलों को अवमानना ​​का दोषी नहीं ठहराया जा सकता, जिससे शक्तियों के संवैधानिक पृथक्करण की पुष्टि होती है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु 

  • यह टिप्पणी छत्तीसगढ़ सहायक सशस्त्र पुलिस बल अधिनियम, 2011 के विरुद्ध दायर वर्ष 2012 की अवमानना ​​याचिका का निपटारा करते समय की गई, जिसने सर्वोच्च न्यायालय के पहले के निर्देशों के बावजूद विशेष पुलिस अधिकारियों (SPOs) को नियमित कर दिया।
  • छत्तीसगढ़ में संचालित हिंसा को स्वीकार करते हुए, न्यायालय ने राज्य एवं केंद्र सरकार दोनों से शांति तथा पुनर्वास के लिए ठोस कदम उठाने का आग्रह किया।
  • इस आदेश में संविधान के अनुच्छेद-355 का हवाला दिया गया, जिसमें प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा एवं स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए सरकारों के कर्तव्य पर जोर दिया गया।

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की मुख्य विशेषताएँ

  • न्यायालय ने कहा कि राज्य विधानसभाओं के पास कानून बनाने की पूर्ण शक्तियाँ हैं एवं जब तक कोई कानून असंवैधानिक घोषित नहीं किया जाता, तब तक वह वैध तथा लागू रहता है।
  • न्यायालय के आदेश से पहले या बाद में कानून पारित करना न्यायालय की अवमानना ​​नहीं है, भले ही वह कानून न्यायिक निर्देश के विरुद्ध प्रतीत होता हो।
  • यदि कोई कानून असंवैधानिक है तो सही प्रक्रिया यह है कि उसे संवैधानिक न्यायालय में चुनौती दी जाए ताकि कानूनों की संवैधानिकता या विधायी क्षमता की जाँच की जा सके।
  • न्यायालय ने शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत पर जोर देते हुए कहा कि विधायिकाओं को न्यायिक निर्णयों के जवाब में भी कानून बनाने, संशोधित करने या निरस्त करने का अधिकार है।
    • यह सिद्धांत भारत जैसे संवैधानिक लोकतंत्र में आवश्यक ‘जाँच एवं संतुलन’ प्रक्रिया का हिस्सा है।

भारतीय संविधान में शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के बारे में

  • शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत सरकार के उत्तरदायित्व को तीन अलग-अलग शाखाओं, विधानमंडल, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका में विभाजित करने को संदर्भित करता है, यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी शाखा अपने अधिकार का अतिक्रमण न करे।
  • संवैधानिक आधार
    • अनुच्छेद-50 (DPSP): राज्य को राज्य की सार्वजनिक सेवाओं में न्यायपालिका को कार्यपालिका से पृथक करने का निर्देश देता है।
    • अनुच्छेद-121 एवं 211: न्यायिक स्वतंत्रता की रक्षा करते हुए विधायिकाओं (संसद एवं राज्य विधानमंडल) को न्यायिक आचरण पर चर्चा करने से रोकता है।
    • अनुच्छेद-122 एवं 212: संसदीय विशेषाधिकार को संरक्षित करते हुए न्यायालय को संसद एवं राज्य विधानमंडल की विधायी कार्यवाही की जाँच करने से रोकता है।
    • अनुच्छेद-245-255: संसद एवं राज्य विधानमंडलों की विधायी शक्तियों को परिभाषित करता है।
    • अनुच्छेद-13 एवं अनुच्छेद-32/226: न्यायपालिका को कानून की न्यायिक समीक्षा करने एवं असंवैधानिक कानूनों को निरस्त करने का अधिकार देना, जाँच तथा संतुलन सुनिश्चित करना।
  • भारतीय न्यायालयों ने माना है कि पूर्ण अलगाव संभव नहीं है, लेकिन जाँच एवं संतुलन की व्यवस्था होनी चाहिए।
    • केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (वर्ष 1973) में, शक्तियों के पृथक्करण को मूल संरचना सिद्धांत के हिस्से के रूप में मान्यता दी गई थी।

निष्कर्ष

सर्वोच्च न्यायालय ने दोहराया कि विधायी कार्य अलग-अलग हैं एवं संविधान के तहत संरक्षित हैं। किसी कानून को पारित करना अवमानना ​​के बराबर नहीं माना जा सकता। इसकी उचित कानूनी मार्गों के माध्यम से संवैधानिक वैधता तथा विधायी क्षमता के आधार पर जाँच की जानी चाहिए।

संदर्भ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली में अंतरराष्ट्रीय वायु परिवहन संघ (IATA) की 81वीं वार्षिक सामान्य बैठक और विश्व वायु परिवहन शिखर सम्मेलन (World Air Transport Summit – WATS) को संबोधित करते हुए भारत के विमानन नेतृत्व पर प्रकाश डाला।

अंतरराष्ट्रीय वायु परिवहन संघ (International Air Transport Association-IATA) के बारे में

  • परिचय: IATA की स्थापना वर्ष 1945 में क्यूबा के हवाना में एयरलाइंस के लिए एक व्यापार संघ के रूप में की गई थी।
  • मुख्यालय: मॉण्ट्रियल, कनाडा
  • सदस्य: लगभग 320 एयरलाइनों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो वैश्विक हवाई यातायात का 83% शामिल करते हैं।
  • भूमिका: सुरक्षित, विश्वसनीय और कुशल हवाई परिवहन को बढ़ावा देने के लिए कार्य करता है।
  • IATA के उद्देश्य
    • विश्व में अंतरराष्ट्रीय हवाई परिवहन के विकास और व्यवस्थित वृद्धि को बढ़ावा देना।
    • अधिक दक्षता और सेवा गुणवत्ता के लिए अंतरराष्ट्रीय एयरलाइनों के बीच सहयोग और समन्वय सुनिश्चित करना।
    • हवाई परिवहन संचालन के सभी क्षेत्रों में सुरक्षा मानकों को बढ़ाना।
    • सुरक्षित और मानकीकृत वैश्विक विमानन प्रथाओं को सुविधाजनक बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय हवाई यातायात नियमों और विनियमों को तैयार करना और लागू करना।
  • भारत का सहयोग: भारत ने WATS के दौरान IATA के लक्ष्यों और वैश्विक विमानन मानकों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की।

विश्व वायु परिवहन शिखर सम्मेलन (WATS) की मुख्य विशेषताएँ

  • IATA AGM की भारत में वापसी: भारत ने 42 वर्षों के बाद IATA AGM की मेजबानी की, जो वैश्विक विमानन में इसके बढ़ते परिदृश्य को रेखांकित करता है।
  • भारत की भूमिका: प्रधानमंत्री मोदी ने नवाचार और नीति नेतृत्व द्वारा संचालित वैश्विक अंतरिक्ष-विमानन एकीकरण में भारत को एक प्रमुख अभिकर्ता के रूप में महत्त्व दिया।
  • विमानन के लिए भारत का विजन
    • वर्ष 2030 तक 4 बिलियन डॉलर का रखरखाव, मरम्मत और ओवरहाल (Maintenance, Repair, and Overhaul- MRO) हब।
    • एयरोस्पेस में ‘मेक इन इंडिया’ और ‘डिजाइन इन इंडिया’ को बढ़ावा देना।
    • विमानन मूल्य शृंखला में वैश्विक निवेश को प्रोत्साहन।

भारतीय विमानन क्षेत्र का विकास

  • उड़े देश का आम नागरिक (UDAN- Ude Desh ka Aam Nagrik) कार्यक्रम की सफलता 
    • 15 मिलियन से अधिक यात्रियों, जिनमें से कई पहली बार हवाई यात्रा कर रहे थे, को वहनीय हवाई यात्रा का लाभ मिला।
    • भारतीय विमानन इतिहास में इसे “स्वर्णिम अध्याय” के रूप में चिह्नित किया गया।
  • समावेशिता: उड़ान ने टियर-2 और टियर-3 शहरों में हवाई संपर्क में सुधार किया है, जिससे आर्थिक एकीकरण तथा क्षेत्रीय विकास संभव हुआ है।

भारत का घरेलू विमानन बाजार

  • यात्री और कार्गो की बढ़ती मात्रा: एविएशन एनालिटिक्स फर्म ऑफिशियल एयरलाइन गाइड (OAG) के आँकड़ों के अनुसार, भारत अब अमेरिका और चीन के बाद तीसरा सबसे बड़ा घरेलू विमानन बाजार है।
    • भारत में वर्तमान में 240 मिलियन वार्षिक यात्री हैं, जिसके वर्ष 2030 तक बढ़कर 500 मिलियन हो जाने का अनुमान है।
    • एयर कार्गो के वर्ष 2030 तक 3.5 से 10 मिलियन मीट्रिक टन तक बढ़ने का अनुमान है।
  • बेड़े का विस्तार: भारतीय एयरलाइनों ने 2,000 से अधिक विमानों के लिए ऑर्डर दिए हैं, जो बाजार में मजबूत विश्वास को दर्शाता है।

  • तेजी से विस्तार: वर्ष 2014 में परिचालन हवाई अड्डों की संख्या 74 से बढ़कर वर्ष 2025 में 162 हो गई। यात्री हैंडलिंग क्षमता अब वार्षिक रूप से 500 मिलियन है।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (Public-Private Partnership- PPP) मॉडल: नीतिगत प्रोत्साहन, सुव्यवस्थित विनियमन और सरलीकृत करों के माध्यम से प्रोत्साहित किए गए PPP मॉडल का उपयोग करके हवाई अड्डों का विकास तथा पुनर्विकास किया जा रहा है।
  • रखरखाव और पट्टे: MRO सुविधाएँ 96 से बढ़कर 154 हो गई हैं।
    • नई नीतियों में पूर्ण FDI, कम GST और MRO सेवाओं के लिए युक्तिसंगत कर की अनुमति दी गई है।
  • विमान पट्टे और कानूनी ढाँचा
    • विमानन वस्तुओं में हितों की सुरक्षा विधेयक को केपटाउन कन्वेंशन के साथ संरेखित करने के लिए पारित किया गया।
    • GIFT सिटी में प्रोत्साहन वैश्विक पट्टेदारों को आकर्षित कर रहे हैं।
  • हरित विमानन पहल: सतत् विमानन ईंधन और कार्बन उत्सर्जन में कमी पर ध्यान केंद्रित करना।
    • हरित हवाई अड्डे के बुनियादी ढाँचे और प्रौद्योगिकी का विकास, जैसे कि दिल्ली में इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय (Indira Gandhi International- IGI) हवाई अड्डा, जो पूर्ण रूप से नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर चलता है, जिससे यह भारत का पहला कार्बन-तटस्थ हवाई अड्डा बन जाता है।
  • डिजिटल यात्रा नवाचार: भारत की डिजी यात्रा एक कागज रहित, फेस रिकॉग्निशन आधारित ऐप है, जो निर्बाध, सुरक्षित यात्रा सुनिश्चित करता है।
    • इसे वैश्विक दक्षिण के लिए एक मॉडल के रूप में स्थापित किया गया है।
  • लैंगिक समावेशन में नेतृत्व: पायलट की नौकरियों में महिलाओं की हिस्सेदारी 15% (वैश्विक औसत से तीन गुना अधिक), केबिन क्रू संबंधी नौकरियों में 86% और इंजीनियरिंग संबंधी नौकरियों में उनकी महत्त्वपूर्ण हिस्सेदारी है।
  • सामाजिक सशक्तीकरण के लिए ड्रोन प्रौद्योगिकी: ड्रोन कृषि, स्वास्थ्य और रसद क्षेत्रों में महिला SHG को सशक्त बना रहे हैं।
  • वैश्विक प्रतिबद्धताएँ
    • शिकागो कन्वेंशन के ICAO मानदंडों और सिद्धांतों को अपनाना।
    • एशिया-प्रशांत मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में दिल्ली घोषणा-पत्र ने भारत के विमानन नेतृत्व की पुष्टि की।

संदर्भ

जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (National Action Plan for Climate Change- NAPCC) के साथ सतत् परिवहन मिशन भी संचालित किया जाएगा।

  • इस मिशन के प्रारंभ के बाद से इसे NAPCC में पहली बार शामिल किया जाएगा।

जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (National Action Plan on Climate Change- NAPCC) के बारे में 

  • NAPCC ने जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से निपटने और भारत के विकास पथ की पारिस्थितिकी स्थिरता को सक्षम करने के लिए 8 राष्ट्रीय मिशनों के साथ एक राष्ट्रीय शमन और अनुकूलन रणनीति की रूपरेखा तैयार की है।
  • जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) वर्ष 2008 में शुरू की गई थी।
  • मिशन
    • राष्ट्रीय सौर मिशन: देश में केंद्रीयकृत एवं विकेंद्रीकृत दोनों स्तरों पर सौर प्रौद्योगिकी के प्रसार के लिए अनुकूल वातावरण स्थापित करने पर ध्यान केंद्रित करना।
      • लक्ष्य: वर्ष 2022 तक 100 गीगावाट सौर ऊर्जा क्षमता स्थापित करना।
    • उन्नत ऊर्जा दक्षता के लिए राष्ट्रीय मिशन: इसका उद्देश्य अनुकूल विनियामक और नीति व्यवस्था का निर्माण कर ऊर्जा दक्षता हेतु बाजार को मजबूत करना है।
      • संबंधित पहल
        • प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार (Perform, Achieve and Trade- PAT)
        • ऊर्जा दक्षता के लिए बाजार परिवर्तन (Market Transformation for Energy Efficiency- MTEE)
        • ऊर्जा दक्षता वित्तपोषण मंच (Energy Efficiency Financing Platform- EEFP)
        • ऊर्जा कुशल आर्थिक विकास के लिए रूपरेखा (Framework for Energy Efficient Economic Development- FEEED)।
    • राष्ट्रीय सतत् आवास मिशन: सतत् आवास मानकों का विकास, जो जलवायु परिवर्तन से संबंधित चिंताओं को संबोधित करते हुए मजबूत विकास रणनीतियों की ओर मार्ग प्रशस्त करता है।
    • राष्ट्रीय जल मिशन: जल संरक्षण, जल अपव्यय को कम करने और राज्यों में अधिक न्यायसंगत जल वितरण सुनिश्चित करने के लिए एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन सुनिश्चित करना।
    • हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय मिशन: यह हिमालयी ग्लेशियरों को पिघलने से रोकने और हिमालयी क्षेत्र में जैव विविधता की रक्षा करने का लक्ष्य निर्धारित करता है।
    • राष्ट्रीय हरित भारत मिशन: इसका उद्देश्य पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की गुणवत्ता बढ़ाकर अनुकूलन और शमन उपायों के संयोजन द्वारा जलवायु परिवर्तन का जवाब देना है।
    • राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन: इसका उद्देश्य कृषि को अधिक उत्पादक, सतत्, लाभकारी और जलवायु अनुकूल निर्माण करना है।
    • जलवायु परिवर्तन के लिए रणनीतिक ज्ञान पर राष्ट्रीय मिशन: इसका उद्देश्य पारिस्थितिकी रूप से सतत् विकास के उद्देश्य को प्रभावी ढंग से पूरा करने के लिए राष्ट्रीय कार्रवाई को सूचित करने और समर्थन देने वाली एक जीवंत और गतिशील ज्ञान प्रणाली का निर्माण करना है।

सतत् परिवहन मिशन के बारे में

  • उद्देश्य: नए मिशन का उद्देश्य वाहनों से होने वाले उत्सर्जन को कम करना और शुद्ध-शून्य लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए समग्र परिवहन क्षेत्र में हरित नीतियों को विकसित करना है।
  • क्षेत्रीय केंद्रीकरण: मिशन सड़क परिवहन, रेलवे, बंदरगाह, शिपिंग और नागरिक उड्डयन जैसे उप-क्षेत्रों के लिए क्षेत्र-विशिष्ट पहलों और नीतियों पर ध्यान केंद्रित करेगा।
  • नोडल मंत्रालय: सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (Ministry of Road Transport and Highways – MORTH) नोडल मंत्रालय है, जो भारतीय रेलवे, MoCA (नागरिक उड्डयन) और शिपिंग मंत्रालय के साथ सहयोग करेगा।
  • कारक: मिशन रसद में परिवर्तन, सड़कों और वाहनों के डिजाइन, कानून, उपभोक्ता व्यवहार, शहरी नियोजन, अंतरराष्ट्रीय मानदंडों, वैकल्पिक ईंधन और इलेक्ट्रिक वाहनों के साथ उत्सर्जन मानकों को निर्धारित करने जैसे कारकों पर ध्यान केंद्रित करेगा।
  • क्षेत्रीय उपाय
    • सड़क परिवहन क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करना: यह मिशन विशेष रूप से सड़क परिवहन उत्सर्जन मानकों और कटौती पर ध्यान केंद्रित करेगा तथा इसमें BS-VII जैसे नए मानक शामिल होंगे, इसके अलावा वैकल्पिक ईंधन एवं इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) पर भी ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
      • सरकार ने वर्ष 2030 तक नए निजी वाहनों के पंजीकरण में 30% हिस्सा EV का रखने का लक्ष्य रखा है।
    • रेलवे: मुख्य रूप से परिचालन के विद्युतीकरण और अपने मुख्य ऊर्जा स्रोत में नवीकरणीय ऊर्जा को जोड़कर, वर्ष 2030 तक शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जक के रेल मंत्रालय के लक्ष्य को प्राप्त करना।
    • नागरिक उड्डयन: विमानन क्षेत्र के लिए योजना मोटे तौर पर अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (International Civil Aviation Organization- ICAO) द्वारा निर्दिष्ट वर्ष 2050 तक नेट जीरो उत्सर्जन में संक्रमण के मौजूदा अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप होगी।
      • ICAO का उद्देश्य स्वच्छ ऊर्जा के उपयोग के माध्यम से वर्ष 2030 तक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को 5 प्रतिशत तक कम करना है।
      • ICAO अंतरराष्ट्रीय विमानन के लिए कार्बन संतुलन और शमन योजना शुरू करने की भी योजना बना रहा है।
        • कार्बन संतुलन और शमन योजना: यह एक बाजार आधारित उपाय है, जो आधारभूत स्तर से आगे कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में किसी भी वृद्धि को संतुलित करता है।
    • शिपिंग: अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन ने वर्ष 2050 तक नेट जीरो फ्रेमवर्क पर पहले ही सहमति दे दी है और इस क्षेत्र में बंदरगाह मंत्रालय के प्रयासों का मार्गदर्शन करेगा।
      • शिपिंग उद्योग जहाजों पर पहला वैश्विक कार्बन शुल्क आरोपित करने की योजना बना रहा है।

सतत् परिवहन के बारे में

  • सतत् परिवहन से तात्पर्य, परिवहन के सुरक्षित साधनों से है, जो जीवाश्म ईंधन के बजाय नवीकरणीय स्रोतों का उपयोग करके पर्यावरण पर कम प्रभाव डालते हैं। 
  • उदाहरण
    • वैकल्पिक ईंधन: जैव ईंधन, हाइड्रोजन ईंधन सेल और प्राकृतिक गैस वाहनों के लिए जीवाश्म ईंधन के विकल्प प्रदान कर सकते हैं।
    • इलेक्ट्रिक वाहन: चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर घनत्व में वृद्धि के साथ-साथ इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाना।
    • सार्वजनिक परिवहन: BRTS, मेट्रो, जीरो एमिशन बसें, ट्राम, ई-रिक्शा आदि जैसी सार्वजनिक परिवहन प्रणालियों का बढ़ता उपयोग।
  • उत्सर्जन में परिवहन क्षेत्र का योगदान
    • वायु प्रदूषण: परिवहन, ऊर्जा-संबंधी कार्बन उत्सर्जन का सबसे तेजी से बढ़ता स्रोत है, जो विश्व बैंक के अनुसार, शहरी वायु प्रदूषण में 12 से 70% तक का योगदान देता है।
    • भारत: भारत का परिवहन क्षेत्र लगभग 375 मिलियन टन प्रत्यक्ष कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में योगदान देता है, जो भारत के कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का लगभग 10% है।
      • सड़क परिवहन: यह परिवहन संबंधी उत्सर्जन का लगभग 90% है और भारत में प्रदूषण में इसका सबसे बड़ा योगदान है, जो देश के कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन का लगभग 12% है।

सतत् परिवहन की आवश्यकता

  • ऊर्जा पर निर्भरता में कमी: सतत् परिवहन में प्रायः ऊर्जा-कुशल विकल्प शामिल होते हैं, जैसे इलेक्ट्रिक वाहन या सार्वजनिक परिवहन में बेहतर ईंधन दक्षता, जिससे जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम होती है और प्रदूषण को रोका जा सकता है।
    • MoSPI के भारत में ऊर्जा सांख्यिकी 2025 के आँकड़ों के अनुसार, भारत के कुल ऊर्जा उत्पादन में कोयले की हिस्सेदारी वर्ष 2023- 2024 में 79% बढ़कर 16,906 पेटाजूल (PJ) हो जाएगी, जो पिछले वर्ष की तुलना में लगभग दो प्रतिशत अधिक है।

  • पहुँच और गतिशीलता में वृद्धि: सतत् परिवहन प्रणालियाँ स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और रोजगार जैसी आवश्यक सेवाओं तक भीड़भाड़ को कम करके लोगों की पहुँच में सुधार करती हैं, जिससे अधिक उत्पादक और आर्थिक रूप से सक्रिय आबादी का निर्माण होता है।
    • उदाहरण: भारत की योजना वर्ष 2030 तक 50,000 इलेक्ट्रिक बसें चलाने की है, जिनमें से 10,000 इलेक्ट्रिक बसें 100 से अधिक शहरों में चलाई जाएँगी।
  • उत्सर्जन में कमी: इन परिवहन प्रणालियों में इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों की ओर अंतरण, वैकल्पिक हरित ईंधन का उपयोग, सड़कों पर सफेद कोटिंग, कम उत्सर्जन वाले सार्वजनिक परिवहन का उपयोग आदि शामिल हैं, जो जलवायु परिवर्तन को कम करने हेतु ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में मदद करते हैं।
    • उदाहरण: WRI के एक अध्ययन से पता चला है कि सार्वजनिक परिवहन का उपयोग निजी वाहनों की तुलना में प्रति किलोमीटर प्रति यात्री ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को दो-तिहाई तक कम कर सकता है।
  • बेहतर वायु गुणवत्ता: नवीकरणीय ऊर्जा द्वारा संचालित सार्वजनिक परिवहन प्रणालियों के उपयोग से वायु प्रदूषण में कमी आएगी और श्वसन संबंधी बीमारियों तथा संबंधित स्वास्थ्य देखभाल लागतों में कमी आने से तत्काल स्वास्थ्य लाभ होगा।
  • भीड़भाड़ कम करना: सार्वजनिक परिवहन प्रणालियाँ, जैसे कि बसें, ट्राम, सबवे और ट्रेनें, कम जगह में अधिक लोगों को ले जाने संबंधी अधिक यात्री क्षमता रखती हैं, जिससे यातायात की भीड़भाड़ कम होती है।
    • उदाहरण: दिल्ली मेट्रो के शुभारंभ से यातायात की भीड़ में काफी कमी आई है और वायु प्रदूषण के स्तर में मामूली सुधार हुआ है।

सतत् परिवहन कार्यान्वयन की चुनौतियाँ

  • सड़क चुनौती: सड़क परिवहन क्षेत्र के लिए अभी भी कोई अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहमत नेट-जीरो योजना नहीं है, जो शिपिंग और विमानन क्षेत्र के विपरीत एक प्रमुख उत्सर्जन स्रोत है।
    • उदाहरण: अंतरराष्ट्रीय शिपिंग और विमानन क्षेत्र का लक्ष्य वर्ष 2050 तक नेट-जीरो उत्सर्जन में बदलाव करना है।
  • इलेक्ट्रिक वाहन (EV) संबंधी चुनौती: प्रौद्योगिकी, चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर, निवेश, वित्त और विपणन से संबंधित मौजूदा समस्याओं ने इलेक्ट्रिक वाहन में बदलाव को काफी मुश्किल और विलंबित बना दिया है।
    • उदाहरण: इलेक्ट्रिक वाहन प्रति वर्ष 200 आधार अंकों की वृद्धि दर से बाजार में प्रवेश कर रहे हैं और वर्ष 2030 के लक्ष्य तक पहुँचने के लिए आवश्यक दर लगभग दोगुनी है।
  • बुनियादी ढाँचे की उच्च लागत: पैदल यात्रियों के अनुकूल सड़कें, सार्वजनिक परिवहन प्रणाली, रेल नेटवर्क का विस्तार, वैकल्पिक ईंधन आदि जैसे नए बुनियादी ढाँचे के लिए भारी निवेश की आवश्यकता होगी, जो विकासशील देशों के लिए मौजूदा चुनौतियों को बनाए रखने में एक चुनौती है।
    • नाइट फ्रैंक इंडिया रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2030 तक 7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लिए भारत को बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए 2.2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश की आवश्यकता होगी।
  • इलेक्ट्रॉनिक कचरे में वृद्धि: EV और हाइब्रिड वाहनों जैसी प्रौद्योगिकी आधारित स्मार्ट और संधारणीय परिवहन प्रणाली इलेक्ट्रॉनिक कचरे के उत्पादन और ऊर्जा उपयोग सहित संसाधनों की खपत में वृद्धि करेगी।
    • उदाहरण: भारत ने वर्ष 2022 से अब तक 49.88 लाख मीट्रिक टन इलेक्ट्रॉनिक कचरा उत्पन्न किया है और केवल 2,570.26 मीट्रिक टन लीथियम-आयन अपशिष्ट बैटरियों का पुनर्चक्रण किया है।
  • उपभोक्ता व्यवहार में बदलाव: अविकसित, अविश्वसनीय या दुर्गम सार्वजनिक परिवहन प्रणाली लोगों को निजी वाहनों पर निर्भर रहने के लिए मजबूर करती है, जिससे भीड़भाड़ और प्रदूषण बढ़ता है।
    • उदाहरण: नम्मा मेट्रो (बंगलूरू) में सार्वजनिक परिवहन के उपयोग में वृद्धि के कारण यातायात की भीड़ में उल्लेखनीय कमी देखी गई है, खासकर उच्च यातायात वाले क्षेत्रों में।
  • अतिक्रमण: तेजी से शहरीकरण के कारण सड़कें भीड़भाड़ और अतिक्रमण युक्त हो जाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप यातायात जाम और आवागमन समय अधिक होता है।
  • माल ढुलाई के अनुकूल: रेल, ट्रक और जहाज जैसे परिवहन के विभिन्न साधनों को एक एकल, समन्वित आपूर्ति शृंखला में एकीकृत करने के लिए बहुत अधिक परिचालन और रसद दक्षता की आवश्यकता होती है।

केस स्टडी: सतत् परिवहन प्रथाएँ

  • नीदरलैंड: नीदरलैंड एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाता है, जिसमें विद्युतीकरण, साइकिलिंग अवसंरचना और नवीन सार्वजनिक परिवहन समाधान शामिल हैं।
    • इलेक्ट्रिक ट्रेनें: नीदरलैंड में सभी इलेक्ट्रिक यात्री ट्रेनें वर्ष 2017 से हरित ऊर्जा से संचालित हो रही हैं।
    • शून्य उत्सर्जन वाली बसें: वर्ष 2025 से सभी नई बसें 100% नवीकरणीय ऊर्जा या ईंधन का उपयोग करेंगी, जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक सभी बसों को पूरी तरह से उत्सर्जन-मुक्त बनाना है।
    • साइकिलिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर: नीदरलैंड अपने व्यापक और सुव्यवस्थित साइकिलिंग पथों के लिए प्रसिद्ध है, जो साइकिलिंग को परिवहन के प्राथमिक साधन के रूप में बढ़ावा देता है।
  • स्वीडन: स्वीडन का लक्ष्य वर्ष 2045 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करना है, जिसके लिए सार्वजनिक परिवहन द्वारा कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए संचालित परियोजनाओं पर कार्य चल रहा है।
    • अक्षय ऊर्जा: वर्ष 2017 से स्टॉकहोम में सभी ट्रेनें और बसें 100% अक्षय ऊर्जा का उपयोग कर रही हैं।
    • इलेक्ट्रिसिटी परियोजना: गोथेनबर्ग में, इलेक्ट्रिसिटी परियोजना इलेक्ट्रिक बसों सहित सतत् सार्वजनिक परिवहन के लिए नए समाधानों का परीक्षण करती है।
  • लक्जमबर्ग: वर्ष 2020 से, लक्जमबर्ग ने निजी कारों की तुलना में सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने के लिए सभी ट्रेनों, बसों और ट्रामों पर मुफ्त सार्वजनिक परिवहन की पेशकश की है।
  • फ्राँस: इसने एक हाई-स्पीड रेल नेटवर्क विकसित किया है और परिवहन में जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम करने के लिए नीतियों को लागू किया है।
    • हाई-स्पीड रेल: फ्राँस का TGV नेटवर्क शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों को कुशलतापूर्वक जोड़ता है, जिससे कार से यात्रा करने की आवश्यकता कम हो जाती है।
    • ईंधन कर और EV प्रोत्साहन: सरकार ने जीवाश्म ईंधन के उपयोग को हतोत्साहित करने के लिए ईंधन कर लागू किया है और यह इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने के लिए प्रोत्साहन प्रदान करती है।

आगे की राह 

  • कुशल लॉजिस्टिक मॉडल: इसमें मुख्य रूप से सड़क परिवहन से लंबी दूरी के शिपमेंट के लिए रेल और जल परिवहन के संयोजन में परिवर्तन करना शामिल है, जिससे यह लागत प्रभावी, ऊर्जा कुशल और पर्यावरण के अनुकूल बन जाता है।
    • उदाहरण: नीदरलैंड, जर्मनी और डेनमार्क जैसे कई यूरोपीय देश, लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन के मामले में लगातार उच्च स्थान पर हैं, विशेष रूप से इंटरमॉडल माल परिवहन में।
  • स्मार्ट मोबिलिटी समाधान: इसमें रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (बस रैपिड ट्रांजिट (BRT) या मेट्रो रेल) ​​और संपर्क रहित भुगतान प्रणाली, वास्तविक समय यात्री सूचना तथा बाइक-शेयरिंग सिस्टम जैसे परिवहन के अन्य साधनों के साथ एकीकरण जैसी नवीन तकनीकों को शामिल किया गया है।
    • उदाहरण: लंदन ने ऑयस्टर कार्ड प्रणाली शुरू की है, जिसका उपयोग सार्वजनिक परिवहन में “पे ऐज यू गो” यात्रा सिद्धांत के आधार पर किया जाता है।
  • इलेक्ट्रिक वाहन और इलेक्ट्रिक वाहन अवसंरचना: कर छूट और अन्य प्रोत्साहन देकर इलेक्ट्रिक वाहन अपनाने को बढ़ावा देना तथा इस बदलाव को आवश्यक बनाने वाले EV अवसंरचना का निर्माण करना सतत् परिवहन की राह में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
    • उदाहरण: नॉर्वे इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) को अपनाने में वैश्विक रूप से अग्रणी है और हरित परिवहन को बढ़ावा देने के लिए EV चार्जिंग पॉइंट और टोल तक मुफ्त पहुँच जैसे प्रोत्साहन प्रदान करता है।
  • सड़क इंजीनियरिंग और शहरी नियोजन: संधारणीय परिवहन सिद्धांतों पर केंद्रित शहरी नियोजन के परिणामस्वरूप एक सार्वजनिक परिवहन प्रणाली का निर्माण होगा, जो पारगमन-उन्मुख और गैर-मोटर चालित परिवहन पर केंद्रित होगी।
    • उदाहरण: सिंगापुर की एकीकृत परिवहन प्रणाली ने बसों, ट्रेनों और ट्रामों सहित सार्वजनिक परिवहन के विभिन्न साधनों को एक निर्बाध नेटवर्क में एकीकृत किया है, जिसके परिणामस्वरूप भीड़भाड़ और प्रदूषण में कमी आई है।
  • कार्गो परिवहन के लिए संधारणीय/वैकल्पिक ईंधन: पारंपरिक जीवाश्म ईंधन आधारित ईंधन से जैव ईंधन, मेथेनॉल, तरलीकृत प्राकृतिक गैस (Liquefied Natural Gas- LNG), CNG, हाइड्रोजन जैसे हरित विकल्प को सभी परिवहन क्षेत्रों में तीव्र गति से अपनाना।
    • उदाहरण: भारत वर्ष 2030 तक पेट्रोल में 30% एथेनॉल मिश्रण का नया लक्ष्य निर्धारित करने के लिए कमर कस रहा है, जिसने वर्ष 2025 में 20% मिश्रण पहले ही हासिल कर लिया है।
  • विनियमन: सरकारी विनियमों को उत्सर्जन मानकों की स्थापना, सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने और वैकल्पिक ईंधन को प्रोत्साहित करने, इलेक्ट्रिक वाहनों को वित्तपोषित करने आदि जैसी सतत् परिवहन गतिविधियों को अपनाने को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। 
    • उदाहरण: भारत ने यूरोपीय संघ के मानकों के आधार पर भारत मानक को अपनाया।

सतत् परिवहन के लिए भारत सरकार की पहल

  • इलेक्ट्रिक वाहन (EV) प्रोत्साहन
    • फेम इंडिया योजना: यह योजना बसों, तिपहिया वाहनों और इलेक्ट्रिक टैक्सियों सहित इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी प्रदान करती है।
    • राष्ट्रीय इलेक्ट्रिक बस कार्यक्रम (National Electric Bus Program-NEBP): इस कार्यक्रम का लक्ष्य वर्ष 2030 तक भारतीय शहरों में 50,000 इलेक्ट्रिक बसें संचालित करना है।
    • कर छूट: लीथियम को सीमा शुल्क से पूरी तरह छूट दी गई है, जिससे EV की सामर्थ्य और पहुँच में वृद्धि होगी।
  • पारगमन उन्मुख विकास: उच्च गुणवत्ता वाली सार्वजनिक परिवहन प्रणालियों के निकट पैदल चलने योग्य मार्गों का निर्माण करना ताकि पहुँच को अधिकतम किया जा सके और निजी वाहनों पर निर्भरता को कम किया जा सके तथा सतत् शहरी विकास को बढ़ावा दिया जा सके।
  • मेट्रो रेल विस्तार: प्रमुख शहरों में मेट्रो प्रणालियों का विस्तार हो रहा है, जो कार आधारित आवागमन के लिए स्वच्छ और कुशल विकल्प प्रदान कर रही हैं।
  • पीएम गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान (NMP): यह ग्रीन लॉजिस्टिक्स और स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को बढ़ावा देने के लिए राजमार्गों, रेलवे, बंदरगाहों, हवाई अड्डों तथा लॉजिस्टिक्स बुनियादी ढाँचे में मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • राष्ट्रीय रेल योजना: इस योजना का उद्देश्य रेलवे के पर्यावरणीय लाभों को पहचानते हुए वर्ष 2030 तक भारतीय रेलवे की माल ढुलाई हिस्सेदारी को 45% तक बढ़ाना है। रेलवे ने वर्ष 2030 तक नेट जीरो लक्ष्य निर्धारित किया है।

निष्कर्ष 

NAPCCC में सतत् परिवहन पर मिशन को शामिल करना सही दिशा में उठाया गया एक कदम है, जो परिवहन क्षेत्र के उत्सर्जन को कम करने पर आवश्यक ध्यान केंद्रित करेगा और साथ ही सुरक्षित, सतत्, कुशल और जलवायु अनुकूल सुलभ गतिशीलता विकल्प प्रदान करेगा।

संदर्भ

पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करते हुए भाजपा सांसद रविशंकर प्रसाद ने लंदन में कहा, ‘पाकिस्तान प्रायोजित सीमापार आतंकवाद के बीच गांधी जी का अहिंसा सिद्धांत वर्तमान में भी महत्त्वपूर्ण बना हुआ है।’

गांधीवादी सिद्धांत

महात्मा गांधी के मूल सिद्धांत, जिन्हें गांधीवादी सिद्धांत भी कहा जाता है, सत्य, अहिंसा और आत्मनिर्भरता से संबंधित हैं।

  • ये सिद्धांत, सत्यनिष्ठा, चोरी न करना, अपरिग्रह और निर्भयता जैसे अन्य सिद्धांतों के साथ, सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन प्राप्त करने के लिए उनके दर्शन और तरीकों का मार्गदर्शन करते हैं।

‘बदले की भावना विश्व को अंधा बना सकती है’ :- महात्मा गांधी

  • अहिंसा: गांधीवादी दर्शन का मूल, अहिंसा सभी प्रकार की हिंसा के विरुद्ध है – चाहे वह शारीरिक हो, मौखिक हो या मनोवैज्ञानिक।
    • अहिंसा को हथियारों से भी अधिक शक्तिशाली नैतिक बल के रूप में देखा जाता है।
  • सत्य: गांधी जी का मानना ​​था कि सत्य सर्वोच्च नैतिक गुण है, जो व्यक्तिगत ईमानदारी और सामाजिक न्याय के लिए मौलिक है।

‘मैं मानता हूँ कि जहाँ कायरता और हिंसा के बीच ही कोई विकल्प हो, वहाँ मैं हिंसा की सलाह दूँगा।’

  • आत्मनिर्भरता (स्वदेशी): आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता का समर्थन, स्थानीय उत्पादन और सामुदायिक सशक्तीकरण पर जोर देगा।
  • मैत्री और सद्भावना (सद्भाव): सद्भाव लोगों के बीच सद्भावना, सामंजस्य और आपसी सम्मान पर जोर देता है, सकारात्मक संबंधों और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को बढ़ावा देता है।
  • सर्वोदय (सार्वभौमिक उत्थान): सभी का कल्याण गांधी के दृष्टिकोण का केंद्र है। सर्वोदय का अर्थ है यह सुनिश्चित करना कि समाज का अंतिम व्यक्ति प्रगति से लाभान्वित हो।
  • नैतिक साहस और प्रतिरोध: नैतिक साहस विपरीत परिस्थितियों में भी दृढ़ रहने की क्षमता है तथा  हिंसा का सहारा लिए बिना नैतिक मूल्यों और न्याय के प्रति निष्ठावान रहना है।
  • असहयोग (सत्याग्रह): गांधी का सत्याग्रह उत्पीड़न के शांतिपूर्ण प्रतिरोध के माध्यम से अन्यायपूर्ण प्रणालियों और शासनों के साथ असहयोग का समर्थन करता है।

गांधी और आतंकवाद

  • आतंकवाद को रोकने के लिए गांधी जी का दृष्टिकोण
    • मूल कारणों का सामना करना: गांधी का मानना ​​था कि केवल आतंकवाद के कृत्यों पर ध्यान केंद्रित करना मूल कारणों के स्थान लक्षणों को संबोधित करने के समान होगा।
    • हिंसा को रोकना: गांधी ने सुझाव दिया कि हिंसा को रोकने के प्रयास अहिंसक लेकिन सशक्त होने चाहिए, जो हिंसक कृत्यों को रोकने के लिए सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन लाने पर केंद्रित हों।
    • शक्ति के रूप में अहिंसा: गांधी का मानना ​​था कि अहिंसा सबसे शक्तिशाली शक्ति है। प्रतिशोध और हिंसा केवल संघर्ष और पीड़ा को बढ़ाती है।
      • आतंकवाद को प्रायः हिंसा से बढ़ावा मिलता है, जो राष्ट्रों के बीच वैमनस्य और अविश्वास को बढ़ाता है। गांधी का अहिंसा का सिद्धांत इस गतिशीलता को चुनौती देता है।
    • आर्थिक लचीलापन: यह आतंकवाद के प्रति संवेदनशीलता को कम करने के लिए स्थानीय सशक्तीकरण और आर्थिक अवसरों को बढ़ावा देता है।
    • समुदाय नेतृत्व वाली सुरक्षा: विदेशी सैन्य हस्तक्षेप के स्थान पर स्थानीय खुफिया नेटवर्क और समुदाय आधारित शांति निर्माण को प्रोत्साहित करता है।
    • अंतरराष्ट्रीयता और शांति: गांधी का राष्ट्रीय सुरक्षा का दृष्टिकोण भारत तक ही सीमित नहीं था।
      • वह मानवता के वैश्विक अंतर्संबंध में विश्वास करते थे तथा आतंकवाद और अन्याय जैसे मुद्दों के समाधान के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग का समर्थन करते थे।
    • वैश्विक बंधुत्व: वैश्विक शांति और पारस्परिक सम्मान में गांधी जी का विश्वास वर्तमान विश्व में अत्यधिक प्रासंगिक है, जहाँ सीमापार आतंकवाद के मूल कारणों को दूर करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है।
  • गांधीवादी दर्शन में साधन बनाम साध्य
    • नैतिक संगति: गांधी का मानना ​​था कि किसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले साधन लक्ष्य के अनुरूप होने चाहिए।
      • गांधी के लिए, आतंकवाद सहित किसी भी राजनीतिक या सामाजिक उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए हिंसक साधनों का कोई औचित्य नहीं हो सकता।
    • साधन के रूप में सत्य और अहिंसा: गांधी का मानना ​​था कि सत्य और अहिंसा किसी भी आंदोलन के मार्गदर्शक सिद्धांत होने चाहिए, हिंसा इसमें शामिल लोगों को केवल भ्रष्ट करती है, चाहे उनका कारण कुछ भी हो।
      • गांधी का मानना ​​था कि सत्य आतंकवाद और उसके प्रायोजकों को प्रदर्शित करता है। आतंकवादियों और राज्यों को जवाबदेह ठहराने में पारदर्शिता महत्त्वपूर्ण है।

आधुनिक युद्ध के संदर्भ में गांधी जी का नैतिक ढाँचा

  • पारंपरिक युद्ध का विकल्प: गांधी की नैतिकता युद्ध के पारंपरिक तरीकों के विकल्प सुझाती है, जिसमें कूटनीतिक जुड़ाव, सॉफ्ट पॉवर और तनाव बढ़ाने के बजाय शांति की संस्कृति को बढ़ावा देना शामिल है।
    • सीमापार आतंकवाद के संदर्भ में, अहिंसक दृष्टिकोण में अंतरराष्ट्रीय कानून के उल्लंघन को संबोधित करना, सार्वभौमिक मानवाधिकारों का समर्थन करना और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना शामिल हो सकता है।
  • रणनीतिक अहिंसा: सविनय अवज्ञा और असहयोग के प्रति गांधी का दृष्टिकोण एक अहिंसक प्रतिरोध रणनीति थी।
    • सीमापार आतंकवाद के मामले में, देश हिंसा का सहारा लेने के स्थान पर आर्थिक प्रतिबंधों, अंतरराष्ट्रीय अलगाव और कूटनीतिक दबाव के माध्यम से हानिकारक कार्यों के प्रति अहिंसक प्रतिरोध में संलग्न हो सकते हैं।

गांधी जी और भारत की आतंकवाद-रोधी रणनीति

  • ऑपरेशन सिंदूर: पहलगाम (2025) में हुए आतंकी हमले के जवाब में भारत ने निर्णायक जवाबी कार्रवाई की रणनीति अपनाई, साथ ही तनाव को बढ़ने से रोकने के लिए संयम बरता, जो रणनीतिक धैर्य और नैतिक संयम पर गांधी के प्रभाव को दर्शाता है।
  • पारदर्शिता: आतंकवाद विरोधी अभियानों में जवाबदेही और मानवाधिकारों को बढ़ावा देता है, जिससे नागरिकों को कोई नुकसान न पहुँचे।
  • भारत की नीति है कि ‘आतंकवाद और वार्ता साथ-साथ नहीं चल सकते।
  • वैश्विक पहुँच और समर्थन: सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल जैसी पहलों के माध्यम से, भारत ने राज्य प्रायोजित आतंकवाद के बारे में वैश्विक जागरूकता बढ़ाने के अपने प्रयासों में सत्य और अहिंसा पर जोर दिया है, जो कूटनीतिक प्रयासों में वैश्विक शांति तथा सत्य-कथन आधारित गांधी के विचारों को प्रतिध्वनित करता है।
  • विश्वास का निर्माण: राष्ट्रों, समुदायों और व्यक्तियों के बीच सहयोग तथा विश्वास-निर्माण को बढ़ावा देता है, जो आतंकवाद का मुकाबला करने एवं संघर्षों को हल करने में आवश्यक है।

  • ‘मेरी अहिंसा, खतरे से भागने की अनुमति नहीं देती।’
  • ‘मैं एक पूरी जाति को नष्ट करने का जोखिम उठाने की अपेक्षा हजार बार हिंसा का जोखिम उठाने को तैयार हूँ।’

आतंकवाद विरोध में गांधीवादी सिद्धांतों को अपनाने में चुनौतियाँ

  • व्यावहारिक राजनीति बनाम अहिंसा: आधुनिक कूटनीति प्रायः राष्ट्रीय सुरक्षा और सैन्य हस्तक्षेप पर केंद्रित होती है, जबकि गांधी के अहिंसा के दर्शन में नैतिक जुड़ाव की आवश्यकता होती है।
    • 9/11 के हमले के बाद अमेरिका द्वारा शुरू किया गया आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध, आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए सैन्य कार्रवाइयों (जैसे- इराक युद्ध, अफगानिस्तान पर आक्रमण) पर अत्यधिक निर्भर था, जो गांधी जी के अहिंसा और संवाद के सिद्धांत के बिल्कुल विपरीत था।
  • तत्काल प्रतिक्रिया की आवश्यकता: आधुनिक आतंकवाद के लिए तत्काल प्रतिक्रिया की आवश्यकता होती है, जो प्रायः सैन्य होती है, जबकि गांधी का निवारक दृष्टिकोण मूल कारणों को संबोधित करने के लिए दीर्घकालिक समाधानों पर केंद्रित है।
  • राजनीतिक और धार्मिक उग्रवाद: उग्रवादी विचारधाराएँ धर्म या राजनीति के नाम पर हिंसा को उचित ठहराती हैं, जिससे गांधी का अहिंसक प्रतिरोध अप्रभावी हो जाता है।
    • ISIS या अलकायदा जैसे समूह धार्मिक उग्रवाद के माध्यम से हिंसा को उचित ठहराते हैं।
  • तकनीकी युद्ध: साइबर हमलों, ड्रोन युद्ध और परमाणु हथियारों में तकनीकी प्रगति ने गांधी के अहिंसक दृष्टिकोण को जटिल बना दिया है, क्योंकि ये उपकरण हिंसा को संभव बनाते हैं।
    • ड्रोन हमलों से संघर्ष क्षेत्रों में हजारों नागरिक मारे गए हैं, मानव अधिकारों का उल्लंघन हुआ है तथा गांधी जी के अहिंसक संघर्ष समाधान के दृष्टिकोण को कमजोर किया गया है।
  • सूचना युद्ध: डिजिटल युग ने गलत सूचनाओं के विशाल प्रवाह के बीच सत्य को पहचानना चुनौतीपूर्ण बना दिया है और जबकि सत्य एक शक्तिशाली हथियार है, डीप फेक, राज्य प्रायोजित प्रचार तथा झूठ फैलाने वाले वातावरण से निपटना मुश्किल हो सकता है।
  • वैश्विक शक्ति संरचनाएँ और स्व-हित: वैश्विक शक्ति संरचनाएँ सहयोग और मानव कल्याण पर स्व-हित और सैन्य प्रभुत्व को प्राथमिकता देती हैं, जिसकी कल्पना गांधी ने वैश्विक कूटनीति में की थी।
    • वर्ष 2003 में इराक पर अमेरिकी नेतृत्व वाले आक्रमण को मानवीय चिंताओं या शांति और कूटनीति के गांधीवादी आदर्शों के स्थान पर राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं तथा भू-राजनीतिक हितों के आधार पर उचित ठहराया गया था।

आगे की राह

आतंकवाद-विरोध में गांधीवादी सिद्धांतों को अपनाना

  • दीर्घकालिक निवारक उपायों पर जोर देना: गरीबी और सामाजिक असमानता जैसे मूल कारणों पर ध्यान केंद्रित करना, न कि केवल सैन्य कार्रवाइयों पर।
    • संवेदनशील क्षेत्रों में शैक्षिक कार्यक्रम और आर्थिक विकास आतंकवाद की अपील को कम कर सकते हैं।
  • वैश्विक सहयोग और संवाद को बढ़ावा देना: सैन्य हस्तक्षेपों से ध्यान हटाकर संवाद और शांति निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना।
    • राष्ट्रों को अंतरराष्ट्रीय विवादों को संबोधित करने की प्राथमिक विधि के रूप में अहिंसक कूटनीति पर जोर देना चाहिए।
  • मानव सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करना: मानवाधिकारों, स्वास्थ्य और शिक्षा को संबोधित करके मानव सुरक्षा को प्राथमिकता देना।
    • आतंकवाद विरोधी कार्यक्रमों को केवल रक्षा पर नहीं बल्कि मानव विकास पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
  • निरस्त्रीकरण और अहिंसक कूटनीति को बढ़ावा देना: सैन्य बल के स्थान पर निरस्त्रीकरण और अहिंसक कूटनीति का समर्थन करना।
    • संयुक्त राष्ट्र निरस्त्रीकरण प्रयास गांधी के परमाणु मुक्त विश्व के दृष्टिकोण के अनुरूप हैं।
  • शिक्षा के माध्यम से वैचारिक कट्टरपंथ को संबोधित करना: कट्टरपंथ को रोकने और सहिष्णुता को बढ़ावा देने के लिए शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करना।
    • शांति शिक्षा और अंतर-धार्मिक संवाद चरमपंथी विचारधाराओं का मुकाबला करने में सहायता करते हैं।
  • सुरक्षा रणनीतियों में अहिंसक प्रतिरोध को एकीकृत करना: ऐसी स्थितियों में जहाँ आतंकवाद में राज्य प्रायोजित हिंसा या दमनकारी शासन शामिल होते हैं, अहिंसक प्रतिरोध एक शक्तिशाली रणनीति हो सकती है।
    • गांधीवादी तरीकों के रूप में सविनय अवज्ञा और असहयोग आंदोलनों को प्रोत्साहित करना हिंसा का सहारा लिए बिना नागरिकों को संगठित कर सकता है।
  • सहिष्णुता और समझ की संस्कृति का निर्माण: विभिन्न समुदायों के मध्य सामाजिक सामंजस्य, सहिष्णुता और समझ को बढ़ावा देना।
    • सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम और धार्मिक समूहों के बीच संवाद, तनाव को कम करते हैं।

निष्कर्ष

गांधी के अहिंसा, सत्य और सद्भावना के सिद्धांत सीमा पार आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए एक नैतिक दिशा-निर्देश प्रदान करते हैं, जो निर्णायक कार्रवाई को प्रणालीगत सुधारों के साथ संतुलित करते हैं। इन आदर्शों को भारत की आतंकवाद विरोधी रणनीति में एकीकृत करके, जैसा कि ऑपरेशन सिंदूर और NFU में देखा गया है, भारत वैश्विक शांति को बढ़ावा देते हुए आतंकवाद से मुक्त हो सकता है।

  • गांधी जी का दर्शन संघर्षों को सुलझाने, न्याय प्रदान करने तथा राष्ट्रों एवं समुदायों के मध्य विश्वास का पुनर्निर्माण करने का मार्ग प्रदान करता है।

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