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Jun 07 2025

ग्रेटर फ्लेमिंगो अभयारण्य

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने विश्व पर्यावरण दिवस समारोह के दौरान रामनाथपुरम् जिले के धनुषकोडी में ग्रेटर फ्लेमिंगो अभयारण्य का आधिकारिक रूप से शुभारंभ किया।

ग्रेटर फ्लेमिंगो के बारे में

  • वैज्ञानिक नाम: फोनीकोप्टेरस रोजियस (Phoenicopterus Roseus)
  • वितरण: यह अफ्रीका, दक्षिणी यूरोप, दक्षिण एशिया एवं दक्षिण-पूर्व एशिया में पाया जाता है, जिसमें भारत एवं पाकिस्तान शामिल हैं।
  • संरक्षण स्थिति: IUCN की रेड लिस्ट में कम चिंताग्रस्त (Least Concern- LC)
  • भारत में उपस्थिति
    • दुनिया में फ्लेमिंगो की छह प्रजातियों में से, भारत में ग्रेटर एवं लेसर फ्लेमिंगो दोनों पाए जाते हैं।
    • ग्रेटर फ्लेमिंगो गुजरात का राजकीय पक्षी है।
  • आवास स्थान: वे खारे जल के लैगून, कीचड़ एवं खारे जल की झीलों में रहते हैं।
  • प्रवास पैटर्न: प्रत्येक वर्ष 1,00,000-1,50,000 फ्लेमिंगो गुजरात से मुंबई की ओर पलायन करते हैं।
    • वे आमतौर पर नवंबर में आते हैं एवं ठाणे क्रीक फ्लेमिंगो अभयारण्य में रुकते हैं।

ग्रेटर फ्लेमिंगो अभयारण्य के बारे में

  • यह मन्नार की खाड़ी में बायोस्फीयर रिजर्व का एक हिस्सा है, जो पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्र है।
  • उद्देश्य: प्रवासी पक्षियों की रक्षा करना एवं स्थानीय जैव विविधता को संरक्षित करना।
  • जैव विविधता
    • ग्रेटर फ्लेमिंगो एवं लेसर फ्लेमिंगो, हेरॉन, इग्रेट, सैंडपाइपर तथा प्लोवर।
    • इस क्षेत्र में मैंग्रोव, रेत के टीले, मडफ्लैट एवं दलदल जैसे महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र शामिल हैं।
    • धनुषकोडी लैगून मछली, मोलस्क एवं क्रस्टेशियंस के लिए नर्सरी के रूप में कार्य करता है, जो स्थानीय मत्स्यपालन का समर्थन करता है।
    • यह क्षेत्र समुद्री कछुओं के लिए एक महत्त्वपूर्ण प्रजनन स्थल भी है।

अंतरराष्ट्रीय प्रशासनिक विज्ञान संस्थान

भारत ने वर्ष 2025-2028 के कार्यकाल के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रशासनिक विज्ञान संस्थान (International Institute of Administrative Sciences- IIAS) की अध्यक्षता हासिल की है, यह पहली बार है, जब भारत ने यह पद सँभाला है।

अंतरराष्ट्रीय प्रशासनिक विज्ञान संस्थान (IIAS) के बारे में

  • यह एक अंतरराष्ट्रीय गैर-लाभकारी संगठन है, जो सार्वजनिक प्रशासन में वैज्ञानिक अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • मुख्यालय: ब्रुसेल्स, बेल्जियम।
  • इसके 31 सदस्य देश, 20 राष्ट्रीय खंड एवं 15 शैक्षणिक अनुसंधान केंद्र प्रशासनिक सुधारों पर सहयोग करते हैं।
  • भारत वर्ष 1998 से इसका सदस्य है।
  • IIAS संयुक्त राष्ट्र के साथ मिलकर कार्य करता है, सार्वजनिक प्रशासन पर विशेषज्ञों की समिति (CEPA) एवं संयुक्त राष्ट्र लोक प्रशासन नेटवर्क (UNPAN) में भाग लेता है।
  • हालाँकि IIAS आधिकारिक तौर पर संयुक्त राष्ट्र से संबद्ध नहीं है, यह संयुक्त राष्ट्र से संबंधित प्रशासनिक पहलों में सक्रिय रूप से शामिल है।

टिहरी PSP (वैरिएबल स्पीड पंप स्टोरेज प्लांट’)

टिहरी PSP भारत का पहला ‘वैरिएबल स्पीड पंप स्टोरेज प्लांट’ है, जिसने हाल ही में उत्तराखंड के टिहरी में अपना परिचालन शुरू किया है।

टिहरी PSP (वैरिएबल स्पीड पंप स्टोरेज प्लांट) के बारे में

  • संचालक: 1,000 मेगावाट वैरिएबल स्पीड पंप स्टोरेज प्लांट (PSP) का संचालन टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड (THDCIL) द्वारा किया जा रहा है।
  • इसके तहत टिहरी हाइड्रो पॉवर कॉम्प्लेक्स की क्षमता बढ़ाकर 2,400 मेगावाट की जाएगी, जिससे यह भारत का सबसे बड़ा हाइड्रोपॉवर कॉम्प्लेक्स बन जाएगा।
  • उद्देश्य: यह परियोजना ग्रिड स्थिरता को महत्त्वपूर्ण रूप से मजबूत करेगी एवं नवीकरणीय ऊर्जा के एकीकरण का समर्थन करेगी।
  • महत्त्व
    • यह परियोजना ‘ऑफ-पीक’ अधिशेष ऊर्जा को पीकिंग पॉवर में परिवर्तित करेगी, ग्रिड लचीलापन बढ़ाएगी एवं 24 घंटे बिजली की उपलब्धता का समर्थन करेगी।
    • टिहरी वैरिएबल स्पीड PSP भारत की नवीकरणीय ऊर्जा का प्रबंधन करने की क्षमता को बढ़ाएगी।

वैरिएबल स्पीड पंप हाइड्रो स्टोरेज (VSPS) तकनीक के बारे में

  • वैरिएबल स्पीड पंप हाइड्रो स्टोरेज (VSPS) पंप हाइड्रो एनर्जी स्टोरेज (PHES) तकनीक का एक उन्नत रूप है। यह पारंपरिक पंप हाइड्रो सिस्टम की दक्षता, लचीलापन एवं ग्रिड स्थिरता को बढ़ाता है, जिससे यह आधुनिक बिजली प्रणालियों में अक्षय ऊर्जा एकीकरण के लिए एक महत्त्वपूर्ण उपकरण बन जाता है।

काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान का विस्तार

हाल ही में असम सरकार ने काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान एवं टाइगर रिजर्व के विस्तार को मंजूरी दी।

काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान के बारे में

  • यह यूनेस्को का विश्व धरोहर स्थल है।
  • वर्ष 1974 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया।
  • स्थान: असम राज्य में गोलाघाट एवं नागोअन।
    • यह ब्रह्मपुत्र नदी एवं कार्बी (मिकिर) पहाड़ियों के बीच स्थित है।
  • नदियाँ: ब्रह्मपुत्र पार्क की उत्तरी सीमा के साथ प्रवाहित होती है।
    • डिफ्लू नदी, मोरा डिफ्लू नदी एवं मोरा धनसिरी नदी जैसी कई अन्य छोटी नदियाँ तथा धाराएँ राष्ट्रीय उद्यान से होकर गुजरती हैं।
  • परिदृश्य: विशाल जंगल, ऊँची हाथी घास, ऊबड़-खाबड़ भूमि, दलदल एवं उथले तालाब।
  • जीव-जंतु: गैंडा, बाघ, पूर्वी दलदली हिरण, हाथी, भैंसा, हूलॉक गिब्बन, कैप्ड लंगूर एवं गंगा रिवर डॉल्फिन जैसी कई लुप्तप्राय तथा संकटग्रस्त प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
  • महत्त्व
    • एक सींग वाले गैंडों की दुनिया की सबसे बड़ी आबादी: 2,613 एक सींग वाले गैंडों का आवास स्थल (वैश्विक आबादी का 70%)।
    • उच्च बाघ घनत्व: प्रति 100 वर्ग किमी. में 32.64 बाघ।

संदर्भ

CSIRसेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (CCMB), हैदराबाद द्वारा नेचर प्लांट्स में प्रकाशित एक हालिया शोधपत्र में पुष्पी पादपों में आणविक नवाचारों पर प्रकाश डाला गया है, जो चार्ल्स डार्विन के ‘एबॉमिनेबल मिस्ट्री’ (Abominable Mystery) प्रश्न को हल कर सकते हैं।

SHUKR जीन के बारे में

  • SHUKR एक जीन है, जो स्पोरोफाइट (पुष्पी पादपों में प्रमुख अवस्था) में पाया जाता है।
  • SHUKR जीन सबसे पहले यूडिकोट्स (समूह में सभी पुष्पी पादपों का 75% हिस्सा शामिल है) में लगभग 125 मिलियन वर्ष पहले उत्पन्न हुआ था।
  • यह पराग के विकास को नियंत्रित करता है, जिसमें प्रजनन के लिए आवश्यक ‘युग्मक’ (Sperm) उपस्थित होते हैं।
  • पहले, वैज्ञानिकों का मानना ​​था कि पराग (गैमेटोफाइट) का विकास स्पोरोफाइट से स्वतंत्र होता है।
    • लेकिन इस अध्ययन से पता चलता है कि पुष्पी पादपों में, स्पोरोफाइट सीधे तौर पर पराग के विकास को प्रभावित करता है।

संबंधित तथ्य

  • इस अध्ययन में SHUKR [जिसका अर्थ कई भारतीय भाषाओं में ‘स्पर्म’ (Sperm) होता है] नामक एक नए जीन की भूमिका एवं अरेबिडोप्सिस थालियाना (Arabidopsis Thaliana) पादप पर इसके प्रभाव का वर्णन किया गया है।

अध्ययन के मुख्य बिंदु

  • विषय: पुष्पी पादपों में डार्विन के रहस्य को सुलझाना, जिसे उन्होंने ‘एबॉमिनेबल मिस्ट्री’ कहा था।
  • निष्कर्ष
    • इस अध्ययन से पता चलता है कि स्पोरोफाइट पुष्पी पादपों में गैमेटोफाइट विकास को नियंत्रित करता है, न कि इसके विपरीत जैसा कि पहले माना जाता था।
    • पराग नियंत्रण: SHUKR जीन को पराग में F-बॉक्स जीन को नियंत्रित करते हुए देखा गया, जिससे पराग का विकास प्रभावित हुआ। यह पाया गया कि जब एक कार्यात्मक SHUKR जीन अनुपस्थित होता है, तो फूल व्यवहार्य पराग का उत्पादन करने में विफल हो जाता है।
      • SHUKR जीन एवं इसके नियंत्रण में F-बॉक्स जीन दोनों तेजी से विकसित हो रहे हैं।
    • तीव्र अनुकूलन: SHUKR एवं F-बॉक्स जीन, तेजी से विकसित हुए, जिससे यूडिकोट पौधों को पराग में विविधताओं के माध्यम से विभिन्न पर्यावरणीय परिस्थितियों में अन्वेषण, अनुकूलन तथा सफलतापूर्वक प्रजनन करने की स्थिति उत्पन्न हुई।
    • पर्यावरण लचीलापन: जीन अनुकूलन के कारण स्थलीय पौधों में अन्य प्रकार के अनुकूलन विकसित हुए, जैसे मजबूत जड़ प्रणाली का विकास, जड़ों से पौधे की संरचना की विभिन्न कोशिकाओं तक जल और खनिजों के संचरण के लिए संवहनी तंत्र का विकास, तथा पुष्प-परागण रणनीतियों के अनेक रूपों का विकास।

अध्ययन का महत्त्व

  • डार्विन के रहस्य को सुलझाना: चार्ल्स डार्विन ने एक बार लगभग 130 मिलियन वर्ष पूर्व पुष्पी पादपों के तेजी से बढ़ने एवं फैलने को ‘एबॉमिनेबल मिस्ट्री’ के रूप में वर्णित किया था, क्योंकि इनका विकास आमतौर पर धीमा तथा क्रमिक होता है। 
  • शोध यह सुनिश्चित करने के लिए नए तंत्रों की पहचान करने में मदद कर सकता है कि पौधे तेजी से प्रतिकूल वातावरण में जीवित रह सकें। 
  • पादप विज्ञान का अध्ययन: SHUKR ने पौधों की स्वास्थ्य के लिए एक नया मार्ग खोला है, क्योंकि पौधों की संरचनात्मक मजबूती, प्रतिरक्षा और/या लवणता और सूखे के प्रति सहनशीलता के लिए जिम्मेदार जीन की खोज पर शोध चल रहा है।
  • प्लांट इंजीनियरिंग: पूर्व-निर्धारित पराग का उपयोग करके पौधों में पर्यावरणीय लचीलेपन को स्वाभाविक रूप से सुधारना संभव हो सकता है, क्योंकि यूडिकोट का स्पोरोफाइट एक विशिष्ट पर्यावरणीय स्थिति के संपर्क में आने पर पराग में प्रोटीन संरचना को संशोधित करके उन स्थितियों के लिए उपयुक्त पराग का निर्माण कर सकता है।

स्थलीय पौधों के जीवन चक्र

  • चरण: एक पौधे के जीवन चक्र में दो अलग-अलग चरण होते हैं, जो उनकी रचना और कार्यों को निर्धारित करते हैं।
    • गैमेटोफाइट (गैमेट बनाने वाला पौधा): गैमेटोफाइट कोशिकाओं में जीन का एक समूह होता है एवं वे ‘स्पर्म’ या ‘युग्मक’ का निर्माण करते हैं। गैमेटोफाइट नर (पुंकेसर) तथा मादा (स्त्रीकेसर) में विभेदित होते हैं।
      • नर गैमेटोफाइट युग्मक युक्त पराग के रूप में विकसित होते हैं, जो हवा, कीटों या फूलों के संपर्क में आने वाले अन्य जानवरों के माध्यम से मादा गैमेटोफाइट में अंडज कोशिकाओं तक युग्मक पहुँचाते हैं।
      • बीज का विकास: युग्मक कोशिकाओं एवं अंडज के मिलन से बीज का निर्माण होता है, जो अंकुरित होकर फूल वाले पौधों के नए स्पोरोफाइट का निर्माण करते हैं।
    • स्पोरोफाइट (बीजांड बनाने वाला पौधा): नर एवं मादा युग्मकों के संलयन से स्पोरोफाइट का निर्माण होता है। प्रत्येक स्पोरोफाइट में जीन के दो समूह होते हैं।
      • जब यह परिपक्व होता है तो स्पोरोफाइट कोशिकाएँ विभाजित होकर नई कोशिकाएँ बनाती हैं, जिन्हें बीजांड कहा जाता है। बीजांडुओं में जीनों के एक ही समूह का नया संयोजन होता है।

संदर्भ

भारत ने नॉर-शिपिंग 2025 (Nor-Shipping 2025) में अपने ‘इंडिया कंट्री सेशन’ की मेजबानी की, जिसे केंद्रीय पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय एवं नॉर्वे में भारतीय दूतावास द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया।

  • वर्ष 2047 के लिए जहाज निर्माण विजन (Shipbuilding Vision): भारत का लक्ष्य वर्ष 2047 तक दुनिया के शीर्ष पाँच जहाज निर्माण देशों में से एक बनना है।

नॉर-शिपिंग के बारे में

  • नॉर-शिपिंग नॉर्वे के ओस्लो में आयोजित होने वाला एक प्रमुख द्विवार्षिक समुद्री कार्यक्रम है।
  • फोकस क्षेत्र
    • जहाज डिजाइन
    • ऊर्जा दक्षता
    • स्थायी महासागर विकास

हांगकांग कन्वेंशन के बारे में

  • हांगकांग कन्वेंशन जहाजों के पुनर्चक्रण से संबंधित सभी पर्यावरणीय एवं सुरक्षा पहलुओं को संबोधित करता है।
  • यह कन्वेंशन सभी संबंधित पक्षों (जहाज मालिकों, जहाज निर्माण यार्ड, जहाज पुनर्चक्रण सुविधाओं, फ्लैग स्टेट्स, बंदरगाह राज्यों एवं पुनर्चक्रण राज्यों) पर सुरक्षित तथा पर्यावरण की दृष्टि से सही तरीके से संबंधित अपशिष्ट धाराओं के जिम्मेदार प्रबंधन तथा निपटान के संबंध में जिम्मेदारियाँ एवं दायित्व डालता है।

‘इंडिया कंट्री सेशन’, इंडिया@नॉर-शिपिंग में उल्लिखित मुख्य बिंदु

  • बुनियादी ढाँचे में निवेश: भारत ने बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर की प्रतिबद्धता जताई है, जिसमें मल्टीमॉडल लॉजिस्टिक्स, बंदरगाह कनेक्टिविटी एवं व्यापार सुविधा को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
  • समुद्री गलियारे: भारत भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEEC), पूर्वी समुद्री गलियारा (EMC) एवं अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) जैसे प्रमुख गलियारों के माध्यम से अपनी वैश्विक समुद्री कनेक्टिविटी को बढ़ा रहा है।
  • ग्रीन हाइड्रोजन पोर्ट हब: कांडला, तूतीकोरिन एवं पारादीप जैसे तीन भारतीय बंदरगाहों को समुद्री क्षेत्र में स्वच्छ ईंधन का उत्पादन तथा उपयोग करने के लिए ग्रीन हाइड्रोजन हब के रूप में विकसित किया जा रहा है।
  • ग्रीन वॉयेज 2050 (Green Voyage 2050): भारत ग्रीन वॉयेज 2050 पहल में नेतृत्व की भूमिका निभा रहा है, जो अन्य विकासशील देशों को कम कार्बन वाले समुद्री संचालन में बदलाव करने में सहायता कर रहा है।
    • ग्रीन वॉयेज 2050 अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) एवं नॉर्वे सरकार की एक संयुक्त पहल है, जिसे वैश्विक समुद्री क्षेत्र के डीकार्बोनाइजेशन का समर्थन करने के लिए लॉन्च किया गया है।
  • जहाज पुनर्चक्रण: भारत ने अपने हांगकांग कन्वेंशन-अनुपालन वाले जहाज पुनर्चक्रण ढांचे की प्रक्रिया का प्रदर्शन किया तथा स्वयं को पर्यावरण की दृष्टि से विनियमित एवं उच्च क्षमता वाले जहाज़ पुनर्चक्रण में अग्रणी के रूप में प्रस्तुत किया, जो ‘सर्कुलर इकॉनमी’ में योगदान देता है।
  • समुद्री सेवाओं का डिजिटल परिवर्तन: भारत का समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र एक राष्ट्र-एक बंदरगाह (ONOP) प्रक्रिया, राष्ट्रीय रसद पोर्टल (समुद्री), मैत्री (MAITRI) जैसी पहलों के माध्यम से एक डिजिटल क्रांति से गुज़र रहा है।
    • एक राष्ट्र एक बंदरगाह (ONOP) प्रक्रिया: केंद्रीय पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय ने ‘एक राष्ट्र एक बंदरगाह (ONOP) प्रक्रिया’ पहल शुरू की है, जो बंदरगाह प्रक्रियाओं तथा दस्तावेजीकरण के मानचित्रण एवं मानकीकरण पर केंद्रित है।
    • राष्ट्रीय रसद पोर्टल (समुद्री): यह एक राष्ट्रीय समुद्री एकल विंडो प्लेटफॉर्म है, जिसमें निर्यातकों, आयातकों एवं सेवा प्रदाताओं को दस्तावेजों का निर्बाध आदान-प्रदान करने तथा व्यापार करने में मदद करने के लिए संपूर्ण ‘एंड-टू-एंड लॉजिस्टिक्स’ समाधान शामिल हैं।
    • मैत्री (MAITRI): मैत्री एक डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म है जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एवं ब्लॉकचेन का उपयोग करके सीमा पार व्यापार को सुव्यवस्थित करते हुए वर्चुअल ट्रेड कॉरिडोर (VTC) को शक्ति प्रदान करता है।
      • इसका उद्देश्य प्रसंस्करण समय को कम करना, दक्षता बढ़ाना एवं भारत को व्यापार सुविधा में वैश्विक अग्रणी के रूप में स्थापित करना है।
  • नाविक कार्यबल सहयोग: भारत नॉर्वेजियन स्वामित्व वाले जहाजों को नाविकों का दूसरा सबसे बड़ा प्रदाता है। भारत ने नाविक भर्ती एवं प्रशिक्षण में भारत-नॉर्वेजियन सहयोग बढ़ाने का आह्वान किया।

संदर्भ

क्लाइमेट ट्रेंड्स द्वारा किए गए एक अध्ययन से पता चलता है कि हिमालय में ब्लैक कार्बन (Black Carbon-BC) का स्तर बढ़ने से बर्फ की सतह के तापमान में वृद्धि हो रही है, जिससे ग्लेशियर पिघलने और जल अनुप्रवाह संबंधी सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है।

  • हिमालय, जिसे प्रायः ‘तीसरा ध्रुव’ कहा जाता है, दक्षिण एशिया में जल सुरक्षा, हिमनद स्थिरता एवं जलवायु संतुलन के लिए महत्त्वपूर्ण है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

  • बर्फ की सतह का गर्म होना: बर्फ की सतह का तापमान -11.27°C (वर्ष 2000-2009) से बढ़कर -7.13°C (वर्ष 2020-2023) हो गया।
    • पूर्वी हिमालय में बर्फ की सतहें सर्वाधिक गर्म रहीं हैं, उसके बाद मध्य एवं पश्चिमी हिमालय का स्थान रहा है।
  • ग्लेशियर एवं जल सुरक्षा प्रभाव: ग्लेशियर पिघलने की गति तेज होने से अनुप्रवाह क्षेत्र से संबंधित लगभग 2 बिलियन लोगों को स्वच्छ जल की आपूर्ति पर खतरा बना हुआ है।
    • बर्फ पिघलने की प्रक्रिया तीव्र हो रही है और बर्फ के मौसम की अवधि कम होती जा रही है, जिससे नदियों, कृषि और पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव पड़ रहा है।
  • बर्फ की गहराई का विरोधाभास: बढ़ते तापमान के बावजूद, हिम आवरण की मोटाई (गहराई) 0.059 मीटर (2000-2009) से बढ़कर 0.117 मीटर (2020-2023) हो गई।
    • इसके कारणों में शामिल हैं:-
      • बर्फबारी में वृद्धि
      • मौसमी वर्षा में बदलाव
      • बर्फ का पवन पुनर्वितरण
    • पश्चिमी हिमालय में बर्फ की गहराई सबसे अधिक है, क्योंकि यह अधिक ऊँचाई पर स्थित है तथा पश्चिमी विक्षोभों के संपर्क में अधिक रहता है, जो सर्दियों में वर्षा लाते हैं।

ग्लोबल वार्मिंग के उत्प्रेरक के रूप में ब्लैक कार्बन

  • ब्लैक कार्बन (BC): यह एक अल्पकालिक जलवायु प्रदूषक है, जो मुख्य रूप से बायोमास दहन, वाहन उत्सर्जन, स्टोव और खुली क्षेत्र में आग से उत्पन्न होता है।
  • सूर्य के प्रकाश को विक्षेपित करने वाले अन्य एरोसोल के विपरीत, ब्लैक कार्बन (BC) सौर विकिरण को अवशोषित करता है एवं बर्फ की एल्बिडो को कम करता है, जिसके परिणामस्वरूप निम्नलिखित स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं:-  
    • बर्फ पिघलने में वृद्धि
    • सतह का गर्म होना
    • जल विज्ञान संबंधी व्यवधान।

ब्लैक कार्बन के स्रोत

  • भारत-गंगा का मैदान ब्लैक कार्बन उत्सर्जन का एक हॉटस्पॉट क्षेत्र है।
  • प्रमुख स्रोत
    • बायोमास दहन।
    • जीवाश्म ईंधन का दहन।
    • वनाग्नि एवं कृषि अपशिष्ट को जलाया जाना। 
  • भारत के ब्लैक कार्बन उत्सर्जन में अकेले जैव ईंधन लगभग 42% योगदान देता है।

संदर्भ

जब भारत पर्यावरणीय रोगों के बढ़ते बोझ का सामना कर रहा है, तब स्वास्थ्य जोखिमों का आकलन करने और उन्हें कम करने के लिए पारंपरिक ढाँचे से आगे बढ़कर एकीकृत दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।

पर्यावरण रोग भार (Environment Disease Burden) के बारे में

  • पर्यावरण रोग भार (EDB) वायु एवं जल प्रदूषण, अस्वच्छता तथा विषाक्त जोखिम जैसे हानिकारक पर्यावरणीय कारकों के कारण होने वाली बीमारियों का कुल प्रभाव है।
    • इसे दिव्यांगता-समायोजित जीवन वर्ष (Disability-Adjusted Life Years- DALYs) का उपयोग करके मापा जाता है, ताकि बीमारी और समय से पहले मृत्यु दोनों को दर्शाया जा सके।

दिव्यांगता-समायोजित जीवन वर्ष (DALY)= खोए हुए जीवन के वर्ष (Years of Life Lost (YLL) +दिव्यांगता के साथ व्यतीत वर्ष (Years Lived with Disability-YLD)

एक्सपोसोमिक्स के बारे में

  • एक्सपोसोमिक्स पर्यावरणीय जोखिमों (रासायनिक, भौतिक, सामाजिक, मनो-सामाजिक वातावरण एवं जैविक) की समग्रता का अध्ययन है, जिसका सामना एक व्यक्ति जीवन भर करता है और यह कि ये जोखिम आहार और जीवन शैली और आंतरिक व्यक्तिगत विशेषताओं जैसे कि आनुवंशिकी, शरीर विज्ञान और एपिजेनेटिक्स के साथ मिलकर स्वास्थ्य या बीमारी कैसे उत्पन्न करते हैं।
  • मानव जीनोम परियोजना के प्रभाव के समान, यह रोग में पर्यावरणीय योगदान पर ध्यान केंद्रित करके जीनोमिक्स का पूरक है।
  • इससे जीनोम-वाइड एसोसिएशन (Genome-Wide Associations- GWAS) के पूरक के रूप में एक्सपोजर वाइड एसोसिएशन (Exposure Wide Associations- EWAS) का एटलस तैयार करने एवं स्वास्थ्य पर पर्यावरणीय प्रभावों के खोज आधारित विश्लेषण को सक्षम करने में मदद मिलेगी।
  • पर्यावरणीय रोग भार (EDB) दर्शाता है कि पर्यावरण के कारण कितनी बीमारी होती है, जबकि एक्सपोसोमिक्स बताता है कि विभिन्न पर्यावरणीय जोखिम स्वास्थ्य को प्रभावित करने के लिए जीव विज्ञान के साथ कैसे अंतर्संबंधित होता है।

एक्सपोसोमिक्स की आवश्यकता के कारण

  • भारत का भार: वैश्विक पर्यावरणीय रोग भार का लगभग 25% हिस्सा भारत में है।
    • विश्व स्तर पर, व्यावसायिक एवं पर्यावरणीय स्वास्थ्य (Occupational and Environmental Health – OEH) जोखिमों के कारण प्रति वर्ष लगभग 30 लाख (3 मिलियन) मौतें और 10 करोड़ (100 मिलियन) से अधिक बीमारियाँ या स्वास्थ्य समस्याएँ दर्ज की जाती हैं। 
    • भारत में OEH जोखिम कारक गैर-संचारी रोगों जैसे कि इस्केमिक हृदय रोग, स्ट्रोक, क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव लंग डिजीज, फेफड़े के कैंसर आदि के लिए जिम्मेदार होने का अनुमान 50% से अधिक है।
    • वैश्विक स्तर पर पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों में अनुमानित रूप से कुल खोए गए IQ अंकों में से लगभग 154 मिलियन अंक, जो कुल हानि का 20% हैं, अकेले भारत से संबंधित हैं।
  • GBD की सीमाएँ: वैश्विक रोग बोझ (GBD) रूपरेखा केवल 11 जोखिम श्रेणियों पर विचार करती है।
    • माइक्रोप्लास्टिक, जटिल रासायनिक मिश्रण, पर्यावरणीय ध्वनि प्रदूषण एवं ठोस अपशिष्ट जैसे कई जोखिम बाहर रखे गए हैं। 
  • स्वास्थ्य असमानताएँ: स्वच्छ वातावरण, स्वास्थ्य प्रणालियों एवं पोषण तक पहुँच की कमी के कारण संवेदनशील आबादी असमान रूप से प्रभावित होती है। 
    • अवसाद, चिंता एवं अन्य मानसिक स्वास्थ्य परिणाम, जो पारिस्थितिकी संबंधी चिंताओं तथा जलवायु-संवेदनशील पर्यावरणीय जोखिम कारकों जैसे सूक्ष्म कण, जो पदार्थ के प्रत्यक्ष स्वास्थ्य प्रभावों से प्रेरित हैं, पर भी विचार करना महत्त्वपूर्ण है।

भारत के लिए निहितार्थ

  • सार्वजनिक स्वास्थ्य एकीकरण: एक्सपोसोमिक्स को शामिल करने से राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों में पर्यावरणीय जोखिम कारकों को प्राथमिकता देने में मदद मिल सकती है, जिससे रोग निवारण रणनीतियों में सुधार हो सकता है।
  • प्रभावी विनियमन: एक्सपोसोमिक्स द्वारा डेटा-संचालित अंतर्दृष्टि प्रदूषण, रसायनों एवं व्यावसायिक जोखिमों पर मजबूत विनियमन की जानकारी दे सकती है।
  • रोग निगरानी: यह जोखिम से संबंधित बीमारियों का शीघ्र पता लगाने में सक्षम बनाता है, कैंसर, श्वसन संबंधी विकार एवं चयापचय संबंधी बीमारियों जैसी स्थितियों के लिए निगरानी प्रणाली को बढ़ाता है।
  • सटीक स्वास्थ्य सेवा: एक्सपोसोमिक्स व्यक्तिगत जोखिमों को स्वास्थ्य परिणामों से जोड़कर सटीक चिकित्सा का समर्थन करता है, जिससे लक्षित हस्तक्षेप होता है।

एक्सपोसोमिक्स के तकनीकी घटक

  • पहनने योग्य सेंसर: वास्तविक समय, सेंसर-आधारित व्यक्तिगत जोखिम निगरानी।
  • गैर-लक्षित रासायनिक विश्लेषण: अज्ञात पर्यावरणीय रसायनों का पता लगाने के लिए मानव जैव-निगरानी नमूनों पर लागू किया गया।
  • माइक्रो-फिजियोलॉजिकल सिस्टम: ‘ऑर्गन-ऑन-ए-चिप’ के रूप में भी जाना जाता है, ये जोखिमों की पहचान के लिए जैविक प्रतिक्रियाओं का अध्ययन करने हेतु मानव अंग कार्यों की प्रतिकृति तैयार करते हैं।
  • बिग डेटा एवं AI: कार्रवाई योग्य अंतर्दृष्टि उत्पन्न करने के लिए जटिल जोखिम-स्वास्थ्य डेटा को एकीकृत तथा विश्लेषण करने के लिए उपयोग किया जाता है।

एक्सपोसोमिक्स के विकास में चुनौतियाँ 

  • सीमित क्षमताएँ एवं संसाधन: विश्लेषणात्मक, पर्यावरणीय एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य अवसंरचना में अंतराल के कारण भारत में एक्सपोसोमिक्स डेटा उत्पन्न करने की क्षमता व्यापक रूप से उपलब्ध नहीं है। 
  • कार्यान्वयन बाधाएँ: पर्यावरणीय स्वास्थ्य प्रबंधन कार्यक्रमों को कई परिचालन एवं संस्थागत चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। 
  • खंडित डेटा पारिस्थितिकी तंत्र: सामंजस्यपूर्ण, निरंतर एवं अंतर-संचालन योग्य डेटा रिपॉजिटरी की कमी महत्त्वपूर्ण जोखिम तथा स्वास्थ्य डेटा के एकीकरण तथा साझाकरण को रोकती है। 
  • धारणा संबंधी बाधाएँ: अंतःविषयक प्रौद्योगिकियों के समन्वय की जटिलता, हितधारकों को वैज्ञानिक रूप से जुड़ने से हतोत्साहित कर सकती है।

आगे की राह 

  • डेटा पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण: एक ऐसा डेटा इकोसिस्टम बनाने की आवश्यकता है, जिसमें सुसंगत डेटा को निरंतर और अंतर-संचालन योग्य डेटा रिपॉजिटरी के माध्यम से पाया तथा साझा किया जा सके।
  • क्षमता एवं बुनियादी ढाँचे को मजबूत करना: क्षमता निर्माण में निवेश करना तथा विश्लेषणात्मक, पर्यावरणीय और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों को संरेखित करना, ताकि एकीकृत, डेटा-संचालित एक्सपोजोमिक्स अनुसंधान और अनुप्रयोग को सक्षम किया जा सके।

संदर्भ

भारत को हाल ही में 1 जनवरी, 2026 से प्रभावी 2026-28 की अवधि के लिए संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक और सामाजिक परिषद (Economic and Social Council – ECOSOC) के लिए निर्वाचित किया गया।

संबंधित तथ्य

  • अन्य निर्वाचित सदस्य: ऑस्ट्रेलिया, बुरुंडी, चाड, चीन, इक्वाडोर, फिनलैंड, लेबनान, मोजाम्बिक, नॉर्वे, पेरू, सिएरा लियोन, सेंट किट्स और नेविस, तुर्की और तुर्कमेनिस्तान।

संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक परिषद (conomic and Social Council – ECOSOC) के बारे में

  • स्थापना: ECOSOC की स्थापना संयुक्त राष्ट्र चार्टर द्वारा वर्ष 1945 में संयुक्त राष्ट्र के छह मुख्य अंगों में से एक के रूप में की गई थी।
  • सदस्यता: ECOSOC में 54 सदस्य देश शामिल हैं, जिन्हें तीन वर्ष के चक्रीय कार्यकाल के लिए चुना जाता है। सदस्यता पाँच क्षेत्रीय समूहों में समान भौगोलिक प्रतिनिधित्व के आधार पर आवंटित की जाती है।
    • अफ्रीकी राज्य (14 सीटें), एशिया-प्रशांत राज्य (11), पूर्वी यूरोपीय राज्य (6), लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई राज्य (10), और पश्चिमी यूरोपीय और अन्य राज्य (13)।
  • चुनाव: संयुक्त राष्ट्र महासभा (193 संयुक्त राष्ट्र सदस्य देश), गुप्त मतदान द्वारा प्रतिवर्ष ECOSOC सदस्यों का चुनाव करती है।
    • चुनाव के लिए वैध मतों का दो-तिहाई बहुमत आवश्यक है।
  • अधिदेश: ECOSOC संयुक्त राष्ट्र का प्रमुख निकाय है, जो सतत् विकास (आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय) और आर्थिक मुद्दों पर संगठन के कार्य को आगे बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है।
  • नियम
    • ECOSOC आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और मानवीय मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र के कार्यों का समन्वय करने तथा सतत् विकास के लिए वर्ष 2030 एजेंडा के कार्यान्वयन हेतु आम सहमति निर्माण के लिए जिम्मेदार है।
  • ECOSOC के दायरे में आने वाले महत्त्वपूर्ण निकाय: अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (International labour Organization- ILO); खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO); संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization- UNESCO); विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO); ब्रेटन वुड्स ट्विन्स (विश्व बैंक समूह और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष); संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (United Nations Children’s Fund- UNICEF)।

भारत के चुनाव का महत्त्व

  • अंतरराष्ट्रीय एजेंडा को आकार देना: भारत गरीबी, जलवायु परिवर्तन, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण नीतिगत मुद्दों के बारे में अंतरराष्ट्रीय एजेंडा को आकार देने में सक्षम होगा।
  • वैश्विक दक्षिण का प्रतिनिधित्व: परिषद में अपने कार्यकाल के दौरान अपनी पहल और रुख के माध्यम से भारत वैश्विक दक्षिण की चिंताओं का प्रतिनिधित्व करते हुए निष्पक्ष आर्थिक संरचनाओं की कमी, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और जलवायु वित्त जैसे एजेंडों को अपना सकता है।
  • सुधार करना: भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता के मुद्दे को उठाने के लिए अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीयता का लाभ उठा सकता है।
  • सतत् विकास पर वैश्विक नीति को आकार देना: भारत वैश्विक सतत् विकास प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए भूख, गरीबी को कम करने और शिक्षा के स्तर को बढ़ाने और स्वच्छ ऊर्जा अपनाने में अपनी नीतिगत उपलब्धियों को प्रदर्शित कर सकता है।
  • बहुपक्षवाद को मजबूत करना: परिषद में भारत का चुनाव भारत को अन्य समान देशों के साथ अपनी बहुपक्षीय संधियों पर काम करने के लिए प्रेरित करेगा, जिससे बहुपक्षवाद के प्रति भारत की प्रतिबद्धता मजबूत होगी। 

संदर्भ 

इलिनोइस विश्वविद्यालय, अर्बाना-शैंपेन के एक नए अध्ययन से पता चलता है कि नैनोप्लास्टिक न केवल जोखिम उत्पन्न करते हैं, बल्कि रोगजनकों की विषाणुता को भी बढ़ाते हैं।

  • रोगाणु रोग उत्पन्न करने वाले जीव होते हैं।

नैनोप्लास्टिक्स के बारे में

  • नैनोप्लास्टिक्स बहुत छोटे कण होते हैं, जो धुएँ के कणों जितने छोटे होते हैं।
  • वे प्रत्येक स्थान (पहाड़ की चोटियों से लेकर गहरे समुद्र की खाइयों तक, और यहाँ तक कि मानव ऊतकों और नवजात शिशुओं के अंदर भी) पर पाए जाते हैं।
  • वे कोशिकाओं और आनुवंशिक सामग्री को नुकसान पहुँचा सकते हैं और अब ऐसा प्रतीत होता है कि वे रोगाणुओं की रोगजनकता को बढ़ाते हैं।
  • स्रोत
    • प्राथमिक: उपभोक्ता और औद्योगिक उपयोग के लिए निर्मित नैनोप्लास्टिक। 
    • द्वितीयक: रासायनिक क्षरण, अपक्षय, UV जोखिम के कारण बड़ी प्लास्टिक वस्तुओं का छोटे टुकड़ों में टूटना।

ई. कोलाई (E. coli) के बारे में 

  • ई. कोलाई (अर्थात् एस्चेरिचिया कोलाई) एक प्रकार का बैक्टीरिया है, जो सामान्यतः मनुष्यों और पशुओं की आँतों में पाया जाता है।

अध्ययन की मुख्य बिंदु

  • नैनोप्लास्टिक्स ई. कोलाई को अधिक खतरनाक बना सकते हैं।
    • क्रियाविधि: ई. कोलाई में स्वाभाविक रूप से ऋणात्मक आवेशित बाह्य झिल्ली होती है, जो धनात्मक आवेशित नैनोप्लास्टिक्स को आकर्षित करती है।
    • अंतःक्रिया के दौरान, यह तनाव का अनुभव करता है और ‘शिगा’ जैसे विषाक्त पदार्थों का उत्पादन करके प्रतिक्रिया करता है, वही विषाक्त पदार्थ इसे मनुष्यों के लिए हानिकारक बनाते हैं।

अध्ययन का महत्त्व

  • इस अध्ययन से पता चलता है कि नैनोप्लास्टिक्स सिर्फ प्रदूषक नहीं हैं बल्कि वे बैक्टीरिया के व्यवहार को बदल सकते हैं और सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिम बढ़ा सकते हैं।

संदर्भ

हाल ही में केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री ने भारत जेन शिखर सम्मेलन में लार्ज लैंग्वेज मॉडल ‘भारत जेन (Bharat Gen)’ लॉन्च किया है।

भारत जेन (Bharat Gen) के बारे में 

  • यह भारत का पहला स्वदेशी रूप से विकसित, सरकार द्वारा वित्तपोषित, लार्ज लैंग्वेज मॉडल (LLM) है, जो भारतीय भाषाओं और संस्कृति पर केंद्रित है।
    • बहुभाषी: यह प्लेटफॉर्म पाठ, भाषण और छवि के तौर-तरीकों को एकीकृत करता है तथा 22 भारतीय भाषाओं में निर्बाध AI समाधान प्रदान करता है।
  • भारत जेन द्वारा विकसित: भारतजेन को राष्ट्रीय अंतःविषय साइबर-भौतिक प्रणाली मिशन (National Mission on Interdisciplinary Cyber-Physical Systems- NM-ICPS) के तहत विकसित किया गया है और IIT बॉम्बे में IoT (इंटरनेट ऑफ थिंग्स) और IoE (इंटरनेट ऑफ एवरीथिंग) के लिए TIH फाउंडेशन के माध्यम से कार्यान्वित किया गया है।
    • यह पहल विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) द्वारा समर्थित है।
  • उद्देश्य: भारत जेन का लक्ष्य भारत के भाषायी और सांस्कृतिक स्पेक्ट्रम में AI विकास में क्रांति लाना है।
  • कार्यान्वयन: भारत जेन पहल को NM-ICPS के तहत स्थापित 25 प्रौद्योगिकी नवाचार केंद्रों (TIH) के नेटवर्क के माध्यम से क्रियान्वित किया जा रहा है।
  • स्तंभ: मिशन के चार स्तंभों में प्रौद्योगिकी विकास, उद्यमिता, मानव संसाधन विकास और अंतरराष्ट्रीय सहयोग शामिल हैं।
  • महत्त्व
    • यह पहल स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, कृषि और शासन जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों को सशक्त बनाएगी तथा 22 भारतीय भाषाओं में क्षेत्र-विशिष्ट एआई समाधान प्रदान करेगी।
    • नागरिक सहभागिता तथा शिकायत निवारण को बढ़ाने के लिए बहुभाषी फीडबैक सिस्टम को CPGRAMS जैसे प्लेटफॉर्म में एकीकृत करना।

अंतःविषयक साइबर-भौतिक प्रणालियों पर राष्ट्रीय मिशन (NM-ICPS)

  • लॉन्च: इस मिशन को वर्ष 2018 में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित किया गया था।
  • नोडल मंत्रालय/विभाग: विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (भारत सरकार)।
  • उद्देश्य: इस मिशन का उद्देश्य अनुसंधान और विकास, अनुवाद संबंधी अनुसंधान, उत्पाद विकास, इनक्यूबेटिंग और स्टार्ट-अप का समर्थन करने के साथ-साथ व्यावसायीकरण के लिए प्रौद्योगिकी प्लेटफॉर्मों का विकास करना है।
  • प्रौद्योगिकी नवाचार केंद्र (TIH): देश भर के प्रतिष्ठित संस्थानों में 25 प्रौद्योगिकी नवाचार केंद्र (TIH) स्थापित किए गए हैं और प्रत्येक TIH को उन्नत प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में एक प्रौद्योगिकी आधारित कार्य सौंपा गया है।
    • प्रौद्योगिकी कार्यक्षेत्र: कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीन लर्निंग, रोबोटिक्स, साइबर सुरक्षा, डेटा एनालिटिक्स और पूर्वानुमानित प्रौद्योगिकियां, बुद्धिमान सहयोग प्रणाली, कृषि और जल के लिए प्रौद्योगिकियां, खनन प्रौद्योगिकियाँ, उन्नत संचार प्रणाली, क्वांटम प्रौद्योगिकियाँ आदि।

साइबर-फिजिकल सिस्टम के बारे में 

  • साइबर-फिजिकल सिस्टम (CPS) एक कंप्यूटिंग सिस्टम है, जो वास्तविक समय में भौतिक प्रक्रियाओं की निगरानी और नियंत्रण के लिए कंप्यूटेशनल एल्गोरिदम और नेटवर्क सेंसर के साथ भौतिक प्रक्रियाओं को एकीकृत करता है।
  • अनुप्रयोग: CPS का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है, जिसमें स्मार्ट ग्रिड, स्वायत्त वाहन, स्वास्थ्य सेवा प्रणाली और औद्योगिक स्वचालन शामिल हैं।

लार्ज लैंग्वेज मॉडल (LLM)  

  • यह एक प्रकार की कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) है, जिसे विशाल मात्रा में पाठ्य डेटा पर प्रशिक्षित किया जाता है और यह नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग (NLP) कार्यों को उत्पन्न करने के लिए ट्रांसफॉर्मर मॉडल पर आधारित है।
    • अनुप्रयोग: नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग (मानव भाषा को समझना और उत्पन्न करना); अनुवाद; सामग्री निर्माण; चैटबॉट निर्माण; संक्षेपण; कोड निर्माण; भावना विश्लेषण आदि।

इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT)

  • इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) भौतिक उपकरणों, वाहनों, उपकरणों और अन्य भौतिक वस्तुओं का एक नेटवर्क है, जो सेंसर, सॉफ्टवेयर और नेटवर्क कनेक्टिविटी से युक्त होते हैं, जो उन्हें इंटरनेट पर डेटा एकत्र करने और साझा करने की अनुमति देते हैं।

इंटरनेट ऑफ एवरीथिंग (IoE)

  • यह लोगों, चीजों, डेटा और प्रक्रियाओं के बीच कनेक्शन के एक नेटवर्क को संदर्भित करता है, जो नेटवर्क युक्त वातावरण में सामान्य बुद्धिमत्ता और बेहतर अनुभूति प्रदान करता है।
    • IoT से अलग: IoE मानव-से-मशीन (P2M) और मानव-से-मानव (P2P) अंतर्संबंध को शामिल करके IoT के ‘मशीन-टू-मशीन’ (M2M) संचार से आगे की अवधारणा है।

संदर्भ

भारत में परमाणु दायित्व ढाँचे में संशोधन करने के लिए चर्चा चल रही है, ताकि निजी कंपनियों को भारत में परमाणु ऊर्जा उत्पादन सुविधाओं के निर्माण और संचालन की अनुमति मिल सके।

परमाणु दायित्व कानून क्या है?

  • परमाणु दायित्व कानून एक कानूनी ढाँचा है, जो परमाणु दुर्घटना के मामले में जिम्मेदारियों, मुआवजा तंत्र और वित्तीय सुरक्षा आवश्यकताओं को परिभाषित करता है।
  • यह सुनिश्चित करता है कि पीड़ितों को मुआवजा मिले और यह स्पष्ट करता है कि नुकसान के लिए कौन उत्तरदायी है।

भारत में वर्तमान परमाणु दायित्व ढाँचा

  • परमाणवीय नुकसान के लिए सिविल दायित्व अधिनियम ( CLNDA), 2010
    • भारत में वर्ष 2010 में परमाणु क्षति के लिए परमाणवीय नुकसान के लिए सिविल दायित्व अधिनियम (Civil Liability for Nuclear Damages Act- CLNDA) लागू किया गया था।
      • यह परमाणु दुर्घटनाओं के लिए दायित्व स्थापित करता है और पीड़ितों के लिए मुआवजा सुनिश्चित करता है।
    • संचालन दायित्व: CLNDA, परमाणु संयंत्रों के संचालकों को ‘कठोर और दोषरहित दायित्व’ प्रदान करता है, जिसके अंतर्गत वे किसी भी दुर्घटना या नुकसान के लिए उत्तरदायी होंगे — चाहे गलती उनकी हो या नहीं।
      • संचालक 1,500 करोड़ रुपये तक की परमाणु आपदाओं के लिए उत्तरदायी है, जिसके लिए बीमा या वित्तीय सुरक्षा की आवश्यकता होती है। 
      • यदि क्षति का दावा 1,500 करोड़ रुपये से अधिक है, तो सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ता है।
    • आपूर्तिकर्ता दायित्व: अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के विपरीत, जहाँ केवल ऑपरेटरों को ही जिम्मेदार ठहराया जाता है, CLNDA ने पहली बार ऑपरेटर के दायित्व के अलावा आपूर्तिकर्ता दायित्व की अवधारणा पेश की।
    • समय सीमा: CLNDA वर्ष 2010 ने मुआवजा दावा दायर करने के लिए संपत्ति की क्षति के लिए 10 वर्ष और व्यक्तिगत दुर्घटना के लिए 20 वर्ष की समय सीमा निर्धारित की।
    • इसे भोपाल गैस त्रासदी (वर्ष 1984) पर संसद में उठाई गई चिंताओं के बाद अधिनियमित किया गया था।
    • दायित्व प्रावधानों के बारे में चिंतित परमाणु आपूर्तिकर्ताओं की ओर से अधिनियम की कुछ आलोचना की गई।
    • प्रस्तावित संशोधन: आपूर्तिकर्ताओं के विरुद्ध मुआवजा दावों को अनुबंध मूल्य तक सीमित करना (असीमित दायित्व के बजाय)।
      •  विदेशी रिएक्टर विक्रेताओं को आकर्षित करने के लिए वैश्विक मानदंडों (जैसे- परमाणु क्षति के लिए पूरक मुआवजे पर कन्वेंशन) के साथ संरेखित करना।
  • परमाणु ऊर्जा अधिनियम (AEA), 1962
    • परमाणु ऊर्जा अधिनियम भारत में परमाणु ऊर्जा विकास को नियंत्रित करता है, जो सीमित निजी क्षेत्र की भागीदारी के साथ केवल सरकार द्वारा नियंत्रित संचालन की अनुमति देता है।
    • वर्ष 2019 में, देयता जोखिमों को शामिल करने के लिए 1,500 करोड़ रुपये का बीमा पूल स्थापित किया गया था, लेकिन यह विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने में विफल रहा।
    • प्रस्तावित संशोधन
      • निजी क्षेत्र की भागीदारी की अनुमति देना: निजी कंपनियाँ परमाणु रिएक्टरों का निर्माण, स्वामित्व और संचालन कर सकती हैं, परंतु वर्तमान में यह NPCIL/BHAVINI जैसी कंपनियों तक सीमित हैं।
      • स्वतंत्र नियामक: स्वायत्तता सुनिश्चित करने के लिए परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) से अलग परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (Atomic Energy Regulatory Board)।
  • राज्य का एकाधिकार: केवल सरकारी स्वामित्व वाली NPCIL (भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम लिमिटेड) ही परमाणु संयंत्रों का संचालन कर सकती है।

परमाणु ऊर्जा कानूनों में सुधार की आवश्यकता

  • स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्य: बढ़ती माँग (जैसे- एआई/डेटा सेंटर के लिए) को पूरा करने के लिए वर्ष 2047 तक परमाणु ऊर्जा को 8 गीगावाट से बढ़ाकर 100 गीगावाट करने का लक्ष्य
  • परमाणु विस्तार में धीमी प्रगति: वर्ष 2005 के भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के बावजूद, भारत के परमाणु क्षेत्र ने अपेक्षित विदेशी निवेश आकर्षित नहीं किया है।
  • सख्त दायित्व कानून: आपूर्तिकर्ता दायित्व जोखिमों के कारण अंतरराष्ट्रीय आपूर्तिकर्ताओं (वेस्टिंगहाउस, अरेवा, रोसाटॉम) को हतोत्साहित किया।
  • सरकारी एकाधिकार: निजी क्षेत्र की भागीदारी प्रतिबंधित, परमाणु ऊर्जा क्षमता में वृद्धि को सीमित करना।

भारत के परमाणु दायित्व कानून में प्रस्तावित संशोधनों के विरुद्ध तर्क

  • आत्मनिर्भरता को कमजोर करना: विदेशी निजी निवेश को आकर्षित करने के लिए परमाणु ऊर्जा अधिनियम (AEA) और CLNDA को कमजोर करना परमाणु प्रौद्योगिकी में भारत की दीर्घकालिक आत्मनिर्भरता को कमजोर करता है।
    • स्वदेशी विकास (जैसे- PHWRs, थोरियम अनुसंधान) से आयातित रिएक्टरों (यू.एस., फ्राँस) की ओर बदलाव भारत को विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भर बनाता है।
  • आपूर्तिकर्ता दायित्व का क्षरण: वर्तमान कानून आपूर्तिकर्ताओं को दोष, घटिया सामग्री या लापरवाही के लिए उत्तरदायी ठहराता है, जो सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए महत्त्वपूर्ण है।
    • प्रस्तावित परिवर्तन अनुबंध मूल्य पर देयता को सीमित करते हैं, जिससे विदेशी फर्म दुर्घटनाओं के लिए पूरी जिम्मेदारी से बच जाती हैं।
  • परमाणु सुरक्षा और विनियमन में समझौता: परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (Atomic Energy Regulatory Board- AERB) में स्वतंत्रता का अभाव है, यह DAE के अधीन कार्य करता है, जिससे हितों का टकराव होता है।
  • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की कोई गारंटी नहीं: निजी फर्म (जैसे- वेस्टिंगहाउस, अरेवा) रिएक्टर बेचती हैं, लेकिन मुख्य तकनीक को बनाए रखती हैं, भारत को स्वदेशी क्षमता में बहुत कम लाभ होता है।
  • नैतिक और कानूनी चिंताएँ: कमजोर देयता कानून का तात्पर्य है परमाणु दुर्घटना पीड़ितों के लिए कम भुगतान।

परमाणु दायित्व पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन

परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व पर वियना कन्वेंशन (1963)

  • अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) ढाँचे के तहत वर्ष 1963 में अधिनियमित।
  • परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व स्थापित करता है तथा परमाणु दुर्घटनाओं के पीड़ितों के लिए मुआवजा सुनिश्चित करता है।
  • परमाणु ऑपरेटरों पर विशेष दायित्व डालता है, जिससे त्वरित मुआवजा सुनिश्चित होता है।
  • परमाणु ऑपरेटरों के लिए अनिवार्य वित्तीय सुरक्षा (जैसे, बीमा) की आवश्यकता होती है।
  • भारत इस पर हस्ताक्षरकर्ता नहीं है।

परमाणु क्षति के लिए पूरक मुआवजे पर कन्वेंशन (CSC) (1997)

  • वैश्विक परमाणु दायित्व को बढ़ाने के लिए वर्ष 1997 में अपनाया गया, जो वर्ष 2015 से प्रभावी है।
  • राष्ट्रीय सीमाओं से परे अतिरिक्त मुआवजा निधि की स्थापना करता है।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग और समान दायित्व नियमों को मजबूत करता है।
  • भारत ने वर्ष 2016 में CSC की पुष्टि की, परमाणु क्षति अधिनियम, 2010 के लिए अपने नागरिक दायित्व को वैश्विक मानदंडों के साथ संरेखित किया।

परमाणु ऊर्जा क्षेत्र पर संशोधन का प्रभाव

  • विदेशी निवेश को बढ़ावा: CLNDA को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाने से अमेरिकी और फ्राँसीसी कंपनियों को भारत की परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश करने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा।
  • लंबे समय से लंबित सौदों में सफलता: एक दशक से अधिक समय पहले हस्ताक्षरित रुके हुए अनुबंधों को पुनर्जीवित किया जाएगा, जिससे परमाणु ऊर्जा विस्तार में तेजी आएगी।
  • परमाणु क्षमता का विस्तार: भारत के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र को मजबूत करने से जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम होगी और स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को पूरा करने में मदद मिलेगी।
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी में वृद्धि: परमाणु ऊर्जा अधिनियम में संशोधन से घरेलू और अंतरराष्ट्रीय निजी अभिकर्ताओं की अधिक भागीदारी हो सकती है।

परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (Atomic Energy Regulatory Board- AERB)

  • परमाणु ऊर्जा विनियामक बोर्ड (AERB) का गठन वर्ष 1983 में भारत के राष्ट्रपति द्वारा परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 के तहत किया गया था।
  • इसकी स्थापना परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में विनियामक और सुरक्षा कार्यों को पूरा करने के लिए की गई थी।
  • AERB का प्राथमिक मिशन यह सुनिश्चित करना है कि भारत में आयनकारी विकिरण और परमाणु ऊर्जा का उपयोग मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए अनुचित जोखिम पैदा किए बिना किया जाए।
  • यह परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 के तहत परमाणु ऊर्जा विभाग (Department of Atomic Energy- DAE) इकाइयों में औद्योगिक सुरक्षा को नियंत्रित करता है।
  • यह परमाणु ऊर्जा प्रतिष्ठानों के लिए कारखाना अधिनियम, 1948 के प्रावधानों को भी प्रशासित करता है।

निष्कर्ष

भारत के परमाणु कानूनों में संशोधन से निजी और विदेशी निवेश को बढ़ावा मिल सकता है, लेकिन उत्तरदायित्व संरचनाओं, तकनीक हस्तांतरण और आर्थिक व्यवहार्यता में चुनौतियाँ बनी हुई हैं। इस बदलाव के लिए ऊर्जा लक्ष्यों, सुरक्षा और रणनीतिक नियंत्रण में संतुलन की आवश्यकता है।

संदर्भ

पिछले 11 वर्षों में नीति आयोग ने सहकारी एवं राजकोषीय संघवाद को बढ़ावा दिया है, जिससे केंद्र और राज्यों को सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन और साझा लक्ष्यों के लिए सहयोग करने में सहायता प्राप्त हुई है।

 

नीति आयोग के बारे में 

  • परिचय: यह केंद्रीय मंत्रिमंडल के प्रस्ताव के माध्यम से गठित एक सरकारी थिंक-टैंक है, जिसने पूर्ववर्ती योजना आयोग का स्थान लिया है।
  • नीति आयोग की स्थापना: वर्ष 1950 में स्थापित योजना आयोग को 1 जनवरी, 2015 को नीति आयोग (नेशनल इंस्टिट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया) द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था।
  • अध्यक्षता: नीति आयोग प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में कार्य करता है।
  • भूमिका: यह विकास प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण दिशात्मक और रणनीतिक लागत प्रदान करता है।
    • योजना आयोग के विपरीत, नीति आयोग एक सलाहकार निकाय है, जिसके पास राज्यों की ओर से धन देने या निर्णय लेने की शक्ति नहीं है।
  • संस्थापक सिद्धांत: नीति आयोग का मुख्य सिद्धांत ‘सहकारी संघवाद’ है, साथ ही ‘बॉटम टू टॉप’ दृष्टिकोण पर जोर दिया जाता है।

 

भारतीय संदर्भ में संघवाद

  • संघवाद का तात्पर्य सरकार के विभिन्न स्तरों संघ और राज्यों के बीच शक्तियों के विभाजन से है।
  • भारतीय संविधान एक अर्द्ध-संघीय ढाँचा प्रदान करता है, जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं:
    • स्वायत्त, लेकिन समन्वित राज्यों के साथ मजबूत केंद्र।
  • भारतीय संघवाद ‘गतिशील’ है, केंद्रीकृत नियोजन से लेकर सहयोग, प्रतिस्पर्द्धा और साझा राजकोषीय जिम्मेदारी तक विकसित हो रहा है।

संघवाद के प्रकार

सहकारी संघवाद

  • केंद्र और राज्य साझेदार के रूप में मिलकर कार्य करते हैं, राष्ट्रीय लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए विचारों, संसाधनों और जिम्मेदारियों को साझा करते हैं।
  • ‘टॉप टू बॉटम’ नियंत्रण के स्थान पर क्षैतिज समन्वय हेतु जोर दिया जाता है।
  • संवैधानिक समर्थन
    • अनुच्छेद-263: समन्वय के लिए अंतर-राज्यीय परिषद।
    • समवर्ती सूची (सातवीं अनुसूची): संघ और राज्यों द्वारा संयुक्त कानून।

प्रतिस्पर्द्धी संघवाद

  • संसाधन और निवेश आकर्षित करने के लिए राज्य नीति दक्षता, सेवा वितरण और निवेश आधारित पारितंत्र में प्रतिस्पर्द्धा करते हैं।
  • परिणाम आधारित शासन, नवाचार और जवाबदेही पर ध्यान केंद्रित करना।
  • नीति आयोग द्वारा उपकरण और सूचकांक
    • राज्य स्वास्थ्य सूचकांक; भारत नवाचार सूचकांक; स्कूल शिक्षा गुणवत्ता सूचकांक आदि।
      • इससे राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा मिलता है।
  • विशेषताएँ
    • सर्वोत्तम प्रथाओं, विकेंद्रीकरण और अंतर-राज्यीय प्रदर्शन मानदंडों को बढ़ावा देता है।
    • राज्यों को निष्क्रिय कार्यान्वयनकर्ताओं से सक्रिय डेवलपर्स में स्थानांतरित करता है।

राजकोषीय संघवाद (Fiscal Federalism)

  • संघ और राज्यों के बीच राजस्व जुटाने और व्यय की जिम्मेदारियों के विभाजन से संबंधित है।
  • यह सुनिश्चित करता है कि राज्यों को अपने शासन दायित्वों को पूरा करने के लिए पर्याप्त वित्तीय स्वायत्तता प्राप्त हो।
  • संवैधानिक प्रावधान
    • अनुच्छेद-280: वित्त आयोग करों के हस्तांतरण की सिफारिश करता है।
    • अनुच्छेद-268-293: राजस्व वितरण, सहायता अनुदान, उधार लेने की शक्तियों से संबंधित है।

विशेषता

सहकारी संघवाद

प्रतिस्पर्द्धी संघवाद

राजकोषीय संघवाद

उद्देश्य साझेदारी प्रदर्शन संसाधन साझा करना
प्रकृति क्षैतिज समन्वय अंतर-राज्यीय प्रतिद्वंद्विता ऊर्ध्वाधर संसाधन हस्तांतरण
संस्था नीति आयोग गवर्निंग काउंसिल, क्षेत्रीय परिषदें नीति सूचकांक, SDG रैंक वित्त आयोग, जीएसटी परिषद
उदाहरण आकांक्षी जिले स्वास्थ्य/नवाचार रैंकिंग कर हस्तांतरण, CSS

भारतीय संघवाद के प्रमुख विकास

  • कर हस्तांतरण में वृद्धि: 14वें वित्त आयोग (2014) ने करों के विभाज्य पूल में राज्यों की हिस्सेदारी 32% से बढ़ाकर 42% कर दी है, जो अब तक की सबसे बड़ी एकल वृद्धि है।
    • केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी ₹3.37 लाख करोड़ (2014-15) से बढ़कर ₹12.23 लाख करोड़ (2024-25) हो गई।
  • GST परिषद
    • सामान्य सहमति आधारित निर्णय लेने के माध्यम से राजकोषीय संघवाद को बढ़ावा देता है।
    • राज्यों को GST राजस्व का लगभग 71%, केंद्र को लगभग 29% प्राप्त होता है।
    • राज्यों को 14% मुआवजा गारंटी सुनिश्चित करने के लिए केंद्र वार्षिक रूप से जीडीपी का 0.5-1% उत्सर्जित होता है।
    • GST मुआवजे के रूप में ₹6.52 लाख करोड़ प्रदान किए गए (2017-18 से 2024-25 तक)।
  • केंद्रीय स्थानांतरण में वृद्धि
    • सकल अंतरण (कर, अनुदान, ऋण) GDP अनुपात में 5.2% (वर्ष 2004-14) से बढ़कर 6.5% (वर्ष 2014-24) हो गया।
    • केंद्र से अनुदान में 234% की वृद्धि हुई, सकल ऋण में 992% (2014-24) की वृद्धि हुई।
    • केंद्रीय बजट 2025-26: पूँजीगत व्यय के लिए राज्यों को 50-वर्षीय ब्याज-मुक्त ऋण के लिए ₹1.5 लाख करोड़ आवंटित किए गए।
      • उदाहरण: तमिलनाडु (25% से 31%) और पश्चिम बंगाल (49% से 56%) में कुल राजस्व के प्रतिशत के रूप में केंद्रीय कर और अनुदान वर्ष 2004-14 से वर्ष 2014-24 तक बढ़े।
    • राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को कुल केंद्रीय अंतरण में ₹14.96 लाख करोड़ (2014-24) की वृद्धि हुई।

संघवाद को मजबूत करने के लिए नीति आयोग की पहल

  • सहकारी संघवाद पहल
    • संस्थागत प्लेटफॉर्म
      • गवर्निंग काउंसिल: प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में, इसमें सभी मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल शामिल होते हैं।
        • विकास योजना के लिए शीर्ष अंतर-सरकारी मंच के रूप में कार्य करता है।
      • मुख्य सचिवों का सम्मेलन: प्रशासनिक स्तर पर सहयोग को सुगम बनाता है।
      • क्षेत्रीय परिषदें और विषयगत कार्य समूह: क्षेत्रीय समन्वय और नीतिगत लागत का समर्थन करते हैं।
    • आकांक्षी जिले और ब्लॉक कार्यक्रम
      • 112 पिछड़े जिलों और 500 से अधिक ब्लॉकों को शामिल करता है।
      • पाँच विषयों (स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, वित्तीय समावेशन, बुनियादी ढाँचा) में 49 प्रदर्शन संकेतकों को लक्षित करता है।
      • सहयोगात्मक योजना और मासिक डेल्टा रैंकिंग द्वारा संचालित किया जाता है।
  • प्रतिस्पर्द्धी संघवाद पहल
    • सूचकांक आधारित राज्य रैंकिंग: नीति आयोग राज्यों को रैंक प्रदान करने और प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने के लिए कई प्रदर्शन सूचकांक प्रकाशित करता है:

सूचकांक

फोकस क्षेत्र

SDG इंडिया इंडेक्स सतत् विकास लक्ष्य
राज्य स्वास्थ्य सूचकांक सार्वजनिक स्वास्थ्य परिणाम और शासन
भारत नवाचार सूचकांक नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र, अनुसंधान एवं विकास, स्टार्ट-अप
स्कूल शिक्षा गुणवत्ता सूचकांक सीखने के परिणाम, बुनियादी ढाँचा
समग्र जल प्रबंधन सूचकांक जल उपयोग दक्षता, संरक्षण
निर्यात तत्परता सूचकांक निर्यात क्षमता, बुनियादी ढाँचा, नीति।

  • राजकोषीय संघवाद को सुविधाजनक बनाना (सलाहकार की भूमिका)
    • यद्यपि योजना आयोग, नीति आयोग की तरह धन आवंटित नहीं करता है:
      • केंद्र प्रायोजित योजनाओं (CSS) के युक्तिकरण का मूल्यांकन और अनुशंसा करता है।
      • राज्यों को बेहतर बजट प्रथाओं और अनुदानों के उपयोग पर सलाह देता है।
      • प्रदर्शन आधारित वित्त (जैसे- बिजली क्षेत्र, शहरी शासन) से जुड़े सुधारों की निगरानी करता है।
    • विकास निगरानी एवं मूल्यांकन कार्यालय (Development Monitoring and Evaluation Office-DMEO) का परिणाम मूल्यांकन वित्तीय हस्तांतरण के उपयोग में राज्यों के लिए जवाबदेही को मजबूत करता है।

केंद्रीय क्षेत्र (CS) और केंद्र प्रायोजित योजनाएँ (CSS) राज्यों को कैसे सशक्त बनाती हैं?

  • वित्तीय संसाधनों तक पहुँच: CSS मुख्य विकास क्षेत्रों (स्वास्थ्य, ग्रामीण सड़कें, स्वच्छता) में राज्यों के लिए वित्तपोषण की एक पूर्वानुमानित धारा प्रदान करती हैं।
    • सीमित वित्तीय क्षमता वाले राज्य इन राष्ट्रीय कार्यक्रमों से लाभान्वित होते हैं, विशेष रूप से EAG (सशक्त कार्रवाई समूह) राज्य।
  • बुनियादी ढाँचा और सेवा वितरण: CSS बड़े पैमाने पर राज्य स्तरीय परियोजनाओं को वित्तपोषित करता है, जैसे:-
    • PMGSY: केंद्र-राज्य सहयोग से 7.7 लाख किलोमीटर से अधिक ग्रामीण सड़कें बनाई गईं।
    • जल जीवन मिशन: राज्य कार्यान्वयन और केंद्र के सहयोग से 15.44 करोड़ से अधिक घरों को कनेक्शन प्रदान किए गए।
  • संस्थागत और तकनीकी क्षमता निर्माण: योजनाओं में प्रशिक्षण, डिजिटल डैशबोर्ड, शिकायत निवारण तंत्र जैसे क्षमता निर्माण घटक शामिल हैं।
    • उदाहरण: राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन चिकित्सा कर्मचारियों, बुनियादी ढाँचे, उपकरणों के लिए धन मुहैया कराता है, राज्य वित्त का प्रबंधन करते हैं।
    • डिजिटल इंडिया पहल (CS) राज्यों को ई-गवर्नेंस प्लेटफॉर्म और आईटी अपग्रेडेशन प्रदान करती है।

केंद्रीय क्षेत्र (CS) योजनाएँ

  • केंद्र सरकार द्वारा पूर्ण रूप से वित्तपोषित और कार्यान्वित।
  • आमतौर पर केंद्रीय मंत्रालयों या एजेंसियों द्वारा कार्यान्वित।
  • उदाहरण: प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (Pradhan Mantri Kaushal Vikas Yojana-PMKVY), प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT), अटल नवाचार मिशन।

केंद्र प्रायोजित योजनाएँ (CSS)

  • केंद्र और राज्यों द्वारा संयुक्त रूप से वित्तपोषित (जैसे- 60:40 या 90:10)।
  • केंद्र द्वारा डिजाइन, राज्य सरकारों द्वारा कार्यान्वित किया जाता है।
  • उदाहरण: जल जीवन मिशन, PMGSY, PMAY-G, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन।

संवैधानिक और कानूनी समर्थन

  • अनुच्छेद-282: केंद्र और राज्यों को किसी भी सार्वजनिक उद्देश्य के लिए अनुदान देने की अनुमति देता है, यहाँ तक कि किसी अन्य सरकार के क्षेत्राधिकार में भी।
  • CSS प्रायः राज्य सूची के विषयों (जैसे- स्वास्थ्य, शिक्षा, जल) में कार्य करते हैं, जबकि CS योजनाएँ आमतौर पर संघ सूची के क्षेत्रों में होती हैं, लेकिन इनका अखिल भारतीय स्तर पर लागू होना संभव है।

  • विकेंद्रीकृत कार्यान्वयन के माध्यम से राज्य स्वामित्व में वृद्धि: राज्य केंद्र द्वारा परिभाषित मापदंडों के भीतर योजनाओं को डिजाइन और क्रियान्वित करते हैं, जिससे उन्हें स्थानीय नवाचार के लिए परिचालन नियंत्रण तथा लचीलापन प्राप्त होता है।
    • उदाहरण: PMAY-ग्रामीण के तहत, जबकि वित्तपोषण मानदंड केंद्रीय रूप से तय किए जाते हैं, राज्य लाभार्थियों की पहचान करते हैं और आवास डिजाइन और निर्माण के तौर-तरीकों को अंतिम रूप देते हैं।
  • प्रदर्शन प्रोत्साहन और नवाचार: CSS में प्रदर्शन से जुड़े अनुदान (जैसे- 15वें वित्त आयोग के तहत) शामिल किए जा रहे हैं।
    • आकांक्षी जिलों के कार्यक्रम में डेल्टा रैंकिंग स्थानीय स्तर पर नवाचार को बढ़ावा देती है।
    • अटल इनोवेशन मिशन (CS) टियर-II/III शहरों में स्टार्ट-अप इकोसिस्टम को बढ़ावा देता है।
  • सहकारी और प्रतिस्पर्द्धी संघवाद को बढ़ावा देना: CSS नीति आयोग की गवर्निंग काउंसिल, अंतरराज्यीय परिषद आदि जैसे मंचों के माध्यम से केंद्र-राज्य समन्वय सुनिश्चित करता है।
    • CS योजनाएँ राज्य-स्तरीय प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देती हैं (जैसे- नवाचार सूचकांक, निर्यात तत्परता सूचकांक)।
  • स्थानीय स्तर पर राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को लागू करने की क्षमता: CS और CSS राज्यों को भारत के राष्ट्रीय विकास एजेंडे के लिए निष्पादन शाखा के रूप में कार्य करने के लिए सशक्त बनाते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि नीतिगत उद्देश्य जमीनी स्तर तक पहुँचे।
    • उदाहरण: अटल इनोवेशन मिशन (एक CS योजना) के तहत, सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 10,000 से अधिक स्कूलों में अटल टिंकरिंग लैब स्थापित की गई हैं, जो जमीनी स्तर पर नवाचार और उद्यमिता को सक्षम बनाती हैं।

भारत में संघवाद को मजबूत करने में चुनौतियाँ

  • ऊर्ध्वाधर राजकोषीय असंतुलन: राज्य कुल सरकारी राजस्व का केवल 38% ही एकत्र करते हैं, लेकिन कुल सार्वजनिक व्यय के 62% से अधिक के लिए जिम्मेदार हैं, विशेष रूप से स्वास्थ्य, शिक्षा और जल जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में।
    • केंद्रीय बजट 2024-25 में, बढ़े हुए उपकर/अधिभार के कारण सकल कर राजस्व में राज्यों की हिस्सेदारी 15वें वित्त आयोग द्वारा अनुशंसित 41% से घटकर 30% रह गई।
  • CSS और अनुच्छेद-282 के माध्यम से राज्य सूची में अतिक्रमण: केंद्र सरकार केंद्र प्रायोजित योजनाओं (CSS) के माध्यम से राज्य सूची के विषयों में तेजी से हस्तक्षेप कर रही है, जिसे प्रायः एकतरफा तरीके से डिजाइन किया जाता है और विशिष्ट शर्तों से जोड़ा जाता है।
    • वर्ष 2023-24 में, तमिलनाडु जैसे राज्यों ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की कठोर वित्तपोषण शर्तों (60:40) की आलोचना की, जिससे स्थानीय स्वास्थ्य सेवा आवश्यकताओं को संबोधित करने में लचीलापन सीमित हो गया।
  • कमजोर राज्य वित्त आयोग और स्थानीय राजकोषीय संघवाद: हालाँकि केंद्रीय वित्त आयोग नियमित और संवैधानिक हैं, अधिकांश राज्य अपने राज्य वित्त आयोगों (SFC) की सिफारिशों को नियमित रूप से गठित या लागू करने में विफल रहते हैं, जिससे शहरी और ग्रामीण स्थानीय निकाय निधि कमजोर होती है।
    • वर्ष 2023 में, बिहार द्वारा समय पर अपना छठा राज्य वित्त आयोग गठित न किए जाने के कारण पंचायतों को निधि हस्तांतरण में देरी हुई, जिससे स्वच्छ भारत मिशन के तहत ग्रामीण स्वच्छता परियोजनाओं के क्रियान्वयन में बाधा आई।
  • अंतर-सरकारी संबंधों का राजनीतीकरण: अंतरराज्यीय परिषद और क्षेत्रीय परिषद जैसे संघीय तंत्रों का कम उपयोग किया जाता है।
    • राज्यों ने जीएसटी परिषद के मतदान में असमानता और निधि आवंटन तथा कर क्षतिपूर्ति में कथित पक्षपात पर असंतोष व्यक्त किया है।
      • GST परिषद के मतों में केंद्र के पास 1/3, राज्यों के पास 2/3 मत हैं; प्रस्तावों के लिए 75% बहुमत की आवश्यकता है।
  • प्रतिस्पर्द्धी संघवाद के लिए असमान क्षमता: प्रदर्शन आधारित योजनाएँ (जैसे- एसडीजी इंडिया इंडेक्स, इनोवेशन इंडेक्स) असमानता को बढ़ाने का जोखिम उठाती हैं क्योंकि अमीर और प्रशासनिक रूप से उन्नत राज्य बेहतर प्रदर्शन करते हैं, जबकि संसाधन-विहीन राज्य प्रतिस्पर्द्धा करने के लिए संघर्ष करते हैं।
    • केरल, तमिलनाडु जैसे राज्य लगातार सूचकांकों में शीर्ष पर हैं, जबकि बिहार और झारखंड जैसे राज्य प्रदर्शन-संबंधी अनुदानों के बावजूद संरचनात्मक बाधाओं के कारण पीछे रह गए हैं।
  • योजना आयोग के बाद संस्थागत अस्पष्टता: हालाँकि नीति आयोग एक थिंक टैंक के रूप में उभरा है, इसमें योजना आयोग के वैधानिक अधिकार और निधि-आवंटन शक्तियों का अभाव है, जो सहकारी या परामर्शी संघवाद को लागू करने की इसकी क्षमता को सीमित करता है।
    • नीति आयोग की गवर्निंग काउंसिल और DMEO उपयोगी मंच हैं, लेकिन इसके परिणाम अनुशंसात्मक ही रहे हैं।
  • GST मुआवजा और राजकोषीय हस्तांतरण में देरी और अंतराल: राज्यों ने GST मुआवजे में देरी की सूचना दी है, जिससे बजट योजना और तरलता प्रभावित हुई है। मुआवजे के प्रावधान वर्ष 2022 में समाप्त हो गए, जिससे राजस्व कमी प्रबंधन को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।
    • वर्ष 2017-2023 तक मुआवजे के रूप में ₹6.52 लाख करोड़ का भुगतान किया गया, लेकिन देरी और अनिश्चितता के कारण राज्यों और केंद्र के बीच तनाव उत्पन्न हो गया।

भारत में संघवाद को मजबूत करने की आगे की राह

  • अंतरराज्यीय परिषद और क्षेत्रीय परिषदों को संस्थागत बनाना: अनुच्छेद-263 के तहत अंतर-राज्यीय परिषद (ISC) की नियमित बैठकें एक स्वतंत्र सचिवालय के साथ आयोजित की जानी चाहिए।
    • क्षेत्रीय विवादों को सुलझाने और नीति समन्वय को बढ़ावा देने के लिए क्षेत्रीय परिषदों को सशक्त बनाया जाना चाहिए।
  • केंद्र प्रायोजित योजनाओं (CSS) में सुधार: CSS की संख्या को तर्कसंगत बनाना और कम करना।
    • उच्च प्रदर्शन करने वाले राज्यों के लिए ब्लॉक स्तरीय अनुदान दृष्टिकोण अपनाना।
    • CSS को स्थानीय आवश्यकताओं के साथ जोड़कर कार्यात्मक संघवाद को प्रोत्साहित करता है।
  • विभाज्य पूल में उपकर और अधिभार साझा करना: उपकर और अधिभार जैसे अविभाज्य राजस्व साधनों के उपयोग को सीमित करना।
    • न्यायसंगत कर हस्तांतरण सुनिश्चित करने के लिए उन्हें वित्त आयोग के विभाज्य पूल में शामिल करना।
  • राज्य वित्त आयोगों (SFC) को मजबूत बनाना: SFC रिपोर्ट का नियमित गठन, स्वायत्तता और कार्यान्वयन सुनिश्चित करना।
    • 73वें तथा 74वें संविधान संशोधन को क्रियान्वित करता है।
  • प्रतिस्पर्द्धी संघवाद के लिए क्षमता निर्माण: सुधारों को लागू करने और सूचकांक लक्ष्यों को पूरा करने के लिए पिछड़े राज्यों को सहायता प्रदान करना।
    • राज्य की क्षमता और आधारभूत स्थितियों के अनुसार प्रदर्शन आधारित अनुदान प्रदान करना।
  • नीति आयोग में संस्थागत सुधार: नीति आयोग को नोडल संघीय नियोजन संस्थान के रूप में अपनी भूमिका को औपचारिक रूप देने के लिए वैधानिक दर्जा प्रदान करना।
    • केंद्र और राज्यों दोनों के लिए स्वतंत्र मूल्यांकन ढाँचे बनाने के लिए DMEO को मजबूत करना।
  • जीएसटी पर राजकोषीय संवाद पुनर्स्थापित करना: संरचित संवाद के माध्यम से जीएसटी क्षतिपूर्ति, मतदान विषमता और विश्वास की कमी के बारे में चिंताओं का समाधान करना।
    • संघीय संदर्भ में जीएसटी ढाँचे की समय-समय पर समीक्षा करने के लिए संवैधानिक तंत्र पर विचार करना।

निष्कर्ष 

नीति आयोग ने संविधान की अर्द्ध-संघीय भावना के अनुरूप सहकारी, प्रतिस्पर्द्धी और राजकोषीय संघवाद को बढ़ावा देकर भारत के संघीय परिदृश्य को बदल दिया है। आकांक्षी जिलों से लेकर प्रदर्शन सूचकांकों तक इसकी पहल क्षेत्रीय असमानताओं को संबोधित करते हुए राज्यों को सशक्त बनाती है, हालाँकि राजकोषीय असंतुलन और राजनीतीकरण जैसी चुनौतियों के लिए निरंतर सुधारों की आवश्यकता होती है।

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