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Jun 09 2025

संदर्भ

भारतीय विदेश मंत्री ने चौथे भारत-केंद्र विदेश मंत्रियों की वार्ता की मेजबानी की, जो साढ़े तीन वर्ष से अधिक समय के बाद हुई।

समयरेखा एवं विकास

संस्करण

वर्ष 

कार्यक्रम का स्थान

पहला वर्ष 2019 समरकंद, उज्बेकिस्तान
दूसरा वर्ष 2020 वर्चुअल
तीसरा वर्ष 2021 नई दिल्ली
चौथा वर्ष 2025 (नवीनतम) नई दिल्ली

भारत-मध्य एशिया विदेश मंत्रियों की वार्ता

  • भारत-मध्य एशिया वार्ता भारत और पाँच मध्य एशियाई गणराज्यों (कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उजबेकिस्तान) के विदेश मंत्रियों की एक वार्षिक बहुपक्षीय बैठक है।
  • यह रणनीतिक साझेदारी को आगे बढ़ाने के लिए मुख्य संस्थागत ढाँचे के रूप में कार्य करता है।

अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक अभिसमय (Comprehensive Convention on International Terrorism- CCIT) 

  • वर्ष 1996 में, भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक अभिसमय (CCIT) को अपनाने का प्रस्ताव रखा गया।
  • यह एक प्रस्तावित संधि है जिसका उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के सभी रूपों को अपराध घोषित करना और आतंकवादियों, उनके वित्तपोषकों एवं समर्थकों को धन, हथियार और सुरक्षित ठिकानों तक पहुँच से वंचित करना है।
  • इसे अभी UNGA द्वारा अपनाया जाना बाकी है।

चौथे संवाद के प्रमुख परिणाम

  • आतंकवाद-रोधी एवं सुरक्षा: पहलगाम आतंकवादी हमले (अप्रैल 2025) की कड़ी निंदा की गई।
    • अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर संयुक्त राष्ट्र व्यापक अभिसमय (CCIT) का आह्वान किया गया।
    • नियमित NSA-स्तरीय बैठकें (अगली किर्गिज गणराज्य में) आयोजित की जाएँगी।
  • व्यापार एवं आर्थिक सहयोग: फार्मा, IT, कृषि, ऊर्जा, वस्त्र क्षेत्र में व्यापार बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
    • राष्ट्रीय मुद्राओं और डिजिटल भुगतान प्रणालियों में व्यापार को बढ़ावा देना।
    • बैंकिंग/वित्तीय संबंधों के लिए संयुक्त कार्य समूह (JWG) का प्रस्ताव रखा गया।
  • कनेक्टिविटी परियोजनाएँ
    • INSTC विस्तार: भारत ने तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान की सदस्यता का समर्थन किया।
      • कजाकिस्तान पूर्वी INSTC शाखा का विकास कर रहा है।
    • चाबहार बंदरगाह: इसका उपयोग शाहिद बेहेश्ती टर्मिनल के माध्यम से व्यापार के लिए किया जाएगा।
  • डिजिटल और ऊर्जा भागीदारी: मध्य एशिया में डिजिटल परिवर्तन के लिए भारत की भूमिका का उल्लेख किया गया।
    • भारत-मध्य एशिया डिजिटल फोरम (उज्बेकिस्तान में पहली बैठक)।

  • महत्त्वपूर्ण खनिज: इसके लिए दूसरा ‘रेयर अर्थ फोरम’ और संयुक्त अन्वेषण की योजना की शुरुआत की गई।
  • जलवायु और स्थिरता: ग्लेशियरों के संरक्षण के अंतरराष्ट्रीय वर्ष (2025) के लिए समर्थन किया गया।
    • अल्माटी में कजाकिस्तान के संयुक्त राष्ट्र SDGs हब का समर्थन किया गया।
  • बहुपक्षीय जुड़ाव: मध्य एशिया के देशों ने भारत द्वारा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में स्थायी सदस्यता प्राप्त करने के प्रयास का खुलकर समर्थन किया है।
    • SCO सहयोग की प्रशंसा की गई (भारत ने वर्ष 2023 शिखर सम्मेलन की मेजबानी की)।
    • भारत ने मध्य एशियाई देशों को अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA), वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन (GBA), आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन (CDRI) और ‘इंटरनेशनल बिग कैट अलायंस’ (IBCA) में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया।
  • सांस्कृतिक संबंध: ताजिकिस्तान में दूसरी संस्कृति मंत्रियों की बैठक आयोजित की जाएगी।
    • छात्रों के आदान-प्रदान एवं कल्याण पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
  • अफगानिस्तान: शांतिपूर्ण, आतंकवाद मुक्त अफगानिस्तान का समर्थन किया गया। 
    • UNHCR सहायता वितरण के लिए उज्बेकिस्तान के टर्मेज हब की प्रशंसा की गई।
  • भविष्य के कदम: वर्ष 2025 में दूसरा भारत-मध्य एशिया शिखर सम्मेलन।
    • अगला संवाद वर्ष 2026 में होगा।

भारत-मध्य एशिया शिखर सम्मेलन के बारे में

  • भारत-मध्य एशिया शिखर सम्मेलन एक नेतृत्व-स्तरीय शिखर सम्मेलन है जिसमें भारत के प्रधानमंत्री तथा पाँच मध्य एशियाई गणराज्यों (Central Asian Republics- CARs) के राष्ट्रपति शामिल होते हैं।
  • यह विदेश मंत्रियों की वार्ता का एक राजनीतिक-रणनीतिक उन्नयन है और इस क्षेत्र के साथ भारत के जुड़ाव को दर्शाता है।
  • प्रथम भारत-मध्य एशिया शिखर सम्मेलन की मेजबानी वर्ष 2022 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा वर्चुअल रूप से की गई थी।

मध्य एशिया 

  • मध्य एशिया यूरेशियाई महाद्वीप में स्थित एक स्थलरुद्ध क्षेत्र है, जिसमें पारंपरिक रूप से पाँच सोवियत-पश्चात् गणराज्य शामिल हैं:-

देश 

राजधानी 

उल्लेखनीय विशेषताएँ

कजाखस्तान अस्ताना (नूर-सुल्तान) सबसे बड़ा भू-क्षेत्र, यूरेनियम और तेल से समृद्ध।
किर्गिस्तान बिश्केक पहाड़ी, इस्सिक-कुल झील।
तजाकिस्तान दुशांबे ऊँचे पहाड़, प्रमुख नदी प्रणालियाँ।
तुर्कमेनिस्तान अश्गाबात प्रमुख गैस भंडार, काराकुम रेगिस्तान।
उज्बेकिस्तान ताशकंद समरकंद और बुखारा जैसे सबसे अधिक आबादी वाले, ऐतिहासिक शहर।

भौगोलिक विशेषताएँ

  • सीमाएँ: रूस (उत्तर), चीन (पूर्व), ईरान तथा अफगानिस्तान (दक्षिण) और कैस्पियन सागर (पश्चिम) से घिरा हुआ है।
  • भू-भाग: इसमें विशाल मैदान, रेगिस्तान (जैसे- क्यजिलकुम, काराकुम) और ऊँची पर्वत श्रृंखलाएँ (जैसे- तिआन शान, पामीर) शामिल हैं।
  • जल प्रणालियाँ: अमु दरिया और सीर दरिया नदियाँ इस क्षेत्र की प्रमुख नदियाँ हैं, जो कभी अस्तित्व में रहे अरल सागर को जल प्रदान करती थीं।

अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण व्यापार गलियारे (International North-South Trade Corridor- INSTC) के बारे में

  • INSTC की शुरुआत वर्ष 2000 में रूस, भारत और ईरान द्वारा की गई थी, यह एक बहुविध परिवहन मार्ग है जो हिंद महासागर और फारस की खाड़ी को ईरान के माध्यम से कैस्पियन सागर से जोड़ता है, और रूस में सेंट पीटर्सबर्ग के माध्यम से उत्तरी यूरोप तक जाता है। 
  • INSTC में समुद्री मार्ग, रेल संपर्क और सड़क संपर्क शामिल हैं जो भारत में मुंबई को रूस में सेंट पीटर्सबर्ग से जोड़ते हैं, जो चाबहार से होकर गुजरते हैं।
  •  सदस्य देश: इसे 13 देशों द्वारा अनुमोदित किया गया है, अर्थात् अजरबैजान, बेलारूस, बुल्गारिया, आर्मेनिया, भारत, ईरान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ओमान, रूस, ताजिकिस्तान, तुर्किए और यूक्रेन। 
  • इस गलियारे की कई शाखाएँ हैं:-
    • कैस्पियन सागर के पश्चिमी किनारे पर यह अजरबैजान के माध्यम से रूस को ईरान से जोड़ेगा।
    • पूर्वी शाखा कैस्पियन सागर के पूर्वी तट के समानांतर है और मुख्य गलियारे को तुर्कमेनिस्तान और कजाकिस्तान जैसे मध्य एशियाई देशों के विभिन्न सड़क और रेल नेटवर्क से जोड़ती है।

मध्य एशिया का महत्त्व

  • भू-रणनीतिक महत्त्व: यूरेशिया के केंद्र में स्थित मध्य एशिया एक रणनीतिक स्थल है, जो यूरोप और एशिया के बीच एक महत्वपूर्ण भूमि संयोजक (लैंड ब्रिज) के रूप में कार्य करता है।
    • भारत की विस्तारित पड़ोस नीति और चीन के BRI और रूस की उपस्थिति के बीच क्षेत्रीय प्रभाव के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • ऊर्जा सुरक्षा: प्राकृतिक गैस (तुर्कमेनिस्तान), यूरेनियम (कजाकिस्तान) और दुर्लभ मृदा तत्व (उज्बेकिस्तान) से समृद्ध है।
    • तापी (TAPI) पाइपलाइन और दीर्घकालिक ऊर्जा सहयोग के माध्यम से भारत के विविधीकरण का समर्थन करता है।
  • कनेक्टिविटी और ट्रांजिट: INSTC और चाबहार पोर्ट तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिए पाकिस्तान को बायपास करने वाला मार्ग विकसित किया गया है।
    • भारत INSTC में तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान की सदस्यता का समर्थन करता है।
  • सुरक्षा और स्थिरता भागीदार: आतंकवाद-रोधी, उग्रवाद-विरोधी और मादक पदार्थों की तस्करी नियंत्रण में साझा लक्ष्य सुनिश्चित किये गए हैं।
    • प्रायः NSA-स्तरीय परामर्श और संयुक्त सैन्य अभ्यास (जैसे- DUSTLIK, KAZIND)।
  • प्रौद्योगिकी और डिजिटल कूटनीति: भारत डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) और इंडिया स्टैक टूल्स का निर्यात कर रहा है। 
    • भारत-मध्य एशिया डिजिटल भागीदारी फोरम (2025) का शुभारंभ किया गया।
  • बहुपक्षीय समर्थन और ग्लोबल साउथ समन्वय
    • भारत की स्थायी UNSC सदस्यता के लिए मजबूत समर्थन प्राप्त हुआ।
    • मध्य एशियाई गणराज्यों (CARs) भारत के नेतृत्व वाले मंचों जैसे ISA, GBA, IBCA, CDRI में शामिल हो रहे हैं; दक्षिण-दक्षिण सहयोग के लिए दक्षिण में शामिल हो रहे हैं।
  • सॉफ्ट पावर और प्रवासी: बॉलीवुड, भारतीय व्यंजन और संस्कृति मध्य एशिया में अधिक लोकप्रिय हैं।
    • मध्य एशियाई देशों में बसे भारतीय समुदाय व्यापार और सांस्कृतिक एकीकरण में योगदान देता है।
    • योग, पारंपरिक चिकित्सा और शास्त्रीय नृत्य भारत की सॉफ्ट पावर के मूल में हैं।

मुख्य द्विपक्षीय मुख्य बिंदु

भारत-कजाकिस्तान

  • वर्ष 2009 से रणनीतिक साझेदारी
  • परमाणु ऊर्जा: भारत को यूरेनियम का प्रमुख आपूर्तिकर्ता (कजातोमप्रोम-NPCIL समझौते)।
  • रक्षा
    • वार्षिक संयुक्त सैन्य अभ्यास: काजिंद।
    • कजाकिस्तान भारत के साथ संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना अभ्यास में भाग लेता है।
  • कनेक्टिविटी: कजाकिस्तान INSTC के पूर्वी गलियारे को आगे बढ़ा रहा है; यह अश्गाबात समझौते में सक्रिय है।
  • व्यापार और अर्थव्यवस्था
    • वर्ष 2023- 2024 में द्विपक्षीय व्यापार: लगभग 1.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर।
    • भारतीय निर्यात: फार्मास्यूटिकल्स, चाय, मशीनरी।
    • तेल क्षेत्र सेवाओं, IT और बुनियादी ढाँचे में भारतीय निवेश।

भारत-उज्बेकिस्तान

  • वर्ष 2011 से रणनीतिक साझेदारी।
  • रक्षा: अभ्यास डस्टलिक (2024 संस्करण उत्तराखंड में आयोजित किया गया)।
    • संयुक्त कार्य समूहों के माध्यम से सक्रिय रक्षा सहयोग।
  • शिक्षा और संस्कृति: भारतीय विश्वविद्यालय: अंदीजान और ताशकंद में एमिटी, शारदा, आचार्य।
    • ICCR चेयर, हिंदी भाषा और योग कक्षाएँ लोकप्रिय।
  • व्यापार एवं अर्थव्यवस्था
    • द्विपक्षीय व्यापार (2023-24): लगभग 470 मिलियन अमेरिकी डॉलर।
    • भारत निर्यात: फार्मा, यांत्रिक उपकरण, रसायन।
    • वस्त्र, कृषि प्रसंस्करण, नवीकरणीय ऊर्जा और ICT में निवेश के लिए मजबूत प्रोत्साहन।
    • उज्बेकिस्तान INSTC में शामिल होने में रुचि रखता है; वर्ष 2025 में प्रथम भारत-मध्य एशिया डिजिटल फोरम की मेजबानी की।

भारत-तुर्कमेनिस्तान

  • ऊर्जा केंद्रित: तापी गैस पाइपलाइन की उत्पत्ति (अफगानिस्तान के कारण विलंबित)।
  • राजनीतिक जुड़ाव
    • पूर्व राष्ट्रपति कोविंद ने वर्ष 2022 में अश्गाबात का दौरा किया।
    • सांस्कृतिक कूटनीति: इंडिया रूम और टैगोर प्रतिमा का उद्घाटन।
  • कनेक्टिविटी: वर्ष 2023 में INSTC में शामिल हो जाएगा; भारत इसके एकीकरण का पूरा समर्थन कर रहा है।
  • व्यापार और अर्थव्यवस्था
    • द्विपक्षीय व्यापार (2023-24): लगभग 132 मिलियन अमेरिकी डॉलर।
    • भारत के निर्यात: फार्मास्यूटिकल्स, इलेक्ट्रॉनिक्स, कपड़ा, चाय।
    • भारत तुर्कमेनिस्तान के कार्गो के लिए चाबहार के माध्यम से समुद्री संपर्क की खोज कर रहा है।

भारत-ताजिकिस्तान

  • भू-रणनीतिक महत्त्व: अफगानिस्तान की सीमा से लगा हुआ; भारत के सबसे निकट मध्य एशियाई देश है।
  • रक्षा एवं विकास: भारत ‘भारत-ताजिक मैत्री अस्पताल’ का संचालन करता है, तथा जलविद्युत क्षेत्रमें सहायता करता है।
    • विद्युत पारेषण में सक्रिय भारतीय कंपनियाँ (जैसे- BHEL, कल्पतरु)।
  • व्यापार एवं अर्थव्यवस्था
    • द्विपक्षीय व्यापार सामान्य (65 मिलियन अमेरिकी डॉलर) बना हुआ है।
    • ताजिकिस्तान सूखे मेवे, एल्युमीनियम निर्यात करता है; भारत फार्मा, मशीनरी निर्यात करता है।
    • भारत ग्रामीण स्वास्थ्य, शिक्षा और आपदा प्रतिक्रिया में तकनीकी सहायता प्रदान कर रहा है।

भारत-किर्गिस्तान

  • भारत की कनेक्ट सेंट्रल एशिया नीति (वर्ष 2012) के लॉन्चपैड के रूप में।
  • शिक्षा: मेडिकल विश्वविद्यालयों में कई भारतीय छात्र; ITEC छात्रवृत्तियाँ।
  • सुरक्षा सहयोग: किर्गिस्तान तीसरे भारत-मध्य एशिया NSA परामर्श की मेजबानी करेगा।
  • व्यापार और अर्थव्यवस्था
    • व्यापार (2023-24): लगभग 47 मिलियन अमेरिकी डॉलर।
    • भारत निर्यात करता: फार्मा, रसायन, चाय, सौंदर्य प्रसाधन।
    • भारत डेयरी, IT सेवाओं, ऊर्जा संचरण में निवेश कर रहा है।

तापी (TAPI) पाइपलाइन परियोजना के बारे में

  • तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-भारत (TAPI) पाइपलाइन एक प्रमुख प्राकृतिक गैस पाइपलाइन परियोजना है जिसका उद्देश्य तुर्कमेनिस्तान से अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत तक प्राकृतिक गैस पहुँचाना है।

  • मार्ग: TAPI पाइपलाइन तुर्कमेनिस्तान के गैल्किनिश गैस क्षेत्र से निकलती है, जो विश्व के सबसे बड़े गैस भंडारों में से एक है।
    • इसके बाद यह अफगानिस्तान, पाकिस्तान से होकर उत्तर-पश्चिमी भारत के फाजिल्का में समाप्त होती है।
  • वित्तपोषण: एशियाई विकास बैंक (ADB) द्वारा वित्त पोषित किया गया है।
    • तुर्कमेनिस्तान ने इस्लामिक डेवलपमेंट बैंक से 700 मिलियन डॉलर का ऋण लिया।
    • शेष तीन देशों ने तापी परियोजना में 200 मिलियन डॉलर का प्रारंभिक निवेश किया।
  • भारत के लिए महत्त्व: BP एनर्जी आउटलुक 2035 के अनुसार, वैश्विक ऊर्जा खपत में भारत की हिस्सेदारी 9% होगी, जबकि वैश्विक उत्पादन में इसकी हिस्सेदारी 5% रहेगी।

भारत-मध्य एशिया की प्रमुख पहल

  • कनेक्टिविटी और व्यापार गलियारे
    • अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (International North-South Transport Corridor-INSTC): भारत उज्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के INSTC में शामिल होने का समर्थन करता है।
      • कजाकिस्तान व्यापार प्रवाह को बढ़ाने के लिए पूर्वी शाखा विकसित कर रहा है।
    • चाबहार बंदरगाह एकीकरण: चाबहार पर पहले भारत-मध्य एशिया संयुक्त कार्य समूह ने अप्रैल 2023 में मुंबई में वार्ता की।
      • वस्तुओं की आवाजाही को आसान बनाने के लिए TIR कार्नेट प्रणाली को बढ़ावा देना।
    • अश्गाबात समझौता (Ashgabat Agreement): भारत और सभी पाँच मध्य एशियाई देशों (CARs) इस पहल के पक्षकार हैं; यह एक बहु-माध्यमीय (मल्टी-मॉडल) परिवहन नेटवर्क को बढ़ावा देता है।
  • डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPI) सहयोग: मध्य एशिया इंडिया स्टैक टूल्स (जैसे- आधार जैसी आईडी, UPI सिस्टम) को अपनाएगा।
    • भारत-मध्य एशिया डिजिटल साझेदारी फोरम का शुभारंभ।
      • उज्बेकिस्तान उद्घाटन बैठक की मेजबानी करेगा।
  • विज्ञान, नवाचार और ‘रेयर अर्थ’: अंतरिक्ष, नवाचार और डिजिटल प्रौद्योगिकियों में सहयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है।
    • भारत-मध्य एशिया ‘रेयर अर्थ फोरम’ (India–Central Asia Rare Earth Forum)
      • पहली बैठक नई दिल्ली में (सितंबर 2024) आयोजित की गई थी।
      • दूसरे फोरम में महत्त्वपूर्ण खनिज साझेदारी पर विस्तार करने की योजना बनाई गई है।
  • क्षमता निर्माण और ITEC विस्तार: भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (ITEC) कार्यक्रम का विस्तार किया गया है:-
    • क्षेत्र: IT, अंग्रेजी भाषा, शासन प्रशिक्षण।
    • वर्ष 2024-25 में ड्रग कानून प्रवर्तन, आतंकवाद के वित्तपोषण का मुकाबला करने पर कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
    • दक्षिण (ग्लोबल साउथ सेंटर ऑफ एक्सीलेंस): मध्य एशिया के साथ विकास ज्ञान के आदान-प्रदान के लिए नया मंच है।
  • सुरक्षा एवं आतंकवाद निरोध: NSA स्तर पर परामर्श संस्थागत किया गया।
    • अगले दौर की मेजबानी किर्गिज गणराज्य करेगा।
  • पर्यावरण एवं सतत् विकास: इसमें भागीदारी है:- 
    • ग्लेशियर संरक्षण सम्मेलन (ताजिकिस्तान, 2025)।
    • पहाड़ विकास पर पंचवर्षीय कार्य योजना (2023-27)।
    • अल्माटी में कजाकिस्तान द्वारा संयुक्त राष्ट्र SDG हब का शुभारंभ किया गया।

भारत-मध्य एशिया संबंधों में चुनौतियाँ

  • प्रत्यक्ष भौतिक संपर्क का अभाव: भारत और किसी भी मध्य एशियाई देश के बीच कोई भूमि सीमा नहीं है।
    • पाकिस्तान ने मध्य एशिया तक जमीनी पहुँच को अवरुद्ध कर दिया है।
    • INSTC और चाबहार पोर्ट जैसी परियोजनाएँ अभी भी आंशिक या धीमी गति से कार्यान्वयन चरण में हैं।
    • हवाई संपर्क सीमित, महंगा और काफी हद तक अप्रत्यक्ष बना हुआ है।
  • कम द्विपक्षीय व्यापार मात्रा: सभी पाँचों CARs के साथ संयुक्त व्यापार 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर से कम है, जो संभावित और चीन के व्यापार (50 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक) की तुलना में बहुत कम है।
    • उच्च रसद लागत, टैरिफ बाधाएँ और बैंकिंग/भुगतान बुनियादी ढाँचे की कमी व्यापार वृद्धि को बाधित करती है।
    • मुक्त व्यापार समझौतों और पूरक उत्पाद पोर्टफोलियो की अनुपस्थिति विस्तार को और सीमित करती है।
  • चीन का रणनीतिक प्रभुत्व: बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के माध्यम से चीन सभी CARs में शीर्ष व्यापारिक साझेदार और बुनियादी ढाँचा निवेशक है।
    • CPEC, रेलमार्ग और ऊर्जा पाइपलाइन जैसी चीनी परियोजनाएँ कहीं अधिक मजबूत हैं।
    • भारत के दृष्टिकोण को धीमी गति से चलने वाला और नीति-केंद्रित माना जाता है, जिसमें चीन के आक्रामक वित्तपोषण और निष्पादन का अभाव है।
  • क्षेत्र में सुरक्षा अस्थिरता: अफगानिस्तान से आतंकवाद का प्रसार क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा है।
    • ड्रग्स, हथियारों की तस्करी और कट्टरपंथ लगातार खतरे बने हुए हैं।
    • भारत के साथ प्रत्यक्ष सीमा साझाकरण नहीं है और इसलिए वह रूस या चीन की तरह कड़ी सुरक्षा वाली भूमिका नहीं निभा सकता है।
    • उदाहरण: अफगानिस्तान में असुरक्षा के कारण तापी पाइपलाइन रुकी हुई है।
  • नौकरशाही एवं राजनीतिक बाधाएँ: CARs में सत्तावादी शासन व्यवस्था है, जिसमें अपारदर्शी विनियामक ढाँचे हैं।
    • भारतीय कंपनियों को व्यवसाय स्थापित करने, लाइसेंस प्राप्त करने या गैर-पारदर्शी खरीद प्रणालियों को अपनाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
    • भाषा और कानूनी बाधाएँ भी द्विपक्षीय संबंधों को सुचारू बनाने में बाधा डालती हैं।
  • सीमित जन-जन संपर्क: सभ्यतागत संबंधों के बावजूद, सांस्कृतिक कूटनीति का लाभ कम उठाया जा रहा है।
    • पर्यटन, छात्र आदान-प्रदान और शैक्षिक सहयोग क्षमता से बहुत कम हैं।
  • वित्तीय और बैंकिंग संबंध विच्छेद: भारत और CARs के बीच कोई प्रत्यक्ष बैंकिंग या वित्तीय निपटान प्रणाली मौजूद नहीं है।
    • व्यापार वित्त, प्रेषण और मुद्रा परिवर्तनीयता में कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
    • वित्तीय संपर्क पर संयुक्त कार्य समूह (2025) का प्रस्ताव अभी भी अन्वेषणात्मक चरण में है।
  • बहुपक्षीय मंचों का कम उपयोग: यद्यपि भारत और CARs SCO, CDRI, ISA, IBCA का हिस्सा हैं, फिर भी तालमेल एवं कार्रवाई योग्य परियोजनाएँ अभी भी योजना चरण में हैं।
    • बड़े पैमाने पर बुनियादी ढाँचे या क्षेत्रीय कनेक्टिविटी परियोजनाओं को पूरा करने की भारत की क्षमता संस्थागत अनुवर्तन की कमी और नौकरशाही देरी के कारण सीमित है।

भारत-मध्य एशिया संबंधों के लिए आगे की राह 

  • फास्ट-ट्रैक कनेक्टिविटी परियोजनाएँ: INSTC और चाबहार बंदरगाह के पूर्ण संचालन में तेजी लाना।
    • मल्टीमॉडल कॉरिडोर, कस्टम्स डिजिटलीकरण और TIR कार्नेट विस्तार को प्राथमिकता देना।
    • त्रिपक्षीय और बहुपक्षीय कूटनीति के माध्यम से तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान की INSTC सदस्यता का समर्थन करना।
  • दीर्घकालिक ऊर्जा और महत्त्वपूर्ण खनिज समझौते सुरक्षित करना: अफगानिस्तान में स्थिरता के बाद TAPI पाइपलाइन वार्ता को तेज करना।
    • भारत-मध्य एशिया ‘रेयर अर्थ फोरम’ के तहत ‘रेयर अर्थ’ के संयुक्त अन्वेषण और प्रसंस्करण को अंतिम रूप देना।
    • कजाकिस्तान के साथ विश्वसनीय दीर्घकालिक यूरेनियम आपूर्ति समझौते सुनिश्चित करना।
  • मजबूत वित्तीय एवं व्यापारिक बुनियादी ढाँचे का निर्माण: वित्तीय संपर्क पर भारत-मध्य एशिया संयुक्त कार्य समूह की स्थापना।
    • व्यापार प्रवाह को आसान बनाने के लिए रुपया निपटान, डिजिटल भुगतान और अंतर-बैंक संबंधों को बढ़ावा देना।
    • ICABC और संयुक्त वाणिज्य मंडलों के माध्यम से B2B सुविधा के लिए प्रयास करना।
  • एक्सपोर्ट इंडिया स्टैक और डिजिटल गवर्नेंस मॉडल: इच्छुक CARs में डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPI) पायलट कार्यक्रम शुरू करना।
    • चीनी बुनियादी ढाँचे पर आधारित डिजिटल अधिनायकवाद के मुकाबले भारत को पसंदीदा तकनीकी साझेदार के रूप में स्थापित करना।
    • भारत-मध्य एशिया डिजिटल भागीदारी फोरम का उपयोग बहुपक्षीय तकनीकी मंच के रूप में करना।
  • मानव पूँजी और कौशल विकास सहयोग का विस्तार करना: ITEC छात्रवृत्ति, व्यावसायिक प्रशिक्षण और चिकित्सा फेलोशिप को बढ़ाना।
    • किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान में भारतीय विश्वविद्यालय परिसरों का समर्थन करना।
    • AI, बायोटेक, एग्री-टेक में नई संयुक्त अनुसंधान एवं विकास पहल शुरू करना।
  • सुरक्षा सहयोग और आतंकवाद विरोधी वार्ता को बढ़ावा देना: NSA-स्तरीय परामर्श और खुफिया जानकारी साझा करना।
    • नशीली दवाओं के विरुद्ध कानून प्रवर्तन, साइबर सुरक्षा और कट्टरपंथ को समाप्त करने की रणनीतियों के लिए संयुक्त प्रशिक्षण देना।
    • अफगानिस्तान में फैलने वाले खतरों की निगरानी के लिए SCO और द्विपक्षीय प्रारूपों का उपयोग करना।
  • सांस्कृतिक और सभ्यतागत कूटनीति को मजबूत करना: भारतीय सांस्कृतिक केंद्रों, संस्कृत पीठों और युवा आदान-प्रदान को मजबूत करना।
    • भारत-मध्य एशिया संस्कृति मंत्रियों की बैठक नियमित रूप से आयोजित करना (अगली बैठक ताजिकिस्तान में होगी)।
    • लोगों के बीच आपसी संपर्क बढ़ाने के लिए सूफी, बौद्ध और मुगल विरासत का लाभ उठाना।

निष्कर्ष 

पहलगाम हमले की निंदा और 3.5 वर्ष के अंतराल के साथ आयोजित चौथी भारत-मध्य एशिया वार्ता, कनेक्टिविटी, व्यापार और सुरक्षा पहलों के माध्यम से मध्य एशियाई देशों के साथ भारत की रणनीतिक भागीदारी को मजबूत करती है। INSTC, चाबहार और सॉफ्ट पावर क्षेत्र में निरंतर प्रयास क्षेत्रीय चुनौतियों का मुकाबला करेंगे और भारत के प्रभाव को बढ़ाएंगे।

केर सांगरी

राजस्थान के प्रसिद्ध व्यंजन ‘केर सांगरी’ को भौगोलिक संकेत या GI टैग मिला है। 

केर सांगरी के बारे में

  • केर सांगरी दो रेगिस्तानी पौधों- केर एवं सांगरी का उपयोग करके बनाई जाती है।
    • केर एक छोटा बेर है, जबकि सांगरी एक फल है जो खेजड़ी के पेड़ पर उगता है। ये थार रेगिस्तान की सूखी एवं रेतीली भूमि में स्वाभाविक रूप से उगते हैं। 
  • सांगरी, खेजड़ी के पेड़ पर उगती है, जो राजस्थान में पवित्र वृक्ष है। 
    • पहले, लोग सूखे के समय में इनका प्रयोग करते थे, जब ताजी सब्जियाँ मिलना मुश्किल होता था।
    • इसमें फाइबर, अल्प वसा एवं अन्य पोषक तत्व होते हैं।

भारतीय भाषा अनुभाग (BBA)

हाल ही में, भारतीय भाषा अनुभाग (BBA) का शुभारंभ किया गया है।

भारतीय भाषा अनुभाग (BBA) के बारे में

  • यह प्रशासन में भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने एवं अंग्रेजी के प्रभुत्व को कम करने के लिए एक सरकारी पहल है।
  • उद्देश्य
    • राज्यों की अपनी आधिकारिक भाषाएँ हैं, एवं BBA अनुवाद कार्य में मदद करेगा।
      • राजभाषा नियम, 1976: राजभाषा नियम, 1976 के तहत, केंद्र क्षेत्र सी राज्यों (जैसे तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक) के साथ केवल अंग्रेजी में संवाद करता है।
    • सभी भारतीय भाषाओं के लिए एक संगठित मंच प्रदान करना।
    • मातृभाषाओं में सोच, विश्लेषण एवं निर्णयन की सुविधा प्रदान करना।
    • शासन एवं संचार में भाषाई समावेशिता सुनिश्चित करना।
  • नोडल मंत्रालय: केंद्रीय गृह मंत्रालय।
  • बजटीय सहायता: केंद्रीय बजट वर्ष 2024-25 में ₹56 करोड़ आवंटित।
    • हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के बीच अनुवाद मंच निर्माण के लिए उपयोग की जाने वाली धनराशि।
  • कार्यान्वयन सहायता: उन्नत कंप्यूटिंग विकास केंद्र (C-DAC) द्वारा समर्थित।

ब्रिक्स संसदीय मंच

ब्राजील के ब्रासीलिया में 11वें ब्रिक्स संसदीय मंच ने जम्मू एवं कश्मीर के पहलगाम में हुए हालिया आतंकवादी हमले की निंदा की है।

ब्रिक्स संसदीय मंच के बारे में

  • यह वैश्विक चुनौतियों एवं सहयोग पर अंतर-संसदीय चर्चाओं को सुविधाजनक बनाने के लिए ब्रिक्स सदस्य देशों की संसदों के बीच संवाद का एक मंच है।
  • स्थापना: पहला ब्रिक्स संसदीय मंच वर्ष 2015 में BRICS शिखर सम्मेलनों के समानांतर संस्था के रूप में आयोजित किया गया था।
  • अध्यक्षता: यह BRICS देशों के बीच प्रतिवर्ष क्रमिक रूप से आयोजित किया जाता है।
    • भारत ने वर्ष 2026 में आयोजित होने वाले 12वें BRICS संसदीय मंच की अध्यक्षता संभाली।

11वें BRICS संसदीय मंच के मुख्य परिणाम

  • वर्ष 2030 सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) के प्रति प्रतिबद्धता की पुष्टि की।
  • दाता देशों से आधिकारिक विकास सहायता (Official Development Assistance- ODA) दायित्वों को पूरा करने का आग्रह किया।
  • आतंकवाद पर जीरो टालरेंस की नीति अपनाने के लिए सदस्य देशों के बीच सामूहिक समझौता।

उत्तर पांड्य काल का 800 वर्ष पुराना मंदिर

हाल ही में तमिलनाडु के मेलुर तालुक के उदमपट्टी गांव में बाद के पांड्य कालीन (लगभग 800 वर्ष पुराना) एक मंदिर खोजा गया है।

मंदिर के बारे में

  • यह भगवान शिव को समर्पित था।
  • यह 1217-1218 ई. में मारवर्मन सुंदर पांड्य के शासनकाल के दौरान निर्मित हुआ था।
  • शिलालेख एवं उनका अर्थ
    • शिलालेखों से पता चलता है कि उदमपट्टी का मूल नाम अत्तूर था।
    • मंदिर को थेन्नावनीश्वरम कहा जाता था (थेन्नावन पांड्य शासकों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली उपाधि थी)।
    • शिलालेख प्राचीन तमिल में दर्ज एक भूमि एवं जलाशय की बिक्री से संबंधित हैं।
    • अलगापेरुमल नामक एक सरदार ने नागनकुडी जलाशय एवं भूमि को 64 कासू (सिक्कों) में बेच दिया।
    • भूमि से प्राप्त कर मंदिर को दैनिक खर्चों के लिए दिया जाता था।

ASW-SWC अर्नाला

भारतीय नौसेना विशाखापत्तनम के नौसेना डॉकयार्ड में ‘अर्नाला’ नामक पहले एंटी-सबमरीन वारफेयर शैलो वाटर क्राफ्ट (ASW-SWC) के परिचालन हेतु तैयार है।

अर्नाला के बारे में

  • यह 16 ASW-SWC श्रेणी के युद्धपोतों की श्रृंखला में प्रथम जहाज है।
  • डिजाइन एवं निर्माण: गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (GRSE), कोलकाता द्वारा, पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल के तहत L&T शिपबिल्डर्स के साथ साझेदारी में विकसित।
  • जहाज का आदर्श वाक्य: अर्नवे शौर्यम्। 
  • नामकरण: इसका नामकरण महाराष्ट्र के अर्नला किले के नाम पर, भारत की समुद्री विरासत को प्रदर्शित करते हुए किया गया है। 

मुख्य विशेषताएँ

  • इसमें उन्नत पनडुब्बी रोधी युद्ध क्षमताएँ हैं जो इसे बचाव मिशनों एवं कम तीव्रता वाले अभियानों में उपयोगी बनाती हैं। 
  • इसमें उन्नत उपसतह निगरानी है जो जल के नीचे खतरे का पता लगाने में मदद करती है। 
  • इसमें एक आधुनिक प्रणोदन प्रणाली है, अर्थात् डीजल इंजन-वॉटरजेट संयोजन द्वारा संचालित, इस आकार के भारतीय नौसेना के युद्धपोत के लिए यह पहली बार है। 
  • इसे 80% स्वदेशी सामग्री के साथ निर्मित किया गया है, जो रक्षा निर्माण में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देता है।

लोबिया

लोबिया एक फलीदार पौधा है जिसके बारे में वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि यह जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध वैश्विक लड़ाई में महत्त्वपूर्ण हो सकता है।

लोबिया के बारे में

  • लोबिया (विग्ना अनगुइकुलाटा), जिसे ‘ब्लैक-आइड पी’ के नाम से भी जाना जाता है, मटर परिवार (फैबेसी) के भीतर स्वाभाविक रूप से पाया जाने वाला सूखा-सहिष्णु फलीदार पौधा है।
  • यह अनुर्वर मृदा में पनपता है, एवं गर्मी को सहन कर सकता है, जिससे यह जलवायु-संवेदनशील क्षेत्रों के लिए आदर्श बन जाता है।
  • यह नाइट्रोजन स्थिरीकरण के माध्यम से मृदा की उर्वरता में सुधार करता है, जिससे कम इनपुट वाली कृषि प्रणालियों को लाभ होता है।
  • यह पश्चिम अफ्रीका में एक मुख्य भोजन है, जिसे अक्सर इसकी सामर्थ्य एवं उच्च प्रोटीन के कारण “गरीबों का मांस” कहा जाता है।
  • क्षेत्रीय नाम: लोबिया (हिंदी), चवली (मराठी), करमनी (तमिल), अलासंदुलु (तेलुगु)।
  • हाल ही में ISRO ने PSLV-C60/POEM-4 मिशन पर अंतरिक्ष में लोबिया प्रयोग किया, जो सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण में दो पत्ती वाले चरण तक पहुँच गया।

इबेरियन-उत्तरी अफ्रीकी आनुवंशिक संबंध

हाल ही में, एक महत्त्वपूर्ण आनुवंशिक अध्ययन से पता चलता है कि कैसे उत्तरी अफ्रीका एवं इबेरियन प्रायद्वीप (आधुनिक स्पेन तथा पुर्तगाल) सहस्राब्दियों तक आनुवंशिक, सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक रूप से एक-दूसरे से जुड़े रहे थे। 

आनुवंशिक निष्कर्ष

  • इस्लाम से पहले उत्तरी अफ्रीकी वंश: इनका DNA 711 ई. से पहले इबेरिया में उत्तरी अफ्रीकी संबंधों की पुष्टि करता है, संभवतः व्यापार/कार्थेजियन संबंधों के कारण। 
  • इस्लामी काल में मिश्रण में वृद्धि: शुरुआती अल-अंडालस में मजबूत उत्तरी अफ्रीकी आनुवंशिक हस्तक्षेप, समय के साथ धीरे-धीरे कम होते गए। 
  • रिकोनक्विस्टा के बाद अस्तित्व: उत्तरी अफ्रीकी DNA 17वीं शताब्दी तक ईसाई आबादी में बना रहा। 
  • मोरिस्को निर्वासन (1609-1614) में भारी कमी आई, लेकिन इस वंश को पूरी तरह से मिटाया नहीं जा सका। 
    • मोरिस्कोस मुस्लिम थे जिन्हें ईसाई पुनर्विजय (1492 इस्वी) के बाद इबेरिया में जबरन ईसाई धर्म में परिवर्तित कर दिया गया था।
    • उनमें से कई ने गुप्त रूप से मुस्लिम परंपराओं को बनाए रखा, जिसके कारण संदेह, हिंसा एवं निर्वासन हुआ।
  • अमेरिका में विरासत: कुछ उत्तरी अफीकी-इबेरियन DNA को प्रारंभिक उपनिवेशवादियों द्वारा लैटिन अमेरिका में ले जाया गया।

निष्कर्षों का महत्त्व

  • इबेरियन इतिहास के सरलीकृत आख्यानों को चुनौती देता है (उदाहरण के लिए, “शुद्ध” ईसाई पुनर्विजय)।
  • इस बात पर प्रकाश डालता है, कि कैसे राजनीतिक निर्णय (जैसे जातीय विनाश) आनुवंशिक परिदृश्य को नया रूप दे सकते हैं।

चिनाब पुल

हाल ही में जम्मू एवं कश्मीर में चिनाब पुल (दुनिया का सबसे ऊँचा आर्च-रेलवे पुल) का उद्घाटन किया गया। 

चिनाब पुल के बारे में

  • यह पुल उधमपुर-श्रीनगर-बारामुल्ला रेल लिंक (USBRL) परियोजना के 927 पुलों में से एक है एवं यह भारत का एकमात्र आर्च-आकार का रेलवे पुल है। 
    • इस परियोजना में अंजी खड्ड पर भारत का पहला केबल-स्टेड रेल पुल भी शामिल है।
  • आकार: चेनाब पुल 1,315 मीटर लंबा है एवं इसका आर्च-स्पैन 467 मीटर है। 
  • स्थान: यह पुल जम्मू एवं कश्मीर के रियासी जिले में बक्कल तथा कौरी गाँवों के बीच अवस्थित है।
  • ऊँचाई: यह पुल 359 मीटर ऊँचा है, (कुतुब मीनार की ऊँचाई से कम-से-कम पाँच गुना)।
  • निर्माणकर्ता: AFCONS इंफ्रास्ट्रक्चर ने पुल का निर्माण किया। 
  • विशेषताएँ
    • मजबूती: पुल को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि संरचना को सहारा देने वाले 8 खंभों में से एक के क्षतिग्रस्त होने पर भी ट्रेनें कम गति से गुजर सकती हैं।
    • डिजाइन: पुल को पैराबोलिक आर्च डिजाइन (सबसे मजबूत भार वहन करने वाली संरचना) द्वारा सहारा दिया गया है।
    • यह 266 किमी. प्रति घंटे की हवा की गति एवं 300 टन के रेलवे कोच के वजन को वहन करने के लिए इंटरलॉकिंग बीम तथा गर्डर से बना है एवं इसके लिए सीमेंट ग्राउटिंग की आवश्यकता होती है।

RBI ने रेपो दरों में 50 आधार अंकों की कटौती की

हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने रेपो दर में 50 आधार अंकों की कटौती कर इसे 5.50 प्रतिशत कर दिया है। 

  • फरवरी 2025 के बाद से यह लगातार तीसरी कटौती है। 
  • बैंकों के नकद आरक्षित अनुपात में भी 100 आधार अंकों की कटौती कर इसे 3 प्रतिशत कर दिया गया, जिससे बैंकिंग प्रणाली को 2.5 लाख करोड़ रुपये के उधार योग्य संसाधन प्राप्त हुए।
  • नीतिगत रुख: आर्थिक वृद्धि को समर्थन देने के लिए इसे ‘समायोज्य’ से बदलकर ‘तटस्थ‘ कर दिया गया है। 
  • GDP एवं मुद्रास्फीति अनुमान: नीति पैनल ने GDP वृद्धि अनुमान को 6.5 प्रतिशत पर बरकरार रखा, लेकिन चालू वित्त वर्ष में 3.7 प्रतिशत की कम CPI मुद्रास्फीति का अनुमान लगाया।
  • कारण: खाद्य कीमतों में निरंतर गिरावट के कारण खुदरा मुद्रास्फीति में गिरावट की संभावना जताई गई है। 
    • वर्ष 2025 के अंतिम तीन महीनों (फरवरी, मार्च एवं अप्रैल) में मुद्रास्फीति दर 4 प्रतिशत से नीचे थी तथा खाद्य मुद्रास्फीति में तेज गिरावट आई। 

प्रभाव

  • दर में कटौती से विकास की संभावनाओं को बढ़ावा मिलेगा क्योंकि यह उधार लेने एवं निवेश को प्रोत्साहित करेगा, जिससे वृद्धि दर बढ़ेगी एवं उधारकर्ताओं, विशेष रूप से होम लोन लेने वालों को लाभ होगा।
  • दर में कटौती से बॉन्ड बाजार को लाभ होगा क्योंकि बॉन्ड की कीमतें बढ़ेंगी एवं बॉन्ड यील्ड में तथा गिरावट आ सकती है, जिससे मौजूदा बॉन्डधारकों के लिए रिटर्न बढ़ेगा एवं फिक्स्ड-इनकम परिसंपत्तियों की माँग बढ़ेगी।
  • इससे बचतकर्ताओं एवं जमाकर्ताओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि जमा दर में कमी होने से उनके रिटर्न में गिरावट आएगी।

नकद आरक्षित अनुपात (CRR) के बारे में

  • CRR बैंक की शुद्ध माँग एवं समय देयताओं (Net Demand And Time Liabilities- NDTL) का अनुपात है जिसे नकद रूप में RBI के पास बनाए रखना चाहिए।
  • आधार दर निर्धारित करते समय नकद आरक्षित अनुपात संदर्भ दरों में से एक के रूप में कार्य करता है।
  • CRR एवं तरलता: जब CRR बढ़ाया जाता है, तो बैंकों को RBI के पास अधिक धन रखना पड़ता है, जिससे उनकी उधार देने की क्षमता कम हो जाती है। CRR जितना अधिक होगा, बैंकों के पास तरलता उतनी ही कम होगी तथा CRR जितना कम होगा, बैंकों के पास तरलता उतनी ही अधिक होगी।
    • बैंक CRR के रूप में रखे गए धन पर रिटर्न नहीं कमाते हैं।

संदर्भ

हाल ही में एक चीनी शोधकर्ता की गिरफ्तारी और दूसरे के विरुद्ध अमेरिका में ‘फ्यूजेरियम ग्रैमिनियरम’ की तस्करी के आरोप ने ‘एग्रो टेरेरिज्म’ के खतरे को उजागर किया है। 

‘एग्रो टेरेरिज्म’ क्या है?

  • ‘एग्रो टेरेरिज्म’ में किसी देश की कृषि पर हमला करने के लिए पौधों के रोगजनकों, कीटों या विषाक्त पदार्थों जैसे जैविक एजेंटों का जानबूझकर उपयोग शामिल है।
  • ‘एग्रो टेरेरिज्म’ का लक्ष्य आर्थिक क्षति, खाद्यान्न की कमी और सार्वजनिक समस्या उत्पन्न करना है।

कृषि एक आसान लक्ष्य क्यों है?

  • सैन्य या वित्तीय प्रणालियों के विपरीत, खेत, खाद्य प्रसंस्करण संयंत्र और आपूर्ति श्रृंखलाएँ कम संरक्षित हैं और व्यापक रूप से विस्तृत हैं।
  • फसलों या पशुओं पर जैविक हमले कई हफ्तों तक पता नहीं चल पाते हैं और अपराधियों का पता लगाना मुश्किल होता है।
  • यह ‘एग्रो टेरेरिज्म’ को उन देशों या समूहों के लिए एक शक्तिशाली हथियार बनाता है जो प्रतिद्वंद्वी राष्ट्र को अस्थिर करना चाहते हैं।

‘एग्रो टेरेरिज्म’ के पिछले उदाहरण

  • द्वितीय विश्व युद्ध-जर्मनी: वर्ष 1943 में ब्रिटिश आलू की फसलों पर कथित तौर पर कोलोराडो आलू बीटल गिराए गए।
  • जापान: अमेरिका और सोवियत संघ में गेहूँ के खेतों को संक्रमित करने की योजना बनाई।
  • शीतयुद्ध काल- अमेरिका: कथित तौर पर 30 टन से अधिक ‘पुकिनिया ट्रिटिसिना’ (गेहूं के तने में लगने वाला कवक) का भंडार जमा किया गया। परमाणु बम का विकल्प चुनने से पहले जापानी चावल की फसलों को नष्ट करने की भी योजना थी।

भारतीय संदर्भ

  • भारत, जिसकी GDP का 17% और जनसंख्या का 55% कृषि पर निर्भर है, ‘एग्रो टेरेरिज्म’ के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील है।
  • व्हीट ब्लास्ट फंगस [Wheat Blast Fungus] (वर्ष 2016)– मैग्नापोर्थे ओराइजे पैथोटाइप ट्रिटिकम (MoT)
    • बांग्लादेश में प्रकोप के बाद पश्चिम बंगाल के दो जिलों में इसका पता चला।
    • सरकार की प्रतिक्रिया: प्रभावित जिलों में 3 वर्ष के लिए गेहूँ की कृषि पर प्रतिबंध लगा दिया गया, बांग्लादेश सीमा के 5 किलोमीटर के भीतर गेहूं की कृषि पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
  • कॉटन लीफ कर्ल वायरस  [Cotton Leaf Curl Virus] (2015)-पंजाब में
    • ‘सैंड बी’ के गंभीर संक्रमण के कारण दो-तिहाई फसल का नुकसान हुआ, जिसकी कीमत 630-670 मिलियन डॉलर थी।
    • वायरस के ऐसे ‘स्ट्रेन’ पाकिस्तान के मुल्तान और वेहारी में प्रायोगिक खेतों में पाए गए, जो पहले भारत में नहीं पाए गए थे, जिससे जानबूझ कर इन्हें लाए जाने की चिंता बढ़ गई।

‘एग्रो टेरेरिज्म’ पर अंतरराष्ट्रीय विनियम एवं रूपरेखा

  • अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, कोई भी ऐसी समर्पित संधि या संगठन नहीं है जो पूरी तरह से कृषि आतंकवाद को नियंत्रित करता हो।
  • इसे जैव सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा और आतंकवाद-रोधी उपायों पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय ढाँचों, सम्मेलनों और एजेंसियों के संयोजन के माध्यम से संबोधित किया जाता है।
  • जैविक हथियार अभिसमय (BWC), 1972: जैविक और विषैले हथियारों के विकास, उत्पादन और भंडारण पर प्रतिबंध लगाता है।
    • इसमें मनुष्यों, पशुओं और पौधों को प्रभावित करने वाले रोगाणुओं और विषाक्त पदार्थों को शामिल किया गया है, इस प्रकार अप्रत्यक्ष रूप से कृषि आतंकवाद को संबोधित किया गया है।
  • अंतरराष्ट्रीय पौध संरक्षण अभिसमय (IPPC): खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के अंतर्गत।
    • इसका उद्देश्य सीमापार पौधों के कीटों के प्रवेश और प्रसार को रोकना है।
    • फाइटोसैनिटरी उपायों को स्थापित करने में मदद करता है, कृषि आतंकवाद की रोकथाम का समर्थन करता है।
  • विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (WOAH/OIE): पशु स्वास्थ्य और रोग निगरानी के लिए अंतरराष्ट्रीय मानक निर्धारित करता है।
    • पशुधन को लक्षित करने वाले संभावित जैव-आतंकवादी खतरों का शीघ्र पता लगाने और प्रतिक्रिया करने में सहायता करता है।
  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद संकल्प 1540 (2004): यह आदेश देता है कि सभी राष्ट्रों को गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं को सामूहिक विनाश के हथियार (जैविक हथियारों सहित) प्राप्त करने से रोकना चाहिए।
  • इंटरपोल और वैश्विक आतंकवाद निरोधक मंच: कृषि संबंधी आतंकवाद कृत्यों, विशेष रूप से जैव आतंकवाद से संबंधित, की जाँच और रोकथाम में अंतरराष्ट्रीय सहयोग का समर्थन करना।

‘एग्रो टेरेरिज्म’ और कृषि-अपराध

पहलू

‘एग्रो टेरेरिज्म’

कृषि-अपराध

प्राथमिक उद्देश्य राजनीतिक, वैचारिक या मनोवैज्ञानिक प्रभाव (जैसे, किसी राष्ट्र को अस्थिर करना, भय भड़काना)। वित्तीय लाभ (जैसे, तस्करी, कालाबाजारी, धोखाधड़ी)
अपराधी   आतंकवादी समूह, राज्य प्रायोजित अभिकर्त्ता या चरमपंथी। संगठित अपराध, भ्रष्ट अधिकारी, या लाभ-प्रेरित व्यक्ति।
लक्ष्य राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा, महत्त्वपूर्ण फसलें/पशुधन, या आर्थिक अवसंरचना। उच्च मूल्य वाली वस्तुएँ (जैसे, दुर्लभ बीज, सब्सिडी युक्त उर्वरक, अवैध कीटनाशक)।
तरीके जैविक हथियार (जैसे, फ्यूजेरियम ग्रैमिनेरम जैसे रोगाणु), कृषि तकनीक पर साइबर हमले, या आपूर्ति श्रृंखलाओं को संदूषित करना नकली कीटनाशक, अवैध GMO तस्करी, या कृषि उपज की चोरी।
उदाहरण चीनी शोधकर्ताओं द्वारा कथित फ्यूजेरियम तस्करी भारत में नकली कीटनाशक घोटाले

फ्यूजेरियम ग्रैमिनीयरम (Fusarium graminearum)

  • फ्यूजेरियम ग्रैमिनियरम एक विषैला कवक है जो ‘फ्यूजेरियम हेड ब्लाइट’ का कारण बनता है, यह एक ऐसी बीमारी है जो गेहूँ, जौ, मक्का और चावल की फसलों को नष्ट कर देती है।
  • यह गर्म, आर्द्र परिस्थितियों में पनपता है और बीजाणुओं के माध्यम से फैलता है, जिससे पूरा खेत दूषित हो जाता है।
  • यह कवक डीऑक्सीनिवेलनॉल [DON, या ‘वोमिटोक्सिन’ (Vomitoxin)] उत्पन्न करता है, जो अनाज को मनुष्यों और पशुओं के लिए असुरक्षित बनाता है।
  • यह संक्रमित खेतों में अनाज की उत्पादकता को 30-70% तक कम कर सकता है।
  • क्योंकि फ्यूजेरियम ग्रैमिनियरम खाद्य आपूर्ति को बाधित कर सकता है, इसलिए इसे संभावित जैविक हथियार के रूप में चिह्नित किया गया है।

संदर्भ

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने हाल ही में ‘गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ – माइक्रोफाइनेंस संस्थान’ (NBFC-MFI) के लिए ‘अर्हक परिसंपत्ति’ (Qualifying Assets) की न्यूनतम सीमा को कुल परिसंपत्तियों के 75% से घटाकर 60% कर दिया है।

अर्हक परिसंपत्ति (Qualifying Asset) की परिभाषा

  • अर्हक परिसंपत्ति (Qualifying Asset) की परिभाषा अब ‘माइक्रोफाइनेंस ऋण’ की परिभाषा के साथ संरेखित है।
  • माइक्रोफाइनेंस ऋण को एक संपार्श्विक-मुक्त ऋण के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो ₹3 लाख तक की वार्षिक घरेलू आय वाले परिवार को दिया जाता है।
    • इस उद्देश्य के लिए, परिवार का अर्थ एक व्यक्तिगत परिवार इकाई है, अर्थात् पति, पत्नी और उनके अविवाहित बच्चे।

संशोधन के बारे में

  • कानूनी प्रावधान: RBI ने ‘भारतीय रिजर्व बैंक (माइक्रोफाइनेंस ऋणों के लिए नियामक ढाँचा) निर्देश, 2022’ के अंतर्गत मास्टर निर्देश के पैराग्राफ 8.1 में संशोधन किया है।
    • यह प्रावधान NBFC-MFI के लिए “अर्हक परिसंपत्ति मानदंड” निर्धारित करता है।
  • माइक्रोफाइनेंस के साथ संरेखण: “अर्हक परिसंपत्तियों” की परिभाषा को अब मास्टर निर्देश के पैराग्राफ-3 में प्रदान की गई “माइक्रोफाइनेंस ऋण” की व्यापक परिभाषा के साथ संरेखित किया गया है।
  • नया प्रावधान: NBFC-MFI की योग्य परिसंपत्तियाँ अब निरंतर आधार पर कुल परिसंपत्तियों (अमूर्त परिसंपत्तियों द्वारा शुद्ध की गई) का न्यूनतम 60% होंगी।
  • सुधार योजना: यदि कोई NBFC-MFI लगातार चार तिमाहियों तक योग्य परिसंपत्तियों को बनाए रखने में विफल रहता है, तो उसे सुधार योजना के लिए रिजर्व बैंक से संपर्क करना होगा
  • महत्त्व: यह प्रावधान लचीलापन और जवाबदेही दोनों प्रस्तुत करता है, जिससे NBFC-MFI को तत्काल विनियामक दंड का सामना किए बिना सही मार्ग पर चलने का अवसर प्राप्त होता है, साथ ही विनियामक को भी सूचित किया जाता है।

संशोधित मानदंड के निहितार्थ

  • कोर माइक्रोफाइनेंस ऋण के साथ संरेखण: संशोधन यह सुनिश्चित करता है कि NBFC-MFI मुख्य रूप से माइक्रोफाइनेंस परिभाषा को पूर्ण करने वाले कम आय वाले परिवारों को ऋण देने पर ध्यान केंद्रित करना जारी रखें।
  • विविधीकरण: सीमा को कम करने से माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र को अपनी परिसंपत्तियों और परिचालनों में विविधता लाने एवं विस्तार करने में मदद मिलेगी और MFI की वित्तीय स्थिति में सुधार होगा, जिससे बैलेंस शीट में स्थिरता सुनिश्चित होगी।
  • जारी अनुपालन अधिदेश: निरंतर आधार पर 60% सीमा का अधिदेश संस्था के उद्देश्य के प्रति निरंतर अनुपालन सुनिश्चित करता है और ऋण क्षेत्रों की ओर संसाधनों के विचलन को सीमित करता है।
  • गैर-अनुपालन के लिए संरचित प्रतिक्रिया: गैर-अनुपालन के मामले में RBI द्वारा सुधारात्मक तंत्र की शुरूआत संस्थान की पुनर्संरेखण और सुधारात्मक कार्रवाइयों के लिए रणनीति की रूपरेखा तैयार करेगी।

गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (NBFC)?

  • पंजीकृत: एक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (NBFC) कंपनी अधिनियम, 1956 या कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत पंजीकृत कंपनी है।
  • NBFC अपने मुख्य व्यवसाय के रूप में ऋण और अग्रिम,  शेयर/स्टॉक/बॉन्ड/डिबेंचर/प्रतिभूतियों या इसी तरह की अन्य विपणन योग्य प्रतिभूतियों का अधिग्रहण, पट्टे पर देना, किराया-खरीद आदि व्यवसाय में संलग्न हैं।
    • NBFC में ऐसी कोई संस्था शामिल नहीं है जिसका मुख्य व्यवसाय कृषि गतिविधि, औद्योगिक गतिविधि, किसी भी सामान (प्रतिभूतियों के अलावा) की खरीद या बिक्री या कोई सेवा प्रदान करना और अचल संपत्ति की बिक्री/खरीद/निर्माण करना है।
  • प्रकार: NBFCs के 8 प्रकार हैं, जैसे,
    • एसेट फाइनेंस कंपनी (AFC); निवेश कंपनी (IC); ऋण कंपनी ( LC); इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस कंपनी (IFC); कोर इन्वेस्टमेंट कंपनी (CIC); इंफ्रास्ट्रक्चर डेब्ट फंड- गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (IDF-NBFC) और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी – माइक्रो फाइनेंस इंस्टीट्यूशन (NBFC-MFI)।
  • बैंकों और NBFC के बीच अंतर: बैंकों और NBFC के बीच प्रमुख अंतर नीचे दिए गए हैं,
    • NBFC माँग जमा स्वीकार नहीं कर सकते
    • NBFC भुगतान और निपटान प्रणाली का हिस्सा नहीं हैं और स्वयं द्वारा आहरित चेक जारी नहीं कर सकते
    • जमा स्वीकार करने वाले NBFC के जमाकर्ताओं को जमा बीमा और ऋण गारंटी निगम (DICGC) की जमा बीमा सुविधा उपलब्ध नहीं है।

NBFC-MFI के बारे में

  • “NBFC-MFI” का अर्थ है एक गैर-जमा राशि स्वीकार करने वाली NBFC, जिसने अपनी कुल संपत्ति का कम-से-कम 60 प्रतिशत “माइक्रोफाइनेंस ऋण” में निवेश किया है, जैसा कि भारतीय रिजर्व बैंक (माइक्रोफाइनेंस ऋण के लिए नियामक ढाँचा) निर्देश, 2022 के तहत परिभाषित किया गया है।

संदर्भ

विश्व बैंक ने वर्ष 2021 की कीमतों में वैश्विक मुद्रास्फीति को समायोजित करने के लिए अपनी चरम गरीबी रेखा को संशोधित किया।

नई अंतरराष्ट्रीय गरीबी रेखा

  • नई अंतरराष्ट्रीय गरीबी रेखा (International Poverty Line) वर्ष 2021 में अंतरराष्ट्रीय डॉलर का उपयोग करके $3.00 निर्धारित की गई है।
    • प्रतिदिन $3.00 से कम पर जीवन यापन करने वाले किसी भी व्यक्ति को अत्यधिक गरीबी में रहने वाला माना जाता है।

गरीबी रेखा के बारे में

  • गरीबी रेखा गरीबी की पहचान करने और उसे मापने के लिए प्रयोग की जाने वाली एक सीमा है।
  • यह भोजन, कपड़े आदि जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए आवश्यक आय या उपभोग के न्यूनतम स्तर को परिभाषित करती है।
  • गरीबी रेखा के प्रकार
    • निरपेक्ष गरीबी रेखा: आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं की एक निश्चित बास्केट की लागत के आधार पर।
    • सापेक्ष गरीबी रेखा: समाज की औसत आय या खपत के संबंध में गरीबी को परिभाषित करती है।
  • गरीबी रेखा का निर्धारण
    • अंतरराष्ट्रीय गरीबी रेखा: विश्व बैंक द्वारा क्रय शक्ति समता (PPP) के आधार पर निर्धारित और अद्यतित की जाती है।
    • राष्ट्रीय गरीबी रेखाएँ: अलग-अलग देशों द्वारा स्वयं की विधियों (जैसे- भारत में कैलोरी-आधारित मानदंड) का उपयोग करके परिभाषित की जाती हैं।

आवधिक अद्यतनीकरण के कारण

  • परिवर्तित वैश्विक कीमतों के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय गरीबी रेखा को नियमित रूप से संशोधित किया जाता है।
    • ये अद्यतन यह सुनिश्चित करने में मदद करते हैं कि यह रेखा कम आय वाले देशों में भोजन, कपड़े और आश्रय जैसी बुनियादी जरूरतों की मौजूदा लागतों को दर्शाती है।

विश्व बैंक के गरीबी रेखा संशोधन के मुख्य बिंदु

  • गरीबी रेखा का नवीनतम संशोधन: विश्व बैंक ने वैश्विक गरीबी रेखा को बढ़ाकर $3 प्रतिदिन कर दिया है (पहले यह $2.15 प्रतिदिन थी)।
  • भारत और गरीबी रेखा संशोधन: गरीबी रेखा के उच्च होने के बावजूद, भारत में पहले की तुलना में अब कम लोग गरीब हैं।
  • भारत में अत्यधिक गरीबी में तीव्र गिरावट
    • $3/दिन बेंचमार्क का उपयोग करते हुए अत्यधिक गरीबी दर वर्ष 2011-12 में 27.1% से घटकर वर्ष 2022-23 में 5.3% हो गई।
    • अत्यधिक गरीबी में रहने वाले लोगों की संख्या 344.47 मिलियन से घटकर 75.24 मिलियन हो गई।
  • भारत में गरीबी में सुधार
    • वर्ष 2011-12 में भारत में 100 में से 27 लोग अत्यधिक गरीब थे।
    • वर्ष 2022-23 में 100 में से केवल 5 लोग बहुत गरीब हैं ($3 की सीमा का प्रयोग करते हुए भी)।
    • इसका अर्थ है कि पिछले 10 वर्षों में गरीबी में अत्यधिक कमी आई है।
  • निम्न-मध्यम आय गरीबी
    • संशोधित निम्न-मध्यम-आय (Low-Middle Income Country – LMIC) श्रेणी की गरीबी रेखा—जो 2017 की कीमतों पर $3.65 प्रतिदिन से बढ़ाकर $4.20 प्रतिदिन निर्धारित की गई है—के अनुसार भारत में गरीबी में उल्लेखनीय कमी आई है। 
      • इस सीमा के तहत जीवन यापन करने वाले भारतीयों की हिस्सेदारी वर्ष 2011-12 में 57.7% थी, जो वर्ष 2022-23 में घटकर मात्र 23.9% रह गई है।
    • पूर्ण संख्या में, संशोधित LMIC गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों की संख्या 11 वर्षों की अवधि में 732.48 मिलियन से घटकर 342.32 मिलियन हो गई।
  • ग्रामीण बनाम शहरी
    • शहरों की तुलना में गाँवों में गरीबी अधिक है। लेकिन दोनों में सुधार हुआ है:
    • ग्रामीण गरीबी: 69% से 32.5% तक।
    • शहरी गरीबी: 43.5% से 17.2% तक।
  • गरीबी में सुधार के अन्य संकेत
    • लोग प्रति माह अधिक पैसा खर्च कर रहे हैं:
    • गांवों में: प्रति व्यक्ति ₹2,079/माह (₹1,430 से ऊपर)।
    • शहरों में: प्रति व्यक्ति ₹3,632/माह (₹2,630 से ऊपर)।
  • बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI): विश्व बैंक के बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) के अनुसार, भारत में गैर-मौद्रिक गरीबी वर्ष 2005-06 में 53.8 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2022-23 में 15.5 प्रतिशत हो गई है।
  • इस सूचकांक में छह संकेतक शामिल हैं, अर्थात् उपभोग या आय, शैक्षिक प्राप्ति, शैक्षिक नामांकन, पेयजल, स्वच्छता और विद्युत।

क्रय शक्ति समता (PPP) के बारे में

  • क्रय शक्ति समता (PPP) मुद्रा रूपांतरण की दरें हैं, जिनका उद्देश्य देशों के बीच मूल्य स्तरों में अंतर को समायोजित करके विभिन्न मुद्राओं की क्रय शक्ति को समान करना है।
    • इसका उपयोग सकल घरेलू उत्पाद जैसे वृहद आर्थिक समुच्चयों को अंतरराष्ट्रीय तुलनाओं के लिए एक समान मुद्रा में परिवर्तित करने के लिए किया जाता है
    • आधार अर्थव्यवस्था के सापेक्ष, PPP यह संकेत देते हैं कि प्रत्येक भाग लेने वाली अर्थव्यवस्था में समान बास्केट की लागत कितनी है।
  • PPP की गणना: PPP की गणना अंतरराष्ट्रीय तुलना कार्यक्रम (ICP) द्वारा की जाती है।
    • ICP एक स्वतंत्र सांख्यिकीय कार्यक्रम है।
    • इसका वैश्विक कार्यालय विश्व बैंक के विकास डेटा समूह के अंतर्गत स्थित है।
    • यह कार्यक्रम संयुक्त राष्ट्र सांख्यिकी आयोग (UNSC) के तत्वावधान में संचालित होता है।

निष्कर्ष

वर्ष 2023-24 के लिए संपूर्ण डेटा अक्टूबर 2025 में विश्व बैंक के गरीबी और असमानता मंच (PIP) के माध्यम से प्रकाशित किया जाएगा, जिससे महामारी के बाद की अवधि में भारत की गरीबी संबंधी प्रवृत्तियों के बारे में गहन जानकारी मिलने की संभावना है।

संदर्भ

भारत का ऊर्जा क्षेत्र आत्मनिर्भरता, ऊर्जा सुरक्षा और जलवायु नेतृत्व पर ध्यान केंद्रित करते हुए गहन परिवर्तन से गुजर रहा है और वर्ष 2025 तक 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार है।

भारत का ऊर्जा क्षेत्र परिदृश्य 

  • ऊर्जा मिश्रण: भारत का ऊर्जा परिदृश्य पारंपरिक जीवाश्म ईंधन स्रोतों (कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस) पर निर्भरता तथा सौर, परमाणु और जैव ऊर्जा जैसे बढ़ते नवीकरणीय स्रोतों द्वारा आकार लेता है।
  • ऊर्जा माँग: ऊर्जा की बढ़ती वैश्विक माँग में भारत का हिस्सा लगभग 25% है, जिसके वर्ष 2047 तक ढाई गुना बढ़ने की उम्मीद है।
    • भारत वैश्विक स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा और तेल उपभोक्ता, चौथा सबसे बड़ा रिफाइनर और चौथा सबसे बड़ा LNG आयातक है।
  • ऊर्जा संक्रमण लक्ष्य: भारत ने वर्ष 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन प्राप्त करने का संकल्प लिया है और वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य रखा है, जो कि उसके NDCs में गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा से 50% संचयी विद्युत स्थापित क्षमता के बराबर है।

भारत की ऊर्जा रणनीति

भारत की ऊर्जा रणनीति चार-आयामी दृष्टिकोण के माध्यम से उपलब्धता, सामर्थ्य और स्थिरता की ऊर्जा विविधता को संबोधित करती है:-

  • स्रोतों एवं आपूर्तिकर्ताओं का विविधीकरण
    • आपूर्तिकर्ता आधार का विस्तार: भारत ने अपने कच्चे तेल आपूर्तिकर्ताओं की संख्या वर्ष 2006-07 में 27 देशों से बढ़ाकर वर्ष 2021-22 में 39 कर ली है, जिसमें कोलंबिया, रूस, लीबिया, गैबॉन, इक्वेटोरियल गिनी आदि जैसे नए देश शामिल हैं।
  • घरेलू उत्पादन का विस्तार
    • भारत का अन्वेषण क्षेत्र: सरकार का लक्ष्य वर्ष 2030 तक एक मिलियन वर्ग किलोमीटर को कवर करने के लक्ष्य के साथ 42 बिलियन टन तेल और तेल-समतुल्य गैस अन्वेषण क्षमता का दोहन करना है।
      • भारत का अन्वेषण क्षेत्र वर्ष 2025 में दोगुना होकर 16% हो गया है।
    • तेल एवं गैस भंडार की खोज: ONGC द्वारा मुंबई अपतटीय, कैम्बे, महानदी और असम बेसिन में 25 हाइड्रोकार्बन खोजें की गई हैं।

  • नवीकरणीय ऊर्जा की ओर संक्रमण
    • वैकल्पिक ईंधन: सतत (SATAT) और राष्ट्रीय जैव ऊर्जा कार्यक्रम जैसी पहलों के माध्यम से इथेनॉल मिश्रण, CBG, बायोडीजल और जैव ऊर्जा उपयोग को प्रोत्साहित करना।
      • उदाहरण: ‘वहनीय परिवहन की दिशा में सतत् विकल्प’ (Sustainable Alternative Towards Affordable Transportation- SATAT) पहल के तहत 100 से अधिक संपीड़ित बायोगैस (CBG) संयंत्रों को प्रारंभ किया गया है और वर्ष 2028 तक 5% CBG मिश्रण अधिदेश का लक्ष्य रखा है।
    • नवीकरणीय ऊर्जा: PM-KUSUM (सौर ऊर्जा), ग्रीन हाइड्रोजन मिशन और अपतटीय पवन परियोजनाओं जैसी पहलों के साथ गैर-जीवाश्म क्षमता का विस्तार करना।
      • उदाहरण: भारत की गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित उत्पादन क्षमता वर्ष 2015 के 29% से बढ़कर वर्ष 2024 में कुल स्थापित क्षमता का 45% हो गई है।
  • सामर्थ्य
    • भारत अपने आयात स्रोतों में विविधता ला रहा है और घरेलू कराधान लाभों के साथ-साथ अपने गैस-मूल्य निर्धारण तंत्र में बदलाव कर रहा है, जिसके परिणामस्वरूप भारत में पेट्रोल एवं डीजल की कीमतें कम हो गई हैं, जबकि वैश्विक कीमतें बढ़ रही हैं।
      • उदाहरण: प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY) के अंतर्गत लाभार्थियों को प्रति LPG सिलेंडर ₹553 का भुगतान करना होता है, जो लक्षित सब्सिडी तथा तेल विपणन कंपनियों को सरकार द्वारा प्रदान किए जाने वाले मुआवजे से संभव हो पाता है। यह राहत ऐसे समय में दी जा रही है, जब वैश्विक स्तर पर LPG की कीमतों में लगभग 58% की वृद्धि दर्ज की गई है।

नीतिगत सुधार

  • तेल क्षेत्र (विनियमन एवं विकास) संशोधन अधिनियम 2024: इसने हाइब्रिड लीज को सक्षम किया है, जिससे हाइड्रोकार्बन के साथ-साथ नवीकरणीय ऊर्जा की अनुमति मिलती है। 
  • संशोधित गैस मूल्य निर्धारण तंत्र: संशोधित गैस मूल्य निर्धारण तंत्र के अंतर्गत गैस की कीमतों को अब भारतीय कच्चे तेल की बास्केट के 10% से जोड़ा गया है, तथा नए उत्पादित तेल के लिए 20% तक प्रीमियम की अनुमति दी गई है। इस नीति परिवर्तन से शहरी गैस वितरण नेटवर्क तथा औद्योगिक उपयोग के लिए गैस की उपलब्धता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
  • ‘नो-गो’ (No-Go) क्षेत्रों में 99% की कमी: भारत के अनन्य आर्थिक क्षेत्र में 1 मिलियन वर्ग किलोमीटर अवसादी बेसिन को अन्वेषण के लिए खोल दिया गया है, जिससे 42 बिलियन टन तेल और तेल-समतुल्य गैस की संभावित खोज का मार्ग प्रशस्त हुआ है। 
  • ओपन एकरेज लाइसेंसिंग पॉलिसी (OALP): यह OMC को राष्ट्रीय डेटा रिपॉजिटरी (NDR) में उपलब्ध डेटा के आधार पर हाइड्रोकार्बन अन्वेषण एवं उत्पादन के लिए विशिष्ट ब्लॉकों की पहचान करने और चुनने की अनुमति देता है।

ऊर्जा क्षेत्र में अवसर

  • बुनियादी ढाँचे का आधुनिकीकरण: भारत अपने ग्रिड बुनियादी ढाँचे को आधुनिक बनाने और उन्नत करने के लिए महत्त्वपूर्ण कदम उठा रहा है, जिसमें स्मार्ट ग्रिड और स्मार्ट मीटरिंग शामिल हैं।
    • उदाहरण: राष्ट्रीय स्मार्ट ग्रिड मिशन (NSGM) के तहत 51.62 लाख से अधिक स्मार्ट मीटर लगाए गए हैं, और वर्ष 2022 तक 61.13 लाख और लगाए जाने हैं।
  • ऊर्जा भंडारण क्षमता: भारत एकल एवं एकीकृत अक्षय ऊर्जा भंडारण प्रणालियों (RE+ESS) दोनों पर ध्यान केंद्रित करके अपने ऊर्जा भंडारण बुनियादी ढाँचे को सक्रिय रूप से आगे बढ़ा रहा है, जिसमें पीक पावर, अक्षय ऊर्जा एकीकरण और फर्म एंड डिस्पैचेबल रिन्यूएबल एनर्जी (FDRE) जैसी तकनीकें शामिल हैं।
  • ग्रीन हाइड्रोजन: भारत ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन एवं उपयोग को प्राथमिकता दे रहा है और इसके लिए एक समर्पित मिशन (राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन) तैयार कर रहा है, जिससे ग्रीन हाइड्रोजन प्रौद्योगिकियों के अनुसंधान, विकास और उपयोग के क्षेत्र में अवसर उत्पन्न हो रहे हैं।
    • उदाहरण: ग्रीन हाइड्रोजन को 8.62 लाख टन उत्पादन और 3,000 मेगावाट ‘इलेक्ट्रोलाइजर टेंडर’ प्रदान करके बड़े पैमाने पर बढ़ावा दिया गया है।
  • गैस नेटवर्क का विस्तार: एकीकृत पाइपलाइन टैरिफ के साथ भारत का शहरी गैस नेटवर्क वर्ष 2025 तक 307 भौगोलिक क्षेत्रों तक बढ़ गया है, जिसमें पाइप्ड नेचुरल गैस (PNG) कनेक्शन 25 लाख से बढ़कर 1.5 करोड़ हो गए हैं और 7,500 से अधिक संपीडित प्राकृतिक गैस (CNG) स्टेशन चालू हैं।
  • नवीकरणीय ऊर्जा: भारत नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता वृद्धि में वैश्विक नेतृत्त्वकर्त्ता है, जिसमें नीतिगत हस्तक्षेपों द्वारा सहायता प्राप्त सौर ऊर्जा पर मजबूत ध्यान केंद्रित किया गया है।
    • उदाहरण: प्रधानमंत्री सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना का लक्ष्य 1 करोड़ घरों को छत पर सौर ऊर्जा संयंत्र प्रदान करना है, जिससे प्रत्येक महीने 300 यूनिट मुफ्त बिजली मिलेगी।

राष्ट्रीय विद्युत योजना (2022-32)

  • इस योजना में पिछले पाँच वर्षों (2017-22) की समीक्षा, वर्ष 2022-27 अवधि के लिए विस्तृत योजना और वर्ष 2027-32 की अवधि के लिए संभावित योजना शामिल है।
  • संबंधित संस्था: राष्ट्रीय विद्युत योजना (2022-32) को विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 3(4) के अनुसार, केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण द्वारा तैयार किया गया है।
    • राष्ट्रीय विद्युत योजना (NEP) को राष्ट्रीय विद्युत नीति के अनुरूप होना चाहिए और इसे पाँच वर्ष में एक बार अधिसूचित किया जाना चाहिए।
  • अनुमानित विद्युत माँग: 20वें विद्युत ऊर्जा सर्वेक्षण (EPS) माँग अनुमानों के अनुसार, वर्ष 2031-32 के लिए अखिल भारतीय बिजली की अधिकतम माँग और विद्युत ऊर्जा की आवश्यकता 366.4 गीगावाट और 2473.8 BU है।
  • उद्देश्य: देश में संसाधनों का इष्टतम उपयोग और सभी के लिए विश्वसनीय, किफायती, निर्बाध (24×7) और गुणवत्तापूर्ण विद्युत उपलब्ध कराना।
  • घटक: यह योजना निम्नलिखित घटकों पर ध्यान केंद्रित करती है:-
    • स्थापित क्षमता: वर्ष 2031-32 तक अनुमानित विद्युत स्थापित क्षमता बढ़कर 900,422 मेगावाट हो जाएगी, जिसमें शामिल हैं:-
      • 304,147 मेगावाट की पारंपरिक क्षमता (कोयला-259,643 मेगावाट, गैस-24,824 मेगावाट, परमाणु-19,680 मेगावाट)
      • 596,275 मेगावाट की नवीकरणीय आधारित क्षमता (वृहद हाइड्रो-62,178 मेगावाट, सौर-364,566 मेगावाट, पवन-121,895 मेगावाट, लघु हाइड्रो-5450 मेगावाट, बायोमास-15,500 मेगावाट, PSP-26,686 मेगावाट)
    • ट्रांसमिशन अवसंरचना: वर्ष 2022-2032 के बीच की अवधि में 191,000 सर्किट किलोमीटर से अधिक ट्रांसमिशन लाइनें और 1,270 GVA परिवर्तन क्षमता को जोड़ना, जिसमें उच्च-वोल्टेज सिस्टम (220 kV और उससे अधिक) पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
    • ऊर्जा भंडारण क्षमता: पंप स्टोरेज प्लांट (PSP) और बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणालियों (BESS) से ऊर्जा भंडारण क्षमता वर्ष 2031-32 तक 73.93 GW (26.69 GW PSP और 47.24 GW BESS) बढ़ जाएगी।

भारतीय ऊर्जा क्षेत्र में चुनौतियाँ

  • जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता: भारत का ऊर्जा क्षेत्र मुख्य रूप से कोयले पर आधारित है, जो कुल उत्पादन का लगभग 70% है, जिससे पर्यावरण संबंधी चिंताएँ उत्पन्न होती हैं तथा यह वैश्विक डीकार्बोनाइजेशन प्रयासों के विपरीत है।
  • आयात पर निर्भरता: भारत का ऊर्जा क्षेत्र जीवाश्म ईंधन के आयात पर अत्यधिक निर्भर है, जिससे अंतरराष्ट्रीय संकट के समय कीमतों में अस्थिरता और ऊर्जा असुरक्षा होती है। 
    • उदाहरण: वित्त वर्ष 2023-24 में भारत की तेल पर आयात निर्भरता 87% से अधिक हो जाएगी, जिसका अर्थ है कि घरेलू उत्पादन कुल माँग का 13% से भी कम पूरा करता है।
  • अक्षय ऊर्जा चुनौती: अक्षय ऊर्जा के उत्पादन में तीन मुख्य चुनौतियाँ हैं:-
    • अंतर्निहित परिवर्तनशीलता: सौर और पवन स्रोतों से प्राप्त ऊर्जा में वास्तविक समय में उतार-चढ़ाव होता है।
    • अनिश्चितता: अक्षय ऊर्जा स्रोतों का सटीक पूर्वानुमान लगाना मुश्किल है।
    • संकेंद्रण: अक्षय ऊर्जा स्रोत पूरे वर्ष उपलब्ध नहीं होते हैं क्योंकि इनका संकेंद्रण पूरे वर्ष में विशिष्ट अवधि तक ही सीमित होता है।
  • अपर्याप्त पारेषण और वितरण अवसंरचना: भारत का कुल तकनीकी और वाणिज्यिक घाटा औसतन लगभग 32% विद्युत क्षेत्र से संबंधित है, जबकि विकसित देशों में यह (6-11%) है।
  • अवसंरचना और ग्रिड एकीकरण के मुद्दे: अवसंरचना और ग्रिड एकीकरण से संबंधित चुनौतियाँ भारत के ऊर्जा क्षेत्र के लिए गंभीर चिंता का विषय हैं। 
    • वर्तमान में देश में संक्रमण ईंधन (Transitional Fuel), विशेष रूप से प्राकृतिक गैस की कमी है, जिसे आमतौर पर ग्रिड की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए उपयोग किया जाता है। यह कमी नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की तीव्र वृद्धि के समक्ष एक बड़ी बाधा उत्पन्न कर सकती है।
  • निवेश और नीतिगत अनिश्चितताएँ: अक्षय क्षेत्र को निविदाओं की कमजोर माँग, बिजली खरीद समझौतों में देरी और परियोजना रद्द होने जैसी बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जो अधिक मजबूत नीतिगत ढाँचे और निवेशकों के विश्वास की आवश्यकता को दर्शाता है।

भारत में ऊर्जा क्षेत्र में प्रमुख नियामक निकाय

  • ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (Bureau of Energy Efficiency- BEE): यह संगठन मानकों और लेबलिंग (जैसे- उपकरणों के लिए) को विकसित करके ऊर्जा दक्षता और संरक्षण को बढ़ावा देता है, उद्योगों के लिए PAT (प्रदर्शन, उपलब्धि, व्यापार) योजना को लागू करता है और राज्य-स्तरीय ऊर्जा संरक्षण कार्यक्रमों का समर्थन करता है।
  • पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस नियामक बोर्ड (PNGRB): यह डाउनस्ट्रीम तेल और गैस अवसंरचना और बाजारों को नियंत्रित करता है और उचित मूल्य निर्धारण एवं प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित करता है।
    • यह पाइपलाइनों और टर्मिनलों में अनुपालन और सुरक्षा की निगरानी भी करता है।
  • केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA): यह विद्युत अधिनियम, 2003 के तहत एक वैधानिक निकाय है और विद्युत मंत्रालय का एक ‘संलग्न कार्यालय’ है।
    • CEA कार्यक्रमों के तकनीकी समन्वय और पर्यवेक्षण तथा विद्युत प्रणाली के विकास के लिए राष्ट्रीय विद्युत नीति तैयार करने के लिए जिम्मेदार है।
  • केंद्रीय विद्युत विनियामक आयोग (CERC ): यह उत्पादन, पारेषण, व्यापार और वितरण पर ध्यान केंद्रित करते हुए अंतर-राज्यीय विद्युत मामलों को नियंत्रित करता है।
    • CERC केंद्रीय उत्पादन स्टेशनों के लिए टैरिफ तय करता है।

आगे की राह

  • नीतिगत और विनियामक स्थिरता निवेशकों, बाजारों और अन्य हितधारकों को ऊर्जा संक्रमण में भाग लेने और समर्थन करने के लिए प्रोत्साहित करेगी।
  • वास्तविक समय के बाजारों (भारत के ग्रिडों में बिजली की आपूर्ति-माँग को संतुलित करने में मदद करने के लिए); सामान्य नेटवर्क एक्सेस (सौर और पवन के लिए बेहतर ट्रांसमिशन कनेक्टिविटी के लिए); और सौर PV मॉड्यूल निर्माण के लिए PLI योजना जैसी मौजूदा विनियामक पक्ष पहलों को जारी रखना।
  • प्रोत्साहन: रूफटॉप सौर ऊर्जा और कृषि पंपों के सौरकरण सहित नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाने को प्रोत्साहित करने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन, सब्सिडी और कर छूट प्रदान करना।
  • डिजिटलीकरण में निवेश करना: उन्नत सॉफ्टवेयर समाधान प्रस्तुत करने से माँग प्रतिक्रिया कार्यक्रमों के निर्माण द्वारा ग्रिड-स्तरीय संचालन को अनुकूलित किया जा सकता है
    • उदाहरण: यह उद्योगों को दिन के दौरान अपने लोड को उस समय स्थानांतरित करने के लिए प्रेरित कर सकता है जब ग्रिड पर अधिक ऊर्जा उपलब्ध होती है, जिससे पीक डिमांड कम हो जाती है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों को अपनाने में तेजी लाने के लिए अनुसंधान एवं विकास पर जोर देना, साथ ही पंप हाइड्रो, बैटरी और ऊर्जा भंडारण प्रणालियों के अन्य रूपों के लिए निविदाओं सहित नए वाणिज्यिक ढाँचे को प्रस्तुत करना।

निष्कर्ष

पिछले दशक में नीतिगत सुधारों और पहलों के माध्यम से भारत के ऊर्जा क्षेत्र में आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता और रणनीतिक दूरदर्शिता में वृद्धि देखी गई है। ऊर्जा को केवल एक वस्तु के रूप में नहीं बल्कि संप्रभुता, सुरक्षा और सतत् विकास के उत्प्रेरक के रूप में देखा जा रहा है।

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