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Sep 18 2025

‘एक्सरसाइज पैसिफिक रीच  2025’ (XPR 25) 

हाल ही में INS निस्तार सिंगापुर के चांगी नौसैनिक अड्डे  पर पहुँचा, जहाँ उसने बहुराष्ट्रीय एक्सरसाइज पैसिफिक रीच, 2025 (XPR 25) में भाग लिया।

 ‘एक्सरसाइज पैसिफिक रीच 2025’  के बारे में

  • परिचय: ‘पैसिफिक रीच’ द्विवार्षिक बहुराष्ट्रीय ‘सबमरीन रेस्क्यू’ (Submarine Rescue) अभ्यास है।
  • मेजबानी: वर्ष 2025 के संस्करण की मेजबानी सिंगापुर कर रहा है।
  • आयोजन स्थल: ‘एक्सरसाइज पैसिफिक रीच 2025’ दक्षिण चीन सागर में आयोजित किया जा रहा है।
  • भागीदारी: 40 से अधिक राष्ट्र सक्रिय सदस्य या प्रेक्षक के रूप में भाग ले रहे हैं।
  • भारत इसमें INS निस्तार और सबमरीन रेस्क्यू यूनिट (ईस्ट) के माध्यम से भाग ले रहा है। 
  • अभ्यास के चरण: यह दो चरणों में आयोजित होगा।
  • हार्बर चरण (सप्ताह भर): गहन चर्चा करना और जानकारी का आदान-प्रदान करना।
    • समुद्री चरण: भाग लेने वाली सबमरीन के साथ INS निस्तार और भारतीय पनडुब्बी बचाव इकाई की सीधी भागीदारी।

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC)

भारत ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) में कतर की संप्रभुता का समर्थन किया है।

  • 9 सितंबर, 2025 को, इजरायली हवाई हमलों में कतर की राजधानी दोहा में कई लोगों की मृत्यु हुई, जिससे तनाव में वृद्धि हुई एवं इस कृत्य की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निंदा हुई।

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) के बारे में

  • संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) संयुक्त राष्ट्र महासभा के अंतर्गत एक अंतर-सरकारी निकाय है, इसने पूर्व संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग का स्थान लिया।
  • स्थापना: वर्ष 2006।
  • मुख्यालय: जेनेवा, स्विट्जरलैंड।
  • सदस्यता: इसमें 47 सदस्य देश होते हैं, जिन्हें संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा तीन वर्ष की अवधि के लिए चुना जाता है।
    • भौगोलिक प्रतिनिधित्व: विभिन्न क्षेत्रों से संतुलित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित।
  • भूमिका
    • वैश्विक स्तर पर मानवाधिकारों का संवर्द्धन और संरक्षण।
    • मानवाधिकार उल्लंघनों पर कार्रवाई और अनुशंसाएँ प्रस्तुत करना।
    • संप्रभुता और मानवाधिकारों को प्रभावित करने वाले संकटों पर विमर्श का मंच उपलब्ध कराना।

हमले पर भारत का दृष्टिकोण

  • UNHRC में वक्तव्य: भारत के स्थायी प्रतिनिधि ने कतर की संप्रभुता के उल्लंघन की निंदा की।
  • वैश्विक खतरा: भारत ने दोहा में इजरायली बमबारी को क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता के लिए खतरा बताया।
  • नियम आधारित समाधान: भारत ने पुनः दोहराया कि विवादों का समाधान केवल संवाद, कूटनीति और संप्रभुता के सम्मान के माध्यम से ही होना चाहिए।

व्यापक प्रभाव

  • पश्चिम एशिया में रणनीतिक संतुलन: भारत कतर, अरब देशों और इजरायल के साथ संतुलित संबंध बनाए रखते हुए क्षेत्रीय स्थिरता तथा कूटनीति को प्रोत्साहन देता है।
  • संप्रभुता और शांति का समर्थन: संप्रभुता उल्लंघन की निंदा कर भारत ने शांति-पूर्ण विवाद समाधान में अपनी विश्वसनीयता को सुदृढ़ किया।

स्वस्थ नारी, सशक्त परिवार अभियान

हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री ने राष्ट्रव्यापी स्वस्थ नारी, सशक्त परिवार अभियान का शुभारंभ किया।

स्वस्थ नारी, सशक्त परिवार अभियान के बारे में

  • यह भारत का अब तक का सबसे बड़ा महिला एवं बाल स्वास्थ्य जनांदोलन है, जिसमें स्वास्थ्य, पोषण और कल्याण सेवाओं का एकीकरण किया गया है।
  • उद्देश्य: महिलाओं, किशोरियों और बच्चों को रोकथाम, संवर्द्धन और उपचारात्मक स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराना; साथ ही कुपोषण और जीवनशैली संबंधी बीमारियों पर रोक लगाना।
  • संबंधित मंत्रालय: केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय एवं केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के नेतृत्व में।
    • अन्य मंत्रालयों की भूमिका: केंद्रीय ग्रामीण विकास, पंचायती राज, शिक्षा, युवा, जनजातीय मामले, रक्षा, रेल, श्रम आदि मंत्रालय इस कार्यक्रम में सहयोगी की भूमिका निभाएँगे।
  • लक्ष्य और कवरेज
    • इसका लक्ष्य 17 सितंबर से 2 अक्टूबर, 2025 के बीच देश भर में एक लाख से अधिक स्वास्थ्य शिविर आयोजित करना है।
    • आयुष्मान आरोग्य मंदिरों, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों, जिला अस्पतालों और सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में प्रतिदिन स्वास्थ्य शिविर आयोजित किए जाएँगे।
    • यह अभियान आशा कार्यकर्ताओं, ANM, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं, स्वयं सहायता समूहों, पंचायती राज संस्थाओं, ‘माई भारत’ (MY Bharat) स्वयंसेवकों और युवा समूहों के माध्यम से जमीनी स्तर तक पहुँचेगा।
  • प्रमुख स्वास्थ्य सेवाएँ: स्क्रीनिंग और शीघ्र पहचान, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य, जागरूकता अभियान, विशेषज्ञ सेवाएँ, आयुष एकीकरण, सामुदायिक भागीदारी आदि।

पीएम मित्र पार्क योजना

भारतीय प्रधानमंत्री ने मध्य प्रदेश के भैंसला गाँव में देश के सबसे बड़े पीएम मित्र पार्क की आधारशिला रखी।

पीएम मित्र पार्क योजना के बारे में

  • मंत्रालय: केंद्रीय वस्त्र मंत्रालय (वर्ष 2021 में प्रारंभ)।
  • विजन: 5F सूत्र- फार्म टू फाइबर टू फैक्टरी टू फैशन टू फॉरेन (Farm to Fibre to Factory to Fashion to Foreign)।
  • उद्देश्य: एकीकृत, आधुनिक, बड़े पैमाने के औद्योगिक पार्क स्थापित करना; लॉजिस्टिक लागत घटाना और प्रतिस्पर्द्धा बढ़ाना।
  • अवधि: वर्ष 2021-22 से वर्ष 2027-28
  • कार्यान्वयन एजेंसी: केंद्र और राज्य सरकारों की ‘जॉइंट स्पेशल पर्पस व्हीकल’  (SPV)।
  • पात्रता एवं चयन मानदंड
    • राज्यों को कम-से-कम 1,000 एकड़ की संलग्न भूमि उपलब्ध करानी होगी।
    • राज्य की वस्त्र और औद्योगिक नीतियों के साथ संरेखण।
    • निवेश आकर्षित करने और नीतिगत स्थिरता सुनिश्चित करने की क्षमता।
  • पार्क के प्रकार: ग्रीनफील्ड (नई परियोजनाएँ) या ब्राउनफील्ड (मौजूदा सुविधाओं का उन्नयन) के रूप में विकसित किया जा सकता है।
  • अपेक्षित परिणाम
    • विश्व स्तरीय कपड़ा केंद्रों का निर्माण।
    • आपूर्ति शृंखलाओं का एकीकरण।
    • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और निजी निवेश आकर्षित करना।
    • कपड़ा और संबद्ध उद्योगों में बड़े पैमाने पर रोजगार सृजित करना।

प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY)

केंद्र सरकार ने पीएम मातृ वंदना योजना के तहत 15 लाख से अधिक महिलाओं को वित्तीय सहायता हस्तांतरित की।

प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY) के बारे में 

  • शुभारंभ: वर्ष 2017 से कार्यरत।
  • कार्यान्वयन एजेंसी: केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (MWCD)।
  • उद्देश्य: मातृ स्वास्थ्य और पोषण में सुधार, गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान वेतन हानि के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना और प्रसव एवं बाल टीकाकरण के लिए संस्थागत देखभाल को बढ़ावा देना।
    • इस कार्यक्रम के तहत, देश भर में पात्र महिलाओं के बैंक खातों में एक क्लिक से सीधे धनराशि हस्तांतरित की जाएगी।
  • लाभार्थी: गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताएँ अपने पहले जीवित बच्चे के जन्म के लिए और दूसरे बच्चे के जन्म के लिए, यदि दूसरा बच्चा लड़की है।
    • अपवर्जित: सरकारी क्षेत्र में कार्यरत महिलाएँ (जो पहले से ही मातृत्व लाभ प्राप्त कर रही हैं)।
  • नकद प्रोत्साहन: ₹5,000 की राशि तीन किस्तों में प्रदान की जाएगी , जो निम्नलिखित शर्तों के अधीन होगी:
    1. पहली किस्त: गर्भावस्था के पंजीकरण पर।
    2. दूसरी किस्त: कम-से-कम एक प्रसवपूर्व जाँच के बाद।
    3. तीसरी किस्त: बच्चे के जन्म और पहले टीकाकरण के सत्यापन के बाद।
  • यदि दूसरा बच्चा लड़की है, तो दूसरे बच्चे के जन्म पर 6,000 रुपये की राशि प्रदान की जाती है।
  • वित्तपोषण पद्धति: केंद्र प्रायोजित योजना।
  • महत्त्व: मातृ मृत्यु दर को कम करने में मदद करता है, बाल पोषण और समय पर टीकाकरण को बढ़ावा देता है और संस्थागत स्वास्थ्य सुविधाओं के उपयोग को प्रोत्साहित करता है।

स्टेबलकॉइन (Stablecoins)

हाल ही में बैंक ऑफ इंग्लैंड ने बैंकिंग स्थिरता के लिए जोखिम और व्यापक क्रिप्टो विनियमन की कमी का हवाला देते हुए ‘स्टेबलकॉइन’ पर स्वामित्व सीमा का प्रस्ताव दिया।

स्टेबलकॉइन के बारे में

  • ‘स्टेबलकॉइन’ स्थिर परिसंपत्तियों से जुड़ी क्रिप्टोकरेंसी हैं।
  • स्टेबलकॉइन के प्रकार: फिएट समर्थित (जैसे, USD रिजर्व); कमोडिटी समर्थित (सोना, चाँदी, तेल); क्रिप्टो समर्थित (क्रिप्टोकरेंसी द्वारा संपार्श्विक); एल्गोरिदमिक (प्रोग्राम किए गए नियमों द्वारा नियंत्रित आपूर्ति), आदि।
  • प्रौद्योगिकी: डिजिटल लेजर (ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी) पर संगृहीत।
  • विशेषताएँ
    • मूल्य स्थिरता: परिसंपत्तियों द्वारा समर्थित या एल्गोरिदम द्वारा नियंत्रित।
    • लचीलापन: तेज, कम लागत वाले, सीमारहित लेन-देन को सक्षम बनाना।
    • निवेश: पारंपरिक मुद्रा में रूपांतरण की आवश्यकता नहीं।
    • तेजी से बढ़ता बाजार: स्टैंडर्ड चार्टर्ड का अनुमान है कि वर्ष 2028 तक यह 2 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच जाएगा।
  • नियामकों द्वारा पहचाने गए जोखिम
    • जोखिम: अचानक निकासी से बाजार अस्थिर हो सकते हैं, जैसा कि TerraUSD कंपनी के पतन (2022) के उदाहरण से स्पष्ट होता है।
    • वित्तीय स्थिरता: बैंकों में जमा राशि कम हो सकती है, जिससे ऋण उपलब्धता प्रभावित हो सकती है।
    • BIS की चिंताएँ: एकरूपता (सममूल्य विचलन), लोचशीलता (सीमित आपूर्ति विस्तार), और अखंडता (AML/KYC अनुपालन अंतराल) के मुद्दे।
    • धन शोधन और आतंकवाद का वित्तपोषण: सीमा पार मुक्त व्यापार से दुरुपयोग का जोखिम बढ़ जाता है।

स्टेबलकॉइन और अन्य क्रिप्टोकरेंसी के बीच अंतर

  • अस्थिरता
    • बिटकॉइन/एथेरियम: मूल्य में तीव्र उतार-चढ़ाव के अधीन।
    • स्टेबलकॉइन: मूल्य स्थिर रहता है, किसी अंतर्निहित परिसंपत्ति से जुड़ा होता है।
  • उद्देश्य
    • क्रिप्टोकरेंसी: मुख्यतः  ‘स्पेक्युलेशन’ निवेश या विकेंद्रीकृत वित्तीय परिसंपत्ति।
    • स्टेबलकॉइन: विनिमय के माध्यम और तेज निपटान के लिए मूल्य के भंडार के रूप में कार्य करते हैं।

यूस्टोमा 

CSIR-राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (National Botanical Research Institute- NBRI) के प्रयासों से, ओडिशा में पहली बार यूस्टोमा का पुष्पन सफलतापूर्वक हुआ है।

यूस्टोमा (यूस्टोमा ग्रैंडिफ्लोरम) के बारे में

  • परिचय: यूस्टोमा, जिसे आमतौर पर लिसिएंथस के नाम से जाना जाता है, एक विदेशी सजावटी फूल है, जो अपनी लंबे समय तक चलने वाली ताजगी एवं सौंदर्यपरक आकर्षण के लिए जाना जाता है।
  • मूल क्षेत्र: मेक्सिको, दक्षिणी संयुक्त राज्य अमेरिका एवं मध्य एवं दक्षिण अमेरिका के कुछ हिस्से।
  • जलवायु परिस्थितियाँ: यह गर्म समशीतोष्ण से लेकर उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में उत्पादित होता है।
  • उपयोग: वैश्विक रूप से फूलों के व्यापार, शादी की सजावट एवं फूलों की सजावट में लोकप्रिय, इसे इसकी लंबी शेल्फ लाइफ के कारण गुलाब का एक संभावित विकल्प माना जाता है।
  • आर्थिक क्षमता: यूस्टोमा की कटाई एक वर्ष में दो बार की जा सकती है, जिससे किसानों को प्रति एकड़ प्रति सीजन ₹2 लाख रूपये तक का लाभ होता है, जिससे आकर्षक आय के अवसर सुनिश्चित होते हैं।

राष्ट्रीय कृषि सम्मेलन – रबी अभियान 2025

हाल ही में केंद्रीय कृषि मंत्री ने दिल्ली में राष्ट्रीय कृषि सम्मेलन – रबी अभियान 2025 का उद्घाटन किया।

सम्मेलन की मुख्य विशेषताएँ

  • थीम: ‘वन नेशन – वन एग्रीकल्चर – वन टीम’
  • उत्पादन उपलब्धि: वर्ष 2024–25 में खाद्यान्न उत्पादन 353.96 मिलियन टन रहा, जो पिछले वर्ष की तुलना में 6.5% अधिक है।
    • चावल, गेहूँ, मक्का, मूँगफली और सोयाबीन का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ।
  • उत्पादन लक्ष्य: वर्ष 2025-26 के लिए खाद्यान्न लक्ष्य 362.50 मिलियन टन है।
    • राज्य/संघ राज्य क्षेत्र-विशिष्ट रोडमैप के माध्यम से दलहन एवं तिलहन उत्पादकता पर विशेष जोर।

ऋतु आधारित फसल के बारे में

  • रबी फसलें: सर्दियों में बोई जाती हैं (अक्टूबर-दिसंबर), वसंत ऋतु में काटी जाती हैं (अप्रैल-जून)।
    • उदाहरण: गेहूँ, जौ, सरसों, चना, मटर।
  • खरीफ फसलें: मानसून (जून-जुलाई) में बोई जाती हैं, शरद ऋतु (सितंबर-अक्टूबर) में काटी जाती हैं।
    • उदाहरण: चावल, मक्का, बाजरा, मूंगफली, कपास, सोयाबीन।
  • जायद फसलें: रबी एवं खरीफ (मार्च-जून, गर्मियों के दौरान) के बीच बोई जाती हैं तथा गर्मियों की शुरुआत से मानसून की शुरुआत (अप्रैल-जुलाई) तक काटी जाती हैं।
    • उदाहरण: तरबूज, खरबूजा, खीरा, चारा फसलें, कद्दू आदि।

होदेइदाह बंदरगाह

हाल ही में इजरायल ने यमन के लाल सागर में स्थित बंदरगाह ‘होदेइदाह’ पर हमला किया।

होदेइदाह बंदरगाह के बारे में

  • अवस्थिति: होदेइदाह पश्चिमी यमन का एक शहर है, जो लाल सागर की सीमा से लगे तिहामा तटीय मैदान पर अवस्थित है।
    • यह यमन के प्रमुख बंदरगाहों में से एक है।
  • यह बंदरगाह यमन के व्यापार के लिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि वर्तमान संघर्ष के बावजूद यह अधिकांश आयात एवं निर्यात का संचालन करता है।
  • सामरिक महत्त्व: होदेइदाह बंदरगाह का नियंत्रण महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह लाल सागर में मानवीय सहायता प्रवाह, व्यापार पहुँच एवं क्षेत्रीय सुरक्षा को प्रभावित करता है।

‘सेक्स साॅर्टेड सीमेन’ फैसिलिटी 

हाल ही में भारतीय  प्रधानमंत्री ने बिहार के पूर्णिया में ₹10 करोड़ की ‘सेक्स साॅर्टेड  सीमेन फैसिलिटी’ (Sex Sorted Semen Facility) का उद्घाटन किया, जिससे पूर्वी और उत्तर-पूर्वी भारत में दुग्ध विकास को बढ़ावा मिलेगा।

‘सेक्स साॅर्टेड सीमेन फैसिलिटी’ के बारे में

  • यह सुविधा केंद्रीय पशुपालन एवं डेयरी विभाग द्वारा कार्यान्वित राष्ट्रीय गोकुल मिशन के अंतर्गत स्थापित की गई है।
  • इसमें स्वदेशी रूप से विकसित तकनीक ‘गौसॉर्ट’ का उपयोग किया जाएगा।
  • उद्देश्य
    • किसानों को उचित दरों पर ‘सेक्स साॅर्टेड सीमेन’ उपलब्ध कराना।
    • पूर्वी एवं पूर्वोत्तर राज्यों में डेयरी व्यवसाय में संलग्न लघु, सीमांत किसानों तथा भूमिहीन मजदूरों का समर्थन करना।
    • बेहतर पशुधन प्रबंधन के माध्यम से डेयरी उत्पादकता बढ़ाना एवं किसानों की आय में वृद्धि करना।
  • क्षमता: प्रतिवर्ष 5 लाख डोज उत्पादन की क्षमता।
    • पूर्णिया सीमेन सेंटर  (₹84.27 करोड़ से स्थापित) 50 लाख डोज प्रतिवर्ष उत्पन्न करता है।

गौसॉर्ट तकनीक के बारे में

  • परिचय: यह एक स्वदेशी रूप से विकसित ‘सेक्स सॉर्टिंग’ तकनीक है, जो मेक इन इंडिया एवं आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण के अनुरूप है।
  • लॉन्च: 5 अक्टूबर, 2024।
  • उपयोग: सीमेन के सेक्स-सॉर्टिंग में इसका उपयोग किया जाता है, जिससे उच्च परिशुद्धता के साथ मादा जनन संभव होता है।
  • प्रभावकारिता: यह तकनीक मादा जनन को सुनिश्चित करने में लगभग 90% सटीकता प्राप्त करती है।
    • यह अनुत्पादक बछड़ों की संख्या को कम करके डेयरी किसानों पर आर्थिक बोझ कम करने में मदद करती है।

संदर्भ

भारत ने यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में शामिल करने के लिए छठ पर्व के बहुराष्ट्रीय नामांकन की पहल की है।

छठ पूजा के बारे में

  • परिचय: छठ भारत के सबसे प्राचीन त्योहारों में से एक है, जो सूर्य देव एवं देवी छठी मैया को समर्पित है।
  • यह मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और मॉरीशस, फिजी, सूरीनाम, संयुक्त अरब अमीरात और नीदरलैंड के प्रवासी भारतीय समुदायों के बीच मनाया जाता है।
  • सांस्कृतिक महत्त्व
    • यह अपने पारिस्थितिकी लोकाचार, प्रकृति, जल निकायों और स्थिरता के प्रति श्रद्धा को बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है।
    • यह जाति, पंथ और धर्म से परे होने के कारण अत्यधिक समतावादी है।
    • अनुष्ठान में सादगी, आत्म-अनुशासन, भक्ति और सामुदायिक भावना पर जोर देते हैं।

यूनेस्को अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची

  • परिचय: अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा हेतु यूनेस्को के वर्ष 2003 के कन्वेंशन का उद्देश्य सांस्कृतिक प्रथाओं, ज्ञान और परंपराओं का संरक्षण और संवर्द्धन करना है।
  • भारत की यूनेस्को अमूर्त सांस्कृतिक विरासत:
    • कुंभ मेला (अनुष्ठान उत्सव), योग (प्राचीन आध्यात्मिक अभ्यास), नवरोज (फारसी नव वर्ष, साझा परंपरा), रामलीला (रामायण का नाट्य प्रदर्शन), कालबेलिया लोकगीत और नृत्य (राजस्थान), मुडियेट्टु और कुडियाट्टम (केरल मंदिर परंपराएँ), दुर्गा पूजा (पश्चिम बंगाल)।
    • अन्य- छऊ नृत्य, संकीर्तन, वैदिक मंत्रोच्चार और पंजाब का पारंपरिक पीतल और ताँबे का शिल्प (जंडियाला गुरु का ठठेरा) शामिल हैं।
  • महत्त्व: मान्यता प्राप्त होने से परंपराओं को संरक्षित करने, सांस्कृतिक विविधता को बढ़ावा देने और सामुदायिक प्रथाओं के बारे में वैश्विक जागरूकता बढ़ाने में मदद मिलती है।

संदर्भ

विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (World Intellectual Property Organization- WIPO) ने वैश्विक नवाचार सूचकांक (GII), 2025 जारी किया है, जिसमें 139 अर्थव्यवस्थाओं की रैंकिंग की गई है।

शीर्ष 10: वैश्विक रैंकिंग

1 स्विट्जरलैंड 6 ब्रिटेन
2 स्वीडन 7 फिनलैंड
3 संयुक्त राज्य अमेरिका 8 नीदरलैंड
4 दक्षिण कोरिया 9 डेनमार्क
5 सिंगापुर 10 चीन

मुख्य बिंदु

  • भारत का नवाचार परिदृश्य: भारत ने वर्ष 2020 में 48वें स्थान से वर्ष 2025 में 38वें स्थान पर पहुँचकर निम्न-मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्थाओं एवं मध्य एवं दक्षिणी एशिया में प्रथम स्थान प्राप्त किया है।
  • भारत ने ज्ञान एवं प्रौद्योगिकी उत्पादन (22वें) एवं मार्केट सोफिस्टिकेशन (38वें) में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है, जो एक उभरते ICT क्षेत्र और उद्यमशीलतापूर्ण बाजार परिवेश को दर्शाता है।
    • इसकी सबसे कम रैंकिंग बिजनेस सोफिस्टिकेशन (64), इन्फ्रास्ट्रक्चर (61) और इंस्टिट्यूशंस (58) में है।
    • प्रमुख नवाचार शक्तियों में बड़ा प्रतिभा पूल, विस्तारित स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र, निर्यातोन्मुखी आईटी सेवाएँ और डिजिटलीकरण अपनाने में वृद्धि शामिल है।
  • चीन पहली बार GII के शीर्ष 10 में शामिल हुआ है और ज्ञान एवं प्रौद्योगिकी उत्पादन में विश्व स्तर पर अग्रणी है।
  • GII-2025 के अनुसार, अनुसंधान एवं विकास (R&D) क्षेत्र की वृद्धि दर वर्ष 2024 में गिरकर 2.9 प्रतिशत रह गई है और वर्ष 2025 में इसके और गिरकर 2.3 प्रतिशत रहने का अनुमान है।
  • यह पिछले वर्ष की 4.4 प्रतिशत वृद्धि से तीव्र गिरावट दर्शाता है, जो वर्ष 2010 के वित्तीय संकट के बाद से सबसे कम वृद्धि है।

क्षेत्रवार शीर्ष नवाचार अर्थव्यवस्थाएँ

क्षेत्र रैंक 1 रैंक 2 रैंक 3
लैटिन अमेरिका और कैरेबियन चिली ब्राजील  मेक्सिको
उप-सहारा अफ्रीका दक्षिण अफ्रीका बोत्सवाना सेनेगल
उत्तरी अमेरिका संयुक्त राज्य अमेरिका कनाडा
यूरोप स्विट्जरलैंड स्वीडन यूनाइटेड किंगडम
उत्तरी अफ्रीका और पश्चिमी एशिया इजरायल संयुक्त अरब अमीरात तुर्किए
दक्षिण-पूर्व एशिया, पूर्वी एशिया और ओशिनिया कोरिया गणतंत्र  सिंगापुर चीन
मध्य और दक्षिणी एशिया भारत ईरान उज़्बेकिस्तान

आय समूह के अनुसार शीर्ष नवप्रवर्तक

आय समूह रैंक 1 रैंक 2 रैंक 3
उच्च आय स्विट्जरलैंड स्वीडन संयुक्त राज्य अमेरिका
उच्च मध्यम आय चीन मलेशिया तुर्किए
निम्न मध्यम आय भारत वियतनाम फिलीपींस
कम आय रवांडा टोगो  युगांडा

वैश्विक नवाचार सूचकांक क्या है?

  • यह विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO) द्वारा जारी एक वार्षिक रैंकिंग है, जो पूरे विश्व की अर्थव्यवस्थाओं की नवाचार क्षमताओं और प्रदर्शन का आकलन करती है।
  • GII अनुसंधान एवं विकास, बुनियादी ढाँचे, संस्थानों, बाजार की परिष्कृतता, ज्ञान उत्पादन और रचनात्मक उत्पादन जैसे मानदंडों के आधार पर देशों का मूल्यांकन करता है।
  • स्रोत और कार्यप्रणाली: यह सूचकांक नवाचार इनपुट और आउटपुट को मापने वाले 80 से अधिक संकेतकों के आधार पर 139 अर्थव्यवस्थाओं का मूल्यांकन करता है।
  • महत्त्व: यह नीति निर्माताओं, शिक्षाविदों, निवेशकों और शोधकर्ताओं के लिए एक मानक के रूप में कार्य करता है और नवाचार-आधारित विकास को बढ़ावा देने हेतु रणनीतियों का मार्गदर्शन करता है।

संदर्भ

अंतरराष्ट्रीय मूल्य शिखर सम्मेलन 2025 में, केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार, भारत तीसरा सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल बाजार है और इसका लक्ष्य पाँच वर्षों में वैश्विक स्तर पर प्रथम स्थान प्राप्त करना है।

  • वर्ष 2025 में भारत जापान को पीछे छोड़कर चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल बाजार बन जाएगा।

मुख्य आँकड़े एवं तथ्य

  • वैश्विक योगदान: भारत का ऑटोमोटिव क्षेत्र वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 7.1% का योगदान देता है।
  • बाजार का आकार: वाहनों और ऑटो कंपोनेंट सहित भारतीय ऑटोमोबाइल क्षेत्र का मूल्य लगभग ₹22 लाख करोड़ है, जो इसे अर्थव्यवस्था के सबसे बड़े उद्योगों में से एक बनाता है।
  • यात्री वाहन बिक्री (2023): भारत ने 4.11 मिलियन इकाइयाँ बेचीं, जो जापान की लगभग 4 मिलियन इकाइयों की बिक्री सेअधिक थीं, जिससे वैश्विक रैंकिंग में एक बड़ा परिवर्तन आया।
  • निर्यात प्रदर्शन: वित्त वर्ष 2024 में, भारत ने 6.62 मिलियन वाहनों का निर्यात किया, जिससे यह दोपहिया और छोटी कारों का वैश्विक केंद्र बन गया।
  • दोपहिया वाहनों का प्रभुत्व: भारत के 50% से अधिक दोपहिया वाहनों का उत्पादन निर्यात किया जाता है, जो इस क्षेत्र में भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता और लागत लाभ को दर्शाता है।
  • ऑटो कंपोनेंट: वित्त वर्ष 2024 में ₹6.14 लाख करोड़ ($74.1 बिलियन) के कारोबार के साथ, ऑटो कंपोनेंट क्षेत्र सकल घरेलू उत्पाद में 2.3% का योगदान देता है, जिसका निर्यात 21.2 बिलियन डॉलर है, जिसके वर्ष 2026 तक 30 बिलियन डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है।
  • इलेक्ट्रिक वाहन का प्रवेश: अगस्त 2024 तक, 4.4 मिलियन EV पंजीकृत किए गए, जो कुल EV क्षेत्र का 6.6% भाग है, जो भारत की हरित गतिशीलता क्रांति की शुरुआत का संकेत है।
  • भविष्य की संभावनाएँ: लक्षित सुधारों और मजबूत GVC एकीकरण के साथ, भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक अपने वैश्विक ऑटो कंपोनेंट व्यापार हिस्सेदारी को 3% से बढ़ाकर 8% करना है।

भारत में ऑटोमोबाइल विकास के कारक

  • बढ़ती वैश्विक उपस्थिति: मारुति-सुज़ुकी और हुंडई से लेकर टोयोटा, टेस्ला और मर्सिडीज तक, सभी प्रमुख ऑटोमोबाइल ब्रांड अब भारत में निर्माण कर रहे हैं।
    • स्थानीय बाजारों के लिए वाहनों की असेंबलिंग की प्रथा अब विश्व में, विशेषतः अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और दक्षिण एशिया में, भारतीय निर्मित कारों के निर्यात की ओर बढ़ रहा है।

  • स्वच्छ एवं हरित गतिशीलता को बढ़ावा: इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) को FAME II (इलेक्ट्रिक वाहनों का तीव्र अंगीकरण एवं विनिर्माण) और PLI योजनाओं के तहत समर्थन दिया जा रहा है, भारत एक EV पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण कर रहा है।
    • हाइड्रोजन गतिशीलता: 10 प्रमुख परिवहन मार्गों पर पायलट परियोजनाओं के साथ हाइड्रोजन ट्रकों का शुभारंभ एक भविष्योन्मुखी परिवर्तन का संकेत है।
    • वैकल्पिक ईंधन: आइसोब्यूटेनॉल (Isobutanol), बायो-बिटुमेन और एथेनॉल मिश्रणों पर परीक्षण संचालित हो रहे हैं, जिसका उद्देश्य तेल आयात को कम करना है।

  • सड़क अवसंरचना का विस्तार: भारत में अब संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद विश्व का दूसरा सबसे बड़ा सड़क नेटवर्क है।
  • अन्य विकास कारक: एक बड़ा घरेलू बाजार, लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता, कुशल कार्यबल और मजबूत नीतिगत प्रोत्साहन (FAME, PM E-Drive, PLI, GST, स्क्रैपेज) सामूहिक रूप से भारत को ऑटोमोबाइल उत्पादन, निर्यात और EV नवाचार के लिए एक उभरते वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करते हैं।

विकास को गति देने वाली प्रमुख सरकारी पहल

  • FAME-II योजना (इलेक्ट्रिक वाहनों का तेजी से अपनाना और निर्माण): 16.15 लाख से अधिक इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रोत्साहित किया गया और 10,985 चार्जिंग स्टेशनों को मंजूरी दी गई, जिससे इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने में तेजी आई।
  • उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (Production Linked Incentive [PLI]) योजना – ऑटो और कंपोनेंट: ₹25,938 करोड़ के परिव्यय के साथ, यह योजना इलेक्ट्रिक वाहनों, हाइड्रोजन ईंधन सेल और ऑटो कंपोनेंट सहित उन्नत ऑटोमोटिव तकनीकों (Advanced Automotive Technologies- AAT) को बढ़ावा देती है।
  • PLI – ACC (एडवांस्ड केमिस्ट्री सेल बैटरी): 50 GWh बैटरी इकोसिस्टम के निर्माण का लक्ष्य, जिसमें 40 GWh क्षमता चार कंपनियों को आवंटित की जाएगी, जो इलेक्ट्रिक वाहनों और स्टोरेज के विकास को बढ़ावा देगी।
  • PM ई-बस सेवा (2024-29): 38,000 से अधिक इलेक्ट्रिक बसें संचालित करने और स्वच्छ सार्वजनिक परिवहन को मजबूत करने का लक्ष्य।
  • नीतिगत उपाय
    • इलेक्ट्रिक वाहनों पर GST 12% से घटाकर 5% कर दिया गया।
    • आवासीय और वाणिज्यिक परिसरों में इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिंग स्टेशनों को अनिवार्य बनाने के लिए मॉडल बिल्डिंग उपनियम, 2016 में संशोधन किया गया।
    • वाहन स्क्रैपेज नीति (2021): यह नीति 15 वर्ष से अधिक पुराने वाहनों को चरणबद्ध तरीके से हटाने, उत्सर्जन कम करने और नए वाहनों की माँग को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करती है।

संदर्भ

संवैधानिक अधिकारों के सर्वोच्च संरक्षक, भारत के सर्वोच्च न्यायालय में 88,417 मामले लंबित हैं, जो अब तक के इतिहास में सर्वाधिक है (राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड, 2025)

लंबित मामले

  • मामलों का विवरण: इनमें से 69,553 दीवानी मामले और 18,864 फौजदारी मामले हैं, जो न्यायालय के व्यापक अधिकार क्षेत्र को दर्शाता है।
  • वार्षिक प्रवृत्ति: वर्ष 2025 तक अब तक 52,630 मामले दर्ज किए गए, जबकि 46,309 (88%) मामले निपटाए गए।

लंबित मामलों के कारण

  • न्यायिक रिक्तियाँ और न्यायाधीश-जनसंख्या अनुपात में कमी: भारत में प्रति दस लाख लोगों पर केवल 21 न्यायाधीश हैं, जो संयुक्त राज्य अमेरिका (50 से अधिक) या चीन (100 से अधिक) से बहुत कम है।
    • उच्च न्यायालय और निचली अदालतें नियमित रूप से 30-35% रिक्तियों के साथ कार्य करती हैं, जिससे मामलों के निपटारे में देरी होती है।
  • बढ़ते मुकदमे और विस्तृत क्षेत्राधिकार: सर्वोच्च न्यायालय एक “जनता के न्यायालय” के रूप में कार्य करता है, जो न केवल संवैधानिक मुद्दों पर बल्कि विशेष अनुमति याचिकाओं (अनुच्छेद-136), सेवा विवादों और संपत्ति संबंधी मामलों पर भी सुनवाई करता है।
    • अधिकारों और जनहित याचिकाओं (Public Interest Litigations- PIL) के बारे में बढ़ती जागरूकता ने मुकदमेबाजी की मात्रा में वृद्धि की है।
      • उदाहरण: अगस्त 2025 में, सर्वोच्च न्यायालय में 7,080 नए मामले आए, जो उसके द्वारा निपटाए गए 5,667 मामलों से कहीं अधिक थे।
  • सरकार सबसे बड़ी वादी: केंद्र और राज्य सरकारें सभी लंबित मामलों के लगभग 46% हेतु उत्तरदायी हैं (विधि आयोग, 2017)।

विशेष अनुमति याचिका (Special Leave Petition- SLP)

  • परिभाषा: किसी न्यायालय या न्यायाधिकरण के किसी निर्णय, डिक्री या आदेश के विरुद्ध अपील करने के लिए विशेष अनुमति प्राप्त करने हेतु भारत के सर्वोच्च न्यायालय में दायर की गई याचिका।
  • संवैधानिक आधार: अनुच्छेद-136 – असाधारण मामलों में अनुमति प्रदान करने की सर्वोच्च न्यायालय की विवेकाधीन शक्ति।

    • बार-बार विभागीय अपीलें, यहाँ तक कि सुलझे हुए मामलों में भी, न्यायिक प्रक्रिया को अवरुद्ध कर देती हैं।
    • उदाहरण: भूमि अधिग्रहण, सेवा और कर संबंधी विवाद प्रायः विभागीय प्रतिरोध के कारण उच्च न्यायालयों तक पहुँच जाते हैं।
  • प्रक्रियागत विलंब और स्थगन: बार-बार स्थगन, लंबी मौखिक बहस और अत्यधिक दस्तावेजी कार्रवाई, मुकदमों को लंबित करती है।
    • वकील प्रायः अनेक सुनवाइयों की माँग करते हैं और अदालतें उदारतापूर्वक समय विस्तार प्रदान करती हैं।
    • उदाहरण: कई संपत्ति और सेवा विवाद 10-15 वर्षों तक अनसुलझे रहते हैं, जिससे जनता का विश्वास कम होता है।
  • बुनियादी ढाँचे की कमी: अधीनस्थ न्यायालयों में, जहाँ 90% लंबित मामले हैं, प्रायः आधुनिक सुविधाओं, केस प्रबंधन प्रणालियों या ई-फाइलिंग का अभाव होता है।
    • वर्ष 2022 की संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि केवल 54% न्यायालयों में ही वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा उपलब्ध है।
    • विद्युत की कमी, आशुलिपिकों की कमी और डिजिटलीकरण का अभाव त्वरित सुनवाई में बाधा डालते हैं।
  • कोविड-19 महामारी का लंबित मामला: वर्ष 2020-21 के बीच, मामलों के निपटारे में भारी गिरावट आई, जबकि दाखिले जारी रहे, इससे न्यायालयों में मामलों का निरंतर बढ़ता हुआ बोझ एक स्थायी समस्या बन गया।
    • आभासी सुनवाई की शुरुआत की गई, लेकिन आपराधिक मुकदमों या डिजिटल पहुँच की कमी वाले ग्रामीण वादियों के लिए यह प्रभावी नहीं रही।
    • इसका प्रभाव वर्ष 2025 में भी जारी रहेगा, सुधारों के बावजूद लंबित मामले नए शिखर पर पहुँचेंगे।
  • वैकल्पिक विवाद समाधान (Alternative Dispute Resolution- ADR) का कम उपयोग: मध्यस्थता और पंच-निर्णय जैसे तंत्रों का अभी भी कम उपयोग हो रहा है। आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 में बताया गया है कि 87% दीवानी मामलों का निपटारा ADR के माध्यम से किया जा सकता है, जबकि 2% से भी कम मामलों को रेफर किया जाता है।
    • उदाहरण: वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम, 2015 मध्यस्थता को अनिवार्य बनाता है, लेकिन इसका अनुपालन कमजोर है।

लंबित मामलों की अधिकता के निहितार्थ

  • विश्वसनीयता का संकट: न्याय में देरी से न्यायपालिका में नागरिकों का विश्वास लगातार कम होता जा रहा है, विशेषतः भ्रष्टाचार, संवैधानिक व्याख्या और अधिकारों की सुरक्षा से जुड़े मामलों में।
  • आर्थिक परिणाम: लंबे समय तक चलने वाले वाणिज्यिक विवाद पूँजी को अवरुद्ध करते हैं, घरेलू एवं विदेशी निवेश को हतोत्साहित करते हैं और आर्थिक विकास की गति को धीमा कर देते हैं।
  • गहराती सामाजिक असमानता: हाशिए पर स्थित समूह सबसे अधिक प्रभावित होते हैं, चाहे वे जेलों में लंबे समय से बंद विचाराधीन कैदी हों या संपत्ति और सेवा विवादों के निपटारे के लिए दशकों से प्रतीक्षारत गरीब वादी।
  • जेलों में भीड़भाड़: भारतीय न्याय रिपोर्ट, 2025 में पाया गया कि 50% से अधिक जेलें क्षमता से अधिक भरी हुई हैं और 76% कैदी विचाराधीन हैं, जो लंबित मामलों और बिना दोषसिद्धि के कारावास के बीच सीधा संबंध दर्शाता है।
  • व्यापक प्रशासनिक प्रभाव: भूमि, सेवा, कराधान और प्रशासनिक कार्यों से संबंधित विवादों के अनसुलझे रहने के कारण लंबित मामलों की उच्च संख्या प्रभावी शासन को कमजोर करती है।
    • नागरिकों और व्यवसायों का नियम-आधारित प्रणालियों में विश्वास कम हो जाता है, जिससे अनुपालन और नागरिक सहभागिता प्रभावित होती है।
    • धीमी न्यायिक कार्यवाही कार्यकारी कार्यों पर नियंत्रण को कमजोर करती है, जिससे अप्रत्यक्ष रूप से जवाबदेही और पारदर्शिता प्रभावित होती है।

उपाय 

  • उत्तरवर्ती सुधार
    • संचालन विभाग का पुनर्गठन: अतिरिक्त कर्मचारियों और विस्तारित घंटों के साथ रजिस्ट्री को सुदृढ़ किया गया, जिससे मामलों का औसत दैनिक सत्यापन 184 से बढ़कर 228 हो गया।
    • विशेषज्ञ परामर्श: IIM बंगलूरू ने रजिस्ट्री प्रक्रियाओं का अध्ययन किया और डेटा-आधारित सुधारों का सुझाव दिया।
    • स्वचालित आवंटन: एकीकृत केस प्रबंधन सूचना प्रणाली (Integrated Case Management Information System [ICMIS]) ने बेंच आवंटन को स्वचालित किया, जिससे विवेकाधिकार कम हुआ और पारदर्शिता सुनिश्चित हुई।
  • प्रक्रियात्मक सुधार 
    • द्वितीय रजिस्ट्रार न्यायालय: सूचीकरण में देरी को रोकने के लिए दोषपूर्ण फाइलिंग को मंजूरी दी गई।
    • अनिवार्य पुनः सूचीकरण: 2–3 सप्ताह के भीतर सुनवाई न होने वाले मामलों को अनिवार्य रूप से पुनः सूचीबद्ध किया गया, जिससे “डिसमिस्ड” मामलों से बचा जा सका।
    • ईमेल उल्लेख: वरिष्ठ अधिवक्ताओं द्वारा मौखिक उल्लेखों के स्थान पर ईमेल प्रणाली शुरू की गई, जिससे न्यायालय का समय बचा और समान पहुँच सुनिश्चित हुई।
    • वर्गीकरण ढाँचा: मामलों के कुशल समूहीकरण के लिए 48 मुख्य श्रेणियाँ और 182 उप-श्रेणियाँ शुरू की गईं; जिससे समान मामलों का तेजी से निपटान संभव हुआ।
  • पुराने मामलों का केंद्रित निपटान
    • समर्पित दिन: इन पुराने मामलों के निपटारे के लिए मंगलवार और बुधवार निर्धारित किए गए।
    • अनुसंधान शाखा का सहयोग: सर्वोच्च न्यायालय की अनुसंधान शाखा ने 10,000 से अधिक मामलों का विश्लेषण किया और न्यायाधीशों के लिए 1-2 पृष्ठों का संक्षिप्त विवरण तैयार किया। इससे पीठों को 30-45 मिनट में 10 पुराने मामलों का निपटारा करने में मदद मिली, जिससे 1,025 मुख्य और 427 संबंधित मामलों का शीघ्र निपटारा हुआ।
  • विभेदित मामला प्रबंधन (Differentiated Case Management [DCM]): DCM ने दशकों पुराने मामलों की जाँच की। इससे सर्वोच्च न्यायालय की निपटान दर 104% से ऊपर पहुँच गई, जिससे यह सिद्ध हुआ कि प्रणालीगत सुधार क्रमिक परिवर्तनों से बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं।
  • समितियाँ: सर्वोच्च न्यायालय ने लंबित मामलों में कमी लाने की रणनीति बनाने के लिए विशेष समितियों का गठन किया, जो मलिमथ समिति की रिपोर्ट के मार्गदर्शन में थीं, जिसमें सख्त प्रक्रियात्मक समय-सीमा और स्थगन में अनुशासन की वकालत की गई थी।
  • न्यायिक क्षमता का विस्तार: विधि आयोग की रिपोर्टों में बार-बार निम्नलिखित सिफारिशें की गई हैं:
    • न्यायिक अवकाश में 10-21 दिन की कटौती;
    • रिक्तियों को बिना किसी देरी के भरना;
    • बकाया राशि के निपटान के लिए कार्य दिवसों की संख्या बढ़ाना।
  • विधायी सुधार
    • मध्यस्थता और सुलह (2015, 2019): समयबद्ध विवाद समाधान की शुरुआत की गई।
    • वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम (2018): संस्था-पूर्व मध्यस्थता को अनिवार्य बनाया गया।
    • परक्राम्य लिखत अधिनियम (2018): चेक बाउंस मामलों के लिए संक्षिप्त सुनवाई की सुविधा प्रदान की गई।
  • डिजिटल उपकरण और ई-न्यायालय: ई-फाइलिंग, वर्चुअल सुनवाई और इलेक्ट्रॉनिक केस मैनेजमेंट टूल्स (Electronic Case Management Tools [ECMT]) का विस्तार किया जा रहा है। राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (National Judicial Data Grid [NJDG]) पारदर्शिता बढ़ाता है, लेकिन इसके लिए ‘रियल-टाइम केस ट्रैकिंग’ के साथ अधिक सघन एकीकरण की आवश्यकता है।
  • त्वरित सरकारी कार्रवाई: सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए कॉलेजियम की सिफारिशें अब प्रायः 48 घंटों के भीतर मंजूर कर दी जाती हैं।
  • ग्रीष्मकालीन सुधार: वर्ष 2025 में, मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने ग्रीष्मकालीन अवकाश को “आंशिक कार्य दिवसों” में बदल दिया, जिसमें 21 पीठें कार्यरत होंगी, जिससे अवकाश के दौरान मामलों के निपटारे में वृद्धि होगी।
  • सर्वोच्च न्यायालय का विभाजन: विधि आयोगों (10वें और 11वें) ने इसे निम्नलिखित में विभाजित करने का सुझाव दिया:
    • अधिकारों और संघीय विवादों के लिए एक संवैधानिक प्रभाग;
    • नियमित अपीलों के लिए एक कानूनी प्रभाग।

आगे की राह

  • राष्ट्रीय न्यायिक परिषद: लंबित सुधारों की देख-रेख के लिए GST परिषद के समान एक केंद्रीय समन्वय निकाय।
  • विशेष पीठ: कर, सेवा और वाणिज्यिक मामलों के लिए स्थायी पीठें, ताकि सर्वोच्च न्यायालय का नियमित भार कम हो सके।
  • निचली न्यायपालिका को मजबूत करना: उच्च न्यायालयों और निचली अदालतों को न्यायाधीशों के प्रवाह को अवशोषित करने के लिए सशक्त बनाना।
  • शक्ति का विस्तार: सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या 34 से अधिक करने पर विचार।
  • प्रौद्योगिकी और कृत्रिम बुद्धिमत्ता: SUPACE, पूर्वानुमान विश्लेषण और कृत्रिम बुद्धिमत्ता-संचालित केस ट्राइएज का व्यापक उपयोग।
  • प्रक्रिया अभिविन्यास: केवल संख्याओं पर ही नहीं, बल्कि केस प्रबंधन में प्रणालीगत सुधारों पर भी ध्यान केंद्रित करना।

निष्कर्ष

लंबित मामलों का संकट एक संरचनात्मक चुनौती है, जो अनुच्छेद-21 के तहत त्वरित न्याय के भारत के संवैधानिक वादे के लिए खतरा प्रस्तुत करता है। फिर भी, हालिया सुधार यह दर्शाते हैं कि प्रगति संभव है। जैसा कि न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्ण अय्यर ने कहा था, “न्याय में देरी न्याय का खंडन है।” न्याय, समानता और दक्षता के संवैधानिक मूल्यों को सुधारों में सम्मिलित करने से यह सुनिश्चित होगा कि सर्वोच्च न्यायालय, जनता का न्यायालय और अधिकारों का अंतिम संरक्षक बना रहे।

संदर्भ

प्रवर्तन निदेशालय (ED) के अनुसार, धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत दायर मामलों में उसने 94% दोषसिद्धि दर प्राप्त की है, जहाँ 53 में से 50 मामलों में दोषसिद्धि सुनिश्चित हुई।

प्रवर्तन निदेशालय के बारे में

प्रवर्तन निदेशालय का विकास

  • गठन: 1 मई, 1956 को आर्थिक मामलों के विभाग के अंतर्गत एक “प्रवर्तन इकाई” के रूप में स्थापित।
  • प्रारंभिक अधिदेश: प्रारंभ में विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम, 1947 (FERA, 1947) के उल्लंघनों की जाँच का कार्य सौंपा गया।
  • नाम परिवर्तन: वर्ष 1957 में, इकाई का नाम बदलकर प्रवर्तन निदेशालय (ED) कर दिया गया।
  • वैधानिक अधिकारिता: विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 (FEMA) 1 जून, 2000 को लागू हुआ, जिससे ED को प्रवर्तन शक्तियाँ प्राप्त हुईं।
  • नोडल मंत्रालय: राजस्व विभाग, वित्त मंत्रालय।

नियुक्ति संरचना 

  • कानूनी ढाँचा: केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम, 2003 प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक की नियुक्ति को नियंत्रित करता है।
  • केंद्र सरकार की भूमिका: भारत सरकार, केंद्रीय सतर्कता आयुक्त की अध्यक्षता वाली एक उच्च-स्तरीय समिति की सिफारिशों के आधार पर निदेशक की नियुक्ति करती है।
  • समिति के सदस्य: इस पैनल में वित्त (राजस्व), गृह मंत्रालय और कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालयों के सचिव शामिल हैं।
  • कार्यकाल संरक्षण: निदेशक को कम-से-कम दो वर्ष तक सेवा करनी होगी और स्थानांतरण के लिए नियुक्ति समिति से अनुमोदन आवश्यक है।

ED के वैधानिक कार्य

कानून  ED की भूमिका
धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (PMLA)
  • धन शोधन का निवारण करने और अवैध तरीकों से अर्जित संपत्तियों को जब्त करने के लिए बनाया गया एक आपराधिक कानून।
  • ED अपराध की आय की जाँच करती है, अपराधियों पर मुकदमा चलाती है और विशेष न्यायालयों के माध्यम से संपत्तियों की कुर्की/जब्ती सुनिश्चित करती है।
विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 (FEMA)
  • बाह्य व्यापार, विदेशी मुद्रा और भुगतान प्रणालियों को विनियमित करने के लिए अधिनियमित एक नागरिक कानून।
  • प्रवर्तन निदेशालय (ED), फेमा के प्रावधानों के संभावित उल्लंघनों की जाँच करता है।
भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम, 2018 (FEOA)
  • यह प्रावधान उन अपराधियों को लक्षित करता है, जो विदेश भागकर भारतीय न्यायालयों से बच निकलते हैं।
  • ED ऐसे भगोड़ों की आर्थिक अपराधियों की संपत्ति जब्त कर सकती है।

संगठनात्मक संरचना

  • मुख्यालय: नई दिल्ली में स्थित, प्रवर्तन निदेशक के नेतृत्व में।
  • क्षेत्रीय कार्यालय: मुंबई, चेन्नई, चंडीगढ़, कोलकाता और दिल्ली में स्थित, प्रत्येक का नेतृत्व विशेष निदेशक करते हैं।
  • क्षेत्रीय कार्यालय: पुणे, बंगलूरू, चंडीगढ़, चेन्नई, कोच्चि, दिल्ली, पणजी, गुवाहाटी, हैदराबाद, जयपुर, जालंधर, कोलकाता, लखनऊ, मुंबई, पटना और श्रीनगर जैसे शहरों में कार्यरत।
  • पर्यवेक्षण: निदेशक क्षेत्रीय और आंचलिक कार्यालयों के सभी कार्यों का प्रबंधन करते हैं।

संदर्भ

नीति आयोग ने अपने फ्रंटियर टेक हब के अंतर्गत दो परिवर्तनकारी पहलों, ‘विकसित भारत रोडमैप के लिए AI’ और ‘फ्रंटियर टेक रिपॉजिटरी’ का शुभारंभ किया।

संबंधित तथ्य

  • ‘विकसित भारत रोडमैप के लिए AI’ एक स्पष्ट, क्षेत्र-विशिष्ट कार्य योजना प्रस्तुत करता है, जबकि ‘फ्रंटियर टेक रिपॉजिटरी’ राज्यों और जिलों को वास्तविक वर्ष में प्रभाव सृजन हेतु प्रौद्योगिकी का विस्तार करने के लिए प्रेरित करती है।
  • नीति आयोग ने प्रौद्योगिकी को जमीनी स्तर पर अपनाने और प्रभाव सृजन को बढ़ाने के लिए दो पहलों की भी घोषणा की: फ्रंटियर 50 पहल और राज्यों के लिए नीति फ्रंटियर टेक इंपैक्ट पुरस्कार।

फ्रंटियर टेक रिपॉजिटरी

  1. फ्रंटियर 50 पहल, जिसके तहत नीति आयोग 50 आकांक्षी जिलों/ब्लॉकों (Aspirational Districts / Blocks- ADP/ADB) को रिपॉजिटरी से उपयोग के मामले का चयन करने और उन अग्रणी प्रौद्योगिकियों को लागू करने में सहायता करेगा, जिनमें ADP/ABP विषयों में सेवाओं के वितरण में तेजी लाने की क्षमता है।
  2. राज्यों के लिए नीति फ्रंटियर टेक इंपैक्ट अवार्ड्स, शासन, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, आजीविका आदि में सुधार के लिए प्रौद्योगिकी के उपयोग में उत्कृष्टता दर्शाने वाले तीन राज्यों को मान्यता प्रदान करते हैं और उन्हें मापनीय, परिवर्तनकारी परिणाम प्राप्त करने में सहायता प्रदान करते हैं।

नीति आयोग की ‘विकसित भारत रोडमैप के लिए AI’ पहल के बारे में

  • फोकस: AI एकीकरण के माध्यम से उत्पादकता और नवाचार को बढ़ावा देकर 8% से अधिक की निरंतर GDP वृद्धि हासिल करना।
  • उद्देश्य: GDP वृद्धि के अंतर को पाटना, वैश्विक AI मूल्य का 10-15% प्राप्त करना और भारत को एक विश्वसनीय वैश्विक AI ने नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित करना।
  • दृष्टिकोण: दो प्राथमिक उत्प्रेरक:
    1. उत्पादकता और दक्षता बढ़ाने के लिए उद्योगों में AI को अपनाने में तीव्रता लाना।
    2. उत्पादक AI के साथ अनुसंधान एवं विकास में परिवर्तन लाना, जिससे नवाचार में तेजी से वृद्धि हो सके।

रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ

  • प्रमुख आर्थिक अवसर: नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, उद्योगों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) को तेजी से अपनाने से कार्यबल में उत्पादकता और दक्षता में वृद्धि के कारण वर्ष 2035 तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 500-600 बिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान प्राप्त हो सकता है।
    • विभिन्न क्षेत्रों में AI को अपनाने से वैश्विक अर्थव्यवस्था में 17-26 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान होने की उम्मीद है।
    • AI-संचालित अनुसंधान एवं विकास वर्ष 2035 तक सकल घरेलू उत्पाद में 280-475 बिलियन अमेरिकी डॉलर का वृद्धिशील प्रभाव पैदा कर सकता है।
    • सरकार के विकसित भारत विजन के तहत, भारत का सकल घरेलू उत्पाद 8.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ सकता है, जो वर्तमान विकास व्यय से 1.7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर अधिक है।
  • प्रमुख डेटा लाभ: भारत AI कोष का विस्तार करके और जीनोमिक्स, विनिर्माण टेलीमेट्री, वित्त और मोबिलिटी में प्रमाणित, अंतर-संचालनीय, डेटासेट का निर्माण कर विश्व की डेटा राजधानी बन सकता है।
  • प्रमुख कौशल पारिस्थितिकी तंत्र: शीर्ष विश्वविद्यालयों, राष्ट्रीय प्रमाणन कार्यक्रमों और एक AI मुक्त विश्वविद्यालय में AI प्रेसीडेंसी की स्थापना करके भविष्य के लिए तैयार कार्यबल का निर्माण किया जा सकता है।
    • ये निरंतर पुनः कौशलीकरण और वहनीय शिक्षण रोजगारों का सृजन कर सकते हैं एवं आजीवन रोजगार सुनिश्चित कर सकते हैं।
  • क्षेत्र-विशिष्ट लाभ: बैंकिंग, विनिर्माण, फार्मास्यूटिकल्स और ऑटोमोटिव AI-आधारित परिवर्तन के लिए प्राथमिकता वाले क्षेत्र के रूप में उभरे हैं।

भारत के लिए AI संबंधी अवसर: तीन प्रमुख कारक

  1. विभिन्न उद्योगों में AI अपनाने में तेजी: इससे अपेक्षित वृद्धि दर का 30-35% पूरा होने का अनुमान है।
    • वित्तीय सेवाएँ: अनुपालन, धोखाधड़ी का पता लगाने और पर्सनल बैंकिंग के लिए AI।
    • विनिर्माण: स्मार्ट-फैक्टरी कॉरिडोर, पूर्वानुमानित प्रबंधन और AI आधारित औद्योगिक पार्क।
  2. जनरेटिव AI के साथ अनुसंधान एवं विकास में परिवर्तन: इस दोहन क्षमता से आवश्यक उत्पादन क्षमता में कम-से-कम 20-30% योगदान मिलने की उम्मीद है।
    • दवा खोज की लागत में 20-30% की कटौती की जा सकती है, समय-सीमा 60-80% तक कम हो सकती है।
    • सॉफ्टवेयर-सहायता प्राप्त वाहन (Software-Assisted Vehicles – SAV) और AI द्वारा डिजाइन किए गए घटक भारत को उन्नत ऑटोमोटिव नवाचार का वैश्विक केंद्र बना सकते हैं।
  3. प्रौद्योगिकी सेवाओं को सुदृढ़ बनाना (नीति आयोग के एक अलग प्रकाशन में इसका उल्लेख किया गया है): इससे इस कदम में 15-20% की और वृद्धि हो सकती है।
    • AI-सक्षम उच्च-मूल्य समाधानों के साथ प्रौद्योगिकी सेवा प्रदाता के रूप में भारत की भूमिका को बढ़ावा देना।

भारत के लिए अवसर

  • जनसांख्यिकीय लाभ: विश्व के सबसे बड़े STEM कार्यबल और युवा आबादी के साथ, भारत AI को अपनाकर उत्पादक रोजगार और नवाचार को बढ़ावा दे सकता है।
  • डेटा लाभ: भारत के विशाल, विविध और बहुभाषी डेटासेट इसे वैश्विक डेटा राजधानी बना सकते हैं, जिससे जीनोमिक्स, विनिर्माण टेलीमेट्री और वित्तीय समावेशन में नवाचार को बढ़ावा मिल सकता है।
  • समावेशी विकास के लिए AI: कृषि, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और शासन में AI-संचालित समाधान क्षेत्रीय असमानताओं को पाट सकते हैं और अंतिम लक्षित सेवाएँ प्रभावी ढंग से प्रदान कर सकते हैं।
  • विनिर्माण को बढ़ावा: AI-सक्षम स्मार्ट कारखाने और पूर्वानुमानित रखरखाव भारतीय उद्योगों को वैश्विक उद्योग 5.0 आपूर्ति शृंखलाओं में एकीकृत कर सकते हैं, जिससे प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ सकती है।
    • विश्लेषण में कहा गया है कि वित्तीय सेवाएँ और विनिर्माण सबसे अधिक प्रभावित हो सकते हैं और वर्ष 2035 तक उनके क्षेत्रीय सकल घरेलू उत्पाद का 20-25 प्रतिशत AI से प्राप्त हो सकता है।
  • ऑटोमोटिव परिवर्तन: AI-आधारित डिजाइन से निर्मित घटकों और सॉफ्टवेयर-सहायता प्राप्त वाहनों के माध्यम से भारत एक प्रमुख वैश्विक ऑटोमोटिव एवं ऑटो-घटक निर्यातक के रूप में उभर सकता है।
  • प्रौद्योगिकी सेवाओं का उन्नयन: AI बैक-ऑफिस सेवाओं से आगे बढ़कर उच्च-मूल्य, AI-संचालित वैश्विक समाधानों की ओर अग्रसर होकर IT क्षेत्र में अग्रणी के रूप में भारत की प्रतिष्ठा को मजबूत करता है।

AI-आधारित विकास के लिए रणनीतिक सक्षमकर्ता

  • महत्त्वपूर्ण AI अवसंरचना: AI स्केलिंग में भारत की स्वतंत्र क्षमता सुनिश्चित करने के लिए सॉवरेन क्लाउड प्लेटफॉर्म, उच्च-स्तरीय GPU क्लस्टर और अंतर-संचालनीय राष्ट्रीय डेटासेट का निर्माण।
  • AI गवर्नेंस: सुरक्षित और जिम्मेदार AI परिनियोजन के लिए नैतिक ढाँचे, व्याख्यात्मक मानक, जोखिम प्रबंधन प्रोटोकॉल और नियामक सैंडबॉक्स स्थापित करना।
  • निजी क्षेत्र का नेतृत्व: मुख्य उद्योग प्रक्रियाओं में AI को अपनाने को बढ़ावा देना, बायोनिक (मानव और मशीन का सम्मिश्रण) संगठन बनाना और क्षेत्र-व्यापी प्रतिस्पर्द्धात्मकता के लिए कार्यबल पुनर्कौशल में निवेश करना।
  • शिक्षा जगत की भूमिका: मौलिक अनुसंधान को गति देना, AI सुरक्षा और परीक्षण सैंडबॉक्स बनाना और पीएचडी एवं AI-विशेषज्ञ प्रतिभाओं को पोषित करने के लिए उन्नत पाठ्यक्रम तैयार करना।
  • समान पहुँच: यह सुनिश्चित करना कि MSME, टियर-2/टियर-3 शहरों और कम प्रतिनिधित्व वाले क्षेत्रों की डिजिटल विभाजन को रोकने के लिए साझा AI टूल, डेटासेट और कंप्यूटिंग संसाधनों तक पहुँच हो।

चुनौतियाँ

  • डेटा और बुनियादी ढाँचे में कमी: खंडित पारिस्थितिकी तंत्र, सीमित उच्च-प्रदर्शन कंप्यूटिंग, और पुरानी IT प्रणालियों पर निर्भरता।
  • प्रतिभा की कमी: विनिर्माण और बायोफार्मा जैसे क्षेत्रों में AI-विशेषज्ञ कार्यबल की कमी।
  • नियामक और प्रशासनिक जोखिम: गोपनीयता संबंधी चिंताएँ, व्याख्यात्मक ढाँचों का अभाव और AI-जनित आउटपुट के लिए वैश्विक पेटेंट मान्यता चुनौतियाँ।
  • असमान पहुँच: MSMEs तथा छोटे संस्थानों के उच्च लागत और जागरूकता की कमी के कारण पिछड़ जाने का खतरा है।

भारत AI मिशन के बारे में

  • इंडियाAI: यह भारत सरकार का एक राष्ट्रीय कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य एक संरचित सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल के तहत स्वदेशी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस क्षमताओं, बुनियादी ढाँचे, डेटासेट और स्टार्ट-अप्स को विकसित करना है।
  • संबंधित मंत्रालय: इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Electronics and Information Technology -MeitY)।
  • वर्ष: मार्च 2024 में कैबिनेट द्वारा अनुमोदित
  • उद्देश्य
    • भारत में AI का निर्माण करना और AI को भारत के लिए उपयोगी बनाना।
    • शासन, स्टार्ट-अप और नागरिकों के लिए AI की पहुँच और उपयोग का लोकतंत्रीकरण करना।
    • स्वदेशी आधार और भाषा मॉडल बनाना।
    • नैतिक, सुरक्षित और जिम्मेदारी को बढ़ावा देना।
    • एक आत्मनिर्भर AI नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना।

आगे की राह

  • भारत AI मिशन को मजबूत करना: इसके सात स्तंभों पर ध्यान केंद्रित करना, जो हैं – कंप्यूटिंग क्षमता, नवाचार केंद्र, डेटासेट, अनुप्रयोग, कौशल, स्टार्टअप वित्तपोषण और सुरक्षित AI परिनियोजन।
  • सार्वजनिक-निजी सहयोग को बढ़ावा देना: ऐसे संयुक्त पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना, जहाँ उद्योग, शिक्षा जगत और सरकार मिलकर कृत्रिम बुद्धिमत्ता समाधान, नियामक सैंडबॉक्स तथा वैश्विक मानक तैयार करना।
  • क्षेत्र-विशिष्ट पहलों को आगे बढ़ाना: कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित औद्योगिक पार्क स्थापित करना, राष्ट्रीय डेटासेट (ओमिक्स, विनिर्माण टेलीमेट्री) तैयार करना और विशिष्ट कार्यबल प्रशिक्षण कार्यक्रम तैयार करना।
  • वैश्विक संरेखण सुनिश्चित करना: निर्यात में प्रतिस्पर्द्धात्मकता सुनिश्चित करने के लिए भारत के कृत्रिम बुद्धिमत्ता ढाँचों को यूरोपीय संघ के कृत्रिम बुद्धिमत्ता अधिनियम, UNECE ऑटोमोटिव मानकों और वैश्विक दवा मानदंडों के साथ सुसंगत बनाना।
  • समावेशी अपनाने को बढ़ावा देना: लक्षित कौशल विकास, वित्तीय सब्सिडी और मजबूत डिजिटल बुनियादी ढाँचे के माध्यम से MSME, टियर-II/टियर-III शहरों और गिग श्रमिकों तक कृत्रिम बुद्धिमत्ता की पहुँच का विस्तार करना।

यूरोपीय संघ AI अधिनियम (2024)

  • यूरोपीय संघ द्वारा अपनाया गया विश्व का पहला व्यापक AI कानून।
  • दृष्टिकोण: ‘उच्च-जोखिम’ युक्त AI (स्वास्थ्य सेवा, कानून प्रवर्तन, महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचा) के लिए जोखिम-आधारित ढाँचा और सख्त नियम।
  • प्रमुख प्रावधान
    • प्रतिबंध: सोशल स्कोरिंग, हस्तक्षेपकारी AI, चेहरे के डेटा का स्क्रैपिंग तथा शोषणकारी बायोमेट्रिक वर्गीकरण जैसी प्रक्रियाएँ गंभीर नैतिक और गोपनीयता संबंधी चिंताएँ उत्पन्न करती हैं।
    • प्रतिबंध: बायोमेट्रिक निगरानी केवल दुर्लभ, न्यायालय-अनुमोदित मामलों में (जैसे- आतंकवाद की रोकथाम, गोपनीय व्यक्ति)।
    • उच्च-जोखिम वाला AI: अनिवार्य जोखिम आकलन, लॉगिंग, मानवीय निगरानी, ​​पारदर्शिता।
    • उत्पादक AI: प्रशिक्षण डेटा सारांश, कॉपीराइट अनुपालन, डीपफेक लेबलिंग।
    • दंड: उल्लंघनों के लिए €35 मिलियन या वैश्विक राजस्व का 7% तक।
  • समय-सीमा: 6 महीने के भीतर निषिद्ध उपयोगों पर प्रतिबंध; वर्ष 2026 के मध्य तक पूर्ण व्यवस्था लागू।
  • वैश्विक प्रभाव: इसे अमेरिका, चीन, भारत, जापान, ब्राजील, संयुक्त अरब अमीरात और अन्य देशों के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) कानूनों का मसौदा तैयार करने के एक मॉडल के रूप में देखा जा रहा है।

यूरोप के लिए संयुक्त राष्ट्र आर्थिक आयोग (United Nations Economic Commission for Europe -UNECE) और AI

  • परिवहन, व्यापार, पर्यावरण और डिजिटलीकरण के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय मानदंड और मानक विकसित करता है।
  • AI प्रशासन के संदर्भ में, UNECE सदस्य देशों को नियामक दृष्टिकोण साझा करने हेतु एक नीति मंच प्रदान करता है।
    • सीमा-पार एकरूपता सुनिश्चित करने के लिए डिजिटल और AI मानकों का सामंजस्य।
    • स्थायित्व और अधिकारों के अनुरूप सुरक्षित AI अपनाने में विकासशील देशों का समर्थन।
  • महत्त्व: जबकि यूरोपीय संघ, AI अधिनियम यूरोप के लिए बाध्यकारी नियम निर्धारित करता है, UNECE, AI नैतिकता, सुरक्षा और स्थिरता पर व्यापक संयुक्त राष्ट्र-स्तरीय संवाद को आकार देने में मदद करता है।

निष्कर्ष

विकसित भारत के लिए AI रोडमैप, AI को राष्ट्रीय विकास की अनिवार्यता मानता है, जिसका उद्देश्य विकास अंतराल को कम करना और लचीले उद्योगों का निर्माण करना है। सफलता, नवाचार को समावेशिता के साथ और गति को स्थिरता के साथ संतुलित करने पर निर्भर करेगी। इन पहलों की शुरुआत वर्ष 2047 तक एक तकनीकी रूप से सशक्त विकसित भारत के निर्माण हेतु सरकार, उद्योग और नवप्रवर्तकों को एकजुट करते हुए सामूहिक कार्रवाई का आह्वान करता है।

संदर्भ

हाल ही में नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (भारत सरकार) ने भारत की पहली राष्ट्रीय भू-तापीय ऊर्जा नीति अधिसूचित की, जिसका उद्देश्य देश में अप्रयुक्त भू-तापीय संसाधनों के उपयोग को प्रोत्साहित करना है।

भारत की पहली राष्ट्रीय भू-तापीय ऊर्जा नीति (2025) के बारे में

  • स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा: यह नीति वर्ष 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन प्राप्त करने के भारत के रोडमैप के अनुरूप है और इसका उद्देश्य सौर एवं पवन ऊर्जा के अलावा नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाना है।
  • दृष्टिकोण एवं लक्ष्य
    • नवीकरणीय ऊर्जा को मुख्यधारा में लाना: भू-तापीय ऊर्जा को सौर, पवन, जैव ऊर्जा और जल विद्युत के साथ-साथ भारत के नवीकरणीय ऊर्जा मिश्रण का एक प्रमुख स्तंभ बनाना।
    • क्षमता का दोहन: 10,600 मेगावाट (MW) क्षमता का दोहन, ऊर्जा सुरक्षा में योगदान और विश्वसनीय बेस-लोड विद्युत उपलब्ध कराना।
    • डीकार्बोनाइजेशन मार्ग: भू-स्रोत ताप पंप (Ground Source Heat Pumps- GSHP) और प्रत्यक्ष-उपयोग अनुप्रयोगों के माध्यम से भवनों, उद्योगों, कृषि और शहरी स्थानों को डीकार्बोनाइज करना।
    • संस्थागत सुदृढ़ीकरण: एक मजबूत सार्वजनिक-निजी पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण, क्षमता निर्माण सुनिश्चित करना और वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाना।

  • पहचानी गई क्षमता
    • सर्वेक्षण और प्रांत: भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) ने लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़ और सोन-नर्मदा-ताप्ती क्षेत्र बेसिन (सोनाता बेसिन) सहित 381 गर्म झरनों और 10 भू-तापीय प्रांतों का मानचित्रण किया है।
    • उच्च-आंतरिक ऊर्जा क्षमता: पुगा-चुमाथांग (लद्दाख) जैसे स्थलों को विद्युत उत्पादन के लिए चिह्नित किया गया है।
    • मध्यम/निम्न-आंतरिक ऊर्जा अनुप्रयोग: मध्यम और निम्न तापीय प्रवणता वाले क्षेत्रों को ग्रीनहाउस तापन, जलीय कृषि और औद्योगिक प्रक्रियाओं जैसे प्रत्यक्ष उपयोगों के लिए लक्षित किया जाता है।
  • नीति की मुख्य विशेषताएँ
    • अन्वेषण एवं डेटा संग्रह: व्यवस्थित भू-वैज्ञानिक, भू-रासायनिक और भू-भौतिकीय सर्वेक्षणों के माध्यम से, केंद्रीय खान मंत्रालय, हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय (DGH) तथा CSIR–राष्ट्रीय भू-भौतिकीय अनुसंधान संस्थान (NGRI) के सहयोग से एक राष्ट्रीय भू-तापीय संसाधन डेटाबेस का निर्माण किया जाएगा।
    • परित्यक्त तेल एवं गैस कुओं का पुनरुद्देश्यीकरण: भू-तापीय निष्कर्षण हेतु निष्क्रिय कुओं के पुनर्निर्माण हेतु तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ONGC) और पेट्रोलियम कंपनियों के साथ सहयोग।
    • भू-स्रोत ऊष्मा पंप (GSHP): भू-तापमान (10-25 डिग्री सेल्सियस) का लाभ उठाते हुए, 24/7 तापन और शीतलन हेतु GSHP को बढ़ावा देना।
    • संयुक्त उद्यम: विशेषज्ञता और पूँजी जुटाने के लिए भू-तापीय विकासकर्ताओं, तेल कंपनियों और खनिज फर्मों के बीच साझेदारी को प्रोत्साहित करना।
    • राजकोषीय प्रोत्साहन: कर छूट, त्वरित मूल्यह्रास, आयात शुल्क छूट, रियायती भूमि पट्टे, व्यवहार्यता अंतर निधि (VGF) और निवेशों को जोखिम मुक्त करने के लिए हरित बॉण्ड जारी करना।
    • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI): भू-तापीय ऊर्जा में 100% तक FDI की अनुमति है, रियायती ऋण और बहुपक्षीय वित्तपोषण को प्रोत्साहित किया जाएगा।

    • परियोजना अवधि: भू-तापीय परियोजनाओं को 30 वर्षों के लिए समर्थन दिया जाएगा, संसाधन उपलब्धता के आधार पर विस्तार किया जा सकता है।
    • प्रत्यक्ष अनुप्रयोग: यह नीति विद्युत उत्पादन के अलावा, शीत भंडारण, बागवानी, ग्रीनहाउस तापन, जलीय कृषि और भू-पर्यटन में उपयोग को बढ़ावा देती है।
    • उपोत्पाद और खनिज: खान और खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 के तहत भू-तापीय तरल पदार्थों से लीथियम, सिलिका और बोरॉन जैसे मूल्यवान खनिजों के निष्कर्षण की अनुमति है।
    • पर्यावरणीय सुरक्षा उपाय: स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए पर्यावरण संरक्षण अधिनियम (1986), वन संरक्षण अधिनियम (1980) और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (1972) का अनुपालन किया गया है।

भू-तापीय ऊर्जा के बारे में

  • परिभाषा: भू-तापीय ऊर्जा, पृथ्वी की पर्पटी के नीचे संचित ऊष्मा को संदर्भित करती है, जो मुख्य रूप से रेडियोधर्मी क्षय और मैग्मा की गति के माध्यम से उत्पन्न होती है।
    • यह ऊष्मा गर्म जल भंडारों, प्राकृतिक भाप या गर्म चट्टान संरचनाओं के माध्यम से प्राप्त की जा सकती है।
  • अनुप्रयोग: इसका उपयोग विद्युत उत्पादन, तापन और शीतलन प्रणालियों, औद्योगिक प्रक्रियाओं और जल शोधन के लिए किया जाता है।
    • सौर और पवन ऊर्जा, जो अस्थायी हैं, के विपरीत, भू-तापीय ऊर्जा निरंतर, आधार-भार नवीकरणीय ऊर्जा प्रदान करती है।
  • प्रयुक्त प्रौद्योगिकियाँ: विद्युत संयंत्रों में प्रयुक्त तीन प्रमुख प्रौद्योगिकियाँ हैं:
    • शुष्क भाप संयंत्र: टरबाइनों को घुमाने के लिए सीधे भू-तापीय भाप का उपयोग करते हैं।
    • फ्लैश स्टीम संयंत्र: उच्च दाब युक्त गर्म जल का उपयोग करते हैं, जो तेजी से वाष्पीकृत होकर भाप में बदल जाता है।
    • बाइनरी साइकिल संयंत्र: कम क्वथनांक वाले द्वितीयक द्रव को गर्म करने के लिए मध्यम गर्म जल (200°C से कम) का उपयोग करते हैं, जो फिर टरबाइन को चलाता है।

भारत का भू-तापीय ऊर्जा परिदृश्य

  • भू-तापीय एटलस (2022): भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण (Geological Survey of India- GSI) ने एक भू-तापीय एटलस प्रकाशित किया है, जिसमें देश भर में 381 तापीय रूप से असामान्य क्षेत्रों की पहचान की गई है।
  • अनुमानित क्षमता: भारत में अनुमानित 10,600 मेगावाट (MW) भू-तापीय ऊर्जा क्षमता है, जो हिमालय, गुजरात, महाराष्ट्र, सोनाटा बेसिन, गोदावरी बेसिन और पूर्वोत्तर राज्यों सहित विविध भू-वैज्ञानिक क्षेत्रों में विस्तृत है।
  • प्रमुख जलाशय
    • पुगा-चुमाथांग क्षेत्र (लद्दाख): 240°C तक के उच्च तापमान वाले जलाशय, जो फ्लैश या बाइनरी पॉवर प्लांट के लिए उपयुक्त हैं।
      • भारत की पहली और विश्व की सबसे ऊँची भू-तापीय ऊर्जा परियोजना लद्दाख की पुगा घाटी में विकसित की जा रही है। तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ONGC) 14,000 फीट से अधिक की ऊँचाई पर इस परियोजना का क्रियान्वयन कर रहा है।
    • तातापानी-सूरजकुंड बेल्ट (छत्तीसगढ़/झारखंड): मध्यम आंतरिक ऊर्जा क्षेत्र (110-150 °C)।
    • कैम्बे बेसिन (गुजरात): मध्यम से उच्च आंतरिक ऊर्जा, जिसमें विद्युत और प्रत्यक्ष-उपयोग दोनों अनुप्रयोगों की संभावना है।

भू-तापीय ऊर्जा की अंतरराष्ट्रीय प्राथमिकता

  • वैश्विक क्षमता बेंचमार्क: वर्ष 2024 के अंत तक, विश्व की स्थापित भू-तापीय क्षमता 15.4 गीगावाट (GW) थी, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका, इंडोनेशिया और फिलीपींस सबसे आगे थे।
  • जर्मनी में ऊर्जा परिवर्तन: जर्मनी अपने वर्ष 2030 के नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए भू-तापीय परियोजनाओं को तेजी से आगे बढ़ा रहा है और भू-तापीय ऊर्जा को पवन एवं सौर ऊर्जा के एक विश्वसनीय पूरक के रूप में देख रहा है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका और बड़ी तकनीकी कंपनियाँ: संयुक्त राज्य अमेरिका में, बड़ी तकनीकी कंपनियाँ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) डेटा केंद्रों को ऊर्जा प्रदान करने के लिए कम कार्बन युक्त भू-तापीय विद्युत का तेजी से अन्वेषण कर रही हैं, जो डिजिटल बुनियादी ढाँचे के भविष्य में इसकी भूमिका को दर्शाता है।
    • कैलिफोर्निया स्थित गीजर कॉम्प्लेक्स विश्व का सबसे बड़ा भू-तापीय क्षेत्र है, जो लगभग 1,500 मेगावाट विद्युत का उत्पादन करता है और लाखों घरों को स्वच्छ विद्युत प्रदान करता है।
  • केन्या: ओलकारिया भू-तापीय कॉम्प्लेक्स लगभग 989 मेगावाट विद्युत उत्पन्न करता है, जो केन्या की लगभग 40% विद्युत की माँग को पूरा करता है, जिससे यह अफ्रीका के नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में अग्रणी बन गया है।
  • तुर्की: 2 गीगावाट (GW) की स्थापित भू-तापीय क्षमता के साथ, तुर्की दुनिया के शीर्ष पाँच उत्पादकों में से एक है और ग्रीनहाउस तथा तापन प्रणालियों के लिए भी भू-तापीय ऊर्जा का व्यापक रूप से उपयोग करता है।
  • आइसलैंड: लगभग 100% घरों को भू-तापीय ऊर्जा से विद्युत की आपूर्ति की जाती है। रेक्जानेस पॉवर प्लांट अकेले उच्च तापमान वाले जलाशयों से 130 मेगावाट विद्युत उत्पन्न करता है।

भू-तापीय ऊर्जा का सामरिक और सामाजिक-आर्थिक महत्त्व

  • स्वच्छ एवं विश्वसनीय बेस-लोड पावर: 24×7 विद्युत प्रदान करती है, ग्रिड स्थिरता, ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करती है और महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे को ऊर्जा प्रदान करती है। साथ ही 99% कम CO₂ उत्सर्जन करती है तथा नेट जीरो 2070 और पेरिस समझौते के लक्ष्यों का समर्थन करती है।
  • ऊर्जा सुरक्षा और कम जीवाश्म निर्भरता: परित्यक्त तेल और गैस कुओं का पुन: उपयोग करती है, कोयले और पेट्रोलियम पर निर्भरता कम करती है, आयात बिलों में कटौती करती है और रणनीतिक स्वायत्तता को बढ़ाती है।
  • आर्थिक विकास और ग्रामीण विकास: भू-पर्यटन, औद्योगिक तापन, ग्रीनहाउस खेती, जलीय कृषि और शीत भंडारण को सक्षम बनाती है, रोजगार सृजन, एमएसएमई के लिए अवसर और ग्रामीण आय के स्रोत उत्पन्न करती है। साथ ही दूरस्थ विद्युतीकरण और संतुलित क्षेत्रीय विकास को भी बढ़ावा देती है।
  • खनिज एवं तकनीकी लाभ: हॉट ब्राइन में लीथियम, सिलिका, बोरॉन और सीजियम होते हैं, जो ईवी बैटरी और इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योगों का समर्थन करते हैं; यह AI-संचालित शीतलन, हरित हाइड्रोजन उत्पादन और कार्बन कैप्चर के साथ एकीकृत होकर अगली पीढ़ी के ऊर्जा नवाचारों को बढ़ावा देती है।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता और सहयोग: भारत को नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में अग्रणी बनाती है, अमेरिका, इंडोनेशिया और फिलीपींस जैसे भू-तापीय केंद्रों के साथ संरेखित करती है, जलवायु कूटनीति को मजबूत करती है, और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को सक्षम बनाती है।

भू-तापीय ऊर्जा में वैश्विक पहल

  • अंतरराष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसी (International Renewable Energy Agency-IRENA): भू-तापीय ऊर्जा का दोहन करने वाले देशों के लिए क्षमता निर्माण, नीतिगत मार्गदर्शन और तकनीकी विशेषज्ञता प्रदान करती है।
  • विश्व बैंक भू-तापीय विकास कार्यक्रम: विकासशील देशों के लिए वित्तपोषण, जोखिम न्यूनीकरण निधि और व्यवहार्यता अध्ययन सहायता प्रदान करता है।
  • यूरोपीय संघ ग्रीन डील: सीमा-पार नवाचार निधि और नवीकरणीय ऊर्जा एकीकरण परियोजनाओं के माध्यम से भू-तापीय ऊर्जा विस्तार का समर्थन करता है।

भारत में भू-तापीय ऊर्जा के लिए नीति और संस्थागत ढाँचा

  • राष्ट्रीय भू-तापीय ऊर्जा नीति (2025): नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (Ministry of New and Renewable Energy- MNRE) द्वारा घोषित, यह नीति अन्वेषण, प्रायोगिक परियोजनाओं, परित्यक्त तेल कुओं के उपयोग, निजी निवेश प्रोत्साहन और विदेशी सहयोग के लिए एक राष्ट्रीय ढाँचा प्रदान करती है।
  • अनुसंधान एवं विकास (Research and Development- R&D): MNRE नवीकरणीय ऊर्जा अनुसंधान एवं प्रौद्योगिकी विकास कार्यक्रम डेटा संग्रह, संसाधन मानचित्रण, व्यवहार्यता अध्ययन और प्रायोगिक संयंत्रों के लिए धन उपलब्ध कराती है। उन्नत ड्रिलिंग और उन्नत भू-तापीय प्रणालियों के लिए IIT बॉम्बे और ONGC ऊर्जा केंद्र के साथ सहयोग जारी है।
  • संस्थागत तंत्र: वर्ष 2024 में, MNRE ने भू-तापीय ऊर्जा पर एक राष्ट्रीय कार्यबल की स्थापना की ताकि एक रोडमैप तैयार किया जा सके, तकनीकी मानक बनाए जा सकें और निवेशक जोखिम कम किए जा सकें।
  • राज्य-स्तरीय नीतियाँ
    • उत्तराखंड: उत्तराखंड सरकार ने तापन, शीतलन, जल शोधन और विद्युत उत्पादन में अनुप्रयोगों को प्रोत्साहित करने के लिए भू-तापीय ऊर्जा नीति-2025 प्रस्तुत की है।
      • यह नीति विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने के लिए 50% वित्तीय सहायता भी प्रदान करती है।
    • गुजरात और लद्दाख: आगामी परियोजनाओं के लिए विशेष रूप से कैम्बे बेसिन और पुगा घाटी प्राथमिकता क्षेत्रों के रूप में पहचाने गए हैं।

भारत में भू-तापीय ऊर्जा के दोहन में चुनौतियाँ

  • उच्च पूँजीगत लागत: ड्रिलिंग और अन्वेषण के लिए महत्त्वपूर्ण अग्रिम निवेश की आवश्यकता होती है।
    • उदाहरण: कैम्बे बेसिन (गुजरात) की पायलट परियोजना, प्रारंभिक रुचि के बावजूद वित्तीय अव्यवहार्यता के कारण रुकी हुई थी।
  • अन्वेषण जोखिम: भू-वैज्ञानिक अनिश्चितताओं के कारण अनेक कुएँ व्यावसायिक रूप से अव्यवहार्य सिद्ध हो जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप अदृश्य लागतें (Sunk Costs) उत्पन्न होती हैं।
    • उदाहरण: वर्ष 2023 में लद्दाख के पुगा में भू-तापीय ड्रिलिंग अप्रत्याशित रूप से उच्च द्रव दबाव और मात्रा के कारण कुएँ के शीर्ष में विस्फोट के कारण रोक दी गई, जिससे ONGC ठेकेदार को परियोजना स्थगित करनी पड़ी।
  • दूरस्थ स्थान: लद्दाख के पुगा जैसे उच्च-संभावित स्थलों को कठिन भू-भाग, ऊँचाई और बुनियादी ढाँचे की कमी जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे विद्युत निकासी महँगी हो जाती है।
  • उच्च-संभावित भू-तापीय स्थल मुख्यतः टेक्टॉनिक प्लेट सीमाओं तक ही सीमित हैं, जिससे व्यापक तैनाती सीमित हो जाती है और दूरस्थ क्षेत्रों में संसाधनों की पहुँच एवं विद्युत निकासी एक बड़ी चुनौती बन जाती है।
  • नियामक बाधाएँ: भूमि अधिग्रहण, पर्यावरणीय मंजूरी और अंतर-एजेंसी समन्वय में देरी से परियोजना अनुमोदन में देरी होती है।
    • उदाहरण: गुजरात में कैम्बे संयुक्त उद्यम (ONGC-टैलबूम) परियोजना वर्ष 2012 में वैधानिक अनुमोदनों में देरी और भूमि उपयोग अधिकारों के अनसुलझे होने के कारण रुकी हुई थी, जिससे नियामकीय अड़चनें और भी बढ़ गईं।
  • सीमित विशेषज्ञता और अनुसंधान एवं विकास: सौर और पवन ऊर्जा के विपरीत, भारत में प्रशिक्षित भू-तापीय पेशेवर कम हैं। इसके अलावा, MNRE के तहत भू-तापीय ऊर्जा के लिए वार्षिक बजट आवंटन सौर/पवन अनुसंधान एवं विकास (MNRE रिपोर्ट, वर्ष 2024) की तुलना में न्यूनतम रहता है।
  • पर्यावरणीय जोखिम: जोखिमों में भू-स्खलन, भू-तापीय तरल पदार्थों से भूजल का संभावित संदूषण तथा वैज्ञानिक रूप से प्रबंधित न की गई ड्रिलिंग से उत्पन्न भूकंपीय चिंताएँ शामिल हैं।
  • वित्तपोषण अंतराल: नवीकरणीय ऊर्जा प्रमाण-पत्रों (Renewable Energy Certificates -REC) या मुख्यधारा के हरित वित्त के अंतर्गत शामिल नहीं, जिससे निजी रुचि सीमित होती है (केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग)।

आगे की राह

  • समर्पित प्राधिकरण: एकल-विंडो मंजूरी प्रदान करने, अंतर-मंत्रालयी समन्वय को सुव्यवस्थित करने और नियामक देरी को कम करने के लिए एक राष्ट्रीय भू-तापीय विकास बोर्ड (NGDB) की स्थापना करना।
  • वित्तीय प्रोत्साहन: निजी निवेश को आकर्षित करने और उच्च अग्रिम जोखिमों को कम करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा प्रमाण-पत्र (REC), कार्बन क्रेडिट, अन्वेषण अनुदान, व्यवहार्यता अंतर निधि और रियायती ऋण प्रदान करना।
  • क्षमता निर्माण: कुशल कार्यबल तैयार करने के लिए IIT और हरित प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालयों में भू-तापीय इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम विकसित करना, साथ ही GSI और ONGC के साथ ऑन-फील्ड प्रशिक्षण भी प्रदान करना।
  • प्रौद्योगिकी एकीकरण: औद्योगिक और शहरी अनुप्रयोगों के लिए उन्नत भू-तापीय प्रणालियों (Enhanced Geothermal Systems- EGS), द्विआधारी चक्र संयंत्रों और भू-तापीय ऊर्जा को हाइड्रोजन भंडारण या ताप नेटवर्क के साथ संयोजित करने वाले हाइब्रिड समाधानों में निवेश करना।
  • वैश्विक साझेदारियाँ: प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, संयुक्त अनुसंधान, वित्तपोषण मॉडल और सर्वोत्तम अभ्यास अपनाने के लिए आइसलैंड, केन्या और जर्मनी के साथ सहयोग करना।
  • सामुदायिक सहभागिता: सामाजिक सहमति सुनिश्चित करने और विरोध को न्यूनतम करने के लिए लाभ-साझाकरण ढाँचे, स्थानीय रोजगार योजनाओं और पर्यावरण सुरक्षा उपायों को लागू करना।

निष्कर्ष

भारत की भू-तापीय ऊर्जा नीति-2025, नवीकरणीय ऊर्जा में विविधता लाने, स्वच्छ आधारभूत ऊर्जा सुनिश्चित करने और सतत् विकास, सहकारी संघवाद और जलवायु न्याय स्थापित करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। यह सतत् विकास लक्ष्य 7 (स्वच्छ ऊर्जा) और सतत् विकास लक्ष्य 13 (जलवायु कार्रवाई) के अनुरूप है और संवैधानिक नैतिकता को प्रगति का मार्गदर्शक बनाने के अंबेडकर के दृष्टिकोण को प्रतिध्वनित करती है।

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