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Sep 20 2025

EVM मतपत्रों के लिए दिशा-निर्देश

भारत निर्वाचन आयोग (ECI) ने निर्वाचन नियम, 1961 की धारा 49B के अंतर्गत दिशा-निर्देशों में संशोधन किया है, जिससे EVM मतपत्रों को अधिक पठनीय बनाया जा सके।

EVM  मतपत्रों में परिवर्तन

  • उम्मीदवारों के फोटोग्राफ: अब EVM  मतपत्रों पर उम्मीदवारों के रंगीन फोटोग्राफ मुद्रित किए जाएँगे, जिसकी शुरुआत बिहार चुनाव से होगी।
  • फोटो का आकार: उम्मीदवार के चेहरे का तीन-चौथाई हिस्सा फोटोग्राफ में दिखाई देगा ताकि स्पष्टता बढ़े।
  • अंक: उम्मीदवारों/NOTA के क्रमांक भारतीय अंकों के अंतरराष्ट्रीय रूप में, बोल्ड अक्षरों में, 30 के फॉन्ट साइज में मुद्रित किए जाएँगे।
  • नामों में एकरूपता: उम्मीदवारों/NOTA के नाम समान फॉन्ट प्रकार और आकार में मुद्रित किए जाएँगे ताकि एकरूपता बनी रहे।
  • कागज की गुणवत्ता: मतपत्र 70 GSM पेपर पर मुद्रित होंगे ताकि उनकी वहनीयता बढ़े।
  • रंग कोडिंग: विधानसभा चुनावों के लिए मतपत्र गुलाबी रंग के होंगे, जिनके लिए निर्धारित RGB मानों का उपयोग किया जाएगा।

निर्वाचन नियम, 1961 का धारा 49B: रिटर्निंग ऑफिसर द्वारा मतदान मशीन की तैयारी

  • भाषा और विवरण: बैलटिंग यूनिट में विवरण उसी/उन्हीं भाषा/भाषाओं में प्रदर्शित होंगे, जिन्हें भारत निर्वाचन आयोग ने निर्धारित किया है।
  • नामों का क्रम: उम्मीदवारों के नाम उसी क्रम में होंगे जैसा कि आधिकारिक उम्मीदवार सूची में दर्ज है।
  • नामों की समानता: यदि दो या अधिक उम्मीदवारों के नाम समान हैं तो उन्हें व्यवसाय, निवास या अन्य पहचान चिह्नों द्वारा अलग किया जाएगा।
  • रिटर्निंग ऑफिसर के कर्तव्य: अधिकारी उम्मीदवारों के नाम और प्रतीक अंकित करता है, यूनिट को सील करता है, उम्मीदवारों की संख्या सेट करता है और आवश्यक सीलों के साथ कंट्रोल यूनिट को सुरक्षित करता है।

महत्त्व

  • ये सुधार पिछले छह माह में भारत निर्वाचन आयोग द्वारा चुनावी प्रक्रियाओं को सरल बनाने और मतदाताओं की सुविधा बढ़ाने के लिए उठाए गए 28 पहलों का हिस्सा हैं।

इबोला

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में इबोला मामलों और इससे संबंधित मौतों की सूचना दी है।

इबोला वायरस रोग (EVD) के बारे में

  • इबोला: यह एक गंभीर एवं घातक विषाणुजनित रोग है, जो ऑर्थोइबोलावायरस (पूर्व में इबोलावायरस) के कारण होता है। इसका पहला मामला वर्ष 1976 में कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में मिला था।
    • इसका नाम इबोला नदी के नाम पर रखा गया है, जो उस गाँव के पास प्रवाहित होती है, जहाँ इसका पहला मामला देखा गया था।
  • प्रभावित प्रजातियाँ: इबोला मनुष्यों और अन्य प्राइमेट्स जैसे गोरिल्ला, चिंपांजी और बंदरों को प्रभावित करता है।
  • प्राकृतिक होस्ट: टेरोपोडिडी (Pteropodidae) फैमिली के ‘फ्रूट बैट इबोला वायरस के वाहक माने जाते हैं।
  • संक्रमण 
    • पशु से मानव में प्रसार: संक्रमण, संक्रमित जानवरों जैसे चमगादड़, गोरिल्ला, बंदर, वन्य मृग या साही के रक्त, स्राव या अंगों के संपर्क से फैलता है।
    • मानव से मानव में प्रसार: यह संक्रमण संक्रमित व्यक्तियों (यहाँ तक कि मृतक) के शारीरिक तरल पदार्थों के सीधे संपर्क से फैलता है।
  • चिकित्सकीय देखभाल: इसका कोई स्थायी उपचार नहीं है, रोगी के सीधे संपर्क में न आना, रक्त आधान और सहायक देखभाल पर ध्यान केंद्रित कर इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है।
  • स्वीकृत दवाएँ: इनमाजेब  (Inmazeb) और इबांगा (Ebanga) दो FDA-अनुमोदित मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज हैं, जिनका उपयोग इबोला वायरस रोग (EVD) के उपचार में किया जाता है।

इंडिया–AI इंपैक्ट समिट 2026 

भारत सरकार ने इंडिया–AI इंपैक्ट समिट 2026 के लिए लोगों और प्रमुख पहलों का अनावरण किया है। यह सम्मेलन फरवरी 2026 में नई दिल्ली के भारत मंडपम में आयोजित किया जाएगा।

‘इंडिया–AI इंपैक्ट’ समिट के बारे में

  • यह सम्मेलन पूर्व में आयोजित वैश्विक AI सम्मेलनों पर आधारित है, जिनका आयोजन बैलेचली पार्क, सियोल और पेरिस में हुआ था।
    • पेरिस में आयोजित AI एक्शन समिट तीसरा शिखर सम्मेलन था, जो ब्लेचली पार्क समिट (यूके 2023) और सियोल समिट (दक्षिण कोरिया 2024) के बाद हुआ।
  • यह “एक्शन” से “इंपैक्ट” पर ध्यान केंद्रित करने के रणनीतिक परिवर्तन को दर्शाता है।
  • इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य ठोस परिणाम हासिल करना, वैश्विक सहयोग को मजबूत करना एवं जिम्मेदार और बड़े पैमाने पर AI परिनियोजन सुनिश्चित करना है।
  • आयोजक: केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय।
  • उद्देश्य: सम्मेलन का लक्ष्य समावेशी विकास, स्थिरता और न्यायसंगत प्रगति में AI की परिवर्तनकारी भूमिका को प्रदर्शित करना है, जिससे भारत को जिम्मेदार AI नवाचार में वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित किया जा सके।

तीन सूत्र (सिद्धांत)

  • लोग (People): AI को मानवता की सेवा करनी चाहिए, गरिमा की रक्षा करनी चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई पीछे न छूटे।
  • पृथ्वी (Planet): AI को जलवायु लचीलापन, वैज्ञानिक खोज और संसाधन दक्षता को बढ़ावा देकर वैश्विक सतत् विकास लक्ष्यों के अनुरूप होना चाहिए।
  • प्रगति (Progress): कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) को न्यायसंगत लाभ सुनिश्चित करते हुए कंप्यूट संसाधनों एवं डाटा सेट्स तक लोकतांत्रिक पहुँच प्रदान करनी चाहिए तथा स्वास्थ्य, शिक्षा, शासन एवं कृषि जैसे क्षेत्रों में प्रगति को प्रोत्साहित करना चाहिए।

सात विषयगत चक्र

  • मानव पूँजी: कार्यबल परिवर्तन, कौशल एवं भविष्य की क्षमताओं तक न्यायसंगत पहुँच को संबोधित करना।
  • सामाजिक सशक्तीकरण हेतु समावेश: बहुभाषी और सुलभ AI को बढ़ावा देना, सांस्कृतिक, लैंगिक और डेटा पूर्वाग्रहों को समाप्त करना।
  • सुरक्षित और विश्वसनीय AI: सुरक्षा परीक्षण, पारदर्शिता और अंतरसंचालित शासन उपकरण स्थापित करना।
  • लचीलापन, नवाचार और दक्षता: संसाधन-कुशल और अनुकूलनीय AI प्रणालियों को बढ़ावा देना।
  • विज्ञान: ग्लोबल साउथ में अंतः विषयक शोध और नवाचार में तेजी लाना।
  • AI संसाधनों का लोकतंत्रीकरण: विविध AI समाधानों के लिए डेटा, कंप्यूट और अवसंरचना तक न्यायसंगत पहुँच सुनिश्चित करना।
  • आर्थिक विकास और सामाजिक हित के लिए AI: सार्वजनिक हित वाले क्षेत्रों में AI अनुप्रयोगों का विस्तार करना और सीमा पार सहयोग को सक्षम बनाना।

AI को बढ़ावा देने हेतु सरकारी पहलें

  • स्वास्थ्य, कृषि, शासन और वैज्ञानिक खोज जैसे क्षेत्रों में आठ स्वदेशी फंडामेंटल मॉडल का शुभारंभ।
  • इंडिया AI मिशन के तहत 30 डेटा और AI प्रयोगशालाओं का शुभारंभ, जो 570-प्रयोगशालाओं के नेटवर्क की पहली शृंखला है, ताकि AI प्रशिक्षण का लोकतंत्रीकरण किया जा सके।
  • इंडिया AI फेलोशिप प्रोग्राम का विस्तार, जिसके तहत स्नातक, स्नातकोत्तर और डॉक्टरेट स्तर पर 13,500 शोधार्थियों को सहयोग प्रदान किया जाएगा।
  • प्रमुख आयोजन: AI पिच फेस्ट (उड़ान), AI इनोवेशन चैलेंज, AI एक्सपो, रिसर्च सिंपोजियम और ग्लोबल इनोवेशन चैलेंज।

ज्ञानेक्स (Gyanex) 

भारत ने गगनयान मिशन और भविष्य की अंतरिक्ष यात्राओं से पहले अपने अंतरिक्ष यात्री प्रोटोकॉल तैयार करने के लिए ज्ञानेक्स (Gyanex) के तहत एनालॉग स्पेस प्रयोगों की एक शृंखला शुरू की है।

ज्ञानेक्स के बारे में

  • गगनयान एनालॉग एक्सपेरिमेंट्स (Gyanex) आधारभूत स्तर पर किए जाने वाले सिमुलेशन हैं, जिन्हें इसरो (ISRO), ICMR और इंस्टिट्यूट ऑफ एयरोस्पेस मेडिसिन, बंगलूरू द्वारा संचालित किया जा रहा है।
  • उद्देश्य: सीमित वातावरण में मानव अंतरिक्ष उड़ान के चिकित्सीय, मनोवैज्ञानिक और टीमवर्क संबंधी पहलुओं का परीक्षण कर भारत के अंतरिक्ष यात्री प्रोटोकॉल विकसित करना।
  • घटक
    • कंफाइंड सिम्युलेटर (Confined Simulator): अंतरिक्ष यात्री और शोधकर्ता स्थिर मॉक स्पेसक्राफ्ट मॉड्यूल्स में रहते हैं, जहाँ अंतरिक्ष जैसी दिनचर्या और भोजन का अनुकरण किया जाता है।
    • वैज्ञानिक प्रयोग:क्रू मेंबर’ तनाव और एकांत में जैव-चिकित्सकीय तथा परिचालन संबंधी प्रयोग करते हैं।
    • बेड-रेस्ट अध्ययन: रक्षा कर्मी माइक्रोग्रैविटी के प्रभावों की नकल करने हेतु छह-डिग्री ‘हेड-डाउन’ झुकाव पर रखे जाते हैं।
    • आहार प्रोटोकॉल: रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) और नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन द्वारा विकसित भोजन का परीक्षण किया जाता है।
  • ज्ञानेक्स-1: जुलाई 2025 में, ग्रुप कैप्टन अंगद प्रताप और दो अन्य शोधकर्ताओं ने 10 दिन तक सीमित वातावरण में रहकर 11 वैज्ञानिक प्रयोग किए तथा महत्त्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक एवं चिकित्सकीय निष्कर्ष प्रकाशित किए।

अन्य अंतरिक्ष सिमुलेशन प्रयोग

  • नासा (अमेरिका): पैराबोलिक उड़ानों का उपयोग कर अल्पावधि माइक्रोग्रैविटी का सिमुलेशन।
  • ESA (यूरोप): सीमित वातावरणीय अध्ययन (Confined Environment Studies) में मानव व्यवहार, मनोविज्ञान एवं टीम-डायनमिक्स का आकलन।।
  • भारत के लद्दाख आधारित मिशन: हिमालयन आउटपोस्ट फॉर प्लेनेटरी एक्सप्लोरेशन (HOPE) आवास का परीक्षण ‘त्सो कार’ घाटी में किया गया, जिसमें मंगल ग्रह जैसी स्थितियाँ जैसे उच्च UV विकिरण और लवणीय पर्माफ्रॉस्ट की प्रतिकृति पाई गई।

भारत के अपने प्रयोगों का महत्त्व 

  • अनुकूलित प्रोटोकॉल: अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष यात्री मानक आधार प्रदान करते हैं, परंतु भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों के लिए उनके शारीरिक और सांस्कृतिक पहलुओं के अनुसार साक्ष्य-आधारित प्रशिक्षण आवश्यक है।
  • मनोवैज्ञानिक तैयारी: यह तनाव, एकांत एवं टीमवर्क जैसी परिस्थितियों हेतु चयन मानदंड निर्धारित करने और उपयुक्त प्रशिक्षण विकसित करने में सहायक है।
  • भविष्य के मिशन: लंबी अवधि की अंतरिक्ष उड़ानों, चंद्रमा पर आवास और अंतरग्रहीय अभियानों की नींव रखना।
  • आत्मनिर्भरता: भारत को स्वतंत्र रूप से अंतरिक्ष चिकित्सा और अंतरिक्ष यात्री स्वास्थ्य प्रणाली विकसित करने में सक्षम राष्ट्र के रूप में स्थापित करता है।

पेरियार टाइगर रिजर्व (PTR)

राज्य वित्त निरीक्षण रिपोर्ट ने केरल के पेरियार टाइगर रिजर्व (Periyar Tiger Reserve- PTR) में बड़े पैमाने पर वित्तीय अनियमितताओं का खुलासा किया है, जिसमें पर्यटन राजस्व को कल्याण कोष में अनधिकृत रूप से स्थानांतरित करना भी शामिल है।

पेरियार टाइगर रिजर्व (PTR) के बारे में

  • मुल्लापेरियार बाँध के निर्माण के बाद वर्ष 1895 में निर्मित, इसका नाम पेरियार नदी के नाम पर रखा गया है।
  • अवस्थिति: पेरियार टाइगर रिजर्व पश्चिमी घाट में केरल के इडुक्की जिले में अवस्थित है।
  • पहाड़ियाँ: यह रिजर्व तमिलनाडु सीमा से संलग्न कार्डामम पहाड़ियाँ एवं पंडालम पहाड़ियों के बीच अवस्थित है।
  • नदियाँ: पेरियार एवं पंबा नदियाँ इस रिजर्व में जल की मुख्य स्रोत हैं।
    • मुल्लापेरियार बाँध पेरियार टाइगर रिजर्व के भीतर अवस्थित है।
  • जनजातीय समुदाय: पेरियार टाइगर रिजर्व कई जनजातियों का निवास स्थल है, जिनमें मन्नान एवं पलियन समुदाय शामिल हैं, जो पारंपरिक रूप से जंगलों पर निर्भर हैं।
  • वनस्पतियाँ: वनस्पति प्रकारों में उष्णकटिबंधीय सदाबहार, अर्द्ध-सदाबहार, आर्द्र पर्णपाती, संक्रमणकालीन सीमांत सदाबहार वन, घास के मैदान एवं नीलगिरी की पहाड़ियाँ शामिल हैं।
  • वनस्पतियाँ: प्रमुख वनस्पतियों में सागौन, शीशम, आम, जामुन, बाँस, जकरंदा, इमली एवं शाही पोंसियाना शामिल हैं।
  • जीव-जंतु: प्रमुख जीवों में हाथी, बाघ, गौर, साँभर हिरण, जंगली सूअर, बार्किंग डियर एवं जंगली कुत्ते शामिल हैं।
    • यह लाइन टेल्ड मकॉक, नीलगिरी लंगूर, बोनेट मकॉक, सामान्य लंगूर एवं नीलगिरी तहर जैसे दुर्लभ प्राइमेट का भी निवास स्थल है।

संदर्भ

संयुक्त राज्य अमेरिका ने ईरान के चाबहार बंदरगाह से जुड़े प्रतिबंधों में छूट को 29 सितंबर से रद्द करने की घोषणा की है, जिससे इस क्षेत्र में भारत की कनेक्टिविटी और व्यापार योजनाएँ प्रभावित होंगी।

चाबहार बंदरगाह के बारे में

  • परिचय: चाबहार बंदरगाह भारत एवं ईरान द्वारा संयुक्त रूप से विकसित एक रणनीतिक बंदरगाह है।
  • स्थान: ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में, होर्मुज जलडमरूमध्य के पूर्व में, ओमान की खाड़ी में अवस्थित है।

  • भारत के लिए महत्त्व
    • पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए, अफगानिस्तान एवं मध्य एशिया तक प्रत्यक्ष पहुँच प्रदान करता है।
    • यह अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (International North–South Transport Corridor- INSTC) का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।
    • इसका प्रयोग अफगानिस्तान को गेहूँ एवं ईरान को कीटनाशकों सहित मानवीय सहायता पहुँचाने के लिए किया जाता है।

चाबहार बंदरगाह विकास की समय-रेखा

  • वर्ष 2003: भारत एवं ईरान ने चाबहार बंदरगाह के विकास हेतु एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए।
  • वर्ष 2016: भारत, ईरान एवं अफगानिस्तान ने क्षेत्रीय संपर्क के लिए एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए।
  • वर्ष 2018: इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (IPGL) ने शाहिद बेहश्ती टर्मिनल का संचालन प्रारंभ किया, अमेरिका ने अफगान पुनर्निर्माण का हवाला देते हुए IFCA के तहत छूट प्रदान की।
  • वर्ष 2019-2021: अफगानिस्तान में भारतीय मानवीय सहायता शिपमेंट के लिए बंदरगाह का प्रयोग किया गया।
  • वर्ष 2024-2025: भारत ने चाबहार के संचालन के लिए ईरान के साथ 10-वर्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसमें 120 मिलियन डॉलर के निवेश एवं 250 मिलियन डॉलर के वित्तपोषण का वादा किया गया।
    • वर्तमान विस्तार में बंदरगाह की क्षमता को 5,00,000 TEU तक बढ़ाना एवं इसे 700 किलोमीटर लंबी रेल लाइन के माध्यम से जाहेदान से जोड़ना शामिल है।
  • सितंबर 2025: ट्रंप प्रशासन ने ईरान पर ‘अधिकतम दबाव’ की रणनीति के तहत चाबहार बंदरगाह प्रतिबंधों से दी गई छूट को समाप्त कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप भारत के संचालन तथा रणनीतिक व्यापार मार्ग प्रभावित हुए।

प्रतिबंधों के निहितार्थ

  • प्रभाव: इसका सीधा प्रभाव भारत की सरकारी स्वामित्व वाली इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (IPGL) पर पड़ेगा, जो वर्ष 2018 से बंदरगाह पर शाहिद बेहश्ती टर्मिनल का प्रबंधन कर रही है।
  • भारत की परियोजनाओं पर प्रभाव: इससे भारत के वर्तमान संचालित विकास, रेलवे कनेक्टिविटी और नियोजित विस्तार को खतरा है।
  • भू-राजनीतिक प्रभाव: यह अफगानिस्तान एवं मध्य एशिया तक भारत की पहुँच को सीमित करता है, जिससे पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए एक वैकल्पिक व्यापार मार्ग की प्रभावशीलता कम हो जाती है।
    • चाबहार ने चीन के क्षेत्रीय प्रभुत्व के लिए एक रणनीतिक प्रतिकार के रूप में कार्य किया, विशेष रूप से पाकिस्तान में चीन समर्थित ग्वादर बंदरगाह के संबंध में।
      • ये बंदरगाह केवल 170 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं।

निष्कर्ष

चाबहार छूट को रद्द करने से भारत के रणनीतिक संपर्क लक्ष्य कमजोर होंगे, क्षेत्रीय पहुँच कमजोर होगी तथा अस्थिर भू-राजनीति पर निर्भरता बढ़ेगी, जिससे पाकिस्तान एवं चीन के प्रभाव के प्रति उसकी प्रति संतुलन प्रक्रिया को चुनौती मिलेगी।

संदर्भ

हाल ही में अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने बेंचमार्क ब्याज दर सीमा को 25 आधार अंकों से घटाकर 4-4.25% कर दिया, जो नौ महीनों तक स्थिर रहने के बाद पहली बार दरों में कटौती है।

फेड दर में कटौती क्या है?

  • फेडरल फंड्स दर वह ब्याज दर है, जिस पर अमेरिका में वाणिज्यिक बैंक एक-दूसरे को ओवरनाइट अवधि के लिए आरक्षित निधि उधार देते हैं।
  • यह अमेरिकी फेडरल रिजर्व (फेड) द्वारा निर्धारित की जाती है एवं अमेरिकी अर्थव्यवस्था में उधारी लागत के लिए बेंचमार्क के रूप में कार्य करती है।

ब्याज दरों में कटौती के कारण: फेड के दोहरे अधिदेश, मूल्य स्थिरता और अधिकतम रोजगार के बीच संतुलन बनाना।

  • श्रम बाजार में कमी
    • अगस्त में गैर-कृषि वेतनभोगी रोजगार में केवल 22,000 की वृद्धि हुई, जो संभावना से कम है।
    • फेड ने कहा कि “नौकरियों में वृद्धि धीमी हो गई है” एवं बेरोजगारी बढ़ रही है, जिससे रोजगार के लिए नकारात्मक जोखिम बढ़ रहे हैं।
  • मुद्रास्फीति का दबाव
    • मुद्रास्फीति (PCI  सूचकांक) अप्रैल में 2.2% से बढ़कर जुलाई में 2.6% हो गई।
    • वर्ष 2025 के लिए मुद्रास्फीति का पूर्वानुमान 3% पर अपरिवर्तित।
    • वर्ष 2026 के लिए पूर्वानुमान को 2.4% से संशोधित कर 2.6% कर दिया गया।
    • मुद्रास्फीति के वर्ष 2028 तक ही 2% के लक्ष्य तक पहुँचने की संभावना है।

व्यक्तिगत उपभोग व्यय (Personal Consumption Expenditures- PCE)

  • PCE मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति का एक प्रमुख माप है, जो अमेरिकी उपभोक्ताओं द्वारा खरीदी गई वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमतों में औसत परिवर्तन पर नजर रखता है।
  • इसे फेडरल रिजर्व का मुद्रास्फीति का मुख्य संकेतक माना जाता है।

अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में कटौती का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

  • पूँजी प्रवाह: अमेरिका में कम ब्याज दरें भारत को निवेशकों के लिए आकर्षक बनाती हैं, जिससे शेयरों एवं ऋण में FPI का प्रवाह बढ़ने, बाजार में तरलता में सुधार तथा बॉण्ड प्रतिफल में कमी आने की संभावना है।
  • रुपया एवं विनिमय दर: कमजोर डॉलर एवं मजबूत पूँजी प्रवाह के कारण रुपये की कीमत बढ़ सकती है, हालाँकि इससे निर्यात को नुकसान हो सकता है।
  • मुद्रास्फीति के प्रभाव: कमजोर डॉलर मूल्य आयातित मुद्रास्फीति (सस्ते कच्चे तेल एवं कमोडिटी) को सीमित कर सकता है, किंतु तरलता के अधिक प्रवाह से घरेलू स्तर पर मुद्रास्फीति का दबाव उत्पन्न होने की संभावना रहती है।
  • निर्यात एवं IT क्षेत्र: मजबूत रुपया निर्यात की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को कम करता है एवं डॉलर में अर्जित IT राजस्व को प्रभावित करता है, हालाँकि कमजोर मौद्रिक नीति से वैश्विक व्यापार में सुधार कुछ प्रभाव को कम कर सकता है।
  • व्यापक प्रभाव: कम वैश्विक ऋण लागत, भारत के बाह्य उधारी बोझ (External borrowing burden) को कम करती है, विदेशों में कॉरपोरेट धन उगाहने को प्रोत्साहित करती है और भारत की विकास कहानी में निवेशकों का विश्वास बढ़ाती है।

संदर्भ

हाल ही में विश्व व्यापार संगठन (WTO) ने वर्ल्ड ट्रेड रिपोर्ट 2025 जारी की है।

प्रमुख अनुमान

  • व्यापार में वृद्धि: AI के कारण वर्ष 2040 तक विश्व भर में सामान और सेवाओं का व्यापार लगभग 40% बढ़ सकता है।
  • GDP में बढोतरी: सभी संभावित स्थितियों में वैश्विक GDP में 12-13% की बढोतरी होने का अनुमान है।
  • डिजिटल सेवाएँ: AI संचालित डिजिटल सेवाओं (जैसे- AI टूल्स, IT सक्षम सेवाएँ) में सर्वाधिक (42%) वृद्धि होने की संभावना है।
  • व्यापार दक्षता: AI आपूर्ति शृंखला को बेहतर बनाता है, कस्टम्स को ऑटोमेट करता है, भाषा की बाधाओं को कम करता है और ‘मार्केट इंटेलिजेंस’ को मजबूत करता है।

कंपनियों और श्रमिकों पर प्रभाव

  • स्वीकार्यता अंतराल: बड़ी कंपनियों में 60% से अधिक कंपनियाँ AI का प्रयोग करती हैं, जबकि छोटी कंपनियों में यह आँकड़ा सिर्फ 41% है। 
  • वेतन
    • सभी श्रमिक समूहों की वास्तविक मजदूरी बढ़ने की संभावना है।
    • स्किल प्रीमियम: इसमें 3-4% की गिरावट का अनुमान है, क्योंकि AI कम कुशल श्रमिकों की तुलना में मध्यम और उच्च कुशल श्रमिकों के कार्यों को अधिक सीमा तक परिवर्तित कर देगा।

कौशल प्रीमियम

  • परिभाषा: ‘स्किल प्रीमियम’ कुशल श्रमिकों (जैसे- पेशेवर, इंजीनियर, विश्लेषक) और कम कुशल श्रमिकों (जैसे- शारीरिक श्रम करने वाले, सामान्य कार्य करने वाले) के वेतन में अंतर होता है।
  • मापन: इसे आमतौर पर कुशल श्रमिकों और कम कुशल श्रमिकों के वेतन के अनुपात के रूप में व्यक्त किया जाता है।
  • आर्थिक दृष्टिकोण
    • उच्च स्किल प्रीमियम का अर्थ है कि कुशल श्रम की माँग आपूर्ति की तुलना में अधिक है।
    • स्किल प्रीमियम में गिरावट का अर्थ है कि वेतन अंतर कम हो रहा है, जो प्रायः ऑटोमेशन/AI के कारण होता है, क्योंकि यह कुशल कार्यों की माँग को कम करता है, जबकि कुल वेतन में वृद्धि होती है।

चुनौतियाँ और चिंताएँ

  • डिजिटल डिवाइड: अगर कम आय वाली अर्थव्यवस्थाएँ डिजिटल अवसंरचना को अपग्रेड नहीं कर पाती हैं, तो आय में असमानता बढ़ सकती है।
  • बाजार पहुँच की समस्याएँ: कुछ कम आय वाली अर्थव्यवस्थाओं में AI से संबंधित सामान पर टैरिफ 45% तक है।
  • अन्य खतरा: WTO ने चेतावनी दी है कि इससे श्रमिक तथा संपूर्ण अर्थव्यवस्थाएँ पीछे रह सकती हैं, जिससे अंतरराष्ट्रीय व्यापार में तनाव उत्पन्न हो सकता है।

नीति संबंधी सुझाव

  • ग्लोबल AI गवर्नेंस: WTO ने समावेशी AI विकास के लिए इन तरीकों का सुझाव दिया है:
    • AI से संबंधित वस्तुओं और सेवाओं के लिए बेहतर मार्केट एक्सेस।
    • व्यापार से संबंधित AI नीतियों पर अधिक पारदर्शिता और संवाद।
  • समावेशी विकास: डिजिटल अवसंरचना और कौशल विकास में निवेश, भेदभाव रोकने के लिए अत्यावश्यक है।

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भारत के लिए अवसर

  • डिजिटल सेवाओं में लाभ: भारत पहले से ही IT और डिजिटल सेवाओं के क्षेत्र में वैश्विक शक्ति है (वर्ष 2023-24 में 250 अरब डॉलर से अधिक का निर्यात)। AI से होने वाली व्यापार वृद्धि (डिजिटल सेवाओं में 42%) से भारत को काफी लाभ हो सकता है।
  • लागत में दक्षता: AI टूल्स आपूर्ति शृंखला की पारदर्शिता बढ़ा सकते हैं और परिचालन लागत कम कर सकते हैं, जिससे भारत की व्यापार प्रतिस्पर्द्धा क्षमता बढ़ेगी।
  • नवोन्मेष और स्टार्ट-अप: भारत में 5,000 से अधिक AI पर केंद्रित स्टार्ट-अप हैं, AI पेटेंट में वृद्धि और वैश्विक सहयोग से भारत एक नवोन्मेष केंद्र बन सकता है।
  •  लघु और मध्यम उद्यम का एकीकरण: उचित समर्थन से, AI अपनाने से लघु और मध्यम उद्यम (SME) वैश्विक मूल्य शृंखला में शामिल हो सकते हैं।
  • कौशल विकास: भारत के बड़े युवा कार्यबल को AI से संबंधित कौशल में प्रशिक्षित किया जा सकता है, जिससे वैश्विक माँग को पूरा किया जा सकेगा।

जोखिम और चुनौतियाँ

  • डिजिटल डिवाइड: डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में असमानता से सभी को लाभ नहीं मिल पाएगा, SME कंपनियाँ AI अपनाने में पीछे हैं।
  • श्रम बाजार में परिवर्तन: AI से IT, BPO और फाइनेंशियल सर्विस जैसे क्षेत्रों में मध्यम और उच्च-कौशल वाली नौकरियाँ समाप्त हो सकती हैं, जो भारत में रोजगार के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
  • टैरिफ और मार्केट में बाधाएँ: कुछ अर्थव्यवस्थाओं में AI से संबंधित सामान पर आरोपित टैरिफ भारत की पहुँच को सीमित कर सकता है।
  • वैश्विक शासन: अगर WTO का AI शासन ढाँचा मुख्य रूप से विकसित देशों द्वारा तय किया जाता है, तो भारत को कुछ पाबंदियाँ झेलनी पड़ सकती हैं।
  • ‘स्किल्ड लेबर’ का वेतन कम होना: ‘स्किल्ड लेबर’ को प्राप्त होने वाले वेतन में कमी से भारत का व्हाइट-कॉलर जॉब मार्केट प्रभावित हो सकता है।

वर्ल्ड ट्रेड रिपोर्ट  के बारे में

  • वर्ल्ड ट्रेड रिपोर्ट एक वार्षिक प्रकाशन है, जो वैश्विक व्यापार के रुझान, व्यापार नीति संबंधी चुनौतियों और बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली की कार्यप्रणाली के बारे में जानकारी देता है।
  • जारीकर्ता: विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization- WTO)।
  • वर्ष 2025 की थीम: “सभी के लाभ के लिए व्यापार और AI को एक साथ कार्य करना (Making trade and AI work together to the benefit of all)” – वैश्विक व्यापार पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का प्रभाव।

संदर्भ

UN वूमेन और संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक मामलों का विभाग (United Nations Department of Economic & Social Affair-UN DESA]) ने जेंडर स्नैपशॉट 2025 रिपोर्ट जारी की।

प्रमुख वैश्विक निष्कर्ष

  • गरीबी: अनुमान है कि वर्ष 2030 तक 35.1 करोड़ महिलाएँ और लड़कियाँ चरम गरीबी में रहेंगी।
  • प्रगति में रुकावट: वर्ष 2020 से महिला गरीबी लगभग 10% पर ही बनी हुई है।
  • संघर्ष का खतरा: वर्ष 2024 में लगभग 67.6 करोड़ महिलाएँ एवं लड़कियाँ संघर्ष-प्रभावित क्षेत्रों से 50 किमी. के दायरे में निवास कर रही थीं, जो 1990 के दशक के पश्चात् सर्वाधिक है।
  • खाद्य असुरक्षा: वर्ष 2024 में पुरुषों की तुलना में 6.4 करोड़ अधिक महिलाएँ खाद्य असुरक्षा से जूझ रही थीं।
  • स्वास्थ्य और शिक्षा
    • मातृ मृत्यु दर: वर्ष 2000 के बाद 39% की कमी।
    • बाल विवाह: 18 वर्ष से पहले शादी करने वाली महिलाओं की संख्या 22% (2014) से घटकर 18.6% (2024) हो गई।
    • हिंसा: वर्ष 2024 में 15-49 वर्ष की 8 में से 1 महिला को अपने साथी से शारीरिक/लैंगिक हिंसा का सामना करना पड़ा।
  • प्रतिनिधित्व और कार्य
    • राजनीतिक नेतृत्व: दुनिया भर में संसद में एक-तिहाई से भी कम सीटें महिलाओं के पास हैं; 102 देशों में कभी भी महिला शासक/सरकार प्रमुख नहीं रही।
    • मैनेजमेंट की भूमिकाएँ: मौजूदा दर पर नेतृत्व में लैंगिक समानता हासिल करने में लगभग एक सदी लग सकती है।
    • बिना वेतन का काम: महिलाएँ, पुरुषों की तुलना में बिना वेतन वाले देखभाल और घरेलू कार्यों में 2.5 गुना अधिक समय बिताती हैं।

भारत का संदर्भ

  • राजनीतिक प्रतिनिधित्व: लोकसभा में 543 सीटों में से 82 सीटें (15%) महिलाओं के पास हैं; महिला आरक्षण विधेयक (2023) इसे लागू होने पर 33% तक बढ़ाने का लक्ष्य रखता है। 
  • नेतृत्व की भूमिकाएँ: न्यायपालिका, नौकरशाही और कॉरपोरेट बोर्डों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व अभी भी कम है।

डिजिटल विभाजन और आर्थिक प्रभाव

  • डिजिटल भेदभाव: वर्ष 2024 में इंटरनेट का प्रयोग – 70% पुरुष बनाम 65% महिलाएँ।
  • आर्थिक संभावना: डिजिटल अंतराल को कम करने से वर्ष 2050 तक 34.3 करोड़ महिलाओं को लाभ हो सकता है, 3 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकल सकते हैं और वर्ष 2030 तक वैश्विक GDP में 1.5 ट्रिलियन डॉलर की वृद्धि हो सकती है।

उभरते खतरे

  • जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन के कारण  वर्ष 2050 तक 15.8 करोड़ और महिलाएँ गरीबी की रेखा से नीचे जा सकती हैं।
  • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस: महिलाओं की नौकरियाँ पुरुषों की नौकरियों (21.1%) की तुलना में AI से अधिक प्रभावित हो सकती हैं (27.6%)।

नीति संबंधी सुझाव और कार्य योजना

  • UN का एक्शन के लिए आह्वान: शिक्षा, देखभाल अर्थव्यवस्था, ग्रीन जॉब्स और सामाजिक सुरक्षा में तेजी से कदम उठाने से वर्ष 2050 तक महिलाओं में चरम गरीबी 11 करोड़ तक कम हो सकती है।
  • आर्थिक लाभ: अगर लैंगिक समानता के लिए निवेश को प्राथमिकता दी जाए, तो इससे अनुमानित 342 ट्रिलियन डॉलर का कुल लाभ हो सकता है।
  • बीजिंग+30 एक्शन एजेंडा: UNGA से पहले, छह आवश्यक प्राथमिकताओं को फिर से दोहराया गया – हिंसा समाप्त करना, गरीबी समाप्त करना, समान नेतृत्व सुनिश्चित करना, जलवायु न्याय को बढ़ावा देना, डिजिटल समावेश और अधिकारों तक सार्वभौमिक पहुँच।
  • नेतृत्त्व संबंधी अपील: UN वूमेन ने सरकारों से लैंगिक समानता के लिए निवेश करने का आग्रह किया।

भारत में अपनाई गई नीतिगत और संस्थागत उपाय

  • सरकारी योजनाएँ: बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, स्टैंड-अप इंडिया, मुद्रा लोन और डिजिटल साक्षरता अभियान (दिशा) महिलाओं को सशक्त बनाने के उद्देश्य से प्रारंभ की गई हैं।
  • कानूनी सुधार: मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम, 2017 के तहत मातृत्व अवकाश की अवधि बढ़ाकर 26 सप्ताह कर दी गई।

जेंडर स्नैपशॉट रिपोर्ट के बारे में

  • प्रकाशितकर्ता: UN वूमेन और संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक मामलों का विभाग (UN DESA) ने मिलकर इसे प्रकाशित किया है।
  • उद्देश्य: इसे लैंगिक समानता और वर्ष 2030 के सतत् विकास एजेंडा से इसके संबंध पर डेटा का प्रमुख वैश्विक स्रोत माना जाता है।
  • कवरेज: 100 से अधिक डेटा स्रोतों के आधार पर, यह सभी 17 सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) में लैंगिक समानता की प्रगति की निगरानी करता है।

संदर्भ

संयुक्त राष्ट्र द्वारा गठित जाँच आयोग (COI) की रिपोर्ट में निष्कर्ष निकाला गया कि गाजा में इजरायल का सैन्य अभियान नरसंहार है और वर्ष 1948 के नरसंहार समझौते के तहत इजरायल के शीर्ष नेताओं को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया गया है।

संबंधित तथ्य

  • शामिल व्यक्ति: राष्ट्रपति इसाक हर्जोग, प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और पूर्व रक्षा मंत्री योआव गैलेंट।

संयुक्त राष्ट्र जाँच आयोग के निष्कर्ष

  • कानूनी आधार: ‘कन्‍वेंशन ऑन द प्रिवेन्शन ऐंड पनिशमेंट ऑफ द क्राइम ऑफ जेनोसाइड’ (1948) के तहत विश्लेषण।
  • जनसंहार के कृत्य
    • समूह के सदस्यों की हत्या: 60,199 फिलिस्तीनी मारे गए; 83% सामान्य नागरिक थे।
    • गंभीर शारीरिक/मानसिक क्षति पहुँचाना: यातना, यौन हिंसा, गैर-मानवीय व्यवहार और परिवार से अलग होने से होने वाली मनोवैज्ञानिक क्षति।
    • जीवन की खराब परिस्थितियाँ उत्पन्न करना: ‘पूर्ण घेराबंदी’ से भोजन, जल, ईंधन, दवा और विद्युत की आपूर्ति बंद; गाजा के कुछ हिस्सों में अकाल घोषित।
    • जन्म दर को रोकना: क्लिनिक और स्वास्थ्य सुविधाओं का विनाश, जिसे ‘प्रजनन हिंसा’ कहा गया।

जनसंहार के बारे में

  • इस शब्द की उत्पत्ति: यह शब्द वर्ष 1944 में पोलिश वकील राफेल लेमकिन द्वारा ग्रीक शब्द ‘जेनोस’ (जाति/वंश) और लैटिन शब्द ‘साइड’ (हत्या) को मिलाकर प्रस्तुत किया गया था।
    • इसे होलोकॉस्ट और अन्य लक्षित सामूहिक हत्याओं की घटनाओं के संदर्भ में बनाया गया था।
  • अंतरराष्ट्रीय कानून में मान्यता
    • वर्ष 1946 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इसे अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अपराध के रूप में मान्यता दी।
    • वर्ष 1948 में ‘कन्‍वेंशन ऑन द प्रिवेन्शन ऐंड पनिशमेंट ऑफ द क्राइम ऑफ जेनोसाइड’ में इसे शामिल किया गया।
    • 153 देशों ने इसे मंजूरी दी (अप्रैल 2022 तक)।
    • अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) ने यह पुष्टि की है कि जनसंहार पर प्रतिबंध सभी देशों के लिए अनिवार्य नियम (जस कोजेन्स) है।
  • अपराध के तत्त्व
    • मानसिक तत्त्व: समूह को पूरी तरह से नष्ट करने का विशिष्ट उद्देश्य (डोलस स्पेशियालिस)।
    • भौतिक तत्त्व: पाँच सूचीबद्ध कार्यों में से एक या अधिक कार्य करना।

‘कन्‍वेंशन ऑन द प्रिवेन्शन ऐंड पनिशमेंट ऑफ द क्राइम ऑफ जेनोसाइड’  (1948)

  • स्वीकृति: संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 9 दिसंबर, 1948 को इसे अपनाया; यह 12 जनवरी, 1951 को लागू हुआ।
  • जनसंहार की परिभाषा (अनुच्छेद-II): निम्नलिखित में से कोई भी कार्य, जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय, नृजातीय, नस्लीय या धार्मिक समूह को पूरी तरह या आंशिक रूप से नष्ट करना हो:
    • समूह के सदस्यों की हत्या करना।
    • गंभीर शारीरिक या मानसिक नुकसान पहुँचाना।
    • जानबूझकर ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न करना, जिससे विनाश हो।
    • जन्म नियंत्रण के लिए उपाय लागू करना।
    • समूह के बच्चों को जबरन दूसरे समूह में भेजना।
  • राज्यों के कर्तव्य: राज्यों को जनसंहार अपराध करने से बचना चाहिए और इसे रोकने तथा इसके लिए सजा देने के लिए कदम उठाने चाहिए, जिसमें घरेलू कानून बनाना और अपराधियों पर मुकदमा चलाना शामिल है।
  • अधिकार क्षेत्र: अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) इस कन्वेंशन की व्याख्या और कार्यान्वयन से संबंधित विवादों के लिए एक मंच है।
  • सदस्यता: 153 देशों ने इस कन्वेंशन को मंजूरी दी है।
  • भारत की स्थिति: भारत ने वर्ष 1949 में इस पर हस्ताक्षर किए और वर्ष 1959 में इसका अनुमोदन किया।
    • अनुमोदन के बावजूद, भारत ने जनसंहार पर कोई विशिष्ट कानून नहीं बनाया है।

संयुक्त राष्ट्र जाँच आयोग (COI)

  • स्वरूप: ये स्वतंत्र तथ्य-जाँच संस्थाएँ हैं, जिन्हें संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UN Human Rights Council [UNHRC]) या महासभा द्वारा स्थापित किया गया है।
    • इनमें कानूनी, मानवाधिकार और मानवीय मामलों के विशेषज्ञ (संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं) शामिल होते हैं।
  • उद्देश्य
    • संघर्ष या संकट की स्थितियों में अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून (International Humanitarian Law- IHL) और मानवाधिकार कानून के गंभीर उल्लंघनों की जाँच करना।
    • साक्ष्य एकत्रित करना, तथ्यों को स्थापित करना और कानूनी विश्लेषण प्रदान करना।
  • रिपोर्टिंग अथॉरिटी: रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र निकायों को भेजी जाती हैं, लेकिन वे बाध्यकारी निर्णय नहीं होतीं।
    • उदाहरण: दारफुर (2004), सीरिया (2011-), म्याँमार (2017-), यूक्रेन (2022-), और गाजा (2023-25)।
  • सीमाएँ
    • यह संयुक्त राष्ट्र का आधिकारिक दृष्टिकोण नहीं है।
    • यह निर्णय लागू नहीं कर सकता; कार्रवाई के लिए यह संयुक्त राष्ट्र निकायों (जैसे सुरक्षा परिषद, ICC, ICJ) और सदस्य देशों पर निर्भर है।
  • महत्त्व
    • अत्याचारों का प्रामाणिक दस्तावेजीकरण करना।
    • अंतरराष्ट्रीय सलाह, प्रतिबंध और कानूनी कार्यवाही पर प्रभाव डालना।
    • अंतरराष्ट्रीय आपराधिक कानून के तहत जवाबदेही को मजबूत करना।

विशेषता

अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ)

अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC)

स्थापना वर्ष 1945, संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत वर्ष 2002, रोम चार्टर के अनुसार
मुख्यालय हेग, नीदरलैंड्स हेग, नीदरलैंड्स
प्रकृति संयुक्त राष्ट्र का मुख्य न्यायिक अंग स्वतंत्र अंतरराष्ट्रीय ट्रिब्यूनल, संयुक्त राष्ट्र का अंग नहीं (हालाँकि संयुक्त राष्ट्र से इसका संबंध है)।
क्षेत्राधिकार राज्यों के बीच विवादों का निपटारा करता है; संयुक्त राष्ट्र के अंगों/एजेंसियों को सलाह देता है। लोगों को अपराधों (जनसंहार, युद्ध अपराध, मानवता के विरुद्ध अपराध, आक्रामकता) के लिए दंडित करता है।
संबंधित पक्ष केवल राज्य ही ICJ के समक्ष पक्षकार बन सकते हैं। व्यक्ति (राज्य नहीं) पर ICC के समक्ष मुकदमा चलाया जा सकता है।
अनिवार्य अधिकार क्षेत्र? यह स्वचालित नहीं है – यह राज्य की सहमति पर निर्भर करता है (संधियों, घोषणाओं या विशिष्ट मामलों पर समझौतों के माध्यम से)। सदस्य देशों के लोगों के लिए यह स्वतः लागू होगा या जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा इसकी सिफारिश की जाएगी।
मामलों के प्रकार संप्रभुता, सीमा और समुद्री विवाद, व्यापार, प्राकृतिक संसाधन, मानव अधिकार, संधि की व्याख्या और उल्लंघन। जनसंहार, मानवता के खिलाफ अपराध, युद्ध अपराध, आक्रामकता के अपराध।
भारत की अनुमोदन स्थिति हाँ नहीं।

संदर्भ

अनुसूचित जनजाति राष्ट्रीय आयोग (National Commission for Scheduled Tribes- NCST) ने एक विशेष समिति का गठन किया है, जो यह पता लगाएगी कि वर्ष 2005 की एक अधिसूचना के तहत जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा सौंपे गए आठ अतिरिक्त कार्यों को वह कैसे पूरा कर सकता है।

संस्थागत प्रतिक्रिया

  • शुरुआती कमियाँ (2005): NCST ने कहा कि इन कार्यों पर अध्ययन करने के लिए कर्मचारियों और धन की कमी के कारण वह “गंभीर रूप से अक्षम” था।
  • वार्षिक रिपोर्ट: जहाँ पहली वार्षिक रिपोर्ट (2005) में इन कर्तव्यों को पूरा करने में अपनी अक्षमता स्वीकार की गई थी, वहीं बाद की रिपोर्टों में इस विस्तारित कार्यक्षेत्र के लिए उठाए गए कदमों का कोई उल्लेख नहीं है, जिससे इस पर ध्यान न देने की बात सामने आती है।

अतिरिक्त कर्तव्य (जनजातीय कार्य मंत्रालय की वर्ष 2005 की अधिसूचना)

  • लघु वन उत्पादों पर अधिकार की रक्षा के लिए उपाय सुझाना।
  • जल और खनिज संसाधनों पर जनजातियों के अधिकारों की रक्षा करना।
  • जनजातियों की भूमि पर अतिक्रमण न होने देना।
  • जीविका के लिए व्यवहार्य तरीके सुझाना।
  • विकास परियोजनाओं से विस्थापित जनजातियों के पुनर्वास का मूल्यांकन करना।
  • PESA (1996) अधिनियम का पूर्ण कार्यान्वयन सुनिश्चित करना।
  • वन संरक्षण में जनजातियों की भागीदारी बढ़ाना।
  • स्थानांतरित खेती को कम करने और समाप्त करने के तरीके खोजना।

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) के बारे में

संवैधानिक स्थिति

  • व्यवस्था: वर्ष 2004 में, संविधान के अनुच्छेद-338A के तहत 89वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 के माध्यम से स्थापित किया गया।
  • NCSC से अलग होना: पहले, अनुच्छेद-338 के तहत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए एक ही आयोग था। संशोधन के बाद, ST से संबंधित मुद्दों पर ध्यान देने के लिए एक अलग NCST बनाया गया।
  • संरचना: अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और तीन अन्य सदस्य (कम-से-कम एक महिला)। सभी राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए जाते हैं।

अनुच्छेद-338A के तहत कार्य

  • सुरक्षा निगरानी: ST से संबंधित संवैधानिक और कानूनी सुरक्षा उपायों से संबंधित मामलों की जाँच करना।
  • जाँच अधिकार: अधिकारों और सुरक्षा उपायों से वंचित किए जाने संबंधी शिकायतों की जाँच करना।
  • सलाहकार भूमिका: ST के सामाजिक-आर्थिक विकास पर केंद्र और राज्य सरकारों को सलाह देना।
  • वार्षिक रिपोर्ट: राष्ट्रपति को रिपोर्ट प्रस्तुत करना; कार्रवाई विवरण के साथ संसद में प्रस्तुत करना।
  • कार्यक्रम मूल्यांकन: ST के लिए कल्याण योजनाओं के कार्यान्वयन की समीक्षा और निगरानी करना।

NCST की शक्तियाँ

  • सिविल कोर्ट की शक्तियाँ: गवाहों को बुलाना, उनकी पूछताछ करना, साक्ष्य लेना, सरकारी रिकॉर्ड माँगना और कमीशन जारी करना।
  • जाँच का अधिकार: यह स्वतः संज्ञान ले सकता है अथवा याचिका के आधार पर मामले उठा सकता है।
  • रिपोर्टिंग: यह सीधे राष्ट्रपति को रिपोर्ट करता है, जिससे संवैधानिक स्वायत्तता सुनिश्चित होती है।

चुनौतियाँ और सीमाएँ

  • स्टाफ की कमी: अभी केवल दो नामित सदस्य हैं, जबकि आवश्यक सदस्य संख्या पाँच होनी चाहिए; कोई स्थायी चेयरमैन या फाइनेंशियल एडवाइजर नहीं है।
  • प्रशासनिक कमजोरी: सीमित वित्तीय अधिकार, ऑफिस के लिए कम स्थल और सपोर्टिंग स्टाफ की कमी।
  • क्षेत्राधिकार का संघर्ष: कई आदिवासी समुदाय SC या OBC के रूप में भी वर्गीकृत हैं, जिससे लाभ पहुँचाना मुश्किल होता है और NCST के अधिकार क्षेत्र में कमी आती है।
  • केवल सलाहकारी भूमिका: सरकारें सिफारिशों को मानने के लिए बाध्य नहीं हैं, जिससे इन्हें लागू करने में मुश्किल होती है।

संदर्भ

जुलाई 2025 से भारत सरकार ने पोषण ट्रैकर ऐप (Poshan Tracker app) के माध्यम से आंगनवाड़ी लाभार्थियों के लिए फेशियल रिकॉग्निशन (Facial Recognition) अनिवार्य कर दिया है।

  • यद्यपि इस कदम का उद्देश्य लीकेज को रोकना था, लेकिन इससे श्रमिकों पर बोझ बढ़ने और बहिष्कार का खतरा था।

फेशियल रिकॉग्निशन टेक्नोलॉजी (Facial Recognition Technology- FRT) के बारे में

  • फेशियल रिकॉग्निशन टेक्नोलॉजी (FRT): एक एल्गोरिथम-आधारित बायोमेट्रिक प्रणाली है, जो किसी व्यक्ति के चेहरे की विशेषताओं की पहचान और मानचित्रण करके चेहरे का डिजिटल मानचित्र बनाती है।
    • इसके बाद उत्पन्न चेहरे के टेंपलेट का सत्यापन या पहचान के लिए डेटाबेस से मिलान किया जाता है।
  • ऑटोमेटेड फेशियल रिकॉग्निशन सिस्टम (Automated Facial Recognition System- AFRS): यह लोगों की पहचान करने हेतु एक बड़े डेटाबेस (फोटो और वीडियो) का उपयोग करता है।
  • कार्य
    • फेस कैप्चर (Face Capture): कैमरा चेहरे की एक छवि या वीडियो को कैप्चर करता है।
    • फीचर एक्सट्रैक्शन (Feature Extraction): सॉफ्टवेयर चेहरे के चिह्नों (आँखें, नाक, होंठ, गाल की हड्डियाँ, जबड़े की रेखा) का विश्लेषण करके एक अद्वितीय गणितीय निरूपण [‘फेशियल सिग्नेचर’ (Facial Signature)] तैयार करता है।
    • डेटाबेस स्टोरेज: फेशियल सिग्नेचर को किसी मौजूदा डेटाबेस में संगृहीत किया जाता है या उससे मिलान किया जाता है।
    • तुलना: सिस्टम AI एल्गोरिदम का उपयोग करके संगृहीत रिकॉर्ड के साथ समानता की जाँच करता है।
    • निर्णय: पहचान की पुष्टि (सत्यापन) करता है या किसी अज्ञात व्यक्ति की पहचान (पहचान) करता है।

आंगनवाड़ी सेवाओं में ‘फेशियल रिकॉग्निशन’

  • पृष्ठभूमि: वर्ष 2021 में, केंद्र सरकार ने पोषण संबंधी पहलों की निगरानी के लिए एक केंद्रीकृत एप्लिकेशन प्लेटफॉर्म, पोषण ट्रैकर (Poshan Tracker) लॉन्च किया।
    • आंगनवाड़ी कार्यकर्ता (Anganwadi worker- AWW) को अपने स्मार्टफोन पर पोषण ट्रैकर ऐप इंस्टॉल करना होगा और समय-समय पर बच्चों की पोषण स्थिति अपलोड करनी होगी।
  • कार्यान्वयन आवश्यकताएँ: लाभार्थियों को फेशियल रिकॉग्निशन सॉफ्टवेयर (FRS) के माध्यम से अपने चेहरे की पहचान करवानी होगी, जो अब इस ऐप के साथ एकीकृत है, अन्यथा गर्भवती/स्तनपान कराने वाली महिलाओं को ‘टेक होम राशन’ (Take Home Rations- THR) नहीं दिया जाएगा।
    • इस चरण तक पहुँचने के लिए: सबसे पहले e-KYC पूरा करना होता है, जहाँ महिला का आधार और बायोमेट्रिक विवरण दर्ज किया जाता है और OTP द्वारा सत्यापित किया जाता है।
  • उद्देश्य
    • कोई बच्चा या महिला भोजन पाने के लिए किसी और व्यक्ति की नकल न करने पाए और लाभ पंजीकृत व्यक्ति तक पहुँच सके।
    • आंगनवाड़ी कार्यकर्ता (AWW) या कोई भी व्यक्ति, बच्चे के भोजन का दुरूपयोग न करने पाए।

पोषण ट्रैकर (Poshan Tracker) के बारे में

  • यह केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (MoWCD) द्वारा शुरू की गई एक सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT) आधारित प्रणाली है।
  • आंगनवाड़ी केंद्रों पर विश्व स्वास्थ्य संगठन के विकास चार्ट और विकास मापक उपकरणों का उपयोग करके, 8.9 करोड़ बच्चों (0-6 वर्ष) के विकास और पोषण की वास्तविक समय में निगरानी करता है।
  • समय पर हस्तक्षेप के लिए कुपोषण और स्वास्थ्य समस्याओं की पहचान करने में मदद करता है।

चुनौतियाँ

  • कल्याणकारी योजनाओं के वितरण में विकृति: समय और संसाधन डिजिटल प्रमाणीकरण में लग जाते हैं, जिससे पोषण, शिक्षा या स्वास्थ्य सेवा जैसे सेवा परिणामों पर ध्यान कम हो जाता है।
    • उदाहरण: आंगनवाड़ी कार्यकर्ता पोषण ट्रैकर ऐप पर लाभार्थियों को प्रमाणित करने में घंटों बिताती हैं, जिससे प्रीस्कूल शिक्षा और स्वास्थ्य निगरानी के लिए कम समय बचता है।
    • उदाहरण: अनिवार्य नरेगा मोबाइल मॉनिटरिंग सेवा (NREGA Mobile Monitoring Service- NMMS) ऐप-आधारित उपस्थिति के कारण मनरेगा कर्मचारियों को देरी का सामना करना पड़ता है, जिससे वास्तविक कार्य पर ध्यान कम हो जाता है।
  • तकनीकी त्रुटियाँ और बुनियादी ढाँचे की कमी: ऐप क्रैश होना, खराब इंटरनेट, पुराने उपकरण और ऑफलाइन कार्यक्षमता की कमी विश्वसनीयता को कमजोर करती है।
    • उदाहरण: असम में, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने खराब कनेक्टिविटी और बार-बार होने वाली खराबी का हवाला देते हुए फेशियल रिकॉग्निशन सिस्टम (FRS) का विरोध किया।
    • उदाहरण: झारखंड में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) की दुकानों ने कमजोर कनेक्टिविटी के कारण आधार बायोमेट्रिक मिलान में गड़बड़ी की सूचना दी, जिससे वास्तविक परिवारों को राशन नहीं मिल पाया।
  • वास्तविक लाभार्थियों का बहिष्कार: मशीनों की खराबी (चेहरे का मेल न खाना, उँगलियों के निशानों में त्रुटि) कल्याणकारी योजनाओं तक पहुँच को सीधे तौर पर रोक देती है।
    • उदाहरण: बच्चों के बदलते चेहरे आंगनवाड़ियों में फेशियल रिकॉग्निशन सिस्टम (FRS) को भ्रमित करते हैं, जिससे माताओं को बार-बार आना पड़ता है और उनके कार्य में भी व्यवधान आ जाता है।
  • क्षमता और प्रशिक्षण में कमी: अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं को सीमित डिजिटल प्रशिक्षण दिया जाता है, उनमें समस्या निवारण कौशल का अभाव होता है और मशीनों की खराबी के कारण उत्पन्न अतिरिक्त कार्यभार के लिए उन्हें कोई मुआवजा नहीं प्रदान किया जाता है।
    • उदाहरण: कई आँगनवाड़ी कार्यकर्ता पोषण ट्रैकर ऐप के क्रैश होने पर उसे चलाने के लिए अपने बच्चों पर निर्भर रहती हैं।
  • अधिकार मशीन अनुमोदन तक सीमित: कल्याणकारी अधिकार, जैसे- NFSA और मनरेगा, अब बिना शर्त अधिकारों से परिवर्तित होकर, मशीन रिकॉग्निशन पर आधारित सशर्त लाभों के रूप में कार्यान्वित किए जा रहे हैं।
    • उदाहरण: यहाँ तक कि जब आंगनवाड़ी कार्यकर्ता सभी लाभार्थियों को व्यक्तिगत रूप से जानते भी हों, तब भी यदि ऐप प्रमाणीकरण से इनकार करता है, तो वे राशन वितरित नहीं कर सकते हैं।
  • कल्याण का अमानवीयकरण: कमजोर समूहों को नागरिकों के बजाय संदिग्ध माना जाता है, जिससे उनकी गरिमा और विश्वास कम होता है।
    • उदाहरण: FRS, जिसका उपयोग आमतौर पर आपराधिक जाँच में किया जाता है, अब आंगनवाड़ियों में महिलाओं और बच्चों पर उपयोग किया जा रहा है।
    • उदाहरण: सार्वजनिक वितरण प्रणाली में आधार-आधारित बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण, मशीन द्वारा सत्यापन न होने पर धोखाधड़ी मानकर लाभार्थियों को अपराधी बना देता है।
  • अनुचित प्राथमिकताएँ: ‘फर्जी लाभार्थियों’ जैसे मामूली मुद्दों को हल करने के लिए तकनीक का प्रयोग किया जाता है, जबकि कल्याणकारी योजनाओं में मुख्य समस्याएँ जैसे राशन की खराब गुणवत्ता, अनियमित आपूर्ति, स्थिर बजट (वर्ष 2018 से THR में प्रति बच्चा/दिन ₹8) और अनुबंधों में भ्रष्टाचार का समाधान नहीं किया गया है।
    • उदाहरण: आंगनवाड़ियों में, सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के बावजूद, पोषण गुणवत्ता में सुधार और स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से राशन आपूर्ति के विकेंद्रीकरण की तुलना में FRS को प्राथमिकता दी गई है।
  • प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन: मशीन आधारित सत्यापन प्रणालियाँ श्रमिकों और लाभार्थियों को निर्दोष साबित होने तक दोषी मानती हैं, जिससे कल्याणकारी योजनाओं में ‘दोषी सिद्ध होने तक निर्दोष’ होने का मूल सिद्धांत कमजोर पड़ता है।
    • उदाहरण: आंगनवाड़ी कार्यकर्ता FRS की विफलता को नजरअंदाज नहीं कर सकते, भले ही वे व्यक्तिगत रूप से लाभार्थियों की प्रामाणिकता का सत्यापन करते हों।

व्यापक निहितार्थ: स्वचालन और ध्रुवीकरण

  • स्वचालन के माध्यम से ध्रुवीकृत समाज: जो लोग तकनीक डिजाइन और नियंत्रित करते हैं (इंजीनियर, प्रशासक, ऐप डेवलपर) उनके पास सत्ता होती है।
    • श्रमिक वर्ग और लाभार्थी उन मशीनों पर निर्भर रह जाते हैं, जिन्हें वे नियंत्रित नहीं कर सकते, और तकनीक के विफल होने पर बहिष्कार का जोखिम उठाते हैं।
  • हालिया उदाहरण
    • दिल्ली और असम की आंगनवाड़ी (2025): ग्रामीण क्षेत्रों में बार-बार विफलताओं और अव्यावहारिकता के कारण कार्यकर्ताओं ने फेशियल रिकॉग्निशन अनिवार्य करने का विरोध किया।
    • आधार बायोमेट्रिक्स: वृद्ध और दिव्यांग लोगों को प्रायः फिंगरप्रिंट के असमान होने का सामना करना पड़ता है, जिससे उनको पेंशन या राशन से वंचित होना पड़ता है।
    • कृषि सब्सिडी योजनाएँ [जैसे- आंध्र प्रदेश रयथु भरोसा (Andhra Pradesh Rythu Bharosa)]: असमान बायोमेट्रिक्स या खाता विवरण के कारण किसानों को बाहर रखा गया, और उन्हें कोई राहत नहीं मिली है।
  • डिजिटल विभाजन: स्थायी कनेक्टिविटी, उपकरणों या डिजिटल साक्षरता के बिना नागरिक सबसे अधिक पीड़ित होते हैं, जिससे असमानता और गहरी होती है।
  • विश्वास की कमी: जब लाभार्थी बार-बार प्रणालीगत त्रुटियों के कारण योजनाओं तक पहुँच खो देते हैं, तो कल्याणकारी योजनाओं में विश्वास कम हो जाता है, जिससे गरीब लोग अलग-थलग पड़ जाते हैं।

आगे की राह

  • उपयोगकर्ता-केंद्रित डिजाइन: कल्याणकारी तकनीक का निर्माण ऐसा किया जाना चाहिए, जो पहुँच को सरल बनाए, जटिल न बनाए।
    • लाभार्थियों और श्रमिकों, दोनों के लिए लचीलापन और उपयोग में आसानी सुनिश्चित करना।
  • हाइब्रिड सत्यापन सिस्टम: मशीनें खराब होने पर सामुदायिक सत्यापन और मैनुअल ओवरराइड की अनुमति देना।
    • स्थानीय लाभार्थियों के बारे में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा प्रदत्त जानकारी पर विश्वास करना।
  • मुख्य सेवा वितरण को मजबूत बनाना: राशन की गुणवत्ता में सुधार करना, बजट आवंटन बढ़ाना और नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करना।
    • स्वयं सहायता समूहों और महिला समूहों के माध्यम से विकेंद्रीकृत उत्पादन पर सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों को लागू करना।
  • कार्यकर्ता सहायता और प्रशिक्षण: बेहतर प्रशिक्षण, कार्यात्मक उपकरण और बढ़े हुए कार्यभार के लिए मुआवजा प्रदान करना।
  • पारदर्शिता और परामर्श: यदि धोखाधड़ी के कोई साक्ष्य मौजूद हों, तो उन्हें प्रकाशित करना।
    • तकनीक को लागू करने से पूर्व अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं और सामुदायिक हितधारकों को शामिल करना।
  • गरिमा और अधिकारों की रक्षा करना: महिलाओं और बच्चों को अधिकार-धारक मानना, संदिग्ध नहीं मानना।
    • कल्याणकारी अधिकारों को बिना शर्त और मशीन की दक्षता से स्वतंत्र रखना।

निष्कर्ष

कल्याणकारी योजनाओं में ‘फेशियल रिकॉग्निशन’ जैसी तकनीक को शामिल करने से जवाबदेही बढ़ाने और धोखाधड़ी कम करने में मदद मिल सकती है, लेकिन इसकी कीमत उन लोगों को नहीं चुकानी चाहिए, जिन्हें मदद की सर्वाधिक आवश्यकता है। कल्याणकारी कार्यक्रम केवल इस बात पर निर्भर नहीं होने चाहिए कि कोई मशीन कितनी अच्छी तरह कार्य करती है।

संदर्भ

वर्ष 2025 मानसून ने बाढ़, क्लाउडबर्स्ट (बादल फटना) और भूस्खलन के माध्यम से हिमालयी राज्यों की संवेदनशीलता को उजागर किया।

  • आपदा प्रतिक्रिया के बावजूद, तत्काल प्रौद्योगिकी-संचालित तैयारी और सामुदायिक लचीलापन, जोखिमों को बढ़ाने के विरुद्ध महत्त्वपूर्ण है।

मानसून संबंधी आपदाएँ हिमालय क्षेत्र में आपदा संबंधी तैयारियों को चुनौती देती हैं:

  • देहरादून एवं उत्तराखंड: फ्लैश फ्लड के कारण उत्तराखंड का धराली गाँव पूरी तरह से नष्ट हो गया; भारतीय सेना ने 400 फुट लंबा केबलवे बनाया, भारतीय वायु सेना के चिनूक विमानों ने उपकरणों को हवाई मार्ग से पहुँचाया; ड्रोन और उपग्रह संचार लिंक ने त्वरित निकासी का मार्गदर्शन किया।
  • जम्मू और कश्मीर: चिनाब-तवी बेसिन में क्लाउडबर्स्ट से 140 से अधिक मौतें हुईं; आपातकालीन बेली ब्रिज की स्थापना और तीर्थयात्रियों के सुरक्षित निकासी के मामलों में भारतीय सेना एवं राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) के समन्वय पर विशेष रूप से प्रकाश डाला गया।।
  • पंजाब: रावी, ब्यास और सतलुज नदियों में बाढ़ के कारण विनाशकारी खतरा उत्पन्न हो गया था; राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA)-केंद्रीय जल आयोग (CWC)-भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (BBMB) के समन्वय और भारतीय सेना विमानों ने माधोपुर हेडवर्क्स के पास लोगों की जान बचाई।
  • हिमाचल प्रदेश: मूसलाधार वर्षा के कारण ढलानों में दरारें आईं; मणिमहेश यात्रा से 10,000 से अधिक तीर्थयात्रियों को निकाला गया; सीमा सड़क संगठन (BRO) ने दुर्गम इलाकों में सड़क संरचना को  पुनर्स्थापित किया।

भारतीय हिमालयी क्षेत्र (IHR) के बारे में

  • भौगोलिक प्रसार: भारतीय हिमालयी क्षेत्र (IHR) 13 भारतीय राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में विस्तृत है।
    • जम्मू और कश्मीर, लद्दाख, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा, असम और पश्चिम बंगाल।
    • यह लंबाई में 2,500 किमी. से अधिक विस्तृत है और भारत के भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 16% हिस्सा है।

  • जनसंख्या और विविधता: यहाँ लगभग 50 मिलियन लोग निवास करते हैं।
    • विविध नृजातीय समुदायों जैसे कि लद्दाख के लोग, सिक्किम के भूटिया, तिब्बती बौद्ध और हिमाचल प्रदेश के गद्दी, प्रत्येक अद्वितीय संस्कृतियों, भाषाओं और परंपराओं के साथ निवास करते हैं।
    • बहुलवादी जनसांख्यिकीय, आर्थिक, पर्यावरणीय, सामाजिक और राजनीतिक प्रणालियों के लिए जाना जाता है।

भारतीय हिमालयी क्षेत्र का महत्त्व

  • पारिस्थितिकी महत्त्व: यह एक वैश्विक जैव विविधता हॉटस्पॉट है, जो दुर्लभ वनस्पतियों और जीवों जैसे कि हिम तेंदुए, रेड पांडा, हिमालयन मोनल और यार्सगुम्बा जैसे औषधीय पौधों का क्षेत्र है।
    • यह भारतीय उपमहाद्वीप की जलवायु को नियंत्रित करता है, मध्य एशियाई पवनों के लिए एक अवरोध के रूप में कार्य करता है, और मानसून पैटर्न को प्रभावित करता है।
  • हाइड्रोलॉजिकल महत्त्व: भारत के ‘वाटर टॉवर’ के रूप में जाना जाता है, यह प्रमुख बारहमासी नदियों (सिंधु, गंगा, यमुना, और ब्रह्मपुत्र) का स्रोत है, लगभग 500 मिलियन लोगों के लिए पेयजल और कृषि, ऊर्जा संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति की।
  • आर्थिक महत्त्व: यह क्षेत्र जल विद्युत क्षमता, बागवानी (सेब, केसर, मसाले), पर्यटन और तीर्थ-आधारित अर्थव्यवस्थाओं में समृद्ध है।
    • यह वानिकी, पारंपरिक शिल्प तथा ट्रेकिंग, स्कीइंग और पर्वतारोहण जैसे साहसिक खेलों के माध्यम से आजीविका प्रदान करता है।
  • सांस्कृतिक महत्त्व: भारतीय हिमालयी क्षेत्र में कई महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थल विद्यमान (जैसे- अमरनाथ, वैष्णो देवी, केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री, और मणिमहेश) हैं, जो गहरे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक संबंधों को दर्शाते हैं।
    • यह भारत के बहुलवाद तथा विरासत को दर्शाते हुए, लद्दाखियों, भूटिया, तिब्बती बौद्धों और गद्दी जैसे विविध समुदायों का क्षेत्र है।
  • रणनीतिक महत्त्व: भारत की उत्तरी सीमा के रूप में, भारतीय हिमालयी क्षेत्र चीन, नेपाल, भूटान और पाकिस्तान के साथ सीमा साझा करता है, जिससे यह राष्ट्रीय सुरक्षा तथा सीमा प्रबंधन के लिए महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
    • भारत के रक्षा और भू-राजनीतिक हितों के लिए लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश जैसे क्षेत्र महत्त्वपूर्ण हैं।

हिमालयन आपदा जोखिम: कारण और प्रोफ़ाइल

प्राकृतिक कारण मानव-प्रेरित कारण संस्थागत और सामाजिक अंतराल
भू-वैज्ञानिक संवेदनशीलता: नवीन वलित पर्वत, अस्थिर ढलान, सक्रिय भ्रंश रेखाएँ (जैसे- धौलागिरी, सिंधु-गंगा)।

  • भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI, 2023): भारत में 70% भूस्खलन हिमालय में होते हैं।
अनियोजित विकास: सड़क चौड़ीकरण, जल विद्युत सुरंग निर्माण, अनियंत्रित पर्यटन, संवेदनशील क्षेत्रों में शहरीकरण का विस्तार हो रहा है। प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली का कमजोर होना: वास्तविक समय आधारित निगरानी में अनियमितता, अलर्ट में देरी (उदाहरण के लिए, उत्तराखंड में  वर्ष 2025 में अचानक बाढ़ का आना)।
भूकंपीय गतिविधियाँ: भूकंपीय क्षेत्र IV और भूकंपीय क्षेत्र V भूकंप के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं, जिससे भूस्खलन और हिमस्खलन की संभावना बनी रहती है। वनों की कटाई और खनन: ढलान की स्थिरता में कमी, मृदा अपरदन, तथा जल निकासी चैनल अवरुद्ध होना। शासन संबंधी  जटिलताएँ: बहु-एजेंसी (जिला, राज्य और केंद्रीय स्तर) समन्वय और प्रतिक्रिया को धीमा कर देता है।
जल-मौसम संबंधी खतरे (Hydro-Meteorological Hazards): क्लाउडबर्स्ट, अचानक बाढ़ और ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (Glacial Lake Outburst Floods- GLOF)।

राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र (NRSC, 2022): 329 संभावित खतरनाक हिमनद झीलों का मानचित्रण किया गया।

नदी तल और बाढ़ के मैदानों में अतिक्रमण: इससे जोखिम बढ़ता है (उदाहरण के लिए, वर्ष 2025 में धराली में बाढ़ का आना)। स्वास्थ्य सेवा और संसाधन अंतराल: दूरस्थ, हाशिए पर स्थित समुदायों में चिकित्सा अवसंरचना और लचीलापन क्षमता का अभाव है।
जलवायु परिवर्तन गुणक: वैश्विक औसत से दोगुनी तापमान वृद्धि, हिमनदों का संकुचन, अस्थिर झीलें और अनियमित मानसूनी वर्षा।

  • भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD, 2023): उत्तराखंड में वर्ष 2010 से क्लाउडबर्स्ट की घटनाओं में 200% की वृद्धि (उदाहरण के लिए, देहरादून में वर्ष 2025 में रिकॉर्ड वर्षा दर्ज की गई)।
तीर्थयात्रा का दबाव: संवेदनशील मार्गों (चार धाम, गंगोत्री) पर अत्यधिक भीड़ का बढ़ना। जन जागरूकता में कमी: नागरिक प्रायः चेतावनियों को नजरअंदाज कर देते हैं; मॉक ड्रिल का प्रयोग नहीं होता है

हिमालयी आपदा रोधी तैयारी और पुनर्प्राप्ति में प्रणालीगत कमियाँ

  • पूर्वानुमानित निगरानी अंतराल: राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र (National Remote Sensing Centre- NRSC) या भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण (Geological Survey of India- GSI) द्वारा हिमनद झीलों, ढलान अस्थिरता और मलबे के प्रवाह की निरंतर निगरानी नहीं की जाती है।
    • नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG, 2023) ने उपग्रह-आधारित जोखिम मानचित्रण के कम उपयोग को चिह्नित किया है।
  • नागरिकों की सीमित तैयारी: वर्ष 2025 के मानसून के दौरान 1 करोड़ से अधिक लघु संदेश सेवा (Short Message Service- SMS) अलर्ट के बावजूद, निकासी मार्गों, राहत आश्रयों और मानक संचालन प्रक्रियाओं (Standard Operating Procedures- SOPs) के बारे में जागरूकता कम है, खासकर गंगोत्री जैसे तीर्थ गलियारों में।
  • अनियंत्रित विकास: नदी तलों में निर्माण, सड़क परियोजनाओं से ढलानों का अस्थिर होना और भूकंपीय नियमों की अवहेलना आपदा जोखिमों को बढ़ा देती है।
    • हाल ही में उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में आई बाढ़ ने संवेदनशील ढलानों पर बनी कई संरचनाओं के ढहने का खुलासा किया है।
  • आपदा के बाद पुनर्वास की चुनौतियाँ: सड़कों और पुलों के पुनर्निर्माण में प्रायः ढलान स्थिरीकरण की अनदेखी की जाती है, जबकि मुआवजे में देरी से प्रभावित समुदायों का समय पर पुनर्वास बाधित होता है।

भारतीय हिमालयी क्षेत्र (IHR) में आपदा जोखिमों को कम करने के लिए प्रमुख सरकारी पहल

  • राष्ट्रीय स्तर की रूपरेखाएँ
    • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (National Disaster Management Plan- NDMP, 2019) पर्वतीय पारिस्थितिकी प्रणालियों पर विशेष ध्यान देते हुए, आपदा की तैयारी, शमन, प्रतिक्रिया और पुनर्प्राप्ति के लिए एक व्यापक ढाँचा प्रदान करती है।
    • राष्ट्रीय भूस्खलन जोखिम शमन परियोजना (NLRMP) जोखिम क्षेत्र मानचित्रण, ढलान स्थिरीकरण और संवेदनशील हिमालयी ढलानों में पूर्व चेतावनी तंत्रों की स्थापना के लिए समर्पित है।
    • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOFs) के लिए दिशा-निर्देश और एक मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) जारी की है, जिसमें आपदा-पूर्व तैयारी, वास्तविक समय प्रतिक्रिया और आपदा-पश्चात पुनर्प्राप्ति उपायों को शामिल किया गया है।
  • सामुदायिक-केंद्रित पहल
    • आपदा मित्र योजना (Aapda Mitra Scheme) आपदा-प्रवण जिलों में नागरिकों को प्रथम प्रतिक्रियाकर्ता के रूप में कार्य करने हेतु प्रशिक्षित करके स्थानीय स्वयंसेवी क्षमता का निर्माण करती है।
    • केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change- MoEFCC) के अंतर्गत राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन (2015) सतत् संसाधन प्रबंधन, पर्यावरण-उद्यमिता और समुदाय-नेतृत्व वाली सुदृढ़ता निर्माण का समर्थन करता है।
    • विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology- DST) द्वारा वित्तपोषित हिमालयी पर्यावरण अध्ययन एवं संरक्षण संगठन जैसे नागरिक समाज संगठन जागरूकता अभियान, आजीविका विविधीकरण और पारिस्थितिकी तंत्र बहाली के प्रयासों को बढ़ावा देते हैं।
  • वैज्ञानिक अनुसंधान और ग्लेशियर निगरानी
    • हिमालयी हिमनदों के अध्ययन के लिए पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES), विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST), केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, खान मंत्रालय (MoM) और जल शक्ति मंत्रालय (MoJS) द्वारा कई शोध कार्यक्रमों का समर्थन किया जाता है।
      • हिमनदों के आकार में कमी आने संबंधी आँकड़े
        • हिंदू कुश हिमालय: हिमनद के संकुचन की औसत दर 14.9 ± 15.1 मीटर/वर्ष।
        • सिंधु बेसिन: हिमनद के संकुचन की औसत दर  12.7 मीटर/वर्ष।
        • गंगा बेसिन: हिमनद के संकुचन की औसत दर  15.5 मीटर/वर्ष।
        • ब्रह्मपुत्र बेसिन: हिमनद के संकुचन की औसत दर  20.2 मीटर/वर्ष।
      • संचयी द्रव्यमान हानि: वर्ष 1975 से वर्ष 2023 के बीच, भारतीय हिमालय के ग्लेशियरों में द्रव्यमान के बराबर (सकल) -26 मीटर के स्तर तक जल की हानि हुई।
      • काराकोरम विसंगति (Karakoram Anomaly): अन्य क्षेत्रों के विपरीत, काराकोरम ग्लेशियरों में -1.37 ± 22.8 मीटर/वर्ष की दर से नगण्य गिरावट देखी गई है।
  • क्षेत्र-आधारित निगरानी और बुनियादी ढाँचा
    • राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं महासागर अनुसंधान केंद्र ( NCPOR) वर्ष 2013 से चंद्रा बेसिन (पश्चिमी हिमालय) में छह ग्लेशियरों की निगरानी कर रहा है।
    • चंद्रा बेसिन में वर्ष 2016 से कार्यरत उन्नत अनुसंधान केंद्र ‘हिमांश‘ दीर्घकालिक क्षेत्रीय प्रयोगों और अभियानों को सुगम बनाता है।
  • समन्वय के लिए संस्थागत तंत्र
    • केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय (MoJS) द्वारा वर्ष 2023 में विभिन्न मंत्रालयों और अनुसंधान संगठनों में ग्लेशियर अध्ययनों के समन्वय हेतु ग्लेशियरों की निगरानी हेतु एक संचालन समिति की स्थापना की गई थी।
    • भारतीय हिमालयी क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन और जल संसाधनों पर एकीकृत अनुसंधान करने के लिए राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (NIH), रुड़की (2023) में क्रायोस्फीयर और जलवायु परिवर्तन अध्ययन केंद्र (Cryosphere and Climate Change Studies- C4S) की स्थापना की गई थी।

संबद्ध वैश्विक पहल

  • आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु सेंडाई फ्रेमवर्क (Sendai Framework for Disaster Risk Reduction) (2015-2030): जोखिम मूल्यांकन, अनुकूलन निर्माण और पूर्व चेतावनी का आह्वान करता है।
  • पेरिस समझौता (2015): जलवायु-जनित आपदाओं के विरुद्ध अनुकूलन और लचीलापन को प्रोत्साहित करता है।
  • आपदा प्रतिरोधी अवसंरचना गठबंधन (Coalition for Disaster Resilient Infrastructure- CDRI) (2019): जलवायु और आपदा प्रतिरोधी अवसंरचना के लिए भारत के नेतृत्व वाली वैश्विक साझेदारी सुनिश्चित करता है।
  • आपदा प्रबंधन और आपातकालीन प्रतिक्रिया हेतु अंतरिक्ष-आधारित सूचना हेतु संयुक्त राष्ट्र मंच (United Nations Platform for Space-based Information for Disaster Management and Emergency Response/ UN-SPIDER): आपदा प्रबंधन और आपातकालीन प्रतिक्रिया के लिए अंतरिक्ष-आधारित सूचना प्रदान करता है।

हिमालयी अनुकूलन का समर्थन करने वाले अन्य कार्यक्रम

  • हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय मिशन (National Mission for Sustaining the Himalayan Ecosystem- NMSHE): जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) के अंतर्गत शुरू किया गया यह मिशन ग्लेशियरों, जैव विविधता और पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों की सुरक्षा पर केंद्रित है।
    • यह हिमालयी राज्यों के लिए विशिष्ट पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं, जलवायु संवेदनशीलता और अनुकूलन प्रथाओं पर अनुसंधान को वित्तपोषित करता है।
  • भारतीय हिमालय जलवायु अनुकूलन कार्यक्रम (Indian Himalayas Climate Adaptation Programme- IHCAP): भारत और स्विट्जरलैंड के मध्य एक सहयोगात्मक पहल, IHCAP हिमालयी राज्यों में क्षमता निर्माण, जलवायु संवेदनशीलता आकलन और विज्ञान-आधारित नीति एकीकरण का समर्थन करता है।
    • यह ग्लेशियर निगरानी और आपदा तैयारी पर समुदाय-केंद्रित अनुकूलन और ज्ञान के आदान-प्रदान पर जोर देता है।
  • SECURE हिमालय परियोजना (SECURE Himalaya Project): केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) और वैश्विक पर्यावरण सुविधा (GEF) के सहयोग से कार्यान्वित, यह परियोजना अल्पाइन चरागाहों के सतत् प्रबंधन, जैव विविधता संरक्षण और आजीविका विविधीकरण को बढ़ावा देती है।
    • यह हिमालयी समुदायों के लिए पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण को अनुकूलन से जोड़ता है।
  • एकीकृत हिमालयी विकास कार्यक्रम (Integrated Himalayan Development Program- IHDP): यह पहल भारतीय हिमालयी क्षेत्र (IHR) में समग्र विकास पर जोर देती है, जिसमें बुनियादी ढाँचे का निर्माण, पारिस्थितिकी संतुलन और आजीविका सुरक्षा को एकीकृत किया जाता है।
    • यह आपदा जोखिम न्यूनीकरण को दीर्घकालिक सतत् विकास लक्ष्यों के साथ संरेखित करता है।
  • जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (National Action Plan on Climate Change- NAPCC): व्यापक NAPCC रणनीतिक ढाँचा प्रदान करता है, जिसके अंतर्गत NMSHE और राज्य-स्तरीय कार्य योजनाएँ जैसे मिशन कार्य करते हैं।
    • इसका उद्देश्य जलवायु अनुकूलन और आपदा जोखिम न्यूनीकरण को शासन की मुख्यधारा में लाना है, और हिमालय को पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील और प्राथमिकता वाले क्षेत्र के रूप में मान्यता दी गई है।

आगे की राह

  • बड़े पैमाने पर प्रौद्योगिकी का विस्तार
    • भौगोलिक सूचना प्रणाली (Geographic Information System- GIS)-आधारित जोखिम मानचित्रण: जिला-स्तरीय योजना में भूस्खलन, बाढ़ और हिमनद जोखिम का अनिवार्य एकीकरण करना।
    • कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI)-संचालित पूर्वानुमान: अचानक बाढ़ (फ्लैश फ्लड) और क्लाउडबर्स्ट के पूर्वानुमान के लिए स्थानीय जल-मौसम संबंधी आँकड़ों पर प्रशिक्षित AI मॉडल का उपयोग।
    • 24×7 दूरस्थ निगरानी: NRSC हिमनद झीलों, हिम-पिघलने और मलबे के प्रवाह की निरंतर निगरानी रखेगा; वास्तविक समय में ढलान निगरानी के लिए ड्रोन की तैनाती की गई है।
    • प्रभावी डॉपलर रडार नेटवर्क (Dense Doppler Radar Network): चेतावनी के लिए समय में सुधार हेतु हिमालयी घाटियों में विस्तार किया जाना चाहिए।
    • भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण को मृदा अवशोषण और ढाल के आधार पर भूस्खलन मानचित्रण का विस्तार करना चाहिए।
  • संस्थागत और शासन सुदृढ़ीकरण
    • व्यावसायिक आपदा संवर्ग: राज्य और जिला स्तर पर विशिष्ट आपदा प्रबंधन के लिए तकनीकी रूप से प्रशिक्षित कार्यबल की स्थापना।
    • नागरिक समाज का एकीकरण: आपदा प्रबंधन योजनाओं में गैर-सरकारी संगठनों (NGO), पंचायतों और निवासी कल्याण संघों (RWA) को शामिल करना।
    • निर्माण निषेध क्षेत्रों का प्रवर्तन: भूकंपीय संहिताओं का कड़ाई से पालन, ढलान-संवेदनशील इंजीनियरिंग और नदी तल में निर्माण पर प्रतिबंध।
  • सामुदायिक-केंद्रित तैयारी
    • आपदा मित्र का विस्तार: स्कूलों, कॉलेजों और स्थानीय निकायों में स्वयंसेवी प्रशिक्षण कार्यक्रमों की व्यापक पहुँच।
    • अनिवार्य मॉक ड्रिल: तैयारी संस्कृति को मजबूत करने के लिए तीर्थ नगरों और उच्च जोखिम वाली घाटियों में नियमित अभ्यास करना।
    • नागरिक साक्षरता: आपदा रोधी अभियानों को मतदान या कर भुगतान के समान नागरिक जिम्मेदारी माना जाएगा।
  • अनुकूलन और पुनर्निर्माण
    • बेहतर पुनर्निर्माण: ढलान स्थिरीकरण के साथ सड़कों का पुनर्निर्माण, नदी तटबंधों को सुदृढ़ बनाना और अवैध खनन पर अंकुश लगाना।
    • स्थायी अवसंरचना: विकास के लिए हरित प्रौद्योगिकियों और ढलान-संवेदनशील निर्माण पद्धतियों के उपयोग को प्रोत्साहित किया गया।
    • तीर्थयात्रा गलियारा सुरक्षा: तीर्थयात्रियों की आवाजाही का मौसमी नियमन और सुरक्षा के लिए ड्रोन, सेंसर तथा उपग्रह निगरानी का उपयोग।

निष्कर्ष

हिमालयी क्षेत्र के सतत् विकास की आधारशिला लचीलापन होना चाहिए। सेंडाई फ्रेमवर्क के अनुसार, ‘आपदाएँ प्राकृतिक नहीं होतीं, बल्कि समाज में अंतर्निहित जोखिम का परिणाम होती हैं।’ इसलिए, तकनीक-संचालित एवं सामुदायिक सहभागितापूर्ण ढाँचे का निर्माण SDG-11 (सतत् शहर और समुदाय) एवं SDG-13 (जलवायु कार्रवाई) के अनुरूप आवश्यक है।

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