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Sep 22 2025

मातृ मृत्यु दर 

पुदुचेरी वर्ष 2024–25 में शून्य मातृ मृत्यु दर (MMR) प्राप्त करने वाला भारत का पहला केंद्रशासित प्रदेश बन गया है और इस उपलब्धि पर उसे केंद्र सरकार से प्लैटिनम प्रमाण-पत्र  प्राप्त हुआ है।

मातृ मृत्यु अनुपात (MMR) क्या है?

  • परिभाषा: मातृ मृत्यु का आशय गर्भावस्था के दौरान अथवा गर्भसमापन के 42 दिनों के भीतर महिला की मृत्यु से है, जो गर्भावस्था-संबंधी कारणों से होती है (दुर्घटनात्मक या आकस्मिक कारणों को छोड़कर)।
  • MMR: प्रति 1,00,000 जीवित जन्मों पर होने वाली मातृ मृत्यु की संख्या।
  • स्वास्थ्य सेवा गुणवत्ता का संकेतक: MMR किसी देश की मातृ स्वास्थ्य सेवाओं की प्रभावशीलता, सुलभता और गुणवत्ता को दर्शाती है।
  • SDG लक्ष्य: सतत् विकास लक्ष्य (SDG) 3.1 के अंतर्गत भारत ने वर्ष 2030 तक MMR को प्रति 1,00,000 जीवित जन्मों पर 70 तक लाने का लक्ष्य रखा है।

भारत में मातृ मृत्यु पर प्रगति

  • MMR में गिरावट: नमूना पंजीकरण प्रणाली (SRS) के अनुसार, भारत का MMR 130 (वर्ष 2014–16) से घटकर 93 (वर्ष 2019–21) हो गया, जो 37 अंकों की कमी को दर्शाता है।
  • क्षेत्रीय उपलब्धियाँ: कुछ राज्यों ने पहले ही MMR को SDG लक्ष्य 70 प्रति 1,00,000 जीवित जन्मों से नीचे लाकर सफलता प्राप्त की है।
    • इनमें केरल, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, झारखंड, गुजरात और कर्नाटक शामिल हैं।
  • पुदुचेरी की उपलब्धि: पुदुचेरी ने शून्य मातृ मृत्यु दर हासिल कर मानक स्थापित किया है, जो लक्षित मातृ स्वास्थ्य हस्तक्षेपों की सफलता को दर्शाता है।

महिलाओं के स्वास्थ्य हेतु पुदुचेरी की पहलें

  • स्वास्थ्य उपाय: प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHCs) का व्यापक नेटवर्क, स्वास्थ्य शिविर तथा 62,000 महिलाओं का एनीमिया परीक्षण।
  • सशक्तीकरण योजनाएँ: मुख्यमंत्री कन्या शिशु ट्रस्ट फंड, जन्म पर बालिकाओं के लिए ₹50,000 का बीमा और महिलाओं के लिए स्टाम्प शुल्क में रियायत।
  • शैक्षिक सहयोग: ड्रॉपआउट रोकने और उच्च शिक्षा को बढ़ावा देने हेतु योजनाएँ, सरकारी नौकरियों में महिलाओं की हिस्सेदारी 50% से अधिक होना

महत्त्व

यह उपलब्धि अन्य राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के लिए मॉडल प्रस्तुत करती है, जो विकसित भारत की दृष्टि और भारत के SDG स्वास्थ्य लक्ष्यों के अनुरूप है।

सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग

जापान की रेटिंग एंड इन्वेस्टमेंट इनफॉरमेशन, इंक. R&I ने भारत की सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग को ‘BBB’ से बढ़ाकर ‘BBB+’ (स्थिर) कर दिया है।

महत्त्वपूर्ण तथ्य 

  • यह वर्ष 2025 में तीसरी अपग्रेड है, इससे पहले:
    • S&P: ‘BBB-’ से ‘BBB’ (अगस्त 2025)
    • मॉर्निंगस्टार (Morningstar) DBRS: ‘BBB (low)’ से ‘BBB’ (मई 2025)
  • ये अपग्रेड भारत की मजबूत मैक्रोइकनोमिक ढाँचे, राजकोषीय समेकन और मीडियम टर्म ग्रोथ संभावनाओं पर वैश्विक विश्वास को दर्शाते हैं।

क्रेडिट रेटिंग

  • क्रेडिट रेटिंग किसी व्यक्ति, कंपनी या सरकार जैसे उधारकर्ता की ऋण-पात्रता का आकलन है, जो समय पर ऋण चुकाने की उनकी क्षमता पर आधारित होता है।
  • उद्देश्य: क्रेडिट रेटिंग से ऋण पर ब्याज दर, निवेश निर्णय और बाजार विश्वास प्रभावित होते हैं।
  • प्रकार
    • सॉवरेन रेटिंग (देशों के लिए)
    • कॉरपोरेट रेटिंग (कंपनियों/संस्थानों के लिए)।

सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग क्या है?

  • परिभाषा: किसी देश की ऋण दायित्वों को पूरा करने की क्षमता का वैश्विक रेटिंग एजेंसियों द्वारा मूल्यांकन।
  • श्रेणियाँ
    • निवेश ग्रेड (BBB- और उससे ऊपर) निवेशकों के लिए सुरक्षित।
    • सट्टा ग्रेड  (Speculative Grade) (BBB- से नीचे) निवेशकों के लिए जोखिमपूर्ण।
  • महत्त्व: ऋण लागत, विदेशी निवेश प्रवाह और निवेशक विश्वास को प्रभावित करता है।

अपग्रेड के प्रमुख कारक (R&I रिपोर्ट के अनुसार)

  • उच्च वृद्धि अर्थव्यवस्था: भारत, विश्व की सबसे बड़ी और सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में, जनसांख्यिकीय लाभांश और घरेलू माँग द्वारा समर्थित।
  • राजकोषीय समेकन: उच्च कर राजस्व, सब्सिडियों का तर्कसंगतीकरण, और अधिक पूँजीगत व्यय के बावजूद राजकोषीय घाटे में कमी।
  • ऋण प्रबंधन: विकास गति द्वारा समर्थित ऋण-GDP अनुपात का उचित प्रबंधन।
  • बाह्य स्थिरता
    • सीमित चालू खाता घाटा।
    • सेवाओं और प्रेषणों में स्थिर अधिशेष।
    • कम बाह्य ऋण-GDP अनुपात (Low external debt-to-GDP ratio)।
    • पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार।
  • नीतिगत समर्थन: केंद्र सरकार के सुधारों की मान्यता, जैसे—
    • विदेशी निर्माताओं को आकर्षित करना (मेक इन इंडिया, PLI योजनाएँ)।
    • अवसंरचना विकास।
    • GST का तर्कसंगतीकरण।
    • ऊर्जा आयात पर निर्भरता में कमी और बेहतर कारोबारी वातावरण।

चुनौतियाँ

  • अमेरिकी टैरिफ: इससे चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं, लेकिन भारत की अमेरिकी निर्यात पर कम निर्भरता तथा मजबूत घरेलू माँग आधार के कारण इसका प्रभाव सीमित रहेगा।
  • GST तर्कसंगतीकरण: राजस्व घटा सकता है, किंतु बढ़ी हुई खपत से आंशिक रूप से संतुलन संभव।
  • वित्तीय प्रणाली जोखिम: सीमित और प्रबंधनीय माने गए हैं।

ICGS अदम्य

 

हाल ही में भारतीय तटरक्षक पोत (ICGS) अदम्य, अदम्य श्रेणी के फास्ट पट्रोल वेसल  (Fast Patrol Vessels-FPVs) का पहला पोत, ओडिशा के पारादीप बंदरगाह पर कमीशन किया गया।

ICGS अदम्य की प्रमुख विशेषताएँ

डिजाइन और निर्माण

  • स्वदेशी रूप से गोवा शिपयार्ड लिमिटेड द्वारा विकसित।
  • 60% से अधिक स्वदेशी सामग्री सम्मिलित, भारत की जहाज निर्माण आत्मनिर्भरता को मजबूत करता है।
  • यह आठ अदम्य-श्रेणी के फास्ट पट्रोल वेसल  (FPVs) में पहला पोत है।

विस्थापन

  • लगभग 320 टन।

प्रणोदन

  • दो 3000 KW डीजल इंजनों द्वारा संचालित।
  • स्वदेशी रूप से विकसित कंट्रोलेबल पिच प्रोपेलर Controllable Pitch Propellers (CPPs) और गियरबॉक्स के साथ, जो उत्कृष्ट संचालन क्षमता और परिचालन लचीलापन प्रदान करते हैं।

गति 

  • अधिकतम गति: 28 नॉट्स।
  • परिसंचालन क्षमता (Endurance): 1,500 समुद्री मील, आर्थिक गति पर।।

हथियार

  • 30 मिमी. CRN 91 गन।
  • दो 12.7 मिमी. स्टैबलाइज्ड रिमोट-कंट्रोल्ड मशीन गन्स (Stabilized Remote-Controlled Machine Guns)।
  • फायर कंट्रोल सिस्टम  द्वारा समर्थित।

प्रौद्योगिकी एकीकरण

  • इंटीग्रेटेड ब्रिज सिस्टम (IBS)।
  • इंटीग्रेटेड प्लेटफॉर्म मैनेजमेंट सिस्टम (IPMS)।
  • ऑटोमेटेड पॉवर मैनेजमेंट सिस्टम (APMS)।
  • उन्नत स्वचालन और दक्षता।

प्रतीकात्मकता: ‘अदम्य’ तटरक्षक बल की समुद्री सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

अफ्लाटॉक्सिन (Aflatoxin)

 

इंडोनेशिया ने भारत से मूँगफली का आयात अफ्लाटॉक्सिन (Aflatoxin) संदूषण का हवाला देते हुए निलंबित कर दिया है।

अफ्लाटॉक्सिन के बारे में

  • परिभाषा: अफ्लाटॉक्सिन विषैले द्वितीयक उपचय पदार्थ (toxic secondary metabolites) हैं, जो मुख्यतः एस्परजिलस फ्लावस (Aspergillus flavus) एवं एस्परजिलस पैरासिटिकस (Aspergillus parasiticus)  कवक द्वारा उत्पन्न होते हैं।
  • स्थिति: ये गर्म, आर्द्र जलवायु में उत्पन्न होते हैं।
  • स्रोत
    • सामान्यतः मूँगफली, मक्का, चावल, कपास बीज, मसाले और तिलहन में पाए जाते हैं।
    • संदूषण फसल कटाई से पहले, कटाई के बाद या अनुचित भंडारण के दौरान हो सकता है।
  • प्रकार
    • प्रमुख: अफ्लाटॉक्सिन B1, B2, G1 और G2।
    • इनमें से अफ्लाटॉक्सिन (Aflatoxin) B1 सबसे विषैला और कैंसरकारी पदार्थ है।
  • स्वास्थ्य जोखिम
    • जीनोटॉक्सिक और कैंसरकारी (ग्रुप 1 कार्सिनोजन, IARC)।
    • यकृत क्षति, एक्यूट अफ्लाटॉक्सिकोसिस, इम्यूनोसप्रेशन और विकास में कमी होती है।
    • दीर्घकालीन संपर्क यकृत कैंसर से जुड़ा।
  • पशु उत्पाद: जब पशुओं को संदूषित चारा खिलाया जाता है तो दूध, अंडे और मांस में भी अफ्लाटॉक्सिन मौजूद हो सकते हैं।
  • वैश्विक चिंता: कोडेक्स एलीमेंटेरियस आयोग (FAO-WHO) द्वारा सख्त मानक निर्धारित किए गए हैं
  • नियंत्रण उपाय
    • अच्छी कृषि पद्धतियाँ।
    • उचित सुखाना और भंडारण।
    • एस्परजिलस (Aspergillus) स्ट्रेनों का बायोकंट्रोल।
    • नियमित खाद्य सुरक्षा निरीक्षण।

व्यापार और आर्थिक प्रभाव

  • निर्यात पर निर्भरता: भारत के मूँगफली निर्यात का एक-तिहाई हिस्सा इंडोनेशिया को जाता है।
  • वित्त वर्ष 2024–25: भारत के कुल 7.46 लाख टन (795 मिलियन $) मूँगफली निर्यात में से 2.77 लाख टन (280 मिलियन $) इंडोनेशिया को निर्यात किया गया।
  • किसानों पर प्रभाव
    • वर्ष 2025 खरीफ में मूंगफली का उपज क्षेत्र 48 लाख हेक्टेयर (पिछले वर्ष 47.65 लाख हेक्टेयर की तुलना में)।
    • गुजरात को रिकॉर्ड 66 लाख टन उत्पादन की संभावना।
    • मूल्य: 5,682 रुपये प्रति क्विंटल, जो 7,263 रुपये के एमएसपी से कम है और इस प्रकार निलंबन से किसानों की परेशानी बढ़ सकती है।

कोडेक्स एलीमेंटेरियस (Codex Alimentarius) के बारे में

  • परिभाषा: कोडेक्स एलीमेंटेरियस (Codex Alimentarius) या फूड कोड (Food Code) अंतरराष्ट्रीय खाद्य मानकों, दिशा-निर्देशों और आचार संहिताओं का संकलन है।
  • उद्देश्य: उपभोक्ता स्वास्थ्य की रक्षा करना और वैश्विक खाद्य व्यापार में निष्पक्ष प्रथाओं को बढ़ावा देना।
  • वैश्विक उपयोग: विश्वभर में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विनियमों को एकरूप बनाने हेतु संदर्भ के रूप में प्रयुक्त।
  • WTO मान्यता: WTO के सैनिटरी एंड फाइटोसैनिटरी एग्रीमेंट  के अंतर्गत खाद्य सुरक्षा का अंतरराष्ट्रीय मानक माना गया।
  • प्रभाव: उपभोक्ताओं को सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण भोजन उपलब्ध कराता है और आयातकों को यह विश्वास दिलाता है कि उत्पाद आवश्यक विनिर्देशों को पूरा करते हैं।

येलो-क्रेस्टेड काकाटूज 

(Yellow-crested Cockatoos)

 

गंभीर रूप से संकटग्रस्त येलो-क्रेस्टेड काकाटूज (Yellow-crested Cockatoos), जो इंडोनेशिया और ईस्ट तिमोर की मूल प्रजाति हैं, ने हांगकांग के शहरी उद्यानों में एक दुर्लभ शरणस्थली प्राप्त की है।

येलो-क्रेस्टेड काकाटूज  (Cacatua sulphurea) के बारे में

  • येलो-क्रेस्टेड काकाटूज (Cacatua sulphurea), जिसे लेसर सल्फर-क्रेस्टेड काकाटूज  भी कहा जाता है, मध्यम आकार का तोता है।

स्वरूप

  • चमकीले पीले रंग की शिखा वाला छोटा ‘व्हाइट काकाटूज’
  • कानों के आवरण (Ear coverts), निचले पंखों और निचली पूँछ पर पीला धब्बा।
  • मजबूत घुमावदार चोंच और भूरे-धूसर रंग की आँखें।

आवास

  • उष्णकटिबंधीय और उप-उष्णकटिबंधीय वनों में पाए जाते हैं।
  • सघन वनों की अपेक्षा सामान्य वनों को प्राथमिकता देते है।

वितरण

  • मूल रूप से इंडोनेशिया और ईस्ट तिमोर में पाए जाते हैं, विशेषकर सुलावेसी, लेसर सुंडा द्वीप और आस-पास के क्षेत्रों में।
  • वर्तमान में आवासीय हानि और शिकार के कारण विखंडित आबादी में मौजूद है।

आहार

  • मुख्य रूप से बीज, मेवे, फल, जामुन और मक्का जैसी फसलें।
  • कभी-कभी कीटों और लार्वा पर भी भोजन करते हैं।

व्यवहार

  • सामाजिक और शोर करने वाले पक्षी, प्रायः जोड़ों या छोटे झुंडों में देखे जाते हैं।
  • अपनी बुद्धिमत्ता, खेलप्रियता और मानवीय भाषा की नकल करने की क्षमता के लिए प्रसिद्ध।
  • पेड़ों की गुहाओं में घोंसला बनाते हैं, इनकी प्रजनन ऋतु क्षेत्रानुसार अलग-अलग है।

खतरे

  • पालतू पशु उद्योग के लिए अवैध वन्यजीव व्यापार सबसे बड़ा खतरा है।
  • वनों की कटाई और कृषि विस्तार के कारण आवासीय हानि।

संरक्षण स्थिति

  • IUCN रेड लिस्ट: गंभीर रूप से संकटग्रस्त (Critically Endangered)।
  • CITES: परिशिष्ट-I (Appendix I)।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद प्रस्ताव 1267

अमेरिका, ब्रिटेन एवं फ्राँस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (Balochistan Liberation Army- BLA) तथा मजीद ब्रिगेड को आतंकवादी घोषित करने के पाकिस्तान के प्रयास पर रोक लगा दी है।

  • 1267 प्रतिबंध समिति ने पाकिस्तान के प्रस्ताव को स्थगित कर दिया है, क्योंकि BLA का अल-कायदा या ISIL से कोई संबंध नहीं है, ऐसी रोक आमतौर पर लगभग छह महीने तक रहती है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद प्रस्ताव 1267 के बारे में

  • उद्देश्य: प्रतिबंधों के लिए व्यक्तियों एवं संस्थाओं को नामित करने हेतु एक संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद समिति की स्थापना।
  • प्रतिबंध उपाय: इसमें संपत्ति जब्त करना, यात्रा प्रतिबंध एवं हथियार प्रतिबंध शामिल हैं।
  • प्रारंभिक फोकस: अल-कायदा एवं तालिबान पर लक्षित।
  • अधिदेश विस्तार: वर्ष 2015 में, प्रस्ताव 2253 के माध्यम से इस्लामिक स्टेट (Islamic State- ISIL) को शामिल करने के लिए इसे बढ़ाया गया।
  • प्रतिबंध सूची: वर्ष 2024 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, समिति के प्रतिबंधों के अंतर्गत 255 व्यक्ति एवं 89 संस्थाएँ सूचीबद्ध थीं।
  • निरीक्षण: 1267 प्रतिबंध समिति वैश्विक स्तर पर प्रतिबंध उपायों की निगरानी करती है तथा उनके कार्यान्वयन को सुनिश्चित करती है।

बलूच कौन हैं?

  • बलूच एक जातीय-भाषायी समूह है, जो मुख्यतः बलूचिस्तान में निवास करता है एवं पाकिस्तान, ईरान तथा अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों में विस्तृत है। वे बलूची भाषा बोलते हैं एवं उनकी एक विशिष्ट सांस्कृतिक विरासत है।
  • विभाजन-पूर्व आकांक्षाएँ: वर्ष 1947 में भारत के विभाजन से पूर्व, बलूच नेताओं ने अपनी विशिष्ट जातीयता, संस्कृति एवं क्षेत्र के अविकसित होने का हवाला देते हुए ब्रिटिश भारत से स्वायत्तता या स्वतंत्रता की माँग की थी।
  • संसाधन एवं राजनीतिक शिकायतें: बलूच लोग स्थानीय संसाधनों पर नियंत्रण और अधिक राजनीतिक स्वायत्तता की माँग करते रहे हैं, वे केंद्रीय प्राधिकारियों द्वारा, विशेष रूप से पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में, स्वयं को वंचित महसूस करते हैं।

बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) के बारे में

  • परिचय: BLA एक सशस्त्र अलगाववादी समूह है, जो 2000 के दशक की शुरुआत में पाकिस्तान के बलूचिस्तान में उभरा एवं जो क्षेत्रीय स्वायत्तता के लिए हमले करता रहा है।
  • प्रमुख गतिविधियाँ: कराची एवं ग्वादर बंदरगाह आत्मघाती हमले (2024) तथा जफर एक्सप्रेस अपहरण (2025) सहित हमलों के लिए जिम्मेदार।
  • माँगे: बलूच उग्रवादियों का दावा है कि पाकिस्तानी सरकार ने उनके गरीब प्रांत को प्राकृतिक एवं खनिज संसाधनों तक उचित पहुँच से वंचित कर दिया है, वे स्वायत्तता तथा स्थानीय संसाधनों पर नियंत्रण चाहते हैं।

मजीद ब्रिगेड के बारे में: यह बलूच लिबरेशन आर्मी का आत्मघाती दस्ता (Suicide squad) है।

  • इसका नाम दो भाइयों, मजीद लैंगोव सीनियर एवं मजीद लैंगोव जूनियर के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने क्रमशः अगस्त 1974 तथा मार्च 2010 में आत्मघाती हमले किए थे।

बलूच मुद्दे पर भारत का दृष्टिकोण

  • भारत ने बलूचिस्तान में BLA गतिविधियों का समर्थन करने के पाकिस्तान के आरोपों को खारिज कर दिया है।
  • भारत ऐतिहासिक आरोपों एवं रणनीतिक संवेदनशीलताओं को देखते हुए, क्षेत्रीय सुरक्षा निहितार्थों के कारण घटनाक्रम पर कड़ी नजर रख रहा है।

NE-SPARKS कार्यक्रम

हाल ही में, पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्री ने NE-SPARKS कार्यक्रम के अंतर्गत इसरो का दौरा करने वाले पूर्वोत्तर के छात्रों के साथ वार्ता की।

NE-SPARKS कार्यक्रम के बारे में

  • परिचय: NE-SPARKS का अर्थ है अंतरिक्ष संबंधी जागरूकता, पहुँच एवं ज्ञान के लिए पूर्वोत्तर छात्रों का कार्यक्रम, (North East Students’ Programme for Awareness, Reach, and Knowledge on Space) जो छात्रों को भारत की अंतरिक्ष तकनीक से परिचित कराता है।
  • समर्थन: पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय (MDoNER) द्वारा उत्तर पूर्वी अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (NESAC) – इसरो एवं आठ पूर्वोत्तर राज्य सरकारों के साथ मिलकर यह परियोजना तैयार की गई है।
  • उद्देश्य: विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग एवं गणित (Science, Technology, Engineering, and Mathematics- STEM) क्षेत्रों में रुचि जागृत करना तथा पूर्वोत्तर राज्यों के मेधावी छात्रों में वैज्ञानिक जिज्ञासा का पोषण करना।
  • आउटरीच: कार्यक्रम का लक्ष्य 800 छात्र (प्रत्येक पूर्वोत्तर राज्य से 100) हैं।
    • कुल चार समूहों ने ISRO का दौरा किया है, जिसमें 394 छात्र (189 पुरुष, 205 महिला) शामिल हैं।

महत्त्व

  • प्रेरणा: छात्रों को उपग्रह एकीकरण, चंद्रयान-3, आदित्य-L1 एवं आगामी गगनयान मिशन का अनुभव प्राप्त हुआ, जिससे उनकी शैक्षणिक आकांक्षाओं को आकार मिला।
  • समावेशिता: दूरस्थ एवं कम प्रतिनिधित्व वाले क्षेत्रों के छात्रों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, अवसरों तक समान पहुँच पर जोर दिया गया।
  • राष्ट्र निर्माण: पूर्वोत्तर के भावी वैज्ञानिकों एवं नवप्रवर्तकों को अंतरिक्ष विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी में भारत की प्रगति में योगदान देने के लिए प्रोत्साहित किया गया।

कदंब वृक्ष

भारतीय प्रधानमंत्री ने अपने 75वें जन्मदिन के उपलक्ष्य में अपने आवास पर राजा चार्ल्स तृतीय द्वारा उपहार में दिया गया कदंब का पौधा लगाया, जो मित्रता एवं स्थिरता का प्रतीक है।

  • प्रधानमंत्री ने इससे पहले राजा चार्ल्स को “एक पेड़ माँ के नाम” पहल के तहत एक सोनोमा वृक्ष भेंट किया था, जो जलवायु एवं स्थिरता पर भारत-ब्रिटेन सहयोग को दर्शाता है।

कदंब वृक्ष के बारे में

  • परिचय: कदंब वृक्ष (नियोलामार्किया कदम्बा), जिसे ‘बरफ्लावर’ वृक्ष भी कहा जाता है, रूबिएसी फैमिली से संबंधित है एवं एक तेजी से बढ़ने वाला उष्णकटिबंधीय वृक्ष है।
  • स्थानीय: यह दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्व एशियाई मूल का वृक्ष है, पूरे भारत में पाया जाता है तथा पूरे विश्व के उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाया जाता है।
  • विशेषताएँ: एक बड़ा, तेजी से बढ़ने वाला वृक्ष है, जो 45 मीटर तक ऊँचा हो सकता है, छाया एवं पारिस्थितिकी लाभ प्रदान करता है।
  • उपयोग: कदंब में औषधीय गुण होते हैं, इसका उपयोग आयुर्वेद में त्वचा, बुखार एवं पाचन संबंधी बीमारियों के लिए किया जाता है तथा यह जैव विविधता एवं मृदा की उर्वरता को बढ़ावा देता है।
  • सांस्कृतिक महत्त्व: भारतीय परंपरा में इसे पवित्र माना जाता है, यह प्रायः भगवान कृष्ण से जुड़ा हुआ है एवं इसके पारिस्थितिकी तथा प्रतीकात्मक महत्त्व भी हैं।

सोनोमा वृक्ष के बारे में

  • सोनोमा वृक्ष (डेविडिया इनवोलुक्रेटा ‘सोनोमा’), एक पर्णपाती वृक्ष की प्रजाति है।
  • सौंदर्य संबंधी महत्त्व: यह विशेष रूप से उन बड़े सफेद सहपत्रों के लिए मूल्यवान है, जो जल्दी (2-3 साल) प्रस्फुटित होते हैं और हृदय के आकार की हरी पत्तियों वाले पौधों के लिए भी उपयोगी है।
  • सामान्य परिस्थितियाँ: यह पूर्ण सूर्य से आंशिक छाया, अच्छी जल निकासी वाली मृदा में पनपता है, एवं संस्तर 6b में कठोर होता है, -20 से -18°C तक के तापमान को सहन कर सकता है।

‘एक पेड़ माँ के नाम’ पहल

  • ‘एक पेड़ माँ के नाम’ एक वृक्षारोपण पहल है, जो लोगों को अपनी माँ के सम्मान में एक वृक्ष लगाने के लिए प्रोत्साहित करती है, जो मातृ देखभाल एवं पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक है।
  • 5 जून (पर्यावरण दिवस), 2024 को प्रधानमंत्री द्वारा शुभारंभ।

नीली अर्थव्यवस्था

हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री ने समृद्धि, स्थिरता एवं राष्ट्रीय शक्ति को एकीकृत करते हुए, भारत के विकास के मूल के रूप में नीली अर्थव्यवस्था की पुष्टि की।

  • भारत सरकार की नीली अर्थव्यवस्था 2.0 न केवल पारंपरिक क्षेत्रों पर, बल्कि समुद्री क्षेत्र में उभरते उच्च-संभावना वाले क्षेत्रों पर भी ध्यान केंद्रित कर रही है।

नीली अर्थव्यवस्था के बारे में

  • नीली अर्थव्यवस्था, समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को संरक्षित करते हुए, आर्थिक विकास, बेहतर आजीविका एवं रोजगार के लिए समुद्री संसाधनों के सतत् उपयोग को संदर्भित करती है।
  • राष्ट्रीय क्षमता: भारत की 11,098 किलोमीटर लंबी तटरेखा एवं 24 लाख वर्ग किलोमीटर का EEZ, 100 अरब डॉलर की नीली अर्थव्यवस्था के विकास हेतु अवसर प्रदान करते हैं।
  • भारत की पहल: भारत की नीली अर्थव्यवस्था के समर्थन हेतु कई कार्यक्रम शुरू किए, जैसे- सागरमाला पहल (वर्ष 2016), वर्ष 2020 में प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) एवं वर्ष 2021 में डीप ओशन मिशन।
  • नीली अर्थव्यवस्था 2.0: जलवायु लचीलापन, तटीय पारिस्थितिकी तंत्र बहाली एवं सतत् जलीय कृषि तथा समुद्री कृषि को एकीकृत करके अपने समुद्री क्षेत्र में सतत् आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2024-2025 के अंतरिम बजट में प्रावधान किया गया।

प्रमुख घटक

  • मत्स्यपालन एवं जलीय कृषि: सतत् मत्स्यपालन पद्धतियाँ, समुद्र आधारित खाद्य सुरक्षा।
  • समुद्री परिवहन एवं बंदरगाह: व्यापार सुगमता एवं लाजिस्टिक।
  • पर्यटन: पर्यावरण-अनुकूल तटीय एवं समुद्री पर्यटन।
  • ऊर्जा: अपतटीय पवन, ज्वारीय, तरंग एवं महासागरीय तापीय ऊर्जा।
  • जैव प्रौद्योगिकी: समुद्री आनुवंशिक संसाधन, औषधियाँ।
  • खनिज एवं संसाधन: गहरे समुद्र में खनन, समुद्र तल संसाधन (पारिस्थितिकी सुरक्षा उपायों के साथ)।

नीली अर्थव्यवस्था पहल के अंतर्गत भारत की उपलब्धियाँ

तकनीकी एवं अवसंरचना उपलब्धियाँ

  • डीप ओशन मिशन: मत्स्य पनडुब्बी के माध्यम से गहरे समुद्र में अन्वेषण को सक्षम बनाना, रणनीतिक संसाधनों की खोज एवं समुद्री प्रौद्योगिकियों को आगे बढ़ाना।
  • सागरमाला कार्यक्रम: व्यापार दक्षता, संपर्कता एवं वैश्विक समुद्री प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ावा देने के लिए बंदरगाहों का आधुनिकीकरण।

आर्थिक उपलब्धियाँ

  • मत्स्य पालन: भारत वर्ष 2024-25 में रिकॉर्ड 195 लाख टन मत्स्य उत्पादन के साथ दूसरा सबसे बड़ा मत्स्य उत्पादक देश बन गया।
  • निर्यात लाभ: मत्स्य निर्यात ₹46,662.85 करोड़ (वर्ष 2019-20) से बढ़कर ₹60,524.89 करोड़ (वर्ष 2023-24) हो गया।

सामाजिक उपलब्धियाँ

  • रोजगार सृजन: PMMSY ने वर्ष 2024 तक 58 लाख रोजगार सृजित किए, जो इसके द्वारा निर्धारित किए गए 55 लाख के लक्ष्य से अधिक है।
  • महिला सशक्तीकरण: PMMSY (वर्ष 2020-25) के तहत ₹4,061.96 करोड़ की वित्तीय सहायता से 99,018 महिलाओं को लाभ हुआ।
  • सामुदायिक सशक्तीकरण: पहलों से समुद्री शैवाल की कृषि एवं पर्यावरण-अनुकूल पर्यटन को बढ़ावा मिलता है, जिससे तटीय महिलाओं के लिए आय के स्रोतों में विविधता आती है।
  • वित्तीय सहायता: PMMSY 60% तक सहायता (₹1.5 करोड़/परियोजना) प्रदान करती है, जो लैंगिक रूप से समावेशी उद्यमिता को बढ़ावा देती है।

संदर्भ

भारत और खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO) ने भारत में ब्लू पोर्ट (Blue Ports) बुनियादी ढाँचे को मजबूत करने के लिए एक तकनीकी सहयोग कार्यक्रम (Technical Cooperation Programme- TCP) समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।

ब्लू पोर्ट पहल के बारे में

  • ब्लू पोर्ट पहल का उद्देश्य सभी हितधारकों के सहयोग से समुद्री और तटीय क्षेत्रों को सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय रूप से सतत् क्षेत्र में परिवर्तित करना है।
  • समुद्री उद्योग के प्रमुख केंद्र के रूप में मत्स्यन बंदरगाह स्थानीय समुदायों पर सीधा प्रभाव डालते हैं और इन्हें स्थानीय, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर विकास और मूल्य सृजन के लिए एक महत्त्वपूर्ण मंच के रूप में विकसित किया जा सकता है।

भारत में ‘ब्लू पोर्ट फ्रेमवर्क’

  • उद्देश्य: स्मार्ट, सतत् और समावेशी मत्स्यन बंदरगाहों का विकास करना।
  • नोडल मंत्रालय: केंद्रीय मत्स्य, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के अंतर्गत मत्स्य विभाग (DoF)।
  • विशेषताएँ
    • तकनीक का एकीकरण: बंदरगाह संचालन को बेहतर बनाने के लिए 5G, AI, ऑटोमेशन, IoT, डिजिटल प्लेटफॉर्म और सैटेलाइट कम्युनिकेशन का उपयोग करना।
    • पर्यावरण-अनुकूल बुनियादी ढाँचा: वर्षा जल संग्रहण, ऊर्जा-कुशल लाइटिंग, सीवेज उपचार, समुद्री अपशिष्ट स्वच्छता।
    • जलवायु लचीलापन: यह सतत् प्रथाओं को सुनिश्चित करता है और समुद्री खाद्य निर्यात की प्रतिस्पर्द्धात्मक क्षमता को मजबूत करता है।
  • प्रमुख योजना का समर्थन: प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) और मत्स्यपालन और जलीय कृषि अवसंरचना विकास कोष (Fisheries and Aquaculture Infrastructure Development Fund- FIDF) द्वारा समर्थित है।
  • प्रारंभिक परियोजनाएँ
    • FAO के TCP कार्यक्रम के तहत वनाकबारा (दीव) और जखाऊ (गुजरात) को सहायता दी गई।
    • PMMSY के अंतर्गत 369.8 करोड़ रुपये के निवेश के साथ तीन स्मार्ट और एकीकृत मत्स्य बंदरगाहों (वनकबारा-दीव, कराईकल-पुदुचेरी, जखाऊ-गुजरात) को मंजूरी प्रदान की गई।
  • केस स्टडी: विगो बंदरगाह (स्पेन) – स्थिरता और नवाचार के लिए एक आदर्श उदाहरण।

भारत के लिए महत्त्व

  • मत्स्यपालन का आधुनिकीकरण: यह ‘पोस्ट हार्वेस्टिंग’ बुनियादी ढाँचे को मजबूत करता है, जो खाद्य और पोषण सुरक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • निर्यात प्रतिस्पर्द्धा: यह वैश्विक समुद्री खाद्य बाजार में भारत की भूमिका को मजबूत करता है।
  • जीविका: दक्षता और स्थिरता के माध्यम से मछुआरा समुदायों की आय में वृद्धि होती है।
  • पर्यावरण संरक्षण: यह आर्थिक व्यवहार्यता और पारिस्थितिकी स्वास्थ्य के बीच संतुलन स्थापित करता है।
  • वैश्विक सर्वोत्तम पद्धतियाँ: FAO के सहयोग से अंतरराष्ट्रीय स्थिरता मानकों के अनुरूप कार्य सुनिश्चित होता है।

संदर्भ

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) द्वारा जारी स्टेट ऑफ ग्लोबल वाटर रिसोर्स रिपोर्ट 2024 में जल चक्र में बढ़ते असंतुलन पर प्रकाश डाला गया है। इसमें सूखे, बाढ़ और ग्लेशियरों के पिघलने की बढ़ती घटनाओं का उल्लेख है, जिससे पूरे विश्व के अरबों लोग प्रभावित हो रहे हैं।

जल चक्र (हाइड्रोलॉजिकल चक्र)

  • जल चक्र या हाइड्रोलॉजिकल चक्र पृथ्वी पर जल की निरंतर गति है, जिसमें यह वायुमंडल, सतह और भूमिगत जल के माध्यम से एक लगातार प्रक्रिया के रूप में संचालित होता है। यह प्रक्रिया वाष्पीकरण, संघनन, वर्षा, सतही बहाव और अंत:स्राव के चरणों से होती है तथा पृथ्वी पर जल की उपलब्धता, जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बनाए रखती है।

WMO रिपोर्ट की मुख्य बिंदु

  • असामान्य नदी बेसिन: पूरे विश्व के नदी बेसिन में से केवल 1/3 में सामान्य स्थिति थी; लगातार छठे वर्ष 2/3 बेसिन सामान्य से ऊपर या नीचे रहे।
  • ग्लेशियरों का पिघलना
    • तीसरे लगातार वर्ष ग्लेशियरों में बड़े पैमाने पर हिमस्खलन हुआ, लगभग 450 गीगा टन, जिससे समुद्र का स्तर 1.2 मिमी. बढ़ गया।
    • यह मात्रा 180 मिलियन ओलंपिक स्विमिंग पूल के बराबर है और कोलंबिया के ग्लेशियरों में हिम का लगभग 5% भाग कम हो  गया।
    • कई छोटे ग्लेशियर वाले क्षेत्रों में जल स्तर की अधिकतम सीमा तक पहुँच गया।
  • जल संकट: 3.6 अरब लोग पूर्व से ही वर्ष में कम-से-कम एक बार जल की कमी का सामना करते हैं; अनुमान है कि वर्ष 2050 तक यह संख्या 5 अरब से अधिक हो जाएगी (UN वॉटर)।
  • जलवायु परिस्थितियाँ: वर्ष 2024 अब तक का सबसे गर्म वर्ष था।
    • अलनीनो का प्रभाव: दक्षिण अमेरिका के उत्तरी भाग, अमेजन और दक्षिणी अफ्रीका में सूखे की स्थिति।
    • औसत से अधिक वर्षा: मध्य/पश्चिमी अफ्रीका, विक्टोरिया झील क्षेत्र, कजाखस्तान, दक्षिणी रूस, मध्य यूरोप, पाकिस्तान, उत्तरी भारत, दक्षिणी ईरान और उत्तर-पूर्वी चीन।
  • क्षेत्रीय पैटर्न
    • सूखा: अमेजन बेसिन, दक्षिण अमेरिका (पाराना, ओरिनोको, साओ फ्राँसिस्को), दक्षिणी अफ्रीका (जांबेजी, लिंपोपो, ओकावांगो)।
    • बाढ़: पश्चिम अफ्रीका (सेनेगल, नाइजर, लेक चाड, वोल्टा); यूरोप में वर्ष 2013 के बाद तीव्र बाढ़ की उपस्थिति उत्पन्न हुई।
    • सामान्य से अधिक जल प्रवाह: डैन्यूब, गंगा, गोदावरी, सिंधु और मध्य एशियाई नदियाँ।
  • झीलें, जलाशय, भूजल
    • झीलें: 75 बड़ी झीलों में गर्मियों में सामान्य से अधिक तापमान देखा गया → जिससे जल की गुणवत्ता प्रभावित हुई।
    • भूजल: 47 देशों के 37,406 कुओं में से केवल 38% में सामान्य स्तर था; अधिक निकासी एक लगातार समस्या है।
    • जल भण्डारण और मृदा में नमी: आर्द्र क्षेत्रों (यूरोप, भारत) में जल का पुनर्भंडारण हुआ; अफ्रीका, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के कुछ हिस्सों में कमी बनी हुई है।

व्यापक निहितार्थ

  • पारिस्थितिकी तंत्र: स्वच्छ जल की अनियमित उपलब्धता जैव विविधता के लिए खतरा है।
  • सामाजिक-आर्थिक: खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा आपूर्ति, विस्थापन और जन स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव।
  • ग्लेशियर पिघलना: समुद्र का स्तर बढ़ने से तटीय क्षेत्रों में लाखों लोगों को खतरा है।
  • SDG 6 (जल और स्वच्छता): पूरा विश्व लक्ष्य से बहुत पीछे है।

WMO की सिफारिशें

  • डेटा की कमी: अभी केवल कुछ ही स्थानों पर मॉनिटरिंग की जा रही है; पर्याप्त डेटा के अभाव में वास्तविक स्थिति का आकलन करना कठिन है।
  • वैश्विक सहयोग: हाइड्रोलॉजिकल मॉनिटरिंग, सैटेलाइट सिस्टम और देशों के बीच डेटा शेयरिंग में निवेश की आवश्यकता है।
  • विज्ञान-आधारित नीति: जलवायु परिवर्तन से निपटने और आपदा जोखिम को कम करने के लिए विश्वसनीय जल संबंधी जानकारी महत्त्वपूर्ण है।

स्टेट ऑफ ग्लोबल वाटर रिसोर्स रिपोर्ट के बारे में

  • प्रकाशितकर्ता: विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO)।
  • वार्षिक रिपोर्ट: यह पूरे विश्व में जल संसाधनों का एक व्यापक और सुसंगत अवलोकन प्रस्तुत करती है।
    • यह दर्जनों राष्ट्रीय मौसम विज्ञान और जल विज्ञान सेवाओं, अन्य संगठनों तथा विशेषज्ञों से प्राप्त जानकारी पर आधारित है।

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) के बारे में

  • प्रकृति: WMO एक अंतर-सरकारी संगठन है, जिसके 193 सदस्य देश और क्षेत्र हैं, जिनमें भारत भी शामिल है।
  • प्रारंभ: इसकी शुरुआत वर्ष 1873 में वियना में आयोजित अंतरराष्ट्रीय मौसम विज्ञान सम्मेलन में स्थापित अंतरराष्ट्रीय मौसम विज्ञान संगठन से हुई।
  • स्थापना: WMO की औपचारिक स्थापना 23 मार्च, 1950 को WMO कन्वेंशन के अनुमोदन के माध्यम से हुई।
  • UN एजेंसी: बाद में यह मौसम विज्ञान (मौसम और जलवायु), परिचालन जल विज्ञान और संबंधित भू-भौतिकीय विज्ञान के लिए संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी बन गई।
  • मुख्यालय: यह स्विट्जरलैंड के जिनेवा में स्थित है।

संदर्भ

हाल ही में भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (Insurance Regulatory and Development Authority of India- IRDAI) ने बीमा से संबंधित सभी सेवाओं के लिए एक एकीकृत डिजिटल मार्केटप्लेस, बीमा सुगम पोर्टल (Bima Sugam Portal) को आधिकारिक तौर पर लॉन्च किया है।

  • बीमा सुगम इंडिया फेडरेशन (Bima Sugam India Federation-BSIF) ने अपनी आधिकारिक वेबसाइट के लॉन्च के साथ इसकी घोषणा की।

बीमा सुगम के बारे में

  • 20 मार्च, 2024 की राजपत्र अधिसूचना के अनुसार, यह सभी इंश्योरेंस हितधारकों (उपभोक्ता, इंश्योरेंस कंपनियाँ, मध्यस्थ और एजेंट) के लिए पारदर्शिता, दक्षता और इंश्योरेंस वैल्यू चेन में सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक ‘सिंगल डिजिटल मार्केटप्लेस’ है।
  • संरक्षक: बीमा सुगम पोर्टल, भारत के बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) की एक पहल है, जो वित्त मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करता है।
  • समर्थक: लाइफ इंश्योरेंस काउंसिल और जनरल इंश्योरेंस काउंसिल (General Insurance Council- GIC)।
  • बीमा ट्रिनिटी का हिस्सा: यह IRDAI द्वारा शुरू की गई ‘बीमा ट्रिनिटी’ का हिस्सा है, जिसमें ‘बीमा विस्तार’ (एक कॉम्प्रिहेंसिव इंश्योरेंस प्रोडक्ट) और ‘बीमा वाहक’ (महिलाओं के लिए केंद्रित वितरण चैनल) भी शामिल हैं।
  • विजन: इंश्योरेंस क्षेत्र का ‘यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस’ (Unified Payments Interface-UPI)/अमेजन’ बनना, ताकि सभी इंश्योरेंस पॉलिसी के लिए आसान पहुँच, खरीद, प्रबंधन, नवीनीकरण और ‘क्लेम’ निपटान की सुविधा उपलब्ध कराई जा सके।
  • उद्देश्य
    • पारदर्शिता और सरल प्रक्रियाओं के माध्यम से पॉलिसी धारकों को सशक्त बनाना।
    • इंश्योरेंस का दायरा बढ़ाना और ‘वर्ष 2047 तक सभी के लिए इंश्योरेंस’ (विकसित भारत@2047 विजन) सुनिश्चित करना।
    • पूरी तरह से डिजिटल सर्विसिंग (पॉलिसी खरीदना, रिन्यू करना, स्टोर करना और क्लेम करना) की सुविधा उपलब्ध कराना।
    • नवोन्मेष को बढ़ावा देना और सैंडबॉक्स/कस्टम उत्पादों का समर्थन करना।
    • सुरक्षित, अनुपालन-युक्त और ‘मापनीय’ इन्फ्रास्ट्रक्चर के माध्यम से विश्वास बनाना।
  • प्रमुख विशेषताएँ
    • कवरेज: जीवन बीमा [टर्म प्लान, एन्युइटी, यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान (ULIPs)], हेल्थ इंश्योरेंस, मोटर इंश्योरेंस, ट्रैवल इंश्योरेंस, प्रॉपर्टी इंश्योरेंस, कृषि बीमा और कमर्शियल इंश्योरेंस।
    • सेंट्रलाइज्ड डेटाबेस: सुरक्षित पॉलिसी स्टोरेज और आसान क्वेरी/क्लेम एक्सेस।
    • कम लागत वाला मॉडल: न्यूनतम शुल्क; सभी इंश्योरेंस कंपनियाँ बीमा सुगम इंडिया फेडरेशन (BSIF) की सदस्य और इक्विटी शेयरहोल्डर हैं।
    • एडवांस्ड टेक्नोलॉजी: ऑटोमेशन, डिजिटाइजेशन और बाहरी डेटा सोर्स के साथ इंटीग्रेशन।
    • सहयोग: एक ही प्लेटफॉर्म पर इंश्योरेंस कंपनियाँ, ब्रोकर, बैंक और एजेंट

बीमा सुगम की मुख्य विशेषताएँ

  • ग्लोबल फर्स्ट (Global First): विश्व का पहला एकीकृत बीमा बाजार जो जीवन, स्वास्थ्य, सामान्य और वाणिज्यिक उत्पादों को एक ही मंच पर एकीकृत करता है।
  • सार्वजनिक अवसंरचना मॉडल: यह बीमा के लिए डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) के रूप में कार्य करता है, जो भुगतान में एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI) के समान है।
  • उद्योग स्वामित्व: इसका संचालन बीमा सुगम भारत महासंघ (Bima Sugam India Federation- BSIF) द्वारा किया जाता है, जिसमें सभी बीमाकर्ता निजी एग्रीगेटर्स के विपरीत, इक्विटी हितधारक होते हैं।
  • एंड-टू-एंड सर्विसेस (End-to-End Services): यह संपूर्ण पॉलिसी जीवन चक्र सेवाएँ (खरीद, तुलना, नवीनीकरण, दावा निपटान और सुरक्षित डिजिटल भंडारण) प्रदान करता है।

भारत में बीमा क्षेत्र

  • बीमा बाजार का आकार: भारत विश्व का 10वाँ सबसे बड़ा और उभरते एशिया का दूसरा सबसे बड़ा बीमा बाजार है।
  • प्रवेश: बीमा प्रवेश (GDP के प्रतिशत के रूप में प्रीमियम) 4.2% (वर्ष 2023) बना हुआ है, जो वैश्विक औसत (7%) से कम है।
  • घनत्व: बीमा घनत्व (प्रति व्यक्ति प्रीमियम) लगभग $91 (वर्ष 2023) था, जो व्यापक अप्रयुक्त क्षमता को दर्शाता है।
  • संरचना: इसमें जीवन बीमा, गैर-जीवन/सामान्य बीमा, पुनर्बीमा और स्वास्थ्य बीमा शामिल हैं।

प्रमुख नियामक और संस्थान

  • भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (IRDAI) (1999): यह शीर्ष नियामक संस्था है, जो पॉलिसीधारक की सुरक्षा, वित्तीय स्थिरता और इस क्षेत्र के विकास को सुनिश्चित करती है।
    • यह बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण अधिनियम, 1999 के तहत गठित एक वैधानिक निकाय है।
    • भूमिका: यह एक स्वायत्त निकाय है और भारत में बीमा क्षेत्र के विकास को विनियमित और पर्यवेक्षण करता है।
    • कार्य: पॉलिसी असाइनमेंट, पॉलिसीधारक द्वारा नॉमिनेशन, इंश्योरेबल इंटरेस्ट, इंश्योरेंस क्लेम का निपटान, पॉलिसी की सरेंडर वैल्यू तथा बीमा अनुबंधों के अन्य नियमों एवं शर्तों से संबंधित मामलों में पॉलिसी धारकों के हितों की रक्षा करना।
  • भारतीय जीवन बीमा निगम (Life Insurance Corporation- LIC): सबसे बड़ी जीवन बीमा कंपनी, निजी प्रतिस्पर्द्धा के बावजूद प्रमुख बाजार हिस्सेदारी को शामिल करती है।
  • भारतीय साधारण बीमा निगम (General Insurance Corporation-GIC): यह राज्य के स्वामित्व वाली पुनर्बीमा कंपनी है।
  • निजी बीमा कंपनियाँ: 20 से अधिक जीवन बीमा कंपनियाँ और 30 सामान्य (सामान्य) बीमा कंपनियाँ भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (PSU) बीमा कंपनियों के साथ मिलकर कार्य करती हैं।

हालिया सुधार एवं पहल

  • बीमा ट्रिनिटी: IRDAI का सुधार पैकेज, जो तीन कारकों पर कार्य करता है:-
    • बीमा सुगम (डिजिटल मार्केटप्लेस)
    • बीमा विस्तार (समग्र उत्पाद)
    • बीमा वाहक (महिला-केंद्रित वितरण)
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI): बीमा कंपनियों के लिए FDI 74% (वर्ष 2021) तक बढ़ा दिया गया।
  • प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY): प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) सरकार द्वारा प्रायोजित फसल बीमा योजना है, जो कई हितधारकों को एक ही मंच पर एकीकृत करती है।
  • आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PMJAY): आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PMJAY) माध्यमिक और तृतीयक देखभाल अस्पताल में भर्ती के लिए प्रति परिवार प्रति वर्ष 5 लाख रुपये तक का कवर प्रदान करती है। यह सरकार द्वारा वित्तपोषित सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना है।
  • डिजिटल प्रोत्साहन: बीमा रिपॉजिटरी, ई-केवाईसी (e-KYC) और इंश्योरटेक प्लेटफॉर्म (InsurTech Platforms) का उपयोग किया जा रहा है।

संदर्भ

स्वयं सहायता समूह (Self-Help Groups- SHGs) वित्तीय समावेशन, महिला नेतृत्व और ईंधन खुदरा, परिवहन और सौर ऊर्जा जैसे गैर-पारंपरिक क्षेत्रों में प्रवेश के माध्यम से ग्रामीण सशक्तीकरण को बढ़ावा दे रहे हैं, जैसा कि तेलंगाना की इंदिरा महिला शक्ति (Indira Mahila Shakti- IMS) में देखा गया है।

स्वयं सहायता समूह (Self-Help Groups- SHGs) के बारे में

  • परिभाषा: 10-20 सदस्यों, जिनमें अधिकतर महिलाएँ होती हैं, के अनौपचारिक संघ, बचत को एकत्रित करते हैं और औपचारिक ऋण तक पहुँच को सक्षम बनाते हैं।
    • यह आमतौर पर समान सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि वाले लोगों के स्वैच्छिक संघ का प्रतिनिधित्व करता है।
  • पैमाना: दीनदयाल अंत्योदय योजना- राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (Deendayal Antyodaya Yojana – National Rural Livelihoods Mission/ DAY-NRLM) के अंतर्गत (जनवरी 2025 तक) 10.05 करोड़ महिलाओं के परिवारों को शामिल करने वाले 90.9 लाख से अधिक स्वयं सहायता समूहों के साथ, स्वयं सहायता समूह अब विश्व का सबसे बड़ा सामुदायिक संस्थान नेटवर्क बनाते हैं।
  • सरकारी योजनाओं के साथ एकीकरण
    • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Act- MGNREGA): स्वयं सहायता समूह के सदस्य सहयोगी, सामाजिक लेखा परीक्षक और परियोजना कार्यान्वयन एजेंसियों के रूप में शामिल होते हैं।
    • अन्य विभाग (ग्रामीण विकास, महिला एवं बाल विकास, कृषि) भी आजीविका परियोजनाओं के लिए स्वयं सहायता समूहों को एकीकृत करते हैं।

दीनदयाल अंत्योदय योजना- राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (Deendayal Antyodaya Yojana – National Rural Livelihoods Mission/ DAY-NRLM) 

  • DAY- NRLM के मुख्य स्तंभ
    • सामाजिक नेटवर्क और सामुदायिक संस्थाएँ (स्वयं सहायता समूह, ग्राम संगठन, क्लस्टर स्तरीय संघ)।
    • स्वयं सहायता समूह-बैंक संपर्क के माध्यम से वित्तीय समावेशन।
    • सतत् आजीविका सृजन।
    • अन्य कल्याणकारी योजनाओं के साथ अभिसरण और अधिकार।
  • DAY- NRLM के अंतर्गत उप-योजनाएँ
    • महिला किसान सशक्तीकरण परियोजना (Mahila Kisan Sashaktikaran Pariyojana- MKSP): ग्रामीण महिलाओं को जैविक खेती, पशुधन और संसाधन प्रबंधन में प्रशिक्षण देकर कृषि और संबद्ध गतिविधियों में सशक्त बनाती है और उन्हें किसान के रूप में मान्यता प्रदान करती है।
    • स्टार्ट-अप ग्राम उद्यमिता कार्यक्रम (Start-up Village Entrepreneurship Programme- SVEP): स्वयं सहायता समूह (SHG) के सदस्यों को मूल पूँजी, प्रशिक्षण और सहायता प्रदान करके सूक्ष्म उद्यम स्थापित करने में सहायता प्रदान करती है, जिससे गैर-कृषि आजीविका को बढ़ावा मिलता है।
    • राष्ट्रीय ग्रामीण आर्थिक परिवर्तन परियोजना (National Rural Economic Transformation Project- NRETP): मूल्य शृंखलाओं और उत्पादक उद्यमों का निर्माण करती है, डिजिटल वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देती है और स्वयं सहायता समूहों को व्यापक बाजारों से जोड़ती है।
    • दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना (Deendayal Upadhyaya Gramin Kaushalya Yojana- DDU-GKY): IT, खुदरा और स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों में ग्रामीण युवाओं (15-35) को रोजगार प्रदान करने में सहायता के साथ माँग-आधारित कौशल प्रशिक्षण प्रदान करती है।
    • ग्रामीण स्व-रोजगार प्रशिक्षण संस्थान (Rural Self-Employment Training Institutes- RSETI): सिलाई, खाद्य प्रसंस्करण और सेवाओं जैसे व्यवसायों में अल्पकालिक, निःशुल्क प्रशिक्षण प्रदान करते हैं, साथ ही स्व-रोजगार के लिए प्रशिक्षण के बाद ऋण सुविधा भी प्रदान करते हैं।

भारत में स्वयं सहायता समूहों का विकास

  • 1970 का दशक: दक्षिणी राज्यों में बचत और ऋण सामूहिक के रूप में उभरा।
  • वर्ष 1992: नाबार्ड ने स्वयं सहायता समूह-बैंक लिंकेज कार्यक्रम (SHG–Bank Linkage Programme- SHG-BLP) शुरू किया, जिससे स्वयं सहायता समूहों को औपचारिक वित्त के दायरे में लाया गया।
  • वर्ष 1999: स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना (Swarnjayanti Gram Swarozgar Yojana- SGSY) ने स्वयं सहायता समूहों को गरीबी कम करने के साधन के रूप में मान्यता दी।
  • वर्ष 2011 के बाद: NRLM, जिसे अब DAY-NRLM कहा जाता है, ने पेशेवर और वित्तीय सहायता के साथ स्वयं सहायता समूहों के दायरे का विस्तार किया।
  • वर्तमान: भारत में विश्व का सबसे बड़ा स्वयं सहायता समूह नेटवर्क है, जो लगभग प्रत्येक तीन में से एक ग्रामीण परिवार को शामिल करता है।

स्वयं सहायता समूहों के उद्देश्य

  • वित्तीय समावेशन: बचत को संगठित करना और कम ब्याज पर औपचारिक ऋण तक पहुँच प्रदान करना।
  • महिला सशक्तीकरण: निर्णय लेने की क्षमता, गतिशीलता और सामाजिक मान्यता को बढ़ावा देना।
  • गरीबी उन्मूलन: आय सृजन को बढ़ावा देना और साहूकारों पर निर्भरता कम करना।
  • आजीविका विविधीकरण: हस्तशिल्प, कृषि-मूल्य शृंखलाओं और सेवाओं से संबंधित गतिविधियों को समर्थन देना।
  • सामुदायिक विकास: स्वास्थ्य, शिक्षा और स्वच्छता के प्रति जागरूकता बढ़ाना।
  • समावेशी विकास: अनुसूचित जातियों, जनजातियों, अन्य पिछड़ा वर्गों और अल्पसंख्यकों को मुख्यधारा की आर्थिक गतिविधियों में शामिल करना।

स्वयं सहायता समूहों का महत्त्व और प्रभाव

  • वित्तीय समावेशन और आजीविका सुरक्षा: बचत, ऋण और बैंकिंग सेवाओं (₹5.5 लाख करोड़ क्रेडिट लिंकेज) तक पहुँच प्रदान करना; सूक्ष्म उद्यमों, कृषि और सेवाओं के माध्यम से आजीविका में विविधता लाना और गरीबी कम करना।
  • सामाजिक विकास और सामुदायिक कल्याण: स्वास्थ्य, पोषण, स्वच्छता और शिक्षा अभियानों के लिए माध्यम के रूप में कार्य करना; शासन और ग्राम सभाओं में सामूहिक सौदेबाजी की शक्ति में सुधार करना।
  • महिला सशक्तीकरण: निर्णय लेने की क्षमता, आत्मविश्वास और नेतृत्व को बढ़ाना; पितृसत्तात्मक बाधाओं को तोड़ना और सामुदायिक मान्यता में सुधार करना।
  • सतत् और समावेशी विकास: सौर ऊर्जा, इको-पर्यटन और कृषि-मूल्य शृंखलाओं जैसे हरित उद्यमों को बढ़ावा देना; सतत् विकास लक्ष्य 1 (गरीबी उन्मूलन), सतत् विकास लक्ष्य 5 (लैंगिक समानता), और सतत् विकास लक्ष्य 8 (सभ्य कार्य और विकास) में योगदान देना।
  • सामूहिक शक्ति और शासन: संघीय संरचनाओं के माध्यम से जवाबदेही, पारदर्शिता और मापनीयता सुनिश्चित करना; सहभागी लोकतंत्र और समावेशी ग्रामीण शासन को मजबूत करना।
  • प्रतिकृति क्षमता: कुदुंबश्री (केरल) और IMS (तेलंगाना) जैसे सफल मॉडल सिद्ध करते हैं कि स्वयं सहायता समूह बड़े पैमाने के उद्यमों का प्रबंधन कर सकते हैं, जिससे देश भर में इन्हें अपनाने की प्रेरणा मिलती है।

भारत में स्वयं सहायता समूहों की उपलब्धियाँ

  • ऋण जुटाना: ₹6.9 लाख करोड़ से अधिक ऋण वितरित (वित्त वर्ष 2024); गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (NPA) 2.3% से नीचे बनी हुई हैं, जो कई कॉरपोरेट ऋणों (नाबार्ड 2024) से बेहतर है।
  • कवरेज: DAY-NRLM के तहत 8.7 करोड़ ग्रामीण परिवार से संबंधित हैं।
  • महिला-केंद्रित: 90% से अधिक सदस्य महिलाएँ हैं, जो आत्मविश्वास और नेतृत्व जैसे गुणों से अभिप्रेरित हैं।
  • राज्य मॉडल
    • कुदुंबश्री (Kudumbashree) (केरल): 45 लाख सदस्य; सूक्ष्म उद्यम और कुदुंबश्री कैफे (Kudumbashree cafés) संचालित करते हैं।
    • जीविका (JEEViKA) (बिहार): 1 करोड़ परिवार; कृषि मूल्य शृंखलाओं पर ध्यान केंद्रित करना।
    • इंदिरा महिला शक्ति (IMS, तेलंगाना): स्वयं सहायता समूह (SHGs) ग्रामीण महिलाओं को पेट्रोल पंप, सौर ऊर्जा और बस संचालन जैसे क्षेत्रों में आने वाली बाधाओं को दूर करने में सक्षम बना रहे हैं।
  • सामाजिक प्रभाव: अध्ययन (विश्व बैंक 2022) से पता चलता है कि स्वयं सहायता समूह की महिलाएँ सामान्य परिवारों की तुलना में बच्चों की शिक्षा, पोषण और स्वास्थ्य पर अधिक व्यय करती हैं।

केस स्टडी: तेलंगाना का इंदिरा महिला शक्ति (Indira Mahila Shakti- IMS) मॉडल

  • तेलंगाना में, ग्रामीण गरीबी उन्मूलन सोसायटी (Society for Elimination of Rural Poverty- SERP) के अंतर्गत स्वयं सहायता समूह महत्त्वाकांक्षा और सशक्तीकरण को नई परिभाषा दे रहे हैं।
  • वंचित पृष्ठभूमि की महिलाएँ अब ईंधन स्टेशनों, परिवहन बेड़े, कैंटीनों और सौर ऊर्जा परियोजनाओं का प्रबंधन कर रही हैं, पितृसत्तात्मक बाधाओं को तोड़ रही हैं और ‘इंदिरा महिला शक्ति’ (Indira Mahila Shakti – IMS) योजना के तहत समावेशी विकास को प्रोत्साहित कर रही हैं।

तेलंगाना में SHG मॉडल के बारे में

  • संघीय संरचना: स्वयं सहायता समूहों को ग्राम संगठनों, मंडल महिला समाख्याओं और जिला महिला समाख्याओं (Zilla Mahila Samakhyas- ZMS) में संगठित किया गया है।
  • पैमाना: SERP नेटवर्क 4.43 लाख स्वयं सहायता समूहों, 18,000 ग्राम संगठनों, 553 मंडल महिला समाख्याओं और 32 ZMS की 46.84 लाख महिलाओं को शामिल करता है।
  • नारायणपेट (Narayanpet) एक उदाहरण के रूप में: तेलंगाना का पहला महिला-संचालित पेट्रोल स्टेशन, सिंगाराम एक्स रोड्स (Singaram X Roads) में, फरवरी 2025 में उद्घाटन किया गया, जिसने 6 महीनों में ₹13.82 लाख का लाभ कमाया।
  • साझेदारी: BPCL, IOCL, HPCL जैसी सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों के साथ, लीज मॉडल के तहत ईंधन की खुदरा बिक्री को सक्षम बनाना।

तेलंगाना SHGs उद्यमों की अनूठी विशेषताएँ

  • पुरुषों के दायरे से बाहर: पुरुषों की पारंपरिक सीमा से बाहर, महिलाएँ अब उन ईंधन खुदरा दुकानों का सफलतापूर्वक प्रबंधन कर रही हैं, जिन्हें कभी ‘पुरुषों का कार्य’ माना जाता था।।
  • स्थायित्व अभिविन्यास: स्वयं सहायता समूह संघ, विद्युत कंपनियों के सहयोग से विभिन्न जिलों में 1,000 मेगावाट की सौर ऊर्जा इकाइयाँ स्थापित करने की तैयारी कर रहे हैं।
  • विविध उद्यम: पेट्रोल पंपों के अलावा 220 ISM कैंटीन (औसतन ₹72,000 मासिक लाभ), TSRTC को 151 बसों का लीज पर देना, 600 नई बसों को संचालित करने की योजना, साथ ही इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने की योजना।
  • विश्वास और दक्षता: ग्राहक महिलाओं द्वारा संचालित दुकानों को पारदर्शी, अनुशासित और विश्वसनीय मानते हैं।

प्रभाव

  • आर्थिक सशक्तीकरण: स्थायी नौकरियाँ और आय सुरक्षा प्रदान करना; उदाहरण के लिए, नारायणपेट में महिलाओं द्वारा संचालित पेट्रोल पंप ₹50 लाख वार्षिक लाभ कमाता है।
  • सामाजिक परिवर्तन: पितृसत्तात्मक बाधाओं को तोड़ते हुए महिलाओं का आत्मविश्वास, सम्मान और सामुदायिक मान्यता बढ़ाना।
  • सामूहिक शक्ति और जवाबदेही: संघीय स्वयं सहायता समूह प्रशिक्षण, संरचित निगरानी और पारदर्शी प्रबंधन सुनिश्चित करते हैं।
  • सतत् और समावेशी विकास: भारत के वर्ष 2030 के गैर-जीवाश्म ईंधन लक्ष्यों को आगे बढ़ाते हुए ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं (ईंधन, कैंटीन, सौर ऊर्जा, परिवहन) में विविधता लाना।
  • प्रतिरूपण क्षमता: महिलाओं द्वारा संचालित ईंधन स्टेशनों और सौर इकाइयों वाला तेलंगाना का IMS मॉडल अन्य राज्यों के लिए एक मापनीय ढाँचा प्रस्तुत करता है।

भारत में स्वयं सहायता समूहों की चुनौतियाँ और सीमाएँ

  • क्षेत्रीय असमानता: दक्षिणी राज्यों में मजबूत उपस्थिति, उत्तर और पूर्व में कमजोर क्रियान्वयन होना।
    • नीति आयोग (2023) के अनुसार, स्वयं सहायता समूहों (SHG) और बैंकों के बीच संबंध अत्यधिक विषम हैं, और आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु में स्वयं सहायता समूहों (SHG) के ऋण का 60% हिस्सा है।
  • ऋण बनाम क्षमता: कौशल विकास के बिना ऋणों पर अत्यधिक जोर देना।
    • विश्व बैंक (2022) ने बताया कि 40% स्वयं सहायता समूहों के पास उद्यम प्रबंधन में प्रशिक्षण का अभाव है।
  • ऋणग्रस्तता संबंधी जोखिम: एक से अधिक उधार लेने और अत्यधिक ऋणग्रस्तता का जोखिम बना रहता है।
    • भारतीय रिजर्व बैंक (2023) ने विशेष रूप से असम और बंगाल में बढ़ते सूक्ष्म वित्त तनाव पर प्रकाश डाला।
  • कमजोर संघ: विस्तार के लिए प्रबंधकीय विशेषज्ञता का अभाव होना।
    • केवल 35% स्वयं सहायता समूहों के पास उद्यमों का प्रबंधन करने में सक्षम संघ हैं (ग्रामीण विकास मंत्रालय, 2022)।
  • बाजार संपर्क में कमी: कई उत्पाद स्थानीय बाजारों तक ही सीमित रह जाते हैं।
    • सेवा 2022 के अध्ययन से पता चला है कि खराब ब्रांडिंग के कारण स्वयं सहायता समूहों (SHG) के उत्पादों की कीमतें 30-40% कम हो जाती हैं।
  • स्थायित्व संबंधी मुद्दे: कई स्वयं सहायता समूह अभी भी सब्सिडी और अनुदान पर निर्भर हैं।
    • CAG रिपोर्ट (2022) ने बताया कि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में 20% स्वयं सहायता समूह 5 वर्षों के भीतर निष्क्रिय हो गए।

विश्वव्यापी स्वयं सहायता समूह और माइक्रोफाइनेंस सफलता की कहानियाँ

  • ग्रामीण बैंक मॉडल, बांग्लादेश (1976): मुहम्मद यूनुस द्वारा संचालित, इसने गरीब महिलाओं को बिना किसी संपार्श्विक के सूक्ष्म ऋण प्रदान किया। 90 लाख से अधिक उधारकर्ता (97% महिलाएँ), पूरे विश्व ने इस मॉडल को अपनाया।
  • BRAC, बांग्लादेश: विश्व के सबसे बड़े गैर-सरकारी संगठनों में से एक, जो स्वयं सहायता समूहों को शिक्षा, स्वास्थ्य और उद्यम विकास के साथ जोड़ता है, एकीकृत सामुदायिक संस्थाओं की शक्ति का प्रदर्शन करता है।
  • ग्राम बचत और ऋण संघ (Village Savings and Loan Associations- VSLAs), अफ्रीका: CARE इंटरनेशनल द्वारा प्रवर्तित, 25 देशों के 70,000 से अधिक समूहों या संगठनों में कार्यरत। सदस्य छोटी-छोटी राशियों की बचत करते हैं और सामूहिक रूप से ऋण प्राप्त करते हैं, जिससे कमजोर अर्थव्यवस्थाओं वाली ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाया जाता है।
  • दक्षिण पूर्व एशिया (फिलीपींस, इंडोनेशिया, नेपाल) में स्वयं सहायता प्रोत्साहन: समुदाय-आधारित सूक्ष्म वित्त, सहकारिताओं, कृषि विपणन और सामाजिक सुरक्षा के साथ एकीकृत, गरीबी चक्रों के विरुद्ध लचीलापन सुनिश्चित करता है।

महिला सशक्तीकरण और सामाजिक विकास को बढ़ावा देने वाले वैश्विक SHG मॉडल

  • बांग्लादेश का ग्रामीण और BRAC मॉडल: ऋण और सामाजिक विकास (स्वास्थ्य, स्वच्छता, साक्षरता) पर बल देना। गरीबी में उल्लेखनीय कमी लाने का श्रेय प्राप्त किया।
  • केन्या के VSLAs: कम लागत वाली, समुदाय-स्वामित्व वाली ऋण प्रणाली, जिसे संवेदनशील और संघर्ष-ग्रस्त क्षेत्रों के लिए अनुकूलित किया गया है; अब विश्व बैंक और संयुक्त राष्ट्र महिला द्वारा समर्थित किया जा रहा है।
  • इथियोपिया के महिला विकास समूह: सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा से संबंधित संघीय महिला समूह टीकाकरण कवरेज बढ़ाने और मातृ मृत्यु दर में कमी लाने का श्रेय दिया जाता है।
  • फिलीपींस का CARD MRI: SHG-आधारित मॉडल, जो सूक्ष्म वित्त, बीमा, शिक्षा ऋण और आपदा सहायता को एकीकृत करता है, जिससे SHG वित्तीय समावेशन पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा बन जाते हैं।

भारत के लिए सबक

  • सामाजिक क्षेत्रों के साथ एकीकरण: भारत BRAC-शैली का एकीकरण अपना सकता है-स्वयं सहायता समूहों को न केवल वित्त से, बल्कि स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक कल्याण सेवाओं से भी जोड़ सकता है।
  • समुदाय-स्वामित्व वाली बीमा: CARD MRI फिलीपींस जैसे मॉडल दर्शाते हैं कि कैसे स्वयं सहायता समूह जोखिम सुरक्षा के लिए सूक्ष्म बीमा योजनाएँ संचालित कर सकते हैं।
  • प्रौद्योगिकी-संचालित विस्तार: अफ्रीका का VSLA मॉडल ऋण और पुनर्भुगतान के लिए मोबाइल बैंकिंग (M-Pesa, केन्या) का उपयोग करता है, जो भारत के डिजिटल स्वयं सहायता समूह प्लेटफॉर्म (e-SHRAM, SARAS, ONDC) के लिए एक आदर्श उदाहरण है।
  • संघीय शक्ति: इथियोपिया दिखाता है कि कैसे महिला समूहों के संघ राज्य नीति कार्यान्वयन के एजेंट हो सकते हैं, जो भारत के स्वयं सहायता समूह-पंचायती राज संस्थाओं के अभिसरण के लिए एक सबक है।

आगे की राह

  • क्षमता निर्माण: स्वयं सहायता समूहों (SHG) को सतत् उद्यम बनने के लिए बचत और ऋण आधारित प्रक्रिया से आगे बढ़ना होगा।
    • उद्यमिता प्रशिक्षण, डिजिटल साक्षरता, वित्तीय बहीखाता पद्धति और विपणन कौशल पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।
      • उदाहरण: बिहार में विश्व बैंक की जीविका परियोजना डेयरी और कृषि-मूल्य शृंखलाओं के लिए प्रशिक्षण मॉड्यूल को एकीकृत करती है, जिससे 30-40% की आय वृद्धि देखी गई है।
  • बाजार एकीकरण: कमजोर ब्रांडिंग और सीमित पहुँच के कारण स्वयं सहायता समूहों (SHG) के उत्पादों की कीमतें प्रायः कम होती हैं।
    • स्वयं सहायता समूहों को सरकारी ई-मार्केटप्लेस (GeM), ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC), अमेजन सहेली और फ्लिपकार्ट समर्थ जैसे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म से जोड़कर राष्ट्रीय स्तर पर उनके ग्राहक आधार का विस्तार किया जा सकता है।
      • उदाहरण: केरल के कुदुंबश्री कैफे उत्पाद पहले से ही ई-कॉमर्स पोर्टल के माध्यम से बेचे जा रहे हैं, जो सुनिश्चित बाजार प्रदान करते हैं।
  • विविधीकरण: स्वयं सहायता समूहों (SHG) को अक्षय ऊर्जा, रसद, स्वास्थ्य सेवाओं और कृषि-मूल्य शृंखलाओं जैसे गैर-पारंपरिक और उच्च-मूल्य वाले क्षेत्रों में कदम रखने की आवश्यकता है।
    • उदाहरण: तेलंगाना का IMS मॉडल सौर ऊर्जा (1,000 मेगावाट लक्ष्य) में प्रवेश कर रहा है, जबकि केरल के SHGs, कैंटीन और परिधान कारखानों का प्रबंधन करते हैं, जिससे यह सिद्ध होता है कि महिलाएँ विविध क्षेत्रों में उत्कृष्टता प्राप्त कर सकती हैं।
      • इससे सिलाई या छोटी दुकानों जैसी कम लाभ वाली गतिविधियों पर निर्भरता कम होती है।
  • नीतिगत समर्थन: ऋण को सस्ता बनाने के लिए ब्याज सहायता योजनाओं (वर्तमान में DAY-NRLM के तहत 7% तक सीमित) का विस्तार करना।
    • SHG उद्यमों के विस्तार के लिए कम लागत वाले ऋण, प्रारंभिक निधि और बुनियादी ढाँचा अनुदान प्रदान करना।
      • उदाहरण: NABARD का SHG-बैंक लिंकेज कार्यक्रम दर्शाता है कि समय पर, कम ब्याज दर वाली ऋण संबंधी त्रुटियों को कम करता है और स्थायी उद्यमों को बढ़ावा देता है।
  • निगरानी और जवाबदेही: स्वयं सहायता समूहों के प्रदर्शन, ऋण उपयोग और उद्यम की व्यवहार्यता को वास्तविक समय में ट्रैक करने के लिए डेटा-संचालित डैशबोर्ड, AI-आधारित निगरानी उपकरण और मोबाइल ऐप का उपयोग करना।
    • पारदर्शिता के लिए जिला स्तर पर सामाजिक ऑडिट और नियमित समीक्षा सुनिश्चित करना।
      • उदाहरण: आंध्र प्रदेश की SERP निगरानी प्रणाली पहले से ही स्वयं सहायता समूहों की गतिविधियों पर नजर रखती है और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए नीति आयोग द्वारा इसकी प्रशंसा की गई है।
  • सर्वोत्तम प्रथाओं का अनुकरण: कुदुंबश्री (केरल) और इंदिरा महिला शक्ति (तेलंगाना) जैसे मॉडल दर्शाते हैं कि संघीय स्वयं सहायता समूह पेट्रोल पंप, सौर ऊर्जा संयंत्र और परिवहन बेड़े जैसे बड़े उद्यमों का प्रबंधन कर सकते हैं।
    • इन सफलता की कहानियों को उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और झारखंड जैसे पिछड़े राज्यों में भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए, जहाँ स्वयं सहायता समूहों का अभी भी कम उपयोग हो रहा है।
    • राज्यों के मध्य समझौता ज्ञापनों, विनिमय यात्राओं और केंद्रीय प्रोत्साहनों के माध्यम से अनुकरण किया जा सकता है।

निष्कर्ष

स्वयं सहायता समूह न्याय, समानता और गरिमा के संवैधानिक दृष्टिकोण को मूर्त रूप देते हैं और सतत् विकास लक्ष्य 1 (गरीबी उन्मूलन), सतत् विकास लक्ष्य 5 (लैंगिक समानता), और सतत् विकास लक्ष्य 8 (सभ्य कार्य एवं आर्थिक विकास) की प्राप्ति को सुगम बनाते हैं। वर्ष 2047 तक एक समावेशी और सुदृढ़ विकसित भारत के निर्माण के लिए इन्हें मजबूत करना न केवल एक नीतिगत आवश्यकता है, बल्कि एक नैतिक अनिवार्यता भी है।

संदर्भ

हाल ही में सऊदी अरब और पाकिस्तान ने रियाद में एक पारस्परिक रक्षा समझौते (Strategic Reciprocal Defence Agreement) पर हस्ताक्षर किए, जिसमें यह प्रतिबद्धता दर्शाई गई कि किसी एक देश पर हमला दोनों देशों पर हमला माना जाएगा।

  • यह समझौता ऐसे समय में हुआ है, जब कतर में इजरायल के हमले के बाद पश्चिम एशिया में अस्थिरता बढ़ गई है।

इस समझौते के रणनीतिक आयाम

  • समझौते का दायरा: यह समझौता संयुक्त प्रशिक्षण, खुफिया जानकारी साझा करने और समन्वित अभ्यास सहित सभी सैन्य साधनों को शामिल करता है।
  • पारस्परिक रक्षा खंड: यह घोषणा करता है किकिसी भी देश पर हमला दोनों पर हमला माना जाएगा,’ जो लंबे समय से चर्चा में रहे सुरक्षा सहयोग को औपचारिक रूप देता है।
  • परमाणु समग्र आयाम (Nuclear Umbrella Dimension): इस समझौते के तहत पाकिस्तान की परमाणु क्षमता सऊदी अरब को उपलब्ध कराई जा सकती है।
    • यह सऊदी अरब को पाकिस्तान के परमाणु निवारक से जोड़ने वाली पहली सार्वजनिक स्वीकृति है, जिस पर 1970 और 1980 के दशक में पाकिस्तान के कार्यक्रम के लिए सऊदी वित्तीय सहायता के कारण लंबे समय से संदेह था।
  • निर्भरता और रणनीतिक पुनर्विचार: सऊदी अरब पारंपरिक रूप से अपनी सुरक्षा आवश्यकताओं के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका पर निर्भर रहा है, अमेरिका पर विश्वास कम होने से सऊदी अरब ने अपनी सुरक्षा नीति का पुनर्मूल्यांकन किया है और पाकिस्तान के साथ रक्षा समझौता इसी का संकेत है।
  • सऊदी अरब की स्थिति: सऊदी अरब ने इस समझौते को क्षेत्रीय शांति और स्थिरता की दिशा में एक कदम के रूप में प्रस्तुत किया है, हालाँकि इसका समय कतर पर इजरायल के हमले के बाद परिवर्तित संतुलन को स्पष्ट रूप से दर्शाता है।

भारत के लिए निहितार्थ

  • पाकिस्तान की स्थिति मजबूत होना: यह समझौता पाकिस्तान को सऊदी अरब से राजनीतिक और संभावित वित्तीय समर्थन प्रदान करता है, जो कश्मीर या आतंकवाद जैसे विवादों में पाकिस्तान को मजबूत कर सकता है।
    • उदाहरण के लिए, सऊदी अरब ने पहले पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए 3 अरब अमेरिकी डॉलर की जमा राशि जारी रखी है, जो अप्रत्यक्ष रूप से उसके रक्षा खर्च को बनाए रखती है।
  • नई सुरक्षा चुनौतियाँ: रक्षा क्षेत्र में सऊदी अरब द्वारा पाकिस्तान को वित्तीय सहयोग की संभावना, पाकिस्तानी सेना के और अधिक सुदृढ़ होने की आशंका को जन्म देती है, जिससे भारत की सुरक्षा संबंधी गणनाएँ जटिल हो सकती हैं।
  • खाड़ी क्षेत्र में ‘डोमिनो’ प्रभाव: इस समझौते से पश्चिम एशिया में डोमिनो’ प्रभाव पड़ने की संभावना है, जहाँ प्रतिद्वंद्विता और मतभेद अधिक देशों को समान रक्षा व्यवस्थाएँ अपनाने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।
    • ऐसे गुटों के उभरने से क्षेत्र में अस्थिरता बढ़ेगी, जो भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय है, क्योंकि पश्चिम एशिया उसकी ऊर्जा सुरक्षा के लिए केंद्रीय है और वहाँ बड़ी संख्या में प्रवासी कार्यबल मौजूद हैं।
  • पाकिस्तान के लिए रणनीतिक प्रतिरोध: भविष्य में किसी सैन्य टकराव की स्थिति में या सीमा-पार आतंकवाद में उसकी संलिप्तता के प्रत्युत्तर में एक सुरक्षा ढाल के रूप में, पाकिस्तान इस समझौते को भारत के विरुद्ध एक प्रकार के प्रतिरोधक उपाय के रूप में देख सकता है।
  • भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कॉरिडोर (India-Middle East-Europe Corridor-IMEC) पर प्रभाव: यदि सऊदी अरब की प्राथमिकताएँ पाकिस्तान की ओर झुकती हैं, तो भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कॉरिडोर (India-Middle East-Europe Corridor- IMEC) जैसी परियोजनाएँ अनिश्चितताओं का सामना कर सकती हैं, जिससे इस क्षेत्र में भारत की रणनीतिक और आर्थिक पहुँच प्रभावित हो सकती है।
  • कूटनीतिक रिक्तता: भारत को सऊदी अरब (ऊर्जा और निवेश के लिए) और इजरायल (रक्षा और प्रौद्योगिकी के लिए) दोनों के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखने की आवश्यकता है, जो और अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाएगा।
  • पाकिस्तान का भू-राजनीतिक लाभ: यह समझौता पाकिस्तान को पश्चिम एशिया में एक सुरक्षा प्रदाता के रूप में वैधता प्राप्त करने का अवसर देता है।
    • प्रतीकात्मक रूप से, यह मुस्लिम एकजुटता के आख्यानों को मजबूत करता है, जिसमें पाकिस्तान स्वयं को एक अखिल-इस्लामी सुरक्षा प्रदाता के रूप में स्थापित करता है।
  • इजरायल-सऊदी समीकरणों में संतुलन: भारत रक्षा, साइबर और खुफिया सहयोग के लिए इजरायल पर निर्भर है, लेकिन सऊदी अरब का पाकिस्तान की ओर झुकाव इस साझेदारी को और जटिल बना देता है।
    • भारत इजरायल (शीर्ष 5 रक्षा आपूर्तिकर्ताओं में से एक) या सऊदी अरब (शीर्ष 3 ऊर्जा साझेदारों में से एक) को अलग-थलग नहीं कर सकता है।

अन्य हितधारकों के लिए निहितार्थ

  • पाकिस्तान के लिए: यह समझौता यह संकेत देकर उसकी निवारक क्षमता को मजबूत करता है कि सऊदी अरब का समर्थन परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र तक भी विस्तृत है। यह भारत या इजरायल जैसे विरोधियों के आक्रामक कदमों को हतोत्साहित करता है।
    • पश्चिम एशियाई संघर्षों में शामिल होना: इससे पाकिस्तान पश्चिम एशियाई संघर्षों में उलझ सकता है, क्योंकि उससे सऊदी अरब के हितों का समर्थन करने की उम्मीद की जा सकती है।
      • उदाहरण के लिए: पाकिस्तान के क्षेत्र में सऊदी अरब के नेतृत्व वाले संघर्षों में शामिल होने की संभावना है, जिनमें यमन (हूती विद्रोह), ईरान के साथ तनाव और इजरायल द्वारा उत्पन्न चुनौतियाँ शामिल हैं।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए: यह समझौता खाड़ी क्षेत्र के संरक्षक के रूप में अमेरिका की विश्वसनीयता के क्षरण को दर्शाता है, क्योंकि क्षेत्रीय संकटों पर अमेरिका की धीमी प्रतिक्रिया ने सहयोगियों को रक्षा साझेदारी में विविधता लाने के लिए प्रेरित किया है।
    • अब्राहम एकॉर्ड: यह समझौता अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा सऊदी अरब को अब्राहम एकॉर्ड में शामिल करने के असफल प्रयासों की पृष्ठभूमि में हुआ है।
      • सऊदी अरब ने स्पष्ट कर दिया है कि वह गाजा युद्ध समाप्त होने और फिलिस्तीनी राष्ट्र के दर्जे पर प्रगति होने तक इजरायल के साथ संबंध सामान्य नहीं करेगा।
  • चीन के लिए: चीन रणनीतिक रूप से एक विजेता है, क्योंकि उसके पाकिस्तान (CPEC के माध्यम से) और सऊदी अरब (बेल्ट एंड रोड और ऊर्जा समझौतों के माध्यम से) दोनों के साथ घनिष्ठ संबंध हैं।
    • यह समझौता चीन को अमेरिका को दरकिनार करते हुए खाड़ी क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने की अनुमति देता है।
    • ऊर्जा सुरक्षा जोखिम: पश्चिम एशिया में बढ़ती अस्थिरता वैश्विक तेल बाजार की स्थिरता के लिए खतरा है।
      • भारत (जो इस क्षेत्र से लगभग 60% कच्चे तेल का आयात करता है) को मूल्य में उतार-चढ़ाव, आपूर्ति में व्यवधान तथा उच्च भू-राजनीतिक प्रीमियम का जोखिम है, जिसका प्रभाव चीन, जापान तथा यूरोपीय संघ जैसे अन्य प्रमुख आयातकों पर भी पड़ेगा।

अब्राहम एकॉर्ड (Abraham Accord) के बारे में 

  • संयुक्त राज्य अमेरिका की मध्यस्थता में वर्ष 2020 में हस्ताक्षरित किया गया।
  • भूमिका: इजरायल और कई अरब देशों: संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, मोरक्को, सूडान के बीच राजनयिक संबंधों को सामान्य बनाया।
  • सऊदी अरब की स्थिति: औपचारिक रूप से समझौते में शामिल नहीं हुआ है।
  • महत्त्व: मध्य पूर्व कूटनीति को नया रूप देने के लिए अमेरिका के नेतृत्व वाली एक रणनीतिक पहल के रूप में देखा जाता है।
  • चुनौती: यह व्यापक अरब-इजरायल सहयोग के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है, लेकिन क्षेत्रीय संघर्षों और गठबंधनों के कारण यह संवेदनशील है।

भारत-सऊदी अरब संबंधों के बारे में

  • भारत-सऊदी अरब संबंधों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
    • राजनयिक संबंधों की स्थापना: भारत और सऊदी अरब ने वर्ष 1947 में औपचारिक रूप से राजनयिक संबंध स्थापित किए।
    • प्रमुख उपलब्धियाँ: किंग अब्दुल्ला की यात्रा के दौरान दिल्ली घोषणा (2006) ने रणनीतिक साझेदारी की नींव रखी।
      • प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की यात्रा के दौरान रियाद घोषणा (2010) ने संबंधों को एक नए रणनीतिक स्तर पर पहुँचाया।
    • रणनीतिक साझेदारी परिषद: वर्ष 2019 में, दोनों देशों ने उच्च-स्तरीय सहयोग को संस्थागत बनाने के लिए रणनीतिक साझेदारी परिषद (Strategic Partnership Council- SPC) का गठन किया।
  • आर्थिक सहयोग
    • व्यापारिक संबंध: सऊदी अरब भारत का पाँचवाँ सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, जबकि भारत सऊदी अरब का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है।
      • वर्ष 2023 में द्विपक्षीय व्यापार 42.98 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था और भारत निवल आयातक बना रहा।
      • वर्ष 2024 में, सऊदी अरब ने भारत के कुल आवक प्रेषण में 6.7% का योगदान दिया।
    • निवेश प्रवाह: सऊदी अरब में भारतीय निवेश लगभग 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर है, जो IT, दूरसंचार, फार्मा और निर्माण क्षेत्र में फैला हुआ है।
      • भारत में सऊदी अरब का निवेश लगभग 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर है, जिसका नेतृत्व सार्वजनिक निवेश कोष (Public Investment Fund- PIF) करता है।
  • ऊर्जा साझेदारी
    • कच्चे तेल की आपूर्ति: वित्त वर्ष 2023-24 में, सऊदी अरब भारत का तीसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल आपूर्तिकर्ता था, जिसने भारत के कुल कच्चे तेल आयात में लगभग 14.3% का योगदान दिया।
    • LPG आपूर्ति: सऊदी अरब भारत का तीसरा सबसे बड़ा LPG आपूर्तिकर्ता भी था, जिसने उसकी 18.2% आवश्यकताओं को पूरा किया।
    • नवीकरणीय ऊर्जा सहयोग: दोनों देश सौर और हरित हाइड्रोजन परियोजनाओं में सहयोग की संभावनाएँ तलाश रहे हैं, सऊदी अरब के मरुस्थलीय संसाधन और नवीकरणीय प्रौद्योगिकियों में भारत की विशेषज्ञता बड़े पैमाने पर परियोजनाओं के लिए अवसर उत्पन्न कर रही है।
  • रक्षा और सुरक्षा सहयोग
    • संयुक्त अभ्यास: पहला संयुक्त स्थलीय अभ्यास, अभ्यास सदा तनसीक, वर्ष 2024 में राजस्थान में आयोजित किया गया था, जबकि द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास अल मोहद अल हिंदी’ भी आयोजित किया गया है।
    • समुद्री सहयोग: भारत और सऊदी अरब हिंद महासागर नौसैनिक संगोष्ठी (Indian Ocean Naval Symposium- IONS) और संयुक्त समुद्री बल (Combined Maritime Forces- CMF) जैसे मंचों में सक्रिय भागीदार हैं।
    • आतंकवाद-रोधी सहयोग: सऊदी अरब ने भारत के साथ आतंकवाद के वित्तपोषण की निगरानी, आतंकवाद और हवाला रैकेट में शामिल संदिग्धों के प्रत्यर्पण तथा सूडान में ऑपरेशन कावेरी के दौरान भारतीय नागरिकों की निकासी में सहयोग किया है।
  • सांस्कृतिक और लोगों के बीच संबंध
    • भारतीय प्रवासी: लगभग 26 लाख से 70 लाख लोगों के साथ, भारतीय समुदाय सऊदी अरब में सबसे बड़ा प्रवासी समूह है।
    • हज समझौता: वर्ष 2024 के द्विपक्षीय हज समझौते में लगभग 1.75 लाख भारतीय तीर्थयात्रियों का कोटा आवंटित किया गया है, जिसमें नए सुधारों के तहत महिलाओं को बिना मेहरम के हज करने की अनुमति दी गई है।
    • सांस्कृतिक कूटनीति: योग को वर्ष 2017 में आधिकारिक तौर पर एक खेल के रूप में मान्यता दी गई थी और सऊदी योग प्रवर्तक नौफ अल-मरवाई को वर्ष 2018 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था।

आपसी संबंधों में चुनौतियाँ

  • श्रम कल्याण संबंधी चिंताएँ: सऊदी अरब में कई भारतीय मजदूरों को कफाला प्रणाली के तहत खराब कामकाजी परिस्थितियों, देरी से मिलने वाले वेतन और प्रतिबंधात्मक श्रम कानूनों जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
  • व्यापार घाटा: सऊदी अरब के साथ भारत का व्यापार घाटा बहुत अधिक है, जो तेल आयात के कारण वर्ष 2023-24 में लगभग 20 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।
  • भू-राजनीतिक मतभेद: यमन में सऊदी अरब का सैन्य हस्तक्षेप, ईरान के साथ प्रतिद्वंद्विता और पाकिस्तान के साथ घनिष्ठ रक्षा संबंध भारत के लिए रणनीतिक जटिलताएँ उत्पन्न करते हैं।

भारत के लिए आगे की राह

  • सऊदी अरब के साथ कूटनीतिक संबंध: भारत को सामरिक साझेदारी परिषद (Strategic Partnership Council- SPC) और खाड़ी सहयोग परिषद (Gulf Cooperation Council- GCC) के माध्यम से उच्च-स्तरीय जुड़ाव बनाए रखना चाहिए।
    • हाल ही में जैसा कि विदेश मंत्रालय ने रेखांकित किया है, भारत सऊदी अरब के साथ एक व्यापक रणनीतिक साझेदारी’ साझा करता है, जो हाल के वर्षों में अत्यधिक गहरी’ हुई है।
    • भारत को उम्मीद है कि सऊदी अरबपारस्परिक हितों और संवेदनशीलताओं’ को ध्यान में रखेगा, जो पाकिस्तान के साथ समझौते के बावजूद सऊदी अरब के साथ संबंधों को संतुलित करने के लिए एक कूटनीतिक सहारा प्रदान करता है।
  • आर्थिक कूटनीति का लाभ उठाना: भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कॉरिडोर (India–Middle East–Europe Corridor- IMEC) जैसी पहलों को आगे बढ़ाने से सऊदी  के साथ आर्थिक निर्भरता बढ़ सकती है।
    • सऊदी अरब के विजन 2030 परियोजनाओं में भारत की बढ़ती भागीदारी साझा हित भी बनाती है, जिससे सऊदी अरब के केवल पाकिस्तान की ओर झुकाव की संभावना कम हो जाती है।
  • रक्षा तैयारियों को मजबूत करना: भारत को सीमावर्ती बुनियादी ढाँचे का आधुनिकीकरण, मिसाइल प्रणालियों का उन्नयन और निगरानी क्षमताओं को बढ़ाकर अपनी सुरक्षा संरचना को मजबूत करना चाहिए।
    • S-400 ट्रायंफ वायु रक्षा प्रणाली (S-400 Triumf Air Defence System) का शामिल होना और प्रलय सामरिक मिसाइलों का विकास, उभरते क्षेत्रीय सुरक्षा परिवेश में एक विश्वसनीय निवारक दृष्टिकोण बनाए रखने की भारत की प्रतिबद्धता का उदाहरण है।
  • क्षेत्रीय साझेदारी का विस्तार: भारत को रक्षा वार्ता, समुद्री सुरक्षा और आर्थिक पहलों के माध्यम से संयुक्त अरब अमीरात तथा ओमान के साथ सहयोग को गहरा करना चाहिए।
    • इस प्रकार की भागीदारी सऊदी अरब के संबंधों को संतुलित करने में सहायक होगी और पश्चिम एशिया में विशिष्ट सुरक्षा गुटों के विरुद्ध एक स्थिर सुरक्षा ढाँचा प्रदान करेगी।।
  • ऊर्जा स्रोतों में विविधता: भारत को नवीकरणीय साझेदारी और हरित सहयोग का विस्तार करके एक संतुलित ऊर्जा रणनीति अपनानी चाहिए। 
    • अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance- ISA) और संयुक्त हरित हाइड्रोजन पहल जैसे मंच पारंपरिक हाइड्रोकार्बन संबंधों को पूरक बनाते हुए एक स्थायी तथा सुरक्षित ऊर्जा भविष्य का आधार बन सकते हैं।
    • माँग में वृद्धि के साथ दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक होने के नाते, भारत सऊदी अरब का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार और कच्चा तेल खरीदार है, जिससे ऊर्जा क्षेत्र में रणनीतिक लाभ प्राप्त होता है।
  • प्रवासी लाभ: सऊदी अरब में मौजूद विशाल भारतीय कार्यबल (30 लाख से अधिक) को द्विपक्षीय सद्भावना बढ़ाने के लिए शामिल करना।
    • प्रवासी हितों की रक्षा से सऊदी अरब की नीतिगत गणनाओं में भारत का रणनीतिक लाभ बढ़ता है।

निष्कर्ष

सऊदी-पाकिस्तान रक्षा समझौता पश्चिम एशिया में परिवर्तित शक्ति समीकरणों का संकेत देता है, जिससे भारत के लिए नए सुरक्षा जोखिम उत्पन्न होते हैं। अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए भारत को केवल सैन्य तैयारी ही नहीं, बल्कि रणनीतिक कूटनीति और लचीली ऊर्जा साझेदारी को भी समन्वित करना होगा।

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