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Sep 24 2025

भारत और ग्रीस का पहला द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास 

भारत और ग्रीस ने भूमध्य सागर में अपनी पहली संयुक्त नौसैनिक अभ्यास का आयोजन किया, जिसका उद्देश्य रक्षा सहयोग को सुदृढ़ करना था।

अभ्यास के बारे में 

  • भारतीय नौसेना और हेलेनिक नौसेना के बीच पहला द्विपक्षीय समुद्री अभ्यास।
  • अवस्थिति: 13–18 सितंबर, 2025 के बीच भूमध्य सागर में।
  • भारतीय नौसेना का प्रतिनिधित्व INS त्रिकंद (गाइडेड मिसाइल स्टील्थ फ्रिगेट) ने किया।
  • दो चरण
    • ‘हार्बर’ चरण – सालामिस नौसैनिक अड्डा पर।
    • ‘सी’ चरण – समुद्र में।

महत्त्व

  • भारत–ग्रीस रक्षा सहयोग में एक ऐतिहासिक उपलब्धि।
  • समुद्री सुरक्षा और नौवहन की स्वतंत्रता पर सामंजस्य को दर्शाता है।
  • अवसर: सर्वोत्तम प्रथाओं का साझा करना, पारस्परिक संचालन क्षमता का निर्माण तथा सामंजस्य को सुदृढ़ करना।

INS त्रिकंद के बारे में

  • यह भारतीय नौसेना का तलवार-श्रेणी का गाइडेड-मिसाइल फ्रिगेट है।
  • यह भारतीय नौसेना द्वारा ऑर्डर किए गए तलवार श्रेणी के फ्रिगेट के दूसरे बैच का तीसरा और अंतिम जहाज है।
  • निर्माण: यंत्र शिपयार्ड (कालिनिनग्राद) रूस में।
  • यह भारतीय नौसेना के पश्चिमी बेड़े का हिस्सा है और पश्चिमी नौसैनिक कमान (मुंबई मुख्यालय) के अधीन संचालित होता है।

ग्रीस के बारे में

  • अवस्थिति: दक्षिण-पूर्वी यूरोप, बाल्कन प्रायद्वीप का दक्षिणी भाग।
  • विशेषता: भूमध्य सागर की सबसे लंबी तटरेखा।
  • राजधानी: एथेंस।
  • सीमाएँ: अल्बानिया, उत्तर मैसेडोनिया और बुल्गारिया, तुर्किए।
  • महत्त्व: पश्चिमी सभ्यता की जन्मभूमि और लोकतंत्र का उद्गम स्थल।
  • धरोहर: 20 यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल, जिनमें प्राचीन मंदिर, रंगमंच और बाइजेंटाइन स्मारक शामिल है।
  • द्विपक्षीय समुद्री अभ्यास के दौरान भारतीय नौसेना के जहाज के चालक दल ने एक्रोपोलिस की पवित्र चट्टान (यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल) का दौरा किया।

ग्रियस ग्लेशियर

स्विट्जरलैंड का ग्रियस ग्लेशियर तेजी से पिघल रहा है और सितंबर 2024 से सितंबर 2025 के मध्य इसके हिमावरण में छह मीटर की कमी आई है, जो जलवायु परिवर्तन के तीव्र होते प्रभाव को दर्शाता है।

ग्रियस ग्लेशियर के बारे में

  • यह 5.4 किमी लंबा ग्लेशियर है, जो स्विट्जरलैंड के दक्षिणी कैंटन वलैस में अवस्थित है।
    • ग्लेशियर हिम द्वारा निर्मित एक तीव्र प्रवाह वाला पिंड है, जो कई वर्षों में संपीडित हिम निक्षेप द्वारा निर्मित होता है।
  • यह मध्य स्विस आल्प्स में लेपोंटाइन आल्प्स में अवस्थित है।
  • यह ग्लेशियर मॉनिटरिंग स्विट्जरलैंड (GLAMOS) के अंतर्गत अनुसंधान का एक प्रमुख स्थल रहा है।
  • हिमावरण में कमी: वर्ष 2000 से वर्ष 2023 के बीच ग्लेशियर 800 मीटर संकुचित हो चुका है।
    • वर्तमान औसत हिमावरण की मोटाई केवल 57 मीटर रह गई है।

पिघलने के खतरे एवं तीव्रता 

  • लगातार शुष्क वर्षों (वर्ष 2022–2023) और वर्ष 2025 की अत्यधिक गर्मी से हिमावरण की क्षति हुई।
  • अप्रैल 2025 में भारी हिमपात से केवल अस्थायी राहत मिली।
  • वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि निचले हिस्से पाँच वर्ष के भीतर समाप्त हो सकते हैं, जबकि 3,000 मीटर के आस-पास के ऊपरी हिस्से 40-50 वर्ष तक रहने की संभावना हैं।

हिमनद क्षति के वैश्विक रुझान

  • विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) की वैश्विक जलवायु स्थिति 2024 रिपोर्ट में वर्ष 2022-2024 के बीच ग्लेशियरों की अब तक के सबसे बड़े तीन-वर्षीय हिमनद क्षति पर प्रकाश डाला गया है, जिसमें केवल वर्ष 2024 में 450 अरब टन हिमावरण में कमी देखी गई।
    • वर्ष 2016 और वर्ष 2022 के बीच लगभग 100 स्विस ग्लेशियर लुप्त हो गए।
    • नेपाल का ‘याला’ ग्लेशियर 2040 के दशक तक लुप्त होने की संभावना है।

मैत्री 2.0

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने मैत्री 2.0, ब्राजील–भारत क्रॉस-इन्क्यूबेशन कार्यक्रम के दूसरे संस्करण का शुभारंभ नई दिल्ली में किया।

मैत्री 2.0 के बारे में

  • मैत्री 2.0 एक द्विपक्षीय पहल है, जिसका उद्देश्य भारतीय और ब्राजीलियाई एग्रीटेक पारिस्थितिकी तंत्रों के बीच नवाचार-आधारित सहयोग को बढ़ावा देना और रणनीतिक कृषि साझेदारी को मजबूत करना है।

उद्देश्य

  • दोनों देशों के नवाचारकर्ताओं के बीच सह-निर्माण के लिए द्विपक्षीय शिक्षण मंच के रूप में कार्य करना।
  • सुदृढ़ खाद्य प्रणालियों को बढ़ावा देना और किसानों को सशक्त करना।
  • कृषि क्षेत्र में सर्वोत्तम प्रथाओं का आदान-प्रदान, क्रॉस-इन्क्यूबेशन और मूल्य शृंखला विकास को सुगम बनाना।
  • डिजिटल प्रौद्योगिकियों एवं सतत् कृषि समाधानों को अपनाने को प्रोत्साहित करना।

मैत्री (प्रथम संस्करण) के बारे में

  • मैत्री पहल को प्रारंभिक रूप से वर्ष 2019 में ICAR और ब्राजील दूतावास द्वारा प्रारंभ किया गया था।
  • इसका उद्देश्य भारतीय और ब्राजीलियाई एग्रीटेक स्टार्ट-अप्स के मध्य नवाचार, सहयोग और ज्ञान के आदान-प्रदान को बढ़ावा देना था।

राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस 2025

10वाँ राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस 2025 ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ आयुर्वेद (AIIA), गोवा  में मनाया जा रहा है, जो आयुर्वेद के स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी महत्त्व को रेखांकित करता है। 

राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस 2025 के बारे में

  • उद्देश्य: आयुर्वेद की विरासत का सम्मान करना, वैश्विक स्तर पर जागरूकता बढ़ाना और आधुनिक स्वास्थ्य एवं कल्याण प्रणालियों में इसकी प्रासंगिकता को प्रदर्शित करना।
  • वर्ष 2016 में शुरू किया गया आयुर्वेद दिवस वर्ष 2025 से प्रत्येक वर्ष 23 सितंबर को मनाया जाएगा।
    • 23 सितंबर, शरद विषुव के साथ सुमेलित है, शरद विषुव को दिन और रात की अवधि लगभग बराबर होते हैं।
    • पूर्व में इसे धन्वंतरि जयंती (धनतेरस) पर मनाया जाता था।
  • स्थान: वर्ष 2025 का आयोजन AIIA गोवा में किया गया।
  • थीम 2025: वर्ष 2025 की थीम  है ‘लोगों के लिए आयुर्वेद, ग्रह के लिए आयुर्वेद’ (Ayurveda for People, Ayurveda for Planet)।

प्रमुख विशेषताएँ

  • पुरस्कार और सम्मान:  इस अवसर पर आयुर्वेद क्षेत्र में विशिष्ट योगदानकर्ताओं को राष्ट्रीय धन्वंतरि आयुर्वेद पुरस्कार, 2025 प्रदान किया जाता है।
  • अवसंरचना विकास: AIIA गोवा अस्पताल में कई नई सुविधाओं का उद्घाटन किया जाएगा। 
    • एकीकृत ऑन्कोलॉजी इकाई
    • केंद्रीय स्वच्छ आपूर्ति विभाग
    • रक्त भंडारण इकाई
    • अस्पताल प्रसंस्करण देखभाल इकाई।
  • सांस्कृतिक और पारिस्थितिकी पहल 
    • रण-भाजी उत्सव का शुभारंभ, जिसमें पारंपरिक वन-आधारित सब्जियों और उनके पोषण मूल्य को प्रदर्शित किया जाएगा।

बड़े जहाजों को बुनियादी ढाँचे का दर्जा 

वित्त मंत्रालय ने बड़े जहाजों को बुनियादी ढाँचे का दर्जा प्रदान किया है। यह कदम वित्त तक पहुँच सुधारने, घरेलू जहाज निर्माण को बढ़ावा देने और मैरीटाइम अमृत काल विजन@2047 के तहत भारत के समुद्री लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से उठाया गया है।

  • वर्ष 2001 में रंगराजन आयोग ने जहाजों को बुनियादी ढाँचे का दर्जा प्रदान करने की सिफारिश की थी।

बड़े जहाजों की परिभाषा

  • वाणिज्यिक पोत (कमर्शियल वेसल) जिनका भार ≥ 10,000 ग्रॉस टन हो तथा वे भारतीय स्वामित्व और ध्वज (Flag) के अंतर्गत पंजीकृत हों
    या
  • वाणिज्यिक पोत, जिनका भार ≥ 1,500 ग्रॉस टन हो, जो भारत में निर्मित हों तथा भारतीय स्वामित्व और ध्वज के अंतर्गत पंजीकृत हों।

बुनियादी ढाँचे का दर्जे के लाभ

  • कम लागत वाले अवसंरचना ऋण तक पहुँच और ऋण सीमा में वृद्धि।
  • बाह्य वाणिज्यिक उधारी (ECB) के लिए पात्रता।
  • बीमा कंपनियों और पेंशन फंड्स से दीर्घकालिक वित्तपोषण की सुविधा।
  • इंडिया इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनेंसिंग कंपनी लिमिटेड (IIFCL) से ऋण लेने की पहुँच।

वर्तमान चुनौतियाँ

  • वैश्विक हिस्सेदारी कम: भारत का वैश्विक जहाज निर्माण में योगदान केवल 0.06% है।
  • विदेशी व्यय अधिक: भारत प्रतिवर्ष 75 अरब अमेरिकी डॉलर विदेशी कंपनियों से जहाज किराए पर लेने में खर्च करता है, जो लगभग राष्ट्रीय रक्षा बजट के बराबर है।

सरकारी योजनाएँ और निवेश

  • वर्ष 2047 तक स्वदेशी शिपिंग और जहाज निर्माण को मजबूत करने के लिए ₹54 ट्रिलियन का निवेश प्रस्तावित।
  • मैरीटाइम डेवलपमेंट फंड (MDF) का शुभारंभ, जिसकी कोष राशि ₹25,000 करोड़ होगी।
  • सागरमाला फाइनेंस कॉरपोरेशन को एक समुद्री NBFC के रूप में लॉन्च किया गया है ताकि क्रेडिट फ्लो को बढ़ावा दिया जा सके।
  • जहाज निर्माण क्लस्टर्स का विकास, जिसमें अतिरिक्त इन्फ्रास्ट्रक्चर, स्किलिंग और प्रौद्योगिकी को शामिल किया जाएगा।

स्मॉग-ईटिंग तकनीक 

दिल्ली सरकार ने बढ़ते वायु प्रदूषण से निपटने के लिए टाइटेनियम ऑक्साइड-आधारित फोटोकैटेलिटिक कोटिंग्स, जिसे आमतौर पर “स्मॉग-ईटिंग” तकनीक कहा जाता है, पर एक व्यवहार्य अध्ययन की घोषणा की है।

स्मॉग के बारे में

  • धुआँ एवं कोहरे द्वारा निर्मित होता है, जो वायु प्रदूषण का एक गंभीर प्रकार है।
  • कोहरा, धूल एवं नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) तथा वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों (VOCs) जैसे प्रदूषकों का मिश्रण।
  • प्रभाव
    • आँखों में जलन एवं खुजली उत्पन्न करता है।
    • फेफड़ों के ऊतकों को नुकसान पहुँचाता है, हृदय एवं श्वसन संबंधी विकारों का कारण बनता है।
    • पौधों को नुकसान पहुँचाता है एवं फसल उत्पादकता को कम करता है।

स्मॉग के प्रकार

  • सल्फरयुक्त स्मॉग (लंदन स्मॉग)
    • ठंडी, आर्द्र जलवायु में होता है।
    • धुएँ, कोहरे एवं सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) से बनता है।
  • प्रकाश रासायनिक स्मॉग (लॉस एंजिल्स स्मॉग)
    • यह तब बनता है, जब सूर्य का प्रकाश नाइट्रोजन ऑक्साइड एवं VOCs के साथ अभिक्रिया करता है, जिससे हानिकारक जमीनी स्तर की ओजोन (‘बेड ओजोन’) निर्मित होती है।
    • इसे ग्रीष्मकालीन ‘स्मॉग’ कहा जाता है, जो शहरी क्षेत्रों में सबसे सामान्य है।

 ‘स्मॉग-ईटिंग’ तकनीक के बारे में

  • तंत्र: वह तकनीक, जो टाइटेनियम डाइऑक्साइड (TiO₂) जैसे प्रकाश उत्प्रेरक पदार्थों का उपयोग करके ‘स्मॉग’ के हानिकारक घटकों (NOx, हाइड्रोकार्बन, पार्टिकुलेट मैटर) को रासायनिक रूप से विघटित करती है।
    • प्रकाश उत्प्रेरक एक ऐसा पदार्थ है, जो प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित करता है एवं इसका उपयोग रासायनिक अभिक्रियाओं को तीव्र या सुगम बनाने के लिए करता है।
  • प्रक्रिया
    • पराबैंगनी प्रकाश के संपर्क में आने पर, TiO₂ हाइड्रॉक्सिल रेडिकल एवं सुपरऑक्साइड उत्पन्न करता है।
    • ये नाइट्रोजन ऑक्साइड एवं हाइड्रोकार्बन को कम हानिकारक यौगिकों में ऑक्सीकृत कर देते हैं।
    • सड़कों, फुटपाथों, टाइलों, पेंट या अग्रभागों पर लगाए जाने पर, ये शहरी वातावरण से सीधे ‘स्मॉग’ को अवशोषित कर लेते हैं।

स्मॉग-ईटिंग अनुप्रयोगों के वैश्विक उदाहरण

  • सड़कें एवं फुटपाथ: नीदरलैंड (वर्ष 2013) ने प्रकाश उत्प्रेरक फुटपाथों का कार्य प्रारंभ किया।
  • इमारतें एवं टाइल्स: पलाजो इटालिया (मिलान एक्सपो, 2015): TiO₂ सीमेंट का उपयोग किया गया।
  • रूफ  शिंगल (Roof Shingles)
    • बर्कले लैब द्वारा फोटोकैटेलिटिक ग्रैन्यूल्स का उपयोग करके विकसित।
    • नाइट्रोजन ऑक्साइड को वर्षा द्वारा बहाए गए हानिरहित रसायनों में परिवर्तित करता है।
    • आवास में ‘शिंगल’ के व्यापक उपयोग के कारण इसकी क्षमता।
  • स्मॉग-मुक्त टॉवर (डैन रूजगार्ड परियोजना)
    • 23 फुट ऊँचा एक टॉवर, जो स्मॉग के लिए वैक्यूम क्लीनर की तरह कार्य करता है।
    • आयनीकरण का उपयोग करके प्रति घंटे 30,000 घन मीटर वायु साफ करता है।
    • चीन, दक्षिण कोरिया, नीदरलैंड, पोलैंड एवं मेक्सिको में लागू।

महाराजा अग्रसेन

महाराजा अग्रसेन की जयंती के अवसर पर, भारतीय प्रधानमंत्री ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की एवं सामाजिक न्याय, सद्भावना तथा एकता के प्रतीक के रूप में उनकी भूमिका पर प्रकाश डाला।

  • अग्रसेन जयंती प्रतिवर्ष हिंदू माह आश्विन (शुक्ल पक्ष प्रतिपदा – (सितंबर-अक्टूबर) की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है।

महाराजा अग्रसेन के बारे में

राजवंश और उत्पत्ति

  • सूर्यवंश के एक वैश्य राजा।
  • अग्रोहा (वर्तमान हिसार, हरियाणा के पास) के संस्थापक।
  • अग्रवाल समुदाय के संस्थापक, जो ऐतिहासिक रूप से व्यापार एवं व्यवसाय से जुड़े रहे हैं।
  • अग्रवाल शब्द का अर्थ है ‘अग्रसेन की संतान’ या ‘अग्रोहा के लोग।’

वंश

  • राजा वल्लभ देव के पुत्र, कुश (भगवान राम के पुत्र) के वंशज।
  • जन्म वर्ष: 3082 ईसा पूर्व।
  • सूर्यवंशी राजा मांधाता के वंश से संबंधित।
  • उनके 18 बच्चे थे, जिनसे अग्रवाल गोत्र की उत्पत्ति हुई।
  • माना जाता है कि वे द्वापर युग में भगवान कृष्ण के समकालीन थे।

दृष्टि एवं सुधार

  • एक कर्मयोगी के रूप में जाने जाते हैं, जिन्होंने सामूहिक समृद्धि के लिए कार्य किया।
  • अग्रोहा में समानता का एक अद्वितीय नियम लागू किया:
    • प्रत्येक नए निवासी को प्रत्येक निवासी द्वारा एक ईंट एवं एक रुपया दिया जाता था।
    • ईंटों से घर का निर्माण होता था एवं पैसे से आजीविका या व्यवसाय चलता था।
    • इससे समतावाद एवं सामाजिक समानता सुनिश्चित हुई।

प्रगतिशील सिद्धांत

  • अहिंसा (पशु बलि को हतोत्साहित)।
  • सामाजिक न्याय एवं समानता।
  • सहकारी जीवन एवं कल्याण को बढ़ावा।

सम्मान

  • वर्ष 1976: उनकी 5100वीं जयंती पर डाक टिकट जारी किया गया।
  • वर्ष 2017: पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला में शोध के लिए महाराजा अग्रसेन पीठ की स्थापना की गई।

त्रिपुर सुंदरी मंदिर

हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री ने प्रसाद योजना के तहत त्रिपुरा के उदयपुर में पुनर्विकसित 524 वर्ष प्राचीन त्रिपुर सुंदरी मंदिर का उद्घाटन किया।

त्रिपुर सुंदरी मंदिर के बारे में

  • त्रिपुर सुंदरी मंदिर, जिसे ‘माताबाडी’ के नाम से भी जाना जाता है, 51 शक्तिपीठों में से एक है, जो इसे हिंदू धर्म में एक अत्यंत पूजनीय तीर्थस्थल बनाता है।
  • निर्माता: इस मंदिर की स्थापना वर्ष 1501 में त्रिपुरा राज्य के तत्कालीन शासक महाराजा धान्य माणिक्य ने की थी।
  • वास्तुशिल्प महत्त्व: यह मंदिर बंगाली एक-रत्न शैली में निर्मित है एवं कछुए के कूबड़ के आकार की एक पहाड़ी पर विशिष्ट रूप से स्थित है, जिसके कारण इसे कूर्म पीठ नाम दिया गया है।
  • प्रतिष्ठित देवता
    • देवी त्रिपुर सुंदरी (5 फीट ऊँची, मुख्य देवी)
    • देवी चंडी, जिन्हें स्नेहपूर्वक छोटो-माँ  (Chhoto-Ma) कहा जाता है (2 फीट ऊँची, ऐतिहासिक रूप से राजाओं द्वारा युद्ध और शिकार में साथ ले जाया जाता था)।

सांस्कृतिक एवं धार्मिक महत्त्व

  • उत्सव और अनुष्ठान: मंदिर में आयोजित वार्षिक दीवाली मेला लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है, जो स्थानीय अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करता है और मंदिर की सांस्कृतिक जीवंतता को सुदृढ़ करता है।
  • GI टैग युक्त प्रसाद: मंदिर की प्रसिद्ध माताबाड़ी पेड़े को भौगोलिक संकेतक (GI) टैग प्राप्त है, जिससे इसकी सांस्कृतिक और वाणिज्यिक महत्ता बढ़ी है। 
  • आध्यात्मिक विरासत: किंवदंती के अनुसार, महाराजा धान्य माणिक्य माणिक्य को आदिशक्ति ने स्वप्न में आदेश दिया था कि इस पवित्र मंदिर का निर्माण किया जाए।

प्रसाद योजना के बारे में

  • प्रसाद योजना या ‘तीर्थयात्रा पुनरुद्धार एवं आध्यात्मिक विरासत संवर्द्धन अभियान’ (Pilgrimage Rejuvenation And Spiritual Heritage Augmentation Drive) धार्मिक पर्यटन के अनुभव को समृद्ध बनाने के लिए संपूर्ण भारत के तीर्थ स्थलों के समग्र विकास पर केंद्रित है।
  • उद्देश्य: आध्यात्मिक स्थलों के माध्यम से घरेलू पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए एक प्राथमिकता-आधारित, नियोजित एवं स्थायी दृष्टिकोण प्रदान करना।
  • शुभारंभ: केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय के तहत भारत सरकार द्वारा वर्ष  2014-15 में।
  • वित्तपोषण: पर्यटन मंत्रालय चयनित तीर्थ स्थलों पर बुनियादी ढाँचे एवं सुविधाओं के लिए वित्तपोषण प्रदान करता है, जिससे समग्र पर्यटक अनुभव में वृद्धि होती है।

भारत एवं मोरक्को रक्षा सहयोग

भारत एवं मोरक्को ने रबात (मोरक्को की राजधानी) में रक्षा सहयोग पर एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए है।

भारत-मोरक्को रक्षा समझौता ज्ञापन के बारे में

  • यह समझौता ज्ञापन रक्षा संबंधों को प्रगाढ़ बनाने एवं दीर्घकालिक एवं सतत् सहयोग को सक्षम बनाने के लिए एक संरचित ढाँचा स्थापित करता है।
  • रक्षा सहयोग: इसमें संयुक्त सैन्य अभ्यास, प्रशिक्षण, क्षमता निर्माण एवं रक्षा विशेषज्ञों का आदान-प्रदान शामिल है।
  • रणनीतिक क्षेत्र: इस रोडमैप में आतंकवाद-रोधी, समुद्री सुरक्षा, साइबर सुरक्षा, सैन्य चिकित्सा एवं शांति स्थापना अभियान शामिल हैं।
  • औद्योगिक सहयोग: दोनों पक्ष रक्षा उत्पादन में सहयोग बढ़ाने पर सहमत हुए, जिसमें मोरक्को ने रक्षा, फार्मास्यूटिकल्स एवं रसायनों में औद्योगिक सहयोग पर जोर दिया।
  • रक्षा अवसंरचना: इन पहलों के कार्यान्वयन में तेजी लाने के लिए भारत ने ‘रबात’ स्थित भारतीय दूतावास में एक नए रक्षा विंग के उद्घाटन की घोषणा की।

समझौते का महत्त्व: यह भारत-मोरक्को रणनीतिक संबंधों को मजबूत करता है, रक्षा उद्योग सहयोग, क्षेत्रीय स्थिरता तथा प्रमुख औद्योगिक एवं सुरक्षा क्षेत्रों में व्यापक सहयोग को बढ़ावा देता है।

मोरक्को के बारे में

  • मोरक्को एक उत्तरी अफ्रीकी देश है, जो माघरेब क्षेत्र में अवस्थित है एवं इसका क्षेत्रफल 7,10,850 वर्ग किलोमीटर है।
  • सीमाएँ: इसकी स्थलीय सीमाएँ अल्जीरिया (पूर्व), पश्चिमी सहारा (दक्षिण) एवं स्पेन के मेलिला जैसे परिक्षेत्रों से लगती हैं।
    • इसकी तटरेखा अटलांटिक महासागर (पश्चिम) एवं भूमध्य सागर (उत्तर) को स्पर्श करती है।
  • भूगोल: मोरक्को के भू-भाग पर मध्य में एटलस पर्वत तथा उत्तर में रिफ पर्वत प्रमुख रूप से स्थित हैं।
    • जेबेल टूबकल (4,165 मीटर) इसकी सबसे ऊँची चोटी है। सबसे निचला बिंदु सेबखा ताह है, जो -55 मीटर निचला है।
  • रेगिस्तान: सहारा रेगिस्तान दक्षिण-पूर्व में विस्तृत है, जो अतिचारण एवं मृदा अपरदन के कारण भूमि क्षरण में योगदान देता है।
  • नदियाँ: एटलस पर्वत से निकलने वाली मौलौया नदी भूमध्य सागर में प्रवाहित होती है।

संदर्भ

हाल ही में हवाई यूनिवर्सिटी के खगोल विज्ञान संस्थान के खगोलविदों ने ब्रह्मांडीय विस्फोटों की एक नई श्रेणी, ‘एक्सट्रीम न्यूक्लियर ट्रांजिएंट्स’ (ENTs) की खोज की है।

  • यह श्रेणी गामा-किरण विस्फोटों (GRBs) से भी अधिक शक्तिशाली हैं, जिन्हें अब तक का सबसे तीव्र विद्युत चुंबकीय विकिरण माना जाता है, GRBs अब तक की ब्रह्मांड की सबसे शक्तिशाली और तीव्र ऊर्जावान घटनाओं में से हैं। 

ब्रह्मांड में विनाशकारी घटनाएँ

ब्रह्मांड, अपने शांत स्वरूप के बावजूद, महत्त्वपूर्ण विनाशकारी घटनाओं से आकार लेता रहता है, जैसे:-

  • आकाशगंगाओं का टकराव।
  • विस्फोटक सुपरनोवा विशाल तारों के क्षय होने का प्रतीक हैं।
  • सघन पिंडों से एक्स-रे विस्फोट।
  • ब्लैकहोल में तारों का समाहित होना।
  • गामा-किरण विस्फोट (GRB), जिन्हें कभी बिग बैंग के बाद सबसे चमकीले विस्फोट माना जाता था।
    • ENTs अब पैमाने और दीर्घावधि दोनों में इससे अधिक चमकदार हैं।

‘एक्सट्रीम न्यूक्लियर ट्रांजिएंट्स’ (ENTs) के बारे में

  • ये आकाशगंगाओं से उत्पन्न असाधारण रूप से चमकीले, दीर्घकालिक प्रज्वालाएँ, जो सुपरनोवा, गामा-किरण विस्फोटों (GRBs) या मानक ज्वारीय विघटन घटनाओं (TDEs) से भिन्न होती हैं।
  • क्षणिक घटनाओं की प्रकृति: अल्पकालिक खगोलीय घटनाएँ, जो प्रकाश में तीव्र परिवर्तन दर्शाती हैं।
  • कारण: यह संभवतः तब उत्पन्न होती हैं, जब सुपरमेसिव ब्लैक होल (SMBH) विशाल तारों (सूर्य के द्रव्यमान का 3-10 गुना) को नष्ट कर देता हैं।
  • प्रक्रिया: तारे ‘स्पेगेटीफिकेशन’ (Spaghettification) की प्रक्रिया से गुजरते हैं, जिससे अत्यधिक विद्युत चुंबकीय ऊर्जा उत्सर्जित होती है।
    • स्पेगेटीफिकेशन यह वह प्रक्रिया है, जिसमें ब्लैक होल के प्रबल ज्वारीय बलों के प्रभाव से तारा टूटकर विखंडित हो जाता है। तारे का निकटतम भाग अधिक गुरुत्वाकर्षण बल अनुभव करता है, जिससे वह खिंचकर ‘स्पैगेटी’ जैसी लंबी और पतली धारा का रूप ले लेता है।
  • खोज: Gaia16aaw, Gaia18cdj, और AT2021lwx जैसी दुर्लभ घटनाएँ।
  • चमक एवं ऊर्जा: 2–7 × 10⁴⁵ अर्ग/सेकंड की अधिकतम प्रकाश एवं कुल ऊर्जा उत्पादन 10⁵²–10⁵³ अर्ग, जो पिछले रिकॉर्ड से लगभग 10 गुना अधिक है।
  • प्रकाश वक्र (Light Curve): सुपरनोवा कुछ ही सप्ताहों में मंद पड़ जाते हैं, जबकि यह घटना कई वर्षों तक निरंतर प्रकाश उत्सर्जित करती रहती है।
  • विशेषताएँ
    • अभूतपूर्व चमक: यह सबसे शक्तिशाली सुपरनोवा से 20-25 गुना अधिक चमकदार है।
    • लंबी समय-सीमा: इस घटना को चरम स्थिति तक पहुँचने में सैकड़ों दिन लग सकते हैं और फिर यह धीरे-धीरे कई वर्षों में मंद होती है।
    • धीमा विकास: सक्रिय गैलेक्टिक नाभिक (AGN) के यादृच्छिक विस्फोटों के विपरीत, न्यूनतम अनियमित परिवर्तनशीलता।
    • मेजबान के रूप में बड़ी आकाशगंगाएँ: बड़े SMBH और उच्च तारा-निर्माण दर वाली आकाशगंगाओं में पाया जाता है।
    • दुर्लभता: प्रति वर्ष प्रति Gpc³ लगभग 10⁻³ की अनुमानित आवृत्ति, जो उन्हें बहुत दुर्लभ बनाती है।
  • वैश्विक सहयोग: गैया स्पेस मिशन, ज्विकी ट्रांजिएंट फैसिलिटी (ZTF) और केक वेधशाला (Keck Observatory) की मदद से इसकी पहचान की गई।

अन्य घटनाओं से तुलना

  • ज्वारीय विक्षोभ घटनाएँ (Tidal Disruption Events- TDEs): ENTs, TDEs से मिलते-जुलते होते हैं, लेकिन अधिक विशाल ब्लैक होल वाली बड़ी मेजबान आकाशगंगाओं में पाए जाते हैं।
  • फास्ट एक्स-रे ट्रांजिएंट्स (Fast X-ray Transients- FXTs): ये लघु और कम ऊर्जा वाले होते हैं, जो आमतौर पर सुपरनोवा से जुड़े होते हैं, न कि SMBH से।
  • गामा-किरण विस्फोट (GRBs): पहले इन्हें सबसे चमकदार माना जाता था, लेकिन ENTs इनसे दस गुना अधिक ऊर्जा उत्सर्जित करते हैं।

‘एक्सट्रीम न्यूक्लियर ट्रांजिएंट्स’ (ENTs) का महत्त्व

  • वैज्ञानिक सफलता: यह ट्रांजिएंट्स खगोल भौतिकी में एक नया क्षेत्र स्थापित करता है।
  • ब्लैक होल भौतिकी: यह विशाल तारों के क्षय होने के बाद निर्मित सुपरमैसिव ब्लैक होल का प्रत्यक्ष प्रमाण प्रस्तुत करता है।
  • ब्रह्मांडीय उपकरण: विशाल दूरी पर आकाशगंगाओं और अंतरतारकीय पदार्थ का मानचित्रण करने के लिए प्रकाश स्तंभ के रूप में कार्य करता है।

ब्लैक होल क्या है?

  • ब्लैक होल अंतरिक्ष में अत्यधिक सघन क्षेत्र होते हैं, जहाँ गुरुत्वाकर्षण इतना शक्तिशाली होता है कि प्रकाश भी उनके गुरुत्वाकर्षण बल से बचकर नहीं निकल सकता है।
    • उदाहरण के लिए, सिग्नस X-1, जो पहला खोजा गया तारकीय ब्लैक होल था, और सैगेटेरियस A* (Sagittarius A*), जो हमारी आकाशगंगा के केंद्र में स्थित अतिविशाल ब्लैक होल है।

द्रव्यमान के आधार पर ब्लैक होल के प्रकार

  • तारकीय द्रव्यमान वाले ब्लैक होल: विशाल तारों के क्षय होने के बाद निर्मित होते हैं, जिनका द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान के कुछ भाग से लेकर सैकड़ों गुना होता है।
    • कई बाइनरी सिस्टम में स्थित होते हैं, जो निकट तारों से गैस का अवशोषण करते हैं और एक्स-रे उत्पन्न करते हैं।
  • अतिविशाल ब्लैक होल (Supermassive Black Holes): आकाशगंगा के केंद्रों में पाए जाने वाले ये ब्लैक होल सैकड़ों-हजारों सौर द्रव्यमानों से लेकर अरबों सौर द्रव्यमानों तक के होते हैं, और संभवतः प्रारंभिक ब्रह्मांड में बने होंगे।
  • मध्यम द्रव्यमान वाले ब्लैक होल (Intermediate-Mass Black Holes): एक सैद्धांतिक ‘मिसिंग लिंक’ का आकार सैकड़ों से लेकर लाखों सौर द्रव्यमानों तक होता है, जिसका पता लगाना मुश्किल होता है।
    • हाल ही में NGC 4395 आकाशगंगा IMBH का पता लगाना अपनी तरह का पहला मामला है।
  • आद्य ब्लैक होल (Primordial Black Holes): काल्पनिक रूप से बिग बैंग के तुरंत बाद बने थे; संभवतः बहुत छोटे या 1,00,000 सौर द्रव्यमान तक के होते हैं। 

संदर्भ

असम के बोडोलैंड टेरिटोरियल रीजन (BTR) में आयोजित बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद (BTC) के चुनाव में 72% से अधिक मतदान हुआ।

बोडोलैंड टेरिटोरियल रीजन (BTR)  के बारे में

  • बोडोलैंड असम का एक स्वायत्त क्षेत्र है, जो ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तरी किनारे पर अवस्थित है।
  • इसमें ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तरी किनारे पर स्थित चार जिले शामिल हैं, जो भूटान और अरुणाचल प्रदेश में पर्वत शृंखलाओं के तल में अवस्थित हैं।
  • इसका प्रशासन बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद (BTC) द्वारा किया जाता है।
  • जनसंख्या: यहाँ मुख्य रूप से बोडो लोग और अन्य आदिवासी समुदाय रहते हैं।
  • शब्द की उत्पत्ति: “बोडोलैंड” शब्द क्षेत्र के मुख्य जातीय समूह बोडो से लिया गया है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • स्वतंत्रता के लिए आंदोलन वर्ष 1967 में असम की ‘प्लेन्स ट्राइब्स काउंसिल’ से शुरू हुआ इसके पश्चात् ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन ने अलग राज्य की माँग करते हुए बोडो आंदोलन (वर्ष 1987) प्रारंभ किया।
  • बोडो समझौता (वर्ष 1993): बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद का गठन।
  • ऐतिहासिक रूप से यह प्राचीन कामरूप राज्य का हिस्सा था, तत्पश्चात् इस पर वर्ष 1865 में ‘द्वार युद्ध’ (Duar War) के बाद ब्रिटिश शासन से पूर्व कोच-मेच राजवंश, भूटान एवं अहोम साम्राज्य का शासन रहा।

बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद का विकास

  • वर्ष 1993: बोडोलैंड भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के तहत एक स्वायत्त इकाई बन गया, जिसका क्षेत्रफल 8,795 वर्ग किमी. है और इसका प्रशासन बोडोलैंड स्वायत्त परिषद द्वारा किया जाता है।
  • वर्ष 2003: आर्थिक विकास, शिक्षा, भूमि अधिकार, सांस्कृतिक पहचान और बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद (BTC) का गठन किया गया।
  • वर्ष 2020 शांति समझौता
    • 27 जनवरी 2020 को भारत सरकार, असम सरकार, नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (NDFB), ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन और यूनाइटेड बोडो पीपुल्स ऑर्गनाइजेशन के बीच समझौता हुआ।
    • BTR को अधिक कार्यकारी और विधायी शक्तियाँ दी गईं।
    • बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद की सदस्यता 60 कर दी गई एवं आस-पास के बोडो बहुल क्षेत्रों को शामिल करके और गैर-बोडो क्षेत्रों को बाहर करके सीमाएँ इस तरह तय की गईं कि बोडो समुदाय की आबादी अधिक हो।
    • BTR को राष्ट्रीय खेल और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में प्रतिनिधित्व का अधिकार दिया गया (जैसे- राष्ट्रीय खेल, खेलो इंडिया यूथ गेम्स)।
    • देवनागरी लिपि में बोडो भाषा को असम की सहयोगी आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दी गई।

छठी अनुसूची के प्रावधान

  • अनुच्छेद-244(2): यह असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के आदिवासी क्षेत्रों के प्रशासन पर लागू होता है।
  • स्वायत्त जिले और स्वायत्त क्षेत्र
    • चार राज्यों के आदिवासी क्षेत्र स्वायत्त जिलों के रूप में प्रशासित होते हैं।
    • यदि किसी जिले में कई अनुसूचित जनजाति समुदाय रहते हैं, तो राज्यपाल उसे स्वायत्त क्षेत्रों में विभाजित कर सकता है।
    • राज्यपाल के पास जिलों का पुनर्गठन करने, सीमाओं में परिवर्तन करने या उनका नाम बदलने का अधिकार है।
  • परिषदों का गठन
    • जिला परिषद: प्रत्येक स्वायत्त जिले के लिए एक जिला परिषद होती है, जिसमें अधिकतम 30 सदस्य (गवर्नर द्वारा नामित अधिकतम 4 सदस्य, बाकी वयस्क मताधिकार द्वारा चुने गए)।
    • क्षेत्रीय परिषद: प्रत्येक स्वायत्त क्षेत्र के लिए अलग क्षेत्रीय परिषद होती है।
  • परिषद की विधायी शक्तियाँ
    • भूमि, वन प्रबंधन (सुरक्षित वन क्षेत्र को छोड़कर), वसीयत और स्थानीय व्यापार नियमों जैसे विषयों पर कानून बना सकती है।
    • जनजातीय क्षेत्रों में सामान्य लोगों द्वारा धन उधार देने या व्यापार करने को नियंत्रित करने वाले कानून।
    • सभी कानूनों को राज्यपाल की सहमति की आवश्यकता होती है।
  • राजस्व और कर
    • परिषदें भूमि राजस्व का आकलन और संग्रह कर सकती हैं और व्यवसाय, व्यापार, पशु, वाहन आदि पर कर लगा सकती हैं।
    • अपने अधिकार क्षेत्र में खनिज उत्खनन के लिए लाइसेंस या लीज देने का अधिकार।
  • न्याय प्रशासन
    • परिषदें केवल अनुसूचित जनजाति के सदस्यों से संबंधित विवादों के लिए ग्राम और जिला परिषद न्यायालय स्थापित कर सकती हैं।
    • राज्यपाल द्वारा निर्दिष्ट मामलों पर उच्च न्यायालयों का अधिकार क्षेत्र बना रहता है।
    • परिषद न्यायालय मृत्युदंड या पाँच वर्ष से अधिक की सजा वाले मामलों की सुनवाई नहीं कर सकते हैं।
  • विकास संबंधी शक्तियाँ: परिषदें प्राथमिक स्कूल, डिस्पेंसरी, बाजार, पशुपालकों के लिए तालाब, मछली पालन, सड़कें, परिवहन और जलमार्ग स्थापित या प्रबंधित कर सकती हैं।
  • कानूनों का लागू होना: संसद या राज्य विधानमंडल के कानून स्वायत्त जिलों/क्षेत्रों में सीधे लागू नहीं होते या उनमें बदलाव/अपवाद के साथ लागू होते हैं।
  • राज्यपाल की शक्तियाँ: स्वायत्त जिलों या क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित मुद्दों की जाँच के लिए आयोग नियुक्त कर सकते हैं।

संदर्भ

भारत AI-संचालित डेटा केंद्रों की बढ़ती विद्युत माँग को पूरा करने के लिए स्माल मॉड्यूलर रिएक्टरों (SMRs) के माध्यम से परमाणु ऊर्जा पर विचार कर रहा है।

  • यह अमेरिका जैसे देशों में वैश्विक रुझानों के अनुरूप है, जहाँ उच्च-घनत्व वाले कंप्यूटिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर से भारी मात्रा में विद्युत की खपत होती है।

डेटा सेंटर क्या होते हैं?

  • डेटा सेंटर, विशेष सुविधाएँ होती हैं, जिनमें कंप्यूटर सिस्टम, सर्वर, नेटवर्किंग उपकरण और स्टोरेज सिस्टम होते हैं, जिनका उपयोग बड़े पैमाने पर डिजिटल डेटा को मैनेज करने, स्टोर करने और प्रोसेस करने के लिए किया जाता है।
  • उपयोग: ये डेटा सेंटर क्लाउड सेवाओं को सशक्त बनाते हैं, वेबसाइटों को होस्ट करते हैं, उद्यम IT परिचालनों का प्रबंधन करते हैं, वित्तीय लेनदेन का समर्थन करते हैं, तथा वास्तविक समय संचार, AI प्रसंस्करण और बिग डेटा विश्लेषण को सक्षम करते हैं।

भारत में डेटा सेंटर का विकास

  • वर्तमान बाजार: $10 बिलियन।
  • वित्त वर्ष 2024 का राजस्व: $1.2 बिलियन।
  • ऊर्जा लागत में योगदान: पूँजीगत व्यय का ~40%, परिचालन लागत का 65%
  • क्षमता वृद्धि की संभावना: वर्ष 2027 तक 795 MW (कुल 1.8 GW)
  • 1 MW प्लांट की लागत: ₹60-70 करोड़

स्माल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR)

  • स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMRs) उन्नत परमाणु रिएक्टर हैं, जिनकी क्षमता 30 MWe से 300 MW(e) के मध्य होती है, जो पारंपरिक रिएक्टरों की क्षमता का लगभग एक-तिहाई है। ये कम कार्बन वाली विद्युत का उत्पादन करते हैं।

स्माल मॉड्यूलर रिएक्टरों की मुख्य विशेषताएँ

  • लघु आकार: स्माल मॉड्यूलर रिएक्टर पारंपरिक रिएक्टरों की तुलना में अधिक छोटे होते हैं, जिससे निर्माण एवं परिचालन लागत कम हो जाती है।
  • मॉड्यूलर डिजाइन: SMR को फैक्टरी में असेंबल करके साइट पर पहुँचाया जा सकता है, जिससे इसकी अवस्थापना आसान हो जाती है और निर्माण समय कम हो जाता है।
  • कम भूमि की आवश्यकता: SMR कम परमाणु अपशिष्ट उत्पन्न करते हैं और मौजूदा औद्योगिक स्थलों पर सुरक्षित रूप से संचालित किए जा सकते हैं, जिससे भूमि अधिग्रहण की चुनौतियाँ कम हो जाती हैं।
  • महत्त्वपूर्ण खनिजों पर कम निर्भरता: SMR के लिए कम-संवर्द्धित यूरेनियम की आवश्यकता होती है, जो अन्य ऊर्जा प्रौद्योगिकियों में उपयोग किए जाने वाले महत्त्वपूर्ण खनिजों की तुलना में अधिक व्यापक रूप से उपलब्ध है।

स्माल मॉड्यूलर रिएक्टरों की स्थिति

  • रूस का एकेडेमिक लोमोनोसोव, विश्व का पहला तैरता हुआ परमाणु ऊर्जा संयंत्र, जिसने मई 2020 में व्यावसायिक संचालन शुरू किया था, दो 35 MW(e) SMR से ऊर्जा का उत्पादन कर रहा है।
  • हाई टेंपरेचर रिएक्टर पेबल बेड मॉड्यूल (HTR-PM) (चीन): वर्ष 2021 में ग्रिड से संबंधित एक प्रदर्शन यूनिट जिसका  व्यावसायिक संचालन वर्ष 2023 में शुरू हुआ।
  • अर्जेंटीना, कनाडा, दक्षिण कोरिया और संयुक्त राज्य अमेरिका में अन्य स्माल मॉड्यूलर रिएक्टर निर्माणाधीन हैं या लाइसेंसिंग चरण में हैं।

भारत की नीति और कानूनी पहलें

  • परमाणु क्षति के लिये नागरिक दायित्त्व अधिनियम 2010: विदेशी विक्रेताओं (जैसे- वेस्टिंगहाउस, फ्रैमेटोम) की चिंताओं का समाधान करते हुए ऑपरेटर के दायित्व को कम करने के लिए संशोधन प्रस्तावित किए गए।
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी: निजी कंपनियों और विदेशी निवेशकों को न्यूक्लियर प्रोजेक्ट में इक्विटी शेयर लेने की अनुमति देना।
  • भारत-अमेरिका सिविल न्यूक्लियर सहयोग के साथ सामंजस्य: इससे SMRs को व्यापक व्यापार और निवेश समझौतों में शामिल किया जा सकता है।

निहितार्थ

  • ऊर्जा और तकनीक: SMR हाई-डेंसिटी कंप्यूटिंग हब को सपोर्ट कर सकते हैं, जिससे AI और क्लाउड सेवाओं का विस्तार संभव होगा।
  • आर्थिक: डेटा सेंटर के लिए ऊर्जा लागत कम करता है, परमाणु ऊर्जा में निजी क्षेत्र और FDI को बढ़ावा देता है।
  • पर्यावरण: जीवाश्म ईंधन का कम कार्बन युक्त विकल्प, भारत की जलवायु संबंधी प्रतिबद्धताओं को पूरा करता है।
  • रणनीतिक: वैश्विक SMR बाजार में भारत की स्थिति मजबूत करता है और भारत-अमेरिका परमाणु सहयोग को बढ़ावा देता है।

स्माल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) से जुड़ी चुनौतियाँ

  • उच्च प्रारंभिक लागत: SMR की दीर्घकालिक लागत कम होती है, लेकिन प्रारंभिक विकास और लाइसेंसिंग खर्च अधिक होते हैं।
  • क्षमताओं और प्रौद्योगिकियों की विस्तृत शृंखला: SMR <30 MW(e) से लेकर 300+ MW(e) तक भिन्न होते हैं, जिससे कई प्रौद्योगिकी विकल्प सामने आते हैं। 
    • बहुत अधिक विकल्प उद्योग के विकास में बाधा डाल सकते हैं, नियामक चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकते हैं, तथा लागत अनुकूलन को कम कर सकते हैं।
  • विनिर्माण अवसंरचना: SMR घटकों के बड़े पैमाने पर क्रमिक उत्पादन के लिए पूर्णतः चालू निर्माण सुविधाएँ अभी तक स्थापित नहीं हुई हैं।
  • जनधारणा और स्वीकृति: परमाणु सुरक्षा और अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित चिंताओं का समाधान किया जाना चाहिए।
  • आपूर्ति शृंखला एवं अवसंरचना: कुशल निर्माण के लिए मजबूत आपूर्ति शृंखला एवं अवसंरचना आवश्यक हैं।
  • नियामक और सुरक्षा आवश्यकताएँ: नई SMR टेक्नोलॉजी के लिए, विशेषतः परमाणु सामग्री (NM) प्राप्त करते समय, एक मजबूत सुरक्षा दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

SMR के संबंध में आगे की राह

  • मानकीकरण और क्रमिक उत्पादन
    • ऐसे मानकीकृत छोटे रिएक्टरों के डिजाइन पर ध्यान केंद्रित करना जिन्हें उद्योग 4.0 उपकरणों का उपयोग करके गुणवत्ता-नियंत्रित फैक्टरी वातावरण में बार-बार निर्मित किया जा सके।
    • क्रमिक उत्पादन से सीखने की प्रक्रिया में सुधार होगा और समय के साथ लागत कम होगी।
  • पारिस्थितिकी तंत्र विकास
    • बड़े पैमाने पर अपनाने के लिए एक मजबूत SMR पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित करना; मानकीकृत घटक और मॉड्यूल व्यापक तैनाती में सहायक होंगे।
    • मल्टी-मॉड्यूल डिजाइन और इमरजेंसी प्लानिंग जोन के लिए सुरक्षा मूल्यांकन की पद्धतियों को अपडेट करना।
  • वित्तपोषण और निवेश
    • निजी निवेश आकर्षित करने के लिए कम लागत वाले वित्त की उपलब्धता, हरित वर्गीकरण में समावेशन और मिश्रित वित्त तथा हरित बांड जैसे नवीन साधनों का उपयोग सुनिश्चित करना।
  • कुशल कार्यबल
    • SMR मूल्य शृंखला में कुशल कर्मियों का एक समूह विकसित करना: इंजीनियरिंग, डिजाइन, परीक्षण, निरीक्षण, निर्माण और कमीशनिंग।

संदर्भ

हाल ही में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा जारी मूल्यांकन रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रदूषित नदी खंडों की संख्या 311 से घटकर 296 हो गई है तथा सर्वाधिक प्रदूषित खंडों में भी कमी आई है।

  • उल्लेखनीय है कि CPCB ने वर्ष 2022 और वर्ष 2023 के जल गुणवत्ता संबंधी आँकड़ों की समीक्षा की, जिसमें 2,116 स्थान शामिल थे और पाया कि 32 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की 271 नदियों के 296 हिस्से प्रदूषित थे।

रिपोर्ट के बारे में

  • CPCB प्रत्येक दो वर्ष के अंतराल में नदियों की सेहत की निगरानी करता है, जिसमें मुख्य पैरामीटर के तौर पर बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) को देखा जाता है।
  • इससे पूर्व मूल्यांकन (2022) वर्ष 2019-2021 के आँकड़ों के आधार पर किया गया था, जिसमें महामारी के कारण वर्ष 2020 के आँकड़े शामिल नहीं थे।
  • CPCB ने वर्ष 2022-2023 के जल गुणवत्ता डेटा की समीक्षा की, जिसमें 2,116 स्थान शामिल थे।

संबंधित तथ्य

  • इस रिपोर्ट में प्रदूषित नदी खंडों में मामूली कमी का संकेत दिया गया है तथा कुछ उच्च प्राथमिकता वाले खंडों में मामूली सुधार हुआ है।

महत्त्वपूर्ण पद

  • बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) घुली हुई ऑक्सीजन की वह मात्रा है, जो बैक्टीरिया को जल में कार्बनिक अपशिष्ट को विखंडित करने के लिए आवश्यक होती है। इसे प्रति लीटर जल में ऑक्सीजन की मात्रा मिलीग्राम (mg/L) के रूप में मापा जाता है।
    • घुलित ऑक्सीजन (DO) जलीय जीवों द्वारा उपयोग के लिए उपलब्ध जल में मौजूद मुक्त ऑक्सीजन गैस की मात्रा है। इसे आमतौर पर प्रति लीटर जल में मिलीग्राम ऑक्सीजन (mg/L) में व्यक्त किया जाता है।
    • अपशिष्ट की उच्च सांद्रता अपघटन और ऑक्सीजन के उपयोग को तेज करती है, जिसके परिणामस्वरूप DO की मात्रा कम हो जाती है।
  • प्रदूषित नदी स्थल: 3 मिलीग्राम/लीटर से अधिक बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) बढ़ते प्रदूषण का संकेत है और इसे स्नान के लिए अनुपयुक्त माना जाता है।
  • प्रदूषित नदी खंड (Polluted River Stretch- PRS): एक ही नदी में दो या दो से अधिक क्रमिक स्थान, जो BOD मानदंड से अधिक हों, को ‘प्रदूषित नदी खंड’ (Polluted River Stretch) माना जाता है।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु

  • प्रदूषित नदियों की संख्या 815 (वर्ष 2022) से घटकर 807 (वर्ष 2023) हो गई।
  • प्रदूषित नदी स्थल 311 (वर्ष 2022) से घटकर 296 (वर्ष 2023) हो गए।
  • राज्य-वार प्रदूषित नदी खंड (PRS) की स्थिति
    • वर्ष 2023: महाराष्ट्र (54) > केरल (31) > मध्य प्रदेश और मणिपुर (18) > कर्नाटक (14)।
    • वर्ष 2022: महाराष्ट्र (55) > मध्य प्रदेश (19) > बिहार (18) > केरल (18) > कर्नाटक (17) > उत्तर प्रदेश (17)।
  • प्राथमिकता-1 खंड
    • प्राथमिकता-1 वाले खंड वर्ष 2022 में 45 से घटकर वर्ष 2023 में 37 हो गए।
    • वर्ष 2023: सबसे अधिक खंड तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड (5) में
    • वर्ष 2022: सबसे अधिक खंड गुजरात और उत्तर प्रदेश में (6)।

प्राथमिकता श्रेणियाँ (BOD के आधार पर)

प्राथमिकता

BOD (मिलीग्राम/लीटर)

निहितार्थ

1

>30

सबसे प्रदूषित, तत्काल सुधार की आवश्यकता

2

20–30

गंभीर प्रदूषण, तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता

3

10–20

मध्यम प्रदूषण

4

6–10

कम प्रदूषण

5

3–6

सबसे कम प्रदूषण, कम हस्तक्षेप

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB)

  • स्थापना: इसकी स्थापना सितंबर 1974 में जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के तहत की गई थी।
  • अधिकार: इसे वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत भी शक्तियाँ और कार्य सौंपे गए हैं।
  • मुख्य कार्य
    • राज्यों के विभिन्न क्षेत्रों में नालों और कुओं की सफाई को बढ़ावा देना, जल प्रदूषण को रोकना, नियंत्रित करना और कम करना।
    • देश में वायु की गुणवत्ता में सुधार करना और वायु प्रदूषण को रोकना, नियंत्रित करना या कम करना।
    • यह पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों के तहत पर्यावरण और वन मंत्रालय को तकनीकी सेवाएँ भी प्रदान करता है।
  • नोडल मंत्रालय: पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (भारत सरकार)।
  • निगरानी नेटवर्क: CPCB नदियों, झीलों, नालों, नहरों आदि से संबंधित 4,736 स्थलों की निगरानी करता है।

संदर्भ

वर्ष 2025 में भारत की मुद्रास्फीति तेजी से घटने की संभावना है। अगस्त 2025 में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित मुद्रास्फीति 2.07% और थोक मूल्य सूचकांक (WPI) आधारित मुद्रास्फीति 0.52% रहने का अनुमान है। इससे उपभोक्ताओं को तो राहत मिलेगी, लेकिन सरकारी वित्त के लिए चुनौतियाँ खड़ी होंगी, जो राजस्व, राजकोषीय घाटे और ऋण प्रबंधन को प्रभावित कर सकती हैं।

मुद्रास्फीति के बारे में

  • मुद्रास्फीति: यह अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं के सामान्य मूल्य स्तर में निरंतर वृद्धि को संदर्भित करता है।
    • मुद्रास्फीति का मध्यम स्तर सामान्य है, लेकिन बहुत अधिक या बहुत कम मुद्रास्फीति आर्थिक निर्णयों को विकृत कर देती है।

मुद्रास्फीति के प्रकार

  • हेडलाइन मुद्रास्फीति (Headline Inflation): हेडलाइन मुद्रास्फीति किसी अर्थव्यवस्था में कुल मुद्रास्फीति का एक माप है, जिसमें खाद्य और ऊर्जा की कीमतें (जैसे- तेल एवं गैस) जैसी वस्तुएँ शामिल हैं, जो आमतौर पर बहुत अधिक अस्थिर होती हैं और मुद्रास्फीति में वृद्धि की संभावना होती है।
    • भारत में थोक मूल्य सूचकांक (WPI) को ‘हेडलाइन मुद्रास्फीति’ कहा जाता है।
  • कोर मुद्रास्फीति (Core Inflation): ‘कोर मुद्रास्फीति’ वस्तुओं और सेवाओं की लागत में परिवर्तन है, लेकिन इसमें खाद्य तथा ऊर्जा क्षेत्रों की वस्तुएँ शामिल नहीं हैं।
    • मुद्रास्फीति की इस माप में ये वस्तुएँ शामिल नहीं हैं क्योंकि इनकी कीमतें बहुत अधिक अस्थिर होती हैं।
  • अवस्फीति (Disinflation): अवस्फीति, मुद्रास्फीति की दर में कमी को दर्शाती है, जिसका अर्थ है कि कीमतें अभी भी बढ़ रही हैं, लेकिन धीमी गति से
  • मुद्रास्फीतिजनित मंदी (Stagflation): मुद्रास्फीतिजनित मंदी उच्च मुद्रास्फीति और स्थिर आर्थिक विकास का एक अनूठा संयोजन है, जिसके साथ उच्च बेरोजगारी भी होती है।
  • अपस्फीति (Deflation): यह मुद्रास्फीति के विपरीत है। यह अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं के समग्र मूल्य स्तरों में निरंतर और सामान्य कमी को दर्शाता है।
    • सकारात्मक प्रभाव
      • कम ब्याज दरें उधार लेने और खर्च करने को प्रोत्साहित करती हैं।
      • बचत का मूल्य समय के साथ बढ़ता है।
      • व्यवसायों को कुशल बनने के लिए प्रेरित करता है।
      • निश्चित आय वालों (जैसे- सेवानिवृत्त) को लाभ होता है।
    • नकारात्मक प्रभाव
      • लोग खर्च करने में देरी करते हैं, जिससे आर्थिक मंदी और नौकरियाँ कम होती हैं।
      • व्यावसायिक राजस्व और लाभ में गिरावट आती है।
      • वास्तविक रूप से ऋण का बोझ और भी बढ़ जाता है।

मुद्रास्फीति का मापन

भारत में मुद्रास्फीति को मुख्यतः दो मुख्य सूचकांकों WPI (थोक मूल्य सूचकांक) और CPI (उपभोक्ता मूल्य सूचकांक) द्वारा मापा जाता है, जो क्रमशः थोक और खुदरा स्तर के मूल्य परिवर्तनों को मापते हैं।

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) – खुदरा मुद्रास्फीति के बारे में

  • CPI एक आधार वर्ष के संदर्भ में वस्तुओं और सेवाओं की खुदरा कीमतों में परिवर्तन को मापता है।
  • संकलनकर्ता: राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO), सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (भारत सरकार)।
  • आधार वर्ष: वर्ष 2012।
  • CPI के प्रकार: भारत में, सामान्य CPI (CPI-संयुक्त) के साथ-साथ, विभिन्न जनसंख्या समूहों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए खंड-विशिष्ट सूचकांक भी प्रकाशित किए जाते हैं:
    • CPI (IW): औद्योगिक श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक
    • CPI (AL): कृषि श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक
    • CPI (RL): ग्रामीण श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक

थोक मूल्य सूचकांक (WPI)

  • WPI: यह खुदरा स्तर से पहले थोक मूल्यों में औसत परिवर्तन को मापता है।
  • क्षेत्र: यह केवल वस्तुओं को शामिल करता है, सेवाओं को छोड़कर।
  • संकलितकर्ता: वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के आर्थिक सलाहकार कार्यालय (मासिक आधार पर)।
  • आधार वर्ष: वर्ष 2011-12 में।
  • बास्केट की संरचना: इसमें 697 वस्तुएँ शामिल हैं, जिन्हें तीन प्रमुख समूहों में वर्गीकृत किया गया है:
    • प्राथमिक वस्तुएँ (भार: 100 में से 22.618): इसमें 4 उप-समूह शामिल हैं: खाद्य वस्तुएँ; अखाद्य वस्तुएँ; खनिज; और कच्चा पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस।
    • ईंधन और बिजली (सबसे कम भार: 100 में से 13.152): इसमें 3 उप-समूह शामिल हैं: कोयला; खनिज तेल; बिजली।
    • निर्मित उत्पाद (सबसे अधिक भार: 100 में से 64.230): इसमें 22 उप-समूह शामिल हैं।

बेस इफेक्ट (Base Effect)

  • परिभाषा: बेस इफेक्ट, वर्तमान मुद्रास्फीति या विकास दर की तुलना पिछले वर्ष (आधार वर्ष) में समान संकेतक के उच्च या निम्न स्तर से करने पर पड़ने वाले प्रभाव को संदर्भित करता है।
  • यदि आधार वर्ष में मुद्रास्फीति असामान्य रूप से अधिक रही हो, तो चालू वर्ष की मुद्रास्फीति कम दिखाई दे सकती है, भले ही कीमतें अभी भी बढ़ रही हों। इसी प्रकार, यदि आधार वर्ष में मुद्रास्फीति बहुत कम रही हो, तो चालू वर्ष की मुद्रास्फीति अधिक दिखाई दे सकती है।
    • उदाहरण: यदि पिछले वर्ष सब्जियों की कीमतें दोगुनी हो गईं और इस वर्ष केवल 5 प्रतिशत की वृद्धि हुई, तो उच्च आधार के कारण मुद्रास्फीति दर बहुत कम दिखाई देगी, भले ही कीमतें अभी भी दो वर्ष पहले की तुलना में अधिक हों।

कम मुद्रास्फीति के कारक

  • आपूर्ति-पक्ष सुधार: मजबूत कृषि उत्पादन और बेहतर आपूर्ति शृंखलाएँ आवश्यक वस्तुओं की बेहतर उपलब्धता सुनिश्चित करने में मदद कर सकती हैं, जिससे खाद्य मुद्रास्फीति कम रहेगी।
  • वैश्विक वस्तु प्रवृत्ति: कच्चे तेल, खाद्य तेलों और अन्य वस्तुओं की वैश्विक कीमतों में गिरावट घरेलू अर्थव्यवस्था पर आयातित मुद्रास्फीति के दबाव को कम कर सकती है।
  • मौद्रिक नीतिगत कदम: भारतीय रिजर्व बैंक के उपाय, जैसे- रेपो दर में वृद्धि, कठोर तरलता और व्यापक विवेकपूर्ण कदम, माँग-प्रेरित मुद्रास्फीति को कम कर सकते हैं।
  • मूल्य सूचकांक में आधार प्रभाव (बेस इफेक्ट): पिछले वर्ष का उच्च आधार चालू वर्ष की मुद्रास्फीति दरों को कम दिखाता है, भले ही कीमतें स्थिर हों या धीरे-धीरे बढ़ रही हों।
    • वर्ष 2024-25 के लिए नाॅमिनल GDP को 2 प्रतिशत बढ़ाकर 331 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया।
    • इस संशोधन का अर्थ है कि सरकार को 357 लाख करोड़ रुपये के बजटीय आँकड़े तक पहुँचने के लिए वर्ष 2025-26 में केवल लगभग 8 प्रतिशत की वृद्धि की आवश्यकता है।
    • हालाँकि, अप्रैल-जून में नाॅमिनल वृद्धि पहले ही धीमी होकर 8.8 प्रतिशत पर आ गई है और इसके कम होने की उम्मीद है, जिससे संशोधित लक्ष्य को प्राप्त करना भी कठिन हो सकता है।

नाॅमिनल बनाम वास्तविक GDP (Nominal vs. Real GDP)

  • वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि (Real GDP Growth): मुद्रास्फीति के लिए समायोजित अर्थव्यवस्था की वृद्धि; वास्तविक उत्पादन वृद्धि को दर्शाती है।
    • आर्थिक उत्पादन को परिमाण के संदर्भ में मापता है; उत्पादन में वास्तविक वृद्धि दर्शाता है।
    • प्रभावकारी कारक: वास्तविक उत्पादन, माँग, उत्पादकता।
    • उत्पादन + मूल्य स्तर (मुद्रास्फीति)।
    • प्रत्याशित रुझान: कम मुद्रास्फीति के बावजूद उच्च वृद्धि (7.8%)।
  • नाॅमिनल GDP में वृद्धि: मौद्रिक दृष्टि से अर्थव्यवस्था की वृद्धि, मुद्रास्फीति के लिए समायोजित नहीं; वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य को दर्शाती है।
    • अर्थव्यवस्था के कुल मौद्रिक आकार को मापता है; सरकारी राजस्व और राजकोषीय नियोजन के लिए महत्त्वपूर्ण।
    • प्रभावकारी कारक: उत्पादन + मूल्य स्तर (मुद्रास्फीति)।
    • अवलोकित रुझान: अपेक्षा से कम (8.8% बनाम 10.1% बजट अनुमान), कम मुद्रास्फीति के प्रभाव को दर्शाता है।

मुद्रास्फीति और GDP वृद्धि (Inflation and GDP Growth)

  • सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि: सकल घरेलू उत्पाद, किसी देश की सीमाओं के भीतर एक विशिष्ट अवधि, आमतौर पर एक वर्ष या एक तिमाही में उत्पादित सभी तैयार वस्तुओं और सेवाओं के कुल मौद्रिक मूल्य को मापता है।
    • सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि यह दर्शाती है कि आय और उत्पादन के संदर्भ में अर्थव्यवस्था कितनी तीव्रता से विस्तार कर रही है।
  • अंतर्संबंध: मुद्रास्फीति सकल घरेलू उत्पाद के नाममात्र आकार को प्रभावित करती है, जबकि वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद केवल मूल्य परिवर्तनों के लिए समायोजित उत्पादन वृद्धि को दर्शाता है।
    • राजकोषीय आधार के रूप में नाॅमिनल GDP: बजट गणनाएँ (कर राजस्व, राजकोषीय घाटा, ऋण-से-GDP अनुपात) नाॅमिनल GDP के आकार और वृद्धि से जुड़ी होती हैं।
    • बजट संबंधी मान्यताएँ: जब वित्त मंत्रालय केंद्रीय बजट तैयार करता है, तो वह आगामी वर्ष में नाॅमिनल GDP के लिए एक निश्चित वृद्धि दर मान लेता है।
      • उदाहरण: केंद्रीय बजट 2025-26 में 357 लाख करोड़ रुपये की नाॅमिनल GDP (10.1% वृद्धि) मान ली गई है।
    • यदि नाॅमिनल GDP के 10.1% की दर से बढ़ने की उम्मीद है, तो इसका अर्थ है कि मौद्रिक रूप में समग्र आर्थिक गतिविधियाँ उतनी ही बढ़ रही है।
    • इसके बाद सरकार इस मान्यता के अनुरूप कर राजस्व का अनुमान लगाती है।
    • मुद्रास्फीति कम होने के कारण, इस वर्ष अब तक नाॅमिनल GDP वृद्धि अनुमान से कम रही है।
  • नाॅमिनल GDP दर को प्राप्त करना दो प्रमुख संकेतकों के लिए महत्त्वपूर्ण है: राजकोषीय घाटा और केंद्र सरकार का ऋण, दोनों को नाॅमिनल GDP के प्रतिशत के रूप में मापा जाता है।
    • जब तक नाॅमिनल GDP दर प्राप्त हो जाती है, तब तक 4.4 प्रतिशत का राजकोषीय घाटा लक्ष्य और 56.1 प्रतिशत का ऋण-GDP अनुपात अनुमान पूरा हो जाएगा (यह मानते हुए कि राजकोषीय घाटा बजट अनुमान से अधिक नहीं है)।
  • राजस्व प्रभाव: जीएसटी, प्रत्यक्ष कर और अप्रत्यक्ष कर सहित कर संग्रह, केवल उत्पादन की भौतिक मात्रा के बजाय लेन-देन के मूल्य पर निर्भर करते हैं।
    • अप्रैल और जुलाई 2025 के बीच, सकल कर राजस्व में वर्ष-दर-वर्ष केवल 1 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि शुद्ध कर राजस्व पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 7.5 प्रतिशत कम हुआ।

क्या कम मुद्रास्फीति खराब स्थिति को दर्शाती है?

कम मुद्रास्फीति को आमतौर पर उपभोक्ताओं के लिए अच्छा माना जाता है क्योंकि यह क्रय शक्ति की रक्षा करती है। हालाँकि, इसका प्रभाव अंतर्निहित कारणों पर निर्भर करता है।

  • सकारात्मक पक्ष
    • उपभोक्ता लाभ: परिवारों को आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं की कम कीमतों का सामना करना पड़ता है।
    • मौद्रिक स्थिरता: पूर्वानुमानित और स्थिर कीमतें वित्तीय नियोजन में अनिश्चितता को कम करती हैं।
    • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता: यदि उत्पादन लागत कम रहती है, तो निर्यातकों को लाभ हो सकता है।
  • नकारात्मक पक्ष (जब बहुत कम हो)
    • नाॅमिनल GDP वृद्धि पर प्रभाव: कम मुद्रास्फीति नाॅमिनल GDP वृद्धि को कम करती है, जिससे कर राजस्व अनुमान कमजोर होते हैं।
    • राजकोषीय तनाव: कम नाॅमिनल वृद्धि राजकोषीय घाटे और ऋण-GDP लक्ष्यों को प्रभावित करती है।
    • कॉरपोरेट निवेश की कमजोरी: यदि कम मुद्रास्फीति कमजोर माँग के कारण है, तो कंपनियाँ उच्च लाभ के बावजूद निवेश करने में संकोच कर सकती हैं।
    • अपस्फीति का जोखिम: लगातार कम मुद्रास्फीति अपस्फीति को बढ़ावा दे सकती है, जिससे उपभोग और विकास प्रक्रिया हतोत्साहित हो सकती है।

संदर्भ

हाल ही में वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय (भारत सरकार) के उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (Department for Promotion of Industry and Internal Trade- DPIIT) द्वारा राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति (National Logistics Policy) (2022) की तीसरी वर्षगाँठ मनाई गई।

संबंधित तथ्य 

  • मेक इन इंडिया के एक दशक पूरे होने के अवसर पर, केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री ने भारत में लॉजिस्टिक्स लागत पर पहली वैज्ञानिक रूप से तैयार रिपोर्ट जारी की।
    • इसे राष्ट्रीय अनुप्रयुक्त आर्थिक अनुसंधान परिषद (National Council of Applied Economic Research- NCAER) ने उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (Department for Promotion of Industry and Internal Trade- DPIIT) के लिए तैयार किया है।

  • अन्य प्रमुख प्रक्षेपण
    • औद्योगिक पार्क रेटिंग प्रणाली (Industrial Park Rating System- IPRS) 3.0: निवेशकों को पारदर्शी और विश्वसनीय जानकारी प्रदान करता है।
      • राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों (UT) के बीच प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित करता है।
      • लक्षित हस्तक्षेपों में नीति निर्माताओं की सहायता करता है।
    • लॉजिस्टिक्स डेटा बैंक (Logistics Data Bank- LDB) 2.0: लॉजिस्टिक्स मूल्य शृंखला में ट्रैकिंग, निगरानी और दक्षता को बढ़ाता है।
    • विभिन्न राज्यों में लॉजिस्टिक्स सुगमता (Logistics Ease Across Different States (LEADS) 2025: राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन का मानकीकरण करता है।
      • भारत के वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्द्धी लॉजिस्टिक्स पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करता है।
    • मेक इन इंडिया स्मारक सिक्का: मेक इन इंडिया पहल के एक दशक के पूर्ण होने का प्रतीक है।

‘लॉजिस्टिक्स’ क्षेत्र को मजबूत करने से न केवल आम आदमी का जीवन सुगम होगा, बल्कि श्रमिकों और कामगारों का सम्मान भी बढ़ेगा।’

– प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

“भारत में लॉजिस्टिक्स लागत का आकलन’ पर रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ

  • व्यापक मूल्यांकन: विभिन्न परिवहन साधनों, उत्पाद श्रेणियों और फर्म आकारों में लॉजिस्टिक्स लागतों को दर्शाने के लिए एक व्यापक ढाँचा प्रदान करता है।
  • लॉजिस्टिक्स लागत अनुमान: लॉजिस्टिक्स लागत का अनुमान सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के लगभग 7.97% आँकी गई है (पहले गलत तरीके से प्रस्तुत 13-14% की तुलना में)।
  • माल ढुलाई और बहु-विविधता: प्रति टन-किलोमीटर माल ढुलाई लागत प्रस्तुत करता है और दक्षता बढ़ाने में बहु-विविधता की भूमिका पर प्रकाश डालता है।
  • कार्यप्रणाली: द्वितीयक डेटा और राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षणों को मिलाकर एक संकर पद्धति का उपयोग करता है।

लॉजिस्टिक्स क्या है?

  • लॉजिस्टिक्स, संसाधनों के अधिग्रहण, भंडारण और उनके अंतिम गंतव्य तक परिवहन के प्रबंधन की समग्र प्रक्रिया को संदर्भित करता है।
  • लॉजिस्टिक्स प्रबंधन में संभावित वितरकों और आपूर्तिकर्ताओं की पहचान करना और उनकी प्रभावशीलता और पहुँच का निर्धारण करना शामिल है।

भारत में लॉजिस्टिक्स परिदृश्य का अवलोकन

  • वैश्विक स्थिति: भारत का लॉजिस्टिक्स क्षेत्र विश्व स्तर पर सबसे बड़े लॉजिस्टिक्स क्षेत्रों में से एक है, जो दक्षता और बुनियादी ढाँचे में निरंतर सुधार दर्शाता है।
  • समर्पित लॉजिस्टिक्स इकाई: जुलाई 2017 में, लॉजिस्टिक्स क्षेत्र के एकीकृत विकास की देख-रेख के लिए वाणिज्य विभाग के अंतर्गत एक अलग लॉजिस्टिक्स इकाई का गठन किया गया था।

  • बाजार का आकार और विकास: वर्ष 2021 में 215 बिलियन अमेरिकी डॉलर के मूल्य वाले इस क्षेत्र के वर्ष 2026 तक 10.7% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से बढ़ने की उम्मीद है।
  • परिवहन के साधन
    • सड़क परिवहन: माल ढुलाई का 66% हिस्सा सड़क परिवहन के माध्यम से वहन किया जाता है, लेकिन सड़कों की खराब स्थिति और भीड़भाड़ जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
    • रेल परिवहन: माल ढुलाई का 26% हिस्सा वहन करता है, लेकिन इसके आधुनिकीकरण और क्षमता वृद्धि की आवश्यकता है।

    • वायु और जलमार्ग: क्रमशः 1% और 3% का योगदान करते हैं, लेकिन सागरमाला जैसी सरकारी पहलों के माध्यम से विकास की संभावना रखते हैं।
      • अंतर्देशीय जलमार्ग: वर्ष 2024-25 में माल ढुलाई 5 मिलियन टन तक पहुँच गई; इस दौरान चालू जलमार्गों की संख्या 24 से बढ़कर 29 हो गई।
    • तकनीकी अपनाना: भारत AI, IoT, ब्लॉकचेन और ऑटोमोटिव जैसी तकनीकों के साथ एक डिजिटल रूप से एकीकृत लॉजिस्टिक्स पारिस्थितिकी तंत्र की ओर बढ़ रहा है।
      • हालाँकि, वैश्विक मानकों की तुलना में अपनाने की दर अभी भी कम है।

    • ई-कॉमर्स और व्यापार वृद्धि: ई-कॉमर्स और सीमा पार व्यापार के बढ़ने से लॉजिस्टिक्स सेवाओं की माँग में तेजी आई है।
      • अमेजन और फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियाँ तेजी से डिलीवरी के लिए ग्राहकों की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए उन्नत लॉजिस्टिक्स पर बहुत अधिक निर्भर करती हैं।

भारत में लॉजिस्टिक्स का महत्त्व

  • आर्थिक योगदान: लॉजिस्टिक्स भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 13-14% का योगदान देता है, जो आर्थिक विकास को गति देने में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है।
  • व्यापार और वाणिज्य को सुगम बनाता है: एक मजबूत लॉजिस्टिक्स क्षेत्र माल की निर्बाध आवाजाही को सक्षम बनाकर घरेलू और अंतरराष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देता है।
  • रोजगार सृजन: लॉजिस्टिक्स क्षेत्र सबसे बड़े रोजगार सृजनकर्ताओं में से एक है, जो भारत में 2.2 करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार प्रदान करता है।
    • इसके अतिरिक्त, वर्ष 2027 तक इसमें 1 करोड़ रोजगार जुड़ने का अनुमान है, जो आर्थिक सशक्तीकरण में महत्त्वपूर्ण योगदान देगा।
  • लागत में कमी और प्रतिस्पर्द्धात्मकता में वृद्धि: कुशल लॉजिस्टिक्स संचालन परिवहन और भंडारण लागत को कम करता है, जिससे व्यवसायों को प्रतिस्पर्द्धी मूल्य निर्धारण करने में मदद मिलती है।
    • उदाहरण के लिए, GST लागू होने से राज्य की सीमाओं पर ट्रकों के प्रतीक्षा समय में कमी आई है, लॉजिस्टिक्स लागत में कमी आई है और आपूर्ति शृंखला दक्षता में वृद्धि हुई है।
  • ई-कॉमर्स के विकास को बढ़ावा: ई-कॉमर्स के उदय ने कुशल लॉजिस्टिक्स समाधानों की माँग को बढ़ा दिया है, जिसमें अंतिम-मील डिलीवरी और सीमा-पार व्यापार शामिल हैं।
    • उदाहरण के लिए, अमेजन और फ्लिपकार्ट जैसे प्लेटफॉर्म तीव्र तथा विश्वसनीय डिलीवरी संबंधी ग्राहकों की माँगों को पूरा करने के लिए उन्नत लॉजिस्टिक्स नेटवर्क पर निर्भर करते हैं।
  • आपूर्ति शृंखला दक्षता को बढ़ावा: एक सुव्यवस्थित लॉजिस्टिक्स क्षेत्र सुचारू और समय पर आपूर्ति शृंखला संचालन सुनिश्चित करता है, जिससे संलग्न समय कम होता है और उत्पादन का अनुकूलन होता है।
    • उदाहरण के लिए, मल्टी-मॉडल लॉजिस्टिक्स पार्क (Multi-modal Logistics Parks- MMLPs) के विकास ने माल ढुलाई में सुधार किया है, जिससे समग्र आपूर्ति शृंखला लागत कम हुई है।

  • लॉजिस्टिक्स में स्थिरता
    • हरित लॉजिस्टिक्स: नीति और बुनियादी ढाँचे के माध्यम से पर्यावरण अनुकूल प्रथाओं को अपनाना।
    • फ्रेट ग्रीनहाउस गैस (GHG) कैलकुलेटर: परिवहन लागत और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को मापता है, जिससे स्थायी लॉजिस्टिक्स प्रथाओं के लिए जागरूकता और समर्थन को बढ़ावा मिलता है।
    • रेल ग्रीन पॉइंट्स: कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए रेल-आधारित माल ढुलाई को प्रोत्साहित करता है; वर्ष 2030 तक रेल माल ढुलाई में हिस्सेदारी को 45% तक बढ़ाने का लक्ष्य है।
    • डिजिटल समर्थन: यूनिफाइड लॉजिस्टिक्स इंटरफेस प्लेटफॉर्म (ULIP) जैसे प्लेटफ़ॉर्म कंपनियों को हरित परिवहन विकल्प चुनने में सक्षम बनाते हैं।

लॉजिस्टिक्स में प्रमुख सरकारी पहल

  • सागरमाला परियोजना (2015): यह भारत सरकार के बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्रालय द्वारा भारत के समुद्री क्षेत्र के विकास हेतु एक प्रमुख पहल है।
    • इसका लक्ष्य लॉजिस्टिक्स लागत को कम करना, बंदरगाह दक्षता में सुधार करना और तटीय सामुदायिक विकास को बढ़ावा देना है।
  • वस्तु एवं सेवा कर (GST) और ई-वे बिल: GST (2017) ने माल की आवाजाही को सुव्यवस्थित किया, पारगमन में देरी को कम किया और कराधान को सरल बनाया।
  • ई-वे बिल: सभी राज्यों में ₹50,000 से अधिक मूल्य के माल के लिए अनिवार्य; पारदर्शिता और अनुपालन को बढ़ाता है।
  • प्रधानमंत्री गतिशक्ति मास्टर प्लान (NMP): मल्टी-मॉडल परिवहन को एक समन्वित नेटवर्क में एकीकृत करने के लिए अक्टूबर 2021 में शुरू किया गया।
    • 57 केंद्रीय मंत्रालयों और 36 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को एकीकृत बुनियादी ढाँचा नियोजन के लिए 1,700 डेटा के साथ एकीकृत किया गया।
  • समुद्री अमृत काल विजन 2047: ‘ब्लू इकोनॉमी’ के सिद्धांतों के अनुरूप समुद्री क्षेत्र के लिए दीर्घकालिक रोडमैप विकसित किया गया है।
    • जो बंदरगाह क्षमता, डिजिटलीकरण, स्वचालन, हाइड्रोजन हब, तटीय पर्यटन, जहाज निर्माण और कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • निवेश: ग्लोबल मैरीटाइम इंडिया समिट (GMIS), 2023 में ₹10 लाख करोड़ की प्रतिबद्धता व्यक्त की गई थी।
  • लॉजिस्टिक्स डेटा बैंक (LDB), 2016: EXIM कार्गो की निगरानी करता है; अक्टूबर 2024 तक 75 मिलियन से अधिक कंटेनरों की निगरानी की गई।
  • उपयोग: प्रतिमाह 45 लाख अद्वितीय कंटेनर खोजें; पारदर्शिता और दक्षता में वृद्धि करना।

  • समर्पित माल ढुलाई गलियारे (DFC)
    • पूर्वी DFC: लुधियाना से सोननगर (1,337 किमी.)।
    • पश्चिमी DFC: जवाहरलाल नेहरू पोर्ट टर्मिनल से दादरी (1,506 किमी.)।
    • स्थिति: मार्च 2025 तक 2,741 किमी. (96.4%) चालू।
  • उद्देश्य: भीड़भाड़ कम करना, लागत कम करना, ऊर्जा दक्षता में सुधार करना और औद्योगिक विकास को बढ़ावा देना।
  • यूनिफाइड लॉजिस्टिक्स इंटरफेस प्लेटफॉर्म (ULIP): विभिन्न मंत्रालयों के डेटा को एक ही प्लेटफॉर्म पर एकीकृत करता है।
    • मार्च 2025 तक 100 करोड़ API लेन-देन दर्ज किए गए।
    • शिपमेंट ETA, इन्वेंट्री प्रबंधन और परिचालन लागत में कमी में सहायता करता है।
  • मल्टी-मॉडल लॉजिस्टिक्स पार्क (MMLP), 2017: भारतमाला परियोजना के तहत बड़े पैमाने पर वेयरहाउसिंग और भंडारण केंद्र।
    • 35 स्थानों को मंजूरी दी गई, वर्ष 2027 तक 5 चालू हो जाएँगे।
    • लॉजिस्टिक्स लागत कम करने और आपूर्ति शृंखला दक्षता में सुधार करने का लक्ष्य।

  • गति शक्ति विश्वविद्यालय (GSV): परिवहन और लॉजिस्टिक्स शिक्षा के लिए भारत का पहला विश्वविद्यालय।
    • राष्ट्रीय मास्टर प्लान के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कुशल पेशेवरों को प्रशिक्षित करता है।
    • लगभग 40 संस्थानों के साथ समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए गए।
  • विभिन्न राज्यों में लॉजिस्टिक्स सुगमता (LEADS): बुनियादी ढाँचे, सेवाओं, नियामक परिवेश और स्थिरता का आकलन करने वाली वार्षिक रिपोर्ट।
    • नीति और निवेश संबंधी निर्णयों के मार्गदर्शन हेतु अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।

राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति (National Logistics Policy- NLP) के बारे में

  • राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति (NLP) सितंबर 2022 में प्रधानमंत्री गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान (NMP) के पूरक के रूप में शुरू की गई थी।
  • NLP सॉफ्ट इन्फ्रास्ट्रक्चर और लॉजिस्टिक्स क्षेत्र के विकास पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करती है, जिसमें प्रक्रिया सुधार, लॉजिस्टिक्स सेवाओं में सुधार, डिजिटलीकरण, मानव संसाधन विकास और कौशल विकास शामिल हैं।
  • विजन: सर्वोत्तम तकनीक, प्रक्रियाओं और कुशल जनशक्ति का लाभ उठाकर एक एकीकृत, निर्बाध, कुशल, विश्वसनीय, हरित, सतत् तथा लागत प्रभावी लॉजिस्टिक्स नेटवर्क के माध्यम से देश के आर्थिक विकास और व्यावसायिक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ावा देना।
  • लक्ष्य: NLP के लक्ष्य हैं:-
    1. भारत में लॉजिस्टिक्स की लागत कम करना;
    2. लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन सूचकांक रैंकिंग में सुधार – वर्ष 2030 तक शीर्ष 25 देशों में शामिल होने का प्रयास, और
    3. एक कुशल लॉजिस्टिक्स पारिस्थितिकी तंत्र के लिए डेटा-संचालित निर्णय समर्थन तंत्र बनाना।
  • महत्त्व: लॉजिस्टिक्स नीति निर्माण के लिए एक साक्ष्य-आधारित ढाँचा स्थापित करता है।
    • व्यापार करने की लागत कम करता है, व्यापार को आसान बनाता है और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देता है।
    • मुक्त व्यापार समझौते (FTA) वार्ताओं में भारत की स्थिति को मजबूत करता है।
    • भारत को एक वैश्विक लॉजिस्टिक्स केंद्र बनाने के दृष्टिकोण का समर्थन करता है।

राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति (2022-2025) के अंतर्गत प्रमुख उपलब्धियाँ

  • डिजिटल एकीकरण और पारदर्शिता
    • एकीकृत लॉजिस्टिक्स इंटरफ़ेस प्लेटफॉर्म (ULIP): 30 से अधिक डिजिटल प्रणालियों को एकीकृत करते हुए 160 करोड़ से अधिक एप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस (API) लेन-देन को सक्षम बनाया।
    • लॉजिस्टिक्स डेटा बैंक (LDB): 101 अंतर्देशीय कंटेनर डिपो (ICD) में 75 मिलियन निर्यात-आयात (EXIM) कंटेनरों की निगरानी की गई, जिससे वास्तविक समय में दृश्यता में वृद्धि हुई।
    • इलेक्ट्रॉनिक लॉजिस्टिक्स (E-Logs) पोर्टल: एक संस्थागत तंत्र, सेवा सुधार समूह (SIG) के माध्यम से 140 में से 100 हितधारक मुद्दों का समाधान किया गया।
  • लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन निगरानी
    • विभिन्न राज्यों में लॉजिस्टिक्स सुगमता (LEADS) सूचकांक (2024-25): स्थिरता और डिजिटल मानकों की शुरुआत की गई, जिससे विश्व बैंक के लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन सूचकांक (LPI) में भारत को 38वें स्थान पर पहुँचने में मदद मिली।
    • लॉजिस्टिक्स उत्कृष्टता, उन्नति और प्रदर्शन शील्ड (LEAPS): सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME), स्टार्ट-अप्स और शिक्षा जगत द्वारा लॉजिस्टिक्स में नवाचार को मान्यता दी जाती है।
  • बुनियादी ढाँचे का विकास
    • मल्टी-मॉडल लॉजिस्टिक्स पार्क (Multi-Modal Logistics Parks- MMLPs): 35 केंद्रों को मंजूरी; वेयरहाउसिंग, कोल्ड स्टोरेज, पैकेजिंग और सीमा शुल्क निकासी का एकीकरण।
    • समर्पित माल ढुलाई गलियारे (Dedicated Freight Corridors- DFCs): 96% कार्य पूर्ण, भीड़भाड़ कम होगी, लागत में कटौती होगी और ऊर्जा दक्षता में सुधार होगा।
    • मल्टीमॉडल और एकीकृत लॉजिस्टिक्स इकोसिस्टम (Strengthening Multimodal and Integrated Logistics Ecosystem- SMILE) कार्यक्रम (एशियाई विकास बैंक – ADB के साथ) के सुदृढ़ीकरण के अंतर्गत एकीकृत राज्य और नगर लॉजिस्टिक्स योजनाएँ: 8 राज्यों में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर चल रही हैं।
  • हरित एवं सतत् लॉजिस्टिक्स (Green & Sustainable Logistics)
    • परिवहन उत्सर्जन मापन उपकरण (Transportation Emission Measurement Tool- TEMT): क्लाउड-आधारित, ISO 14083 अनुरूप, उत्सर्जन निगरानी का समर्थन करता है।
    • रेल ग्रीन पॉइंट्स और मॉडल शिफ्ट: वर्ष 2030 तक रेल माल ढुलाई की हिस्सेदारी 35% से बढ़ाकर 45% करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
    • नवीकरणीय ऊर्जा अपनाना: हरित लॉजिस्टिक्स प्रथाओं और कार्बन उत्सर्जन में कमी को प्रोत्साहित करना।
  • कौशल विकास एवं क्षमता निर्माण
    • 100 से अधिक विश्वविद्यालय और संस्थान अब लॉजिस्टिक्स पाठ्यक्रम प्रदान कर रहे हैं; 65,000 पेशेवरों को प्रशिक्षित किया गया (2023-25)।
    • गतिशक्ति विश्वविद्यालय (GatiShakti Vishwavidyalaya- GSV): स्नातक (UG) और स्नातकोत्तर (PG) लॉजिस्टिक्स कार्यक्रम शुरू किए।
    • सिटी लॉजिस्टिक्स उत्कृष्टता केंद्र (योजना एवं वास्तुकला विद्यालय – भोपाल): 100 से अधिक अधिकारियों को प्रशिक्षित किया।
  • क्षेत्रीय एवं क्षेत्रीय नीति को बढ़ावा
    • कुशल लॉजिस्टिक्स के लिए क्षेत्रीय नीति (Sectoral Policy for Efficient Logistics- SPEL)
      • कोयला लॉजिस्टिक्स नीति अधिसूचित।
      • सीमेंट लॉजिस्टिक्स योजना को अंतिम रूप दिया गया।
      • इस्पात, उर्वरक और खाद्य प्रसंस्करण के लिए मसौदे पर काम चल रहा है।
    • राज्य स्तरीय कार्रवाई
      • 27 राज्य/केंद्रशासित प्रदेश, जिनके पास लॉजिस्टिक्स नीतियाँ हैं।
      • 19 राज्य उद्योग का दर्जा (कर प्रोत्साहन और लाभ) प्रदान कर रहे हैं।
      • शहरी लॉजिस्टिक्स योजनाएँ (City Logistics Plans- CLPs): भीड़भाड़ कम करने और शहरी माल ढुलाई दक्षता को लक्षित करना।
  • रुझान: गैर-सेवा उत्पादन की तुलना में लॉजिस्टिक्स लागत की वृद्धि दर धीमी हो रही है, जो सुधारों और बुनियादी ढाँचे में निवेश से होने वाले लाभ को दर्शाती है।

व्यापक लॉजिस्टिक्स कार्य योजना (Comprehensive Logistics Action Plan- CLAP)

  • इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए, NLP के हिस्से के रूप में एक व्यापक लॉजिस्टिक्स कार्य योजना (Comprehensive Logistics Action Plan- CLAP) शुरू किया गया, जिसमें आठ कार्य क्षेत्र शामिल हैं
    1. एकीकृत डिजिटल लॉजिस्टिक्स प्रणालियाँ;
    2. भौतिक परिसंपत्तियों का मानकीकरण और सेवा गुणवत्ता मानकों की बेंचमार्किंग;
    3. लॉजिस्टिक्स मानव संसाधन विकास और क्षमता निर्माण;
    4. राज्य सहभागिता;
    5. लॉजिस्टिक्स;
    6. सेवा सुधार ढाँचा;
    7. कुशल लॉजिस्टिक्स के लिए क्षेत्रीय योजनाएँ (SPEL); और
    8. लॉजिस्टिक्स पार्कों के विकास को सुगम बनाना।

भारत में लॉजिस्टिक्स क्षेत्र की चुनौतियाँ

  • उच्च लॉजिस्टिक्स लागत: भारत में लॉजिस्टिक्स लागत सकल घरेलू उत्पाद का 13-14% है, जबकि वैश्विक मानक 8-10% है।
    • इससे भारतीय वस्तुओं की लागत बढ़ जाती है, जिससे वे अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कम प्रतिस्पर्द्धी हो जाती हैं।
  • विखंडित उद्योग संरचना: लॉजिस्टिक्स क्षेत्र अत्यधिक विखंडित है, जहाँ छोटे, असंगठित अभिकर्ता 80% बाजार पर प्रभावी हैं। इसके परिणामस्वरूप संसाधनों का खराब अनुकूलन और अक्षमताएँ होती हैं।
    • उदाहरण के लिए, अधिकांश ट्रकिंग कंपनियाँ पाँच से कम ट्रकों के बेड़े के साथ काम करती हैं, जिससे स्केलेबिलिटी सीमित हो जाती है।
  • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा: सड़क, रेलवे, बंदरगाह और गोदामों सहित भारत का लॉजिस्टिक्स बुनियादी ढाँचा बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए अपर्याप्त है।
    • केवल 31% माल रेल के माध्यम से परिवहित होता है, जबकि यह सड़क परिवहन की तुलना में अधिक लागत-कुशल है, जो 66% माल का प्रबंधन करता है।
  • कौशल की कमी: इस क्षेत्र में आपूर्ति शृंखला प्रबंधन और लॉजिस्टिक्स प्रौद्योगिकियों में कुशल श्रमिकों की भारी कमी है। सीमित व्यावसायिक प्रशिक्षण और उद्योग-विशिष्ट शिक्षा इस समस्या को और बढ़ा देते हैं।
    • उदाहरण के लिए, उन्नत वेयरहाउसिंग और प्रौद्योगिकी-सक्षम लॉजिस्टिक्स की बढ़ती माँग के बावजूद, प्रशिक्षण कार्यक्रम अभी भी सीमित हैं।
  • नियामक जटिलता: जटिल और असंगत नियामक ढाँचे, जिनमें कई कर संरचनाएँ और अनुपालन आवश्यकताएँ शामिल हैं, परिचालन संबंधी बाधाएँ पैदा करते हैं।
    • वस्तु एवं सेवा कर (GST) की शुरुआत से कुछ प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने में मदद मिली है, लेकिन और अधिक सामंजस्य की आवश्यकता है।
  • अंतिम-मील कनेक्टिविटी की समस्याएँ: अंतिम-मील डिलीवरी को शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में खराब सड़क अवसंरचना, यातायात भीड़ तथा अपर्याप्त मानचित्रण जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
    • उदाहरण के लिए, अंतिम-मील कनेक्टिविटी में देरी ई-कॉमर्स डिलीवरी को प्रभावित करती है, जिससे ग्राहक असंतुष्ट होते हैं।
  • तकनीकी कमियाँ: हालाँकि यह क्षेत्र डिजिटलीकरण की ओर बढ़ रहा है, लेकिन वैश्विक मानकों की तुलना में AI, IoT और ब्लॉकचेन जैसी उन्नत तकनीकों को अपनाना अभी भी सीमित है।

लॉजिस्टिक्स क्षेत्रों के सर्वश्रेष्ठ वैश्विक उदाहरण

सिंगापुर: एक वैश्विक लॉजिस्टिक्स केंद्र

  • अपनी कुशल बंदरगाह अवसंरचना, उन्नत तकनीक और निर्बाध व्यापार सुविधा के कारण, विश्व बैंक के लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन सूचकांक में लगातार शीर्ष प्रदर्शनकर्ता के रूप में स्थान प्राप्त किया है।
  • सर्वोत्तम अभ्यास: वास्तविक समय आधारित निगरानी रखने के लिए IoT और AI जैसी अत्याधुनिक तकनीकों का एकीकरण और व्यापार दस्तावेजीकरण के लिए सिंगल विंडो प्लेटफॉर्म।
  • सिंगापुर विश्व के प्रमुख बाजारों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है, जहाँ से हर प्रमुख बंदरगाह के लिए दैनिक नौवहन सेवाएँ और 60 देशों के 280 शहरों के लिए 6,500 से अधिक साप्ताहिक उड़ानें उपलब्ध हैं।

नीदरलैंड: यूरोप का प्रवेश द्वार

  • यूरोप का सबसे बड़ा बंदरगाह, रॉटरडैम, वार्षिक रूप से 469 मिलियन टन से अधिक माल का संचालन करता है और वैश्विक व्यापार मार्गों को जोड़ता है।
  • सर्वोत्तम अभ्यास: सीमा शुल्क और व्यापार सुगमता के लिए स्वचालित बंदरगाह संचालन और ब्लॉकचेन का उपयोग।

चीन: पैमाना और नवाचार

  • चीन, लॉजिस्टिक्स के पैमाने में अग्रणी है, जहाँ शंघाई (विश्व का सबसे व्यस्त बंदरगाह) जैसे बड़े बंदरगाहों सहित उन्नत बुनियादी ढाँचा वार्षिक रूप से 47 मिलियन से अधिक TEUs का संचालन करता है।
  • सर्वोत्तम अभ्यास: आपूर्ति शृंखला प्रबंधन में AI और IoT का एकीकरण और बेल्ट एंड रोड पहल के माध्यम से बुनियादी ढाँचे में महत्त्वपूर्ण सरकारी निवेश।

संयुक्त राज्य अमेरिका: लॉजिस्टिक्स पॉवरहाउस

  • सड़क, रेल और हवाई लॉजिस्टिक्स प्रणालियों का मजबूत एकीकरण, जिसमें अमेजन और फेडेक्स जैसी कंपनियाँ ई-कॉमर्स लॉजिस्टिक्स और अंतिम-लक्ष्य डिलीवरी में नवाचार का नेतृत्व कर रही हैं।
  • लॉस एंजिल्स बंदरगाह ट्रांस-पैसिफिक व्यापार का एक प्रमुख प्रवेश द्वार है, जो वार्षिक रूप से 9 मिलियन से अधिक TEUs का संचालन करता है।

आगे की राह

  • लॉजिस्टिक्स लागत कम करना: GDP के 8-10% के वैश्विक मानकों के अनुरूप लॉजिस्टिक्स लागत कम करने पर ध्यान केंद्रित करना।
    • यह बुनियादी ढाँचे के आधुनिकीकरण, बहु-मॉडल परिवहन को बढ़ावा देने और स्वचालन एवं AI-संचालित विश्लेषण जैसी लागत-कुशल तकनीकों को अपनाकर हासिल किया जा सकता है।
  • बुनियादी ढाँचे के विकास को मजबूत करना: समर्पित माल ढुलाई गलियारों, बहु-मॉडल लॉजिस्टिक्स पार्कों और तटीय शिपिंग नेटवर्क के विकास में तेजी लाना।
    • सड़क और रेल संपर्क में निवेश, विशेष रूप से अंतिम-लक्ष्य वितरण के लिए, लॉजिस्टिक्स दक्षता में उल्लेखनीय वृद्धि करेगा।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना: साझा बुनियादी ढाँचे, डेटा विनिमय और समन्वित निर्णय लेने को सक्षम बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय साझेदारी को मजबूत करना।
    • उदाहरण के लिए, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कॉरिडोर (India-Middle East-Europe Corridor- IMEC) का उद्देश्य अरब प्रायद्वीप के माध्यम से भारत और यूरोप के बीच निर्बाध संपर्क स्थापित करना है।
  • निवेश आकर्षित करना और निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाना: राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP) जैसी पहलों का लाभ उठाना, जिसका उद्देश्य अवसंरचना परियोजनाओं के लिए ₹50 लाख करोड़ (लगभग 650 अरब डॉलर) जुटाना है।
    • जहाँ अधिकांश परिवहन अवसंरचना विकास पहलों में 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति है, वहीं अधिक निजी और विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए अतिरिक्त नीतिगत उपायों तथा प्रोत्साहनों की आवश्यकता है, जिससे अवसंरचना विकास पर वांछित प्रभाव सुनिश्चित हो सके।
  • डिजिटल परिवर्तन को प्रोत्साहित करना: लॉजिस्टिक्स संचालन में ब्लॉकचेन, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) जैसी तकनीकों को व्यापक रूप से अपनाने को बढ़ावा देना।
    • ये तकनीकें पारदर्शिता में सुधार, मार्गों का अनुकूलन और पारगमन समय को कम कर सकती हैं।
  • नीति सामंजस्य और सरलीकरण: यूनिफाइड लॉजिस्टिक्स इंटरफेस प्लेटफॉर्म (ULIP) जैसी सिंगल-विंडो प्रणालियों के माध्यम से नियमों को और सुव्यवस्थित तथा अनुपालन को सरल बनाना।
    • राज्यों में कर संरचनाओं और नियामक ढाँचों में सामंजस्य स्थापित करने से व्यापार करने में आसानी हो सकती है।
  • कौशल विकास को बढ़ावा देना: आपूर्ति शृंखला प्रबंधन, भंडारण और प्रौद्योगिकी-सक्षम लॉजिस्टिक्स में विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करके लॉजिस्टिक्स क्षेत्र में कौशल की कमी को दूर करना।
    • शैक्षणिक संस्थानों के साथ सार्वजनिक-निजी भागीदारी इस कमी को पूरा कर सकती है।
  • स्थायित्व पर ध्यान केंद्रित करना: इलेक्ट्रिक वाहनों, पर्यावरण-अनुकूल पैकेजिंग और कार्बन-तटस्थ आपूर्ति शृंखलाओं को अपनाने जैसी हरित लॉजिस्टिक्स प्रथाओं को प्रोत्साहित करना।
    • सरकार और निजी क्षेत्र को लॉजिस्टिक्स संचालन के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए स्थायी समाधानों में निवेश करना चाहिए।

निष्कर्ष

लॉजिस्टिक्स विकास, रोजगार और संतुलित विकास का एक प्रमुख प्रवर्तक है। आपूर्ति शृंखलाओं को मजबूत करके, भारत 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने और विकसित भारत@2047 विजन को प्राप्त करने की ओर अग्रसर है।

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