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Sep 25 2025

जमानत न्याय शास्त्र (Bail Jurisprudence)

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि केवल आपराधिक पूर्ववृत्त (Criminal Antecedents) के आधार पर जमानत से इनकार नहीं किया जा सकता, विशेषकर तब जब अभियुक्तों ने विचाराधीन कैदी के रूप में लंबे समय तक कारावास व्यतीत किया हो।

प्रकरण की पृष्ठभूमि

  • घटना: वर्ष 2021 में सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) के नेता के.एस. शान की हत्या की गई।
  • आरोपी: 10 व्यक्तियों पर आरोप लगाया गया एवं वर्ष 2022 में सत्र न्यायालय ने उनमें से पाँच को जमानत दी।
  • केरल उच्च न्यायालय का निर्णय (वर्ष 2024): उच्च न्यायालय ने पहले दी गई जमानत रद्द कर दी, यह कहते हुए कि आरोपियों के आपराधिक पूर्ववृत्त हैं और इनसे गवाहों को धमकाने का जोखिम है।
  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय (वर्ष 2025): सर्वोच्च न्यायालय ने जमानत बहाल करते हुए कहा कि आरोपी उच्च न्यायालय द्वारा जमानत रद्द करने से पहले ही लगभग दो वर्षों तक जमानत पर रह चुके थे।

सर्वोच्च न्यायालय के अवलोकन

  • जमानत का स्वर्णिम नियम: सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्णा अय्यर के सिद्धांत की पुनः पुष्टि की –जमानत नियम है और जेल अपवाद है।” (Bail is the rule and jail is the exception)
  • मुकदमे की अखंडता
    • गवाहों को धमकाने या साक्ष्यों से छेड़छाड़ रोकने के लिए जमानत रद्द की जा सकती है।
    • परंतु मात्र आपराधिक पृष्ठभूमि के आधार पर जमानत से इनकार या रद्द नहीं किया जा सकता।
  • दीर्घावधि कारावास: लंबे समय तक विचाराधीन कारावास, जमानत देने का एक वैध आधार है।

निर्णय का महत्त्व

  • जमानत न्यायशास्त्र: यह सिद्धांत मजबूत हुआ कि केवल आपराधिक रिकॉर्ड के कारण जमानत से इनकार नहीं किया जा सकता।
  • विचाराधीन कैदियों के अधिकार: यह निर्णय लंबी अवधि तक विचाराधीन कारावास से आरोपियों की रक्षा करता है।
  • न्यायिक संतुलन: यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता, गवाहों की सुरक्षा और निष्पक्ष मुकदमे की आवश्यकता के बीच संतुलन पर बल देता है।

तमिलनाडु तटीय पुनर्स्थापन मिशन (TN-SHORE)

 

तमिलनाडु तटीय पुनर्स्थापन मिशन (Tamil Nadu Coastal Restoration Mission: TN-SHORE) के अंतर्गत, विश्व बैंक गाँव की मैंग्रोव समितियों को प्रत्यक्ष रूप से वित्त उपलब्ध कराएगा ताकि मैंग्रोव वृक्षारोपण के माध्यम सेबायोशील्ड’ सुरक्षा को मजबूत किया जा सके।

तमिलनाडु तटीय पुनर्स्थापन मिशन (TN-SHORE) के बारे में

  • मंजूरी: सितंबर 2025 में।
  • व्यय: ₹1,675 करोड़ (₹1,000 करोड़ विश्व बैंक से; शेष राज्य सरकार से)।
  • उद्देश्य
    • 30,000 हेक्टेयर समुद्री परिदृश्य (seascapes) को पुनर्स्थापित करना।
    • कछुआ और डुगोंग जैसी संकटग्रस्त प्रजातियों का संरक्षण।
    • इको-टूरिज्म और प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन को बढ़ावा।
    • तटीय पारिस्थितिकी तंत्र की जलवायु प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना।

पुनर्स्थापन लक्ष्य

  • कुल लक्ष्य: 1,000 हेक्टेयर।
    • 300 हेक्टेयर में मैंग्रोव का वृक्षारोपण।
    • 700 हेक्टेयर में क्षतिग्रस्त मैंग्रोव का पुनर्स्थापन।

मैंग्रोव के बारे में

  • परिभाषा: मैंग्रोव लवणीय जल-सहिष्णु वृक्ष और झाड़ियाँ हैं, जो तटीय ज्वारीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं, जहाँ लवणीय जल होता है।
  • आदर्श परिस्थितियाँ: उष्णकटिबंधीय और उप-उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में 1,000–3,000 मिमी. वर्षा और 26–35°C तापमान में उत्पादित होते हैं।

विशेषताएँ

  • जरायुता (Vivipary): बीज मूल वृक्ष पर ही अंकुरित हो जाते हैं, जिससे लवणीय और जलमग्न परिस्थितियों में भी जीवित रहते हैं।
  • वायवीय जड़ें (Aerial roots): ये श्वसन जड़ें (निमेटोफोर) वायु से ऑक्सीजन अवशोषित करती हैं।
  • वैक्सी’ और ‘द्रवयुक्त’ पत्तियाँ (Waxy and succulent leaves): जल हानि को कम करने और लवण के प्रबंधन में सहायक।

भारत में सामान्य प्रजातियाँ

  • राइजोफोरा (रेड मैंग्रोव)
  • हेरिटिएरा फोम्स (सुंदरी मैंग्रोव)
  • एविसेनिया मरीना (ग्रे मैंग्रोव)
  • सोनेरटिया एपेटाला (केओरा)

मैंग्रोव वृक्षारोपण का महत्त्व

  • जलवायु प्रतिरोधक क्षमता: चक्रवात, तटीय अपरदन और समुद्र के बढ़ते स्तर के विरुद्ध ‘बायोशील्ड’ का कार्य।
  • कार्बन भंडारण: मैंग्रोव कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर मृदा में सदियों तक संचित रखते हैं, जिससे यह शक्तिशाली कार्बन सिंक की भूमिका निभाते हैं।
  • जीविका का स्रोत: मत्स्य पालन, शहद संग्रह, जलीय कृषि और अन्य इको-आधारित आजीविकाओं से स्थानीय समुदायों को सहारा।
  • जैव विविधता हॉटस्पॉट: मछलियों, पक्षियों और सरीसृपों के प्रजनन व नर्सरी स्थल, जो जटिल खाद्य शृंखलाओं का समर्थन करते हैं।

कोल्ड स्टार्ट’ अभ्यास 

भारत अक्टूबर 2025 में मध्य प्रदेश में एक विशाल त्रि-सेवा ड्रोन और काउंटर-ड्रोन अभ्यास ‘कोल्ड स्टार्ट’ आयोजित करेगा।

कोल्ड स्टार्ट’ अभ्यास के बारे में

  • परिचय: थल सेना, नौसेना और वायु सेना संयुक्त रूप से इस अभ्यास का आयोजन करेंगी, जिसमें उद्योग साझेदार, अनुसंधान एवं विकास एजेंसियाँ, शैक्षणिक संस्थान और अन्य हितधारक भी भाग लेंगे।
  • उद्देश्य
    • विकसित हो रहे हवाई खतरों के विरुद्ध परिचालन तत्परता का मूल्यांकन करना।
    • ड्रोन और काउंटर-ड्रोन प्रौद्योगिकियों का परीक्षण करना।
    • भारत की वर्तमान वायु रक्षा क्षमताओं में मौजूद कमियों की पहचान करना।

डायरेक्ट ब्रॉडकास्ट नेटवर्क (DBNet)

सितंबर 2025 में भारत के NCMRWF और NSIL ने मिशन मौसम के अंतर्गत दो DBNet स्टेशनों की स्थापना के लिए समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए।

डायरेक्ट ब्रॉडकास्ट नेटवर्क (DBNet) के बारे में

  • परिभाषा: DBNet एक वैश्विक परिचालन ढाँचा है, जोलो अर्थ ऑर्बिट’ (LEO) उपग्रहों से प्राप्त डेटा का रियल टाइम में अधिग्रहण सक्षम करता है। यह संख्यात्मक मौसम पूर्वानुमान (NWP) को सुदृढ़ बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • NWP मौसम का पूर्वानुमान करने की एक वैज्ञानिक पद्धति है, जिसमें गणितीय मॉडल और संगणकीय तकनीकों का उपयोग करके वायुमंडलीय प्रक्रियाओं और भविष्य की परिस्थितियों का अनुकरण किया जाता है।

अनुप्रयोग 

  • DBNet मौसम पूर्वानुमान, चक्रवात निगरानी और जलवायु अनुसंधान में सहायता करता है।
  • यह अल्पकालिक क्षेत्रीय पूर्वानुमानों से लेकर मध्यम-अवधि के जलवायु आकलन तक, व्यापक पैमाने पर पूर्वानुमान लगाने में योगदान देता है।

NCMRWF और NSIL के बारे में

  • राष्ट्रीय मध्यम अवधि मौसम पूर्वानुमान केंद्र (NCMRWF): यह पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) के अंतर्गत एक संस्थान है, जो भारत में उन्नत मौसम पूर्वानुमान प्रणाली विकसित करने के लिए उत्तरदायी है।
  • न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL): यह अंतरिक्ष विभाग (DoS) की वाणिज्यिक शाखा है, जिसे ISRO द्वारा विकसित उत्पादों, सेवाओं और प्रौद्योगिकियों को प्रोत्साहित करने तथा वाणिज्यिक रूप से उपयोग में लाने हेतु स्थापित किया गया है।

मिशन मौसम क्या है?

  • प्रारंभ: मिशन मौसम जनवरी 2025 में भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) की 150वीं स्थापना वर्षगाँठ पर शुरू किया गया।
  • उद्देश्य: मौसम पूर्वानुमान और मॉडलिंग क्षमताओं को सुदृढ़ कर भारत कोवेदर रेडी”  (weather-ready) और “क्लाइमेट-स्मार्ट”  (Climate-smart) राष्ट्र बनाना।
  • नोडल मंत्रालय: केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES)
  • लक्ष्य: चरम मौसमी घटनाओं और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का पूर्वानुमान तथा प्रतिक्रिया देने संबंधी भारत की क्षमता को बढ़ाना।
  • फोकस: प्रेक्षण और समझ में सुधार कर समयबद्ध और अत्यंत सटीक मौसम एवं जलवायु संबंधी जानकारी प्रदान करना।
  • उपकरण: MoES द्वारा 60 वेदर रडार, 15 विंड प्रोफाइलर और 15 रेडियोसाउंड स्थापित किए जाएँगे।

मोहेनजोदड़ो की ‘नर्तकी की मूर्ति’ 

हाल ही में राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली से प्रसिद्ध मोहनजोदड़ो की नर्तकी की मूर्ति’ की प्रतिकृति चोरी होने की जानकारी प्राप्त हुई।

  • मूल मूर्ति (लगभग 2500 ईसा पूर्व) वर्ष 1926 में मोहनजोदड़ो से उत्खनन में प्राप्त की गई थी, जो सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थलों में से एक था।

मोहेनजोदड़ो की ‘नर्तकी की मूर्ति’ 

  • यह 10.5 सेमी ऊँची कांस्य प्रतिमा है।
  • तकनीक: इसे  “मोम द्रवीकरण तकनीक”  से निर्मित किया गया है, जो हड़प्पा सभ्यता की उन्नत धातुकर्म तकनीक को दर्शाता है।
  •  “मोम द्रवीकरण तकनीक”: इसमें मोम की बनी आकृति को मृदा से ढककर पिघला दिया जाता है और उसकी जगह पिघली हुई धातु डाली जाती है, जिससे सूक्ष्म व जटिल आकृतियाँ तैयार होती हैं।
  • आकृति: एक युवा महिला, गले में हार और एक हाथ में अनेक कंगन, एक हाथ कमर पर रखे हुए आत्मविश्वास और सौंदर्य प्रदर्शित करती है।

सांस्कृतिक महत्त्व

  • इसे एक धर्मनिरपेक्ष कलात्मक सृजन माना जाता है।
  • यह हड़प्पाई सौंदर्यबोध, कलात्मक यथार्थवाद और तकनीकी नवाचार को प्रतिबिंबित करती है।

कला इतिहास में महत्त्व

  • इसे दक्षिण एशिया की प्रारंभिक धातु प्रतिमाओं में से एक माना जाता है।
  • यह भारतीय कला इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है, जो हड़प्पाई समाज की सांस्कृतिक परिपक्वता को दर्शाती है।

मोहनजोदड़ो और सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में

  • मोहनजोदड़ो: सिंधु घाटी सभ्यता (लगभग 2500 ईसा पूर्व) का एक प्रमुख नगरीय केंद्र, जो उन्नत नगर-योजना, ग्रिड-पैटर्न वाली सड़कों, जल निकासी प्रणाली, वृहद स्नानागार और नर्तकी की मूर्ति’ जैसी कलाकृतियों के लिए प्रसिद्ध है।
  • यह वर्तमान पाकिस्तान के सिंध प्रांत में, सिंधु नदी के पास अवस्थित है।
  • सिंधु घाटी सभ्यता (IVC): यह 3300–1300 ईसा पूर्व के बीच भारत और पाकिस्तान के वर्तमान क्षेत्रों में प्रभावी रही।
    • प्रमुख विशेषताएँ: उन्नत शहरी योजना, मानकीकृत माप-तोल पद्धति , मुद्राएँ, धातुकर्म और व्यापार नेटवर्क।
    • यह विश्व की प्रारंभिक जटिल सभ्यताओं में से एक थी।

ओजू जलविद्युत परियोजना

केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (Expert Appraisal Committee- EAC) ने चीनी सीमा के पास, अरुणाचल प्रदेश के अपर सुबनसिरी जिले में, सुबनसिरी नदी पर ओजू जलविद्युत परियोजना (2,220 मेगावाट) के निर्माण को मंजूरी दे दी है।

ओजू जलविद्युत परियोजना (सुबनसिरी बेसिन) के बारे में

  • प्रकार/प्रकृति: नदी प्रवाह एवं जलविद्युत (सुबनसिरी बेसिन में ‘कैस्केड’ योजना) भंडारण परियोजना।
  • मुख्य विशेषताएँ
    • मुख्य संयंत्र: 2,100 मेगावाट;
    • डैम-टो संयंत्र: 120 मेगावाट।
  • लाभ: नवीकरणीय ऊर्जा, ग्रिड स्थिरता, जल विनियमन, सीमावर्ती अवसंरचना।
    • ओजू सुबनसिरी बेसिन में सबसे बड़ी स्वीकृत जलविद्युत परियोजना है। अन्य परियोजनाओं में नियारे, नाबा, नालो, डेंगसर, ऊपरी एवं निचला सुबनसिरी शामिल हैं।
  • जोखिम: ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड्स (GLOFs), भूकंपीय संवेदनशीलता, जैव विविधता हानि, समुदायों का विस्थापन, वन उन्मूलन।

सुबनसिरी नदी के बारे में

  • यह ब्रह्मपुत्र की सबसे बड़ी सहायक नदी (बाएँ तट की सहायक नदी) है।
  • इसके जल में सोने की धूल (प्लेसर खनन) के कारण इसेस्वर्ण नदी” के रूप में भी जाना जाता है।
  • उद्गम: ट्रांस-हिमालयी पूर्ववर्ती नदी, तिब्बत से निकलती है तथा अरुणाचल प्रदेश एवं असम से होकर बहती है तथा ब्रह्मपुत्र नदी में मिलती है।

सुपर टाइफून रागासा

सुपर टाइफून रागासा, सितंबर 2025 में हांगकांग एवं ग्वांगडोंग, चीन में आया।

  • इसमें 200 किमी/घंटा से अधिक की वायु की गति दर्ज की गई, जिसके कारण हांगकांग वेधशाला ने 10 नंबर सिग्नल (उच्चतम अलर्ट) जारी किया, जो वर्ष 2025 में दूसरी ऐसी चेतावनी है, जो वर्ष वर्ष 1964 के बाद से नहीं देखी गई।
  • वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन के कारण तीव्र, अधिक बार आने वाले एवं लंबे समय तक संचालित होने वाले टाइफून आ रहे हैं, जो प्रशांत महासागर के गर्म होते जल (पिछली शताब्दी में 1.5°C से अधिक, UNEP) से संबंधित हैं।

सुपर टाइफून रागासा

  • यह एक तीव्र टाइफून है, जो पश्चिमी प्रशांत महासागर से उत्पन्न हुआ एवं चीन के दक्षिणी ग्वांगडोंग प्रांत में दस्तक दी।
  • श्रेणी 5 के समतुल्य सुपर टाइफून (≥250 किमी./घंटा, वायु की संभावित गति)।
  • लगभग 30°C समुद्री सतह के तापमान पर कम पवन प्रवाह के साथ निर्मित, जो तीव्र वृद्धि के लिए आदर्श परिस्थितियाँ हैं।
  • इसकी ‘आईवॉल’ का प्रतिस्थापन हुआ, जिससे इसकी शक्ति और अधिक बढ़ गई।
  • वर्तमान प्रवृत्ति
    • श्रेणी 5 से अधिक के तूफानों की बढ़ती आवृत्ति के कारण वैज्ञानिकों ने एक नया श्रेणी 6 वर्गीकरण प्रस्तावित किया है।
    • ऐतिहासिक समानताएँ: टाइफून होप (वर्ष 1979) एवं सुपर टाइफून हैयान (वर्ष 2013)

जलवायु परिवर्तन एवं टाइफून की तीव्रता

  • परिभाषा: टाइफून उत्तर-पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में उष्णकटिबंधीय चक्रवात होते हैं। ये ऊष्मा-प्रेरित चक्रवात होते हैं, जो महासागर की ऊष्मा को नष्ट कर देते हैं।
  • जलवायु संबंध
    • गर्म महासागरों के कारण अधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है एवं तेजी से तीव्र होकरसुपर टाइफून’ बनते हैं।
    • अवरोधन प्रभाव: चक्रवात तटरेखाओं के पास रुकते हैं, जिससे भारी वर्षा एवं बाढ़ आती है।
    • आईवॉल रिप्लेसमेंट साइकिल इनकी तीव्रता को बढ़ाते हैं।
  • वैज्ञानिक आधार
    • UNEP रिपोर्ट: पिछली शताब्दी में प्रशांत महासागर 1.5°C से अधिक उष्ण हुआ है।
  • पेरिस समझौते की 1.5°C की सीमा पहले ही चक्रवात की बढ़ती गंभीरता को पार कर चुकी है।
  • हैनसेन के पुराजलवायु अध्ययन दर्शाते हैं कि महासागर के गर्म होने और बर्फ के पिघलने से समुद्री धाराओं में गंभीर व्यवधान उत्पन्न होता है, जिसके परिणामस्वरूप पिछले अंतर-हिमनद काल की तरह विनाशकारीसुपरस्टॉर्म” उत्पन्न हो सकते हैं।
  • हिंद महासागर में प्रवृत्ति: बंगाल की खाड़ी एवं अरब सागर में भी इसी तरह के जोखिम मौजूद हैं, जहाँ फानी, अंफान, तौकते त्तथा बिपरजॉय जैसे तीव्र चक्रवात आए।
  • जोखिम: तटीय बाढ़, तूफानी लहरें, शहरी बुनियादी ढाँचे की क्षति, विस्थापन, आर्थिक नुकसान।

मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना

प्रधानमंत्री बिहार में मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत 75 लाख महिलाओं को ₹10,000 की राशि हस्तांतरित करेंगे।

मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के बारे में

  • परिचय: यह बिहार सरकार की एक पहल है, जिसका उद्देश्य विशेष रूप से ग्रामीण एवं आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों में महिला उद्यमिता तथा आर्थिक सशक्तीकरण को बढ़ावा देना है।
  • वित्तीय सहायता: प्रति महिला ₹10,000 की पहली किस्त प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (Direct Benefit Transfer- DBT) के माध्यम से प्रदान की जाएगी।
    • छह महीने की कार्य-निष्पादन समीक्षा के बाद, पात्र महिला उद्यमियों को ₹2 लाख का अतिरिक्त अनुदान दिया जाएगा।
    • प्रारंभिक सहायता अप्रतिदेय है, जिससे वित्तीय राहत एवं व्यवसाय शुरू करने में सहायता सुनिश्चित होती है।
  • कार्यान्वयन एजेंसियाँ
    • ग्रामीण क्षेत्रों के लिए ग्रामीण विकास विभाग।
    • शहरी क्षेत्रों के लिए नगरीय विकास विभाग।
    • जीविका स्वयं सहायता समूह (Self-Help Groups- SHGs) जिला, ब्लॉक, क्लस्टर एवं ग्राम स्तर पर सक्रिय रूप से भाग लेंगे, ताकि पहुँच तथा निगरानी सुनिश्चित की जा सके।
  • पात्रता मानदंड: 18-60 वर्ष की आयु की महिलाएँ, एकल परिवारों से हों एवं आयकर न जमा करती हों।
  • आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों या आय का स्थायी स्रोत न रखने वाली महिलाओं को प्राथमिकता दी जाएगी।
  • सभी जीविका स्वयं सहायता समूह सदस्य पात्र हैं।
  • अविवाहित वयस्क महिलाएँ, जिनके माता-पिता का निधन हो चुका है, वे भी पात्र हैं।

महत्त्व

  • महिलाओं को अपनी पसंद का व्यवसाय प्रारंभ करने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिससे रोजगार के अवसर उत्पन्न होते हैं।
  • आर्थिक सशक्तीकरण को मजबूत करता है, विशेषतः ग्रामीण बिहार में, एवं राज्य की समग्र अर्थव्यवस्था में योगदान देता है।

अर्द्ध-चंद्र

खगोलविदों ने एक अर्द्ध-चंद्र (Quasi-Moon), 2025 PN7 की खोज की है, जो लगभग 60 वर्षों से पृथ्वी के निकट परिक्रमा कर रहा है। इसे पहली बार वर्ष 2025 में पैन-स्टार्स द्वारा देखा गया था, जिसके अभिलेखीय अवलोकन वर्ष 2014 से प्राप्त हुए हैं।

अर्द्ध-चंद्र के बारे में

  • परिचय: अर्द्ध-चंद्र एक छोटा खगोलीय पिंड है, जो किसी ग्रह के साथ सूर्य की परिक्रमा करता है, एवं ऐसा प्रतीत होता है कि वह वास्तविक चंद्रमा न होते हुए भी उससे संबंधित है।
  • 2025 PN7 की विशेषताएँ
    • इसका व्यास लगभग 62 फीट (19 मीटर) है, जो इसे पृथ्वी के निकट सबसे छोटा ज्ञात अर्द्ध-चंद्र बनाता है।
    • सूर्य के चारों ओर इसकी कक्षा पृथ्वी के पथ के लगभग समान है एवं लगभग एक वर्ष में एक सौर परिक्रमा पूरी करती है।
    • पृथ्वी एवं सूर्य दोनों के गुरुत्वाकर्षण प्रभावों के कारण यह एक अस्थायी, स्थिर अर्द्ध-कक्षा में रहता है, जिसके अगले 60 वर्षों तक समान रहने का अनुमान है।
    • यह अत्यंत धुँधला है और केवल उच्च क्षमता वाले दूरबीनों से ही देखा जा सकता है, जो इसके दुर्लभ स्वरूप को स्पष्ट रूप से रेखांकित करता है।

खोज का महत्त्व

  • वैज्ञानिक अनुसंधान: 2025 PN7 का अध्ययन पृथ्वी के निकट स्थित पिंडों एवं अर्द्ध-कक्षाओं में उनकी गति से संबंधित ज्ञान में सुधार करता है।
  • ग्रहीय रक्षा: यह अवलोकन संभावित क्षुद्रग्रह खतरों की निगरानी करने संबंधी रणनीतियों के निर्माण में सहायता कर सकता है।
  • अन्वेषण क्षमता: एक छोटे खगोलीय पिंड के रूप में इसकी उपस्थिति, अर्द्ध-चंद्रों को भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों एवं संसाधन अध्ययनों के लिए व्यवहार्य लक्ष्य बना सकती है।

संदर्भ

भारत COP-30 (बेलिम, ब्राजील, नवंबर 2025) में अपने अद्यतित ‘राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान’ (Nationally Determined Contributions- NDC) को प्रस्तुत कर सकता है।

राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) के बारे में

  • परिभाषा: NDC, पेरिस समझौते (वर्ष 2015) के तहत देशों द्वारा निर्धारित ऐसे लक्ष्य हैं, जिनका उद्देश्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना और जीवाश्म ईंधन के प्रयोग को नियंत्रित करना है, ताकि ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से कम और यथासंभव 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखा जा सके, जो औद्योगिक युग से पूर्व के स्तर से कम है।
  • अद्यतित नियम: देशों को प्रत्येक पाँच वर्ष में अपने NDC को अपडेट करना होता है।

GDP का उत्सर्जन स्तर

  • GDP की उत्सर्जन तीव्रता का अर्थ है-आर्थिक उत्पादन की प्रति यूनिट में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन की मात्रा।
  • इसका अर्थ यह नहीं है कि ग्रीनहाउस गैसों के कुल उत्सर्जन में कमी आई है।

भारत और NDC

  • भारत की प्रतिबद्धता: यूनाइटेड नेशन फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज  (UNFCCC) और पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले देश के रूप में, भारत ने वर्ष 2015 में अपना पहला NDC और वर्ष 2022 में अद्यतित NDC प्रस्तुत किया।
  • पंचामृत: COP26 (ग्लासगो, यू.के.) में, भारत ने अपनी जलवायु कार्रवाई को और मजबूत करने के लिए पाँच मुख्य तत्त्वों, पंचामृत की घोषणा की। ये भारत के अद्यतित NDC का आधार हैं।
    • वर्ष 2030 तक 500 GW नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता।
    • वर्ष 2030 तक कुल ऊर्जा आवश्यकता का 50% नवीकरणीय ऊर्जा से प्राप्त करना।
    • वर्ष 2030 तक GDP में उत्सर्जन दर में 45% की कमी (वर्ष 2005 के स्तर से)।
    • वर्ष 2030 तक कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में 1 अरब टन की कमी।
    • वर्ष 2070 तक नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन।
      • भारत का NDC किसी भी क्षेत्र-विशिष्ट उत्सर्जन में कमी के दायित्व या कार्रवाई के लिए बाध्य नहीं करता है।
  • भारत का नवीनतम अपडेट (वर्ष 2022)
    • वर्ष 2030 तक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) से होने वाले उत्सर्जन को वर्ष 2005 के स्तर से 45% कम करना।
    • वर्ष 2030 तक कुल विद्युत उत्पादन क्षमता का 50% हिस्सा जीवाश्म ईंधन के स्थान पर गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से प्राप्त करना।
    • वर्ष 2030 तक वृक्षारोपण और पुन: वृक्षारोपण के माध्यम से 2-3 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर कार्बन सिंक निर्मित करना।
  • अब तक की प्रगति
    • वर्ष 2005 से वर्ष 2019 के मध्य, भारत ने GDP से होने वाले उत्सर्जन को 33% तक कम कर दिया।
    • जून 2025 तक, भारत की कुल विद्युत उत्पादन क्षमता का 50% हिस्सा पहले ही  गैर-जीवाश्म स्रोतों से प्राप्त हो रहा था, जो निर्धारित लक्ष्य से 5 वर्ष पहले ही हासिल हो गया।

भारत का अपेक्षित NDC 3.0 (वर्ष 2035 के लिए)

  • तीसरे NDC अद्यतन (NDC 3.0) में वर्ष 2035 तक के लिए की गई प्रतिबद्धताओं को शामिल किया जा सकता है।
  • संभावित विशेषताएँ
    • ऊर्जा दक्षता पर अधिक ध्यान देना, जिसमें उद्योग, परिवहन, उपकरण और इमारतों के संबंध में कठोर मानक शामिल हैं।
    • परफॉर्म, अचीव एंड ट्रेड (PAT) योजना का विस्तार, जो उद्योगों को ऊर्जा-दक्ष तरीकों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करती है।
    • वर्ष 2026 तक इंडिया कार्बन मार्केट को लागू करना, जो 13 क्षेत्रों में अनिवार्य उत्सर्जन-तीव्रता लक्ष्य निर्धारित करेगा और उत्सर्जन में कमी संबंधी प्रमाण-पत्र का व्यापार करने की अनुमति देगा।
    • सतत् खपत और माँग में कमी को बढ़ावा देने के लिए मिशन LiFE (पर्यावरण के लिए जीवनशैली) का एकीकरण।

वैश्विक संदर्भ

  • यूरोपीय संघ (EU): वर्ष 1990 के स्तर की तुलना में वर्ष 2035 तक उत्सर्जन में 66-72% कमी का प्रस्ताव रखा, हालाँकि फ्राँस और जर्मनी के विरोध के कारण यह निर्णय टाल दिया गया।
  • ऑस्ट्रेलिया: वर्ष 2005 के स्तर की तुलना में वर्ष 2035 तक उत्सर्जन में 62-70% की कमी का लक्ष्य रखने की घोषणा की।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका: पेरिस समझौते से हटने के कारण इसका दृष्टिकोण अभी भी अनिश्चित है।
  • चीन: उसने अभी तक वर्ष 2035 के लिए अपने लक्ष्य की घोषणा नहीं की है।
    • इन लक्ष्यों के बावजूद, संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि अगर सभी मौजूदा NDCs पूरी तरह से प्राप्त भी हो जाते हैं, तो भी वर्ष 2100 तक विश्व में लगभग 3°C तापमान वृद्धि होने की संभावना है।
  • फाइनेंस और द्विपक्षीय तंत्र: भारत ने स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं को बढ़ावा देने और कार्बन क्रेडिट साझा करने के लिए जापान के साथ जॉइंट क्रेडिटिंग मैकेनिज्म (Joint Crediting Mechanism- JCM) पर हस्ताक्षर किए हैं।
    • अन्य देशों के साथ भी इसी तरह के समझौतों पर चर्चा चल रही है। चुनौतियाँ बनी हुई हैं क्योंकि विकसित देश पर्याप्त जलवायु वित्त उपलब्ध नहीं करा रहे हैं, जबकि भारत जैसे विकासशील देश, विकास परियोजनाओं के लिए जीवाश्म ईंधन पर निर्भर हैं।

ऊर्जा दक्षता लक्ष्य को बढ़ाने का महत्त्व

  • लागत-प्रभावी उत्सर्जन में कमी: ऊर्जा दक्षता के उपाय नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता बढ़ाने की तुलना में प्रायः कम खर्चीले होते हैं।
  • ऊर्जा सुरक्षा: अधिक दक्षता से भारत की जीवाश्म ईंधन आयात पर निर्भरता कम होती है।
  • आर्थिक लाभ: ऊर्जा दक्षता से बिजली बिल कम होते हैं, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) की प्रतिस्पर्द्धा क्षमता बढ़ती है और यह घरों के लिए वहनीय होती है।
  • जलवायु कूटनीति: लक्ष्य बढ़ाने से COP30 में आयोजित होने वाली अंतरराष्ट्रीय जलवायु वार्ता में भारत की नेतृत्व क्षमता मजबूत होगी।

संदर्भ

गांधीनगर स्थित प्लाज्मा अनुसंधान संस्थान (Institute for Plasma Research- IPR) के शोधकर्ताओं ने भारत के संलयन ऊर्जा कार्यक्रम के लिए एक रोडमैप प्रस्तावित किया है।

संबंधित तथ्य

  • इस योजना में भारत के पहले नाभिकीय संलयन-विखंडन हाइब्रिड रिएक्टर, स्टेडी-स्टेट सुपरकंडक्टिंग टोकामक-भारत (SST-भारत) के निर्माण की परिकल्पना की गई है, जो वर्ष 2060 तक पूर्ण रूप से इस नाभिकीय संलयन रिएक्टर को चालू करने की दिशा में एक कदम है।

नाभिकीय संलयन के बारे में 

  • प्रक्रिया: नाभिकीय संलयन में दो हल्के नाभिकों को मिलाकर एक भारी नाभिक का निर्माण किया जाता है, जिससे चरम ऊर्जा (जैसे- तारों का ऊर्जा स्रोत) उत्सर्जित होती है।
  • आवश्यक परिस्थितियाँ: तारों के आंतरिक भाग के समान चरम तापमान और दाब का होना अनिवार्य है।
  • नाभिकीय विखंडन बनाम नाभिकीय संलयन
    • नाभिकीय विखंडन (Nuclear Fission) से भारी परमाणुओं का विखंडन होता है; इससे अधिक मात्रा में रेडियोधर्मी अपशिष्ट उत्पन्न होता है।
    • नाभिकीय संलयन (Nuclear Fusion) से बहुत कम दीर्घकालिक रेडियोधर्मी अपशिष्ट उत्पन्न होता है, जिससे यह अधिक उपयुक्त हो जाता है।

नाभिकीय संलयन की तकनीकें

  • जड़त्वीय परिरोध (Inertial confinement): इस तकनीक में फ्यूल कैप्सूल को संपीडित करने के लिए लेजर/एक्स-रे का उपयोग किया जाता है।
  • चुंबकीय परिरोध (Magnetic confinement): इस तकनीक में प्लाज्मा को लगभग 100 मिलियन डिग्री सेल्सियस पर सीमित रखने के लिए प्रबल चुंबकीय क्षेत्रों का उपयोग किया जाता है।
    • भारत, फ्राँस की इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर (ITER) परियोजना में भाग ले रहा है, जो चुंबकीय परिरोध (टोकामक डिजाइन) का उपयोग करता है।

नाभिकीय संलयन ऊर्जा प्राप्त करने में चुनौतियाँ

  • अत्यधिक तापमान आवश्यकताएँ: प्लाज्मा को अत्यधिक ताप पर गर्म और बनाए रखना आवश्यक है।
  • निरंतर अभिक्रिया: लंबे समय तक प्लाज्मा के बंद रहने से यह प्रक्रिया अस्थिर हो सकती है।
  • उच्च प्रारंभिक लागत: अनुसंधान और रिएक्टर निर्माण में अरबों डॉलर की आवश्यकता होती है।
  • अभी तक कोई व्यावसायिक नाभिकीय संलयन नहीं: वर्तमान नाभिकीय संलयन प्रयोगों से अभी तक विद्युत उत्पन्न नहीं होती है।

भारत का रोडमैप

  • स्टेडी-स्टेट सुपरकंडक्टिंग टोकामक-भारत (SST-भारत)
    • अवलोकन: प्लाज्मा अनुसंधान संस्थान ने स्टेडी-स्टेट सुपरकंडक्टिंग टोकामक-भारत के निर्माण का प्रस्ताव रखा है, जो एक नाभिकीय संलयन-विखंडन आधारित हाइब्रिड रिएक्टर के रूप में कार्य करेगा।
    • उत्पादन: इससे आउटपुट-इनपुट शक्ति अनुपात (5) उत्पन्न होने की उम्मीद है, जिसमें नाभिकीय विखंडन से 100 मेगावाट और नाभिकीय संलयन से 30 मेगावाट विद्युत उत्पन्न होगी।
    • अनुमानित लागत: ₹25,000 करोड़।
  • दीर्घकालिक लक्ष्य: वर्ष 2060 तक 20 के शक्ति अनुपात (Q मान)  और कुल 250 मेगावाट उत्पादन क्षमता वाले एक प्रदर्शनात्मक रिएक्टर का चालू होना, जिसे व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य माना जाता है,।
  • वर्तमान क्षमता
    • IPR में SST-1 टोकामक: इसने लगभग 650 मिलीसेकंड तक प्लाज्मा को बनाए रखा है और इसे 16 मिनट तक बनाए रखने के लिए डिजाइन किया गया है।
    • वैश्विक रिकॉर्ड: इसके विपरीत, फ्राँस स्थित वेस्ट टोकामक ने फरवरी 2025 में 22 मिनट तक प्लाज्मा बनाए रखकर वैश्विक रिकॉर्ड बनाया।

टोकामक (Tokamak)

  • परिभाषा: टोकामक एक ऐसा उपकरण है, जो नाभिकीय संलयन के लिए प्लाज्मा को नियंत्रित करने और उसे नियंत्रित करने के लिए चुंबकीय परिरोध का उपयोग करता है।
  • डिजाइन: डोनट के आकार का (टोरोइडल) कक्ष, जो शक्तिशाली अतिचालक चुंबकों से सुसज्जित है।

  • कार्यप्रणाली
    • प्लाज्मा को अत्यधिक तापमान (लगभग 10 करोड़ डिग्री सेल्सियस) तक गर्म किया जाता है।
    • चुंबकीय क्षेत्र प्लाज्मा को सीमित कर देते हैं, जिससे वह रिएक्टर की दीवारों को स्पर्श नहीं कर पाता है।
    • नाभिकीय संलयन तब होता है, जब हाइड्रोजन के समस्थानिक (जैसे- ड्यूटेरियम और ट्राइटियम) मिलकर हीलियम बनाते हैं, जिससे अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा उत्सर्जित होती है।
  • वैश्विक उदाहरण: ITER (फ्राँस), EAST (चीन), WEST (फ्राँस), SST-1 (भारत)।

प्रस्तावित नवाचार 

  • डिजिटल ट्विन्स: शोधकर्ताओं ने डिजिटल ट्विन्स बनाने का प्रस्ताव रखा है, जो एक टोकामक की आभासी प्रतिकृतियाँ हैं, जो वास्तविक समय में प्लाज्मा व्यवहार का अनुकरण करती हैं और भौतिक निर्माण से पूर्व डिजाइन परीक्षण की अनुमति देती हैं।
  • मशीन लर्निंग एकीकरण: प्लाज्मा परिरोधन और पूर्वानुमानित नियंत्रण में सहायता के लिए मशीन लर्निंग को एक उपकरण के रूप में सुझाया गया है, जिससे नाभिकीय संलयन अभिक्रियाओं की स्थिरता में सुधार होगा।
  • विकिरण-प्रतिरोधी सामग्री: इस रोडमैप में रिएक्टरों में तीव्र विकिरण को सहन करने में सक्षम सामग्रियों के विकास की आवश्यकता पर बल दिया गया है, जिससे स्थायित्व और परिचालन सुरक्षा में वृद्धि होगी।
  • अतिचालक चुंबक और प्लाज्मा मॉडलिंग (Superconducting Magnets and Plasma Modelling): भारत के नाभिकीय संलयन कार्यक्रम में दक्षता एवं विश्वसनीयता प्राप्त करने के लिए उन्नत अतिचालक चुंबकों और अधिक परिष्कृत प्लाज्मा मॉडलिंग तकनीकों का विकास आवश्यक माना जाता है।

वैश्विक तुलना

  • ITER (फ्राँस): विश्व की सबसे बड़ी चुंबकीय परिरोध परियोजना का लक्ष्य 10 का Q मान प्राप्त करना है।
  • STEP (यूनाइटेड किंगडम): ब्रिटेन वर्ष 2040 तक एक प्रोटोटाइप फ्यूजन प्लांट का प्रदर्शन करने की योजना बना रहा है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका (निजी क्षेत्र): कई निजी कंपनियों का दावा है कि वे 2030 के दशक तक ग्रिड-कनेक्टेड फ्यूजन हासिल कर लेंगी।
  • चीन (EAST टोकामाक): चीन ने प्लाज्मा की अवधि के मामले में पहले ही रिकॉर्ड बना लिया है, जो इसकी तीव्र प्रगति को दर्शाता है।
  • भारत की समय-सीमा: भारत का वर्ष 2060 का लक्ष्य अधिक प्रभावकारी है। साथ ही इसे वैश्विक अग्रणी देशों से पीछे रखता है, लेकिन यह एक दीर्घकालिक संरचित दृष्टिकोण प्रदान करता है।

चुनौतियाँ

  • तकनीकी चुनौतियाँ: लंबे समय तक प्लाज्मा को सीमित रखना तथा वाणिज्यिक रिएक्टरों तक इसका विस्तार करना कठिन कार्य बना हुआ है।
  • आर्थिक व्यवहार्यता: 25,000 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत और उच्च अनुसंधान एवं विकास व्यय बड़ी चुनौतियाँ प्रस्तुत करते हैं तथा अन्य स्रोतों की तुलना में नाभिकीय संलयन ऊर्जा की सामर्थ्य अनिश्चित बनी हुई है।
  • नीतिगत और फंडिंग संबंधी बाधाएँ: भारत के प्रयास बड़े पैमाने पर सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा संचालित हैं तथा निजी क्षेत्र की भागीदारी बहुत कम है, जबकि अमेरिका और यूरोप में स्टार्ट-अप्स प्रमुख भूमिका निभाते हैं।
  • नवीकरणीय ऊर्जा से प्रतिस्पर्द्धा: वर्ष 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन के लिए भारत की प्रतिबद्धताओं में सौर, पवन और परमाणु विखंडन को प्राथमिकता दी गई है, जो वित्तपोषण और नीतिगत फोकस के लिए नाभिकीय संलयन के साथ प्रतिस्पर्द्धा करते हैं।

नाभिकीय संलयन अनुसंधान एवं विकास का रणनीतिक मूल्य

  • तकनीकी लाभ: नाभिकीय संलयन में अनुसंधान से विकिरण-प्रतिरोधी पदार्थों, अतिचालक चुंबकों, प्लाज्मा मॉडलिंग और उच्च-तापमान इंजीनियरिंग में प्रभावी आउटपुट की संभावना है।
  • औद्योगिक क्षमता: ये विकास भारतीय उद्योग को उन्नत बना सकते हैं, नवाचार को बढ़ावा दे सकते हैं और तकनीकी स्वायत्तता को मजबूत कर सकते हैं।
  • वैश्विक साझेदारियाँ: ITER में भागीदारी और अंतरराष्ट्रीय फर्मों के साथ सहयोग से भारतीय प्रयोगशालाओं में परियोजना प्रबंधन विशेषज्ञता और नवाचार को बढ़ावा मिलेगा।

आगे की राह

  • अधिक निवेश: भारत को नाभिकीय संलयन अनुसंधान के लिए वर्तमान में सीमित आवंटन से आगे भी अन्य माध्यमों से वित्तपोषण बढ़ाना होगा।
  • निजी क्षेत्र की भूमिका: सार्वजनिक क्षेत्र के प्रयासों को पूरक बनाने के लिए निजी उद्योग और स्टार्ट-अप की अधिक भागीदारी की आवश्यकता है।
  • वैश्विक सहयोग: STEP (यू. के.) और EAST (चीन) जैसे उन्नत कार्यक्रमों के साथ साझेदारी से प्रौद्योगिकी-साझाकरण लाभ मिल सकता है।
  • मैटेरियल और AI पर ध्यान: विकिरण-प्रतिरोधी सामग्रियों का विकास, अतिचालक चुंबकों का विकास तथा AI के साथ डिजिटल ट्विन्स का उपयोग, प्रमुख तकनीकी बाधाओं को दूर कर सकता है।
  • नीतिगत तालमेल: नवीकरणीय ऊर्जा और नाभिकीय विखंडन के साथ पूरकता सुनिश्चित करने के लिए नाभिकीय संलयन अनुसंधान को भारत की व्यापक ऊर्जा सुरक्षा और नेट-जीरो रणनीति में एकीकृत किया जाना चाहिए।
  • कौशल विकास: प्लाज्मा भौतिकी, पदार्थ विज्ञान और परमाणु सुरक्षा में विशेषज्ञता विकसित करने के लिए विशेष प्रशिक्षण तथा अंतरराष्ट्रीय फेलोशिप का सृजन आवश्यक है।

संदर्भ

स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी’ और ‘आर्क इंस्टिट्यूट’ के शोधकर्ताओं ने पूर्ण रूप से कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) द्वारा डिजाइन किया गया विश्व का पहला कार्यशील वायरस जीनोम सफलतापूर्वक निर्मित किया है।

संबंधित तथ्य 

  • यह जैव प्रौद्योगिकी में एक नवीन उपलब्धि है, जो DNA अनुक्रमण (Sequencing) और DNA संश्लेषण (Synthesis) से लेकर अब इसे डिजाइन करने तक की प्रक्रिया है।

इस सफलता का महत्त्व

  • जीव विज्ञान में AI के पिछले अनुप्रयोगइंडीविजुअल प्रोटीन’ या छोटे मल्टी-जीन’ तंत्रों के डिजाइन तक सीमित थे।
  • संपूर्ण वायरल जीनोम का निर्माण करना कहीं अधिक जटिल है, जिसमें प्रतिकृति, होस्ट कोशिका की विशिष्टता और विकासात्मक अनुकूलता सुनिश्चित करने के लिए अनेक परस्पर क्रियाशील जीनों और नियामक तत्त्वों के समन्वय की आवश्यकता होती है।

विधि

  • टेस्ट केस वायरस: शोधकर्ताओं ने बैक्टीरियोफेज ΦX174 नामक एक सूक्ष्म वायरस का चयन किया, जो ई. कोलाई बैक्टीरिया को संक्रमित करता है।
    • यह वायरस पहला जीनोम था, जिसका पूर्ण अनुक्रमण (वर्ष 1977) हुआ था और पहला जीनोम जिसे स्क्रैच (Scratch)  से संश्लेषित किया गया था (2003)।
  • AI मॉडल: ‘ईवो’ (Evo) नाम का एक जीनोमिक लैंग्वेज मॉडल उपयोग किया गया।
    • इसे वायरस फैमिली के हजारों जीनोम परफाइन-ट्यून’ किया गया था, जिससे यह ΦX174 के विशेष डायलैक्ट’ को समझने और नए जीनोम उत्पन्न करने में सक्षम हो गया।
  • निर्माण: संकेतों का उपयोग करते हुए, AI ने हजारों संभावित जीनोम उत्पन्न किए।
  • स्क्रीनिंग: इसके बाद टीम ने गुणवत्ता जाँच के लिए कस्टम सॉफ्टवेयर का उपयोग किया और यह सुनिश्चित किया कि प्रत्येक डिजाइन में ई. कोलाई को संक्रमित करने के लिए आवश्यक जीन और प्रोटीन मौजूद हों।
  • संश्लेषण और परीक्षण: AI द्वारा डिजाइन किए गए सैकड़ों जीनोम प्रयोगशाला में संश्लेषित किए गए और बैक्टीरिया में क्षेपित किए गए।
    • इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप 302 प्रयासों के अंतर्गत 16 नए, कार्यात्मक वायरस सामने आए।

जीनोम के बारे में

  • जीनोम किसी जीव के DNA का संपूर्ण समूह है, जिसमें उसके सभी जीन और अनुक्रम शामिल होते हैं, जो वृद्धि, विकास और कार्यप्रणाली के लिए निर्देश प्रदान करता है।

बैक्टीरियोफेज (Bacteriophage) के बारे में

  • यह एक प्रकार का विषाणु है, जो जीवाणुओं को संक्रमित करता है।
  • सभी बैक्टीरियोफेज एक न्यूक्लिक अम्ल अणु द्वारा निर्मित होते हैं, जो एक प्रोटीन संरचना से युक्त होता है।
  • एक बैक्टीरियोफेज स्वयं को एक अतिसंवेदनशील जीवाणु से संबद्ध करता है औरहोस्ट’ कोशिका को संक्रमित करता है।
  • संक्रमण के बाद, बैक्टीरियोफेज जीवाणु की कोशिकीय मशीनरी पर नियंत्रण कर लेता है ताकि वह जीवाणु घटकों का उत्पादन न कर सके और इसके बजाय कोशिका को विषाणु घटकों का उत्पादन करने के लिए मजबूर करता है।
  • अंततः, नए बैक्टीरियोफेज एकत्रित होते हैं और लाइसिस (Lysis) नामक प्रक्रिया में जीवाणु से बाहर निकल आते हैं।
  • बैक्टीरियोफेज कभी-कभी संक्रमण प्रक्रिया के दौरान अपने मेजबान कोशिकाओं के जीवाणु DNA का एक हिस्सा हटा देते हैं और फिर इस DNA को नई होस्ट’ कोशिकाओं के जीनोम में स्थानांतरित कर देते हैं। इस प्रक्रिया को ट्रांसडक्शन (Transduction) कहते हैं।

संदर्भ

हाल ही में बुर्किना फासो, माली और नाइजर ने संयुक्त रूप से अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) से अलग होने की घोषणा की और इसे साम्राज्यवाद का एकनव औपनिवेशिक’ उपकरण बताया है।

संबंधित तथ्य

  • सदस्यता त्यागने की प्रक्रिया: कोई भी देश औपचारिक रूप से संयुक्त राष्ट्र महासचिव को सूचित करने के एक वर्ष बाद अपनी सदस्यता औपचारिक रूप से त्याग सकता है।

कारण

  • नव औपनिवेशिक’ संबंधी आरोप: तीनों देशों ने अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय की आलोचना करते हुए इसे साम्राज्यवादी शक्तियों के नियंत्रण में नव औपनिवेशिक दमन का एक उपकरण’ (Neo-Colonialist Repression In The Hands Of Imperialism)’ बताया।
  • ICC की विफलता: उन्होंने आरोप लगाया कि अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय युद्ध अपराध, मानवता के विरुद्ध अपराध, नरसंहार और आक्रामकता के अपराधों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने तथा उन पर कार्यवाही करने में सक्षम नही है।
  • स्थानीय तंत्र: जुंटा (एक सैन्य प्राधिकरण) ने अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं पर निर्भर रहने के बजाय शांति और न्याय स्थापित करने के लिए स्थानीय तंत्र निर्माण का सुझाव दिया है।

अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय  (ICC) के बारे में

  • ICC एक स्थायी अंतरराष्ट्रीय अधिकरण है, जो वर्ष 2002 में रोम संविधि के तहत स्थापित किया गया था।
  • मुख्यालय: हेग, नीदरलैंड।
  • अधिकार क्षेत्र: 1 जुलाई, 2002 या उसके बाद के अपराध।
  • सदस्य देश: 125 (भारत, अमेरिका, चीन, रूस और इजरायल सदस्य नहीं हैं)।
  • आधिकारिक भाषाएँ: अंग्रेजी, फ्रेंच, अरबी, चीनी, रूसी, स्पेनिश।
  • न्यायाधीश: सदस्य देशों द्वारा चुने जाते हैं, जिनका कार्यकाल नौ वर्ष का होता है और इसे बढ़ाया नहीं जा सकता है।
  • संयुक्त राष्ट्र के साथ संबंध: अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय स्वतंत्र निकाय है, लेकिन इसका संयुक्त राष्ट्र के साथ एक सहयोग समझौता है।

संगठनात्मक संरचना

  • असेंबली ऑफ स्टेट्स पार्टीज’ (ASP): यह एक विधायी निकाय है, जिसमें सदस्य देशों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं। यह न्यायालय के प्रशासन, बजट और न्यायाधीशों तथा अभियोजकों के चुनाव की देख-रेख करता है।
  • प्रेसिडेंसी: इसमें न्यायाधीशों द्वारा चुने गए एक अध्यक्ष और दो उपाध्यक्ष शामिल होते हैं, जो न्यायिक प्रशासन के लिए जिम्मेदार होते हैं।
    • वर्तमान अध्यक्ष: जापान की न्यायाधीशतोमोको अकाने’
  • न्यायिक प्रभाग: इसमें 9 वर्ष के कार्यकाल के लिए निर्वाचित 18 न्यायाधीश होते हैं, जिन्हें प्री-ट्रायल, ट्रायल और अपील प्रभाग में बाँटा गया है।
  • अभियोजक का कार्यालय (OTP): यह एक स्वतंत्र संस्था है, जो अपराधों की जाँच करने और न्यायालय में मामले के संचालन हेतु उत्तरदायी है।
  • रजिस्ट्री: यह प्रशासनिक और परिचालन सहायता प्रदान करती है, जिसमें गवाहों की सुरक्षा और प्रचार-प्रसार शामिल है।

ICC के कार्य और अधिकार क्षेत्र

  • अधिकार क्षेत्र में आने वाले अपराध
    • नरसंहार: नस्ल, धर्म, नृजातीयता या राष्ट्रीयता के आधार पर जानबूझकर किसी समूह के लोगों की हत्या।
    • मानवता के विरुद्ध अपराध: आम नागरिकों पर बड़े पैमाने पर और व्यवस्थित तरीके से हमले, जिसमें हत्या एवं यातना शामिल हैं।
    • युद्ध अपराध: युद्ध के नियमों का उल्लंघन, जैसे नागरिकों की हत्या, संपत्ति का नुकसान और प्रतिबंधित हथियारों का प्रयोग।
    • आक्रमण के अपराध (वर्ष 2010 के कांपला संशोधनों में शामिल): बिना किसी उचित कारण के एक देश द्वारा दूसरे देश के विरुद्ध सशस्त्र बल का गैर-कानूनी प्रयोग।
  • ICC में मामला आने के संबंधित कारण
    • एक सदस्य देश किसी मामले का उल्लेख करता है।
    • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद किसी स्थिति का उल्लेख करती है।
    • राष्ट्रीय न्यायालय मुकदमा संचालित करने को तैयार नहीं हैं या सक्षम नहीं हैं।
    • अपराध रोम चार्टर के सदस्य देश में हुआ हो, या आरोपी उस देश का नागरिक हो।
  • पूरकता का सिद्धांत (Principle of Complementarity): ICC तब ही कार्रवाई करता है, जब राष्ट्रीय कानूनी प्रणाली गंभीर अंतरराष्ट्रीय अपराधों के लिए मुकदमा चलाने में विफल रहते हैं।
  • आदेश का प्रवर्तन: गिरफ्तारी और आत्मसमर्पण के लिए यह राज्य के सहयोग पर निर्भर करता है। इसका अपना पुलिस बल नहीं है।

ICC की कमियाँ

  • सीमित प्रवर्तन शक्ति: ICC गिरफ्तारी के लिए राष्ट्रीय सरकारों पर निर्भर है, जिससे वह स्वतंत्र रूप से वारंट लागू करने में असमर्थ रहता है।
  • विलंबित वारंट: कई हाई-प्रोफाइल गिरफ्तारी वारंट जैसे कि व्लादिमीर पुतिन और बेंजामिन नेतन्याहू के मामले लागू नहीं किए गए हैं।
  • गैर-सदस्य देश: अमेरिका, चीन और रूस जैसे देश ICC के अधिकार क्षेत्र को नहीं मानते, जिससे इसकी वैश्विक पहुँच कम हो जाती है।
  • राजनीतिक प्रभाव: वारंट लागू करने पर प्रायः राजनीतिक हितों पर प्रभाव पड़ता है, जिससे न्यायालय की निष्पक्षता प्रभावित होती है।
    • ICC की कुछ जाँचों में अफ्रीकी देशों को अनुचित तरीके से निशाना बनाने का आरोप लगा है।
  • लंबी कानूनी प्रक्रिया: ICC में मुकदमे का निर्णय आने में प्रायः कई वर्ष लग जाते हैं, जिससे न्याय मिलने में देरी होती है।

अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) vs अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ)

विशेषता

अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ)

अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC)

स्थापना वर्ष 1945, संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत वर्ष 2002, रोम चार्टर के अनुसार
मुख्यालय हेग, नीदरलैंड्स हेग, नीदरलैंड्स
प्रकृति UN का मुख्य न्यायिक अंग स्वतंत्र अंतरराष्ट्रीय ट्रिब्यूनल, संयुक्त राष्ट्र का अंग नहीं (हालाँकि इसका संयुक्त राष्ट्र से संबंध है)।
क्षेत्राधिकार राज्यों के बीच विवादों का निपटारा करता है; संयुक्त राष्ट्र के अंगों/एजेंसियों को सलाह देता है। लोगों को अपराधों (जनसंहार, युद्ध अपराध, मानवता के विरुद्ध अपराध, आक्रामकता) के लिए दंडित करता है।
संबंधित पक्ष केवल राज्य ही ICJ के समक्ष पक्षकार बन सकते हैं। व्यक्ति (राज्य नहीं) को ICC के समक्ष मुकदमा चलाया जा सकता है।
अनिवार्य अधिकार क्षेत्र? यह स्वचालित नहीं है – यह राज्य की सहमति पर निर्भर करता है (संधियों, घोषणाओं या विशिष्ट मामलों पर समझौतों के माध्यम से)। सदस्य देशों के लोगों के लिए यह स्वतः लागू होगा या जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा इसकी सिफारिश की जाएगी।
मामलों के प्रकार संप्रभुता, सीमा और समुद्री विवाद, व्यापार, प्राकृतिक संसाधन, मानव अधिकार, संधि की व्याख्या और उल्लंघन। जनसंहार, मानवता के विरुद्ध अपराध, युद्ध अपराध, आक्रामकता के अपराध।
भारत की भागीदारी  हाँ नहीं

संदर्भ

फिनलैंड और फ्राँस में हुए हालिया शोध से ज्ञात हुआ है कि डेटा ट्रांसमिशन के लिए पारंपरिक रूप से प्रयोग किए जाने वाले ऑप्टिकल फाइबर, प्रकाश के अरैखिक व्यवहार का उपयोग करके AI गणनाएँ भी कर सकते हैं।

  • इससे तीव्र, ऊर्जा-कुशल AI प्रणालियों की संभावनाएँ विकसित हुई हैं, जिनके विज्ञान, शासन और वैश्विक प्रौद्योगिकी के लिए परिवर्तनकारी निहितार्थ हैं।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), हिडेन लेयर और ELM

  • कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI): पैटर्न की पहचान, निर्णय लेने की क्षमता और डेटा अधिगम जैसे कार्यों को करने के लिए मशीनों में मानव जैसी बुद्धिमत्ता का अनुकरण।
    • AI में एक प्रमुख दृष्टिकोण तंत्रिका नेटवर्क का उपयोग है, जो मानव मस्तिष्क से प्रेरित कंप्यूटेशनल मॉडल हैं, जो कृत्रिम न्यूरॉन्स की परस्पर जुड़ी लेयर्स के माध्यम से सूचना को संसाधित करते हैं।
  • हिडेन लेयर (Hidden Layer): तंत्रिका नेटवर्क में मध्यवर्ती चरण, जहाँ अपरिष्कृत इनपुट को उपयोगी विशेषताओं (जैसे- इमेज कर्व, लूप) में परिवर्तित किया जाता है।
    • यह AI मॉडल काथिंकिंग स्पेस’ है, जो सरल डेटा को जटिल निरूपणों में परिवर्तित करता है।
  • एक्सट्रीम लर्निंग मशीन (Extreme Learning Machine- ELM): केवल एक हिडन लेयर’ वाला एक सरलीकृत तंत्रिका नेटवर्क।
    • ये इनपुट हिडन कनेक्शन’ यादृच्छिक और नियत दोनों हो सकते हैं।
    • केवलआउटपुट वेट’ को प्रशिक्षित किया जाता है, जिससे यह डीप लर्निंग मॉडल की तुलना में अत्यधिक तीव्र हो जाता है।
  • AI ऑप्टिकल अध्ययन में: फाइबर स्वयं हिडन लेयर  के रूप में कार्य करता है, प्रकाश भौतिकी के माध्यम से स्वाभाविक रूप से परिवर्तन करता है।

शोध के प्रमुख निष्कर्ष

  • अरैखिक अंतःक्रियाओं की खोज: शोधकर्ताओं ने दिखाया कि ऑप्टिकल फाइबर के अंदर तीव्र प्रकाश स्पंद सामान्य प्रकाश से भिन्न व्यवहार करते हैं।
    • सुचारू रूप से गुजरने के बजाय, वे आपस में मिश्रित हो जाते हैं, नई आवृत्तियाँ उत्पन्न करते हैं और जटिल पैटर्न का निर्माण करते हैं, जिनका उपयोग गणना में किया जा सकता है।
  • एक्सट्रीम लर्निंग मशीन (Extreme Learning Machines- ELM) का उपयोग: प्रयोगों में ELM का उपयोग किया गया, जो केवल एकहिडन लेयर’ तंत्रिका नेटवर्क का सरल रूप है।
    • ऑप्टिकल फाइबर ने हिडन लेयर’ के रूप में कार्य किया, जो इनपुट डेटा को स्वचालित रूप से वर्गीकरण के लिए उपयोगी पैटर्न में परिवर्तित करता है।
  • उच्च सटीकता प्राप्त: सिस्टम ने हस्तलिखित अंकों को पहचानने में लगभग 91-93% सटीकता प्राप्त की।
    • यह इलेक्ट्रॉनिक AI मॉडल के लगभग बराबर है, लेकिन इसे इलेक्ट्रॉनिक ट्रांजिस्टर के स्था पर प्रकाश भौतिकी के माध्यम से प्राप्त किया गया है।
  • प्रकाश का नियतात्मक व्यवहार: प्रकाश का नियतात्मक व्यवहार यह दर्शाता है कि भले ही वह अव्यवस्थित मिश्रण जैसा प्रतीत हो, समान इनपुट पर प्राप्त आउटपुट हमेशा सुसंगत और पुनरावृत्ति होता है।
    • प्रकाश को कंप्यूटिंग माध्यम के रूप में उपयोग करने के लिए यह पूर्वानुमेयता महत्त्वपूर्ण है।

पारंपरिक कंप्यूटर बनाम ऑप्टिकल कंप्यूटर

  • इलेक्ट्रॉनिक्स आधारित कंप्यूटिंग: पारंपरिक प्रणालियाँ सिलिकॉन चिप्स से होकर गुजरने वाले इलेक्ट्रॉनों का उपयोग करती हैं।
    • वे क्रमिक रूप से कार्य करती हैं और बाइनरी कोड को संसाधित करने के लिए अरबों ट्रांजिस्टरों को ऑन–ऑफ (स्विच) करती हैं।
    • यद्यपि यह पूर्वानुमानित है, इससे ऊष्मा उत्सर्जित होती है और विशेष रूप से AI संबंधी कार्यभार के लिए, अत्यधिक ऊर्जा की खपत होती है।
  • फोटॉन के साथ ऑप्टिकल कंप्यूटिंग: ऑप्टिकल कंप्यूटर फोटॉन का प्रयोग करते हैं, जो प्रकाश की गति से संचालित होते  हैं और न्यूनतम ऊष्मा उत्पन्न करते हैं।
    • डेटा को प्रकाश के गुणों जैसे तीव्रता, तरंगदैर्ध्य और आवृत्ति के आधार पर एनकोड किया जाता है।
    • जब ये स्पंद फाइबर से गुजरते हैं, तो ‘अरैखिक ऑप्टिकल प्रभाव’ उन्हें जटिल फिंगरप्रिंट में परिवर्तित कर देते हैं।
  • परिचालन लाभ: ‘चरण-दर-चरण’ ट्रांजिस्टर संचालन के विपरीत, प्रकाश आधारित परिवर्तन तीव्र होते हैं और वे समानांतर रूप से कई प्रक्रियाओं को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे ऑप्टिकल AI में तीव्र और कुशल डेटा प्रोसेसिंग संभव होती है।
    • यह समानांतरता AI कार्यों को तेजी से और अधिक कुशलता से पूरा करने की अनुमति देती है।

ऑप्टिकल फाइबर में किस प्रकार व्यवहार करता है?

  • वाहक के रूप में प्रकाश तरंगें: प्रकाश अपने आयाम (चमक), चरण/फेज (दोलन की स्थिति) और आवृत्ति/तरंगदैर्ध्य को संशोधित करके सूचना का संचार करता है।
  • रैखिक व्यवहार: कम तीव्रता पर, प्रकाश पूर्वानुमानित रूप से व्यवहार करता है।
    • उदाहरण के लिए: बिना किसी व्यवधान के अलग-अलग लेन में संचालित कारों के समान।
  • अरैखिक व्यवहार: इसमें उच्च तीव्रता पर प्रकाश तरंगें आपस में परस्पर क्रिया करती हैं, एक-दूसरे में मिश्रित होती हैं और परिणामस्वरूप नवीन आवृत्तियाँ उत्पन्न करती हैं।
    • उदाहरण: जैसे, किसी तालाब में पत्थर गिराने पर उत्पन्न तरंगें, एक दूसरे पर आरोहित होती हैं, परंतु उनका यह अतिव्यापन पूर्णतः गणितीय नियमों के अनुसार सुसंगत होता है, न कि यादृच्छिक।

ऑप्टिकल फाइबर केबल क्या हैं और वे किस प्रकार कार्य करती हैं?

  • संरचना: काँच के अत्यधिक-पतले बेलनाकार धागेनुमा, जिनका व्यास लगभग मानव बाल के बराबर होता है, सुरक्षात्मक परतों से घिरे होते हैं।
  • सिद्धांत: ये पूर्ण आंतरिक परावर्तन पर आधारित होते हैं, जहाँ प्रकाश बिना बाहर निकले, काँच के भीतर बार-बार परावर्तित होता है।
  • कार्य
    • एक ट्रांसमीटर सूचना को प्रकाश तरंगों में परिवर्तित करता है।
    • ऑप्टिकल फाइबर इन तरंगों को लंबी दूरी तक ले जाते हैं।
    • एक रिसीवर सिग्नल को पुन: उपयोगी सूचना में डिकोड करता है।
  • लाभ
    • अत्यधिक उच्च डेटा संचरण दर (प्रति सेकंड कई टेराबिट)।
    • ताँबे या रेडियो के विपरीत, मौसमी विक्षोभ का प्रतिरोधी।
    • मजबूत, लचीला, और अंडर सी केबल’ या भूमिगत बुनियादी ढाँचे के लिए आदर्श।
  • लगभग 60 वर्ष पूर्व चार्ल्स काओ (Charles Kao) द्वारा प्रस्तावित फाइबर ऑप्टिक्स के लिए उन्हें वर्ष 2009 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार मिला था।

AI के लिए ऑप्टिकल-आधारित कंप्यूटिंग के लाभ

  • गति लाभ: फोटॉन, इलेक्ट्रॉनों की तुलना में बहुत तेजी से सूचना का संचार करते हैं क्योंकि वे प्रकाश की गति से गमन करते हैं और ऊर्जा को तुरंत रूपांतरित कर सकते हैं।
    • यह ऑप्टिकल कंप्यूटिंग को निगरानी और आपदा पूर्वानुमान जैसे उच्च-गति वाले AI अनुप्रयोगों के लिए उपयुक्त बनाता है।
  • ऊर्जा दक्षता: ऑप्टिकल सिस्टम विद्युत की कम खपत करते हैं और कम ऊष्मा उत्पन्न करते हैं।
    • AI डेटा केंद्र पहले से ही वैश्विक विद्युत का लगभग 1-2% उपयोग कर रहे हैं, ऊर्जा-कुशल कंप्यूटिंग लागत और उत्सर्जन को कम कर सकती है।
  • उच्च बैंडविड्थ और समांतरता: प्रकाश तरंगें अत्यधिक बैंडविड्थ प्रदान करती हैं और बिना किसी हस्तक्षेप के एक ही समय में कई फ्री डेटा स्ट्रीम’ को वहन करने में सक्षम होती हैं।
    • यह बिग डेटासेट’ की एक साथ ‘प्रोसेसिंग’ संभव बनाता है, जिससे AI प्रशिक्षण तीव्र हो जाता है।
  • स्थायित्व कारक: न्यूनतम ऊर्जा उपयोग प्रकाश-आधारित AI को अधिक पर्यावरण अनुकूल बनाता है और इसे सतत् विकास के वैश्विक लक्ष्यों के साथ अधिक संरेखित करता है।

AI के संदर्भ में ऑप्टिकल कंप्यूटिंग के अनुप्रयोग

  • स्वास्थ्य सेवा: ऑप्टिकल AI, MRI और एक्स-रे जैसे मेडिकल स्कैन को तेजी से प्रोसेस कर सकता है।
    • यह तीव्र निदान में सहायक होगा, जो भारत के संसाधन-विहीन ग्रामीण स्वास्थ्य क्षेत्र में विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है।
  • रक्षा और सुरक्षा: निगरानी फुटेज और खुफिया डेटा में पैटर्न की रियल-टाइम पहचान।
    • सीमा सुरक्षा और मिसाइल रक्षा प्रणालियों के लिए महत्त्वपूर्ण हो सकता है।
  • शासन और प्रशासन: योजनाओं और कल्याणकारी कार्यक्रमों के लिए बिग सिटीजन डेटासेट का तीव्र और सटीक एनालिसिस संभव बनाना।
    • डिजिटल इंडिया’ के तहत ई-गवर्नेंस प्लेटफॉर्म को मजबूत कर सकता है।
  • वैज्ञानिक अनुसंधान: जलवायु मॉडलिंग, जीनोमिक्स या खगोल भौतिकी में सिमुलेशन के लिए इसका उपयोग किया जाता है, जहाँ बिग डेटा का तीव्र और सटीक विश्लेषण आवश्यक होता है।

ऑप्टिकल AI की चुनौतियाँ और सीमाएँ

  • तकनीकी स्थिरता: अरैखिक प्रभावों को सावधानीपूर्वक नियंत्रित किया जाना चाहिए।
    • यदि प्रकाश की तीव्रता बहुत अधिक है या तंतु अत्यधिक लंबा है, तो परिणाम अस्थिर और त्रुटिपूर्ण हो सकते हैं।
  • प्रायोगिक बाधाएँ: वर्तमान मॉडल प्रकाश केध्रुवीकरण’ (Polarization) या ‘चरण/फेज परिवर्तनों’ (Phase Modulations) को सम्मिलित नहीं करते हैं।
    • भविष्य के कार्यों मेंरियल वर्ड’ की विश्वसनीयता के लिए इन्हें एकीकृत करना होगा।
  • मापनीयता संबंधी समस्याएँ: ऑप्टिकल कंप्यूटिंग अभी भी प्रायोगिक है और व्यापक रूप से अपनाने के लिए महँगे फोटॉनिक एकीकृत परिपथों की आवश्यकता होती है।
  • गवर्नेंस संबंधी चिंताएँ: तीव्र AI जवाबदेही और पारदर्शिता से संबंधित चुनौतियाँ उत्पन्न  करता है।
    • अनियमित प्रणालियाँ पूर्वाग्रहों को और अधिक बढ़ा सकती हैं या शासन में अस्पष्ट निर्णय लेने का कारण बन सकती हैं।
  • नैतिक और सुरक्षा जोखिम: ऑप्टिकल AI का दुरुपयोग. हैकिंग संबंधी निगरानी या स्वायत्त हथियार प्रणालियों के लिए किया जा सकता है।
    • मानक स्थापित करने और दुरुपयोग को रोकने के लिए वैश्विक सहयोग की आवश्यकता है।

आगे की राह

  • अनुसंधान एवं विकास निवेश को मजबूत करना: राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी मिशनों में ऑप्टिकल AI को प्राथमिकता देना और निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
  • कौशल विकास: IITs, IITs और NITs में फोटॉनिक्स तथा AI विशेषज्ञताओं शामिल  करना।
  • वैश्विक सहयोग: फोटॉनिक हार्डवेयर और AI गवर्नेंस फ्रेमवर्क पर यूरोपीय संघ, अमेरिका और जापान के साथ साझेदारी करना।
  • संतुलित विनियमन: AI के लिए नैतिक दिशा-निर्देश स्थापित करना एवं उनमें उभरते हार्डवेयर प्लेटफॉम को भी शामिल करना।
  • राष्ट्रीय मिशनों के साथ एकीकरण: सामाजिक लाभ को अधिकतम करने के लिए ऑप्टिकल AI अनुसंधान को डिजिटल इंडिया और हरित ऊर्जा लक्ष्यों के साथ संरेखित करना।

निष्कर्ष

ऑप्टिकल कंप्यूटिंग दर्शाती है कि किस प्रकार मूलभूत भौतिकी AI के भविष्य को परिवर्तित कर सकती है। कंप्यूटिंग तत्त्वों के रूप में ऑप्टिकल फाइबर का उपयोग करके, वैज्ञानिकों ने दिखाया है कि AI तीव्र, पर्यावरण-अनुकूल और अधिक कुशल हो सकता है। हालाँकि तकनीकी और शासन संबंधी चुनौतियाँ बनी हुई हैं, फिर भी स्वास्थ्य सेवा, शासन और अनुसंधान में क्रांति लाने की अपार संभावनाएँ हैं।

संदर्भ

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के अंतर्गत महिला राजनीतिक कार्यकर्ताओं को शामिल करने की याचिका को खारिज कर दिया।

संबंधित तथ्य 

  • सर्वोच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी केरल उच्च न्यायालय के वर्ष 2022 के एक निर्णय के विरुद्ध अपील पर सुनवाई करते हुए की, जिसमें कहा गया था कि कर्मचारी-नियोक्ता संबंध न होने की स्थिति में राजनीतिक दलों पर आंतरिक शिकायत समिति (Internal Complaints Committee-  ICCs) स्थापित करने की कोई बाध्यता नहीं है।
  • याचिकाकर्ता की ओर से पेश एक वरिष्ठ अधिवक्ता ने तर्क दिया कि यद्यपि कई महिलाएँ राजनीति में सक्रिय रूप से शामिल हैं, केवल CPI(M) के पास ही आंतरिक शिकायत समिति है।

सर्वोच्च न्यायालय की प्रमुख टिप्पणियाँ

  • नियोक्ता-कर्मचारी संबंध नहीं: न्यायालय ने कहा कि राजनीतिक गतिविधियाँ स्वैच्छिक हैं और इसमें नियोक्ता-कर्मचारी संबंध शामिल नहीं है।
    • राजनीतिक परिस्थितियों में “नियोक्ता” या “कर्मचारी” की स्पष्ट परिभाषा के बिना, POSH लागू करना कानूनी रूप से अव्यावहारिक होगा।
  • राजनीतिक दल, कार्यस्थल नहीं: राजनीतिक संगठन, अपनी प्रकृति से, अधिनियम के तहत परिभाषित पारंपरिक कार्यस्थल नहीं हैं।
    • न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि POSH अधिनियम औपचारिक रोजगार स्थलों के लिए बनाया गया था, न कि राजनीतिक संघों या चुनावी गतिविधियों के लिए।
  • दुरुपयोग का जोखिम: न्यायिक पीठ ने चेतावनी दी कि राजनीतिक दलों को शामिल करने से कानून का दुरुपयोग हो सकता है, जैसे कि शिकायतें, ब्लैकमेलिंग या राजनीतिक प्रतिशोध, जो लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को अस्थिर कर सकता है।
    • इससे बहुत विकल्प उपलब्ध होंगे, जिससे प्रवर्तन अव्यावहारिक हो जाएगा।
  • भारत निर्वाचन आयोग (ECI) की भूमिका: न्यायालय ने सुझाव दिया कि राजनीतिक दलों में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारत निर्वाचन आयोग उपयुक्त प्राधिकारी है।
    • याचिकाकर्ताओं को सलाह दी गई कि वे दल-विशिष्ट आचार संहिता और शिकायत निवारण तंत्र तैयार करने के लिए चुनाव आयोग से संपर्क करें।
    • संस्थागत भूमिका के साथ विस्तार
      • राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW): राजनीतिक उत्पीड़न सुधारों की निगरानी और सिफारिश कर सकता है।
      • राजनीतिक वित्तपोषण और मान्यता: लैंगिक-सुरक्षा अनुपालन से जोड़ा जा सकता है।
      • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951: पंजीकरण की शर्त के रूप में पार्टियों में शिकायत निवारण प्रकोष्ठों की स्थापना अनिवार्य कर सकता है।
  • विधायी क्षमता, न्यायिक विस्तार नहीं: न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि संसद को यह तय करना होगा कि राजनीतिक परिस्थितियों को शामिल करने के लिए POSH के दायरे का विस्तार किया जाए या नहीं।
    • इस क्षेत्र में न्यायिक हस्तक्षेप विधायी नीति-निर्माण का विकल्प नहीं हो सकता है।

यौन उत्पीड़न पर न्यायिक उदाहरण

  • मेधा कोटवाल लेले बनाम भारत संघ (2013): सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद-14 (समानता का अधिकार), 15 (भेदभाव का निषेध) और 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के अंतर्गत यौन उत्पीड़न से सुरक्षा को एक मौलिक अधिकार माना और कार्यस्थलों जैसे सभी स्थानों पर महिलाओं की सुरक्षा के संवैधानिक कर्तव्य पर जोर दिया।
    • इस निर्णय ने औपचारिक और अनौपचारिक कार्यस्थलों में व्यापक कानूनी सुरक्षा की नींव रखी।
  • वर्तमान निर्णय (महिला राजनीतिक कार्यकर्ता): महिला राजनीतिक कार्यकर्ताओं को POSH अधिनियम, 2013 के तहत शामिल करने की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने कहा कि राजनीतिक दलों को नियोक्ता मानना ​​अधिक विकल्प प्रदान करेगा।
    • इसने व्यापक सुधारों को विधायिका पर छोड़ दिया, जिससे कार्यस्थल सुरक्षा को राजनीतिक क्षेत्र तक विस्तारित करने में न्यायिक संयम का संकेत मिलता है।

कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (POSH अधिनियम) के बारे में

  • कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न निवारण (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के विरुद्ध भारत का पहला समर्पित कानून है।
  • यौन उत्पीड़न की परिभाषा
    • अर्थ: धारा 2(n) यौन उत्पीड़न को अवांछित शारीरिक संपर्क, यौन प्रस्ताव, यौन अनुग्रह की माँग, यौन-केंद्रित टिप्पणियाँ, अश्लील साहित्य दर्शाना और यौन प्रकृति के अन्य अवांछित आचरण के रूप में परिभाषित करती है।
    • परिस्थितियाँ: धारा 3 उत्पीड़न की पहचान तब करती है, जब यह अधिमान्य व्यवहार की प्रतिबद्धता, हानिकारक व्यवहार की धमकी, रोजगार की स्थिति को खतरा, काम में हस्तक्षेप या प्रतिकूल वातावरण और स्वास्थ्य या सुरक्षा को प्रभावित करने वाले अपमानजनक व्यवहार से जुड़ा हो।
  • उद्देश्य: महिलाओं के लिए सुरक्षा, लैंगिक समानता, सम्मान का अधिकार और सुरक्षित कार्य वातावरण सुनिश्चित करना।
  • मूल
    • अन्य घटना: वर्ष 1992 में, राजस्थान की एक सामाजिक कार्यकर्ता भँवरी देवी द्वारा बाल विवाह रोकने की प्रतिक्रियास्वरूप सामूहिक दुष्कर्म किया गया था।
    • सर्वोच्च न्यायालय की कार्रवाई: वर्ष 1997 में, सर्वोच्च न्यायालय ने कानून के अभाव में विशाखा दिशा-निर्देश जारी किए, जिससे उन्हें सभी कार्यस्थलों पर लागू करना बाध्यकारी हो गया।
    • संवैधानिक आधार: अनुच्छेद-15 लैंगिक आधार पर भेदभाव का निषेध करता है, और अनुच्छेद-21 सम्मानपूर्वक जीवन जीने के अधिकार की गारंटी देता है।
    • अंतर्राष्ट्रीय आधार: भारत ने वर्ष 1993 में महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन (Convention on the Elimination of All Forms of Discrimination Against Women- CEDAW) का अनुसमर्थन किया, जिसने राज्य को लैंगिक भेदभाव को रोकने के लिए बाध्य किया।
  • दायरा
    • कार्यस्थल: यह अधिनियम सरकारी, निजी, संगठित, असंगठित, अस्पतालों, खेल स्थलों, कार्यस्थल, परिवहन और घरेलू कार्यों को शामिल करता है।
    • नियोक्ता परिभाषा: यह अधिनियम पारंपरिक कार्यालयों औरगिग’ या ‘ऑनलाइन’ प्लेटफॉर्म दोनों को शामिल करता है।
    • प्रयोज्यता: यह अधिनियम सभी महिलाओं की रक्षा करता है, चाहे उनकी आयु या रोजगार की स्थिति कुछ भी हो।

विशाखा दिशा-निर्देश (1997)

  • प्रकृति: विशाखा दिशा-निर्देश कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न के मामलों से निपटने के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी प्रक्रियात्मक निर्देश थे।
  • दायित्व: नियोक्ताओं को उत्पीड़न की रोकथाम, शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने और पूछताछ करने की आवश्यकता का दायित्व।
  • प्रासंगिकता: ये दिशा-निर्देश POSH अधिनियम, 2013 की नींव के रूप में कार्य करते हैं।

  • संस्थागत तंत्र
    • आंतरिक शिकायत समिति (Internal Complaints Committee- ICC): 10 या अधिक कर्मचारियों वाले प्रत्येक कार्यस्थल पर एक आंतरिक शिकायत समिति का गठन किया जाना चाहिए, जिसमें एक पीठासीन अधिकारी (वरिष्ठ महिला कर्मचारी), कम-से-कम दो कर्मचारी सदस्य, एक बाहरी NGO/विशेषज्ञ सदस्य और 50% महिला सदस्य हों।
    • ICC का कार्यकाल और जाँच: सदस्य 3 वर्ष तक कार्यरत रहते हैं और जाँच गोपनीयता बनाए रखते हुए 90 दिनों के भीतर पूरी की जानी चाहिए।
    • स्थानीय समिति (Local Committee- LC): जिला अधिकारी को उन जिलों में एक स्थानीय समिति का गठन करना होगा, जहाँ कार्यस्थलों पर 10 से कम कर्मचारी हों या जहाँ नियोक्ता ही प्रतिवादी हो।
      • स्थानीय समिति की अध्यक्षता एक प्रतिष्ठित महिला द्वारा की जाती है और इसमें सरकार और गैर-सरकारी संगठनों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं।
  • शिकायत, पूछताछ और राहत
    • शिकायत दर्ज करना: लिखित शिकायत 3 महीने के भीतर दर्ज की जानी चाहिए, जिसे 3 महीने के लिए और बढ़ाया जा सकता है; यदि महिला लिख ​​नहीं सकती है तो सहायता प्रदान की जानी चाहिए।
    • समझौता: समझौता केवल शिकायतकर्ता के अनुरोध पर ही किया जा सकता है और मौद्रिक समझौता निषिद्ध है।
    • अंतरिम राहत: अंतरिम उपायों में स्थानांतरण, 3 महीने तक की छुट्टी या समकक्ष व्यवस्था शामिल हो सकती है।
    • समिति की रिपोर्ट: आंतरिक शिकायत समिति/स्थानीय समिति को जाँच पूरी होने के 10 दिनों के भीतर अपने निष्कर्ष प्रस्तुत करने होंगे।
    • नियोक्ता की कार्रवाई: नियोक्ता को 60 दिनों के भीतर सिफारिशों पर कार्रवाई करनी होगी।
  • नियोक्ता के कर्तव्य
    • सुरक्षित कार्यस्थल: नियोक्ता को सुरक्षित कार्य वातावरण सुनिश्चित करना होगा।
    • सूचना का प्रदर्शन: नियोक्ता को यौन उत्पीड़न के लिए दंड और ICC विवरण प्रदर्शित करना होगा।
    • जागरूकता कार्यक्रम: नियोक्ता को कर्मचारियों के लिए जागरूकता कार्यशालाएँ और ICC सदस्यों के लिए अभिविन्यास कार्यक्रम आयोजित करने होंगे।
    • ICC को सहायता: नियोक्ता को पक्षों/गवाहों की उपस्थिति सुनिश्चित करनी होगी और समिति के कार्य के लिए सुविधाएँ प्रदान करनी होंगी।
    • कानूनी सहायता: नियोक्ता को भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत आपराधिक मामले दर्ज करने में सहायता करनी होगी।
    • सेवा नियम: नियोक्ता को सेवा नियमों के तहत यौन उत्पीड़न को कदाचार मानना ​​होगा।
    • वार्षिक रिपोर्टिंग: नियोक्ता को वार्षिक रिपोर्ट में मामलों का विवरण शामिल करना होगा या यदि कोई रिपोर्ट तैयार नहीं की जाती है तो जिला अधिकारी को सूचित करना होगा।
  • दंड
    • अनुपालन न करना: अनुपालन न करने पर ₹50,000 तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
    • दोहरा गए अपराध: बार-बार उल्लंघन करने पर अधिक जुर्माना लगाया जा सकता है और लाइसेंस या पंजीकरण रद्द किया जा सकता है।
  • झूठी शिकायतों के विरुद्ध सुरक्षा उपाय
    • धारा 14: झूठी या दुर्भावनापूर्ण शिकायतों या झूठे साक्ष्यों के विरुद्ध कार्रवाई का प्रावधान करती है, लेकिन केवल तभी जब दुर्भावनापूर्ण उद्देश्य सिद्ध हो।
    • वास्तविक शिकायतकर्ताओं का संरक्षण: शिकायत सिद्ध न कर पाना दुर्भावनापूर्ण उद्देश्य नहीं माना जाता।

यौन उत्पीड़न से संरक्षण का’ बहिष्कार और कार्यान्वयन में व्यावहारिक अंतराल

  • कार्यस्थल की संकीर्ण परिभाषा: राजनीतिक दल, बार एसोसिएशन, गैर-सरकारी संगठन और गिग प्लेटफॉर्म इसमें शामिल नहीं हैं।
    • उदाहरण: बॉम्बे उच्च न्यायालय (2025) ने यूएनएस महिला लीगल एसोसिएशन बनाम बार काउंसिल ऑफ इंडिया मामले में नियोक्ता-कर्मचारी संबंध के अभाव का हवाला देते हुए बार काउंसिल में IC गठित करने की याचिका को खारिज कर दिया।
  • कार्यान्वयन की कमी: यहाँ तक कि शामिल किए गए कार्यस्थलों (जैसे- अस्पताल) में भी, जागरूकता और जवाबदेही की कमी के कारण सुरक्षा उपाय प्रायः विफल हो जाते हैं।
  • न्यायिक संयम बनाम संवैधानिक नैतिकता: न्यायालय अपनी भूमिका को सीमित कर रहे हैं और कार्यक्षेत्र का विस्तार विधायी कार्रवाई पर छोड़ रहे हैं।
    • उदाहरण: मेधा कोतवाल लेले बनाम भारत संघ (2013) में, सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि यौन उत्पीड़न से सुरक्षा एक मौलिक अधिकार है।
  • प्रति-उदाहरण: वर्ष 2025 में, सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायिक संयम दिखाते हुए और सुधार का काम संसद पर छोड़ते हुए, POSH का विस्तार राजनीतिक दलों तक करने से इनकार कर दिया।
  • राजनीति में महिलाओं की भेद्यता: वैधानिक सुरक्षा उपायों का अभाव सार्वजनिक जीवन में भागीदारी और सुरक्षा को कम करता है।
    • उदाहरण: कई महिला राजनेताओं ने सार्वजनिक रूप से पार्टी सहयोगियों द्वारा उत्पीड़न का आरोप लगाया है, लेकिन POSH तंत्र का उपयोग नहीं कर सकीं, क्योंकि राजनीतिक दलों को कानूनी रूप से कार्यस्थल नहीं माना जाता है।
      • इसके अतिरिक्त, महिला राजनीतिक कार्यकर्ताओं को पार्टी से जुड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ट्रोलिंग, साइबरस्टॉकिंग, डॉक्सिंग और ऑनलाइन दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है। साइबर उत्पीड़न से निपटने के लिए POSH कानून को आईटी अधिनियम और डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (DPDP) अधिनियम से जोड़ने की आवश्यकता है।
  • अन्य चुनौतियाँ
    • उपेक्षा और कॅरियर पर प्रतिकूल प्रभाव के डर से कम रिपोर्टिंग।
    • असंगठित क्षेत्र, लघु उद्यमों और राजनीतिक दलों में कमजोर कार्यान्वयन।
    • कार्यस्थल परिभाषाओं के विस्तार में न्यायिक संयम।
    • महिला कार्यकर्ताओं में शी-बॉक्स (She-Box) और IC तंत्र के बारे में जागरूकता की कमी।

कार्यस्थल पर उत्पीड़न पर वैश्विक मानक

  • संयुक्त राष्ट्र (UN) फ्रेमवर्क
    • महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर अभिसमय (Convention on the Elimination of All Forms of Discrimination Against Women- CEDAW) (1979): राज्यों को कार्यस्थल पर भेदभाव और उत्पीड़न, जिसमें राजनीतिक और सार्वजनिक जीवन भी शामिल है, को रोकने के लिए बाध्य करता है।
    • बीजिंग घोषणा-पत्र और कार्य मंच (Beijing Declaration and Platform for Action) (1995): राजनीति में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा और उत्पीड़न को लैंगिक समानता में बाधा माना गया।
    • ILO अभिसमय 190 (ILO Convention 190) (2019): हिंसा और उत्पीड़न अभिसमय, हिंसा और उत्पीड़न से मुक्त कार्यस्थल के अधिकार को मान्यता देने वाली पहली अंतरराष्ट्रीय संधि है, जिसमें राजनीतिक भागीदारी वाले स्थानों को स्पष्ट रूप से शामिल किया गया है।
    • संयुक्त राष्ट्र महिला पहल – सुरक्षित शहर और सुरक्षित सार्वजनिक स्थान (UN Women Initiatives – Safe Cities and Safe Public Spaces) (वर्ष 2010 से आगे): इसे शहरी कार्यस्थलों में उत्पीड़न को कम करने के लिए क्विटो, काहिरा, दिल्ली और किगाली जैसे शहरों में आरंभ किया गया। साथ ही यह पहल लैंगिक रूप से संवेदनशील शहरी नियोजन और सामुदायिक पुलिसिंग को बढ़ावा देती है।
  • अंतर-संसदीय संघ (Inter-Parliamentary Union- IPU) पहल
    • IPU संसदों में आचार संहिता, अनिवार्य आचार समितियों और राजनीतिक भूमिकाओं में महिलाओं के लिए गोपनीय रिपोर्टिंग चैनलों की सिफारिश करता है।
    • IPU रिपोर्ट (2016, 2018): इस रिपोर्ट में पाया गया कि 80% से अधिक महिला सांसदों को मनोवैज्ञानिक या यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ा।

राजनीति में महिला सुरक्षा पर वैश्विक प्रथाएँ

  • यूनाइटेड किंगडम: स्वतंत्र शिकायत एवं शिकायत निवारण योजना (2018) वेस्टमिंस्टर में सांसदों, कर्मचारियों और राजनीतिक दल के कार्यकर्ताओं को कवर करती है।
    • गोपनीय सलाह सेवाएँ और एक स्वतंत्र जाँच प्रणाली प्रदान करती है।
  • न्यूज़ीलैंड: संसदीय आचरण नीति (2019), राजनीति में डराना-धमकाना या जोर जबरजस्ती और यौन उत्पीड़न से निपटने के लिए एक व्यापक नीति।
    • सांसदों के लिए एक स्वतंत्र आयुक्त और अनिवार्य प्रशिक्षण प्रदान करती है।
  • स्वीडन: राजनीतिक दलों ने उत्पीड़न की शिकायतों के लिए आंतरिक लैंगिक समानता चार्टर और लोकपाल को अपनाया है।
    • दलों के भीतर स्व-नियमन की संस्कृति कानूनी सुरक्षा को पूरक बनाती है।
  • रवांडा: विश्व स्तर पर महिला सांसदों के उच्चतम अनुपात (>60%) के लिए जाना जाता है।
    • चुनावी कानूनों और पार्टी नियमों में महिलाओं की सुरक्षित भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए लैंगिक-संवेदनशील शिकायत निवारण तंत्र शामिल हैं।

भारत में कार्यस्थलों पर महिलाओं की सुरक्षा

  • POSH अधिनियम, 2013 (POSH Act, 2013): कार्यस्थलों पर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने वाला एक ऐतिहासिक कानून है।
    • 10+ कर्मचारियों वाले संगठनों में आंतरिक समितियों (ICs) का गठन अनिवार्य है।
    • सार्वजनिक, निजी, संगठित और असंगठित क्षेत्रों को शामिल करता है।
  • शी-बॉक्स पोर्टल (She-Box Portal) (2017): केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया।
    • सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों की महिलाओं के लिए ‘सिंगल विंडो’ ऑनलाइन शिकायत तंत्र प्रदान करता है।
    • मंत्रालयों की शिकायत निवारण प्रणालियों के साथ एकीकृत करता है।

आगे की राह

  • कार्यस्थल की परिभाषा का विस्तार करना: POSH अधिनियम की ‘कार्यस्थल’ की परिभाषा को राजनीतिक दलों, बार एसोसिएशनों, गैर-सरकारी संगठनों और गिग इकोनॉमी प्लेटफॉर्म को शामिल करते हुए व्यापक बनाया जाना चाहिए और उन्हें संरचित पदानुक्रम वाले अर्द्ध-पेशेवर स्थलों के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए।
  • अंतरराष्ट्रीय संरेखण: भारत को कार्यस्थल पर हिंसा और उत्पीड़न संबंधी अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के कन्वेंशन 190 का अनुसमर्थन करना चाहिए और घरेलू कानून को वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाना चाहिए, जिससे औपचारिक और अनौपचारिक दोनों ही क्षेत्रों में सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
  • जवाबदेही और प्रवर्तन: कार्यान्वयन में कमियों को दूर करने के लिए, अस्पतालों और विश्वविद्यालयों जैसे पहले से ही शामिल क्षेत्रों में भी निगरानी, ​​रिपोर्टिंग और दंड की सुदृढ़ प्रणालियाँ स्थापित की जानी चाहिए।
  • न्यायिक-विधायी सामंजस्य: यहाँ तक कि न्यायालयों को समानता और सम्मान के संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखना चाहिए, विधायिका को वैधानिक अंतराल को पाटने और POSH ढाँचे के सुरक्षात्मक दायरे का विस्तार करने के लिए सक्रिय रूप से कार्य करना चाहिए।

PWOnlyIAS विशेष

एक नैतिक दुविधा- लोकतांत्रिक बहुलवाद बनाम संवैधानिक नैतिकता

  • लोकतांत्रिक बहुलवाद: राजनीतिक दलों को स्वैच्छिक संघ माना जाता है, जिन्हें कार्यशीलता, उम्मीदवार चयन और आंतरिक अनुशासन में आंतरिक स्वायत्तता का अधिकार प्राप्त है।
    • POSH जैसे बाहरी कानूनी ढाँचे का विस्तार उनकी संघटन की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप माना जा सकता है (अनुच्छेद-19(1)(c)
  • संवैधानिक नैतिकता: हालाँकि, महिलाओं के समानता (अनुच्छेद-14), भेदभाव-मुक्ति (अनुच्छेद-15) और सम्मान (अनुच्छेद-21) के मौलिक अधिकारों पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता है।
    • संवैधानिक नैतिकता का सिद्धांत, संस्थाओं (जिनमें राजनीतिक दल भी शामिल हैं) को अपने आचरण को संविधान की भावना के अनुरूप ढालने के लिए बाध्य करता है।
  • दुविधा: क्या राजनीतिक दलों की आंतरिक स्वतंत्रता को महिलाओं के सम्मान और सुरक्षित भागीदारी के मौलिक अधिकार पर प्रभावी होने दिया जाना चाहिए? या क्या संसद को यह सुनिश्चित करने के लिए कानून बनाना चाहिए कि संवैधानिक मूल्य दलीय स्वायत्तता पर हावी हों?

नैतिक दुविधा का संभावित समाधान

  • विधायी सुधार: संसद POSH का विस्तार कर सकती है या राजनीतिक कार्यस्थलों के लिए एक अलग कानून बना सकती है, जिससे लोकतांत्रिक बहुलवाद को कम किए बिना महिलाओं की गरिमा सुनिश्चित किया जा सके।
  • नियामक निरीक्षण: भारतीय चुनाव आयोग (ECI) पार्टी की मान्यता के लिए आंतरिक शिकायत समितियों या लैंगिक सुरक्षा संहिताओं को अनिवार्य बना सकता है।
  • जवाबदेही के साथ स्व-नियमन: राजनीतिक दल स्वैच्छिक आचार संहिता और शिकायत प्रकोष्ठ अपना सकते हैं, साथ ही विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए बाह्य रूप से ऑडिट भी करवा सकते हैं।

संवर्द्धन के लिए केस स्टडीज

  • निर्भया मामला (2012): दिल्ली सामूहिक दुष्कर्म के बाद न्यायमूर्ति वर्मा समिति और आपराधिक कानून संशोधन (2013) का गठन हुआ। दुष्कर्म से निपटने वाले कानूनों को तो मजबूत किया गया, लेकिन कोई भी समानांतर सुधार व्यवस्थित कार्यस्थल या राजनीतिक उत्पीड़न पर केंद्रित नहीं था, यह दर्शाता है कि भारत के प्रतिक्रियात्मक सुधार संरचनात्मक मुद्दों पर नहीं, बल्कि अत्यधिक हिंसा पर केंद्रित हैं।
  • पंचायतों में महिलाएँ (वर्ष 1993 के बाद): 73वें संविधान संशोधन ने पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए एक-तिहाई आरक्षण अनिवार्य कर दिया। प्रतिनिधित्व बढ़ा, लेकिन कई महिला सरपंचों को अभी भी उत्पीड़न, धमकी और छद्म नियंत्रण (‘सरपंच पति’ अवधारणा) का सामना करना पड़ता है।
    • यह दर्शाता है कि सुरक्षा तंत्र के बिना प्रतिनिधित्व कैसे वास्तविक सशक्तीकरण को कमजोर करता है।
  • ब्रिटिश संसद (वर्ष 2018 से आगे): सांसदों, कर्मचारियों और सहायकों को कवर करने वाली स्वतंत्र शिकायत और शिकायत निवारण योजना (Independent Complaints and Grievance Scheme- ICGS) को अपनाया गया। स्वतंत्र जाँचकर्ता, गोपनीय सलाह और लागू करने योग्य प्रतिबंध प्रदान करता है।
    • शिकायतों के बाद कई सांसदों ने इस्तीफा दे दिया, यह दर्शाता है कि विश्वसनीय प्रणालियाँ जवाबदेही सुनिश्चित करती हैं।
    • हालाँकि, भारत में राजनीति में ऐसी निष्पक्ष शिकायत प्रणाली का अभाव है।

निष्कर्ष

“POSH अधिनियम कार्यस्थल पर महिलाओं के सम्मान और सुरक्षा के अधिकार की रक्षा करने वाला एक ऐतिहासिक कानून है। फिर भी, राजनीतिक दलों और अन्य अर्द्ध-व्यवसायिक स्थानों को इसके दायरे से बाहर रखने से एक गंभीर सुरक्षा अंतराल उत्पन्न होता है। उचित लैंगिक न्याय और समावेशिता के लिए, भारत को कार्यस्थल की परिभाषा पर पुनर्विचार करना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि राजनीति तथा सार्वजनिक जीवन में महिलाएँ कानूनी सुरक्षा उपायों के दायरे से बाहर न रहें।

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