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Sep 26 2025

संदर्भ

हाल ही में भारत के विदेश मंत्री ने UNGA के दौरान न्यूयॉर्क में भारत-प्रशांत द्वीपीय सहयोग मंच (FIPIC) के विदेश मंत्रियों की बैठक की अध्यक्षता की है।

भारत-प्रशांत द्वीपीय सहयोग मंच (FIPIC) के बारे में

  • भारत-प्रशांत द्वीप सहयोग मंच (FIPIC) की शुरुआत नवंबर 2014 में भारतीय प्रधानमंत्री की फिजी यात्रा के दौरान की गई थी।
  • उद्देश्य
    • हिंद महासागर से परे प्रशांत क्षेत्र में भारत की भागीदारी को बढ़ाना।
    • जलवायु परिवर्तन, स्वच्छ ऊर्जा, डिजिटल कनेक्टिविटी, व्यापार, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और क्षमता निर्माण में सहयोग।
  • प्रतिभागी: 14 प्रशांत द्वीपीय देश (कुक आइलैंड्स, फिजी, किरिबाती, मार्शल आइलैंड्स, माइक्रोनेशिया, नाउरू, नीयू, पलाऊ, पापुआ न्यू गिनी, सामोआ, सोलोमन आइलैंड्स, टोंगा, तुवालु, वानुआतु।
  • भारत-प्रशांत द्वीपीय व्यापार लगभग 300 मिलियन अमेरिकी डॉलर प्रतिवर्ष है (200 मिलियन अमेरिकी डॉलर निर्यात, 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर आयात)।
    • इन पहलों में FIPIC व्यापार कार्यालय, बिजनेस एक्सेलरेटर और सामुदायिक परियोजना अनुदान शामिल हैं।

महत्त्वपूर्ण पहल

  • जलवायु परिवर्तन से निपटने और स्वच्छ ऊर्जा के लिए 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर का फंड
  • डिजिटल कनेक्टिविटी के लिए सभी प्रशांत द्वीपों का ई-नेटवर्क।
  • भारतीय हवाई अड्डों पर प्रशांत क्षेत्र के नागरिकों के लिए आगमन पर वीजा।
  • राजदूतों की ट्रेनिंग, आगंतुकों का कार्यक्रम और स्थानीय परियोजनाओं के लिए वित्तीय सहायता में वृद्धि।
  • FIPIC III, 2023 में 12-बिंदु वाला एक्शन प्लान की घोषणा की गई।
    • इसमें हेल्थकेयर, साइबरस्पेस, स्वच्छ ऊर्जा, जल एवं लघु और मध्यम उद्यम शामिल हैं।
    • इसमें फिजी में एक कार्डियोलॉजी अस्पताल, सभी 14 PICs में डायलिसिस यूनिट और समुद्री एंबुलेंस और सस्ती दवाओं के लिए जन औषधि केंद्र शामिल हैं।

महत्त्व 

  • रणनीतिक: यह प्रशांत क्षेत्र में भारत की उपस्थिति का विस्तार करता है, तथा हिंद महासागर पर भारत के फोकस को बढ़ाता है।
  • आर्थिक: विशाल अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZs) वाले देशों के साथ व्यापार और निवेश के अवसर खुलते हैं।
  • विकास संबंधी: स्वास्थ्य, तकनीक, प्रशिक्षण और जलवायु लचीलापन जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से द्वीपीय देशों को सहायता प्रदान करता है।
  • कूटनीतिक: लोगों को केंद्र में रखकर, सतत् विकास के एजेंडे के साथ विकास भागीदार के रूप में भारत की भूमिका को मजबूत करता है।

संदर्भ 

हाल ही में लद्दाख में विरोध प्रदर्शन तेज हो गए हैं, प्रदर्शनकारी पूर्ण राज्य का दर्जा और संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की माँग कर रहे हैं।

  • जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने युवाओं से पाँच वर्ष से चल रहे स्वायत्तता के आंदोलन में शांति बनाए रखने की अपील करने के बाद अपना 15 दिन का अनशन समाप्त कर दिया।

मामले का पृष्ठभूमि

  • वर्ष 2019 का पुनर्गठन: अनुच्छेद-370 को समाप्त करने के बाद, जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम ने पूर्ववर्ती राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया – जम्मू-कश्मीर (विधानसभा सहित) और लद्दाख (विधानसभा रहित)।
  • प्रारंभिक प्रतिक्रिया: जम्मू-कश्मीर के विपरीत, जहाँ अशांति देखी गई, लद्दाख ने प्रारंभ में केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा प्राप्त करने का स्वागत किया तथा जम्मू-कश्मीर से प्रत्यक्ष प्रतिनिधित्व एवं अधिक स्वायत्तता की उम्मीद की।

लद्दाख विरोध की मुख्य माँगें

  • राज्य का दर्जा: लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देकर विधायी शक्तियाँ बहाल करना और स्व-शासन सुनिश्चित करना।
  • छठी अनुसूची: जनजातीय पहचान और अधिकारों की रक्षा के लिए छठी अनुसूची में शामिल करना।
    • लद्दाख की 90% से अधिक आबादी अनुसूचित जनजाति से संबंधित है।

रोजगार: बढ़ती बेरोजगारी से निपटने के लिए एक अलग लोक सेवा आयोग की स्थापना की माँग।

  • प्रतिनिधित्व: वर्तमान में लद्दाख में लोकसभा की केवल 1 सीट है।
    • केंद्र में अपनी बात मजबूती से रखने के लिए दो लोकसभा सीटें (लेह और कारगिल अलग-अलग) और एक राज्यसभा सीट की माँग।

प्रदर्शन के मुख्य कारक

  • स्वायत्तता का ह्रास: पहाड़ी विकास परिषदों की स्वायत्तता में कमी, प्रत्यक्ष केंद्रीय प्रशासन के तहत निर्णय लेने की शक्तियों में कटौती कर दी गई।
    • प्रदर्शनकारियों का तर्क है कि मौजूदा पहाड़ी विकास परिषदें उपराज्यपाल के अधीन हैं और उनमें वास्तविक स्वायत्तता का अभाव है।
  • पर्यावरणीय दबाव: पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील घाटियों में अंधाधुंध खनन और औद्योगीकरण का डर।
  • सीमा सुरक्षा: वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीनी उपस्थिति और पश्मीना चरवाहों के लिए चरागाह भूमि तक सीमित पहुँच होना।
  • विकेंद्रीकरण का अभाव: सीधे केंद्र सरकार के प्रशासन के तहत विधानमंडल के बिना केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा, शासन में स्थानीय भागीदारी को कम करता है।
  • रोजगार की कमी: जम्मू-कश्मीर के भर्ती बोर्ड से अलग होने के बाद रोजगार के अवसरों की कमी।
    • एक सरकारी सर्वेक्षण के अनुसार, लद्दाख में 26.5% स्नातक बेरोजगार हैं, जो अंडमान और निकोबार (33%) के बाद पूरे भारत में दूसरा सबसे अधिक प्रतिशत है।

छठी अनुसूची के बारे में: 

छठी अनुसूची (अनुच्छेद 244) स्वायत्त जिला परिषदों (ADC) को भूमि, वन, कृषि, जल, स्वास्थ्य और स्थानीय पुलिस जैसे विषयों पर कानून बनाने का अधिकार देती है।

छठी अनुसूची के प्रावधान

  • अनुच्छेद-244(2): यह असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के आदिवासी क्षेत्रों के प्रशासन पर लागू होता है।
  • स्वायत्त जिले और स्वायत्त क्षेत्र
    • चार राज्यों के आदिवासी क्षेत्र स्वायत्त जिलों के रूप में प्रशासित होते हैं।
    • यदि किसी जिले में कई अनुसूचित जनजाति समुदाय रहते हैं, तो राज्यपाल उसे स्वायत्त क्षेत्रों में विभाजित कर सकते हैं।
    • राज्यपाल के पास जिलों का पुनर्गठन करने, सीमाओं में बदलाव करने या उनका नाम बदलने का अधिकार है।
  • परिषदों का गठन
    • जिला परिषद: प्रत्येक स्वायत्त जिले के लिए एक, अधिकतम 30 सदस्य (गवर्नर द्वारा नामित अधिकतम 4 सदस्य, बाकी वयस्क मताधिकार द्वारा चुने गए)।
    • क्षेत्रीय परिषद: प्रत्येक स्वायत्त क्षेत्र के लिए अलग परिषद।
  • परिषद की विधायी शक्तियाँ
    • भूमि, वन प्रबंधन (सुरक्षित वन क्षेत्र को छोड़कर), वसीयत और स्थानीय व्यापार नियमों जैसे विषयों पर कानून बना सकती है।
    • जनजातीय क्षेत्रों में गैर-जनजातीय लोगों द्वारा धन उधार देने या व्यापार करने को नियंत्रित करने वाले कानून।
    • सभी कानूनों को राज्यपाल की सहमति की आवश्यकता होती है।
  • राजस्व और कर
    • परिषदें भूमि राजस्व का आकलन और संग्रह कर सकती हैं और व्यवसाय, व्यापार, पशु, वाहन आदि पर कर लगा सकती हैं।
    • वे अपने अधिकार क्षेत्र में खनिज उत्खनन के लिए लाइसेंस या लीज जारी करने का अधिकार रखती हैं।
  • न्याय प्रशासन
    • परिषदें केवल अनुसूचित जनजाति के सदस्यों से संबंधित विवादों के लिए ग्राम और जिला परिषद न्यायालय स्थापित कर सकती हैं।
    • राज्यपाल द्वारा निर्दिष्ट मामलों पर उच्च न्यायालयों का अधिकार क्षेत्र बना रहता है।
    • परिषद न्यायालय मृत्युदंड या पाँच वर्ष से अधिक की सजा वाले मामलों की सुनवाई नहीं कर सकते हैं।
  • विकास संबंधी शक्तियाँ: परिषदें प्राथमिक स्कूल, डिस्पेंसरी, बाजार, पशुपालकों के लिए तालाब, मत्स्यपालन, सड़कें, परिवहन और जलमार्ग स्थापित या प्रबंधित कर सकती हैं।
  • कानूनों का लागू होना: संसद या राज्य विधानमंडल के कानून स्वायत्त जिलों/क्षेत्रों में सीधे लागू नहीं होते या उनमें संशोधन/अपवाद के साथ लागू होते हैं।
  • राज्यपाल की शक्तियाँ: स्वायत्त जिलों या क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित मुद्दों की जाँच के लिए आयोग नियुक्त कर सकते हैं।

व्यापक निहितार्थ

  • संघवाद और क्षेत्रीय आकांक्षाएँ: यह सामरिक सुरक्षा की आवश्यकताओं और स्वायत्तता के लोकतांत्रिक माँगों के बीच संतुलन बनाए रखने की चुनौती पर प्रकाश डालता है।
  • लेह और कारगिल की एकता: लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) के माध्यम से बौद्ध-मुस्लिम एकता का दुर्लभ उदाहरण, जो माँगों की गंभीरता को दर्शाता है।
  • आंतरिक सुरक्षा: शांतिपूर्ण आंदोलन का हिंसक रूप लेना एक सामरिक सीमा क्षेत्र में अस्थिरता का खतरा उत्पन्न कर सकता है।

सरकार का जवाब

  • राज्य का दर्जा: केंद्र सरकार का कहना है कि लद्दाख को पहले ही केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा मिल चुका है, जो उनकी पुरानी माँग थी।
  • छठी अनुसूची: सरकार हिल डेवलपमेंट काउंसिल के तहत मौजूदा सुरक्षा उपायों की बात करती है, जबकि प्रदर्शनकारी इसे पर्याप्त नहीं मानते हैं।
  • रणनीतिक चिंताएँ
    • चीन के साथ विवादित LAC पर लद्दाख की भौगोलिक स्थिति के कारण केंद्र सरकार पूर्ण रूप से शक्तियाँ सौंपने से बच रही है। 
    • राज्य का दर्जा मिलने से सैनिकों की आवाजाही, बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं और सीमा सुरक्षा में मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

आगे की राह

  • पहाड़ी विकास परिषद की शक्तियों में विस्तार: लेह और कारगिल पहाड़ी विकास परिषद  को अधिक विधायी और वित्तीय स्वायत्तता देकर उन्हें मजबूत करना।
  • रोजगार और भूमि की सुरक्षा: जनजातीय लोगों की आजीविका की सुरक्षा और भूमि पर कब्जा रोकने के लिए विशेष आरक्षण और कानूनी सुरक्षा लागू करना।
  • स्वायत्तता में धीरे-धीरे वृद्धि: राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंताओं और स्थानीय आकांक्षाओं के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए, पूर्ण राज्य का दर्जा न देकर, दिल्ली मॉडल की तरह, केंद्रशासित प्रदेश के बेहतर दर्जे के मॉडल पर विचार किया जा सकता है।
  • संवाद और विश्वास-निर्माण: लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) के साथ व्यवस्थित बातचीत पुनः प्रारंभ करना, ताकि लेह और कारगिल दोनों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो।
  • लंबे समय का समझौता: केंद्र रणनीतिक कारणों से लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश के रूप में बरकरार रख सकता है, लेकिन शासन, नौकरियों और भूमि पर रियायतें दे सकता है, जो कि राज्य का दर्जा और यथास्थिति के बीच का एक मध्य मार्ग है।

निष्कर्ष 

लद्दाख विरोध प्रदर्शन स्वायत्तता, प्रतिनिधित्व और सुरक्षा उपायों की स्थानीय आकांक्षाओं को दर्शाता है। स्थिरता बनाए रखने के लिए रचनात्मक संवाद और संस्थागत सुधार अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।

संदर्भ

हाल ही में दिल्ली और बॉम्बे उच्च न्यायालयों ने AI-जनित सामग्री, डीपफेक और व्यापारिक वस्तुओं के माध्यम से मशहूर हस्तियों की छवियों, आवाजों और व्यक्तित्व के अनधिकृत उपयोग से उनके व्यक्तित्व अधिकारों की रक्षा के लिए आदेश जारी किए हैं।

व्यक्तित्व अधिकार क्या हैं?

  • परिभाषा: व्यक्तित्व अधिकार (पर्सनैलिटी राइट्स) किसी व्यक्ति की विशिष्ट पहचान से जुड़ी विशेषताओं, जैसे- नाम, रूप-रंग, छवि, आवाज, हस्ताक्षर, स्लोगन और विशेष स्टाइल को बिना अनुमति के व्यावसायिक शोषण से सुरक्षित रखते हैं।
    • ये अधिकार स्वायत्तता और गरिमा सुनिश्चित करते हैं, जो संविधान के अनुच्छेद-21 (निजता का अधिकार और जीवन का अधिकार) में निहित है।

व्यक्तित्व अधिकारों के प्रकार

  • निजता का अधिकार: यह किसी व्यक्ति की निजी जीवन को बिना अनुमति के अनुचित दखल या जानकारी सार्वजनिक होने से बचाता है।
    • इसे आर. राजागोपाल बनाम तमिलनाडु राज्य (वर्ष 1994) मामले में मान्यता दी गई थी और जस्टिस के.एस. पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ (वर्ष 2017) मामले में इसे और विस्तृत किया गया।
      • उदाहरण: व्यक्तियों की निजी जानकारी को बिना अनुमति के सार्वजनिक होने से रोकना या आम नागरिकों के डीपफेक वीडियो बनाना।
  • प्रचार का अधिकार: यह नाम, तस्वीर या हस्ताक्षर जैसे व्यक्तिगत गुणों के व्यावसायिक उपयोग की रक्षा करता है।
    • यह एंडोर्समेंट, सामान की बिक्री या विज्ञापन के लिए बिना अनुमति के उपयोग को रोकता है।
    • उदाहरण: एम.एस. धोनी ने अपने खेल से संबंधित व्यक्तित्व की रक्षा के लिए ‘कैप्टन कूल’ ट्रेडमार्क के लिए आवेदन किया था।
      • अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान और प्रियंका चोपड़ा ने व्यापार चिन्ह अधिनियम, 1999 के तहत अपने नाम रजिस्टर करवाए हैं।

भारत में व्यक्तित्व अधिकार

  • संविधान में संरक्षण: संविधान का अनुच्छेद-21 गोपनीयता और प्रचार के अधिकार के माध्यम से व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करता है।
  • कानूनी प्रावधान
    • प्रतिलिप्यधिकार अधिनियम, 1957 (Copyright Act, 1957): इस अधिनियम की धारा 38A और धारा 38B कलाकारों को उनके प्रदर्शन पर अनन्य और नैतिक अधिकार प्रदान करते हैं।
    • व्यापार चिन्ह अधिनियम, 1999: यह व्यक्तियों, खासकर सेलिब्रिटीज को अपने नाम, हस्ताक्षर या स्लोगन को ट्रेडमार्क के रूप में रजिस्टर करने की अनुमति देता है।
    • व्यापार चिन्ह अधिनियम की धारा 27 के तहत ‘पासिंग ऑफ’: यह सद्भावना की रक्षा करता है तथा पंजीकृत चिह्नों के बिना भी अनधिकृत वाणिज्यिक शोषण को रोकता है।

व्यक्तित्व अधिकारों का न्यायिक विकास

  • आर. राजागोपाल बनाम तमिलनाडु राज्य (वर्ष 1994): सर्वोच्च न्यायालय ने पहचान पर व्यक्तिगत नियंत्रण को मान्यता दी, तथा इसे गोपनीयता के अधिकार पर आधारित बताया, साथ ही सार्वजनिक रिकॉर्ड विवरण के प्रकाशन की अनुमति भी दी।
  • अरुण जेटली बनाम नेटवर्क सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड (वर्ष 2011): दिल्ली उच्च न्यायालय के अनुसार इंटरनेट पर किसी व्यक्ति की प्रसिद्धि वास्तविकता के समान ही होती है और एक बार जब कोई व्यक्तिगत नाम विशिष्ट पहचान प्राप्त कर लेता है, तो वह संरक्षण का हकदार होता है।
  • रजनीकांत मामला (वर्ष 2015, मद्रास उच्च न्यायालय): न्यायालय ने अभिनेता के नाम, छवि और शैली के दुरुपयोग पर रोक लगाते हुए स्पष्ट किया कि यदि सेलिब्रिटी पहचान योग्य है तो धोखे के सबूत की आवश्यकता नहीं है।
  • अनिल कपूर मामला (वर्ष 2023, दिल्ली उच्च न्यायालय): दिल्ली उच्च न्यायालय ने अभिनेता के नाम, आवाज और उनके मशहूर वाक्यांश ‘झक्कास’ के बिना इजाजत प्रयोग पर रोक लगाई, लेकिन यह भी माना कि व्यंग्य, उपहास और आलोचना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का वैध हिस्सा हैं।
  • जैकी श्रॉफ मामला (वर्ष 2024, दिल्ली उच्च न्यायालय): दिल्ली उच्च न्यायालय ने ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म और AI चैटबॉट को उनकी छवि का गलत प्रयोग करने से रोका और ब्रांड इक्विटी की सुरक्षा पर जोर दिया।
  • अरिजीत सिंह मामला (वर्ष 2024, बॉम्बे उच्च न्यायालय): न्यायालय ने AI-आधारित वाइस क्लोनिंग पर रोक लगाते हुए कहा कि नाम, आवाज, समानता और व्यक्तित्व प्रचार अधिकारों के अभिन्न अंग हैं।

व्यक्तित्व अधिकार बनाम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

  • अनुच्छेद-19(1)(a): यह पैरोडी, व्यंग्य, कला, शोध, संगीत और समाचार रिपोर्टिंग के लिए रचनात्मक स्वतंत्रता की रक्षा करता है।
  • डीएम एंटरटेनमेंट बनाम बेबी गिफ्ट हाउस (वर्ष 2010, दिल्ली उच्च न्यायालय): इसने दलेर मेहंदी के प्रचार अधिकारों को मान्यता दी, लेकिन स्पष्ट किया कि कार्टून और व्यंग्य की अनुमति है।
  • डिजिटल कलेक्टिबल्स बनाम गैलेक्टस फनवेयर (वर्ष 2023, दिल्ली उच्च न्यायालय): इसने माना कि पैरोडी, व्यंग्य या शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए सार्वजनिक डोमेन में पहले से मौजूद सेलिब्रिटी की समानता का उपयोग उल्लंघन नहीं माना जाएगा।
  • न्यायिक संतुलन: न्यायालय ने लगातार इस बात पर जोर दिया है कि व्यक्तित्व अधिकारों को वैध अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर वरीयता नहीं दी जा सकती, विशेषकर व्यंग्य और कलात्मक कार्यों के संदर्भ में।

चिंताएँ

  • विखंडित संरक्षण: व्यक्तित्व अधिकारों को टुकड़ों में न्यायिक मिसालों के माध्यम से लागू किया जाता है, जिससे असंगति उत्पन्न होती है।
  • अतिक्रमण का जोखिम: व्यक्तित्व अधिकारों की व्यापक व्याख्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को अनुचित रूप से बाधित कर सकती है और रचनात्मक अभिव्यक्ति पर अनुचित सीमाएँ लगा सकती है।
  • लैंगिक प्रभाव: आम नागरिकों, विशेषकर महिलाओं को डीपफेक, रिवेंज पोर्नोग्राफी और छद्मवेश के माध्यम से बढ़ते खतरों का सामना करना पड़ता है, जो सेलिब्रिटी अधिकारों से परे व्यापक सुरक्षा की आवश्यकता को उजागर करता है।
  • प्रवर्तन चुनौतियाँ: न्यायालय अक्सर सरकारों को URL और प्लेटफॉर्म ब्लॉक करने का निर्देश देती हैं, लेकिन बड़े पैमाने पर निगरानी तथा प्रवर्तन कठिन बना हुआ है।

विधायी हस्तक्षेप की आवश्यकता

  • एकीकरण: प्राइवेसी और बौद्धिक संपदा (IP) कानूनों में सुरक्षा उपायों को एक साथ मिलाना और उनमें सामंजस्य स्थापित करना।
  • स्पष्टता: पैरोडी, कला और पत्रकारिता जैसे स्वीकार्य अपवादों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना।
  • उपाय: AI युग के दुरुपयोग से निपटने के लिए त्वरित, कुशल तंत्र सुनिश्चित करना।
  • सभी को शामिल करना: केवल सेलिब्रिटी ही नहीं, बल्कि सभी व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान करना।

संदर्भ

हाल ही में केंद्रीय नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री ने राष्ट्रीय सौर ऊर्जा संस्थान (National Institute of Solar Energy- NISE), गुरुग्राम में सौर पीवी क्षमता आकलन रिपोर्ट 2025 (Solar PV Potential Assessment Report 2025) और प्रथम सौर विनिर्माण प्रशिक्षण कार्यक्रम (Solar Manufacturing Training Programme) का शुभारंभ किया।

  • यह वैज्ञानिक और स्थानिक रूप से हल किया गया अध्ययन वर्ष 2014 के 749 GWp के अनुमान पर आधारित है।

संबंधित तथ्य

  • ये पहल भारत की पंचामृत प्रतिबद्धताओं (Panchamrit Commitments) (COP26) के अनुरूप, सेवा पर्व (Seva Parv) के अंतर्गत शुरू की गई हैं।
  • ये पहल निम्नलिखित की दिशा में एक निर्णायक कदम हैं:-
    • वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता प्राप्त करना।
    • वर्ष 2047 तक ऊर्जा स्वतंत्रता सुनिश्चित करना।
    • वर्ष 2070 तक भारत की नेट-जीरो प्रतिबद्धता को पूरा करना।

पंचामृत प्रतिबद्धताएँ (Panchamrit Commitments) (COP26, ग्लासगो – नवंबर 2021)

26वें संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP26) में, भारतीय प्रधानमंत्री ने विकास आवश्यकताओं और जलवायु उत्तरदायित्व के मध्य संतुलन स्थापित करने के लिए भारत की पाँच सूत्री जलवायु कार्य योजना, जिसे पंचामृत (पांच अमृत) कहा जाता है, की घोषणा की।

  • पाँच प्रतिबद्धताएँ
    • वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता।
    • वर्ष 2030 तक कुल ऊर्जा आवश्यकताओं का 50% नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त होगा।
    • वर्ष 2021-2030 के बीच कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में 1 बिलियन टन की कमी।
    • वर्ष 2030 तक अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को 45% से कम (वर्ष 2005 के स्तर से) तक कम करना।
    • वर्ष 2070 तक नेट-जीरो कार्बन उत्सर्जन प्राप्त करना।

सौर पीवी क्षमता मूल्यांकन रिपोर्ट 2025 के प्रमुख निष्कर्ष

  • व्यवहार्य क्षमता: लगभग 3,343 गीगावाट पीक (GWp) भू-स्थित सौर ऊर्जा क्षमता, जो चिह्नित बंजर भूमि के केवल 6.69% भाग का उपयोग करेगी।
    • GWp (गीगावाट-पीक) मानक परीक्षण स्थितियों (STC) के तहत सौर पीवी प्रणाली के अधिकतम विद्युत उत्पादन को संदर्भित करता है।

  • प्रयुक्त पद्धति: उच्च-रिजॉल्यूशन भू-स्थानिक मानचित्रण, परिष्कृत भूमि-उपयोग मॉडल, छायांकन विश्लेषण और बुनियादी ढाँचे की निकटता पर आधारित है।
  • भौगोलिक विस्तार: राजस्थान और गुजरात मजबूत केंद्र बने हुए हैं, लेकिन महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रदेश जैसे राज्य भी उच्च सौर क्षमता प्रदान करते हैं।
  • नीतिगत उपयोग: स्थल पहचान, बुनियादी ढाँचा नियोजन और निजी क्षेत्र की भागीदारी के लिए एक निवेश-तैयार ढाँचा प्रदान करता है।

सौर फोटोवोल्टिक क्षमता के बारे में

  • सौर पीवी (फोटोवोल्टिक) क्षमता, किसी दिए गए क्षेत्र या देश में सौर विकिरण उपलब्धता, भूमि उपयोग और तकनीकी व्यवहार्यता को ध्यान में रखते हुए, सौर फोटोवोल्टिक तकनीक का उपयोग करके उत्पन्न की जा सकने वाली विद्युत की अनुमानित क्षमता को संदर्भित करती है।
  • प्रमुख घटक
    • सौर संसाधन उपलब्धता: सौर विकिरण (kWh/m²/दिन) के रूप में मापा जाता है।
      • भारत का औसत: देश के अधिकांश भागों में 3.5–5.5 kWh/m²/दिन।
    • भूमि उपलब्धता और उपयुक्तता: बंजर भूमि, रेगिस्तान और गैर-कृषि भूमि पर अक्सर विचार किया जाता है।
      • इसमें वन, उपजाऊ कृषि भूमि, जल निकाय आदि शामिल नहीं हैं।
    • तकनीकी और अवसंरचना कारक: छाया, ढलान, सबस्टेशनों, सड़कों, ट्रांसमिशन लाइनों से निकटता।
      • पैनलों और मॉड्यूल की दक्षता।
    • नीति और निवेश ढाँचा: ग्रिड एकीकरण, निजी निवेश और परियोजना स्थल निर्धारण की योजना बनाने में मदद करता है।

प्रथम सौर विनिर्माण प्रशिक्षण कार्यक्रम (NISE, गुरुग्राम) के बारे में

  • व्यावहारिक प्रशिक्षण: यह कार्यक्रम PV सेल और मॉड्यूल निर्माण में व्यावहारिक अनुभव प्रदान करता है, जिसमें उन्नत प्रक्रियाएँ, गुणवत्ता नियंत्रण मानक और वैश्विक सर्वोत्तम अभ्यास शामिल हैं।
  • कुशल कार्यबल सहायता: यह भारत के 100+ गीगावाट मॉड्यूल क्षमता और 15+ गीगावाट सेल क्षमता के बढ़ते विनिर्माण आधार को मजबूत करता है, जिससे घरेलू उपयोग और निर्यात बाजारों, दोनों के लिए प्रशिक्षित जनशक्ति की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित होती है।
  • आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा: आयातित घटकों पर निर्भरता कम करके और स्थानीय क्षमता बढ़ाकर, यह कार्यक्रम आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देता है और साथ ही भारत को सौर विनिर्माण के लिए एक वैश्विक प्रतिस्पर्द्धी केंद्र के रूप में स्थापित करता है।

‘हरित भविष्य, नेट जीरो’ केवल आकर्षक शब्द नहीं हैं, बल्कि ये भारत की आवश्यकता और प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं, जो इसे नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश और नवाचार के लिए सर्वोत्तम गंतव्य बनाते हैं।

– प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

सौर ऊर्जा के बारे में

  • सौर ऊर्जा, सूर्य से प्राप्त ऊर्जा है, जिसे तापीय या विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है।
  • प्रयुक्त तकनीक: यह या तो फोटोवोल्टिक (PV) पैनलों के माध्यम से या सौर विकिरण को संकेंद्रित करने वाले दर्पणों के माध्यम से किया जाता है। इस तकनीक को संकेंद्रित सौर ऊर्जा (Concentrating Solar Power- CSP) के रूप में जाना जाता है। 
    • पीवी सेल सौर विकिरण (सूर्य के प्रकाश) को विद्युत में परिवर्तित करते हैं।
    • संकेंद्रित सौर ऊर्जा प्रणालियाँ, विद्युत उत्पादन के लिए उच्च तापमान ऊर्जा स्रोत के रूप में संकेंद्रित सौर विकिरण का उपयोग करती हैं।
  • स्वच्छतम नवीकरणीय ऊर्जा: इसे पारंपरिक ऊर्जा संसाधनों के विकल्प के रूप में मान्यता दी गई है। यह उपलब्ध सबसे स्वच्छ और प्रचुर नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है।

भारत में सौर ऊर्जा

  • ऊर्जा परिवर्तन लक्ष्य: भारत की वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से लगभग 500 गीगावाट, जो उसकी विद्युत की आवश्यकता का लगभग आधा है, प्राप्त करने की महत्त्वाकांक्षी योजना है।
    • उस वर्ष तक सौर ऊर्जा से कम-से-कम 280 गीगावाट या वर्ष 2030 तक प्रतिवर्ष कम-से-कम 40 गीगावाट सौर क्षमता का सृजन किया जाएगा।

  • भारत में सौर ऊर्जा: भारत के भू-क्षेत्र में प्रति वर्ष लगभग 5,000 ट्रिलियन kWh ऊर्जा उत्सर्जित होती है, जिसके अधिकांश भाग को प्रतिदिन 4 से 7 kWh m-2 ऊर्जा प्राप्त होती है।
  • स्थापित सौर क्षमता में घातांकीय वृद्धि (2014-2025): देश की वर्तमान नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता, जो लगभग 180 गीगावाट है, में सौर ऊर्जा का एक बड़ा हिस्सा है।
    • सौर ऊर्जा क्षमता 39 गुना से भी अधिक बढ़ गई है, वर्ष 2014 में 2.82 गीगावाट से बढ़कर वर्ष 2025 में 110.9 गीगावाट हो गई है, जिसमें अकेले वर्ष 2024-25 में 23.83 गीगावाट की रिकॉर्ड वृद्धि शामिल है।
  • विनिर्माण में तेजी (वर्ष 2014 से मार्च 2025): सौर पीवी मॉड्यूल क्षमता 2.3 गीगावाट से बढ़कर 88 गीगावाट हो गई, जो 38 गुना वृद्धि है।
    • सौर पीवी सेल क्षमता 1.2 गीगावाट से बढ़कर 25 गीगावाट हो गई, जो 21 गुना वृद्धि है।

भारत में सौर ऊर्जा के पीछे प्रेरक कारक

  • अनुकूल भूगोल: भारत वर्ष भर सूर्य की प्रचुरता के कारण सौर ऊर्जा उत्पादन के लिए आदर्श है।
    • भारत का औसत सौर विकिरण लगभग 3.5-5.5 kWh/m²/दिन है, जबकि उच्च क्षमता वाले क्षेत्रों में यह 7 kWh/m²/दिन तक पहुँच जाता है।

  • सौर ऊर्जा शुल्कों में गिरावट: वर्ष 2015 से सौर ऊर्जा शुल्कों में लगभग 6 रुपये/kWh से लगभग 2.5 रुपये प्रति किलोवाट घंटा (kWh) तक की तीव्र गिरावट ने सौर शुल्कों को पारंपरिक तापीय ऊर्जा के साथ लागत-प्रतिस्पर्द्धी बना दिया है।
    • आदर्श रूप से, प्रतिस्पर्द्धी सौर शुल्कों की उपलब्धता सौर ऊर्जा को अधिक अपनाने को प्रोत्साहित करेगी, जिससे राज्यों में स्वच्छ ऊर्जा निवेश निर्णयों पर प्रभाव पड़ेगा।
  • सौर क्षमता: भारत में लगभग 748.99 गीगावाट सौर ऊर्जा क्षमता का अनुमान है, जो दर्शाता है कि सौर ऊर्जा की पूरी क्षमता का अभी तक दोहन नहीं किया गया है।
  • घटती तकनीकी लागत: नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों की लागत में गिरावट आई है, जिससे व्यवसायों और व्यक्तिगत उपभोक्ताओं, दोनों के लिए यह किफायती हो गई है।
  • बढ़ती ऊर्जा माँग: भारत की मजबूत आर्थिक वृद्धि ऊर्जा की बढ़ती माँग को दर्शाती है। यह माँग नवीकरणीय ऊर्जा निवेश के लिए एक बड़ा बाजार प्रदान करती है, जिससे कंपनियाँ इस क्षेत्र में कदम रखने के लिए प्रोत्साहित होती हैं।
  • रोजगार सृजन: जैसे-जैसे इस क्षेत्र का विस्तार होगा, अधिक रोजगार सृजित होंगे, जिससे व्यक्तियों को सतत् ऊर्जा परिवर्तन में योगदान करने का अवसर मिलेगा।

भारत की वर्तमान स्वच्छ ऊर्जा उपलब्धियाँ

  • स्थापित क्षमता: भारत पहले ही 250 गीगावाट गैर-जीवाश्म क्षमता को पार कर चुका है और गैर-जीवाश्म स्रोतों से विद्युत उत्पादन में 50% हिस्सेदारी हासिल कर चुका है, जो वर्ष 2030 के राष्ट्रीय विकास परिषद (NDC) के लक्ष्य से पाँच साल पहले ही हासिल किया जा सकता है।
    • पवन ऊर्जा: 51.6 गीगावाट स्थापित, वैश्विक स्तर पर चौथे स्थान पर; 1164 गीगावाट की क्षमता।
    • जल विद्युत: 48 गीगावाट स्थापित; 133 गीगावाट बड़ी जल विद्युत + 21 गीगावाट छोटी जल विद्युत की क्षमता।
    • जैव ऊर्जा: 11.6 गीगावाट क्षमता; राष्ट्रीय जैव ऊर्जा कार्यक्रम (₹1715 करोड़) अपशिष्ट से ऊर्जा, बायोमास और बायोगैस संयंत्रों को समर्थन देता है।
    • हरित हाइड्रोजन: राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन (2023) का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 5 मिलियन मीट्रिक टन वार्षिक उत्पादन है, जिससे ₹1 लाख करोड़ के जीवाश्म आयात की बचत होगी और 6 लाख रोजगार सृजित होंगे।
    • परमाणु ऊर्जा: क्षमता बढ़ाकर 8.78 गीगावाट कर दी गई; कुडनकुलम, काकरापार, राजस्थान में नए रिएक्टर स्वच्छ बेस-लोड विद्युत सुनिश्चित करते हैं।

  • विनिर्माण क्षमता: देश ने 20+ गीगावाट पवन टरबाइन और 100+ गीगावाट सोलर पीवी मॉड्यूल की वार्षिक विनिर्माण क्षमता का निर्माण किया है, जिससे यह शीर्ष नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादकों में शामिल हो गया है।
  • एकीकृत पारिस्थितिकी तंत्र: भारत ने COP26 की पंचामृत प्रतिबद्धताओं के अनुरूप नवीकरणीय ऊर्जा एकीकरण के लिए एक मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र विकसित किया है और दीर्घकालिक स्थिरता के लिए मंच तैयार किया है।

भारत के लिए सौर ऊर्जा का महत्त्व

  • प्रचुर सौर क्षमता: उच्च विकिरण (3.5-5.5 kWh/m²/दिन) वाले उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में स्थित, भारत में 748 गीगावाट की तकनीकी सौर क्षमता है, जो राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में फैली हुई है।
  • ऊर्जा सुरक्षा: सौर ऊर्जा आयातित जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करती है, कोयले की माँग में कटौती करती है और दीर्घकालिक ऊर्जा स्वतंत्रता सुनिश्चित करती है। यह परिवर्तन विदेशी मुद्रा व्यय को कम करते हुए आत्मनिर्भर भारत को मजबूत करता है।
  • जलवायु प्रतिबद्धताएँ: पेरिस समझौते और पंचामृत (COP26) के अनुरूप, वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म क्षमता और वर्ष 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन प्राप्त करने के भारत के संकल्प के लिए सौर ऊर्जा का विस्तार महत्त्वपूर्ण है।
  • सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन: रूफटॉप और विकेंद्रीकृत सौर मॉडल परिवारों, किसानों और आदिवासी समुदायों को सशक्त बनाते हैं। पल्ली गाँव (जम्मू और कश्मीर) भारत की पहली कार्बन-तटस्थ पंचायत बन गया और मोढेरा (गुजरात) 24×7 नवीकरणीय ऊर्जा आपूर्ति वाला भारत का पहला सूर्यग्राम बनकर उभरा।
  • वैश्विक नेतृत्व: भारत सौर ऊर्जा में दुनिया में तीसरे और समग्र नवीकरणीय क्षमता में चौथे स्थान पर है और वर्ष 2025 तक 1,08,494 गीगावाट घंटा सौर ऊर्जा उत्पादन करके जापान को पीछे छोड़ देगा।
  • औद्योगिक और रोजगार वृद्धि: मॉड्यूल के लिए घरेलू सौर विनिर्माण क्षमता 2.3 गीगावाट (2014) से बढ़कर 88 गीगावाट (2025) हो गई और सोलर सेल क्षमता 1.2 गीगावाट से बढ़कर 25 गीगावाट हो गई, जिससे स्टार्ट-अप्स और MSME को समर्थन देते हुए लाखों हरित रोजगार सृजित हुए।

सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए भारत की पहल

  • प्रधानमंत्री सूर्य घर: मुफ्त बिजली योजना: 1 करोड़ घरों को लक्षित करते हुए, रूफटॉप सोलर के माध्यम से प्रति माह 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली प्रदान की जाती है।
    • प्रति घर ₹30,000-78,000 की सब्सिडी सहायता सामर्थ्य सुनिश्चित करती है।
  • रूफटॉप सोलर कार्यक्रम: केंद्रीय वित्तीय सहायता (CFA) द्वारा समर्थित, आवासीय क्षेत्र में वर्ष 2026 तक 40 गीगावाट रूफटॉप क्षमता प्राप्त करने का लक्ष्य निर्धारित करता है।
  • सोलर दीदी विजन: एक महिला-केंद्रित पहल, जो नारी शक्ति को सौर प्रशिक्षण, उद्यमिता और सामुदायिक सशक्तीकरण के माध्यम से भारत के स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन में सबसे आगे रखती है, लैंगिक समानता को स्थिरता और आत्मनिर्भर भारत से जोड़ती है।
  • प्रधानमंत्री सूर्योदय योजना: 1 करोड़ घरों को रूफटॉप पैनल से सुसज्जित करने की योजना, जो सौर ऊर्जा के विस्तार के लिए प्रधानमंत्री सूर्य घर के पूरक के रूप में कार्य करेगी।
  • पीएम-कुसुम योजना: किसानों को डीजल पंपों के स्थान पर सौर ऊर्जा पंप लगाने, स्वतंत्र पंप लगाने और बंजर जमीन पर सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने में मदद करती है। ₹34,422 करोड़ के परिव्यय के साथ, इसका लक्ष्य 34.8 गीगावाट क्षमता हासिल करना है।
  • सौर पार्क और अल्ट्रा-मेगा परियोजनाएँ: लगभग 40 गीगावाट क्षमता वाले 53 पार्क स्वीकृत किये गए हैं; जिनके तहत 13,896 मेगावाट क्षमता स्थापित करके 26 चालू स्थिति में हैं। जिनका लक्ष्य कम लागत पर बड़े पैमाने पर स्वच्छ विद्युत उपलब्ध कराना है।
  • उच्च दक्षता वाले मॉड्यूल के लिए PLI योजना: ₹24,000 करोड़ के परिव्यय के साथ, उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना घरेलू आपूर्ति शृंखलाओं (इनगोट, वेफर, सेल, मॉड्यूल) को मजबूत करती है और आयात पर निर्भरता कम करती है।
  • प्रधानमंत्री जनमन सौर विद्युतीकरण: 1 लाख आदिवासी परिवारों को सौर ऊर्जा प्रदान करता है, 2000 सार्वजनिक संस्थानों को सौर ऊर्जा से सुसज्जित करता है और विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूहों (PVTGs) को सशक्त बनाता है।
  • फ्लोटिंग सोलर और एग्रीवोल्टेइक: 600 मेगावाट ओंकारेश्वर फ्लोटिंग सोलर पार्क (मध्य प्रदेश) और एग्रीवोल्टेइक (कृषि + सौर पैनल) जैसी परियोजनाएँ भूमि उपयोग को अनुकूलित करती हैं तथा किसानों की आय को बढ़ावा देती हैं।
  • अंतरराष्ट्रीय नेतृत्व – ISA और OSOWOG
    • अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA): भारत और फ्राँस द्वारा शुरू किया गया (2015); अब 122 हस्ताक्षरकर्ता हैं। वर्ष 2030 तक 1 ट्रिलियन डॉलर के सौर निवेश को जुटाता है।
    • एक सूर्य, एक विश्व, एक ग्रिड (OSOWOG): “सूर्य कभी अस्त नहीं होता” के विचार पर आधारित, वैश्विक सौर ग्रिडों को जोड़ने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
  • वैश्विक सौर सुविधा: ISA के अंतर्गत एक भुगतान गारंटी कोष, जो वंचित क्षेत्रों, विशेष रूप से अफ्रीका में निवेश को प्रोत्साहित करेगा।
  • नीति एवं नियामक सहायता: सौर क्षेत्र में 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति।
    • जून 2025 तक चालू होने वाली परियोजनाओं के लिए अंतर-राज्यीय पारेषण प्रणाली (Inter-State Transmission System- ISTS) छूट।
    • सौर पीवी प्रणालियों/उपकरणों के लिए मानक अधिसूचना।
    • घरेलू उपयोग को बढ़ावा देने के लिए आयातित सौर सेल/मॉड्यूल पर मूल सीमा शुल्क (Basic Customs Duty- BCD)।

भारत में सौर ऊर्जा उत्पादन की चुनौतियाँ

  • डिस्कॉम का कमजोर प्रदर्शन: ऋणग्रस्त वितरण कंपनियाँ (डिस्कॉम) रूफटॉप सौर ऊर्जा कनेक्टिविटी की सुविधा प्रदान करने या अतिरिक्त विद्युत खरीदने में अनिच्छुक हैं। उनकी वित्तीय तंगी और कमजोर साझेदारियाँ इसे अपनाने में बाधा डालती हैं तथा ग्रिड एकीकरण में भी धीमी गति से काम करती हैं।
  • लक्ष्यों में धीमी प्रगति: वर्ष 2022 तक 40 गीगावाट रूफटॉप सौर ऊर्जा के मूल लक्ष्य के मुकाबले, वर्ष 2023 तक केवल 11 गीगावाट स्थापित किए गए (ज्यादातर वाणिज्यिक/औद्योगिक क्षेत्रों में)। अब लक्ष्य को संशोधित कर वर्ष 2026 तक 100 गीगावाट कर दिया गया है, जिसमें 40 गीगावाट आवासीय क्षेत्र से होगा, फिर भी प्रगति धीमी बनी हुई है।
  • RPO का अनुपालन न करना: 30 में से लगभग 25 राज्य अपने नवीकरणीय ऊर्जा क्रय दायित्वों (RPO) को पूरा करने में विफल रहे हैं, जिससे नवीकरणीय ऊर्जा अपनाने में विश्वास कम हुआ है और रूफटॉप सौर परियोजनाओं की माँग कम हुई है।
    • नवीकरणीय ऊर्जा क्रय दायित्व (RPO) ऐसी व्यवस्थाएँ हैं, जो प्रत्येक राज्य में विद्युत खरीदारों, जैसे डिस्कॉम, कैप्टिव पॉवर उत्पादकों और ओपन-एक्सेस उपभोक्ताओं, को सालाना एक निश्चित न्यूनतम मात्रा में नवीकरणीय ऊर्जा खरीदने के लिए बाध्य करती हैं।
  • आयात निर्भरता और कमजोर घरेलू विनिर्माण: भारत अपने सौर सेल और मॉड्यूल का बड़ा हिस्सा, मुख्य रूप से चीन और वियतनाम से आयात करता है, जिसकी कीमत पिछले पाँच वर्षों में 11.17 बिलियन डॉलर थी। भारत की घरेलू क्षमता मॉड्यूल असेंबलिंग तक ही सीमित है, और पूरी आपूर्ति शृंखला में इसकी उपस्थिति बहुत कम है।
  • ग्रिड सीमाएँ और रुकावट: पारंपरिक विद्युत के लिए डिजाइन किया गया भारत का पुराना ग्रिड बुनियादी ढाँचा, परिवर्तनशील रूफटॉप उत्पादन को पूरी तरह से अवशोषित नहीं कर सकता। ट्रांसमिशन अंतराल (जैसे- लेह सौर परियोजना का रद्द होना) और नवीकरणीय रुकावट ग्रिड अस्थिरता, ऊर्जा की बर्बादी और बैकअप स्रोतों पर निर्भरता का कारण बनते हैं।
  • पर्यावरण और मौसम संबंधी चुनौतियाँ: उत्सर्जन और धूल से बढ़ते एरोसोल भार सौर क्षमता को कम कर रहे हैं, जैसा कि IMD के मौसम जर्नल में बताया गया है। विभिन्न क्षेत्रों में चमकदार धूप के घंटों (Bright Sunshine Hours-BHS) में परिवर्तनशीलता, प्रतिकूल मौसम की घटनाओं के साथ, निरंतर उत्पादन को और बाधित करती है।
  • बढ़ता सौर अपशिष्ट भार: भारत के वर्तमान सौर प्रतिष्ठानों से पहले ही 100 किलोटन अपशिष्ट उत्पन्न हो चुका है, जिसके वर्ष 2030 तक बढ़कर 340 किलोटन हो जाने का अनुमान है, जिससे तत्काल पुनर्चक्रण और अपशिष्ट प्रबंधन रणनीतियों की आवश्यकता है।

आगे की राह

  • सौर अपशिष्ट प्रबंधन एवं पुनर्चक्रण: भविष्य में अपशिष्ट का अनुमान लगाने के लिए स्थापित सौर क्षमता का एक मजबूत डेटाबेस बनाए रखना आवश्यक है।
    • नीति निर्माताओं को पुनर्चक्रणकर्ताओं को प्रोत्साहित करना चाहिए, सौर पुनर्चक्रण बाजार बनाना चाहिए और पैनलों के जीवन चक्र के अंत में उनके स्थायी निपटान को सुनिश्चित करना चाहिए।
  • ग्रिड आधुनिकीकरण एवं भंडारण एकीकरण: भारत को नवीकरणीय ऊर्जा की अनियमितता से निपटने के लिए अपने ग्रिड को एक स्मार्ट, लचीली और सुदृढ़ प्रणाली में बदलना होगा।
    • बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणालियों (Battery Energy Storage Systems- BESS) और पंप्ड हाइड्रो स्टोरेज (Pumped Hydro Storage- PHS) के साथ परियोजनाओं को जोड़ने से ग्रिड स्थिरता और विश्वसनीय विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित होगी।
  • क्षमता को RPO लक्ष्यों के साथ संरेखित करना: नए नवीकरणीय खरीद दायित्व (Renewable Purchase Obligation- RPO) ढाँचे (वर्ष 2024 से आगे) के साथ, सौर प्रतिष्ठानों को राष्ट्रीय लक्ष्यों के साथ संरेखित करना होगा।
    • अनुपालन बनाए रखने के लिए किसी भी कमी को नवीकरणीय ऊर्जा प्रमाण-पत्र (Renewable Energy Certificate- REC) तंत्र के माध्यम से पूरा किया जाना चाहिए।
  • संरचनात्मक विद्युत क्षेत्र सुधार: डिस्कॉम की खराब वित्तीय स्थिति एक प्रमुख बाधा बनी हुई है।
    • तत्काल सुधारों में प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण, अकुशल उपयोगिताओं का निजीकरण, कठोर RPO अनुपालन और निवेशकों का विश्वास बढ़ाने के लिए अनुबंध पर पुनः बातचीत के विरुद्ध सुरक्षा शामिल है।
  • अनुसंधान, विकास और स्वदेशी प्रौद्योगिकी: आयात पर निर्भरता कम करने और आत्मनिर्भर भारत को मजबूत करने के लिए घरेलू सौर अनुसंधान एवं विकास, हाइब्रिड ऊर्जा प्रणालियों और उन्नत भंडारण प्रौद्योगिकियों में अधिक निवेश आवश्यक है।
  • कौशल और कार्यबल विकास: NISE के नेतृत्व वाले प्रशिक्षण कार्यक्रमों का देश भर में विस्तार और अकुशल तथा ग्रामीण आबादी पर ध्यान केंद्रित करने से भविष्य के लिए तैयार कार्यबल का निर्माण हो सकता है एवं नवीकरणीय ऊर्जा परिवर्तनों से समान लाभ सुनिश्चित हो सकता है।
  • वित्तपोषण और वैश्विक सहयोग: हरित वित्त अंतर को पाटने के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP), मिश्रित वित्त और रियायती निधि की आवश्यकता है।
    • भारत को तैनाती में तेजी लाने के लिए ISA और COP प्लेटफॉर्मों के माध्यम से जलवायु वित्त, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और साझेदारी का भी लाभ उठाना चाहिए।

निष्कर्ष

सौर ऊर्जा सतत् विकास लक्ष्य 7 (सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा) और भारत के सतत् विकास, समता और न्याय के संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप है। सौर ऊर्जा को अपनाकर, भारत समावेशी विकास, पर्यावरण संरक्षण और अंतर-पीढ़ी समता सुनिश्चित कर सकता है।

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