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Sep 27 2025

संदर्भ

हाल ही में भारत और ऑस्ट्रेलिया ने जैविक उत्पादों के लिए एक पारस्परिक मान्यता समझौता (Mutual Recognition Arrangement [MRA]) पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके तहत दोनों देश एक-दूसरे के जैविक प्रमाण-पत्र को मान्यता देंगे।

संबंधित तथ्य

  • समझौते से नियमों का पालन करना आसान होने, नियामक बाधाओं में कमी आने और भारतीय निर्यातकों को ऑस्ट्रेलिया के उच्च-मूल्य आधारित बाजार तक आसान पहुँच प्राप्त होने की उम्मीद है।
  • यह समझौता भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते (Economic Cooperation and Trade Agreement-ECTA) के अनुरूप है और इससे दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी मजबूत होगी।

MRA की मुख्य विशेषताएँ

  • कवरेज: MRA दोनों देशों में उगाए और प्रसंस्कृत किए गए जैविक उत्पादों को शामिल करता है, जिनमें ये भी शामिल हैं:
    • अप्रसंस्कृत वृक्ष उत्पाद (समुद्री शैवाल, जलीय पौधे, ग्रीनहाउस फसलें शामिल नहीं)।
    • प्रमाणित जैविक सामग्री वाले प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ (भारत या ऑस्ट्रेलिया में प्रसंस्कृत की गई तीसरे देश की सामग्री सहित)।
    • वाइन।
  • क्रियान्वयन एजेंसियाँ
    • भारत: कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (Agricultural and Processed Food Products Export Development Authority [APEDA]), वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय।
    • ऑस्ट्रेलिया: कृषि, मत्स्य और वानिकी विभाग (Department of Agriculture, Fisheries and Forestry -DAFF)।

भारत के लिए समझौते का महत्त्व

  • व्यापार को बढ़ावा
    • भारत का ऑस्ट्रेलिया को जैविक निर्यात वित्त वर्ष 2024-25 में 8.96 मिलियन अमेरिकी डॉलर का था, जिसमें 2,781.58 मिलियन टन उत्पाद शामिल थे। इसमें मुख्य रूप से ‘सिलियम हस्क’, नारियल का दूध और चावल शामिल थे।
    • MRA से अनाज, चाय, मसाले, पेय और शराब के निर्यात में बढोतरी होने की उम्मीद है।
    • ऑस्ट्रेलिया में 53 मिलियन हेक्टेयर जैविक खेती योग्य भूमि है, जो इसे विश्व में अग्रणी बनाती है और द्विपक्षीय व्यापार के लिए बड़े अवसर प्रदान करती है।
    • प्रमाणन समानता: इससे एक-दूसरे के मानकों और प्रमाणन प्रणाली पर विश्वास  में वृद्धि होती है, जिससे परीक्षण और प्रमाणन में दोहराव कम होता है।
    • अनुपालन को सरल बनाना: इससे निर्यातकों की लागत और नियामक बाधाएँ कम होती हैं।
  • कृषक लाभ
    • जैविक उत्पादों की कीमत 30-40% अधिक होती है, जिससे किसानों की आय बढ़ती है।
    • यह सरकार के उस लक्ष्य को भी समर्थन देता है, जिसके तहत भारत को ‘विश्व का जैविक खाद्य भंडार’ बनाया जाना है।
  • यह प्रीमियम अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक आसान पहुँच प्रदान करता है।

भारत का जैविक क्षेत्र

  • उत्पादन और क्षेत्र
    • जैविक कृषि के लिए उपलब्ध भूमि के मामले में भारत, विश्व में दूसरे स्थान पर है और उत्पादकों की संख्या में यह पहले स्थान पर है।
    • वित्त वर्ष 2024 में, भारत ने तेल-बीज, अनाज, दालें, मसाले, फल, सब्जियाँ, चाय, कॉफी, कपास और औषधीय पौधों जैसी श्रेणियों में 3.6 मिलियन टन प्रमाणित जैविक उत्पाद बनाए।
    • कुल जैविक क्षेत्र: 7.3 मिलियन हेक्टेयर (4.5 मिलियन हेक्टेयर कृषि क्षेत्र + 2.8 मिलियन हेक्टेयर वन क्षेत्र)।
  • प्रमुख उत्पादक राज्य: महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, गुजरात, ओडिशा और सिक्किम।
  • निर्यात
    • भारत ने वित्त वर्ष 2024 में 2.61 लाख टन जैविक खाद्य पदार्थ निर्यात किए, जिससे 494.8 मिलियन डॉलर की कमाई हुई।
    • प्रमुख बाजार: अमेरिका, यूरोपीय संघ, कनाडा, ब्रिटेन, श्रीलंका, स्विट्जरलैंड, वियतनाम, ऑस्ट्रेलिया, थाईलैंड, न्यूजीलैंड, जापान, दक्षिण कोरिया।

भारत में जैविक प्रमाणीकरण प्रक्रिया

  • यह वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत ‘राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम’ (National Programme for Organic Production-NPOP) द्वारा नियंत्रित है। यह सुनिश्चित करता है कि जैविक उत्पाद, निर्धारित मानकों को पूरा करते हों, ताकि उनकी शुद्धता और वैश्विक स्तर पर बाजार में स्वीकार्यता बनी रहे।

प्रमाणन प्रक्रिया के मुख्य चरण

  • लागू होने का तरीका: जैविक उत्पादों से जुड़े किसान, प्रोसेसर, व्यापारी और एक्सपोर्टर को भारत में और निर्यात के लिए अपने उत्पादों को कानूनी रूप से जैविक के तौर पर बेचने हेतु NPOP के तहत सर्टिफिकेशन लेना होगा।
  • सर्टिफिकेशन संस्थाएँ: यह ‘एग्रीकल्चरल एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी’ (APEDA) द्वारा अधिकृत मान्यता प्राप्त ‘सर्टिफिकेशन एजेंसियों’ द्वारा जारी किया जाता है, जो एक नियामक संस्था के रूप में काम करती है।
  • निरीक्षण और परीक्षण: सर्टिफिकेशन एजेंसियाँ ​​NPOP की आवश्यकताओं के अनुसार जैविक मानकों का पालन सुनिश्चित करने के लिए कृषि के तरीकों, प्रोसेसिंग सुविधाओं और भंडारण का विस्तृत ऑन-साइट निरीक्षण और ऑडिट करती हैं।
  • मृदा और उत्पाद परीक्षण: खेत और उत्पाद के नमूनों का कीटनाशक अवशेष, प्रदूषक और जैविक मानदंडों के पालन के लिए परीक्षण किया जाता है।
  • जैविक खेती में रूपांतरण अवधि: जैविक सर्टिफिकेशन के लिए भूमि को एक रूपांतरण अवधि पूरी करनी होती है, जो आमतौर पर तीन वर्ष की होती है। इस अवधि के दौरान किसी भी प्रतिबंधित पदार्थ का उपयोग नहीं किया जाता और जैविक तरीकों का सख्ती से पालन किया जाता है।
  • सर्टिफिकेशन की वैधता: एक बार सर्टिफाइड होने के बाद, जैविक उत्पाद और प्रक्रियाएँ “इंडिया जैविक” लोगो का उपयोग कर सकती हैं। सर्टिफिकेशन आमतौर पर एक वर्ष के लिए वैध होते हैं और नवीनीकरण के लिए वार्षिक ऑडिट की आवश्यकता होती है।
  • अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन: NPOP प्रमाणन अंतरराष्ट्रीय जैविक मानकों के अनुरूप है, जिससे भारत-ऑस्ट्रेलिया MRA जैसे समझौतों के तहत निर्यात में सुगमता होती है।

सरकार द्वारा जैविक खेती क्षेत्र में उठाए गए कदम

  • जैविक उत्पादन के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (National Programme for Organic Production- NPOP)
    • प्रमाणन और मानक: APEDA द्वारा लागू NPOP, जैविक उत्पादन के लिए मानक निर्धारित करता है, प्रमाणन निकायों को मान्यता देता है और निर्यात स्तर पर अनुपालन सुनिश्चित करता है।
    • अंतरराष्ट्रीय मान्यता: अप्रसंस्कृत वृक्ष उत्पादों के लिए NPOP के मानकों को यूरोपीय कमीशन और स्विट्जरलैंड द्वारा मान्यता प्राप्त है, जिससे भारतीय जैविक उत्पाद आसानी से उन बाजारों में प्रवेश कर सकते हैं।
  • पारंपरिक कृषि विकास योजना (Paramparagat Krishi Vikas Yojana- PKVY)
    • क्लस्टर-आधारित दृष्टिकोण: किसानों के समूहों में जैविक खेती को बढ़ावा देता है, जिसमें लागत आपूर्ति, प्रशिक्षण, प्रमाणन, मार्केटिंग और प्रचार के लिए सहायता शामिल है।
    • वित्तीय सहायता: तीन वर्षों में प्रति हेक्टेयर ₹31,500 तक की सहायता, जिसमें से इनपुट लागत सहायता के लिए प्रति हेक्टेयर ₹15,000 सीधे बैंक खाते में ट्रांसफर किए जाते हैं (DBT)।
  • उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के लिए जैविक मूल्य शृंखला विकास मिशन (Mission Organic Value Chain Development for North Eastern Region-MOVCDNER)
    • उत्तर-पूर्वी क्षेत्र पर ध्यान: उत्तर-पूर्वी राज्यों के लिए विशेष योजना, उत्पादन, प्रसंस्करण, प्रमाणन, विपणन जैसी सभी गतिविधियों के लिए ‘एंड-टू-एंड’ मूल्य शृंखला स्थापित करना।
    • सब्सिडी और बुनियादी ढाँचा: बुनियादी ढाँचे (भंडारण, कोल्ड चेन, प्रसंस्करण इकाइयाँ) के लिए 50-75% सब्सिडी के साथ सहायता प्रदान करता है।
  • राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र (National Centre for Organic Farming-NCOF)
    • फोकस: राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन (NMSA) के मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन घटक के अंतर्गत जैविक खेती को बढ़ावा देना।
    • तकनीकी सहायता: जैव उर्वरकों, जैव कीटनाशकों, वर्मीकंपोस्ट आदि पर दिशा-निर्देश प्रदान करना और राज्यों को जैविक नीति ढाँचे में सहायता प्रदान करना।
    • नोडल निकाय: कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अंतर्गत कार्य करता है।

संदर्भ

वैज्ञानिक आँकड़ों से पता चलता है कि भारतीय वयस्क प्रतिदिन 8-11 ग्राम नमक का सेवन करते हैं, जो WHO द्वारा अनुशंसित 5-6 ग्राम की सीमा से लगभग दोगुना है।

नमक सेवन के स्रोत

  • घर का बना खाना: नमक का लगभग तीन-चौथाई हिस्सा अचार, पापड़ और पके हुए खाने से आता है।
  • बाहर खाना: रेस्टोरेंट स्वाद बढ़ाने के लिए अधिक नमक, तेल और मक्खन का प्रयोग करते हैं।
  • पैकेज्ड और प्रोसेस्ड फूड: ब्रेड, कुकीज, कैच-अप, सॉस, केक और पेस्ट्री में भी नमक होता है।
  • सांस्कृतिक आदतें: फूड टेबल पर नमकदानी का प्रयोग करने से नमक का सेवन और बढ़ जाता है।
  • HFSS की चिंता: ये प्रोसेस्ड फूड हाई फैट, सॉल्ट और शुगर (HFSS) कैटेगरी में आते हैं, जो जीवनशैली के कारण बीमारियों से संबंधित हैं।

स्वास्थ्य पर प्रभाव

  • हाइपरटेंशन की समस्या: भारत के 28.1% वयस्क इससे प्रभावित हैं।
  • कार्डियोवैस्कुलर जोखिम: यह सीधे हृदय संबंधी बीमारी, स्ट्रोक और किडनी की बीमारियों से संबंधित है।
  • गलत धारणाएँ: लोग मानते हैं कि सेंधा नमक, गुलाबी नमक और काला नमक लाभदायक होते हैं, जबकि इनमें भी सोडियम होता है।
  • आयोडीन की कमी का जोखिम: कई तरह के नमक में आयोडीन नहीं होता है, जिससे आयोडीन की कमी की समस्या और बढ़ सकती है।

वैश्विक और राष्ट्रीय दृष्टिकोण

  • WHO की सिफारिश: नमक का सेवन कम करना एक ‘बेहतरीन उपाय’ है, क्योंकि इसमें प्रत्येक 1 डॉलर का निवेश करने पर स्वास्थ्य लाभ के रूप में 12 डॉलर का रिटर्न मिलता है।
  • राष्ट्रीय नीति: भारत का गैर-संचारी रोगों (NCDs) की रोकथाम के लिए राष्ट्रीय बहु-क्षेत्रीय एक्शन प्लान (2017-22) में नमक का सेवन कम करना एक प्राथमिक मुद्दा था।
  • मौजूदा कमी: ‘चीनी बोर्ड’ और ‘तेल बोर्ड’ की तरह, नमक के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किए जाते।

नमक का सेवन कम करने की रणनीतियाँ

  • एकीकृत HFSS बोर्ड: एकीकृत HFSS बोर्ड: चीनी और तेल के अलावा हाई फैट, नमक और चीनी (HFSS) वाले खाद्य पदार्थों पर भी ध्यान देना।
  • व्यवहार में परिवर्तन: खाना पकाने में धीरे-धीरे नमक कम करने, हर्ब्स/मसालों से स्वाद बढ़ाने और कम सोडियम वाले विकल्पों का सावधानी से प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना।
  • प्रारंभिक हस्तक्षेप: बच्चों के आहार में अतिरिक्त नमक शामिल न करना।
  • सार्वजनिक खाद्य प्रणाली: विद्यालय के भोजन, आंगनवाड़ी और अस्पतालों में नमक की मात्रा का मानक तय करना।
  • पैकेज पर लेबलिंग: चिली के मॉडल की तरह, अधिक नमक वाले खाद्य पदार्थों पर अनिवार्य चेतावनी लेबल लगाना।
  • सामुदायिक पहल: रेस्टोरेंट से नमक के डिब्बे हटा देना; परिवार द्वारा साप्ताहिक रूप से HFSS उत्पादों की खरीद की समीक्षा करना।
  • स्वास्थ्य कार्यक्रमों के साथ समन्वय: विभिन्न मंत्रालयों के सहयोग से नमक की खपत कम करने को राष्ट्रीय गैर-संचारी रोगों की रणनीति में शामिल करना।

संदर्भ

भारतीय कॉफी बोर्ड ने यूरोपीय संघ वन विनाश विनियमन (EU Deforestation Regulation- EUDR) के अनुपालन के लिए उत्पादकों को अपने मोबाइल एप्लिकेशन पर पंजीकरण करने में मदद करने हेतु क्षमता निर्माण कार्यक्रम और व्यापक जागरूकता शुरू की है।

  • भारतीय कॉफी निर्यात का 70% से अधिक हिस्सा यूरोपीय संघ को जाता है, जिससे अनुपालन महत्त्वपूर्ण हो जाता है।

कॉफी बोर्ड के बारे में

  • स्थापना: कॉफी अधिनियम, 1942 के तहत स्थापित किया गया।
  • नोडल मंत्रालय: भारत सरकार के वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करता है।
  • मुख्यालय: बंगलूरू, कर्नाटक।
  • अधिदेश और कार्य
    • कॉफी का प्रचार: अनुसंधान, विस्तार, गुणवत्ता सुधार और घरेलू तथा अंतरराष्ट्रीय विपणन के माध्यम से कॉफी उद्योग को विकसित करना।
    • अनुसंधान एवं विकास: केंद्रीय कॉफी अनुसंधान संस्थान (Central Coffee Research Institute- CCRI) जैसे अनुसंधान संस्थानों के माध्यम से कॉफी की कृषि और प्रसंस्करण में वैज्ञानिक अनुसंधान को समर्थन प्रदान करना।
    • बाजार विकास: कॉफी निर्यात को विनियमित करना, भारतीय कॉफी को विश्व स्तर पर बढ़ावा देना और अंतरराष्ट्रीय मानकों का अनुपालन सुनिश्चित करना।
    • प्रौद्योगिकी और गुणवत्ता: नवाचार, गुणवत्ता प्रमाणन और GI-टैग प्रचार (जैसे- मानसूनी मालाबार कॉफी) शुरू करना।

कॉफी बोर्ड की पहल

  • मोबाइल ऐप: निर्यातकों और उत्पादकों के लिए पंजीकरण और भौगोलिक-स्थान डेटा अपलोडिंग को सक्षम बनाया गया।
  • जागरूकता अभियान: अनुपालन को बढ़ावा देने के लिए संघों और हितधारकों के साथ वार्ता तंत्र स्थापित किया गया।
  • वर्तमान स्थिति: लगभग 4.41 लाख उत्पादकों में से अब तक 9,000 ने पंजीकरण कराया है।
  • क्षमता निर्माण: यूरोपीय संघ के निर्यात विनियमन (EUDR) के अंतर्गत भारतीय कॉफी क्षेत्र को सुचारू निर्यात परिवर्तन के लिए तैयार करने हेतु कार्यक्रम।
  • भारत से कॉफी निर्यात वर्ष 2024-25 में 1.8 बिलियन डॉलर को पार कर गया, जो लगातार चौथे वर्ष 1 बिलियन डॉलर से ऊपर बना हुआ है।

यूरोपीय संघ के निर्यात विनियमन (EUDR)  के बारे में

  • अवलोकन: जून 2023 से लागू ‘यूरोपियन यूनियन डिफॉरेस्टेशन रेग्युलेशन’ (EUDR) का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि यूरोपीय संघ के भीतर बेचे जाने वाले या निर्यात किए जाने वाले कुछ उत्पाद 31 दिसंबर, 2020 के बाद वनों की कटाई या क्षीण भूमि से उत्पन्न न हों।
  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य यूरोपीय संघ द्वारा संचालित वनों की कटाई को रोकना, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना और वैश्विक जैव विविधता की रक्षा करना है।
  • क्षेत्र: यह कानून लकड़ी और छह कृषि वस्तुओं (मवेशी, कोको, कॉफी, पाम ऑयल, रबर, सोया) के साथ-साथ व्युत्पन्न उत्पादों (जैसे- गोमांस, चॉकलेट, फर्नीचर) पर लागू होता है।
  • बाजार में प्रवेश की शर्तें
    • उत्पाद को वनोन्मूलन से मुक्त होना चाहिए।
    • इसे मूल देश के राष्ट्रीय कानूनों के पूर्ण अनुपालन में उत्पादित किया जाना चाहिए।
    • अनुपालन की पुष्टि एक उचित परिश्रम विवरण द्वारा समर्थित होनी चाहिए।

राष्ट्रीय जल सुरक्षा पहल

हाल ही में भारत सरकार ने ‘राष्ट्रीय जल सुरक्षा पहल’ (National Initiative on Water Security) की शुरुआत मनरेगा (MGNREGA) के अंतर्गत जल संरक्षण कार्यों को प्राथमिकता देने हेतु की है।

राष्ट्रीय जल सुरक्षा पहल के बारे में

  • संयुक्त मंत्रालय: इस पहल की शुरुआत केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय और जल शक्ति मंत्रालय ने मिलकर की है, ताकि घटते भूजल संसाधनों का समाधान किया जा सके। 
  • उद्देश्य: मनरेगा निधि का अनिवार्य आवंटन जल संरक्षण और जल संचयन पर सुनिश्चित करना, जिससे दीर्घकालिक ग्रामीण जल सुरक्षा को सशक्त किया जा सके।
  • निधि आवंटन 
    • ‘अत्यधिक-शोषित’ (Over-exploited) एवं ‘गंभीर’ (Critical) ब्लॉकों में मनरेगा निधि का 65% जल संबंधी कार्यों पर व्यय किया जाएगा। 
    • ‘अर्द्ध-गंभीर’ (Semi-critical) ब्लॉकों में मनरेगा निधि का 40% आवंटन किया जाएगा।
    • जल-पर्याप्त (Water-sufficient) ब्लॉकों में मनरेगा निधि का 30% आवंटन जल संरक्षण कार्यों हेतु किया जाएगा।
  • केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) द्वारा साझा की गई “भारत के गतिशील भूजल संसाधनों का राष्ट्रीय संकलन, 2024” की रिपोर्ट के अनुसार, 102 जिलों को ‘अति जल संकट ग्रसित’, 22 जिलों को ‘गंभीर’ और 69 जिलों को ‘अर्द्ध-गंभीर’ श्रेणी में रखा गया है।
  • इस प्रकार कुल मिलाकर 193 OCS (अति जल संकट ग्रसित, गंभीर और अर्द्ध-गंभीर) जिले शामिल हैं। 
  • अन्य पहलें: कैच द रेन अभियान, वर्षा जल संचयन तथा अमृत सरोवर (68,000 जलाशयों का निर्माण/पुनरुद्धार) जैसी पहलें, इस योजना की पूरक हैं।

डिजिटल भुगतान लेन-देन हेतु प्रमाणीकरण तंत्र

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जिनके अंतर्गत सभी डिजिटल भुगतान लेन-देन के लिए दो-स्तरीय प्रमाणीकरण (2FA) को 1 अप्रैल, 2026 से अनिवार्य किया गया है।

  • इस ढाँचे का उद्देश्य तेजी से बढ़ते डिजिटल भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र में सुरक्षा को बढ़ाना है।

मुख्य विशेषताएँ

  • अनिवार्य 2FA: प्रत्येक डिजिटल भुगतान के लिए दो पृथक प्रमाणीकरण कारकों की आवश्यकता होगी, यद्यपि RBI ने किसी विशेष विधि को अनिवार्य नहीं किया है।
  • गतिशील प्रमाणीकरण कारक: विशेष रूप से कार्ड आधारित लेन-देन को छोड़कर अन्य सभी लेन-देन में, कम-से-कम एक प्रमाणीकरण कारक विशिष्ट और गतिशील रूप से निर्मित होना चाहिए। यह स्थिर क्रेडेंशियल्स से उत्पन्न होने वाले सुरक्षा उल्लंघनों को रोकता है।

दो-स्तरीय प्रमाणीकरण की परिभाषा

  • यह पहचान एवं पहुँच प्रबंधन की सुरक्षा पद्धति है, जिसमें किसी खाते तक पहुँच अथवा लेन-देन पूर्ण करने से पूर्व, उपयोगकर्ता से दो भिन्न प्रकार की पहचान प्रस्तुत करने की अपेक्षा की जाती है।
  • यह केवल पासवर्ड अथवा OTP से परे एक अतिरिक्त सुरक्षा परत प्रदान करता है, जिससे अनधिकृत प्रवेश कठिन हो जाता है।

प्रक्रिया: यह प्रक्रिया निम्नलिखित तीन कारकों में से किन्हीं दो को जोड़ती है:

  • ज्ञान (कुछ ऐसा जो आप जानते हैं): पासवर्ड अथवा पिन।
  • स्वामित्व (कुछ ऐसा जो आपके पास है): पंजीकृत मोबाइल फोन, हार्डवेयर टोकन अथवा सुरक्षा ऐप।
  • जैविक पहचान (कुछ ऐसा जो आप हैं): फिंगरप्रिंट, फेस रेकग्निशन अथवा आइरिस स्कैन।

WHO ग्लोबल समिट ऑन ट्रेडिशनल मेडिसिन 

आयुष मंत्रालय ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के साथ समझौता किया है, जिसके अंतर्गत दिसंबर 2025 में नई दिल्ली में WHO ग्लोबल समिट ऑन ट्रेडिशनल मेडिसिन का दूसरा संस्करण आयोजित किया जाएगा।

ग्लोबल समिट ऑन ट्रेडिशनल मेडिसिन  बारे में

  • स्वास्थ्य और सतत् विकास में पारंपरिक चिकित्सा की भूमिका को बढ़ावा देने के लिए एक वैश्विक मंच।
  • मेजबान: केंद्रीय आयुष मंत्रालय और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा।
  • वर्ष 2025 की थीम: ‘रीस्टोरिंग बैलेंस फॉर पीपल एंड प्लैनेट: द साइंस एंड प्रैक्टिस ऑफ वेल-बिइंग’ (Restoring balance for people and planet: The science and practice of well-being)।
  • उद्देश्य
    • साक्ष्य-आधारित पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों को आगे बढ़ाना।
    • विशेषज्ञों, नीति-निर्माताओं एवं हितधारकों के बीच ज्ञान-विनिमय को प्रोत्साहित करना।
  • प्रथम संस्करण: पहला सम्मेलन अगस्त 2023 में गांधीनगर (गुजरात) में G20 स्वास्थ्य मंत्रियों की बैठक के साथ आयोजित हुआ था।

वर्ल्ड फूड इंडिया (WFI) 2025

हाल ही में भारत ने नई दिल्ली स्थित भारत मंडपम में वर्ल्ड फूड इंडिया (WFI) 2025 का आयोजन किया।

वर्ल्ड फूड इंडिया (WFI)

  • यह खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय (MoFPI) का प्रमुख अंतरराष्ट्रीय आयोजन है, जिसे पहली बार वर्ष 2017 में प्रारंभ किया गया था।
  • नोडल मंत्रालय: यह भारत की खाद्य क्षमता को प्रदर्शित करने और वैश्विक निवेश आकर्षित करने के लिए केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय (MoFPI) द्वारा आयोजित किया जाता है।
  • उद्देश्य: खाद्य मूल्य शृंखला में नवाचार, निवेश और साझेदारी को बढ़ावा देकर भारत को एक वैश्विक खाद्य केंद्र के रूप में स्थापित करना।

WFI 2025 की मुख्य विशेषताएँ

  • वर्ष 2025 संस्करण में 90 से अधिक देश, 2,000 से अधिक प्रदर्शक और कई अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधिमंडल भाग ले रहे हैं।
  • भागीदार देश: न्यूजीलैंड और सऊदी अरब, वर्ल्ड फूड इंडिया 2025 में भाग ले रहे हैं।
  • फोकस देश: जापान, संयुक्त अरब अमीरात, वियतनाम और रूस को फोकस देश के रूप में नामित किया गया है, जो खाद्य प्रसंस्करण में भारत की वैश्विक पहुँच को दर्शाता है।
  • अन्य आयोजन
    • तीसरा  ग्लोबल फूड रेगुलेटर्स समिट (FSSAI द्वारा आयोजित)। 
    • 24वाँ इंडिया इंटरनेशनल सीफूड शो (SEAI द्वारा आयोजित)। 

सामरिक महत्त्व 

  • आर्थिक मजबूती: भारत दूध, प्याज और दालों का सबसे बड़ा उत्पादक है और चावल, गेहूँ, गन्ना, फल, सब्जियों और अंडों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
  • निवेश वृद्धि: खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र ने पिछले दशक में 7.33 बिलियन अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) आकर्षित किया, जिसे 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) नीति का समर्थन प्राप्त है।
  • विजन 2047 लिंक: WFI 2025, विकसित भारत@2047 के साथ संरेखित है, जो स्थिरता, नवाचार, किसान आय वृद्धि और वैश्विक खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देता है।

संदर्भ

केंद्रीय कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय ने राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) के अधिकारियों के विरुद्ध दिल्ली पुलिस में वित्तीय हेराफेरी का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई है, जिससे भारत की प्रमुख कौशल एजेंसी में प्रशासनिक खामियों पर चिंता उत्पन्न हो गई है।

राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) के बारे में

  • स्थापना: 31 जुलाई, 2008 को कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 25 (अब कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 8) के तहत एक गैर-लाभकारी सार्वजनिक लिमिटेड कंपनी के रूप में निगमित किया गया था।
  • मॉडल: केंद्रीय वित्त मंत्रालय के तत्त्वावधान में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) के रूप में स्थापित किया गया।
    • भारत सरकार (MSDE के माध्यम से) की 49% हिस्सेदारी है, जबकि निजी क्षेत्र की 51% हिस्सेदारी है।
  • लक्ष्य: मूल लक्ष्य वर्ष 2022 तक 15 करोड़ लोगों को कौशल प्रशिक्षण देना था, जिसे अब बढ़ाकर वर्ष 2030 कर दिया गया है।

भारत के कौशल पारिस्थितिकी तंत्र में भूमिका

  • फंडिंग सहायता: निजी प्रशिक्षण भागीदारों को ऋण, इक्विटी और अनुदान प्रदान करता है।
  • कार्यक्रम डिजाइन: पाठ्यक्रम और प्रमाणन मानकों का डिजाइन एवं ढाँचा तैयार करता है।
  • उद्योग भागीदारी: श्रम बाजार की आवश्यकताओं के अनुसार प्रशिक्षण को संरेखित करने के लिए कंपनियों के साथ सहयोग करता है।
  • क्रियान्वयन: प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) और मानक प्रशिक्षण मूल्यांकन एवं पुरस्कार योजना (Standard Training Assessment and Reward Scheme- STAR) जैसी प्रमुख योजनाओं का क्रियान्वयन करता है।

चिंताएँ

  • CAG रिपोर्ट (2015): NSDC और NSDF दोनों में प्रशासन और जवाबदेही में गंभीर समस्याओं को प्रदर्शित किया।
  • ट्रैक रिकॉर्ड: मार्च 2024 तक PMKVY और STAR के तहत प्रमाणित 1.13 करोड़ में से केवल 24.4 लाख को ही नौकरी मिली, जो ‘प्रशिक्षण-से-रोजगार रूपांतरण अनुपात’ (Training-to-Employment Conversion Ratio) के खराब स्तर को दर्शाता है।

प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) के बारे में

  • शुभारंभ एवं प्रबंधन: वर्ष 2015 में प्रारंभ की गई, PMKVY का प्रबंधन केंद्रीय कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय द्वारा किया जाता है और कौशल भारत मिशन के अंतर्गत NSDC द्वारा कार्यान्वित किया जाता है।
  • उद्देश्य: मौद्रिक पुरस्कारों और पूर्व-शिक्षण की मान्यता (Recognition of Prior Learning-RPL) के साथ अल्पकालिक, प्रमाणन-आधारित प्रशिक्षण प्रदान करता है।
  • लक्ष्य समूह: भारतीय युवाओं (15-45 वर्ष) पर केंद्रित, विशेष रूप से स्कूल एवं कॉलेज छोड़ने वाले युवाओं पर केंद्रित किया गया है।
  • लक्ष्य: उद्योग-संबंधित प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से रोजगारपरकता और कौशल तत्परता को बढ़ाना।

मानक प्रशिक्षण मूल्यांकन एवं पुरस्कार योजना (Standard Training Assessment & Reward Scheme) के बारे में

  • उद्देश्य: अनुमोदित प्रशिक्षण कार्यक्रमों को सफलतापूर्वक पूरा करने पर आर्थिक पुरस्कार प्रदान करके युवाओं में कौशल विकास को प्रोत्साहित करना।
  • क्रियान्वयन: इसे सार्वजनिक-निजी और केवल सार्वजनिक भागीदारी के माध्यम से संचालित किया जा रहा है।
  • दायरा: इसका लक्ष्य बाजार-संचालित कौशल प्रशिक्षण के माध्यम से अपनी शुरुआत के एक वर्ष के भीतर लगभग 10 लाख युवाओं को लाभान्वित करना है।
  • प्रोत्साहन: प्रशिक्षण के सफल समापन पर वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान किया जाता है।
  • प्रमाणन: प्रतिभागियों को STAR (मानक प्रशिक्षण मूल्यांकन एवं पुरस्कार) प्रमाण-पत्र प्रदान किया जाता है, जो भारत सरकार, NSDC, RASCI (रिटेलर्स एसोसिएशन स्किल काउंसिल ऑफ इंडिया) और GJSCI (गुजरात स्टेट स्किल काउंसिल ऑफ इंडिया) द्वारा संयुक्त रूप से जारी किया जाता है और देश भर में मान्यता प्राप्त है।

संदर्भ

द लैंसेट में प्रकाशित एक नए विश्लेषण में बताया गया है कि कैंसर से होने वाली 10 में से 4 मौतें धूम्रपान, खराब आहार और उच्च रक्त शर्करा जैसे परिवर्तनीय जोखिम कारकों से जुड़ी हैं।

  • इस अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2023 तक वैश्विक कैंसर से होने वाली मौतें 1.04 करोड़ तक पहुँच जाएँगी और नए मामले बढ़कर 1.85 करोड़ हो जाएँगे।

कैंसर के भार में वैश्विक रुझान

  • बढ़ते मामले और मौतें: वर्ष 2023 में नए मामले बढ़कर 18.5 मिलियन हो गए, जो वर्ष 1990 से 105% की वृद्धि है; इसी अवधि में मौतों में 74% की वृद्धि हुई।
  • भविष्य का अनुमान: वर्ष 2050 तक, 30.5 मिलियन नए मामले आने और 18.6 मिलियन मौतें होने की उम्मीद है, जो वर्ष 2023 की तुलना में 75% की वृद्धि है।
  • सबसे अधिक निदान किया जाने वाला कैंसर: स्तन कैंसर (विश्व स्तर पर सबसे अधिक घटनाएँ)।
  • मृत्यु का प्रमुख कारण: श्वास नली, श्वसनी और फेफड़ों का कैंसर।

भारत में कैंसर

  • मामले: वर्ष 2023 में कैंसर के अनुमानित 5.43 मिलियन मामले सामने आए।
  • घटना दर: आयु-मानकीकृत दर 84.8 प्रति लाख (वर्ष 1990) से बढ़कर 107.2 प्रति लाख (वर्ष 2023) हो गई। जो 26.4% की वृद्धि दर्शाता है। 
  • मृत्यु दर: 71.7 प्रति लाख (वर्ष 1990) से बढ़कर 86.9 प्रति लाख (वर्ष 2023) हो गई, जो 21.2% की वृद्धि दर्शाता है।
  • कैंसर रजिस्ट्री: 38 रजिस्ट्री लगभग 12% आबादी को कवर करती हैं। वर्ष 2022 में, भारत में 1.4 मिलियन नए मामले और 910,000 मौतें दर्ज की गईं।
  • शीर्ष कैंसर
    • महिलाएँ: स्तन, ग्रीवा, डिम्बग्रंथि।
    • पुरुष: मुख, फेफड़े, ग्रासनली।
    • पुरुष एवं महिलाएँ: बृहदान्त्र, आमाशय।

प्रमुख जोखिम कारक

  • वैश्विक: 42% मौतें (4.3 मिलियन) 44 परिवर्तनीय जोखिम कारकों से जुड़ी हैं।
    • पुरुष (46%): तंबाकू, शराब, अस्वास्थ्यकर आहार, व्यावसायिक जोखिम, वायु प्रदूषण।
    • महिलाएँ (36%): तंबाकू, असुरक्षित यौन संबंध, अस्वास्थ्यकर आहार, मोटापा, उच्च रक्त शर्करा।
  • भारत: आहार, शराब का सेवन, वायु प्रदूषण और मोटापा प्रमुख कारणों के रूप में सामने आए।

वृद्धावस्था और जनसंख्या वृद्धि

  • जनसांख्यिकीय कारक: घटनाओं और मृत्यु दर में अधिकांश वृद्धि जनसंख्या वृद्धि एवं वृद्धावस्था से जुड़ी है।
  • वैश्विक वितरण: भविष्य में इसका अधिकांश बोझ निम्न और मध्यम आय वाले देशों पर पड़ेगा।

अनुशंसाएँ

  • रोकथाम: तंबाकू का सेवन कम करना, स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा देना और मोटापे व शराब के सेवन से निपटना।
  • शीघ्र पहचान: समय पर निदान के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा कार्यकर्ताओं की जागरूकता और प्रशिक्षण को मजबूत करना।
  • उपचार: वहनीय और साक्ष्य-आधारित कैंसर उपचार को मरीजों के घरों के पास उपलब्ध कराना।
  • डेटा सिस्टम: विशेष रूप से संसाधन-विहीन क्षेत्रों में, कैंसर निगरानी और रजिस्ट्री को बेहतर बनाना।
  • नीतिगत संरेखण: SDG 3.4 की दिशा में प्रगति में तेजी लाना, जिसका उद्देश्य वर्ष 2030 तक कैंसर सहित गैर-संचारी रोगों से होने वाली अकाल मृत्यु दर को एक-तिहाई तक कम करना है।

कैंसर मुक्त भारत की दिशा में पहल

  • CAR-T कोशिका चिकित्सा: IIT बॉम्बे में कैंसर के लिए भारत की पहली घरेलू जीन चिकित्सा शुरू की गई।
    • यह विश्व की सर्वाधिक वहनीय CAR-T कोशिका चिकित्सा है।
  • कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग और स्ट्रोक की रोकथाम एवं नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (National Programme for Prevention and Control of Cancer, Diabetes, Cardiovascular Diseases and Stroke- NPCDCS)
    • राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (National Health Mission- NHM) के अंतर्गत एक प्रमुख पहल।
    • कैंसर सहित गैर-संचारी रोगों (Non-Communicable Diseases- NCDs) के नियंत्रण पर केंद्रित।
    • तीन सर्वाधिक सामान्य कैंसर: मुख, स्तन और गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर को लक्षित करता है।
    • स्वास्थ्य संवर्धन, शीघ्र पहचान और उपचार के बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करने पर बल।
  • कैंसर योजना के लिए तृतीयक देखभाल को सुदृढ़ बनाना
    • राज्यों में विशेष कैंसर देखभाल सुविधाओं का विस्तार।
    • इसका उद्देश्य बेहतर पहुँच के लिए कैंसर उपचार का विकेंद्रीकरण करना है।
  • प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (Pradhan Mantri Swasthya Suraksha Yojana (PMSSY): इसमें सरकारी मेडिकल कॉलेजों और संस्थानों की स्थापना और उन्नयन, कैंसर देखभाल के लिए संसाधनों में वृद्धि और राष्ट्रीय कैंसर ग्रिड (NCG) को मजबूत करना शामिल है।
  • आयुष्मान भारत योजना (2018)
    • सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज के लिए एक ऐतिहासिक स्वास्थ्य पहल, विशेष रूप से ग्रामीण और कमजोर समूहों के लिए; 30 दिनों के भीतर कैंसर का उपचार सुनिश्चित करता है।
    • आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के लिए कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी और सर्जिकल ऑन्कोलॉजी को शामिल करता है।
  • स्वास्थ्य मंत्री कैंसर रोगी कोष (Health Minister’s Cancer Patient Fund- HMCPF)
    • यह राष्ट्रीय आरोग्य निधि (Rashtriya Arogya Nidhi- RAN) के अंतर्गत संचालित होता है।
    • BPL रोगियों को ₹5 लाख तक की वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
  • राष्ट्रीय कैंसर ग्रिड (NCG)- 2012
    • पूरे भारत में मानकीकृत, उच्च-गुणवत्ता वाली कैंसर देखभाल सुनिश्चित करता है।
    • वहनीय, साक्ष्य-आधारित उपचार प्रदान करने के लिए आयुष्मान भारत – PMJAY के साथ सहयोग करता है।
  • केंद्रीय बजट 2025-26 के प्रावधान
    • केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को लगभग ₹1 लाख करोड़ आवंटित किए गए हैं।
    • डे केयर कैंसर सेंटर: तीन वर्षों के भीतर सभी जिला अस्पतालों में स्थापित किए जाएँगे।
    • सीमा शुल्क में छूट: लागत कम करने के लिए कैंसर, दुर्लभ और दीर्घकालिक बीमारियों के लिए 36 जीवनरक्षक दवाओं को मूल सीमा शुल्क (BCD) से छूट दी गई है।

जागरूकता कार्यक्रम

  • सामुदायिक जागरूकता एवं मीडिया: आयुष्मान आरोग्य मंदिर, सोशल/प्रिंट/इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और कैंसर जागरूकता दिवसों का आयोजन निवारक स्वास्थ्य को बढ़ावा देना।
  • स्वस्थ भोजन: FSSAI का ‘ईट राइट इंडिया’ अभियान पौष्टिक आहार संबंधी आदतों को प्रोत्साहित करता है।
  • स्वास्थ्य एवं तंदुरुस्ती: ‘फिट इंडिया’ अभियान और आयुष-आधारित योग कार्यक्रम शारीरिक गतिविधि और समग्र स्वास्थ्य को बढ़ावा देते हैं।

संदर्भ

आंध्र प्रदेश के तिरुमाला मंदिर ने तीर्थयात्रियों की सुरक्षा, भीड़ का पूर्वानुमान एवं साइबर सुरक्षा के लिए भारत के पहले AI-संचालित एकीकृत कमांड कंट्रोल सेंटर (Integrated Command Control Centre- ICCC) प्रारंभ किया है।

AI-संचालित ICCC के बारे में

  • यह तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (Tirumala Tirupati Devasthanam- TTD) द्वारा स्थापित भारत का पहला AI-संचालित तीर्थयात्रा पारिस्थितिकी तंत्र केंद्र है।
    • TTD एक स्वतंत्र ट्रस्ट है, जो तिरुमाला में भगवान श्री वेंकटेश्वर मंदिर का प्रबंधन करता है।
  • इसका उद्देश्य वास्तविक समय आधारित भीड़ प्रबंधन, वृहद कतारों का प्रबंधन एवं बेहतर सुरक्षा प्रदान करना है।
  • विकसितकर्ता: एक निःशुल्क सार्वजनिक-निजी मॉडल के तहत निर्मित, अनिवासी भारतीयों (Non-Resident Indians- NRIs) द्वारा वित्तपोषित।
  • संचालन: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस/मशीन लर्निंग (AI/ML) एवं एनवीडिया (NVIDIA) समर्थित बुनियादी ढाँचा द्वारा संचालित होता है। 

विशेषताएँ

  • तकनीकी स्टैक: 6,000 से अधिक AI कैमरे, 3D मानचित्र, ड्रोन समर्थन, पूर्वानुमान विश्लेषण।
  • रियल टाइम क्षमता: यह प्रति मिनट 3,60,000 पेलोड, प्रतिदिन 518 मिलियन घटनाओं को संसाधित करता है एवं प्रतिदिन 2.5 बिलियन अनुमान प्रदान करता है।
  • तीर्थयात्री प्रबंधन: सर्व दर्शनम प्रतीक्षा समय, भीड़-भाड़ मानचित्रण, 3D दृश्यों के माध्यम से निर्देशित निकासी का पूर्वानुमान करता है।
  • सुरक्षा एवं घटना प्रतिक्रिया: गुमशुदा व्यक्तियों के लिए चेहरे की पहचान, संकटकालीन अलर्ट, कर्मचारियों का सत्यापन, साइबर खतरे की निगरानी।
  • एकीकृत डैशबोर्ड: प्रशिक्षित कर्मचारियों द्वारा 24×7 निगरानी, ​​त्वरित कार्रवाई के लिए विभागों के बीच समन्वय।
  • सूचना सुरक्षा: फेक न्यूज, अपमानजनक सामग्री का पता लगाता है एवं मंदिर की डिजिटल संपत्तियों की सुरक्षा करता है।

तिरुमाला वेंकटेश्वर मंदिर के बारे में

  • तिरुमाला वेंकटेश्वर मंदिर आंध्र प्रदेश में वेंकट पर्वतमाला पर अवस्थित है, जो तिरुमाला शृंखला की सात पहाड़ियों (सप्तगिरि) में से एक है।
  • समर्पित: यह मंदिर भगवान श्री वेंकटेश्वर को समर्पित है, जिन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है।
  • तिरुपति लड्डू: मंदिर में प्रसाद के रूप में दिए जाने वाले प्रसिद्ध तिरुपति लड्डू को भौगोलिक संकेतक (GI) टैग प्राप्त है।
  • ऐतिहासिक महत्त्व: इस मंदिर का एक समृद्ध इतिहास है, जिसमें पल्लव, चोल एवं विजयनगर शासकों सहित दक्षिण भारतीय राजवंशों का महत्त्वूर्ण योगदान रहा है।
    • इसे 12वीं शताब्दी में संत रामानुजाचार्य द्वारा पुनर्स्थापितकिया गया था।

संदर्भ

हाल ही में दूरसंचार विभाग (DoT) एवं वित्तीय आसूचना एकक-भारत (Financial Intelligence Unit–India- FIU-IND) ने साइबर अपराधों तथा वित्तीय धोखाधड़ी से निपटने के लिए एक ऐतिहासिक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए है।

समझौते के प्रमुख पहलू

  • उन्नत डेटा साझाकरण: मोबाइल नंबरों को मध्यम, उच्च या अति उच्च जोखिम वाले के रूप में वर्गीकृत करने के लिए वित्तीय धोखाधड़ी जोखिम संकेतक (Financial Fraud Risk Indicator- FRI) डेटा का रियल-टाइम साझाकरण।
    • दूरसंचार विभाग द्वारा वित्तीय आसूचना एकक-भारत (FIU-IND) के साथ मोबाइल नंबर निरस्तीकरण सूची (Mobile Number Revocation List) का स्वचालित साझाकरण, जिसमें कनेक्शन समाप्ति की तिथि एवं कारण शामिल हैं।
    • FIU-IND संदिग्ध लेन-देन रिपोर्ट एवं ‘मनी म्यूल’ अकाउंट से संबंधित मोबाइल नंबर साझा करेगा।
  • प्रौद्योगिकी-सक्षम सहयोग: सूचना विनिमय, दूरसंचार विभाग के डिजिटल इंटेलिजेंस प्लेटफॉर्म (DIP) एवं FIU-IND के फिननेक्स 2.0 पोर्टल से डेटा प्राप्त करेगा। 
  • साइबर सुरक्षा पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करना: दूरसंचार एवं वित्तीय खुफिया जानकारी का एकीकरण नागरिकों को नुकसान पहुँचाने से पहले धोखाधड़ी से संबंधित मोबाइल कनेक्शनों का सक्रिय रूप से पता लगाने में सक्षम बनाता है।

वित्तीय धोखाधड़ी जोखिम संकेतक (Financial Fraud Risk Indicator- FRI) के बारे में

  • FRI एक जोखिम-वर्गीकरण प्रणाली है, जो वित्तीय धोखाधड़ी से संबंधित  मोबाइल नंबरों को चिह्नित करती है, जिससे बैंकिंग एवं UPI लेन-देन में रियल टाइम, जोखिम-आधारित हस्तक्षेप संभव हो पाता है।
  • लॉन्च: मई 2025 में दूरसंचार विभाग (DoT) की डिजिटल इंटेलिजेंस यूनिट (DIU) द्वारा विकसित एवं लॉन्च किया गया।
  • विशेषताएँ
    • जोखिम वर्गीकरण: मध्यम, उच्च या अति उच्च जोखिम वाले मोबाइल नंबरों को चिह्नित किया जाता है। 
    • डेटा स्रोत: नेशनल साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल (NCRP), DoT का चक्षु प्लेटफॉर्म, बैंक/UPI रिपोर्ट।
    • मोबाइल नंबर निरस्तीकरण सूची (Mobile Number Revocation List): वित्तीय हितधारकों के साथ साझा किए गए निष्क्रिय या धोखाधड़ी वाले नंबरों को ट्रैक करता है।
  • महत्त्व: बैंकों एवं वित्तीय सेवा प्रदाताओं को साइबर-सक्षम वित्तीय धोखाधड़ी की पहचान करने, रोकने तथा कम करने में मदद करता है, जिससे डिजिटल भुगतान सुरक्षा मजबूत होती है।

वित्तीय आसूचना एकक-भारत (FIU-IND) के बारे में

  • यह वर्ष 2004 में स्थापित वित्तीय आसूचना जानकारी के लिए राष्ट्रीय स्तर की केंद्रीय एजेंसी है।
  • नोडल मंत्रालय: केंद्रीय राजस्व विभाग, वित्त मंत्रालय।
  • भूमिका: संदिग्ध वित्तीय लेन-देन की जानकारी प्राप्त करने, संसाधित करने, विश्लेषण करने एवं प्रसारित करने के लिए उत्तरदायी है। 
    • धन शोधन एवं आतंकवाद के  वित्तपोषण से निपटने में महत्त्वूर्ण भूमिका निभाता है।

दूरसंचार विभाग की ‘डिजिटल इंटेलिजेंस यूनिट’ (Digital Intelligence Unit- DIU) के बारे में

  • यह दूरसंचार विभाग की एक विशेष शाखा है, जिसे साइबर अपराधों एवं धोखाधड़ी में दूरसंचार संसाधनों के दुरुपयोग को रोकने के लिए बनाया गया है।
  • उपलब्धियाँ: सिम धोखाधड़ी का पता लगाना (ASTR), सेंट्रलाइज्ड इंटरनेशनल आउट रोमर (CIOR), स्पूफ्ड कॉल ब्लॉकिंग, संचार साथी पोर्टल एवं FRI टूल जैसी AI-आधारित प्रणालियाँ विकसित कीं।
  • भूमिका: यह दूरसंचार एवं वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा में पुलिस, SEBI, NPCI, FIU-IND एवं 650 बैंकों सहित 700 से अधिक हितधारकों का समर्थन करता है।

संदर्भ 

नैनो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (INST) के वैज्ञानिकों ने प्रदर्शित किया है कि ग्रेफाइटिक कार्बन नाइट्राइड (g-C₃N₄) नामक एक नैनोमैटेरियल मस्तिष्क कोशिकाओं को उत्तेजित (स्टिमुलेट) कर सकता है।

  • यह सर्जरी या बाह्य उपकरणों के बिना तंत्रिका संबंधी विकारों के उपचार में एक संभावित सफलता प्रदान करती है।

ग्रैफाइटिक कार्बन नाइट्राइड (g-C₃N₄) के बारे में

  • पदार्थ की प्रकृति: यह एक अर्द्धचालक नैनो मैटेरियल है, जो मस्तिष्क के प्राकृतिक वोल्टेज संकेतों की प्रतिक्रिया में एक लघु विद्युत क्षेत्र उत्पन्न कर सकता है।
  • जैव-संगतता: यह पदार्थ विषैला नहीं है एवं मस्तिष्क के ऊतकों के साथ अंतःक्रिया के लिए सुरक्षित है।

क्रियाविधि

  • ऋणात्मक ‘मेम्ब्रेन पोटेंशियल’ (Membrane Potential) की उपस्थिति में, यह पदार्थ क्रियाशील अवस्था में चला जाता है एवं न्यूरॉन्स को उत्तेजित करता है।
  • धनात्मक ‘मेम्ब्रेन पोटेंशियल’ (Membrane Potential) की उपस्थिति में, यह अक्रिय हो जाता है, जिससे न्यूरॉन्स उदासीन हो जाते हैं।
  • ये वैद्युत क्षेत्र ‘ओपन कैल्शियम चैनल’ उपलब्ध कराते हैं, जिससे न्यूरॉन्स की वृद्धि, परिपक्वता एवं संचार को बढ़ावा मिलता है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

  • न्यूरॉन वृद्धि एवं संचार: नैनोमैटेरियल ने न्यूरॉन्स के कनेक्शन को बढ़ाया एवं कोशिकाओं के बीच संचार में सुधार किया।
  • डोपामाइन उत्पादन: इसने प्रयोगशाला में विकसित मस्तिष्क जैसी कोशिकाओं में डोपामाइन के स्तर को बढ़ाया, जो पार्किंसंस रोग के उपचार के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • विषाक्त प्रोटीन में कमी: पशु मॉडलों में इसने पार्किंसंस जैसी तंत्रिका-अपक्षयी स्थितियों से जुड़े विषाक्त प्रोटीन का स्तर कम किया है।
  • प्रायोगिक पुष्टि: इन निष्कर्षों को कैल्शियम इमेजिंग स्टडी, जीन एडिटिंग एनालिसिस एवं इम्यूनोफ्लोरेसेंस-आधारित विधियों के माध्यम से मान्य किया गया।

मौजूदा उपचारों की तुलना में लाभ

  • वर्तमान विधियाँ: डीप ब्रेन स्टिमुलेशन (DBS) जैसे उपचारों में सर्जिकल प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है, जबकि अन्य चुंबक, लेजर या अल्ट्रासाउंड पर निर्भर करते हैं, जो ‘इनवेसिव’ होते हैं।
  • नैनोमटेरियल एप्रोच: g-C₃N₄ न्यूरॉन्स के साथ सीधे नॉन-इनवेसिव रूप से अंतःक्रिया करता है, यह एक “स्मार्ट स्विच” की तरह कार्य करता है, जो बाह्य उत्तेजना के बिना स्वाभाविक रूप से तंत्रिका गतिविधियों को नियंत्रित करता है।

डीप ब्रेन स्टिमुलेशन (Deep Brain Stimulation- DBS)

DBS एक न्यूरोसर्जिकल प्रक्रिया है, जिसमें नियंत्रित विद्युत आवेगों को वितरित करने के लिए विशिष्ट मस्तिष्क क्षेत्रों में इलेक्ट्रोड प्रत्यारोपित किए जाते हैं, जिससे पार्किंसंस रोग, डिस्टोनिया एवं मिर्गी जैसे तंत्रिका संबंधी विकारों के प्रबंधन में मदद मिलती है।

अनुप्रयोग

  • चिकित्सीय क्षमता
    • अल्जाइमर, पार्किंसंस एवं मस्तिष्क की चोटों के लिए नॉन-इनवेसिव उपचार।
    • ऊतक अभियांत्रिकी एवं पुनर्योजी चिकित्सा के लिए अर्द्धचालकों के उपयोग की संभावना।
  • भविष्य की प्रौद्योगिकियाँ
    • ब्रेनवेयर कंप्यूटिंग: जैविक प्रोसेसर के रूप में उपयोग किए जाने वाले मस्तिष्क ऑर्गेनोइड्स की दक्षता में सुधार करना।
    • जैव-प्रेरित कंप्यूटिंग: उन्नत कंप्यूटेशनल प्रणालियों के लिए नैनोमटेरियल्स को जीवित ऊतकों के साथ मिश्रित करना।

नैनो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (INST) के बारे में

  • स्थापना: नैनो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (INST) की स्थापना वर्ष 2013 में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के तहत एक स्वायत्त संस्थान के रूप में की गई थी।
  • नोडल मंत्रालय: केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय।
  • अवस्थिति: मोहाली, पंजाब।
  • अधिदेश: यह स्वास्थ्य सेवा, कृषि, ऊर्जा, पर्यावरण एवं क्वांटम पदार्थों पर केंद्रित नैनो विज्ञान तथा नैनो प्रौद्योगिकी में एक प्रमुख अनुसंधान केंद्र के रूप में कार्य करता है।

संदर्भ

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 (Hindu Succession Act, 1956) के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि वह हिंदू सामाजिक संरचना के साथ महिलाओं के अधिकारों को संतुलित करते हुए इस पर सावधानीपूर्वक विचार करेगा।

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 (Hindu Succession Act, 1956) के बारे में

  • हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956, बिना वसीयत के उत्तराधिकार (जब किसी व्यक्ति की मृत्यु बिना वसीयत के हो जाती है) को नियंत्रित करता है।
  • मूल रूप से संपत्ति के उत्तराधिकार के लिए केवल पुरुष उत्तराधिकारियों को मान्यता दी गई थी।
  • पारंपरिक हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) में, सदस्यों में एक ही पूर्वज के पुरुष वंशज, उनकी माताएँ, पत्नियाँ और अविवाहित पुत्रियाँ शामिल होती थीं।
  • वर्ष 2005 का संशोधन
    • महिलाओं को सहदायिक के रूप में मान्यता दी गई और उन्हें पैतृक संपत्ति में समान अधिकार प्रदान किए गए।
    • धारा 6 में संशोधन करके सहदायिक की पुत्री को जन्म से ही सहदायिक बना दिया गया।
    • पुत्रियों को सहदायिक संपत्ति में पुत्रों के समान अधिकार और दायित्व दिए गए, जिनमें विभाजन और उत्तराधिकार के अधिकार भी शामिल हैं।

अधिनियम का क्षेत्राधिकार

  • यह अधिनियम हिंदू, बौद्धों, जैनों और सिखों के लिए बिना वसीयत के उत्तराधिकार को नियंत्रित करता है।
  • इसमें मुस्लिम, ईसाई, पारसी और यहूदी शामिल नहीं हैं, जो अपने-अपने व्यक्तिगत कानूनों द्वारा शासित होते हैं।
  • यह किसी भी अनुसूचित जनजाति के सदस्यों पर लागू नहीं होता है, जब तक कि केंद्र सरकार अधिसूचना द्वारा अन्यथा निर्देश न दे।

अधिनियम के प्रमुख प्रावधान

सहदायिक अधिकार (धारा 6)

  • बेटियों के समान अधिकार: बेटियाँ जन्म से ही सहदायिक होती हैं और उनके अधिकार एवं दायित्व बेटों के समान होते हैं।
  • सहदायिक संपत्ति का हस्तांतरण: मृतक सहदायिक का हित उत्तराधिकार द्वारा हस्तांतरित होता है, उत्तरजीविता द्वारा नहीं।
  • दायित्व का उन्मूलन: पुत्र, पौत्र और प्रपौत्र 20 दिसंबर, 2004 के बाद लिए गए पैतृक ऋणों के लिए उत्तरदायी नहीं हैं।

पुरुषों का उत्तराधिकार

  • पुरुषों के मामले में उत्तराधिकार के सामान्य नियम (धारा 8): यह धारा एक हिंदू पुरुष की संपत्ति के उत्तराधिकार के क्रम को रेखांकित करती है, जिसमें सबसे पहले वर्ग I के उत्तराधिकारी, उसके बाद वर्ग II के उत्तराधिकारी, तत्पश्चात सगोत्र और अंततः सजातीय उत्तराधिकारी शामिल होते हैं।
  • अनुसूची में उत्तराधिकारियों के बीच उत्तराधिकार का क्रम (धारा 9): यह स्पष्ट करता है कि वर्ग I के उत्तराधिकारी एक साथ उत्तराधिकार प्राप्त करते हैं और अन्य सभी को छोड़ देते हैं, जबकि वर्ग II में, पहले की प्रविष्टियों वाले उत्तराधिकारियों को प्राथमिकता दी जाती है।
  • अनुसूची के वर्ग I के उत्तराधिकारियों के बीच संपत्ति का वितरण (धारा 10): यह धारा एक निर्वसीयत व्यक्ति की संपत्ति को वर्ग I में सूचीबद्ध उत्तराधिकारियों के बीच विभाजित करने के नियमों को निर्दिष्ट करती है।

महिलाओं का उत्तराधिकार

  • पूर्ण स्वामित्व (धारा 14): किसी हिंदू महिला के पास मौजूद कोई भी संपत्ति उसकी पूर्ण संपत्ति है।
  • अनुसूची के वर्ग I के उत्तराधिकारियों के बीच संपत्ति का वितरण (धारा 10): यह धारा एक निर्वसीयत व्यक्ति की संपत्ति को वर्ग I में सूचीबद्ध उत्तराधिकारियों के बीच विभाजित करने के नियमों को निर्दिष्ट करती है।
  • “हिंदू महिलाओं के लिए उत्तराधिकार के सामान्य नियम (धारा 15): संपत्ति (1) पुत्रों, पुत्रियों और पति को; (2) पति के उत्तराधिकारियों को; (3) माता-पिता को; (4) पिता के उत्तराधिकारियों को; (5) माता के उत्तराधिकारियों को प्राप्त होती है।”
  • महिला उत्तराधिकार के लिए विशेष नियम (धारा 15 [2]): माता-पिता से विरासत में प्राप्त संपत्ति पिता के उत्तराधिकारियों को प्राप्त होती है, जबकि पति या ससुर से प्राप्त संपत्ति, यदि कोई संतान नहीं है, तो पति के उत्तराधिकारियों को प्राप्त होती है।”
  • धारा 16 एक महिला हिंदू के उत्तराधिकारियों के बीच संपत्ति के वितरण के क्रम और विधि को निर्दिष्ट करती है।”

  • प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारी: निकटतम पारिवारिक सदस्य—पुत्र, पुत्रियाँ, विधवाएँ और माताएँ—जो समान अंशों में उत्तराधिकार प्राप्त करते हैं।
  • द्वितीय श्रेणी के उत्तराधिकारी: अधिक दूर के रिश्तेदार, जैसे- भाई-बहन और उनके वंशज, जो केवल प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारियों की अनुपस्थिति में ही उत्तराधिकार के हकदार होते हैं।
  • सगोत्र (पुरुष वंश): पूरी तरह से पुरुष वंश से जुड़े रिश्तेदार (जैसे- पिता के भाई का पुत्र)।
  • सगोत्र (महिला वंश): पुरुष और महिला दोनों वंशों से जुड़े रिश्तेदार (जैसे- माता के भाई की पुत्री)।

सामान्य प्रावधान

  • संपत्ति का स्वामित्व (धारा 29): यदि कोई उत्तराधिकारी न हो, तो संपत्ति सरकार को हस्तांतरित हो जाती है।
  • अयोग्यता – हत्या (धारा 25): हत्यारा/दुष्प्रेरक पीड़ित की संपत्ति का उत्तराधिकारी नहीं हो सकता।
  • अयोग्यता – धर्मांतरण (धारा 26): धर्मांतरित लोगों के वंशज तब तक अयोग्य होते हैं जब तक कि वे उत्तराधिकार आरंभ होने के समय हिंदू न हों।
  • दोष के लिए कोई अयोग्यता नहीं (धारा 28): रोग, दोष या विकृति उत्तराधिकार पर रोक नहीं लगाती।
  • वसीयती उत्तराधिकार (धारा 30): कोई भी हिंदू वसीयत द्वारा संपत्ति का निपटान कर सकता है।

विवादित प्रावधान (धारा 15 और 16)

  • धारा 15(1): एक हिंदू महिला की निर्वसीयत संपत्ति निम्नलिखित क्रम में हस्तांतरित होती है:
    1. पुत्र, पुत्रियाँ और पति, 
    2. पति के उत्तराधिकारी, 
    3. माता-पिता, 
    4. पिता के उत्तराधिकारी, 
    5. माता के उत्तराधिकारी।
  • धारा 16: उत्तराधिकार का क्रम निर्धारित करती है, जिससे महिला के पैतृक परिवार पर पति के वंश की प्राथमिकता को बल मिलता है।
  • इन प्रावधानों को भेदभावपूर्ण बताते हुए चुनौती दी गई है क्योंकि ये महिला के पैतृक परिवार पर पति के वंश को प्राथमिकता देते हैं, जिससे महिलाओं के समान उत्तराधिकार के अधिकार कम हो सकते हैं।

सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ

  • सर्वोच्च न्यायालय ने इन याचिकाओं पर निर्णय देते समय सावधानी बरतने पर जोर दिया है और पारंपरिक हिंदू सामाजिक संरचना को ध्यान में रखते हुए महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के महत्त्व को स्वीकार किया है।
  • न्यायालय ने सामाजिक संरचना और लैंगिक न्याय के मध्य संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता पर बल दिया है और ऐसे किसी भी न्यायिक निर्णय से बचने की बात कही है, जो लंबे समय से संचालित सामाजिक प्रथाओं को अचानक बाधित कर दे।

पूर्व निर्णय

  • प्रकाश बनाम फुलवती (2016): शुरुआत में, सर्वोच्च न्यायालय ने यह माना था कि बेटियाँ सहदायिक अधिकारों का दावा तभी कर सकती हैं, जब पिता (सहदायिक) संशोधन की तिथि 9 सितंबर, 2005 को जीवित हों।
    • हालाँकि, बाद में विनीता शर्मा मामले में इस निर्णय को रद्द कर दिया गया।
  • दानम्मा बनाम अमर (2018): इस मामले में बेटियों के सहदायिक अधिकारों को मान्यता दी गई, भले ही पिता की मृत्यु वर्ष 2005 के संशोधन से पूर्व हो गई हो।
    • इसने पूर्वव्यापी प्रभाव से बेटियों को जन्म से सहदायिक के रूप में स्थापित किया, जिससे पहले के भेदभाव को समाप्त कर दिया गया।
  • विनीता शर्मा बनाम राकेश शर्मा (2020): इस सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय ने बेटियों को जन्म से सहदायिक के रूप में समान सहदायिक अधिकारों के साथ निश्चित रूप से पुष्टि की, भले ही पिता वर्ष 2005 के संशोधन की तिथि पर जीवित थे या नहीं।

मामले का महत्त्व 

  • महिला अधिकार: यह मामला हिंदू उत्तराधिकार कानूनों में लैंगिक समानता को पुनर्परिभाषित कर सकता है।
  • सामाजिक संतुलन: सर्वोच्च न्यायालय ने पारंपरिक पारिवारिक संरचनाओं में व्यवधान डाले बिना निरंतरता बनाए रखने हेतु हिंदू सांस्कृतिक और सामाजिक परंपराओं को संरक्षित करते हुए महिलाओं के प्रगतिशील उत्तराधिकार अधिकारों के बीच सावधानीपूर्वक संतुलन बनाए रखने पर जोर दिया है।
  • विधायी अंतराल: ये न्यायिक स्पष्टीकरण हिंदू उत्तराधिकार कानूनों में व्यापक विधायी सुधारों के निरंतर अभाव को प्रदर्शित करते हैं, जिससे संपत्ति कानून में अस्पष्टताओं को दूर करने और लैंगिक न्याय को आगे बढ़ाने के लिए न्यायिक व्याख्या आवश्यक हो जाती है।

संदर्भ

विशाखापत्तनम में आयोजित ई-गवर्नेंस पर 28वें राष्ट्रीय सम्मेलन (28th National Conference on e-Governance – NCeG) में ‘विशाखापत्तनम घोषणा’ को अपनाया गया।

ई-गवर्नेंस पर राष्ट्रीय सम्मेलन (National Conference on e-Governance- NCeG) के बारे में

  • यह भारत में ई-गवर्नेंस पर एक प्रमुख वार्षिक कार्यक्रम है।
  • सह-मेजबानी: प्रशासनिक सुधार एवं लोक शिकायत विभाग (Department of Administrative Reforms & Public Grievances- DARPG), केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Electronics & IT- MeitY) और एक राज्य सरकार।
  • सम्मेलन का उद्देश्य: भारत में सुरक्षित और सतत् ई-सेवा वितरण सुनिश्चित करने हेतु नवीन और परिवर्तनकारी दृष्टिकोणों पर चर्चा करने हेतु सरकारी अधिकारियों, उद्योग विशेषज्ञों और शिक्षाविदों को एक साथ लाना।
  • महत्त्व: यह नीतिगत संवाद, सर्वोत्तम प्रथाओं के साझाकरण और डिजिटल नवाचारों के प्रदर्शन हेतु एक मंच के रूप में कार्य करता है।

ई-गवर्नेंस पर 28वाँ राष्ट्रीय सम्मेलन (National Conference on e-Governance- NCeG), 2025

  • थीम: ‘न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन’ (Minimum Government, Maximum Governance) के दृष्टिकोण के साथ ‘विकसित भारत: सिविल सेवा और डिजिटल परिवर्तन’ (Viksit Bharat: Civil Service and Digital Transformation)
  • राष्ट्रीय पुरस्कार: इस सम्मेलन के दौरान 19 अनुकरणीय पहलों हेतु ई-गवर्नेंस के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार-2025 प्रदान किए गए।
  • नई श्रेणी का समावेश: केंद्रीय पंचायती राज मंत्रालय (MoPR) के साथ साझेदारी में DARPG द्वारा स्थापित ‘सेवा वितरण को गहन बनाने हेतु ग्राम पंचायतों में जमीनी स्तर की पहल’ (Grassroots-level initiatives in Gram Panchayats for deepening service delivery)।

विशाखापत्तनम घोषणा की मुख्य विशेषताएँ

  • राष्ट्रीय दृष्टिकोण: ‘न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन’ (Minimum Government, Maximum Governance) के अनुरूप समावेशी, नागरिक-केंद्रित और पारदर्शी शासन का समर्थन करता है।
    • डिजिटल-प्रथम नागरिक सेवाओं के विकसित भारत 2047 विजन पर आधारित हैं।
  • प्रौद्योगिकी-संचालित शासन: कृत्रिम बुद्धिमत्ता, मशीन लर्निंग, ब्लॉकचेन, भौगोलिक सूचना प्रणाली, इंटरनेट ऑफ थिंग्स और डेटा एनालिटिक्स जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों को अपनाना पारदर्शी, सतत् और नागरिक-केंद्रित शासन को सक्षम बनाने में सहायक होना चाहिए।
    • उदाहरण: AI के नैतिक और पारदर्शी अपनाने पर ध्यान केंद्रित करते हुए बहुभाषी, वास्तविक समय और क्षेत्र-विशिष्ट नागरिक सेवाएँ प्रदान करने के लिए डिजिटल इंडिया भाषिणी (Digital India BHASHINI) और डिजी यात्रा (Digi Yatra) जैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता-संचालित प्लेटफॉर्मों का विस्तार करना।
  • सफल मॉडलों का अनुकरण: मध्य प्रदेश में संपदा 2.0 (SAMPADA 2.0), बंगलूरू में ई-खाता (e-Khata), महाराष्ट्र में रोहिणी ग्राम पंचायत (Rohini Gram Panchayat) और NHAI द्वारा ड्रोन एनालिटिक्स मॉनिटरिंग सिस्टम (DAMS) जैसी सफल परियोजनाओं को प्रौद्योगिकी-आधारित सेवा वितरण के सिद्ध मॉडलों के रूप में अनुकरण और विस्तारित करना।
    • उदाहरण: ई-खाता (e-Khata) ने बंगलूरू में संपत्ति विवादों में 30% की कमी की।
  • जमीनी और समावेशी विकास: NeSDA के तहत पूर्वोत्तर और लद्दाख में डिजिटल सेवाओं का विस्तार करना।
    • जमीनी स्तर पर, रोहिणी, पश्चिम मजलिशपुर, सुआकाटी और पलसाना के पंचायत मॉडलों का देश भर में विस्तार किया जाएगा, जबकि महिलाओं, युवाओं और हाशिए पर स्थित समुदायों के लिए डिजिटल साक्षरता पहल का उद्देश्य समावेशिता को बढ़ावा देना है।
  • साइबर सुरक्षा और लचीलापन: परिवहन, रक्षा और नागरिक सेवा प्लेटफॉर्म जैसे क्षेत्रों में साइबर लचीलापन विकसित करने के लिए जीरो-ट्रस्ट आर्किटेक्चर, पोस्ट-क्वांटम सुरक्षा तथा एआई-सक्षम निगरानी प्रणालियों सहित मजबूत उपायों को आवश्यक माना गया।
  • कृषि: किसान ऋण, परामर्श और बाजार पहुँच के लिए राष्ट्रीय कृषि स्टैक (National Agri Stack) के क्रियान्वयन में तेजी लाना, जिससे जलवायु-अनुकूल खेती को बढ़ावा मिले।
    • उदाहरण: कर्नाटक में कृषि स्टैक पायलटों (Agri Stack pilots) ने मृदा-स्वास्थ्य कार्ड-आधारित परामर्श में सुधार किया है।
  • सहयोग और क्षेत्रीय नवाचार केंद्र: व्यापक समाधानों के लिए सरकार-उद्योग-अकादमिक साझेदारी को बढ़ावा देना; विशाखापत्तनम को एक IT और नवाचार केंद्र के रूप में स्थापित करना।
    • आंध्र प्रदेश वर्ष 2030 तक 50,000 युवाओं के लिए विशेष IT क्षेत्र और कौशल प्रशिक्षण की योजना बना रहा है।

छह श्रेणियाँ और उल्लेखनीय पुरस्कार विजेता

  • श्रेणी I: डिजिटल परिवर्तन हेतु प्रौद्योगिकी के उपयोग द्वारा सरकारी प्रक्रिया का पुनर्रचना।
    • गोल्ड (केंद्रीय स्तर की पहल): माइनिंग टेनमेंट प्रणाली (Mining Tenement System): तेज और पारदर्शी प्रक्रिया के लिए खनन लाइसेंस अनुमोदन और प्रबंधन को डिजिटल बनाता है।
    • गोल्ड (राज्य/संघ राज्य क्षेत्र स्तर की पहल): संपदा 2.0 (SAMPADA 2.0) या  ‘संपत्ति और दस्तावेजों का स्टाम्प एवं प्रबंधन आवेदन’ (Stamps And Management of Property And Documents Application) 2.0: संपत्ति और दस्तावेज प्रबंधन को डिजिटल रूप से सुव्यवस्थित करता है, विवादों और देरी को कम करता है।
  • श्रेणी II: नागरिक केंद्रित सेवाएँ प्रदान करने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता और अन्य आधुनिक तकनीकों के उपयोग द्वारा नवाचार को बढ़ावा देना।
    • गोल्ड (केंद्रीय स्तर की पहल): डिजिटल इंडिया भाषा विभाग और डिजी यात्रा।
  • श्रेणी III: साइबर सुरक्षा में सर्वोत्तम ई-गवर्नेंस पद्धतियाँ/नवाचार
    • गोल्ड: रेलवे प्रणालियों के लिए ITOT अभिसरण में मजबूत साइबर सुरक्षा उपाय: रेल नेटवर्क में सुरक्षित और सुदृढ़ संचालन सुनिश्चित करता है।
  • श्रेणी IV: जिला स्तर/शहरी स्थानीय निकायों (Urban Local Bodies- ULBs) और ग्राम पंचायतों/समतुल्य पारंपरिक स्थानीय निकायों द्वारा की जाने वाली पहलों पर ध्यान केंद्रित करते हुए सेवा वितरण को गहन/व्यापक बनाने हेतु जमीनी स्तर की पहल।
    • गोल्ड – रोहिणी ग्राम पंचायत, महाराष्ट्र: राज्य का पहला पूर्णतः कागजरहित ई-कार्यालय, जो 1,027 ऑनलाइन सेवाएँ, रियल-टाइम शिकायत निवारण और 100% घरेलू डिजिटल साक्षरता सुनिश्चित करता है।
    • सिल्वर – पश्चिम मजलिशपुर ग्राम पंचायत (West Majlishpur Gram Panchayat), त्रिपुरा: जवाबदेही तथा समयबद्धता के लिए निगरानी के साथ नागरिक चार्टर और संचालित डिजिटल शासन को लागू करता है, जन्म, मृत्यु, विवाह प्रमाण-पत्र, व्यापार लाइसेंस, संपत्ति रिकॉर्ड और मनरेगा जॉब कार्ड ऑनलाइन उपलब्ध कराता है।
    • जूरी अवार्ड – पलसाना ग्राम पंचायत, गुजरात: डिजिटल गुजरात और ग्राम सुविधा जैसे प्लेटफॉर्मों को एकीकृत करके QR/UPI-आधारित संपत्ति कर भुगतान, ऑनलाइन शिकायत निवारण और वार्षिक रूप से 10,000 से अधिक नागरिकों के लिए पारदर्शी कल्याणकारी सेवाएँ प्रदान करना।
    • जूरी अवार्ड – सुआकाटी ग्राम पंचायत, ओडिशा: ओडिशावन (OdishaOne) और सेवा ओडिशा (Seva Odisha) के माध्यम से आवश्यक सेवाओं का डिजिटलीकरण, 24×7 नागरिकों तक पहुँच, रियल-टाइम ट्रैकिंग और महिला नेतृत्व एवं समावेशी सेवा वितरण को बढ़ावा देना।
  • श्रेणी V: NAeG, प्रधानमंत्री उत्कृष्टता पुरस्कार, राज्य/संघ राज्य क्षेत्र/जिला द्वारा अन्य केंद्रीय मंत्रालयों द्वारा प्रदान किए गए पुरस्कारों जैसी सफल राष्ट्रीय पुरस्कृत परियोजनाओं का अनुकरण और विस्तार करना।
    • गोल्ड: संपूर्ण शिक्षा कवच (Sampurna Shiksha Kavach): डिजिटल शिक्षा निगरानी और शिक्षण परिणाम प्लेटफॉर्म का राज्यों में विस्तार करना।
  • श्रेणी VI: केंद्रीय मंत्रालयों/राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों द्वारा डिजिटल प्लेटफॉर्म में डेटा एनालिटिक्स के उपयोग द्वारा डिजिटल परिवर्तन
    • गोल्ड: राजमार्ग प्रबंधन के लिए ड्रोन एनालिटिक्स मॉनिटरिंग सिस्टम (Drone Analytics Monitoring System- DAMS): ड्रोन और डेटा एनालिटिक्स का उपयोग करके वास्तविक समय राजमार्ग प्रबंधन।

ई-गवर्नेंस क्या है?

  • परिभाषा: यह सरकार द्वारा सेवाएँ प्रदान करने, सूचनाओं का आदान-प्रदान करने और नागरिकों के साथ कुशलतापूर्वक एवं पारदर्शी ढंग से बातचीत करने के लिए सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (Information and Communication Technology- ICT) के उपयोग को संदर्भित करता है।

  • उद्देश्य: नागरिक-केंद्रित और सहभागी शासन सुनिश्चित करना।
    • सार्वजनिक सेवा वितरण में दक्षता, जवाबदेही और पारदर्शिता में सुधार करना।
    • प्रशासनिक विलंब को कम करना और भ्रष्टाचार को न्यूनतम करना।
  • मुख्य घटक
    • सरकार-से-नागरिक (G2C): उमंग, डिजिलॉकर और ऑनलाइन प्रमाण-पत्र जैसी सेवाएँ।
    • सरकार-से-व्यवसाय (G2B): व्यापार, कर और अनुपालन के लिए डिजिटल प्रक्रियाएँ।
    • सरकार-से-सरकार (G2G): डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से अंतर-विभागीय समन्वय।

ई-गवर्नेंस का दायरा

  • सेवाओं की बेहतर पहुँच और व्यापकता: ई-गवर्नेंस सरकारों को दूरस्थ और कम सेवा प्राप्त क्षेत्रों तक पहुँचते हुए, बड़े पैमाने पर सेवाएँ प्रदान करने में सक्षम बनाती है।
    • उदाहरण के लिए: डिजिलॉकर और ई-डिस्ट्रिक्ट प्लेटफॉर्म पर ई-गवर्नेंस सेवाओं के अखिल भारतीय एकीकरण को सक्षम करके, इलेक्ट्रॉनिक सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) ने सभी 36 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के नागरिकों को लगभग 2,000 डिजिटल सेवाओं तक कभी भी, कहीं भी निर्बाध पहुँच प्रदान की है।
  • अधिक नागरिक भागीदारी और सहभागिता: ई-प्लेटफॉर्म फीडबैक लूप, ऑनलाइन परामर्श, शिकायत निवारण और सहभागी योजना को सक्षम बनाते हैं।
    • उदाहरण के लिए: संयुक्त राष्ट्र ई-गवर्नेंस सर्वेक्षण, 2024 के अनुसार, वर्ष 2024 में भारत का ई-भागीदारी सूचकांक 0.6575 था, जो 193 देशों में 61वें स्थान पर था।
  • डेटा-संचालित और साक्ष्य-आधारित शासन: बिग डेटा सेट, विश्लेषण और AI का उपयोग करके नीति का मार्गदर्शन किया जा सकता है, परिणामों की निगरानी की जा सकती है तथा कार्यक्रमों को गतिशील रूप से समायोजित किया जा सकता है।
  • स्थानीय स्तर पर सुदृढ़ीकरण (जमीनी स्तर पर शासन): ई-गवर्नेंस केवल राष्ट्रीय/राज्य स्तर पर ही नहीं है; स्थानीय निकाय (पंचायत/नगर पालिकाएँ) लोगों की आवश्यकताओं के लिए सूक्ष्म समाधान लागू कर सकते हैं।
    • उदाहरण के लिए: त्रिपुरा की पश्चिम मजलिसपुर ग्राम पंचायत ने ई-गवर्नेंस के माध्यम से ‘सेवा वितरण को गहन/व्यापक बनाने’ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार (2024-25) जीता।
  • दक्षता और लागत में कमी: ई-गवर्नेंस कार्यप्रवाह को स्वचालित बनाता है, जिससे देरी और अतिरिक्त खर्च कम होते हैं।
    • उदाहरण के लिए: GeM ने वर्ष 2016 से खरीद लागत में 45,000 करोड़ रुपये से अधिक की बचत की है।

ई-गवर्नेंस की प्रमुख चुनौतियाँ

  • डिजिटल डिवाइड और समावेशिता अंतराल: ग्रामीण, गरीब और महिलाएँ प्रायः कम डिजिटल पहुँच के कारण पीछे छूट जाते हैं।
    • उदाहरण के लिए: GSMA द्वारा जारी मोबाइल जेंडर गैप रिपोर्ट, 2024 में बताया गया है कि भारत में केवल 75% महिलाओं के पास मोबाइल फॉर्म हैं, जबकि पुरुषों के पास यह संख्या 85% है और कम महिलाएँ, मोबाइल इंटरनेट सेवाओं के बारे में जानती हैं या उनका उपयोग करती हैं।
  • कम डिजिटल साक्षरता: केवल कनेक्टिविटी ही काफी नहीं है; कई नागरिकों में डिजिटल सेवाओं का उपयोग करने का कौशल नहीं है।
    • उदाहरण के लिए: केंद्रीय श्रमिक शिक्षा बोर्ड के अनुसार, भारत में केवल 38% परिवार डिजिटल रूप से साक्षर हैं (शहरी क्षेत्रों में 61% और ग्रामीण क्षेत्रों में 25%)
  • उपयोगकर्ता-केंद्रित डिजाइन पूर्वाग्रह: अनेक ई-गवर्नेंस परियोजनाएँ नागरिकों की उपयोगिता आवश्यकताओं की तुलना में ‘बैक-एंड’ एकीकरण और तकनीकी दक्षता को प्राथमिकता देती हैं, जिसके परिणामस्वरूप ऐसे प्लेटफॉर्म विकसित हो जाते हैं जिन पर गैर-तकनीकी अथवा ग्रामीण उपयोगकर्ताओं के लिए नेविगेट करना कठिन होता है।
    • उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय छात्रवृत्ति पोर्टल (National Scholarship Portal–NSP) दस्तावेजों तक पहुँच के लिए डिजिलॉकर (DigiLocker) को एकीकृत करता है, किंतु उपयोगकर्ताओं को प्रायः खंडित लिंक, जटिल आधार-संबंधी क्वेरी तथा सीमित भाषा विकल्पों जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों के लिए पहुँच में गंभीर बाधाएँ उत्पन्न होती हैं।
  • साइबर सुरक्षा और डेटा गोपनीयता जोखिम: बढ़ते साइबर हमले डिजिटल प्रणालियों में विश्वास को खतरे में डालते हैं।
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2024 में, बैंकिंग, वित्तीय सेवाएँ और बीमा (Banking, Financial Services, and Insurance- BFSI) क्षेत्र में साइबर हमलों में वृद्धि देखी गई, जिससे वैश्विक डेटा उल्लंघन लागत बढ़कर 4.88 मिलियन अमेरिकी डॉलर (वर्ष 2023 से 10% की वृद्धि) और भारत में 2.18 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गई।
  • खंडित और एकाकी कार्यान्वयन: प्लेटफॉर्म के बीच अंतर-संचालन की कमी दोहराव को जन्म देती है।
    • उदाहरण के लिए: राज्य-स्तरीय ई-पोर्टल प्रायः डिजिलॉकर जैसी केंद्रीय प्रणालियों के साथ एकीकृत नहीं होते हैं।
  • बुनियादी ढाँचे की कमियाँ: टियर-II/III शहरों और गाँवों में विद्युत कटौती, खराब कनेक्टिविटी और कम कर्मचारी क्षमता के कारण योजना की प्रभावशीलता सीमित हो गई है।
    • उदाहरण के लिए: भारतनेट चरण II का कार्य वर्ष 2025 तक टल गया है, जिससे ग्रामीण ब्रॉडबैंड सेवा की शुरुआत धीमी हो रही है।
  • विश्वास और नैतिक चिंताएँ: नागरिक व्यक्तिगत डेटा (विशेषकर आधार से जुड़ी सेवाओं) के दुरुपयोग को लेकर चिंतित हैं।
    • उदाहरण के लिए: उत्तर प्रदेश में एक कई जिलों में जाँच के दौरान बड़े पैमाने पर राशन धोखाधड़ी का पर्दाफाश हुआ। जाँच में यह सामने आया कि आधार डेटा से छेड़छाड़ और बायोमेट्रिक धोखाधड़ी के माध्यम से सरकारी सब्सिडी वाले खाद्यान्न को वास्तविक लाभार्थियों से वंचित कर दिया गया।

जीरो ट्रस्ट आर्किटेक (Zero Trust Architecture- ZTA)

यह एक साइबर सुरक्षा ढाँचा है, जो इस सिद्धांत पर आधारित है: ‘नेवर ट्रस्ट, ऑलवेज वेरीफाई”। पारंपरिक सुरक्षा मॉडलों के विपरीत, जो मानते हैं कि नेटवर्क के भीतर सब कुछ विश्वसनीय है,जीरो ट्रस्ट’ यह सिद्धांत बताता है कि नेटवर्क के भीतर या बाहर सभी उपयोगकर्ता, उपकरण एवं एप्लिकेशन संभावित खतरे में हो सकते हैं। केवल सख्त सत्यापन के उपरांत ही पहुँच प्रदान की जाती है।

ई-गवर्नेंस के लिए आगे की राह

  • डिजिटल डिवाइड को पाटना: सभी नागरिकों, खासकर ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में, तक सार्वभौमिक ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी सुनिश्चित करना।
    • सभी ग्राम पंचायतों में सार्वभौमिक ब्रॉडबैंड सुनिश्चित करने के लिए भारतनेट चरण II और III को पूर्ण करना।
    • छात्रों और ग्रामीण परिवारों के लिए रियायती स्मार्टफोन/टैबलेट उपलब्ध कराना।
      1. उदाहरण: केरल की K-FON (Kerala Fibre Optic Network) योजना गरीब परिवारों को मुफ्त इंटरनेट सेवा प्रदान कर रही है।
    • सार्वभौमिक डिजिटल साक्षरता: साइबर स्वच्छता, ई-भुगतान और ऑनलाइन गवर्नेंस प्लेटफॉर्म सहित डिजिटल सेवाओं का उपयोग करने की नागरिकों की क्षमता में वृद्धि करना।
    • प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान (Pradhan Mantri Gramin Digital Saksharta Abhiyan- PMGDISHA) को बुनियादी कौशल से आगे बढ़ाकर साइबर स्वच्छता, ई-वॉलेट का उपयोग और ई-सेवाओं तक पहुँच को शामिल करना।
    • स्कूली पाठ्यक्रम में डिजिटल साक्षरता को शामिल करना।
  • मजबूत साइबर सुरक्षा और डेटा संरक्षण: डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 को मजबूती से लागू करना।
    • सरकारी पोर्टलों का नियमित सुरक्षा ऑडिट, जीरो ट्रस्ट आर्किटेक्चर को अपनाना।
      1. उदाहरण: एस्टोनिया का ब्लॉकचेन-समर्थित सार्वजनिक अभिलेखों का मॉडल एक मानक के रूप में कार्य करता है।
  • प्लेटफॉर्म की अंतर-संचालनीयता और एकीकरण: सामान्य API, खुले मानक और साझा डिजिटल सार्वजनिक वस्तुओं का निर्माण करके दोहराव से बचा जा सकता है।
    • निर्बाध सेवा के लिए केंद्रीय योजनाओं (जैसे- डिजिलॉकर, आधार, GSTN) को राज्य पोर्टलों के साथ एकीकृत करना।
  • नौकरशाही का क्षमता निर्माण: मिशन कर्मयोगी (Mission Karmayogi) के तहत अनिवार्य डिजिटल शासन प्रशिक्षण।
    • प्रदर्शन-आधारित मूल्यांकन के माध्यम से अधिकारियों को प्रौद्योगिकी अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना।
    • उदाहरण: भाषिणी और डिजी यात्रा जैसे AI-संचालित नागरिक प्लेटफ़ॉर्म के प्रबंधन के लिए प्रशिक्षित अधिकारी।
  • समावेशी और नागरिक-केंद्रित डिजाइन: वॉइस-असिस्ट सुविधाओं के साथ स्थानीय भाषाओं में पोर्टल और ऐप विकसित करना।
    • दिव्यांग व्यक्तियों (PwDs) के लिए पहुँच सुनिश्चित करना।
    • उदाहरण: उमंग ऐप अब 13 भारतीय भाषाओं में सेवाएँ प्रदान करता है।
  • नवाचार और सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल को प्रोत्साहित करना: स्टार्ट-अप्स के मूल्यवर्द्धन सेवाएँ बनाने हेतु सरकारी डेटासेट स्थापित करना ।
    • डिजिटल स्वास्थ्य (आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन) और डिजिटल कृषि जैसे क्षेत्रों में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) का विस्तार करना।

निष्कर्ष

विशाखापत्तनम घोषणा-पत्र में समावेशी और नागरिक-केंद्रित डिजिटल शासन हेतु एक रोडमैप की रूपरेखा प्रस्तुत की गई है, जिसमें एआई, अनुकरणीय राज्य मॉडल, जमीनी स्तर की पहल, साइबर सुरक्षा और सहयोगात्मक साझेदारियों का उपयोग करते हुए दक्षता, पारदर्शिता एवं सुगमता को बढ़ाने की योजना है, ताकि भारत को विकसित भारत@2047  के लक्ष्य की ओर अग्रसर किया जा सके।

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