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Oct 01 2025

वासेनार व्यवस्था में सुधार

हाल ही में वासेनार व्यवस्था की क्लाउड सेवाओं और डिजिटल निगरानी प्रौद्योगिकियों को प्रभावी रूप से नियंत्रित करने की अक्षमता को लेकर चिंता व्यक्त की गई हैं।

वासेनार व्यवस्था के बारे में

  • वासेनार व्यवस्था कोई कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि नहीं है। यह सहभागी राज्यों के बीच एक स्वैच्छिक समझौता है, जिसका उद्देश्य परंपरागत हथियारों और दोहरे-उपयोग वाली वस्तुओं एवं प्रौद्योगिकियों के स्थानांतरण में पारदर्शिता और जिम्मेदारी को बढ़ावा देना है। 
  • इसकी स्थापना वर्ष 1996 में हुई थी और इसका संस्थापक दस्तावेज “इनिशियल एलीमेंट्स (Initial Elements)” कहलाता है। 
  • इसका मुख्यालय वियना, ऑस्ट्रिया में अवस्थित है। 
  • उद्देश्य: स्थानांतरण में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व को बढ़ावा देकर क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा को बढ़ाना, तथा अस्थिर करने वाले धन संचयन एवं आतंकवादी पहुँच को रोकना।
  • नियंत्रण सूचियाँ: इसमें युद्ध सामग्री और दोहरे उपयोग वाली वस्तुओं और प्रौद्योगिकियों की सूची शामिल है।
    • वर्ष 2013 में इसके दायरे का विस्तार किया गया, जिसमें उन ‘घुसपैठ संबंधी सॉफ्टवेयर’ (Intrusion Software) पर नियमन शामिल किया गया, जो सुरक्षा एवं निगरानी (साइबर-निगरानी) प्रणालियों को विफल या बाधित करने के उद्देश्य से विकसित किए जाते हैं।
  • सूचना विनिमय: हथियारों के हस्तांतरण, दोहरे उपयोग वाली प्रौद्योगिकियों और सामान्य नीतिगत मामलों पर सूचना साझा करने के लिए प्रक्रियाएँ प्रदान करता है।
  • सहभागी राज्य: वर्तमान में इसके 42 सहभागी राज्य हैं, जिनमें अमेरिका, रूस, जापान और यूरोपीय संघ के सदस्य देश सम्मिलित हैं।
    • भारत वर्ष 2017 में वासेनार व्यवस्था का सहभागी राज्य बना और तब से उसने इसके नियंत्रणों को अपने SCOMET ढाँचे में शामिल कर लिया है।
  • निर्णय लेना: पूर्ण अधिवेशन मुख्य निर्णय लेने वाला निकाय है, जो आम सहमति से कार्य करता है तथा सामान्य कार्य समूह एवं विशेषज्ञ समूह जैसे सहायक समूहों द्वारा समर्थित होता है।

बहुपक्षीय निर्यात नियंत्रण व्यवस्थाएँ

  • मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (MTCR): मिसाइल और मानवरहित हवाई वाहन प्रौद्योगिकी निर्यात पर केंद्रित।
  • ऑस्ट्रेलिया समूह (AG): रासायनिक और जैविक हथियार अप्रसार पर केंद्रित।
  • परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG): परमाणु निर्यात पर केंद्रित।
    • जेंगर समिति (ZC): यह परमाणु निर्यात को विनियमित करती है तथा यह सुनिश्चित करती है कि गैर-परमाणु-हथियार संपन्न देश परमाणु अप्रसार संधि (NPT) का अनुपालन करें।
  •  भारत MTCR, AG और वासेनार व्यवस्था  का सदस्य है, परंतु NSG का सदस्य नहीं है।

ध्वनिक वाहन चेतावनी प्रणाली (Acoustic Vehicle Alerting System – AVAS)

हाल ही में केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने मसौदा अधिसूचना में सभी इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए अक्टूबर 2027 तक ध्वनिक वाहन चेतावनी प्रणाली (AVAS) को अनिवार्य करने का प्रस्ताव रखा है।

  • अक्टूबर 2026 के बाद निर्मित नए इलेक्ट्रिक वाहन मॉडलों में AVAS लगाना अनिवार्य होगा, जबकि मौजूदा मॉडलों को अक्टूबर 2027 तक इसका पालन करना होगा।

AVAS के बारे में

  • यह इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) में एक सुरक्षा सुविधा है, जो कृत्रिम ध्वनि उत्पन्न कर पैदल यात्रियों और अन्य सड़क उपयोगकर्ताओं को वाहन की उपस्थिति की सूचना देती है।
  •  यह प्रणाली सुनिश्चित करती है कि सड़क उपयोगकर्ता आने वाले EV को पहचान सकें, जिससे दुर्घटनाओं का जोखिम कम होता है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और यूरोपीय संघ के कई देशों ने पहले ही पैदल यात्रियों की सुरक्षा बढ़ाने हेतु हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों में AVAS या इसी तरह की प्रणालियाँ अनिवार्य कर दी हैं।

बथुकम्मा उत्सव

हैदराबाद, तेलंगाना में आयोजित बथुकम्मा उत्सव ने दो गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स बनाए।

  • सबसे बड़ी बथुकम्मा पुष्प सज्जा: 63.11 फीट ऊँचा, 11 फीट चौड़ा, लगभग 7 टन फूलों से निर्मित।
  • समन्वित महिला प्रदर्शन: 1,354 प्रतिभागी द्वारा किया गया।

बथुकम्मा उत्सव के बारे में

  • “बथुकम्मा” का अर्थ है “माँ देवी का जीवित होना” और यह देवी पार्वती को समर्पित है।
  • यह एक पुष्प उत्सव है, जिसे मुख्य रूप से महिलाएँ नवरात्रि (सितंबर–अक्टूबर) के दौरान तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों में मनाती हैं।
  • तेलंगाना के गठन (वर्ष 2014) के बाद इसे राजकीय उत्सव के रूप में मान्यता दी गई।
  • उत्सव के दौरान महिलाएँ मौसमी फूलों को शंकु-आकृति में सजाती हैं, लोकगीत गाती हैं और अंतिम दिन “सद्दुला बथुकम्मा” पर इन्हें स्थानीय जलाशयों में विसर्जित करती हैं।

गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स के बारे में

  • इसका संचालन गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स लिमिटेड द्वारा किया जाता है, जिसका मुख्यालय लंदन में अवस्थित है।
  • गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स एक वार्षिक संदर्भ पुस्तक भी है और असाधारण मानवीय उपलब्धियों, कौशल और प्राकृतिक घटनाओं के लिए वैश्विक प्रमाणन प्राधिकरण भी है।
  • इसे पहली बार वर्ष 1955 में यूनाइटेड किंगडम में प्रकाशित किया गया था, जिसे गिनीज ब्रेवरी ने पब में रिकॉर्ड तथ्यों पर बहसों को सुलझाने के साधन के रूप में प्रायोजित किया था।

सहयोग पोर्टल (Sahyog Portal)

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार के सहयोग पोर्टल के विरुद्ध एक्स (ट्विटर) की याचिका को खारिज करते हुए इसे “लोक-कल्याण का उपकरण” बताया। 

  • न्यायालय ने कहा कि “भारत को कानून की अवहेलना का खेल का मैदान नहीं माना जा सकता।”

सहयोग पोर्टल के बारे में

  • प्रारंभ: वर्ष 2024
  • संचालन: भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (Indian Cybercrime Coordination Centre – I4C)
  • नोडल मंत्रालय: केंद्रीय गृह मंत्रालय
  • विकास उद्देश्य: यह पोर्टल सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के तहत सक्षम सरकार या उसकी एजेंसी द्वारा ऑनलाइन प्लेटफॉर्म/मध्यस्थों को नोटिस भेजने की प्रक्रिया को स्वचालित करता है।
  • कार्य
    • किसी भी अवैध कार्य में प्रयुक्त सूचना, डेटा या संचार लिंक को हटाने या उसकी पहुँच रोकने में सुविधा प्रदान करना।
    •  सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 79(3)(b) को लागू करना: यदि मध्यस्थ सरकारी नोटिस की अवहेलना करते हैं तो उन्हें “सेफ हार्बर”  (Safe harbour) संरक्षण नहीं मिलता।

महत्त्व

  • देश की सभी अधिकृत एजेंसियों  और सभी मध्यस्थों को एक ही मंच पर लाकर अवैध ऑनलाइन सूचनाओं के विरुद्ध त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित करता है।
  • यह देश में साइबर अपराध की रोकथाम, जाँच, जाँच-पड़ताल और अभियोजन के लिए एक प्रभावी ढाँचा और पारिस्थितिकी तंत्र तैयार करता है।

चिंताएँ और आलोचना

  • सरकार द्वारा ऑनलाइन/सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर अत्यधिक सेंसरशिप नियंत्रण को लेकर आशंका।
  • यह धारा 69A पर निर्भरता को कमजोर करता है, जिसमें सुनवाई और समीक्षा जैसी मजबूत सुरक्षा व्यवस्थाएँ हैं।
  • यह भारत में डिजिटल प्लेटफॉर्मों के नियमन के लिए एक उदाहरण स्थापित कर सकता है।

संदर्भ

हाल ही में CSIR–एडवांस्ड मैटेरियल्स एंड प्रोसेसेज रिसर्च इंस्टिट्यूट (AMPRI), भोपाल द्वारा विकसित और डिजाइन की गई साउंड डिटेक्शन एंड रेंजिंग (SODAR) प्रणाली का उद्घाटन भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD), दिल्ली  में किया गया। 

SODAR प्रणाली के बारे में

  • परिभाषा: SODAR एक प्रणाली है, जिसका उपयोग वायुमंडल का मापन और विश्लेषण करने के लिए किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य विभिन्न ऊँचाइयों पर पवन की गति, दिशा और तापमान प्रवणता का आकलन करना है।
  • सिद्धांत: यह रेडियो डिटेक्शन एंड रेंजिंग (RADAR) की तरह कार्य करता है, किंतु इसमें रेडियो तरंगों के स्थान पर ध्वनि तरंगों का उपयोग किया जाता है।

SODAR कैसे कार्य करता है?

  • ध्वनि तरंगों का उत्सर्जन: यह वातावरण में उच्च आवृत्ति वाली ध्वनि तरंगें (श्रव्य से अल्ट्रासोनिक सीमा तक) भेजता है।
    • ये तरंगें आमतौर पर एक स्थिर भू-आधारित इकाई से ऊपर की ओर निर्देशित होती हैं।
  • परावर्तन: जब ये तरंगें वायुमंडलीय विक्षोभ से टकराती हैं, तो ये वापस परावर्तित होती हैं।
    • यह प्रणाली परावर्तित ध्वनि तरंगों का पता लगाती है, जिससे वायु कणों की गति को मापने में मदद मिलती है।
  • डॉपलर शिफ्ट विश्लेषण: परावर्तित तरंगों की आवृत्ति में परिवर्तन (Doppler Shift) का विश्लेषण कर पवन की गति और दिशा का अनुमान लगाया जाता है।
    • यह परिवर्तन अलग-अलग ऊँचाइयों पर गतिमान हवा के वेग (हवा की गति) से सीधे तौर पर संबंधित है। आवृत्ति में कितना परिवर्तन होता है, यह मापकर, सिस्टम विभिन्न ऊँचाइयों पर वायु की रूपरेखा (गति और दिशा) की गणना करता है।
  • ऊर्ध्वाधर प्रोफाइलिंग: विभिन्न ऊँचाइयों पर पवन की गति और दिशा का ऊर्ध्वाधर प्रोफाइल तैयार किया जाता है।

SODAR के अनुप्रयोग 

  • मौसम विज्ञान और मौसम पूर्वानुमान: यह सामान्यतः मौसम के पूर्वानुमान  के लिए प्रयोग किया जाता है, विशेषकर पवन पैटर्न, ऊर्ध्वाधर पवन शियर (Vertical wind shear,) और वायुमंडलीय स्थिरता के अध्ययन हेतु।
    • यह चक्रवात की निगरानी और वायुमंडलीय विक्षोभ को समझने में भी उपयोगी है।
  • पवन ऊर्जा: विंड फार्म विभिन्न ऊँचाइयों पर पवन संसाधनों का आकलन करने के लिए SODAR का उपयोग करते हैं, ताकि पवन टरबाइन लगाने से पहले उपयुक्त जानकारी प्राप्त हो।
    • यह विशेष ऊँचाइयों पर पवन गति और दिशा का डेटा प्रदान कर टरबाइनों के लिए सर्वोत्तम स्थान  पहचानने में मदद करता है।
  • पर्यावरण प्रदूषण निगरानी: इसका प्रयोग औद्योगिक स्थलों या शहरी क्षेत्रों के पास वायु गुणवत्ता और वायुमंडलीय विक्षोभ का आकलन करने हेतु किया जाता है।
    • SODAR उन वायु गतियों की निगरानी करता है, जो प्रदूषकों के प्रसार को प्रभावित कर सकती हैं।
  • विमानन सुरक्षा: SODAR प्रणाली विमानन में विंड शियर डेटा उपलब्ध कराती है, पवन दिशा और गति में अचानक परिवर्तन का पता लगाकर ‘टेक-ऑफ’ और लैंडिंग के दौरान सुरक्षा सुनिश्चित करती है।
  • महासागर विज्ञान और समुद्री अध्ययन: इसका उपयोग महासागर-वायुमंडल अंतःक्रिया के अध्ययन के लिए किया जाता है, विशेषकर तटीय क्षेत्रों में जहाँ समुद्री परिस्थितियों को प्रभावित करने में पवन महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

SODAR के लाभ 

  •  लाभदायक  प्रणाली: यह एक लाभदायक  प्रणाली है, जिसे वायुमंडल से प्रत्यक्ष संपर्क की आवश्यकता नहीं होती, जिससे यह उपयोग और पर्यावरण दोनों के लिए सुरक्षित है।
  • रियल टाइम डेटा: यह वायुमंडलीय परिस्थितियों के रियल टाइम मापन उपलब्ध कराता है, जो विंड फार्म या मौसम निगरानी केंद्र जैसे गतिशील वातावरणों के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
  • लागत प्रभावी: अन्य विधियों (जैसे LIDAR) की तुलना में यह अधिक किफायती और प्रबंधन में आसान है।
  • विस्तृत ऊँचाई रेंज: यह कई किलोमीटर की ऊँचाई तक पवन की प्रकृति  माप सकती है (प्रणाली पर निर्भर करता है)।

SODAR की सीमाएँ

  • पर्यावरणीय संवेदनशीलता: SODAR का प्रदर्शन मौसम पर अत्यधिक निर्भर होता है; वर्षा, तापमान और आर्द्रता जैसे कारक इसे प्रभावित कर सकते हैं।
  • सीमित रेंज और रिजॉल्यूशन : यद्यपि SODAR पवन प्रोफाइल माप सकता है, पर इसकी रेंज और रिजॉल्यूशन  प्रायः LIDAR या RADAR जैसी तकनीकों से कम होती है।

संदर्भ

केंद्र सरकार ने वक्फ संपत्ति पंजीकरण के डिजिटलीकरण हेतु उम्मीद पोर्टल लॉन्च किया है।

एकीकृत वक्फ प्रबंधन, सशक्तीकरण, दक्षता एवं विकास (Unified Waqf Management, Empowerment, Efficiency, and Development-UMEED) पोर्टल के बारे में

  • यह संपूर्ण भारत में वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण एवं विनियमन के लिए एक केंद्रीकृत डिजिटल प्लेटफॉर्म  है।
  • शुभारंभ: 6 जून, 2025
  • प्रशासन: केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय, राज्य वक्फ बोर्डों एवं न्यायिक प्राधिकारियों के समन्वय में।
  • अधिदेश: उम्मीद नियम, 2025, जो वक्फ अधिनियम, 1995 की धारा 108B के तहत तैयार किए गए थे।
  • उद्देश्य: वक्फ संपत्तियों का पारदर्शी एवं समयबद्ध पंजीकरण सुनिश्चित करना।
    • लाभार्थियों को अधिकारों, दायित्वों एवं कानूनी सुरक्षा उपायों तक डिजिटल पहुँच प्रदान करना।
    • लंबे समय से चले आ रहे संपत्ति विवादों का समाधान करना एवं जवाबदेही बढ़ाना।
    • रियल-टाइम डेटा एवं जियोटैग्ड मैपिंग के माध्यम से नीतिगत अंतर्दृष्टि को सुगम बनाना।

मुख्य विशेषताएँ

  • समयबद्ध पंजीकरण: सभी संपत्तियों का पंजीकरण ऐप लॉन्च के छह महीने के भीतर होना आवश्यक है।
  • जियोटैगिंग एवं डिजिटलीकरण: पंजीकरण के लिए सटीक माप एवं भौगोलिक स्थिति संबंधी डेटा की आवश्यकता होती है।
  • विवाद समाधान: समय सीमा के बाद अपंजीकृत संपत्तियों को विवादित घोषित कर दिया जाता है एवं वक्फ न्यायाधिकरण को भेज दिया जाता है।
  • उपयोगकर्ता सहायता: संशोधित कानून के तहत कानूनी जागरूकता उपकरण एवं मार्गदर्शन।
  • महिला-केंद्रित प्रावधान: महिलाओं के अधिकार वाली संपत्तियाँ वक्फ नहीं हो सकतीं, लेकिन महिलाएँ, बच्चे एवं आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लाभार्थी इसके लिए पात्र बने रहेंगे। यह विधवाओं, तलाकशुदा महिलाओं तथा अनाथों को वक्फ-अल-औलाद संपत्तियों से भरण-पोषण सहायता के लिए आवेदन करने में सक्षम बनाता है।

वक्फ संपत्तियों के बारे में

  • वक्फ इस्लामी कानून के तहत धार्मिक या जन कल्याणकारी उपयोग के लिए एक स्थायी धर्मार्थ निधि है।
    • इसे विक्रय, विरासत में या हस्तांतरित नहीं किया जा सकता है एवं यह दीर्घकालिक सामाजिक या धार्मिक उद्देश्यों की पूर्ति करती है।
  • स्केल ऑफ होल्डिंग: वक्फ संपत्तियाँ 38-39 लाख एकड़ में विस्तृत हैं, जो भारत की कुल भूमि का लगभग 5% है, जो रक्षा एवं रेलवे की संयुक्त होल्डिंग से भी अधिक है।

संदर्भ

भारत के आनुष्ठानिक रंगमंच पवित्र अनुष्ठानों को नाट्य प्रदर्शन के साथ मिश्रित करते हैं, जिसमें धार्मिक कथावाचन, सामुदायिक भागीदारी एवं सांस्कृतिक मूल्यों का संचरण शामिल होता है।

  • यूनेस्को ने ऐसी कई परंपराओं को अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (Intangible Cultural Heritage- ICH) के रूप में मान्यता दी है, जो उनके वैश्विक महत्त्व तथा संरक्षण की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (Intangible Cultural Heritage- ICH) के बारे में

  • परिभाषा: अमूर्त सांस्कृतिक विरासत उन जीवंत परंपराओं, प्रथाओं, अभिव्यक्तियों, ज्ञान एवं कौशलों को संदर्भित करती है, जिन्हें समुदाय अपनी सांस्कृतिक विरासत के हिस्से के रूप में पहचानते हैं।

  • अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा के लिए यूनेस्को कन्वेंशन, वर्ष 2003 के तहत परिभाषित है।
  • क्षेत्र: इसके अंतर्गत कुल 5 क्षेत्रों को शामिल किया गया है, जिसमे मौखिक परंपराएँ, प्रदर्शन कलाएँ, अनुष्ठान एवं उत्सव कार्यक्रम, प्रकृति तथा ब्रह्मांड का ज्ञान, पारंपरिक शिल्प कौशल।
  • भारत के अमूर्त सांस्कृतिक विरासत तत्व: वर्तमान में कुल 15 अमूर्त सांस्कृतिक विरासत को शामिल किया गया हैं, जिनमें कुटियाट्टम, मुडियेट्टु, रम्मन एवं रामलीला शामिल हैं।
    • बिहार की छठ पूजा को सितंबर 2025 में नामांकित किया गया है।

कुटियाट्टम (केरल) के बारे में

  • प्रकृति: संस्कृत नाट्य परंपरा, 2,000 वर्ष से भी अधिक पुरानी।
  • विशेषताएँ
    • संहिताबद्ध भाव (हस्त अभिनय), 40 दिनों तक चलने वाले विस्तृत अभिनय।
    • कुट्टंपलम (मंदिर थिएटर) में आनुष्ठानिक पवित्रता के साथ प्रस्तुत किया जाता है।
    • प्रशिक्षण: गुरु-शिष्य परंपरा के तहत 10-15 वर्षों का प्रशिक्षण।
    • संलयन: संस्कृत नाटक, अभिनय एवं संगीत का सम्मिश्रण।
  • विषय: दिव्य कथावाचन, पवित्र मंच, समुदाय-समर्थित कला।

मुदियेट्टु (केरल)

  • प्रकृति: काली एवं दारिका के युद्ध को दर्शाने वाला आनुष्ठानिक नृत्य-नाटक, जो प्रतिवर्ष फसल कटाई के बाद प्रदर्शित किया जाता है।
  • विशेषताएँ
    • भगवती कवु (मंदिर परिसर) में आयोजित।
    • कालमेझुथु (देवी की प्रतिमा का आनुष्ठानिक चित्रण) से आरंभ।
    • पूरा गाँव, सभी जातियों के लोग इसमें योगदान देते हैं (मुखौटे बनाना, वेशभूषा, अनुष्ठान भूमिकाएँ)।
    • सम्मिश्रण: नृत्य, संगीत, मुखौटे, नाटक, दृश्य कला।
    • प्रशिक्षुता निरंतरता सुनिश्चित करती है।

रम्माण (उत्तराखंड)

  • प्रकृति: भूमियाल देवता के सम्मान में सलूर-डुंगरा गाँवों का वार्षिक उत्सव।
  • विशेषताएँ
    • अनुष्ठानों, महाकाव्य पाठों, मुखौटा नृत्यों एवं मौखिक परंपराओं का संयोजन।
    • वाद्य यंत्र: ढोल, दमाऊ, मँजीरा, झाँझर, भंकोरा।
    • समुदाय आधारित भूमिकाएँ (पुजारी, मुखौटा निर्माता, ढोल वादक) पूरे गाँव की भागीदारी के साथ।
    • मौखिक प्रसारण निरंतरता बनाए रखता है।
    • संयोजन: रंगमंच, संगीत, नृत्य, मुखौटे, कथा सुनाना।

रामलीला (उत्तर भारत)

  • प्रकृति: रामायण का नाटकीय पुनरावर्तन, विशेष रूप से दशहरे के दौरान।
  • विशेषताएँ
    • तुलसीदास के रामचरितमानस पर आधारित।
    • मंदिर प्रांगण या सार्वजनिक स्थानों पर प्रदर्शित।
    • समुदाय-संचालित: शौकिया कलाकार, स्थानीय निधि, बड़े पैमाने पर जनभागीदारी।
    • अवधि: 10-12 दिन, एक महीने तक (रामनगर, वाराणसी)।
    • संलयन: कथात्मक नाटक, संगीत, नृत्यकला, संवाद, वेशभूषा।

संस्थागत भूमिका: संगीत नाटक अकादमी

  • अधिकार: प्रदर्शन कलाओं के संरक्षण एवं संवर्द्धन हेतु शीर्ष निकाय (स्थापना वर्ष 1953)।
  • कार्य
    • दस्तावेजीकरण एवं अभिलेखन- दृश्य-श्रव्य अभिलेख, पांडुलिपियाँ, प्रकाशन।
    • प्रशिक्षण- गुरु-शिष्य परंपरा, कार्यशालाओं, शिविरों का समर्थन।
    • सम्मान- पुरस्कार (अकादमी पुरस्कार, फेलोशिप, उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ युवा पुरस्कार)।
    • शोध एवं प्रकाशन- पुस्तकें, पत्रिकाएँ, मोनोग्राफ।
    • उत्सव एवं प्रदर्शन- राष्ट्रीय नाट्य एवं नृत्य उत्सव।
    • यूनेस्को के साथ सहयोग- अनुष्ठान नाट्यों का नामांकन एवं संरक्षण।
    • कलाकार सहायता- छात्रवृति, अनुदान, अवसंरचना।

आनुष्ठानिक रंगमंचों का महत्त्व

  • दिव्य कथावाचन: महाकाव्यों, किंवदंतियों एवं देवताओं से ली गई कथाएँ।
  • पवित्र स्थान: मंदिरों, प्रांगणों या आनुष्ठानिक स्थलों में प्रस्तुतियाँ।
  • सामुदायिक भागीदारी: सामूहिक स्वामित्व, जाति/समुदाय की भूमिकाएँ।
  • संचरण: मौखिक, प्रदर्शनात्मक एवं प्रशिक्षुता-आधारित ज्ञान हस्तांतरण।
  • कलाओं का सम्मिश्रण: रंगमंच, नृत्य, संगीत, मौखिक साहित्य एवं शिल्प का सम्मिश्रण।

संदर्भ

राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (National Biodiversity Authority-NBA) ने आंध्र प्रदेश जैव विविधता बोर्ड को पूर्वी घाटों में स्थित लुप्तप्राय प्रजाति रेड सैंडर्स के संरक्षण के लिए 82 लाख रुपये प्रदान करने की मंजूरी दी है।

लाल सैंडर्स के बारे में

  • वैज्ञानिक नाम: टेरोकर्पस सैंटलिनस (Pterocarpus Santalinus)
  • सामान्य नाम: लाल चंदन या रेड सैंडर्स
  • फैमिली: फैबिएसी (लेग्यूम फैमिली)
  • मूल रेंज: दक्षिणी भारत के पूर्वी घाट, विशेष रूप से आंध्र प्रदेश में, चित्तूर, कडप्पा, कुरनूल और अनंतपुर जैसे जिलों में।
  • अवस्थिति: चट्टानी पहाड़ियों, शुष्क पर्णपाती वन क्षेत्र, प्रायः उथली मृदा के साथ खड़ी ढलानों पर।
  • लकड़ी की विशेषताएँ: गहरा लाल रंग, भारी और मजबूत।
  • उपयोग
    • फर्नीचर और सजावटी सामान
    • संगीत वाद्ययंत्र (वुडविंड, टक्कर)
    • नक्काशी
    • पारंपरिक चिकित्सा (आयुर्वेद, सिद्ध में)
    • सीढ़ियाँ और प्रतिष्ठा काष्ठ उत्पाद
  • उच्च वाणिज्यिक मूल्य: लाल चंदन की दुर्लभता और उच्च वांछनीयता ने इसे अत्यधिक माँग वाला बना दिया है, जिससे अवैध कटाई और तस्करी में वृद्धि हुई है।
  • प्रमुख खतरे: इसमें अवैध लॉगिंग एवं तस्करी, निवास स्थान की हानि और विखंडन, तथा प्राकृतिक पुनर्जनन की कमी, बीजों का अपर्याप्त प्रसरण और चारण की कमी शामिल हैं।
  • संरक्षण की स्थिति
    • भारत में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के अनुसूची IV के तहत सूचीबद्ध
    • CITES के परिशिष्ट II में शामिल – केवल कठोर विनियमन के तहत व्यापार की अनुमति है।
    • IUCN स्थिति: लुप्तप्राय।

पहल के बारे में

  • उद्देश्य: किसानों को आपूर्ति के लिए 1 लाख रेड सैंडर्स (Red Sanders) पौधे तैयार करना तथा “वनों के बाहर पेड़” (Trees Outside Forests – ToF) कार्यक्रम का समर्थन करना।
  • वित्तीयन स्रोत: प्रवेश और लाभ-साझाकरण (ABS) तंत्र, जो स्थानीय समुदायों, व्यक्तियों और जैव विविधता प्रबंधन समितियों (Biodiversity Management Committees-BMC) के साथ जैविक संसाधनों से प्राप्त लाभों का उचित और न्यायसंगत साझाकरण सुनिश्चित करता है।
  • सामुदायिक भूमिका: स्थानीय एवं आदिवासी समुदायों को नर्सरी विकास, वृक्षारोपण और देखभाल में सीधे भागीदारी करनी चाहिए।
  • रोजगार प्रभाव: इस पहल से संरक्षण में कौशल निर्माण, आजीविका के अवसर और जमीनी स्तर पर पारिस्थितिकी सुरक्षा (Stewardship) को बढ़ावा मिलेगा।

PW Only IAS विशेष

प्रवेश और लाभ साझाकरण (ABS) तंत्र

  • परिभाषा: प्रवेश और लाभ-साझाकरण तंत्र (ABS) तंत्र जैव विविधता पर कन्वेंशन (Convention on Biological Diversity-CBD), 1992 और नागोया प्रोटोकॉल, 2010 के तहत एक रूपरेखा है, जो सुनिश्चित करती है कि जैविक संसाधनों के उपयोग से उत्पन्न लाभ स्थानीय एवं स्वदेशी समुदायों सहित सभी प्रदाताओं के साथ निष्पक्ष और समान रूप से साझा किए जाएँ।
  • भारत में: इसे जैव विविधता अधिनियम, 2002 (संशोधित 2023) के माध्यम से लागू किया गया है तथा इसका संचालन राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (NBA), राज्य जैव विविधता बोर्ड और स्थानीय जैव विविधता प्रबंधन समितियों (BMC) द्वारा किया जाता है।
  • उद्देश्य
    • जैव विविधता के स्थायी उपयोग को बढ़ावा देना।
    • स्थानीय/आदिवासी समुदायों की सहभागिता सुनिश्चित करना जो जैविक संसाधनों और पारंपरिक ज्ञान के संरक्षक हैं।
    • सुरक्षा और पुनर्जनन में लाभ-साझाकरण धन को फिर से संगठित करके संरक्षण प्रयासों को मजबूत करना।
  • कार्य प्रणाली
    • उपयोगकर्ताओं (कंपनियों, शोधकर्ताओं, उद्योगों) को जैविक संसाधनों तक पहुँच के लिए अनुमोदन प्राप्त करना चाहिए।
    • मौद्रिक और गैर-मौद्रिक लाभ (रॉयल्टी, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, क्षमता-निर्माण, अनुसंधान सहयोग, आदि) को स्थानीय समुदायों और संरक्षण निकायों के साथ साझा किया जाता है।

पहल का महत्त्व

  • जैव विविधता संरक्षण: एक गंभीर रूप से संकटग्रस्त स्थानिक प्रजातियों के संरक्षण का समर्थन करता है।
  • सामुदायिक सशक्तीकरण: संरक्षण से जुड़ी आजीविका के माध्यम से स्थानीय समुदायों के लिए रोजगार और कौशल-निर्माण।
  • कार्रवाई: यह दर्शाती है कि ABS के प्रावधान समुदाय-संचालित संरक्षण में कैसे परिवर्तित हो सकते हैं।
  • वैश्विक प्रतिबद्धताएँ: जैव विविधता अभिसमय (Convention on Biological Diversity – CBD) के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को सुदृढ़ करता है और इसके राष्ट्रीय जैव विविधता लक्ष्यों की प्राप्ति को प्रोत्साहित करता है।

सन्दर्भ

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गाजा संघर्ष को समाप्त करने की व्यापक योजना का अनावरण किया, इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के साथ एक 20-बिंदु प्रस्ताव की घोषणा की।

ट्रंप की गाजा शांति योजना की प्रमुख विशेषताएँ

  • हमास निरस्त्रीकरण: हमास को अपने हथियार आत्मसमर्पण करने चाहिए; शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के प्रति प्रतिबद्ध देशों (जॉर्डन, मिस्र, कतर) को सुरक्षित मार्ग प्रदान किया जाना चाहिए।
  • कोई मजबूर विस्थापन नहीं: जैसे-जैसे सुरक्षा स्थिर होती जाएगी, इजरायल धीरे-धीरे ISF को सुरक्षा जिम्मेदारी सौंप देगा और केवल एक सुरक्षा परिधि बनाए रखेगा जब तक कि खतरे को पूर्णतः समाप्त न किया जा सके।
  • सुरक्षा तंत्र: फिलिस्तीनी पुलिस को प्रशिक्षित करने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय स्थिरीकरण बल (International Stabilization Force-ISF) का गठन किया जाना चाहिए, जिसमें अमेरिका, अरब राष्ट्र और अन्य वैश्विक साझेदार शामिल हों। इसका उद्देश्य सुरक्षित सीमाओं की रक्षा करना और सहायता तथा हथियारों के प्रवाह को नियंत्रित करना है।
  • इजरायली रक्षा बलों द्वारा वापसी: जैसे-जैसे सुरक्षा की स्थिति स्थिर होगी, इजरायल धीरे-धीरे ISF को सुरक्षा जिम्मेदारी सौंप देगा और केवल एक सीमित सुरक्षा परिधि बनाए रखेगा जब तक कि खतरे को पूर्णतः समाप्त न किया जाए।
  • संक्रमणकालीन शासन: ट्रंप अंतरराष्ट्रीय “शांति बोर्ड ऑफ पीस” की निगरानी में, एक तकनीकी फिलिस्तीनी समिति (जिसमें योग्य फिलिस्तीनी सदस्य और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ शामिल होंगे) द्वारा अस्थायी रूप से संचालन किया जाएगा; इस पहल में UK के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर भी शामिल थे।
  • मानवीय सहायता: संयुक्त राष्ट्र और रेड क्रिसेंट पर्यवेक्षण के तहत बुनियादी ढाँचे, अस्पतालों, बेकरियों और मलबे निकासी के लिए पुनः शुरू करने के लिए सहायता।
  • कैदी विनिमय: स्वीकृति के 72 घंटों के भीतर, हमास को बंधकों को रिहा करना होगा, जबकि इजरायल को 250 कैदियों और 1,700 अन्य बंदियों, जिनमें महिलाएँ और बच्चे भी शामिल हैं, को मुक्त करना होगा।
  • क्षेत्रीय सुनिश्चितता: अरब और मुस्लिम राज्य हमास के अनुपालन को सुनिश्चित करने और संभावित खतरों के पुनरुत्थान को रोकने के लिए गारंटी प्रदान करेंगे।
  • अंतरराष्ट्रीय समर्थन: आठ देशों द्वारा समर्थित- कतर, जॉर्डन, UAE, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, तुर्की, सऊदी अरब और मिस्र।

महत्त्व

  • गाजा के शासन और पुनर्निर्माण के लिए ओस्लो एकॉर्ड्स (1993) के बाद से पहला ठोस बहुपक्षीय प्रस्ताव।
  • रणनीतिक त्रुटि के साथ अरब भागीदारों की भूमिका: रणनीतिक त्रुटि के जोखिम को ध्यान में रखते हुए, प्रस्ताव में अनुपालन और समर्थन सुनिश्चित करने के लिए अरब तथा मुस्लिम देशों, जैसे- कतर, सऊदी अरब, मिस्र और जॉर्डन की भूमिका को विशेष रूप से रेखांकित किया गया है।
    • हालाँकि, हमास और हिजबुल्लाह पर प्रभाव के साथ एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय हितधारक ईरान का बहिष्करण, दीर्घकालिक स्थिरता और व्यवस्था की समावेशिता के संबंध में सवाल उठाता है।
  • ट्रंप स्वयं को न केवल एक मध्यस्थ के रूप में बल्कि पुनर्निर्माण के एक वास्तुकार के रूप में भी रखते हैं।
    • गाजा के पुनर्विकास को बड़े पैमाने पर निवेश और आर्थिक अवसरों से जोड़ते हुए, यह प्रस्ताव एक व्यवसाय-केंद्रित दृष्टिकोण के साथ राजनयिक नेतृत्व को सम्मिलित करता है।

प्रमुख चुनौतियाँ

  • हमास की भूमिका: क्या हमास ऐसी शर्तों पर सहमत होगा, जिसमें उन्हें सत्ता और हथियारों की आवश्यकता को मान्यता दी जाए, यह एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है।
  • इजरायल की राजनीति: नेतन्याहू को अपने चरमपंथी दक्षिणपंथी सहयोगियों को योजना को स्वीकार करने के लिए मनाना चाहिए।
  • विदेशी नियंत्रण: गाजा ने प्रभावी रूप से एक बाह्य रूप से नियंत्रित संक्रमणकालीन प्राधिकरण को सौंप दिया, जो फिलिस्तीनी प्राधिकरण की उपेक्षा कर रहा था।
  • ट्रंप की प्रतिबद्धता: गाजा के पुनर्निर्माण की अध्यक्षता में एक दीर्घकालिक अमेरिकी भूमिका है, लेकिन ट्रंप के व्यापार-उन्मुख दृष्टिकोण से निरंतर राजनीतिक प्रतिबद्धता के बारे में संदेह पैदा होता है।
  • योजना की कमी: दस्तावेज में विस्तृत समयरेखा और कार्यान्वयन तंत्र का अभाव है।
  • वेस्ट बैंक का बहिष्करण: वेस्ट बैंक में इजरायल की बस्तियों और हिंसा का कोई उल्लेख नहीं है, जिससे प्रमुख राजनीतिक मुद्दे अनसुलझे बने हुए हैं।
  • क्षेत्रीय जटिलताएँ: अरब की भागीदारी न्यूनतम और अस्पष्ट है; ईरान को पूरी तरह से बाहर रखा गया है।
    • मध्यस्थों के रूप में कतर और मिस्र पर निर्भरता अनुपालन की गारंटी के लिए पर्याप्त नहीं हो सकती है।

भारत के लिए निहितार्थ

  • सकारात्मक पक्ष
    • यह शांति योजना पश्चिम एशिया को स्थिर कर सकती है, भारत के प्रवासी (90 लाख लोगों) और तेल की आपूर्ति (क्षेत्र से 80%) की रक्षा कर सकती है।
    • भारत की रणनीतिक परियोजनाओं जैसे कि भारत-मध्य पूर्व-यूरोपीय कॉरिडोर (IMEC) को बढ़ावा।
  • सावधानी बरतने की आवश्यकता
    • पाकिस्तान की इस योजना में भागीदारी और समर्थन भारत के लिए एक नई राजनीतिक और रणनीतिक चुनौती प्रस्तुत करता है।
    • भारत को गठबंधन के बीच इजरायल, अरब राज्यों और ईरान के साथ अपने संबंधों को संतुलित करना चाहिए।

संदर्भ

राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय (CUoR) के शोधकर्ताओं ने स्वदेशी जैव-सूत्रीकरण आधारित ‘डेजर्ट सॉइलीफिकेशन टेक्नोलॉजी’ का उपयोग करके शुष्क थार रेगिस्तान में सफलतापूर्वक गेहूँ की खेती की है।

‘डेजर्ट सॉइलीफिकेशन टेक्नोलॉजी’ क्या है?

  • ‘डेजर्ट सॉइलीफिकेशन टेक्नोलॉजी’ एक जैव-प्रौद्योगिकीय और पारिस्थितिकी प्रक्रिया है, जिसमें अनुर्वरक रेगिस्तानी रेत को उसकी संरचना, जल धारण क्षमता और सूक्ष्मजीवी गतिविधियों में परिवर्तन करके मृदा जैसी, कृषि-उत्पादक भूमि में परिवर्तित किया जाता है।

मरुस्थलीकरण क्या है?

  • मरुस्थलीकरण: यह शुष्क, अर्द्ध-शुष्क और शुष्क उप-आर्द्र क्षेत्रों में भूमि क्षरण को दर्शाता है, जो जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियों सहित विभिन्न कारणों से होता है।
  • भूमि क्षरण: यह मृदा कटाव, लवणता, जलभराव, वनों की कटाई, खनन या अव्यवस्थित भूमि उपयोग के कारण भूमि की जैविक/आर्थिक उत्पादकता में कमी या हानि को दर्शाता है।
  • भारत में स्थिति: ISRO के मरुस्थलीकरण और भूमि क्षरण एटलस (2021) के अनुसार:
    • भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र की 29.77% (लगभग 97.85 मिलियन हेक्टेयर) भूमि क्षरण की प्रक्रिया से गुजर रही है।
    • प्रमुख प्रभावित राज्य: राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश, तेलंगाना।
    • केवल राजस्थान में भारत के मरुस्थलीकृत क्षेत्र का लगभग 20% भाग है।
  • मरुस्थलीकरण की चुनौतियाँ: यह चुनौती अरावली पर्वतमाला के विनाश, वर्षा में अस्थिरता, रेतीले टीलों के विस्तार, अनियंत्रित वृक्षारोपण और भूमि क्षरण के कारण तीव्रता से बढ़ रही है।

प्रौद्योगिकी और कार्यप्रणाली

  • सॉइलीफिकेशन टेक्नोलॉजी: पॉलिमर और स्वदेशी जैव-सूत्रीकरण का उपयोग करके रेगिस्तानी रेत को मृदा में परिवर्तित किया जाता है।
  • जैव-सूत्रीकरण के कार्य
    • रेतीली मृदा में जल धारण क्षमता बढ़ाना।
    • रेत के कणों के परस्पर संयोजन को बढ़ावा देकर मृदा की संरचना में सुधार करना।
    • लाभकारी सूक्ष्मजीवी गतिविधियों को प्रोत्साहित करें, जिससे फसलों में तनाव प्रतिरोधक क्षमता बढ़े।
  • उद्देश्य: रेतीली रेगिस्तानी भूमि को कृषि-उत्पादक मृदा में बदलने के लिए एक स्थायी विधि विकसित करना।
  • पूर्व परीक्षण: खेत-स्तरीय गेहूँ परीक्षणों से पहले बाजरा, ग्वार गम और चना के साथ प्रयोगशाला में किए गए।

गेहूँ की खेती का प्रयोग

  • स्थान: अजमेर जिले (थार रेगिस्तान का किनारा) के पुष्कर के पास बांसेली गाँव।
  • फसल: गेहूँ-4079 देशी किस्म।
  • पैमाना: नवंबर 2024 में 1,000 वर्ग मीटर में बोए गए 13 किलोग्राम बीज।
  • सिंचाई दक्षता: चक्र के दौरान केवल तीन सिंचाई की आवश्यकता, जबकि सामान्यतः पाँच से छह चक्रों में सिंचाई करनी पड़ती है।
  • उपज: अप्रैल 2025 में कटाई की गई, प्रति 100 वर्ग मीटर 26 किलोग्राम गेहूँ का उत्पादन।
  • बीज-से-कटाई अनुपात: 1:20, सामान्य शुष्क क्षेत्र की स्थितियों की तुलना में दोगुना।
  • संस्थागत सहायता: कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) और राज्य बागवानी विभाग द्वारा समर्थित परियोजना।

महत्त्व

  • कृषि उत्पादकता: अनुर्वरक रेगिस्तान को कृषि योग्य भूमि में परिवर्तित करता है, जिससे खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
  • जल दक्षता: शुष्क क्षेत्रों के लिए आवश्यक उच्च जल-उपयोग दक्षता प्रदर्शित करता है।
    • सिंचाई की आवश्यकता में कमी (3-4 चक्र बनाम 5-6 चक्र)।
  • धारणीयता: अनुर्वरक रेगिस्तानी भूमि को उत्पादक कृषि भूमि में परिवर्तित करके, मरुस्थलीकरण का जैव-प्रौद्योगिकी समाधान प्रदान करता है।
  • मापनीयता: राजस्थान और अन्य शुष्क क्षेत्रों में बाजरा तथा मूँग जैसी अन्य फसलों तक विस्तार की क्षमता।
  • सामाजिक प्रभाव: शुष्क पारिस्थितिकी तंत्रों में खाद्य सुरक्षा और सतत् कृषि के लिए अनुप्रयुक्त विज्ञान को एक व्यावहारिक समाधान में परिवर्तित होते हुए प्रदर्शित करता है।

मरुस्थलीकरण के प्रति भारत की प्रतिक्रिया

  • राष्ट्रीय मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखा नियंत्रण कार्ययोजना (NAPDLDD, 2001): यह संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण प्रतिवेदन (UNCCD) की प्रतिबद्धताओं के अनुरूप स्थायी भूमि उपयोग, मृदा संरक्षण, वनरोपण और सूखा प्रबंधन के लिए एक ढाँचा प्रदान करता है।
  • राष्ट्रीय वनरोपण कार्यक्रम (NAP): यह कार्बन सिंक को बढ़ाने और भूमि क्षरण को रोकने के लिए बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण तथा जंगलों की पारिस्थितिकी-बहाली को बढ़ावा देता है।
  • मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना (2015): यह किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड जारी करता है, जिसमें पोषक तत्त्वों की स्थिति और उर्वरक संबंधी सिफारिशें होती हैं, जो रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग को रोकने और मृदा की उर्वरता को बनाए रखने में मदद करती हैं।
  • राष्ट्रीय वर्षा-आधारित क्षेत्रों के लिए जलाशय विकास परियोजना (NWDPRA): यह क्षीण वर्षा-आधारित क्षेत्रों में मृदा और जल संरक्षण, वर्षा जल संचयन और नमी प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY): इसका उद्देश्य ‘हर खेत को जल’ और जल उपयोग दक्षता में सुधार (“प्रति बूँद, अधिक फसल”) है, ताकि जलभराव, क्षारीयकरण और मरुस्थलीकरण को रोका जा सके।
  • मरुस्थलीकरण और भूमि क्षरण पर एटलस (ISRO, 2016 और 2021): यह उपग्रह आधारित मानचित्रण और निम्नीकृत भूमि की निगरानी करता है, जिससे नीति निर्माताओं को हॉटस्पॉट की पहचान करने और हस्तक्षेप की योजना बनाने में मदद मिलती है।
  • अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताएँ
    • भारत संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय (UNCCD, 1994) का हस्ताक्षरकर्ता है।
    • UNCCD के कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज-14 (COP-14), नई दिल्ली, 2019 में भारत ने यह संकल्प लिया:
      • वर्ष 2030 तक भूमि क्षरण तटस्थता (Land Degradation Neutrality – LDN) हासिल करना।
      • वर्ष 2030 तक 2.6 करोड़ हेक्टेयर (26 मिलियन हेक्टेयर) क्षतिग्रस्त भूमि को पुनर्स्थापित करना।

संदर्भ

हाल ही में IISc बंगलूरू ने ‘साइफन’ द्वारा संचालित विलवणीकरण प्रणाली का अनावरण किया।

साइफन विलवणीकरण प्रणाली के बारे में

  • यह पारंपरिक सौर तकनीक की तुलना में समुद्री जल को अधिक तेजी से, सस्ते में और अधिक विश्वसनीय तरीके से स्वच्छ पेयजल में परिवर्तित करता है।
  • क्षमता: यह प्रति वर्ग मीटर सूर्य के प्रकाश में प्रति घंटे 6 लीटर से अधिक पेयजल उत्पादन करने में सक्षम है।
  • मापनीयता: लवण संचय और मापन सीमाओं को पार करता है, विश्वसनीय और मापनीय सौर विलवणीकरण को सक्षम बनाता है, और ऑफ-ग्रिड, तटीय और जल-संकटग्रस्त क्षेत्रों में जल सुरक्षा को बढ़ाता है।
  • ऊर्जा स्रोत: सौर या अपशिष्ट ऊष्मा पर संचालित होता है, कम लागत वाली सामग्री (एल्यूमीनियम, कपड़ा) का उपयोग करता है और अत्यधिक लवणीय जल (20% तक लवण) का प्रबंधन करता है।
  • प्रमुख घटक
    • मिश्रित साइफन: नालीदार धातु की सतह के साथ कपड़े की बत्ती।
    • वाष्पक-संघनित्र युग्म: ‘मल्टी स्टेज स्टैकिंग’ और ऊष्मा पुनर्चक्रण को सक्षम करते हैं।
    • अति-संकीर्ण वायु अंतराल: अति-संकीर्ण वायु अंतराल वह अंतराल है, जिसकी चौड़ाई केवल 2 मिमी. होती है और यह कुशल संघनन के लिए आवश्यक है।

कार्य तंत्र

  • कपड़े की बत्ती जलाशय से लवणीय जल खींचती है।
  • गुरुत्वाकर्षण, क्रिस्टलीकरण से पहले लवण को बहा ले जाता है।
  • गर्म धातु पर एक पतली परत प्रसारित होकर वाष्पित हो जाती है।
  • वाष्प ‘संकीर्ण वायु अंतराल’ में ठंडी सतह पर संघनित हो जाती है।
  • दक्षता बढ़ाने के लिए, ऊष्मा का कई चरणों में पुनः उपयोग किया जाता है।

साइफन के बारे में

  • साइफन एक उलटी U-आकार की नली होती है, जिसका उपयोग गुरुत्वाकर्षण बल का उपयोग करके, बिना किसी पंप के, तरल पदार्थ को ऊपरी जलाशय से निचले जलाशय में ले जाने के लिए किया जाता है।
  • तरल पदार्थ नली के ऊपरी ‘इनलेट’ भाग से वायुमंडल में प्रवाहित होता है और गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव से लंबे ‘आउटलेट’ भाग के माध्यम से निचले निर्वहन बिंदु तक प्रवाहित किया जाता है।

संदर्भ

पिछले दस वर्षों में देश में दुग्ध उत्पादन में 63% से अधिक की वृद्धि हुई है, जो 146 मिलियन टन से बढ़कर 239 मिलियन टन से अधिक हो गया है।

भारत के डेयरी क्षेत्र के बारे में

  • उत्पादन में वैश्विक नेतृत्व: भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक है, जो वैश्विक आपूर्ति में लगभग 25% का योगदान देता है। दुग्ध उत्पादन वर्ष 2014-15 में 146.3 मीट्रिक टन से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 239.3 मीट्रिक टन हो गया।
    • यह देश के पशुधन संसाधनों और किसान-संचालित सहकारी समितियों के मजबूत आधार को दर्शाता है।

  • प्रति व्यक्ति उपलब्धता: पिछले एक दशक में भारत में प्रत्येक व्यक्ति के लिए दुग्ध की उपलब्धता में तेजी से वृद्धि हुई है।
    • प्रति व्यक्ति आपूर्ति में 48% की वृद्धि हुई है, जो वर्ष 2023-24 में 471 ग्राम/व्यक्ति प्रतिदिन से अधिक हो गई। यह वैश्विक औसत से लगभग 322 ग्राम/व्यक्ति प्रतिदिन से कहीं अधिक है।
  • आर्थिक आधार: डेयरी क्षेत्र राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में 5% का योगदान देता है, जिससे यह सबसे बड़ा कृषि उत्पाद बन जाता है।
    • यह 8 करोड़ से अधिक किसानों, जिनमें से कई लघु एवं सीमांत हैं, को आजीविका का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत प्रदान करता है।
  • सहकारी डेयरी नेटवर्क की क्षमता: भारत में सहकारी डेयरी क्षेत्र व्यापक और सुव्यवस्थित है।
    • वर्ष 2025 तक, इसमें 22 दुग्ध संघ, 241 जिला सहकारी संघ, 28 विपणन डेयरियाँ और 25 दुग्ध उत्पादक संगठन (Milk Producer Organisations- MPO) शामिल हैं। कुल मिलाकर, ये लगभग 2.35 लाख गाँवों को शामिल करते हैं और 1.72 करोड़ डेयरी किसान इनके सदस्य हैं।

  • महिला-केंद्रित उद्यम: डेयरी कार्यबल का लगभग 70% हिस्सा महिलाएँ हैं और 48,000 से अधिक महिला-नेतृत्व आधारित सहकारी समितियाँ ग्राम स्तर पर संचालित होती हैं, जो डेयरी को समावेशी विकास और सशक्तीकरण के एक वाहक के रूप में स्थापित करती हैं।
    • महिलाओं द्वारा संचालित श्रीजा दुग्ध उत्पादक संगठन को महिलाओं को सशक्त बनाने में अपने अग्रणी कार्य के लिए शिकागो में विश्व डेयरी शिखर सम्मेलन में अंतरराष्ट्रीय डेयरी महासंघ द्वारा प्रतिष्ठित डेयरी नवाचार पुरस्कार प्रदान किया गया।

गोजातीय आबादी में वृद्धि

  • भारत में 303.76 मिलियन (गाय, भैंस, मिथुन, याक) की विशाल गोजातीय आबादी है, जो डेयरी उत्पादन और कृषि में सूखे की रोकथाम दोनों का आधार है।

  • इसके अलावा, 74.26 मिलियन भेड़ और 148.88 मिलियन बकरियों का, विशेष रूप से शुष्क और अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में, महत्त्वपूर्ण योगदान हैं।
  • वर्ष 2014 और वर्ष 2022 के बीच, भारत में गोजातीय उत्पादकता (किग्रा./वर्ष) में 27.39% की वृद्धि की, जो विश्व में सर्वाधिक है। इस दौरान भारत ने चीन, जर्मनी और डेनमार्क जैसे देशों को पीछे छोड़ते हुए 13.97% की वैश्विक औसत वृद्धि से कहीं अधिक वृद्धि की है।
  • उत्पादकता वृद्धि में सरकारी योजनाओं की भूमिका: यह वृद्धि ‘राष्ट्रीय गोकुल मिशन’ (Rashtriya Gokul Mission- RGM) जैसे कार्यक्रमों का परिणाम है, जो गोजातीय प्रजनन, आनुवंशिक उन्नयन और नस्ल उत्पादकता वृद्धि पर केंद्रित है।
    • ‘पशुधन स्वास्थ्य रोग नियंत्रण कार्यक्रम’ (Livestock Health Disease Control Programme- LHDCP) ने मोबाइल पशु चिकित्सा इकाइयों (MVUs) के माध्यम से स्वास्थ्य सेवा की पहुँच का विस्तार किया है, जो किसानों के घर पर ही रोग निदान, टीकाकरण, उपचार, छोटी-मोटी सर्जरी और विस्तार सेवाएँ प्रदान करती हैं।
  • पारंपरिक और आधुनिक प्रथाओं का एकीकरण: इसके अतिरिक्त, स्थायी पशुधन स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए आयुर्वेद को आधुनिक पशु चिकित्सा पद्धतियों के साथ एकीकृत किया जा रहा है।
    • एथनो-वेटरिनरी मेडिसिन (Ethno-Veterinary Medicine- EVM) एंटीबायोटिक प्रतिरोध से निपटने के लिए एक लागत-प्रभावी, पर्यावरण-अनुकूल विकल्प के रूप में उभर रही है। ‘बोवाइन मैस्टाइटिस’ के उपचार में इसका सफल उपयोग सिंथेटिक दवाओं पर निर्भरता को कम करने और अधिक स्वस्थ तथा अनुकूलित डेयरी प्रणालियों के निर्माण क्षमता को दर्शाता है।

भारत में डेयरी क्रांति का क्रमिक विकास और प्रमुख पहलें

  • NDDB की स्थापना (वर्ष 1965): किसानों को उत्पादक संघों में संगठित करने के अमूल सहकारी मॉडल को दोहराने के लिए गुजरात के आनंद में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (National Dairy Development Board-NDDB) की स्थापना की गई थी।
    • इसने भारत में किसान-केंद्रित, सहकारी-नेतृत्व वाले डेयरी पारिस्थितिकी तंत्र की नींव रखी।
  • ऑपरेशन फ्लड – डेयरी क्रांति (वर्ष 1970): वर्ष 1970 में वर्गीज कुरियन के नेतृत्व में शुरू किए गए ‘ऑपरेशन फ्लड’ ने देश भर में आनंद-पैटर्न सहकारी समितियों का निर्माण किया, जिससे ग्रामीण उत्पादकों को शहरी उपभोक्ताओं के साथ जोड़ा गया।
    • इससे भारत दुग्ध की कमी वाले देश से विश्व में सर्वाधिक दुग्ध उत्पादक देश बन गया और बाद में NDDB को राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान (वर्ष 1987) घोषित किया गया।

  • राष्ट्रीय गोकुल मिशन (Rashtriya Gokul Mission -RGM): इसे वर्ष 2014 में शुरू किया गया और ₹3,400 करोड़ के परिव्यय के साथ वर्ष 2025 में संशोधित किया गया, राष्ट्रीय गोकुल मिशन स्वदेशी नस्ल के संरक्षण, गोजातीय आनुवंशिक उन्नयन और उत्पादकता वृद्धि पर केंद्रित है।
    • यह कृत्रिम गर्भाधान (AI) नेटवर्क का विस्तार करता है, ‘सीमन सेंटर’ को सुदृढ़ करता है, और ‘सेक्स-सॉर्टेड सीमन’ (sex-sorted semen) और बुल प्रोडक्शन (Bull Production) को बढ़ावा देता है। इसके कार्यान्वयन से पिछले दशक में दुग्ध उत्पादन में 63.56% और प्रजनन में 26.34% की वृद्धि हुई है।

  • कृत्रिम गर्भाधान एवं राष्ट्रीय कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम (NAIP): वर्तमान में, 33% प्रजनन योग्य गोजातीय पशुओं को कृत्रिम गर्भाधान के माध्यम से कवर किया जाता है, जबकि शेष गोवंशीय पशुओं पर निर्भर हैं।
    • NAIP के तहत, किसानों के घर जाकर निःशुल्क कृत्रिम गर्भाधान सेवाएँ प्रदान की जाती हैं। अगस्त 2025 तक, NAIP ने 9.16 करोड़ पशुओं को कवर किया और 14.12 करोड़ गर्भाधान किए, जिससे 5.54 करोड़ किसानों को लाभ हुआ।
  • उन्नत प्रजनन प्रौद्योगिकियाँ: उत्पादकता को और बढ़ाने के लिए, 22 IVF प्रयोगशालाएँ स्थापित की गई हैं और 10.32 मिलियन से अधिक ‘सेक्स-सॉर्टेड सीमेन’ का उत्पादन किया गया है, जिनमें से 70 लाख खुराकों का उपयोग पहले ही किया जा चुका है।
    • ये उपाय अधिक बछियों (मादा) के जन्म और दुग्ध की आपूर्ति में दीर्घकालिक वृद्धि सुनिश्चित करते हैं।

  • मैत्री तकनीशियन: ग्रामीण भारत में बहुउद्देशीय कृत्रिम गर्भाधान तकनीशियन (मैत्री) योजना ग्रामीण युवाओं को तीन महीने का प्रशिक्षण देती है और पशु चिकित्सा उपकरणों के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
    • वर्तमान में 38,700 से अधिक मैत्री संस्थान घर के द्वार पर प्रजनन और पशु चिकित्सा सेवाएँ प्रदान कर रहे हैं, जिससे वैज्ञानिक पशुधन प्रबंधन तक अंतिम लक्ष्य तक पहुँच सुनिश्चित होती है।
  • संतति परीक्षण और नस्ल गुणन: चूँकि दुग्ध एक लैंगिक रूप से सीमित गुण है, इसलिए संतति परीक्षण के माध्यम से मादा पशुओं के दुग्ध प्रदर्शन का मूल्यांकन करके उच्च गुणवत्ता वाले साँडों के चयन की प्रक्रिया सुनिश्चित की जाती है, जिससे नस्ल सुधार और दुग्ध उत्पादन में दीर्घकालिक वृद्धि संभव होती है।
    • वर्ष 2021-24 के बीच, 3,747 संतति-परीक्षणित साँडों का उत्पादन किया गया और 132 नस्ल गुणन फार्मों को मंजूरी दी गई, जिससे गुणवत्तापूर्ण पशुओं तक पहुँच में सुधार हुआ।
  • NDDB डेयरी सेवाएँ और MPO: MPO ने 23 दुग्ध उत्पादक संगठनों (MPO) को सहायता प्रदान की है, जिनमें 16 महिलाओं द्वारा संचालित MPO शामिल हैं, जो सामूहिक रूप से 35,000 गाँवों में 12 लाख उत्पादकों को सशक्त बनाते हैं।
    • ये MPOs भारत के डेयरी क्षेत्र के समावेशी विकास मॉडल को मजबूत करते हैं।
  • श्वेत क्रांति 2.0 (वर्ष 2024-29): सहकारी समितियों का विस्तार करने के लिए एक नई पंचवर्षीय योजना, जिसका लक्ष्य 75,000 नई डेयरी सहकारी समितियाँ बनाना और 46,422 मौजूदा सहकारी समितियों को सशक्त बनना है।
    • वर्ष 2028-29 तक, सहकारी समितियों द्वारा दुग्ध की खरीद 1007 लाख किलोग्राम/दिन तक पहुँचने की उम्मीद है।
    • यह बायोगैस उत्पादन, जैविक खाद और प्राकृतिक कृषि पद्धतियों में संलग्न सहकारी समितियों के माध्यम से स्थिरता और चक्रीयता को भी एकीकृत करता है, साथ ही मृत पशुओं की त्वचा, हड्डियों और सींगों का प्रबंधन करके अपशिष्ट-मूल्य का उपयोग भी करता है।

NDDB ने देश भर में प्रमुख सरकारी कार्यक्रमों को लागू करके इस मिशन को आगे बढ़ाया है। राष्ट्रीय डेयरी योजना चरण-I और राष्ट्रीय गोकुल मिशन जैसी पहलों ने किसानों को केंद्र में रखा है और सहयोग को मूल सिद्धांत बनाया है। राष्ट्रीय डेयरी योजना चरण-I को उल्लेखनीय सफलता मिली और इसे ‘अत्यधिक संतोषजनक’ रेटिंग मिली, जो विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित परियोजनाओं को दी जाने वाली सर्वोच्च रेटिंग है।

भारत में डेयरी क्षेत्र का महत्त्व

  • पोषण सुरक्षा: दुग्ध लगभग संपूर्ण आहार है, जो कुपोषण और प्रछन्न भूख को दूर करने के लिए अत्यंत आवश्यक है और मध्याह्न भोजन तथा एकीकृत बाल विकास सेवाओं (ICDS) जैसी योजनाओं का समर्थन करता है।
    • इन पोषण कार्यक्रमों में डेयरी की आपूर्ति बच्चों और महिलाओं के लिए प्रोटीन और सूक्ष्म पोषक तत्त्वों का सेवन सुनिश्चित करती है।
  • दैनिक ग्रामीण आय: मौसमी फसलों के विपरीत, डेयरी दैनिक आय का प्रवाह प्रदान करती है, जिससे किसानों को जलवायु और बाजार के तनावों से सुरक्षा मिलती है।
  • रोजगार सृजन: यह क्षेत्र उत्पादन, प्रसंस्करण, रसद और विपणन में व्यापक प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार सृजित करता है।
    • यह गरीबी उन्मूलन के साधन के रूप में कार्य करता है, भूमिहीन और सीमांत किसानों को स्थिर नकदी प्रवाह प्रदान करता है और उन्हें मौसम आधारित फसल तनावों से बचाता है।
  • निर्यात क्षमता: मूल्य संवर्द्धन (पनीर, प्रोबायोटिक्स, शिशु फार्मूला) के साथ, डेयरी उद्योग विदेशी मुद्रा आय और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ा सकता है।
    • हालाँकि, भारत को विश्व व्यापार संगठन की व्यापार बाधाओं, SPS मानकों और ब्रांडिंग चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिसके लिए वैश्विक बाजारों का प्रभावी ढंग से दोहन करने के लिए नीतिगत सुधारों की आवश्यकता है।

भारत के डेयरी क्षेत्र के लिए चुनौतियाँ

  • कम उत्पादकता: बड़ी गोजातीय आबादी के बावजूद, भारत का औसत दुग्ध उत्पादन इजरायल और न्यूजीलैंड जैसे वैश्विक नेतृत्वकर्ताओं की तुलना में बहुत कम है, जिससे दक्षता सीमित हो जाती है।
    • इसका कारण खंडित लघु-धारक मॉडल, देशी नस्लों की कम आनुवंशिक क्षमता और अपर्याप्त पोषण एवं स्वास्थ्य सेवा है।
  • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा: शीतलन संयंत्रों, शीत शृंखलाओं और प्रसंस्करण इकाइयों की कमी के कारण दुग्ध खराब होता है तथा पोषण गुणवत्ता में कमी आती है, विशेषतः ग्रामीण क्षेत्रों में।
    • भारत का केवल 20-22% दुग्ध औपचारिक क्षेत्र में संसाधित होता है (जबकि यूरोपीय संघ/अमेरिका में यह 90% से अधिक है), जो एक कमजोर मूल्य शृंखला को दर्शाता है।
  • चारे की कमी: भारत में हरे चारे की 12-15% और सूखे चारे की 25% कमी है, जिससे उत्पादकता कम होती है और लागत बढ़ती है।
    • साइलेज निर्माण, हाइड्रोपोनिक चारा उत्पादन और दोहरे उद्देश्य वाली फसलें ऐसे अपर्याप्त रूप से उपयोग किए जाने वाले समाधान हैं, जो पशुपालन में चारे की उपलब्धता और पोषण सुरक्षा को सशक्त बना सकते हैं।
  • क्षेत्रीय असमानताएँ: गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक में मजबूत सहकारी समितियों के विपरीत पूर्वी और उत्तर-पूर्वी राज्यों में सहकारी ढाँचे कमजोर हैं, जिससे दुग्ध उत्पादन और ग्रामीण विकास में क्षेत्रीय असमानताएँ उत्पन्न हो रही हैं।
  • रोग भार: खुरपका-मुँहपका रोग (FMD) और ‘लंपी स्किन डिजीज’ जैसे प्रकोप पशुधन उत्पादकता को अधिक कम कर देते हैं और किसानों का नुकसान बढ़ा देते हैं।
  • जलवायु संबंधी हानि: मवेशियों से होने वाले आँत्र किण्वन से भारत के कृषि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का लगभग 55% हिस्सा होता है। बढ़ती गर्मी का दबाव, जल की कमी और चरम मौसम स्थिरता की चुनौतियों को और बदतर बना रहे हैं।
  • बाजार में अस्थिरता: बढ़ती इनपुट लागत (चारा, स्वास्थ्य सेवा) और वैश्विक मूल्य में उतार-चढ़ाव किसानों की आय और बाजार स्थिरता को प्रभावित करते हैं।
  • शासन और संस्थागत मुद्दे: दुग्ध में मिलावट: मिलावट संबंधी घोटाले, विशेषकर असंगठित क्षेत्र में, केवल तकनीकी कमियों का परिणाम नहीं हैं, बल्कि नैतिक उल्लंघनों का प्रतीक हैं।
    • ये न केवल उपभोक्ता स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा को प्रभावित करते हैं, बल्कि डेयरी उद्योग के प्रति विश्वास को भी क्षति पहुँचाते हैं और इसे पोषण के प्रमुख स्रोत के रूप में अपनी मूल भूमिका निभाने में बाधित करते हैं।

सतत् एवं नवीन डेयरी विकास के लिए वैश्विक पहल एवं साझेदारियाँ

  • संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) और UNEP डेयरी कार्यक्रम: स्थायी पशुधन प्रथाओं, कम कार्बन युक्त डेयरी और पोषण सुरक्षा को बढ़ावा देते हैं।
  • ग्लोबल डेयरी प्लेटफॉर्म (Global Dairy Platform- GDP): पोषण समर्थन, जलवायु-अनुकूल डेयरी और नवाचार साझेदारी को प्रोत्साहित करता है।
  • अंतरराष्ट्रीय डेयरी महासंघ (International Dairy Federation- IDF): वैश्विक डेयरी मानक निर्धारित करता है, अनुसंधान सहयोग को बढ़ावा देता है और भारत के श्रीजा MPO जैसे नवाचारों को मान्यता देता है।

सतत् और प्रौद्योगिकी-संचालित डेयरी प्रणालियों में वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाएँ

  • यूरोपीय संघ – स्थिरता प्रोत्साहन: यूरोपीय संघ की सामान्य कृषि नीति (CAP) सब्सिडी को स्थायी डेयरी उत्पादन, उत्पादों की ट्रेसेबिलिटी और कम कार्बन तीव्रता के साथ जोड़ती है, जिससे पर्यावरणीय स्थिरता तथा खाद्य सुरक्षा दोनों को बढ़ावा मिलता है।
  • न्यूज़ीलैंड – फोंटेरा मॉडल: किसान-स्वामित्व वाली फोंटेरा सहकारी संस्थाएँ जलवायु-अनुकूल चरागाह प्रबंधन पर जोर देते हुए उत्पादकों को वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में एकीकृत करती हैं।
  • इजरायल: ICT-सक्षम निगरानी, ​​वैज्ञानिक आहार और चयनात्मक प्रजनन का उपयोग करके एक गाय द्वारा लगभग 12,000 लीटर दुग्ध प्रतिवर्ष का उत्पादन करता है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका – प्रौद्योगिकी-संचालित डेयरी: स्वचालित दुग्ध प्रणाली, IoT-आधारित पशु स्वास्थ्य निगरानी और आनुवंशिक सुधार कार्यक्रमों को अपनाती है।
  • नीदरलैंड और डेनमार्क – कोल्ड चेन नेतृत्व: एकीकृत ‘फार्म टू कंज्यूमर’ कोल्ड चेन और डिजिटल लॉजिस्टिक्स प्रणाली उच्च गुणवत्ता और ट्रेसेबिलिटी सुनिश्चित करते हुए दुग्ध आपूर्ति शृंखला की दक्षता और विश्वसनीयता को सुदृढ़ बनाती हैं।
  • केन्या और पूर्वी अफ्रीका – सामुदायिक शीतलन केंद्र: सौर ऊर्जा चालित शीतलन केंद्र और सहकारी-आधारित मॉडल दुग्ध की बर्बादी को कम करते हैं और लघु किसानों को सशक्त बनाते हैं।
    • ग्रामीण दुग्ध की हानि को कम करने के लिए ऐसे सामुदायिक स्तर के शीतलन केंद्रों की स्थापना की जा सकती है।

डेयरी को पोषण, समानता और जलवायु से जोड़ने वाले संवैधानिक और सतत् विकास ढाँचे

  • अनुच्छेद-47 – पोषण कर्तव्य: राज्य को पोषण और जन स्वास्थ्य के स्तर को बढ़ाने का निर्देश देता है, जो सीधे दुग्ध की पोषण संबंधी भूमिका से संबंधित है।
  • अनुच्छेद-39(b) – न्यायसंगत वितरण: दुग्ध और पशुधन जैसे संसाधनों के सर्वजन हिताय वितरण का आह्वान करता है।
  • अनुच्छेद-51A(g) – मौलिक कर्तव्य: नागरिकों पर पर्यावरण संरक्षण का दायित्व थोपता है, जो सतत् डेयरी उद्योग के लिए प्रासंगिक है।
  • सतत् विकास लक्ष्य 2 (भुखमरी उन्मूलन): डेयरी भूख और कुपोषण को समाप्त करने में योगदान देती है।
  • सतत् विकास लक्ष्य 5 (लैंगिक समानता): महिलाओं के नेतृत्व वाली सहकारी समितियाँ लैंगिक समावेशिता और सशक्तीकरण को मजबूत बनाती हैं।
  • सतत् विकास लक्ष्य 12 (जिम्मेदार उपभोग): कुशल दुग्ध प्रबंधन और इसकी कम बर्बादी सतत् खाद्य प्रणालियों को बढ़ावा देती है।
  • सतत् विकास लक्ष्य 13 (जलवायु कार्रवाई): जलवायु-अनुकूल डेयरी मेथेन उत्सर्जन को कम करती है और अनुकूलित प्रणालियों की स्थापना करती है।

आगे की राह

  • आनुवंशिक सुधार और उत्पादकता: कृत्रिम गर्भाधान (Artificial Insemination-AI) कवरेज को 33% से बढ़ाकर 70% करना, IVF प्रयोगशालाओं और ‘सेक्स-सॉर्टेड सीमेन’ का विस्तार करना, और गोजातीय उत्पादकता बढ़ाने के लिए देशी नस्लों को बढ़ावा देना।
  • बुनियादी ढाँचा विकास:पोस्ट हार्वेस्ट’ हानि को कम करने और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए PMKSY और कृषि अवसंरचना कोष (AIF) के तहत शीतलन संयंत्रों, शीत शृंखलाओं, प्रसंस्करण केंद्रों और चारा प्रणालियों को मजबूत करना।
  • महिला-केंद्रित और समावेशी मॉडल: स्थिर आय और समावेशी ग्रामीण विकास के लिए स्वयं सहायता समूहों (SHG), दुग्ध उत्पादक संगठनों (MPO) और महिलाओं के नेतृत्व वाली सहकारी समितियों को सशक्त बनाना।
  • जलवायु अनूकुल और सतत् प्रथाएँ: पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए चारा विविधीकरण, जल-कुशल फसलों, बायोगैस संयंत्रों और चक्रीय अर्थव्यवस्था मॉडल को बढ़ावा देना।
  • डिजिटल आधुनिकीकरण: दक्षता, पारदर्शिता और खेत-स्तरीय प्रबंधन में सुधार के लिए मवेशियों के स्वास्थ्य निगरानी हेतु IoT, दुग्ध की ट्रेसेबिलिटी के लिए ब्लॉकचेन और रोग पूर्वानुमान के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का उपयोग किया जाना चाहिए।
  • क्षेत्रीय एवं वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता: क्षेत्रीय असमानताओं को कम करने के लिए पूर्वी और उत्तर-पूर्वी भारत में डेयरी सहकारी समितियों को मजबूत बनाना और वैश्विक बाजार में अग्रणी बनने के लिए पनीर, प्रोबायोटिक्स, शिशु दुग्ध पाउडर और जैविक डेयरी निर्यात में विविधता लाना।
  • अनुसंधान, नवाचार और साझेदारी: ICRA-NDRI, NDDB और पशु चिकित्सा विश्वविद्यालयों के माध्यम से टीका अनुसंधान एवं विकास, आहार प्रौद्योगिकी, पशु आनुवंशिकी में निवेश करना तथा प्रौद्योगिकी, ब्रांडिंग एवं ‘दक्षिण-दक्षिण’ सहयोग को बढ़ाने के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) और डेयरी कूटनीति का लाभ उठाना।
  • मिलावट पर अंकुश (पोषण संबंधी सुधार): FSSAI विनियमन, मोबाइल परीक्षण इकाइयों और ग्राम स्तर पर डिजिटल निगरानी को सशक्त करना। जन स्वास्थ्य, उपभोक्ता विश्वास और सुरक्षित भोजन के अधिकार की रक्षा के लिए मिलावट के प्रति शून्य सहिष्णुता लागू करना न केवल एक तकनीकी आवश्यकता है, बल्कि एक नैतिक कर्तव्य भी है।

निष्कर्ष

भारत का डेयरी क्षेत्र पोषण, आजीविका और सशक्तीकरण को दर्शाता है, जो अनुच्छेद-47 और 39(b) के अनुरूप है। ऑपरेशन फ्लड से लेकर श्वेत क्रांति 2.0 तक, किसान सहकारी समितियाँ, महिलाओं की भागीदारी और वैज्ञानिक नवाचार ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं को एक स्थायी, समावेशी तथा विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी खाद्य प्रणाली में परिवर्तित कर सकते हैं।

  • ‘जैसा कि डॉ. वर्गीज कुरियन ने कहा, ‘डेयरी एक जीवनशैली है, न कि केवल एक व्यवसाय’, उन्होंने खाद्य सुरक्षा, ग्रामीण विकास और सामाजिक समानता में इसकी केंद्रीय भूमिका को रेखांकित किया।

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