100% तक छात्रवृत्ति जीतें

रजिस्टर करें

Oct 03 2025

मोंडियाकल्ट 2025

हाल ही में केंद्रीय जल शक्ति मंत्री ने एशिया-प्रशांत समूह के अध्यक्ष के रूप में भारत का प्रतिनिधित्व किया एवं मोंडियाकल्ट  (MONDIACULT) 2025 में संस्कृति को एक वैश्विक सार्वजनिक अवधारणा के रूप में रेखांकित किया।

मोंडियाकल्ट, 2025 के बारे में

  • यह विश्व का सबसे बड़ा सांस्कृतिक नीति सम्मेलन है, जो वैश्विक सांस्कृतिक एजेंडे को आकार देने के लिए मंत्रियों, सांस्कृतिक नेताओं, नागरिक समाज एवं युवाओं को एक साथ लाता है।
  • आयोजक एवं स्थल: सांस्कृतिक नीतियों एवं सतत विकास पर UNESCO विश्व सम्मेलन (MONDIACULT 2025) का आयोजन UNESCO द्वारा किया जाता है तथा बार्सिलोना, स्पेन द्वारा इसकी मेजबानी की जाती है।
  • उद्देश्य: वर्ष 2030 के बाद के संयुक्त राष्ट्र विकास एजेंडे में संस्कृति को एक स्वतंत्र लक्ष्य के रूप में स्थापित करना, सतत् विकास की एक एकीकृत शक्ति एवं चालक के रूप में इसकी भूमिका को मान्यता देना।
  • प्राथमिकता क्षेत्र
    • सांस्कृतिक अधिकार: सार्वभौमिक पहुँच एवं सुरक्षा सुनिश्चित करना।
    • संस्कृति में डिजिटल प्रौद्योगिकियाँ: सांस्कृतिक विकास के लिए नवाचार का लाभ उठाना।
    • संस्कृति एवं शिक्षा: मूल्यों एवं रचनात्मकता को बढ़ावा देना।
    • संस्कृति की अर्थव्यवस्था: रचनात्मक उद्योगों को मजबूत करना।
    • संस्कृति एवं जलवायु कार्रवाई: विरासत को स्थिरता से जोड़ना।
    • संस्कृति, विरासत एवं संकट: संघर्ष एवं आपदाओं में संस्कृति की रक्षा करना।
  • केंद्रीय क्षेत्र
    • शांति के लिए संस्कृति: संवाद एवं सद्भाव को बढ़ावा देना।
    • कृत्रिम बुद्धिमत्ता एवं संस्कृति: सांस्कृतिक क्षेत्रों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का नैतिक एकीकरण।

भारत के लिए महत्त्व

  • भारत ने मंत्रिस्तरीय पूर्ण अधिवेशन के दौरान एशिया-प्रशांत समूह की अध्यक्षता की, जो सांस्कृतिक कूटनीति में उसके नेतृत्व को दर्शाता है।
  • भारत ने संस्कृति को समावेशी एवं सतत् विकास की आधारशिला के रूप में स्थापित किया।

इंटरस्टेलर मैपिंग एंड एक्सेलेरेशन प्रॉब (IMAP)

हाल ही में, नासा ने सूर्य की सौर वायु एवं हीलियोस्फीयर की सीमा का अध्ययन करने के लिए इंटरस्टेलर मैपिंग एंड एक्सेलेरेशन प्रॉब (Interstellar Mapping and Acceleration Probe- IMAP) लॉन्च किया।

इंटरस्टेलर मैपिंग एंड एक्सेलेरेशन प्रॉब (IMAP) के बारे में

  • IMAP एक अंतरिक्ष मिशन है, जिसे हीलियोस्फीयर की बाह्य सीमाओं का पता लगाने एवं यह पता लगाने के लिए डिजाइन किया गया है कि यह स्थानीय आकाशगंगा के वातावरण के साथ कैसे अंतःक्रिया करता है।
    • हीलियोस्फीयर हमारे सौरमंडल के चारों ओर सौर वायु द्वारा निर्मित एक सुरक्षात्मक परत है।
  • प्रक्षेपण यान: फाल्कन 9, जिसका अंतरिक्ष यान द्रव्यमान 900 किलोग्राम है।
  • वैज्ञानिक घटक: IMAP में सौर पवन, ऊर्जावान कणों, अंतरतारकीय धूल और चुंबकीय क्षेत्रों के अध्ययन हेतु 10 वैज्ञानिक उपकरण लगाए गए हैं।
    • ऊर्जावान उदासीन-परमाणु संसूचक: इंटरस्टेलर मैपिंग एंड एक्सेलेरेशन प्रॉब (IMAP) जो आवेशित एवं उदासीन दोनों कणों का अध्ययन करने में सक्षम है।
      • IMAP-Lo: – निम्न ऊर्जा उदासीन परमाणु प्रतिबिंबक।
      • IMAP-Hi: उच्च ऊर्जा उदासीन परमाणु प्रतिबिंबक।
      • IMAP-Ultra: अति उच्च ऊर्जा उदासीन परमाणु प्रतिबिंबक।
    • आवेशित कण संसूचक: उच्च-ऊर्जा आयन दूरबीन (High-energy Ion Telescope– HIT), सौर पवन इलेक्ट्रॉन (Solar Wind Electron– SWE), सौर पवन एवं ‘पिकअप आयन’ उपकरण (Solar Wind and Pickup Ion Instrument– SWAPI), सघन द्वि-आयन संरचना प्रयोग (Compact Dual Ion Composition Experiment– CoDICE)।
    • मैग्नेटोमीटर (MAG), वैश्विक सौर पवन संरचना (GLOWS), इंटरस्टेलर डस्ट एक्सपेरिमेंट (IDEX)।
  • उद्देश्य
    • हेलियोस्फीयर की सीमा का मानचित्रण एवं अंतरतारकीय कणों की परस्पर क्रियाओं का आरेख तैयार करना।
    • सूर्य से आने वाले आवेशित कणों के ऊर्जाकरण की जाँच करना।
    • पृथ्वी के निकट अंतरिक्ष मौसम के खतरों का पूर्वानुमान लगाने के लिए वास्तविक समय में सौर पवन एवं ऊर्जावान कणों की निगरानी करना।
    • भविष्य के मानव अन्वेषण के लिए सुरक्षित अंतरिक्ष यान डिजाइन करने हेतु महत्त्वपूर्ण डेटा प्रदान करना।

महत्त्व

  • यह इस बात की समझ में वृद्धि करती है कि हेलियोस्फीयर सौर मंडल को ब्रह्मांडीय विकिरण से कैसे बचाता है, जिससे ग्रहों पर जीवन सुनिश्चित होता है।
  • अंतरिक्ष मौसम के पूर्वानुमान में सुधार करता है, उपग्रहों, पॉवर ग्रिड, संचार नेटवर्क एवं अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा करता है। मूलभूत खगोलभौतिकीय प्रक्रियाओं तथा अन्य तारकीय प्रणालियों के सुरक्षात्मक हेलियोस्फीयर की गतिशीलता के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
  • पृथ्वी से परे भविष्य के मानव अंतरिक्ष मिशनों के लिए सुरक्षित मार्गों एवं विकिरण परिरक्षण की योजना बनाने में योगदान देता है।

भारत-भूटान सीमा पार रेलवे परियोजना

हाल ही में भारत ने भूटान को असम एवं पश्चिम बंगाल से जोड़ने वाली दो सीमा पार रेलवे परियोजनाओं की घोषणा की, जिनकी कुल लागत 4,033 करोड़ रुपये है।

सीमा पार रेलवे परियोजना के बारे में

  • परियोजना विवरण: इन परियोजनाओं में 3,456 करोड़ रुपये की लागत वाली 69 किलोमीटर लंबी कोकराझार (असम)-गेलेफू (भूटान) लाइन एवं 577 करोड़ रुपये की लागत वाली 20 किलोमीटर लंबी बनारहाट (पश्चिम बंगाल)-समत्से (भूटान) लाइन शामिल है।
  • बुनियादी ढाँचा
    • कोकराझार-गेलेफू लाइन में छह स्टेशन, 29 बड़े पुल, 65 छोटे पुल, दो गुड्सशेड, एक फ्लाईओवर एवं 39 अंडरपास होंगे।
    • बनरहाट-समत्से लाइन में दो स्टेशन, एक बड़ा पुल, 24 छोटे पुल, एक ओवरपास एवं 37 अंडरपास शामिल होंगे।
  • तकनीकी विशेषताएँ: दोनों लाइनें पूरी तरह से विद्युतीकृत होंगी, वंदे भारत जैसी आधुनिक ट्रेन, उन्नत सिग्नलिंग प्रणालियों से सुसज्जित होंगी एवं प्रशिक्षित भूटानी कर्मचारी परिचालन में सहायता करेंगे।

महत्त्व

  • ये परियोजनाएँ यात्री एवं माल ढुलाई को बढ़ावा देंगी, गेलेफू (माइंडफुलनेस सिटी) तथा समत्से (औद्योगिक केंद्र) में आर्थिक विकास को बढ़ावा देंगी, भारत-भूटान व्यापार को मजबूत करेंगी एवं स्थानीय आबादी के लिए रोजगार के अवसर प्रदान करेंगी।

सतत् पशुधन परिवर्तन पर वैश्विक सम्मेलन

केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने वर्ष 2025 में रोम में आयोजित दूसरे सतत् पशुधन परिवर्तन पर FAO वैश्विक सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया।

सतत् पशुधन परिवर्तन पर वैश्विक सम्मेलन के बारे में

  • परिचय: सतत् पशुधन परिवर्तन पर FAO वैश्विक सम्मेलन पशुधन प्रणालियों के लिए ज्ञान के आदान-प्रदान, सहयोग एवं सतत् समाधानों हेतु एक बहुपक्षीय मंच प्रदान करता है।
  • आयोजक: खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO), जिसका मुख्यालय रोम, इटली में है।
  • वर्ष  2025 सम्मेलन: दूसरा संस्करण सितंबर 2025 में आयोजित किया गया था, जिसमें समावेशी, जलवायु-अनुकूल पशुधन नीतियों पर विचार-विमर्श करने के लिए मंत्रियों, विशेषज्ञों एवं हितधारकों को एक साथ लाया गया था।
    • भारत एवं आयरलैंड ने संयुक्त रूप से अंतरराष्ट्रीय दुग्ध दिवस के प्रस्ताव को सह-प्रायोजित किया, जिसका सम्मेलन द्वारा समर्थन किया गया।

डेयरी एवं पशुधन में भारत की स्थिति

  • किसान-केंद्रित एवं समावेशी विकास: भारत ने पशुधन एवं डेयरी परिवर्तन को गति देने वाली किसान-केंद्रित पहलों पर प्रकाश डाला।
  • डेयरी एवं पशुधन में वैश्विक नेतृत्व
    • पशुधन भारत में लगभग दो-तिहाई ग्रामीण परिवारों, विशेषकर लघु किसानों एवं महिलाओं को स्थायी आजीविका प्रदान करता है।
    • विश्व स्तर पर सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक, विश्व उत्पादन में 25% (वार्षिक 239 मिलियन टन) का योगदान देता है।
    • अंडों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक एवं भैंस के मांस का प्रमुख निर्यातक।
    • पशुधन क्षेत्र कृषि GVA में 31% एवं राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में 5.5% का योगदान देता है, जिसका चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) 12.77% है।
  • नीतिगत क्षेत्र एवं वैश्विक सहयोग: पशुधन पर FAO की उप-समिति के प्रथम उपाध्यक्ष के रूप में, भारत ने FAO के साथ अपनी 80-वर्षीय साझेदारी की पुष्टि की।

वेनेजुएला

वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो ने दक्षिणी कैरेबियन सागर में संदिग्ध वेनेजुएलाई ड्रग नौकाओं पर हाल ही में हुए घातक अमेरिकी हमलों के बाद आपातकाल की घोषणा करने का संकेत दिया है।

  • यह घोषणा मादुरो को कथित अमेरिकी आक्रमण से सुरक्षा एवं राष्ट्रीय संप्रभुता की रक्षा का हवाला देते हुए, मूल अधिकारों को अस्थायी रूप से निलंबित करने का अधिकार प्रदान करेगी।

वेनेजुएला के बारे में

  • वेनेजुएला दक्षिण अमेरिका महाद्वीप के उत्तरी किनारे पर स्थित है, जो उत्तरी एवं पश्चिमी गोलार्द्ध में स्थित है तथा इसकी राजधानी कराकास है।
  • सीमाएँ: इसकी दक्षिण में ब्राजील, पूर्व में गुयाना, पश्चिम एवं दक्षिण-पश्चिम में कोलंबिया, तथा कई कैरेबियाई देशों के साथ समुद्री सीमाएँ लगती हैं।
  • भूगोल: इसके चार प्रमुख क्षेत्र हैं: माराकाइबो तराई (गर्म एवं शुष्क), एंडीज पर्वत तथा उत्तरी उच्चभूमि (ठंडा, समशीतोष्ण), मध्य ओरिनोको मैदान (गर्म, कम ऊँचाई वाले), एवं गुयाना उच्चभूमि (आर्द्र, जंगल-उष्णकटिबंधीय)।
  • जल निकाय
    • ओरिनोको नदी 2,000 से अधिक सहायक नदियों के साथ वेनेजुएला की सबसे लंबी नदी है।
    • प्रमुख झीलों में माराकाइबो झील एवं गुरी झील शामिल हैं।
    • एंडीज पर्वत का एंजेल जलप्रपात (विश्व का सबसे ऊँचा जलप्रपात) गुयाना हाइलैंड्स में स्थित है।
  • सबसे ऊँचा बिंदु: पिको बोलिवर (4,979 मीटर)।
  • तटरेखाएँ: उत्तर में कैरेबियन सागर एवं उत्तर-पूर्व में उत्तरी अटलांटिक महासागर के समानांतर स्थित हैं।
    • महत्त्वपूर्ण तटीय विशेषताओं में वेनेजुएला की खाड़ी, पैरागुआना प्रायद्वीप एवं अटलांटिक तट पर ओरिनोको नदी डेल्टा शामिल हैं।

संदर्भ

भारत को अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO) की परिषद के भाग II (ICAO परिषद के कार्यकाल और श्रेणी का एक विशेष वर्ग) के लिए वर्ष 2025–2028 के कार्यकाल हेतु पुनः चुना गया है। यह चुनाव वर्ष 2022 में हुए पिछले चुनाव की तुलना में एक मजबूत जनादेश के साथ हुआ है।

अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO) के बारे में

  • ICAO संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है, जिसकी स्थापना वर्ष 1944 में अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन पर शिकागो कन्वेंशन द्वारा की गई थी।
  • मुख्यालय: मॉन्ट्रियल, कनाडा।
  • सदस्यता: 193 देश, जिनमें भारत भी एक संस्थापक सदस्य के रूप में शामिल है।
  • लक्ष्य: अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन के मानक निर्धारित करना, सुरक्षा दक्षता, पर्यावरण स्थिरता सुनिश्चित करना और सदस्य देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना।

प्रशासनिक संरचना

  • ICAO सभा
    • सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय, जिसमें सभी 193 सदस्य देशों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं।
    • इसकी बैठक प्रत्येक तीन वर्ष में एक बार होती है।
    • कार्य: नीतिगत मंजूरी प्रदान करना, परिषद के कार्य की समीक्षा करना, बजट को मंजूरी प्रदान करना और शिकागो कन्वेंशन में परिवर्तन पर निर्णय लेना।
  • ICAO परिषद
    • ICAO की गवर्निंग बॉडी, जिसे ICAO सभा द्वारा तीन वर्ष के कार्यकाल के लिए चुना जाता है।
    • इसमें 36 सदस्य देश शामिल हैं, जिन्हें तीन भागों में बाँटा गया है:
      • भाग I: हवाई परिवहन में महत्त्वपूर्ण भूमिका वाले देश।
      • भाग II: हवाई नेविगेशन सुविधाओं की व्यवस्था में सबसे अधिक योगदान देने वाले देश।
      • भाग III: भौगोलिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने वाले देश।
    • कार्य: एयर नेविगेशन के लिए मानक और अनुशंसित कार्यप्रणाली (SARP) का निर्धारण करना, अंतरराष्ट्रीय विमानन नीतियों का समन्वय करना और तकनीकी तथा आर्थिक मामलों की देखरेख करना।
  • अन्य मुख्य निकाय
    • एयर नेविगेशन कमीशन (Air Navigation Commission [ANC]): यह परिषद को तकनीकी मामलों पर सलाह देता है और एयर नेविगेशन के लिए मानक और अनुशंसित कार्यप्रणाली (SARP) स्थापित करता है।
    • परिषद की समितियाँ: ये वित्त, परिवहन, तकनीकी सहयोग और पर्यावरण से संबंधित मामलों की देख-रेख करती हैं।
    • सचिवालय: महासचिव के नेतृत्व में, यह ICAO के कार्यक्रम को लागू करने के लिए जिम्मेदार है।

भारत का पुनर्निर्वाचन

  • भारत वर्ष 1944 से ICAO का संस्थापक सदस्य है और 81 वर्षों से निरंतर परिषद में अपनी मौजूदगी बनाए हुए है।
  • वर्ष 2025 में भारत को वर्ष 2022 की तुलना में अधिक मत प्राप्त हुए, जो उसकी नेतृत्त्व क्षमता पर वैश्विक विश्वास को दर्शाता है।
  • भारत नीति निर्माण, नियामक ढाँचे और अंतरराष्ट्रीय विमानन मानकों में योगदान देना जारी रखेगा।

PW OnlyIAS विशेष

भारत का बढ़ता विमानन क्षेत्र

वर्तमान स्थिति

  • अमेरिका और चीन के बाद भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा घरेलू एविएशन मार्केट है।
  • पैसेंजर ट्रैफिक (डोमेस्टिक + इंटरनेशनल) में तेजी से बढोतरी हुई है, अप्रैल 2024 में घरेलू ट्रैफिक 15.5 मिलियन यात्री से भी अधिक हो गया।
  • मध्य वर्ग की बढ़ती आय, शहरीकरण और पर्यटन के कारण भारत का विमानन क्षेत्र विश्व में सबसे तेजी से बढ़ने वाले क्षेत्रों में से एक है।
  • पर्यटन, व्यापार और रोजगार के माध्यम से विमानन क्षेत्र भारत की GDP में लगभग 5% का योगदान देता है।
  • एयरलाइन, एयरपोर्ट और MRO में प्रत्यक्ष रोजगार; लॉजिस्टिक्स, हॉस्पिटैलिटी और संबंधित उद्योगों में अप्रत्यक्ष रोजगार।

सरकारी पहल

  • उड़ान (उड़े देश का आम नागरिक): क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना, जो सस्ती हवाई यात्रा को बढ़ावा देती है और कम प्रयोग होने वाले हवाई अड्डों को जोड़ती है।
  • राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन नीति (NCAP) 2016: यह विकास, सुरक्षा और प्रतिस्पर्द्धा के लिए एक रोडमैप प्रदान करती है।
  • FDI में उदारता: घरेलू एयरलाइन में स्वचालित मार्ग के तहत 100% FDI की अनुमति (विदेशी एयरलाइन के लिए 49%)।
  • हवाई अड्डे का आधुनिकीकरण: PPP मॉडल के तहत विस्तार; नए हवाई अड्डों (जैसे, जेवर, नवी मुंबई एयरपोर्ट) पर ध्यान।

संदर्भ

भारत ने सतत् विकास पर वर्ष 2030 एजेंडा को लागू करने के एक दशक पूरे कर लिए हैं। पिछले एक दशक में, भारत ने राष्ट्रीय फ्रेमवर्क, राज्य स्तरीय पहलों और जमीनी स्तर की योजनाओं के माध्यम से सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) को अपने शासन में शामिल किया है और उन्हें परिवर्तन का एक उपकरण बनाया है।

भारत ने अपने विकास नियोजन में SDG को कैसे शामिल किया?

  • प्रारंभिक SDG इंडिया इंडेक्स
    • उदाहरण: नीति आयोग द्वारा वर्ष 2018 में लॉन्च किया गया। SDG इंडिया इंडेक्स, SDG से संबंधित 100 से अधिक संकेतकों के आधार पर राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को रैंक प्रदान करता है।
    • प्रभाव: केरल, हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़ लगातार शीर्ष स्थान पर रहे, जबकि बिहार और झारखंड जैसे राज्यों ने लक्षित कार्रवाई के लिए शिक्षा तथा स्वास्थ्य में मौजूद कमियों की पहचान की।
    • महत्त्व: इस इंडेक्स ने SDG को मापे जा सकने वाले राज्य स्तरीय लक्ष्यों में बदल दिया, जिससे सहकारी और प्रतिस्पर्द्धी संघीय व्यवस्था को बढ़ावा मिला।
  • SDG का स्थानीयकरण
    • उदाहरण: अब 2.5 लाख से अधिक ग्राम पंचायतें SDG प्राथमिकताओं के अनुरूप ग्राम पंचायत विकास योजना (GPDP) तैयार करती हैं।
    • उपकरण: पंचायत-स्तरीय योजना की निगरानी और मार्गदर्शन के लिए पंचायत उन्नति सूचकांक विकसित किया गया था।
    • केस स्टडी: केरल और राजस्थान जैसे राज्यों ने स्थानीय योजना मैनुअल में SDG को शामिल किया है, जिससे जमीनी स्तर पर समुदाय-आधारित विकास सुनिश्चित हो रहा है।
      • केरल का केरल इंस्टिट्यूट फॉर लोकल एडमिनिस्ट्रेशन (KILA) ने स्थानीय योजना के लिए ऐसे दिशा-निर्देश तैयार किए हैं, जिनमें SDGs  शामिल हैं और प्रगति की निगरानी के लिए रियल-टाइम डैशबोर्ड का भी उपयोग किया गया है।
  • SDG का संस्थागतकरण
    • कई राज्यों ने व्यवस्थित निगरानी के लिए SDG समन्वय केंद्र स्थापित किए हैं।
    • अरबों रुपये के बजट को SDG लक्ष्यों से जोड़ा गया है, जिससे योजना निर्माण अधिक पारदर्शी और जवाबदेह हो गया है।
    • उदाहरण: हरियाणा और ओडिशा ने अपने राज्य के बजट को SDG परिणामों से जोड़ा है।
  • समावेशन के लिए लक्षित कार्यक्रम
    • उदाहरण: आकांक्षी जिला कार्यक्रम (ADP) 2018 में स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी ढाँचे के मामले में 112 पिछड़े जिले शामिल हैं।
    • प्रभाव: मेवात (हरियाणा) जैसे जिलों में ध्यान केंद्रित मॉनिटरिंग के कारण तीन वर्ष के अंदर संस्थागत प्रसव में 30% से अधिक की वृद्धि हुई।
    • विस्तार: एस्पिरेशनल ब्लॉक्स प्रोग्राम (ABP) ने इस मॉडल को 500 से अधिक ब्लॉकों तक बढ़ाया, जिससे अंतिम पंक्ति तक सेवाओं की डिलीवरी सशक्त हुई।
  • पूर्ण समाज आधारित दृष्टिकोण (Whole-of-Society Approach)
    • भारत ने SDG को लागू करने के लिए सिविल सोसायटी, शिक्षा क्षेत्र और निजी क्षेत्र को शामिल करके एक समावेशी रणनीति अपनाई।
      • उदाहरण: भारत ने संयुक्त राष्ट्र के उच्च-स्तरीय राजनीतिक मंच में तीन स्वैच्छिक राष्ट्रीय समीक्षा (वर्ष 2017, 2020, 2025) प्रस्तुत कीं।
    • सिविल सोसायटी की भागीदारी: प्रत्येक वर्ष  1,000 से अधिक CSO ने चर्चा में भाग लिया। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र के NGO ने नीति आयोग के साथ मिलकर स्थानीय शिक्षा और पोषण कार्यक्रमों में SDG लक्ष्यों को शामिल किया।
    • निजी क्षेत्र की भूमिका: टाटा ग्रुप और ITC जैसी कंपनियों ने स्वच्छ ऊर्जा (SDG 7) और सतत् आजीविका (SDG 8) जैसे SDG के साथ अपने CSR कार्यक्रमों को जोड़ा।

SDGs के संबंध में भारत की प्रगति

  • अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग: सतत् विकास रिपोर्ट, 2024 में भारत 166 देशों में 112वें स्थान पर रहा। गरीबी कम करने, नवीकरणीय ऊर्जा और डिजिटल समावेश के क्षेत्र में भारत ने उल्लेखनीय प्रगति की है।
  • SDG 1: शून्य गरीबी 
    • प्रगति: बहुआयामी गरीबी 29.17% (वर्ष 2013-14) से घटकर 11.28% (वर्ष 2022-23) हो गई।
    • योजनाएँ: प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) के तहत 8 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज उपलब्ध कराना, किसानों की आय वृद्धि के लिए पीएम-किसान योजना।
  • SDG 2: शून्य भुखमरी
    • प्रगति: कुपोषण अभी भी चिंता का विषय है, लेकिन बच्चों में शारीरिक विकास में कमी 48% (वर्ष 2005-06) से घटकर 35.5% (NFHS-5, वर्ष 2019-21) हो गई है।
    • योजनाएँ: पोषण के लिए पोषण अभियान (वर्ष 2018), मिड-डे मील (PM  पोषण) योजना सब्सिडी युक्त भोजन की गारंटी के लिए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (2013)।
  •  SDG 3: उत्तम स्वास्थ और खुशहाली
    • प्रगति: शिशु मृत्यु दर (IMR) वर्ष 2014 में 1000 जीवित जन्मों पर 39 से घटकर वर्ष 2020 में 1000 जीवित जन्मों पर 28 हो गई।
    • योजनाएँ: आयुष्मान भारत (स्वास्थ्य और वेलनेस सेंटर + PM-JAY), टीकाकरण के लिए मिशन इंद्रधनुष, राष्ट्रीय आयुष मिशन।
  • SDG 4: गुणवत्तापूर्ण शिक्षा
    • प्रगति: उच्च शिक्षा में सकल नामांकन दर बढ़कर 28.4% (वर्ष 2022) हो गई। कोविड-19 महामारी के दौरान, दीक्षा जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म ने शिक्षा तक पहुँच को बढ़ाया।
    • योजनाएँ: समग्र शिक्षा अभियान, NEP, 2020 सुधार, PM ई-विद्या।
  • SDG 5: लैंगिक समानता
    • प्रगति: महिला श्रम बल भागीदारी 23.3% (वर्ष 2017-18) से बढ़कर 37% (वर्ष 2023) हो गई (PLFS)।
    • योजनाएँ: बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ; महिला शक्ति केंद्र, संसद में महिलाओं के लिए आरक्षण (नारी शक्ति वंदन अधिनियम 2023)
  • SDG 6: स्वच्छ जल और स्वच्छता
    • प्रगति: 12 करोड़ से अधिक शौचालयों का निर्माण किया गया, ग्रामीण स्वच्छता कवरेज वर्ष 2014 में 39% से बढ़कर वर्ष 2020 में लगभग 100% हो गया।
    • योजनाएँ: जल जीवन मिशन (वर्ष 2024 तक हर घर नल से जल), स्वच्छ भारत मिशन।
  • SDG 7: सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा
    • प्रगति: 100% घरों में विद्युत तक पहुँच सुनिश्चित हुई है, भारत की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता 180 GW से अधिक हो गई (वर्ष 2023)।
    • योजनाएँ: उज्ज्वला योजना (9.6 करोड़ घरों को LPG कनेक्शन), इंटरनेशनल सोलर अलायंस।
  • SDG 8: उत्कृष्ट श्रम और आर्थिक विकास
    • प्रगति: 7% से अधिक GDP वृद्धि के साथ भारत चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया (2025)।
    • योजनाएँ: स्टार्ट-अप इंडिया, आत्मनिर्भर भारत अभियान, PM मुद्रा योजना (40 करोड़ से अधिक लाभार्थियों को ऋण)।
  • SDG 10: असमानता कम करना
    • प्रगति: JAM ट्रिनिटी (जन धन, आधार, मोबाइल) के माध्यम से 48 करोड़ खातों में सीधे लाभ ट्रांसफर हुआ, जिससे गड़बड़ियों में कमी आई।
    • योजनाएँ: एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड; स्टैंड-अप इंडिया योजना।

संदर्भ

RBI डेवलपमेंट रिसर्च ग्रुप ने हाल ही में 20 प्रमुख राज्यों के लिए वर्ष 2022-23 के घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (Household Consumption Expenditure Survey [HCES]) के आँकड़ों के आधार पर, रंगराजन समिति द्वारा निर्धारित गरीबी रेखा को अद्यतित किया है।

  • इसके अनुसार, पिछले एक दशक में गरीबी कम करने के मामले में ओडिशा और बिहार राज्य ने सबसे अधिक सुधार किया है।

गरीबी रेखा क्या है?

  • गरीबी रेखा एक ऐसा मापदंड है, जिसका प्रयोग यह तय करने के लिए किया जाता है कि किसी व्यक्ति को भोजन, कपड़े, आवास, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कितनी न्यूनतम आय या व्यय की आवश्यकता होती है।
    • इस मापदंड से नीचे रहने वाले व्यक्तियों को ‘गरीब’ माना जाता है।

गरीबी रेखा के प्रकार

  • पूर्ण गरीबी रेखा: आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं की एक निश्चित सूची की लागत के आधार पर।
  • सापेक्ष गरीबी रेखा: यह समाज की औसत आय या खपत के आधार पर गरीबी को परिभाषित करती है।
    • एक संदर्भ में पर्याप्त मानी जाने वाली आय का स्तर (उदाहरण के लिए, वर्ष 1975 में भारत में प्रति माह 1,000 रुपये) वर्तमान अर्थव्यवस्था या किसी दूसरे देश में कोई अर्थ नहीं रहता।

भारत में गरीबी रेखा का अनुमान

  • अलघ समिति (वर्ष 1979): पोषण संबंधी आवश्यकताओं  के आधार पर गरीबी रेखा का निर्धारण किया (ग्रामीण क्षेत्र के लिए 2400 किलोकैलोरी/दिन, शहरी क्षेत्र के लिए 2100 किलोकैलोरी/दिन)।
  • लकड़वाला समिति (वर्ष 1993): ग्रामीण क्षेत्र के लिए कृषि श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI-AL) और शहरी क्षेत्रों में औद्योगिक श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI-IW) का उपयोग करके गरीबी रेखा को अद्यतित करने की सिफारिश की।
  • तेंदुलकर समिति (वर्ष 2009)
    • कैलोरी आधारित प्रणाली को बदलकर गरीबी रेखा ‘बास्केट’ (खाद्य, स्वास्थ्य, शिक्षा और आवश्यक वस्तुएँ) की सिफारिश की।
    • ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिए एक समान गरीबी रेखा ‘बास्केट’ की सिफारिश की।
    • वर्ष 2011-12 के लिए अनुमानित गरीबी रेखा
      • ग्रामीण: ₹816/माह (~₹27.2/दिन)
      • शहरी: ₹1,000/माह (~₹33.3/दिन)
    • गरीबी दर: कुल 21.9% (ग्रामीण क्षेत्र में 25.7%, शहरी क्षेत्र में 13.7%), लगभग 26.93 करोड़ व्यक्ति।
  • रंगराजन समिति (वर्ष 2014): संशोधित उपभोग बास्केट के साथ गरीबी रेखा मापन के  मानदंडों में सुधार का प्रस्ताव दिया, परंतु इसे आधिकारिक तौर पर नहीं अपनाया गया।
  • नीति आयोग का बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI): स्वास्थ्य, शिक्षा, जीवन स्तर (12 संकेतक) के आधार पर गरीबी का मापन करता है।

रंगराजन गरीबी रेखा (Rangarajan Poverty Line)

  • स्थापना: गरीबी मापने की पद्धति की समीक्षा के लिए वर्ष 2012 में योजना आयोग द्वारा सी. रंगराजन की अध्यक्षता में स्थापित।
  • रिपोर्ट (वर्ष 2014): ग्रामीण क्षेत्रों के लिए प्रति व्यक्ति मासिक व्यय ₹972 और शहरी क्षेत्रों के लिए ₹1,407 अनुमानित।
  • विवाद: पिछली तेंदुलकर समिति की तुलना में इसने गरीबी का अधिक अनुमान लगाया।

अपडेट करने की विधि

  • CPI संशोधन से बचाव: CPI का प्रयोग इसलिए नहीं किया गया क्योंकि उसका व्यय बास्केट, रंगराजन समिति द्वारा निर्धारित गरीबी रेखा ‘बास्केट’ (PLB) से पृथक है।
  • नया इंडेक्स बनाना: RBI के शोधकर्ताओं ने गरीबी रेखा ‘बास्केट’ (PLB) के समान अधिभार (ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 57% खाद्य पदार्थ और शहरी क्षेत्रों के लिए 47%) का प्रयोग करके एक नया मूल्य सूचकांक निर्धारित किया।
  • इसका प्रयोग कैसे किया गया: इस नए सूचकांक से गणना की गई महँगाई दर का प्रयोग वर्ष 2012 की राज्य-वार गरीबी रेखा को अपडेट करने के लिए किया गया, जिसकी तुलना बाद में HCES वर्ष 2022-23 के घरेलू व्यय डेटा से तुलना की गई।
  • मुख्य सीमा: चूँकि समय के साथ खपत के पैटर्न बदल गए हैं, इसलिए पॉवर्टी लाइन बास्केट (PLB) को भी संशोधित करने की आवश्यकता हो सकती है, ठीक वैसे ही जैसे CPI बास्केट को समय-समय पर अपडेट किया जाता है।

अपडेटेड अध्ययन के मुख्य बिंदु

  • ओडिशा: ग्रामीण गरीबी 47.8% (वर्ष 2011-12) से घटकर 8.6% (वर्ष 2022-23) हो गई, जो भारत में सबसे बड़ी गिरावट है।
  • बिहार: शहरी गरीबी 50.8% (वर्ष 2011-12) से घटकर 9.1% (वर्ष 2022-23) हो गई, जो बिहार के उल्लेखनीय प्रगति है।
  • गरीबी रेखा में कम गिरावट वाले राज्य: केरल (ग्रामीण गरीबी 5.9 प्रतिशत अंक कम हुई) और हिमाचल प्रदेश (शहरी गरीबी 6.8 प्रतिशत अंक कम हुई) में सबसे कम गिरावट दर्ज की गई, हालाँकि इन राज्यों में पहले से ही गरीबी दर कम थी।
  • ग्रामीण गरीबी (वर्ष 2022-23): सबसे कम हिमाचल प्रदेश में (0.4%) और सबसे अधिक छत्तीसगढ़ में (25.1%)।
  • शहरी गरीबी (वर्ष 2022-23): सबसे कम तमिलनाडु में (1.9%) और सबसे अधिक छत्तीसगढ़ में (13.3%)।

भारतीय गरीबी पर विचार

  • SBI रिसर्च (वर्ष 2024): वर्ष 2023-24 HCES के आँकड़ों के आधार पर, गरीबी दर ग्रामीण क्षेत्रों में 4.86% और शहरी क्षेत्रों में 4.09% आँकी गई।
  • IMF  बनाम विश्व बैंक (वर्ष 2022)
    • वर्ल्ड बैंक: वर्ष 2019 में गरीबी दर 10.2% होने का अनुमान है।
    • IMF: वर्ष 2019 में गरीबी दर केवल 0.8% होने का अनुमान और इसमें सुधार का कारण खाद्य सब्सिडी स्थानांतरण बताया।

गरीबी रेखा का महत्त्व

  • गरीबी का मापन: गरीबी रेखा से यह पता चलता है कि अर्थव्यवस्था में कौन गरीब है। यह किसी देश में किसी निश्चित समय पर गरीबी की मात्रा और गंभीरता का आकलन करने में मदद करती है।
  • नीति निर्धारण और लक्ष्य निर्धारण: सरकारें कल्याणकारी योजनाओं और सब्सिडी को डिजाइन करने के लिए गरीबी रेखा का प्रयोग करती हैं। यह खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और आवास जैसे लाभों को सबसे कमजोर वर्ग  तक पहुँचाने में मदद करती है।
  • नीति की प्रभावशीलता का मूल्यांकन: कई वर्षों के गरीबी अनुमानों की तुलना करके, नीति निर्माता यह मूल्यांकन कर सकते हैं कि सरकारी हस्तक्षेप, कल्याणकारी योजनाएँ और आर्थिक सुधार गरीबी कम करने में कितने प्रभावी हैं।
  • संसाधनों का आवंटन: गरीबी रेखा दुर्लभ सरकारी संसाधनों के आवंटन का मार्गदर्शन करती है। यह सरकारों को ग्रामीण विकास, रोजगार कार्यक्रम और सामाजिक सुरक्षा जैसे क्षेत्रों पर खर्च को प्राथमिकता देने में मदद करती है।
  • अंतरराष्ट्रीय तुलना: विश्व बैंक जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठन वैश्विक गरीबी रेखा निर्धारित करते हैं (उदाहरण के लिए, PPP के अनुसार प्रति व्यक्ति प्रतिदिन $2.15 या $3.00)। इससे देशों के बीच तुलना की जा सकती है और भारत अन्य विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अपनी प्रगति का आकलन कर सकता है।

निष्कर्ष

अतः गरीबी रेखा एक स्थिर मापदंड नहीं हैं, बल्कि ये समय के साथ विकसित होने वाले नीतिगत उपकरण हैं। गरीबी मापन की विधि को 21वीं सदी के भारत में प्रासंगिक बनाए रखने के लिए, इसका नियमित पुनरीक्षण, बहुआयामी गरीबी मापन के साथ इसका समन्वय और SDG के साथ इसका सामंजस्य आवश्यक है।

संदर्भ

संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) 1 अक्टूबर को अपनी स्थापना की 100वीं वर्षगाँठ मना रहा है।

  • वर्ष 1926 में अपनी स्थापना के बाद से, यह सिविल सेवा भर्ती में मेरिट, निष्पक्षता और ईमानदारी का रक्षक रहा है और लाखों उम्मीदवारों का विश्वास अर्जित किया है।

ऐतिहासिक विकास

  • औपनिवेशिक शुरुआत: ईस्ट इंडिया कंपनी ने शुरू में व्यापारिक कार्यों के लिए कर्मचारी रखे थे, लेकिन प्लासी (1757) और बक्सर (1764) के युद्ध के बाद शासन इसका मुख्य कार्य बन गया।
  • प्रशासनिक सुधार: वॉरेन हेस्टिंग्स, लॉर्ड कार्नवालिस और लॉर्ड वेलेजली जैसे गवर्नर-जनरल ने ब्रिटिश भारत में नौकरशाही को नया रूप दिया।
  • मैकाले कमेटी: वर्ष 1854 की रिपोर्ट में योग्यता के आधार पर भर्ती की सिफारिश की गई, जिसके बाद ब्रिटेन में सिविल सर्विस कमीशन (1855) स्थापित हुआ, जो वर्ष 1858 तक भारत में भी लागू हो गया।
  • पहले भारतीय (1863): सत्येंद्र नाथ टैगोर ICS परीक्षा पास करने वाले पहले भारतीय बने।
  • भारत में सिविल सेवा परीक्षा: यह परीक्षा वर्ष 1922 में भारत में शुरू हुई।
  • भारत सरकार अधिनियम, 1919: इसमें उच्च सिविल सेवकों की भर्ती के लिए एक स्वतंत्र आयोग की व्यवस्था की गई थी।
  • ली कमीशन (1924): भारतीयकरण और लोक सेवा आयोग की स्थापना की सिफारिश की।
  • पब्लिक सर्विस कमीशन (1926): भारत सरकार अधिनियम, 1919 के तहत स्थापित; सर रॉस बार्कर इसके पहले चेयरमैन थे।
  • भारत सरकार अधिनियम (1935): संयुक्त लोक सेवा आयोग (FPSC) और प्रांतीय लोक सेवा आयोग (PPSC) का प्रस्ताव किया।
    • FPSC की स्थापना 1 अप्रैल, 1937 को हुई। स्वतंत्रता के बाद, वर्ष 1947 में एच.के. कृपलानी कुछ समय के लिए इसके चेयरमैन बने। बाद में, चंद्रेश्वर प्रसाद श्रीवास्तव ने यह पद सँभाला।
  • UPSC (1950): संविधान के लागू होने के बाद, FPSC का नाम बदलकर संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) कर दिया गया, जो अनुच्छेद-315-323 के तहत स्थापित एक संवैधानिक संस्था है।

संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद-315: संघ और राज्यों के लिए लोक सेवा आयोगों का प्रावधान करता है।
  • अनुच्छेद-320: UPSC के कार्यों का वर्णन करता है, जो मुख्य रूप से परीक्षा, भर्ती, पदोन्नति और अनुशासन संबंधी मामलों से संबंधित है।
  • सदस्यों का कार्यकाल: सदस्य छह वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक पद पर रहते हैं, जिससे संस्था की स्वतंत्रता सुनिश्चित होती है।

UPSC के बारे में

संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) भारत में केंद्रीय भर्ती एजेंसी है।

UPSC की संरचना

  • नियुक्ति: अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
  • संख्या: संविधान में सदस्यों की संख्या तय नहीं है; यह राष्ट्रपति के विवेकाधिकार पर निर्भर है।
  • योग्यता: कोई विशेष योग्यता निर्धारित नहीं है, सिवाय इसके कि कम-से-कम आधे सदस्यों के पास भारत सरकार या किसी राज्य सरकार में 10 वर्ष या उससे अधिक का अनुभव होना चाहिए।
  • सेवा की शर्तें: राष्ट्रपति आयोग के अध्यक्ष, सदस्यों और कर्मचारियों की सेवा की शर्तों को निर्धारित करता है।

UPSC  अध्यक्ष या सदस्यों को हटाना

  • राष्ट्रपति द्वारा हटाने के कारण
    • अस्तित्वहीनता: अगर दिवालिया घोषित कर दिया जाए।
    • बाह्य रोजगार: अगर सरकारी नौकरी के अलावा किसी अन्य वेतनयुक्त कार्यों में शामिल हों।
    • अशक्तता: अगर मानसिक या शारीरिक अशक्तता के कारण कार्य जारी रखने के लिए अयोग्य पाया जाए।
  • दुर्व्यवहार का आधार
    • गलत आचरण के लिए राष्ट्रपति को पद से हटाया जा सकता है, लेकिन यह तभी होगा, जब सर्वोच्च न्यायालय इस मामले की जाँच करे।
    • अगर सर्वोच्च न्यायालय आरोप को सही मानता है और हटाने की सलाह देता है, तो राष्ट्रपति को उस सलाह का पालन करना होगा।
    • जाँच के दौरान, राष्ट्रपति अध्यक्ष या सदस्य को हटा सकता है।
  • दुर्व्यवहार की परिभाषा
    • केंद्र या राज्य सरकार के किसी अनुबंध या समझौते में शामिल होना या उसमें आपकी कोई रूचि होना।
    • किसी रजिस्टर्ड कंपनी का सामान्य शेयरधारक होने के अलावा, ऐसे अनुबंध/समझौते से होने वाले लाभ में भागीदारी।

UPSC को स्वतंत्रता

  • पद की सुरक्षा: अध्यक्ष या सदस्य को केवल संविधान में बताए गए आधारों और तरीके से ही हटाया जा सकता है।
  • सेवा की शर्तें: हालाँकि ये शर्तें राष्ट्रपति द्वारा तय की जाती हैं, लेकिन नियुक्ति के बाद इन्हें कर्मचारियों के हितों के विरुद्ध नहीं बदला जा सकता।
  • वित्तीय स्वतंत्रता: अध्यक्ष, सदस्यों और कर्मचारियों के वेतन, भत्ते और पेंशन भारत के संचित कोष से दिए जाते हैं, न कि संसद के अनुमोदन से।
  • सेवा-पश्चात् प्रतिबंध
    • अध्यक्ष: सेवानिवृत्ति के बाद भारत सरकार या राज्य सरकार के अधीन किसी अन्य रोजगार के लिए पात्र नहींहोता है।
    • सदस्य: UPSC या राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष बनने के लिए पात्र, लेकिन किसी अन्य सरकारी नौकरी के लिए नहीं।
    • अध्यक्ष या सदस्य अपना कार्यकाल पूर्ण करने के बाद दूसरे कार्यकाल के लिए पात्र नहीं होते।

कार्य

  • भर्ती: अखिल भारतीय सेवाएँ, केंद्रीय सेवाएँ और केंद्रशासित प्रदेशों की सेवाओं के लिए परीक्षा आयोजित करता है।
  • राज्य सहायता: संयुक्त भर्ती योजनाओं में राज्यों की सहायता करता है या राष्ट्रपति की मंजूरी के साथ राज्य के अनुरोध पर सेवाएँ प्रदान करता है।
  • सलाहकार भूमिका: र्ती के तरीकों, नियुक्तियों, पदोन्नति, स्थानांतरण, अनुशासन संबंधी मामलों, कानूनी खर्च के दावों और पेंशन के बारे में सरकार को सलाह देता है।
  • राष्ट्रपति का संदर्भ: भारत के राष्ट्रपति द्वारा भेजे गए किसी भी मामले पर विचार करता है।
  • न्यायिक दृष्टिकोण: सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि UPSC की सलाह अनिवार्य नहीं, बल्कि अनुशंसित है; चयन से नियुक्ति का अधिकार नहीं मिलता।
  • अन्य कार्य और रिपोर्टिंग: संसद UPSC की भूमिका बढ़ा सकती है; राष्ट्रपति को वार्षिक रिपोर्ट सौंपती है, जिसे सलाह न मानने के कारणों के साथ संसद के समक्ष रखा जाता है।

क्षेत्र और परीक्षाएँ

  • सिविल सेवा परीक्षा: IAS, IPS, IFS, और कई केंद्रीय सिविल सेवाओं में भर्ती के लिए यह परीक्षा आयोजित की जाती है, जिसमें प्रत्येक वर्ष लगभग 10-12 लाख उम्मीदवार शामिल होते हैं।
  • अन्य परीक्षाएँ: UPSC इंजीनियरिंग, वन, मेडिकल, रक्षा और सांख्यिकी सेवाओं के लिए भी भर्ती परीक्षा आयोजित करता है।
  • वार्षिक आँकड़े: वर्ष 2022-23 में, UPSC ने 33.51 लाख आवेदन संसाधित किए और 15 भर्ती परीक्षाएँ आयोजित कीं, जिनमें से 11 सिविल सेवाओं के लिए और चार रक्षा सेवाओं के लिए थीं।
  • भाषा विविधता: उम्मीदवार अपने उत्तर अंग्रेजी या संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त 22 भाषाओं में से किसी भी भाषा में लिख सकते हैं।

चुनौतियाँ

  • विश्वसनीयता पर खतरा: वर्ष 2024 में IAS अधिकारी पूजा खेड़कर को नौकरी से निकाले जाने जैसी घटनाओं ने अनुचित प्रथाओं के बारे में चिंताएँ बढ़ा दी हैं।
  • लंबी प्रक्रिया: परीक्षा का पूरा चक्र आवेदन से लेकर अंतिम चयन तक लगभग 1.5 से 2 वर्ष का होता है, जिससे अनिश्चितता बढ़ जाती है।
  • परीक्षा का दबाव: इतनी बड़ी परीक्षा से उम्मीदवारों पर सामाजिक और मनोवैज्ञानिक दबाव बढ़ता है।
  • नैतिक मूल्यों का अभाव: नैतिकता का प्रश्न पत्र होने के बावजूद, कई अधिकारी अनैतिक व्यवहार करते हैं।

सिविल सेवा सुधारों पर प्रमुख समितियाँ

  • कोठारी समिति (1976): सभी सेवाओं के लिए त्रि-स्तरीय परीक्षा प्रणाली (प्रिलिम्स-मेंस-इंटरव्यू) और भर्ती प्रक्रिया को तर्कसंगत बनाने की सिफारिश की।
  • सतीश चंद्र समिति (1989): मुख्य परीक्षा में निबंध प्रश्न-पत्र शामिल करने और व्यक्तित्त्व परीक्षण का महत्त्व बढ़ाने का सुझाव दिया।
  • अलघ समिति (2001): प्रारंभिक परीक्षा में योग्यता आधारित परीक्षण (रीजनिंग, समझ, निर्णय लेने की क्षमता) का प्रस्ताव दिया।
  • होता समिति (2004): सिविल सेवाओं में आधुनिकीकरण, नैतिकता, ICT का उपयोग, प्रदर्शन मूल्यांकन और HR प्रथाओं पर ध्यान केंद्रित किया।
  • निगवेकर समिति (2007): मुख्य परीक्षा के ढाँचे की समीक्षा की; वैकल्पिक विषयों पर निर्भरता कम करने और पाठ्यक्रम में बदलाव करने की सिफारिश की।

हाल की पहल

  • डिजिटल सुधार: पहचान में विकृति रोकने के लिए नए ऑनलाइन एप्लीकेशन पोर्टल और फेस-रिकग्निशन टेक्नोलॉजी शुरू की गई है।
  • प्रतिभा सेतु पहल: यह कार्यक्रम उन उम्मीदवारों को वैकल्पिक कॅरियर के अवसर प्रदान करता है, जो इंटरव्यू तक तो पहुँच जाते हैं लेकिन उनका चयन नहीं हो पाता।

निष्कर्ष

जब UPSC अपने शताब्दी वर्ष में प्रवेश कर रहा है, तो इस संस्था को निष्पक्षता और योग्यता के अपने मूल मूल्यों को बनाए रखना चाहिए, साथ ही 21वीं सदी की शासन प्रणाली की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए स्वयं को निरंतर परिवर्तित करने रहना चाहिए। परंपरा और नवाचार के बीच संतुलन ही भारतीय सिविल सेवाओं के अगले 100 वर्षों की दिशा निर्धारित करेगा।

संदर्भ

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) ने अपनी प्रमुख वार्षिक सांख्यिकीय रिपोर्टें जारी कीं, जिनके शीर्षक हैं- भारत में जेल सांख्यिकी (PSI) 2023 रिपोर्ट, भारत में अपराध 2023 रिपोर्ट, और भारत में आकस्मिक मृत्यु और आत्महत्या (ADSI) 2023 रिपोर्ट, जो देश भर में अपराध, जेलों, आकस्मिक मृत्यु तथा आत्महत्याओं के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती हैं।

रिपोर्ट के संबंध में अन्य तथ्य

  • भारत में अपराध रिपोर्ट: NCRB का सबसे पुराना प्रकाशन, यह पंजीकृत अपराधों, मामलों के निपटारे, गिरफ्तारियों और कमजोर समूहों (महिलाओं, बच्चों, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति, वरिष्ठ नागरिकों) के विरुद्ध अपराधों को शामिल करता है।
    • इसमें साइबर अपराध, मानव तस्करी और पर्यावरण संबंधी अपराध जैसे उभरते क्षेत्र भी शामिल हैं।
  • भारत कारागार सांख्यिकी (PSI) रिपोर्ट: जेलों, कैदियों और जेल के बुनियादी ढाँचे पर केंद्रित है।
    • इसमें लैंगिक और आयु आधारित कैदियों से संबंधित डेटा, जेल की क्षमता, स्टाफिंग, बजट, व्यावसायिक प्रशिक्षण और कल्याणकारी उपाय शामिल हैं।
    • यह भारत में सुधारात्मक सुविधाओं पर प्रमुख डेटाबैंक के रूप में कार्य करता है।
  • भारत में आकस्मिक मृत्यु और आत्महत्या (ADSI) रिपोर्ट: आकस्मिक मृत्यु (प्राकृतिक और अप्राकृतिक कारणों से) और आत्महत्याओं, जिनमें सड़क दुर्घटनाएँ, पीड़ितों का व्यावसायिक तथा सामाजिक विवरण एवं किसान आत्महत्याएँ शामिल हैं, पर विस्तृत डेटा प्रदान करता है।
    • यह इस विषय पर सबसे व्यापक राष्ट्रीय डेटाबैंक है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के बारे में

  • स्थापना: अपराध और अपराधियों पर सूचना संग्रह के रूप में वर्ष 1986 में गठित, NCRB भारत सरकार के गृह मंत्रालय (MHA) के अधीन कार्य करता है।
  • उत्पत्ति: NCRB की स्थापना टंडन समिति, राष्ट्रीय पुलिस आयोग (1977-1981) और गृह मंत्रालय के कार्यबल की सिफारिशों के आधार पर की गई थी।
  • भूमिका: यह अपराध संबंधी आँकड़ों को एकत्रित करने, उनका विश्लेषण करने और उनके प्रबंधन हेतु उत्तरदायी है तथा अपराधों और अपराधियों का पता लगाने में जाँचकर्ताओं की मदद करने के लिए बहुमूल्य जानकारी प्रदान करता है।
  • मुख्यालय: नई दिल्ली।
  • प्रकाशन: इसकी प्रमुख रिपोर्टों में भारत में अपराध, आकस्मिक मृत्यु और आत्महत्याएँ, और कारागार संबंधी आँकड़े शामिल हैं, जिनमें राष्ट्रीय अपराध प्रवृत्तियों और पैटर्न का विवरण प्रदान किया गया है।

NCRB के कार्य

  • अपराध और अपराधी ट्रैकिंग नेटवर्क और प्रणाली (CCTNS): वर्ष 2009 से, NCRB CCTNS परियोजना की निगरानी, ​​समन्वय और कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदार रहा है। यह एक ऐसा नेटवर्क है, जो देश भर के पुलिस थानों को जोड़कर आपराधिक सूचनाओं का एक केंद्रीकृत डेटाबेस तैयार करता है।
  • राष्ट्रीय डिजिटल पुलिस पोर्टल: इसे वर्ष 2017 में लॉन्च किया गया, यह पोर्टल पुलिस अधिकारियों को अपराधियों और संदिग्धों पर नजर रखने में मदद के लिए CCTNS डेटा तक पहुँच प्रदान करता है। यह नागरिकों को ऑनलाइन शिकायत दर्ज करने जैसी सेवाओं का उपयोग करने की भी अनुमति देता है।
  • यौन अपराधियों का राष्ट्रीय डेटाबेस (NDSO): NCRB इस डेटाबेस का रखरखाव करता है और अपराधियों की निगरानी में सहायता के लिए इसे नियमित रूप से राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के साथ साझा करता है।
  • ऑनलाइन साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल: NCRB इस पोर्टल के लिए केंद्रीय नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करता है, जिससे नागरिक साइबर अपराधों, विशेष रूप से चाइल्ड पोर्नोग्राफी और यौन अपराधों से संबंधित अपराधों की रिपोर्ट कर सकते हैं और साक्ष्य अपलोड कर सकते हैं।
  • सेंट्रल फिंगरप्रिंट ब्यूरो: NCRB इसकी देखरेख करता है और पूरे भारत में अपराध जाँच और सत्यापन प्रक्रियाओं में सहायक अभिलेखों का भंडारण और रखरखाव करता है।

A. भारत में अपराध, 2023 रिपोर्ट

भारत में अपराध, 2023 रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष

  • समग्र अपराध: वर्ष 2023 में 6.24 मिलियन मामले दर्ज किए गए (वर्ष 2022 से 7.2% वृद्धि)।
    • अपराध दर: प्रति लाख जनसंख्या पर 448.3 (वर्ष 2022 में 422.2 से ऊपर)।
    • भारत में औसतन प्रत्येक 5 सेकंड में एक अपराध होता है।
  • बदलता पैटर्न: पारंपरिक हिंसक अपराध (हत्या-2.8% की कमी), दुष्कर्म (5.9% की कमी), दहेज हत्या (4.6% की कमी), दुष्कर्म का प्रयास (15%की कमी ) में गिरावट देखी जा रही है, जबकि साइबर और शहरी अपराध (तीव्रगति से गाड़ी चलाना-7.5% की वृद्धि), सार्वजनिक मार्ग में बाधा डालना (62% की वृद्धि) आदि बढ़ रहे हैं।
    • साइबर अपराध: भारत में साइबर अपराध वर्ष 2023 में 31.2% बढ़ा, जिसमें अधिकतर मामले धोखाधड़ी से संबंधित थे।
      • कर्नाटक में सर्वाधिक साइबर अपराध के मामले (21,889) दर्ज किए गए, उसके बाद तेलंगाना (18,236) और उत्तर प्रदेश (10,794) का स्थान रहा।
    • महानगरीय शहर: महानगरीय शहरों में अपराध के मामले 10.6% बढ़कर 9.44 लाख हो गए, जिनमें 44.8% चोरी के मामले, 9.2% लापरवाही से गाड़ी चलाने के मामले और 8.1% सार्वजनिक मार्गों पर बाधा डालने के मामले थे।
      • दिल्ली में सर्वाधिक मामले सामने आए।
  • कमजोर वर्गों के विरुद्ध अपराध
    • महिलाएँ: महिलाओं के विरुद्ध अपराध में मामूली वृद्धि (0.7%) हुई, फिर भी घरेलू हिंसा (29.8%) प्रमुख बनी हुई है।
    • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति: अनुसूचित जातियों (SC) के विरुद्ध अपराध में मामूली वृद्धि हुई, हालाँकि अनुसूचित जनजातियों के विरुद्ध अपराध में 28.8% की वृद्धि हुई, जिसमें जातीय हिंसा के कारण मणिपुर सबसे आगे रहा (3,399 मामले, जो वर्ष 2022 में केवल 1 थे)।
      • मध्य प्रदेश दूसरे स्थान पर रहा, उसके बाद राजस्थान का स्थान था, राजस्थान की भूमिका विशेष रूप से महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि इसने मणिपुर और अन्य क्षेत्रों के आदिवासी समुदायों के सामने मौजूद निरंतर खतरे और जोखिम को उजागर किया।
    • बच्चे: बच्चों के विरुद्ध अपराध (9.2%) में वृद्धि हुई, जिसमें POSCO के तहत एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा शामिल है, जो बच्चों की सुभेद्यता और अधिनियम के तहत बेहतर रिपोर्टिंग दोनों को दर्शाता है।

अपराध रोकथाम और न्याय को मजबूत करने के मार्ग

  • साइबर सुरक्षा और डिजिटल साक्षरता को मजबूत करना: प्रत्येक राज्य में उन्नत फोरेंसिक क्षमताओं वाली विशेष साइबर अपराध पुलिस इकाइयाँ स्थापित करना।
    • नागरिकों, विशेषकर बुजुर्गों और ग्रामीण उपयोगकर्ताओं जैसे कमजोर समूहों को ऑनलाइन धोखाधड़ी से बचाने के लिए डिजिटल साक्षरता कार्यक्रमों का विस्तार करना।
  • शहरी अपराध प्रबंधन: महानगरीय प्रबंधन (CCTV, AI-आधारित यातायात निगरानी) में स्मार्ट निगरानी प्रणालियाँ लागू करना।
    • सड़क सुरक्षा अभियानों को प्राथमिकता देना और लापरवाही से गाड़ी चलाने तथा बाधा उत्पन्न करने से संबंधित अपराधों के सख्त प्रवर्तन को बढ़ावा देना।
    • विश्वास बहाली और त्वरित प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिए उच्च अपराध वाले शहरी क्षेत्रों में सामुदायिक पुलिसिंग मॉडल को बढ़ावा देना।
  • कमजोर समूहों की सुरक्षा
    • महिलाएँ: परामर्श और आश्रय गृहों का विस्तार करना; विशेष अदालतों के माध्यम से घरेलू क्रूरता और उत्पीड़न के मामलों की त्वरित सुनवाई करना।
    • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति: अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के प्रवर्तन को सुदृढ़ करना, उच्च दोषसिद्धि दर सुनिश्चित करना और सामाजिक पूर्वाग्रह को कम करने के लिए सामुदायिक जागरूकता अभियान संचालित करना।
    • बच्चे: POCSO जागरूकता कार्यक्रमों का दायरा बढ़ाना, बाल-अनुकूल पुलिस थानों में निवेश करना और तस्करी तथा दुर्व्यवहार के पीड़ितों के पुनर्वास का विस्तार करना।
  • न्यायिक और पुलिस सुधार: लंबित मामलों को कम करने और दोषसिद्धि दर बढ़ाने के लिए विचाराधीन मामलों की त्वरित सुनवाई करना।
    • डेटा-संचालित अपराध मानचित्रण, पूर्वानुमान विश्लेषण और एकीकृत आपराधिक डेटाबेस के साथ पुलिस व्यवस्था का आधुनिकीकरण करना।
    • पुलिसकर्मियों के लिए बेहतर प्रशिक्षण और मानसिक स्वास्थ्य सहायता सुनिश्चित की जानी चाहिए, विशेषकर उन मामलों में जहाँ संवेदनशील अपराध जैसे लैंगिक आधारित हिंसा, जाति से जुड़े अपराध और बच्चों से संबंधित अपराधों से निपटना होता है।
  • सामुदायिक और निवारक हस्तक्षेप: स्कूलों, पंचायतों और स्थानीय नेताओं को शामिल करते हुए, जमीनी स्तर पर हिंसा-निवारण कार्यक्रमों को बढ़ावा देना।
    • पीड़ितों की सहायता, पुनर्वास और जागरूकता अभियानों में गैर-सरकारी संगठनों की भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
    • युवा अपराध के मूल कारणों का समाधान करने के लिए शिक्षा, रोजगार के अवसरों और नशामुक्ति कार्यक्रमों में निवेश करना।

B. जेल सांख्यिकी भारत (PSI) 2023 रिपोर्ट

जेल सांख्यिकी भारत (PSI) 2023 रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष

  • कुल जेल जनसंख्या: वर्ष 2023 में जेल में बंद कैदियों की संख्या में कमी आएगी (वर्ष 2022 की तुलना में 4.4% की गिरावट)
    • भारत में वर्ष 2023 में कुल 1,332 जेलें थीं, जबकि वर्ष 2022 में यह संख्या 1,330 थी।

भारत में जेलों से संबंधित अन्य मुद्दे

  • जेलों में असमानता और भेदभाव: समृद्ध और उच्च जाति के कैदियों को प्रायः निजी बैरक तक पहुँच, बेहतर भोजन और कम श्रम जैसे विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं।
    • सर्वोच्च न्यायालय (2024) ने जाति-आधारित कार्य आवंटन (जैसे- दलितों द्वारा शौचालय स्वच्छ करना) को अनुच्छेद-14, 17, 21 और 23 का उल्लंघन मानते हुए रद्द कर दिया।
  • कर्मचारियों की कमी: भारत में जेल कर्मचारियों के 30% पद रिक्त हैं; कर्मचारी-कैदी अनुपात लगभग 1:7 है, जबकि यूनाइटेड किंगडम में यह अनुपात 2:3 है।
    • चिकित्सा कर्मचारियों की भारी कमी (प्रति डॉक्टर 775 कैदी बनाम अनुशंसित 1:300)
  • कारागार कल्याण के लिए कम बजट आवंटन: IJR 2025 के अनुसार, 18 राज्यों ने प्रति कैदी प्रतिदिन ₹100 से भी कम खर्च किया।
  • एकसमान जेल प्रबंधन की चुनौतियाँ: जेल राज्य का विषय है और इसलिए, एकसमान जेल प्रबंधन एक कठिन मुद्दा है।

  • राष्ट्रीय अधिभोग दर में थोड़ा सुधार हुआ और यह 120.8% (वर्ष 2022 में 131.4% से) हो गई, जिसका अर्थ है कि भारतीय जेलों में उनकी स्वीकृत क्षमता से लगभग 21% अधिक कैदी थे।
    • भीड़भाड़: दिल्ली की जेलें सर्वाधिक प्रभावित: 200% कैदी हैं और तेलंगाना में सबसे कम 72.8% कैदी हैं।
    • भीड़भाड़ से स्वच्छता, वायु-संचार, आहार की गुणवत्ता और स्वच्छ जल की उपलब्धता विकृत होती है।
  • विचाराधीन कैदी बनाम दोषी: सभी कैदियों में 73.5% विचाराधीन कैदी हैं। यह निरंतर न्यायिक देरी को दर्शाता है।
    • उत्तर प्रदेश में विचाराधीन कैदियों की संख्या सर्वाधिक थी।
    • कैदियों की जनसांख्यिकी: 44% कैदी 18-30 वर्ष की आयु के और 43% कैदी 30-50 वर्ष की आयु के हैं।
    • शिक्षा: 25% अशिक्षित, 40% दसवीं कक्षा से आगे नहीं।
  • महिला कैदियों की भेद्यता: महिलाओं (कैदियों का 4.1%) को अपर्याप्त लैंगिक-संवेदनशील सुविधाओं, सीमित स्वच्छता सुविधाओं और अपर्याप्त चिकित्सा देखभाल का सामना करना पड़ता है।
  • विदेशी कैदी: वर्ष 2022 की तुलना में वर्ष 2023 में 10.7% की वृद्धि हुई, जिसमें 74% विचाराधीन कैदी और 21% दोषी थे।
    • अधिकतर बांग्लादेश, नेपाल, म्याँमार, पाकिस्तान और नाइजीरिया से हैं।
  • जेलों में मौतें: वर्ष 2023 में 1,972 मौतें हुईं, जिनमें 150 अप्राकृतिक हुईं, जिनमें 96 आत्महत्याएँ शामिल हैं। यह कैदियों के मानसिक स्वास्थ्य की उपेक्षा को दर्शाता है।
    • पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक अप्राकृतिक मौतें हुईं।

भारत में कारागार के लिए विनियम – संवैधानिक ढाँचा

  • अनुच्छेद-14: सभी कैदी, जिनमें विचाराधीन कैदी और दोषी भी शामिल हैं, कानून के समक्ष समान हैं और समान सुरक्षा के हकदार हैं।
  • अनुच्छेद-21: यह गारंटी प्रदान करता है कि किसी भी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा।
    • यह कैदियों के सम्मान, स्वास्थ्य, भोजन, कानूनी सहायता और यातना से सुरक्षा के अधिकारों का आधार बनता है।
  • अनुच्छेद-22: कानूनी सलाहकार से परामर्श करने, मनमानी गिरफ्तारी और निवारक निरोध से सुरक्षा के अधिकार सुनिश्चित करता है।
  • अनुच्छेद-23: विनियमित परिस्थितियों में जेल श्रम वैध है, लेकिन जबरन या शोषणकारी श्रम निषिद्ध है।
  • अनुच्छेद-39A: राज्य को विचाराधीन कैदियों सहित सभी के लिए न्याय तक पहुँच सुनिश्चित करने हेतु निःशुल्क कानूनी सहायता प्रदान करने का निर्देश देता है।
  • सातवीं अनुसूची (सूची II) के अंतर्गत राज्य विषय: कारागार राज्य का विषय है, जो राज्य सरकारों को जेल प्रशासन, बजट और सुधारों की प्राथमिक जिम्मेदारी प्रदान करता है।

जेल सुधार और सिफारिश पर महत्त्वपूर्ण समितियाँ

  • मुल्ला समिति (1980-1983): न्यायमूर्ति ए.एन. मुल्ला की अध्यक्षता में।
    • प्रमुख सिफारिशें
      • भारतीय कारागार एवं सुधार सेवाओं की स्थापना।
      • विचाराधीन कैदियों को दोषियों से अलग करना।
      • जेलों तक मीडिया और जनता की पहुँच।
      • पुनर्वास, देखभाल और सुधारात्मक प्रशिक्षण पर जोर।
      • जेल सुधार के लिए पर्याप्त धनराशि का आवंटन।
  • कृष्णा अय्यर समिति (1987): महिला कैदियों पर केंद्रित।
    • सुझाव 
      • अधिक महिला कर्मचारी।
      • महिला कैदियों के लिए कानूनी सहायता, शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण।
      • हिरासत में यौन शोषण से सुरक्षा।
  • जेल सुधारों पर न्यायमूर्ति अमिताव रॉय पैनल (2018-2020)
    • भीड़भाड़: वकील-कैदी अनुपात को बनाए रखना, प्रत्येक 30 कैदियों के लिए कम-से- कम एक वकील उपलब्ध हो।
    • कर्मचारियों की कमी: रिक्त पदों पर भर्ती शुरू करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय को निर्देश देना।
      • मुकदमों के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का उपयोग।
    • कैदी अधिकार: प्रत्येक नए कैदी को अपने पहले सप्ताह के दौरान प्रतिदिन अपने परिवार से एक निःशुल्क फोन कॉल करने की अनुमति देना।

भारत में जेल से संबंधित प्रमुख निर्णय

  • सुनील बत्रा बनाम दिल्ली प्रशासन (1978): न्यायिक स्वीकृति के बिना एकांत कारावास को असंवैधानिक ठहराया गया; न्यायालय ने पुष्टि की कि अनुच्छेद-21 के तहत कैदियों के मौलिक अधिकार बरकरार हैं।
  • हुसैनारा खातून बनाम बिहार राज्य (1979): सर्वोच्च न्यायालय ने त्वरित सुनवाई को एक मौलिक अधिकार घोषित किया, जिसके परिणामस्वरूप वैधानिक सीमाओं से परे हिरासत में लिए गए हजारों विचाराधीन कैदियों की रिहाई हुई।
  • फ्राँसिस कोरली मुलिन बनाम प्रशासक, दिल्ली (1981): यह माना गया कि अनुच्छेद-21 के तहत कैदियों को जीवन और सम्मान के अधिकार के तहत परिवार तथा वकीलों से संवाद करने का अधिकार है।
  • राममूर्ति बनाम कर्नाटक राज्य (1997): जेल प्रणाली में 9 मुख्य मुद्दों (अति भीड़भाड़, यातना, स्वास्थ्य आदि) की पहचान की और सरकारों को तत्काल सुधार लागू करने का निर्देश दिया।
  • प्रभा दत्त बनाम भारत संघ (1982): कैदियों से साक्षात्कार करने के प्रेस के अधिकार को बरकरार रखा, जिससे जेल प्रणाली में पारदर्शिता और सूचना तक पहुँच मजबूत हुई।
  • सुहास चकमा बनाम भारत संघ एवं अन्य (2024): सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि खुली जेलें भीड़भाड़ कम करने और पुनर्वास को बढ़ावा देने का एक प्रभावी समाधान हो सकती हैं।
    • इसने राज्य सरकारों को पूरे भारत में खुली जेल प्रणालियों को अपनाने और उनका विस्तार करने के लिए प्रोत्साहित किया।

भारत में जेल सुधार से संबंधित पहल

  • खुली जेल प्रणाली: विश्वास और अच्छे व्यवहार के आधार पर, कैदी न्यूनतम सुरक्षा के साथ रहते हैं और खुले में कार्य कर सकते हैं।
  • उद्देश्य: भीड़भाड़ कम करना और सामाजिक पुनर्मिलन को बढ़ावा देना।
    • राजस्थान में सर्वाधिक 41 खुली जेल हैं।
    • हालाँकि, केवल 3% कैदी ही खुली जेलों में रहते हैं; अधिकांश राज्यों में इनका कम उपयोग होता है।
  • ई-कारागार परियोजना: यह केंद्रीय गृह मंत्रालय की पहल है। कैदियों के रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण और इंटरऑपरेबल क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम (ICJS) के माध्यम से डेटा को एकीकृत करता है।
  • ई-मुलाकात: कैदियों और उनके परिवारों/कानूनी सलाहकारों के बीच डिजिटल संचार को सक्षम बनाता है।
  • विचाराधीन समीक्षा समितियाँ (UTRCs): सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रिहाई के योग्य विचाराधीन कैदियों के मामलों की समय-समय पर समीक्षा करने का आदेश दिया गया है।
    • उद्देश्य: मुकदमे-पूर्व हिरासत में कमी; जहाँ आवश्यक हो, जमानत और पैरोल सुनिश्चित करना।
    • मॉडल जेल मैनुअल (Model Prison Manual) और मॉडल अधिनियम 2023, दोनों के अंतर्गत समर्थित है।
  • कानूनी सहायता और ‘पैरा-लीगल वॉलंटियर’ कार्यक्रम: राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) द्वारा समर्थित है।
    • गतिविधियों में शामिल हैं: जेलों में कानूनी जागरूकता; विचाराधीन कैदियों को जमानत आवेदन करने में सहायता के लिए ‘पैरा-लीगल वॉलंटियर’।
  • व्यावसायिक प्रशिक्षण और पुनर्वास योजनाएँ: कुछ जेलों में शुरू की गई (जैसे- तिहाड़ जेल का स्मार्ट कार्यक्रम, सृजन परियोजना)।
    • फोकस: कौशल निर्माण, मनोवैज्ञानिक सहायता, जेल के बाद पुनः एकीकरण।
    • हालाँकि, ऐसे कार्यक्रम अपवाद हैं और पूरे देश में समान रूप से लागू नहीं होते हैं।
    • दिल्ली विश्वविद्यालय के दिल्ली कौशल एवं उद्यमिता विश्वविद्यालय (DSEU) ने तिहाड़ जेल के साथ साझेदारी की है ताकि कैदियों को कौशल-आधारित पाठ्यक्रम प्रदान किए जा सकें, जिनका उद्देश्य उनके पुनर्वास और समाज में एकीकरण है।
  • जेल श्रम सुधार: दंडात्मक श्रम से उत्पादक श्रम की ओर बदलाव।
    • कुछ खुली जेलों में, कैदियों को बाजार मूल्य के अनुसार मजदूरी दी जाती है, जिससे वे अपने भरण-पोषण का खर्च वहन करते हैं।
    • महाराष्ट्र ने वर्ष 1949 में एक व्यापक जेल वेतन प्रणाली शुरू की थी, जिसका बाद में अन्य राज्यों ने भी अनुसरण किया।
  • नवीन दृष्टिकोण
    • विपश्यना पर ध्यान: तिहाड़ जेल (1995) में मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देकर पुनरावृत्ति को सफलतापूर्वक कम किया।
    • आफ्टरकेयर’ कार्यक्रम (Aftercare Programs): सेवा सदन जैसे गैर-सरकारी संगठन आवास और रोजगार सहायता के माध्यम से पुनः एकीकरण में सहायता करते हैं।

भारत में जेल सुधारों के लिए आगे की राह

  • आदर्श कारागार अधिनियम, 2023 को अपनाना और लागू करना: राज्यों को पुनर्वास और अधिकार-आधारित लक्ष्यों के अनुरूप पुराने कारागार अधिनियम, 1894 को नए आदर्श अधिनियम से बदलना चाहिए।
    • यह अधिनियम शिक्षा, मानसिक स्वास्थ्य सहायता, महिलाओं और ट्रांसजेंडर कैदियों के लिए अलग आवास तथा प्रौद्योगिकी एकीकरण को बढ़ावा देता है।
  • कानूनी सहायता और त्वरित कार्यवाही तंत्र के माध्यम से विचाराधीन बंदियों की संख्या कम करना: विचाराधीन समीक्षा समितियों (UTRCs) की भूमिका का विस्तार करना और गिरफ्तारी के समय से ही मुफ्त कानूनी सहायता को मजबूत करना, न कि केवल मुकदमे के दौरान।
    • धारा 436A CrPC को प्रभावी ढंग से लागू करना और जेलों में भीड़ कम करने के लिए प्ली बार्गेनिंग को प्रोत्साहित करना।
  • खुली जेलों का विस्तार और उपयोग करना: सुहास चकमा (2024) मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुमोदित, अच्छे व्यवहार वाले दोषियों के लिए खुली जेलों को बढ़ावा देना।
    • ये संस्थान लागत कम करते हैं, आत्म-अनुशासन को बढ़ावा देते हैं और सामाजिक पुनर्मिलन में सहायता करते हैं, लेकिन वर्तमान में इनमें केवल 3% कैदी ही रह रहे हैं।
  • जेल स्टाफिंग और प्रशिक्षण को मजबूत बनाना: संवर्ग, सुधारात्मक और चिकित्सा कर्मचारियों के 30-45% रिक्त पदों को तत्काल भरना।
    • बुनियादी और सेवाकालीन प्रशिक्षण प्रदान करना, विशेष रूप से मानसिक स्वास्थ्य देखभाल और मानवाधिकार अनुपालन में।
  • सम्मानजनक परिस्थितियाँ सुनिश्चित करना और भेदभाव को समाप्त करना: जाति-आधारित कर्तव्यों को समाप्त करना (जैसा कि हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्देशित किया गया है)।
    • महिला कैदियों के लिए स्वास्थ्य देखभाल, बच्चों की देखभाल और नियमित मुलाकातों सहित सुविधाओं में सुधार करना।
  • निगरानी तंत्र को मजबूत बनाना: विजिटर्स बोर्ड (BoVs) द्वारा नियमित निरीक्षण सुनिश्चित करना और पारदर्शिता के लिए मीडिया की पहुँच को प्रोत्साहित करना।
    • वर्ष 2022 में आवश्यक 3,100 से अधिक निरीक्षणों के मुकाबले केवल 899 निरीक्षण दर्ज किए गए; जवाबदेही के लिए इसमें सुधार किया जाना चाहिए।

C. भारत में आकस्मिक मृत्यु और आत्महत्या (ADSI), 2023 रिपोर्ट

भारत में आकस्मिक मृत्यु और आत्महत्या (ADSI) 2023 रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष

  • कुल दुर्घटनाजन्य मृत्यु और आत्महत्याएँ: भारत में वर्ष 2023 में 1,71,418 आत्महत्याएँ दर्ज की गईं, जबकि सड़क दुर्घटनाओं में 1,73,826 लोग मारे गए।
    • ये आँकड़े मिलकर मानसिक स्वास्थ्य संकट और सड़क सुरक्षा में विफलताओं के दोहरे संकट को उजागर करते हैं।
  • सड़क दुर्घटनाएँ: वर्ष 2023 में 4,64,029 सड़क दुर्घटनाएँ दर्ज की गईं, जो वर्ष 2022 की तुलना में 17,261 मामलों की वृद्धि है।
    • वर्ष 2022 की तुलना में वर्ष 2023 में मृत्यु दर में 1.6% की वृद्धि हुई।
    • दोपहिया वाहनों से होने वाली मौतों में 45.8% की वृद्धि हुई, उसके बाद पैदल यात्रियों और कारों/SUV/जीपों का स्थान रहा है।
    • तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में दोपहिया वाहनों से होने वाली मौतों में सर्वाधिक वृद्धि दर्ज की गई।
    • कारण: तेज गति (58.6%) और खतरनाक ड्राइविंग (23.6%) घातक दुर्घटनाओं के दो प्रमुख कारण थे।
    • समय और स्थान पैटर्न: अधिकतम दुर्घटनाएँ शाम 6-9 बजे (20.7%) के बीच हुईं, उसके बाद दोपहर 3-6 बजे (17.3%) के बीच हुईं।
    • राष्ट्रीय राजमार्गों पर 34.6%, राज्य राजमार्गों पर 23.4% और अन्य सड़कों पर 42% मौतें हुईं।
    • उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में राजमार्गों पर सर्वाधिक मौतें दर्ज की गईं।
  • किसान एवं कृषि श्रमिकों की आत्महत्याएँ: कृषि क्षेत्र में 10,786 आत्महत्याएँ (कुल आत्महत्याओं का 6.3%)
    • किसानों (4,690) की तुलना में अधिक कृषि मजदूरों (6,096) ने आत्महत्या की।
    • महाराष्ट्र (38.5%) और कर्नाटक (22.5%) में कुल मिलाकर 60% कृषक आत्महत्याएँ हुईं।
    • उच्च कृषक आत्महत्या वाले अन्य राज्य: आंध्र प्रदेश (8.6%), मध्य प्रदेश (7.2%), तमिलनाडु (5.9%)।
  • नशीली दवाओं के ओवरडोज से होने वाली मौतें: वर्ष 2023 में नशीली दवाओं के ओवरडोज से राष्ट्रीय स्तर पर 654 मौतें दर्ज की गईं।
    • पंजाब लगातार दूसरे वर्ष (89 मौतें) सबसे आगे रहा, उसके बाद मध्य प्रदेश (85) और राजस्थान (84) का स्थान रहा।
    • NDPS अधिनियम के तहत मामलों में भी पंजाब शीर्ष तीन राज्यों में शामिल है, जो तस्करी और नशीली दवाओं से संबंधित मौतों के बीच गहरे संबंध को दर्शाता है।
  • अवैध/नकली शराब से होने वाली मौतें: झारखंड में सर्वाधिक (194), उसके बाद कर्नाटक (79) और बिहार (57) का स्थान है।
    • पंजाब में ऐसी 33 मौतें हुईं, जो इसे शीर्ष पाँच राज्यों में शामिल करता है।

आगे की राह

सड़क दुर्घटनाएँ और यातायात सुरक्षा

  • यातायात कानूनों का कठोरता से पालन: स्वचालित चालान प्रणाली का विस्तार करना, तेज गति और नशे में वाहन चलाने पर कठोर दंड लगाना।
  • सड़क अभियांत्रिकी एवं अवसंरचना: विशेष रूप से दुर्घटना-प्रवण क्षेत्रों पर, साइनेज, स्ट्रीट लाइटिंग, पैदल यात्री क्रॉसिंग और सड़क विभाजकों में सुधार करना।
  • सुरक्षित राजमार्ग: दुर्घटना अवरोधक बनाना, दोपहिया वाहनों के लिए समर्पित लेन बनाना और राजमार्गों पर आपातकालीन चिकित्सा प्रतिक्रिया इकाइयों में सुधार करना।
  • जन जागरूकता अभियान: सुरक्षित ड्राइविंग प्रथाओं, हेलमेट/सीटबेल्ट के उपयोग और वाहन चलाते समय मोबाइल फोन के उपयोग के खतरों पर नियमित रूप से व्यापक अभियान चलाना।
  • प्रौद्योगिकी एकीकरण: सार्वजनिक परिवहन के लिए उन्नत चालक-सहायता प्रणालियों (ADAS), वाहन फिटनेस जाँच और GPS-आधारित गति निगरानी को प्रोत्साहित करना।

दवा की अधिक खुराक से होने वाली मौतें

  • NDPS प्रवर्तन को मजबूत बनाना: अंतर-राज्यीय और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से मादक पदार्थों की तस्करी के नेटवर्क को समाप्त करना।
  • दंड के बजाय पुनर्वास: नशामुक्ति और पुनर्वास केंद्रों का विस्तार करना; नशाग्रस्त व्यक्तियों के अपराधीकरण के बजाय उनके उपचार को प्राथमिकता देना।
  • सामुदायिक पुलिसिंग: नशाग्रस्त व्यक्तियों के प्रति कलंक को कम करने और शीघ्र हस्तक्षेप को प्रोत्साहित करने के लिए समुदाय-संचालित जागरूकता अभियान चलाना।
  • आँकड़ों पर आधारित कार्यवाही: NCRB और NDPS मामलों के आँकड़ों का उपयोग हॉटस्पॉट की पहचान करने और क्षेत्र-विशिष्ट नशा-विरोधी रणनीतियाँ (जैसे- पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश) तैयार करने के लिए करना।

अवैध/नकली शराब से होने वाली मौतें

  • सख्त नियमन और निगरानी: अवैध शराब उत्पादन और वितरण नेटवर्क पर छापेमारी तेज़ करना।
  • सामुदायिक जागरूकता: नकली शराब के स्वास्थ्य संबंधी खतरों के बारे में ग्रामीण और शहरी गरीब समुदायों को शिक्षित करना।
  • वैकल्पिक आजीविका: उन क्षेत्रों में आर्थिक विकल्प प्रदान करना, जहाँ अवैध शराब निर्माण आजीविका का आधार है।
  • स्वास्थ्य हस्तक्षेप: जिला अस्पतालों को ‘टॉक्सिकोलॉजी यूनिट्स’ और मेथेनॉल विषाक्तता के लिए तेज उपचार प्रोटोकॉल से संबद्ध करना।

किसानों की आत्महत्या के प्रमुख कारण क्या हैं?

  • ऋण भार: बढ़ती लागत और फसलों की कम कीमतें किसानों को ऋण के चक्र में फँसा देती हैं।
    • साहूकारों पर निर्भरता, जो अत्यधिक ब्याज दर (30-40%) वसूलते हैं, फसल खराब होने के बाद ऋण चुकाना असंभव बना देती है।
  • फसल खराब होना और जलवायु तनाव: अनियमित वर्षा, सूखा, बाढ़ और कीटों के हमले पैदावार को बुरी तरह प्रभावित करते हैं।
    • मानसून पर निर्भरता और घटते जल संसाधन कृषि जोखिमों को और बढ़ा देते हैं।
  • कम लाभप्रदता और बाजार में अस्थिरता: किसान प्रायः बीजों, उर्वरकों और कीटनाशकों पर बिक्री से होने वाली आय से अधिक खर्च करते हैं।
    • कपास, सोयाबीन, प्याज और दालों जैसी फसलों की कीमतों में गिरावट ग्रामीण संकट को और बढ़ा देती है।
  • नीतिगत कमियाँ और सीमित बीमा कवरेज: फसल बीमा योजनाएँ प्रायः काश्तकारों और भूमिहीन श्रमिकों को इससे बाहर कर देती हैं।
    • फसल नुकसान के लिए कम मुआवजा प्राप्त होने से वित्तीय तनाव बढ़ता है।
  • सामाजिक-सांस्कृतिक दबाव: विवाह, दहेज या सामाजिक दायित्वों पर होने वाला खर्च वित्तीय असुरक्षा को बढ़ाता है।
    • शराब और नशीली दवाओं की लत, खासकर ग्रामीण इलाकों में, संकट को और बढ़ा देती है।
  • मानसिक स्वास्थ्य की उपेक्षा: अवसाद, निराशा और सामाजिक उपेक्षा का भय आत्महत्याओं की बढ़ती घटनाओं में योगदान करते हैं।

बढ़ती किसान आत्महत्याओं के परिणाम

  • कृषि में आर्थिक नुकसान: आत्महत्याएँ एक उद्यम के रूप में कृषि” के कमजोर होने और उत्पादकता को कमजोर करने का संकेत हैं।
  • ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर प्रभाव: कमाने वाले सदस्य की मृत्यु से पूरे ग्रामीण परिवार अस्त-व्यस्त हो जाते हैं और स्थानीय व्यवसायों पर भी इसका व्यापक प्रभाव पड़ता है।
  • सामाजिक परिणाम: परिवार, विशेषकर महिलाएँ और बच्चे, भावनात्मक आघात तथा वित्तीय अस्थिरता में रहते हैं।
  • मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव: उच्च आत्महत्या दर वाले समुदायों में मादक द्रव्यों के सेवन और मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों में वृद्धि देखी गई है।
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के लिए ख़तरा: निरंतर कृषि संकट भारत की स्थायी खाद्य आपूर्ति सुनिश्चित करने की क्षमता के लिए खतरा बन सकता है।

किसान आत्महत्याओं को कम करने के लिए सरकारी पहल

  • प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY): फसल खराब होने पर मुआवजा देने के लिए फसल बीमा योजना।
  • प्रधानमंत्री-किसान सम्मान निधि: किसानों को वार्षिक रूप से ₹6,000 की प्रत्यक्ष आय सहायता।
  • ऋण माफी योजनाएँ: ऋणी किसानों को राहत प्रदान करने के लिए राज्य-स्तरीय पहल।
  • राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (NMSA): जलवायु-अनुकूल कृषि पद्धतियों पर केंद्रित।
  • e-NAM (राष्ट्रीय कृषि बाजार): बेहतर मूल्य प्राप्ति सुनिश्चित करने और बिचौलियों के शोषण को कम करने के लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म।

आगे की राह क्या होनी चाहिए?

  • ऋण पहुँच को मजबूत करना: लघु एवं सीमांत किसानों के लिए संस्थागत ऋण का विस्तार करना; साहूकारों द्वारा शोषण पर अंकुश लगाना।
  • फसल विविधीकरण: जल की कम खपत वाली और जलवायु-प्रतिरोधी फसलों को प्रोत्साहित करना, जिससे एकल-फसल पर निर्भरता कम हो।
  • कानूनी MSP गारंटी: किसानों को बाजार के उतार-चढ़ाव से बचाने के लिए सुनिश्चित न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रदान करना।
  • मानसिक स्वास्थ्य सहायता: ग्रामीण परामर्श केंद्र स्थापित करना और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को एकीकृत करना।
  • जलवायु-प्रतिरोधी कृषि: सूखा-प्रतिरोधी किस्मों, कुशल सिंचाई और सतत् प्रथाओं को बढ़ावा देना।
  • ग्रामीण रोजगार विविधीकरण: कृषि-प्रसंस्करण, लघु उद्योगों और कौशल विकास के माध्यम से गैर-कृषि ग्रामीण रोजगार सृजित करना।

निष्कर्ष

ये आँकड़े साइबर अपराधों और सड़क दुर्घटनाओं से लेकर जेलों में बढ़ती भीड़भाड़ और किसानों की आत्महत्याओं तक, भारत में उभरती कमजोरियों को उजागर करते हैं। इन कमियों को दूर करने के लिए साक्ष्य-आधारित नीतियों, न्यायिक दक्षता और समावेशी कल्याणकारी रणनीतियों की आवश्यकता है।

To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.


Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.