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Oct 04 2025

संदर्भ

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने वित्त वर्ष 2025-26 से वित्त वर्ष 2030-31 की अवधि के लिए ₹11,440 करोड़ के वित्तीय परिव्यय के साथ दलहन में आत्मनिर्भरता मिशन को मंजूरी दे दी है।

  • मिशन का उद्देश्य घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना और दालों में आत्मनिर्भरता हासिल करना है।

मिशन के उद्देश्य

  • 2030-31 तक दालों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना।
  • आयात पर निर्भरता कम करना और विदेशी मुद्रा का संरक्षण करना।
  • आधुनिक तकनीकों के माध्यम से उत्पादन, उत्पादकता और किसानों की आय में वृद्धि करना।
  • जलवायु-अनुकूल और सतत् कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना।

वर्ष 2030-31 तक के लक्ष्य

  • दलहन की खेती का क्षेत्रफल 310 लाख हेक्टेयर तक बढ़ाना।
  • वित्त वर्ष 2023-24 में उत्पादन 24.2 मीट्रिक टन से बढ़ाकर 35 मीट्रिक टन करना।
  • उपज बढ़ाकर 1130 किलोग्राम/हेक्टेयर करना।
  • पर्याप्त ग्रामीण रोजगार के अवसर पैदा करना।

मिशन के प्रमुख घटक

  • अनुसंधान और बीज विकास
    • उच्च उपज देने वाली, कीट-प्रतिरोधी और जलवायु-प्रतिरोधी दलहन किस्मों पर ध्यान केंद्रित करना।
    • उपयुक्तता सुनिश्चित करने के लिए प्रमुख दलहन उत्पादक राज्यों में बहु-स्थानीय परीक्षण आयोजित करना।
    • राज्य पंचवर्षीय बीज उत्पादन योजनाएँ तैयार करेंगे, जिसमें भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) प्रजनक बीज उत्पादन की निगरानी करेगी।
    • साथी (बीज प्रमाणीकरण, अनुरेखणीयता और समग्र सूची) पोर्टल के माध्यम से आधारभूत और प्रमाणित बीज उत्पादन की निगरानी की जाएगी।
    • वित्त वर्ष 2030-31 तक 370 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में 126 लाख क्विंटल प्रमाणित बीज वितरित किए जाएँगे।
  • क्षेत्र का विस्तार
    • दलहन की खेती के अंतर्गत 35 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि लाने का लक्ष्य।
    • चावल की परती भूमि, विविधीकरण योग्य भूमि, अंतर-फसल और फसल विविधीकरण पर जोर।
    • किसानों को 88 लाख बीज किट निःशुल्क वितरित किए जाएँगे।
  • किसान क्षमता निर्माण
    • किसानों और बीज उत्पादकों के लिए संरचित प्रशिक्षण कार्यक्रम।
    • स्थायी तकनीकों और आधुनिक प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना।
    • ICAR, कृषि विज्ञान केंद्रों (Krishi Vigyan Kendras [KVK]) और राज्य विभागों द्वारा व्यापक प्रदर्शन।
  • बाजार और मूल्य शृंखला विकास
    • 1,000 प्रसंस्करण इकाइयों सहित कटाई-पश्चात् बुनियादी ढाँचे का विकास।
    • प्रसंस्करण और पैकेजिंग इकाइयों के लिए ₹25 लाख तक की सब्सिडी।
    • भौगोलिक विविधीकरण को बढ़ावा देने और हस्तक्षेपों को अनुकूलित करने के लिए क्लस्टर-आधारित दृष्टिकोण।
  • खरीद और मूल्य समर्थन
    • PM-आशा की मूल्य समर्थन योजना (Price Support Scheme [PSS]) के अंतर्गत तुअर, उड़द और मसूर की सुनिश्चित खरीद।
    • NAFED और NCCF अगले चार वर्षों (2029-30 तक) के लिए भागीदार राज्यों में 100% खरीद करेंगे।
    • किसानों का विश्वास बनाए रखने के लिए वैश्विक दलहन कीमतों की निगरानी हेतु तंत्र।
  • अभिसरण और समर्थन उपाय
    • मृदा स्वास्थ्य कार्यक्रम, कृषि यंत्रीकरण उप-मिशन, उर्वरक संतुलन और पौध संरक्षण के साथ संबंध।
    • दीर्घकालिक स्थिरता के लिए जलवायु-अनुकूल प्रथाओं को बढ़ावा देना।

महत्त्व

  • खाद्य सुरक्षा: बढ़ती आय और बेहतर जीवन स्तर के कारण घरेलू माँग में वृद्धि हुई है।
    • सबसे बड़ा आयातक: वैश्विक दाल आयात में भारत का योगदान 14% है।
    • वित्त वर्ष 2025 में, आयात नौ वर्षों के उच्चतम स्तर 67 लाख टन पर पहुँच गया।
  • आर्थिक लाभ: बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की बचत; किसानों की आय में वृद्धि।
  • पर्यावरणीय प्रभाव: जलवायु-प्रतिरोधी प्रथाओं को प्रोत्साहित करता है, मृदा स्वास्थ्य में सुधार करता है और फसल परती क्षेत्रों का उत्पादक उपयोग करता है।
  • सामरिक महत्त्व: दालों में आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करके आत्मनिर्भर भारत में योगदान देता है।

भारत में दालों की वर्तमान स्थिति

  • सबसे बड़ा उत्पादक, उपभोक्ता और आयातक: भारत विश्व में दालों का सबसे बड़ा उत्पादक (वैश्विक उत्पादन का 25%), उपभोक्ता (वैश्विक उपभोग का 27%) और आयातक (14%) है।
  • पोषण संबंधी भूमिका: दालें, पादप प्रोटीन का सबसे सस्ता स्रोत हैं, जो कुपोषण से निपटने के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।
  • आजीविका संबंधी भूमिका: 5 करोड़ से अधिक किसान और परिवार दालों पर निर्भर हैं, विशेषतः वर्षा आधारित और सीमांत क्षेत्रों में।
  • उत्पादन पैटर्न: लगभग 80% वर्षा आधारित है, इसलिए जलवायु परिवर्तनशीलता के प्रति संवेदनशील है।
  • क्षेत्रीय संकेंद्रण: उत्पादन क्षेत्रीय रूप से संकेंद्रित है, जिसमें मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान का योगदान लगभग 55% है, और शीर्ष 10 राज्य राष्ट्रीय उत्पादन में 91% से अधिक का योगदान करते हैं।
    • निहितार्थ: कुछ राज्यों पर अत्यधिक निर्भरता उत्पादन को क्षेत्रीय रूप से विषम और जलवायु के प्रति संवेदनशील बनाती है।
  • हाल की प्रगति
    • उत्पादन वित्त वर्ष 2015-16 में 16.35 मीट्रिक टन से बढ़कर वित्त वर्ष 2022-23 में 26.06 मीट्रिक टन (59.4% से अधिक) हो गया।
    • उन्नत किस्मों और सरकारी योजनाओं के कारण उत्पादकता में 38% की वृद्धि हुई, जिससे औसत उत्पादकता 851 किग्रा./हेक्टेयर तक पहुँच गई।

संदर्भ

राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) की सहायक कंपनी, इंडियन इम्यूनोलॉजिकल्स लिमिटेड (IIL) ने इन्फेक्शियस बोवाइन राइनोट्रेकाइटिस (Infectious Bovine Rhinotracheitis — IBR) के विरुद्ध भारत का पहला स्वदेशी रूप से विकसित ग्लाइकोप्रोटीन ई (gE) डिलीटेड DIVA मार्कर वैक्सीन, रक्षा-IBR (Raksha-IBR) लॉन्च किया है।

ग्लाइकोप्रोटीन ई (Glycoprotein E- gE) के बारे में

  • यह बोवाइन हर्पीज वायरस-1 (Bovine Herpesvirus-1- BHV-1) की सतह पर पाया जाने वाला एक संरचनात्मक प्रोटीन है।
  • यह वायरस की विषाक्तता, कोशिका-से-कोशिका प्रसार, तथा मेजबान की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया से बचने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

रक्षा-IBR  वैक्सीन के बारे में

  • प्रकार: gE डिलीटेड DIVA [डिफरेंसिएशन ऑफ इन्फेक्टेड फ्रॉम वैक्सिनेटेड एनिमल्स (Differentiation of Infected from Vaccinated Animals)] मार्कर वैक्सीन।
  • कार्य: संक्रमित पशुओं को टीकाकृत पशुओं से अलग करने में मदद करता है (DIVA दृष्टिकोण)।

कार्यविधि

  • gE जीन को हटाने से संक्रमित जानवरों एवं टीकाकृत जानवरों के बीच विभेदन संभव हो जाता है।
    • टीका लगाए गए जानवर gE के विरुद्ध एंटीबॉडी नहीं बनाते, जबकि प्राकृतिक रूप से वाइल्ड टाइप वायरस से जानवर को संक्रमित करते हैं।
  • नैदानिक ​​परीक्षणों से टीकाकृत और प्राकृतिक रूप से संक्रमित पशुओं के बीच अंतर किया जा सकता है, जो रोग उन्मूलन कार्यक्रमों के लिए महत्त्वपूर्ण है।

DIVA मार्कर टीकों एवं पारंपरिक टीकों के बीच तुलनात्मक तालिका

पहलू DIVA मार्कर वैक्सीन पारंपरिक टीका
संघटन विशिष्ट प्रतिरक्षाजनक मार्करों (जैसे- gE प्रोटीन) का अभाव। इसमें संपूर्ण रोगजनक या प्रमुख प्रतिजन शामिल होते हैं।
सीरोलॉजिकल डिफरेंसिएशन विशिष्ट परीक्षणों के माध्यम से संक्रमित पशुओं एवं टीकाकृत पशुओं में अंतर करना संभव बनाता है। विभेदन की अनुमति नहीं देता, दोनों में समान एंटीबॉडी प्रतिक्रिया देखी जाती है।
रोग निगरानी बेहतर रोग निगरानी एवं उन्मूलन कार्यक्रमों का समर्थन करता है। रोग निगरानी एवं मॉनीटरिंग को जटिल बनाता है।
नैदानिक ​​परीक्षण आवश्यक सहयोगी निदान परीक्षण (जैसे- मार्कर एंटीबॉडी के लिए ELISA) की आवश्यकता है। कोई विशिष्ट परीक्षण नहीं है।
वैक्सीन के प्रकार अक्सर डिलीटेड म्यूटेंट, उप इकाई, या वेक्टर्ड  टीके। लाइव एटेन्युऐटेड या निष्क्रिय संपूर्ण रोगजनक टीके।
सुरक्षा विषाणु कारकों के विलोपन के कारण सामान्यतः सुरक्षित। टीके के प्रकार पर निर्भर करता है; जीवंत टीकों में थोड़ा जोखिम होता है।
उन्मूलन कार्यक्रमों में उपयोग DIVA दृष्टिकोण के कारण अत्यधिक उपयुक्त। संक्रमण में अंतर करने में असमर्थता के कारण कम उपयुक्त।

डेयरी क्षेत्र के लिए महत्त्व

  • सबसे बड़ा दूध उत्पादक: भारत दूध उत्पादन में विश्व स्तर पर अग्रणी है; सतत् विकास के लिए मवेशियों के स्वास्थ्य की रक्षा करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
  • उत्पादकता लाभ: IBR की रोकथाम से प्रजनन दर, दूध उत्पादन एवं किसानों के लिए आर्थिक लाभ में सुधार होगा।
  • जैव सुरक्षा सहायता: व्यवस्थित टीकाकरण अभियानों को सक्षम बनाता है, जिससे रोग प्रबंधन एवं पशु स्वास्थ्य में बेहतर सहायता मिलती है।
  • आत्मनिर्भरता: आयातित टीकों पर निर्भरता कम होती है, जिससे पशु स्वास्थ्य के क्षेत्र में भारत की आत्मनिर्भर भारत पहल को बल मिलता है।

इन्फेक्शिअस बोवाइन राइनोट्रेकाइटिस (IBR) क्या है?

  • इन्फेक्शिअस बोवाइन राइनोट्रेकाइटिस (IBR) मवेशियों का एक अत्यधिक संक्रामक विषाणुजनित रोग है, जो बोवाइन हर्पीज वायरस-1 (Bovine Herpesvirus-1- BHV-1) के कारण होता है।
  • यह मुख्य रूप से श्वसन तंत्र को प्रभावित करता है, जिससे बुखार, नाक से स्राव, खाँसी एवं नेत्रश्लेष्मलाशोथ होता है।
  • संचरण: यह एरोसोल, सीधे संपर्क एवं संक्रमित वीर्य के माध्यम से होता है।
  • लक्षण: श्वसन संबंधी रूप (बुखार, नेत्रश्लेष्मलाशोथ, राइनाइटिस, श्वासनली शोथ, फीडलॉट में निमोनिया) एवं यौन संचारित रूप, जो प्रजनन को प्रभावित करते हैं)। 
  • प्रभाव: यह बाँझपन, गर्भपात एवं दूध उत्पादन में कमी जैसे प्रजनन संबंधी विकारों का भी कारण बनता है।
  • उपचार: कोई विशिष्ट उपचार नहीं है; टीकाकरण एवं जैव सुरक्षा के माध्यम से रोकथाम महत्त्वपूर्ण है।
  • निदान: वायरल DNA के लिए वास्तविक समय PCR द्वारा सीरोलॉजी, वायरस अलगाव एवं वीर्य प्रमाणीकरण

बोवाइन हर्पीज वायरस-1 (BHV-1) के बारे में

  • बोवाइन हर्पीज वायरस-1 (BHV-1) दो प्रमुख पशु रोगों का कारण बनता है:- 
    • इन्फेक्शिअस बोवाइन राइनोट्रेकाइटिस (Infectious Bovine Rhinotracheitis- IBR) 
    • इन्फेक्शिअस पुस्टुलर वुल्वोवैजिनाइटिस (Infectious Pustular Vulvovaginitis- IPV)
  • ये दोनों ही भारत में स्थानिक हैं।

राष्ट्रीय धन्वंतरि आयुर्वेद पुरस्कार 2025

हाल ही में आयुष मंत्रालय ने राष्ट्रीय धन्वंतरि आयुर्वेद पुरस्कार 2025 प्रदान किए।

राष्ट्रीय धन्वंतरि आयुर्वेद पुरस्कारों के बारे में

  • परिचय: आयुष मंत्रालय द्वारा स्थापित, ये पुरस्कार आयुर्वेद में उत्कृष्टता को मान्यता देने वाले सर्वोच्च सम्मानों में से हैं।
  • श्रेणियाँ: पुरस्कार विजेताओं को शिक्षा, पारंपरिक ज्ञान और अनुसंधान के माध्यम से आयुर्वेद को आगे बढ़ाने के लिए सम्मानित किया जाता है।
  • महत्त्व: यह सम्मान युवा विद्वानों, पारंपरिक चिकित्सकों और शोधकर्ताओं को भारत की समृद्ध आयुर्वेदिक विरासत के संरक्षण, संवर्द्धन और नवाचार के लिए प्रोत्साहित करता है।
  • वर्ष 2025 पुरस्कार विजेता: प्रो. बनवारी लाल गौड़, वैद्य नीलकंठन मूस ई.टी., और वैद्य भावना प्रशर।

भुगतान नियामक बोर्ड (PRB)

हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने भुगतान प्रणालियों की निगरानी के लिए RBI गवर्नर की अध्यक्षता में छह सदस्यीय भुगतान नियामक बोर्ड (PRB) का गठन किया है।

  • इसका प्रस्ताव RBI-वाटल समिति ने वर्ष 2017 में दिया था।

भुगतान नियामक बोर्ड (PRB) के बारे में

  • PRB, RBI के केंद्रीय बोर्ड की एक समिति, भुगतान एवं निपटान प्रणाली विनियमन एवं पर्यवेक्षण बोर्ड (Board for Regulation and Supervision of Payment and Settlement Systems- BPSS) का स्थान लेगा।
  • कानूनी ढाँचा: इसे भुगतान एवं निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 से अधिकार प्राप्त हैं।
  • 9 मई, 2025 को अधिसूचित संशोधनों के माध्यम से, पीआरबी की औपचारिक स्थापना की गई।
  • संरचना
    • पदेन अध्यक्ष: RBI गवर्नर।
    • पदेन सदस्य: डिप्टी गवर्नर और भुगतान एवं निपटान प्रणालियों के प्रभारी कार्यकारी निदेशक।
    • सरकारी नामित: केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त तीन सदस्य।
    • स्थायी आमंत्रित: RBI के प्रधान कानूनी सलाहकार।
    • RBI बैठकों के लिए विशेषज्ञों (स्थायी/तदर्थ) को भी आमंत्रित कर सकता है।
  • सहायता संरचना: RBI के भुगतान एवं निपटान प्रणाली विभाग (DPSS) द्वारा समर्थित, जो सीधे PRB को रिपोर्ट करता है।
  • निर्णय लेना: निर्णय उपस्थित सदस्यों के बहुमत से लिए जाते हैं।
    • बराबरी की स्थिति में, अध्यक्ष (या उनकी अनुपस्थिति में उप-गवर्नर) के पास निर्णायक मत का अधिकार होता है।
    • बोर्ड को वर्ष में कम-से-कम दो बार बैठक करनी होती है।
  • भूमिका और कार्य
    • इलेक्ट्रॉनिक और गैर-इलेक्ट्रॉनिक, घरेलू और सीमा-पार प्रणालियों सहित सभी भुगतान प्रणालियों के विनियमन और पर्यवेक्षण के लिए उत्तरदायी।
    • भारत के भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र की दक्षता, सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करता है।

फाइनेंशियल बेंचमार्क्स इंडिया लिमिटेड

हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने वैश्विक व्यापार और वित्त में भारतीय रुपये (INR) के अंतरराष्ट्रीय उपयोग को बढ़ावा देने के उपायों की घोषणा की है।

रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण के लिए उठाए गए कदम

  • सीमा पार ऋण: भारत में अधिकृत डीलर बैंक और उनकी विदेशी शाखाएँ जल्द ही भूटान, नेपाल और श्रीलंका के निवासियों और बैंकों को सीमा पार व्यापार को सुगम बनाने के लिए भारतीय रुपये में ऋण दे सकती हैं।
  • विस्तारित संदर्भ दरें: RBI, FBIL द्वारा प्रकाशित मुद्रा संदर्भ दरों का विस्तार करके भारत के प्रमुख व्यापारिक साझेदारों की चुनिंदा मुद्राओं को शामिल करने की योजना बना रहा है, जिससे बैंक अधिक मुद्रा युग्मों में उद्धरण दे सकेंगे और बहु-रूपांतरण दरों को कम कर सकेंगे।
  • विशेष रुपया वोस्ट्रो खाते (SRVA): जुलाई 2022 में शुरू किए गए SRVA धारकों के लिए निवेश विकल्पों का विस्तार किया गया है।
    • अधिशेष शेष राशि को अब सरकारी प्रतिभूतियों और ट्रेजरी बिलों के अलावा कॉरपोरेट बॉण्ड और वाणिज्यिक-पत्रों में निवेश किया जा सकता है, जिससे अंतरराष्ट्रीय लेन-देन में भारतीय रुपये की तरलता बढ़ेगी।

फाइनेंशियल बेंचमार्क्स इंडिया लिमिटेड (FBIL) के बारे में

  • FBIL भारत में एक स्वतंत्र बेंचमार्क प्रशासन है, जो वित्तीय साधनों के मूल्य निर्धारण और निपटान में प्रयुक्त वित्तीय बेंचमार्क के लिए उत्तरदायी है।
  • स्थापना: वित्तीय बेंचमार्क समिति की सिफारिशों के आधार पर वर्ष 2014 में निगमित।

भूमिका एवं कार्य

  • इसने MIBOR और विकल्प अस्थिरता मैट्रिक्स जैसे बेंचमार्क को अपने नियंत्रण में ले लिया।
  • मार्केट रेपो ओवरनाइट रेट (MROR), जमा प्रमाण-पत्र (CDs), और T-बिल यील्ड कर्व्स सहित नए बेंचमार्क पेश किए।
  • यह केंद्र और राज्य सरकार की प्रतिभूतियों के मूल्यांकन का मानकीकरण करता है, जो पहले फिक्स्ड इनकम मनी मार्केट एंड डेरिवेटिव्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (FIMMDA) द्वारा किया जाता था।
  • रुपये के मुकाबले USD/INR और अन्य प्रमुख मुद्राओं के लिए दैनिक संदर्भ दरों की गणना और प्रसार करता है, जिसका प्रबंधन पहले RBI द्वारा किया जाता था।

सेबू भूकंप, फिलीपींस

मध्य फिलीपींस के सेबू प्रांत में 6.9 तीव्रता का भूकंप आया, जिससे फिलीपींस सरकार ने आपदा की स्थिति घोषित कर दी।

फिलीपींस के बारे में

  • स्थान: दक्षिण-पूर्व एशिया का एक द्वीपसमूह देश, जो पश्चिमी प्रशांत महासागर में स्थित है।
  • जल निकाय: फिलीपीन सागर (पूर्व), दक्षिण चीन सागर (पश्चिम), सुलु सागर (दक्षिण-पश्चिम) और सेलेब्स सागर (दक्षिण) से घिरा हुआ।
  • समुद्री सीमाएँ: ताइवान (उत्तर), मलेशिया और इंडोनेशिया (दक्षिण), और पलाऊ (पूर्व)।
    • लूजोन जलडमरूमध्य उत्तर में ताइवान और दक्षिण में उत्तरी फिलीपींस के लूजोन द्वीप के बीच स्थित है।
    • यह पश्चिमी प्रशांत महासागर के भीतर पूर्व में फिलीपींस सागर को पश्चिम में दक्षिण चीन सागर से जोड़ता है।
  • भौगोलिक विशेषताएँ
    • सबसे ऊँची चोटी: माउंट एपो
    • सबसे लंबी नदी: कागायन नदी (लूज़ोन)
    • सबसे बड़ी झील: लगुना डे बे, जो पासिग नदी द्वारा मनीला खाड़ी से जुड़ी है।
    • भूविज्ञान: प्रशांत अग्नि वलय का एक हिस्सा, भूकंप और ज्वालामुखी विस्फोटों के लिए प्रवण है। 
    • जलवायु: उष्णकटिबंधीय समुद्री जलवायु (गर्म और आर्द्र)।
  • संसाधन: विश्व का तीसरा सबसे बड़ा भू-तापीय ऊर्जा उत्पादक (अमेरिका और इंडोनेशिया के बाद)

लाल बहादुर शास्त्री

प्रधानमंत्री मोदी ने लाल बहादुर शास्त्री को उनकी 121वीं जयंती पर उनके नेतृत्व, ईमानदारी और भारत के लिए दूरदर्शिता के लिए एक “असाधारण राजनेता” के रूप में याद किया।

लाल बहादुर शास्त्री के बारे में

  • जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद वर्ष 1964 में लाल बहादुर शास्त्री भारत के दूसरे प्रधानमंत्री बने।
  • जन्म: 2 अक्टूबर, 1904 को मुगलसराय, उत्तर प्रदेश में
  • शिक्षा: उन्होंने वर्ष 1925 में विद्यापीठ से दर्शनशास्त्र और नैतिकता में प्रथम श्रेणी की उपाधि प्राप्त की।
    • वे छोटी आयु से ही अपनी विनम्रता, अनुशासन और समर्पण के लिए जाने जाते थे।
  • स्वतंत्रता सेनानी: गांधीवादी मूल्यों और अहिंसा के सिद्धांतों से प्रभावित होकर स्वतंत्रता संग्राम (सविनय अवज्ञा आंदोलन) में सक्रिय रूप से भाग लिया।
  • स्वतंत्रता के बाद का नेतृत्व: प्रधानमंत्री बनने से पहले प्रमुख मंत्री पदों पर रहे; वर्ष 1965 के भारत-पाक युद्ध जैसे चुनौतीपूर्ण समय में भारत का नेतृत्व किया।
  • आर्थिक और सामाजिक पहल: कृषि, आत्मनिर्भरता और खाद्य सुरक्षा की वकालत की, जिससे भारत में हरित क्रांति (1965) को प्रेरणा मिली।
    • वे सैनिकों और किसानों का सम्मान करते हुए अपने प्रतिष्ठित नारे ‘जय जवान, जय किसान’ के लिए अमर हैं।
  • मृत्यु: 11 जनवरी 1966 (आयु 61 वर्ष), ताशकंद, उज्बेकिस्तान।

जैव चिकित्सा अनुसंधान कॅरियर कार्यक्रम (BRCP)

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत में विश्वस्तरीय जैव चिकित्सा अनुसंधान प्रतिभाओं को पोषित करने के लिए जैव चिकित्सा अनुसंधान कॅरियर कार्यक्रम (BRCP) के तीसरे चरण को मंजूरी दे दी है।

जैव चिकित्सा अनुसंधान कॅरियर कार्यक्रम (BRCP) के बारे में

  • BRCP, जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) द्वारा वेलकम ट्रस्ट (WT), यू.के. के साथ साझेदारी में DBT/वेलकम ट्रस्ट इंडिया अलायंस (विशेष प्रयोजन वाहन) के माध्यम से कार्यान्वित एक प्रमुख पहल है।
  • उद्देश्य: जैव चिकित्सा अनुसंधान में शीर्ष स्तरीय वैज्ञानिक प्रतिभाओं का विकास करना, अंतःविषयक और अनुवादात्मक नवाचार को बढ़ावा देना, क्षेत्रीय असमानताओं को कम करना और वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्द्धी अनुसंधान क्षमता का निर्माण करना।
  • प्रारंभ: वर्ष 2008-2009 में प्रारंभ।
  • यह भारत में जैव चिकित्सा अनुसंधान में अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप अनुसंधान फेलोशिप प्रदान करता है।
  • चरण II: यह वर्ष 2018-19 में एक विस्तारित पोर्टफोलियो के साथ शुरू हुआ, जिसने भारत के जैव चिकित्सा अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र को और मजबूत किया।
  • चरण I और II: भारत को अंतरराष्ट्रीय मान्यता के साथ जैव चिकित्सा विज्ञान के एक उभरते केंद्र के रूप में स्थापित किया।
  • चरण III (वर्ष 2025-26 से वर्ष 2030-31, जिसे वर्ष 2037-38 तक बढ़ाया जा सकता है):-
    • बुनियादी, नैदानिक ​​और जन स्वास्थ्य विज्ञान में प्रारंभिक कॅरियर और मध्यवर्ती अनुसंधान फेलोशिप।
    • सहयोगी अनुदान कार्यक्रम: अन्वेषक टीमों के लिए कॅरियर विकास अनुदान और उत्प्रेरक सहयोगी अनुदान।
    • अनुसंधान प्रबंधन कार्यक्रम: मार्गदर्शन, नेटवर्किंग, जन सहभागिता और राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय साझेदारी को सुदृढ़ बनाना।
  • चरण III का उद्देश्य 2,000 से अधिक छात्रों और पोस्टडॉक्टरल फेलो को प्रशिक्षित करना, उच्च-प्रभावी प्रकाशन तैयार करना, पेटेंट योग्य खोजों को सक्षम बनाना, अनुसंधान में महिलाओं के लिए समर्थन बढ़ाना और टियर-2/3 शहरों में अनुसंधान का विस्तार करना है।

अमेरिकी सरकार का शटडाउन

अमेरिका वर्ष 1981 के बाद से 15वीं बार गवर्नमेंट शटडाउन का सामना कर रहा है।

अमेरिकी सरकार का शटडाउन क्या है?

  • अमेरिकी सरकार का शटडाउन तब होता है, जब कांग्रेस बजट या अस्थायी वित्तपोषण विधेयक पारित करने में विफल रहती है, जिसके परिणामस्वरूप अनावश्यक संघीय सरकारी सेवाएँ निलंबित हो जाती हैं।
  • वर्तमान गतिरोध दलीय विभाजन को दर्शाता है, जहाँ रिपब्लिकन राजकोषीय संयम और आव्रजन नियंत्रण पर जोर दे रहे हैं, जबकि डेमोक्रेट स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, जिसमें अफोर्डेबल केयर एक्ट (ACA), मेडिकेड और स्वास्थ्य बीमा सब्सिडी के तहत सुरक्षा शामिल है।

शटडाउन का प्रभाव

  • अमेरिकी कानून के तहत, रक्षा, कानून प्रवर्तन और आपातकालीन स्वास्थ्य सेवा जैसी आवश्यक सेवाओं को छोड़कर, जब कोई आवंटित धनराशि उपलब्ध न हो, तो एजेंसियों को अपना कार्य बंद कर देना चाहिए।
  • संघीय कर्मचारियों को छुट्टी या वेतन में देरी का सामना करना पड़ता है, सरकारी ठेकेदारों को भुगतान नहीं मिलता है और संग्रहालय, पार्क और प्रशासनिक प्रक्रिया जैसी सार्वजनिक सेवाएँ निलंबित कर दी जाती हैं।
  • इससे जनता का विश्वास कमजोर होता है, आर्थिक गतिविधियाँ बाधित होती हैं और संघीय कार्यक्रमों पर निर्भर लाखों परिवार प्रभावित होते हैं।

पूर्व में शटडाउन

  • राष्ट्रपति ट्रंप के अधीन वर्ष 2018-19 का शटडाउन 35 दिनों तक चला, जो अमेरिकी इतिहास में सबसे लंबा था, जिससे सरकारी कामकाज बुरी तरह बाधित हुआ और अर्थव्यवस्था को अरबों का नुकसान हुआ।

संदर्भ

भारत एवं यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ ने नई दिल्ली में आयोजित समृद्धि शिखर सम्मेलन में भारत-EFTA व्यापार तथा आर्थिक भागीदारी समझौते (Trade and Economic Partnership Agreement- TEPA) को क्रियान्वित किया है।

TEPA की मुख्य विशेषताएँ

निवेश प्रतिबद्धताएँ

  • निवेश एवं रोजगार सृजन पर बाध्यकारी कानूनी प्रतिबद्धताओं वाला पहला FTA।
  • EFTA ने भारत में 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (पोर्टफोलियो निवेश को छोड़कर) को सुगम बनाने की प्रतिबद्धता जताई है, जिससे 15 वर्षों में 10 लाख रोजगार सृजित होने की उम्मीद है।

वस्तुओं के लिए बाजार पहुँच

  • EFTA अपनी 92.2% टैरिफ लाइनें प्रदान करता है, जो भारत के 99.6% निर्यात को कवर करती हैं, जिसमें गैर-कृषि वस्तुओं के लिए पूर्ण पहुँच एवं प्रसंस्कृत कृषि उत्पादों पर रियायतें शामिल हैं।
    • उदाहरण: स्विट्जरलैंड ने ताजे अंगूरों (272 CHF/100 किलोग्राम तक) पर टैरिफ समाप्त कर दिए, जिससे भारतीय प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ावा मिला।
  • भारत 82.7% टैरिफ लाइनें प्रदान करता है, जो EFTA निर्यात का 95.3% कवर करती हैं; सोने के आयात (मुख्य स्विस निर्यात) को इससे अछूता रखा गया है।
  • संतुलित साझेदारी: घरेलू हितों की रक्षा के लिए डेयरी, सोया, कोयला एवं कुछ कृषि उत्पादों जैसे संवेदनशील उत्पादों को बाहर रखा गया है, जबकि फार्मास्यूटिकल्स, कपड़ा एवं समुद्री निर्यात जैसे उच्च-संभावित क्षेत्रों को खोला गया है।
  • सेवा क्षेत्र
    • भारत ने 105 उप-क्षेत्रों की पेशकश की है; 128 (स्विट्जरलैंड), 114 (नॉर्वे), 107 (लिकटेंस्टीन) एवं 110 (आइसलैंड) में प्रतिबद्धताएँ हासिल की हैं।
    • IT सेवाओं, व्यावसायिक सेवाओं, शिक्षा, दृश्य-श्रव्य, व्यक्तिगत एवं सांस्कृतिक सेवाओं में लाभ।
    • इसमें डिजिटल वितरण (मोड 1), व्यावसायिक उपस्थिति (मोड 3), एवं पेशेवरों की अस्थायी गतिशीलता (मोड 4) के लिए प्रतिबद्धताएँ शामिल हैं।
    • नर्सिंग, लेखा, आर्किटेक्ट जैसी व्यावसायिक सेवाओं में पारस्परिक मान्यता समझौतों की संभावना।
  • बौद्धिक संपदा अधिकार (Intellectual Property Rights-IPR)
    • प्रतिबद्धताएँ TRIPS स्तर पर रखी गईं।
    • भारत ने पेटेंट के सदाबहारीकरण के विरुद्ध सुरक्षा उपाय हासिल किए, स्विट्जरलैंड के उच्च IPR मानकों को पूरा करते हुए अपने जेनेरिक दवा उद्योग की रक्षा की।
  • सतत् एवं समावेशी विकास
    • TEPA सामाजिक प्रगति, पर्यावरण संरक्षण एवं व्यापार प्रक्रियाओं में पारदर्शिता पर जोर देता है।
    • अंतिम व्यक्ति तक पहुँचने के भारत के अंत्योदय दर्शन के साथ संरेखित करते हुए सतत् विकास एवं समावेशी समृद्धि पर ध्यान केंद्रित करना।

संस्थागत समर्थन

भारत-EFTA डेस्क (फरवरी 2025 में स्थापित) निवेश सुविधा, SME सहयोग एवं नियामक मार्गदर्शन के लिए ‘सिंगल विंडो सिस्टम’ के रूप में कार्य करता है।

“पावर ऑफ फाइव” पूरकताएँ

  • भारत: पैमाना, माँग एवं कुशल कार्यबल।
  • स्विट्जरलैंड: सटीक विनिर्माण, वित्त, पूँजीगत वस्तुएँ।
  • नॉर्वे: समुद्री क्षमता, स्वच्छ ऊर्जा विशेषज्ञता।
  • आइसलैंड: स्वच्छ तकनीक एवं डिजिटल नवाचार।
  • लिचटेंस्टीन: उच्च-मूल्य विनिर्माण एवं इंजीनियरिंग विशेषज्ञता।

यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ ( European Free Trade Association- EFTA) के बारे में

  • उत्पत्ति: वर्ष 1960 में स्टॉकहोम कन्वेंशन के माध्यम से अपने सदस्य देशों के बीच मुक्त व्यापार एवं आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देने के लिए एक अंतर-सरकारी संगठन के रूप में स्थापित।
  • सदस्य: आइसलैंड, लिचटेंस्टीन, नॉर्वे एवं स्विट्जरलैंड।
  • यूरोप में स्थिति: यूरोपीय संघ एवं UK के साथ प्रमुख आर्थिक समूहों में से एक।
  • भारत से संबंध: EFTA देशों में, स्विट्जरलैंड भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, उसके बाद नॉर्वे है।

आर्थिक एवं सामरिक महत्त्व

  • भारतीय निर्यात को बढ़ावा: EFTA बाजारों तक पहुँच से फार्मा, मेड-टेक, इंजीनियरिंग, वस्त्र, समुद्री उत्पाद एवं प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों को मदद मिलेगी।
    • उदाहरण के लिए: 95% टैरिफ उन्मूलन; फार्मा इंटरमीडिएट्स, रबर, काँच के बने पदार्थ, पैकेजिंग उत्पादों में निर्यात की संभावना।
  • मेक इन इंडिया एवं आत्मनिर्भर भारत: बुनियादी ढाँचे, मशीनरी, फार्मास्यूटिकल्स, रसायन, खाद्य प्रसंस्करण, लॉजिस्टिक्स एवं वित्तीय सेवाओं में घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित करता है।
  • यूरोपीय संघ के बाजारों के साथ एकीकरण: यूरोपीय संघ के साथ स्विट्जरलैंड के मजबूत व्यापारिक संबंध (इसके सेवा निर्यात का 40%) भारत को यूरोप का प्रवेश द्वार प्रदान करते हैं।
  • प्रौद्योगिकी पहुँच: सटीक इंजीनियरिंग, नवीकरणीय ऊर्जा, स्वास्थ्य विज्ञान, अनुसंधान एवं विकास एवं उन्नत विनिर्माण में सहयोग को सक्षम बनाता है।
  • रोजगार सृजन: व्यावसायिक एवं तकनीकी प्रशिक्षण के अवसरों के साथ-साथ भारत के युवाओं के लिए प्रत्यक्ष रोजगार सृजन।
  • वैश्विक स्थिति: यूरोप के साथ दीर्घकालिक सहयोग को मजबूत करते हुए, सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में भारत की स्थिति को मजबूत करता है।

निष्कर्ष

भारत के पैमाने एवं प्रतिभा को EFTA के नवाचार तथा वित्तीय शक्ति के साथ जोड़कर, TEPA दीर्घकालिक भारत-यूरोपीय आर्थिक सहयोग के लिए एक स्थिर ढाँचा तैयार करता है, जो ‘मेक इन इंडिया’ एवं आत्मनिर्भर भारत का समर्थन करता है।

संदर्भ

‘एक्सेटर यूनिवर्सिटी’ के एक नए अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि ध्रुवीय भू-इंजीनियरिंग परियोजनाएँ वैश्विक परिणामों के साथ गंभीर पर्यावरणीय क्षति का कारण बन सकती हैं, जिससे उनकी व्यवहार्यता पर प्रश्न चिह्न लग जाता है।

ध्रुवीय भू-इंजीनियरिंग के बारे में

  • परिभाषा: ध्रुवीय भू-इंजीनियरिंग से तात्पर्य पृथ्वी के ध्रुवीय क्षेत्रों में जानबूझकर बड़े पैमाने पर किए जाने वाले हस्तक्षेप से है, जिसका उद्देश्य पर्यावरणीय प्रक्रियाओं को संशोधित कर ग्लोबल वार्मिंग को धीमा करना या हिम आवरण की रक्षा करना है।

विभिन्न ध्रुवीय भू-इंजीनियरिंग तकनीकें और उनकी सीमाएँ

कार्यप्रणाली अवधारणा और उदाहरण सीमाएँ / मुख्य मुद्दे
स्ट्रैटोस्फेरिक एरोसोल इंजेक्शन (Stratospheric Aerosol Injection -SAI) सूर्य के प्रकाश को परावर्तित करने के लिए एरोसोल (SO₂, TiO₂, CaCO₃) को समताप मंडल में इंजेक्ट करना।
  • ध्रुवीय सर्दियों में अप्रभावी।
  • उच्च प्राकृतिक एल्बिडो।
  • समाप्ति आघात जोखिम
  • वैश्विक जलवायु व्यवधान का जोखिम
  • दायित्व और शासन ढाँचे का अभाव।
सी वॉल्स गर्म धाराओं को ग्लेशियरों तक पहुँचने से रोकने के लिए समुद्र तल पर उत्प्लावन अवरोध लगाए जाते हैं

(उदाहरण के लिए, अंटार्कटिका में ‘थ्वाइट्स ग्लेशियर’ के निकट)।

  • अत्यधिक इंजीनियरिंग की आवश्यकता है।
  • महँगे जहाज (प्रत्येक की कीमत लगभग 0.5 अरब डॉलर)
  • पारिस्थितिकी व्यवधान (महासागर परिसंचरण, समुद्री जीवन)
  • विषाक्त पदार्थों से जोखिम।
समुद्री हिम प्रबंधन (माइक्रोबीड्स) माइक्रोबीड्स से एल्बिडो बढ़ेगा और पिघलने की गति धीमी होगी।
  • भारी रसद बोझ
  • पारिस्थितिक विषाक्तता
  • शुद्ध तापमान वृद्धि का जोखिम
  • अव्यावहारिक आपूर्ति श्रृंखला और उत्सर्जन-भारी उत्पादन।
बेसल जल (Basal Water) निष्कासन हिम परत के खिसकने की गति को धीमा करने के लिए ग्लेशियरों के नीचे से उप-हिमनदीय पिघले जल का निष्कासन।
  • त्रुटिपूर्ण आधार।
  • निरंतर पम्पिंग के लिए अत्यधिक उत्सर्जन की आवश्यकता होती है; बड़े पैमाने पर अव्यवहारिकता।
महासागरीय उर्वरीकरण कार्बन कैप्चर क्षमता बढ़ाने के लिए फाइटोप्लैंकटन की वृद्धि को प्रोत्साहित करने हेतु लौह एवं अन्य पोषक तत्त्वों का सम्मिश्रण, जिसे दक्षिणी महासागर प्रयोगों में परीक्षण किया गया है।
  • अनियंत्रित प्रजाति प्रभुत्व
  • समुद्री खाद्य शृंखलाओं में व्यवधान
  • अनिश्चित कार्बन पृथक्करण
  • वैश्विक शासन संबंधी चिंताएँ।
आर्कटिक महासागर पंप सर्दियों में हिमावरण को अधिक करने के लिए बर्फ पर समुद्री जल छिड़कने के लिए पंपों का उपयोग करना।
  • भारी ऊर्जा की आवश्यकता (प्रति पंप 1 मिलियन यूनिट बिजली/वर्ष)
  • अत्यधिक कार्बन फुटप्रिंट
  • तकनीकी और तार्किक अव्यवहारिकता।

आगे की राह

  • जलवायु-लचीला विकास: कार्बन-मुक्ति, सतत् शहरी नियोजन और विकास रणनीतियों में जलवायु अनुकूलन को एकीकृत करने पर ध्यान केंद्रित करना।
  • संरक्षित क्षेत्रों को मजबूत बनाना: दीर्घकालिक लचीलापन बढ़ाने के लिए स्थानीय समुदायों और पारंपरिक ज्ञान का सम्मान करते हुए पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखना।
  • जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करना: नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाने में तेजी लाना, ग्रिडों का आधुनिकीकरण करना, महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिए आपूर्ति शृंखला की बाधाओं को दूर करना और समान वैश्विक ऊर्जा परिवर्तन सुनिश्चित करना।

निष्कर्ष 

कार्बन उत्सर्जन में कमी वर्तमान में भी सबसे प्रभावी समाधान बनी हुई है। कार्बन उत्सर्जन को कम करना केवल वर्तमान में ही नहीं, बल्कि भविष्य में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और वायु को स्वच्छ बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और ऐसी स्थिरता प्राप्त होती है, जिसकी गारंटी केवल भू-इंजीनियरिंग द्वारा संभव नहीं है।

संदर्भ

2 अक्टूबर को देशभर में गांधी जयंती मनाई गई। वर्ष 2025 में, भारत ने उनकी 156वीं जयंती मनाई।

संबंधित तथ्य

  • गांधी जयंती भारत में एक राष्ट्रीय अवकाश है और इसे दुनिया भर में अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में भी मान्यता प्राप्त है।
  • यह दिन गांधी जी के सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों का स्मरण कराता है और भारत तथा विश्व पर उनके स्थायी प्रभाव को दर्शाता है।

महात्मा गांधी के बारे में

  • जन्म और प्रारंभिक जीवन: 2 अक्टूबर, 1869 को गुजरात के पोरबंदर में जन्मे महात्मा गांधी एक बैरिस्टर, समाज सुधारक और राजनीतिक नेता थे, जिन्होंने ब्रिटिश शासन से भारत के स्वतंत्रता संग्राम में केंद्रीय भूमिका निभाई।
  • राष्ट्रपिता और सत्याग्रह: राष्ट्रपिता के रूप में विख्यात, गांधी जी ने सत्याग्रह को अपनाया, जो अहिंसक प्रतिरोध की एक पद्धति थी, जो औपनिवेशिक उत्पीड़न के विरुद्ध एक शक्तिशाली हथियार बन गई।
  • दर्शन और विश्वास: गांधी जी के दर्शन में सत्य, अहिंसा, स्वराज, ग्रामीण विकास, सामाजिक समानता और जीवन में सादगी पर जोर दिया गया।
  • आंदोलनों में नेतृत्व: उन्होंने चंपारण और खेड़ा आंदोलन, असहयोग आंदोलन, नमक मार्च और भारत छोड़ो आंदोलन जैसे आंदोलनों का नेतृत्व किया। साथ ही हाशिए पर स्थित समुदायों के उत्थान, सांप्रदायिक सद्भाव और आर्थिक आत्मनिर्भरता का भी समर्थन किया।
  • विरासत और वैश्विक प्रभाव: उनके सिद्धांत वैश्विक शांति और न्याय आंदोलनों को प्रेरित करते रहते हैं, और उनकी शिक्षाओं की समकालीन प्रासंगिकता को पुष्ट करते हैं।

गांधी के दर्शन का ऐतिहासिक संदर्भ और उद्भव

  • दक्षिण अफ्रीकी अनुभव (1893-1915): दक्षिण अफ्रीका में नस्लीय भेदभाव के साथ गांधी का संघर्ष निर्णायक था।
    • अन्याय का सामना करने के अलावा, उन्होंने एक राजनीतिक रणनीति और जन-आंदोलन तकनीक विकसित की, जो बाद में सत्याग्रह का आधार बनी।
  • आदर्शवादी से व्यावहारिक तक: गांधी के अनुभवों ने उनके व्यावहारिक दृष्टिकोण को आकार दिया—जिसमें नैतिकता, अहिंसा और राजनीतिक कार्रवाई का संयोजन था।
    • उनके प्रारंभिक कार्यों ने उन्हें सिखाया कि सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन के लिए अनुशासन, नेतृत्व और जन सहभागिता आवश्यक है।
  • भारतीय समाज पर प्रभाव: गांधी के आंदोलनों ने पहली बार महिलाओं, किसानों और निचली जातियों सहित आम नागरिकों का राजनीतीकरण किया, जिससे भागीदारी, स्व-सहयोग और सामाजिक जागरूकता को बढ़ावा मिला।
    • असहयोग, सविनय अवज्ञा और भारत छोड़ो जैसे आंदोलनों ने भारत की सामाजिक और राजनीतिक चेतना को आकार दिया।
  • गांधी की विचारधारा पर प्रभाव: गांधी के विचारों को लियो टॉलस्यटॉय, जॉन रस्किन जैसे विचारकों और गोपाल कृष्ण गोखले जैसे भारतीय नेताओं ने आकार दिया।

PW Only IAS विशेष:

21वीं सदी के डिजिटल विश्व में महात्मा गांधी के दर्शन की प्रासंगिकता

  • आज के डिजिटल युग में, ऐतिहासिक हस्तियों को प्रायः मीम्स, इन्फोग्राफिक्स और साउंडबाइट्स तक सीमित कर दिया जाता है। गांधी ऐसे सरलीकरण का विरोध करते हैं; शांति, सत्य और अहिंसा के उनके विचार जटिल और अत्यंत प्रासंगिक बने हुए हैं।
  • विरासत का विरोधाभास
    • हमारी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान स्मारकों और मुद्रा जैसे स्थायी रूपों में अमर रहती है, लेकिन डिजिटल दुनिया में प्रायः उसका महत्व या सम्मान कमतर हो जाता है।
    • एल्गोरिदम-चालित विश्व आक्रोश और जुड़ाव को प्राथमिकता देती है, जो गांधी के चिंतनशील और धैर्यपूर्ण दृष्टिकोण के विपरीत है।
  • सतह से परे गांधी को समझना
    • स्वराज को आत्म-नियंत्रण के रूप में: सच्चे स्वशासन में केवल राजनीतिक स्वतंत्रता ही नहीं, बल्कि अपने आवेगों और नैतिक आचरण पर नियंत्रण भी शामिल है।
    • क्रांति-उत्तर नैतिकता: केवल शासकों को बदलने से आगे बढ़कर, समावेशी समाज और मानवीय गरिमा पर केंद्रित।
  • डिजिटल दुनिया बनाम गांधीवादी मूल्य
    • एल्गोरिदम बनाम अहिंसा: ऑनलाइन ध्रुवीकरण गांधी की सक्रिय अहिंसा और नैतिक विराम के बीच विरोधाभास दर्शाता है।
    • उत्तर-सत्य युग में सत्य: गांधी द्वारा सत्य की वस्तुनिष्ठ खोज, व्यक्तिपरकमेरा सत्य” आख्यानों से टकराती है।
    • मानवीय भेद्यता: गांधी का आत्म-सुधार और विनम्रता आज कमजोरी के रूप में देखी जा सकती है, लेकिन नैतिक नेतृत्व के लिए वे केंद्रीय थे।
  • आज के मुख्य सबक
    • गाँधी का दर्शन समावेशी राजनीति, नैतिक शासन और शांतिपूर्ण संघर्ष समाधान के लिए एक ढाँचा प्रदान करता है।
    • उनके विचारों से पूरी तरह जुड़ना, सरलीकृत डिजिटल बाइनरी के विरुद्ध एक शांत प्रतिरोध का कार्य है।

निष्कर्ष

तीव्र गति वाली डिजिटल दुनिया में भी, चिंतन, नैतिक साहस, सत्य और समावेशिता पर गांधी का जोर नैतिक कार्रवाई और सामाजिक सामंजस्य का मार्गदर्शन करता रहता है।

मूल दर्शन:

  • राजनीतिक दर्शन
    • स्वराज: गांधी जी का स्वराज का दृष्टिकोण राजनीतिक स्वतंत्रता से आगे बढ़कर व्यक्ति, परिवार और ग्राम स्तर पर स्वशासन पर जोर देता था।
      • उनका मॉडल पश्चिमी उदार-लोकतांत्रिक प्रणालियों से अलग है, जो नैतिक उत्तरदायित्व और सामुदायिक भागीदारी पर जोर देता है।
    • सत्याग्रह: अहिंसक प्रतिरोध, या सत्याग्रह, सत्य, साहस और सविनय अवज्ञा का मिश्रण था।
      • गांधी जी ने नैतिक उच्चता और नैतिक विरोध पर जोर देते हुए कहा कि साध्य, साधनों को उचित नहीं ठहराते।
  • आर्थिक दर्शन
    • स्वदेशी और ट्रस्टीशिप: गांधी जी ने स्थानीय उत्पादन और उपभोग (स्वदेशी) और ट्रस्टीशिप की अवधारणा को बढ़ावा दिया, जिसमें धन-संपत्ति धारक समाज के संसाधनों के रखवाले के रूप में कार्य करते हैं।
      • यह दर्शन आधुनिक कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (Corporate Social Responsibility [CSR]) का पूर्वाभास देता है।
    • ग्राम-केंद्रित मॉडल बनाम औद्योगीकरण: गांधी जी के ग्राम स्वराज के दृष्टिकोण में आत्मनिर्भर गाँवों पर जोर दिया गया था, जो नेहरू के औद्योगीकरण के दृष्टिकोण के विपरीत था।
      • उनका आर्थिक चिंतन स्थिरता, स्थानीय रोजगार और संसाधनों के समान वितरण को प्राथमिकता देता है।
  • सामाजिक सुधार
    • अस्पृश्यता उन्मूलन: गांधी जी के हरिजन अभियान का उद्देश्य उत्पीड़ित जातियों को समाज की मुख्यधारा में शामिल करना था।
      • वे बी.आर. अंबेडकर से अलग थे, उन्होंने पृथक निर्वाचन को अस्वीकार कर दिया और राजनीतिक अलगाव की बजाय सामाजिक एकता में आस्था दर्शाई।

उनका नैतिक और शारीरिक साहस

  • जोहान्सबर्ग प्लेग (1904): गांधी जी अनुशासन और नैतिक जिम्मेदारी से ओत-प्रोत साहस का परिचय देते हुए, अपनी जान जोखिम में डालकर, परित्यक्त प्लेग रोगियों का उपचार करने के लिए स्वेच्छा से आगे आए।
  • सिद्धांतों को प्राथमिकता: कस्तूरबा की बीमारी के दौरान भी गांधी जी ने प्राकृतिक चिकित्सा पद्धतियों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जारी रखी और सिद्धांतों को आवश्यकता से अधिक प्राथमिकता दी।
  • अहिंसा के प्रति प्रतिबद्धता: चौरी-चौरा की घटना (5 फरवरी, 1922) में 22 पुलिसकर्मी मारे गए, जिसके बाद गांधी जी ने आंदोलन की लोकप्रियता के बावजूद उसे वापस ले लिया।
  • आश्रम में सामाजिक सुधार: गांधी जी ने आर्थिक सहायता का जोखिम उठाकर भी एक अछूत” परिवार को अहमदाबाद आश्रम में प्रवेश दिलाया और सामाजिक मानदंडों को चुनौती देने में नैतिक साहस का उदाहरण प्रस्तुत किया।
  • अनुशासन: गांधी जी ने आश्रम के नियमों का कड़ाई से पालन किया, यहाँ तक कि अपने परिवार के सदस्यों पर भी अनुशासन लागू किया, व्यक्तिगत स्नेह की बजाय सिद्धांतों को महत्त्व दिया।
  • नोआखली मिशन (1946): वे बिना किसी सुरक्षा के, दंगा प्रभावित गाँवों में नंगे पैर गए और शांति, मेल-मिलाप तथा सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा दिया।
  • हत्या की धमकियों का सामना: गांधी जी पर कई बार जानलेवा हमले किए गए, फिर भी उन्होंने पुलिस सुरक्षा लेने से इनकार कर दिया और अपने सिद्धांतों के प्रति निडर प्रतिबद्धता का प्रदर्शन किया।

प्रमुख घटनाओं की समयरेखा

वर्ष आयोजन                                            
1869 2 अक्टूबर को पोरबंदर, गुजरात में जन्म
1883 कस्तूरबा से विवाह
1888 कानून की पढ़ाई के लिए लंदन चले गए
1891 कानून की पढ़ाई पूरी की; भारत लौटे
1893 दक्षिण अफ्रीका गए
1894 नेटाल इंडियन कांग्रेस की स्थापना की
1906 दक्षिण अफ्रीका में पहला सत्याग्रह अभियान
1915 भारत लौट आए
1917 चंपारण आंदोलन का नेतृत्व किया
1919 रौलेट एक्ट के खिलाफ विरोध प्रदर्शन
1920–1922 असहयोग आंदोलन
1930 नमक मार्च; सविनय अवज्ञा आंदोलन
1942 भारत छोड़ो आंदोलन
1947 भारत की स्वतंत्रता
1948 30 जनवरी को हत्या कर दी गई

महात्मा गांधी के नेतृत्व में प्रमुख आंदोलन और प्रमुख घटनाएँ

आयोजन वर्ष महत्त्व
चंपारण सत्याग्रह (Champaran Satyagraha) 1917 भारत में गांधी जी का पहला बड़ा सविनय अवज्ञा आंदोलन; उत्पीड़ित नील किसानों को शोषक ब्रिटिश जमींदारों का विरोध करने में मदद की।
खेड़ा सत्याग्रह (Kheda Satyagraha) 1918 फसल विफलता के बाद एक सफल कर विद्रोह का नेतृत्व किया, भारतीय किसानों को सशक्त बनाया और गांधी जी को ग्रामीण भारत के रक्षक के रूप में स्थापित किया।
अहमदाबाद मिल हड़ताल (Ahmedabad Mill Strike) 1918 मिल श्रमिकों और मालिकों के बीच विवाद में हस्तक्षेप किया, तथा अहिंसक वार्ता उपकरण के रूप में भूख हड़ताल का उपयोग करते हुए श्रमिकों के अधिकारों की वकालत की।
रौलट सत्याग्रह (Rowlatt Satyagraha) 1919 दमनकारी कानूनों के विरुद्ध राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन के परिणामस्वरूप जलियाँवाला बाग हत्याकांड हुआ, जिससे ब्रिटिश शासन के विरुद्ध भारतीयों का गुस्सा और बढ़ गया।
असहयोग आंदोलन (Non-Cooperation Movement) 1920–1922 ब्रिटिश वस्तुओं और संस्थाओं के बहिष्कार के साथ बड़े पैमाने पर अहिंसक आंदोलन; हिंसक घटनाओं के कारण निलंबन से पहले एकीकृत प्रतिरोध की शक्ति का प्रदर्शन किया।
गोलमेज सम्मेलन (Round Table Conferences) 1930–1932 गांधी जी ने भारत में संवैधानिक सुधारों पर चर्चा करने के लिए लंदन में द्वितीय गोलमेज सम्मेलन (1931) में भाग लिया।
नमक मार्च (दांडी मार्च) (Salt March [Dandi March]) 1930 ब्रिटिश नमक एकाधिकार का विरोध किया; सविनय अवज्ञा आंदोलन में राष्ट्रव्यापी भागीदारी को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सविनय अवज्ञा आंदोलन (Civil Disobedience Movement) 1930–1934 अंग्रेजों के साथ व्यापक असहयोग, जिसमें बहिष्कार और अन्यायपूर्ण कानूनों को मानने से इनकार करना शामिल था, ने स्वतंत्रता संग्राम में जन भागीदारी को मजबूत किया।
पूना समझौता (Poona Pact) 1932 डॉ. अंबेडकर के साथ ऐतिहासिक समझौता, एकीकृत हिंदू मतदाता को बनाए रखते हुए दलितों के लिए राजनीतिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना।

गांधी जी का साहित्यिक योगदान

  • विपुल लेखक: गांधी जी ने अंग्रेजी, गुजराती और हिंदी में व्यापक रूप से लेखन किया और अपने दर्शन, सामाजिक विचारों और राजनीतिक रणनीतियों को समझाने के लिए पुस्तकों, निबंधों, पत्रों और लेखों का उपयोग किया।
  • प्रमुख रचनाएँ
    • हिंद स्वराज (1909): स्व-शासन (स्वराज) के अपने दृष्टिकोण को रेखांकित किया, औद्योगिक सभ्यता की आलोचना की और नैतिक राजनीति एवं अहिंसा पर जोर दिया।
    • आत्मकथा – “सत्य के साथ मेरे प्रयोग”, ने उनकी व्यक्तिगत यात्रा, नैतिक संघर्षों और सत्याग्रह के विकास को साझा किया, जिससे वैश्विक नेताओं और कार्यकर्ताओं को प्रेरणा मिली।
    • रचनात्मक कार्यक्रम लेखन: ग्रामीण विकास, शिक्षा, स्वच्छता, महिला सशक्तीकरण और सामाजिक सुधार के लिए व्यावहारिक विचारों का दस्तावेजीकरण।
  • पत्रकारिता के प्रयास: इंडियन ओपिनियन (दक्षिण अफ्रीका), यंग इंडिया और नवजीवन जैसे समाचार-पत्रों की स्थापना की, नागरिक अधिकारों, सामाजिक सुधार और भारत के स्वतंत्रता संग्राम के बारे में जागरूकता बढ़ाई।
    • पत्रकारिता का उपयोग जनमत को संगठित करने, कांग्रेस की नीतियों को समझाने और अहिंसक प्रतिरोध को प्रोत्साहित करने के लिए किया।
  • लेखन का प्रभाव: गांधी जी के लेखन ने वैचारिक मार्गदर्शन और व्यावहारिक निर्देश प्रदान किए, जिससे भारत के स्वतंत्रता संग्राम को आकार मिला और मार्टिन लूथर किंग जूनियर एवं नेल्सन मंडेला जैसे वैश्विक नेताओं पर प्रभाव पड़ा।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Indian National Congress [INC]) में उनकी भूमिका

  • कांग्रेस में शामिल होना: वर्ष 1915 में दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद गांधी जी औपचारिक रूप से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) में शामिल हो गए और एक नैतिक और राजनीतिक एकीकरणकारी नेता के रूप में उभरे।
  • नेतृत्व शैली: किसानों, महिलाओं और हाशिए के समुदायों को शामिल करते हुए जन-आधारित राजनीति की वकालत की।
    • अहिंसक विरोध (सत्याग्रह) और रचनात्मक कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया, जिससे कांग्रेस एक नैतिक और सामाजिक आंदोलन में बदल गई।
  • पहला कार्यकाल (1924, बेलगाम): कांग्रेस अध्यक्ष चुने जाने पर, गांधी जी ने अहिंसक जन-आंदोलन और रचनात्मक कार्यक्रमों – ग्रामीण विकास, शिक्षा और सामाजिक सुधार – पर जोर दिया।
  • बाद का प्रभाव: बार-बार राष्ट्रपति पद पर न रहते हुए भी, गांधी जी के नैतिक अधिकार ने कांग्रेस की नीतियों को निर्देशित किया और सत्याग्रह, अहिंसा और नैतिक राजनीति के प्रति प्रतिबद्धता सुनिश्चित की।
  • कांग्रेस का रूपांतरण: उनके नेतृत्व में, कांग्रेस एक कुलीन निकाय से एक जन-आधारित आंदोलन में विकसित हुई, जिसमें किसानों, महिलाओं और हाशिए पर स्थित समुदायों को शामिल किया गया और यह स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक सुधार का मुख्य माध्यम बन गया।
  • प्रमुख योगदान
    • चंपारण और खेड़ा आंदोलन (1917-1918): किसानों की शिकायतों का समाधान किया और व्यापक समर्थन प्राप्त किया।
    • असहयोग आंदोलन (1920-22): खादी प्रचार और ग्राम स्वशासन पर जोर देते हुए लाखों लोगों को कांग्रेस के नेतृत्व में संगठित किया।
    • सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930-34): अहिंसा को बनाए रखते हुए राष्ट्रव्यापी भागीदारी सुनिश्चित की।
    • रचनात्मक कार्यक्रम: कांग्रेस के नेतृत्व वाली पहलों के माध्यम से उन्नत ग्रामीण विकास, स्वच्छता, शिक्षा, मद्य निषेध और अस्पृश्यता उन्मूलन
  • नैतिक आधार: गांधी जी ने कांग्रेस को नैतिक अधिकार प्रदान किया और यह सुनिश्चित किया कि राजनीतिक कार्रवाई सत्य और अहिंसा पर आधारित हो।
  • विरासत: कांग्रेस को एक कुलीन राष्ट्रवादी संस्था से एक जन-आधारित, नैतिक रूप से प्रेरित आंदोलन में परिवर्तित किया, जिसने राजनीतिक संघर्ष को सामाजिक सुधार से जोड़ा और भारत की स्वतंत्रता में निर्णायक योगदान दिया।

उनके रचनात्मक कार्यक्रम, राष्ट्रवाद और सामाजिक सुधार

  • राष्ट्रवादी आंदोलन और रचनात्मक कार्यक्रम
    • असहयोग आंदोलन (1920-22): खादी, ब्रिटिश वस्तुओं के बहिष्कार और ग्रामोद्योग को बढ़ावा दिया गया, राष्ट्रवाद को ग्रामीण विकास, शिक्षा, स्वच्छता और सामाजिक सुधार के साथ जोड़ा गया।
    • सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930-34): ग्रामीण उत्थान, वयस्क साक्षरता, महिला सशक्तीकरण और आर्थिक आत्मनिर्भरता पर ध्यान केंद्रित किया गया, राष्ट्रवादी संघर्ष को सामाजिक प्रगति से जोड़ा गया।
  • राष्ट्रवाद के एक साधन के रूप में शिक्षा
    • नई तालीम: उत्पादक कार्य के माध्यम से सीखने को प्रोत्साहित करना, नागरिक उत्तरदायित्व, नैतिक मूल्यों और राष्ट्रीय चेतना को बढ़ावा देना।
  • सामाजिक सुधार और जन-आंदोलन
    • अस्पृश्यता उन्मूलन: गांधी जी के हरिजन उत्थान अभियानों ने हाशिए पर पड़ी जातियों को समाज में एकीकृत किया।
    • महिलाओं की भागीदारी: विरोध प्रदर्शनों और सामाजिक पहलों में महिलाओं के नेतृत्व को प्रोत्साहित किया।
    • शिक्षा और जागरूकता: साक्षरता और नैतिक शिक्षा को बढ़ावा दिया, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों और आश्रमों में।
    • जन-आंदोलन: किसानों, श्रमिकों और हाशिए पर पड़े समुदायों को शामिल किया, उन्हें राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन में सक्रिय भागीदार बनाया।

प्रमुख भाषण और उद्धरण

भाषण/उद्धरण

प्रमुख बिंदु

भारत छोड़ो (1942)
  • “करो या मरो। या तो हम भारत को आजाद कराएँगे या इस कोशिश में मर जाएँगे।”
गोलमेज सम्मेलन (1931)
  • स्वशासन के लिए शांतिपूर्ण बातचीत की वकालत की
सत्य और अहिंसा पर
  • “मेरा धर्म सत्य और अहिंसा पर आधारित है।”
प्रेरणादायक उद्धरण
  • “दुनिया में वह बदलाव स्वयं बनें जिसे आप देखना चाहते हैं।”
  • “आँख के बदले आँख का मतलब पूरी दुनिया को अंधा बनाना है।”
  • “कमजोर कभी माफ नहीं कर सकता। माफी मजबूत लोगों का गुण है।”
  • “एक सौम्य तरीके से, आप दुनिया को हिला सकते हैं।”
आत्मनिर्भरता और नैतिकता पर
  • “दुनिया में मनुष्य की जरूरतों के लिए तो पर्याप्तता है, लेकिन मनुष्य के लालच के लिए नहीं।”

महात्मा गांधी के पुरस्कार और सम्मान

  • कैसर-ए-हिंद स्वर्ण पदक (1915): यह पदक उन्हें वर्ष 1915 में ब्रिटिश सरकार द्वारा दक्षिण अफ्रीका में उनकी मानवीय सेवाओं के लिए, विशेष रूप से बोअर युद्ध (1899-1902) और जुलु विद्रोह (1906) के दौरान ब्रिटिश सैनिकों को चिकित्सा सहायता प्रदान करने वाली इंडियन एम्बुलेंस कोर के आयोजन के लिए प्रदान किया गया था।
    • हालाँकि, इसे वर्ष 1920 में जलियाँवाला बाग हत्याकांड के विरोध में लौटा दिया, जो अन्याय के विरुद्ध उनके सैद्धांतिक रुख का प्रतीक है।
  • अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस: संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2007 में 2 अक्टूबर (गाँधी जयंती) को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में घोषित किया, जिससे दुनिया भर में उनके अहिंसा और सत्य के दर्शन पर प्रकाश डाला गया।
  • नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित: गांधी जी को उनके अहिंसक प्रतिरोध और वैश्विक प्रभाव के सम्मान में नोबेल शांति पुरस्कार के लिए पाँच बार (1937, 1938, 1939, 1947, 1948) नामांकित किया गया था, हालाँकि उन्हें यह पुरस्कार कभी नहीं मिला।
  • दुनिया भर में मूर्तियाँ और स्मारक: ब्रिटेन, अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, जापान और इजराइल जैसे देशों में गांधी को समर्पित मूर्तियाँ, पार्क और स्मारक मौजूद हैं, जो शांति, न्याय और अहिंसा की उनकी विरासत का जश्न मनाते हैं।
  • गांधी शांति पुरस्कार: विभिन्न संस्थाओं ने अहिंसा, सामाजिक न्याय और सामुदायिक विकास को बढ़ावा देने वाले व्यक्तियों और संगठनों को सम्मानित करने के लिए गांधी शांति पुरस्कारों की स्थापना की है।

नीतियों पर उनकी समकालीन प्रासंगिकता और प्रभाव:

  • नैतिक और सामाजिक नेतृत्व: गांधी जी के अहिंसा, सत्य, सादगी और स्वराज के सिद्धांत आधुनिक समाज में संघर्ष समाधान, सामुदायिक सेवा और सतत जीवन शैली का मार्गदर्शन करते रहते हैं।
  • शिक्षा और सामाजिक सुधार: शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से हाशिए पर स्थित समूहों को सशक्त बनाना महत्त्वपूर्ण बना हुआ है।
  • समावेशी सामाजिक सुधार: गांधी जी का दृष्टिकोण जाति-आधारित असमानता, लैंगिक असमानता और सामाजिक हाशिए पर होने की समस्या को दूर करने के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि सामाजिक प्रगति समतापूर्ण और सहभागी हो।
  • व्यापक सामाजिक न्याय आदर्शों के साथ एकीकरण: गांधी जी ने सामाजिक न्याय को राजनीतिक स्वतंत्रता के साथ एकीकृत करने पर जोर दिया, जो समकालीन सुधारवादी धाराओं के अनुरूप था।
    • गांधी जी ने सामाजिक न्याय और राजनीतिक स्वतंत्रता के बीच अंतर्संबंध पर जोर दिया तथा समानता, सकारात्मक कार्रवाई और जमीनी स्तर पर सशक्तीकरण पर बहस को प्रेरित किया।
  • भारतीय सरकार की नीतियों पर प्रभाव
    • आर्थिक आत्मनिर्भरता: स्वदेशी और कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने से स्वतंत्रता के बाद उद्यमिता और ग्रामीण विकास प्रभावित हुआ।
    • राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत: अनुच्छेद-39, 40, 43, 46, 47 सामाजिक कल्याण, ग्रामीण उत्थान और समावेशी विकास के गांधीवादी आदर्शों को दर्शाते हैं।
      • अनुच्छेद-39: सभी नागरिकों के लिए संसाधनों का समान वितरण और समान अवसर सुनिश्चित करता है।
      • अनुच्छेद-40: स्थानीय स्तर पर स्वशासन को सक्षम बनाने के लिए ग्राम पंचायतों के संगठन को बढ़ावा देता है।
      • अनुच्छेद-43: श्रमिकों के लिए जीविका मजदूरी, सभ्य कार्य परिस्थितियाँ और आर्थिक न्याय की वकालत करता है।
      • अनुच्छेद-46: कमजोर वर्गों, विशेषकर अनुसूचित जातियों और जनजातियों के शैक्षिक और आर्थिक हितों के संरक्षण और संवर्द्धन को प्रोत्साहित करता है।
      • अनुच्छेद-47: राज्य को पोषण और जीवन स्तर को बढ़ाने तथा सामुदायिक कल्याण पर बल देते हुए सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार करने का निर्देश देता है।
    • पंचायती राज व्यवस्था: स्थानीय स्वशासन को सशक्त बनाने के लिए संस्थागत ग्राम स्वराज।
    • अहिंसक राजनीतिक उपकरण: सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा से प्रेरित शासन पद्धतियाँ, जो नैतिक कार्रवाई और सहभागी लोकतंत्र पर जोर देती हैं।
  • वैश्विक प्रभाव: गांधी जी ने मार्टिन लूथर किंग जूनियर और नेल्सन मंडेला जैसे नेताओं को प्रेरित किया और आधुनिक शांति एवं न्याय आंदोलनों को आकार देना जारी रखा। संयुक्त राष्ट्र 2 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाता है, जो उनके विश्वव्यापी प्रभाव को दर्शाता है।
  • भविष्य के लिए विरासत और मार्गदर्शक सिद्धांत
    • समकालीन चुनौतियों का समाधान: गांधी जी की शिक्षाएँ सामाजिक असमानता, पर्यावरणीय संकटों और वैश्विक संघर्षों से निपटने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करती हैं।
    • नीति निर्माताओं के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत: शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, नैतिक शासन, सामुदायिक सहभागिता और सतत् विकास पर जोर देते हैं।
    • कार्यवाही के लिए समग्र ढाँचा: शिक्षा, रचनात्मक कार्यक्रमों, राष्ट्रवाद और नैतिक साहस का एकीकरण 21वीं सदी की सामाजिक और राजनीतिक कार्रवाई के लिए एक रोडमैप प्रस्तुत करता है।
    • वैश्विक और स्थानीय प्रासंगिकता: एक वैश्वीकृत दुनिया में, स्थानीय आत्मनिर्भरता, समावेशिता और अहिंसा पर गांधी जी का जोर न्याय, समानता और सद्भाव को बढ़ावा देने वाली राष्ट्रीय नीतियों और अंतरराष्ट्रीय पहलों को प्रेरित करता है।

निष्कर्ष

आज के संघर्षों, जलवायु चुनौतियों और सामाजिक असमानता से भरे विश्व में, गांधी जयंती हमें गांधी जी के शाश्वत दर्शन की याद दिलाती है। शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, नैतिक शासन, सतत् जीवन, समावेशिता, अहिंसा और सत्य पर उनकी शिक्षाएँ राष्ट्रों तथा व्यक्तियों को न्याय, सद्भाव एवं नैतिक प्रगति की ओर अग्रसर करती रहती हैं।

संदर्भ

भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा, 2025 सप्ताह के अवसर पर 20 समान विचारधारा वालेग्लोबल साउथ’ देशों की मेजबानी की तथा वैश्विक संकटों के बीच एकता पर जोर दिया।

  • विदेश मंत्री जयशंकर ने चेतावनी दी कि बहुपक्षवाद कमजोर हो रहा है, उन्होंनेदक्षिण-दक्षिण सहयोग’ को मजबूत करने का आग्रह किया।

संबंधित तथ्य

  • संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय दक्षिण-दक्षिण एवं त्रिकोणीय सहयोग दिवस’ (South-South and Triangular Cooperation- SSTC) प्रतिवर्ष 12 सितंबर को ब्यूनस आयर्स कार्य योजना (Buenos Aires Plan of Action- BAPA), 1978 को अपनाने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
  • वर्ष 2025 के संयुक्त राष्ट्र SSTC दिवस का विषय: ‘SSTC के माध्यम से नए अवसर और नवाचार’.
    • यह विषय विकासशील देशों के बीच सहयोग के बढ़ते महत्त्व को रेखांकित करता है।
  • सतत् विकास के लिए वर्ष 2030 एजेंडा को प्राप्त करने के लिए पाँच वर्ष से भी कम समय बचा है, ऐसे में SSTC ने वैश्विक साझेदारी के एक अभिनव मॉडल के रूप में अपनी महत्ता प्राप्त कर ली है।

ब्यूनस आयर्स कार्य योजना (Buenos Aires Plan of Action- BAPA), 1978

  • स्वीकृत: वर्ष 1978, विकासशील देशों के बीच तकनीकी सहयोग पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन, ब्यूनस आयर्स।
  • महत्त्व: दक्षिण-दक्षिण सहयोग की नींव रखी।
    • SSTC का वार्षिक संयुक्त राष्ट्र दिवस (12 सितंबर) BAPA की वर्षगाँठ का प्रतीक है।

सतत विकास के लिए 2030 एजेंडा

  • स्वीकृत: सितंबर 2015, सभी संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों द्वारा।
  • विजन: वर्ष 2030 तक लोगों और ग्रह के लिए शांति, समृद्धि और स्थिरता का एक खाका।
  • मुख्य ढाँचा
    • 17 सतत् विकास लक्ष्य (Sustainable Development Goals- SDG)।
    • आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय आयामों में 169 लक्ष्य।
    • सार्वभौमिकता: विकसित और विकासशील दोनों देशों पर लागू।
  • सिद्धांत: ‘नो वन लेफ्ट बिहाइंड एंड इंटीग्रेटिड एप्रोच’ (गरीबी उन्मूलन, विकास, पर्यावरण, समानता को जोड़ना)।
  • SSTC से प्रासंगिकता: दक्षिण-दक्षिण और त्रिकोणीय सहयोग को, विशेष रूप से खाद्य सुरक्षा, डिजिटल नवाचार और जलवायु लचीलापन के क्षेत्र में सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) को प्राप्त करने के लिए एक महत्त्वपूर्ण प्रवर्तक के रूप में देखा जाता है।

दक्षिण-दक्षिण और त्रिकोणीय सहयोग (South-South and Triangular Cooperation- SSTC) के बारे में

  • दक्षिण-दक्षिण सहयोग (South-South Cooperation- SSC): विकासशील देशों (‘ग्लोबल साउथ’) के बीच साझा अनुभवों, एकजुटता और सामान्य उद्देश्यों के आधार पर सहयोग।
    • परिचालन तंत्र
      • ज्ञान, कौशल, संसाधनों और तकनीकी जानकारी का आदान-प्रदान।
      • द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और अंतर-क्षेत्रीय कार्यों के माध्यम से संचालित।
      • इसमें सरकारें, क्षेत्रीय संगठन, नागरिक समाज, शिक्षा जगत और निजी क्षेत्र शामिल हैं।

दक्षिण-दक्षिण’ सहयोग के मार्गदर्शक सिद्धांत (South-South Cooperation- SSC)

  • संप्रभुता, स्वामित्व और स्वतंत्रता का सम्मान।
  • साझेदारों के बीच समानता।
  • बिना किसी शर्त के।
  • घरेलू मामलों में हस्तक्षेप न करना।
  • पारस्परिक लाभ और एकजुटता।
  • आत्मनिर्भरता और सतत् विकास के वर्ष 2030 एजेंडा को प्राप्त करने में योगदान।

दक्षिण-दक्षिण’ सहयोग (SSC) के उद्देश्य (BAPA, 1978)

  • समस्या-समाधान हेतु स्थानीय क्षमता बढ़ाकर आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना।
  • संसाधनों के एकत्रीकरण/साझाकरण के माध्यम से सामूहिक आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना।
  • प्रमुख विकास मुद्दों पर संयुक्त रूप से विश्लेषण और रणनीति बनाने की क्षमता का निर्माण करना।
  • अंतरराष्ट्रीय विकास सहयोग की प्रभावशीलता में सुधार करना।
  • तकनीकी क्षमताओं को सुदृढ़ करना और स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार प्रौद्योगिकी को अनुकूलित करने की क्षमता विकसित करना।
  • विकासशील देशों के बीच संचार और ज्ञान-साझाकरण को बढ़ाना।
  • अल्प विकसित देशों (Least Developed Countries -LDCs), स्थलरुद्ध विकासशील देशों (LandLocked Developing Countries -LLDCs), लघु द्वीपीय विकासशील देशों (SIDCs) और आपदा-प्रवण राष्ट्रों की आवश्यकताओं को पूरा करना।
  • अंतरराष्ट्रीय आर्थिक गतिविधियों में अधिक भागीदारी को सक्षम बनाना और सहयोग का विस्तार करना।

    • प्रकृति: उत्तर-दक्षिण सहयोग का पूरक, विकल्प नहीं।
      • बिना किसी शर्त के पारस्परिक लाभ तथा संप्रभुता एवं स्वामित्व के प्रति सम्मान को बढ़ावा देता है।
  • त्रिकोणीय सहयोग (Triangular Cooperation -TrC): दो या अधिक विकासशील देशों के बीच दक्षिण द्वारा संचालित साझेदारी, जिसे किसी विकसित देश या बहुपक्षीय संगठन का समर्थन प्राप्त हो।
    • उद्देश्य: SSC परियोजनाओं को वित्तीय, तकनीकी और संस्थागत सहायता प्रदान करना।
    • लाभ: दक्षिणी साझेदारों को अतिरिक्त विशेषज्ञता और संसाधन प्राप्त होंगे और उत्तरी साझेदारों को कई दक्षिणी हितधारकों का लाभ उठाकर सहायता का प्रभाव बढ़ेगा।
    • शर्त: दक्षिणी देशों के नेतृत्व और स्वामित्व में रहना होगा।

दक्षिण-दक्षिण और त्रिकोणीय सहयोग (South-South and Triangular Cooperation- SSTC) में भारत की भूमिका

  • दार्शनिक आधार: ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ (‘विश्व एक परिवार है’) के सिद्धांत पर चलते हुए, भारत अंतरराष्ट्रीय सहयोग में एकजुटता, पारस्परिक सम्मान और समावेशिता का समर्थन करता है, जो SSC के आधारभूत मूल्य हैं।
  • क्षमता निर्माण – ITEC कार्यक्रम (1964): भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (ITEC) योजना के माध्यम से, भारत ने 160 से अधिक देशों के पेशेवरों को शासन, सूचना प्रौद्योगिकी, कृषि और स्वास्थ्य के क्षेत्र में प्रशिक्षित किया है, जिससेग्लोबल साउथ’ में कौशल और संस्थानों को मजबूती मिली है।
  • संस्थागत ढाँचा – DPA (2012): भारत ने माँग-आधारित परियोजनाओं के समन्वय हेतु विदेश मंत्रालय के अंतर्गत विकास साझेदारी प्रशासन का गठन किया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि दक्षिण-दक्षिण’ सहयोग (SSC) के प्रयास संरचित, पारदर्शी और साझेदार देशों की आवश्यकताओं के अनुरूप हों।
  • संचालन शक्ति: सितंबर 2025 में, भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान 20 ‘समान विचारधारा वालेग्लोबल साउथ’ देशों की एक उच्च-स्तरीय बैठक की मेजबानी की, जिसने ग्लोबल साउथ’ के अंतर्गत एक सेतु-निर्माता के रूप में अपनी भूमिका का संकेत दिया।
  • वित्तपोषण तंत्र – भारत-संयुक्त राष्ट्र विकास साझेदारी कोष (2017): भारत ने 56 देशों में 75 से अधिक परियोजनाओं को वित्तपोषित किया है, जिनमें विशेष रूप से अल्पविकसित और विशेष रूप से पिछड़े देश शामिल हैं। साथ ही, भारत ने दक्षिण-दक्षिण तथा त्रिकोणीय सहयोग के लिए संसाधन उपलब्ध कराने में अग्रणी भूमिका निभाई है।
  • डिजिटल कूटनीति: डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (आधार, यूपीआई, कोविन) को मापनीय शासन समाधानों के रूप में निर्यात करना; विकासशील देशों के लिए प्रौद्योगिकी को एक वैश्विक सार्वजनिक अवधारणा के रूप में स्थापित करना।
  • ग्लोबल साउथ’ की अभिव्यक्ति शिखर सम्मेलन: 120 से अधिक देशों की स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए ग्लोबल साउथ’ की अभिव्यक्ति शिखर सम्मेलन (वर्ष 2023 और वर्ष 2024) का आयोजन किया।
    • भारत ने अपनी अध्यक्षता के दौरान अफ्रीकी संघ की G20 में स्थायी सदस्यता का समर्थन किया, जिससे वैश्विक निर्णय लेने में दक्षिणी प्रतिनिधित्व को बढ़ावा मिला।
  • बहुपक्षीय संस्थाओं के साथ साझेदारी (त्रिकोणीय सहयोग): विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) के साथ सहयोग से अनाज एटीएम, चावल संवर्द्धन और महिलाओं के नेतृत्व वाले राशन कार्यक्रम जैसे नवाचार सामने आए, जिनका पहले भारत में परीक्षण किया गया और अब इसे विदेशों में भी प्रयोग में लाया जा रहा है।
    • नेपाल (चावल संवर्द्धन और आपूर्ति शृंखला) तथा लाओस (पोषण परियोजनाएँ) में हाल की भारत–WFP परियोजनाएँ, त्रिकोणीय मॉडलों के माध्यम से SSTC में भारत की नेतृत्वकारी भूमिका को प्रदर्शित करती हैं।
  • SSC के लिए नवाचार केंद्र: खाद्य सुरक्षा, डिजिटल शासन, स्वास्थ्य प्रणालियों और जलवायु परिवर्तन के प्रति सहनशीलता में भारत के कम लागत वाले, मापनीय नवाचार अन्य विकासशील देशों के लिए अनुकरणीय मॉडल के रूप में कार्य करते हैं।
  • क्षेत्रीय और वैश्विक सहयोग: द्विपक्षीय सहायता के अलावा, भारत बहुपक्षीय मंचों (BRICS, IBSA, अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन, CDRI) के माध्यम से SSC को मजबूत करता है, वैश्विक शासन में ‘ग्लोबल साउथ’ की चिंताओं को शामिल करता है।

दक्षिण-दक्षिण और त्रिकोणीय सहयोग (SSTC) के लिए चुनौतियाँ

  • वित्तीय बाधाएँ: मानवीय और विकास क्षेत्रों के लिए वित्तपोषण में कमी आ रही है:
    • कई SSTC परियोजनाएँ छोटे पैमाने की ही हैं, जिनके संसाधन सीमित और बिखरे हुए हैं, जबकि LDCr, LLDC और SIDS की जरूरतें बहुत ज्यादा हैं।
    • UNCTAD का अनुमान है कि वर्ष 2030 तक सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals- SDG) को हासिल करने के लिए विकासशील देशों के पास लगभग 4 ट्रिलियन डॉलर का वार्षिक वित्तपोषण अंतराल होगा।
  • संस्थागत कमजोरी: हालाँकि BAPA (1978) ने इसकी नींव रखी, लेकिन SSC पहलों के समन्वय, निगरानी और मूल्यांकन के लिए कोई मजबूत वैश्विक संस्थागत ढाँचा मौजूद नहीं है।
    • जवाबदेही और पारदर्शिता तंत्र प्रायः कमजोर होते हैं।
  • भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता: भारत के माँग-आधारित सहयोग बनाम चीन की बेल्ट एंड रोड पहल जैसे प्रतिस्पर्द्धी मॉडल तनाव पैदा करते हैं।
    • चीन के BRI ऋणों का कुल मिलाकर अनुमान 800 बिलियन डॉलर से 1 ट्रिलियन डॉलर तक है, जो इसे वैश्विक स्तर पर सबसे बड़े ऋणदाताओं में से एक बनाता है।
    • औपनिवेशिक छायाएँ और नव-औपनिवेशिक जोखिम: SSC प्रायः उपनिवेशवाद के संरचनात्मक प्रभावों को पूरी तरह से संबोधित नहीं करता है और अनुचित रूप से डिजाइन की गई परियोजनाओं में निर्भरता के नव-औपनिवेशिक पैटर्न को दोहराने का जोखिम होता है।
  • जलवायु एवं विकास संबंधी कमजोरियाँ: न्यूनतम प्रति व्यक्ति उत्सर्जन के बावजूद कई ग्लोबल साउथ’ राज्यों को असमान जलवायु तनावों का सामना करना पड़ रहा है।
    • खाद्य असुरक्षा, महामारियाँ और बढ़ती असमानताएँ, समावेशी समाधान प्रदान करने की SSTC की क्षमता की कसौटी बन रही हैं।
    • अफ्रीकी देश वैश्विक COका 4% से कम उत्सर्जित करते हैं, लेकिन सर्वाधिक जलवायु जोखिमों का सामना कर रहे हैं (IPCC AR6 रिपोर्ट, 2022)।
    • संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्य प्रगति रिपोर्ट (2023) दर्शाती है कि केवल 12% सतत् विकास लक्ष्य प्राप्ति के पथ पर हैं, और ‘ग्लोबल साउथ’ इसमें सबसे पीछे हैं।
  • तकनीकी विभाजन: केवल कुछ दक्षिणी देशों (जैसे भारत) में मजबूत डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (UPI, आधार, कोविन) है।
    • अन्य देश पिछड़ रहे हैं, जिससे प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को आत्मसात करने की उनकी क्षमता असमान हो रही है।
    • अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ (International Telecommunication Union- ITU) के अनुसार, वर्ष 2023 में 2.6 अरब लोग ऑफलाइन रहे, जिनमें से अधिकांश निम्न-आय वाले देशों में रहते हैं।
  • बहुपक्षवाद दबाव में: जैसा कि विदेश मंत्री जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र महासभा 2025 सप्ताह के आयोजन में कहा था, बहुपक्षवाद की अवधारणा पर हमला हो रहा है क्योंकि वैश्विक संस्थाएँ कमजोर हो रही हैं या उनके पास संसाधनों की कमी है (उदाहरण के लिए, यूनेस्को, यूएनएचआरसी जैसी संयुक्त राष्ट्र संस्थाओं को अमेरिका द्वारा दी जाने वाली धनराशि में कटौती)।
  • संसाधनों पर निर्भरता: महत्त्वपूर्ण खनिजों (लीथियम, कोबाल्ट, दुर्लभ मृदा) पर कुछ ही देशों (जैसे- चीन) का प्रभुत्व है, जिससे SSC भागीदारों के लिए उचित पहुँच सीमित हो रही है।
    • चीन में निकेल के लिए शोधन का हिस्सा लगभग 35%, लीथियम और कोबाल्ट के लिए 50-70% और दुर्लभ मृदा तत्त्वों के लिए लगभग 90% है।
    • यह संकेंद्रण हरित परिवर्तन के लिए महत्त्वपूर्ण खनिजों तक समान पहुँच के लिए खतरा है।
  • सीमित वैश्विक अभिव्यक्ति: सामूहिक शक्ति के बावजूद,ग्लोबल साउथ’ का संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक में कम प्रतिनिधित्व है।
    • विश्व की 85% आबादी होने के बावजूद,ग्लोबल साउथ’ का संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कोई स्थायी प्रतिनिधित्व नहीं है।
    • त्रिकोणीय सहयोग प्रायः उत्तरी वित्तपोषण पर निर्भर करता है, जिससे दक्षिणी स्वायत्तता सीमित हो जाती है।
  • आंतरिक विरोधाभास: ‘ग्लोबल साउथ’ समरूप नहीं है, शासन, आय और रणनीतिक संरेखण में असमानताएँ सामूहिक समर्थन को कठिन बनाती हैं।
    • आय असमानताएँ: ब्राजील का प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद $10,000 से अधिक है, जबकि बुरुंडी का $300 से कम है (विश्व बैंक, 2023)।
    • राजनीतिक विभाजन: संयुक्त राष्ट्र के मतदान में ‘दक्षिण-दक्षिण’ एकता प्रायः विभाजित हो जाती है (उदाहरण के लिए, गाजा प्रस्ताव 2023, जहाँ ‘ग्लोबल साउथ’ के देशों ने अलग-अलग मतदान किया)।

ग्लोबल साउथ के बारे में

  • परिभाषा: व्यापक रूप से विकासशील या अल्प विकसित राष्ट्रों को संदर्भित करता है, जिनकी राजनीतिक, आर्थिक और विकासात्मक चुनौतियाँ समान हैं।
  • उत्पत्ति: यह शब्द पहली बार वर्ष 1969 में कार्ल ओग्लेस्बी द्वारा प्रयुक्त किया गया था; 1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद इसका प्रचलन बढ़ा।
  • भौगोलिक रूप से सीमित: इसमें भारत और चीन (उत्तरी गोलार्द्ध) शामिल हैं, लेकिन यह मुख्य रूप से अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका तक विस्तृत है।
  • विशेषताएँ: सामान्य चिंताओं में गरीबी उन्मूलन, खाद्य एवं ऊर्जा सुरक्षा, जलवायु न्याय और निष्पक्ष व्यापार शामिल हैं।
  • वैश्विक प्रतिनिधित्व की कमी: विश्व की 85% जनसंख्या होने के बावजूद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक में सीमित  प्रतिनिधित्व।
  • गठबंधन मंच: G-77, NAM और भारत के नेतृत्व वाले वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ’ शिखर सम्मेलन।
  • दक्षिण के अंतर्गत विविधता
    • जनसंख्या: विश्व के 5 सबसे अधिक आबादी वाले देशों में से 4 एशिया में हैं (भारत, चीन, इंडोनेशिया, पाकिस्तान)।
    • आर्थिक विकास: एशिया का सबसे तेजी से बढ़ता क्षेत्र (IMF)।
    • असमानता: उरुग्वे/चिली में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (GDP) $10,000 से अधिक है, जबकि नाइजर/बुरुंडी में यह $1,000 से कम है।
    • संघर्ष: इथियोपिया, DR कांगो, सूडान में जारी अस्थिरता।

ग्लोबल नॉर्थ’ के बारे में

  • ग्लोबल नॉर्थ’ में वे समृद्ध राष्ट्र शामिल हैं, जो अधिकतम उत्तरी अमेरिका और यूरोप में स्थित हैं, और कुछ देश ओशिनिया एवं अन्य जगहों पर भी स्थित हैं।
  • वैश्विक उत्तर’ का तात्पर्य अमेरिका, कनाडा, यूरोप, रूस, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे देशों से है।

ब्रांट लाइन’ के बारे में

  • 1980 के दशक में विली ब्रांट द्वारा प्रस्तावित।
  • यह एक काल्पनिक रेखा है, जो विश्व को अमीर देशों (मुख्यतः उत्तरी गोलार्द्ध में) और गरीब देशों (अधिकांशतः दक्षिणी गोलार्द्ध में) में विभाजित करती है।
    • यह मूलतः उत्तरी देशों और दक्षिणी देशों के बीच सामाजिक-आर्थिक विभाजन को दर्शाता है।

संयुक्त राष्ट्र दक्षिण-दक्षिण सहयोग कार्यालय (United Nations Office for South-South Cooperation- UNOSSC)

  • स्थापना: वर्ष 1974
  • अधिदेश: संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर और वैश्विक स्तर पर दक्षिण-दक्षिण’ और त्रिकोणीय सहयोग को बढ़ावा देना, समन्वय करना और समर्थन देना।
  • भूमिका: ज्ञान-साझाकरण को सुगम बनाना, नीतिगत सलाह प्रदान करना, संसाधन जुटाना और साझेदारी को मजबूत करना।
  • महत्त्व: ब्यूनस आयर्स कार्य योजना (BAPA, 1978) के सिद्धांतों को आगे बढ़ाने के लिए संयुक्त राष्ट्र की नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करना।

साउथ-साउथ गैलेक्सी (2019)

  • UNOSSC द्वारा UNDP के साथ साझेदारी में शुरू किया गया एक डिजिटल प्लेटफॉर्म।
  • उद्देश्य: ग्लोबल साउथ’ देशों को दुनिया भर के भागीदारों के साथ जुड़ने, साझा करने और सहयोग करने में सक्षम बनाकर उन्हें व्यवस्थित सहायता प्रदान करना।

दक्षिण-दक्षिण और त्रिकोणीय सहयोग (SSTC) के लिए आगे की राह

  • वित्तीय अंतराल को पाटना: दक्षिण-दक्षिण वित्तीय तंत्रों (भारत-संयुक्त राष्ट्र कोष, BRICS NDB, AIIB) का विस्तार छोटे पायलट प्रोजेक्टों से आगे बढ़ाने के लिए करना।
    • SSC के लिए मिश्रित वित्त (सार्वजनिक + निजी + परोपकारी) और ग्रीन बॉण्ड जैसे नवीन संसाधनों को जुटाना।
    • दक्षिणी देशों की तरलता तक पहुँच बढ़ाने के लिए IMF और विश्व बैंक में सुधारों को आगे बढ़ाना; UNCTAD के 4 ट्रिलियन डॉलर के सतत् विकास लक्ष्य अंतराल के लिए तदर्थ सहायता की नहीं, बल्कि प्रणालीगत समाधानों की आवश्यकता है।
  • संस्थानों और जवाबदेही को मजबूत करना: निगरानी और मूल्यांकन के लिए अधिक धन और अधिदेश के साथ UNOSSC को उन्नत करना।
    • SSC परियोजनाओं के लिए स्पष्ट मीट्रिक, पारदर्शिता और रिपोर्टिंग जैसी साझा जवाबदेही रूपरेखाएँ विकसित करना।
    • वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ’ समिट्स को एक स्थायी वार्षिक मंच के रूप में संस्थागत रूप प्रदान करना।
  • सार्वजनिक हित के रूप में प्रौद्योगिकी: साझेदार देशों में भारत के डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना मॉडल का विस्तार करना।
    • मापनीय शासन और नवाचार के लिए सर्वोत्तम प्रथाओं का एक वैश्विक भंडार बनाना।
    • AI, फिनटेक और स्वास्थ्य तकनीक में ज्ञान-साझाकरण के लिए साउथ-साउथ गैलेक्सी जैसे प्लेटफॉर्मों का विस्तार करना।
  • वैश्विक शासन सुधार: विशेष रूप से अफ्रीका और भारत पर जोर देते हुए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सुधार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ग्लोबल साउथ‘ के लिए स्थायी सीटों का समर्थन।
    • अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व व्यापार संगठन सुधार: संशोधित अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष कोटा हिस्सेदारी (अफ्रीका की वर्तमान लगभग 5% हिस्सेदारी बनाम 17% जनसंख्या) की माँग सरासर अनुचित है।
  • बहुपक्षवाद को पुनर्जीवित करना: भारत और अन्य दक्षिणी देशों को संयुक्त राष्ट्र, विश्व व्यापार संगठन और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष को पुनर्जीवित करने के लिए प्रयास करना चाहिए ताकि वे सामूहिक समस्या-समाधान के लिए विश्वसनीय मंच बने रहें।
  • आंतरिक अंतर्विरोधों पर विजय: राजनीतिक गठबंधनों में मतभेद होने पर भी मुद्दा-आधारित गठबंधन (जलवायु न्याय, ऋण सुधार, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण) बनाना।
    • एकजुटता सुनिश्चित करने और विखंडन को कम करने के लिए क्षेत्रीय समूहों (अफ्रीकी संघ, कैरीकॉम, इकोवास, मर्कोसुर) को बढ़ावा देना।
  • नियमित दक्षिण परामर्श: गति और साझा समर्थन को बनाए रखने के लिएग्लोबल साउथ’ की अभिव्यक्ति शिखर सम्मेलन के साथ-साथ “समान विचारधारा वाले ‘ग्लोबल साउथ'” संवादों को संस्थागत रूप देना।
  • विकास, न कि ऋण कूटनीति: BRI जैसे भारी ऋण मॉडल के विकल्प के रूप में माँग-आधारित, पारदर्शी वित्तपोषण को बढ़ावा देना।
    • छिपे हुए ऋण जाल से बचने और समानता सुनिश्चित करने के लिए SSC के लिए आचार संहिता सिद्धांत बनाना।
    • प्रतिस्पर्द्धा और सहयोग के बीच संतुलन बनाने के लिए त्रिकोणीय सहयोग (दक्षिण + संयुक्त राष्ट्र/पश्चिम) को प्रोत्साहित करना।
  • जलवायु और खाद्य सुरक्षा नेतृत्व: भारत में परीक्षण किए गए जलवायु-प्रतिरोधी कृषि चावल संवर्द्धन और पोषण कार्यक्रमों का विस्तार करना।
    • हरित परिवर्तन के लिए आवश्यक महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिए विविध आपूर्ति शृंखलाओं को सुरक्षित करना।

निष्कर्ष

SSTC अब केवल एक अवधारणा नहीं, बल्कि समावेशी और सतत् विकास का एक प्रमुख मार्ग है। वर्ष 2030 के एजेंडे के लिए समय सीमित है; ऐसे में भारत कावसुधैव कुटुंबकम्’ का दर्शन और इसके अनुकरणीय मॉडल उसे ग्लोबल साउथ’ के परिवर्तन का नेतृत्व करने की स्थिति में लाते हैं।

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