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Oct 07 2025

संदर्भ

हाल ही में पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में अत्यधिक वर्षा के कारण विनाशकारी भूस्खलन और बाढ़ आई है।

  • इसने जलवायु-जनित आपदाओं के प्रति क्षेत्र की संवेदनशीलता तथा आपदा लचीलेपन की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है।

आपदा के प्रति लचीलापन के बारे में

  • आपदा के प्रति लचीलापन, व्यक्तियों, समुदायों और देशों, उनकी आजीविका, स्वास्थ्य, सांस्कृतिक विरासत, सामाजिक-आर्थिक संपत्तियों और पारिस्थितिकी तंत्रों की प्रभावी सुरक्षा के लिए आपदा जोखिम का पूर्वानुमान लगाने, योजना बनाने और उसे कम करने के बारे में है।
  • बाउंस बैक’ (Rebound), ‘स्प्रिंग फॉरवर्ड’ और ‘बिल्ड बैक बेटर’ जैसे विचार प्रायः लचीलेपन (Resilience) के संदर्भ में प्रयोग किए जाते हैं।
    • बाउंस बैक” का तात्पर्य व्यक्तियों, समुदायों और प्रणालियों को आपदाओं से शीघ्र उबरने, आवश्यक कार्यों, सेवाओं और आजीविका को आपदा-पूर्व स्तर पर बहाल करने की क्षमता से है।
    • स्प्रिंग फॉरवर्ड” न केवल उबरने की, बल्कि भविष्य की आपदाओं का सामना करने की अपनी क्षमता को अनुकूलित और बेहतर बनाना भी है, जिससे प्रणालियाँ अधिक लचीली और दूरदर्शी बनती हैं।
    • बिल्ड बैक बेटर” संयुक्त राष्ट्र आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्यालय (United Nations Office for Disaster Risk Reduction-UNDRR) द्वारा प्रचारित एक अवधारणा है, जो आपदाओं के बाद पुनर्निर्माण पर इस तरह केंद्रित है, जिससे लचीलापन बढ़े, भेद्यता कम हो और सतत् विकास को बल मिले।

आपदा के प्रति लचीलेपन की प्रमुख विशेषताएँ

  • व्यापक तैयारी: आपदा प्रतिरोधक क्षमता के लिए विविध परिदृश्यों के लिए सावधानीपूर्वक योजना बनाना आवश्यक है, जिनमें चक्रवात, बाढ़, भूकंप जैसे प्राकृतिक खतरे और औद्योगिक दुर्घटनाएँ जैसी मानव-जनित आपदाएँ शामिल हैं।
  • मज़बूत संस्थागत समर्थन: लचीली प्रणालियाँ समन्वय और निर्णय लेने के लिए मजबूत संस्थागत ढाँचों पर निर्भर करती हैं। भारत में, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority [NDMA]) राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तरों पर आपदा जोखिम न्यूनीकरण (Disaster Risk Reduction-DRR) की योजना बनाने, नीति-निर्माण और समन्वय के लिए सर्वोच्च निकाय के रूप में कार्य करता है।
  • सतत् विकास के साथ एकीकरण: आपदा प्रतिरोधक क्षमता को दीर्घकालिक स्थिरता लक्ष्यों के साथ संरेखित किया जाना चाहिए।
  • विधायी आधार: प्रभावी कानून और नीतियाँ आपदा की तैयारी को संस्थागत बनाती हैं। भारत का आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 सरकारी एजेंसियों की भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को परिभाषित करता है, जिससे शमन, तैयारी, प्रतिक्रिया और पुनर्प्राप्ति के लिए एक संरचित दृष्टिकोण संभव होता है।
  • पूर्व चेतावनी में तकनीकी प्रगति: उपग्रह निगरानी, ​​सुदूर संवेदन, भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS)-आधारित जोखिम मानचित्रण और पूर्वानुमानात्मक मॉडलिंग जैसी आधुनिक प्रौद्योगिकियाँ पूर्व चेतावनी क्षमताओं को बढ़ाती हैं।
  • शैक्षणिक कार्यक्रम और सार्वजनिक जागरूकता: सार्वजनिक जागरूकता और शैक्षणिक संस्कृति को बढ़ावा देना।

आपदा के प्रति लचीलेपन के निर्धारक

  • व्यापक आकलन के माध्यम से जोखिम की पहचान: खतरों, कमजोरियों और संभावित प्रभावों को समझना आवश्यक है।
    • भारत की खतरा पहचान और जोखिम आकलन (Hazard Identification and Risk Assessment-HIRA) प्रक्रिया विभिन्न क्षेत्रों में जोखिमों का व्यवस्थित मूल्यांकन करती है, जिससे लक्षित शमन रणनीतियाँ संभव होती हैं।
  • समुदाय-केंद्रित मूल्यांकन उपाय: जब समुदाय, योजना निर्माण में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं तो लचीलापन सुदृढ़ होता है। स्थानीय ज्ञान कमजोरियों की पहचान करने और हस्तक्षेपों को अनुकूलित करने में मदद करता है।
    • उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय भूस्खलन जोखिम शमन परियोजना (National Landslide Risk Mitigation Project-NLRMP) के अंतर्गत ग्राम-स्तरीय आपदा समितियाँ, यह सुनिश्चित करती हैं कि शमन उपाय वास्तविक स्थानीय चुनौतियों का समाधान करें।
  • आपातकालीन तैयारी के लिए संसाधन आवंटन: वित्तीय, मानवीय और तकनीकी संसाधनों का पर्याप्त आवंटन महत्त्वपूर्ण है।
    • भारत का राष्ट्रीय आपदा शमन कोष (National Disaster Mitigation Fund -NDMF) राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को तैयारी, शमन और पुनर्प्राप्ति परियोजनाओं के लिए धन उपलब्ध कराता है।
  • नीति कार्यान्वयन और बुनियादी ढाँचे की मजबूती: मजबूत नीतियाँ और लचीला बुनियादी ढाँचा आपदा के प्रभावों को कम करता है।
    • जापान की भूकंपरोधी इमारतें और भारत के ओडिशा और आंध्र प्रदेश में चक्रवात-रोधी आवास इस बात का उदाहरण हैं कि कैसे मजबूत निर्माण मानदंड जीवन और संपत्ति की रक्षा करते हैं।
  • उभरती चुनौतियों के प्रति अनुकूलन: जलवायु परिवर्तन, शहरी बाढ़ और ग्लेशियल बर्स्ट जैसे उभरते खतरों से निपटने के लिए लचीलेपन की आवश्यकता होती है।
    • बाढ़ जलाशयों, तटीय मैंग्रोव पुनर्स्थापन और जलवायु-अनुकूल कृषि जैसे नवीन समाधान अनुकूलन क्षमता को बढ़ाते हैं।
  • पुनर्प्राप्ति और पुनर्वास क्षमताएँ: आपदा के बाद प्रभावी पुनर्प्राप्ति दीर्घकालिक लचीलापन सुनिश्चित करती है।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका में चक्रवात कैटरीना (2005) के बाद के पुनर्संरक्षण प्रयासों ने दीर्घकालिक पुनर्वास रणनीतियों के महत्त्व को उजागर किया।
    • भारत का भुज स्थित स्मृतिवन स्मारक, वर्ष 2001 के भूकंप की स्मृति और सीख का प्रतीक है, जो भविष्य में लचीलापन उपायों के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है।

भारत में आपदा के प्रति लचीलेपन की आवश्यकता

  • भारत एक बहु-संकटग्रस्त देश: भारत एक बहु-संकटग्रस्त देश होने के नाते, भूकंप, बाढ़, चक्रवात, भूस्खलन, लू और ‘ग्लैशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड’ (GLOF) सहित लगातार और विविध प्राकृतिक आपदाओं का सामना करता है।
  • संवेदनशीलता आँकड़े: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के अनुसार, लगभग 58% जिले भूकंपीय खतरों के प्रति संवेदनशील हैं, 12% चक्रवातों के प्रति संवेदनशील हैं, और 75% सूखे का सामना करते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: जलवायु परिवर्तन की तीव्रता ने इन खतरों की आवृत्ति, गंभीरता और अप्रत्याशितता को और बढ़ा दिया है, जिससे जीवन, आजीविका, महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा खतरा पैदा हो गया है।
  • आपदाओं के सामाजिक-आर्थिक परिणाम
    • जीवन की हानि और स्वास्थ्य जोखिम: मृत्यु दर में वृद्धि और बीमारी व कुपोषण जैसे द्वितीयक प्रभाव।
    • आजीविका में व्यवधान: विशेष रूप से कृषि, मत्स्य पालन और अनौपचारिक क्षेत्रों में।
    • महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे की हानि: इसमें सड़कें, पुल, स्कूल और अस्पताल शामिल हैं।
    • आर्थिक नुकसान: आपदाएँ क्षेत्रीय और राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद को भारी नुकसान पहुँचाती हैं।
    • जबरन प्रवास और विस्थापन: शहरी केंद्रों पर दबाव बढ़ना।
    • समता संबंधी निहितार्थ: कमजोर और हाशिए पर स्थित समुदायों पर असमानुपातिक प्रभाव, जो आपदा सहनशीलता के सामाजिक समता संबंधी आयाम पर बल देता है।
  • ये चुनौतियाँ दर्शाती हैं कि आपदाएँ केवल प्राकृतिक घटनाएँ नहीं हैं, बल्कि सामाजिक-आर्थिक तनाव को बढ़ाने वाली होती हैं, जो समुदायों, बुनियादी ढाँचे और विकास को प्रभावित करती हैं।

भारत की व्यापक आपदा जोखिम न्यूनीकरण पहल

  • भारत ने रोकथाम, तैयारी, प्रतिक्रिया, शमन, पुनर्प्राप्ति और पुनर्निर्माण सहित एक समग्र दृष्टिकोण अपनाया है।
  • संस्थागत और नीतिगत ढाँचा: गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs [MHA]) और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority-NDMA) आपदा-पूर्व तैयारी और आपदा-पश्चात प्रतिक्रिया, दोनों की देखरेख करते हैं। प्रमुख संस्थागत तंत्रों में शामिल हैं:
    • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (National Disaster Management Plan-NDMP): इसे पहली बार वर्ष 2016 में विकसित किया गया और वर्ष 2019 में संशोधित किया गया। इसे सेंडाई फ्रेमवर्क के अनुरूप बनाया गया है और इसमें मंत्रालयों, राज्यों और जिलों की भूमिकाओं को एकीकृत किया गया है।
    • NDMA दिशा-निर्देश: आपदा तैयारी और प्रतिक्रिया को मानकीकृत करने के लिए 38 विषयगत और जोखिम-विशिष्ट दिशा-निर्देश।
    • 15वाँ वित्त आयोग (2021-26): आपदा जोखिम न्यूनीकरण (Disaster Risk Reduction [DRR) के लिए ₹2.28 लाख करोड़ (30 बिलियन अमेरिकी डॉलर) आवंटित किए गए, जिसमें सार्वजनिक वित्त को रोकथाम, शमन, तैयारी, क्षमता निर्माण और पुनर्निर्माण से जोड़ा गया।

आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए वित्तीय संरचना

  • बजट आवंटन: तैयारी और क्षमता निर्माण (10%), शमन (20%), प्रतिक्रिया (40%), पुनर्निर्माण (30%)।
  • प्रकृति-आधारित समाधान: पारिस्थितिकी तंत्र पुनर्स्थापन, ढलान स्थिरीकरण और बाढ़ के मैदान प्रबंधन पर बल।
  • संस्थागत सामंजस्य: अंतर-मंत्रालयी और केंद्र-राज्य समन्वय तंत्र दक्षता सुनिश्चित करते हैं और दोहराव से बचते हैं।
  • कार्यान्वयन और प्रभाव
    • पुनर्निर्माण पैकेज: उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, असम और केरल के लिए ₹5,000 करोड़ स्वीकृत।
    • अग्नि सुरक्षा आधुनिकीकरण: अग्निशमन प्रणालियों और आपातकालीन प्रतिक्रिया इकाइयों के उन्नयन हेतु ₹5,000 करोड़ आवंटित।
    • स्वयंसेवी बल: स्थानीय आपदा प्रतिक्रिया के लिए ‘आपदा मित्र’ और ‘युवा आपदा मित्र’ पहल के अंतर्गत 2.5 लाख से अधिक प्रशिक्षित स्वयंसेवक।
    • शिक्षा के माध्यम से क्षमता निर्माण: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (NIDM) ने पंचायत स्तर पर आपदा प्रबंधन को मुख्यधारा में लाने के लिए 36-धाराओं पर आधारित DRR पाठ्यक्रम शुरू किया।
  • वैज्ञानिक और तकनीकी उपाय
    • शमन परियोजनाएँ: कई राज्यों में प्रकृति-आधारित जलवायु अनुकूलन के लिए ₹10,000 करोड़ मूल्य की परियोजनाएँ स्वीकृत।
    • राष्ट्रीय चक्रवात शमन कार्यक्रम (2011-22): चक्रवात आश्रयों, तटबंधों और सात-दिवसीय पूर्व चेतावनी प्रणालियों के माध्यम से तटीय सुभेद्यता को कम किया गया।
    • शहरी बाढ़ प्रबंधन: जल निकायों का पुनरुद्धार, बाढ़ मानचित्रण के लिए सुदूर संवेदन और हिमनद झीलों की निगरानी के लिए स्वचालित मौसम केंद्र।
    • भूस्खलन और वनाग्नि निवारण: उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में जैव-इंजीनियरिंग ढलान स्थिरीकरण, ईंधन निकासी, और विराम रेखा का निर्माण।
    • गतिशील समग्र जोखिम एटलस (Web-DCRA & DSS): चक्रवात जोखिम शमन और योजना का समर्थन करता है, जिसका चक्रवात बिपरजॉय और मिचांग में सफलतापूर्वक उपयोग किया गया।
    • बाढ़ जोखिम एटलस और हिमनद झील डेटाबेस: बाढ़ और ग्लैशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड’ (GLOF) जोखिमों के प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र (NRSC) द्वारा तैयार किया गया।
  • प्रारंभिक चेतावनी, शिक्षा और क्षमता निर्माण
    • कॉमन अलर्टिंग प्रोटोकॉल (CAP) और SACHET ऐप: SMS, TV, रेडियो, इंटरनेट और सेटेलाइट सिस्टम के माध्यम से भू-लक्षित, बहुभाषी अलर्ट प्रसारित करता है। 6,400 करोड़ से अधिक अलर्ट प्रसारित किए जा चुके हैं।
    • पूर्व चेतावनी मोबाइल ऐप: दामिनी, मौसम, मेघदूत ऐप- वास्तविक समय आधारित मौसम, चक्रवात और बिजली की चेतावनी प्रदान करते हैं।
    • प्रशिक्षण नेटवर्क: NDRF अकादमी, राष्ट्रीय अग्निशमन सेवा महाविद्यालय (NNFSC) और NIDM प्रत्येक वर्ष हजारों लोगों को आपदा विज्ञान और नीति में प्रशिक्षित करते हैं।
    • मॉक ड्रिल और स्कूल सुरक्षा कार्यक्रम: क्षेत्र-विशिष्ट जागरूकता अभियान और शैक्षिक पहल सामुदायिक तत्परता को बढ़ाती हैं।
  • सामुदायिक एवं स्वयंसेवी सहभागिता:
    • आपदा मित्र योजना: 350 बहु-संकटग्रस्त जिलों में 1 लाख स्वयंसेवकों को प्रशिक्षित करती है।
    • युवा आपदा मित्र योजना (YAMS): 315 आपदा-प्रवण जिलों में NCC, NSS, NYKS, BS&G के 2.37 लाख युवाओं को शामिल करती है।
  • अंतरराष्ट्रीय नेतृत्व और सहयोग
    • आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन (Coalition for Disaster Resilient Infrastructure-CDRI): भारत के नेतृत्व वाली वैश्विक पहल, जो 42 देशों को जलवायु-रोधी अवसंरचना को बढ़ावा देते हुए समर्थन प्रदान करती है।
    • क्षेत्रीय सहयोग: संयुक्त अभ्यास और ज्ञान साझाकरण हेतु G20, SCO, BIMSTEC और IORA के साथ सहयोग।
    • भारतीय सुनामी पूर्व चेतावनी केंद्र (ITEWC): संयुक्त राष्ट्र आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्यालय (UNDRR) द्वारा मान्यता प्राप्त पाँच वैश्विक प्रणालियों में से एक।
    • मानवीय सहायता: भारत वसुधैव कुटुंबकम् को दर्शाते हुए वैश्विक स्तर पर आपदा सहायता प्रदान करता है, जैसे कि तुर्की और सीरिया भूकंप राहत (2023)

आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए प्रधानमंत्री का दस सूत्री एजेंडा (2016)

  • सभी विकास क्षेत्रों में आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) को शामिल किया जाना चाहिए: प्रत्येक विकास पहल में लचीलापन सुनिश्चित करने के लिए शहरी नियोजन, आवास, बुनियादी ढाँचे, कृषि, स्वास्थ्य और शिक्षा में DRR सिद्धांतों को एकीकृत किया जाना चाहिए।
  • सभी के लिए जोखिम कवरेज की दिशा में कार्य करना: जीवन, स्वास्थ्य, फसलों और आजीविका के लिए गरीबों और कमजोर लोगों को कवर करने के लिए बीमा और सामाजिक सुरक्षा की पहुँच का विस्तार करना।
  • आपदा जोखिम प्रबंधन में महिला नेतृत्व को प्रोत्साहित करना: योजना, प्रतिक्रिया और पुनर्प्राप्ति में महिलाओं को परिवर्तन के वाहक और निर्णयकर्ता के रूप में सशक्त बनाना।
  • जोखिम मानचित्रण और बुनियादी ढाँचे के लचीलेपन में निवेश करना: लचीले बुनियादी ढाँचे में निवेश को निर्देशित करने के लिए डेटा संग्रह, जोखिम मानचित्रण और भेद्यता मूल्यांकन को मजबूत करना।
  • जोखिम न्यूनीकरण हेतु प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: पूर्व चेतावनी, वास्तविक समय निगरानी और आपदा प्रतिक्रिया के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, उपग्रह-आधारित संचार, भौगोलिक सूचना प्रणाली (Geographic Information Systems-GIS) और मोबाइल एप्लिकेशन का उपयोग करना।
  • DRR के लिए विश्वविद्यालयों और संस्थानों का एक नेटवर्क विकसित करना: शैक्षणिक सहयोग के माध्यम से अनुसंधान, प्रशिक्षण और नवाचार को बढ़ावा देना।
    • आपदा प्रबंधन के बहु-विषयक पहलुओं पर काम करने वाले विश्वविद्यालयों का एक राष्ट्रीय नेटवर्क स्थापित करना।
  • स्थानीय क्षमता और पारंपरिक ज्ञान का उपयोग करना: संदर्भ-विशिष्ट आपदा समाधानों के लिए आधुनिक विज्ञान को स्वदेशी और समुदाय-आधारित प्रथाओं के साथ मिलाना।
  • आपदा प्रतिक्रिया क्षमताओं को मजबूत बनाना: राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) के सहयोग से, राज्य आपदा प्रतिक्रिया बलों (SDRF) और स्थानीय संस्थानों की क्षमता का निर्माण करना ताकि त्वरित और प्रभावी प्रतिक्रिया हो सके।
  • युवाओं की अधिक भागीदारी और नेतृत्व सुनिश्चित करना: सामुदायिक स्तर की तैयारी और जागरूकता अभियानों में राष्ट्रीय कैडेट कोर (NCC), राष्ट्रीय सेवा योजना (NSS), और भारत स्काउट्स एंड गाइड्स (BS&G) जैसे युवा संगठनों को शामिल करना।
  • DRR को सभी की जिम्मेदारी बनाना: जोखिम जागरूकता और लचीलापन निर्माण गतिविधियों में नागरिकों, मीडिया, निजी क्षेत्र और नागरिक समाज को शामिल करके सुरक्षा की संस्कृति का निर्माण करना।

आपदा लचीलेपन में वैश्विक पहल और सर्वोत्तम अभ्यास

  • जापान: उन्नत भवन संहिताएँ, संरचनात्मक पुनर्रचना और आधार-पृथक निर्माण यह सुनिश्चित करते हैं कि आवासीय, वाणिज्यिक और सार्वजनिक भवन भूकंपीय झटकों का सामना कर सकें।
  • जर्मनी: इसने बाढ़ जोखिम न्यूनीकरण और जलवायु अनुकूलन के लिए नवीन दृष्टिकोणों का प्रयोग किया है, जिनमें शामिल हैं:
    • बाढ़ के मैदानों का जीर्णोद्धार: अतिरिक्त जल को अवशोषित करने और शहरी बाढ़ के जोखिम को कम करने के लिए प्राकृतिक बाढ़ के मैदानों तथा आर्द्रभूमियों का पुनर्निर्माण।
    • प्रकृति-आधारित शहरी नियोजन: तूफानों और बाढ़ के प्रति लचीलापन बढ़ाने के लिए हरित छतों, पारगम्य सतहों और शहरी हरित स्थानों को एकीकृत करना।
  • आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु सेंडाई फ्रेमवर्क (2015-2030): संयुक्त राष्ट्र आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्यालय (UNDRR) ने सेंडाई फ्रेमवर्क प्रस्तुत किया है, जो आपदा जोखिमों को कम करने और लचीलापन बढ़ाने के लिए एक वैश्विक ढाँचा है। इसके प्रमुख सिद्धांतों में शामिल हैं:
    • खतरा मानचित्रण और जोखिम मूल्यांकन
    • पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ
    • अनुकूलित निर्माण।
  • G20 और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की पहल: G20 और SCO जैसे वैश्विक मंचों ने आपदा सहनशीलता पर बहुपक्षीय सहयोग को बढ़ावा दिया है, जिसका मुख्य उद्देश्य है:
    • आपदा-प्रतिरोधी अवसंरचना
    • जलवायु अनुकूलन रणनीतियाँ
    • क्षेत्रीय सहयोग और क्षमता निर्माण।

भारत में आपदा लचीलेपन संबंधी चुनौतियाँ

  • बहु-संकट घटनाओं के प्रति उच्च संवेदनशीलता: भारत जल-मौसम संबंधी, भू-वैज्ञानिक, हिमनद, चक्रवाती और सूखा-संबंधी आपदाओं के प्रति संवेदनशील है, जिससे आपदा तैयारी जटिल और बहुआयामी हो जाती है।
  • शहरीकरण में तीव्र वृद्धि और जनसंख्या दबाव: संकट-प्रवण क्षेत्रों में बढ़ता जनसंख्या घनत्व स्थानीय संसाधनों, बुनियादी ढाँचे और आपातकालीन प्रतिक्रिया क्षमताओं पर दबाव डालता है।
  • परिवर्तित जलवायु पैटर्न: तीव्र वर्षा, अनियमित मानसून, तापमान में अत्यधिक उतार-चढ़ाव और अप्रत्याशित मौसम आपदाओं की आवृत्ति और गंभीरता को बढ़ाते हैं।
  • पर्यावरणीय और जल विज्ञान संबंधी तनाव: नदी के मार्ग में परिवर्तन, प्राकृतिक जल निकासी चैनलों का अवरुद्ध होना और अनियोजित बस्तियाँ बाढ़ एवं भूस्खलन के खतरों को बढ़ाती हैं।
  • संस्थागत और प्रशासनिक कमियाँ: स्थानीय शासन निकायों में प्रायः प्रशिक्षित कर्मियों, पर्याप्त धन और तकनीक का अभाव होता है, जिससे उनकी आपदा प्रतिक्रिया प्रभावशीलता सीमित हो जाती है।
  • पूर्व चेतावनी और सामुदायिक जागरूकता में कमी: वैज्ञानिक चेतावनियों के बावजूद, समुदाय प्रायः तैयार नहीं रहते हैं, जिससे प्रतिक्रिया और शमन उपायों की प्रभावशीलता कम हो जाती है।

आगे की राह

केस स्टडी – स्मृतिवन स्मारक, भुज

  • वर्ष 2001 में भुज में आए 7.9 तीव्रता के भूकंप ने लगभग 12,932 लोगों की जान ले ली और व्यापक विनाश किया। भारत ने 470 एकड़ में विस्तृत स्मृतिवन स्मारक और संग्रहालय का निर्माण किया, जिसमें स्थायी वास्तुकला, नवीकरणीय ऊर्जा, जल प्रबंधन और 3 लाख से अधिक पौधों वाला दुनिया का सबसे बड़ा मियावाकी वन शामिल है।
  • यह संग्रहालय आगंतुकों को सात विषयगत खंड: रीबर्थ, रीडिस्कवरी, रेस्टोरेशन, रिकन्स्ट्रक्शन, रिकन्सिडरेशन, रिवाइवल और रिन्युअल के माध्यम से शिक्षित करता है, जिसमें आपदा प्रतिरोधक क्षमता, पुनर्वास और पारिस्थितिक पुनर्स्थापन शामिल हैं। इसेयूनेस्को प्रिक्स वर्सेल्स पुरस्कार’ के लिए चुना गया है, जो लचीले बुनियादी ढाँचे और आपदा शिक्षा में भारत की उत्कृष्टता को दर्शाता है।

ओडिशा का चक्रवात प्रबंधन मॉडल: वर्ष 1999 के महाचक्रवात (10,000 से अधिक मौतें) के बाद, ओडिशा आपदा पूर्व तैयारी के एक वैश्विक मॉडल के रूप में विकसित हुआ। वर्ष 2000 में स्थापित ओडिशा राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (OSDMA) ने सक्रिय आपदा प्रबंधन को संस्थागत रूप दिया।

  • प्रमुख विशेषताएँ
    • प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियाँ: IMD  और INCOIS के साथ सहयोग; EWDS 879 तटीय गाँवों को सायरन, SMS अलर्ट और डिजिटल नेटवर्क के माध्यम से जोड़ता है।
    • सामुदायिक तैयारी: स्थानीय समितियों द्वारा प्रबंधित 800 से अधिक बहुउद्देशीय चक्रवात आश्रय; नियमित मॉक ड्रिल और स्वयंसेवी प्रशिक्षण अंतिम लक्ष्य तक की तैयारी सुनिश्चित करते हैं।
    • लचीला बुनियादी ढाँचा: बीजू पक्का घर योजना और प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत चक्रवात-रोधी आवास, तटबंध और सड़कें; बेहतर बिजली और दूरसंचार पुनर्प्राप्ति प्रणालियाँ।
    • समन्वित प्रतिक्रिया: बहु-विभागीय एकीकरण त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित करता है; सामूहिक निकासी के माध्यम से शून्य हताहत नीति।
    • कमजोर समूहों पर ध्यान: महिलाओं, बुजुर्गों और दिव्यांगों के लिए विशेष निकासी; स्वयं सहायता समूह (Self Help Groups-SHG) खाद्य आपूर्ति और राहत प्रयासों का नेतृत्व करते हैं।

  • विकास नियोजन में आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) को मुख्यधारा में लाना: शहरी नियोजन, बुनियादी ढाँचे, आवास, परिवहन और स्वास्थ्य नीतियों में DRR सिद्धांतों को एकीकृत करना।
    • सभी प्रमुख बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के लिए पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) के साथ-साथ आपदा प्रभाव आकलन (Disaster Impact Assessments-DIA) को अनिवार्य बनाना।
    • संघ और राज्य वित्त मेंअनुकूलित बजट” लागू करना, रोकथाम, शमन और तैयारी के लिए समर्पित आवंटन सुनिश्चित करना।
    • सार्वजनिक निवेश की सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय बुनियादी ढाँचा पाइपलाइन (National Infrastructure Pipeline-NIP) के तहत ऑडिट को संस्थागत बनाना।
  • स्थानीय शासन और समुदाय-केंद्रित तैयारियों को मजबूत बनाना: स्थानीय आपदा योजनाओं के लिए पंचायती राज संस्थाओं (PRI) और शहरी स्थानीय निकायों (ULB) को वित्तीय, तकनीकी और मानव संसाधनों से सशक्त बनाना।
    • प्रशिक्षित सामुदायिक प्रथम प्रतिक्रियाकर्ता तैयार करने के लिए आपदा मित्र और युवा आपदा मित्र नेटवर्क का विस्तार करना।
  • प्रकृति-आधारित और जलवायु-अनुकूल समाधानों को बढ़ावा देना: कम लागत वाले, दीर्घकालिक शमन उपायों के रूप में पारिस्थितिकी-पुनर्स्थापन, आर्द्रभूमि पुनरुद्धार, मैंग्रोव पुनर्जनन और जलग्रहण प्रबंधन को प्राथमिकता देना।
    • भूस्खलन-प्रवण हिमालयी और पश्चिमी घाट क्षेत्रों में ढलान स्थिरीकरण के लिए जैव-इंजीनियरिंग तकनीकों का उपयोग करना।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में लचीलापन निर्माण के लिए जलवायु-अनुकूल कृषि, सूखा-प्रतिरोधी फसलों और सतत् जल प्रबंधन को प्रोत्साहित करना।
    • जलवायु चरम स्थितियों के प्रति सतत् अनुकूलन के लिए प्रकृति-आधारित समाधानों को बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के साथ एकीकृत करना।
  • प्रौद्योगिकी, विज्ञान और नवाचार का लाभ उठाना: भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) और सुदूर संवेदन (RS)-आधारित आपदा मानचित्रण और जोखिम पूर्वानुमान का विस्तार करना।
    • पूर्वानुमानात्मक मॉडलिंग और वास्तविक समय आपदा विश्लेषण के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और मशीन लर्निंग (ML) को शामिल करना।
    • नीतिगत निर्णयों के लिएडायनामिक कंपोजिट रिस्क एटलस’ और फ्लड एटलस (Web-DCRA & DSS) जैसे नवाचारों को बढ़ावा देना।
    • पूर्व चेतावनी, रसद और पुनर्प्राप्ति उपकरणों के लिए अटल नवाचार मिशन (AIM) के तहत आपदा-तकनीक स्टार्ट-अप को बढ़ावा देना।
  • लचीला बुनियादी ढाँचा और वित्तीय सुरक्षा जाल बनाना: स्थानीय अधिकारियों के माध्यम से भूकंप, बाढ़ और चक्रवात क्षेत्रों के लिए जोखिम-सूचित भवन संहिताओं को लागू करना।
    • स्मार्ट सिटी मिशन और अमृत 2.0 के अंतर्गत लचीले डिजाइन सिद्धांतों (जैसे- हरित छतें, पारगम्य फुटपाथ, तूफानी नालियाँ) को एकीकृत करना।
    • दीर्घकालिक लचीलापन बढ़ाने के लिए पुनर्निर्माण में बिल्ड बैक बेटर (BBB) प्रथाओं को अपनाना।
    • आपदा बॉण्ड, आपदा बीमा और राष्ट्रीय आपदा न्यूनीकरण कोष (NDMF) के संचालन के माध्यम से वित्तीय लचीलापन मजबूत करना।
    • लचीले बुनियादी ढाँचे और जोखिम-साझाकरण तंत्र के वित्तपोषण के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को बढ़ावा देना।
  • प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों, शिक्षा और क्षमता निर्माण का विस्तार करना: क्षेत्रीय भाषाओं में अंतिम लक्ष्य तक कवरेज के लिए कॉमन अलर्टिंग प्रोटोकॉल’ (CAP) और सचेत ऐप जैसे चेतावनी तंत्रों को मजबूत बनाना।
    • तैयारी की संस्कृति का निर्माण करने के लिए स्कूल और कॉलेज के पाठ्यक्रम में आपदा शिक्षा को शामिल करना।
    • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (NIDM), राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) अकादमी और राष्ट्रीय अग्निशमन सेवा महाविद्यालय (NFSC) के माध्यम से संस्थागत क्षमता में वृद्धि करना।
    • सामुदायिक तैयारी के लिए राज्यों में नियमित रूप से मॉक ड्रिल, जागरूकता अभियान और सिमुलेशन अभ्यास आयोजित करना।
  • क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना: CDRI, G20, SCO, BIMSTEC और IORA के माध्यम से भारत के वैश्विक नेतृत्व को सुदृढ़ करना।
    • ओडिशा के चक्रवात प्रबंधन मॉडल जैसी भारत की सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करके दक्षिण-दक्षिण सहयोग को मजबूत करना।
    • क्षमता निर्माण और ज्ञान के आदान-प्रदान के लिए संयुक्त राष्ट्र आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्यालय (UNDRR) और विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) के साथ सहयोग करना।
    • प्रगति की निगरानी के लिए एक नेशनल रेजिलिएंस इंडेक्स’ (National Resilience Index [NRI]) स्थापित करना और स्वतंत्र ऑडिट करना।

निष्कर्ष

एक आपदा रोधी संरचना से युक्त भारत के निर्माण के लिए प्रतिक्रियात्मक राहत से सक्रिय रोकथाम की ओर बदलाव आवश्यक है, जो विज्ञान, स्थिरता और सामुदायिक भागीदारी पर आधारित हो। जोखिम-सूचित शासन, प्रकृति-आधारित समाधानों और तकनीकी नवाचार को एकीकृत करके, भारत सेंडाई फ्रेमवर्क (2015-2030), प्रधानमंत्री के दस सूत्री एजेंडा (2016) और सतत विकास लक्ष्यों (SDG) के अनुरूप, विकास की ओर अग्रसर हो सकता है।

संदर्भ

नीति आयोग ने भारत में विदेशी निवेशकों के लिए स्थायी प्रतिष्ठान (Permanent Establishment- PE) एवं लाभ निर्धारण पर कर नीति कार्य-पत्र जारी किया।

कर नीति कार्य-पत्र के बारे में

  • कार्य-पत्र में तर्क दिया गया है कि जैसे-जैसे भारत वर्ष 2047 तक विकसित भारत की ओर बढ़ रहा है, गुणवत्तापूर्ण प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment- FDI)/विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (Foreign Portfolio Investment- FPI) को आकर्षित करने के लिए कर नियमों को पूर्वानुमानित, पारदर्शी एवं कुशल होना चाहिए।
  • यह एक निवेशक-अनुकूल कर व्यवस्था बनाने, मुकदमेबाजी को कम करने तथा राजस्व हितों की रक्षा करते हुए भारत की कर नीति को वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं के अनुरूप बनाने पर केंद्रित है।

स्थायी प्रतिष्ठान (PE) एवं लाभ निर्धारण के बारे में

  • स्थायी प्रतिष्ठान व्यवसाय का एक निश्चित स्थान (कार्यालय, शाखा, निर्माण स्थल, या यहाँ तक कि एक डिजिटल उपस्थिति) होता है, जिसके माध्यम से कोई विदेशी उद्यम भारत में कार्य करता है।
  • यह उस विदेशी संस्था की व्यावसायिक आय पर कर लगाने के भारत के अधिकार को निर्धारित करता है।
  • आयकर अधिनियम, 1961 में व्यावसायिक संबंध (धारा 9) शब्द का प्रयोग किया गया है एवं भारत के दोहरे कर परिहार समझौतों (Double Tax Avoidance Agreements- DTAAs) में विस्तृत परिभाषाएँ दी गई हैं।
  • वर्ष 2018 में जोड़ा गया एवं वर्ष 2021 में लागू किया गया महत्त्वपूर्ण आर्थिक उपस्थिति (Significant Economic Presence- SEP) नियम, भौतिक उपस्थिति के बिना डिजिटल गतिविधियों  पर भी कराधान का विस्तार करता है।
  • लाभ निर्धारण का अर्थ है यह निर्धारित करना कि किसी विदेशी कंपनी के कुल लाभ का कितना हिस्सा उसके भारतीय परिचालन (PE) से जुड़ा है एवं इसलिए उस पर भारत में कर लगाया जा सकता है।

अग्रिम मूल्य निर्धारण समझौता (Advance Pricing Agreement- APA)

  • APA करदाता एवं आयकर विभाग के बीच एक पूर्व-सहमति वाला समझौता होता है, जो यह तय करता है कि भविष्य के अंतरराष्ट्रीय लेन-देन के लिए लाभ तथा करों की गणना कैसे की जाएगी।
  • यह 3-5 वर्षों (या उससे अधिक) के लिए स्थानांतरण मूल्य निर्धारण पर निश्चितता प्रदान करता है।

पारस्परिक समझौता प्रक्रिया (Mutual Agreement Procedure- MAP)

  • एक संधि-आधारित प्रक्रिया, जिसमें दो देशों के कर अधिकारी उन मामलों पर चर्चा एवं समाधान करते हैं, जहाँ एक करदाता की एक ही आय पर दो बार कर लगाया जा सकता है।
  • यह सीमा पार कर विवादों को सौहार्दपूर्ण ढंग से निपटाने में मदद करता है।

OECD की TRACE प्रणाली

  • TRACE (Treaty Relief and Compliance Enhancement)  (संधि राहत एवं अनुपालन संवर्द्धन) एक OECD ढाँचा है, जो विदेशी निवेशकों द्वारा लाभांश, ब्याज या रॉयल्टी पर कर कटौती से राहत का दावा करने के तरीके को सरल बनाता है।
  • यह कैसे कार्य करता है: प्रमाणित मध्यस्थ (जैसे-संरक्षक) निवेशक की पहचान एवं संधि पात्रता सत्यापित करते हैं, जिससे विलंबित धन वापसी के स्थान पर स्वतः कम कर कटौती की अनुमति मिलती है।
  • यह क्यों महत्त्वपूर्ण है: कागजी कार्रवाई कम करता है, दोहरे कराधान को रोकता है एवं पारदर्शिता बढ़ाता है।
  • वैश्विक उपयोग: फिनलैंड एवं नीदरलैंड जैसे देशों में अपनाया गया।

कार्य-पत्र से कर निश्चितता एवं पूर्वानुमानशीलता बढ़ाने के लिए रणनीतिक सिफारिशें

  • विधायी स्पष्टता: PE परिभाषाओं एवं लाभ-निर्धारण सिद्धांतों को संहिताबद्ध करना (संयुक्त राष्ट्र/OECD के अनुरूप), पृथक-उद्यम नियम को शामिल करना एवं पूर्वव्यापी संशोधनों के विरुद्ध सुरक्षा उपाय अपनाना (केवल सीमित मामलों को छोड़कर, उचित प्रक्रिया के साथ)।
  • मजबूत विवाद समाधान एवं सहकारी अनुपालन: शीघ्र निपटान के लिए अग्रिम मूल्य निर्धारण समझौते (APA) एवं पारस्परिक समझौता प्रक्रिया (MAP) का विस्तार करना।
    • अनसुलझे सीमा-पार मामलों में बाध्यकारी मध्यस्थता की संभावना तलाशना।
    • FPI के लिए ‘विदहोल्डिंग-टैक्स’ प्रक्रियाओं को सरल बनाने के लिए OECD ट्रेस प्रणाली को अपनाना।
  • क्षमता निर्माण, हितधारक जुड़ाव, चार्टर-आधारित प्रशासन: आधुनिक अंतरराष्ट्रीय-कर एवं डिजिटल-अर्थव्यवस्था के मुद्दों में कर अधिकारियों को प्रशिक्षित करना।
    • अधिकारों को संस्थागत बनाने एवं पूर्वानुमानितता लाने के लिए बड़े कर परिवर्तनों से पहले अनिवार्य सार्वजनिक परामर्श को प्रोत्साहित करना।
    • जवाबदेही एवं विश्वास को मजबूत करने के लिए करदाता चार्टर लागू करना।

भारत की सफल प्रकल्पित व्यवस्थाएँ

  • भारत की सफल प्रकल्पित व्यवस्थाओं जैसे शिपिंग (44B), तेल-क्षेत्र सेवाएँ (44BB) को प्रतिबिंबित करती हैं।
  • वित्त अधिनियम 2024 में 44BBC (क्रूज ऑपरेटर) को जोड़ा गया एवं वित्त विधेयक 2025 में 44BBD (इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण सेवाएँ) का प्रस्ताव रखा गया, जो प्रशासनिक व्यवहार्यता तथा दृष्टिकोण की निरंतरता को दर्शाता है।

  • वैकल्पिक प्रकल्पित कराधान योजना लागू करना: विदेशी कंपनियाँ उद्योग के आधार पर भारत से प्राप्त राजस्व के पूर्व-निर्धारित प्रतिशत पर कर का भुगतान करने का विकल्प चुन सकती हैं। एक बार विकल्प चुनने के बाद, कर अधिकारी इस बात पर दोबारा विचार नहीं कर सकते कि उस गतिविधि के लिए कोई PE मौजूद है या नहीं (सुरक्षित बंदरगाह संरक्षण)।
    • वैकल्पिक एवं खंडन योग्य: यदि वास्तविक लाभ कम है, तो फर्म इससे बाहर निकल सकती है एवं सामान्य रिटर्न दाखिल कर सकती है।
    • यह क्यों महत्त्वपूर्ण है: इससे PE/एट्रिब्यूशन विवाद कम हो जाते हैं, जो अन्यथा 6-12 वर्षों तक चलते हैं।

विदेशी निवेशकों के लिए भारत के कर परिवेश में चुनौतियाँ

  • FDI में वृद्धि, लेकिन और संभावना: भारत का FDI इक्विटी प्रवाह 5,856 मिलियन अमेरिकी डॉलर (2005-06) से बढ़कर अनंतिम रूप से 50,018 मिलियन अमेरिकी डॉलर (2024-25) हो गया, जो मजबूत आकर्षण के साथ-साथ अस्थिरता को भी दर्शाता है।
  • मुकदमेबाजी की लागत एवं समय: प्रमुख PE विवादों को अंतिम रूप लेने में आमतौर पर 6-12 वर्ष लगते हैं (उदाहरण के लिए, मोटोरोला/एरिक्सन/नोकिया, रोल्स रॉयस, हयात) जिससे ब्याज/आकस्मिक देनदारियाँ बढ़ती हैं एवं प्रबंधकीय बैंडविड्थ बाधित होती है।
  • विकसित होते, बहुस्तरीय नियम अनिश्चितता बढ़ाते हैं: कर संबंध घरेलू कानून (धारा 9 “व्यावसायिक संबंध”, SEP), दोहरे कर परिहार समझौतों (Double Tax Avoidance Agreements- DTAAs) (संयुक्त राष्ट्र-मॉडल झुकाव), एवं वैश्विक सुधारों (जैसे आधार क्षरण तथा लाभ स्थानांतरण) द्वारा आकार लेते हैं।
  • डिजिटल युग की कमियाँ: कई डिजिटल कंपनियाँ बिना भौतिक कार्यालयों वाले भारतीय उपयोगकर्ताओं से कमाई करती हैं, जिससे यह स्पष्ट नहीं होता कि लाभ पर कहाँ कर लगाया जाना चाहिए।
  • डिजिटल अर्थव्यवस्था का अंतर: भारत ने बिना भौतिक उपस्थिति वाली डिजिटल फर्मों से मूल्य प्राप्त करने के लिए महत्त्वपूर्ण आर्थिक उपस्थिति (Significant Economic Presence- SEP) (वित्त वर्ष 2021-22 से) लागू की है, लेकिन एट्रिब्यूशन के लिए अभी भी पूर्वानुमान के स्पष्ट नियमों की आवश्यकता है।

अनुमानित कर व्यवस्था के बारे में

  • एक सरलीकृत कर योजना, जिसमें आय की गणना वास्तविक आय के बजाय लाभ की अनुमानित दर के आधार पर की जाती है। इसे छोटे व्यवसायों एवं पेशेवरों के लिए अनुपालन बोझ को कम करने तथा कर दाखिल करने को सरल बनाने के लिए डिजाइन किया गया है।

महत्वपूर्ण आर्थिक उपस्थिति (Significant Economic Presence- SEP)

  • वित्त अधिनियम, 2018 (अप्रैल 2021 से प्रभावी) में प्रस्तुत, SEP भारत के कर संबंधों को भौतिक उपस्थिति से आगे बढ़ाता है।
  • यह भारत को उन डिजिटल एवं ऑनलाइन व्यवसायों पर कर लगाने की अनुमति देता है, जो भारतीय उपयोगकर्ताओं से राजस्व अर्जित करते हैं, भले ही उनका यहाँ कोई कार्यालय या शाखा न हो।

प्रकल्पित कर व्यवस्था के प्रत्याशित लाभ

  • कम विवाद: स्पष्ट कर नियम PE एवं लाभ निर्धारण पर विवादों को कम करते हैं, जिससे कंपनियों तथा कर अधिकारियों दोनों के समय एवं संसाधनों की बचत होती है।
  • निवेशक विश्वास: पूर्वानुमानित कर विदेशी फर्मों को बेहतर योजना बनाने में मदद करते हैं, जिससे भारत में व्यापार करने में आसानी होती है एवं प्रौद्योगिकी तथा बुनियादी ढाँचे जैसे क्षेत्रों में दीर्घकालिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित होता है।
  • प्रशासनिक दक्षता: सरलीकृत प्रकल्पित नियम लेखा परीक्षा की जटिलता एवं अनुपालन लागत को कम करते हैं, जिससे कर अधिकारी उच्च जोखिम वाले मामलों पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।
  • राजस्व स्थिरता: कंपनियाँ निश्चितता के लिए एक निश्चित दर का भुगतान करना पसंद कर सकती हैं, जिससे स्थिर या उससे भी अधिक कर संग्रह होता है। यह पहले से अपंजीकृत फर्मों को भी कर के दायरे में लाता है।
  • “मेक इन इंडिया” के लिए समर्थन: तकनीकी एवं सेवा क्षेत्रों के लिए सरलीकृत नियम विदेशी सहयोग, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण तथा विनिर्माण साझेदारी को प्रोत्साहित करते हैं।
  • उच्च स्वैच्छिक अनुपालन: वैकल्पिक योजना ईमानदार करदाताओं को सुविधा प्रदान करती है, जबकि कर चोरी एवं मनमाने कर निर्धारण को हतोत्साहित करती है।

आगे की राह

  • विधायी परिवर्तन: प्रत्येक क्षेत्र के लिए नई धाराएँ (अन्य अनुमानित कर कानूनों की तरह) जोड़ी जानी चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि अन्य प्रावधान एक-दूसरे से ओवरलैप न हों।
  • संधि अनुकूलता: इस योजना को भारत की कर संधियों के अनुरूप होना चाहिए। इसकी वैकल्पिक प्रकृति टकराव से बचने में मदद करती है, लेकिन भारत प्रमुख भागीदारों के साथ नए प्रावधानों पर बातचीत कर सकता है।
  • दर निर्धारण: केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (Central Board of Direct Taxes- CBDT) को अधिसूचनाओं के माध्यम से क्षेत्रवार दरें तय करने एवं उनकी समीक्षा करने का अधिकार देना, ताकि व्यावसायिक मॉडल विकसित होने के साथ-साथ लचीलापन सुनिश्चित हो सके।
  • दुरुपयोग-रोधी नियम: बहु-वर्षीय ‘लॉक-इन’ एवं विभिन्न व्यवस्थाओं के बीच बार-बार बदलाव पर सीमा जैसे उपायों के माध्यम से दुरुपयोग को रोकना।
  • जागरूकता एवं मार्गदर्शन: सुचारू क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिए करदाताओं एवं अधिकारियों, दोनों के लिए स्पष्ट परिपत्र, प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न तथा प्रशिक्षण मॉड्यूल प्रकाशित करना।
  • आवधिक समीक्षा: परिणामों का आकलन करने एवं आवश्यकता पड़ने पर योजना के कुछ हिस्सों को पुनर्निर्धारित या बंद करने के लिए 5-10 वर्ष का ‘सनसेट क्लॉज’ शामिल करना।

भारत एवं वैश्विक कर सुधार

वैश्विक कराधान नियम बदल रहे हैं क्योंकि कई कंपनियाँ बिना किसी भौतिक कार्यालय के, विशेष रूप से डिजिटल अर्थव्यवस्था (जैसे, गूगल, नेटफ्लिक्स, अमेजन) वाले देशों में, लाभ कमा रही हैं।

  • OECD-G20 BEPS परियोजना: इस समस्या से निपटने के लिए, भारत समेत 130 से अधिक देश आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD)-G20 BEPS परियोजना (आधार क्षरण और लाभ स्थानांतरण) के तहत कार्यरत हैं।
    • उद्देश्य: इसका उद्देश्य बहुराष्ट्रीय कंपनियों को कम कर वाले देशों में अपना लाभ स्थानांतरित करने से रोकना है। इसमें 15 “कार्रवाई” (सिफारिशें) हैं एवं इनमें से एक प्रमुख है- कार्रवाई 7।
    • कार्रवाई 7: कंपनियों को यह दावा करके करों से बचने से रोकती है कि उनका कोई स्थायी प्रतिष्ठान (PE) नहीं है। यहाँ तक कि अप्रत्यक्ष या डिजिटल संचालन पर भी कर लगाया जा सकता है।
  • स्तंभ एक एवं स्तंभ दो: वर्ष 2019 में, देशों ने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि और अधिक सुधारों की आवश्यकता है, विशेष रूप से गूगल, फेसबुक, अमेजन जैसी डिजिटल कंपनियों के लिए। इसलिए स्तंभ एक एवं दो की शुरुआत की गई।
    • स्तंभ एक: बाजार वाले देशों (जहाँ उपभोक्ता हैं) को अधिक कर लगाने के अधिकार देता है, भले ही कंपनियों का वहाँ कोई कार्यालय न हो।
    • स्तंभ दो: 15% वैश्विक न्यूनतम कॉरपोरेट कर लागू करता है, जिससे बहुत कम या शून्य कर वाले कर-मुक्त देशों में लाभ स्थानांतरित होने से रोका जा सके।
  • भारत के शुरुआती कदम: भारत पहले ही इसी तरह के विचार प्रस्तुत कर चुका है:
    • महत्त्वपूर्ण आर्थिक उपस्थिति (SEP): भारत को उन डिजिटल फर्मों पर कर लगाने की अनुमति देता है, जो भारतीय उपयोगकर्ताओं से कमाई करती हैं, भले ही उनका यहाँ कोई कार्यालय न हो।
    • समानीकरण शुल्क (2%): विदेशी कंपनियों द्वारा अर्जित ऑनलाइन विज्ञापन एवं ई-कॉमर्स आय पर कर।

निष्कर्ष

NITI आयोग के प्रस्तावों का उद्देश्य भारत की कर प्रणाली को स्पष्ट, पूर्वानुमानित एवं निवेशक-अनुकूल बनाना है। PE नियमों को सरल बनाकर, वैकल्पिक अनुमानित कराधान लागू करके तथा वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं के साथ तालमेल बिठाकर, भारत मुकदमेबाजी में कमी ला सकता है, निवेशकों का विश्वास बढ़ा सकता है एवं अपने विकसित भारत @2047 विजन के और करीब पहुँच सकता है।

बाराटांग पंक ज्वालामुखी

भारत के एकमात्र पंक ज्वालामुखी (Mud Volcano) जो अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह के बाराटांग द्वीप (Baratang Island) में स्थित है, में 2 अक्टूबर, 2025 को 20 वर्षों बाद उद्गार हुआ।

‘पंक ज्वालामुखी’ क्या हैं?

  • पंक ज्वालामुखी भू-वैज्ञानिक संरचनाएँ हैं, जो पृथ्वी की गहराई से पंक, जल एवं गैसें बाहर निकालती हैं, जिससे गड्ढे निर्मित होते हैं।
    • सिदोआर्जो मडफ्लो (Sidoarjo Mudflow) इंडोनेशिया में स्थित है और यह विश्व का सबसे बड़ा पंक ज्वालामुखी है।

लावा ज्वालामुखियों से अंतर

  • लावा ज्वालामुखियों के विपरीत, पंक ज्वालामुखी से पिघली हुई चट्टान नहीं उत्सर्जित होतीं हैं।
  • इनकी गतिविधि मैग्मा के बजाय कार्बनिक पदार्थों के विघटन से उत्पन्न गैस दबाव से संचालित होती है।
  • लावा ज्वालामुखियों की तुलना में, इनका उद्गार पदार्थ आमतौर पर ठंडा और कम विस्फोटक होता है।

बाराटांग पंक ज्वालामुखी के बारे में 

  • अवस्थिति: बंगाल की खाड़ी में एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल, अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह के बाराटांग द्वीप पर स्थित।
    • यह अंडमान समूह के द्वीपों का हिस्सा है, जो मिडिल और साउथ अंडमान द्वीपों के बीच अवस्थित है।
  • विशेषता: जब गैसें पंक को सतह की ओर लाती हैं, तो गड्ढे निर्मित होते  हैं।
  • यह भारत की एक अद्वितीय भू-वैज्ञानिक विशेषता है, जो पर्यटकों और शोधकर्ताओं दोनों को आकर्षित करती है।

संपीडित जैव-गैस और पोटाश ग्रेन्युल परियोजना

भारत की पहली सहकारी आधारित संपीडित जैव-गैस (Compressed Bio-Gas – CBG) और स्प्रे ड्रायर पोटाश ग्रेन्यूल परियोजना (Spray Dryer Potash Granule Project) का उद्घाटन कोपरगाँव, महाराष्ट्र में किया गया, जो चक्रीय अर्थव्यवस्था के सिद्धांतों को बढ़ावा देती है।

परियोजना के बारे में 

  • पहली सहकारी पहल: यह परियोजना सहकार महर्षि शंकरराव कोल्हे सहकारी चीनी कारखाने में स्थापित की गई है, जो भारत की पहली सहकारी-प्रबंधित CBG और पोटाश परियोजना है।
  • क्षमता (Capacity): यह प्रतिदिन 12 टन CBG और 75 टन पोटाश का उत्पादन करेगी, जिससे इन उत्पादों के विदेशी आयात में कमी आएगी।
  • चक्रीय अर्थव्यवस्था मॉडल: यह परियोजना चीनी कारखाने के अपशिष्ट से संपीडित जैव-गैस और पोटाश ग्रेन्यूल बनाती है, जो सतत् संसाधन उपयोग और ऊर्जा दक्षता का उत्कृष्ट उदाहरण है।
  • विस्तार योजना:  ऐसे ही 15 सहकारी चीनी कारखानों में इस मॉडल को लागू किया जाएगा, जिसमें महाराष्ट्र इस पहल का नेतृत्व करेगा।

‘पोटाश ग्रेन्यूल’ के बारे में 

  • पोटाश ग्रेन्यूल ऐसे उर्वरक (Fertilizers) हैं, जो पोटेशियम से भरपूर होते हैं।
  • इन्हें स्प्रे ड्रायर तकनीक द्वारा चीनी कारखाने के उप-उत्पादों से तैयार किया जाता है।
  • ये मृदा की उर्वरता बढ़ाते हैं, फसल की पैदावार में सुधार करते हैं, और ग्रामीण क्षेत्रों में सतत् कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देते हैं।

संपीडित जैव-गैस (CBG) के बारे में

  • CBG एक नवीकरणीय गैसीय ईंधन है, जो कृषि अपशिष्ट, पशु गोबर, खाद्य अपशिष्ट, और नगर ठोस अपशिष्ट जैसी जैविक सामग्री के अवायवीय अपघटन से तैयार किया जाता है।
  • यह स्वच्छ ईंधन विकल्प के रूप में कार्य करता है, जो जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता घटाता है और कार्बन उत्सर्जन कम करता है।

महत्त्व

  • यह परियोजना ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाती है।
  • किसानों का सशक्तीकरण करती है।
  • परिपत्र अर्थव्यवस्था और एथेनॉल विविधीकरण को बढ़ावा देती है।
  • प्राथमिक कृषि ऋण समितियों और महिला स्व-सहायता समूहों को मजबूत करती है।
  • इसे राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (NCDC) और उच्च न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) द्वारा समर्थन प्राप्त है।

राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम्’ के 150 वर्ष पूर्ण

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय गीत “वंदे मातरम्” के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में देशव्यापी समारोहों को मंजूरी दी है, इसे भारत के स्वतंत्रता संग्राम में इसकी ऐतिहासिक भूमिका की मान्यता के रूप में मनाया जाएगा।

राष्ट्रीय गीत “वंदे मातरम्” के बारे में 

  • रचनाकार एवं भाषा: वंदे मातरम् की रचना बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने संस्कृत भाषा में की थी और इसे सबसे पहले बंगाली लिपि में प्रकाशित किया गया।
  • आधिकारिक दर्जा: 24 जनवरी, 1950 को संविधान सभा ने वंदे मातरम् को राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया, जिससे इसे राष्ट्रीय गान (जन गण मन) के समान स्थान प्राप्त हुआ।
  • उत्पत्ति: यह गीत पहली बार बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय के वर्ष 1882 के उपन्यास ‘आनंदमठ’ में शामिल किया गया था, जो संन्यासी विद्रोह की पृष्ठभूमि पर आधारित है।
    • गीत में छह भक्तिपूर्ण पद हैं, जो मातृभूमि को समर्पित हैं और भक्ति एवं देशभक्ति के भावों का सुंदर मिश्रण प्रस्तुत करते हैं।
  • प्रतीकवाद और अर्थ: गीत में भारत माता को एक दिव्य शक्ति के रूप में व्यक्त किया गया है, जो शक्ति, करुणा और स्वतंत्रता की भावना का प्रतीक है।

“वंदे मातरम्” का ऐतिहासिक महत्त्व 

  • स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका: वंदे मातरम् भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का एक प्रेरणादायक गान बन गया था, जिसने औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध प्रतिरोध, राष्ट्रीय एकता, और गौरव की भावना को प्रज्वलित किया।
  • रबींद्रनाथ टैगोर का योगदान 
    • रबींद्रनाथ टैगोर ने वर्ष 1896 में कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में “वंदे मातरम्” का गायन करके इसे लोकप्रिय बनाया।
    • टैगोर की आवाज में “वंदे मातरम्” की ऐतिहासिक रिकॉर्डिंग आज भी भारत की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में संरक्षित है।

फाइनेंस इंडस्ट्री डेवलपमेंट काउंसिल (FIDC)

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने फाइनेंस इंडस्ट्री डेवलपमेंट काउंसिल (FIDC) को स्व-नियामक संगठन (SRO) का दर्जा प्रदान किया है, जिससे गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) के अनुपालन, नैतिक आचरण और मानकीकरण को सुदृढ़ किया जा सके।

स्व-नियामक संगठन (SRO) के बारे में

  • एक स्व-नियामक संगठन (SRO) एक उद्योग-प्रेरित निकाय होता है, जिसे नियामक संस्था (जैसे-RBI) द्वारा मान्यता दी जाती है, ताकि वह किसी विशिष्ट क्षेत्र में कार्यरत संस्थाओं के आचरण और मानकों की निगरानी कर सके।
  • यह उद्योग प्रतिभागियों और नियामक (RBI) के बीच संपर्क सेतु का कार्य करता है, जिससे वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र का जिम्मेदार और पारदर्शी संचालन सुनिश्चित हो सके।

SRO के उद्देश्य 

  • क्षेत्रीय विकास: उद्योग में व्यावसायिकता, अनुपालन और नैतिक आचरण को बढ़ावा देना।
  • सामूहिक प्रतिनिधित्व: RBI, सरकार और वैधानिक संस्थाओं के समक्ष क्षेत्र की एकीकृत आवाज के रूप में कार्य करना, जिससे सदस्यों के साथ पारदर्शी और समान व्यवहार सुनिश्चित हो।
  • डेटा और नवाचार: RBI को नीति-निर्धारण के लिए क्षेत्रीय डेटा उपलब्ध कराना तथा नवाचार और नए उत्पाद विकास को प्रोत्साहित करना।
  • अनुसंधान और अनुसंधान-संवर्द्धन: क्षेत्र में अनुसंधान, नवाचार और आत्म-शासन की संस्कृति को बढ़ावा देना।

SRO के रूप में मान्यता हेतु पात्रता मानदंड

  • कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत धारा 8 कंपनी (गैर-लाभकारी संस्था) के रूप में पंजीकृत होना आवश्यक।
  • पर्याप्त निवल मूल्य (Net worth) और बुनियादी ढाँचा होना चाहिए ताकि नियामकीय कार्य कुशलता से किए जा सकें।
  • सदस्यता प्रतिनिधित्व व्यापक होना चाहिए ताकि पूरा क्षेत्र शामिल हो सके।
  • फिट एंड प्रॉपर मापदंड: निदेशकों और प्रवर्तकों में ईमानदारी (Integrity), दक्षता (Competence) और वित्तीय सुदृढ़ता होनी चाहिए तथा कोई आपराधिक या कानूनी मामला लंबित नहीं होना चाहिए।
  • मान्यता RBI द्वारा प्रदान की जाती है और यह सतत् अनुपालन और समीक्षा के अधीन होती है।

फाइनेंस इंडस्ट्री डेवलपमेंट काउंसिल (FIDC) के बारे में

  • स्वरूप: भारत की गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) का प्रतिनिधि संगठन।
  • मान्यता: इसे RBI से “इन-प्रिंसिपल रिकग्निशन” प्राप्त है, जिससे यह NBFCs और एसेट मैनेजर्स (AMs) के लिए स्व-नियामक संगठन (SRO) के रूप में कार्य करेगा।
  • भूमिका: यह NBFC क्षेत्र की मान्यता प्राप्त आवाज के रूप में नियामकों, नीति-निर्माताओं और वित्तीय संस्थानों से संवाद करता है।
  • सदस्यता: RBI के नियामकीय ढाँचे की सभी श्रेणियों में कार्यरत NBFCs को प्रतिनिधित्व प्रदान करता है।
  • मिशन
    • भारत में NBFC क्षेत्र के सतत् विकास को प्रोत्साहित करना।
    • उद्योग में स्व-नियमन, अनुपालन और सुशासन  को बढ़ावा देना।
  • कार्य: FIDC एक विश्वसनीय सेतु के रूप में कार्य करता है, जो NBFCs, नियामकों और नीति-निर्माताओं के बीच संवाद सुनिश्चित करता है, जिससे संतुलित क्षेत्रीय विकास हो सके।

नेट-जीरो बैंकिंग एलायंस (NZBA) 

नेट-जीरो बैंकिंग एलायंस (NZBA), जो वर्ष 2050 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन  प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध बैंकों का प्रमुख वैश्विक गठबंधन था, ने सदस्यों के मत के बाद अपने संचालन को समाप्त करने का निर्णय लिया है।

नेट-जीरो बैंकिंग एलायंस (NZBA) के बारे में

  • स्थापना: वर्ष 2021 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम वित्त पहल (UNEP FI) के तहत, ग्लासगो फाइनेंशियल एलायंस फॉर नेट जीरो (GFANZ) के एक भाग के रूप में स्थापित किया गया।
  • उद्देश्य: वैश्विक बैंकों को पेरिस समझौते के लक्ष्य वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5°C तक सीमित करने के अनुरूप अपनी ऋण और निवेश पोर्टफोलियो को संरेखित करने के लिए प्रेरित करना।
  • प्रतिबद्धताएँ 
    • वर्ष 2050 तक नेट-जीरो उत्सर्जन  प्राप्त करने की प्रतिज्ञा।
    • वर्ष 2030 के लिए अंतरिम लक्ष्य निर्धारित करना।
    • प्रगति को पारदर्शी रूप से प्रदर्शित करना।
  • सदस्यता: यह गठबंधन वैश्विक बैंकिंग परिसंपत्तियों के 40% से अधिक का प्रतिनिधित्व करता था।
  • इसमें प्रमुख अमेरिकी और यूरोपीय वित्तीय संस्थान शामिल थे।
  • कोई भी भारतीय बैंक NZBA का सदस्य नहीं था।
  • प्रशासन  
    • इसका संचालन 12-सदस्यीय संचालन समूह और एक अध्यक्ष  द्वारा किया जाता था, जिसमें विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों और व्यवसायिक मॉडलों का प्रतिनिधित्व होता था।
    • सदस्य बैंकों द्वारा चयनित संचालन समूह गठबंधन की रणनीति और निर्णय-निर्माण  की निगरानी करता था।
    • UNEP FI सचिवालय गठबंधन का समर्थन करता था, जबकि संयुक्त राष्ट्र को संचालन समूह में स्थायी सीट प्राप्त थी।

अभ्यास कोंकण – 2025

हाल ही में भारतीय नौसेना और यूनाइटेड किंगडम की रॉयल नेवी के बीच द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास “कोंकण-2025 (KONKAN-2025)” भारत के पश्चिमी तट पर आरंभ हुआ है।

अभ्यास कोंकण के बारे में

  • प्रारंभ: अभ्यास कोंकण शृंखला की शुरुआत वर्ष 2004 में एक साधारण द्विपक्षीय अभ्यास के रूप में हुई थी, जो अब विकसित होकर एक जटिल और बहुआयामी समुद्री अभ्यास बन चुका है।
  • उद्देश्य: इस अभ्यास का उद्देश्य दोनों नौसेनाओं के बीच आपसी समझ, अंतरसंचालन क्षमता और संयुक्त परिचालन क्षमता को विभिन्न समुद्री क्षेत्रों में सुदृढ़ करना है।
  • रणनीतिक महत्त्व: यह अभ्यास भारत की उस व्यापक दृष्टि का हिस्सा है, जिसके तहत भारत समान विचारधारा वाले लोकतंत्रों के साथ रक्षा साझेदारी को मजबूत कर मुक्त, खुला और नियम-आधारित इंडो-पैसिफिक को प्रोत्साहित कर रहा है।
  • अभ्यास के चरण: अभ्यास दो अलग-अलग चरणों में आयोजित किया जाएगा — हार्बर चरण और सी चरण।
    • हार्बर चरण: इसमें व्यावसायिक अंतःक्रियाएँ, क्रॉस-डेक यात्राएँ, खेल प्रतियोगिताएँ और सांस्कृतिक कार्यक्रम शामिल हैं।
    • सी चरण: इस चरण में जटिल समुद्री परिचालन अभ्यास आयोजित किए जाएँगे, जिनमें शामिल हैं;
      • एंटी-एयर, एंटी-सरफेस और एंटी-सबमरीन वारफेयर ऑपरेशन्स
      • जहाज आधारित और तटीय विमान परिचालन
      • सीमैनशिप (Seamanship) अभ्यास और सामरिक अभ्यास।
  • प्रतिभागी सेनाएँ
    • भारत:  स्वदेशी विमानवाहक पोत INS विक्रांत के नेतृत्व में कैरियर बैटल ग्रुप (CBG) भाग ले रहा है। इसके साथ सतही, पनडुब्बी और वायु संसाधन भी शामिल हैं।
    • यूनाइटेड किंगडम: यूके कैरियर स्ट्राइक ग्रुप-25 (CSG-25), जिसका नेतृत्व HMS प्रिंस ऑफ वेल्स कर रहा है। इसमें नॉर्वे और जापान के संसाधन भी शामिल हैं, जिससे अभ्यास में बहुपक्षीय आयाम जुड़ गया है।
  • महत्त्व: अभ्यास कोंकण-2025 भारत और ब्रिटेन के बीच “इंडिया–UK विन 2035” में उल्लिखित समग्र रणनीतिक साझेदारी को प्रतिबिंबित करता है, जो विशेष रूप से रक्षा, प्रौद्योगिकी और समुद्री सहयोग पर केंद्रित है।

कम्प्रेसिव अस्फिक्सिया (Compressive Asphyxia)

हाल ही में अभिनेता-राजनेता विजय की रैली के दौरान हुई करूर भगदड़ में कुछ लोगों की दुखद मृत्यु हो गई। यह घटना भीड़-भाड़ वाले स्थानों में होने वाली कम्प्रेसिव अस्फिक्सिया (दबावजनित श्वासरोध) के खतरों को उजागर करती है।

अस्फिक्सिया (Asphyxia) के बारे मे

  • अस्फिक्सिया वह स्थिति है, जिसमें शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिलती, जिससे सामान्य श्वसन प्रक्रिया बाधित होती है। इससे हाइपोक्सिया (ऑक्सीजन की कमी) होती है, जो बेहोशी या मृत्यु तक का कारण बन सकती है।
    • सामान्य स्थिति में एक स्वस्थ वयस्क व्यक्ति प्रति मिनट लगभग 200–250 मिलीलीटर ऑक्सीजन का उपभोग करता है।

अस्फिक्सिया के प्रकार

  • मैकेनिकल अस्फिक्सिया (Mechanical Asphyxia)
  • ट्रॉमैटिक अस्फिक्सिया (Traumatic Asphyxia)
  • पेरिनेटल अस्फिक्सिया (Perinatal Asphyxia)
  • कंप्रेसिव अस्फिक्सिया (Compressive Asphyxia)
  • अन्य प्रकार: सफोकेशन (Suffocation), केमिकल अस्फिक्सिया (Chemical Asphyxia), स्ट्रैंग्युलेशन (Strangulation), और ड्राउनिंग (Drowning)।

कंप्रेसिव अस्फिक्सिया  के बारे में

  • जब छाती या पेट पर बाहरी दबाव (External Pressure) इतना अधिक हो जाता है कि डायाफ्राम सामान्य रूप से कार्य नहीं कर पाता, जिससे साँस लेने और कार्बन डाइऑक्साइड निकालने की प्रक्रिया बाधित हो जाती है, तब यह स्थिति कंप्रेसिव अस्फिक्सिया कहलाती है।
  • कारण
    • भीड़ का दबाव: सघन भीड़ में लोग एक-दूसरे पर दबाव डालते हैं, जिससे साँस रुक जाती है।
    • सीधा दबाव: किसी व्यक्ति या वस्तु द्वारा छाती या पेट पर बैठने, घुटने टेकने या दबाव डालने से।
  • रोकथाम के उपाय 
    • भीड़ संबंधी जागरूकता: बाहर निकलने के रास्तों पर ध्यान देना, अत्यधिक भीड़ वाले क्षेत्रों से बचाव और सुरक्षित दिशा में तिरछे बढ़ना।
    • तैयारी: कार्यक्रम से पहले स्थान का नक्शा देखना और यदि स्थिति असुरक्षित लगे तो समय से पहले निकल जाएँ।
    • सुरक्षित भीड़ घनत्व: यू.के. की ग्रीन गाइड टू सेफ्टी ऐट स्पोर्ट्स ग्राउंड के अनुसार, 10 वर्ग मीटर क्षेत्र में अधिकतम 47 व्यक्ति (यानी 4.7 व्यक्ति प्रति वर्ग मीटर) से अधिक नहीं होने चाहिए।
  • जोखिम: अत्यधिक भीड़ के कारण ऑक्सीजन की कमी (Hypoxia) और कार्बन डाइऑक्साइड का बढ़ना (Hypercapnia) हो सकता है, जिससे श्वसन में समस्या (Respiratory Distress) उत्पन्न होती है।
  • महत्त्व: कंप्रेसिव अस्फिक्सिया (Compressive Asphyxia) के कारणों को समझना और रोकथाम के उपाय अपनाना अत्यंत आवश्यक है ताकि भगदड़ और भीड़-भाड़ वाली घटनाओं में जनहानि को रोका जा सके।

जेनोबायोलॉजी

जेनोबायोलॉजी (Xenobiology) एक उभरता हुआ वैज्ञानिक क्षेत्र है, जो ऐसे जीवन रूपों का अध्ययन करता है, जो पृथ्वी पर पाए जाने वाले जैविक प्रणालियों से मूल रूप से भिन्न होते हैं।

जेनोबायोलॉजी क्या है

  • उत्पत्ति: जेनोबायोलॉजी (Xenobiology) ग्रीक शब्द xenos से बना है, जिसका अर्थ है ‘बाहरी’ या ‘एलियन’, और इसका शाब्दिक अर्थ है ‘बाह्य जीवन का अध्ययन
  • यह अध्ययन करता है कि क्या जीवन हमेशा DNA, RNA और पृथ्वी के 20 अमीनो एसिड से बने प्रोटीन पर निर्भर होना चाहिए या क्या अन्य रासायनिक प्रणालियाँ भी संभव हैं।
    • वैज्ञानिक उपलब्धियाँ:  वैज्ञानिकों ने ऐसे जीवाणु (Bacteria) तैयार किए हैं, जिनमें A, T, C और G के अलावा अतिरिक्त जेनेटिक अक्षर (Genetic Letters) हैं, जिससे नए संरचनाओं और कार्यों वाले प्रोटीन बनाए जा सके।
  • यह क्षेत्र रसायन विज्ञान, आनुवंशिकी  और खगोल जीवविज्ञान  के बीच एक सेतु का कार्य करता है और यह जाँचता है कि ब्रह्मांड में जीवन के कितने भिन्न स्वरूप संभव हैं।
  • जेनोबायोलॉजी का उपयोग ऐसे सूक्ष्मजीव विकसित करने में किया जा सकता है, जो दवाइयाँ बना सकें या विषाक्त अपशिष्ट (Toxic waste) को सुरक्षित रूप से विघटित कर सकें क्योंकि ये नियंत्रित प्रयोगशाला परिस्थितियों के बाहर जीवित नहीं रह सकते।

चक्रवात शक्ति

हाल ही में भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने पुष्टि की कि चक्रवात “शक्ति” (Cyclone Shakhti) का निर्माण उत्तर-पूर्वी अरब सागर में हुआ है, यह भारतीय तट से दूर हट रहा है।

चक्रवात शक्ति के बारे में

  • यह एक गंभीर चक्रवाती तूफान (Severe Cyclonic storm) है, जिसका नाम श्रीलंका ने रखा है।
  • अवस्थिति: 3 अक्टूबर, 2025 को यह गुजरात के द्वारका  से लगभग 340 किमी. पश्चिम में था (अक्षांश 22.0°N)।
  • गति दिशा: इसका प्रारंभिक मार्ग पश्चिम-उत्तर-पश्चिम था, जो बाद में पश्चिम-दक्षिण-पश्चिम की ओर मुड़ते हुए उत्तर एवं मध्य अरब सागर के मध्य भागों तक पहुँचने की संभावना है।
  • चक्रवात निर्माण की परिस्थितियाँ: चक्रवात गर्म उष्णकटिबंधीय जल में निर्मित होते हैं, जहाँ समुद्र का तापमान लगभग 26–27 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक होता है, ऊर्ध्वाधर वायु गति अंतराल (वर्टिकल विंड शियर) न्यूनतम होता है और घूर्णन के लिए पर्याप्त कोरिओलिस बल मौजूद होता है।

अरब सागर में चक्रवातों की बढ़ती आवृत्ति

  • समुद्री तापमान में वृद्धि: अरब सागर का समुद्री सतह तापमान (Sea Surface Temperature) लगातार बढ़ रहा है, जिससे यह क्षेत्र अब अधिक चक्रवात-प्रवण होता जा रहा है।
  • ऐतिहासिक तुलना: पहले बंगाल की खाड़ी (Bay of Bengal) की तुलना में अरब सागर में चक्रवात कम निर्मित होते थे।
  • हाल के चक्रवात: पिछले कुछ वर्षों में ताउते (वर्ष 2021) और बिपरजॉय (वर्ष 2023) जैसे गंभीर चक्रवात भारत के पश्चिमी तट पर आए, जो इनकी बढ़ती प्रवृत्ति को दर्शाते हैं।

संदर्भ

केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री धन–धान्य कृषि योजना (PMDDKY) के तहत 100 आकांक्षी कृषि जिलों के विकास की घोषणा की है।

प्रधानमंत्री धन–धान्य कृषि योजना (PMDDKY) के बारे में

  • उद्देश्य (Objective): यह योजना उन 100 जिलों को उन्नत करने का लक्ष्य रखती है, जहाँ कृषि उत्पादकता कम, शस्य गहनता (Cropping Intensity) सीमित, और संस्थागत ऋण तक पहुँच अपर्याप्त है।
  • प्रेरणा: इस योजना की अवधारणा नीति आयोग के आकांक्षी जिला कार्यक्रम (Aspirational District Programme) से प्रेरित है।
  • क्षेत्रीय फोकस: यह योजना पहली ऐसी पहल है, जो केवल कृषि और उससे संबद्ध क्षेत्रों पर केंद्रित है।

प्रधानमंत्री धन–धान्य कृषि योजना (PMDDKY) की मुख्य विशेषताएँ

  • जिलों के चयन के मानदंड
    • 100 आकांक्षी कृषि जिलों की पहचान निम्नलिखित मानदंडों पर की गई —
      • प्रमुख फसलों की कम उत्पादकता,
      • मध्यम फसल तीव्रता, जो कृषि क्षमता के अपर्याप्त उपयोग को दर्शाती है,
      • संस्थागत ऋण तक औसत से कम पहुँच, जिससे कृषि निवेश बाधित होता है।
  • प्रत्येक राज्य में चयनित जिलों की संख्या शुद्ध फसल क्षेत्र (net cropped area) और संचालित जोतों (operational holdings) की संख्या के आधार पर तय की गई, ताकि क्षेत्रीय संतुलन बना रहे।
  •  कार्यान्वयन तंत्र
    • संविलयन दृष्टिकोण (Convergence Approach):  इस योजना के लिए कोई पृथक बजटीय आवंटन नहीं होगा। इसे 11 मंत्रालयों/विभागों की 36 मौजूदा योजनाओं के संविलयन (Convergence) के माध्यम से लागू किया जाएगा।
    • वित्तीय प्रावधान: इस पहल का अनुमानित वार्षिक व्यय लगभग ₹24,000 करोड़ होगा, जो मौजूदा कार्यक्रमों के बजट से ही प्राप्त किया जाएगा।
    • कार्यान्वयन एजेंसी: कुल 36 योजनाओं में से 19 योजनाएँ केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण विभाग (DAFW) के तहत लागू की जाएँगी।
  • जिला स्तर की योजना: प्रत्येक जिले को अपनी स्थिति के अनुसार, एक जिला कृषि विकास योजना (DADP) तैयार करनी होगी, ताकि गतिविधियों का समन्वित और आवश्यकतानुसार कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जा सके।

संदर्भ

2 अक्टूबर, 2025 को देशभर में आयोजित विशेष ग्राम सभाओं के दौरान आदिवासी ग्रामों और टोलों ने औपचारिक रूप से “जनजातीय ग्राम दृष्टिकोण 2030 घोषणा” को अपनाया। यह पहल आदि कर्मयोगी अभियान के अंतर्गत प्रारंभ हुई है, जो केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय के तहत एक राष्ट्रीय जनजातीय नेतृत्व एवं सुशासन पहल है।

मुख्य तथ्य

  • यह कदम विकसित भारत@2047 की व्यापक दृष्टि से संबंधित  है और जनजातीय गौरव वर्ष (15 नवंबर, 2024 – 15 नवंबर, 2025) के उत्सव का एक प्रमुख मील का पत्थर माना गया है।

जनजातीय गौरव वर्ष 

  • घोषणा: भारत सरकार द्वारा 
  • अवधि: 15 नवंबर, 2024 से 15 नवंबर, 2025 तक
  • उद्देश्य: जनजातीय विरासत का उत्सव मनाना तथा स्व-शासन, क्षमता निर्माण और जनभागीदारी आधारित विकास  को बढ़ावा देना।

जनजातीय ग्राम दृष्टिकोण 2030 

  • स्वीकृति:  2 अक्टूबर, 2025 (गांधी जयंती) को आयोजित विशेष ग्राम सभाओं के माध्यम से।
  • उद्देश्य
    • प्रत्येक आदिवासी गाँव को अगले दशक (2025–2035) के लिए अपनी विकास दृष्टि तैयार करने में सक्षम बनाना।
    • स्थानीय प्राथमिकताओं को विकसित भारत@2047 के राष्ट्रीय लक्ष्यों से जोड़ना।
  • भागीदारी का पैमाना
    • कवरेज: 300 जिले और 46,040 गाँव
    • प्रतिभागी: 78 लाख से अधिक नागरिकों ने ग्राम दृष्टि निर्माण में भाग लिया।
    • कार्यबल: 7.5 लाख आदि साथी और सहयोगी योजना के क्रियान्वयन में शामिल रहे।
    • लाभ वितरण: 23 लाख लाभार्थियों को आधार, आयुष्मान भारत, पीएम किसान, और जनधन कार्ड जैसी आवश्यक सेवाएँ प्रदान की गईं।

जनजातीय ग्राम दृष्टिकोण 2030 घोषणा की मुख्य विशेषताएँ

  • समुदाय आधारित विकास: ग्रामवासियों ने स्थानीय आवश्यकताओं और अवसरों की पहचान के लिए ‘ट्रांसेक्ट वॉक’, फोकस्ड ग्रुप डिस्कशन’ (FGDs) और ‘गैप एनालिसिस’ का आयोजन किया।
  • ग्राम-स्तरीय प्राथमिकताएँ:  हर घोषणा-पत्र में शिक्षा, स्वास्थ्य, आजीविका, अवसंरचना तथा सामाजिक एवं वित्तीय समावेशन जैसे क्षेत्रों में कार्यात्मक लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं।
  • सरकारी योजनाओं के साथ एकीकरण: ग्राम कार्य योजनाओं को PM JANMAN, धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान 2.0 और अन्य केंद्र एवं राज्य सरकार की योजनाओं से जोड़ा गया है ताकि समन्वित विकास सुनिश्चित हो सके।
  • संस्थागत तंत्र: प्रत्येक आदिवासी गाँव में एक आदि सेवा केंद्र स्थापित किया जाएगा, जो एकल-खिड़की नागरिक सेवा केंद्र के रूप में कार्य करेगा। ग्रामवासी प्रत्येक सप्ताह एक घंटा “आदि सेवा समय” के रूप में स्वैच्छिक श्रमदान करेंगे।
  • प्रौद्योगिकी-सक्षम शासन: AI-संचालित “आदि वाणी ऐप (Adi Vaani App)” स्थानीय भाषाओं में जनजातीय समुदायों और अधिकारियों के मध्य वास्तविक समय में संचार सुनिश्चित करता है। इससे योजनाओं की अंतिम लक्ष्य डिलीवरी और फीडबैक प्रणाली मजबूत होती है।

दृष्टिकोण 2030 फ्रेमवर्क के क्रियान्वयन हेतु आधारभूत नेतृत्त्वकर्त्ता मॉडल 

  • प्रारंभ: 10 जुलाई, 2025
  • प्रशिक्षण की सीमा: 20 लाख से अधिक अधिकारी, स्वयं सहायता समूह (SHG) महिलाएँ और जनजातीय युवा 7-दिवसीय गवर्नेंस प्रोसेस लैब्स के माध्यम से आदि कर्मयोगी के रूप में प्रशिक्षित किए गए।
  • संस्थागत ढाँचा
    • 1 लाख गाँव – 1 दृष्टि: प्रत्येक गाँव अपनी अलग विकास दृष्टि तैयार करेगा।
    • 1 लाख आदि सेवा केंद्र: नागरिक सेवाओं के प्रावधान और प्रगति की निगरानी हेतु।
    • ग्राम-स्तरीय शिकायत निवारण: स्थानीय स्तर पर समस्याओं का समाधान और योजनाओं का प्रभावी कवरेज सुनिश्चित किया जाएगा।

घोषणा का महत्त्व

  • सशक्तीकरण: जनजातीय नागरिकों को शासन में सक्रिय भागीदार के रूप में स्थापित करता है।
  • विकेंद्रीकरण: ग्राम सभा आधारित योजना प्रक्रिया के माध्यम से भागीदारी लोकतंत्र  को सुदृढ़ करता है।
  • एकीकरण: जनजातीय विकास को विकसित भारत@2047 के लक्ष्यों के अनुरूप लाता है।
  • डिजिटल समावेशन: आदि वाणी ऐप शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ाता है।
  • सामाजिक समानता: ऐतिहासिक रूप से वंचित समुदायों को अपने भविष्य की दिशा निर्धारित करने का अधिकार प्रदान करता है।
  • संवैधानिक अनुरूपता: यह पहल 73वें संविधान संशोधन और PESA अधिनियम के सिद्धांतों के अनुरूप है, जो अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभा आधारित निर्णय प्रक्रिया को सशक्त बनाते हैं।

संदर्भ

नासा के कैसिनी (Cassini) अंतरिक्ष यान से प्राप्त नवीनतम आँकड़ों के विश्लेषण में यह जानकारी प्राप्त हुई है कि शनि के उपग्रह एन्सेलाडस (Enceladus) की बर्फीली फुहारों (Icy Plumes) में और भी जटिल कार्बनिक अणु  मौजूद हैं। यह खोज इस संभावना को और बल देती है कि एन्सेलाडस पर जीवन के अनुकूल परिस्थितियाँ मौजूद हो सकती हैं।

एन्सेलाडस उपग्रह के बारे में 

  • एन्सेलाडस शनि का एक छोटा, हिमाच्छादित उपग्रह है, जो अंतरिक्ष में जलवाष्प और बर्फ के कणों द्वारा निर्मित संकेंद्रित धाराएँ उत्सर्जित करता है।
  • यह संकेत देता है कि इसकी बर्फीली परत के नीचे एक जलीय महासागर मौजूद है।
  • यह शनि के सबसे आंतरिक उपग्रहों में से एक है, जो ग्रह से लगभग 2,38,000 किमी. की दूरी पर (शनि के E-रिंग) की कक्षा में परिक्रमण करता है।
  • इसका नाम यूनानी पौराणिक कथाओं के एक दैत्य एन्सेलाडस (Enceladus) के नाम पर रखा गया है।

मुख्य विशेषताएँ

  • व्यास: 504 किमी. (लगभग पृथ्वी के चंद्रमा का सातवाँ भाग)।
  • “टाइगर स्ट्राइप्स” (Tiger Stripes): दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र में पाई जाने वाली दरारें जिनसे क्रायोवॉल्कैनिक (बर्फीले ज्वालामुखी) गतिविधियों के कारण गीजर जैसी फुहारें उत्सर्जित होती हैं।
  • प्रतिबिंबित सतह एवं ज्वारीय ऊष्मा:  एन्सेलाडस सौरमंडल की सबसे चमकीली वस्तुओं में से एक है (ताजी बर्फ के कारण उच्च अल्बीडो)।
  • शनि के साथ इसका ज्वारीय परस्पर क्रिया (Tidal Interaction) आंतरिक ऊष्मा उत्पन्न करती है, जो इसके उपसतही महासागर को तरल अवस्था में बनाए रखती है।

प्रमुख खोजें

  • जीवन की संभावना: नासा के कैसिनी अंतरिक्ष यान ने एन्सेलाडस की फुहारों में जलवाष्प, लवण, कार्बनिक अणु और हाइड्रोथर्मल गतिविधियों का पता लगाया है, जो यहाँ जीवन के अनुकूल परिस्थितियों की संभावना को दर्शाता है।
  • एन्सेलाडस उन खगोलीय पिंडों (जैसे यूरोपा और टाइटन) में शामिल है, जिनमें उपसतही महासागर हैं और जिनमें जीवन के लिए आवश्यक रासायनिक परिस्थितियाँ मौजूद हैं।

कैसिनी–ह्यूजेंस मिशन

  • यह मिशन नासा (NASA), यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) और इटैलियन स्पेस एजेंसी (ASI) का संयुक्त उपक्रम था।
  • प्रक्षेपण (Launch): 15 अक्टूबर, 1997 को किया गया और वर्ष 2004 में शनि की कक्षा में पहुँचा।
  • उद्देश्य (Purpose):  शनि ग्रह, उसके चंद्रमाओं और वलयों (Rings) का अध्ययन करना।
  • घटक (Components)
    • कैसिनी ऑर्बिटर (NASA): शनि वलयों, वायुमंडल और चुंबकीय क्षेत्र का अध्ययन किया।
    • ह्यूजेंस लैंडर (ESA): शनि के सबसे बड़े चंद्रमा टाइटन (Titan) पर उतरा।
  • अवधि (Duration): लगभग 20 वर्षों तक कार्य किया,  जिनमें से 13 वर्ष शनि की कक्षा में (वर्ष 2004–2017) रहा।
  • समाप्ति: 15 सितंबर, 2017 को शनि के वायुमंडल में नियंत्रित अवतरण (Controlled Descent) कर ‘कैसिनी मिशन’ समाप्त किया गया, ताकि संभावित रूप से जीवन योग्य चंद्रमाओं को प्रदूषण से बचाया जा सके।
  • वर्ष 2008 में अपनी सबसे निकट उड़ान के दौरान, कैसिनी ने एन्सेलेडस के दक्षिणी ध्रुव के पास दरारों से निकल रहे बर्फ और गैस के गुबार के बीच से सीधे उड़ान भरी थी, तथा उत्सर्जित पदार्थ के प्रत्यक्ष नमूने एकत्र किए थे।

अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष 

  • नए कार्बनिक अणुओं की खोज: कैसिनी के डेटा के पुनः विश्लेषण से कार्बन-आधारित जटिल कार्बनिक यौगिकों की उपस्थिति की पुष्टि हुई।
    • नए पहचाने गए यौगिकों में अमीनो एसिड के पूर्ववर्ती तत्त्व शामिल हैं, जो प्रोटीन के आवश्यक घटक हैं।
    • जटिल कार्बनिक अणुओं की कई नई श्रेणियों का पता लगाया गया, जिनमें रासायनिक संरचनाओं और गुणों की एक विस्तृत शृंखला शामिल थी।
  • संभावित जैविक प्रासंगिकता: ये अणु उन रासायनिक प्रतिक्रियाओं में मध्यवर्ती की भूमिका निभा सकते हैं, जो पेप्टाइड्स और प्रोटीन जैसी जैविक रूप से महत्त्वपूर्ण संरचनाएँ निर्मित होती हैं।
    •  हालाँकि वैज्ञानिकों ने स्पष्ट किया कि ऐसे अणु अजैविक (Abiotic) प्रक्रियाओं से भी उत्पन्न हो सकते हैं।
  • नमूना संग्रह पद्धति: कैसिनी ने लगभग 64,800 किमी./घंटा की गति से फुहारों के मध्य से उड़ान भरकर सीधे उपसतही महासागर से निकले ताजे बर्फ कणों के नमूने एकत्र किए।
    • ये कण उत्सर्जन के कुछ ही मिनटों के भीतर एकत्र किए गए, इसलिए वे कॉस्मिक रेडिएशन से अप्रभावित रहे और महासागर की वास्तविक रासायनिक संरचना का पता लगाने में सहायक हुए।

आवासीय योग्यता के संकेत

  • कैसिनी के निष्कर्षों ने यह प्रमाणित किया कि एन्सेलाडस पर जीवन के तीन आवश्यक तत्त्व मौजूद हैं —
    • जल: उपसतही महासागर और फुहारों से पुष्टि।
    • ऊर्जा स्रोत: चंद्रमा की चट्टानी कोर से उत्सर्जित हाइड्रोथर्मल वेंट्स ऊष्मा और खनिज प्रदान करते हैं।
    • कार्बनिक तत्त्व: जीवन की रासायनिक प्रक्रियाओं के लिए आवश्यक कार्बन-आधारित यौगिक
  • इन हाइड्रोथर्मल प्रणालियों की संरचना पृथ्वी के महासागरों के गहरे तल में पाए जाने वाले हाइड्रोथर्मल वेंट्स जैसी है, जहाँ वैज्ञानिकों का मानना है कि जीवन की उत्पत्ति सबसे पहले हुई थी।

संदर्भ

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने तटस्थ रुख के साथ रेपो दर को 5.50% पर अपरिवर्तित रखा है। मौद्रिक नीति समिति (MPC) के अनुसार, RBI ने भारत के बैंकिंग क्षेत्र के लचीलेपन और प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के उद्देश्य से चार प्रमुख उपाय किए हैं।

RBI की नीतिगत दरें और दृष्टिकोण 

  • मौद्रिक नीति रुख
    • उदार: RBI ब्याज दरों को कम करके और तरलता सुनिश्चित करके विकास को प्रोत्साहित करने पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • तटस्थ: RBI विकास और मुद्रास्फीति दोनों को संतुलित रखते हुए, परिस्थितियों में परिवर्तन के अनुसार किसी भी दिशा में कदम उठाने के लिए तैयार रहता है।
    • आक्रामक: RBI प्रायः ब्याज दरों में वृद्धि या तरलता में कमी करके मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने को प्राथमिकता देता है।
  • रेपो दर (5.5%): वह दर, जिस पर RBI सरकारी प्रतिभूतियों के बदले वाणिज्यिक बैंकों को अल्पकालिक निधियाँ उधार देता है।
    • यह मौद्रिक नीति की दिशा का संकेत देने के लिए उपयोग की जाने वाली मुख्य नीति दर है।
  • स्थायी जमा सुविधा (Standing Deposit Facility- SDF) – 5.25%: वह दर जिस पर बैंक बिना किसी संपार्श्विक के RBI के पास अधिशेष निधियाँ जमा करते हैं।
    • यह नीति गलियारे के आधार के रूप में कार्य करती है, अतिरिक्त तरलता को अवशोषित करती है।
  • सीमांत स्थायी सुविधा (Marginal Standing Facility- MSF) – 5.75%: वह दर जिस पर बैंक तरलता की कमी का सामना करने पर RBI से ‘ओवरनाइट’ निधियाँ उधार लेते हैं।
  • बैंक दर (5.75%): वह दर जिस पर RBI बैंकों को दीर्घकालिक निधियाँ उधार देता है। 
    • यह MSF के अनुरूप रहती है और बैंकों के लिए समग्र उधार लागत को दर्शाती है।
  • पॉलिसी कॉरिडोर: SDF (निचली सीमा) और MSF (ऊपरी सीमा) के बीच की सीमा, जिसमें रेपो दर बीच में होती है।

संबंधित तथ्य

  • उद्देश्य: ऋण प्रवाह को बढ़ाना, बैंकिंग लचीलेपन को मजबूत करना, विनियमों को सरल बनाना और भारतीय रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण को बढ़ावा देना।
  • घोषणा का समय: ये घोषणाएँ वैश्विक व्यापार तनाव, टैरिफ अनिश्चितताओं और भू-राजनीतिक अस्थिरता के मध्य की गई हैं, जो वस्तुओं और मुद्रा की गतिविधियों को प्रभावित करती हैं।
  • वैश्विक प्रतिकूलताओं के बावजूद, घरेलू खपत, सार्वजनिक निवेश और स्थिर मुद्रास्फीति के समर्थन से भारत का विकास परिदृश्य मजबूत बना हुआ है।

RBI MPC बैठक 2025-26 के मुख्य निष्कर्ष

  • नीतिगत निर्णय – रेपो दर अपरिवर्तित: MPC ने सर्वसम्मति से रेपो दर को 5.5 प्रतिशत पर स्थिर रखने के लिए मतदान किया, जिसमें SDF 5.25 प्रतिशत और MSF और बैंक दर 5.75 प्रतिशत पर स्थिर रही।
    • रुख तटस्थ बना हुआ है।
  • मुद्रास्फीति का पूर्वानुमान: RBI ने वित्त वर्ष 2025-26 के लिए अपने CPI मुद्रास्फीति पूर्वानुमान को 3.1% से घटाकर 2.6% कर दिया है।
    • कारण: यह गिरावट GST दरों में कटौती, खाद्य पदार्थों की सस्ती कीमतों और खाद्यान्न भंडार के बेहतर होने के कारण है।

वैश्विक एजेंसियों ने विकास की पुष्टि की: कई वैश्विक एजेंसियों ने भारत की मजबूत आर्थिक विकास संभावनाओं को बनाए रखा है, जो वैश्विक अनिश्चितताओं के मध्य देश की लचीलेपन को उजागर करता है। 

  • IMF (वित्त वर्ष 2025-26: 6.4%), फिच (वित्त वर्ष 2025-26: 6.9%, वित्त वर्ष 27: 6.3%), S&P ग्लोबल (वित्त वर्ष 2025-26: 6.5%), संयुक्त राष्ट्र (वित्त वर्ष 2025-26: 6.3%, वित्त वर्ष 27: 6.4%), और ओईसीडी (वित्त वर्ष 2025-26: 6.7%)।

    • GST को युक्तिसंगत बनाने से कीमतों को कम करने और करों को सरल बनाने में मदद मिली है, जिससे उपभोक्ताओं और व्यवसायों दोनों को लाभ हुआ है। हालाँकि, भारतीय निर्यात पर नए अमेरिकी शुल्क (50% तक) बाहरी माँग को नुकसान पहुँचा सकते हैं और निर्यात वृद्धि को धीमा कर सकते हैं।
  • विकास अनुमान: वित्त वर्ष 2025-26 के लिए भारत की GDP वृद्धि दर का अनुमान 6.5% से बढ़ाकर 6.8% कर दिया गया है।

  • वैश्विक माँग स्थिर: भारत का चालू खाता घाटा वित्त वर्ष 2025-26 की पहली तिमाही में तेजी से घटकर GDP का 0.2% रह गया, जिसे मजबूत सेवा निर्यात और 35.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर के रिकॉर्ड प्रेषण से मदद मिली।
    • वैश्विक व्यापार अनिश्चितताओं के बावजूद, निर्यात में 2.5% और आयात में 2.1% (अप्रैल-अगस्त 2025) की वृद्धि हुई, जबकि सेवा निर्यात में दोहरे अंकों की वृद्धि देखी गई।
    • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) 37.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा, जो निवेशकों के विश्वास को दर्शाता है।
      • प्रमुख निवेश सिंगापुर, अमेरिका, मॉरीशस, संयुक्त अरब अमीरात और नीदरलैंड से हुआ।
      • शुद्ध प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment- FDI) प्रवाह जुलाई में 38 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुँच गया।
    • विदेशी मुद्रा भंडार 700.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर है, जो 11 महीने के आयात को कवर करने के लिए पर्याप्त है, जो आर्थिक तनावों के विरुद्ध एक बफर के रूप में कार्य करता है।
  • रुपये की स्थिरता: रुपया एक सीमा तक स्थिर रहा है, लेकिन वैश्विक अर्थव्यवस्था में बदलाव, व्यापार तनाव और तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव के कारण यह अस्थायी है।
  • तरलता और संचरण: बैंकिंग प्रणाली में तरलता बनी रही है, अगस्त से अब तक ₹2.1 लाख करोड़ का दैनिक अधिशेष रहा है।
    • RBI को उम्मीद है कि आने वाले महीनों में 75 आधार अंकों के नकद आरक्षित अनुपात (Cash Reserve Ratio- CRR) में कटौती और सरकारी खर्च के बाद तरलता में और सुधार होगा।

संचरण: वह प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से RBI की नीतिगत दर में परिवर्तन बैंकों द्वारा ऋण और जमा पर ली जाने वाली ब्याज दरों को प्रभावित करता है।

    • ब्याज दर संचरण: नीतिगत दर में परिवर्तन से उधार दरों पर पड़ने वाला प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है:
      • नई ऋण दरों में 58 आधार अंकों (0.58%) की गिरावट आई है।
      • जमा दरें 106 आधार अंकों (1.06%) कम हैं।

पूँजी पर्याप्तता अनुपात (Capital Adequacy Ratio -CAR): पूँजी की वह राशि जिसे बैंक संभावित घाटों से सुरक्षा के लिए आरक्षित रखता है, उसे पूँजी पर्याप्तता अनुपात (CAR) कहा जाता है। उच्च CAR का अर्थ है कि बैंक अधिक सुरक्षित और स्थिर है।

  • वित्तीय स्थिरता: भारत की वित्तीय प्रणाली (बैंक और NBFC) स्थिर और अच्छी तरह से पूँजीकृत बनी हुई है।
    • बैंक: पूँजी पर्याप्तता अनुपात 17.5% रहा और सकल NPA (त्रुटिपूर्ण ऋण) घटकर 2.22% रह गया – जो एक दशक का सबसे निचला स्तर है।
    • NBFC (गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ): पूँजी अनुपात 25.7% पर रहा, जबकि NPA 2.23% पर सबसे कम रहा।

5 व्यापक श्रेणियों के अंतर्गत प्रणाली को मजबूत करने के लिए कदम

A. बैंकों के लिए RBI के उपाय (बैंकिंग सुधार)

B. ऋण प्रवाह को आसान बनाने के उपाय (आसान ऋण)

C. व्यापार सुगमता (सरलीकृत नियम)

D. सरलीकृत विदेशी मुद्रा और बाह्य उधार नियम

E. उपभोक्ता-उन्मुख सुधार (दैनिक बैंकिंग के लिए)

F. रुपये को मजबूत करना (अंतरराष्ट्रीयकरण के उपाय)।

  • अतिरिक्त उपाय – प्रणाली को मजबूत करने के लिए 22 कदम: दर निर्णयों के साथ-साथ, RBI ने बैंकिंग को आधुनिक बनाने और विनियमन को सरल बनाने के लिए 22 प्रमुख सुधारों का अनावरण किया।

बैंकों के लिए RBI के 4 उपाय (बैंकिंग सुधार)

  1. अपेक्षित ऋण हानि (Expected Credit Loss- ECL) ढाँचे का कार्यान्वयन: RBI 1 अप्रैल, 2027 से सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (SFB, PB और RRB को छोड़कर) और अखिल भारतीय वित्तीय संस्थानों (AIFIs) के लिए अपेक्षित ऋण हानि (Expected Credit Loss- ECL) प्रावधान प्रणाली शुरू करेगा, जिसकी संक्रमण अवधि 31 मार्च, 2031 तक होगी।
    • प्रभाव: यह भारत को वैश्विक IFRS मानदंडों के अनुरूप बनाता है तथा ऋण तनावग्रस्तता की शीघ्र पहचान को प्रोत्साहित करता है, जिससे पारदर्शिता और वित्तीय लचीलेपन में सुधार होता है।

अपेक्षित ऋण हानि (Expected Credit Loss- ECL) ढाँचा

  • बैंकों के लिए ऋण हानियों का वास्तविक रूप से घटित होने से पहले ही अनुमान लगाने का एक दूरदर्शी तरीका।
  • यह पुराने ‘उपगत हानि मॉडल’ का स्थान लेता है, जहाँ बैंकों को हानियों के लिए प्रावधान करना होता है।
  • यह बैंकों को तनाव का शीघ्र पता लगाने, बेहतर बैलेंस शीट बनाए रखने और जमाकर्ताओं की सुरक्षा करने में मदद करता है।
  • बैंक वित्तीय परिसंपत्तियों (मुख्य रूप से ऋण, जिनमें अपरिवर्तनीय ऋण प्रतिबद्धताएँ शामिल हैं, और परिपक्वता तक धारित या बिक्री के लिए उपलब्ध के रूप में वर्गीकृत निवेश) को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत करते हैं:
    • चरण 1: वे वित्तीय परिसंपत्तियाँ, जिनमें रिपोर्टिंग तिथि पर ऋण जोखिम में उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई है या जिनका ऋण जोखिम कम है।
    • चरण 2: वे वित्तीय उपकरण हैं, जिनमें ऋण जोखिम में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, लेकिन जिनमें हानि के वस्तुनिष्ठ प्रमाण नहीं हैं।
    • चरण 3: वे वित्तीय परिसंपत्तियाँ जिनमें रिपोर्टिंग तिथि पर हानि के वस्तुनिष्ठ प्रमाण हैं।

  • बैंकों पर प्रतिबंध हटाना: अब बैंकों को यह तय करने की छूट होगी कि कौन-सी सेवाएँ वे स्वयं या समूह संस्थाओं द्वारा प्रदान की जाएँगी।
    • प्रभाव: यह कदम बैंक बोर्डों द्वारा रणनीतिक निर्णय लेने को प्रोत्साहित करता है, नियामक सूक्ष्म प्रबंधन को कम करता है और बैंकों को बाजार की आवश्यकताओं के अनुसार अपने व्यावसायिक मॉडल तैयार करने की अनुमति देता है।
  • जोखिम-आधारित जमा बीमा प्रीमियम की शुरुआत: RBI, जमा बीमा और ऋण गारंटी निगम (DICGC) द्वारा लगाए जाने वाले ‘फ्लैट-रेट प्रीमियम’ को जोखिम-आधारित प्रीमियम प्रणाली से परिवर्तित कर देगा।
    • DICGC 1962 से फ्लैट-रेट प्रीमियम के आधार पर जमा बीमा योजना का संचालन कर रहा है।
    • प्रभाव: बेहतर जोखिम प्रबंधन और सुदृढ़ प्रशासन वाले बैंक कम प्रीमियम का भुगतान करेंगे, जिससे स्थिरता को बढ़ावा मिलेगा और जमाकर्ताओं के धन की सुरक्षा होगी।
  • संशोधित बेसल III पूँजी पर्याप्तता मानदंड: ऋण जोखिम के लिए मानकीकृत दृष्टिकोण के अंतर्गत बेसल III ढाँचा अप्रैल 2027 से लागू किया जाएगा।
    • प्रभाव: यह समग्र पूँजी आवश्यकताओं को कम करता है, विशेष रूप से MSMEs और आवास जैसे क्षेत्रों के लिए, जिससे बैंकों को अतिरिक्त ऋण देने के लिए पूँजी मुक्त करने और ऋण उपलब्धता में सुधार करने में मदद मिलती है।

बेसल III और बेसल III एंडगेम के बारे में

  • बेसल III: यह वर्ष 2008 के वित्तीय संकट के बाद बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बेसल समिति (BCBS) द्वारा विकसित वैश्विक बैंकिंग विनियमों का एक समूह है।
    • इसका उद्देश्य बैंकों को अधिक मजबूत, अधिक पारदर्शी और वित्तीय तनावों से निपटने के लिए बेहतर ढंग से तैयार करना है।
  • बेसल III एंडगेम (अंतिम चरण): बेसल III सुधारों के अंतिम चरण को संदर्भित करता है, जिसकी घोषणा वर्ष 2023 में की गई और इसे वर्ष 2025-2028 तक वैश्विक स्तर पर लागू किया जाएगा।
    • यह बैंकों की पूँजी गणनाओं को अधिक जोखिम-संवेदनशील और विभिन्न देशों में तुलनीय बनाने पर केंद्रित है।
    • अंतिम चरण वैश्विक रूप से व्यवस्थित महत्त्वपूर्ण बैंकों (G-SIB) के लिए पूँजी आवश्यकताओं को लगभग 20-25% तक बढ़ा देता है।
    • लक्ष्य: बैंकिंग प्रणाली के लचीलेपन में सुधार करना, निरंतर पर्यवेक्षण सुनिश्चित करना और वर्ष 2008 के संकट का कारण बने प्रणालीगत जोखिमों को कम करना।
  • बेसल मानदंड क्यों महत्त्वपूर्ण हैं: ये सुनिश्चित करते हैं कि बैंकों के पास अप्रत्याशित नुकसान को सहने और जमाकर्ताओं की सुरक्षा के लिए हमेशा पर्याप्त पूँजी हो।
    • ये मानदंड वित्तीय स्थिरता को मजबूत करते हैं, कॉरपोरेट प्रशासन में सुधार करते हैं और बैंक विफलताओं की संभावना को कम करते हैं।
  • महत्त्वपूर्ण शब्दावली
    • जोखिम-भारित परिसंपत्तियाँ (Risk weighed Assets- RWA): RWA, बैंकों के पास ऋण देने की गतिविधियों से उत्पन्न जोखिम के सापेक्ष आवश्यक न्यूनतम पूँजी से जुड़ा होता है।
      • जोखिम जितना अधिक होगा, जमाकर्ताओं की सुरक्षा के लिए उतनी ही अधिक पूँजी की आवश्यकता होगी।
    • टियर I पूँजी (कोर पूँजी): इसमें चुकता शेयर पूँजी, स्टॉक और घोषित रिजर्व शामिल हैं।
    • टियर II पूँजी (पूरक पूँजी): इसमें अन्य सभी पूँजी शामिल हैं, जैसे-अघोषित रिजर्व, पुनर्मूल्यांकन रिजर्व, सामान्य प्रावधान और हानि रिजर्व।
    • पूँजी जोखिम (भारित) परिसंपत्ति अनुपात (CAR): CAR एक प्रतिशत है, जो किसी बैंक की पूँजी की तुलना उसकी जोखिम-भारित परिसंपत्तियों से करके उसके वित्तीय स्वास्थ्य को मापता है।
  • बेसल I, II और III की प्रमुख विशेषताओं की तुलना

भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में प्रमुख चुनौतियाँ

  • बैंकिंग प्रणाली में तरलता का दबाव: RBI द्वारा खुले बाजार परिचालन (Open Market Operations- OMO) जैसे उपायों के बावजूद, भारत के बैंकों को तरलता की कमी का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि तरलता कवरेज अनुपात (Liquidity Coverage Ratio- LCR) जैसी नियामकीय आवश्यकताएँ धन जारी करने की उनकी क्षमता को सीमित करती हैं।
    • इससे MSME और खुदरा उधारकर्ताओं के लिए ऋण प्रवाह सीमित हो जाता है, जिससे तरलता बढ़ाने और व्यापक ऋण देने के लिए CRR और LCR सुधारों की आवश्यकता का संकेत मिलता है।
  • असुरक्षित खुदरा ऋणों में बढ़ता दबाव: क्रेडिट कार्ड, स्थायी वित्त और छोटे ऋणों जैसे असुरक्षित व्यक्तिगत ऋणों में तीव्र वृद्धि ने डिफॉल्ट जोखिमों को बढ़ा दिया है।
    • RBI की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (Financial Stability Report- FSR) के अनुसार, मार्च 2025 को समाप्त वर्ष के दौरान असुरक्षित खुदरा ऋणों में निजी क्षेत्र के बैंकों की सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) में 52.6 प्रतिशत हिस्सेदारी थी।
    • यह प्रवृत्ति घरेलू अति-उधार का जोखिम पैदा करती है, विशेष रूप से स्थिर वास्तविक आय वृद्धि की पृष्ठभूमि में।

जोखिम पोर्टफोलियो (Portfolio at Risk- PAR) किसी ऋणदाता (बैंक या NBFC) के कुल ऋण पोर्टफोलियो के उस हिस्से को मापता है, जो डिफॉल्ट के जोखिम में है, अर्थात्, ऐसे ऋण जहाँ भुगतान एक विशिष्ट दिनों से अधिक समय तक बकाया है।

  • सूक्ष्म वित्त क्षेत्र में संकट: निम्न-आय और ग्रामीण उधारकर्ताओं को सेवा प्रदान करने वाला सूक्ष्म वित्त क्षेत्र, बढ़ते घरेलू ऋणग्रस्तता और जलवायु-संबंधी आजीविका संबंधी झटकों के कारण पुनर्भुगतान संबंधी दबाव का सामना कर रहा है।
    • CRIF हाई मार्क के आँकड़ों से पता चलता है कि 31-180 दिनों की अतिदेय श्रेणी में PAR (जोखिम में पोर्टफोलियो) वित्त वर्ष 2025 के दौरान बढ़कर 6.2 प्रतिशत हो गया है, जबकि पिछले वर्ष की इसी अवधि में यह 2.1 प्रतिशत था।
      • वित्त वर्ष के दौरान 180 दिन से अधिक अवधि में PAR (पोर्टफोलियो एट रिस्क) 1.6 प्रतिशत से बढ़कर 5.1 प्रतिशत हो गया है।
  • शासन और अनुपालन में खामियाँ: शासन संबंधी कमियाँ बनी हुई हैं, खासकर शहरी सहकारी बैंकों (Urban Cooperative Banks- UCB) और छोटे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में।
    • भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने वित्तीय वर्ष 2024-25 के दौरान 353 विनियमित संस्थाओं (RE) पर वैधानिक प्रावधानों और नियामक निर्देशों के विभिन्न उल्लंघनों के लिए कुल ₹54.78 करोड़ का जुर्माना लगाया।
  • स्वर्ण ऋणों में बढ़ती त्रुटियाँ: कभी सुरक्षित माने जाने वाले स्वर्ण ऋणों में तनाव के संकेत दिखाई दे रहे हैं।
    • स्वर्ण ऋणों में NPA मार्च 2024 में ₹5,149 करोड़ से 30% बढ़कर जून 2024 में ₹6,696 करोड़ हो गया (RBI डेटा)।
  • तकनीकी और साइबर सुरक्षा जोखिम: तेजी से डिजिटलीकरण के साथ, बैंक साइबर हमलों और डेटा उल्लंघनों के प्रति अधिक संवेदनशील होते जा रहे हैं।
    • वर्ष 2024 की पहली छमाही में, भारत के वित्तीय क्षेत्र में वर्ष 2023 की इसी अवधि की तुलना में फिशिंग हमलों में 175% की वृद्धि देखी गई।
    • सीमित साइबर सुरक्षा तैयारी और कुशल जनशक्ति की कमी।

आगे की राह

  • तरलता की समस्या का समाधान: RBI उत्पादक क्षेत्रों तक धन की पहुँच सुनिश्चित करने के लिए दीर्घकालिक रेपो परिचालन (Long-Term Repo Operations- LTRO), विदेशी मुद्रा खरीद-बिक्री स्वैप और गतिशील तरलता आवश्यकताओं जैसे नवीन उपकरणों का उपयोग कर सकता है।
    • सुधारों का उद्देश्य तरलता सहायता को व्यापक और समावेशी बनाना होना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि MSME और छोटे उधारकर्ता भी भारत की मौद्रिक सरलता से लाभान्वित हों।
  • असुरक्षित खुदरा ऋण के लिए जोखिम प्रबंधन को मजबूत करना: उधारकर्ता की पुनर्भुगतान क्षमता का आकलन करने के लिए AI-आधारित ऋण जोखिम विश्लेषण और वैकल्पिक डेटा स्कोरिंग मॉडल के उपयोग को बढ़ावा देना।
    • RBI अत्यधिक ऋण चक्र को रोकने के लिए कुल ऋण के हिस्से के रूप में असुरक्षित खुदरा ऋणों पर जोखिम सीमा निर्धारित कर सकता है।
  • सूक्ष्म वित्त क्षेत्र को स्थिर करना और PAR (जोखिम वाले पोर्टफोलियो) के स्तर को कम करना: ग्रामीण क्षेत्रों में अत्यधिक उधारी को हतोत्साहित करने के लिए ऋण परामर्श और वित्तीय साक्षरता कार्यक्रमों का विस्तार करना।
    • उच्च-अपराध वाले राज्यों (जैसे- बिहार, पश्चिम बंगाल) में संकेंद्रण जोखिम से बचने के लिए MFI पोर्टफोलियो के भौगोलिक विविधीकरण को बढ़ावा देना।
    • MFI को जोखिम-आधारित मूल्य निर्धारण अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना और CRIF हाई मार्क के तहत साझा MFI क्रेडिट रजिस्ट्री के माध्यम से उधारकर्ता सत्यापन को मजबूत करना।
    • जलवायु-जोखिम-समायोजित ऋण ढाँचे लागू करना, खासकर आय में उतार-चढ़ाव का सामना कर रहे कृषि क्षेत्रों के लिए।
  • घरेलू ऋणग्रस्तता को नियंत्रित करना और जिम्मेदार उधारी को बढ़ावा देना: उधारकर्ता जागरूकता बढ़ाने के लिए व्यक्तिगत ऋण और क्रेडिट कार्ड उत्पादों के लिए स्पष्ट प्रकटीकरण मानदंड अनिवार्य करना।
  • स्वर्ण-समर्थित ऋणों की निगरानी को मजबूत करना: गिरवी रखे गए स्वर्ण संपार्श्विक का समय-समय पर पुनर्मूल्यांकन सुनिश्चित करना, खासकर जब सोने की कीमतों में तेजी से उतार-चढ़ाव हो।
    • सकारात्मक बाजार प्रवृत्ति के दौरान आवश्यकता से अधिक उधारी रोकने के लिए ऋण-मूल्य (Loan-to-Value- LTV) अनुशासन लागू करना। हाल ही में, RBI ने ₹2.5 लाख से कम के ऋणों के लिए स्वर्ण उधार LTV को 75% से बढ़ाकर 85% कर दिया है।
  • शासन और अनुपालन मानकों में सुधार: सहकारी और क्षेत्रीय बैंकों के निदेशकों के लिए एक उपयुक्त मानदंड लागू करना।
    • प्रौद्योगिकी-संचालित ऑडिट और रियल-टाइम अनुपालन डैशबोर्ड के माध्यम से RBI की पर्यवेक्षी क्षमता को मजबूत करना।
    • दक्षता और प्रशासन में सुधार के लिए कमजोर सहकारी बैंकों के विलय और समेकन को प्रोत्साहित करना।
  • दीर्घकालिक संरचनात्मक सुधारों को बढ़ावा देना: स्वायत्तता और दक्षता बढ़ाने के लिए बाजार-आधारित विनिवेश के माध्यम से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में पूँजी निवेश को प्रोत्साहित करना।
    • बड़े पैमाने पर वित्तपोषण के लिए बैंकों पर निर्भरता कम करने हेतु कॉर्पोरेट बॉण्ड बाजार को मजबूत बनाना।
    • चरणबद्ध डिजिटल अनुपालन और डेटा अवसंरचना उन्नयन के माध्यम से भारतीय बैंकिंग प्रथाओं को बेसल III एंडगेम मानदंडों के अनुरूप बनाना।

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