Q. विभिन्न शैक्षिक सुधारों और नीतियों के बावजूद, भारत की स्कूली शिक्षा प्रणाली बहुआयामी चुनौतियों का सामना कर रही है। शिक्षा प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए, पारंपरिक सुधारों से परे अभिनव समाधान सुझाएँ, साथ ही शैक्षिक परिणामों को प्रभावित करने वाले सामाजिक-आर्थिक कारकों पर विचार कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारत की स्कूली शिक्षा प्रणाली के लिए कार्यान्वित विभिन्न शैक्षिक सुधारों और नीतियों पर प्रकाश डालिये।
  • भारत की स्कूली शिक्षा प्रणाली के सामने आने वाली बहुमुखी चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।
  • भारतीय स्कूली शिक्षा प्रणाली में क्रांतिकारी परिवर्तन की आवश्यकता का विश्लेषण कीजिए।
  • शैक्षिक परिणामों को प्रभावित करने वाले सामाजिक-आर्थिक कारकों पर विचार करते हुए, पारंपरिक सुधारों के अतिरिक्त नवीन समाधान सुझाइये।

उत्तर

भारत की स्कूली शिक्षा प्रणाली में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आया है, जो लंबे समय तक चलने वाले शैक्षणिक पाठ्यक्रम और सैद्धांतिक ज्ञान व व्यावहारिक कौशल के बीच विसंगति के कारण चुनौतियों का सामना कर रही है। कई सुधारों के बावजूद, इन मुद्दों का समाधान करने के लिए क्रांतिकारी परिवर्तन की आवश्यकता बनी हुई है। इस परिवर्तन का उद्देश्य छात्रों को वास्तविक दुनिया की माँगों के अनुरूप कौशल प्रदान करना और आधुनिक चुनौतियों के प्रति उनकी तत्परता को बढ़ाना है।

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भारत में शैक्षिक सुधार और नीतियाँ

  • शिक्षा आयोग (1964-66): कोठारी आयोग ने स्कूली शिक्षा में एकरूपता की नींव रखी और शैक्षिक सुधारों की आवश्यकता पर जोर दिया। 
    • उदाहरण के लिए: इसने 14 वर्ष की आयु तक निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा की सिफारिश की, जिससे भारत की शिक्षा प्रणाली में भविष्य के सुधारों के लिए प्लेटफॉर्म तैयार हुआ।
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1986): इस नीति का उद्देश्य शिक्षा की गुणवत्ता और सुलभता पर ध्यान केंद्रित करना था, जिसका उद्देश्य समानता में सुधार करना और क्षेत्रीय असमानताओं को कम करना था। 
    • उदाहरण के लिए: इसने पूरे देश में एक समान पाठ्यक्रम लागू किया और व्यावहारिक कौशल विकास के लिए व्यावसायिक शिक्षा पर बल दिया।
  • मध्याह्न भोजन योजना (1995): इस योजना का उद्देश्य पोषण मानकों में सुधार करना और स्कूल में विद्यार्थियों की उपस्थिति बढ़ाना था
  • सर्व शिक्षा अभियान (2000): सर्व शिक्षा अभियान का उद्देश्य प्राथमिक शिक्षा को सार्वभौमिक बनाना तथा लैंगिक व सामाजिक असमानताओं को समाप्त करना था
  • शिक्षा का अधिकार अधिनियम (2009): RTE अधिनियम ने 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए शिक्षा को निःशुल्क और अनिवार्य बना दिया, जिससे सभी बच्चों के लिए शिक्षा सुनिश्चित हुई।
  • राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा (2005): NCF 2005 का उद्देश्य, शिक्षण के लिए एक
    रचनात्मक दृष्टिकोण को बढ़ावा देकर शिक्षा को वास्तविक दुनिया की आवश्यकताओं के लिए अधिक प्रासंगिक बनाना था। 

    • उदाहरण के लिए: इसने रटने की आदत से हटकर प्रोजेक्ट आधारित शिक्षण और आलोचनात्मक सोच को प्रोत्साहित किया।
  • समग्र शिक्षा अभियान (2018): इस एकीकृत योजना का उद्देश्य समग्र दृष्टिकोण के माध्यम से शिक्षा की गुणवत्ता और पहुँच में सुधार करना है। 
    • उदाहरण के लिए: इसने स्कूलों को बुनियादी ढाँचे, शिक्षक प्रशिक्षण औरवंचित वर्गों के छात्रों के लिए समावेशी शिक्षा प्रदान करने हेतु अनुदान प्रदान किया।
  • नई शिक्षा नीति (NEP 2020): NEP 2020 ने प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण और कक्षा 10 के बाद कठिन स्ट्रीम  को समाप्त करने जैसे परिवर्तनकारी बदलावों का प्रस्ताव दिया। 
    • उदाहरण के लिए: यह समग्र विकास के उद्देश्य से शिक्षा पद्धति में बहु-विषयक शिक्षा और लचीलेपन पर बल देती है ।

भारत की स्कूली शिक्षा प्रणाली के समक्ष बहुआयामी चुनौतियाँ

  • क्षेत्रों में गुणवत्ता संबंधी असमानताएँ: भारत में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच शिक्षा की गुणवत्ता में पर्याप्त अंतर है जहाँ कई ग्रामीण स्कूलों में बुनियादी ढाँचे और योग्य शिक्षकों की कमी है। 
    • उदाहरण के लिए : ASER 2018 के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 50% बच्चे ही बेसिक रीडिंग कर सकते हैं, जो शिक्षा की गुणवत्ता में असमानताओं को उजागर करता है।
  • पाठ्यक्रम का उद्योग जगत की आवश्यकताओं से मेल न खाना: शिक्षा प्रणाली अक्सर सैद्धांतिक ज्ञान पर ध्यान केंद्रित करती है जिससे छात्र, कार्यबल में आवश्यक व्यावहारिक नौकरी कौशल के लिए तैयार नहीं होते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी में डिग्री प्राप्त करने वाले स्नातकों में अक्सर नौकरी-विशिष्ट कौशल की कमी होती है, जिससे उच्च बेरोजगारी दर होती है।
  • रटने की आदत पर अत्यधिक जोर: सिस्टम में अभी भी रटने की आदत पर अत्यधिक जोर दिया जाता है, जिससे आलोचनात्मक सोच और प्रोबलम सॉल्विंग एबिलिटी सीमित हो जाती है। 
    • उदाहरण के लिए: ICSE और CBSE में परीक्षाएं, अनुप्रयोग-आधारित शिक्षण के बजाय सामग्री को याद करने पर अधिक केंद्रित होती हैं, जिससे रचनात्मक सोच के विकास में बाधा आती है
  • शिक्षक प्रशिक्षण की कमियाँ: शिक्षकों के प्रशिक्षण और उनके पेशेवर विकास में पर्याप्त अंतर है, जो शिक्षण की गुणवत्ता को प्रभावित करता है। 
    • उदाहरण के लिए: शिक्षकों की कमी और गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण से संबंधित समस्या का समाधान न कर पाने के लिए राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (NCTE) की आलोचना की गई है ।
  • प्रौद्योगिकी तक सीमित पहुँच: डिजिटल शिक्षा के विकास के बावजूद, तकनीकी बुनियादी ढाँचा अपर्याप्त बना हुआ है, विशेषकर ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में । 
  • उदाहरण के लिए: डिजिटल इंडिया कार्यक्रम ने प्रगति की है, परंतु ग्रामीण स्कूलों में इंटरनेट की पहुँच और डिवाइस की पहुँच अभी भी कम है, जिससे आधुनिक शैक्षिक उपकरणों तक छात्रों की पहुँच सीमित हो जाती है।

भारत की स्कूली शिक्षा प्रणाली में क्रांतिकारी परिवर्तन की आवश्यकता

  • वर्तमान आवश्यकता के कौशल के साथ संरेखण: एक क्रांतिकारी परिवर्तन, सैद्धांतिक ज्ञान के बजाय छात्रों को व्यावहारिक कौशल से लैस करने पर ध्यान केंद्रित कर सकता है व शिक्षा को वास्तविक दुनिया की आवश्यकताओं के साथ संरेखित कर सकता है। 
  • उदाहरण के लिए: फिनलैंड की शिक्षा प्रणाली व्यावहारिक कौशल और शिक्षण पर बल देती है, जिसके परिणामस्वरूप छात्रों की भागीदारी और रोजगार की संभावना अधिक होती है।
  • शिक्षण पद्धतियों में लचीलापन: क्रांतिकारी सुधार, लचीली शिक्षक पद्धतियों को बढ़ावा दे सकते हैं जिससे छात्रों को उनकी रुचियों के आधार पर अलग-अलग शिक्षण पद्धति अपनाने की सुविधा मिल सकती है। 
    • उदाहरण के लिए: जर्मनी की द्वैध शिक्षा प्रणाली , पेशेवर शिक्षा और अकादमिक शिक्षा के बीच संतुलन प्रदान करती है, जिससे रोजगार में सुधार होता है।
  • समग्र विकास पर ध्यान देना : अधिक छात्र-केंद्रित दृष्टिकोण अपनाने से छात्रों में रचनात्मक सोच, प्रोबलम सॉल्विंग और क्रिटिकल रीजनिंग को बढ़ावा मिलेगा। 
  • उदाहरण के लिए: इंटरनेशनल बैकलॉरिएट (IB) कार्यक्रम रचनात्मकता, संस्कृति और संज्ञानात्मक कौशल को शामिल करते हुए छात्रों के समग्र विकास पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • परीक्षा के दबाव में कमी: एक क्रांतिकारी परिवर्तन, अधिक सतत मूल्यांकन विधियों को अपना सकता है, जिससे छात्रों पर पड़ने वाला परीक्षा का दबाव कम हो सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: सिंगापुर ने छात्रों के प्रदर्शन को मापने, तनाव को कम करने और शिक्षण परिणामों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए सतत मूल्यांकन रणनीतियों को लागू किया है।
  • शिक्षा में प्रौद्योगिकी का एकीकरण: एक क्रांतिकारी परिवर्तन से पाठ्यक्रम में प्रौद्योगिकी-संचालित शिक्षा को शामिल किया जा सकता है, जिससे पहुँच और सहभागिता बढ़ सकती है।

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परंपरागत सुधारों से परे अभिनव समाधान

  • कौशल-आधारित शिक्षा का समावेश: प्रारंभिक चरण में व्यावसायिक शिक्षा और कौशल-आधारित शिक्षा शुरू करने से छात्रों को व्यावहारिक क्षमताओं से लैस किया जाएगा, जिससे वे कार्यबल के लिए तैयार होंगे। 
    • उदाहरण के लिए: दक्षिण कोरिया मिडिल स्कूल से ही तकनीकी शिक्षा को अपने पाठ्यक्रम में शामिल करता है , जिससे कुशल कार्यबल तैयार होता है।
  • सम्मिश्रित  शिक्षण पद्धतियाँ: ऑफलाइन और ऑनलाइन शिक्षण को मिलाकर शैक्षिक विभाजन को कम किया जा सकता है, जिससे सहभागिता और पहुँच में वृद्धि हो सकती है। 
    • उदाहरण के लिए: स्कूलों में सम्मिश्रित शिक्षण, दूरदराज के क्षेत्रों में छात्रों को फेस-टू-फेस अंत: क्रिया से लाभ उठाते हुए डिजिटल सामग्री तक पहुँच प्राप्त करने में मदद करता  है।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी: सरकार और निजी क्षेत्र के बीच सहयोग से स्कूलों के लिए बुनियादी ढाँचे, प्रशिक्षण और संसाधनों को उन्नत किया जा सकता है, विशेषकर वंचित क्षेत्रों में। 
    • उदाहरण के लिए: ब्रिटिश काउंसिल, भारतीय राज्यों के साथ सहयोग करके शिक्षक प्रशिक्षण में सुधार और वैश्विक शिक्षण मानकों को लागू करने के लिए काम करती है।
  • मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण पर जोर: छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य, भावनात्मक बुद्धिमत्ता और समग्र कल्याण पर ध्यान केंद्रित करने से बेहतर शिक्षण परिणाम प्राप्त होंगे। 
    • उदाहरण के लिए: जापान ने अपने पाठ्यक्रम में मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा को शामिल किया है, जिससे छात्रों के कल्याण और प्रदर्शन में सुधार हुआ है।
  • स्थानीयकृत शिक्षा मॉडल: क्षेत्रीय आवश्यकताओं और सांस्कृतिक संदर्भों के अनुरूप शिक्षा प्रणालियों को तैयार करने से सहभागिता और प्रासंगिकता में सुधार होगा

भारत की स्कूली शिक्षा प्रणाली में दीर्घकालिक चुनौतियों का समाधान करने और परिणामों में सुधार करने के लिए आमूलचूल सुधारों की आवश्यकता है। फिनलैंड के छात्र-केंद्रित दृष्टिकोण और दक्षिण कोरिया के व्यावसायिक प्रशिक्षण जैसी वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं से प्रेरणा लेते हुए, भारत भविष्य के लिए तैयार कार्यबल के लिए NEP 2020 के दृष्टिकोण के साथ समावेशी और सतत शैक्षिक परिणाम प्राप्त कर सकता है।

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