Q. आपदा प्रबंधन (संशोधन) विधेयक 2024 सतही स्तर पर भागीदारी से दूर जाकर सत्ता को केंद्रीकृत करता प्रतीत होता है। आलोचनात्मक रूप से परीक्षण कीजिए कि यह परिवर्तन दक्षिण एशिया में आपदा तैयारियों, स्थानीय प्रशासन और क्षेत्रीय सहयोग को कैसे प्रभावित करता है साथ ही अधिक समावेशी ढांचे के लिए उपाय भी सुझाएँ। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • इस बात पर प्रकाश डालिये कि किस प्रकार आपदा प्रबंधन (संशोधन) विधेयक 2024 जमीनी स्तर की भागीदारी से दूर जाकर सत्ता को केंद्रीकृत करता प्रतीत होता है।
  • परीक्षण कीजिए कि यह बदलाव दक्षिण एशिया में आपदा तैयारी, स्थानीय शासन और क्षेत्रीय सहयोग पर किस प्रकार नकारात्मक प्रभाव डालता है।
  • अधिक समावेशी ढाँचे के लिए उपाय सुझाइये।

उत्तर

आपदा प्रबंधन (संशोधन) विधेयक 2024 में केंद्रीकृत निर्णय लेने पर जोर देते हुए संरचनात्मक परिवर्तन प्रस्तावित किए गए हैं, जिससे स्थानीय हितधारकों को दरकिनार किए जाने की चिंता बढ़ गई है। ऐसा माना जा रहा है कि इस संशोधन के साथ आपदा तत्परता और सामुदायिक प्रत्यास्थता के लिए आवश्यक जमीनी स्तर की भागीदारी को कमतर आंका जा सकता है। वर्ष 2023 की सिक्किम बाढ़ जैसी हालिया आपदाएँ प्रारंभिक प्रतिक्रिया में स्थानीय शासन की महत्त्वपूर्ण भूमिका को उजागर करती हैं। अत: क्षेत्रीय समन्वय और समावेशिता के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण महत्त्वपूर्ण है ।

Enroll now for UPSC Online Course

सत्ता का केंद्रीकरण और जमीनी स्तर पर भागीदारी का अभाव

  • संरक्षित शब्दावली: विधेयक में पर्यवेक्षण’ (Supervise) के बजाय ‘निगरानी’ (Monitor) जैसे शब्दों का उपयोग, सामुदायिक विश्वास को सीमित करता है और सहभागी शासन को कमजोर करता है। 
    • उदाहरण के लिए: सेंदाई फ्रेमवर्क में सक्रिय सामुदायिक भूमिकाओं को बढ़ावा देने पर बल दिया गया है, जिससे सुंदरबन जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में आपदा प्रतिक्रिया क्षमता बढ़ती है ।
  • स्थानीय संस्थाओं का बहिष्कार: आपदाओं के शुरुआती दौर में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के बावजूद पंचायतें, गैर सरकारी संगठन और स्थानीय सरकारें हाशिए पर हैं। 
    • उदाहरण के लिए: केरल बाढ़ (2018) में ग्रामीणों ने औपचारिक एजेंसियों के पहुँचने से पहले ही लोगों को बचा लिया, जिससे यह पता चला कि समय पर कार्रवाई के लिए स्थानीय भागीदारी महत्त्वपूर्ण है।
  • पर्फार्मेंस मेट्रिक्स की कमी: जिला अधिकारियों के लिए कोई मूल्यांकन तंत्र न होना, जवाबदेही और सक्रिय आपदा तत्परता को हतोत्साहित करता है। 
    • उदाहरण के लिए: ओडिशा के स्थानीय अधिकारियों द्वारा चक्रवात फानी (2019) के दौरान अप्रभावी तैयारी के कारण महत्त्वपूर्ण राहत कार्यों के क्रियान्वयन में देरी हुई, जिससे जिला-स्तरीय मूल्यांकन की आवश्यकता उजागर हुई।
  • संकट की परिभाषाओं में समावेशन का अभाव: परिभाषाओं में आपदा प्रत्यास्थता तथा भेद्यता शमन के प्रति स्थानीय समुदाय की बुद्धिमत्ता और क्षमताओं की अनदेखी की गई हैं। 
    • उदाहरण के लिए: सुनामी (2004) में तमिलनाडु के मछुआरों ने तटीय बस्तियों में होने वाले नुकसान को कम करने के लिए क्षेत्रों को खाली करने हेतु परंपरागत ज्ञान का लाभ उठाया।
  • प्रजातिवाद और पशु कल्याण की अनदेखी: आपदा प्रबंधन प्रावधानों में आजीविका और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए आवश्यक पशुओं को अनदेखा किया गया है।  
    • उदाहरण के लिए: केदारनाथ बाढ़ (2013) के दौरान मवेशियों को हुई क्षति ने कृषि सुधार को बाधित किया जो पशु आपदा तत्परता में अंतराल को दर्शाता है।

आपदा तत्परता, स्थानीय शासन और क्षेत्रीय सहयोग पर नकारात्मक प्रभाव

  • आपदा तत्परता को कमजोर करना: टॉप-डाउन नीतियाँ, समुदाय के इनपुट को अनदेखा करती हैं, जिससे आपदा से पहले प्रतिक्रिया तंत्र की दक्षता कम हो जाती है। 
    • उदाहरण के लिए: चक्रवात आइला (2009) ने दिखाया कि समुदाय द्वारा संचालित निकासी योजनाएँ केंद्रीय प्राधिकारियों की विलंबित प्रतिक्रियाओं से बेहतर प्रदर्शन कर रही थीं।
  • स्थानीय प्रशासन की भूमिका में कमी: पंचायतों और शहरी निकायों की अनुपस्थिति, आपदा जोखिम न्यूनीकरण प्रयासों में उनके योगदान को सीमित करती है। 
    • उदाहरण के लिए: गुजरात के कच्छ भूकंप (2001) में स्थानीय नियोजन ने प्रत्यास्थ समुदायों के पुनर्निर्माण में मदद की, जिससे समान केंद्रीय नियंत्रण जोखिमों से बचा जा सका।
  • अंतर-विभागीय भेद्यताओं की अनदेखी: लिंग, जाति और दिव्यांगता से जुड़ी चुनौतियों की अनदेखी की जाती है, जिससे पहले से ही कमजोर आबादी, हाशिए पर चली जाती है। 
    • उदाहरण के लिए: चेन्नई बाढ़ (2015) में राहत कार्यों में झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाली महिलाओं की आवश्यकताओं की अनदेखी की गई, जिससे आपदा के बाद उनकी स्थिति और खराब हो गई।
  • क्षेत्रीय सहयोग में कमी: अंतरराष्ट्रीय समन्वय पर जोर न देने से दक्षिण एशिया में असुरक्षित सीमाओं और साझा भेद्यताओं को नजरअंदाज किया जाता है। 
    • उदाहरण के लिए: सार्क का त्वरित प्रतिक्रिया समझौता (2011) नेपाल के वर्ष 2015 के भूकंप से उबरने में सहायक हो सकता है, लेकिन भारत  इसका लाभ नहीं उठा पाया है।
  • स्थायी शहरी आपदा चुनौतियाँ: अनियंत्रित अतिक्रमण और खराब योजना के कारण शहरी बाढ़ का खतरा होता है, जो UDMA की अस्पष्ट भूमिकाओं के कारण और भी बढ़ जाता है। 
    • उदाहरण के लिए: अतिक्रमण के कारण मुंबई बाढ़ (2005) के दौरान भारी जलभराव हुआ, जिससे लाखों लोग प्रभावित हुए।

अधिक समावेशी ढाँचे के लिए उपाय

  • जमीनी स्तर की संस्थाओं को मजबूत बनाना: आपदा नियोजन और क्रियान्वयन में सक्रिय रूप से शामिल होने के लिए पंचायतों, गैर सरकारी संगठनों और स्थानीय सरकारों को सशक्त बनाना चाहिये। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2001 के भूकंप के बाद गुजरात के समुदाय-संचालित पुनर्निर्माण ने मजबूत रिकवरी और भविष्य की आपदाओं से निपटने में गुजरात को सक्षम बनाया।
  • अंतर-विभागीय फोकस: समान पुनर्वास सुनिश्चित करने के लिए आपदा पश्चात् हाशिए पर स्थित समूहों की भेद्यताओं को ध्यान में रखने वाली राहत संरचना  को अनिवार्य बनाना। 
    • उदाहरण के लिए: ओडिशा के चक्रवातों में विधवाओं और निम्न जातियों के लिए चलाये गये राहत कार्यक्रमों ने समावेशिता और आजीविका पुनुरुद्धार के प्रयासों में सुधार किया।
  • पशु कल्याण का एकीकरण: ग्रामीण आजीविका को सुरक्षित करने के लिए आपदा तैयारी ढाँचे में पशु बचाव और कल्याण को शामिल करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: केरल बाढ़ (2018) के बाद पशुधन बचाव पहल ने किसानों को अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण करने में मदद की।
  • क्षेत्रीय समन्वय तंत्र: आपदा रणनीतियों और आपसी सहायता प्रणालियों को साझा करने के लिए सार्क जैसे क्षेत्रीय निकायों का लाभ उठाना चाहिए 
    • उदाहरण के लिए: नेपाल भूकंप (2015) के बाद बढ़े हुए सहयोग से भारतीय सहायता से बचाव प्रयासों में तेजी लाई जा सकती थी।
  • पारदर्शी मूल्यांकन प्रणाली: जवाबदेही और तत्परता बढ़ाने के लिए जिला और राज्य प्राधिकरणों के लिए प्रदर्शन-आधारित मीट्रिक स्थापित करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: राजस्थान में थार चक्रवात की पूर्व चेतावनी के आधार पर सही समय पर कार्य योजनाएँ तैयार की जा सकी।
  • स्थानीयकृत शहरी नियोजन: जलभृतों, जल निकायों और वनों का संरक्षण करके शहरी आपदा रणनीतियों को पर्यावरणीय संधारणीयता के साथ संरेखित करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: चेन्नई की आर्द्रभूमि संरक्षण परियोजनाओं ने शहरी मानसून के दौरान होने वाले बाढ़ के प्रभावों को कम किया।

Check Out UPSC CSE Books From PW Store

मजबूत आपदा प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए, संशोधित विधेयक में केंद्रीकृत दक्षता और जमीनी स्तर पर समावेशिता के बीच संतुलन होना चाहिए। स्थानीय निकायों को सशक्त बनाने, दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने और प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने से तत्परता बढ़ाई जा सकती  है। सुभेद्य समुदायों और पारदर्शी शासन को एकीकृत करने वाला एक सहभागी ढाँचा, न केवल तत्काल जोखिमों को कम  करेगा बल्कि एक सतत और न्यायसंगत भविष्य का निर्माण करने में भी सहायक सिद्ध होगा।

To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

Need help preparing for UPSC or State PSCs?

Connect with our experts to get free counselling & start preparing

Know about Physics Wallah

Physics Wallah is an Indian online education platform, that provides accessible & comprehensive learning experiences to students of classes 6 to 12 and those preparing for JEE and NEET exams. We also provide extensive NCERT solutions, sample papers, NEET, JEE Mains, BITSAT previous year papers, which makes us a one-stop solution for all resources. Physics Wallah also caters to over 3.5 million registered students and over 78 lakh+ Youtube subscribers with 4.8 rating on its app.

We Stand Out because

We successfully provide students with intensive courses by India's qualified & experienced faculties. PW strives to make the learning experience comprehensive and accessible for students of all sections of society. We believe in empowering every single student who couldn't dream of a good career in engineering and medical field earlier.

Our Key Focus Areas

Physics Wallah’s main focus is to create accessible learning experiences for students all over India. With courses like Lakshya, Udaan, Arjuna & many others, we have been able to provide a ready solution for lakhs of aspirants. From providing Chemistry, Maths, Physics formulae to giving e-books of eminent authors, PW aims to provide reliable solutions for student prep.

What Makes Us Different

Physics Wallah strives to develop a comprehensive pedagogical structure for students, where they get a state-of-the-art learning experience with study material and resources. Apart from catering students preparing for JEE Mains and NEET, PW also provides study material for each state board like Uttar Pradesh, Bihar, and others.

Aiming for UPSC?

Download Our App

# #
Quick Revise Now !
AVAILABLE FOR DOWNLOAD SOON
UDAAN PRELIMS WALLAH
Comprehensive coverage with a concise format
Integration of PYQ within the booklet
Designed as per recent trends of Prelims questions
हिंदी में भी उपलब्ध
Quick Revise Now !
UDAAN PRELIMS WALLAH
Comprehensive coverage with a concise format
Integration of PYQ within the booklet
Designed as per recent trends of Prelims questions
हिंदी में भी उपलब्ध

<div class="new-fform">






    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.