Q. नीतिगत समस्याओं और कानूनी बाधाओं के कारण भारत का परमाणु ऊर्जा क्षेत्र अपनी क्षमता से पीछे रह गया है। भारत में परमाणु ऊर्जा के विकास पर परमाणु ऊर्जा अधिनियम (1962) और परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व अधिनियम (2010) के प्रभाव की आलोचनात्मक जाँच कीजिएl भारत की परमाणु क्षमता को बढ़ाने के लिए किन सुधारों की आवश्यकता है? (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • चर्चा कीजिए कि नीतिगत बाधाओं और कानूनी बाधाओं के कारण भारत का परमाणु ऊर्जा क्षेत्र अपनी क्षमता का दोहन करने में किस प्रकार पीछे रह गया है।
  • भारत में परमाणु ऊर्जा के विकास पर परमाणु ऊर्जा अधिनियम (1962) के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव का परीक्षण कीजिए।
  • भारत में परमाणु ऊर्जा के विकास पर परमाणु क्षति के लिए नागरिक देयता अधिनियम (2010) के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव का परीक्षण कीजिए।
  • भारत की परमाणु क्षमता बढ़ाने के लिए आवश्यक सुधारों का सुझाव दीजिए।

उत्तर

भारत जो कभी एशिया में परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में अग्रणी देश था, प्रतिबंधात्मक कानूनी ढाँचों के कारण अपनी क्षमता का दोहन करने के मामले में संघर्ष कर रहा है। वर्ष 2000 तक 10,000 मेगावाट उत्पादन के लक्ष्य सहित अन्य परमाणु महत्त्वाकांक्षाओं के बावजूद, भारत की परमाणु क्षमता आज अपेक्षाओं से बहुत कम है। चीन और दक्षिण कोरिया वैश्विक परमाणु दौड़ में सबसे आगे हैं।

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नीतिगत अड़चनों और कानूनी बाधाओं के कारण भारत का परमाणु ऊर्जा क्षेत्र अपनी क्षमता से पीछे रह गया है

  • निजी क्षेत्र की भागीदारी का अभाव: परमाणु ऊर्जा अधिनियम (1962) ने बिजली संयंत्र संचालन में निजी क्षेत्र की भागीदारी पर रोक लगाते हुए सरकार का एकाधिकार स्थापित किया। 
    • उदाहरण के लिए: L&T और गोदरेज जैसी निजी कंपनियों ने केवल उपकरणों की आपूर्ति की है, लेकिन उन्हें कभी भी परमाणु संयंत्रों को संचालित या प्रबंधित करने की अनुमति नहीं दी गई।
  • प्रतिबंधात्मक दायित्व कानून: परमाणु क्षति के लिए नागरिक देयता अधिनियम, 2010 (CLNDA, 2010) ने संयंत्र संचालकों को दुर्घटनाओं के लिए उत्तरदायी बनाया, लेकिन आपूर्तिकर्ताओं के विरुद्ध कार्रवाई की संभावना को अनुमति दी, जिससे घरेलू और विदेशी निवेश दोनों ही हतोत्साहित हुए। 
    • उदाहरण के लिए: GE और वेस्टिंगहाउस जैसी कंपनियों ने CLNDA के तहत देयता जोखिमों के कारण भारत के परमाणु बाजार में प्रवेश करने में संकोच किया।
  • सरकारी फंडिंग पर निर्भरता: परमाणु ऊर्जा विभाग की पूरी तरह से सरकारी बजट पर निर्भरता ने परमाणु ऊर्जा क्षमता को बढ़ाने के लिए पूँजी को सीमित कर दिया है और ये उन्नत तकनीकों को अपनाने में देरी का कारण भी बना है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत की परमाणु क्षमता वर्ष 2000 तक 10,000 मेगावाट के पहले के अनुमानों के बावजूद 8,200 मेगावाट पर स्थिर रही।
  • वैश्विक मानदंडों के साथ तालमेल बिठाने में विफलता: भारत का देयता ढाँचा, अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के साथ संघर्ष करता है, जो सभी देयताओं को ऑपरेटरों पर डाल देता है, जिससे वैश्विक सहयोग में बाधा आती है। 
    • उदाहरण के लिए: परमाणु रिएक्टरों के लिए दक्षिण कोरिया के साथ UAE की सफल साझेदारी, भारत की विदेशी सौदों को अंतिम रूप देने में असमर्थता के विपरीत है।
  • विलंबित आधुनिकीकरण: विनियामक बाधाओं और विरासत प्रौद्योगिकियों पर अत्यधिक निर्भरता ने नए और सुरक्षित रिएक्टर डिजाइनों में बदलाव को रोक दिया है। 
    • उदाहरण के लिए: जबकि चीन ने तीसरी पीढ़ी के परमाणु रिएक्टरों का उपयोग करना शुरू कर दिया है, भारत अभी भी मुख्य रूप से दाबयुक्त हैवी वॉटर रिएक्टरों (PHWRs) का उपयोग करता है।

भारत में परमाणु ऊर्जा के विकास पर परमाणु ऊर्जा अधिनियम (1962) का प्रभाव

सकारात्मक प्रभाव

  • परमाणु अनुसंधान के लिए प्रारंभिक आधार: इस अधिनियम ने भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) जैसी संस्थाओं की स्थापना की सुविधा प्रदान की, जिससे परमाणु विज्ञान में घरेलू अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा मिला। 
    • उदाहरण के लिए: भारत ने वर्ष 1956 में अपना पहला परमाणु रिएक्टर, अप्सरा (Apsara) निर्मित किया, जिसने एशिया में परमाणु ऊर्जा अनुसंधान में प्रारंभिक नेतृत्व का प्रदर्शन किया।
  • वैश्विक कंपनियों के साथ प्रारंभिक साझेदारी: इस अधिनियम ने विदेशी सहयोग को सक्षम किया, जैसे कि वर्ष 1969 में तारापुर परमाणु संयंत्र, जिसे अमेरिकी सहायता से बनाया गया, जिससे भारत की परमाणु क्षमताओं को बढ़ावा मिला। 
    • उदाहरण के लिए: तारापुर परमाणु ऊर्जा स्टेशन (TAPS) एशिया का पहला परमाणु ऊर्जा संयंत्र था और यह आज भी संचालित हो रहा है।
  • भारत को रणनीतिक स्वायत्तता प्रदान की: घरेलू क्षमता निर्माण को प्राथमिकता देकर, अधिनियम ने भारत को अपने नागरिक और सैन्य परमाणु कार्यक्रमों को विकसित करने में रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने में मदद की। 
    • उदाहरण के लिए: भारत ने PHWR सहित एक आत्मनिर्भर रिएक्टर बेड़ा विकसित किया, जिससे वर्ष 1974 के परमाणु प्रतिबंधों के बाद विदेशी प्रौद्योगिकियों पर निर्भरता कम हुई।

नकारात्मक प्रभाव

  • केंद्रीकृत एकाधिकार: इस अधिनियम ने सभी परमाणु गतिविधियों को सरकारी संस्थाओं के लिए आरक्षित कर दिया, जिससे व्यापक परमाणु पारिस्थितिकी तंत्र के विकास में बाधा उत्पन्न हुई और नवाचार सीमित हो गया। 
    • उदाहरण के लिए: टाटा और BHEL जैसी निजी कंपनियों को तकनीकी विशेषज्ञता के बावजूद उपकरण आपूर्ति भूमिकाओं तक सीमित कर दिया गया, जिससे उन्हें बिजली संयंत्र संचालन से बाहर रखा गया।
  • विस्तार के लिए सीमित निधि: सरकारी एकाधिकार का आशय था कि परमाणु ऊर्जा का विस्तार पूरी तरह से सार्वजनिक निधियों पर निर्भर था, जिससे क्षमता वृद्धि बाधित हुई। 
    • उदाहरण के लिए: इसकी तुलना में, दक्षिण कोरिया ने सार्वजनिक-निजी सहयोग से 32,000 मेगावाट परमाणु क्षमता प्राप्त की, जो भारत के 8,200 मेगावाट से कहीं आगे है।
  • वैश्विक परिवर्तनों के अनुकूल ढलने में लचीलेपन की कमी: अधिनियम के कठोर ढाँचे ने भारत को परमाणु क्षेत्र में उभरते अंतरराष्ट्रीय अवसरों और प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाने से रोक दिया। 
    • उदाहरण के लिए: भारत, चीन जैसे उन्नत रिएक्टरों के लिए वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में शामिल नहीं हो सका, जो पाकिस्तान जैसे देशों को परमाणु प्रौद्योगिकी निर्यात करता है।

भारत में परमाणु ऊर्जा के विकास पर परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व अधिनियम (2010) का प्रभाव

सकारात्मक प्रभाव

  • पीड़ितों को दिया जाने वाला मुआवजा बढ़ाया गया: CLNDA, परमाणु दुर्घटनाओं के मामले में पीड़ितों को तुरंत मुआवजा देने के लिए ऑपरेटरों को बाध्य करके जवाबदेही सुनिश्चित करता है। 
    • उदाहरण के लिए: दायित्व प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि चेरनोबिल जैसी आपदा के कारण भारत में पीड़ितों को मुआवजा नहीं मिलेगा।
  • सुरक्षा मानकों पर ध्यान: ऑपरेटरों और आपूर्तिकर्ताओं को जवाबदेह ठहराकर, CLNDA अप्रत्यक्ष रूप से संयंत्र संचालन और आपूर्तिकर्ता गुणवत्ता में कड़े सुरक्षा प्रोटोकॉल पर जोर देता है। 
    • उदाहरण के लिए: CLNDA के बाद, NPCIL जैसे ऑपरेटरों ने रिएक्टरों के लिए उन्नत सुरक्षा तकनीकें अपनाई हैं, जिससे वैश्विक सुरक्षा मानकों का बेहतर अनुपालन सुनिश्चित हुआ है।
  • खराब घटकों पर रोकथाम: यह कानून आपूर्तिकर्ताओं को दोषपूर्ण घटक प्रदान करने से रोकता है, जिससे परमाणु प्रतिष्ठानों के लिए मजबूत आपूर्ति शृंखला और विश्वसनीय उपकरण की उपलब्धता सुनिश्चित होती हैं। 
    • उदाहरण के लिए: आपूर्तिकर्ता जवाबदेही पर बढ़ते ध्यान ने कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र में उपयोग किए जाने वाले स्वदेशी घटकों के मानकों को बेहतर बनाने में मदद की।

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नकारात्मक प्रभाव

  • विदेशी निवेश में बाधा: आपूर्तिकर्ताओं के खिलाफ सहारा लेने के अधिकार ने GE और अरेवा जैसी प्रमुख विदेशी कंपनियों को भारत की परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश करने से हतोत्साहित किया। 
    • उदाहरण के लिए: वेस्टिंगहाउस ने CLNDA के तहत देयता संबंधी चिंताओं के कारण भारत के साथ रिएक्टरों की आपूर्ति के लिए होने वाले समझौते से पीछे हटने का निर्णय लिया।
  • परियोजना लागत में वृद्धि: आपूर्तिकर्ताओं ने संभावित देनदारियों की भरपाई के लिए लागत में वृद्धि की, जिससे भारत में परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं का कुल खर्च बढ़ गया। 
    • उदाहरण के लिए: फ्राँसीसी आपूर्तिकर्ता EDF द्वारा उठाई गई देयता-संबंधी चिंताओं के कारण जैतापुर परमाणु ऊर्जा परियोजना की लागत में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
  • रिएक्टर निर्माण में देरी: कानूनी अस्पष्टता और देयता संबंधी प्रावधानों के परिणामस्वरूप हुई लंबी वार्ताओं के कारण परमाणु परियोजनाओं में देरी हुई, जिससे परमाणु क्षमता का विस्तार धीमा हो गया।

भारत की परमाणु क्षमता बढ़ाने के लिए आवश्यक सुधार

  • CLNDA में संशोधन करना: विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करने और रिएक्टर निर्माण को सुव्यवस्थित करने के लिए आपूर्तिकर्ता देयता को सीमित करके, देयता मानदंडों को वैश्विक मानकों के साथ संरेखित करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: UAE के बराक परमाणु संयंत्र ने वैश्विक दायित्व मानदंडों को अपनाकर, विदेशी सहयोग और आपूर्तिकर्ताओं को आकर्षित करके सफलता प्राप्त की।
  • परमाणु ऊर्जा अधिनियम (1962) को उदार बनाना: रिएक्टर निर्माण और प्रबंधन में पूँजी जुटाने और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी की अनुमति प्रदान करनी चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र सुधारों ने स्काईरूट एयरोस्पेस जैसी निजी कंपनियों को उपग्रह प्रक्षेपण वाहनों का नवाचार और निर्माण करने में सक्षम बनाया।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) ढाँचा स्थापित करना: परमाणु परियोजनाओं में लागत, विशेषज्ञता और जोखिम साझा करने के लिए NPCIL जैसी सरकारी एजेंसियों और निजी कंपनियों के बीच सहयोग को सुगम बनाना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: परमाणु ऊर्जा में दक्षिण कोरिया के PPP मॉडल ने KHNP जैसी निजी फर्मों को घरेलू और निर्यात बाजारों के लिए उन्नत रिएक्टर विकसित करने की सुविधा प्रदान की।
  • स्वदेशी परमाणु प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देना: विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता कम करने के लिए AHWR (एडवांस्ड हैवी वाटर रिएक्टर) जैसे घरेलू रिएक्टर डिजाइनों हेतु अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: भारत के स्वदेशी PHWR रिएक्टरों ने बाह्य देशों पर निर्भरता के बिना मौजूदा परमाणु ऊर्जा क्षमता में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
  • परमाणु ऊर्जा कोष की स्थापना करना: नई परमाणु परियोजनाओं का समर्थन करने और निर्बाध वित्तपोषण सुनिश्चित करने के लिए सरकार और निजी कंपनियों के योगदान से एक समर्पित कोष बनाना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: फ्राँसीसी परमाणु उद्योग कोष ने EDF की रिएक्टर परियोजनाओं में सहायता प्रदान की, जिससे परमाणु ऊर्जा क्षमता में लगातार वृद्धि हुई।

भारत की परमाणु क्षमता का दोहन करने के लिए हमें निजी निवेश को बढ़ावा देने और अनुमोदन को सरल बनाने हेतु परमाणु ऊर्जा अधिनियम में सुधार करना होगा, साथ ही निवेशकों का विश्वास सुनिश्चित करने के लिए परमाणु क्षति अधिनियम के लिए नागरिक दायित्व में अस्पष्टताओं को दूर करना होगा। “एंपावर्ड पॉलिसीज फ्यूल एंपावर्ड एटम्स(Empowered policies fuel empowered atoms)- मजबूत सुधारों के साथ, भारत स्वच्छ ऊर्जा क्रांति का नेतृत्व कर सकता है और अपनी बढ़ती ऊर्जा माँगों को संधारणीय रूप से पूर्ण कर सकता है।

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