उत्तर:
दृष्टिकोण:
- प्रस्तावना: शुरुआत में नाटो प्लस ढांचे की व्याख्या करके भारत के इसमें संभावित समावेशन के लिए संदर्भ निर्धारित करें। भारत की भू-राजनीतिक स्थिति को प्रभावित करने की इसकी क्षमता पर भी प्रकाश डालिए।
- मुख्य विषयवस्तु:
- नाटो प्लस ढांचे में भारत को शामिल करने के संभावित लाभों पर चर्चा करें।
- ऐसे समावेशन में आने वाली संभावित चुनौतियों का परीक्षण करें ।
- भारत की सामरिक साझेदारी और चीन के प्रति इसकी नीति पर संभावित प्रभाव का विश्लेषण करें।
- निष्कर्ष: संभावित लाभों और चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए चीन के प्रति भारत की सामरिक साझेदारी और नीति पर संभावित प्रभाव का सारांश प्रस्तुत करें।
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प्रस्तावना:
नाटो प्लस एक ऐसा ढांचा है जिसके तहत भारत सहित कई गैर-नाटो राष्ट्र, नाटो के साथ व्यक्तिगत साझेदारी में संलग्न होते हैं। नाटो प्लस ढांचे में भारत के संभावित समावेश से इसकी भू-राजनीतिक स्थिति, सामरिक साझेदारी और चीन के संबंध में भारत की विदेश नीति की दिशा में महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है ।
मुख्य विषयवस्तु:
यह परिदृश्य कई लाभ और उनके साथ-साथ कई चुनौतियां भी प्रस्तुत करता है, जिनका भारत को सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करना चाहिए।
संभावित लाभ :
- रक्षा क्षमताओं को सुदृढ़ बनाना:
- नाटो प्लस ढांचे में शामिल होने से भारत को उन्नत प्रौद्योगिकी, प्रशिक्षण और साझा खुफिया जानकारी प्राप्त होगी जिससे भारत की रक्षा क्षमताओं में वृद्धि हो सकती है ।
- उदाहरण के लिए अमेरिका जो नाटो का एक प्रमुख सदस्य है, भारत के लिए उन्नत रक्षा उपकरणों का एक महत्वपूर्ण स्रोत रहा है, गौरतलब है कि भारत और अमेरिका के बीच रक्षा व्यापार 2008 के लगभग शून्य के आंकड़े से बढ़कर 2020 में 20 बिलियन डॉलर से अधिक हो गया है ।
- उन्नत प्रौद्योगिकी और उपकरण :
नाटो प्लस में शामिल होने से भारत को फ्रांस और यूके जैसे देशों की रक्षा प्रौद्योगिकी प्राप्त हो सकती है, जैसे कि फ्रांस के डसॉल्ट एविएशन से राफेल फाइटर जेट और यूके के बीएई सिस्टम्स से लड़ाकू वाहन।
- संयुक्त सैन्य प्रशिक्षण:
नाटो प्लस में भागीदारी से भारत को फ्रांस और यूके के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास में शामिल होने का अवसर मिल सकता है, जिससे अमूल्य प्रशिक्षण के अवसर मिलेंगे और इसकी सेनाओं की युद्ध तत्परता में वृद्धि होगी ।
- खुफिया जानकारी साझा करना :
नाटो प्लस में सदस्यता से भारत फ्रांस के डीजीएसई और यूके के एमआई6 के साथ खुफिया जानकारी साझा कर सकता है, जिससे भारत की सुरक्षा खतरों की पहचान की जा सकेगी और उसकी सुरक्षा क्षमता में वृद्धि हो सकती है।
- मजबूत राजनयिक संबंध:
नाटो प्लस में शामिल होने से भारत, फ्रांस और यूके के साथ मजबूत राजनयिक संबंध बना सकता है, जिससे ना केवल रक्षा मामलों, बल्कि व्यापार और जलवायु नीति जैसे अन्य क्षेत्रों में भी फायदा होगा।
- खतरों का साझा मुकाबला करना:
नाटो प्लस में शामिल होने से भारत को आतंकवाद और साइबर युद्ध जैसे वैश्विक सुरक्षा मुद्दों पर फ्रांस और यूके के साथ अधिक प्रभावी ढंग से सहयोग प्राप्त हो सकता है, जिससे मजबूत और एकीकृत जवाबी कार्रवाई हो सकेगी।
- चीन के प्रभाव को संतुलित करना:
- सैन्य उपस्थिति का मुकाबला करना : भारत के नाटो प्लस में शामिल होने से इसकी सैन्य ताकत में वृद्धि हो सकती है और यह विवादित सीमाओं पर संभावित चीनी आक्रामकता के खिलाफ निवारक के रूप में काम कर सकता है।
- राजनयिक लाभ: नाटो प्लस सदस्यता भारत के राजनयिक दबदबे को बढ़ा सकती है, जिससे चीन पर सीमा विवादों को लेकर अधिक न्यायसंगत बातचीत करने का दबाव बन सकता है।
- चीन-पाकिस्तान गठबंधन को संतुलित करना: नाटो प्लस का हिस्सा होने से पश्चिमी शक्तियों के साथ भारत के संबंधों को मजबूती प्रदान की जा सकती है साथ ही बेहतर खुफिया जानकारी साझा करने से चीन-पाकिस्तान गठबंधन को संतुलित भी किया जा सकता है।
- आर्थिक संतुलन: नाटो प्लस में शामिल होने से भारत में अधिक विदेशी निवेश आकर्षित हो सकता है, जिससे क्षेत्र में चीन के आर्थिक प्रभाव को संतुलित करने में मदद मिलेगी।
- तकनीकी बढ़त: नाटो प्लस सदस्यता साइबर और अंतरिक्ष क्षेत्रों में भारत की तकनीकी क्षमताओं को बढ़ा सकती है, जिससे इन क्षेत्रों में चीन द्वारा की गयी प्रगति की बराबरी हो सकेगी।
- साझा लोकतांत्रिक मूल्य:
भारत के लोकतांत्रिक मूल्य नाटो सदस्य देशों के साथ संरेखित हैं, जो आपसी विश्वास को बढ़ावा देने और क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने तथा आतंकवाद से लड़ने जैसे साझा रणनीतिक हितों को बढ़ावा देने में मदद कर सकते हैं।
संभावित चुनौतियाँ:
- गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) को ख़तरे में डालना:
- भारत को नाटो प्लस में शामिल करने से उसकी लंबे समय से चली आ रही गुटनिरपेक्षता की नीति को चुनौती मिल सकती है।
- इससे अन्य NAM देशों के साथ भारत के संबंध प्रभावित हो सकते हैं और देश की स्वतंत्र विदेश नीति बाधित हो सकती है।
- रूस के साथ संबंधों पर प्रभाव:
- भारत के पारंपरिक सहयोगी और प्राथमिक रक्षा आपूर्तिकर्ता रूस के, नाटो के साथ तनावपूर्ण संबंध हैं।
- नाटो के साथ भारत की घनिष्ठता संभावित रूप से इस रिश्ते को प्रभावित कर सकती है।
- उदाहरण के लिए, अमेरिकी आपत्तियों के बावजूद भारत द्वारा रूस से एस-400 मिसाइल प्रणाली का अधिग्रहण।
- चीन के साथ बढ़ता तनाव:
- नाटो प्लस में शामिल होने से चीन के साथ तनाव बढ़ सकता है, जिससे सीमा विवाद और आर्थिक संबंध जैसे मुद्दे और जटिल हो सकते हैं।
- इससे भारत की चीन के साथ ‘वुहान स्पिरिट’ और ‘चेन्नई कनेक्ट’ पहल में बाधा आ सकती है।
- चीन के साथ सामरिक साझेदारी और नीति पर प्रभाव:
- नाटो प्लस में शामिल होने से भारत की सामरिक साझेदारी प्रभावित हो सकती और दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ सकता है।
- यह पश्चिमी लोकतंत्रों के साथ संबंधों को मजबूत कर सकता है लेकिन रूस जैसे पारंपरिक सहयोगियों के साथ मनमुटाव भी पैदा कर सकता है।
- इसके अलावा, यह समावेशन भारत को चीन के प्रभाव को संतुलित करने में मदद कर सकता है, किन्तु यह मौजूदा तनाव को और भी बढ़ा सकता है । इसके अतिरिक्त भारत को संभावित रूप से अपने स्वतंत्र, संतुलित दृष्टिकोण से अधिक गठबंधन-संचालित विदेश नीति में बदलाव करने के लिए मजबूर कर सकता है।
निष्कर्ष:
नाटो प्लस ढांचे में भारत का संभावित समावेश कुछ महत्वपूर्ण लाभ और चुनौतियों को इंगित करता है। इस रणनीतिक बदलाव के लिए भारत को अपने पारंपरिक गुटनिरपेक्ष नीति, व दीर्घकालिक संबंधों और चीन के साथ बनाए रखने वाले नाजुक संतुलन पर सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है। अंततः यह देखना होगा कि क्या यह परिवर्तन भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को और बढ़ाएगा और वैश्विक मंच पर इसकी स्थिति को मजबूत करेगा । हालांकि यह काफी हद तक इस बात पर निर्भर करेगा कि भारत इस जटिल भू-राजनीतिक गतिकी को कितने प्रभावी ढंग से प्रबंधित करता है।
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