Q. भारतीय न्यायालयों में लंबित मामलों की उच्च संख्या में योगदान देने वाले कारकों पर विस्तृत चर्चा करें। इस मुद्दे का समाधान करने और न्याय प्रदान करने में तेजी लाने के लिए उपाय भी सुझाएं।(250 शब्द, 15 अंक)

उत्तर:

दृष्टिकोण:

  • परिचय: लोकतांत्रिक ढांचे में भारतीय न्यायपालिका के महत्व का वर्णन करते हुए शुरुआत करें।
  • मुख्य विषयवस्तु:
    • न्यायपालिका के विभिन्न स्तरों पर लंबित मामलों के विस्तृत विवरण की रूपरेखा तैयार करें।
    • लंबित मामलों की उच्च संख्या में योगदान देने वाले कारकों पर चर्चा करें।
    • इस समस्या के समाधान के लिए प्रभावी उपायों को सुझाएँ ।
  • निष्कर्ष: आवश्यक हस्तक्षेपों की तात्कालिकता और आवश्यकता पर जोर देते हुए निष्कर्ष निकालें।

परिचय:

भारतीय न्यायपालिका, लोकतंत्र और न्याय के सिद्धांतों को कायम रखने वाले गढ़ों में से एक है । वर्तमान में न्यायपालिका में लंबित मामलों की  खतरनाक संख्या एक बड़ी चुनौती पेश कर रही है,जिसके कारण यह सुर्खियों में है । राज्यसभा में सरकार द्वारा प्रस्तुत किए गए हालिया आंकड़ों के अनुसार, विभिन्न अदालतों में लंबित मामलों की संख्या लगभग पांच करोड़ के करीब हो गयी है जो चौंकाने वाली बात है। इस प्रकार अदालतों में लंबित मामलों की संख्या न केवल एक प्रशासनिक चुनौती है, बल्कि समय पर न्याय न मिलने का भी एक खतरा बना हुआ है।

मुख्य विषयवस्तु:

वर्तमान परिदृश्य :

  • जिला और अधीनस्थ न्यायालय: 31 दिसंबर, 2022 तक 4.32 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं।
  • सुप्रीम कोर्ट: 1 फरवरी, 2023 तक 69,511 मामले लंबित थे।
  • उच्च न्यायालय: देश के 25 उच्च न्यायालयों में 59 लाख से अधिक मामलों का बैकलॉग। उल्लेखनीय है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय में 10.30 लाख मामले लंबित हैं, जो उच्च न्यायालयों में सबसे अधिक है, जबकि सिक्किम उच्च न्यायालय में सबसे कम 171 मामले लंबित हैं।
  • समग्र परिदृश्य: न्यायपालिका में कुल लंबित 4.92 करोड़ मामले हैं।

 उच्च लंबित मामलों में योगदान देने वाले कारक:

  • बुनियादी ढाँचा और जनशक्ति की सीमा:
    • प्रति दस लाख आबादी पर केवल 21 न्यायाधीशों (पीआरएस रिपोर्ट के अनुसार) के साथ, न्यायिक बुनियादी ढांचा बड़ी आबादी की मांगों के अनुरूप नहीं है।
  • जटिल न्यायिक प्रक्रियाएँ:
    • अक्सर, प्रक्रियात्मक पेचीदगियों के कारण सुनवाई लंबी हो जाती है और बार-बार स्थगन होता है, जिससे देरी बढ़ जाती है।
  • न्यायिक रिक्तियाँ:
    • न्यायपालिका के विभिन्न स्तरों पर कई पद खाली रहने से मौजूदा अधिकारियों पर बोझ कई गुना बढ़ जाता है।
  • अकुशल प्रकरण प्रबंधन:
    • किसी मामलों को उसकी तात्कालिकता और प्रकृति के आधार पर संभालने के लिए एक संरचित दृष्टिकोण की कमी के कारण बैकलॉग बढ़ जाता है।
  • निरर्थक मुकदमे:
    • कई बार, सिस्टम आधारहीन मामलों से भरा होता है जिन्हें अधिक कड़े फ़िल्टरिंग तंत्र से टाला जा सकता था।
  • तकनीक का अभाव:
    • केस प्रबंधन और दस्तावेज़ीकरण के लिए डिजिटल तरीकों को अपनाने में धीमी गति के कारण अक्षमताएं पैदा हुई हैं।
  • बहु-स्तरीय समीक्षा प्रणाली:
    • भारतीय न्यायिक प्रणाली की संरचना कई समीक्षा प्रक्रिया से गुजरती है, जो कई प्रकार के मूल्यांकन को जन्म दे सकती है, जिससे लंबित मामलों में वृद्धि हो सकती है।

इस समस्या के समाधान के उपाय:

  • न्यायिक बुनियादी ढांचे को मजबूत करना: न्यायालयों की संख्या बढ़ाना और सुनिश्चित करना कि वे अच्छी तरह से सुसज्जित हों, जिससे अधिक मामलों को संभालने की उनकी क्षमता बढ़ जाएगी।
  • शीघ्र भर्ती: न्यायिक रिक्तियों को भरने के लिए भर्ती प्रक्रिया में तेजी लाये जाने की आवश्यकता है।
  • वैकल्पिक विवाद समाधान (एडीआर) को बढ़ावा देना: औपचारिक अदालतों पर दबाव कम करने के लिए मध्यस्थता और सुलह जैसे तंत्र को प्रोत्साहित करना चाहिए ।
  • प्रभावी मामला प्रबंधन: एक अच्छी तरह से संरचित मामला प्रबंधन प्रणाली उनकी प्रकृति और तात्कालिकता के आधार पर मामलों को प्राथमिकता दे सकती है और उनमें तेजी ला सकती है।
  • विधायी सुधार: प्रक्रियात्मक कानूनों को सरल बनाने और अनावश्यक स्थगन की गुंजाइश को कम करने से देरी में भारी कमी आ सकती है।
  • तकनीकी एकीकरण: ऑनलाइन केस रिकॉर्ड, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और एआई-संचालित पूर्वानुमानित विश्लेषण जैसे डिजिटल समाधानों को अपनाना इस मुद्दे को संबोधित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। 
  • बेबुनियाद मामलों की रोकथाम: आधारहीन मामलों को दाखिल करने से रोकने के लिए कड़े उपाय लागू करने की आवश्यकता है ।
  • जागरूकता कार्यक्रम: नागरिकों को उनके कानूनी अधिकारों और प्रक्रियाओं के बारे में जानकारी देने से न्यायपालिका के दुरुपयोग को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

निष्कर्ष:

भारतीय अदालतों में लंबित मामलों की भारी मात्रा के कारण तत्काल और बहुआयामी हस्तक्षेप की आवश्यकता है। न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के बीच एक सहयोगात्मक प्रयास देश के न्यायिक तंत्र में जनता के विश्वास को बहाल करते हुए समय पर न्याय का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।

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