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Q. आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए सेंदाई फ्रेमवर्क को लागू करने में भारत द्वारा की गई प्रगति और इसके लक्ष्यों को प्राप्त करने में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये । (250 शब्द, 15 अंक)

उत्तर:

दृष्टिकोण:

  • परिचय: सेंदाई फ्रेमवर्क का परिचय देते हुए इसके वैश्विक महत्व को रेखांकित करे इसके अतिरिक्त विशेष रूप से भारत जैसे आपदा-प्रवण क्षेत्रों के लिए इसकी प्रासंगिकता पर जोर दें। 
  • मुख्य विषयवस्तु:
    • व्यापक राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना पर प्रकाश डालें साथ ही एनडीएमए जैसे प्रमुख संस्थानों को मजबूत करने पर विस्तार से चर्चा करें। विशेष रूप से प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों में तकनीकी प्रगति का उल्लेख करें, और क्षमता निर्माण पर जोर देते हुए निष्कर्ष निकालें।
    • सेंदाई लक्ष्यों को प्राप्त करने में आने वाली चुनौतियों की पहचान कर उनका उल्लेख करें।
    • अपनी बातों को बेहतर ढंग से पुष्ट करने के लिए प्रासंगिक डेटा और उदाहरण प्रदान करें।
  • निष्कर्ष: सेंदाई लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता पर बल देते हुए, प्रगति और चुनौतियों का सारांश देते हुए निष्कर्ष निकालें।

परिचय: 

आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए सेंडाई फ्रेमवर्क (2015-2030) को 2015 में सेंडाई (जापान) में तीसरे संयुक्त राष्ट्र विश्व सम्मेलन में अपनाया गया था। विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं से ग्रस्त राष्ट्र के रूप में, भारत ने सेंडाई फ्रेमवर्क के प्रति अपनी सुनिश्चित की है ताकि आपदा-प्रेरित नुकसान को कम किया जा सके।

मुख्य विषयवस्तु:

भारत द्वारा की गई प्रगति:

  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (एनडीएमपी):
    • भारत ने 2016 में एनडीएमपी लॉन्च किया, जो पूरी तरह से सेंडाई फ्रेमवर्क के अनुरूप है।
    • एनडीएमपी आपदा की रोकथाम, शमन, प्रतिक्रिया और पुनर्प्राप्ति पर केंद्रित है।
  • संस्थागत तंत्र को मजबूत बनाना:
    • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों को पुनर्जीवित किया गया है।
    • उदाहरण के लिए, ‘स्कूल सुरक्षा कार्यक्रमजैसी एनडीएमए की पहल आपदा जागरूकता बढ़ाने के लक्ष्य को संबोधित करती है।
  • प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली:
    • प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों में महत्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता है , विशेषकर चक्रवातों के संदर्भ में ।
    • फ़ानी‘ (2019) जैसे चक्रवातों के दौरान सटीक भविष्यवाणियों और समय पर निकासी के परिणामस्वरूप मृत्यु दर को काफी हद तक कम किया जा सका।
  • क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण:
    • प्रशिक्षण, अनुसंधान और दस्तावेज़ीकरण के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (एनआईडीएम) जैसे संस्थानों की स्थापना।
    • प्रतिक्रिया तंत्र का आकलन और सुधार करने के लिए राज्यों में नियमित मॉक ड्रिल आयोजित की जाती हैं।
  • बुनियादी ढांचे में निवेश:
    • पूर्वी तट पर चक्रवात आश्रयों का निर्माण चक्रवातों के दौरान जीवन की सुरक्षा में महत्वपूर्ण साबित हुआ है।
    • भूकंप-रोधी इमारतों जैसे आपदा-लचीलेबुनियादी ढांचे के निर्माण पर ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है ।

सेंदाई लक्ष्यों को प्राप्त करने में चुनौतियाँ:

  • भौगोलिक विविधता:
    • भारत की विविध स्थलाकृति, बाढ़-संभावित मैदानों से लेकर भूकंप-संवेदनशील क्षेत्रों तक, आपदा प्रतिक्रिया तंत्र के मानकीकरण को जटिल बनाती है।
  • केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय:
    • आपदा प्रबंधन काफी हद तक राज्य सूची का विषय है, इसलिए संसाधनों और विशेषज्ञता के लिए केंद्र के साथ समन्वय अकसर चुनौतियां पैदा करता है।
  • शहरी नियोजन और अतिक्रमण:
    • उदाहरण के लिए, चेन्नई में बाढ़ (2015) अनियोजित शहरी विकास और जल निकायों पर अतिक्रमण के कारण बढ़ गई थी।
  • वित्तीय बाधाएं:
    • सेंदाई फ्रेमवर्क जोखिम-रोधी बुनियादी ढांचे पर जोर देता है, इसलिए आवश्यक महत्वपूर्ण निवेश भारत जैसे विकासशील देश के लिए चुनौतियां पैदा करता है।
  • सार्वजनिक जागरूकता और तैयारी:
    • सरकार द्वारा किए जा रहे कई  पहल के बावजूद, कई ग्रामीण और यहां तक कि शहरी क्षेत्रों में, आपदा-तैयारी उपायों के बारे में जागरूकता की कमी है।
  • जलवायु परिवर्तन और बढ़ती अनिश्चितताएँ:
    • समुद्र के बढ़ते स्तर, वर्षा के पैटर्न में बदलाव और जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती चक्रवाती गतिविधियाँ अप्रत्याशित चुनौतियाँ पैदा करती हैं।

निष्कर्ष

अब जबकि भारत ने अपनी आपदा जोखिम न्यूनीकरण रणनीतियों को सेंदाई फ्रेमवर्क के साथ संरेखित करने में सराहनीय प्रगति की है इसलिए उसे अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आंतरिक चुनौतियों पर काबू पाने की आवश्यकता है। ऐसे में जलवायु परिवर्तन और शहरी दबावों की बढ़ती अनिश्चितताओं के साथ, नीति, सार्वजनिक जागरूकता और प्रौद्योगिकी को शामिल करने वाला एक बहुआयामी दृष्टिकोण अनिवार्य हो जाता है।

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