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Q. स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने में भारत के चुनाव आयोग की शक्तियों और सीमाओं पर चर्चा कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

उत्तर:

दृष्टिकोण:

  • प्रस्तावना: भारत का चुनाव आयोग (ईसीआई) जो को एक संवैधानिक निकाय है, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।  इसकी स्थापित शक्तियों और उभरती चुनौतियों पर प्रकाश डालिए।
  • मुख्य विषयवस्तु:
    • ईसीआई की संवैधानिक शक्तियों पर चर्चा कीजिए, जिसमें चुनाव पर्यवेक्षण, सलाहकार क्षेत्राधिकार और आदर्श आचार संहिता के प्रवर्तन में इसकी भूमिका शामिल है।
    • ईसीआई द्वारा सामना की जाने वाली सीमाओं की जांच कीजिए, जैसे स्वायत्तता बनाए रखने में चुनौतियां व आदर्श आचार संहिता लागू करने में प्रतिबंध आदि।
  • निष्कर्ष: स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने में इसकी प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए ईसीआई की स्वायत्तता और कानूनी अधिकार को मजबूत करने की आवश्यकता पर जोर दीजिए।

 

प्रस्तावना:

भारत का चुनाव आयोग (ईसीआई) भारत की चुनावी प्रक्रिया की सत्यनिष्ठा और निष्पक्षता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालाँकि, इसके पास महत्वपूर्ण शक्तियाँ तो हैं, किन्तु इसे कुछ सीमाओं का भी सामना करना पड़ता है।

मुख्य विषयवस्तु: 

भारत के चुनाव आयोग की शक्तियाँ:

  • संवैधानिक प्राधिकरण:  ईसीआई एक स्वायत्त संवैधानिक निकाय है जो भारत में संघ और राज्य चुनाव प्रक्रियाओं का संचालन करता है। भारतीय संविधान के भाग 15 में अनुच्छेद 324 से लेकर अनुच्छेद 329 तक निर्वाचन की व्याख्या की गई है। संविधान ने अनुच्छेद 324 में ही निर्वाचन आयोग को चुनाव संपन्न कराने की ज़िम्मेदारी दी है। यह संसद, राज्य विधानसभाओं, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनावों को सम्पन्न कराता है।
  • नियुक्ति और कार्यकाल: राष्ट्रपति मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करते हैं, जिनका कार्यकाल छह वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक होता है, उन्हें भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के समान दर्जा प्राप्त होता है। मुख्य चुनाव आयुक्त को केवल संसद द्वारा महाभियोग के माध्यम से राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है।
  • सलाहकार क्षेत्राधिकार और अयोग्यता संबंधी शक्तियाँ: ईसीआई संसद और राज्य विधानसभाओं के सदस्यों की चुनाव के बाद अयोग्यता संबंधी मुद्दे पर सलाह दे सकता है और चुनावों में कपटी प्रथाओं के लिए अयोग्यता की सिफारिश कर सकता है। यह उन उम्मीदवारों को भी प्रतिबंधित कर सकता है जो निर्धारित समय और तरीके के भीतर अपने चुनाव खर्च का लेखा-जोखा दर्ज करने में विफल रहते हैं।
  • परिसीमन और मतदाता सूची: यह देश या प्रांत में विधायी निकाय वाले क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा तय करता है साथ ही मतदाता सूची को व्यवस्थित और संशोधित करता है। यह चुनावों के लिए तारीखें और कार्यक्रम भी निर्धारित करता है, नामांकन पत्रों की जांच करता है, और राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करता है, उन्हें चुनाव चिन्ह आवंटित करता है।
  • आदर्श आचार संहिता: ईसीआई लोकतंत्र की मर्यादा बनाए रखने के लिए चुनावों के दौरान आदर्श आचार संहिता सुनिश्चित करता है, राजनीतिक दलों को नियंत्रित करता है और चुनावी अभियान संबंधी व्यय सीमाओं की निगरानी करता है।
  • अधिकारियों की नियुक्ति: ईसीआई विभिन्न स्तरों पर चुनाव से जुड़े कार्य की निगरानी के लिए मुख्य निर्वाचन अधिकारी, जिला निर्वाचन अधिकारी, रिटर्निंग अधिकारी और निर्वाचक पंजीकरण अधिकारी जैसे विभिन्न अधिकारियों की नियुक्ति करता है।
  • सामान्य चुनाव प्रबंधन: चुनाव आयोग संसद और राज्य विधानमंडलों के साथ-साथ भारत के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के कार्यालयों के सभी चुनावों का पर्यवेक्षण, निर्देशन, नियंत्रण और संचालन करता है।

भारत निर्वाचन आयोग की सीमाएँ:

  • विश्वसनीयता और निष्क्रियता का संकट: 2019 के आम चुनाव के दौरान आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन जैसे कई मामलों ने ईसीआई की प्रभावशीलता और शक्तिशाली राजनीतिक संस्थाओं के खिलाफ निर्णायक रूप से कार्य करने में इसकी कथित अक्षमता के बारे में चिंताएं बढ़ा दीं।
  • नियुक्तियों में स्वायत्तता का अभाव: मौजूदा सरकार द्वारा चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति से नियुक्ति करने वाली सरकार के प्रति पूर्वाग्रह या दायित्व की धारणा पैदा हो सकती है, जिससे संस्था की कथित स्वतंत्रता प्रभावित हो सकती है।
  • चुनाव आयुक्तों की असुरक्षा: मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों के बीच कार्यकाल की अलग-अलग सुरक्षा उनकी स्वतंत्रता और प्रभावशीलता को प्रभावित कर सकती है। इस मुद्दे को सुधारने के प्रस्तावों पर कार्रवाई नहीं की गई है।
  • आदर्श आचार संहिता का सीमित प्रवर्तन: प्रभावशाली होते हुए भी आदर्श आचार संहिता में कानूनी प्रवर्तनीयता का अभाव है, जिससे उल्लंघनों के लिए महत्वपूर्ण दंड लगाने की ईसीआई की क्षमता सीमित हो जाती है।
  • राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने में असमर्थता: पंजीकरण प्राधिकारी होने के बावजूद, ईसीआई के पास गंभीर उल्लंघनों के लिए भी राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने की शक्ति नहीं है, जिससे पार्टी आचरण पर उसका नियंत्रण सीमित हो जाता है।
  • आधुनिक प्रचार अभियान को अपनाने में चुनौतियाँ: ईसीआई को विशेष रूप से डिजिटल युग में मतदाता हेरफेर और प्रचार के नए रूपों को लगातार अपनाने की आवश्यकता है।
  • मतदाता जागरूकता: स्वीप(SVEEP) और सीविजिल ऐप(cVigil App) जैसी मतदाता जागरूकता पहल महत्वपूर्ण हैं, ये निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने का दायित्व आंशिक रूप से मतदाताओं पर डालते हैं, जो ईसीआई द्वारा अधिक प्रत्यक्ष नियंत्रण की आवश्यकता को दर्शाता है।

निष्कर्ष:

भारत का चुनाव आयोग, अपनी व्यापक शक्तियों और संवैधानिक जनादेश के बावजूद, अपनी स्वायत्तता, विश्वसनीयता और प्रभावशीलता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करता है। इन सीमाओं को संबोधित करने के लिए न केवल संस्थागत सुधारों की आवश्यकता है बल्कि लोकतांत्रिक निष्पक्षता और सत्यनिष्ठा के सिद्धांतों को बनाए रखने की प्रतिबद्धता भी आवश्यक है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए ईसीआई का निरंतर अनुकूलन, प्रवर्तन क्षमताएं और मजबूत कानूनी ढांचा आवश्यक है।

 

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