भूमिका
भारत राज्य वन रिपोर्ट, 2021 के अनुसार , भारत में लगभग 24% भौगोलिक क्षेत्र पर वन हैं । वन कई मूर्त और अमूर्त लाभ प्रदान करते हैं जो 2015 में उल्लिखित एसडीजी की उपलब्धि का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं।
मुख्य भाग
भारत में वन संसाधन निम्नलिखित तरीकों से एसडीजी 2030 को प्राप्त करने के लिए प्रभावशाली हैं:
- गरीबी उन्मूलन: एसडीजी 1 (गरीबी की पूर्णतः समाप्ति) और एसडीजी 8 (अच्छा काम और आर्थिक विकास) को शहद, बांस और औषधीय पौधों जैसे गैर-लकड़ी वन उत्पादों की टिकाऊ कटाई जैसी गतिविधियों के माध्यम से समर्थित किया जाता है।
- सतत कृषि: कृषि वानिकी को बढ़ावा देने और सतत वन प्रबंधन तकनीकों को शामिल करके एसडीजी 2 (भुखमरी की समाप्ति) प्राप्त किया जा सकता है।
- जैव विविधता संरक्षण: वन विभिन्न लुप्तप्राय प्रजातियों जैसे कि रॉयल बंगाल टाइगर का समर्थन करते हैं और उनका संरक्षण एसडीजी 15 (भूमि पर जीवन) में योगदान देगा।
- जलवायु परिवर्तन शमन: हरियाणा में कृषि वानिकी पहल कृषि भूमि में वृक्षारोपण को बढ़ावा देती है, जिससे कार्बन उत्सर्जन में कमी आती है और इस प्रकार एसडीजी 13 (जलवायु कार्रवाई) में योगदान मिलता है।
- जल संरक्षण: एसडीजी 6 (स्वच्छ जल और स्वच्छता) को पश्चिमी घाट जैसे वन क्षेत्रों की रक्षा करके प्राप्त किया जा सकता है, जो जलग्रहण क्षेत्रों के रूप में कार्य करते हैं और लाखों लोगों को स्वच्छ पानी प्रदान करते हैं।
- नवीकरणीय ऊर्जा: एसडीजी 7 (सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा) को बायोमास बिजली संयंत्रों जैसी सतत वन-आधारित जैव-ऊर्जा परियोजनाओं को बढ़ावा देकर प्राप्त किया जा सकता है, जो जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करते हैं।
- सतत पर्यटन: ऐसे क्षेत्रों में जिम्मेदार पर्यटन को बढ़ावा देना, एसडीजी 8 (अच्छा काम और आर्थिक विकास) और एसडीजी 12 (जिम्मेदारी के साथ उपभोग और उत्पादन) का समर्थन करता है।
भारत में वन संसाधनों के संरक्षण में आने वाली चुनौतियाँ
- विकास का दबाव: बांधों और राजमार्गों जैसी आधारभूत संरचना की परियोजनाओं के निर्माण के लिए अक्सर बड़े वन क्षेत्रों को साफ करने की आवश्यकता होती है, जिससे वन्यजीवों के आवास का ह्वास होता है और पारिस्थितिक तंत्र में व्यवधान होता है। उदाहरण- मुंबई मेट्रो के लिए आरे के जंगलों को साफ़ करना।
- वनों की कटाई: उदाहरण के लिए, असम और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में जंगलों को कृषि भूमि में बदलने से वन संसाधनों को खतरा है।
- अवैध कटाई: लकड़ी और ईंधन के लिए अनियमित कटाई से वनों का क्षरण होता है। झारखंड राज्य में बड़े पैमाने पर अवैध कटाई से बहुमूल्य वन संसाधन खतरे में हैं।
- जंगल की आग: जंगल की आग, जो अक्सर मानवीय गतिविधियों या प्राकृतिक कारणों से होती है, जंगल के नुकसान और क्षरण में योगदान करती है। उदाहरण: उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में बार-बार लगने वाली जंगल की आग।
- वन्यजीव अवैध शिकार और तस्करी: सुंदरबन में बाघों का अवैध शिकार या पूर्वोत्तर भारत में पैंगोलिन जैसी लुप्तप्राय प्रजातियों का अवैध व्यापार इसके प्रमुख उदाहरण हैं।
- आक्रामक प्रजातियाँ: नीलगिरि बायोस्फीयर रिजर्व में लैंटाना कैमारा जैसी आक्रामक प्रजातियों का प्रसार ,वन विविधता और पुनर्जनन को प्रभावित करता है।
- सामुदायिक भागीदारी की कमी: गुजरात के बन्नी घास के मैदानों में सामुदायिक भागीदारी की कमी सामुदायिक लाभ के लिए वन संसाधनों के स्थायी उपयोग को प्रभावित करती है। छत्तीसगढ़ में जहां इसे पूरी तरह से लागू किया गया, वहां सकारात्मक प्रभाव देखने को मिला।
इन चुनौतियों से निपटने के उपाय
- सामुदायिक सहभागिता को बढ़ावा देना: उदाहरण के लिए, भारत में संयुक्त वन प्रबंधन कार्यक्रम स्थानीय समुदायों को निर्णय लेने और लाभ-साझाकरण में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करता है। उदाहरण- हिमालयी राज्यों में गद्दी और गुज्जर जनजातियों को शामिल करना।
- एंटी–लॉगिंग उपायों का सख्त प्रवर्तन: भारत के विभिन्न राज्यों में वन सुरक्षा बल जैसे विशेष कार्य बलों का निर्माण अवैध कटाई को रोकने में प्रभावी रहा है।
- पुनर्वनीकरण और वनरोपण को प्रोत्साहित करना: पुनर्वनीकरण पहल को बढ़ावा देना, जैसे कि देशी वृक्ष प्रजातियों को रोपना और नष्ट हुए वनों को बहाल करना, वन संसाधनों को फिर से पुनर्जीवित किया जा सकता है। जैसे: ग्रीन इंडिया मिशन।
- एफआरए, 2006 का प्रभावी कार्यान्वयन: उदाहरण के लिए, कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान
निष्कर्ष
यदि ये उपाय प्रभावी ढंग से कार्यान्वित किए जाते हैं, तो भारत में वन संसाधन संरक्षण में आने वाली चुनौतियों का समाधान करने में मदद मिल सकती है, इस महत्वपूर्ण प्राकृतिक संपत्ति के संरक्षण और सतत प्रबंधन को सुनिश्चित करने के साथ-साथ एसडीजी 2030 की उपलब्धि में योगदान दिया जा सकता है।
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