उत्तर:
दृष्टिकोण
- भूमिका
- नैनो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के बारे में संक्षेप में लिखें।
- मुख्य भाग
- भारत में नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी की वृद्धि और विकास के बारे में लिखें।
- लिखें कि 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन तक पहुंचने के लिए भारत द्वारा नैनो प्रौद्योगिकी का लाभ कैसे उठाया जा सकता है।
- निष्कर्ष
- इस संबंध में उचित निष्कर्ष दीजिए।
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भूमिका
नैनो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में सामग्रियों के परिवर्तन और उनका उपयोग नैनोस्तर पर होता है, जो सामान्यत: 1 से 100 नैनोमीटर तक होता है। यह क्षेत्र विशिष्ट नैनोस्तरीय गुणों के कारण चिकित्सा, इलेक्ट्रॉनिक्स, ऊर्जा और सामग्री विज्ञान में परिवर्तनकारी समाधान तैयार करते हुए भौतिकी, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान और इंजीनियरिंग में प्रगति को सक्षम बनाता है।
मुख्य भाग
भारत में नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी का विकास और प्रगति
- नैनो प्रौद्योगिकी पहल: भारत ने 2001 में नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी पहल (एनएसटीआई) की शुरुआत की, इसके बाद नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा 2007 में नैनो मिशन की शुरुआत की गई ।
- वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर): भारत भर में सीएसआईआर प्रयोगशालाएं सक्रिय रूप से नैनो अनुसंधान में लगी हुई हैं, जो विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति में योगदान दे रही हैं। उदाहरण के लिए– सीएसआईआर द्वारा संचालित नेशनल सेंटर फॉर नैनोस्ट्रक्चर्ड मैटेरियल्स (एनसीएनएसएम) नई और नवाचारी नैनो-संरचित सामग्रियों के मॉडलिंग, संश्लेषण, चरित्रण और निर्माण पर ध्यान केंद्रित करता है।
- अनुसंधान संस्थान: देश भर में कई समर्पित संस्थान और अनुसंधान केंद्र स्थापित किए गए हैं, जैसे सेंटर फॉर नैनो एंड सॉफ्ट मैटर साइंसेज ( सीईएनएस ), जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च ( जेएनसीएएसआर ) आदि।
- उद्योग सहयोग: टाटा केमिकल्स और रिलायंस इंडस्ट्रीज जैसी कई भारतीय कंपनियों ने अनुसंधान संस्थानों के साथ मिलकर काम करते हुए नैनो टेक्नोलॉजी अनुसंधान और विकास में निवेश किया है।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: भारतीय शोधकर्ता अक्सर नैनो प्रौद्योगिकी परियोजनाओं पर अंतर्राष्ट्रीय साथियों के साथ सहयोग करते हैं। उल्लेखनीय साझेदारियों में भारत–अमेरिका संयुक्त स्वच्छ ऊर्जा अनुसंधान और भारत–यूरोपीय संघ कार्यात्मक सामग्री अनुसंधान कार्यक्रम शामिल हैं।
- पेटेंट और प्रकाशन: भारत नैनो प्रौद्योगिकी में अनुसंधान प्रकाशनों के लिए शीर्ष देशों में से एक है , जो इसकी अनुसंधान क्षमता को दर्शाता है। साथ ही, पिछले कुछ वर्षों में इस डोमेन में दायर पेटेंट की संख्या में लगातार वृद्धि देखी गई है।
- अंतःविषय अनुसंधान: भारत में नैनो प्रौद्योगिकी अनुसंधान अक्सर जैव प्रौद्योगिकी, भौतिकी और रसायन विज्ञान जैसे अन्य विषयों के साथ मिश्रित होता है। इससे नैनोमेडिसिन, नैनोमटेरियल्स और नैनोइलेक्ट्रॉनिक्स में विकास हुआ है।
2070 तक शुद्ध–शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भारत द्वारा निम्नलिखित तरीकों से नैनो प्रौद्योगिकी का लाभ उठाया जा सकता है:
- सौर ऊर्जा: नैनो–संवर्धित फोटोवोल्टिक सेल, जैसे कि आईआईटी बॉम्बे द्वारा विकसित किए जा रहे हैं , सौर ऊर्जा रूपांतरण दक्षता को बढ़ावा दे सकते हैं। क्वांटम डॉट्स का उपयोग करके, उनका लक्ष्य ऊर्जा उत्पादन को अधिकतम करते हुए सूर्य के प्रकाश के व्यापक स्पेक्ट्रम का उपयोग करना है।
- ऊर्जा भंडारण: नैनो–इंजीनियर्ड बैटरियां, जैसे कि एक भारतीय स्टार्टअप, लॉग 9 मटेरियल्स द्वारा विकसित, तेज चार्जिंग और लंबी उम्र प्रदान कर सकती हैं। उनकी ग्राफीन-आधारित बैटरियां ऊर्जा भंडारण में क्रांति ला सकती हैं, जो नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग का एक महत्वपूर्ण पहलू है।
- कार्बन कैप्चर: सीएसआईआर–नेशनल केमिकल लेबोरेटरी के भारतीय शोधकर्ताओं ने नैनो–एन्हांस्ड सॉल्वैंट्स विकसित किया है जो CO2 को अधिक कुशलता से कैप्चर कर सकता है, जो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
- ऊर्जा बचत: आईआईएससी बैंगलोर में अनुसंधान समूहों द्वारा विकसित किए जा रहे क्वांटम डॉट एलईडी में पारंपरिक प्रकाश प्रणालियों की तुलना में बेहतर ऊर्जा दक्षता और लंबा जीवनकाल होता है, जो समग्र ऊर्जा बचत में योगदान करते हैं।
- स्वच्छ उत्पादन: नैनो प्रौद्योगिकी , औद्योगिक प्रक्रियाओं को हरित बना सकती है। उदाहरण के लिए, रासायनिक अभिक्रियाओं में उपयोग किए जाने वाले नैनो–उत्प्रेरक, जैसे कि रासायनिक प्रौद्योगिकी संस्थान ,मुंबई में विकसित किए जा रहे हैं, ऊर्जा की खपत और अपशिष्ट उत्पादन को कम कर सकते हैं।
- पर्यावरण–अनुकूल नैनोमटेरियल: नैनो प्रौद्योगिकी पर्यावरण-अनुकूल सामग्री बनाने में मदद कर सकती है। उदाहरण के लिए, नैनो-सेलूलोज़, एक बायोडिग्रेडेबल नैनोमटेरियल है जिस पर विभिन्न भारतीय विश्वविद्यालयों में शोध किया जा रहा है, जो अपशिष्ट और पर्यावरणीय प्रभाव को कम कर सकता है।
- कार्बन कैप्चर और संग्रह (सीसीएस): औद्योगिक उत्सर्जन से कार्बन डाइऑक्साइड को अधिक प्रभावी ढंग से अवशोषित करने के लिए नैनोकणों का उपयोग सॉर्बेंट्स के रूप में किया जा सकता है, जिससे वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम किया जा सकता है। उदाहरण – नैनोकण जैसे गोल्ड और धात्विक ऑक्साइड।
निष्कर्ष
इस प्रकार, नैनोटेक्नोलॉजी का प्रभावी ढंग से लाभ उठाकर, भारत में अपने कार्बन फुटप्रिंट को काफी हद तक कम करने और 2070 तक अपने महत्वाकांक्षी शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करने की क्षमता है, हालांकि नैनोकणों के उत्पादन और निपटान के संभावित पर्यावरणीय प्रभावों को भी जिम्मेदारी से प्रबंधित किया जाना चाहिए।
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