उत्तर:
दृष्टिकोण:
- भूमिका: बढ़ती तकनीकी मांगों और राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं के कारण भारत में अर्धचालक (Semiconductor) उद्योग को विकसित करने की रणनीतिक आवश्यकता पर जोर दीजिए।
- मुख्य भाग:
- अर्धचालकों (Semiconductors) की महत्वपूर्ण भूमिका की रूपरेखा प्रस्तुत करें।
- सेमीकॉन इंडिया प्रोग्राम जैसे सरकारी प्रयासों का संक्षेप में उल्लेख करें।
- भारत की बाज़ार क्षमता और प्रतिभा पूल पर प्रकाश डालें।
- अनुसंधान एवं विकास, साझेदारी और बुनियादी ढांचे पर ध्यान केंद्रित करने का सुझाव दें।
- निष्कर्ष: भारत की वैश्विक स्थिति और तकनीकी स्वतंत्रता के लिए आत्मनिर्भर सेमीकंडक्टर उद्योग के लाभों पर जोर दें।
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भूमिका:
सेमीकंडक्टर उद्योग में आत्मनिर्भर बनने की भारत की महत्वाकांक्षा उसके अनुमानित घरेलू सेमीकंडक्टर खपत से प्रेरित है, जिसके 2026 तक 80 बिलियन डॉलर से अधिक होने की उम्मीद है। यह महत्वाकांक्षा राष्ट्रीय सुरक्षा हितों और तकनीकी नवाचार की अनिवार्यता के अनुरूप है, जो भारत को वैश्विक अर्धचालक आपूर्ति श्रृंखलाओं में एक महत्वपूर्ण भागीदार के रूप में स्थापित करती है।
मुख्य भाग:
- सामरिक महत्व: अर्धचालक आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स का अति महत्वपूर्ण भाग हैं, जिसके परिणाम स्वरुप इनका उत्पादन किसी भी देश एक सामरिक संपत्ति के समान है। भारत में घरेलू सेमीकंडक्टर विनिर्माण आधार स्थापित करने से तकनीकी निर्भरता, राष्ट्रीय सुरक्षा और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला व्यवधानों के प्रति आर्थिक भेद्यता जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों का समाधान होता है।
- सरकारी पहल और प्रोत्साहन: भारत सरकार ने सेमीकंडक्टर विनिर्माण में निवेश आकर्षित करने के लिए सेमीकॉन इंडिया प्रोग्राम और प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) योजना सहित कई पहल शुरू की हैं। ये कार्यक्रम वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करते हैं, जिनका उद्देश्य व्यवसाय करने में आसानी प्रदान करना है, और डिज़ाइन से लेकर असेंबली, टेस्टिंग और पैकेजिंग तक सेमीकंडक्टर उत्पादन के सभी चरणों में विकास का समर्थन करना है।
- बाजार क्षमता और प्रतिभा पूल: भारत अपनी बड़ी आबादी और मध्यम वर्ग द्वारा संचालित सेमीकंडक्टर उत्पादों की बढ़ती मांग के साथ, बाजार क्षमता के मामले में एक महत्वपूर्ण लाभ प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त, चिप डिजाइन और नवाचार में अद्भुत क्षमताओं के साथ भारत का प्रतिभा पूल, इस क्षेत्र के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण चालक के रूप में पहचाना जाता है।
- चुनौतियाँ और अवसर:भारत को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है जैसे स्थापित वैश्विक अग्रणियों से प्रतियोगिता और अब संरचना और प्रौद्योगिकी में पर्याप्त निवेश की आवश्यकता। हालाँकि, चिप उत्पादन, नवीकरणीय ऊर्जा, ऑटोमोटिव और अन्य क्षेत्रों में प्रचुर अवसर हैं, जहाँ भारत अपने लिए एक जगह बना सकता है।
विकास के लिए व्यापक रणनीति
अपनी सेमीकंडक्टर विनिर्माण क्षमताओं को बढ़ाने के लिए, भारत को एक बहु-आयामी रणनीति अपनानी चाहिए:
- अनुसंधान एवं विकास और नवाचार को बढ़ाना: उन्नत अर्धचालक प्रौद्योगिकियों में नवाचार को बढ़ावा देने के लिए विश्व स्तरीय अर्धचालक अनुसंधान केंद्र स्थापित करना। इसमें पुराने चिप अनुप्रयोगों और ईवी तथा नवीकरणीय ऊर्जा जैसे उभरते क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना शामिल है।
- आपूर्ति श्रृंखलाओं को मजबूत करना: घरेलू आपूर्तिकर्ताओं का समर्थन करके और भारत में परिचालन स्थापित करने के लिए वैश्विक श्रृंखलाओं को आकर्षित करके मजबूत और सतत अर्धचालक आपूर्ति श्रृंखला विकसित करना।
- कौशल विकास पर ध्यान देना: कुशल पेशेवरों की उपलब्धता को सुनिश्चित करने के लिए सेमीकंडक्टर उद्योग के अनुरूप कौशल विकास कार्यक्रमों में निवेश करना।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, संयुक्त उद्यम और सहयोगी अनुसंधान एवं विकास प्रयासों को सुविधाजनक बनाने के लिए वैश्विक सेमीकंडक्टर अग्रणियों के साथ रणनीतिक साझेदारी बनाना।
- अवसंरचना और पारिस्थितिकी तंत्र विकास: निवेश को आकर्षित करने के लिए अत्याधुनिक अवसंरचना और लॉजिस्टिक समर्थन के साथ समर्पित अर्धचालक विनिर्माण क्षेत्र का निर्माण करना।
निष्कर्ष:
भारत में आत्मनिर्भर सेमीकंडक्टर उद्योग का विकास न केवल एक सामरिक अनिवार्यता है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा को बढ़ाने, तकनीकी नवाचार को आगे बढ़ाने और वैश्विक सेमीकंडक्टर आपूर्ति श्रृंखला में अधिक सक्रिय रूप से भाग लेने का एक महत्वपूर्ण अवसर भी है। सरकारी समर्थन, अनुसंधान और विकास, कौशल विकास और मजबूत आपूर्ति श्रृंखला पारिस्थितिकी तंत्र पर ध्यान के साथ, भारत इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति करने के लिए अच्छी स्थिति में है।
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