उत्तर:
दृष्टिकोण:
- परिचय: भारतीय शैक्षणिक संस्थानों में रैगिंग की परिभाषा और उसके विकास के बारे में बताइए।
- मुख्यविषयवस्तु:
- रैगिंग के एक मज़ाक मात्र रूप से इसके गंभीर घटनाओं के रूप में हुए परिवर्तन पर चर्चा कीजिए।
- सांस्कृतिक स्वीकृति, बोलने का डर, निरीक्षण में कमियाँ और असंगत दंड जैसी प्रमुख चुनौतियाँ गिनाएँ।
- अभिविन्यास कार्यक्रमों, समितियों और दंड जैसे तंत्रों का विवरण दीजिए।
- कानूनी उपायों, जागरूकता अभियानों, निगरानी तंत्र और हेल्पलाइन प्रावधानों पर प्रकाश डालिए।
- अनिवार्य शपथपत्रों और केंद्रीकृत डेटाबेस का उल्लेख कीजिए.
- प्रासंगिक उदाहरण प्रदान कीजिए.
- निष्कर्ष: समग्र समाधान के लिए सामूहिक दृष्टिकोण के महत्व पर जोर दीजिए।
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परिचय:
रैगिंग,जो कई शैक्षणिक संस्थानों में प्रचलित एक पुरातन दीक्षा प्रथा है, भारत में तेजी से जाँच के दायरे में आ गया है। प्रारम्भ में इसे वरिष्ठ और नए छात्रों के बीच मतभेद दूर करने की एक परंपरा माना जाता था, किन्तु बदलते वक्त के साथ कई मामलों में यह दुर्व्यवहार और अपमान के रूप में बदल गया है।
मुख्य विषयवस्तु:
- रैगिंग की प्रकृति:
- मूल रूप से हल्के-फुल्के मजाक के इरादे से रैगिंग की प्रकृति गंभीर मानसिक, भावनात्मक और कभी-कभी शारीरिक यातना में विकसित हो गई है।
- उदाहरण के लिए, कई रिपोर्टें ऐसे उदाहरणों का संकेत देती हैं जहाँ नए छात्रों को शारीरिक नुकसान पहुंचाया गया है, जिससे गंभीर चोटें आईं या मौतें भी हुईं।
रैगिंग उन्मूलन में चुनौतियाँ:
- सांस्कृतिक स्वीकृति: कई वरिष्ठ छात्रों का मानना है कि वे स्वयं रैगिंग का अनुभव करके एक परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।
- डर और चुप्पी: नए छात्र प्रतिशोध या बहिष्कृत होने की चिंताओं के कारण घटनाओं की रिपोर्ट करने से डरते हैं।
- अपर्याप्त निगरानी: विशेष रूप से बड़े परिसरों और छात्रावासों में, अधिकारियों के लिए सभी विभागों की निगरानी करना चुनौतीपूर्ण है।
- असंगत दंड: हालांकि इस विषय में कानून तो मौजूद हैं, किन्तु उनका अनुप्रयोग कई बार अलग-अलग होता है, जो अक्सर अपराधियों की स्थिति या प्रभाव से प्रभावित होता है।
शैक्षणिक संस्थानों द्वारा किये गये उपाय:
- अभिविन्यास कार्यक्रम: नए छात्रों को उनके अधिकारों के बारे में सूचित करना और शिकायतों के लिए अवसर प्रदान करना।
- रैगिंग विरोधी समितियाँ: रैगिंग गतिविधियों की निगरानी और रोकथाम के लिए संकाय और वरिष्ठ छात्रों को शामिल करना।
- सख्त दंड: दोषी पाए गए लोगों के लिए निलंबन या निष्कासन शामिल है।
- उदाहरण के लिए, आईआईटी और आईआईएम जैसे कई प्रमुख संस्थानों में रैगिंग विरोधी सख्त नीतियां हैं, जिसके कारण हाल के वर्षों में यहाँ लगभग नगण्य घटनाएं हुई हैं।
सरकारी पहल:
- कानूनी उपाय:
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 2009 में रैगिंग को एक आपराधिक कृत्य के रूप में परिभाषित किया।
- केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों ने भी विशेष रूप से रैगिंग को लक्षित करने वाले कानून पारित किए हैं।
- जागरूकता कार्यक्रम:
- सरकार ने रैगिंग के खिलाफ जागरूकता फैलाने के लिए गैर सरकारी संगठनों के साथ मिलकर अभियान शुरू किया है।
- केंद्रीय डेटाबेस:
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) घटनाओं की निगरानी और समाधान के लिए रैगिंग की शिकायतों का एक केंद्रीय डेटाबेस रखता है।
- राष्ट्रीय एंटी-रैगिंग हेल्पलाइन:
- भारत सरकार द्वारा लॉन्च किया गया, यह पीड़ितों या गवाहों को गुमनामी सुनिश्चित करते हुए घटनाओं की रिपोर्ट करने के लिए एक मंच प्रदान करता है।
- अनिवार्य रैगिंग विरोधी शपथपत्र:
- छात्रों और उनके माता-पिता दोनों को प्रवेश के समय हस्ताक्षरित हलफनामा जमा करना होगा, जिसमें यह घोषणा करनी होगी कि वे रैगिंग के परिणामों को समझते हैं।
निष्कर्ष:
हालाँकि भारतीय शैक्षणिक संस्थानों में रैगिंग के खतरे से निपटने में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है, लेकिन छिटपुट घटनाओं का बने रहना निरंतर सतर्कता की आवश्यकता को रेखांकित करता है। इस गहरी जड़ वाली समस्या को पूरी तरह से खत्म करने के लिए सरकार, शैक्षणिक संस्थानों, छात्रों और बड़े पैमाने पर समाज को शामिल करते हुए एक बहु-आयामी दृष्टिकोण आवश्यक है। चूँकि भारत एक वैश्विक शैक्षिक केंद्र बनने की आकांक्षा रखता है, इसलिए प्रत्येक छात्र की सुरक्षा और गरिमा सुनिश्चित करना सर्वोपरि हो जाता है।
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