Q. संसाधन संपन्न होने के बावजूद, ‘साहेल क्षेत्र’ सैन्य तख्तापलट, वैश्विक शक्ति प्रतिद्वंद्विता और संसाधन शोषण के कारण गंभीर अस्थिरता का सामना कर रहा है। इस संदर्भ में, इस क्षेत्र में भारत की स्थिति और संभावित भूमिका का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। साथ ही, भू-राजनीतिक हितों को संतुलित करते हुए सतत विकास के उपाय भी सुझाएँ। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • ‘साहेल क्षेत्र’ की संसाधन समृद्धि पर प्रकाश डालिये और चर्चा कीजिए कि कैसे यह सैन्य तख्तापलट, वैश्विक शक्ति प्रतिद्वंद्विता और संसाधन शोषण के कारण गंभीर अस्थिरता का सामना करता है।
  • इस क्षेत्र में भारत की स्थिति और संभावनाओं का विश्लेषण कीजिए।
  • क्षेत्र में भारत की स्थिति और संभावित भूमिका की चुनौतियों का विश्लेषण कीजिए।
  • भू-राजनीतिक हितों में संतुलन बनाए रखते हुए सतत विकास के लिए उपाय सुझाइये।

उत्तर

साहेल क्षेत्र, सोने, यूरेनियम और तेल  सहित अपने अन्य प्राकृतिक संसाधनों के लिए जाना जाता है। लगातार सैन्य तख्तापलट, वैश्विक शक्ति प्रतिस्पर्धा और संसाधनों के असंतुलित दोहन के कारण इस क्षेत्र में अस्थिरता संबंधी समस्या व्यापक रूप से मौजूद है। नाइजर और माली में हाल ही में हुए तख्तापलट इन चुनौतियों का उदाहरण हैं, जो स्थिरता और सतत विकास को सुविधाजनक बनाने में भारत की भागीदारी के लिए जोखिम और अवसर दोनों प्रस्तुत करते हैं ।

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साहेल क्षेत्र की संसाधन समृद्धि

  • प्रचुर खनिज संसाधन: साहेल यूरेनियम, सोना और तेल से समृद्ध है, जो इसे वैश्विक ऊर्जा और संसाधन बाजारों में महत्त्वपूर्ण योगदानकर्ता बनाता है। 
    • उदाहरण के लिए : नाइजर वैश्विक यूरेनियम का 5% उत्पादन करता है, जबकि माली और बुर्किना फासो अफ्रीका में सोने के प्रमुख उत्पादक हैं, जो संसाधन व्यापार को बढ़ावा देते हैं।
  • विविध प्राकृतिक भंडार : कीमती धातुओं के अलावा, यह क्षेत्र मैंगनीज, चूना पत्थर, लौह अयस्क और जिप्सम से समृद्ध है , जो औद्योगिक अनुप्रयोगों के लिए अति महत्त्वपूर्ण है। 
    • उदाहरण के लिए: माली क्षेत्र में लगभग 4 मिलियन टन लिथियम भंडार है, जो अक्षय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों और स्वच्छ ऊर्जा हेतु वैश्विक संक्रमण के लिए आवश्यक है।
  • ऊर्जा संसाधन : नाइजर और चाड में विशाल तेल भंडार मौजूद हैं, जो साहेल को वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखलाओं के लिए एक रणनीतिक क्षेत्र बनाते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: नाइजर के तेल क्षेत्र इसके सकल घरेलू उत्पाद में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं, हालांकि संसाधन दोहन स्थानीय लाभों को सीमित करता है।

सैन्य तख्तापलट, वैश्विक प्रतिद्वंद्विता और संसाधन शोषण के कारण अस्थिरता

  • सैन्य तख्तापलट शासन को बाधित करते हैं: कमज़ोर नागरिक संस्थाएँ और सरकारों के प्रति असंतोष के कारण अक्सर सैन्य तख्तापलट की घटनाएं हैं, जिससे राजनीतिक अनिश्चितता उत्पन्न होती है। 
    • उदाहरण के लिए: माली में वर्ष 2020 और 2021 में तख्तापलट हुआ, जिससे संयुक्त राष्ट्र की शांति रणनीतियों को लागू करने के प्रयासों में अस्थिरता आई।
  • वैश्विक शक्ति प्रतिद्वंद्विता: फ्रांस और रूस जैसी बाहरी शक्तियां प्रभाव के लिए होड़ करती हैं, जिससे राजनीतिक विभाजन बढ़ता है और क्षेत्र में अस्थिरता उत्पन्न होती है। 
    • उदाहरण के लिए : वैगनर समूह ने माली और बुर्किना फासो में अपना विस्तार किया, जिससे फ्रांसीसी प्रभुत्व को चुनौती मिली और स्थानीय सुरक्षा गतिशीलता जटिल हो गई।
  • संसाधनों का दोहन: बाह्य अभिकर्ता प्रायः कम दरों पर संसाधनों का दोहन करते हैं, जिससे गरीबी  और स्थानीय असंतोष दोनों बढ़ते हैं।

क्षेत्र में भारत की स्थिति और संभावित भूमिका

  • संसाधन निर्भरता: भारत की बढ़ती ऊर्जा और यूरेनियम संबंधी आवश्यकताओं को देखते हुए दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु भारत के लिए साहेल की महत्ता बढ़ जाती है।
    • उदाहरण के लिए: भारत अपने परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के लिए नाइजर से यूरेनियम आयात करता है , जो साहेल क्षेत्र के संसाधनों पर उसकी निर्भरता को दर्शाता है।
  • सामरिक भागीदारी : अफ्रीकी देशों के साथ भारत के संबंध, साहेल देशों के साथ पारस्परिक आर्थिक और सामरिक हितों पर वार्ता करने के लिए एक आधार प्रदान करते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: भारत-अफ्रीका मंच शिखर सम्मेलन, साहेल क्षेत्र के देशों सहित अन्य अफ्रीकी देशों के साथ आर्थिक और विकासात्मक सहयोग बढ़ाने पर केंद्रित है।
  • सॉफ्ट पावर प्रभाव : भारत की विकास सहायता, शिक्षा कार्यक्रम और क्षमता निर्माण पहल अफ्रीकी देशों में इसकी सकारात्मक छवि को मजबूत करती है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत की पैन-अफ्रीकी ई-नेटवर्क परियोजना पूरे अफ्रीका में टेली-शिक्षा और टेलीमेडिसिन सेवाएं प्रदान करती है , जिससे इसकी पहुंच मजबूत होती है।
  • अंतर्राष्ट्रीय विश्वसनीयता : एक गैर-औपनिवेशिक शक्ति के रूप में, भारत को क्षेत्रीय स्थिरता और विकास को बढ़ावा देने में एक तटस्थ और विश्वसनीय भागीदार माना जाता है। 
    • उदाहरण के लिए: अफ्रीका में भारत के निवेश ने औपनिवेशिक शक्तियों की शोषणकारी प्रथाओं के बिना बुनियादी ढाँचे और सतत विकास पर ध्यान केंद्रित किया है।
  • वैश्विक मंचों में भूमिका: G-20 में भारत की उपस्थिति और वैश्विक दक्षिण सहयोग पर इसका ध्यान इसे साहेल क्षेत्र के विकास की वकालत करने की स्थिति में रखता है। 
    • उदाहरण के लिए: G-20 में, भारत ने अफ्रीकी देशों की विकास प्राथमिकताओं का समर्थन किया है , जिसमें जलवायु कार्रवाई और बुनियादी ढाँचे के विकास पर बल दिया गया है।

क्षेत्र में भारत की स्थिति और संभावित भूमिका से संबंधित चुनौतियाँ

  • सुरक्षा जोखिम : आतंकवाद, सैन्य तख्तापलट और संसाधनों के दोहन से होने वाली अस्थिरता भारत की साहेल क्षेत्र में प्रभावी ढंग से काम करने की क्षमता को सीमित करती है। 
    • उदाहरण के लिए: नाइजर में वर्ष 2023 के तख्तापलट ने भारत के यूरेनियम आयात को बाधित कर दिया, जिससे महत्त्वपूर्ण संसाधनों को सुरक्षित करने में मौजूद सुभेद्यतायें उजागर हुईं।
  • भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता : साहेल क्षेत्र में फ्राँस, रूस और चीन के प्रतिस्पर्धी हित भारत की कूटनीतिक और आर्थिक भागीदारी के लिए चुनौतियाँ उत्पन्न करते हैं।
  • सीमित संसाधन : इस क्षेत्र को महत्त्वपूर्ण आर्थिक और सुरक्षा सहायता प्रदान करने की भारत की क्षमता बड़ी वैश्विक शक्तियों की तुलना में सीमित है।
    उदाहरण के लिए: चीन की बेल्ट एंड रोड पहल के विपरीत, अफ्रीकी देशों में भारत का वित्तीय और रसद योगदान बहुत कम है।
  • भ्रष्टाचार और शासन संबंधी मुद्दे: साहेल में कमज़ोर संस्थाओं के कारण भारत के लिए अपने निवेश और सहायता का प्रभावी उपयोग सुनिश्चित करना मुश्किल हो जाता है। 
    • उदाहरण के लिए: माली में भ्रष्टाचार के घोटालों ने भारत सहित विदेशी विकास परियोजनाओं में बाधा उत्पन्न की है।
  • जलवायु और पर्यावरण संबंधी चुनौतियाँ: साहेल में मरुस्थलीकरण और संसाधनों का क्षरण ,भारत के सतत विकास को बढ़ावा देने के प्रयासों को जटिल बनाता है। 
    • उदाहरण के लिए: नाइजीरिया में मरुस्थलीकरण बढ़ने से कृषि उत्पादकता कम हो रही है, जिससे भारत के सहायता कार्यक्रमों की प्रभावशीलता कम हो रही है।

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भू-राजनीतिक हितों को संतुलित करते हुए सतत विकास के उपाय

  • संस्था निर्माण : स्थिरता सुनिश्चित करने, शासन में सुधार करने और बाहरी शक्तियों पर निर्भरता कम करने के लिए साहेल क्षेत्र की संस्थाओं को मजबूत करना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: भारत इथियोपिया में अपनी क्षमता निर्माण परियोजनाओं के समान प्रशासनिक प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरुआत कर सकता है।
  • संधारणीय संसाधन प्रबंधन: साहेल में संसाधनों के कुशल और पर्यावरण के अनुकूल दोहन के लिए प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को बढ़ावा देना चाहिए उदाहरण के लिए: अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन के तहत सौर ऊर्जा पर अफ्रीकी देशों के साथ भारत का सहयोग साहेल क्षेत्र के देशों तक विस्तारित किया जा सकता है।
  • उन्नत विकास सहयोग : साहेल में जीवन दशा़ओं को बेहतर बनाने के लिए शैक्षिक आदान-प्रदान, स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच और बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं का विस्तार करना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: भारत, नाइजर और माली में किफायती स्वास्थ्य सेवा समाधान प्रदान करने के लिए अपने केन्या चिकित्सा मिशन की तरह अन्य मिशनों की शुरुआत कर सकता है ।
  • बहुपक्षीय सहभागिता: साहेल में व्यापक विकास रणनीतियों की वकालत करने के लिए G-20 और ब्रिक्स जैसे मंचों का उपयोग करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: भारत शांति और आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए BRICS के तहत साहेल-विशिष्ट विकास निधि का प्रस्ताव कर सकता है।
  • रणनीतिक साझेदारी : आतंकवाद का मुकाबला करने, शांति स्थापना में सहयोग करने और संसाधनों तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिए क्षेत्रीय और वैश्विक हितधारकों के साथ साझेदारी करनी चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: अफ्रीका के संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना मिशनों में भारत का योगदान साहेल-विशिष्ट पहलों को शामिल करने के लिए विस्तारित किया जा सकता है।

साहेल क्षेत्र में भारत की भागीदारी को कूटनीतिक चैनलों के माध्यम से स्थिरता को बढ़ावा देने, क्षेत्रीय सुरक्षा पहलों का समर्थन करने और संसाधन प्रबंधन व जलवायु प्रत्यास्थता को बढ़ावा देने वाली सतत विकास परियोजनाओं को आगे बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। अपने भू-राजनीतिक हितों को विकास लक्ष्यों के साथ संरेखित करके, भारत इस क्षेत्र में दीर्घकालिक शांति और समृद्धि को सुविधाजनक बनाने, आपसी विकास और स्थिरता सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

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