Q. भारत 'आत्मनिर्भर भारत' जैसी पहलों के माध्यम से रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता के लिए प्रयास कर रहा है। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) जैसे रक्षा सार्वजनिक उपक्रमों के समक्ष भारतीय सशस्त्र बलों की परिचालन आवश्यकताओं को पूरा करने में आने वाली चुनौतियों का विश्लेषण कीजिए एवं समझाइए कि इन चुनौतियों का समाधान कैसे किया जा सकता है? (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • इस बात पर प्रकाश डालिए कि भारत ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसी पहलों के माध्यम से रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता के लिए प्रयास कर रहा है।
  • भारतीय सशस्त्र बलों की परिचालन आवश्यकताओं को पूरा करने में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) जैसे रक्षा सार्वजनिक उपक्रमों के सामने आने वाली चुनौतियों का विश्लेषण कीजिए।
  • इन चुनौतियों का समाधान कैसे किया जा सकता है, इसका परीक्षण कीजिए।

उत्तर

रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता के लिए भारत के अभियान को आत्मनिर्भर भारत पहल द्वारा काफी बढ़ावा मिला है, जिसमें स्वदेशी विनिर्माण और नवाचार पर बल दिया गया है। हाल ही में नीतिगत सुधार और बजट 2024-25 में रक्षा आवंटन में वृद्धि, लगभग 6,21,940 करोड़, एक परिवर्तनकारी बदलाव को रेखांकित करते हैं, रणनीतिक स्वायत्तता को मजबूत करते हैं और भारत को उन्नत रक्षा प्रौद्योगिकियों में एक प्रमुख वैश्विक राष्ट्र के रूप में स्थान देते हैं।

रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता के लिए भारत का प्रयास

  • आत्मनिर्भर भारत का विजन: भारत की ‘आत्मनिर्भर भारत’ पहल का उद्देश्य रक्षा उपकरणों के स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा देकर विदेशी हथियारों पर निर्भरता कम करना है। 
    • उदाहरण के लिए: रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP) 2020 आयातित प्रणालियों की तुलना में ‘बाई इंडियन’ श्रेणियों को प्राथमिकता देती है।
  • घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित करना: रक्षा उत्पादन और निर्यात संवर्द्धन नीति (DPEPP) 2020 जैसी नीतियाँ भारतीय रक्षा विनिर्माण क्षमताओं को बढ़ावा देने और निर्यात बढ़ाने के लिए बनाई गई हैं। 
    • उदाहरण के लिए: वित्त वर्ष 2023-24 में, भारत का घरेलू रक्षा उत्पादन 2014-15 में 46,429 करोड़ रुपये से लगभग 174% की प्रभावशाली वृद्धि के साथ रिकॉर्ड ऊँचाई को छूते हुए 1.27 लाख करोड़ रुपये तक पहुँच गया।
  • रक्षा परियोजनाओं का स्वदेशीकरण: तेजस, LCA और एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (AMCA) जैसी परियोजनाएँ, रक्षा पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने के लिए स्वदेशी तकनीक पर बल देती हैं। 
    • उदाहरण के लिए: तेजस LCA में लगभग 50% स्वदेशी सामग्री है और भविष्य के संस्करणों में इसे 60% तक बढ़ाने का लक्ष्य है।
  • FDI उदारीकरण: स्वचालित मार्ग के माध्यम से रक्षा क्षेत्र में FDI सीमा को 49% से बढ़ाकर 74% करने से घरेलू रक्षा उत्पादन में निजी भागीदारी को बढ़ावा मिलता है। 
    • उदाहरण के लिए: एयरबस और लॉकहीड मार्टिन जैसी कंपनियों ने प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और संयुक्त उत्पादन के लिए भारतीय फर्मों के साथ साझेदारी की है।
  • सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची: सरकार ने 500 से अधिक रक्षा वस्तुओं की सूची जारी की है, जिनका आयात स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबंधित किया जाएगा। 
    • उदाहरण के लिए: इस सूची में हल्के लड़ाकू हेलीकॉप्टर और संचार उपकरण जैसी वस्तुएँ शामिल हैं, जिससे HAL और DRDO को उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।

परिचालन आवश्यकताओं को पूरा करने में रक्षा सार्वजनिक उपक्रमों के सामने आने वाली चुनौतियाँ

  • परियोजना निष्पादन में देरी: HAL और DRDO जैसे रक्षा PSU लंबी विकास समयसीमा से जूझ रहे हैं, समय पर आपूर्ति करने में विफल हैं। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 1983 में संकल्पित तेजस LCA परियोजना ने वर्ष 2001 में अपनी पहली उड़ान भरी और अभी भी उत्पादन में देरी का सामना कर रही है, जिससे स्क्वाड्रन की ताकत प्रभावित हो रही है।
  • विदेशी तकनीक पर निर्भरता: इंजन और सेंसर जैसे महत्त्वपूर्ण घटक अक्सर आयात पर निर्भर होते हैं, जिससे वास्तविक स्वदेशीकरण प्रयासों को नुकसान पहुँचता है। 
    • उदाहरण के लिए: LCA Mk-1A जेट की डिलीवरी में HAL की देरी जनरल इलेक्ट्रिक द्वारा समय पर इंजन की आपूर्ति करने में विफलता के कारण हुई है।
  • संसाधनों की कमी: अपर्याप्त फंडिंग और कुशल जनशक्ति रक्षा परियोजनाओं के नवाचार और पैमाने में बाधा डालती है। 
    • उदाहरण के लिए: DRDO की बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस (BMD) प्रणाली को प्रारंभिक विकास चरणों के दौरान संसाधनों की कमी के कारण देरी का सामना करना पड़ा।
  • जवाबदेही का अभाव: PSU में समयसीमा चूकने या तकनीकी कमियों के लिए प्रभावी जवाबदेही तंत्र का अभाव है। 
    • उदाहरण के लिए: समय पर विमान देने में HAL की विफलता ने अक्सर भारतीय वायु सेना को पुराने मिग-21 स्क्वाड्रन पर निर्भर कर दिया है।
  • सीमित निर्यात क्षमताएँ: गुणवत्तापूर्ण उपकरण बनाने के बावजूद, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को वैश्विक रक्षा बाजार में प्रतिस्पर्द्धा करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

रक्षा क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रमों के समक्ष चुनौतियों का समाधान

  • व्यापक ऑडिट: बाधाओं की पहचान करने और देरी व अक्षमताओं के लिए जवाबदेही तय करने हेतु HAL और DRDO का समय-समय पर ऑडिट आयोजित करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: तेजस, LCA कार्यक्रम के लिए प्रस्तावित ऑडिट देरी का विश्लेषण कर सकता है और Mk-1A वेरिएंट की समय पर डिलीवरी सुनिश्चित कर सकता है।
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी में वृद्धि: निजी फर्मों के साथ सहयोग करने से रक्षा उत्पादन में नवाचार, दक्षता और प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा मिल सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: DAP 2020 में रणनीतिक भागीदारी मॉडल निजी फर्मों को पनडुब्बी और लड़ाकू जेट जैसी प्रणालियाँ बनाने की अनुमति देता है।
  • बेहतर संसाधन आवंटन: सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को उनके अनुसंधान एवं विकास तथा उत्पादन क्षमताओं को बढ़ाने के लिए वित्तपोषण को बढ़ावा देना चाहिए एवं अत्याधुनिक सुविधाएँ प्रदान करनी चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: DRDO के लिए बजटीय आवंटन को वित्त वर्ष 2025-26 में 26,816.82 करोड़ रुपये कर दिया गया है, जो वित्त वर्ष 2024-25 में 23,855.61 करोड़ रुपये था, जो 2024-25 के बजट अनुमान से 12.41% अधिक है।
  • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौते: महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के लिए आयात पर निर्भरता कम करने के लिए वैश्विक फर्मों के साथ ऑफसेट और साझेदारी का लाभ उठाना। 
    • उदाहरण के लिए: रूस के साथ संयुक्त रूप से विकसित ब्रह्मोस मिसाइल, स्वदेशी प्रणालियों के लिए प्रभावी अंतरराष्ट्रीय सहयोग को प्रदर्शित करती है।
  • सुव्यवस्थित खरीद प्रक्रियाएँ: उत्पादन चक्रों में तेजी लाने और समय पर डिलीवरी सुनिश्चित करने के लिए खरीद और अनुमोदन तंत्र को सरल बनाना। 
    • उदाहरण के लिए: फास्ट ट्रैक प्रोक्योरमेंट (FTP) मार्ग ने ड्रोन जैसे महत्त्वपूर्ण रक्षा उपकरणों के अधिग्रहण में तेजी ला दी है।

आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए रक्षा क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रमों को सशक्त बनाना महत्त्वपूर्ण है। सार्वजनिक-निजी भागीदारी, अनुसंधान एवं विकास निधि को बढ़ावा देकर और अत्याधुनिक तकनीकों को अपनाकर भारत अपने रक्षा क्षेत्र में परिवर्तन ला सकता है। प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने और कुशल कार्यबल तैयार करने से परिचालन तत्परता सुनिश्चित होगी, जिससे भविष्य का मार्ग प्रशस्त होगा, जहाँ भारत न केवल आत्मनिर्भर होगा बल्कि वैश्विक रक्षा केंद्र भी बनेगा और इससे भारत को वर्ष 2029 तक 50,000 करोड़ रुपये के रक्षा निर्यात के लक्ष्य तक पहुँचने में मदद मिलेगी।

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