उत्तर:
दृष्टिकोण:
- प्रस्तावना: मोनोक्रॉपिंग(एक फ़सली व्यवस्था) और मिश्रित फसल को परिभाषित करते हुए दोनों में अंतर स्पष्ट कीजिए।
- मुख्य विषयवस्तु:
- भारतीय कृषि के संदर्भ में मोनोक्रॉपिंग और मिश्रित फसल के फायदे और नुकसान पर चर्चा कीजिए।
- स्थायी प्रथाओं को प्राप्त करने के लिए उपरोक्त दोनों क्रियाविधि को संतुलित करने के उपायों की गणना कीजिए।
- निष्कर्ष: भारत में मोनोक्रॉपिंग और मिश्रित खेती को संतुलित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए इस संबंध में एक उचित निष्कर्ष दीजिए।
|
प्रस्तावना:
मोनोक्रॉपिंग से तात्पर्य एक विशिष्ट क्षेत्र के भीतर बड़े पैमाने पर एकल फसल प्रजाति की खेती करने की कृषि पद्धति से है। इस प्रक्रिया में एक ही फसल मौसम दर मौसम बार–बार उगाई जाती है, वो भी फसल के प्रकार में महत्वपूर्ण बदलाव के बिना। उदाहरण: एकल फसल के रूप में चावल की खेती। दूसरी ओर, मिश्रित फसल में एक ही खेत या कृषि भूखंड के भीतर कई फसल प्रजातियों की एक साथ खेती शामिल होती है। विभिन्न फसलों को जानबूझकर एक साथ, या तो पंक्तियों में या यादृच्छिक पैटर्न में लगाया जाता है, जिससे एक विविध फसल प्रणाली बनती है।
मुख्य विषयवस्तु:
भारतीय कृषि में मोनोक्रॉपिंग के लाभ:
- विशेषज्ञता और निपुणता: मोनोक्रॉपिंग किसानों को एक ही फसल पर ध्यान केंद्रित करने की सहूलियत देता है, जिससे इसकी खेती, सर्वोत्तम प्रथाओं और चुनौतियों की गहरी समझ पैदा होती है, जिसके परिणामस्वरूप उस विशिष्ट फसल के प्रबंधन में बेहतर विशेषज्ञता प्राप्त हो सकती है। उदाहरण- पंजाब में बासमती चावल की खेती।
- पैदावार में बढ़ोतरी और संसाधन का आवंटन: एक ही फसल के लिए किसान उर्वरक, पानी और कीटनाशकों जैसे इनपुट को अनुकूलित कर सकते हैं, जिससे संभावित रूप से पैदावार में वृद्धि और कुशलता पूर्ण संसाधन का आवंटन हो सकता है। उदाहरण-तमिलनाडु में केले के बागान
- मशीनीकरण और सरलीकृत विपणन: मानकीकृत मशीनरी और तकनीकों का उपयोग करके समान फसलों की खेती की जा सकती है। इसके अतिरिक्त, एक ही फसल से निपटने पर विपणन और वितरण अधिक सरल हो जाता है, जिससे संभावित रूप से जटिलता और लागत कम हो जाती है। उदाहरण- गुजरात में कपास की खेती।
- सुव्यवस्थित प्रबंधन और दक्षता: एक फसल पर ध्यान केंद्रित करने से प्रबंधन प्रक्रिया सरल हो जाती है, जिससे किसानों को सुव्यवस्थित एवं सूचित निर्णय लेने और संभावित रूप से उत्पादन में समग्र दक्षता बढ़ाने में सक्षम बनाया जा सकता है। उदाहरण- असम में चाय बागान
मोनोक्रॉपिंग के नुकसान:
- कीटों और बीमारियों के प्रति संवेदनशीलता: यह कृषि प्रणाली कीटों के प्रकोप और पौधों की बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील है, क्योंकि कीट तेजी से फैल सकते हैं और प्रतिरोध पैदा कर सकते हैं। उदाहरण- 2016 में महाराष्ट्र की कपास की फसल पर गुलाबी बॉलवर्म का हमला।
- मृदा क्षरण: पोषक तत्वों की कमी और मृदा क्षरण, क्योंकि एक ही फसल बार-बार मिट्टी से विशिष्ट पोषक तत्व खींचती है और इसे क्षरण के प्रति संवेदनशील बनाती है। उदाहरण- पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में उचित फसल चक्र के बिना चावल की व्यापक खेती के कारण मिट्टी में पोषक तत्वों का असंतुलन हो गया है और समग्र रूप से मिट्टी की गुणवत्ता में कमी आई है।
- बाजार जोखिम: किसानों को बाजार में उतार-चढ़ाव, मूल्य अस्थिरता और एक ही वस्तु पर निर्भरता का सामना करना पड़ता है, जो उनकी आय और वित्तीय स्थिरता को प्रभावित कर सकता है।
- पर्यावरणीय प्रभाव: नकारात्मक पर्यावरणीय परिणाम, जिनमें जलवायु परिवर्तन के अलावा पानी, उर्वरकों का बढ़ता उपयोग और जैव विविधता का नुकसान शामिल है। उदाहरण- पंजाब और हरियाणा में चावल की खेती के कारण इन राज्यों में पराली जलाई जा रही है जिसके कारण दिल्ली एनसीआर सहित सटे राज्यों में वायु की गुणवत्ता खराब हो जाती है।
भारतीय कृषि में मिश्रित फसल के लाभ:
- जोखिम कर करना: चूंकि अलग-अलग फसलों की मौसमीय स्थिति, कीटों और बीमारियों के प्रति अलग-अलग प्रतिक्रिया उत्पन्न करती है, यदि एक फसल विफल हो जाती है, तो अन्य फसलें फिर भी फल-फूल सकती हैं, जिससे किसानों की स्थिर आय सुनिश्चित हो सकती है। उदाहरण- फलियां वाली फसलें जब अन्य फसलों के साथ अंतरफसलित की जाती हैं, विशेष रूप से वे फसलें जिन्हें भरपूर मात्रा में नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है जैसे मक्का, तो मिट्टी के पोषक तत्वों का कुशल उपयोग होता है।
- मिट्टी की उर्वरता में सुधार: विभिन्न फसलें पोषक तत्वों की आवश्यकताओं के मामले में एक-दूसरे की पूरक होती हैं, पोषक तत्वों की कमी को कम करती हैं और मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाती हैं। यह रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के प्रयोग को भी कम करता है और मिट्टी को खराब होने से बचाता है। उदाहरण- उथली जड़ वाली फसलों के साथ मूंगफली या मूली जैसी गहरी जड़ वाली फसलें लगाने से मिट्टी की संरचना और वातन में सुधार होता है।
- कीट और रोग नियंत्रण: मिश्रित फसल कीट और रोग चक्र को बाधित कर सकती है क्योंकि एक फसल के लिए विशिष्ट कीटों या बीमारियों को पड़ोसी फसलों द्वारा रोका या नियंत्रित किया जा सकता है। उदाहरण- सब्जियों की फसलों के बीच तुलसी या गेंदा जैसी सुगंधित जड़ी-बूटियाँ लगाने से कीटों को दूर रखा जा सकता है, जिससे रासायनिक कीटनाशकों की आवश्यकता कम हो जाती है।
- जैव विविधता में वृद्धि: लाभकारी कीड़ों, पक्षियों और अन्य जीवों के लिए आवास प्रदान करके, पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य में योगदान देना।
भारतीय कृषि में मिश्रित फसल के नुकसान:
- प्रबंधन में जटिलता: रोपण का समय और कई फसलों का एक साथ प्रबंधन करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है और इसके लिए अतिरिक्त विशेषज्ञता और समन्वय की आवश्यकता होती है। उदाहरण- मक्का, अरहर और ज्वार जैसी फसलों के मिश्रण की खेती के लिए प्रत्येक फसल की विशिष्ट आवश्यकताओं की गहरी समझ की आवश्यकता हो सकती है।
- रोग और कीट प्रबंधन: मिश्रित फसल फसलों के बीच कीटों और बीमारियों के तेजी से फैलने के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ पैदा कर सकती है। एकीकृत कीट प्रबंधन अधिक जटिल हो जाता है, और फसलों की सुरक्षा संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकती है। उदाहरण- टमाटर और आलू को मिलाने से दोनों फसलों के बीच लेट ब्लाइट जैसी बीमारियों के फैलने का खतरा बढ़ सकता है।
- उपज में कमी: कुछ मामलों में अनाज के साथ-साथ फलियां उगाने से पोषक तत्वों की प्रतिस्पर्धा और अधिकता के कारण दोनों की पैदावार कम हो सकती है।
- बाज़ार की चुनौतियाँ: कई फसलों के विपणन और बिक्री के लिए उपयुक्त खरीदार खोजने और बाज़ार की माँगों और मूल्य में उतार-चढ़ाव से निपटने के लिए अधिक प्रयास और समय की आवश्यकता हो सकती है। उदाहरण- प्याज और तरबूज़ दोनों को एक ही खेत में उगाने से उनका प्रभावी ढंग से भंडारण और विपणन करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
टिकाऊ कृषि पद्धति के उपाय
- फसल चक्र: कीट और रोग चक्र को तोड़ने और मिट्टी के क्षरण को कम करने के लिए विभिन्न फसलें क्रमिक मौसम में उगाई जाती हैं। जैसे: मक्का-सोयाबीन-गेहूं-कवरफसलें(covercrops)।
- अंतरफसल: ऐसे फसल संयोजनों का चयन करना जो पोषक तत्वों की आवश्यकताओं, विकास पैटर्न और कीट प्रबंधन के संदर्भ में पारस्परिक रूप से लाभकारी और संगत हों। उदाहरण के लिए: एक ही खेत में मक्का और फलियाँ एक साथ लगाना।
- कृषिवानिकी: एक सामंजस्यपूर्ण कृषिवानिकी प्रणाली में पेड़ों, झाड़ियों और फसलों को मिलाएं। यह जैव विविधता को बढ़ाता है, मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार करता है, और लकड़ी या फल उत्पादन के माध्यम से अतिरिक्त आय स्रोत प्रदान करता है।
- एकीकृत कीट प्रबंधन (आईपीएम): इसमें मोनोक्रॉपिंग और मिश्रित फसल प्रणाली दोनों में कीटों और बीमारियों के प्रबंधन के लिए निगरानी, रोकथाम और जैविक नियंत्रण का उपयोग शामिल है।
- फसल विविधीकरण: बाजार की मांग, स्थानीय कृषि-जलवायु परिस्थितियों और विभिन्न फसलों की उपयुक्तता पर विचार करते हुए विविध फसल पोर्टफोलियो को प्रोत्साहित करना। इससे विविधीकरण के साथ एक ही फसल पर निर्भरता कम हो जाती है।
- ज्ञान साझा करना और प्रशिक्षण: किसानों को मोनोक्रॉपिंग और मिश्रित फसल प्रणाली के लाभों और चुनौतियों सहित टिकाऊ कृषि प्रथाओं की समझ बढ़ाने के लिए सूचना, प्रशिक्षण और संसाधनों तक पहुंच प्रदान करना।
निष्कर्ष:
इन रणनीतियों को शामिल करके, किसान मोनोक्रॉपिंग और मिश्रित फसल के बीच संतुलन बना सकते हैं, प्रत्येक उपागम के फायदों का उपयोग करते हुए संबंधित नुकसान को कम कर सकते हैं। यह समग्र दृष्टिकोण भारत में स्थिरता, लचीलापन और दीर्घकालिक कृषि व्यवहार्यता को बढ़ावा देता है।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Latest Comments