Q. WHO के मेडिकल ऑक्सीजन रेजोल्यूशन पर हस्ताक्षरकर्ता होने के बावजूद, दक्षिण एशिया में 78% ऑक्सीजन सर्विस कवरेज गैप है। भारत में मेडिकल ऑक्सीजन की पहुँच में बाधा उत्पन्न करने वाली बहुआयामी चुनौतियों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। समान स्वास्थ्य सेवा वितरण सुनिश्चित करने के लिए तकनीकी नवाचार, सार्वजनिक-निजी भागीदारी और अंतर-राज्यीय सहयोग को एकीकृत करने वाली एक व्यापक नीति रूपरेखा का सुझाव दीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारत में चिकित्सा ऑक्सीजन की पहुँच में बाधा डालने वाली बहुआयामी चुनौतियों का विश्लेषण कीजिए।
  • समतापूर्ण स्वास्थ्य सेवा वितरण सुनिश्चित करने के लिए तकनीकी नवाचार, सार्वजनिक-निजी भागीदारी और अंतर-राज्यीय सहयोग को एकीकृत करने वाली एक व्यापक नीति रूपरेखा का सुझाव दीजिए।

उत्तर

मेडिकल ऑक्सीजन सुरक्षा पर लैंसेट ग्लोबल हेल्थ कमीशन ने एक गंभीर चुनौती का खुलासा किया है, दक्षिण एशिया और पूर्वी एशिया-प्रशांत क्षेत्र में मेडिकल ऑक्सीजन की सबसे अधिक माँग है, जहाँ सेवा कवरेज में क्रमशः 78% और 74% का अंतर है। यह भयावह असमानता इस गंभीर स्वास्थ्य सेवा की कमी को दूर करने के लिए निर्णायक कार्रवाई की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करती है।

भारत में मेडिकल ऑक्सीजन की पहुँच में बाधा डालने वाली बहुआयामी चुनौतियाँ

  • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे और उपकरण: कई सार्वजनिक अस्पतालों में ऑक्सीजन प्लांट, कंसंट्रेटर या पल्स ऑक्सीमीटर की कमी है।
    • उदाहरण: विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है, कि LMIC (भारत सहित) के केवल 58% अस्पतालों में ऑक्सीजन की सुविधा है; पल्स ऑक्सीमीटर केवल 54% सुविधाओं में उपलब्ध हैं।
  • वित्त पोषण संबंधी बाधाएँ और प्रतिस्पर्धी स्वास्थ्य प्राथमिकताएँ: आवश्यकता के बावजूद, ऑक्सीजन बुनियादी ढाँचे को दीर्घकालिक निवेश नहीं मिल पाता है।
    • उदाहरण: लैंसेट ग्लोबल हेल्थ कमीशन ने दक्षिण एशिया की ऑक्सीजन अवसंरचना की वित्त पोषण आवश्यकताओं में 2.6 बिलियन डॉलर के अंतर को उजागर किया है।
  • मानव संसाधन की कमी: प्रशिक्षित बायोमेडिकल इंजीनियरों की कमी ऑक्सीजन प्रणालियों की स्थापना, रखरखाव और मरम्मत में बाधा डालती है।
    • उदाहरण: नेपाल के राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रशिक्षण केन्द्र के साथ भूटानी इंजीनियरों के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन का प्रशिक्षण कार्यक्रम दिखाता है कि किस प्रकार कौशल अंतराल को दूर किया जा रहा है, लेकिन भारत में ऐसे मॉडल दुर्लभ हैं।
  • विद्युत आपूर्ति में व्यवधान और ग्रामीण पहुँच: खराब ग्रिड पहुँच वाले दूरदराज के क्षेत्रों में ऑक्सीजन प्लांट्स या कंसंट्रेटरों को चलाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
    • उदाहरण: इथियोपिया और नाइजीरिया में सौर ऊर्जा संचालित प्रणालियाँ सिद्ध विकल्प हैं, लेकिन भारतीय जिलों में इनका कम उपयोग होता है, तथा अक्सर विद्युत बाधित  हो जाती है।
  • खंडित आपूर्ति श्रृंखलाएँ और डेटा निगरानी का अभाव: अकुशल रसद और पूर्वानुमान उपकरणों की अनुपस्थिति के परिणामस्वरूप ऑक्सीजन की आपूर्ति में देरी होती है।
    • उदाहरण: COVID-19 की दूसरी लहर के दौरान, रियलटाइम ट्रैकिंग की कमी के कारण दिल्ली, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में आपूर्ति में बड़ी कमी हो गई, जबकि अन्य जगहों पर ऑक्सीजन उपलब्ध थी।

सुझाया गया व्यापक नीतिगत ढाँचा

तकनीकी नवाचार

  • सौर ऊर्जा चालित ऑक्सीजन प्रणालियाँ स्थापित करना: निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए ग्रामीण और बिजली की कमी वाले क्षेत्रों में सौर ऊर्जा चालित PSA (प्रेशर स्विंग एडसोर्प्शन) संयंत्रों और सांद्रकों को बढ़ावा देना चाहिए।
    • उदाहरण: इथियोपिया के सौर ऑक्सीजन मॉडल को भारतीय जनजातीय और दूरदराज के जिलों में दोहराया जा सकता है।
  • IoT और डिजिटल निगरानी उपकरण अंगीकरण: माँग पूर्वानुमान और आपूर्ति श्रृंखला ट्रैकिंग के लिए रियलटाइम डेटा सिस्टम, भू-स्थानिक मानचित्रण और पूर्वानुमानात्मक विश्लेषण का उपयोग कीजिए।
    • उदाहरण: WHO का ऑक्सीजन स्कोरकार्ड राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर ऑक्सीजन वितरण के लिए डिजिटल डैशबोर्ड का मार्गदर्शन कर सकता है।
  • कम लागत वाले नवाचार को प्रोत्साहित करना: LMIC स्थितियों के अनुकूल किफायती, पोर्टेबल और ऊर्जा-कुशल कंसंट्रेटर विकसित करने के लिए स्टार्टअप और अनुसंधान संस्थानों को सहायता प्रदान करनी चाहिए।
    • उदाहरण: IIT कानपुर और DRDO ने COVID के बाद स्वदेशी कम लागत वाले ऑक्सीजन कंसंट्रेटर विकसित किए हैं।

सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP)

  • औद्योगिक ऑक्सीजन निर्माताओं के साथ सहयोग करना: आपात स्थिति के दौरान मेडिकल-ग्रेड ऑक्सीजन के थोक उत्पादन, भंडारण और तीव्र तैनाती के लिए INOX और लिंडे जैसी निजी कंपनियों को शामिल करना चाहिए।
    • उदाहरण: इन फर्मों ने भारत में COVID-19 की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन की आपूर्ति में सहयोग किया।
  • स्थानीय विनिर्माण इकाइयों को प्रोत्साहित करना: ऑक्सीजन उपकरण विनिर्माण और रखरखाव केंद्र स्थापित करने वाले MSME के लिए सब्सिडी, कर छूट और व्यापार में सुगमता हेतु सहायता प्रदान करनी चाहिए।
  • प्रशिक्षण और रखरखाव में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP): बायोमेडिकल इंजीनियरों को प्रशिक्षित करने और ऑक्सीजन बुनियादी ढाँचे के चौबीसों घंटे रखरखाव सुनिश्चित करने के लिए निजी क्षेत्र और गैर सरकारी संगठनों के साथ साझेदारी करना चाहिए।

अंतर-राज्यीय सहयोग

  • राष्ट्रीय ऑक्सीजन ग्रिड फ्रेमवर्क की स्थापना: बफर स्टॉक समझौतों और परिवहन प्रोटोकॉल के साथ राज्यों में अधिशेष-घाटे के संतुलन को सुगम बनाना चाहिये।
    • उदाहरण: COVID के दौरान तमिलनाडु ने आपसी समन्वय के माध्यम से दिल्ली और महाराष्ट्र को ऑक्सीजन की आपूर्ति की।
  • मानकीकृत प्रोटोकॉल बनाना: नियामक देरी से बचने के लिए राज्यों के बीच गुणवत्ता, भंडारण और आपातकालीन ऑक्सीजन आवाजाही के लिए केंद्र द्वारा अनुमोदित मानदंड विकसित करना चाहिए।
  • क्षेत्रीय प्रशिक्षण और सहायता केन्द्रों को बढ़ावा देना: केंद्रीय मार्गदर्शन के तहत लेकिन पड़ोसी राज्यों के साथ साझा तौर पर बायोमेडिकल कर्मचारियों के प्रशिक्षण और ऑक्सीजन प्रणालियों के रखरखाव के लिए क्षेत्रीय केंद्र स्थापित करना चाहिए।

भारत में ऑक्सीजन की उपलब्धता में अंतर, सार्वजनिक स्वास्थ्य समानता और मानवाधिकारों के गहन मुद्दे को दर्शाता है। ऑक्सीजन की उपलब्धि एक गारंटीकृत अधिकार होना चाहिए, न कि एक विशेषाधिकार के रूप में। समावेशी स्वास्थ्य सेवा के लिए समन्वित, प्रौद्योगिकी-संचालित और नीति-समर्थित ढाँचे के माध्यम से पहुँच को संस्थागत बनाना आवश्यक है।

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