उत्तर:
दृष्टिकोण:
- परिचय: भारतीय लोकतंत्र में निर्वाचित प्रतिनिधियों की अपर्याप्त संख्या के मुद्दे पर प्रकाश डालते हुए, उनकी संख्या में बढ़ोतरी करने एवं निर्वाचित प्रतिनिधियों की संख्या और बड़ी आबादी के बीच असंतुलन पर ध्यान आकर्षित कीजिए।
- मुख्य विषयवस्तु:
- अन्य लोकतंत्रों की तुलना में भारत में जन प्रतिनिधित्व के वर्तमान परिदृश्य पर चर्चा कीजिए साथ ही अन्य लोकतंत्रों की तुलना में भारत में प्रतिनिधित्व के वर्तमान परिदृश्य पर चर्चा कीजिए।
- स्थानीय समस्या का अपर्याप्त समाधान एवं कमजोर जवाबदेही तंत्र के परिणामों की रूपरेखा प्रस्तुत कीजिए।
- जन प्रतिनिधियों की संख्या बढ़ाने, स्थानीय शासन निकायों को सुदृढ़ करने, आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली अपनाने और बेहतर संचार के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करने जैसे समाधान प्रस्तावित कीजिए।
- जन प्रतिनिधित्व बढ़ाने में प्रभावी उपायों को दर्शाने के लिए केरल के विकेंद्रीकृत मॉडल और डिजिटल इंडिया पहल जैसे उदाहरण उद्धृत कीजिए।
- निष्कर्ष: जन प्रतिनिधित्व की कमी को दूर करने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए निष्कर्ष निकालें, साथ ही यह सुनिश्चित कीजिए कि भारत का लोकतांत्रिक ढांचा अपनी विविध और बढ़ती आबादी को बेहतर प्रतिनिधित्व के साथ लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करता हो।
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परिचय:
भारतीय लोकतंत्र, जिसे अक्सर अपने व्यापक और विविध चुनावी परिदृश्य के लिए जाना जाता है, एक कठिन चुनौती का सामना कर रहा है: यह चुनौती है जन प्रतिनिधित्व की कमी। यह मुद्दा बढ़ती जनसंख्या के मुकाबले निर्वाचित प्रतिनिधियों के अनुपातहीन अनुपात से उत्पन्न होता है। 1.3 बिलियन से अधिक की आबादी के साथ, औसत रूप से भारतीय संसद सदस्य (सांसद) अन्य लोकतंत्रों में अपने समकक्षों की तुलना में काफी बड़े निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं।
मुख्य विषयवस्तु:
प्रतिनिधित्व के अभाव का विश्लेषण:
- भारत में, एक सांसद 1.5 मिलियन से अधिक नागरिकों का प्रतिनिधित्व करता है, जो यूके और यूएसए जैसे देशों के बिल्कुल विपरीत है, जहां सांसद/प्रतिनिधि बहुत छोटी आबादी का प्रतिनिधित्व कर उनकी जरूरतों को पूरा करते हैं।
- यह विशाल प्रतिनिधित्व न केवल प्रतिनिधित्व की गुणवत्ता को कमजोर करता है बल्कि स्थानीय मुद्दों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने की सांसदों की क्षमता को भी बाधित करता है।
- उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र में ठाणे जैसे निर्वाचन क्षेत्र, जो सर्वाधिक आबादी में से एक है, मतदाताओं की विशाल संख्या के कारण विविध रूप से स्थानीय मुद्दों को संबोधित करने में कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
घाटे से उत्पन्न चुनौतियाँ:
- प्रतिनिधित्व की कमी के कारण स्थानीय मुद्दों पर अपर्याप्त ध्यान दिया जाता है, जवाबदेही तंत्र कमजोर होता है और प्रतिनिधियों के संसाधनों और पहुंच पर दबाव उत्पन्न होता है।
- किसानों के विरोध प्रदर्शन और क्षेत्रीय पर्यावरण संबंधी चिंताओं जैसे हालिया मुद्दों ने स्थानीय प्रतिनिधित्व में अंतराल और स्थानीयकृत शासन की आवश्यकता को उजागर किया है।
प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए सुझाए जाने वाले उपाय:
- प्रतिनिधियों की संख्या बढ़ाना: लोकसभा और राज्यसभा सीटों के विस्तार पर 2026 तक लगाई गई रोक पर फिर से विचार करना प्रारम्भिक कदम हो सकता है। इससे वर्तमान जनसंख्या को बेहतर ढंग से प्रतिबिंबित करने के लिए संसदीय सीटों की संख्या में वृद्धि होगी।
- स्थानीय शासन निकायों को सुदृढ़ करना: प्रचुर संसाधनों और निर्णय लेने की शक्तियों के साथ पंचायती राज संस्थानों (पीआरआई) और शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) जैसे स्थानीय शासन संस्थानों को सशक्त बनाना जरूरी है। यह कदम शासन को विकेंद्रीकृत कर सकता है और जमीनी स्तर पर प्रतिनिधित्व बढ़ा सकता है।
- आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली को अपनाना: आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली जैसे चुनावी सुधारों से विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक समूहों का अधिक न्यायसंगत प्रतिनिधित्व सुनिश्चित कर सकती है।
- बेहतर संचार के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: निर्वाचित प्रतिनिधियों और नागरिकों के बीच बेहतर संपर्क के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग भौतिक दूरियों और बड़े निर्वाचन क्षेत्रों द्वारा बनाई गई दूरी को पाट सकता है।
सफल विकेंद्रीकरण के कुछ उदाहरण:
- केरल के विकेंद्रीकृत शासन मॉडल की सफलता, जहां स्थानीय निकायों के पास महत्वपूर्ण रूप से स्वायत्तता और संसाधन मौजूद हैं, जो यह प्रदर्शित करते हैं कि यह शासन के निचले स्तरों पर प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लाभों को दर्शाती है।
- शासन में प्रौद्योगिकी का प्रभावी उपयोग, जैसा कि डिजिटल इंडिया पहल में देखा गया है, डिजिटल प्लेटफार्मों के माध्यम से बेहतर प्रतिनिधि-नागरिक जुड़ाव की संभावना को इंगित करता है।
निष्कर्ष:
भारतीय लोकतंत्र में प्रतिनिधित्व की कमी एक गंभीर मुद्दा है जिस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। इसे संबोधित करने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें संसदीय सीट आवंटन को संशोधित करना, स्थानीय शासन निकायों को सशक्त बनाना, चुनावी सुधार के मार्ग तलाशना एवं प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना शामिल है। ऐसे उपायों से न केवल लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व बढ़ेगा, बल्कि शासन की गुणवत्ता भी ठोस होगी। इस प्रकार यह सुनिश्चित होगा कि भारत की विविध आबादी की मांग एवं उनकी आकांक्षाएँ शासन के सभी स्तरों पर अधिक प्रभावी ढंग से सुनी और संबोधित की जाएंगी। जैसे-जैसे भारत विकासशील से विकसित हो रहा है, यह जरूरी है कि इसकी लोकतांत्रिक संरचनाएं अपने नागरिकों की बदलती जनसांख्यिकी और आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करने और समायोजित करने के लिए मिलकर विकसित हों।
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