उत्तर:
प्रश्न हल करने का दृष्टिकोण:
- भूमिका: भारतीय राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य में दोनों नेताओं के महत्व के बारे में संक्षेप में चर्चा कीजिए।
- मुख्य भाग:
- वैचारिक मतभेदों पर चर्चा कीजिए।
- दोनों के विचारों में समानताएं बताइए।
- प्रासंगिक उदाहरण अवश्य प्रदान कीजिए।
- निष्कर्ष: आज के संदर्भ में जातिविहीन समाज के लिए उनकी आकांक्षाओं के महत्व पर प्रकाश डालते हुए निष्कर्ष निकालिए।
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परिचय:
‘राष्ट्रपिता‘ के रूप में सम्मानित मोहनदास करमचंद गांधी और बी.आर. अम्बेडकर, जिन्हें भारतीय संविधान के मुख्य वास्तुकार के रूप में जाना जाता है, भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में वे प्रभावशाली व्यक्ति थे। भारत के भविष्य से संबंधित कई मुद्दों पर सहमत होने के बावजूद, जाति व्यवस्था पर उनके दृष्टिकोण स्पष्ट रूप से भिन्न थे।
मुख्य भाग:
जाति व्यवस्था पर गांधी और अम्बेडकर के बीच वैचारिक मतभेद:
- जाति व्यवस्था की प्रकृति:
- गांधीजी ने वर्ण व्यवस्था को स्वाभाविक रूप से अच्छा माना, किन्तु उनका मानना था कि अस्पृश्यता जैसी विकृतियों को समाप्त करने के लिए सुधार की आवश्यकता है। उनका मानना था कि जाति विभाजन जन्म के बजाय काम पर आधारित होना चाहिए।
- इसके विपरीत, अंबेडकर ने जाति व्यवस्था को आंतरिक रूप से दमनकारी के रूप में देखा और इसके पूर्ण रूप से समाप्त करने की वकालत की। उन्होंने इसे सामाजिक एकता, स्वतंत्रता और बंधुत्व में बाधक माना।
- धार्मिक व्याख्या:
- गांधीजी ने अस्पृश्यता के नैतिक दोष को स्वीकार करते हुए इसे हिंदू धर्मग्रंथों की विकृति के रूप में देखा, न कि उनके परिणाम के रूप में।
- अम्बेडकर ने व्यापक अध्ययन के बाद निष्कर्ष निकाला कि छुआछूत और जातिगत भेदभाव की जड़ें हिंदू धर्मग्रंथों में थीं, जिसके कारण अंततः उन्हें हिंदू धर्म का त्याग करना पड़ा।
- जातिगत भेदभाव को संबोधित करने के तरीके:
- गांधीजी ने नैतिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण अपनाया और ‘हरिजनों‘ (ईश्वर के लोग, जैसा कि उन्होंने अछूतों को संदर्भित किया था) को सामाजिक रूप से समाज में एकीकृत करने के लिए आंदोलन चलाया।
- अंबेडकर ने एक कानूनी और राजनीतिक मार्ग की तलाश की, जिसका लक्ष्य दलितों के लिए संवैधानिक प्रावधानों और अधिकारों के माध्यम से जाति पदानुक्रम को संरचनात्मक रूप से समाप्त करना था।
- एकता की अवधारणा:
- गांधी ने भारत की अंतर्निहित एकता पर बल दिया, यह सुनिश्चित करते हुए कि विविध जातियां एक जैविक समग्रता का निर्माण करती हैं।
- अम्बेडकर ने भारतीय समाज की सांस्कृतिक और सामाजिक विविधता को पहचानते हुए, उत्पीड़न के खिलाफ एकजुट होने के लिए दलितों की सामाजिक-राजनीतिक एकता पर बल दिया।
जाति व्यवस्था पर गांधी और अम्बेडकर के विचारों के बीच समानताएँ:
- समस्या की पहचान करना: दोनों नेताओं ने स्पष्ट रूप से अस्पृश्यता की सामाजिक बुराई को पहचाना और इसके उन्मूलन की मांग की, भले ही अलग-अलग तरीकों से।
- शिक्षा की भूमिका: गांधी और अम्बेडकर रूढ़िवादी मानसिकता को बदलने और हाशिये पर पड़े लोगों के उत्थान के लिए शिक्षा की परिवर्तनकारी शक्ति में विश्वास करते थे।
- अहिंसा: हालांकि उनके दृष्टिकोण अलग-अलग थे, दोनों नेताओं ने सामाजिक परिवर्तन के लिए अहिंसक तरीकों का पालन किया। गांधी की अहिंसा निरपेक्ष थी, जबकि अंबेडकर की अहिंसा अधिक सूक्ष्म थी, जो आत्मरक्षा की अनुमति देती थी।
- अंतिम लक्ष्य: दोनों ने एक समतावादी समाज की कल्पना की जहाँ व्यक्तियों को, उनकी जाति के बावजूद, समान अधिकार, अवसर और सम्मान प्राप्त हो।
निष्कर्ष:
गांधी और अम्बेडकर, भारत के इतिहास की महान शख्सियतें, जाति व्यवस्था पर विपरीत विचार रखते थे, जो उनके विविध अनुभवों, प्रदर्शनों और दृढ़ विश्वासों से उपजा था। फिर भी, उनका साझा लक्ष्य समाज का उत्थान करना और उनकी बेहतरी में योगदान करना था। उन्होंने भारत के बहुलवादी ताने-बाने को मूर्त रूप दिया, जहाँ कई व्यक्तियों के दृष्टिकोण मिलकर देश की नियति को आकार देते हैं। भले ही वे अलग-अलग रास्तों पर चले हों, लेकिन उन दोनों का लक्ष्य एक जातिविहीन समाज बनाना था, जो भेदभाव और पूर्वाग्रह से मुक्त हो। उनकी विरासतें इस बात की याद दिलाती हैं कि भले ही दृष्टिकोण अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन सामाजिक न्याय और समानता के प्रति प्रतिबद्धता सर्वोपरि बनी हुई है।
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