Q. विभिन्न सरकारी हस्तक्षेपों के बावजूद, भारत में पराली जलाना एक सतत् पर्यावरणीय चिंता बनी हुई है। नीतिगत उपायों, सब्सिडी और दंड पर विशेष जोर देते हुए, इस मुद्दे को संबोधित करने के लिए सरकार के दृष्टिकोण का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए। क्या ये रणनीतियाँ दीर्घकालिक रूप से सतत और प्रभावी हैं? (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • यह बतायें कि विभिन्न सरकारी मध्यक्षेपों के बावजूद, भारत में पराली जलाना एक सतत पर्यावरणीय चिंता क्यों बनी हुई है।
  • इस मुद्दे के समाधान के लिए सरकार के दृष्टिकोण के सकारात्मक परिणाम लिखिये।
  • इस मुद्दे के समाधान के लिए सरकार के दृष्टिकोण में आने वाली चुनौतियों का उल्लेख कीजिए।
  • दीर्घावधि में अपनाई गई रणनीतियों की संधारणीयता और प्रभावशीलता पर चर्चा कीजिए।
  • आगे की राह लिखिये।

उत्तर

पराली जलाना, फसल अवशेषों को जलाने की एक सामान्य प्रथा है, विशेषकर पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में। विभिन्न सरकारी उपायों के बावजूद, आर्थिक दबाव, सीमित जागरूकता और किफायती विकल्पों की कमी के कारण पराली जलाना अभी भी जारी है, जिससे वायु गुणवत्ता और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

पराली जलाने का सिलसिला लगातार जारी रहने के कारण

  • आर्थिक प्रोत्साहन और विकल्पों की कमी: किसान अक्सर पराली जलाने का सहारा लेते हैं क्योंकि यह अगली बुवाई से पहले खेतों को साफ करने का एक लागत प्रभावी और त्वरित तरीका है। 
    • उदाहरण के लिए: मल्चिंग या खाद बनाने जैसी वैकल्पिक तकनीकों की लागत, पराली जलाने की तुलना में काफी अधिक है।
  • किसानों में सीमित जागरूकता: सरकार के प्रयासों के बावजूद, कई किसान दीर्घकालिक पर्यावरणीय परिणामों के संबंध में जागरूक नहीं हैं।
  • प्रभावी प्रवर्तन का अभाव: यद्यपि पराली जलाने पर दंड का प्रावधान है, लेकिन निगरानी और प्रवर्तन में व्याप्त चुनौतियों के कारण इसका अनुपालन कम रहता है।
  • गैरप्रभावी प्रौद्योगिकी अंगीकरण: पराली प्रबंधन उपकरणों के लिए सब्सिडी जैसे प्रोत्साहनों के बावजूद, कई ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों की मशीनरी तक पहुँच सीमित है। 
    • उदाहरण के लिए: उच्च परिचालन लागत के कारण हैप्पी सीडर मशीनों पर हरियाणा सरकार की सब्सिडी के बावजूद इसका प्रयोग कम ही हुआ है।
  • गैरप्रभावी दंड: अभी तक,  दंड लगाने से अक्सर किसानों को रोकने में विफलता ही मिली है, क्योंकि जुर्माने की राशि बहुत कम होती है। 
    • उदाहरण के लिए: पहले पंजाब में पराली जलाने पर जुर्माना 2,500-5000 रुपये था, जिसे अक्सर महत्त्वहीन माना जाता था  विशेषकर खेत को जल्दी से साफ करने से होने वाले अल्पकालिक वित्तीय लाभों को देखते हुए।

सरकारी प्रयासों के सकारात्मक परिणाम

  • कृषि उपकरणों के लिए सब्सिडी: हैप्पी सीडर और पैडी स्ट्रॉ चॉपर जैसी मशीनों के लिए सब्सिडी योजनाओं की शुरूआत से पराली जलाने में कमी लाने में कुछ सफलता मिली है।
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2023-24 सीज़न में, पंजाब सरकार 5,000 सरफेस सीडर सहित 24,000 से अधिक फसल अवशेष प्रबंधन (CRM) मशीनें, सब्सिडी वाले मूल्यों पर उपलब्ध कराएगी।
  • जागरूकता अभियान में वृद्धि: “फसल अवशेष जलाने के संबंध में जागरूकता अभियान” जैसे सरकारी अभियानों ने किसानों को पराली जलाने के हानिकारक प्रभावों के बारे में शिक्षित किया है। 
    • उदाहरण के लिए: पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने IARI के साथ मिलकर क्षेत्रीय कार्यशालाएँ आयोजित कीं, जिसका लाभ उत्तर भारत में 500,000 से अधिक किसानों को हुआ।
  • अपशिष्ट से संपदा बनाने की तकनीक: पराली को बायोएनर्जी में बदलने वाली तकनीक को अपनाने का चलन बढ़ा है। 
    • उदाहरण के लिए: इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (IOC) ने ग्रामीण क्षेत्रों में पराली को बायोगैस और बायो-CNG में बदलने के लिए बायो-गैस प्लांट बनाये हैं जिससे किसानों को वैकल्पिक आय मिल रही है।
  • राज्यों के साथ सहयोगात्मक प्रयास: केंद्र सरकार के राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) ने संयुक्त निगरानी और प्रबंधन पहल को बढ़ावा दिया है। 
    • उदाहरण के लिए: NCAP के तहत, वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) ने व्यापक कार्य योजनाओं को लागू करने के लिए राज्य सरकारों के साथ समन्वय किया है।
  • नीति में फसल अवशेषों का एकीकरण: वायु गुणवत्ता पर सरकार की राष्ट्रीय कार्य योजना फसल अवशेषों को जलाने को व्यापक वायु गुणवत्ता प्रबंधन नीतियों में एकीकृत करती है। 
    • उदाहरण के लिए: पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली जैसे राज्यों में पराली जलाने और वायु प्रदूषण को कम करने के लिए वर्ष 2018-19 में  फसल अवशेषों के इन-सीटू प्रबंधन के लिए कृषि यंत्रीकरण को बढ़ावा देने की योजना शुरू की गई।

सरकार के दृष्टिकोण में चुनौतियाँ

  • वैकल्पिक तरीकों की उच्च लागत: लघु किसानों के लिए वैकल्पिक पराली प्रबंधन विधियों की लागत बहुत अधिक है। 
    • उदाहरण के लिए: पराली प्रबंधन मशीन किराए पर लेने की लागत 5,000 रुपये प्रति एकड़ तक हो सकती है, जो पंजाब और हरियाणा जैसे क्षेत्रों के कई किसानों के लिए वहनीय नहीं है।
  • सब्सिडीयुक्त प्रौद्योगिकी तक सीमित पहुँच: सरकार के प्रयासों के बावजूद, कई किसानों के पास अभी भी सब्सिडीयुक्त उपकरणों तक पहुँच नहीं है।
  • कमजोर संस्थागत समर्थन: किसानों को अक्सर योजनाओं के कार्यान्वयन में देरी का सामना करना पड़ता है, और स्थानीय अधिकारियों के पास उचित प्रवर्तन के लिए संसाधनों की कमी हो सकती है।
  • समस्या की मौसमी प्रकृति: फसल कटाई के मौसम में पराली जलाने की घटनाएँ चरम पर होती हैं और इससे वायु गुणवत्ता अस्थायी रूप से प्रभावित होती है, जिसपर नीति निर्माताओं को ध्यान देना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: दिल्ली NCR क्षेत्र में मुख्य रूप से अक्टूबर-नवंबर में धुंध रहती है, क्योंकि पराली जलाने की घटनाएँ मौसमी मौसम पैटर्न के साथ मेल खाती हैं।
  • अपर्याप्त निगरानी और दंड: कड़े दंड के प्रावधानों के बावजूद, एकीकृत निगरानी प्रणाली की कमी के परिणामस्वरूप पराली जलाने का दंड कम ही लोगों को दिया जाता है। 

रणनीतियों की स्थिरता और प्रभावशीलता

  • अल्पकालिक समाधान: वर्तमान रणनीतियाँ अल्पकालिक राहत प्रदान करती हैं, लेकिन मूल कारणों को संबोधित करने में विफल रहती हैं, जैसे कि किसानों द्वारा सामना किए जाने वाले आर्थिक दबाव। 
    • उदाहरण के लिए: हैप्पी सीडर्स के लिए प्राप्त होने वाली सब्सिडी ने कुछ क्षेत्रों में पराली जलाने को कम कर दिया है, लेकिन परिचालन लागत वहन न कर पाने के कारण यह प्रथा अभी भी अन्य क्षेत्रों में जारी है।
  • दीर्घकालिक वित्तीय व्यवहार्यता का अभाव: सब्सिडी और जुर्माने से जुड़ी रणनीतियाँ दीर्घकालिक रूप से और वित्तीय रूप से संधारणीय नहीं हैं।
  • पर्यावरणीय प्रभाव और अनुकूलन: जैव-अपघटकों के उपयोग से मिश्रित परिणाम सामने आए हैं।
  • प्रौद्योगिकी अंतराल: सरकार के कई प्रौद्योगिकी समाधान जैसे कि जैव ऊर्जा रूपांतरण, बुनियादी ढाँचे की चुनौतियों के कारण सभी क्षेत्रों में लागू नहीं हो पाते हैं।
  • अप्रभावी दंड: पराली जलाने की समस्या को कम करने में दंड का प्रावधान अधिक प्रभावी साबित नहीं हुआ है।

आगे की राह

  • संधारणीय कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना: शून्य जुताई खेती के लिए व्यापक सहायता प्रदान करनी चाहिए जिसके प्रयोग से पराली जलाने की आवश्यकता ही नहीं होती।
  • प्रौद्योगिकी समाधानों को मजबूत करना: उन्नत मशीनरी और बायोडिग्रेडेबल समाधानों पर ध्यान देना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: मल्चिंग और बायोमास रूपांतरण के लिए एकीकृत मशीनों के साथ ट्रैक्टरों का उपयोग करना एक प्रभावी समाधान हो सकता है, अगर सरकार द्वारा उचित प्रोत्साहन दिया जाए।
  • बेहतर किसान शिक्षा: संधारणीय कृषि के संबंध में किसानों की समझ को बेहतर बनाने के लिए उनकी शिक्षा में निवेश बढ़ाना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: महाराष्ट्र सरकार ने किसानों को कम लागत वाली, पर्यावरण अनुकूल खेती के तरीकों का प्रशिक्षण देने के लिए IIT बॉम्बे के साथ साझेदारी की है।
  • बेहतर नीति समन्वय: पराली प्रबंधन रणनीतियों को लागू करने के लिए केंद्र और राज्यों के बीच सहयोग को मजबूत करना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: स्वच्छ गंगा पर राष्ट्रीय मिशन ने दर्शाया है कि कैसे प्रभावी बहु-स्तरीय शासन पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान कर सकता है, और पराली जलाने के लिए भी इसी तरह के मॉडल अपनाए जा सकते हैं।
  • बाजार आधारित समाधान अपनाना: पराली न जलाने वाले किसानों के लिए कार्बन क्रेडिट जैसे बाजार आधारित समाधानों को प्रोत्साहित करना चाहिए

कई मध्यक्षेपों के बावजूद, आर्थिक, प्रौद्योगिकी और जागरूकता अंतराल के कारण पराली जलाना एक महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय चुनौती बनी हुई है। हालाँकि सरकार के प्रयासों से कुछ प्रगति हुई है, लेकिन दीर्घकालिक रूप से इस मुद्दे को संबोधित करने के लिए संधारणीयता, प्रौद्योगिकी और नीति प्रवर्तन को शामिल करते हुए एक समग्र दृष्टिकोण महत्त्वपूर्ण है।

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