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Q. चर्चा कीजिए कि कैसे पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करना, सहयोग को बढ़ावा देना और एक स्वास्थ्य प्रतिमान को अपनाना बदलती जलवायु और संक्रामक रोगों के बढ़ते खतरे के सामने सबसे अच्छा बचाव हो सकता है। (250 शब्द, 15 अंक)

उत्तर:

दृष्टिकोण:

  • परिचय: जलवायु परिवर्तन और पर्यावास विनाश के संदर्भ में संक्रामक रोगों की बढ़ती चुनौती का परिचय दीजिए।
  • मुख्य विषयवस्तु
    • रोग की रोकथाम में जैव विविधता की भूमिका और नए संक्रामक रोगों के उद्भव को रोकने के लिए आवासों के संरक्षण के महत्व पर चर्चा कीजिए।
    • प्रकोप के दौरान अंतर्विषयक दृष्टिकोण और वास्तविक समय डेटा साझाकरण और अंतर्राष्ट्रीय समन्वय की आवश्यकता पर जोर दीजिए।
    • वन हेल्थ मॉडल के समग्र दृष्टिकोण, रोगाणुरोधी प्रतिरोध जैसी चुनौतियों से निपटने में इसके महत्व और एकीकृत नीति-निर्माण पर इसके प्रभाव का परिचय दीजिए।
  • निष्कर्ष: इस अभिकथन के साथ निष्कर्ष निकालें कि मानव, पशु और पर्यावरणीय स्वास्थ्य के अंतर्संबंध को समझना और उस पर कार्य करना एक स्थायी और स्वस्थ भविष्य का मार्ग प्रशस्त करता है।

परिचय:

वर्तमान में देखा जाये तो जलवायु परिवर्तन, पर्यावास विनाश, और विश्व स्तर पर संक्रामक रोगों के उद्भव में वृद्धि हुई है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए समग्र रणनीतियों की आवश्यकता है जो पारिस्थितिक, मानव और पशु स्वास्थ्य को एकीकृत करें। वन हेल्थ मॉडल ऐसा एकीकृत दृष्टिकोण प्रदान करता है।  

मुख्य विषयवस्तु:

पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करना:

  • जैव विविधता बफर:
    • समृद्ध जैव विविधता वाले पारिस्थितिकी तंत्र अकसर बफर के रूप में कार्य करते हैं, जिससे वन्यजीवों से मनुष्यों में फैलने वाली संक्रामक बीमारियों की संभावना कम हो जाती है। 
    • उदाहरण के लिए, विविध पक्षी समुदाय वेस्ट नाइल वायरस के प्रसार को कम कर सकते हैं चूंकि वायरस विभिन्न प्रजातियों में वितरित होता है, जिनमें से कई प्रभावी हस्तांतरित करने वाले नहीं होते हैं।
  • पर्यावास संरक्षण:
    • वनों की कटाई और आवास विखंडन को रोकना महत्वपूर्ण है।
    • वन कई रोगज़नक़ों के लिए प्राकृतिक भंडार के रूप में कार्य करते हैं।
    • अमेज़ॅन जैसे स्थानों में तेजी से वनों की कटाई को मलेरिया और जीका वायरस जैसी बीमारियों के उद्भव से जोड़ा गया है।

सहयोग को बढ़ावा देना:

  • अंतःविषय कार्रवाई:
    • पारिस्थितिकी विज्ञानी, पशुचिकित्सकों, स्वास्थ्य पेशेवरों और नीति-निर्माताओं को शामिल करने वाली सहयोगात्मक कार्रवाइयों से अधिक व्यापक समाधान प्राप्त हो सकते हैं।
    • उदाहरण के लिए, इबोला प्रकोप के दौरान पश्चिम अफ्रीका में सहयोगात्मक प्रयासों ने संकट से निपटने के लिए विभिन्न विशेषज्ञताओं को एक साथ मंच पर खड़ा किया।
  • जानकारी का साझाकरण:
    • प्रकोप के दौरान राष्ट्रों में वास्तविक समय डेटा साझा करने से त्वरित प्रतिक्रिया में सहायता मिल सकती है।
    • ग्लोबल आउटब्रेक अलर्ट एंड रिस्पांस नेटवर्क (GOARN) जैसे प्लेटफ़ॉर्म इस पहलू में सहायक रहे हैं। 

वन हेल्थ मॉडल को अपनाना:

  • समग्र दृष्टिकोण:
    • वन हेल्थ मानव, पशु और पर्यावरणीय स्वास्थ्य के अंतर्संबंध पर जोर देता है।
    • उदाहरण के लिए, एवियन फ्लू को नियंत्रित करने में न केवल प्रभावित मनुष्यों का इलाज करना शामिल है बल्कि पक्षियों की आबादी और आवासों की निगरानी और प्रबंधन भी शामिल है।
  • रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर):
    • मनुष्यों और पशुओं में एंटीबायोटिक दवाओं के अत्यधिक उपयोग के परिणामस्वरूप दवा प्रतिरोधी रोगजनकों में वृद्धि हुई है।
    • वन हेल्थ दृष्टिकोण सभी क्षेत्रों में एंटीबायोटिक के उपयोग को सुसंगत बनाने का प्रयास करता है, जिससे एएमआर का अधिक प्रभावी ढंग से मुकाबला किया जा सके।
  • नीति का एकीकरण:
    • वन हेल्थ स्वास्थ्य और पर्यावरण रणनीतियों को एकीकृत करने के लिए नीति-निर्माण को प्रभावित कर सकता है।
    • उदाहरण के लिए, वेट मार्केट(wet market) नियमों को सार्वजनिक स्वास्थ्य और वन्यजीव संरक्षण दोनों दृष्टिकोणों को ध्यान में रखते हुए तैयार किया जा सकता है।

निष्कर्ष:

बदलती जलवायु और संक्रामक रोगों के बढ़ते खतरे के समक्ष, एकीकृत दृष्टिकोण जो पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण को प्राथमिकता देते हैं, वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देते हैं और वन हेल्थ प्रतिमान को अपनाते हैं, सबसे लचीली सुरक्षा प्रदान करते हैं। चूँकि हमारे सामने आने वाली चुनौतियाँ एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं, इसलिए उनसे निपटने के लिए हमारी रणनीतियाँ भी एक-दूसरे से जुड़ी होनी चाहिए। इस बात को ध्यान में रखकर कि मनुष्यों, जानवरों और पर्यावरण का स्वास्थ्य आपस में जुड़ा हुआ है, हम सभी के लिए एक स्थायी और स्वस्थ भविष्य की दिशा में काम कर सकते हैं।

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