Q. भारत की बढ़ती अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में स्पेस तकनीक स्टार्टअप की भूमिका पर चर्चा कीजिए। ये स्टार्टअप अंतरिक्ष अन्वेषण और नवाचार में वैश्विक शक्ति बनने की देश की महत्वाकांक्षाओं में कैसे योगदान दे सकते हैं? (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारत की बढ़ती अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में स्पेस-टेक स्टार्टअप की भूमिका पर चर्चा कीजिये।
  • परीक्षण कीजिए कि ये स्टार्टअप अंतरिक्ष अन्वेषण और नवाचार में वैश्विक नेतृत्वकर्ता बनने की देश की महत्त्वाकांक्षाओं में कैसे योगदान दे सकते हैं।
  • उनके सामने आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।
  • आगे की राह लिखिये।

उत्तर

स्पेस टेक्नोलॉजी स्टार्टअप भारत को सरकार के प्रभुत्व वाले अंतरिक्ष क्षेत्र से 2033 तक 44 बिलियन डॉलर की वाणिज्यिक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में बदलने में मदद कर रहे हैं (IN-SPA)। 190 से अधिक स्टार्टअप के साथ 2023 में निवेश में 50% की वृद्धि हुई (ISpA रिपोर्ट) तथा उपग्रह प्रक्षेपण, रिमोट सेंसिंग और अंतरिक्ष-आधारित संचार पर ध्यान केंद्रित किया गया। यह उछाल अंतरिक्ष अन्वेषण में आत्मनिर्भरता और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए भारत के प्रयास के अनुरूप है।

भारत की बढ़ती अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में स्पेस टेक स्टार्टअप की भूमिका

  • निजी निवेश को बढ़ावा देना: स्टार्टअप उद्यम पूंजी और वैश्विक निवेशकों को आकर्षित करते हैं, जिससे अनुसंधान एवं विकास तथा अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के व्यावसायीकरण के लिए वित्त पोषण बढ़ता है।
    • उदाहरण के लिए: स्काईरूट एयरोस्पेस ने GIC जैसे निवेशकों से लगभग 50 मिलियन डॉलर जुटाए, जिससे लागत प्रभावी प्रक्षेपण वाहनों के विकास में तेजी आई।
  • लागत प्रभावी रॉकेट विकसित करना: स्टार्टअप पुन: प्रयोज्य, 3D-प्रिंटेड और पर्यावरण अनुकूल रॉकेटों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जिससे प्रक्षेपण लागत कम होती है और पहुँच में वृद्धि होती है।
    • उदाहरण के लिए: अग्निकुल कॉसमॉस ने अग्निबाण का विकास किया जो दुनिया का पहला पूर्णतः 3D-प्रिंटेड रॉकेट इंजन है, जो लागत प्रभावी और माँग पर आधारित प्रक्षेपण की सुविधा प्रदान करता है।
  • उन्नत उपग्रह प्रौद्योगिकी: स्टार्टअप हाइपरस्पेक्ट्रल इमेजिंग, रिमोट सेंसिंग और संचार उपग्रह की सुविधा प्रदान करते हैं, जिससे विभिन्न क्षेत्रों को लाभ मिलता है।
    • उदाहरण के लिए: पिक्सल के हाइपरस्पेक्ट्रल उपग्रह प्रारंभिक पर्यावरणीय परिवर्तनों का पता लगाकर जलवायु निगरानी और आपदा प्रतिक्रिया में मदद करते हैं।
  • अंतरिक्ष आधारित सेवाओं में सुधार: स्टार्टअप, उपग्रह प्रौद्योगिकी के माध्यम से दूरसंचार, नेविगेशन और मौसम पूर्वानुमान में सुधार करते हैं।
  • रोजगार सृजन और कौशल विकास: स्टार्टअप एयरोस्पेस, इंजीनियरिंग और AI में रोजगार सृजन को बढ़ावा देते हैं, जिससे कुशल कार्यबल को बढ़ावा मिलता है।
    • उदाहरण के लिए: भारतीय अंतरिक्ष स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र ने हजारों उच्च तकनीक वाली नौकरियां सृजित की हैं जिससे एयरोस्पेस क्षेत्र को बढ़ावा मिला है।

भारत के वैश्विक अंतरिक्ष नेतृत्व में योगदान

  • भारत की बाजार हिस्सेदारी का विस्तार:  भारत के स्पेस स्टार्टअप भारत की 2% वैश्विक हिस्सेदारी बढ़ा सकते हैं  जिससे यह एक प्रतिस्पर्धी राष्ट्र के रूप में स्थापित हो जाएगा
    • उदाहरण के लिए: 1.8 ट्रिलियन डॉलर के वैश्विक अंतरिक्ष बाजार के साथ, ध्रुव स्पेस जैसे स्टार्टअप वैश्विक ग्राहकों के लिए छोटे उपग्रहों का नवाचार कर रहे हैं।
  • सार्वजनिक-निजी सहयोग को मजबूत करना: स्टार्टअप विशिष्ट प्रौद्योगिकियों का विकास करके ISRO की विशेषज्ञता को पूरक बनाते हैं, जिससे तीव्र व्यावसायीकरण सुनिश्चित होता है।
    • उदाहरण के लिए: स्काईरूट एयरोस्पेस के साथ ISRO के सहयोग से भारत का पहला निजी तौर पर विकसित रॉकेट विक्रम-S लॉन्च हुआ।
  • डीपस्पेस अन्वेषण को बढ़ावा देना: निजी कंपनियाँ चंद्र, मंगल और क्षुद्रग्रह मिशनों में योगदान दे रही हैं, जिससे भारत अंतरिक्ष अन्वेषण का प्रमुख केंद्र बन गया है।
    • उदाहरण के लिए: TeamIndus जैसे स्टार्टअप ने चंद्र लैंडर तकनीक पर काम किया है जो भविष्य के चंद्र मिशनों के लिए महत्त्वपूर्ण है
  • अंतरिक्ष निर्माण में नवाचार: भारत कम लागत वाले उपग्रह और रॉकेट उत्पादन का वैश्विक केंद्र बन सकता है।
    • उदाहरण के लिए: अग्निकुल कॉसमॉस का ऑन-डिमांड रॉकेट निर्माण मॉडल बड़े पैमाने पर उत्पादित प्रक्षेपण वाहनों के लिए एक मिसाल कायम कर रहा है।
  • अंतरिक्ष-आधारित रक्षा को आगे बढ़ाना: स्टार्टअप अंतरिक्ष सुरक्षा, निगरानी और रणनीतिक अनुप्रयोगों में योगदान देते हैं
    • उदाहरण के लिए: भारतीय स्टार्टअप अंतरिक्ष परिसंपत्तियों के लिए एंटी-सैटेलाइट तकनीक और साइबर सुरक्षा समाधान पर काम कर रहे हैं।

अंतरिक्ष स्टार्टअप्स के समक्ष आने वाली चुनौतियाँ

  • सीमित वित्तपोषण पहुँच: कई स्टार्टअप प्रारंभिक अवस्था में उच्च अनुसंधान एवं विकास लागत और सीमित उद्यम पूंजी की समस्या से जूझते हैं।
    • उदाहरण के लिए: अपनी सफलता के बावजूद, अग्निकुल कॉसमॉस को शुरू में उच्च जोखिम वाले अंतरिक्ष निवेश के कारण वित्तपोषण चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
  • विनियामक बाधाएँ: अंतरिक्ष स्टार्टअप्स को लंबी स्वीकृति प्रक्रिया और जटिल लाइसेंसिंग आवश्यकताओं का सामना करना पड़ता है।
    • उदाहरण के लिए: भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन एवं प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe) विनियमों को सरल बनाने के लिए काम कर रहा है, लेकिन अभी भी खामियाँ बनी हुई हैं।
  • बुनियादी ढाँचे की कमी: भारत में समर्पित निजी प्रक्षेपण स्थलों और परीक्षण सुविधाओं का अभाव है  जिससे नवाचार में देरी हो रही है।
    • उदाहरण के लिए: अधिकांश भारतीय स्टार्टअप ISRO की प्रक्षेपण सुविधाओं पर निर्भर हैं, जिसके कारण प्रक्षेपण के लिए प्रतीक्षा समय लंबा हो जाता है।
  • तकनीकी निर्भरता: कई स्टार्टअप उन्नत अंतरिक्ष प्रणालियों के लिए विदेशी तकनीक पर निर्भर हैं। 
    • उदाहरण के लिए: भारत की क्रायोजेनिक इंजन प्रौद्योगिकी स्वदेशी विकास तक ऐतिहासिक रूप से रूसी सहायता पर निर्भर थी।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्धा: भारतीय स्टार्टअप्स को बेहतर वित्तपोषण और बुनियादी ढाँचे वाली अमेरिका, चीन और यूरोपीय संघ की कंपनियों से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है।
    • उदाहरण के लिए: SpaceX की स्टारशिप और ब्लू ओरिजिन की अंतरिक्ष पर्यटन योजनाएं वैश्विक स्तर पर निजी अंतरिक्ष उद्योग पर हावी हैं।

आगे की राह

  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी को मजबूत करना: ISRO और निजी फर्मों को अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी विकसित करने के लिए अधिक सक्रिय रूप से सहयोग करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: गगनयान मिशन ईंधन टैंक और एवियोनिक्स जैसी उप-प्रणालियों के लिए निजी स्टार्टअप का उपयोग कर रहा है।
  • सरकारी वित्तपोषण में वृद्धि: सरकार को अंतरिक्ष बजट में वृद्धि करनी चाहिए और स्टार्टअप्स के लिए अनुदान उपलब्ध कराना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: ISRO का बजट 1.5 बिलियन डॉलर है, जो NASA के बजट से बहुत कम है, तथा इसके लिए अधिक निवेश की आवश्यकता है।
  • अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी पार्कों का विकास: भारत को अनुसंधान एवं विकास, परीक्षण और विनिर्माण के लिए समर्पित अंतरिक्ष केन्द्रों का निर्माण करना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: प्रस्तावित तमिलनाडु अंतरिक्ष पार्क का उद्देश्य उपग्रह और रॉकेट स्टार्टअप की सहायता करना है।
  • विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करना: नीतिगत सुधारों से भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में वैश्विक पूंजी आकर्षित होनी चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: अंतरिक्ष स्टार्टअप में FDI वर्तमान में 74% तक सीमित है, लेकिन आगे उदारीकरण प्रमुख देशों को आकर्षित कर सकता है।
  • कौशल विकास और STEM शिक्षा: प्रशिक्षण कार्यक्रमों को AI, रोबोटिक्स और एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में प्रतिभा का पोषण करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: ISRO का युवा वैज्ञानिक कार्यक्रम (YUVIKA) छात्रों को अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और अनुसंधान में प्रशिक्षण देता है।

भारत के स्पेसटेक स्टार्टअप अंतरिक्ष नवाचार को लोकतांत्रिक बनाने और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। सार्वजनिक-निजी सहयोग, विनियामक सहजता और वित्तपोषण पहुँच को मजबूत करने से सफलताओं में तेजी आएगी। ISpA, IN-SPACe और NSIL समर्थन का विस्तार भारत को वैश्विक अंतरिक्ष केंद्र के रूप में स्थापित कर सकता है जिससे लागत प्रभावी प्रक्षेपण, डीप-स्पेस मिशन और निरंतर नेतृत्व के लिए वाणिज्यिक उपग्रह उपक्रमों को बढ़ावा मिलेगा।

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