Q. ‘बंगाल दुर्भिक्ष’ से सबक लेते हुए, संकट के दौरान ‘एडॉप्टिव लीडरशिप’ के महत्व पर चर्चा कीजिए। इन सबकों को समकालीन संगठनात्मक परिवर्तनों पर कैसे लागू किया जा सकता है? (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • बंगाल के अकाल काल से सबक लेते हुए, संकट के दौरान अनुकूली नेतृत्व के महत्त्व पर चर्चा कीजिए।
  • बताइये कि इन सबकों को समकालीन संगठनात्मक परिवर्तनों में कैसे लागू किया जा सकता है।

उत्तर

अनुकूली नेतृत्व एक अग्रगामी सोच वाला दृष्टिकोण है, जो जटिलता को अपनाता है, नवाचार को प्रोत्साहित करता है, और लोगों को प्रणालीगत चुनौतियों से उबरने के लिए प्रेरित करता है। यह सहयोग, सहानुभूति और लचीली कार्रवाई के माध्यम से समय पर निर्णय लेने में सक्षम बनाता है। बंगाल के अकाल से लेकर COVID-19 प्रतिक्रियाओं तक, भारत में समय-समय पर संकट समाधान और संस्थागत परिवर्तन में अनुकूली नेतृत्व की महत्त्वपूर्ण भूमिका देखी गई है।

संकट के दौरान अनुकूली नेतृत्व का महत्त्व

  • संकट को जल्दी पहचानना: अनुकूलनशील नेतृत्वकर्ताओं को शुरुआती चेतावनी संकेतों को पहचानना चाहिए और स्थिति के बिगड़ने से पहले ही प्रतिक्रिया करनी चाहिए। देरी से क्षति बढ़ती है और विश्वास कम होता है। 
    • उदाहरण के लिए: वेवेल की वर्ष 1944 में अतिरिक्त डेढ़ मिलियन टन खाद्यान्न की माँग करना, एक ऐसा ही सुधारात्मक निर्णय था जिसने पूर्ववर्ती प्रशासनिक नीति को परिवर्तित कर संकट प्रबंधन की नई दिशा दिखाई और आपातकालीन प्रतिक्रिया की शुरुआत की।
  • जमीनी वास्तविकता से सीधे जुड़ना: नेतृत्वकर्ताओं को संकट की गहनता को समझने और प्रभावी समाधान तैयार करने के लिए व्यक्तिगत रूप से उसका सामना करना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2020 में चक्रवात अम्फान के दौरान प्रधानमंत्री के हवाई सर्वेक्षण से त्वरित आकलन और संसाधन आवंटन संभव हुआ।
  • नागरिक समाज और मीडिया को संगठित करना: संकट के समय, नेतृत्वकर्ताओं को जागरूकता बढ़ाने के लिए मीडिया की स्वतंत्रता और नागरिक सहभागिता को बढ़ावा देना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: द स्टेट्समैन के पत्रकार इयान स्टीफंस ने वर्ष 1943 में अकाल की तस्वीरें प्रकाशित करने के लिए ब्रिटिश सेंसरशिप को चुनौती दी, जिससे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समर्थन मिला।
  • सुघटित, उद्देश्य-संचालित दलों का गठन: संकट के समय नेतृत्व करने वालों को क्रॉस-सेक्टर दल बनाने चाहिए जो शीघ्रता से अनुकूलन कर सकें और प्रशासनिक देरी को रोक सकें। 
    • उदाहरण के लिए: भारत के COVID-19 वैक्सीन टास्क फोर्स ने समाधानों में तेजी लाने के लिए वैज्ञानिकों, प्रशासकों और निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों को एकजुट किया।
  • सतत नैतिक और रणनीतिक संदेश: नेताओं को स्पष्टता, करुणा और कार्रवाई हेतु रणनीतिक आह्वान के साथ संवाद करना चाहिए जो एकता और तत्परता को प्रेरित करता है।
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 1944 में वेवेल के कलकत्ता भाषण में सहयोग और कर्तव्य पर बल दिया गया तथा खाद्य राहत के लिए स्थानीय सहयोग की माँग की गई।
  • प्रोटोकॉल से अधिक मानव जीवन को प्राथमिकता देना: आपातकालीन स्थितियों में, अनुकूलनशील नेतृत्वकर्ताओं को जीवन की रक्षा के लिए लालफीताशाही को खत्म करना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: ऑपरेशन गंगा के तहत वर्ष 2022 में यूक्रेन से भारतीय छात्रों को निकालने के लिए समय पर बचाव सुनिश्चित करने हेतु वीजा  प्रक्रियाओं को दरकिनार कर दिया गया।
  • शिक्षण और सुधार को संस्थागत बनाना: अनुकूलनशील नेतृत्वकर्ता संकट से मिली सीखों का दस्तावेजीकरण, विश्लेषण और उन्हें दीर्घकालिक सुधारों में एकीकृत करते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: बंगाल के अकाल ने स्वतंत्रता के बाद भारतीय खाद्य निगम और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के निर्माण को प्रभावित किया।

समकालीन संगठनात्मक परिवर्तनों में अनुकूली नेतृत्व का प्रयोग

  • ईमानदारी से निदान के साथ शुरुआत करना: अनुकूलनशील नेतृत्वकर्ता, संस्थागत कमज़ोरियों का सामना करते हैं और खुले तौर पर परिवर्तन की आवश्यकता के बारे में बताते हैं, जो विश्वास, स्वामित्व और प्रभावी सुधार के लिए मंच तैयार करता है। 
    • उदाहरण के लिए: जब टाटा ने एयर इंडिया का अधिग्रहण किया, तो उन्होंने बेड़े के उपयोग और सेवा मानकों में अक्षमताओं को स्वीकार करके रूट-कॉज एनालिसिस को प्राथमिकता दी।
  • निर्णय लेने में प्रभावित हितधारकों को शामिल करना: अनुकूली नेतृत्व, आंतरिक अभिकर्ताओं को सशक्त बनाकर सहभागी डिजाइन को महत्त्व देता है – विशेष रूप से समस्या के सबसे करीब रहने वाले- व्यावहारिक और संधारणीय समाधान प्रदान करता है। 
    • उदाहरण के लिए: इंफोसिस के सुघटित डिलीवरी सिस्टम में हुये परिवर्तन ने परियोजना प्रबंधकों और डेवलपर्स को क्लाइंट इंटरफेस और समयसीमा को फिर से तैयार करने में शामिल किया, जिससे दक्षता में सुधार हुआ।
  • सहयोगी गठबंधन बनाना: अनुकूली नेतृत्व, संसाधनों और क्षमताओं को एक साथ लाने के लिए एक साझा दृष्टिकोण के तहत विविध टीमों, क्षेत्रों और मानसिकताओं को एकजुट करता है। 
    • उदाहरण के लिए: डिजिटल इंडिया पहल डिजिटल अवसंरचना और साक्षरता का विस्तार करने के लिए राज्य सरकारों, स्टार्टअप, गैर सरकारी संगठनों और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के साथ सहयोग करती है।
  • पुनरावृत्ति और नवाचार को प्रोत्साहित करना: अनुकूली नेतृत्वकर्ता समाधानों का परीक्षण, संशोधन और मापन करते हैं और विफलताओं को अवरोधक के बजाय सीखने के कदम के रूप में माना जाता है। 
    • उदाहरण के लिए: राज्य स्तर पर आधार के प्रारंभिक पायलट प्रोजेक्ट ने बायोमेट्रिक तकनीक का परीक्षण किया और राष्ट्रीय रोलआउट से पहले प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने में मदद की।
  • केवल अनुपालन ही नहीं, बल्कि प्रत्यास्थ क्षमताएँ विकसित करना: परिवर्तन के लिए अनुकूल प्रतिभा, मानसिकता और संस्थागत ढाँचों में निवेश की आवश्यकता होती है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि संगठन भविष्य के लिए तैयार है। 
    • उदाहरण के लिए: अटल इनोवेशन मिशन, टिंकरिंग लैब और मेंटर नेटवर्क के माध्यम से स्कूलों और विश्वविद्यालयों में उद्यमशीलता को बढ़ावा देता है, जिससे युवाओं को गतिशील भविष्य के लिए तैयार किया जाता है।
  • स्पष्टता और करुणा के साथ संवाद करना: चल रहे परिवर्तन के लिए चिंता को कम करने, लक्ष्यों को स्पष्ट करने और संगठन के सभी स्तरों से सहायता सुनिश्चित करने के लिए सहानुभूतिपूर्ण संदेश की आवश्यकता होती है। 
    • उदाहरण के लिए: महामारी के दौरान, टाटा स्टील ने नियमित रूप से कर्मचारियों को सुरक्षा प्रोटोकॉल के बारे में जानकारी दी, मानसिक स्वास्थ्य संसाधन उपलब्ध कराए और वेतन आश्वासन बनाए रखा जिससे प्रतिधारण और मनोबल बढ़ा।
  • दीर्घकालिक मूल्य को बढ़ाने के लिए व्यवधान का उपयोग करना: अनुकूल नेतृत्वकर्ता संकटों का लाभ उठाकर लंबित सुधारों या नवाचारों को लागू करते हैं जो संगठन को भविष्य के नेतृत्व के लिए तैयार करते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: लॉकडाउन के दौरान, भारतीय रेलवे ने बेकार पड़ी ट्रेनों को आइसोलेशन वार्ड में बदल दिया और बड़े पैमाने पर स्टेशनों का उन्नयन शुरू किया।

अनुकूली नेतृत्व स्पष्टता, करुणा और सामूहिक प्रत्यास्थता को बढ़ावा देकर संकट को अवसर में बदल देता है। चाहे अकाल के दौरान राष्ट्रों का मार्गदर्शन करना हो या अनिश्चितता में संगठनों की पुनर्कल्पना करना हो, यह ऐसी प्रणाली बनाता है जो समावेशी, डेटा-सूचित और भविष्य के लिए तैयार हो। आज के तेजी से बदलते सामाजिक-राजनीतिक और संगठनात्मक परिदृश्यों में इसके मूल सिद्धांत अत्यंत महत्त्वपूर्ण होते जा रहे हैं।

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