Q. वैश्विक शक्ति गतिशीलता में बदलाव के मद्देनजर, विशेष रूप से अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के परिणाम के बाद, भारत-यूरोपीय संघ रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने के महत्त्व पर चर्चा कीजिए। भारत को अपनी वैश्विक स्थिति को बढ़ाने के लिए सहयोग के किन क्षेत्रों को प्राथमिकता देनी चाहिए? (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • वैश्विक शक्ति गतिशीलता में हो रहे परिवर्तन पर प्रकाश डालिए, विशेष रूप से अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के परिणाम के बाद हुये परिवर्तन पर।
  • वैश्विक शक्ति गतिशीलता में बदलाव के मद्देनजर भारत-यूरोपीय संघ रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने के महत्त्व पर चर्चा कीजिए।
  • सहयोग के उन क्षेत्रों का परीक्षण कीजिए जिन्हें भारत को अपनी वैश्विक स्थिति बढ़ाने के लिए प्राथमिकता देनी चाहिए।

उत्तर

वैश्विक शक्ति की गतिशीलता में उतार-चढ़ाव जारी है, जो आर्थिक परिवर्तनों,  भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और रणनीतिक गठबंधनों से प्रभावित है। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव व्यापार, सुरक्षा और कूटनीति पर वैश्विक नीतियों को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उदाहरण के लिए, वर्ष 2024 के अमेरिकी चुनाव नाटो प्रतिबद्धताओं, इंडो-पैसिफिक रणनीतियों और बढ़ती बहुध्रुवीयता के बीच वैश्विक आर्थिक नीतियों को प्रभावित कर सकते हैं।

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के बाद वैश्विक शक्ति गतिशीलता में बदलाव

  • अमेरिकी विदेश नीति अनिश्चितता: डोनाल्ड ट्रम्प की वापसी के परिणामस्वरूप अमेरिका की नीतियाँ अप्रत्याशित हो गई हैं, जिससे वैश्विक गठबंधन जैसे NATO  का भविष्य और सुरक्षा प्रतिबद्धताएँ प्रभावित हुई हैं। 
    • उदाहरण के लिए: ट्रम्प द्वारा यूक्रेन के लिए समर्थन वापस लेने से यूरोप कमजोर हो गया है, जिससे उसे अपने सुरक्षा ढाँचे का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए मजबूर होना पड़ा है।
  • अमेरिका-रूस पुनर्संरेखण: रूस के साथ वार्ता करने की ट्रम्प की इच्छा ने संभावित अमेरिका-रूस मेल-मिलाप के संबंध में चिंताएँ बढ़ा दी हैं, जिससे शक्ति संतुलन में बदलाव आ सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: रियाद में मास्को के साथ वाशिंगटन की सीधी वार्ता में यूरोपीय और यूक्रेनी भागीदारी को बाहर रखा गया, जिससे उनकी रणनीतिक स्थिति कमजोर हो गई।
  • चीन का आर्थिक विस्तार: जबकि अमेरिका अपना ध्यान पुनः केंद्रित कर रहा है, चीन आक्रामक रूप से अपने आर्थिक प्रभाव का विस्तार कर रहा है। 
    • उदाहरण के लिए: चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 100 बिलियन डॉलर के करीब है, जो सुरक्षा चिंताओं के बावजूद आर्थिक निर्भरता को मजबूत करता है।
  • यूरोप का सामरिक स्वायत्तता की ओर झुकाव: यूरोपीय संघ अमेरिका पर निर्भरता कम कर रहा है और रक्षा, व्यापार व जलवायु परिवर्तन में स्वतंत्र नीतियों को प्राथमिकता दे रहा है। 
    • उदाहरण के लिए: जर्मनी के CDU नेता ने अमेरिका पर निर्भरता कम करने की शपथ ली, जिससे यूरोप के आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ने का संकेत मिला।
  • संरक्षणवाद और वि-वैश्वीकरण का उदय: ट्रम्प की “अमेरिका फर्स्ट” नीतियाँ वैश्विक आर्थिक व्यवस्था को चुनौती देती हैं, जिससे राष्ट्रों को वैकल्पिक व्यापार भागीदारों पर विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। 
    • उदाहरण के लिए: पारस्परिक टैरिफ के लिए ट्रम्प द्वारा बल दिये जाने से भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता जटिल हो गई है तथा भारत-यूरोपीय संघ व्यापार संबंध अधिक महत्त्वपूर्ण हो गए हैं।

भारत-यूरोपीय संघ सामरिक साझेदारी को मजबूत करने का महत्त्व

  • रणनीतिक गठबंधनों में विविधता लाना: यूरोपीय संघ के साथ संबंधों को मजबूत करने से अमेरिका की स्थिरता पर निर्भरता कम होती है, जिससे बहुध्रुवीय दुनिया में भारत की सौदेबाजी की शक्ति बढ़ती है। 
    • उदाहरण के लिए: भारतमध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक कॉरिडोर (IMEC) का उद्देश्य चीन की बेल्ट एंड रोड पहल (BRI) का मुकाबला करना है।
  • चीन के प्रभाव का मुकाबला करना: एक मजबूत भारत-यूरोपीय संघ साझेदारी हिंद-प्रशांत और उससे आगे चीन के बढ़ते भू-राजनीतिक प्रभुत्व को संतुलित करती है। 
    • उदाहरण के लिए: यूरोपीय संघ की हिंद-प्रशांत रणनीति भारत की एक्ट ईस्ट नीति के साथ संरेखित है, जो क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देती है।
  • आर्थिक सहयोग को मजबूत करना: भारत-यूरोपीय संघ आर्थिक जुड़ाव आपूर्ति श्रृंखला व्यवधानों को कम कर सकता है, जिससे व्यापार प्रत्यास्थता सुनिश्चित हो सकती है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत-यूरोपीय संघ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) वार्ता का लक्ष्य 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 500 बिलियन डॉलर से अधिक बढ़ाना है।
  • रक्षा और सुरक्षा सहयोग बढ़ाना: यूरोप,  रक्षा क्षेत्र में अधिक आत्मनिर्भरता चाहता है, जिससे भारत को हथियार उत्पादन और प्रौद्योगिकी पर सहयोग करने का अवसर मिल सके। 
    • उदाहरण के लिए: भारत-फ्रांस राफेल सौदा भारत की सैन्य क्षमताओं के आधुनिकीकरण में यूरोप की भूमिका को दर्शाता है।
  • प्रौद्योगिकी और जलवायु सहयोग: नवीकरणीय ऊर्जा और उन्नत प्रौद्योगिकी में यूरोपीय संघ का नेतृत्व, भारत के सतत विकास लक्ष्यों का पूरक है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत-यूरोपीय संघ व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद (TTC) AI, साइबर सुरक्षा और हरित ऊर्जा में सहयोग को बढ़ावा देता है।

वैश्विक स्थिति को मजबूत करने के लिए भारत को सहयोग के किन क्षेत्रों को प्राथमिकता देनी चाहिए

  • व्यापार और निवेश विस्तार: भारत-यूरोपीय संघ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) को प्राथमिकता देने से वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में भारत की स्थिति मजबूत होगी। 
    • उदाहरण के लिए: उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजना भारत के सेमीकंडक्टर और ऑटोमोबाइल उद्योगों में यूरोपीय निवेश को प्रोत्साहित करती है।
  • रक्षा और सुरक्षा साझेदारी: यूरोपीय संघ के साथ रक्षा संबंधों को बढ़ावा देने से भारत की सैन्य तैयारियाँ बेहतर होंगी और रूसी रक्षा आयात पर निर्भरता कम होगी। 
    • उदाहरण के लिए: भारत-इटली रक्षा सहयोग संयुक्त नौसैनिक अभ्यास और रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देता है।
  • रणनीतिक अवसंरचना विकास: अवसंरचना में सहयोग से क्षेत्रीय संपर्क में सुधार होगा, व्यापार विविधीकरण और आपूर्ति श्रृंखला प्रत्यास्थता सुनिश्चित होगी। 
    • उदाहरण के लिए: IMEC के विकास से मध्य पूर्व के माध्यम से भारत-यूरोपीय संघ संपर्क मजबूत होगा, जिससे चीन के नेतृत्व वाले मार्गों पर निर्भरता कम होगी।
  • प्रौद्योगिकी और नवाचार: डिजिटल युग में प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए भारत को यूरोपीय संघ के साथ AI, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और साइबर सुरक्षा साझेदारी पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: उपग्रह नेविगेशन और अंतरिक्ष अन्वेषण में ISRO-ESA सहयोग भारत की वैज्ञानिक प्रगति को बढ़ावा देता है।
  • सतत विकास और हरित ऊर्जा: यूरोप के साथ जलवायु-केंद्रित सहयोग को मजबूत करने से भारत के स्वच्छ ऊर्जा की ओर संक्रमण में तेज़ी आएगी। 
    • उदाहरण के लिए: यूरोपीय संघ की ग्लोबल गेटवे पहल भारत के नवीकरणीय ऊर्जा विस्तार का समर्थन करती है, तथा हरित हाइड्रोजन और सौर ऊर्जा परियोजनाओं को बढ़ावा देती है।

वैश्विक शक्ति गतिशीलता में बदलाव के दौर में भारत-यूरोपीय संघ की मजबूत साझेदारी, भू-राजनीतिक स्थिरता के रूप में काम कर सकती है। व्यापार विविधीकरण, प्रत्यास्थ आपूर्ति श्रृंखला, डिजिटल नवाचार और हरित प्रौद्योगिकियों को प्राथमिकता देकर भारत रणनीतिक अनिश्चितताओं से बच सकता है और अपने वैश्विक प्रभाव को बढ़ा सकता है। ग्लोबल गेटवे और व्यापार एवं प्रौद्योगिकी परिषद (TTC) जैसी पहलों का लाभ उठाने से आपसी विकास और लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित भविष्य के लिए तैयार गठबंधन सुनिश्चित होगा।

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