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Q. भारत के विकास पथ को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण वैश्विक और घरेलू कारकों पर चर्चा करने के साथ सतत और समावेशी विकास सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त उपाय भी सुझाएं। (250 शब्द, 15 अंक)

उत्तर:

दृष्टिकोण:

  • परिचय: एक उभरते वैश्विक आर्थिक खिलाड़ी के रूप में भारत की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए शुरुआत करें।
  • मुख्य विषयवस्तु:
    • भारत पर वैश्विक आर्थिक गतिशीलता की भूमिका का परिचय दें।
    • भारत के विकास को प्रभावित करने वाले वैश्विक कारकों का उल्लेख और चर्चा करें।
    • विकास को प्रभावित करने वाले घरेलू कारकों पर प्रकाश डालें और चर्चा करें।
    • सतत एवं समावेशी विकास के लिए उपाय सुझाएं।
    • प्रासंगिक डेटा और उदाहरण अवश्य प्रदान करें।
  • निष्कर्ष: समाज के सभी वर्गों के लिए समग्र और लाभकारी विकास सुनिश्चित करने के लिए टिकाऊ और समावेशी विकास के महत्व को दोहराते हुए निष्कर्ष निकालें।

परिचय:

एक उभरती हुई वैश्विक आर्थिक महाशक्ति के रूप में भारत एक ऐसे मोड़ पर है जहां इसकी विकास की कहानी वैश्विक और घरेलू दोनों कारकों के संगम से प्रभावित है। हालांकि देश ने महत्वपूर्ण आर्थिक लचीलेपन और अनुकूलन क्षमता का प्रदर्शन किया है, लेकिन यह सुनिश्चित करने के लिए कि विकास टिकाऊ और समावेशी हो,इसलिए इसके मार्ग में आने वाली चुनौतियों का समाधान करना जरूरी है।  

मुख्य विषयवस्तु: 

भारत के विकास को प्रभावित करने वाले वैश्विक कारक:

  • व्यापार गतिशीलता:
    • अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध जैसे व्यापार तनाव वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित कर सकते हैं और भारत के निर्यात और आयात को प्रभावित कर सकते हैं।
    • विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के अनुसार, अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध से वैश्विक जीडीपी वृद्धि में 0.7% की गिरावट आ सकती है।
  • वैश्विक आर्थिक मंदी:
    • 2008 के वित्तीय संकट और 2020 की कोविड-19-से उपजी आर्थिक मंदी ने भारत की निर्यात की मांग और FDI प्रवाह को काफी प्रभावित किया।
    • 2020 में, कोविड-19 महामारी के वैश्विक प्रभावों के कारण अप्रैल-जून तिमाही में भारत की जीडीपी में 23.9% की गिरावट आई।
  • तेल और कमोडिटी की कीमतें:
    • भारत कच्चे तेल का प्रमुख आयातक है, ऐसे में  कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव भारत के चालू खाते घाटे को बहुत प्रभावित करता है।
    • 2018 में, जब कच्चे तेल की कीमतें 80 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गईं, तो भारत का तेल आयात बिल 20% बढ़ गया।
  • विदेशी निवेश प्रवाह:
    • अमेरिका में ब्याज दरों में बदलाव भारत में एफडीआई और एफआईआई के प्रवाह को प्रभावित कर सकता है।
    • वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) इक्विटी प्रवाह $49.97 बिलियन रहा।

विकास को प्रभावित करने वाले घरेलू कारक:

  • प्रभावी नीति के कार्यान्वयन  में समस्याएँ:
    • 2017 में जीएसटी की शुरूआत का उद्देश्य करों को सुव्यवस्थित करना था लेकिन इसके प्रारंभिक कार्यान्वयन में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
    • जीएसटी के बाद, सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि में शुरुआती गिरावट 5.6% थी, हालांकि इसे अल्पकालिक प्रभाव के रूप में देखा गया था।
  • बुनियादी ढांचे से जुड़ी बाधाएँ:
    • अपर्याप्त रसद और परिवहन नेटवर्क उद्योगों की लागत बढ़ा सकते हैं।
  • बैंकिंग और वित्तीय स्वास्थ्य:
    • गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) में वृद्धि ने बैंकों की ऋण देने की क्षमताओं में बाधा उत्पन्न की है। 
    • 2019 तक, भारतीय बैंकों का सकल एनपीए कुल ऋण का लगभग 9.1% था।
  • जनसांख्यिकीय कारक:
    • भारत की युवा आबादी जनसांख्यिकीय लाभांश प्रदान तो करती है, लेकिन यह बड़ी संख्या में रोजगार सृजन की भी मांग करती है।
    • भारत को कार्यबल में प्रवेश करने वाली युवा आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए सालाना 8-10 मिलियन नौकरियां पैदा करने की जरूरत है।

सतत एवं समावेशी विकास के उपाय:

  • बुनियादी ढांचे का विकास: सड़कों, बंदरगाहों और लॉजिस्टिक्स केंद्रों जैसे भौतिक बुनियादी ढांचे में निवेश से कनेक्टिविटी बढ़ सकती है और लागत कम हो सकती है।
  •  वित्तीय क्षेत्र में सुधार: एनपीए संकट को संबोधित करना, वित्तीय संस्थानों को मजबूत करना और वित्तीय समावेशन को प्रोत्साहित करना अर्थव्यवस्था को स्थिर कर सकता है।
  • हरित ऊर्जा को बढ़ावा देना: नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में निवेश सतत विकास सुनिश्चित कर सकता है।
  • कौशल विकास: उद्योग की मांगों को पूरा करने के लिए शैक्षिक और व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों को तैयार करने से जनसांख्यिकीय लाभांश का प्रभावी ढंग से उपयोग किया जा सकता है।
  • एमएसएमई को बढ़ावा देना जरूरी : छोटे और मध्यम उद्यम शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में रोजगार सृजन और सामाजिक-आर्थिक विकास के इंजन हो सकते हैं।
  • समावेशी प्रौद्योगिकी एकीकरण: डिजिटल पहल शहरी-ग्रामीण विभाजन को पाट सकती है, जिससे यह सुनिश्चित हो सकेगा कि प्रौद्योगिकी का लाभ समाज के सभी वर्गों तक पहुंचे।

निष्कर्ष

वैश्विक और घरेलू दोनों प्रभावों से दिशा तय करने वाला भारत का विकास पथ एक बहुआयामी दृष्टिकोण की मांग करता है। इस प्रकार देखा जाये तो सतत और समावेशी विकास उपायों को अपनाने से यह सुनिश्चित हो सकता है कि राष्ट्र न केवल आर्थिक मील के पत्थर हासिल करेगा बल्कि अपनी विकास गाथा में प्रत्येक नागरिक की भलाई भी सुनिश्चित करेगा।

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