उत्तर:
दृष्टिकोण:
- प्रस्तावना: 1858 से 1905 तक ब्रिटिश भारत में राष्ट्रवादी संगठनों के विकास के बारे में संक्षेप में लिखिए।
- मुख्य विषयवस्तु:
- 1858 से 1905 तक ब्रिटिश भारत में राष्ट्रवादी संगठनों के विकास में योगदान देने वाले कारकों के बारे में लिखिए।
- स्वतंत्रता आंदोलन पर राष्ट्रवादी संगठनों का प्रभाव लिखिए।
- निष्कर्ष: इस संबंध में उचित निष्कर्ष दीजिए।
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प्रस्तावना:
ब्रिटिश भारत में 1858 से 1905 तक की अवधि में राष्ट्रवादी संगठनों का विकास देखा गया। इनमें विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक और बौद्धिक समूह शामिल हैं जो इस अवधि के दौरान भारतीयों के अधिकारों, राष्ट्रीय पहचान और स्व-शासन की वकालत करने के उद्देश्य से उभरे।
मुख्य विषयवस्तु:
इस अवधि के दौरान राष्ट्रवादी संगठनों के विकास में योगदान देने वाले प्रमुख कारक:
- ब्रिटिश औपनिवेशिक नीतियाँ: जैसे कि चूक का सिद्धांत, नस्लवाद, भारतीयों पर भारी कर लगाना आदि।
- समान कानूनों के साथ देश का राजनीतिक, प्रशासनिक और आर्थिक एकीकरण
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- अंतर्राष्ट्रीय आंदोलनों का प्रभाव: भारत में राष्ट्रवादी संगठनों का विकास स्वतंत्रता और लोकतंत्र के लिए अमेरिकी क्रांति और फ्रांसीसी क्रांति जैसे वैश्विक आंदोलनों से प्रभावित था।
- सामाजिक-धार्मिक आंदोलनों का प्रगतिशील चरित्र जिसने समाज को विभाजित करने वाली सामाजिक बुराइयों को दूर किया। उदाहरण- सत्यशोधक समाज।
- शिक्षा का प्रसार: आधुनिक एवं प्रगतिशील शिक्षा का प्रसार जिसने भारतीयों में आत्म-सम्मान को बढ़ावा दिया। उदाहरण- 1857 में बम्बई, कलकत्ता तथा मद्रास में विश्वविद्यालयों की स्थापना।
- बुद्धिजीवियों और नेताओं की भूमिका: दादाभाई नौरोजी और सुरेंद्रनाथ बनर्जी जैसे प्रभावशाली बुद्धिजीवियों और नेताओं ने भारतीयों के अधिकारों, राष्ट्रीय पहचान और स्व-शासन की वकालत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- पश्चिमी विचारों का प्रभाव: ब्रिटिश प्रणाली में शिक्षित भारतीय बुद्धिजीवी पश्चिमी राजनीतिक दर्शन से प्रेरित थे और उन्होंने उन्हें भारतीय संदर्भ में लागू करने की मांग की।
- प्रेस और प्रकाशनों की भूमिका: बंगाल गजट, अमृत बाजार पत्रिका और केसरी राष्ट्रवादी नेताओं के लिए अपने विचार व्यक्त करने, जागरूकता बढ़ाने और ब्रिटिश नीतियों के खिलाफ जनता की राय जुटाने के मंच बन गए।
- सोसायटी और एसोसिएशन का गठन: इस अवधि के दौरान इंडियन एसोसिएशन और पूना सार्वजनिक सभा जैसी विभिन्न सोसायटी और एसोसिएशन की स्थापना की गई।
इस अवधि के दौरान राष्ट्रवादी संगठनों के विकास ने स्वतंत्रता आंदोलन को कई तरह से आकार दिया:
- राष्ट्रीय अस्मिता का निर्माण: उन्होंने देश की साझी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत पर जोर देते हुए भारतीयों के बीच राष्ट्रीय अस्मिता की साझा भावना पैदा करने की कोशिश की।
- अंतर्राष्ट्रीय समर्थन: दादाभाई नौरोजी और ए.ओ. ह्यूम जैसे नेता ने अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारतीय हितों का प्रतिनिधित्व किया और उन्हें एकत्रित करने का प्रयास किया। दादाभाई नौरोजी ने ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की स्थापना की। वह ब्रिटिश संसद में सांसद भी थे।
- संवैधानिक संघर्ष की शुरुआत: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) जैसे संगठनों ने सुधारों की मांग करने और स्व-शासन के लिए दबाव डालने के लिए याचिकाओं, प्रस्तावों और सार्वजनिक अभियानों जैसे संवैधानिक तरीकों का इस्तेमाल किया।
- लोगों की राजनीतिक शिक्षा: राष्ट्रवादी संगठनों ने औपनिवेशिक नीतियों, अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए सार्वजनिक बैठकें, व्याख्यान और सेमिनार आयोजित किए।
- एकता और सहयोग: उदाहरण के लिए, भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस (1885) भारतीयों के विविध हितों और आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करने वाला सबसे प्रमुख राजनीतिक संगठन बनकर उभरा।
निष्कर्ष:
इस प्रकार, 1858 से 1905 तक ब्रिटिश भारत में राष्ट्रवादी संगठनों की वृद्धि ने चरमपंथी नेताओं के प्रयासों की नींव रखी और बाद में गांधीवादी संघर्ष की नींव रखी, जिसके परिणामस्वरूप अंततः 1947 में भारत को स्वतन्त्रता हासिल हुई।
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