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Q. भारत में सतत विकास के लिए संसाधन जुटाने के महत्व और चुनौतियों पर चर्चा कीजिए। ऐसे उपाय और नीतिगत हस्तक्षेप सुझाएं जो विकास के साथ पर्यावरण संरक्षण सुनिश्चित करते हुए संसाधन जुटाव को बढ़ा सकें। (15 अंक, 250 शब्द)

उत्तर:

दृष्टिकोण:

  • प्रस्तावना: संसाधन जुटाने को उदाहरण सहित परिभाषित करते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिए।  
  • मुख्य विषयवस्तु:
    • भारत में सतत विकास के लिए संसाधन जुटाने के महत्व पर चर्चा कीजिए।
    • इससे जुड़ी चुनौतियों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
    • नवीन उपायों और नीतिगत हस्तक्षेपों का सुझाव दीजिए जो समान विकास और पर्यावरण संरक्षण सुनिश्चित करते हुए संसाधन जुटाव को बढ़ा सकते हैं।
  • निष्कर्ष: भविष्योन्मुखी टिप्पणी पर निष्कर्ष निकालें।

 

प्रस्तावना: 

संसाधन जुटाना विशिष्ट उद्देश्यों या लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए वित्तीय, मानव संसाधन और सामग्री जैसे संसाधनों को इकट्ठा करने और उपयोग करने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है। उदाहरण के लिए, देश में प्रभावी तरीके से कोविड19 महामारी से निपटने हेतु धन जुटाने के लिए एमपीएलएडीएस(MPLADS) योजना की धनराशि को पीएम-केयर्स(PM-CARES) फंड की ओर मोड़ दिया गया था।

मुख्य विषयवस्तु:

भारत के सतत विकास के लिए संसाधन जुटाने का महत्व:

  • नौकरियां सृजित करना एवं अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना: प्रधान मंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाई) जैसी पहल के माध्यम से संसाधन जुटाना व बुनियादी ढांचे, विनिर्माण और सेवाओं में निवेश करके रोजगार सृजन और आर्थिक विकास को प्रोत्साहित कर सकता है, जबकि गरीबों को ऋण और वित्तीय अवसरों तक पहुंच के साथ सशक्त बनाया जा सकता है। उदाहरण- वित्तीय वर्ष 2023 के अंत में प्रधान मंत्री जन धन योजना में कुल शेष राशि ₹1.99 लाख करोड़ थी।

  • गरीबी और असमानता को कम करना: संसाधन जुटाना, जिसका उदाहरण मनरेगा जैसे कार्यक्रम हैं, अर्थात बुनियादी आवश्यकताओं में निवेश करके गरीबी और असमानता को कम किया जा सकता है, साथ ही  ग्रामीण परिवारों को रोजगार और आय की गारंटी प्रदान कर सकते हैं, जिससे समानता को बढ़ावा मिल सकता है।
  • जीवन की गुणवत्ता में सुधार: संसाधन जुटाने का उदाहरण सर्व शिक्षा अभियान से लिया जा सकता है जो शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और स्वच्छता में निवेश कर बेहतर शैक्षिक अवसरों के माध्यम से भारतीयों, विशेष रूप से बच्चों के जीवन की गुणवत्ता में काफी सुधार करता है।
  • पर्यावरण की रक्षा: संसाधन जुटाना, जैसा कि एनसीएपी द्वारा प्रदर्शित किया गया है, उत्सर्जन नियंत्रण उपायों के माध्यम से वायु प्रदूषण, पानी की कमी और वनों की कटाई जैसे पर्यावरणीय मुद्दों से निपट सकता है,साथ ही पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य की सुरक्षा भी कर सकता है।
  • एक शक्तिशाली और लचीले राष्ट्र का निर्माण: रक्षा, सुरक्षा और आपदा प्रबंधन में संसाधन जुटाना, जिसका उदाहरण पीएमएसबीवाई (प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना) है, यह गरीबों को जीवन बीमा प्रदान करता है जिससे सुगम्य भारत के निर्माण का मार्ग प्रशस्त होता है।
  • लचीले बुनियादी ढांचे का निर्माण: विश्व बैंक की एक रिपोर्ट का अनुमान है कि भारत को टिकाऊ और न्यायसंगत विकास के लिए अपने बुनियादी ढांचे में अगले 15 वर्षों में 840 अरब डॉलर का निवेश करने की आवश्यकता होगी। केंद्रीय बजट 2023-24 में देश में बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 10 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए गए।

संसाधन जुटाने से जुड़ी चुनौतियाँ

  • संसाधन के संदर्भ में देखा जाये तो वित्तीय वर्ष 2023-2024 के लिए 350 बिलियन डॉलर के सीमित सरकारी बजट के साथ, बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा सहित आवश्यक टिकाऊ विकास कार्यक्रमों और परियोजनाओं में पर्याप्त निवेश करने में चुनौतियां पेश हो रही हैं।
  • गरीबी और असमानता का उच्च स्तर: यह भारत में सतत विकास के लिए संसाधन जुटाने में बाधा उत्पन्न करता है, गौरतलब है कि 21.9% भारतीय राष्ट्रीय गरीबी रेखा से नीचे हैं, जिससे गरीबी कम करने के उद्देश्य से मनरेगा जैसी पहल के बावजूद इनका योगदान सीमित है। उदाहरण- बजट 2023-24 में मनरेगा के लिए बजट 2022-23 की तुलना में 18% कम आवंटन किया गया है।
  • दुर्बल कर संग्रह प्रणाली: भारत की दुर्बल कर संग्रह प्रणाली के परिणामस्वरूप सरकार की जरूरतों को पूरा करने और सतत विकास में निवेश करने के लिए अपर्याप्त राजस्व प्राप्त होता है। इसकी केवल 6% आबादी द्वारा अपना कर दाखिल करने के कारण, संसाधन जुटाना अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
  • भ्रष्टाचार: भारत में व्यापक भ्रष्टाचार मौजूद है, जिसके कारण राजस्व के नुकसान का आकलन लगभग 100 बिलियन डॉलर प्रति वर्ष है।
  • सीमित सार्वजनिक संसाधन: भारत की विकासशील स्थिति और बड़ी आबादी के मद्देनजर यहाँ भ्रष्टाचार और संसाधन उपयोग में पारदर्शिता और जवाबदेही में कमी देखी जाती है। गौरतलब है कि भ्रष्टाचार बोध सूचकांक की रैंकिंग में भारत 180 देशों में से 86वें स्थान पर है।
  • राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी: अपर्याप्त राजनीतिक इच्छाशक्ति सतत विकास के लिए संसाधन जुटाने में बाधा डालती है, जिससे जलवायु परिवर्तन जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण निवेश में देरी होती है, जैसा कि 2020 की अधिसूचना में ईआईए नियमों को कमजोर करने में देखा गया है।

संसाधन जुटाने के सुझाव:

  • हरित बांड: वनीकरण और अपशिष्ट प्रबंधन जैसी टिकाऊ परियोजनाओं को वित्तपोषित करने के लिए पर्यावरण-अनुकूल बांड पेश करना चाहिए जैसा कि भारत ने 2019 में नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं को वित्तपोषित करने के लिए किया था।
  • प्रभाव निवेश: प्रभाव निवेश(Impact Investing) को बढ़ावा देना, जहां निवेशक सतत विकास लक्ष्यों के साथ संरेखित प्रभाव-केंद्रित निधियों और परियोजनाओं का समर्थन करके वित्तीय रिटर्न और सकारात्मक सामाजिक या पर्यावरणीय प्रभाव चाहते हैं। उदाहरण के लिए, “बेहतर कपास पहल” स्थायी कपास खेती प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए प्रभावशाली निवेशकों से धन आकर्षित करती है।
  • कार्बन मूल्य निर्धारण: स्वच्छ प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने के लिए उत्सर्जन पर मूल्य निर्धारण लागू करना चाहिए। यूरोपीय संघ की उत्सर्जन व्यापार प्रणाली एक सफल उदाहरण है।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी): हरित परियोजनाओं के लिए निजी क्षेत्र की दक्षता का लाभ उठाना। दिल्ली मेट्रो इसका उल्लेखनीय उदाहरण है।
  • सर्कुलर इकोनॉमी प्रोत्साहन: संसाधन दक्षता और अपशिष्ट में कमी के लिए सर्कुलर प्रथाओं को अपनाने वाले व्यवसायों के लिए कर लाभ या सब्सिडी जैसे सर्कुलर अर्थव्यवस्था प्रोत्साहन को बढ़ावा देना चाहिए। मरम्मत सेवाओं(repair services) पर स्वीडन की कर कटौती सर्कुलर प्रथाओं को प्रोत्साहित करने का एक प्रमुख उदाहरण है।
  • ग्रीन इनोवेशन फंड: हरित प्रौद्योगिकी अनुसंधान के लिए फंड स्थापित करना। यूके का ग्रीन इन्वेस्टमेंट बैंक इस दिशा में एक मॉडल है।
  • प्राकृतिक पूंजी लेखांकन: पर्यावरणीय संसाधनों और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के मूल्य निर्धारण के लिए प्राकृतिक पूंजी लेखांकन की शुरुआत करना चाहिए, जिससे निर्णय लेने में सहायता मिलेगी। विश्व बैंक का डबल्यूएवीईएस(WAVES) कार्यक्रम इसके सफल कार्यान्वयन का उदाहरण है।
  • स्थायी खरीद नीतियां: पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों और सेवाओं को प्राथमिकता देने के लिए सरकारी अनुबंधों में स्थायी खरीद नीतियों को लागू करना चाहिए, जिससे हरित प्रौद्योगिकियों की ओर बाजार में बदलाव को बढ़ावा मिले। अमेरिकी जनरल सर्विसेज एडमिनिस्ट्रेशन का ग्रीन प्रोक्योरमेंट प्रोग्राम टिकाऊ खरीद को बढ़ावा देने का एक उदाहरण है।
  • हरित कर सुधार: टिकाऊ प्रथाओं को प्रोत्साहित करना और प्रदूषण फैलाने वाली गतिविधियों को हतोत्साहित करना। उदाहरण के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए नॉर्वे में टैक्स में छूट दी गयी है।

निष्कर्ष:

संसाधन जुटाने के लिए उचित उपायों का लाभ उठाकर, हम एक ऐसे भविष्य को आकार दे सकते हैं जहां सतत विकास हमारी प्रगति की आधारशिला हो  व आने वाली पीढ़ियों के लिए हमारे ग्रह के नाजुक संतुलन को संरक्षित करते हुए एक संपन्न, समान और समावेशी समाज सुनिश्चित किया जा सके।

 

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