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Q. रक्षा उपकरणों का स्वदेशीकरण हासिल करने में डीआरडीओ अपनी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा है। इसके निम्न-इष्टतम प्रदर्शन के लिए जिम्मेदार कारकों की आलोचनात्मक जांच कीजिए और इसे सुधारने के उपाय सुझाएं। (15 अंक, 250 शब्द)

उत्तर:

दृष्टिकोण:

  • प्रस्तावना: संक्षेप में डीआरडीओ का परिचय देते हुए भारत में रक्षा उपकरणों के स्वदेशीकरण में इसकी भूमिका बताइए।
  • मुख्य विषयवस्तु:
    • विलंबित परियोजनाओं और लागत वृद्धि जैसे मुद्दों पर चर्चा कीजिए, जिसमें नौकरशाही से जुड़ी बाधाएं और तकनीकी चुनौतियां जैसे मुद्दे शामिल हों।
    • उद्योग और शिक्षा जगत के साथ एकीकरण के अभाव को बताइए, जिससे प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और नवाचार में चुनौतियां पैदा हो रही हैं।
    • विजयराघवन समिति की सिफारिशों के अनुरूप संगठनात्मक पुनर्गठन का सुझाव दीजिए, जिसमें उच्च-स्तरीय भविष्य की प्रौद्योगिकियों और निजी क्षेत्र और शिक्षा जगत के साथ सहयोग पर ध्यान केंद्रित किया जाए।
    • विदेशी मूल उपकरण निर्माता पर निर्भरता कम करने और घरेलू विशेषज्ञता विकसित करने के लिए स्वदेशी मरम्मत और रखरखाव क्षमताओं के निर्माण के महत्व पर जोर दीजिए।
  • निष्कर्ष: भारत की रक्षा में आत्मनिर्भरता और तकनीकी उन्नति संबंधी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए निष्कर्ष निकालिए ।

 

प्रस्तावना:

भारत का रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) 1958 में स्थापित हुआ । अपनी स्थापना के बाद से ही यह रक्षा उपकरणों के स्वदेशीकरण में सहायक रहा है। डीआरडीओ को महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल करने के बावजूद, कुछ क्षेत्रों में अपेक्षाकृत प्रदर्शन न कर पाने के लिए आलोचना का भी सामना करना पड़ा है।

मुख्य विषयवस्तु:

डीआरडीओ के प्रदर्शन को प्रभावित करने वाले कारक

  • विलंबित परियोजनाएं और लागत में वृद्धि: डीआरडीओ की परियोजनाएं विलंब से पूरा होने और बजट अनुमान से अधिक होने के लिए इसकी आलोचना की जाती है। इसके लिए नौकरशाही बाधाएं, कुशल परियोजना प्रबंधन की कमी और तकनीकी चुनौतियां सहित कई कारक जिम्मेदार हो सकते हैं।
  • तात्कालिक मांगों बनाम भविष्य की प्रौद्योगिकियों पर ध्यान: ऐतिहासिक रूप से, डीआरडीओ को सशस्त्र बलों की तत्काल मांगों को पूरा करने और मौजूदा हथियार प्रणालियों का स्वदेशीकरण करने का आदेश दिया गया है। यह दृष्टिकोण उच्च-स्तरीय, भविष्यवादी प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित करने में बाधा उत्पन्न कर सकता है जैसा कि अन्य देशों में देखा जाता है।
  • अनुसंधान और विकास पारिस्थितिकी तंत्र: रक्षा अनुसंधान एवं विकास में शिक्षा जगत और स्टार्टअप की भागीदारी सीमित कर दी गई है। सरकार द्वारा 2022-23 के केंद्रीय बजट में निजी उद्योग, स्टार्टअप और शिक्षा के लिए MoD के R&D बजट का 25% निर्धारित करने के बावजूद, डीआरडीओ ने इन संस्थाओं के साथ अपने R&D बजट को प्रभावी ढंग से साझा करने के लिए संघर्ष किया है।
  • उद्योग और शिक्षा जगत के साथ एकीकरण का अभाव: डीआरडीओ, निजी उद्योग और शिक्षा जगत से जुड़े एक मजबूत सहयोगी पारिस्थितिकी तंत्र की अनुपस्थिति ने प्रौद्योगिकी और नवाचार के हस्तांतरण में बाधा उत्पन्न की है। इसके अलावा, रक्षा ऑफसेट नीति का उद्देश्य हालांकि स्वदेशीकरण को बढ़ावा देना है, लेकिन अस्पष्ट नियमों और कार्यान्वयन के मुद्दों के कारण इसे चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।
  • विदेशी मूल उपकरण निर्माताओं (ओईएम) पर भारी निर्भरता: रक्षा उपकरणों की मरम्मत और रखरखाव के लिए ओईएम पर निरंतर निर्भरता के परिणामस्वरूप महत्वपूर्ण विदेशी मुद्रा व्यय होता है और घरेलू विशेषज्ञता के विकास में बाधा आती है।

सुधार के उपाय

  • संगठनात्मक संरचना में सुधार: अमेरिकी रक्षा उन्नत अनुसंधान परियोजना एजेंसी (डीएआरपीए) की तर्ज पर डीआरडीओ को फिर से तैयार करने के लिए विजयराघवन समिति की सिफारिशों को लागू करना एक परिवर्तनकारी कदम हो सकता है। इसमें उच्च-स्तरीय भविष्य की प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित करना और कुछ कार्यों को शिक्षा जगत या उद्योग को सौंपना शामिल है।
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करना: प्रौद्योगिकी विकास और विनिर्माण के लिए निजी क्षेत्र के साथ सहयोग बढ़ाने से परियोजना निष्पादन में नए दृष्टिकोण और चपलता आ सकती है।
  • अकादमिक-उद्योग-डीआरडीओ तालमेल को बढ़ावा देना: एक मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करना जिसमें अकादमिक, उद्योग और डीआरडीओ को सहयोगी परियोजनाओं में शामिल करना महत्वपूर्ण है। इसे सुव्यवस्थित वित्त पोषण, साझा अनुसंधान एवं विकास पहल और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण तंत्र द्वारा सुगम बनाया जा सकता है।
  • प्रतिभा का अधिग्रहण और प्रतिधारण पर ध्यान: उच्च गुणवत्ता वाली जनशक्ति को आकर्षित करना और उन्हें प्रोत्साहन, प्रदर्शन-आधारित मूल्यांकन और करियर प्रगति के अवसरों के माध्यम से बनाए रखना डीआरडीओ के विकास और नवाचार के लिए महत्वपूर्ण है।
  • परियोजना प्रबंधन में सुधार: आधुनिक परियोजना प्रबंधन तकनीकों को अपनाने, यथार्थवादी समयसीमा निर्धारित करने और समय-समय पर समीक्षा तंत्र बजट के भीतर परियोजनाओं को समय पर पूरा करने में मदद कर सकते हैं।
  • ऑफसेट दिशानिर्देशों को स्पष्ट करना और लागू करना: सरकार को ऑफसेट साझेदारी की सफल स्थापना सुनिश्चित करने और स्वदेशीकरण के लिए उनका लाभ उठाने के लिए रक्षा ऑफसेट नीति में अस्पष्टताओं को संबोधित करने की आवश्यकता है।
  • स्वदेशी मरम्मत और रखरखाव क्षमताओं का निर्माण: रक्षा उपकरणों की मरम्मत और रखरखाव के लिए एमएसएमई और घरेलू फर्मों को प्रोत्साहित करने से स्वदेशी विशेषज्ञता बनाने और विदेशी ओईएम पर निर्भरता कम करने में मदद मिल सकती है।

निष्कर्ष:

डीआरडीओ ने रक्षा अनुसंधान और स्वदेशीकरण में महत्वपूर्ण प्रगति की है, ऐसे क्षेत्र भी हैं जिनमें सुधार की आवश्यकता है। संगठनात्मक पुनर्गठन, उन्नत उद्योग, अकादमिक सहयोग और प्रभावी परियोजना प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित कर डीआरडीओ भारत की रक्षा में आत्मनिर्भरता और तकनीकी उन्नति में योगदान देने में अपनी भूमिका निभा सकता है।

 

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