Q. भारत में चुनावी नतीजों और राजनीतिक भागीदारी पर नोटा के प्रभाव का मूल्यांकन कीजिये। क्या इसने अपना इच्छित उद्देश्य पूरा किया है या यह एक प्रतीकात्मक उपकरण बनकर रह गया है? (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारत में चुनावी परिणामों और राजनीतिक भागीदारी पर NOTA के प्रभाव का मूल्यांकन कीजिए।
  • परीक्षण कीजिए  कि क्या NOTA ने अपना  उद्देश्य पूरा किया है या बस एक प्रतीकात्मक साधन बनकर रह गया है।
  • भारत की निर्वाचन प्रणाली में NOTA की प्रभावशीलता को मजबूत करने के उपाय सुझाइये।

उत्तर

भारत में वर्ष 2013 में शुरू किया गया नन ऑफ द एबव (NOTA) विकल्प मतदाताओं को सभी उम्मीदवारों को अस्वीकार करने का अधिकार देता है, जो उपलब्ध विकल्पों से असंतुष्टि का संकेत देता है। हालाँकि इसका उद्देश्य लोकतांत्रिक भागीदारी और जवाबदेही को बढ़ाना है, लेकिन चुनावी नतीजों और राजनीतिक भागीदारी पर इसका वास्तविक प्रभाव, चर्चा का विषय बना हुआ है।

चुनावी नतीजों और राजनीतिक भागीदारी पर NOTA का प्रभाव

चुनाव सुधार

  • असंतोष की अभिव्यक्ति: NOTA, मतदाताओं को सभी उम्मीदवारों के प्रति औपचारिक रूप से असहमति व्यक्त करने की अनुमति देता है। 
    • उदाहरण: वर्ष 2024 के इंदौर लोकसभा चुनाव में NOTA के अंतर्गत 2.18 लाख से अधिक वोट डाले गये इंदौर में इतने वोट किसी उम्मीदवार को भी नहीं मिले थे।
  • मतदाता असंतोष को उजागर करना: NOTA के अधिक वोट, जनता के असंतोष की ओर ध्यान आकर्षित करते हैं। 
    • उदाहरण: वर्ष 2018 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों में NOTA वोटों की संख्या, कई सीटों पर जीत के अंतर को भी पार कर गई।
  • राजनीतिक दलों पर दबाव: NOTA की अधिक संख्या, पार्टियों पर बेहतर उम्मीदवार उतारने का दबाव बना सकती है। 
    • उदाहरण: गुजरात में वर्ष 2017 में NOTA ने 118 निर्वाचन क्षेत्रों में तीसरा सबसे अधिक वोट शेयर हासिल किया जिससे पार्टियों को उम्मीदवार चयन पर पुनर्विचार करना पड़ा।
  • प्रतीकात्मक विरोध: NOTA मतदाताओं के लिए सभी उम्मीदवारों के खिलाफ विरोध करने का एक साधन है। 
    • उदाहरण: तमिलनाडु में वर्ष 2014 में NOTA को 5.68 लाख से अधिक वोट मिले, जो उपलब्ध विकल्पों के खिलाफ मतदाताओं के विरोध को दर्शाता है।

राजनीतिक भागीदारी

  • मतदान में मतदाताओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करना: NOTA,निराश मतदाताओं को मतदान में भाग लेने का एक विकल्प प्रदान करता है। 
    • उदाहरण: वर्ष 2013 में नोटा की शुरुआत के बाद कुछ राज्यों में मतदान में मामूली वृद्धि देखी गई, जो पुनः मतदान में भागीदारी का संकेत देती है।
  • जागरूकता बढ़ाना: NOTA ने चुनाव सुधारों और उम्मीदवार की गुणवत्ता पर चर्चा को बढ़ावा दिया है।
  • परिणामों पर सीमित प्रभाव: NOTA को मिले अधिक वोटों के बावजूद, यह पुनः चुनाव या उम्मीदवार की अयोग्यता जैसी स्थितियां नहीं उत्पन्न करता। 
    • उदाहरण: जब NOTA को सबसे अधिक वोट मिले, तब भी दूसरे स्थान पर रहने वाले उम्मीदवार को विजेता घोषित किया गया।
  • मजबूत करने की आवश्यकता: विशेषज्ञों का तर्क है कि NOTA को और अधिक परिणामकारी शक्ति देने के लिए सुधारों की आवश्यकता है। 
    • उदाहरण: प्रस्तावों में NOTA को बहुमत मिलने पर पुनः चुनाव अनिवार्य करना शामिल है, जिससे इसकी प्रभावशीलता बढ़ेगी।

क्या NOTA ने अपना वांछित उद्देश्य पूरा कर लिया है या प्रतीकात्मक ही रह गया है?

  • सीमित कानूनी परिणाम: NOTA में उम्मीदवार को अयोग्य ठहराने या फिर से चुनाव कराने की शक्ति नहीं होती। 
    • उदाहरण: NOTA के महत्त्वपूर्ण वोटों के बावजूद, चुनाव परिणामों में कोई कानूनी बदलाव नहीं होता।
  • प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति: NOTA मुख्य रूप से बिना किसी ठोस प्रभाव के, असहमति के प्रतीकात्मक संकेत के रूप में कार्य करता है। 
    • उदाहरण: वर्ष 2017 के गुजरात चुनावों में NOTA वोटों की अधिकता के बावजूद, किसी भी निर्वाचन क्षेत्र में दोबारा चुनाव नहीं हुए।
  • जन जागरूकता साधन: NOTA ने चुनावी विकल्पों और उम्मीदवार की गुणवत्ता के संबंध में जागरूकता बढ़ाई है।
  • वर्तमान कमियां: कानूनी समर्थन के बिना, NOTA की परिवर्तन लाने की क्षमता सीमित है। 
    • उदाहरण: अपनी मौजूदगी के बावजूद, NOTA ने राजनीतिक जवाबदेही में कोई महत्त्वपूर्ण बदलाव नहीं किया है।

NOTA को अधिक प्रभावी बनाने के तरीके

  • कानूनी अधिकारिता: NOTA को सबसे अधिक वोट मिलने पर पुनः चुनाव अनिवार्य करने के लिए चुनावी कानूनों में संशोधन करना चाहिए।
    • उदाहरण: सर्वोच्च न्यायालय के वर्ष 2013 के निर्णय में मतदाता स्वायत्तता को बनाए रखने में NOTA की भूमिका पर बल दिया गया था।
  • उम्मीदवारों की अयोग्यता: यदि NOTA वोट एक निश्चित सीमा से अधिक हो जाए तो सभी उम्मीदवारों को अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा, जिससे राजनीतिक पार्टियाँ बेहतर उम्मीदवारों को मैदान में उतारने के लिए प्रेरित होंगी।
  • सभी चुनावों में अनिवार्य समावेशन: यह सुनिश्चित करना होगा कि स्थानीय निकाय और एकल-उम्मीदवार चुनावों सहित सभी चुनावी प्रक्रियाओं में NOTA उपलब्ध हो, ताकि मतदाता की प्राथमिकता पर ध्यान दिया जा सके। 
    • उदाहरण: विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी द्वारा दायर एक जनहित याचिका में मतदाता के असहमति के अधिकार को बनाए रखने के लिए एकल-उम्मीदवार चुनावों सहित सभी चुनावों में NOTA को अनिवार्य रूप से शामिल करने की माँग की गई है।
  • जन जागरूकता अभियान: NOTA के उद्देश्य और चुनावी सुधारों पर संभावित प्रभाव के संबंध में मतदाताओं को शिक्षित करने के लिए राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू करना चाहिए।
    • उदाहरण: नागरिक समाज के अभियानों ने स्वच्छ राजनीति और बेहतर उम्मीदवारों की वकालत करने के लिए NOTA का उपयोग किया है।
  • प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व: मतदाताओं के बीच NOTA की समझ को बढ़ाने के लिए इसे एक अलग और पहचानने योग्य प्रतीक प्रदान करना चाहिए।
    • उदाहरण: भारत के चुनाव आयोग ने मतदाता पहचान में सहायता के लिए वर्ष 2015 में NOTA के लिए एक विशिष्ट प्रतीक पेश किया।

NOTA, मतदाताओं को असंतोष व्यक्त करने के लिए एक मंच प्रदान करता है, लेकिन इसकी वर्तमान प्रतीकात्मक प्रकृति चुनावी परिणामों पर इसके प्रभाव को सीमित करती है। अपने इच्छित उद्देश्य को पूरा करने के लिए, NOTA को उम्मीदवार चयन को प्रभावित करने और आवश्यकता पड़ने पर पुनः चुनाव कराने की क्षमता प्रदान करने के लिए कानूनी सुधार आवश्यक हैं।

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