Q. ग्लेशियर केवल जमे हुए जल भंडार ही नहीं हैं, बल्कि जलवायु परिवर्तन और पारिस्थितिक संतुलन के महत्त्वपूर्ण संकेतक हैं। हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र के समक्ष आने वाली बहुमुखी चुनौतियों की आलोचनात्मक जाँच कीजिए और विकासात्मक आवश्यक्ताओं को संतुलित करते हुए स्थायी ग्लेशियर संरक्षण के लिए व्यापक उपाय भी सुझाएँ। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • चर्चा कीजिए कि ग्लेशियर केवल जमे हुए जल के भंडार ही नहीं हैं, बल्कि जलवायु परिवर्तन और पारिस्थितिक संतुलन के महत्त्वपूर्ण संकेतक भी हैं।
  • हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र के समक्ष आने वाली बहुमुखी चुनौतियों का परीक्षण कीजिए।
  • विकासात्मक आवश्यकताओं को संतुलित करते हुए स्थायी ग्लेशियर संरक्षण के लिए व्यापक उपाय सुझाइये।

उत्तर

ग्लेशियर, सदियों से बने विशाल बर्फ के पिंड हैं जो प्राकृतिक मीठे पानी के भंडार के रूप में कार्य करते हैं और जलवायु परिवर्तन के संकेतक भी हैं । उनका तीव्र निर्वतन होना, विशेष रूप से हिंदू कुश हिमालय (HKH) क्षेत्र में, जल संरक्षण, कृषि और जैव विविधता के लिए खतरा उत्पन्न करता है। इसे मान्यता देते हुए, संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2025 को ग्लेशियरों के संरक्षण का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष घोषित किया, जिसमें सतत संरक्षण के लिए वैश्विक प्रयासों का आग्रह किया गया।

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जलवायु परिवर्तन और पारिस्थितिकी संतुलन के संकेतक के रूप में ग्लेशियर

  • ग्लेशियर जल उपलब्धता को नियंत्रित करते हैं: ग्लेशियर मौसमी रूप से मीठे जल को संग्रहीत और निर्मुक्त करते हैं, जिससे पीने, सिंचाई और जल विद्युत के लिए जल की आपूर्ति सुनिश्चित होती है । 
    • उदाहरण के लिए: गंगोत्री ग्लेशियर से निकलने वाली गंगा नदी 500 मिलियन से अधिक लोगों को जल प्रदान  करती है, लेकिन ग्लेशियर के पिघलने से इसकी दीर्घकालिक जल उपलब्धता पर खतरा उत्पन्न हो गया है।
  • ग्लेशियर, ग्लोबल वार्मिंग के रुझान को दर्शाते हैं: बढ़ते तापमान के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं, जिससे वे जलवायु परिवर्तन के संवेदनशील संकेतक बन गए हैं। उनका सिकुड़ता आकार जलवायु में उतार-चढ़ाव का प्रत्यक्ष प्रमाण प्रदान करता है।
    • उदाहरण के लिए: हिमाचल प्रदेश में छोटा शिगड़ी ग्लेशियर ने पिछले कुछ दशकों में लगातार द्रव्यमान में कमी दिखाई है, जो क्षेत्रीय तापमान में वृद्धि के साथ सहसंबंधित है।
  • ग्लेशियर पारिस्थितिकी स्थिरता बनाए रखते हैं: ग्लेशियर से जल‌ प्राप्त करने वाली नदियाँ, पारिस्थितिकी तंत्र, आर्द्रभूमि और जंगलों को बनाए रखकर जैव विविधता को समृद्ध करने में सहायता करती हैं। उनकी कमी वनस्पतियों और जीवों को बाधित करती है, जिससे आवास का ह्वास होता है। 
    • उदाहरण के लिए: हिमालय के ग्लेशियरों द्वारा  जल प्राप्त करने वाली ब्रह्मपुत्र नदी बेसिन में गंगा डॉल्फिन जैसी संकटग्रस्त प्रजातियाँ पाई जाती है जिनकी आबादी, जल की कमी के कारण संकट में है।
  • ग्लेशियर, क्षेत्रीय और वैश्विक जलवायु को प्रभावित करते हैं: ग्लेशियर सूर्य की रोशनी को परावर्तित करके सतह के तापमान और मानसून के पैटर्न को नियंत्रित करते हैं। उनके ह्वास से ऊष्मा अवशोषण बढ़ता है और अनियमित मौसम प्रतिरूप बनते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: हिमालय के ग्लेशियर दक्षिण एशियाई मानसून को प्रभावित करते हैं, और उनके पिघलने से बांग्लादेश में बाढ़ और भारत में सूखे की स्थिति बढ़ सकती है।
  • ग्लेशियर पिघलने से समुद्र का जलस्तर बढ़ता है: ध्रुवीय और हिमालयी ग्लेशियरों के पिघलने से सीधे तौर पर वैश्विक समुद्र का जलस्तर बढ़ता है, जिससे तटीय आबादी के लिए जोखिम बढ़ता है। 
    • उदाहरण के लिए: ग्लेशियर पिघलने के कारण समुद्र का जलस्तर बढ़ने से सुंदरबन के कुछ हिस्से पहले ही जलमग्न हो चुके हैं, जिससे भारत और बांग्लादेश में लाखों लोगों के लिए खतरा उत्पन्न हो गया है।

हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र के समक्ष बहुआयामी चुनौतियाँ

  • ग्लेशियरों का निर्वतन और जल की कमी: ग्लेशियरों का ऋणात्मक द्रव्यमान संतुलन, मौसमी जल आपूर्ति को कम करता है, जिससे कृषि, पेयजल और जलविद्युत परियोजनाओं को खतरा होता है। 
    • उदाहरण के लिए: हिमालय के ग्लेशियरों के निर्वतन के कारण, पाकिस्तान की कृषि के लिए महत्त्वपूर्ण सिंधु नदी का  प्रवाह कम हो गया है, जिससे खाद्य सुरक्षा प्रभावित होती है।
  • हिमनद झील प्रस्फुटन बाढ़ (GLOFs): ग्लेशियरों के तेज़ी से पिघलने से हिमनद झीलों का प्रसार होता है, जिससे अचानक, विनाशकारी बाढ़ का जोखिम बढ़ जाता है जो बुनियादी अवसंरचना और आजीविका को क्षति पहुंचाती है। 
    • उदाहरण के लिए: उत्तराखंड में वर्ष 2021 की चमोली आपदा के कारण अचानक बाढ़ आ गई जिससे दो पनबिजली परियोजनाएँ क्षतिग्रस्त हो गईं और 200 लोगों की मौत हो गई।
  • जलविद्युत और ऊर्जा सुरक्षा: ग्लेशियर से जल प्राप्त करने वाली नदियाँ, प्रमुख जलविद्युत परियोजनाओं के लिए आवश्यक होती हैं, और ग्लेशियर के निर्वतन से  उनका जल प्रवाह कम हो जाता है, जिससे ऊर्जा उत्पादन प्रभावित होता है। 
    • उदाहरण के लिए: भाखड़ा नांगल बांध, जो हिमालयी नदियों पर निर्भर है, में जल प्रवाह कम हो गया है, जिससे पंजाब और हरियाणा में बिजली उत्पादन और सिंचाई को खतरा है ।
  • कृषि और आजीविका: ग्लेशियर-आधारित सिंचाई प्रणालियाँ, कृषि-निर्भर समुदायों का समर्थन करती हैं; उनकी कमी से फसल विफलता और खाद्य असुरक्षा होती है । 
    • उदाहरण के लिए: लद्दाख में, ग्लेशियर पिघलने से जल की कमी हो गई है।
  • प्राकृतिक आपदाएँ: अनियमित बर्फबारी, सूखा और भूस्खलन की घटनाएँ बढ़ रही हैं जिससे यह क्षेत्र जलवायु-प्रेरित विस्थापन के प्रति संवेदनशील हो गया है। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2013 में आई केदारनाथ बाढ़ आपदा, जो ग्लेशियर पिघलने और अत्यधिक वर्षा के कारण हुई थी, ने हजारों लोगों की जान ले ली और भारी तबाही मचाई।

विकास को संतुलित करते हुए सतत ग्लेशियर संरक्षण के लिए व्यापक उपाय

  • ग्लेशियर निगरानी और अनुसंधान को मजबूत करना: स्वचालित मौसम केंद्रों की स्थापना और क्षेत्र-आधारित ग्लेशियर अध्ययनों को बढ़ाने से निगरानी और जलवायु अनुकूलन को बढ़ावा मिल सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय मिशन (NMSHE), ग्लेशियर अध्ययनों में सहायता करता है, लेकिन इसके लिए रियलटाइम डेटा संग्रह में अधिक निवेश की आवश्यकता होती है।
  • जलवायु-अनुकूल जलविद्युत परियोजनाओं को बढ़ावा देना: रनऑफरिवर जलविद्युत परियोजनाओं को विकसित करने से बड़े जलाशयों पर निर्भरता कम होती है, जिससे पर्यावरणीय प्रभाव कम होता है। 
    • उदाहरण के लिए: जलवायु अनुकूलन रणनीतियों के साथ डिजाइन की गई भूटान की जलविद्युत परियोजनाएँ, न्यूनतम ग्लेशियर व्यवधान के साथ संधारणीय ऊर्जा उत्पादन सुनिश्चित करती हैं।
  • जल संरक्षण तकनीकों को बढ़ाना: कृत्रिम ग्लेशियर, ड्रिप सिंचाई और वर्षा जल संचयन जैसी तकनीकें, जल की कमी को कम कर सकती हैं। 
    • उदाहरण के लिए: सोनम वांगचुक द्वारा लद्दाख में बनाये गये बर्फ स्तूप, गर्मियों के महीनों के दौरान किसानों के लिए जल भंडारण की सुविधा प्रदान करते हैं।
  • ब्लैक कार्बन और औद्योगिक प्रदूषण को कम करना: ईंट भट्टों, डीजल इंजनों और बायोमास जलाने पर सख्त उत्सर्जन नियंत्रण से ग्लेशियर पिघलने की गति धीमी हो सकती है। 
    • उदाहरण के लिए: नेपाल और भारत में ब्लैक कार्बन न्यूनीकरण पहल से ग्लेशियरों पर कालिख के जमाव को कम करने में मदद मिली है, जिससे उनका पिघलना धीमा हो गया है।
  • संधारणीय विकास नीतियों को एकीकृत करना: सरकारों को पर्यावरण सुरक्षा उपायों के साथ बुनियादी ढाँचे के विस्तार को संतुलित करना चाहिए तथा पर्यावरण के अनुकूल पर्यटन और वनीकरण कार्यक्रमों को अपनाना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: सिक्किम में संवेदनशील ग्लेशियर क्षेत्रों में उच्च तुंगता ट्रैकिंग पर प्रतिबंध लगाने से पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करने में मदद मिली है, साथ ही पारिस्थितिकी पर्यटन को भी बढ़ावा मिला है।

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हिमालय के ग्लेशियरों का निर्वहन, संरक्षण को सतत विकास के साथ एकीकृत करने की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है। ग्लेशियर निगरानी को मजबूत करना, उत्सर्जन को कम करना और जलवायु-प्रत्यास्थ बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा देना जोखिमों को कम कर सकता है। हालाँकि NMSHE जैसी पहलें आगे की ओर बढ़ाते गये कदम हैं परन्तु संवेदनशील HKH पारिस्थितिकी तंत्र में पर्यावरण संरक्षण और विकासात्मक जरूरतों को संतुलित करने के लिए उन्नत नीति हस्तक्षेप, तकनीकी नवाचार और वैश्विक सहयोग आवश्यक हैं।

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