उत्तर:
दृष्टिकोण:
- परिचय: भारत और श्रीलंका के बीच निकटता एवं सांस्कृतिक जुड़ाव पर महत्व का वर्णन करते हुए, दोनों देशों के बीच तमिल अल्पसंख्यक अधिकारों के मुद्दे पर प्रकाश डालते हुए शुरुआत करें।
- मुख्य विषयवस्तु:
- प्रासंगिक डेटा और उदाहरण प्रदान करते हुए भारत के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा करें।
- उचित उदाहरणों का उल्लेख करते हुए द्विपक्षीय संबंधों पर इसके प्रभाव को लिखिए।
- निष्कर्ष: इस मुद्दे की पेचीदगियों को संक्षेप में प्रस्तुत करते हुए एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता पर जोर देते हुए निष्कर्ष निकालें साथ ही दोनों देशों के बीच स्थायी रिश्ते के लिए मानवाधिकार और संप्रभुता जैसे मुद्दों पर ध्यान दिये जाने की आवश्यकता पर बल दें।
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परिचय:
श्रीलंका में तमिल अल्पसंख्यक अधिकारों का मुद्दा भौगोलिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक निकटता के कारण भारत में गहराई से गूंज उठा है। इस मुद्दे पर भारत ने हमेशा एक शांतिपूर्ण, न्यायसंगत समाधान की बात की है, गौरतलब है कि भारत के लिए तमिल मुद्दा जटिल रूप से इसके घरेलू विचारों और इसकी विदेश नीति की आकांक्षाओं से जुड़ा हुआ है।
मुख्य विषयवस्तु:
भारत के समक्ष चुनौतियाँ:
- ऐतिहासिक हस्तक्षेप :
- 1987 में भारत-श्रीलंका समझौते के तहत युद्धविराम सुनिश्चित करने के उद्देश्य से भारत की भारतीय शांति सेना (आईपीकेएफ) की तैनाती को लिट्टे के भारी प्रतिरोध का सामना करना पड़ा।
- इस हस्तक्षेप के परिणामस्वरूप 1200 से अधिक भारतीय सैनिकों की मृत्यु हो गई और भारत-लंका संबंधों में तनाव आ गया।
- आंतरिक राजनीतिक गतिशीलता:
- तमिलनाडु में समय-समय पर विरोध प्रदर्शन, विशेष रूप से 2009 में श्रीलंकाई गृहयुद्ध की समाप्ति के दौरान नागरिक हताहतों की रिपोर्ट के बाद, ने केंद्र सरकार पर कोलंबो के खिलाफ सख्त रुख अपनाने का दबाव डाला है।
- 1991 में लिट्टे द्वारा पूर्व भारतीय प्रधान मंत्री की हत्या ने भारत के रुख में और जटिलताएँ बढ़ा दीं।
- मानवीय चिंताएँ:
- संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार संभव है कि इस गृह युद्ध के अंतिम चरण में लगभग 40,000 तमिल नागरिक मारे गए होंगे।
- बड़े पैमाने पर मानवाधिकारों के उल्लंघन की रिपोर्टों ने भारत में बेचैनी का माहौल खड़ा कर दिया ।
- कूटनीतिक संतुलन:
- भारत को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी स्थिति को संतुलित करना पड़ा है। श्रीलंका के खिलाफ प्रस्तावों का समर्थन करने से द्विपक्षीय संबंधों में तनाव आ सकता है, जबकि विरोध से घरेलू स्तर पर विरोध हो सकता है।
- 2013 में, भारत ने UNHRC में श्रीलंका के खिलाफ अमेरिका समर्थित प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, जिसमें सुलह और युद्ध अपराधों की जांच पर जोर दिया गया।
- रणनीतिक भू-राजनीति:
- हंबनटोटा बंदरगाह और कोलंबो पोर्ट सिटी जैसे निवेश के साथ श्रीलंका में चीन की बढ़ती उपस्थिति, भारत के लिए चुनौती की एक और परत जोड़ती है।
- इन निवेशों को भारत को घेरने की चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स रणनीति के एक हिस्से के रूप में देखा जाता है।
द्विपक्षीय संबंधों पर प्रभाव:
- कभी-कभार तनावपूर्ण कूटनीति:
- 2013 में यूएनएचआरसी(UNHRC) में श्रीलंका के खिलाफ भारत के वोट ने अस्थायी रूप से राजनयिक संबंधों को ख़राब कर दिया।
- आर्थिक प्रभाव:
- 2019 तक, दोनों देशों के बीच आपसी व्यापार लगभग 4.59 बिलियन डॉलर था। हालाँकि, राजनीतिक मुद्दों ने कभी-कभी आर्थिक संबंधों को बाधित किया है।
- उदाहरण के लिए 2013 में, तमिलनाडु की एक प्रमुख राजनीतिक पार्टी डीएमके(DMK) ने, श्रीलंकाई मुद्दे पर भारत के ‘नरम‘ रुख का हवाला देते हुए केंद्र सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था ।
- सुरक्षा सहयोग पर प्रभाव:
- आतंकवाद पर साझा चिंताओं के बावजूद, विशेष रूप से श्रीलंका में 2019 ईस्टर बम विस्फोटों के बाद, तमिल मुद्दा कभी-कभी व्यापक सुरक्षा वार्ता पर हावी हो गया है।
- स्वतंत्र आवाजाही पर झिझक:
- तमिलनाडु में श्रीलंकाई तीर्थयात्रियों पर हमलों की घटनाएं हुई हैं, जो सांस्कृतिक और लोगों के बीच आदान-प्रदान को प्रभावित करती हैं।
- गठबंधनों का बदलाव:
- तमिल मुद्दे पर कथित भारतीय मनमानी ने श्रीलंका को कभी-कभी चीन और पाकिस्तान जैसे देशों के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने के लिए प्रेरित किया है।
निष्कर्ष:
श्रीलंका में तमिल अल्पसंख्यक अधिकार अपने सामाजिक-राजनीतिक प्रभावों के कारण भारत की विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण पहलू बने हुए हैं। एक व्यावहारिक और सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण,के साथ श्रीलंका की संप्रभुता का सम्मान करते हुए मानवाधिकारों को प्राथमिकता देना आवश्यक है। इन मुद्दों को संबोधित कर दोनों देशों के बीच एक स्थायी द्विपक्षीय संबंध का खाका प्रदान किया जा सकता है।
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