उत्तर:
दृष्टिकोण:
- प्रस्तावना: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत एक संवैधानिक निकाय के रूप में वित्त आयोग की भूमिका को रेखांकित करते हुए शुरुआत कीजिए।
- मुख्य विषयवस्तु:
- चर्चा कीजिए कि वित्त आयोग लोकलुभावन व्यय के कारण होने वाले राजकोषीय असंतुलन, जैसे कि राज्यों का बढ़ता ऋण बोझ और घाटे को कैसे संबोधित करता है।
- विदेशी निवेश में कमी और रोजगार वृद्धि में ठहराव सहित लोकलुभावनवाद के प्रतिकूल आर्थिक प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
- लोकलुभावनवाद और शासन संबंधी मुद्दों जैसे बढ़ते भ्रष्टाचार और अल्प पारदर्शिता के बीच संबंध पर प्रकाश डालिए।
- पुरानी पेंशन योजना और राज्य द्वारा सब्सिडी देने जैसी नीतियों के कारण राजकोषीय तनाव को संबोधित कीजिए।
- लोकलुभावनवाद पर अंकुश लगाने की रणनीतियों पर चर्चा कीजिए।
- निष्कर्ष: राज्यों के बीच राजकोषीय उत्तरदायित्व और सुधारों को बढ़ावा देने में वित्त आयोग की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर देते हुए निष्कर्ष निकालें, जिससे भारत की दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता और विकास सुनिश्चित हो सके।
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प्रस्तावना:
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत स्थापित वित्त आयोग, केंद्र और राज्य सरकारों के बीच कर राजस्व के वितरण की सिफारिश करने वाला एक महत्वपूर्ण निकाय है। विभिन्न राज्यों द्वारा अपनाए गए लोकलुभावन उपायों के संदर्भ में इसकी भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है।
मुख्य विषयवस्तु:
भूमिका और चुनौतियाँ
- राजकोषीय प्रबंधन: आयोग केंद्रीय करों और अनुदानों को राज्यों को हस्तांतरित करने की सिफारिश करता है। यह वर्तमान में राज्य सरकारों की लोकलुभावन प्रवृत्तियों पर अंकुश लगाने के लिए अपने फॉर्मूले में राजकोषीय दक्षता और अनुशासन पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, जो अक्सर राजकोषीय असंतुलन का कारण बनता है। उदाहरण के लिए, लोकलुभावन खर्च (जैसे, मुफ्त बिजली, ऋण माफी) के कारण भारतीय राज्यों का औसत ऋण-से-जीडीपी अनुपात काफी बढ़ गया।
- आर्थिक निहितार्थ: लोकलुभावन नीतियां आर्थिक विकृतियों को जन्म दे सकती हैं जैसे विदेशी निवेश में गिरावट, नौकरी की वृद्धि में ठहराव और बाजार की अक्षमताएं। उदाहरण के लिए, 2022 में भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में 10% की गिरावट आई, जिसका आंशिक कारण इन लोकलुभावन उपायों को बताया गया।
- शासन का क्षरण: लोकलुभावन घोषणाओं को भ्रष्टाचार में वृद्धि और पारदर्शिता में गिरावट से जोड़ा गया है, जैसा कि ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक और सार्वजनिक मामलों के सूचकांक में भारत की गिरावट से प्रमाणित है।
- पेंशन और सब्सिडी योजनाएं: राज्यों का पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) पर घोषणा करना और मुफ्त बिजली जैसे लोकलुभावन उपायों के साथ सब्सिडी प्रदान की जाती हैं जिससे राजकोषीय चिंताएं व्याप्त होने लगती हैं। इनके परिणामस्वरूप पर्याप्त राजकोषीय देनदारियाँ और अक्षमताएँ होती हैं।
लोकलुभावनवाद पर अंकुश लगाने की रणनीतियाँ
- प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहन: 15वें वित्त आयोग ने राज्यों को वित्तीय हस्तांतरण को विशिष्ट परिणामों, जैसे बेहतर स्वास्थ्य, शिक्षा और कृषि संकेतकों के साथ जोड़ने का प्रस्ताव दिया। यह जिम्मेदार शासन को प्रोत्साहित करता है और अदूरदर्शी लोकलुभावन उपायों को हतोत्साहित करता है।
- लोकलुभावन नीतियों को परिभाषित करना: पहली बार, वित्त आयोग को लोकलुभावन उपाय को परिभाषित करने और ऐसे उपायों से बचने वाले राज्यों के लिए प्रोत्साहन की सिफारिश करने का काम सौंपा गया है।
- सार्वजनिक जागरूकता: आयोग लोकलुभावन उपायों के परिणामों के बारे में जनता को शिक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, जिससे राजनीतिक दलों के बीच अधिक जिम्मेदार राजकोषीय नीतियों को प्रभावित किया जा सकता है।
- आम सहमति बनाना और नियमित समीक्षा: आयोग लोकलुभावन व्यय को नियंत्रित करने पर केंद्र और राज्यों के बीच बातचीत को बढ़ावा देने में मध्यस्थ के रूप में कार्य करता है। इसके अतिरिक्त, यह लगातार राज्यों के वित्तीय स्वास्थ्य की समीक्षा करता है और उभरते आर्थिक परिदृश्यों के आधार पर सिफारिशें करता है।
निष्कर्ष:
लोकलुभावनवाद पर अंकुश लगाने में वित्त आयोग की भूमिका भारत के वित्तीय स्वास्थ्य का अभिन्न अंग है। यह सुनिश्चित करना चाहिए कि राज्य अपने वित्तीय विकल्पों के परिणाम को देखें साथ ही सुधारों और राजकोषीय जिम्मेदारी को बढ़ावा दें। यह दृष्टिकोण न केवल तत्काल वित्तीय असंतुलन को संबोधित करता है बल्कि दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता और विकास की नींव भी निर्धारित करता है।
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