उत्तर:
दृष्टिकोण:
- प्रस्तावना: भारत छोड़ो आंदोलन के बारे में लिखिए।
- मुख्य विषयवस्तु:
- भारत छोड़ो आंदोलन की उत्पत्ति से जुड़े कारकों के बारे में लिखिए।
- इस आंदोलन द्वारा रेखांकित पदचिन्हों के बारे में लिखें जिससे भारत के स्वतंत्रता संग्राम के प्रयास आगे बढ़े।
- निष्कर्ष: इस संबंध में उचित निष्कर्ष दीजिए।
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प्रस्तावना:
8 अगस्त, 1942 को ग्वालिया टैंक में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के सत्र में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया। गांधीजी ने ग्वालिया टैंक मैदान में अपने भाषण में “करो या मरो” का आह्वान किया। भारत छोड़ो आंदोलन नेतृत्वहीन आंदोलन था । इसका उद्देश्य भारत से ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की तत्काल समाप्ति करना था।
मुख्य विषयवस्तु:
भारत छोड़ो आंदोलन की उत्पत्ति से जुड़े कारक
- क्रिप्स मिशन की विफलता: क्रिप्स मिशन की प्रस्तावित योजना पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान करने में विफल रही, जिससे भारतीय नेताओं और जनता में निराशा हुई।
- ब्रिटिश युद्धकालीन नीतियों से असंतोष: भारी कर लगाने और युद्ध प्रयासों का समर्थन करने के लिए भारत से संसाधनों को अन्यत्र ले जाने के कारण।
- आर्थिक कठिनाइयाँ और खाद्य की कमी: द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारतीयों को गंभीर आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, जिसमें खाद्य की कमी और बढ़ती मुद्रास्फीति भी शामिल थी। उदाहरण- 1942-43 में बंगाल का अकाल।
- वैश्विक उपनिवेशवाद-विरोधी आंदोलनों का प्रभाव: दुनिया भर में, जैसे कि दक्षिण पूर्व एशिया और अफ्रीका में, उपनिवेश-विरोधी आंदोलनों के बढ़ते स्तर ने भारतीय राष्ट्रवादियों को स्वतंत्रता के लिए अपने संघर्ष को तेज करने के लिए प्रेरित किया।
- जन संघर्ष की बढ़ती मांग: ब्रिटिश नीतियों से निराशा के कारण स्वतंत्रता आंदोलन के भीतर कट्टरपंथी तत्वों का उदय हुआ, जो प्रत्यक्ष कार्रवाई और सशस्त्र प्रतिरोध की वकालत कर रहे थे।
- झुलसती पृथ्वी नीति(Scorched earth policy): दक्षिण-पूर्व एशिया में जापान की बढ़ती आक्रामकता के डर से ब्रिटेन असम, बंगाल, उड़ीसा में झुलसती पृथ्वी नीति का पालन कर सकता है। गौरतलब है कि झुलसती पृथ्वी नीति एक सैन्य रणनीति है जिसका उद्देश्य दुश्मन को पीछे हटने पर मजबूर करने के लिये किसी भी चीज़ को नष्ट करना है।
- जापानी आक्रमण का डर: जापान, जो युद्ध में ब्रिटिशों का विरोध करने वाली धुरी शक्तियों का हिस्सा था, भारत की उत्तर-पूर्वी सीमाओं पर कब्ज़ा कर रहा था। गांधीजी जैसे नेताओं का मानना था कि यदि अंग्रेज भारत छोड़ देंगे, तो जापान के पास भारत पर आक्रमण करने का उचित कारण नहीं होगा।
इस आंदोलन द्वारा उल्लिखित पदचिह्न जो भारत के स्वतंत्रता संग्राम के प्रयासों में आगे बढ़े:
- सामूहिक लामबंदी: लाखों भारतीयों ने विरोध प्रदर्शनों, हड़तालों और सविनय अवज्ञा में सक्रिय रूप से भाग लिया। उदाहरण के लिए, बम्बई और कलकत्ता जैसे प्रमुख शहरों में व्यापक प्रदर्शन और अवज्ञाकारी कृत्य देखे गए।
- अंतर्राष्ट्रीय ध्यान: आंदोलन ने विभिन्न अंतरराष्ट्रीय क्षेत्रों से सहानुभूति और समर्थन प्राप्त किया, ब्रिटिश राज पर दबाव डाला और अंततः स्वतंत्रता प्रदान करने में योगदान दिया। उदाहरण- अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट ने ब्रिटेन के प्रधान मंत्री विंस्टन चर्चिल पर कुछ भारतीय मांगों को मानने के लिए दबाव डाला।
- स्वतंत्रता का मार्ग: इसने भारतीयों की शक्ति और लचीलेपन का प्रदर्शन किया, जिससे अंग्रेजों को स्वतंत्रता देने पर गंभीरता से विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
- भविष्य के नेताओं का निर्माण: इस अवधि के दौरान जय प्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया और अन्य प्रमुख हस्तियां प्रभावशाली नेताओं के रूप में उभरीं, जिन्होंने स्वतंत्रता के बाद के युग में भारत के राजनीतिक परिदृश्य को आकार दिया।
- स्वतंत्रता के बाद की नीतियां: इसमें एक लोकतांत्रिक और समावेशी समाज की आवश्यकता पर जोर दिया गया, जहां सामाजिक न्याय, समानता और आर्थिक विकास के सिद्धांतों को प्राथमिकता दी जाएगी।
निष्कर्ष:
भारत छोड़ो आंदोलन ने भारत के भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसने जनता को एकजुट किया, राष्ट्रवाद को मजबूत किया, भविष्य के नेताओं का पोषण किया, अंतरराष्ट्रीय ध्यान आकर्षित किया और देश के इतिहास पर एक अमिट छाप छोड़ते हुए स्वतंत्रता की ओर भारत की यात्रा को तेज किया।
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