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Q. भारत द्वारा व्यापार निपटान के लिए युआन की स्वीकारोक्ति उसके भू-राजनीतिक हितों और आर्थिक रणनीतियों के साथ कैसे मेल खाती है? वैश्विक मुद्रा व्यवस्था में भारत की भूमिका के निहितार्थ और संभावित परिणामों पर चर्चा कीजिये । (250 शब्द, 15 अंक)

उत्तर:

दृष्टिकोण:

  • परिचय: इस परिदृश्य की एक संक्षिप्त पृष्ठभूमि लिखने के साथ इस बात पर जोर दें कि बैंक ऑफ इंडिया चीनी आरएमबी में व्यापार निपटान की पेशकश करने वाला पहला भारतीय बैंक बन गया है, इस प्रकार यह भारत की वित्तीय रणनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक है।
  • मुख्य विषयवस्तु:
    • भारत के भू-राजनीतिक हितों के लिए इस कदम के निहितार्थ पर चर्चा करें साथ ही बताएं कि चीन के साथ शक्ति संतुलन में यह किस प्रकार सहायक हो सकता है ? भारत के इस कदम से दोनों देशों के सम्बन्धों में किस प्रकार सुधार किया जा सकता है ?
    • आर्थिक निहितार्थों पर विस्तार से चर्चा करते हुए बताएं कि यह कैसे लागत और समय-प्रभावी हो सकता है, डॉलर पर निर्भरता कम कर सकता है और द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा दे सकता है।
    • बहु-ध्रुवीय मुद्रा व्यवस्था को बढ़ावा देने और बढ़ते वैश्विक प्रभाव पर प्रकाश डालते हुए वैश्विक मुद्रा व्यवस्था में भारत की भूमिका पर संभावित प्रभाव पर चर्चा करें।
  • निष्कर्ष: भारत के लिए इस कदम के निहितार्थों और संभावित परिणामों का सारांश देते हुए निष्कर्ष निकालें साथ ही सावधानीपूर्वक कूटनीतिक और आर्थिक रणनीतियों की आवश्यकता पर जोर देते हुए संभावित जोखिमों और चुनौतियों पर प्रकाश डालें ।

परिचय:

व्यापार निपटान के लिए बैंक ऑफ इंडिया द्वारा चीनी युआन (रेनमिनबी या आरएमबी) को स्वीकार करना इसकी वित्तीय रणनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक है और वैश्विक मुद्रा व्यवस्था में इसकी भूमिका के लिए विभिन्न निहितार्थ रखता है। इस कदम के कई पहलू हैं, जिनमें भूराजनीतिक रणनीति, आर्थिक निहितार्थ और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा व्यवस्था पर संभावित प्रभाव शामिल हैं।

मुख्य विषयवस्तु:

भूराजनीतिक हित:

  • शक्ति संबंधों को संतुलित करना:
    • आरएमबी की स्वीकृति से भारत को चीन और अमेरिका के साथ अपने संबंधों को संतुलित करने में मदद मिल सकती है।
    • यह भारत को भू-राजनीतिक रूप से अस्थिर भारत-प्रशांत क्षेत्र में कुछ रणनीतिक छूट भी दे सकता है।
  • द्विपक्षीय संबंधों में सुधार:
    यह भारत-चीन द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ा सकता है और भू-राजनीतिक तनाव को कम कर सकता है।

आर्थिक रणनीतियाँ:

  • लागत और समय प्रभावी:
    डॉलर के माध्यम से लेनदेन  न होने के कारण प्रत्यक्ष रूप से रुपया-युआन समझौता भारतीय आयातकों और निर्यातकों के लिए लागत और समय-प्रभावी हो सकता है, जिससे लेनदेन का समय और विदेशी मुद्रा की हानि कम हो जाएगी।
  • डॉलर पर निर्भरता कम करना:
    यह अपने व्यापार निपटान के लिए अमेरिकी डॉलर पर भारत की निर्भरता को कम करने में सहायता कर सकता है, जिससे भारत को अपनी व्यापार नीति पर अधिक नियंत्रण मिलेगा।
  • द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा:
    भारत-चीन के बीच व्यापार 2019 में लगभग 77.7 बिलियन डॉलर था जिसे इस कदम से और बढ़ावा दिया जा सकता है, जिस कारण भारत की आर्थिक वृद्धि में यह सहायक होगा।

वैश्विक मुद्रा व्यवस्था में भारत की भूमिका के निहितार्थ:

  • बहु-ध्रुवीय मुद्रा व्यवस्था को बढ़ावा देन:
    इस कदम को भारत के बहुध्रुवीय वैश्विक मुद्रा व्यवस्था के समर्थन के रूप में देखा जा सकता है।  इससे अमेरिकी डॉलर के आधिपत्य को चुनौती भी दी जा सकती है।
  • वैश्विक प्रभाव में वृद्धि:
    वैश्विक वित्तीय मानदंडों और प्रथाओं को आकार देने में भारत का प्रभाव और अधिक बढ़ सकता है साथ ही अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों में भारत अपना कद बढ़ा सकता है।

हालाँकि, यह बदलाव संभावित परिणामों के बिना नहीं है:

  • युआन की अस्थिरता:
    युआन अपनी अस्थिरता के लिए जाना जाता है, और रुपये को सीधे युआन से जोड़ने से भारतीय व्यापारियों को मुद्रा में उतार-चढ़ाव का अधिक जोखिम हो सकता है।
  • भू-आर्थिक तनाव:
    अमेरिका और चीन के बीच चल रही आर्थिक प्रतिद्वंद्विता को देखते हुए इस कदम से अमेरिका के साथ भू-आर्थिक तनाव पैदा हो सकता है।
  • चीन की वित्तीय शक्ति:
    अनसुलझे सीमा मुद्दों और दोनों देशों के बीच चल रही आर्थिक प्रतिद्वंद्विता को देखते हुए यह चीन की बढ़ती वित्तीय शक्ति को और बढ़ा सकता है, जिसका भारत के लिए रणनीतिक प्रभाव पड़ सकता है।

निष्कर्ष:

व्यापार निपटान के लिए युआन स्वीकार करने की दिशा में भारत का बदलाव उसके लिए एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है, जो उसके भू-राजनीतिक हितों और आर्थिक रणनीतियों के अनुरूप है। हालाँकि  इस बदलाव के कारण आने वाले संभावित जोखिमों और चुनौतियों का सावधानीपूर्वक कूटनीतिक और आर्थिक पैंतरेबाज़ी के साथ प्रबंधन करना आवश्यक है।

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